दुख तो इस बात का हो रहा था कि एक मां हो कर भी वह अपने बच्चे को बचा नहीं पा रही थी. पेट पर हाथ रख वह अपने अजन्मे बच्चे से माफी मांगती और कहती कि इस में उस की कोई गलती नहीं है. वह तो चाहती है कि वह इस दुनिया में आए. लेकिन उस के पापा और दादी ऐसा नहीं चाहते. आधी रात में ही वह हड़बड़ा कर उठ बैठती और जोरजोर से हांफने लगती. फिर अपने पेट पर हाथ फिराते हुए कलप उठती.
नींद में जैसे उस के पेट से आवाज आती, ’मां, मुझे मत मारो… मुझे भी इस दुनिया में आने दो न मां… बेटी हूं तो क्या हुआ… बोझ नहीं बनूंगी, हाथ बटाऊंगी… गर्व से आपbका सिर ऊपर उठवाऊंगी. बेटी हूं… इस धरा की… इस धरा पर तो आने दो मां,’ कभी आवाज आती, ‘तेरे प्यारदुलार की छाया मैं भी पाना चाहती हूं मां… चहकचहक कर चिड़िया सी मैं भी उड़ना चाहती हूं मां… महकमहक कर फूलों सी मैं भी खिलना चाहती हूं मां. मां, पता है, मुझे पापा और दादी नहीं चाहते कि मैं इस दुनिया में आऊं. लेकिन, तुम तो मेरी मां हो न, फिर क्यों नहीं बचा लेती मुझे? मुझे कहीं अपनी कोख में ही छुपा लो न मां. बोलो न मां, क्या तुम भी नहीं चाहती मैं इस दुनिया में आऊं?’ शिखा अकबका कर नींद से उठ कर जाग बैठती और अपना पेट पकड़ कर सिसकते हुए कहती, “नहीं, मैं तुम्हें नहीं मारना चाहती. लेकिन, तुम्हारी दादी और पापा तुम्हें इस दुनिया में नहीं आने देना चाहते हैं, तो मैं क्या करूं? प्लीज, मुझे माफ कर दो, मेरी बच्ची,“ शिखा चित्कार करती कि कोई उस के बच्चे को बचा ले.
आखिर कोई तो कहे, शिखा यह बच्चा नहीं गिरवाएगी, जन्म देगी इसे, क्योंकि इस का भी अधिकार है इस दुनिया में आने का. लेकिन ऐसा कोई नहीं था इस घर में, जो इस अनहोनी को रोक सके. वह चाहती तो अपने पति और सास के खिलाफ भ्रूण हत्या के मामले में केस कर सकती थी. पर, फिर अपनी 3 मासूम बच्चियों का खयाल कर चुप रह जाती. औरत यहीं पर तो कमजोर पड़ जाती है और जिस का फायदा पुरुष उठाते हैं. लेकिन यहां तो एक औरत ही औरत की दुश्मन बनी बैठी थी. एक औरत ही नहीं चाहती थी कि दूसरी औरत इस दुनिया में आए.
भगवान और पूजापाठ में अटूट विश्वास रखने वाली सुमित्रा से किसी बाबा ने कहा था कि महापूजा करवाने से जरूर शिखा को इस बार लड़का होगा.
उस बाबा की बात मान कर पूजा पर हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी जब शिखा के पेट में लड़की होने की बात पता चली, तो बाबा बोले कि जरूर उस पूजा में कोई चूक रह गई होगी, जिस के चलते शिखा के पेट में फिर से लड़की आ गई. बेटे के लिए शिखा ने वो सब किया, जोजो सुमित्रा उस से करवाती गई. लेकिन, इस के बावजूद उस के पेट में लड़की आ गई तो क्या करे वह…? अंधविश्वास का ऐसा चश्मा चढ़ा था सुमित्रा की आंखों पर कि एक भी काम वह बाबा से पूछे बिना नहीं करती थी. अभी पिछले महीने ही ग्रहशांति की पूजा के नाम पर उस बाबा ने सुमित्रा से हजारों रुपए ऐंठ लिए. लेकिन यही सुमित्रा जरूरतमंदों या किसी गरीब असहाय इनसान की एक पैसे से भी मदद कर दे, आज तक ऐसा नहीं हुआ कभी. दया नाम की चीज ही नहीं है सुमित्रा के दिल में. तीनों पोतियां तो उसे फूटी आंख नहीं सुहाती. जब देखो, उन्हें झिड़कती रहती हैं. बातबात पर तानाउलाहना तो मामूली बात है. लेकिन जब नातेरिश्तेदारों के सामने भी सुमित्रा शिखा और उस की बेटियों का अपमान करती है, तो उस का कलेजा दुख जाता है.
औफिस से आते ही अरुण ने बताया कि डाक्टर ने कल का समय दिया है और इस के लिए उस ने छुट्टी भी ले ली है. लेकिन, शिखा ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया और किचन में चली गई. समझ नहीं आ रहा था उसे कि क्या करे. कैसे कहे अरुण से कि वह अपनी बच्ची को नहीं मारना चाहती, जन्म देना चाहती है इसे, क्योंकि इस का भी हक है इस दुनिया में आने का. लेकिन जानती है कि इस बात से घर में कोहराम मच जाएगा. और अरुण तो वही करेगा, जो उस की मां चाहती हैं. इसलिए वह आंसू पी कर रह गई.
रात में जब अरुण अपने लैपटौप पर व्यस्त था, तब बड़ी हिम्मत जुटा कर शिखा बोली, “अरुण, सुनो न… मत करो न ऐसा. गलती क्या है इस की. यही न कि यह एक लड़की है. लेकिन आज लड़कियां किसी भी बात में कम है क्या? कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, झूलन गोस्वामी, ये सब बेटियां ही तो हैं, तो क्या इन्होंने अपने मातापिता का नाम ऊंचा नहीं किया? और अपने ही घर में खुद नीता दीदी को देखो न. आज वह इतने बड़े बैंक में मैनेजर हैं. बैंक की तरफ से वह विदेश भी जा चुकी हैं. गरीब परिवारों की बेटियों को भी देख लो न. जब परिवार पर जिम्मेदारियों का बोझ पड़ा, तो बेटियां आटोरिकशा और ट्रेन तक चलाने लगीं. आज की बेटियां तो चांद तक पहुंच चुकी हैं. हवाईजहाज उड़ाने लगी हैं,“ शिखा की बात पर कोई ध्यान न दे कर अरुण वैसे ही लैपटौप चलाता रहा.