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धरा – भाग 3 : धरती पर बोझ नहीं बेटियां

दुख तो इस बात का हो रहा था कि एक मां हो कर भी वह अपने बच्चे को बचा नहीं पा रही थी. पेट पर हाथ रख वह अपने अजन्मे बच्चे से माफी मांगती और कहती कि इस में उस की कोई गलती नहीं है. वह तो चाहती है कि वह इस दुनिया में आए. लेकिन उस के पापा और दादी ऐसा नहीं चाहते. आधी रात में ही वह हड़बड़ा कर उठ बैठती और जोरजोर से हांफने लगती. फिर अपने पेट पर हाथ फिराते हुए कलप उठती.

नींद में जैसे उस के पेट से आवाज आती, ’मां, मुझे मत मारो… मुझे भी इस दुनिया में आने दो न मां… बेटी हूं तो क्या हुआ… बोझ नहीं बनूंगी, हाथ बटाऊंगी… गर्व से आपbका सिर ऊपर उठवाऊंगी. बेटी हूं… इस धरा की… इस धरा पर तो आने दो मां,’ कभी आवाज आती, ‘तेरे प्यारदुलार की छाया मैं भी पाना चाहती हूं मां… चहकचहक कर चिड़िया सी मैं भी उड़ना चाहती हूं मां… महकमहक कर फूलों सी मैं भी खिलना चाहती हूं मां. मां, पता है, मुझे पापा और दादी नहीं चाहते कि मैं इस दुनिया में आऊं. लेकिन, तुम तो मेरी मां हो न, फिर क्यों नहीं बचा लेती मुझे? मुझे कहीं अपनी कोख में ही छुपा लो न मां. बोलो न मां, क्या तुम भी नहीं चाहती मैं इस दुनिया में आऊं?’ शिखा अकबका कर नींद से उठ कर जाग बैठती और अपना पेट पकड़ कर सिसकते हुए कहती, “नहीं, मैं तुम्हें नहीं मारना चाहती. लेकिन, तुम्हारी दादी और पापा तुम्हें इस दुनिया में नहीं आने देना चाहते हैं, तो मैं क्या करूं? प्लीज, मुझे माफ कर दो, मेरी बच्ची,“ शिखा चित्कार करती कि कोई उस के बच्चे को बचा ले.

आखिर कोई तो कहे, शिखा यह बच्चा नहीं गिरवाएगी, जन्म देगी इसे, क्योंकि इस का भी अधिकार है इस दुनिया में आने का. लेकिन ऐसा कोई नहीं था इस घर में, जो इस अनहोनी को रोक सके. वह चाहती तो अपने पति और सास के खिलाफ भ्रूण हत्या के मामले में केस कर सकती थी. पर, फिर अपनी 3 मासूम बच्चियों का खयाल कर चुप रह जाती. औरत यहीं पर तो कमजोर पड़ जाती है और जिस का फायदा पुरुष उठाते हैं. लेकिन यहां तो एक औरत ही औरत की दुश्मन बनी बैठी थी. एक औरत ही नहीं चाहती थी कि दूसरी औरत इस दुनिया में आए.

भगवान और पूजापाठ में अटूट विश्वास रखने वाली सुमित्रा से किसी बाबा ने कहा था कि महापूजा करवाने से जरूर शिखा को इस बार लड़का होगा.

उस बाबा की बात मान कर पूजा पर हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी जब शिखा के पेट में लड़की होने की बात पता चली, तो बाबा बोले कि जरूर उस पूजा में कोई चूक रह गई होगी, जिस के चलते शिखा के पेट में फिर से लड़की आ गई. बेटे के लिए शिखा ने वो सब किया, जोजो सुमित्रा उस से करवाती गई. लेकिन, इस के बावजूद उस के पेट में लड़की आ गई तो क्या करे वह…? अंधविश्वास का ऐसा चश्मा चढ़ा था सुमित्रा की आंखों पर कि एक भी काम वह बाबा से पूछे बिना नहीं करती थी. अभी पिछले महीने ही ग्रहशांति की पूजा के नाम पर उस बाबा ने सुमित्रा से हजारों रुपए ऐंठ लिए. लेकिन यही सुमित्रा जरूरतमंदों या किसी गरीब असहाय इनसान की एक पैसे से भी मदद कर दे, आज तक ऐसा नहीं हुआ कभी. दया नाम की चीज ही नहीं है सुमित्रा के दिल में. तीनों पोतियां तो उसे फूटी आंख नहीं सुहाती. जब देखो, उन्हें झिड़कती रहती हैं. बातबात पर तानाउलाहना तो मामूली बात है. लेकिन जब नातेरिश्तेदारों के सामने भी सुमित्रा शिखा और उस की बेटियों का अपमान करती है, तो उस का कलेजा दुख जाता है.

औफिस से आते ही अरुण ने बताया कि डाक्टर ने कल का समय दिया है और इस के लिए उस ने छुट्टी भी ले ली है. लेकिन, शिखा ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया और किचन में चली गई. समझ नहीं आ रहा था उसे कि क्या करे. कैसे कहे अरुण से कि वह अपनी बच्ची को नहीं मारना चाहती, जन्म देना चाहती है इसे, क्योंकि इस का भी हक है इस दुनिया में आने का. लेकिन जानती है कि इस बात से घर में कोहराम मच जाएगा. और अरुण तो वही करेगा, जो उस की मां चाहती हैं. इसलिए वह आंसू पी कर रह गई.

रात में जब अरुण अपने लैपटौप पर व्यस्त था, तब बड़ी हिम्मत जुटा कर शिखा बोली, “अरुण, सुनो न… मत करो न ऐसा. गलती क्या है इस की. यही न कि यह एक लड़की है. लेकिन आज लड़कियां किसी भी बात में कम है क्या? कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, झूलन गोस्वामी, ये सब बेटियां ही तो हैं, तो क्या इन्होंने अपने मातापिता का नाम ऊंचा नहीं किया? और अपने ही घर में खुद नीता दीदी को देखो न. आज वह इतने बड़े बैंक में मैनेजर हैं. बैंक की तरफ से वह विदेश भी जा चुकी हैं. गरीब परिवारों की बेटियों को भी देख लो न. जब परिवार पर जिम्मेदारियों का बोझ पड़ा, तो बेटियां आटोरिकशा और ट्रेन तक चलाने लगीं. आज की बेटियां तो चांद तक पहुंच चुकी हैं. हवाईजहाज उड़ाने लगी हैं,“ शिखा की बात पर कोई ध्यान न दे कर अरुण वैसे ही लैपटौप चलाता रहा.

 

अधूरी रह गई फैशन ब्लॉगर की मोहब्बत

आकाश गौतम ने दीवानों की तरह रितिका को प्यार किया. वह प्रेमी से पति तो बन गया, लेकिन अपना फर्ज नहीं निभा पाया. इसी दौरान वह अपनी कमी पर परदा डालने के लिए एक दिन मोहब्बत की नगरी आगरा पहुंच गया. वहां वह अपने ही प्यार का ऐसा कातिल बना कि…

लड़ाई पति पत्नी की, खिंचाई दोस्तों की

‘‘दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय,’’ जी हां, यही हाल होता है पतिपत्नी के बीच में पड़ने वालों का. लेकिन किसी न किसी को तो दोनों की लड़ाई में बीचबचाव करना ही पड़ता है. पति चाहता है कि दोस्त पत्नी का साथ देने के बजाय उस का साथ दे, वहीं पत्नी भी यही चाहती है कि कम से कम दोस्त की पत्नी तो उस की तरफदारी करे.

अब अगर दोस्त अपने दोस्त का पक्ष लेता है तो दोस्त की पत्नी उस से नाराज हो जाएगी और अगर दोस्त दोस्त की पत्नी का साथ देता है तो दोस्त उस से नाराज हो जाएगा और सब से बड़ी बात यह कि जब पतिपत्नी में सुलह हो जाएगी तो बीचबचाव करने वाले दोस्त की उन की नजरों में कोई अहमियत नहीं रह जाएगी.

अपर्णा का पति राज अपनी पुरानी महिला मित्र को अपनी शादी का अलबम दिखाने के लिए अपने कमरे में ले गया. थोड़ी देर बाद अपर्णा जब कमरे के पास पहुंची तो देखा, राज ने दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था. अपर्णा के मन में कई सवाल उठने लगे और उस का मूड खराब हो गया और फिर पति की मित्र के जाते ही दोनों में खूब झगड़ा हुआ.

असमंजस की स्थिति

दिनेश और राज बहुत अच्छे दोस्त थे. अब अगर दिनेश अपने दोस्त राज की बात को नकारता तो राज कहता कि मेरी पत्नी से डरता है. जबकि राज की पत्नी अपर्णा अपनी जगह बिलकुल ठीक थी. अत: दिनेश यह सोच कर चुपचाप खिसक लिया कि अगर वह दोनों का घर बचा नहीं सकता तो तोड़ने वाली बात करने का भी उसे कोई हक नहीं है.

दोस्त की जहां एक गलत बात बसाबसाया घर उजाड़ सकती है वहीं अगर वह समझदारी दिखाए तो टूटते घर को बचा भी सकता है. मगर मुश्किल वहां आती है जब पतिपत्नी झगड़ते हैं. ऐसे में पत्नी चाहेगी कि सिर्फ उस का पक्ष लिया जाए और पति चाहेगा कि सिर्फ उस का पक्ष लिया जाए. दोस्त चूंकि पुराने परिचित होते हैं, इसलिए पत्नी की भी वे उतनी ही इज्जत करते हैं जितनी कि अपने दोस्त यानी पति की.

