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स्वरा भास्कर: बनाए रखें शादी से पहले की फ्रेंडशिप को, पढ़ें इंटरव्यू

अभिनेत्री स्वरा भास्कर खुद को कंट्रोवर्सी चाइल्ड क्यों कहती है, आइये जानें

स्पष्टभाषी और साहसी अभिनेत्री स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) अक्सर ही अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. यूजर्स उनको ट्रोल करने का कोई मौका भी अपने हाथ से जाने नहीं देते. उन्होंने हिंदी सिनेमा जगत से लेकर देश-दुनिया से जुड़े हर मु्द्दे पर अपनी बेबाक राय रखी हैं. हाल में उन्होंने ‘बायकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड पर काफी सारे ट्वीट्स किए थे.स्वरा ने आम लोगों को ही इसका जिम्मेदार ठहराया है.जो उसकी सत्यता को जाने बिना ही ट्रोल करते है. कंट्रोवर्सी के बारें में स्वरा का कहना है कि मैं कंट्रोवर्सी में ही पली-बड़ी हुई हूँ. मुझे ‘कंट्रोवर्सी चाइल्ड’ कहलाना ही ठीक रहेगा. ये सही है कि पब्लिक लाइफ में कंट्रोवर्सी होती है. उसे झेलना पड़ेगा, उससे बचपाना संभव नहीं. मगर मैंने कोई फूहड़ बात नहीं कही है और बातों की नियत और आदर्श सही है, तो किसी भी गलत बात के लिए मैं अवश्य खड़ी रहूंगी और लडूंगी भी. जिसपर मेरा विश्वास होता है, मैं उसके लिए सामने खड़ी हूं, मेरी बातें सालों बाद उन्हें सही लगेगा. मैं वैसे ही कंट्रोवर्सी को लेती हूँ और देखा जाय तो कंट्रोवर्सी केवल 3 दिन तक चलती है.

किया संघर्ष

यहाँ तक पहुँचने में स्वरा ने बहुत मेहनत करनी पड़ी. वह कहती है कि अगर कोई जानने वाला इंडस्ट्री से नहीं है, तो संघर्ष करना ही पड़ता है, पर मुझे काम जल्दी मिल गया और अभी भी कर रही हूँ. मुझमें मेहनत और धीरज की कोई कमी नहीं, दर्शकों का साथ ही मेरी प्रेरणा है.

 

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एक्टिंग पर किया फोकस

‘निल बट्टे सन्नाटा’ फिल्म से चर्चित होने वाली अभिनेत्री स्वराभास्कर, तेलुगु परिवार में जन्मी और उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ. वहां से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर अभिनय करने मुंबई आईं और कुछ दिनों के संघर्ष के बाद फिल्मों में काम मिलने लगा. उन की पहली फिल्म कुछ खास नहीं रही, पर ‘तनु वैड्स मनु’ में कंगना रनौत की सहेली पायल की भूमिका निभा कर उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया.स्वरा भास्कर के पिता उदय भास्कर नेवी में औफिसर थे. अब वे रक्षा विशेषज्ञ हैं और मां इरा भास्कर प्रोफेसर हैं.

 

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है चुनौती अभिनय में

इन दिनों स्वरा फिल्म ‘जहाँ चार यार’ में एक सहमी हुई गृहणी की भूमिका निभा रही है, जो उसके रियल लाइफ के चरित्र से बहुत अलग है, लेकिन उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया है और अपनी नानी की चरित्र से प्रेरित होकर इस भूमिका को निभाई है.उनकी नानी रमा सिन्हा की शादी 15 साल में हुई थी और इतनी कम उम्र में उन्होंने पूरे परिवार को सम्हाला था. इससे स्वरा बहुत प्रेरित हुई. स्वरा कहती है कि दोस्ती और रोड ट्रिप पर कई फिल्में बनी है, लेकिन शादी-शुदा महिलाओं को मुख्य किरदार में और उनकी दोस्ती को लेकर ऐसी फिल्में निर्माता, निर्देशक कम बनाते है. अधिकतर फिल्मों या टीवी में महिलाओं को प्रताड़ित और दुखी दिखाया जाता है, जिसे आज तक दर्शक देखते आ रहे है. ये सही भी है कि हमारे घर के चाची, मामी, नानी, दादी, माँ आदि के सपनों, उनकी खुशियों का ख्याल बहुत कम रखा जाता है. उनके जीवन में कुछ मजे या कुछ दिन चूल्हा- चौके से मुक्ति होकर खुद पर ध्यान दे सकती हो, क्योंकि उन्हें देखने, समझने वाला कोई नहीं होता. कही जाना हो, तो महिलाएं नहा-धोकर पसीने से तर-बतर होकर टिफिन पैक करती है, उनके परिश्रम को किसी ने आजतक महसूस नहीं किया है.  ऐसे में निर्देशक कमल पांडे इस कहानी को लेकर आये है, जो शादी-शुदा महिलाओं की कहानी है, जिसमे उनकेसपने, दोस्ती,मौज मस्ती, ट्रिप आदि को दर्शाने की कोशिश की गयी है.

कठिन था शूट करना

एक दृश्य को शूट करते हुए स्वरा बहुत परेशान हुई . वह हंसती हुई कहती है कि मुझे पानी में भीगना एकदम पसंद नहीं. एक दृश्य में मुझे पानी में शूट करना पड़ा. मैं पूरी तरह से भींग चुकी थी. मुझे गीला होना पसंद नहीं. मुझे तैरना भी बहुत कम आता है. इसके अलावा इसकी शूटिंग कोविड 19 की दूसरी वेव के दौरान गोवा में हुई जहाँ हम सब फंस चुके थे. एक एक्ट्रेस को कोविड भी हुआ, शूट कैंसिल करना पड़ा. 8 से 10 महीने देर हुई. इसके बाद फिर से गोवा जाकर उसे शूट किया गया.

