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Diwali 2022 : एक दिया रिश्तों के नाम

रोशन दीया अंधेरे को खत्म कर हमें प्रकाश देता है. दीपावली पर हर कोई अमावस्या  की अंधेरी रात मे अपने अपने घरों में दीप जलाकर प्रकाश फैलता है और वही प्रकाश हमरे अंदर जीवन में खुशियां लाता  है. यह रोशन नजारा बेहद खूबसूरत लगता है. दीये जो हमारे जीवन में  खुशियां बिखेरते हैं तो क्यों ना ऐसे में जरूरी है की एक दीया हमें  अपने रिश्तों में रौशनी भरने के लिये भी जलाना चाहिये. आजकल हर कोई अपने रिश्ते नातों को भूलता जा रहा  है. एक छत के नीचे रहते हुए भी एक दूसरे से बात करें एक अरसा बीत जाता है. सभी अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं जिस कारन वह मनुष्य कहीं ना कहीं तनाव से गुजर रहा होता है. क्योंकि उसके अपने  उसके साथ नहीं होते. हर व्यक्ति की चाह होती है कि उसके परिवार के सदस्य, संबंधी, मित्र सभी उसके साथ मधुरता से बोले प्रेमपूर्ण व्यवहार करें व सभी उसका आदर सत्कार करें. संबंधों में मधुरता बनाएं रखने के लिये कुछ जरूरी बातें हैं जिन्हे अपनाने से सुखद जीवन का आनंद लिया जा सकता है.

मीठा बोलें

मीठी वाणी हर किसी को प्यारी लगती है व यह एक चुंबकीय तरीका है किसी को भी अपनी और आकर्षित करने का. दिलों के बीच मतभेद  खत्म करने का कबीर दास जी ने कहा है कि ‘ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोए, औरन को शीतल करे आपहु शीतल होए’ अर्थात  जब भी आप बोलते हैं तो ऐसा बोलो जो आपको खुद को भी ख़ुशी प्रदान करे व दूसरों को भी. आपके  व्यवहार में यह आदत शुमार रहेगी तो रिश्तों में मिठास बरकरार रहेगी.

विश्वास है बहुत जरूरी

परिवार के सभी सदयों को एक दूसरे के बीच विश्वास की डोर से बंधे रहना अति आवश्यक है क्योंकि अगर विश्वास डगमगाया तो आपके  रिश्ते में दरार पड़ने लगती है.

क्षमा की भावना है जरूरी

अगर कोई गलती करता है तो जरूरी है की हमें क्षमा करना भी आना चाहिये क्योंकि यही कड़वाहट बन कर रिश्तों मे दरार पैदा करती है. कभी कभी गुस्से  में हम कह देते हैं कि तुम्हे जिंदगी भर माफ नहीं करंगे .यही एक छोटा सा वाक्य रिश्ते  मे कड़वाहट भरने का काम करता है तो जरूरी है की गुस्से  पर काबू पाना आना चाहिए व क्षमा की भावना को कभी खत्म ना होने दें तभी हम एक अच्छी शख्शियत बन सकते है.

सकरात्मक नजरियां भी है जरूरी

अगर किसी इंसान की कुछ बातें आपको गलत लगती है और कुछ अच्छी, तो ऐसे में जरूरी है कि उसके उन अच्छे  गुणों की प्रशंसा करें. कुछ समय बाद देखिएगा उसके व्यवहर में परिवर्तन होने लगेगा .परिस्थति  कितनी भी नकारात्मक क्यों न हो अगर हम अपनी मनोदशा को स्थिर तथा सकारात्मक बना कर रखते हैं तो कई समस्याएं आसानी से सुलझ जाती हैं .

Diwali Special: शकरपारे बनाने की विधि जानें

शकरपारे ऐसी चीज है जो लगभग हर किसी को पसंद आ जाता है. ऐसे में आप चाहे तो इसे घर में बनाकर रख सकते हैं. आइए जानते हैं शकरपारे बनाने कि विधि.

समाग्री

एक कप मैदा

एक कप आटा

घी या रिफाइन्ड

एक कप पानी

विधि

-एक कटोरे में मैदा, आटा और गर्म तेल को मिक्स कर लें अब कुछ देर तक इसे मिलाते रहें. फिर इसमें पानी डालकर थोड़ा कड़ा आटा गुथ लें.

-अब आटा गुथकर कुछ देर तक कपड़े से ढ़ककर छोड़ दें.

-15-20 के बाद आप देखेंगे कि आटा पहले से ज्यादा चिकना लग रहा है.

-अब तेल घी की मदद से इसकी लोई बनाकर पूरी बना लें. गोलाबनाकर इसे पूरी की साइज में बेल लें. अब इस पूरी को बर्फी के आकार में काट लें.

-कढ़ाई में तेल गर्म कर लें, तेल गर्म होने के बाद इसमें बर्फी की आकार में काटे हुए पिस को तेल में डोलकर तले.

-अब कुछ देर तक इसे कड़ाही में डालकर तलते रहें. जब तक यह गुलाबी न हो जाए तब तक इसे तलते रहे.

-अब तले हुए शकरपारे को किचन तावल पर निकाल कर रखें. इसके बाद इसे कुछ देर के बाद जब इसमें से तेल निकल जाए तो इसे निकाल कर डबे में रख दें.

-जब भी मन कर खाएं, चाय के साथ.

मां, ब्रेकअप क्यों न करा -भाग 5 : डायरी पढ़ छलका बेटी का दर्द

तोशी ने सुमित्राजी के जाने के बाद अपनी मां की डायरी को ढूंढ़ना प्रारंभ किया. डायरी मिलने में देर क्यों लगती. तोशी जानती थी कि मम्मी चीज को संभाल कर कहां रखेंगी. मोतियों से अक्षर लिखने वाली मां की राइटिंग, डायरी में बड़ी बेतरतीब सी थी और क्यों न होती?