लेकिन जहां जरा सा भी पति का पक्ष लिया नहीं कि पत्नी शुरू हो जाएगी, ‘‘हां, तुम तो कहोगे ही…मर्द जो ठहरे. तुम तरफदारी नहीं करोगे तो कौन करेगा? लगता है, औफिस से आने के बाद आप भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते होंगे और वह (पत्नी) बेचारी अकेली खटती रहती होगी. तभी आप इन का पक्ष ले रहे हैं.’’

मन की बातें

अब फुजूल में फंस गया न दोस्त. आया था सम?ौता कराने, मगर यहां तो उलटे उस के ही घर पर चिनगारी फेंकी जाने लगी. अब ऐसे में वह पहले अपना घर बचाए या दूसरों का?

ऐसी हालत में दोस्त अकसर किनारा कर जाते हैं. पर कुछ पारिवारिक दोस्त ऐसे भी होते हैं जो चाह कर भी लड़ने वाले पतिपत्नी को अकेला नहीं छोड़ पाते हैं, उन की लड़ाई सुलझाने की कोशिश करते हैं. मगर यदि कोई पतिपत्नी लड़तेलड़ते दोस्त के घर ही पहुंच जाएं,  तब क्या करेगा दोस्त? तब भी कोई न कोई तो बीच का रास्ता निकालना ही पड़ेगा ताकि वे झगड़ा बंद कर दें और साथ ही दोस्त का अपना घर भी उन के गुस्से की लपटों से बचा रहे.

दोस्त लड़ने वाले पतिपत्नी से कह सकता है कि दोनों अपनीअपनी जगह सही हैं. मैं तुम दोनों की इज्जत करता हूं. अत: दोनों को लड़ते नहीं देख सकता. तुम्हारे घर का टूटना मुझसे बरदाश्त न होगा. बेहतर है कि दोनों मेरे सामने बैठ कर मन की बातें खोल लें.

दोस्त को चाहिए कि जैसे ही पतिपत्नी झगड़ने लगें वहीं बात रुकवा कर बात का रुख बदलने की कोशिश करे. जो पक्ष हावी हो उसे छोड़ कमजोर पक्ष को सहारा दे कर उस का मन जीते. कमजोर पक्ष का बचाव करना जरूरी है वरना दोस्त पर पक्षपात का आरोप लगते देर नहीं लगेगी और फिर लड़ाई खत्म होने के बजाय बढ़ेगी ही.

सुलह की कोशिश

एक और उपाय है कि उस दंपती की छोटीछोटी बातों को मजाक में ले कर माहौल को हलका बना दिया जाए. लड़ने वाली जगह से एक को हटा दीजिए. लड़ाई का असर कम हो जाएगा. बातों का तीखापन कम हो जाएगा. बहुत सी बातें आईगई हो जाएंगी.

पत्नी और पति को अलगअलग समझाने की कोशिश करें. दोनों के गुस्से का पारा नीचे उतरेगा तो बात को समझने की कोशिश अवश्य करेंगे. दोस्त को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह अपनी ओर से चिनगारी भड़काने वाले शब्दों का इस्तेमाल न करे. न ही किसी एक पक्ष को इतना नीचा दिखाए कि जब उस लड़ने वाले दंपती में सम?ौता हो तो दोस्त की कीमत उन के लिए दो कौड़ी की भी न रह जाए.

अपनी अच्छी सेहत को दें लिफ्ट वर्टिकल गार्डनिंग के साथ

कहते हैं कि स्वच्छ वातावरण, साफ हवा और खुश मन, ये तीनों ही जरूरी होते हैं एक स्वस्थ शरीर के लिए, लेकिन, आज बड़ेबड़े शहरों में छोटेछोटे फ्लैट्स में रहने का चलन तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है. और शायद यही एक वजह है, जिस के चलते आज हम शुद्ध वातावरण और साफ हवा से कहीं दूर होते जा रहे हैं, जो सीधा हमारी सेहत पर असर डाल रहे हैं. ऐसे में वर्टिकल गार्डनिंग का चलन तेजी से देखा जा सकता है.

तो क्या है यह वर्टिकल गार्डनिंग का कौंसेप्ट, बता रहे हैं यहां :

क्या है वर्टिकल गार्डनिंग?

यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिस के द्वारा आप फ्लैट्स के अंदर कम जगह में ही अपनी सेहत के लिए जरूरी पौधों और फूलों को दीवार या जमीन पर एक सपोर्ट देते हुए पंक्तिबद्ध तरीके से लगवा सकती हैं.

इन पौधों और फूलों की सहायता से आप अपने घर के अंदर और आसपास के वातावरण में मौजूद कार्बनडाईऔक्साइड जैसे हानिकारक तत्त्वों को दूर कर खुद और अपने परिवार के सदस्यों को स्वच्छ हवा देने के साथसाथ अपने इंटीरियर को भी दे सकती हैं एक नया और स्टाइलिश लुक.

कैसे काम करता है वर्टिकल गार्डनिंग का ढांचा?

आप के फ्लैट्स के अनुसार वर्टिकल गार्डन के लिए मैटल के स्टैंडनुमा ढांचे बाजार में अब हर साइज और शेप में उपलब्ध हैं. इन के अंदर छोटेछोटे गमलों को एक कतार में उन की साइज और शेप के अनुसार उचित दूरी पर स्टैपल कर के रखा जाता है.

इस के बाद पौधों में आवश्यक मिट्टी और खाद इत्यादि मिलाने के बाद उन्हें पानी देने के लिए इस पूरे स्ट्रक्चर में पाइप का एक पैटर्न बनाया जाता है. इस में एक ही साइज के कई छेद होते हैं, जिन के द्वारा सभी पौधों या फूलों को सही और उपयुक्त मात्रा में पानी दिया जाता है.

घर में रहेगा खुशी का माहौल

स्वस्थ रहने के लिए खुश रहना जरूरी होता है. कहा भी गया है कि हरियाली है जहां, खुशहाली है वहां. पेड़पौधों में से निकलने वाली औक्सीजन आप के मूड को अच्छा रखने में काफी कारगर होती है. इस के चलते सभी प्रकार की चिंताओं और समस्याओं को भूल कर मन अपनेआप ही खुश हो उठता है. तो, क्यों ना आप भी वर्टिकल गार्डन के द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को दें एक स्ट्रैस फ्री और हैल्दी वातावरण.

बोल उठेंगी पुरानी दीवारें

इस के द्वारा आप अपने घर की दीवारों को भी दे सकते हैं एक नया और स्टाइलिश लुक. यों तो अमूमन लोग अपने घर की दीवारों पर नया पेंट करवाते हैं, लेकिन आप अपने घर की पुरानी दीवारों पर वर्टिकल गार्डनिंग के कौंसेप्ट से नई जान डाल सकते हैं.

इस के लिए आप फर्न्स और मौस के पौधों को एक वुडन फ्रेम में लगा सकते हैं. इसे थोड़ा सा स्टाइलिश बनाने के लिए वुडन फ्रेम को डायनिंग या लिविंग रूम की दीवार पर एक पेंटिंग की तरह टांग सकते हैं. इस से आप की पुरानी दीवारों को एक नया और क्रिएटिव लुक मिल जाएगा.

पौधों के चयन का रखें खास खयाल

एक सही और अच्छे वर्टिकल गार्डन के लिए जगह के अनुसार पौधों का चयन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इन पौधों के चयन में उस जगह के लोकल क्लाइमेट जैसे- न्यूनतम तापमान, सूरज की किरणों की दिशा और अवधि, हवा की रफ्तार और रुख इत्यादि एक अहम भूमिका निभाते हैं.

अपने वर्टिकल गार्डन के लिए पौधों का चयन करते समय निम्न बिंदुओं का खास खयाल रखें :

* एक परफैक्ट वर्टिकल गार्डन के लिए ज्यादातर लताओं वाले, ऊपर की ओर बढ़ने वाले और गूदेदार पौधों का ही चयन किया जाता है.

* चयनित पौधे सूखे, छाया और धूप तीनों ही अवस्था में खिलने वाले हों.

* अच्छी बढ़वार वाले पौधे या फूलों का चयन करें.

* पौधे कम लंबाई वाले हों.

* कितनी डैंसिटी होनी चाहिए पौधों की?

* ध्यान रखें कि पौधों की डैंसिटी 30 पौधे प्रति स्क्वायर मीटर होनी चाहिए. साथ ही, आप के इस वर्टिकल गार्डन के पौधों और फ्रेम इत्यादि को मिला कर कुल वजन 30 किलोग्राम/मीटर2 होना चाहिए.