 

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चरित्र में स्ट्रेंथ है जरुरी

अभिनेत्री स्वरा कहती है कि मैंने हमेशा एक अलग भूमिका निभाने की कोशिश की है,फिर चाहे वह नील बटे सन्नाटा’ हो या राँझना, तनु वेड्स मनु, प्रेम रतन धन पायों आदि सभी में मैंने अपनी भूमिका की स्ट्रेंथ को देखा है. इस बार भी मैंने बेचारी यानि दब्बू महिला की भूमिका निभाई है, जो मेरे लाइफ के विपरीत है. हर बात को वह अपने पति से पूछ लेती है, जो उसकी टैग लाइन भी है. उसे जिंदगी में डर है कि पति से बिना पूछे वह कुछ करना गलत होगा. मुझे एक कलाकार के रूप में इसे नया लगा और मैंने किया, क्योंकि सोशल मीडिया, ट्विटर, फेसबुक पर मेरी एक अलग इमेज है, जिसे मैं काम के द्वारा ब्रेक कर सकूँ. यही मेरा उद्देश्य रहा. मुझे हंसी आती है कि मैं एक अकेली लड़की होकर शादी-शुदा महिलाओं की भूमिका निभा रही हूँ.

अलग किरदार निभाना जरुरी

स्वरा आगे कहती है कि कलाकार को हमेशा खुद से अलग भूमिका निभानी चाहिए. मुझे मेरी भूमिका से बस एक चीज ऐसी ढूंढ़नी होती है, जो मुझे समझ में आये या फिर किसी करीबी इंसान में वो गुण हो, जिससे मैं रिलेट कर सकूँ. फिल्म राँझना में मेरे और बिंदिया में बहुत फर्क था, पर मैंने उनमे पाया कि बिंदियाँ दिल से नहीं दिमाग से सोचती है, जो मुझसे मेल खाती थी. ‘नील बटे सन्नाटा’फिल्म में मैंने माँ के तरीके को सोचकर ढालने की कोशिश की फिल्म ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ में अन्याय के खिलाफ लड़ाई, जो मुझसे काफी मेल खाता हुआ रहा है. इस फिल्म की चरित्र में मैंने नानी को अपने जीवन में उतारा है, क्योंकि उनकी शादी 15 साल में हो गयी थी. बनारस में रहती थी, उन्हें अंग्रेजी बोलना नहीं आता था, जबकि मेरे नाना बिहार के जमींदार थे और इंग्लैंड में अपनी पढाई पूरी की थी. वे बहुत आधुनिक तरीके से जीवन-यापन करते थे. नानी उस समय बहुत डरी हुई रहती थी कि उनसे कोई गलती न हो जाय. ये सारी कहानियां उन्होंने अपने जीवन की मुझे सुनाया करती थी. उन्होंने पूरी जिंदगी बच्चों और परिवार के लिए जिया है. कई कहानियाँ बताया करती थी. मैं उन्हें बहुत मिस करती हूँ, क्योंकि कैंसर से उनकी मृत्यु कुछ साल पहले हो चुकी है.

बनाए रखे शादी से पहले की फ्रेंडशिप को

स्वरा के साथ सभी को स्टार ने बहुत अच्छा काम किया है. दोस्तों की केमिस्ट्री को निर्देशक ने अच्छी तरह से फिल्माया है. महिलाओं की दोस्ती शादी के बाद ख़त्म होने की वजह पूछने पर स्वरा स्पष्ट रूप में कहती है कि कोई महिला दोस्ती को बनाएं रखने के बारें में नहीं सोचती, वे घर गृहस्थी में इतना घुस जाती है कि वे अपने बारें में कुछ नहीं सोचती. समय बचता ही नहीं, जबकि वह दूसरों की सेवा करने में व्यस्त है. दोस्ती महिलाओं के लिए उतना ही जरुरी है, जितना पुरुषों को है, क्योंकि सबके पास अपने जीवन की किसी समस्या को कहने के लिए किसी का होना आवश्यक है. उनके अनुभव भी आपके जैसे ही कुछ है. इसे कौन समझेगा? वही व्यक्ति समझ सकता है, जिनके जीवन में पति, बच्चे सास-ससुर आदि हो. मेरा नानी को उनकी सहेलियों के साथ 40 से 50 साल तक साथ निभाते हुए देखना मेरे लिए बड़ी बात है. मैं जब शूटिंग के दौरान मुंबई आती थी, तो नानी को मुंबई में उनके दोस्तों के साथ कुछ दिनों के लिए छोडती थी. मैंने हमेशा उनकी लाइफ में एक्साइटमेंट को देखा है.

तोषु के अफेयर की सच्चाई जानकर किंजल करेगी सुसाइड? बहू को खो देगी अनुपमा!

टीवी सीरियल अनुपमा में लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा दिखाया जा रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रह हो रहा है. शो में पारितोष का एक्सट्रा मैरिटल अफेयर दिखाया जा रहा है. जल्द ही ये तोषु का पोल अनुपमा के सामने खुलने वाली है. स्टार प्लस का एक नया प्रोमो सामने आया है. आइए बताते हैं, इस प्रोमो के बारे में…

फैंस को ये प्रोमो कॉफी पसंद आ रहा है. पारितोष और अनुपमा के बीच बातचीत के दौरान वनराज भी शर्मिंदा होता दिखाई दे रहा है. अनुपमा परेशान है कि जब किंजल को यह बात पता चलेगी तो क्या होगा.