मां किस मनःस्थिति में अपना दर्द बयां कर रही थीं. वर्तनी की शुद्धता और अक्षरों की बनावट को भला वह कैसे संभालती. मां पहले डायरी नहीं लिखती थीं. उन्हें फुरसत भी कहां थी. और सच कहें तो जरूरत भी कहां थी. एक खुली किताब सी जिंदगी जी रही थीं. शायद वह मामा की बीमारी के कारण भी न लिखती. उन्हें मुश्किल हालातों से जूझना आता था. लेकिन जब उन्हें रिश्ते की जटिलताओं से जूझना पड़ा तो वह भला किस से कहती. पापा का इतने समय का साथ, जिस पर एक स्त्री को सब से बड़ा भरोसा होता है. उन के लिए उस साथ को निभाना अब मुश्किल हो गया था, क्योंकि उन्होंने ही धीरेधीरे एक महत्वपूर्ण रिश्ते को खो दिया. मम्मी के दिल को और भी अधिक जख्मी कर दिया था. पापा का साथ मिला होता तो मम्मी हर मुश्किल से जीत जाती. मगर पापा ने तो अपनी हठधर्मिता से मम्मी को निराश ही कर दिया था.

मां की डायरी के पेज पर लिखे उन के शब्द आंसुओं से बिगड़े हुए भी थे. इतने महीनों का दर्द. तोशी मानो एकसाथ में ही पढ़ गई. दुख और क्रोध के मिलेजुले भावों से विचलित तोशी समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे आगे क्या करना है. वह तो यहां पापा को अपने साथ ले जाने के लिए आई थी. शुरू में तो पापा फोन पर मना ही करते रहे थे, लेकिन लगता था कि अब वह इस अकेलेपन से घबराने लगे हैं. और पापा कहीं फिर से मना न कर दें, इसलिए उन की एक बार हां होने पर वह जल्दी ही यहां आ गई थी. लेकिन अब पापा के प्रति प्यार धीरेधीरे एक धीमी नफरत में बदल रहा था.

डायरी को पढ़ने के बाद उसे लग रहा था कि पापा ही मेरी मां की मृत्यु के दोषी हैं.

पापा ने मां के साथ दादी की जी भर कर सेवा की. तब सेवा या दादी की शारीरिक विकृति से कोई परेशानी नहीं होती थी, क्योंकि दादी उन की अपनी मां थी. और मामा के लिए पापा इतने निष्ठुर हो गए कि खुद तो उन की सेवा से दूर ही रहे. मम्मी उन की सेवा करें, यह भी उन्हें गवारा नहीं था. यह कैसी मानसिकता है पापा की?

अगर आंटी मुझे न बताती, तो हमेशा के लिए मैं अपनी मां की मृत्यु के लिए अंधेरे में ही रहती.

डायरी के अंतिम पृष्ठ पर मां ने लिखा था, ‘‘अब और नहीं सहा जाता इस दोरंगी दुनिया को. और दुनिया में ऐसे हमसफर को जो बहुत सारी शर्तों के साथ राह में साथ चले. मैं थक चुकी हूं. अब उन के साथ चलना संभव नहीं. और अकेले चलने की आदत नहीं है. अलविदा…’’ पढ़ते हुए तोशी फफकफफक कर रो पड़ी थी.

रात को विचलित मनःस्थिति में रिमोट से टीवी के चैनल बदलते हुए उस ने अपना समय गुजारा. पापा से कुछ कहना उसे जरूरी नहीं लगा. बात कर के अब होना भी क्या था?

अगली सुबह भी सामान्य रहने का प्रयास किया. एक दिन बाद उसे अपने पापा के साथ जयपुर वापस जाना था. लेकिन, आज जब तोशी अपना सामान संभालने लगी तो उस के पापा को लगा कि वह अपना सामान लगाने के बाद शायद मेरा सामान व्यवस्थित कराने के लिए मेरे पास आएगी, क्योंकि उन्हें स्वयं अपना लगेज लगाने की कभी आदत ही नहीं रही. तोशी और सुमन के रहते उन्हें लगेज लगाने की जहमत ही नहीं उठानी पड़ती थी और सुमन के जाने के बाद वह कहीं गए ही नहीं थे. तोशी अपना सामान पैक कर ड्राइंगरूम में आ कर खड़ी हो गई.

‘‘तोशी, सारा सामान पैक कर लिया. और अभी से ही ड्राइंगरूम में क्यों ले आई हो? अपना रिजर्वेशन तो कल का है न.’’

‘‘हां पापा, हमारा रिजर्वेशन कल का है. लेकिन, मैं आज ही वापस जा रही हूं. पापा, हर रिश्ते को साथ की जरूरत होती है. कुछ रिश्ते खून के रिश्ते होते हैं. और इस के अलावा एक महत्वपूर्ण और खूबसूरत रिश्ता सात फेरों से बांधा जाता है. उस रिश्ते की गरिमा यह है कि वह हर रिश्ते को महत्व देगा, तभी खुशियों से महकेगा. लेकिन आप ने कुछ रिश्ते पर एकतरफा आधिपत्य जमाया. आप ने तो उन रिश्तों को समझा ही नहीं. और मां को भी उन से दूर करने की कोशिश की. नतीजा वो रिश्ता भी आप से दूर चला गया.

“पापा, मैं यहां एक रिश्ते को लेने आई थी. आप के लिए सामान सहेजते हुए मम्मी की डायरी मेरे हाथ लग गई थी. कितनी अकेली पड़ गई थीं मम्मी. पापा, आप ने यह बात हम से छुपा कर रखी कि मम्मी ने जिंदगी से तंग आ कर जहर खाया था. उन्होंने मृत्यु को स्वयं चुना था. और उस का कारण आप ही थे.

“जहर खाने से पहले भी मां नहीं चाहती थीं, इसीलिए उन्हें आप से दूर जाने का यह तरीका सही लगा होगा. मैं खुद से भी शर्मिंदा हूं कि मां इतना कुछ सहती रहीं. और मैं पगली अपनी व्यस्तताओं में व्यस्त रह कर उन्हें समझ न सकी. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं ने यह अधिकार कब खो दिया कि मां अपने दिल की हर बात मुझ से कह पातीं. अब मैं जा रही हूं पापा. मुझे आप को अपने साथ ले कर जाना था. लेकिन मैं, मां को अपने साथ ले कर जा रही हूं, इस डायरी के रूप में.