घर के अंदर लगाए जाने वाले पौधे

अगर आप अपने घर के अंदर डायनिंग रूम या लिविंग रूम की दीवारों पर वर्टिकल गार्डन बनवाना चाहते हैं, तो आप फिलोडेन्ड्रान और एपीप्रेम्नम या गेस्नेरियाड्स के पौधे जैसे : एकाइनेन्थस, कालमिया और सेंटपौलिया के पौधों के अलावा पेपेरोमिया और बेगानिया या नेफ्रोलेपिस और टेरिस जैसे विभिन्न प्रकार के फर्न्स भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

साथ ही, क्लोरोफाइटम के पौधे घर के वातावरण में मौजूद नुकसानदेह कार्बनमोनोऔक्साइड, फार्माल्डीहाइड और जाइलिन जैसे हानिकारक प्रदूषित तत्त्वों को दूर कर के स्वच्छ हवा के साथसाथ सेहत के लिए जरूरी पोषक तत्त्व भी मुहैया कराते हैं.

लाइट और पानी का रखें खास खयाल

वर्टिकल गार्डन में लगने वाले पौधों और फूलों की अच्छी सेहत के लिए सही मात्रा में सूरज की किरणें और पानी आवश्यक होते हैं, इसीलिए यह सुनिश्चित करें कि उन्हें ऐसी जगह पर लगाएं, जहां सूरज की किरणें सही तरीके से आती हों. साथ ही, एक ही प्रकार के पौधों को एक ही स्थान पर लगाएं, ताकि उन्हें उपयुक्त मात्रा में पानी एकसाथ मिल जाए.

आटोमैटिक सिंचाई का विकल्प है बैस्ट

अपने वर्टिकल गार्डन में लगे पौधों को पानी देने के लिए हार्डवर्क न कर स्मार्टवर्क कर के लगा सकती हैं थोड़ा युनीक स्टाइल का तड़का. जहां एक ओर पौधों को पानी देने के लिए और लोग हाथ से चलाने वाले स्प्रेयर का इस्तेमाल करते हैं, वहीं आप आटोमैटिक आपरेटेड वर्टिकल गार्डनिंग का ढांचा लगवा सकती हैं.

आटोमैटिक ढांचे के अंदर पाइप के एक पैटर्न को पानी की टंकी के साथ जोड़ कर पूरे ढांचे में लगे पौधों और फूलों को एकसाथ बराबर और पर्याप्त मात्रा में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जाती है और वह भी कुछ ही मिनटों में.

इस तरह की व्यवस्था से आप पौधों और फूलों को कम समय में पानी देने के साथसाथ उन की अच्छी सेहत और लंबी आयु सुनिश्चित कर सकते हैं.

दे सकती हैं अपनी कलात्मक सोच को उड़ान

किसी भी वर्टिकल गार्डन के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप पौधे या फूल सिर्फ गमलों में ही लगाएं. इस के लिए आप अपने घर में बेकार पड़े हुए पुराने प्लास्टिक के डब्बे, कौफी मग, जार, बोतल इत्यादि में भी पौधों और फूलों को लगा कर एक नया स्टाइलिश लुक दे सकते हैं.

पौधों की सेहत के लिए कुछ जरूरी बातें

* इंडोर प्लांट्स को ज्यादा एयरकंडीशनर वाले कमरे में रखने से बचाएं. ऐसे कमरों में पौधों को ज्यादा लंबे समय तक रखने से उन की नमी सूख जाती है. इस वजह से पौधों को सही तरह से बढ़ने में परेशानी होती है.

* खाद और सही मात्रा में कीटनाशक का इस्तेमाल जरूरी है. इस से पौधों में लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीट और कीटाणुओं को नियंत्रण करने में मदद मिलेगी.

* पौधों की अच्छी सेहत के लिए गमलों में मिट्टी, कोकोपीट इत्यादि जैसी जरूरी चीजें डालें. इस से पौधों को उन की अच्छी सेहत के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व मिल सकेंगे.

* नियमित रूप से पौधों की लंबाई को नियंत्रित करें. ऐसा करने से पौधों की लंबी उम्र को सुनिश्चित किया जा सकता है.

* पौधों और फूलों की किस्म के अनुसार उचित मिट्टी का चयन जरूरी है .

जरूरत पड़ने पर वर्टिकल गार्डनिंग के विशेषज्ञ से जरूर संपर्क करें.

(डा. तोलेटी जानकीराम, कुलपति, वाईएसआर हौर्टिकल्चरल यूनिवर्सिटी, आंध्र प्रदेश एवं पूर्व सहायक महानिदेशक, बागबानी विज्ञान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से बातचीत पर आधारित.)

चीन का पैसा और आत्महत्याएं

कहते हैं कि जिसकी जैसी फितरत होती है वह बदलती नहीं बल्कि नए-नए स्वरूप में सामने आकर के अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है. हमारे पड़ोसी देश चीन के साथ भी भारत का कुछ ऐसा ही संबंध है. हालत यह है कि चीन की रूग्ण मानसिकता के कारण हर एक हालात में भारत और यहां के आम लोग धोखा ही पाते हैं . अब एक नए स्वरूप में चीन ने भारत के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने का ऐसा प्रयास किया है कि जिसके परिणाम स्वरूप देश के आम लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
दरअसल, चीन की कुछ कंपनियां देशभर में लोगों को ब्याज में पैसा देने क्या काम कर रही है और उनके ब्याज और ब्लेक मेलिंग के कारण आए दिन लोग आत्महत्या कर रहे हैं.

जब इस तरह की हकीकत भरी कहानियां देश भर में सुर्खियां बटोरने लगी है तो नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के कान खड़े हुए हैं और अब उन्होंने संज्ञान लेते हुए एडवाइजरी जारी की है और प्रवर्तन निदेशालय आदि संस्थाओं को भी सचेत रहने का निर्देश दिया है.इस गंभीर मामले में जिस तरीके का त्वरित एक्शन केंद्र सरकार को लेना चाहिए था उसमें देर हुई है अभी भी जिस तरीके से सरकार को एक्शन लेना चाहिए और प्रतिबंध लगा देना चाहिए उस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है.

चीनी कंपनियों की साहूकारी
जिस तरह आज से कुछ दशक पहले देश भर में साहूकारी चलती थी और उसके दृश्य ब दृश्य कहानियां किस्से प्रचलित है और फिल्मों में हम आज भी देखते पढ़ते हैं.यही सब कुछ अब एक नए स्वरूप में सामने आया है. चीन की कंपनियां भारत में आम लोगों को प्याज में पैसे देने का काम कर रही है और आगे चलकर प्रताड़ना का ऐसा दौर चलाया जाता है की आत्महत्या करने की अलावा लोगों और कोई चारा नहीं रहता.अब जा कर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कर्ज देने वाले मोबाइल ऐप के खिलाफ कानून प्रवर्तन एजंसियों को कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. क्योंकि चीन के नियंत्रण वाली इन कंपनियों के उत्पीड़न और पैसा वसूल करने के सख्त तरीकों की वजह से आत्महत्या की अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं.

आखिरकार गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि इस मसले के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर बड़ा गंभीर असर हो रहा है. इसमें स्वीकार किया गया है कि देशभर से बड़ी संख्या में ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि डिजिटल तरीके से कर्ज देने वाली गैरकानूनी ऐप विशेषकर कमजोर और निम्न आय वर्ग के लोगों को ऊंची ब्याज दरों पर कम अवधि के कर्ज या सूक्ष्म कर्ज देती है और इसमें छिपे शुल्क भी होते हैं.

ये कंपनियां कर्जदारों के संपर्क, स्थान, तस्वीरों और वीडियो जैसे गोपनीय निजी डाटा का इस्तेमाल कर उनका उत्पीड़न करती हैं और उन्हें भयाक्रांत कर उनका ब्लैकमेल भी कर रही हैं.
देखा जाए तो यह बेहद गंभीर मामला है और इसमें अपराधिक प्रक्रिया के तहत पुलिस मामले दर्ज कर सकती है मगर ऐसा नहीं हो पा रहा है .सच तो यह है कि लगभग साल भर से चीन की कंपनियां लोगों को ब्याज पर पैसा देने का काम कर रही है और लोग प्रताड़ित होकर के आत्महत्या कर रहे हैं यही कारण है किगृह मंत्रालय ने कहा, ‘कर्ज देने वाली गैरकानूनी कंपनियों के खराब रवैये के कारण देशभर में क लोगों की जान चली गई है.

उल्लेखनीय है कि गृह मंत्रालय के मुताबिक, जांच में यह पाया हैं कि यह एक संगठित साइबर अपराध है जिसमें अस्थायी ईमेल, आभासी नंबर, अनजाने लोगों खातों, मुखौटा कंपनियों के जरिए अंजाम दिया जाता है .

अक्तूबर महीने में फसल संबंधित सलाह

कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर अक्तूबर माह में फसल संबंधित सलाह धान की फसल में यूरिया की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग रोपाई के 55 से 60 दिन बाद 60-65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें. ध्यान रहे कि टौप ड्रैसिंग करते समय खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर से अधिक पानी न हो.

* मक्के की फसल में बारिश न होने की स्थिति में जरूरत के मुताबिक हलकी सिंचाई कर उचित नमी बनाए रखें.

* किसान वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई इस समय कर सकते हैं. जल निकास का उचित प्रबंध रखें. * जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को मद्देनजर रखते हुए रोपाई मेंड़ों (उथली क्यारियों) पर करें और जल निकास का उचित प्रबंध रखें.