 

प्रोमो में दिखाया गया है कि अनुपमा को यकीन नहीं होता कि पारितोष किंजल के साथ ऐसा कर सकता है. वह उससे बोलती है कि कह दे कि ये सारे इल्जाम झूठ हैं. इस पर राखी बोलती है कि उसके पास तोषू के खिलाफ सारे सबूत हैं.

 

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पारितोष खुद को जस्टिफाई करने की कोशिश करता है और कहता है कि किंजल प्रेग्नेंट थी, ऐसे में एक हसबैंड का किसी और औरत की ओर अट्रैक्ट होना नॉर्मल है. इस बात पर अनुपमा भड़क जाती है और बोलती है, कितनी आसानी से मर्द अपने नाजायज संबंध रखने की जायज वजह ढूंढ़ लेते हैं. अनुपमा आगे कहती है कि किसी भी मर्द को ये अधिकार नहीं है कि वह अपनी पत्नी को धोखा दे. इस पर वनराज शर्मिंदा होता दिखाई देता है.

 

अनुपमा, वनराज और राखी नहीं चाहते हैं कि किंजल को परितोष के अफेयर के बारे में पता चले. खबरों के अनुसार किंजल उनकी बात सुन लेगी. किंजल को बड़ा झटका लगेगा और उसे पैनिक अटैक आएगा. डिप्रेशन और पैनिक अटैक के बाद किंजल की हालत और बिगड़ जाएगी. किंजल इस धोखे को सह नहीं पाएगी. वह परितोष की बेवफाई से इस कदर टूट जाएगी कि वह सुसाइड करेगी.क्या राखी और अनुपमा किंजल को बचा पाएंगे?

GHKKPM: सई से हमेशा के लिए दूर हो जाएगा विराट! मौके का फायदा उठाएगी पाखी

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’  का  ट्रैक इन दिनों दर्शकों को खूब पसंद  रहा है. यह शो लगातार टीआरपी लिस्ट में भी टॉप पर बना हुआ है. शो में लगातार ऐसे ट्विस्ट और टर्न्स आ रहे हैं, जिससे दर्शकों का इंटरेस्ट बना हुआ है. ‘गुम है किसी के प्यार में’ में जल्द ही विराट और सई का आमना सामना होगा. इस ट्विस्ट का फैंस को बेसब्री से इंतजार है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

बताया जा रहा है कि सई के जिंदा होने के बाद भी विराट उसे अपने साथ चौहान हाउस लेकर नहीं जाएगा. वह सई से हमेशा के लिए दूर चला जाएगा. दरअसल विराट को लगेगा कि सई जानबूझकर उससे दूर हुई और जिंदा होने के बाद भी वापस नहीं आई.

 

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इतना ही नहीं, विराट सई से विनायक का इलाज करवाने से मना कर देगा. यह देखकर सई का दिल टूट जाएगा और उसके मन में ख्याल आएंगे कि इतने सालों के बाद मिलने के बावजूद विराट ने एक भी बार उससे बात करने की कोशिश नहीं की.

 

खबरों के मुताबिक विराट जबरदस्ती विनायक को सई से दूर ले जाएगा. वह अपनी सगी बेटी की तरफ भी मुड़कर नहीं देखेगा. बताया जा रहा है कि सीरियल में इस ट्विस्ट के कारण पाखी मौके का फायदा उठाएगी. तो दूसरी ओर विराट सई को धोखेबाज मानकर पाखी के नजदीक जाएगा. शो में अब ये देखना होगा कि क्या हमेशा के लिए अलग हो जाएंगे विराट-सई?

 

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पौराणिक राह पर सत्ता

हालांकि बिहार के नीतीश कुमार की अलटापलटी ने भारतीय जनता पार्टी के चक्रवर्ती बनने के सपने पर कुछ अंकुश लगा दिया है पर कांग्रेस के बूढ़े हो रहे नेता गुलाम नबी आजाद का लंबी चिट्ठी लिख कर कांग्रेस को छोड़ देना इसी सपने को पूरा करने का एक और प्रयास है. समृद्ध, सुखी भारत की जगह कांग्रेस मुक्त भारत या विपक्षी मुक्त भारत की कल्पना हमारे पौराणिक ग्रंथों में भरी है जिस में राजा अश्वमेघ यज्ञ करा कर घोड़ा छोड़ता था कि वह जहां जाए वहां का राजा हथियार डाल दे. पौराणिक ग्रंथों में हर राजा, राम और पाडंव ही नहीं, यह स्टंट करते रहे हैं.

सवाल उठता है कि एक राजा के चक्रवर्ती बनने से लाभ किसे होता है? अगर जनता इसी भूभाग की है, जिसे आज भी एक देश कहते हैं और पौराणिक ग्रंथों में एक ही देश मानते थे, तो किस ने किसे हराया, कौन जीता यह किस मतलब का था. जब युधिष्ठिर ने कुछ समय के लिए राज किया तो उस ने राजसूर्य यज्ञ कराया और अर्जुन, भीम, नकुल व सहदेव से कई देशों के राजाओं को हराने के साथ वहां लूटपाट कर के धनसंपत्ति लाने को कहा. उदाहरण के तौर पर भीमसेन ने पांचालों, गंडक, विदेह दशार्ण देशों को जीता. दशार्ण नरेश सुशर्मा ने भीम से युद्ध किया पर हार गया तो ???…दलबदल…??? करा कर उस ने उसे प्रधान सेनापति बना डाला.

फिर भीम ने अश्वमेघ देश के राजा रोचमन को हराया, पूर्व देश को बिना युद्ध हथियार डालने को मजबूर किया, पुलिंदों के नगर सुकुमार को अधीन किया, शिशुपाल जो चंदिराज का राजा था उस से समझौता कर लिया, कंसल राज को जीता.