“और अब मैं जाऊंगी अपने नानानानी के पास, जिन्होंने जीवन संध्या में अपने बेटे और बेटी को खोने का दर्द सहा है. और आगे भी उन के साथ भरपूर समय बिताऊंगी. अपनी उस मामी का साथ भी दूंगी, जिस ने इतनी कम उम्र में वैवाहिक सुख के नाम पर केवल सेवा का कर्तव्य ही निभाया है और अपना दुख भूल कर वह नानानानी की सेवा में लगी हुई है. अब वही मेरा मायका है. और मैं इस घर की लाड़ली बिटिया. काश, मां अपनी घुटन को दूर कर नए जमाने की अपनी बहू से सीख ले पाती और उस की तरह इस रिश्ते से दूर जाने के लिए ब्रेकअप करने की हिम्मत कर पाती. लेकिन जिंदगी से मुंह न मोड़ती.’’

तोशी अपना बैग उठा कर पूरे आत्मविश्वास के साथ बाहर निकल पड़ी थी. उस के दाहिने हाथ में मां की डायरी थी. वह डायरी वाला हाथ मां की उस काली डायरी को सीने पर जोर से कसा हुआ था.

वो भूली दास्तां- भाग 2: अमित और रविश के बीच लड़ाई क्यो हुई

फोन मेरी मंगेतर का था. मैं अभी उसे अपनी फ्लाइट मिस होने की कहानी बता ही रहा था कि मेरी नजर मेरे सामने बैठी उस लड़की पर फिर से पड़ी. वह थोड़ी घबराई हुई सी लग रही थी. वह बारबार अपने मोबाइल फोन पर कुछ चैक करती, तो कभी अपने बैग में.

मैं जल्दी जल्दी फोन पर बात खत्म कर उसे देखने लगा. उस ने भी मेरी ओर देखा और इशारे में खीज कर पूछा कि क्या बात है?

मैं ने अपनी हरकत पर शर्मिंदा होते हुए उसे इशारे में ही जवाब दिया कि कुछ नहीं.

उस के बाद वह उठ कर टहलने लगी. मैं ने फिर से अपनी किताब पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश की, पर न चाहते हुए भी मेरा मन उस को पढ़ना चाहता था. पता नहीं, उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा हो रही थी.

कुछ मिनट ही बीते होंगे कि वह लड़की मेरे पास आई और बोली, ‘सुनिए, क्या आप कुछ देर मेरे बैग का ध्यान रखेंगे? मैं अभी 5 मिनट में चेंज कर के वापस आ जाऊंगी.’

‘जी जरूर. आप जाइए, मैं ध्यान रख लूंगा,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘थैंक यू. सिर्फ 5 मिनट… इस से ज्यादा टाइम नहीं लूंगी आप का,’ यह कह कर वह बिना मेरे जवाब का इंतजार किए वाशरूम की ओर चली गई.

10-15 मिनट बीतने के बाद भी जब वह नहीं आई, तो मुझे उस की चिंता होने लगी. सोचा जा कर देख आऊं, पर यह सोच कर कि कहीं वह मुझे गलत न समझ ले. मैं रुक गया. वैसे भी मैं जानता ही कितना था उसे. और 10 मिनट बीते. पर वह नहीं आई.

अब मुझे सच में घबराहट होने लगी थी कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. वैसे, वह थोड़ी बेचैन सी लग रही थी. मैं उसे देखने जाने के लिए उठने ही वाला था कि वह मुझे सामने से आती हुई नजर आई.

उसे देख कर मेरी जान में जान आई. वह ब्लैक जींस और ह्वाइट टौप में बहुत अच्छी लग रही थी. उस के खुले बाल, जो शायद उस ने सुखाने के लिए खोले थे, किसी को भी उस की तरफ खींचने के लिए काफी थे.

वह अपना बैग उठाते हुए एक फीकी सी हंसी के साथ मुझ से बोली, ‘सौरी, मुझे कुछ ज्यादा ही टाइम लग गया. थैंक यू सो मच.’

मैं ने उस की तरफ देखा. उस की आंखें लाल लग रही थीं, जैसे रोने के बाद हो जाती हैं. आंखों की उदासी छिपाने के लिए उस ने मेकअप का सहारा लिया था, लेकिन उस की आंखों पर बेतरतीबी से लगा काजल बता रहा था कि उसे लगाते वक्त वह अपने आपे में नहीं थी. शायद उस समय भी वह रो रही हो.

यह सोच कर पता नहीं क्यों मुझे दर्द हुआ. मैं जानने को और ज्यादा बेचैन हो  गया कि आखिर बात क्या है.

मैं ने अपनी उलझन को छिपाते हुए उस से सिर्फ इतना कहा, ‘यू आर वैलकम’.

कुछ देर बाद देखा तो वह अपने बैग में कुछ ढूंढ़ रही थी और उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. शायद उसे अपना रूमाल नहीं मिल रहा था.

उस के पास जा कर मैं ने अपना रूमाल उस के सामने कर दिया. उस ने बिना मेरी तरफ देखे मुझ से रूमाल लिया और उस में अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से रोने लगी.

वह कुरसी पर बैठी थी. मैं उस के सामने खड़ा था. उसे रोते देख जैसे ही मैं ने उस के कंधे पर हाथ रखा, वह मुझ से चिपक गई और जोरजोर से रोने लगी. मैं ने भी उसे रोने दिया और वे कुछ पल खामोश अफसानों की तरह गुजर गए.

कुछ देर बाद जब उस के आंसू थमे, तो उस ने खुद को मुझ से अलग कर लिया, लेकिन कुछ बोली नहीं. मैं ने उसे पीने को पानी दिया, जो उस ने बिना किसी झिझक के ले लिया.

फिर मैं ने हिम्मत कर के उस से सवाल किया, ‘अगर आप को बुरा न लगे, तो एक सवाल पूछं?’

उस ने हां में अपना सिर हिला कर अपनी सहमति दी.

‘आप की परेशानी का सबब पूछ सकता हूं? सब ठीक है न?’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘सब सोचते हैं कि मैं ने गलत किया, पर कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि मैं ने वह क्यों किया?’ यह कहतेकहते उस की आंखों में फिर से आंसू आ गए.

‘क्या तुम्हें लगता है कि तुम से गलती हुई, फिर चाहे उस के पीछे की वजह कोई भी रही हो?’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा.

‘मुझे नहीं पता कि क्या सही है और क्या गलत. बस, जो मन में आया वह किया?’ यह कह कर वह मुझ से अपनी नजरें चुराने लगी.