* केले/पपीते के बागों की गुड़ाई कर के तने के चारों तरफ 25 से 30 सैंटीमीटर ऊंची मिट्टी चढ़ा कर स्टैंडिंग करें. फसल सुरक्षा

* इस मौसम में धान की फसल मुख्यत: वानस्पतिक बढ़त की स्थिति में है. लिहाजा, फसल में पत्ता मरोड़ या तना छेदक कीटों की निगरानी करें. तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फैरोमौन प्रपंच 3-4 प्रति एकड़ लगाएं.

* इस समय धान की फसल में खैरा रोग के प्रकोप की संभावना होती है, जिस में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. बाद में इन पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए जिंक सल्फेट की 5 किलोग्राम मात्रा को 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 1,000 लिटर पानी में घोल कर प्रयोग करें.

* टमाटर, मिर्च, बैगन, फूलगोभी व पत्तागोभी वगैरह सब्जियों में फल छेदक, शीर्ष छेदक व फूलगोभी व पत्तागोभी में डायमंड बैक मोथ की निगरानी के लिए फैरोमौन ट्रैप 3-4 प्रति एकड़ लगाएं. * कद्दूवर्गीय सब्जियों को ऊपर चढ़ाने की व्यवस्था करें, ताकि वर्षा से सब्जियों की लताओं को गलने से बचाया जा सके.

* किसान प्रकाश प्रपंच यानी फैरोमौन ट्रैप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बरतन में पानी और थोड़ी कीटनाशक दवा मिला कर एक बल्ब जला कर रात में खेत के बीच में रखे दें. रोशनी से कीट आकर्षित हो कर उसी घोल पर गिर कर मर जाएंगे. प्रकाश प्रपंच से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों का नाश होगा.

* किसानों को सलाह है कि बाजरा, मक्का व सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराईगुड़ाई का काम शीघ्र करें और सभी फसलों में सफेद मक्खी और चूसक कीटों की नियमित निगरानी करें.

* कद्दूवर्गीय व अन्य सब्जियों में मधुमक्खियों का बड़ा योगदान है, क्योंकि वे परागण में मदद करती हैं, इसलिए जितना संभव हो सके, मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें. कीड़ों व रोगों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाओं का प्रयोग करें.

रोबोटिक सर्जरी

दुनियाभर के हैल्थ सिस्टम में तकनीकी बदलाव हो रहे हैं. अस्पतालों में औपरेशन के लिए रोबोटिक सर्जरी तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा मिल रहा है. हैल्थ केयर में सुविधा के तौर पर इसे देखा जा रहा है. अब चिकित्सक के हाथ नहीं, बल्कि यांत्रिक बांहों वाले उपकरण सर्जरी करेंगे और चिकित्सक दूर बैठे ऐसा होता देख सकेंगे. अगर रोबोट घर के काम में मदद कर सकता है तो औपरेशन में क्यों नहीं? विज्ञानकथा जैसी अवधारणा अब संभव है.

तभी तो अब यह डाक्टर के नहीं, रोबोट के हाथ में है कि वह सावधानी से आप के पेट को काटे, फिर यूट्रस में स्थित ट्यूमर को हटाए और आप देखें कि आप के पेट या शरीर पर टांकों का निशान तक नहीं आया है. यह सब तब होता है जब डाक्टर 6 मीटर की दूरी पर बैठा हो. मानव जीवन विकसित हो रहा है और उस के साथ ही तकनीक भी. इसीलिए चिकित्सा क्षेत्र में रोबोट की मदद औपरेशन विधि को आसान बना रही है. इस प्रक्रिया में सर्जन सारे चरणों को कोनसोल (स्विच और नौब का पैनल जिन का प्रयोग मशीन चलाने के लिए किया जाता है) से कंट्रोल करता है.

इस दौरान वह वही गतिविधियां करता है जो वह पारंपरिक सर्जरी में करता है. ये गतिविधियां 4 रोबोटिक बांहों और उपकरणों में संचारित की जाती हैं जो वास्तव में मरीज की सर्जरी करते हैं. रोबोटिक उपकरणों का फायदा यह है कि उन की गति में वह पकड़ होती है जो इंसान की कलाई और उंगलियों में नहीं होती और उसे थ्रीडी में देखा जा सकता है. इस से लंबे औपरेशन के दौरान डाक्टर को थकावट का सामना नहीं करना पड़ता. ये रोबोटिक बांहें 5-10 मिलीमीटर के छेदों से काम करती हैं और इस में दर्द भी कम होता है. केस स्टडी 1 पलवल गांव के 81 वर्षीय धरमपाल सिंह का रोबोटिक सर्जरी के माध्यम से सिंगल वेसल बाईपास किया गया.

उन की कोरोनरी धमनियों में ब्लौकेज था जिस से धमनियों की अंदरूनी सतह पर कोलैस्ट्रौल और फैट जमा हो गया था. और ब्लौकेज की वजह से ब्लड सर्कुलेशन में दिक्कत आ रही थी. औपरेशन करने के 5 दिनों बाद ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई और अब वे पूरी तरह स्वस्थ व फिट हैं. रोबोटिक सर्जरी में हार्ट के औपरेशन के लिए सर्जरी की आम विधि के विपरीत केवल तीनचार छोटे चीरे लगाए जाते हैं और हार्ट तक पहुंचने के लिए छाती को नहीं खोला जाता है.

कम दर्द, जल्दी रिकवरी, कम ब्लड लौस और इन्फैक्शन के कम खतरे के साथसाथ अस्पताल में भी कम समय तक रहना पड़ता है. केस स्टडी 2 दिल्ली की दीपा वैद की रोबोटिक असिस्टेड हिस्टरक्टोमी (यूट्रस रिमूव किया गया) की गई. अत्यधिक ब्लीडिंग होने की वजह से वे काफी दिनों से परेशानी ?ोल रही थीं. उन्होंने जब इस सर्जरी के बारे में सुना तो उन्हें यह सोच कर राहत महसूस हुई कि कम से कम पेट कटने के दर्द और टांकों के निशान को नहीं सहना पड़ेगा.

आज वे एकदम हैल्दी हैं और अपने दैनिक काम चुस्ती से करने में सक्षम भी. केस स्टडी 3 18 महीने का मास्टर आदित्य खंडेलवाल ग्रेड 5 लेफ्ट वेसिको यूरेटेरिक रिफ्लक्स (वीयूआर) से पीडि़त था. उस के यूरेटर और ब्लैडर के बीच स्थित वौल्व ठीक तरह से काम नहीं कर रहा था और इस कारण उस का यूरिन फ्लो एब्नौर्मल हो गया था. जब वह यूरिन करता तो वह वापस किडनी में चला जाता और इस से इन्फैक्शन की प्रौब्लम हो गई थी. 4 छोटे कट लगा कर रोबोटिक सर्जरी द्वारा उस का औपरेशन किया गया. इस औपरेशन में केवल 2 घंटे लगे और आदित्य को तीसरे दिन छुट्टी दे दी गई.

ये तीनों ही सर्जरी इंटरनैशनल सैंटर फौर रोबोटिक सर्जरी में की गईं. आखिर क्या होती है रोबोटिक सर्जरी रोबोटिक सर्जरी सब से एडवांस्ड मिनिमली इन्वैसिव सर्जरी (एमआईएस) है. यह आमतौर पर छोटे (फिंगर टिप आकार के) चीरे के द्वारा की जाती है. इस के नाम से मन में खयाल आ सकता है कि यह जैसे रोबोट की सहायता से की जाती हो पर ऐसा है नहीं. इंटरनैशनल सैंटर फौर रोबोटिक सर्जरी के डा. अनंत कुमार के अनुसार, ‘‘रोबोटिक सर्जरी के रिजल्ट पारंपरिक सर्जरी की तुलना में अधिक पौजिटिव हैं.

इस में मरीज बहुत तेजी से स्वस्थ होता है और इस के बाद काम करने में उसे किसी तरह की परेशानी नहीं आती है. यह सुपीरियर प्रणाली अधिक सटीक टिश्यू आईडैंटीफिकेशन जैसे 3 डीएचडी विजन, 10 गुणा मैग्नीफिकेशन के साथ हाई डैफिनेशन विजन, ब्राइट, हाई रिजोल्यूशन इमेज के साथ मरीज के शरीर में बेजोड़ शक्ति प्रदान करती है.’’ चैन्नई में रोबोटिक सर्जरी से किडनी से कैंसरग्रस्त ट्यूमर बिना खुले औपरेशन के निकाले गए और किडनी को नुकसान भी नहीं हुआ. राजीव गांधी कैंसर इंस्टिट्यूट ने भारत में भी एसएसआई मंत्रारोबोटिक सर्जरी मशीन से काम शुरू कर दिया गया है. यह काम पहले डा. विंसी सिस्टम पर ही संभव था जो 5 से 12 करोड़ का है और केवल बड़े अस्पताल ही इसे लगवा पाते हैं. डा. विंसी सर्जिकल सिस्टम अमेरिका की एक कंपनी इंट्यूटिव सर्जिकल बना रही है.