ये सब देश हिंदू राजाओं के थे. वहां पौराणिक परंपराओं को माना जाता था. कोई भी राजा अपनी जनता के प्रति क्रूर नहीं था. कुछ ???…ओच्छा…??? राजाओं को जरूर अपने वश में किया पर उन को बराबर का स्थान दिया, यह स्पष्ट नहीं. हर राजा से धर्मखर्च लिया गया. चंदन, वस्त्र, मणि, मोती, सोना, चांदी ‘करोड़ों की संख्या’ में ला कर युधिष्ठिर को इंद्रप्रस्थ में दिए.

क्या यही कहानी अब नहीं दोहराई जा रही, अपने ही लोगों को तोडफ़ोड़ कर पैसे का लालच दे कर फुसलाया जा रहा है. एक बार चुंगल में आने के बाद मनमरजी का जीएसटी, खानों और जमीनों के बेचने का काम कर के प्रदेशों की जनता को लूटा नहीं जा रहा? जहां भी सत्ता परिवर्तन हुआ है वहां क्या पहले अराजकता थी? न महाभारत में युधिष्ठर के भाइयों ने किसी क्रूर राजा को हराया न 2014 से अब तक भारतीय जनता पार्टी ने किसी गलत व भ्रष्ट सरकार को दलबदल कर के हटाया.

पहले युद्ध तीरों, भालों से होते थे आज इंद्रप्रस्थ सरकार के पास दूसरे हथियार हैं. पर जनता को क्या लाभ हो रहा है, क्या मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, असम, नागालैंड, महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन से सोने की वर्षा होने लगी है.

उलटे संदेश यह जा रहा है कि कोर्ई नेता अपने समर्थकों, विधायकों, सांसदों पर भरोसा नहीं कर सकता. रामायण और महाभारत में भाइयों पर जिस तरह संदेह करना सिखाया गया है उसे भारतीय जनता पार्टी दूसरी पार्टियों की तोडफ़ोड़ कर के सिखा रही है. विभीषण और शकुनि हर जगह होते हैं, आज भी हैं और हमारे नेता यही साबित कर रहे हैं कि वे पौराणिक संदेशों व पौराणिक शिक्षा को सही से लागू कर रहे हैं.

डर: समीर क्यों डरता था?

नीरज के घर में हुई बातों ने समीर के मन में अजीब सा डर बिठा दिया है. वे बातें उस के मन में कहीं गहरी जड़ें जमा हो चुकी  हैं.

मेरा प्रेमी धोखा दे रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 30 साल की एक शादीशुदा औरत हूं और बेऔलाद भी. मेरे पति दूसरे शहर में नौकरी करते हैं और जब कभी घर आते हैं, तो मुझ से दूरी बना कर रहते हैं. उन्हें मेरी जिस्मानी जरूरतों की कोई परवाह नहीं है.
इसी के चलते पड़ोस का एक 27 साल का लड़का मुझ से जिस्मानी रिश्ता बना चुका है. वह मुझ से बच्चा चाहता है, जो किसी लिहाज से ठीक नहीं है. वह कहता है कि तुम्हारे पति को कुछ पता नहीं चलेगा.
क्या ऐसा हो सकता है कि उस की औलाद को मेरा पति अपनी औलाद समझ कर पाल ले?

जवाब

आप उस लड़के से जिस्मानी रिश्ता बना कर एक गलती कर चुकी हैं, जो आप की मजबूरी भी हो गई थी, लेकिन दूसरी गलती न करें. वह लड़का बिना बीवी बनाए आप से बच्चा क्यों चाहता है? हकीकत में वह आप की कमजोरी का फायदा उठा रहा है, जिस से जिंदगीभर की मुफ्त की मौजमस्ती का इंतजाम
हो जाए.

आप अपने पति पर ध्यान दें. मुमकिन है कि वह जिस्मानी तौर पर कमजोर हों, इसलिए जिस्मानी संबंध नहीं बनाता हो. आप उन से प्यार से पूछें और जरूरत पड़ने पर डाक्टरी इलाज कराएं. इस पर भी बात न बने, तो किसी दूसरे से बच्चा पैदा करने से पहले पति की इजाजत लें. यह न सोचें कि आप अपने प्रेमी से बच्चा पैदा कर लेंगी और पति को पता नहीं चलेगा, इसलिए सोचसमझ कर फैसला लें.

बच्चा तो आजकल आईवीएफ टैक्निक से भी हो सकता है. इस के लिए शहर के किसी अच्छे फर्टिलिटी सैंटर जा कर डाक्टर से मिलें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

आजादी का महा महोत्सव: सेलिब्रेशन है, खुशहाली नहीं

यह सच है कि किसी भी समस्या को तनाव बना लेने से वह हल नहीं होती. यह भी सच है कि केवल सैलिब्रेशन भर से जिंदगी खुशहाल नहीं होती. जीवन की खुशहाली के लिए मजबूत धरातल का होना जरूरी होता है, तभी सैलिब्रेशन भी अच्छा लगता है. हाल के कुछ सालों में जीवन का धरातल कमजोर पड़ता जा रहा है और हम सैलिब्रेशन के जरिए खुशियों का दिखावा कर रहे हैं. जीवन के धरातल और सैलिब्रेशन के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत है, तभी देश और समाज में वास्तविक खुशहाली आएगी. इवैंट के जरिए सफलता दिखाना आसान होता है पर एक लंबी नीति बना कर खुशहाल भविष्य बनाना मुश्किल है.