‘अगर खुद जब समझ न आए, तो किसी ऐसे बंदे से बात कर लेनी चाहिए, जो आप को नहीं जानता हो, क्योंकि वह आप को बिना जज किए समझने की कोशिश करेगा?’ मैं ने भी हलकी मुसकराहट के साथ कहा.

‘तुम भी यही कहोगे कि मैं ने गलत किया?’

‘नहीं, मैं यह समझने की कोशिश करूंगा कि तुम ने जो किया, वह क्यों किया?’

मेरे ऐसा कहते ही उस की नजरें मेरे चेहरे पर आ कर ठहर गईं. उन में शक तो नहीं था, पर उलझन के बादलजरूर थे कि क्या इस आदमी पर यकीन किया जा सकता है? फिर उस ने अपनी नजरें हटा लीं और कुछ पल सोचने के बाद फिर मुझे देखा.

मैं समझ गया कि मैं ने उस का यकीन जीत लिया है. फिर उस ने अपनी परेशानी की वजह बतानी शुरू की.

दरअसल, वह एक मल्टीनैशनल कंपनी में बड़ी अफसर थी. वहां उस के 2 खास दोस्त थे रवीश और अमित. रवीश से वह प्यार करती थी. तीनों एकसाथ बहुत मजे करते. साथ ही, आउटस्टेशन ट्रिप पर भी जाते. वे दोनों इस का बहुत खयाल रखते थे.

 

‘तारक मेहता’ शो छोड़ने पर शैलेश लोढ़ा का खुलासा !

तारक मेहता का उल्टा चश्मा शो से शैलेश लोढ़ा ने एग्जिस्ट करके सबको चौका दिया है, वो इस शो तो छोड़कर चले गए लेकिन अपने पीछे बहुत सारे सवाल छोड़कर गए. लोगों के मन में हमेशा एक बात रहता था कि आखिर उन्होंने शो को क्यों छोड़ा.

इस शो को छोड़कर जाने के बाद से आखिर कर अब धीरे धीरे खुलासा हो रहा है कि आखिर उन्होंने इस शो को क्यों छोड़ा. इस शो के डॉयरेक्टर असित मोदी ने खुलासा किया है कि उनके और शैलेश के बीच में कुछ अनबन हुई है.

 

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शैलेश ने आखिर बताया क्या आखिर बताया नहीं कि उन दोनों में अनबन क्यों हुईं, असित ने उन्हें लाख कोशिश की मनाने की लेकिन वह नहीं माने अपने जिद्द पर अड़े रहे.

शैलेश ने एक बातचीत में बताया कि वह इस शो को छोड़ने के बाद से कितने ज्यादा इमोशनल हैं. यह शो पिछले 14 साल से चल रहा है. इसे लोग खूब पसंद करते हैं देखना. मेरी बहुत सारी यादें इस शो के साथ जुड़ी हुई है.

इस शो ने मुझे अलग पहचान दिलाई है. एक इंटरव्यू में इस शो के डॉयरेक्टर ने बताया था कि हमने लंबा इंतजार किया था , शैलेश के वापसी का.

सलमान खान पर भड़के ट्रोलर्स , सोशल मीडिया पर किया कमेंट

बिग बॉस में आए दिन कुछ न कुछ होते रहता है, इसमें होने वाली घटना का असर सलमान खान पर भी पड़ता है, कई बार सलमान खान अपनी बयानों की वजह से ट्रोल हो जाते हैं. सलमान खान हर हफ्ते घरवालों की क्लास लगाते हैं.

कई बार सलमान खान को गुस्सा करना खुद पर भी भआरी पड़ता है, जिसके बाद से सलमान खान खुद हेटर्स के निशाने पर आ जाते हैं. वैसे ही आज भी सलमान खान ट्रोल हो रहे हैं. इस बार सलमान खान अंकित गुप्ता और सुंबुल तौसीर खान की वजह से चर्चा में बने हुए हैं.

 

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बिग बॉस 16 में सलमान खान ने अंकित गुप्ता और सुंबुल तौसीर खान पर गेम न खेलने के आरोप लगाए थें. इस दौरान सलमान खान कहते हैं कि अंकित गुप्ता के खेल में कॉफिडेंस बिल्कुल नजर नहीं आता है. वहीं सलमान खान ने सुंबल तौसीर खान को गेम में ध्यान देने को कहा था.

वहीं सलमान खान का यह अंदाज लोगों को पसंद नहीं आया, कुछ लोगों ने सलमान खान को बहुत बरा भला भी कहा है. लोगों ने अलग -अलग तरह के निशाने साधने शुरू कर दिए हैं. जिससे साफ है कि सुंबुल और अंकित का गेम लोगों को पसंद आता है.

एक यूजर ने लिखा सलमान खान को सिर्फ सुंबुल और अंकित नजर आ रहे हैं बाकी कोई नजर नहीं आ रहे हैं.

यारी से रिश्तेदारी -भाग 3: तन्मय की चाहत

‘‘अरे हां, वही सब तो याद आ रहा है इन दोनों को देख कर.’’

‘‘याद है तुम्हें, कैसे एक बार तुम्हारी आंखों में आंसू और रुकने का आग्रह देख कर मैं ने अपने जाने का टिकट फाड़ दिया था और तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रुक गया था,’’ प्रदीप ने उस की ओर देख कर शरारत से मुसकराते हुए कहा.

‘‘और, आप हर दिन एक पत्र मुझे भेजते थे. जिस दिन नहीं आता था, उस दिन मैं उदास हो जाया करती थी,’’ रागिनी ने हंसते हुए हौले से प्रदीप के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा.

‘‘चलो, घर आ गया. एक माह बाद शादी है, तैयारियां भी तो करनी हैं. पुरानी यादों में ही खोए रहेंगे तो हो चुकी बेटे की शादी,’’ प्रदीप ने कहा, तो वह वर्तमान में आ गई.

कपड़े चेंज कर के वह बेड पर लेट गई और एक बार फिर उस का मन अतीत में गोते खाने लगा. उस के पापा और प्रदीप के पापा समझदार थे, वे समझ चुके थे कि बच्चे संस्कारवश कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, परंतु मन ही मन एकदूसरे से प्यार करते हैं. दोनों परिवारों ने आपस में बातचीत की.