इस कंपनी की मशीनों का सौफ्टवेयर अमेरिकी कंपनी के पास ही है और यदि खराब हो जाए तो कई बार महीनों मशीनें खराब रहती हैं. इसलिए मरीजों को पक्का कर के जाना चाहिए कि किस अस्पताल में रोबोटिक सर्जरी की मशीनें पर्याप्त तौर पर उपलब्ध हैं द्य होटल में जाने से पहले सुरक्षा उपाय देखें उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के होटल लिवाना सूट्स में आग लग गई. हादसे में 4 लोगों की मौत और 9 घायल हो गए. इन में लखनऊ के ही रहने वाले गुरनूर आनंद और साहिबा कौर भी थे. दोनों मंगेतर थे. इन की शादी होने वाली थी. ये गणेशगंज के सराय फाटक के रहने वाले थे. अभी हाल में दोनों की शादी तय हुई थी और दोनों मंगेतर थे. होटल में पार्टी चल रही थी, जहां ये दोनों लोग शामिल होने गए थे. आजकल अपने ही शहर में भी होटलों में रहने का कल्चर बढ़ गया है. कई बार घर छोटे होते हैं तो मेहमानों के आने पर उन को होटल में ठहरा दिया जाता है.

कई मंगेतर और दोस्त टाइप लोग भी एकांत में समय गुजारने के चक्कर में होटलों में रुकने लगे हैं. आमतौर पर कुछ लोग देररात की पार्टी के बाद जब घर जाने की हालत में नहीं रहते तो वहीं होटल में रुक जाते हैं. ऐसे में नशे में होने के कारण गहरी नींद का असर अधिक हो जाता है, जिस से किसी तरह की गंध का शुरुआत में पता नहीं चल पाता. होटल लिवाना में मरने वाले सभी की मौत दम घुटने के कारण हुई थी. इस से यह पता चलता है कि गहरी नींद में होने के कारण उन को शुरुआत में आग लगने से धुएं का पता ही नहीं चला होगा. अगर आप किसी होटल में रुक रहे हैं तो सुरक्षा उपायों को देख लें. आजकल होटलों में आग बु?ाने की सुविधा है. इस के साथ ही साथ फायर अलार्म भी होता है.

दिक्कत की बात यह होती है कि ग्राहक इन बातों की तरफ ध्यान नहीं देता है. ऐसे में सब से पहले जरूरत इस बात की होती है कि होटल को सही तरह से देख कर वहां रुकें. सुरक्षा के उपाय देख लें. खासकर इमरजैंसी में कैसे होटल से बाहर निकलना है, इस की जानकारी जरूर ले लें. ये जानकारियां आप होटल के स्टाफ या मैनेजमैंट से ले सकते हैं. अगर होटल का स्टाफ इस को देने से आनाकानी करता है तो इस की शिकायत की जा सकती है. होटल में ही एरिया के पुलिस थाने का नंबर लिखा होता है. अगर नहीं भी लिखा है तो होटल से मांग सकते हैं. आजकल इंटरनैट पर भी ऐसे जरूरी नंबर मिल जाते हैं. तमाम होटलों में सुरक्षा के यंत्र तो लगे होते हैं पर जरूरत पड़ने पर वे काम नहीं करते. ग्राहक इन को भी देख सकता है. इन की भी जानकारी होटल प्रबंधतंत्र से ले सकता है. सुरक्षा आप की है, इस का खयाल आप को ही रखना है.

छिपे हुए इश्क की अनोखी दास्तान

सुबह के ठीक 9 बजे थे. तारीख थी 7 मई, 2022. मध्य प्रदेश के जिला मुरैना थाना सिहोनिया के थानाप्रभारी पवन सिंह भदौरिया अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि तभी एक अधेड़ महिला उन की टेबल के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस के साथ एक छोटी लड़की भी थी, वह उस का हाथ पकड़े थी. महिला परेशान और कमजोर दिख रही थी. उसे भदौरिया ने कुरसी पर बैठने का इशारा किया. एक कुरसी पर वह बैठ गई और बगल की दूसरी कुरसी पर साथ आई लड़की को बैठा दिया.

उस ने जो बात बताई उसे सुन कर भदौरिया चौंक गए. परिचय देते हुए उस ने अपना नाम मीराबाई बताया. उस ने कहा कि वह स्व. रामजी लाल सखवार की विधवा है और पास के ही गांव छत्त का पुरा में रहती है.उस ने चौंकाने वाली बात यह बताई कि उस का बेटा विश्वनाथ 23 नवंबर, 2020 से ही घर नहीं आया है, जबकि वह खेतों में काम करने को कह कर गया था. वह गायब करवा दिया गया है. उस की पत्नी राजकुमारी का कहना है कि वह काम के सिलसिले में गुजरात में रह रहा है, लेकिन मुझे पूरा शक है कि उस की हत्या की जा चुकी है.

भदौरिया ने मीराबाई से उस के बेटे के बारे में कुछ और जानकारी मांगते हुए पूछा कि वह कैसे कह सकती है कि उस के बेटे की किसी ने हत्या कर दी होगी. या फिर वह इस का सिर्फ अंदेशा जता रही है?
इतना सुनते ही मीराबाई बिलखने लगी. भदौरिया ने उसे एक गिलास पानी पिलवाया और शांति से बेटे के बारे में बताने को कहा कि उस के बेटे से किस की दुश्मनी थी? वह कहां आताजाता था? पत्नी से उस के कैसे संबंध थे? उस के गायब करने के पीछे किस का हाथ हो सकता है? इत्यादि.

मीराबाई 2-3 मिनटों तक शांत बैठी रही, फिर उस ने बताना शुरू किया कि आखिर उसे क्यों अपने बेटे की मौत हो जाने की आशंका है? इस के पीछे कौन हो सकता है? उसे किस तरह से 22 महीनों तक धोखे में रखा गया? उसे अपनी बहू पर क्यों संदेह है? मीराबाई ने भदौरिया को जो कुछ बताया वह इस प्रकार है—

साहबजी, मेरे बेटे का नाम विश्वनाथ संखवार है. वह खेतीकिसानी के पुश्तैनी काम से जुड़ा रहा है. इस काम से कई बार गांव से दूसरे शहरों में भी जाता रहा है. उसे मैं ने अखिरी बार 2 साल पहले नवंबर महीने में तब देखा था, जब कोरोना फैला हुआ था. तारीख अच्छी तरह से याद है. उस रोज की 23 नवंबर, 2020 थी.वह रोज की तरह उस दिन अपने खेत पर गया था, रात गहराने पर भी जब खेत से लौट कर नहीं आया, तब मैं ने अपनी बहू राजकुमारी से उस के बारे में पूछताछ की. बहू ने मुझे बताया कि गुजरात से उन के किसी दोस्त का फोन आया था, इसलिए उन्हें अचानक गुजरात जाना पड़ गया था. वह 4-5 दिनों में लौट आएंगे.

किंतु जब बेटा 5 दिन बाद भी लौट कर नहीं आया, तब मुझे चिंता हुई. मैं ने अपनी बहू से फिर उस के बारे में पूछताछ की. उस ने अपने मोबाइल से मेरे बेटे के स्थान पर किसी और को बेटा बता कर मेरी बात करा दी. मुझे आवाज सुन कर थोड़ा संदेह हुआ, लेकिन बहू ने दबाव डाल कर कहा कि उस की बात उस के बेटे से ही हुई है. उस की थोड़ी तबीयत ठीक नहीं होने से आवाज बदली हुई लगी होगी.मुझे लगा कि हो सकता है सुनने में ऐसा हुआ हो. उस की बेटे से ही बात हुई होगी. उम्र अधिक होने और सुनने और देखने की समस्या है. जबकि सच तो यह था कि बहू मेरी इस कमजोरी का फायदा उठा कर बेटे की जगह किसी और से बात करवाती रही है. एक ही आवाज सुनसुन कर मैं ने उसे ही अपना बेटा समझ लिया.

यह तो भला हो बेटी वंदना का, जिस ने बहू के इस झांसे को पकड़ लिया. वह अपने मायके आई हुई थी. घर में अपने बड़े भाई को नहीं पा कर उस ने भी भाभी राजकुमारी से पूछताछ की.बहू ने अपनी ननद को भी बताया कि उस के भैया इन दिनों गुजरात में रह रहे हैं. किसी और को भाई बता कर मोबाइल फोन पर उस की बात करवाने लगी. बात शुरू करते ही वंदना ने कहा कि उस की बात विश्वनाथ भैया से नहीं हो रही है. कोई और आदमी उस के भाई की आवाज बना कर बात कर रहा है.

इस तरह वंदना ने भाभी के झूठ और जालसाजी को पकड़ लिया था. उस ने भाभी से पूछा कि वह भैया के बारे में सचसच बताए. इस समय वह कहां हैं? भाभी इस का सही तरह से जवाब नहीं दे पाई. इस के बाद ही बेटी वंदना ने मुझे थाने में भाई की गुमशुदगी की सूचना लिखवाने की सलाह दी.थानाप्रभारी पवन सिंह भदौरिया ने मीराबाई की जानकारी के आधार पर विश्वनाथ की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. साथ ही उन्होंने इस पर काररवाई की शुरुआत करते हुए सब से पहले मुरैना के सभी थानों में विश्वनाथ के हुलिए आदि की जानकारी उपलब्ध करवा दी.

विश्वनाथ के गायब होने की सूचना भी प्रसारित करवा दी गई. मामला एक वैसे वयस्क पुरुष के 22 माह से गुमशुदा होने से संबंधित था, जो परिवार का मुखिया था. इसलिए सिहोनिया थानाप्रभारी ने इसे गंभीरता से ले कर अपने कुछ खास मुखबिर भी लगा दिए.मुखबिरों को सौंपे गए कार्यों में एक कार्य विश्वनाथ की पत्नी के चालचलन के बारे जानकारी जुटाने का भी था. जल्द ही उन से राजकुमारी के अरविंद सखवार नाम के व्यक्ति के साथ अवैध संबंध होने के एक राज का पता चल गया.