‘संतोष ही सब से बड़ा सुख है,’ यह मानने वाला भारतीय समाज हमेशा परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढाल लेता है. भले ही उस की चाहतें पूरी न हों पर वह निराश नहीं होता. वह दूसरों की खुशी में भी अपनी खुशी तलाश लेता है. आजादी की लड़ाई के समय जनता को यह बताया गया कि देश में सारे फसाद की जड़ अंगरेज हैं. अंगरेजों के भारत छोड़ते ही पूरे देश में खुशहाली आ जाएगी. जनता ने पूरी उम्मीद से इस काम को पूरा किया. 75 साल के बाद भी देश के हालात पहले जैसे ही हैं. इस के बाद भी देश में खुशी का माहौल है. देश की जनता हर साल आजादी का उत्सव पूरे उत्साह से मनाती है. यह उत्साह की जनता की ताकत है. इस बात को बहुत छोटेछोटे उदाहरणों के जरिए समझा जा सकता है.

भाईचारा दिखा पर भरोसा घटा : उत्सव के जरिए जिंदगी में उत्साह का ही कारण है कि उत्तर भारत के लोग भी दक्षिण भारत के ओणम को मनाते हैं. केवल ओणम ही नहीं, पंजाब की लोहड़ी और असम का बिहु भी पूरे देश के लोग मनाते हैं. कभी पंजाबियों द्वारा मनाया जाने वाला करवाचौथ अब पूरे देश की महिलाएं मनाती हैं.

बिहार का छठ पर्व पूरे देश में मनाया जाता है. होली और दीवाली को पूरा देश मनाता है. यही इस देश की अनेकता में एकता का उदाहरण है.

25 दिसंबर को देश के बड़े हिस्सों में ‘क्रिसमस’ भी मनाया जाता है. इस दिन गिरजाघरों के आसपास भी रौनक बढ़ जाती है. ईद की बधाई देने और मुसलिम परिवारों में गैरमुसलिम लोग भी मिलने और सेंवईं का आनंद लेने आते हैं.

वोटबैंक राजनीति ने समाज को जाति और धर्म के नाम पर बांटने का कितना भी प्रयास किया हो पर भारत के लोग अपने पड़ोसी के सुख में खुश होने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं. गांव में किसी के लड़के की शादी में बहू हैलिकौप्टर से विदा हो कर आती है तो पूरा गांव उसे देखने आ जाता है. वह यह नहीं सोचता कि मेरे घर तो आई नहीं, मैं क्यों खुश होऊं.

भारत के लोगों ने तालाबंदी को भी छुट्टी का अवसर माना. घरों के किचन और जिम को ही मनोरंजन का जरिया बना लिया. यह देश परेशान हाल में खुश रहना जानता है. पूरी दुनिया कोरोना के संकट में तनाव में घिर गई थी. कोरोना संकट के कारण वेतन में कटौती हुई तो भी संतोष कर लिया और कम पैसे में भी खुशहाल रखना सीख गया. जनता के इस गुण के ही कारण सरकारों को जवाबदेही नहीं देनी होती.

पैट्रोल की कीमत बढ़ कर 100 रुपए हो गई, इस के बाद भी भारतीयों के चेहरों पर मुसकान है. सरकार से कोई नाराजगी नहीं है. जिंदगी जीने की यही अदा है कि देश के जिम्मेदार लोग आजादी से पहले किया गया वादा भले ही 75 साल बाद भी पूरा न कर सके हों पर देश की जनता आजादी का महाउत्सव मनाने में आगे है. कोई भी उत्सव में हिस्सा लेने के बाद भी आजादी के बाद जिंदगी में कोई बदलाव का अनुभव नहीं कर रहा.

अनेकता में एकता भरते त्योहार : पहले के दौर में लोग अपनेअपने इलाके में अपने उत्सवों में खुश रहते थे. धीरेधीरे लोग एकदूसरे के संपर्क में आए तो एकदूसरे के सुखदुख में शामिल होने लगे. लखनऊ के हजरतगंज इलाके में दक्षिण भारत के 2 परिवार रहने आए. ये लोग अपने देशी स्टाइल से डोसा और इडली जैसे व्यंजन बनाते थे. अपने उत्तर भारत के दोस्तों को खिलाते थे. धीरेधीरे इन की दोस्ती गहरी होने लगी. इन की संख्या बढ़ गई. अब ये एक ही जगह पर दक्षिण भारत के त्योहार मनाने लगे, खासतौर पर ओणम जैसे त्योहार को धूमधाम से मनाने लगे. उत्तर भारत के लोग भी इस में दक्षिण भारत के लोगों जैसे पहनावे में शामिल होने लगे.

ओणम केरल का एक प्रमुख त्योहार है. ओणम को केरल का राष्ट्रीय पर्व भी माना जाता है. ओणम का उत्सव सितंबर में राजा महाबली के स्वागत में आयोजित किया जाता है, युवतियां रंगोलियों के चारों तरफ वृत्त बना कर उल्लासपूर्वक नृत्य करती हैं.

यही काम बिहु के साथ भी हुआ. असम से आए कुछ परिवारों ने इस को शुरू किया. अब इस में हर तरह के लोग हिस्सा लेने लगे. बिहु असम के 3 अलग सांस्कृतिक उत्सवों के रूप में मनाया जाता है. कुछ सालों में यह हर जगह लोकप्रिय त्योहार बन गया है. एक अप्रैल को मनाए जाने वाले बिहु में असमिया नववर्ष भी शामिल है.

इस में किसी भी तरह की जाति और धर्म का भेद नहीं होता. अप्रैल के अलावा 2 और माह में बिहु मनाया जाता है. अक्तूबर माह में कोंगाली बिहु और जनवरी में भोगाली बिहु मनाया जाता है.

बिहार में मनाए जाने वाले छठ पर्व को बिहार के बाहर रहने वाले जानते नहीं थे. कुछ सालों में वे न केवल छठ को जानने लगे हैं बल्कि अपने रीतिरिवाज मान कर उस को मनाने भी लगे हैं. गैरबिहारी लोग भी इस को मनाने लगे हैं.