रागिनी के पापामम्मी को भी घर बैठे अच्छा देखाभाला लड़का मिल रहा था, सो तनिक भी समय गंवाए बिना उन्होंने अपनी बेटी के हाथ पीले कर देने में ही भलाई समझी.

रागिनी और प्रदीप को तो मानो बिन मांगे ही मन की मुराद मिल गई थी. दोनों की प्यार से सींची गई बगिया में शीघ्र ही बेटे तन्मय और बेटी तानी नाम के पुष्प खिल उठे.

समय तेजी से बीतता गया और आज ये दिन भी आ गया कि वह अपने बेटे का विवाह कर के सास बनने जा रही थी.

तनु प्रदीप के कालेज के दोस्त राजीव सिंह की बेटी थी. दोनों परिवारों के पारिवारिक संबंध बहुत गहरे थे. तनु और तन्मय कब एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए, किसी को पता ही नहीं चला.

दोनों परिवारों का आनाजाना और साथसाथ घूमने जाना लगा ही रहता. उस समय दोनों बच्चे किशोरावस्था में थे. जब दोनों परिवार शिमला, कुल्लू मनाली के टूर पर गए थे. किशोरवय में विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक मनोभाव होता है. सो, दोनों बच्चे इस एक सप्ताह की ट्रिप में काफी नजदीक आ गए थेे और आपस में बातचीत भी करने लगे थे. यद्यपि रागिनी की नजरों से दोनों की बातचीत छिपी नहीं थी, पर आजकल गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड का जमाना है सो उसे लगा कि यह महज किशोरावस्था का आकर्षण मात्र हैं. और किसी दूसरी लड़की की अपेक्षा उन दोनों का आपस में बातचीत कर के अपनी भावनाओं को निकाल देना उसे अधिक सुरक्षित लगा था. अत: उस ने इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया. समय अपनी निर्बाध गति से बीत रहा था और बच्चे भी अपनीअपनी दिशा पकड़ चुके थे. तन्मय का चयन सिविल सर्विसेज में हो गया और तनु एक बैंक में अधिकारी बन गई थी.

एक दिन मौका देख कर रागिनी ने तन्मय से कहा, ‘‘बेटा, अब तेरी विवाह की उम्र हो गई है और मैं चाहती हूं कि अब हम तेरा विवाह कर दें.’’

‘‘हां, मां, आप की बात तो बिलकुल सही है, पर उस से पहले मुझे आप से एक बात करनी है,’’ कहते हुए तन्मय रागिनी का हाथ अपने हाथ में ले कर उस के पैरों के पास जमीन पर बैठ गया.

‘‘हां, बोलो बेटा, क्या बात है?’’ रागिनी ने प्यार से उस का सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘मां, वो तनु है न…’’ तन्मय ने धीरे से कह कर शरमाते हुए बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘क्या हुआ तनु को…? राजीव भाई साहब और भाभी सब ठीक तो हैं न,’’ सुन कर रागिनी एकदम चौंक उठी.

‘‘शांत… मां शात, सब ठीक है, किसी को कुछ नहीं हुआ है,’’ तन्मय ने उसे शांत करते हुए कहा.

‘‘मां, मैं यह कह रहा था कि…’’ तन्मय खड़े हो कर अचकचाते स्वर में बोला.

‘‘क्या हम लोग और राजीव सिंह अंकलआंटी रिश्तेदार नहीं बन सकते?’’

‘‘क्या मतलब…?’’ रागिनी चौंक कर बोली.

‘‘मतलब ये मां कि क्या मैं और तनु शादी नहीं कर सकते?’’ तन्मय हिचकिचाते हुए एक ही सांस में पूरा वाक्य कह गया.

‘‘तनु और तेरी शादी… यह क्या कह रहा है तू?’’ रागिनी ने हैरान होते हुए कहा.

तन्मय बिना कुछ बोले उठ कर कमरे से बाहर चला गया.

रागिनी आरामकुरसी पर आ कर बैठ गई. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि तन्मय क्या, कैसे और क्यों कह गया. भला ब्राह्मïण परिवार के लड़के का ठाकुर परिवार की लड़की से विवाह कैसे संभव होगा. वह भी दो कट्टर जातिवादी परिवारों में बेचैनी से अंदरबाहर टहलते हुए प्रदीप के औफिस से आने की प्रतीक्षा करने लगी.

प्रदीप के आने पर चाय का कप हाथ में थमाते ही उस ने तन्मय के विचार भी उन के सामने जाहिर कर दिए. प्रदीप तो सुनते ही उछल पड़े. बौखलाहट भरे स्वर में वे बोले, ‘‘क्या बेटा है हमारा, दोस्ती को ही रिश्तेदारी में बदलने निकल पड़ा? क्या सोचेंगे वे लोग? तुम्हें और तुम्हारे लाड़ले को पता है न कि हम दोनों परिवारों की जातियां अलगअलग हैं, वे ठाकुर और हम ब्राह्मïण, हमारे परिवार वाले इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं होंगे. और राजीव, वो तो खुद कट्टर जातिवादी है, वह खुद इस के लिए कभी राजी नहीं होगा.’’

‘‘भाईसाहब और भाभी तो तैयार होंगे शायद, तभी तो तनु और तन्मय ने विवाह करने का निर्णय लिया है. बिना तनु से पूछे तो तन्मय मुझ से नहीं कहेगा,’’ रागिनी ने कहा.

अचानक कालबेल की आवाज से दोनों की बातचीत भंग हो गई और प्रदीप गुस्से से भनभनाए उठ कर अंदर चले गए. दरवाजा खोला तो सामने कामवाली बाई चंदा खड़ी थी.

‘‘2 दिन से क्यों नहीं आ रही थी?’’ रागिनी ने नाराजगी से पूछा.

‘‘अरे मेडमजी, क्या बताऊं मेरी लड़की एक गैरजाति के लड़के से शादी करना चाहती थी.’’

‘‘तो तू ने क्या किया?’’ रागिनी ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘पिछले 6 महीनों से समझा रहे थे, पर दोनों अपनी जिद पर अड़े थे. हालांकि लड़का अच्छा है और सरकारी नौकरी में है. बस, अपनी जाति का नहीं था. जब बिटिया नहीं मानी, तो हम पतिपत्नी ने लड़के वालों से बात की और कल मंदिर में ले जा कर शादी करा दी. अब दोनों बड़े खुश हैं,’’ चंदा ने खुश होते हुए कहा.