मुखबिर ने बताया कि वह विश्वनाथ की गैरमौजूदगी में राजकुमारी से मिलने घर पर आता रहता था. विश्वनाथ के बच्चे उसे चाचा कह कर बुलाते थे. इन दिनों भी उस का आनाजाना लगा हुआ है.

भदौरिया के लिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण जानकारी थी. उन की जांच की सुई राजकुमारी और अरविंद की ओर घूम गई. इस में उन्होंने अवैध संबंध होने के तार जोड़ लिए. अब उन्हें किसी तरह राजकुमारी और अरविंद के बीच अवैध संबंध के ठोस सबूत की जरूरत थी, ताकि उन की गतिविधियों में विश्वनाथ के शामिल होने का पता चल सके.इस की तहकीकात में तेजी लाने के लिए उन्होंने अपने मातहतों को साइबर सेल की मदद लेने का निर्देश दिया. विश्वनाथ, राजकुमारी और अरविंद के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर जब उस का अध्ययन किया गया, तब पता चला कि बीते 22 महीनों में राजकुमारी और अरविंद सखवार के बीच सैकड़ों बार बातचीत हुई है.

कई बार तो उन के बीच घंटों तक बातचीत हुई थी. इसी के साथ महत्त्वपूर्ण जानकारी 23 नवंबर, 2020 के शाम की थी. उसी दिन अचानक गायब हुए विश्वनाथ, राजकुमारी और अरविंद के मोबाइल फोन नंबरों की लोकेशन सिकरोदा नहर के किनारे की पाई गई.यहां तक कि गुमशुदा विश्वनाथ और उस की पत्नी राजकुमारी एवं अरविंद सखवार का नंबर जिस मोबाइल फोन में चलाया जा रहा था, उस का आईएमईआई नंबर एक ही था.

यह जानकारी थानाप्रभारी को एक महत्त्वपूर्ण कड़ी लगी. उन्होंने तुरंत सादे कपड़ों में महिला कांस्टेबल को राजकुमारी के घर उस वक्त भेजा, जिस वक्त वह घर पर नहीं थी. कांस्टेबल ने राजकुमारी के बेटे और बेटी से पूछताछ की.उन से चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. राजकुमारी के बेटे ने तो यहां तक बताया कि 23 नवंबर की शाम को उन के घर अरविंद चाचा आए थे. मम्मी ने पापा को बाजरे का लड्डू खिलाया था. उस के बाद वह सामान खरीदने की बात कह कर उन्हें अरविंद चाचा की बाइक पर बैठा कर ले गई थी. उस दिन के बाद से पापा वापस घर नहीं लौटे हैं.

इस जानकारी से विश्वनाथ के बारे में पुलिस को एक ठोस सबूत मिल गया था. उस के बाद ही थानाप्रभारी ने 10 अगस्त, 2022 को राजकुमारी और अरविंद को थाने बुलाया. उन से अलगअलग घंटों तक पूछताछ की गई. उन से पूछताछ में सामान्य सवाल पूछे गए, जिस में इधरउधर की बातचीत ही अधिक शामिल थी. इस तरह उन पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया.धीरेधीरे राजकुमारी पर पुलिस की सख्ती बढ़ती चली गई. आखिरकार पुलिस की सख्ती के आगे राजकुमारी टूट गई. उस ने अपना जुर्म कुबूल करते हुए जो कुछ बताया, उस से विश्वनाथ की हत्या की पूरी कहानी साफ हो गई.

राजकुमारी ने बताया कि 23 नवंबर, 2020 को ही योजनाबद्ध तरीके से उस ने पति को बाजरे के आटे से बने लड्डू में नींद की गोलियां मिला दी थीं. उस के बाद बाजार से सामान खरीदने के बहाने साथ ले कर चली गई थी.नींद की गोलियों के असर से पति को गहरी नींद आ जाने पर राजकुमारी ने अपने प्रेमी अरविंद से मिल कर उस के कपड़े उतार दिए थे. उस की जेब से मोबाइल फोन और पर्स निकालने के बाद उसी अवस्था में सिकरोदा की नहर में फेंक दिया. तब उन्होंने सोच लिया कि उसे ठिकाने लगा दिया गया है और उन के रास्ते का कांटा निकल गया है.

अगले दिन यानी 24 नवंबर, 2020 को थाना सरायछोला पुलिस द्बारा नहर में बह कर आए अज्ञात व्यक्ति के शव के बरामद किए जाने की जानकारी राजकुमारी को मिली. इस की पुष्टि के लिए उस ने अरविंद को खासतौर से थाने भेजा. अरविंद ने बताया कि उस शव की शिनाख्त किसी ने नहीं की. उसे अज्ञात समझ कर पुलिस ने अंतिम संस्कार करा दिया.विश्वनाथ को रास्ते से हटाने के बारे में राजकुमारी ने उस के अरविंद के साथ प्रेम संबंध का होना बताया, जिस के बारे में उसे जानकारी हो गई थी. राजकुमारी ने बताया कि उसे ले कर विश्वनाथ के साथ झगड़े होते रहते थे. उन के दांपत्य जीवन में कड़वाहट आ गई थी.

राजकुमारी ने बताया कि उस का पति विश्वनाथ खेतीकिसानी के काम के चलते घर काफी देर से लौटता था. फिर हाथपैर धो कर खाना खाने के बाद गांव की चौपाल पर ताश खेलने निकल जाता था. ताश खेलने के बाद वह आधी रात को ही घर लौटता था. घर आते ही गहरी नींद में सो जाता था. ऐसी स्थिति में वह देहसुख से वंचित रहती थी.अरविंद विश्वनाथ के ट्रैक्टर का ड्राइवर था. वह 3 साल पहले ही राजकुमारी के संपर्क में आया था. विश्वनाथ के घर पर नहीं होने पर भी वह बेधड़क घर आताजाता रहता था. बच्चों से भी काफी घुलमिल गया था.

राजकुमारी को पहले तो मालकिन कहता था, लेकिन उस के कहने पर ही उसे भाभी कहने लगा था. कभीकभार राजकुमारी से मजाक भी कर लिया करता था. उस की गदराई देह को वह तिरछी नजरों से देखता रहता था.राजकुमारी को भी अरविंद की चिकनीचुपड़ी बातें सुनने में मजा आता था और उस के मजाक का जवाब मजाक में देने लगी थी. बहुत जल्द ही वह उस के प्रभाव में आ गई थी.
राजकुमारी ने बताया कि अरविंद ने उसे इतना प्रभावित कर दिया था कि जब तक दिन भर में एक बार उस का दीदार नहीं कर लेती थी, उसे चैन नहीं मिलता था.

बस फिर क्या था, अरविंद भी उसे चाहत भरी नजरों से ताकने लगा था. एक दिन उस ने मौका पा कर राजकुमारी को अपनी बाहों में जकड़ लिया था. वह पुरुष सुख से वंचित थी, इसलिए उसे अरविंद का रोमांस अच्छा लगा और फिर खुद को नहीं रोक पाई.राजकुमारी के अनुसार, अरविंद से उस रोज जो संतुष्टि मिली थी, वह पति के साथ कई सालों में नहीं मिली थी. वह गबरू जवान बलिष्ठ मर्द था. फिर तो दोनों ओर से जब भी चाहत जागती वे सैक्स करने का मौका निकाल लेते.

वह अकसर उस वक्त घर पर ट्रैक्टर लेने और पहुंचाने आता था, जब विश्वनाथ घर पर नहीं होता था. बूढ़ी सास को काफी कम सुनाई देता था. उस की आंखों की रोशनी भी धुंधली थी.राजकुमारी ने बताया कि एक दिन रात को अरविंद घर पर आया हुआ था. उस दौरान पति दोनों बच्चों को ले कर शादी में जयपुर गया हुआ था. घर में उस के अलावा सिर्फ सास ही थी. घर में सन्नाटा पा कर अरविंद वहीं रुक गया. उन की वह रात मौजमस्ती में गुजरी, लेकिन अलसुबह विश्वनाथ बच्चों समेत घर आ गया. उस रोज अरविंद और राजकुमारी रंगेहाथ पकड़े गए.

उस वक्त अरविंद तो विश्वनाथ की डांटडपट सुन कर चला गया, लेकिन राजकुमारी की नजर पर विश्वनाथ चढ़ गया था. उस घटना के बाद से विश्वनाथ दोनों पर नजर रखने लगा था. हालांकि उस के बाद उस ने अरविंद को नौकरी से निकाल दिया था.राजकुमारी को यह बात और बुरी लगी. उस ने अरविंद को अपनी एक योजना बताई. अरविंद साथ देने के लिए तैयार हो गया. अरविंद की वासना में अंधी राजकुमारी ने अपने सुहाग को ही दांव पर लगा दिया था.