क्रिसमस ट्री, कैप, और सैंटा क्लौज की ड्रैस बाजार में खूब बिकती हैं. बाजार को उसी तरह से सजाया जाता है. बच्चे से ले कर बड़े तक इस में उत्साहपूर्वक हिस्सा लेते हैं.

जरूरतें सैलिबे्रशन से पूरी नहीं होतीं: हमारे समाज के लोग हर फैस्टिवल का सैलिब्रेशन करने लगे हैं. हम अपनी जरूरतों को भूल सैलिब्रेशन करते हैं, जैसे वोट देने के बाद यह नहीं पूछते कि वोट लेने के समय जो वादा किया था वह पूरा कब होगा. हमें चुनाव भी फैस्टिवल जैसा ही लगता है. सोशल मीडिया पर सैल्फी डालते कहते हैं- राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे दिया.

इसी तरह सालदरसाल आजादी का जश्न भी मनाते हैं. अभी हाल के दिनों में कोरोना का संकट पूरी दुनिया पर छाया था. हम ने इस के सैलिब्रेशन का मौका नहीं छोड़ा. ताली, थाली, टौर्च और मोमबत्ती से खुशियां मनाई गईं पर इस से मरीजों के मरने की संख्या कम नहीं हुई.

अखबारों में कई बार खबर छपती है कि पुलिस थाने में आने वालों को गुलाब का फूल दिया गया. सैलिब्रेशन अलग है पर क्या सही मानो में पुलिस अपना काम सही से करने लगी? मुकदमा लिखने लगी? सिफारिश बंद हो गई? जल्द न्याय मिलने लगा? सैलिब्रेशन के जरिए यह दिखाने की कोशिश की गई कि सबकुछ अच्छा हो गया है. इवैंट आधारित कामों से बुनियादी बदलाव नहीं होते.

सैलिब्रेशन से चीजें नहीं बदलतीं. कुछ देर के लिए चेहरे पर मुसकान आ जाती है. सोशल मीडिया के आने के बाद इस तरह के सैलिब्रेशन बढ़ गए हैं. आज देश का हर फैस्टिवल हर क्षेत्र में सैलिब्रेट किया जा रहा है पर क्या देश में रहने वालों के बीच सांमजस्य और भाईचारा बढ़ा है?   द्य

त्यौहार 2022: ब्रेड की मदद से नाश्ते में बनाएं ये खास पराठा

भारतीय घरों में आमतौर पर ब्रेड खाया जाता है. ऐसे अगर ब्रेड से नाश्ते की बात करें तो लोगों के दिमाग में कई तरह के नाश्ते आ जाते हैं. ऐसे में आज हम आपको ब्रेड सेे स्पेशल नाश्ता बनाना बताते हैं.

सामग्री−

ब्रेड स्लाइस चार−पांच

आधा कप सूजी

आधा कप दही

प्याज

शिमला मिर्च

टमाटर

अदरक

हरीमिर्च

लाल मिर्च पाउडर

गरम मसाला पाउडर

अमचूर पाउडर

नमक

बेकिंग सोडा

कुकिंग ऑयल

विधि−

ब्रेड परांठा बनाने के लिए आप सबसे पहले ब्रेड स्लाइस लेकर उसके छोटे−छोटे टुकड़े कर लें.अब आप इन टुकड़ों को जार में डालकर ग्राइंड कर लें. इसके बाद आप इसे एक बाउल में निकाल लें। अब इसमें सूजी, दही और एक कप पानी डाल लें. अब इसे अच्छी तरह मिलाएं औरर करीबन 15−20 मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ दें ताकि सूजी अच्छी तरह फूल जाए.

बीस मिनट बाद बैटर को एक बार फिर से मिलाएं. अब यह थिक हो गया होगा। इसके बाद आप इसमें थोड़ा पानी डालकर फिर से मिक्स करें.अब इसमें बारीक कटे टमाटर, प्याज और शिमला मिर्च डालकर मिक्स करें. अब इसमें अदरक, हरी मिर्च, लाल मिर्च, गरम मसाला, अमचूर, नमक व बेकिंग सोडा डालकर एक बार फिर से अच्छी तरह मिक्स करें। आपका बैटर तैयार है.

अब तवे पर तेल डाकलर फैलाएं. इसके बाद आप तवे पर बैटर डालकर फैलाएं. अब इसके चारों किनारों पर तेल लगाएं और फिर एक−दो मिनट के लिए पकने दें.जब यह एक साइड पूरा पक जाए तो आप इसे पलटकर दूसरी तरफ से सेक लें.

जब यह दोनों साइड से अच्छी तरह पक जाए तो इसे प्लेट में निकाल लें. बाकी बचे बैटर से भी आप ठीक इसी तरह से परांठे बनाकर तैयार कर सकते हैं. अब आप इसे हरी चटनी या टोमेटो कैचप से साथ सर्व करें.

इसे बनाने में बिल्कुल भी मेहनत नहीं लगती. जब हमने इसे बनाया तो यकीनन यह एक बेहद ही स्वादिष्ट परांठा था. अगर आप नाश्ते में कुछ अलग व हेल्दी खाना चाहते हैं तो यह ब्रेड परांठा बनाया जा सकता है.

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला रमेश स्वैन

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लोकेशन- (भुवनेश्वर, उड़ीसा)

मध्य प्रदेश में जबलपुर की रहने वाली 38 वर्षीया अवंतिका को पढ़ाई करतेकरते शादी की उम्र कब फुर्र हो गई थी उसे पता ही नहीं चल पाया. पढ़ाई के दौरान ही 30 साल उम्र में उस ने शादी कर ली. उस का पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में था, लेकिन शादी के 2 साल बाद ही एक सड़क हादसे में उस के पति की मृत्यु हो गई थी. तब वह 32 साल की थी. उस के बाद उस ने अपने पैरों पर खड़ा होने की शुरूआत की. अधूरी पढ़ाई पूरी करने में जुट गई.