‘‘गैरजाति के लड़के से शादी करने को तेरे परिवार वाले राजी हो गए… और तेरे समाज वाले,’’ रागिनी ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे, उन के एतराज की चिंता कौन करे बीबीजी, हमारे बच्चे खुश तो हम भी खुश. उन की परवाह करें या अपने बच्चों की. कल को हमारी जरूरत पर हमारे बच्चे ही काम आएंगे न कि ये मुएं समाज और परिवार वाले,’’ चंद्रा मुंह बनाती हुई बोली.

रागिनी अपलक सी चंदा को देखती रह गई. कम पढ़ीलिखी चंदा की खरी बातों ने उसे एक नई दिशा दिखा दी थी.

दूसरे दिन प्रात: नाश्ते के समय उस ने पुन: प्रदीप के सामने बात छेड़ी, ‘‘तनु और उस का परिवार हमारा देखाभाला है. लड़की भी संस्कारी है. अच्छी पढ़ीलिखी और सर्विस में है. सब से बड़ी बात हमारे बेटे को पसंद है. उस में वे सब गुण हैं, जो हमें चाहिए. केवल जाति अलग होने से क्या होता है. प्यार जातपांत देख कर नहीं होता प्रदीप. एक बार आप ठंडे दिमाग से सोच कर तो देखिए.’’

‘‘पापामम्मी को देखा है कि वे कितने जातिवादी हैं? तुम तो अच्छी तरह जानती हो. अलग जाति की बात सुन कर वे तो शादी में भी आने से मना कर देंगे. और राजीव के पापा कर्नल सिंह, क्या वे तैयार हो जाएंगे इस विवाह के लिए?” प्रदीप ने तेज स्वर में कहा.

‘‘यह राजीव भाईसाहब की समस्या है, जिसे वे स्वयं हल करेगें. हमें तो अपने बेटे की खुशी देखनी चाहिए. यह हमारे संस्कार हैं कि बेटा हम से पूछ रहा है. कल को यदि बिना पूछे कोर्ट मैरिज कर लेगा तो… क्या हम उसे अपने से अलग कर देंगे? क्या उस के बिना रह पाएंगे हम? अपनी शादी को भूल गए आप? आप ने भी तो अपनी पसंद की उसी लड़की से ही विवाह किया था, जिसे आप प्यार करते थे. सोचिए, यदि आप की और मेरी शादी नहीं हुई होती तो आप क्या करते. क्या खुश रह पाते? प्यार तो दिलों का मेल होता है प्रदीप, वह यह सब सोच कर नहीं किया जाता,’’ रागिनी ने प्रदीप को समझाते हुए कहा.

‘‘पर, हमारी शादी में जाति का कोई मुद्दा नहीं था. सब कुछ ईजी गोइंग था.’’

‘‘देखिए, जाति इतना बड़ा इश्यू नहीं है. क्या केवल जाति के कारण किसी के गुण, और अच्छाइयों को नजरअंदाज किया जा सकता है? क्या जन्म के समय इनसान की कोई जाति होती है? अस्पताल में पड़े हमारे परिवार के किसी सदस्य को खून की आवश्यकता पड़ने पर क्या हम जाति देखते हैं? ये सब तो हम मनुष्यों के बनाए नियमकायदे हैं, ईश्वर के यहां सब बराबर हैं. आप स्वयं सोच कर देखिए. जाति की लड़की में ऐसा क्या होगा, जो तनु में नहीं है? अपने बच्चों के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा. हम यदि मजबूत होंगे तो सब हमारे साथ होंगे. पहले हमें स्वयं आत्मिक रूप से मजबूत बनना होगा कि जाति कोई इश्यू नहीं है. यदि हम कमजोर पड़ेंगे तभी कोई हमारे निर्णय पर सवाल उठाएगा, वरना किसी की हमारे सामने बोलने की हिम्मत नहीं है. रहा आप के पापामम्मी का प्रश्न तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी मेरी है. बस मुझे सिर्फ आप का साथ चाहिए. प्लीज, आप केवल एक बार सिर्फ एक बार खुले दिमाग से सोच कर देखिए कि इस विवाह के होने में बुराई क्या है?’’ रागिनी ने प्रदीप को समझाते हुए कहा. फिर उस ने उन्हें चंदा की लड़की की गैरजाति में विवाह की बात बताते हुए कहा.

‘‘जब एक अशिक्षित कामवाली बार्ई अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोच सकती है, तो हम क्यों नहीं प्रदीप?’’

“ठीक है, शाम को औफिस से आ कर बात करता हूं,” कह कर प्रदीप चले गए.

रागिनी को शाम का बेेसब्री से इंतजार था. सो, जैसे ही प्रदीप आए, वह चायनाश्ता ले कर टेबल पर आ कर बैठ गई.

‘‘हां, वैसे बात तो तुम्हारी सही है रागिनी, तनु अच्छी, और जानीपहचानी है. अगर कोर्ई दूसरी आई तो पता नहीं हमारे साथ कैसा व्यवहार करेगी?’’

‘‘हम ऐसे समाज के कारण अपने बेटे की खुशियों का परित्याग क्यों करें, जो सिर्फ बातें बनाना जानता है. जब तुम्हारी कामवाली बाई समाज की चिंता किए बिना अपनी लड़की की शादी दूसरी जाति में कर सकती है, तो हम जैसे शिक्षित लोगों को तो कम से कम चिंता नहीं करनी चाहिए. पर, मम्मीपापा का क्या करें. वे पुरातन विचारधारा के घोर जातिवादी हैं. उन का सहज मानना बहुत मुश्किल है,’’ प्रदीप ने गंभीर स्वर में कहा.

“अब आप सब मेरे ऊपर छोड़ दीजिए. मैं सब कर लूंगी. मुझे आप का साथ चाहिए था. अब मैं बहुत हलका अनुभव कर रही हूं. तन्मय तो सुन कर खुश हो जाएगा,” कह कर रागिनी खुश हो कर प्रदीप के गले लग गई.