इस तरह से विश्वनाथ की हत्या के बाद वह अपने बच्चों को गांव में बूढ़ी सास के सहारे छोड़ कर मुरैना में कमरा ले कर रहने लगी थी.हालांकि वह बीचबीच में बच्चों और सास से मिलने गांव आ जाती थी. सास को झांसा दिए रहती थी कि उस ने विश्वनाथ के गुजरात जाने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी अपने सिर पर उठा ली है.विश्वनाथ की गुमशुदगी के मामले में थाना सिहोनिया पुलिस ने राजकुमारी और उस के प्रेमी अरविंद को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर दिया, जहां दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद विश्वनाथ की पत्नी और उस के प्रेमी को जेल भेज दिया गया.
राजकुमारी ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह अपने पति की हत्या की अपराधी भी बन गई और उस के साथ उस का प्रेमी फंस गया. जो सोच कर उस
ने पति की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो.

DIWALI 2022: आओ मनाएं हरी भरी दीवाली

दीवाली में परिजनों, दोस्तों, पड़ोसियों, स्टाफ मेम्बर्स आदि को गिफ्ट देने का चलन तो हमेशा से रहा है. गिफ्ट देने की जब बात आती है तो हम घूमफिर कर वही मिठाइयां, ड्राईफ्रूट्स, जूस बौटल्स, नमकीन के पैकेट्स या चौकलेट्स आदि ही खरीद कर ले आते हैं. हमारे घर पर आने वाले गिफ्ट्स में भी यही सब होता है. इन्हें खा-खाकर सेहत भी खराब होती है, मोटापा भी बढ़ता है और शुगर भी.

कभी-कभी तो हम घर पर आने वाली मिठाइयों के डिब्बों से इतना उकता जाते हैं कि किसी की प्यार से दी हुई चीज को उठा कर अपनी मेड या ड्राइवर को पकड़ा देते हैं कि ले जाओ, खाकर खत्म करो.

जरा सोचिए, अगर हम अपने चाहनेवालों को गिफ्ट में कोई ऐसी चीज दें जो न सिर्फ सुन्दर हो, बल्कि जिसे देखकर उन्हें मानसिक और आत्मिक सुख भी मिले और ऐसा गिफ्ट जो उनके घर के वातावरण को स्वस्थ भी रखे, तो क्या ऐसा उपहार पाकर वे फूले न समाएंगे? ऐसा उपहार तो वे दिल से लगा कर रखेंगे. तो चलिए अबकी बार दीवाली, क्रिस्मस और न्यू ईयर में गिफ्ट देने की रवायत में थोड़ा फेर-बदल करते हैं और इनको हरा-भरा बनाते हैं. इस फेस्टिव सीजन को ग्रीन और ईको-फ्रेंडली मनाते हैं और अपने चाहने वालों को गिफ्ट में देते हैं खूबसूरत फूलों वाले प्लांट्स.

शीत ऋतु की शुरुआत होते ही तरह-तरह के फूलों के खिलने का सिलसिला शुरू हो जाता है. सीजनल फूलों से नर्सरी भर जाती हैं. कैलाथिया मैडेलियन, रैटल स्नेक प्लांट, स्नेक प्लांट, अफ्रीकन स्पीयर प्लांट, कोस्टा फॉर्म्स, पैथोस जेड, कॉइन प्लांट या चाइनीज मनी प्लांट, बर्ड्स नेट फर्न, व्हाइट कैक्टस या व्हाइट घोस्ट, स्पाइडर प्लांट, रोजमैरी, लकी बैंबू प्लांट, बोनसाई, जेड प्लांट या एशियन मनी ट्री, मोथ ओर्चिड्स जैसे पौधे इस सीजन में खूब फूलते हैं. इन पौधों की कीमत भी ज्यादा नहीं होती है. यह सभी 100 रुपये से शुरू होते हैं. बोनसाई ट्री थोड़े महंगे आते हैं. इनकी कीमत 500 रुपये से शुरू होकर 1000 रुपये तक जाती है. बैंबू ट्री 250 रुपये से शुरू होते हैं. जेड प्लांट की कीमत 350 रुपये से शुरू होकर 800 रुपये तक जाती है. स्नेक प्लांट और स्पाइडर प्लांट भी काफी सुन्दर होते हैं और इनके फूल तो मन मोह लेते हैं. ये प्लांट्स स्वास्थ्यवर्धक भी हैं क्योंकि इनसे काफी मात्रा में ओक्सीजन निकलती है. तो अगर अबकी दीवाली से आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को गिफ्ट में सुन्दर-सुन्दर फ्लावर पौट्स में लगे ये सुन्दर-सुन्दर फूलों वाले प्लांट्स गिफ्ट करें तो न सिर्फ आपकी भावना का सम्मान होगा, बल्कि इन प्लांट्स को अपने ड्राइंगरूम, बालकनी या औफिस में सजा कर आपके चाहने वाले हर दिन आपको याद करेंगे और आपके प्यार से दिये इस गिफ्ट की रोज देखभाल भी करेंगे.

सेरैमिक पौट में मनी प्लांट

अपने प्रिय को मनी प्लांट गिफ्ट करने की सोच रहे हैं तो मनी प्लांट को एक बेहद खूबसूरत और छोटे सेरैमिक पॉट में लगाकर दें. अगर सेरैमिक पॉट पर दीवाली की शुभकामना लिखा मेसेज भी हो तो फिर सोने पर सुहागा हो जाए. पौट पर अगर लक्ष्मी-गणेश बने हों, तो आपका गिफ्ट सिर-आंखों पर रखा जाएगा. मनी प्लांट एक बेहतरीन उपहार है, जो दोस्त, परिवार और अपने प्रियजनों को दिया जा सकता है. मनी प्लांट मतलब लक्ष्मी जी का वास. तो अबकी दीवाली यह गिफ्ट तो अपने जाननेवालों को अवश्य ही दें.

ऐलोवेरा के पौधे

ऐलोवेरा के पौधे को सभी लोग जानते हैं. ऐलोवेरा एक एयर-प्यूरिफाइंग प्लांट है. इससे निकलने वाली हवा हेल्थ के लिए काफी फायदेमंद होती है. इसे आप घर में आसानी से कहीं भी रख सकते हैं और शुद्ध हवा ले सकते हैं. आजकल तो एलोवेरा के अनगिनत फायदे भी गिनाये जाते हैं. इसकी पत्तियों से निकले जेल का फेसपैक आपकी त्वचा की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है, तो रोजाना खाने में थोड़ा सा एलोवेरा का टुकड़ा खाना सेहत के लिए भी अच्छा होता है. अब आप ही बताइये ऐसा गुणकारी गिफ्ट पाकर आपके जाननेवाले खुश क्यों न होंगे?

सुन्दर बोनसाई

आजकल ड्राइंगरूम में बोनसाई रखने का काफी चलन है. ये छोटे और आकर्षक बोनसाई सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं. पौधों की नर्सरी में आपको कम कीमत में भी बोनसाई मिल जाएंगे. पीपल, बरगद, आम, नीम जैसे पेड़ों के बोनसाई हवा को भी शुद्ध रखते हैं और देखने में भी बड़े सुन्दर लगते हैं. तो बस अबकी दीवाली अपने दोस्तों को बोनसाई गिफ्ट कर दीजिए, फिर देखिए वह आपके गिफ्ट की तारीफ करते नहीं थकेंगे. वह उसे अपने ऑफिस के केबिन में भी रख सकते हैं और अपने ड्राइंगरूम में भी सजा सकते हैं. मजे की बात तो यह है कि आपका दिया यह गिफ्ट उनके लिए कभी पुराना नहीं होगा क्योंकि वह खुद हर दिन उसकी देखभाल करेंगे. उसमें खाद-पानी देंगे, उन्हें अपने हाथों से रोज संवारेंगे और हर दिन आपके गिफ्ट से गहरा जुड़ाव महसूस करेंगे.

स्नेक प्लांट और पीस लिली

इसे मदर-इनलॉ की जीभ के रूप में भी जाना जाता है. स्नेक प्लांट बेहद छोटा प्लांट है. इसे कहीं भी आराम से रख सकते हैं. वहीं, पीस लिली प्लांट की देखभाल और इसके रख-रखाव में भी कोई समस्या नहीं होती है. यह देखने में भी खूबसूरत लगते हैं. इसके सफेद रंग के फूल घर की हवा में मौजूद कार्बन मोनोओक्साइड, बेंजीन और ट्राइक्लोरोइथीलीन को हटाने में भी सहायक हैं.

डिजाइनर पौट्स में दें पौधे

बैंबू और जेड प्लांट्स की आजकल काफी डिमांड है. इसके लिए लोग डिजायनर पौट्स भी खरीदते हैं. डिजाइनर पौट्स में ये पौधे और भी ज्यादा आकर्षक लगने लगते हैं. सुन्दर प्रिंट वाले डिजाइनर पौट्स में लगा कोई भी पौधा अपनी तरफ लोगों का ध्यान खूब आकर्षित करता है. तो अबकी दीवाली छोटे-छोटे डिजाइनर पॉट्स में सुन्दर फूलों वाले पौधे लगवा लें और अपने तमाम जाननेवालों को गिफ्ट देकर मनाएं हरी-भरी दीवाली.

Diwali 2022 : रीतिरिवाजों के बंधन में पहनावा

त्योहारों का सीजन था. नेहा ने पसंदीदा काली साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज पहनने के लिए निकाला. ब्लाउज बैकलैस तो था ही, आगे से डीपनैक का भी था. उस की क्लीवेज दिख रही थी. वह तैयार हो कर अपनी सास के पास गई और बोली, ‘मांजी, मैं कैसी दिख रही हूं?’