पति की मौत के बाद अवंतिका का ससुराल से नाता टूट चुका था. उस के मातापिता ने उस की दूसरी शादी के लिए प्रयास शुरू कर दिए. घरवालों को कभी उस के लिए वर पसंद आता था, तब लड़के के घरपरिवार में कोई न कोई खोट नजर आ जाती थी. जब कभी उन्हें घरपरिवार पसंद आता था, तब लड़के के साथ उस की कुंडली नहीं मिल पाती थी.

जन्मकुंडली के मुताबिक अवंतिका मंगल के प्रभाव वाली मांगलिक थी. इस के अलावा उस का विधवा होना भी दूसरी शादी में आड़े आ रहा था.

उस की हमउम्र सहेलियां जब कभी मायके आती थीं तब वे उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांध देती थीं. कारण, उस ने उदासी की जिंदगी से तौबा कर ली थी. वह सुंदर और कम उम्र वाली हसीन लड़की जैसी दिखती थी. बनठन कर जब निकलती थी, तब उस का गोरा रंग और भी निखर उठता था.

हर पहनावे में उस के उभार, लचक और शारीरिक मांसलता का ग्लैमर बरवस किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. चालढाल सेक्सी आदाओं वाली होती थी. फिर भी वह विधवा होने का दंश झेलने को मजबूर थी.

कारोबारी परिवार से थी. पैसे की कमी नहीं थी. अच्छी खासी रकम पति की मृत्यु के बाद उस की बहुराष्ट्रीय कंपनी से भी मिल गई थी. फिर भी वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी.

स्थाई आमदनी वाली सम्मानित नौकरी की तलाश में थी. समय गुजारने के लिए सामाजिक कार्य में लगी रहती थी. राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में वह एक नौकरी का फार्म भर चुकी थी. किसी ने बताया कि केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्रालय से कोई अच्छी सिफारिश लगाई जाए तब उसे नौकरी मिल सकती है.

इस तरह अवंतिका को 2 सपने पूरे करने थे. एक तमन्ना दूसरी शादी से मनपसंद जीवनसाथी की थी, तो दूसरी थी अच्छी आमदनी वाली नौकरी की. उस के हालात को देख कर कहा जा सकता है कि वह एक तरह से जीवन को संवारने के लिए महत्त्वाकांक्षाओं के बीच झूल रही थी.

कड़वा सच था कि उसे किसी में भी सफलता हाथ नहीं लग पाई थी. इस कारण वह तनाव में रहने लगी थी.

जब कोई शादी के बारे में उस से पूछता तब मन कसैला हो जाता था. कई बार लोगों के ताने सुन कर दिमाग झन्ना उठता था. जी तो करता था कि उलट कर कोई तगड़ा जवाब दे डाले, फिर वह कुछ सोच कर चुप लगा जाती थी.

उसे अपने अच्छे दिन आने का इंतजार था… लेकिन कब तक? उसे नहीं मालूम था कि जिंदगी आगे किस ओर करवट लेने वाली थी, बिलकुल ऊंट की तरह!

सहेली ने सुझाया शादी करने का तरीका

एक दिन उस का स्कूल के जमाने की सहेली से लंबे समय बाद मिलना हुआ. उस ने उस के साथ ही ग्रैजुएशन की थी. हाउसवाइफ की जिंदगी मजे में गुजार रही थी. खुश थी. मिलते ही पूछ बैठी, ‘‘तुम्हारा कोई रिश्ता तय हुआ?’’

यह सुनते ही अवंतिका तिलमिला गई. बोल पड़ी, ‘‘सालों बाद मिली हो… और तुम ने भी वही राग शुरू कर दिया?’’

‘‘मेरे पूछने का मतलब तुम्हें दुखी करना नहीं था,’’ सहेली बात संभालते हुए बोली, ‘‘मेरी बात बुरी लगी तो लो कान पकड़ती हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं…मैं क्या करूं? किसकिस से अपनी तकलीफ सुनाऊं? कितनों को अपने दिल की बात बताऊं?’’ बोलतेबोलते अवंतिका निराश हो गई.

‘‘मेरा कहा मानो तो तुम मैरेज ब्यूरो में सर्च किया करो,’’ सहेली बोली और मुसकराने लगी.

‘‘सुनते हैं कि उस में ज्यादातर फरजी होते हैं,’’ अवंतिका बोली.

‘‘फरजीवाड़ा कहां नहीं है. यह तो तुम पर निर्भर करता है, उस की जांचपरख करना. तुम अनपढ़ थोड़े हो.’’ सहेली ने समझाया.

‘‘लेकिन कई केस आते ही रहते हैं. असलीनकली की पहचान कैसे होगी?’’

‘‘विश्वसनीय मैरेज साइट पर जाओ. सोशलसाइट से संपर्क वाले में ही धोखे की बातें अधिक होती हैं. अच्छी तरह से प्रोफाइल पढ़ो. रिश्ता फाइनल होने से पहले खुद मिलो, परिवार वालों से मिलवाओ. कुछ समय ले कर उस की डिटेल्स की जांच करो…’’ सहेली बोलती चली गई.

‘‘कह तो तुम सही रही हो, लेकिन अधितर 28-30 उम्र तक ही मांगते हैं. मेरी तो…’’ अवंतिका ने चिंता जताई.

‘‘साइट पर जनरल से अलग सिंगल वीमन, विडो या डाइवोर्सी कालम में सर्च कर देखो. कोई न कोई मिल ही जाएगा… तुम्हारी तरह कई पुरुष सुघड़, सुंदर, सुशिक्षित और सुकुमारी प्रोफेशनल लेडी की तलाश में बैठे होंगे. अब भला तुम से अधिक योग्य लेडी कहां मिलेगी…’’ यह कहती हुई सहेली ने उस की ठुड्डी पकड़ ली और हंसने लगी.