‘‘दरअसल, तुम्हारे तर्क इतने ठोस होते हैं कि उन्हें काटना बहुत मुश्किल होता है. चलो तो ठीक है, मैंं आज ही औफिस के बाद राजीव से बात करता हूं. अब तो तुम ने अपने तर्कों से मुझे इतना प्रभावित कर दिया है कि यदि राजीव शादी के लिए तैयार नहीं होगा तो भी मैं उसे मना लूंगा,’’ प्रदीप ने जोश से भर कर कहा. फिर क्या था, एक माह तक दोनों परिवारों के बड़ोंबुजुर्गों के मानमनोव्वल एवं समझानेबुझाने के अथक प्रयासों के बाद सभी शादी के लिए तैयार हो गए. इस बीच समय तो मानो पंख लगा कर उड़ गया.

आज उसी यारी को रिश्तेदारी में बदलने का पहला कदम था तनु और तन्मय की सगाई की रस्म, भविष्य के सुनहरे सपने बुनतेबुनते उस की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला.

अनकहा प्यार: क्या सबीना और अमित एक-दूसरे के हो पाए?

भाई बहन का रिश्ता बनाता है मायका

पता चला कि राजीव को कैंसर है. फिर देखते ही देखते 8 महीनों में उस की मृत्यु हो गई. यों अचानक अपनी गृहस्थी पर गिरे पहाड़ को अकेली शर्मिला कैसे उठा पाती? उस के दोनों भाइयों ने उसे संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि एक भाई के एक मित्र ने शर्मिला की नन्ही बच्ची सहित उसे अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया.

शर्मिला की मां उस की डोलती नैया को संभालने का श्रेय उस के भाइयों को देते नहीं थकती हैं, ‘‘अगर मैं अकेली होती तो रोधो कर अपनी और शर्मिला की जिंदगी बिताने पर मजबूर होती, पर इस के भाइयों ने इस का जीवन संवार दिया.’’

सोचिए, यदि शर्मिला का कोई भाईबहन न होता सिर्फ मातापिता होते, फिर चाहे घर में सब सुखसुविधाएं होतीं, किंतु क्या वे हंसीसुखी अपना शेष जीवन व्यतीत कर पाते? नहीं. एक पीड़ा सालती रहती, एक कमी खलती रहती. केवल भौतिक सुविधाओं से ही जीवन संपूर्ण नहीं होता, उसे पूरा करते हैं रिश्ते.

सूनेसूने मायके का दर्द: सावित्री जैन रोज की तरह शाम को पार्क में बैठी थीं कि रमा भी सैर करने आ गईं. अपने व्हाट्सऐप पर आए एक चुटकुले को सभी को सुनाते हुए वे मजाक करने लगीं, ‘‘कब जा रही हैं सब अपनेअपने मायके?’’

सभी खिलखिलाने लगीं पर सावित्री मायूसी भरे सुर में बोलीं, ‘‘काहे का मायका? जब तक मातापिता थे, तब तक मायका भी था. कोई भाई भाभी होते तो आज भी एक ठौरठिकाना रहता मायके का.’’

वाकई, एकलौती संतान का मायका भी तभी तक होता है जब तक मातापिता इस दुनिया में होते हैं. उन के बाद कोई दूसरा घर नहीं होता मायके के नाम पर.

भाईभाभी से झगड़ा: ‘‘सावित्रीजी, आप को इस बात का अफसोस है कि आप के पास भाईभाभी नहीं हैं और मुझे देखो मैं ने अनर्गल बातों में आ कर अपने भैयाभाभी से झगड़ा मोल ले लिया. मायका होते हुए भी मैं ने उस के दरवाजे अपने लिए स्वयं बंद कर लिए,’’ श्रेया ने भी अपना दुख बांटते हुए कहा.

ठीक ही तो है. यदि झगड़ा हो तो रिश्ते बोझ बन जाते हैं और हम उन्हें बस ढोते रह जाते हैं. उन की मिठास तो खत्म हो गई होती है. जहां दो बरतन होते हैं, वहां उन का टकराना स्वाभाविक है, परंतु इन बातों का कितना असर रिश्तों पर पड़ने देना चाहिए, इस बात का निर्णय आप स्वयं करें.

भाईबहन का साथ: भाई बहन का रिश्ता अनमोल होता है. दोनों एकदूसरे को भावनात्मक संबल देते हैं, दुनिया के सामने एकदूसरे का साथ देते हैं. खुद भले ही एकदूसरे की कमियां निकाल कर चिढ़ाते रहें लेकिन किसी और के बीच में बोलते ही फौरन तरफदारी पर उतर आते हैं. कभी एकदूसरे को मझधार में नहीं छोड़ते हैं. भाईबहन के झगड़े भी प्यार के झगड़े होते हैं, अधिकार की भावना के साथ होते हैं. जिस घरपरिवार में भाईबहन होते हैं, वहां त्योहार मनते रहते हैं, फिर चाहे होली हो, रक्षाबंधन या फिर ईद.

मां के बाद भाभी: शादी के 25 वर्षों बाद भी जब मंजू अपने मायके से लौटती हैं तो एक नई स्फूर्ति के साथ. वे कहती हैं, ‘‘मेरे दोनों भैयाभाभी मुझे पलकों पर बैठाते हैं. उन्हें देख कर मैं अपने बेटे को भी यही संस्कार देती हूं कि सारी उम्र बहन का यों ही सत्कार करना. आखिर, बेटियों का मायका भैयाभाभी से ही होता है न कि लेनदेन, उपहारों से. पैसे की कमी किसे है, पर प्यार हर कोई चाहता है.’’

दूसरी तरफ मंजू की बड़ी भाभी कुसुम कहती हैं, ‘‘शादी के बाद जब मैं विदा हुई तो मेरी मां ने मुझे यह बहुत अच्छी सीख दी थी कि शादीशुदा ननदें अपने मायके के बचपन की यादों को समेटने आती हैं. जिस घरआंगन में पलीबढ़ीं, वहां से कुछ लेने नहीं आती हैं, अपितु अपना बचपन दोहराने आती हैं. कितना अच्छा लगता है जब भाईबहन संग बैठ कर बचपन की यादों पर खिलखिलाते हैं.’’