नेहा की सास काफी सुलझे स्वभाव की थी. कभी किसी भी तरह की ड्रैस पहनने को ले कर टीकाटिप्पणी नहीं करती थी. यही वजह थी कि नेहा हमेशा अपनी सास से कपड़ों के बारे में राय ले लेती थी. सास खुले विचारों की थी, इसलिए कभी कोई परेशानी नहीं आती थी. डांडिया डांस करने के लिए तैयार हो कर नेहा सब से पहले सास के पास गई और उन से यह पूछ लिया.

‘नेहा, डांडिया में काले रंग की साड़ी अच्छी नहीं लगेगी. वहां आए लोग नाकमुंह सिकोड़ेंगे. बाकी लोग डांडिया के हिसाब से कपड़े पहन कर आएंगे. तुम इस को बदल कर दूसरी ड्रैस पहन लो.’ नेहा ने अपनी सास की बात को मान लिया. अपनी पोशाक बदल ली. इस के बाद वे दोनों डांडिया के लिए गईं. डांडिया डांस में जिन लोगों को हिस्सा लेना था उन में रीना भी थी. उस ने भी बहुत फैशनेबल ड्रैस पहन रखी थी. कई लोगों की नजरें उस की ड्रैस पर थीं. डांडिया में फैशन की जंग शामिल जरूर होने लगी है पर वहां भी इस बात का ध्यान रखा जाता है कि धार्मिक सोच के अनुसार ही ड्रैस में बदलाव हों.

रीना ने गाउन स्टाइल का सूट पहना था. वह जब डांडिया के लिए जाने लगी तो आयोजकों ने रोक लिया. इन लोगों का कहना था कि डांडिया में पारंपरिक ड्रैस पहननी चाहिए. अगर इस ड्रैस में जाना है तो दुपट्टा से ड्रैस को कवर करना होगा. रीना के पास कोई दुपट्टा नहीं था. उस ने पहले वहां एक दूसरी महिला से दुपट्टा मांगा, फिर उस से अपनी ड्रैस को ढक लिया. इस के बाद वह डांडिया में शामिल हुई. डांडिया को एक तरह से धार्मिक आयोजन बना दिया गया. इस से इस में परंपरागत ड्रैस पहननी जरूरी होती है.

त्योहारों में केवल महिलाओं के लिए ही नहीं, पुरुषों तक के लिए अलग ड्रैस कोड होते हैं. धार्मिक आयोजनों के समय पुरुषों को भी सिर पर रूमाल रखने या टोपी पहनने का चलन है. यह केवल हिंदू धर्म में ही नहीं है, मुसलिम और ईसाई धर्मों में भी इस तरह के रिवाज हैं. कपड़ों के केवल डिजाइन ही नहीं, उन के रंग भी देखे जाते हैं.

धार्मिक रंगों में रंगी पोशाकें

काले और सफेद रंग की ड्रैस को तीजत्योहारों की नजर से अच्छा नहीं माना जाता है. यही कारण है कि इस रंग की ड्रैस त्योहार में कम पसंद की जाती हैं. इस वजह से डिजाइनर भी त्योहारों के हिसाब से पोशाक तैयार करने से पहले रंगों और डिजाइन का पूरा खयाल रखते हैं. वे ऐसे रंग और डिजाइन का चुनाव नहीं करते जो धार्मिक वजहों से पहनी न जा सकें. ड्रैस के रंग लालपीले होते हैं. धर्म के कट्टरपन ने अलगअलग रंगों पर कब्जा कर रखा है. धर्म ने कपड़ों को ही नहीं, रंगों को भी धर्म के आधार पर अलगअलग कर दिया है. हिंदू धर्म में लाल, गेरुआ और पीला रंग अच्छे माने जाते हैं. यही वजह है कि हर आयोजन में इन रंगों के कपड़ों को पहना जाता है.

सब से अधिक मुश्किल तो लड़कों को ले कर होती है. शादी के कर्मकांड में लड़कों को धोतीकुरता पहनना पड़ता है. शादी के बाद पहला त्योहार आने  पर दीपक को भी धोतीकुरता पहनना पड़ा था. दीपक को डांडिया डांस में हिस्सा लेना था. इस के लिए उस को धोती पहननी थी. दीपक ने कभी धोती नहीं पहनी थी. ऐसे में उस के लिए धोती पहनना मुश्किल काम था. तब उस के लिए रेडीमेड धोती लाई गई. वह किसी तरह से धोती पहनने को तैयार हो गया. पर उसे अजीब सा लग रहा था.

कई तरह की कथा में भी धोती पहननी पड़ती है. त्योहारों में होने वाले धार्मिक आयोजनों में कई बार पतिपत्नी को एकसाथ हिस्सा लेना पड़ता है. जिस में पतिपत्नी को एक कपड़े की गांठ से बांध दिया जाता है. ऐसे बहुत सारे बंधन होते हैं जो त्योहार की खुशियों को कम कर देते हैं. ऐसे में जरूरी है कि त्योहार की खुशियों को धार्मिक आडंबर से दूर रखें. इस का एक लाभ यह भी होगा कि हर धर्म के लोग दूरियां भूल कर आपस में करीब आ सकेंगे.

बंधन में फैशन

मुसलिमों को ईद के त्योहार में टोपी पहननी पड़ती है. मुसलिम वर्ग के लोग वैसे कितना भी फैशनेबल परिधान पहन लें पर त्योहार में वे कुरतापजामा जरूर पहनते हैं. पजामा भी ऐसा होता है कि वह जमीन से ऊपर उठा होता है. छोटेछोटे बच्चों को कुरतापजामा पहने देख कर ही पता चल जाता है कि ये किसी त्योहार में हिस्सा ले रहे हैं.

ईसाई अपने त्योहार में सफेद रंग की पोशाक पहनते हैं. वैसे तो ईसाई बहुत प्रगतिशील विचारधारा के होते हैं पर त्योहार में वे भी धार्मिक कपड़े पहनने को विवश होते हैं. मुसलिम वर्ग में बिकिनी पहनने का रिवाज नहीं है. ऐसे में मुसलिम लड़कियां तैराकी में आगे नहीं आ पातीं. दूसरे कई तरह के खेलों में भी उन की अलग पोशाकें होती हैं.

असल में धर्म के ये सारे प्रतिबंध इसलिए लगाए जाते हैं ताकि बिना धर्म की इजाजत के लोग कुछ भी न कर सकें. धर्म जीवन के हर काम में अपना दखल बढ़ाए रखना चाहता है. धर्म का बंधन ढीला नहीं पड़ रहा है. अब तो युवा भी तेजी से इस के शिकार होते जा रहे हैं. त्योहार के सीजन में हर युवा को धोती पहने देखा जा सकता है. बंगाल और दक्षिण भारत में हर त्योहार में पारंपरिक परिधान पहनना जरूरी होता है. ऐसे में सभी अपने रोज के कपड़े छोड़ कर धोती पहन लेते हैं.

धार्मिक प्रभाव से बढ़ती दूरी

त्योहार पर धर्म के प्रभाव का खराब सर यह होता है कि इस की खुशियां एक धर्म और क्षेत्र के लोगों के बीच तक ही सीमित रह जाती हैं. बंगाली लोगों की दुर्गापूजा के मौके पर किसी दूसरे धर्म का आदमी हिस्सा नहीं लेता. दुर्गापूजा में शामिल होने के लिए उस में पहने जाने वाला परिधान उसी रंग का पहना जाता है जो धार्मिक आधार पर तय होता है.

इसी तरह से ईद में सफेद कुरतापजामा पहना जाता है. जिस से दूसरे धर्म के लोग भी इस में शामिल नहीं होते. गुजराती, मराठी, दक्षिण भारतीय, असम में रहने वाले लोगों के त्योहारों में भी एक तय रंग की पोशाक पहनी जाती है जिस से किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति उस में हिस्सा नहीं लेता. अगर त्योहार से धर्म का यह दबाव खत्म हो जाए तो दूसरे धर्मों के लोग भी सभी तरह के त्योहार मना सकते हैं.

धर्म का कट्टरपन इंसान को अपने प्रभाव से दूर नहीं होने देना चाहता. वह कपड़ों के रंग और डिजाइन तय कर देता है. कभी यह नहीं हुआ कि दानदक्षिणा और चढ़ावा ऐसा हो कि एक धर्म में चले, दूसरे में न चले. रुपया, पैसा, जमीन, जायदाद सभी धर्मों में चढ़ावा के रूप में स्वीकार किया जाता है. मंदिर, मसजिद, गिरजाघर सभी जगह चढ़ावा के लिए दानपात्र लगे होते हैं. हर धर्म चढ़ावा को छोड़ कर बाकी मामलों में अलगअलग सोच रखता है.

धर्म का आडंबर फैलाने वाले असल में यह नहीं चाहते कि लोग मिलजुल कर रहें. अगर सभी लोग मिलजुल कर रहेंगे तो आपस में दूरियां नहीं बनेंगी. और फिर एकदूसरे को आपस में लड़ाना मुश्किल होगा. धर्म के नाम पर पहनावा तक तय करने से त्योहार का आनंद, धर्म के कट्टरपन में, दब कर रह जाता है.

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