मातापिता के अकेलेपन की चिंता: नौकरीपेशा सीमा की बेटी विश्वविद्यालय की पढ़ाई हेतु दूसरे शहर चली गई. सीमा कई दिनों तक अकेलेपन के कारण अवसाद में घिरी रहीं. वे कहती हैं, ‘‘काश, मेरे एक बच्चा और होता तो यों अचानक मैं अकेली न हो जाती. पहले एक संतान जाती, फिर मैं अपने को धीरेधीरे स्थिति अनुसार ढाल लेती. दूसरे के जाने पर मुझे इतनी पीड़ा नहीं होती. एकसाथ मेरा घर खाली नहीं हो जाता.’’

एकलौती बेटी को शादी के बाद अपने मातापिता की चिंता रहना स्वाभाविक है. जहां भाई मातापिता के साथ रहता हो, वहां इस चिंता का लेशमात्र भी बहन को नहीं छू सकता. वैसे आज के जमाने में नौकरी के कारण कम ही लड़के अपने मातापिता के साथ रह पाते हैं. किंतु अगर भाई दूर रहता है, तो भी जरूरत पर पहुंचेगा अवश्य. बहन भी पहुंचेगी परंतु मानसिक स्तर पर थोड़ी फ्री रहेगी और अपनी गृहस्थी देखते हुए आ पाएगी.

पति या ससुराल में विवाद: सोनम की शादी के कुछ माह बाद ही पतिपत्नी में सासससुर को ले कर झगड़े शुरू हो गए. सोनम नौकरीपेशा थी और घर की पूरी जिम्मेदारी भी संभालना उसे कठिन लग रहा था. किंतु ससुराल का वातावरण ऐसा था कि गिरीश उस की जरा भी सहायता करता तो मातापिता के ताने सुनता. इसी डर से वह सोनम की कोई मदद नहीं करता.

मायके आते ही भाई ने सोनम की हंसी के पीछे छिपी परेशानी भांप ली. बहुत सोचविचार कर उस ने गिरीश से बात करने का निर्णय किया. दोनों घर से बाहर मिले, दिल की बातें कहीं और एक सार्थक निर्णय पर पहुंच गए. जरा सी हिम्मत दिखा कर गिरीश ने मातापिता को समझा दिया कि नौकरीपेशा बहू से पुरातन समय की अपेक्षाएं रखना अन्याय है. उस की मदद करने से घर का काम भी आसानी से होता रहेगा और माहौल भी सकारात्मक रहेगा.

पुणे विश्वविद्यालय के एक कालेज की निदेशक डा. सारिका शर्मा कहती हैं, ‘‘मुझे विश्वास है कि यदि जीवन में किसी उलझन का सामना करना पड़ा तो मेरा भाई वह पहला इंसान होगा जिसे मैं अपनी परेशानी बताऊंगी. वैसे तो मायके में मांबाप भी हैं, लेकिन उन की उम्र में उन्हें परेशान करना ठीक नहीं. फिर उन की पीढ़ी आज की समस्याएं नहीं समझ सकती. भाई या भाभी आसानी से मेरी बात समझते हैं.’’

भाईभाभी से कैसे निभा कर रखें: भाईबहन का रिश्ता अनमोल होता है. उसे निभाने का प्रयास सारी उम्र किया जाना चाहिए. भाभी के आने के बाद स्थिति थोड़ी बदल जाती है. मगर दोनों चाहें तो इस रिश्ते में कभी खटास न आए.

सारिका कितनी अच्छी सीख देती हैं, ‘‘भाईभाभी चाहे छोटे हों, उन्हें प्यार देने व इज्जत देने से ही रिश्ते की प्रगाढ़ता बनी रहती है नाकि पिछले जमाने की ननदों वाले नखरे दिखाने से. मैं साल भर अपनी भाभी की पसंद की छोटीबड़ी चीजें जमा करती हूं और मिलने पर उन्हें प्रेम से देती हूं. मायके में तनावमुक्त माहौल बनाए रखना एक बेटी की भी जिम्मेदारी है. मायके जाने पर मिलजुल कर घर के काम करने से मेहमानों का आना भाभी को अखरता नहीं और प्यार भी बना रहता है.’’

ये आसान सी बातें इस रिश्ते की प्रगाढ़ता बनाए रखेंगी:

– भैयाभाभी या अपनी मां और भाभी के बीच में न बोलिए. पतिपत्नी और सासबहू का रिश्ता घरेलू होता है और शादी के बाद बहन दूसरे घर की हो जाती है. उन्हें आपस में तालमेल बैठाने दें. हो सकता है जो बात आप को अखर रही हो, वह उन्हें इतनी न अखर रही हो.

– यदि मायके में कोई छोटामोटा झगड़ा या मनमुटाव हो गया है तब भी जब तक आप से बीचबचाव करने को न कहा जाए, आप बीच में न बोलें. आप का रिश्ता अपनी जगह है, आप उसे ही बनाए रखें.

– यदि आप को बीच में बोलना ही पड़े तो मधुरता से कहें. जब आप की राय मांगी जाए या फिर कोई रिश्ता टूटने के कगार पर हो, तो शांति व धैर्य के सथ जो गलत लगे उसे समझाएं.

– आप का अपने मायके की घरेलू बातों से बाहर रहना ही उचित है. किस ने चाय बनाई, किस ने गीले कपड़े सुखाए, ऐसी छोटीछोटी बातों में अपनी राय देने से ही अनर्गल खटपट होने की शुरुआत हो जाती है.

– जब तक आप से किसी सिलसिले में राय न मांगी जाए, न दें. उन्हें कहां खर्चना है, कहां घूमने जाना है, ऐसे निर्णय उन्हें स्वयं लेने दें.

– न अपनी मां से भाभी की और न ही भाभी से मां की चुगली सुनें. साफ कह दें कि मेरे लिए दोनों रिश्ते अनमोल हैं. मैं बीच में नहीं बोल सकती. यह आप दोनों सासबहू आपस में निबटा लें.

– आप चाहे छोटी बहन हों या बड़ी, भतीजोंभतीजियों हेतु उपहार अवश्य ले जाएं. जरूरी नहीं कि महंगे उपहार ही ले जाएं. अपनी सामर्थ्यनुसार उन के लिए कुछ उपयोगी वस्तु या कुछ ऐसा जो उन की उम्र के बच्चों को भाए, ले जाएं.

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