सहेली के जाते ही अवंतिका के मन में उम्मीद की एक हलचल होने लगी. संभावना जाग उठी. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. एक गिलास पानी पीया, फिर लैपटाप उठा कर छत पर अपने एकांत स्टडी रूम में चली गई.

उस रोज उस ने लैपटाप ऐसे खोला जैसे कोई पट खोल रही हो और उस के खुलते ही उस में से कुछ नया निकलने वाला हो. लगता है लैपटाप भी उस की भावनाएं और दिल

में मची हलचल के साथ बेसब्री को भांप गया था.

उस रोज धीरेधीरे विंडो का पेज खुला था. अवंतिका ने झट गूगल क्रोम के बटन को 3-4 बार क्लिक कर दिया. गूगल के कई पेज फटाफट खुल गए. तुरंत मैट्रीमोनियल साइट खोल ली और सहेली के बताए कालम को सर्च करने लगी.

सहेली ने जैसा कहा था, ठीक वैसा ही मिला. स्क्रीन पर कई अनमैरीड पुरुषों के प्रोफाइल खुल गए. उन के साथ उन की तसवीरें भी थीं. कुछ ने अपने बेहतरीन करियर और प्रौपर्टी की जानकारी भी दे रखी थी.

एक प्रोफाइल पर अटक गईं नजरें

देखतेदेखते एक प्रोफाइल पर उस की नजर अटक गई. नाम था डा. बिधु प्रकाश स्वैन. केंद्र सरकार की नौकरी थी. वह स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल बोर्ड औफ ऐडमिशन कमिटी का डेप्युटी डायरेक्टर जनरल के पद पर बेंगलुरु में पोस्टेड था. उस ने अपनी पसंद के बारे में लिखा था, ‘‘उसे एक एक समझदार और कल्चर्ड महिला की तलाश है.’’

प्रोफाइल में उम्र दर्ज थी 42 साल. मैरिटल स्टेटस में अनमैरेड लिखा था. साथ ही अपने अविवाहित होने का कारण भी था कि उस की शादी पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने और नौकरी के सिलसिले में ट्रांसफर आदि होते रहने के चलते नहीं हो पाई थी.

पुश्तैनी घर, परिवार और इलाके की कुछ तसवीरों के अलावा अशोक स्तंभ चिह्न के लोगो लगे विजिटिंग कार्ड और भारत सरकार लिखे लालबत्ती गाड़ी की तसवीरें भी लगी हुई थीं.

यह सब देख कर अवंतिका को उस पर भरोसा बन गया. दूसरी बात यह कि वह भुवनेश्वर में पढ़ाई के सिलसिले में रह चुकी थी, इसलिए उस प्रोफाइल को नजरंदाज नहीं कर पाई. लैपटाप पर सेव कर वह विशलिस्ट में डाल दी.

सच तो यह भी था कि उसे देख कर उस की आंखों में चमक आ गई थी. उस के दिमाग में अपनी नौकरी के लिए पैरवी की उम्मीद की किरण नजर आई थी. कारण वह स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ा था. उस के दिमाग में फायदे की 2 बातें बैठ गईं.

उस ने तुरंत अपनी सहेली को फोन मिलाया. उसे भी प्रोफाइल के बारे में बताया और उस से सलाह मांगी. सहेली ने सिर्फ इतना कहा कि उस से सपंर्क कर चैक कर ले. यह बात मई 2020 की थी. उन दिनों देश में कोरोना के दूसरे फेज का माहौल भी चल रहा था.

अगले ही रोज अवंतिका ने इस बारे में अपना निर्णय ले लिया. उस प्रोफाइल के डा. स्वैन को संपर्क करने के साथसाथ अपनी डिटेल्स भी भेज दी. उधर से प्रपोजल भी आ गया और उस ने शादी की तारीख भी तय कर दी. उस ने कोरोना पर लगी पाबंदियों का हवाला देते हुए कम से कम लोगों के बीच मंदिर में शादी की बात कही.

जुलाई 2020 में भुवनेश्वर के एक मंदिर में शादी की तारीख तय हो गई. स्वैन ने शादी के बाद वहीं से बेंगलुरु चलने की बात कही. बातोंबातों में उस ने घर के रेनोवेशन के लिए 5 लाख रुपए की भी मांग कर ली. अवंतिका के बैंक खाते में दिवंगत पति के पैसे जमा थे. उस में से ही उस ने पैसे देने का वादा भी कर लिया.

स्वैन ने शादी में परिवार से किसी सदस्य को आने से मना कर दिया था. अवंतिका भी घर वालों के शोरशराबे से बचना चाहती थी. वह अपने कुछ कपड़ों से भरे सूटकेस के साथ भुवनेश्वर आ गई थी.

मंदिर में साधारण तरह से हुई शादी के समय स्वैन की तरफ से केवल एक दंपति मौजूद था. उस का परिचय उस ने बहन और बहनोई के रूप में करवाया था.

अवंतिका नवविवाहिता बन भुवनेश्वर स्थित स्वैन के 3 कमरे वाले एक मकान में आ गई थी. वहां केवल एक नौकरानी रहती थी. उसी से मालूम हुआ कि घर की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर थी.

स्वैन अकसर शहर से बाहर ही रहता था. महीनों बाद शादी के लिए आया था. फिर भी अवंतिका को घर का शांत माहौल अच्छा लगा. उस से भी अच्छा लगा स्वैन का स्वभाव और मधुर बोली.

वह बेहद खुश थी. लंबे समय बाद किसी पुरुष का साथ मिला था, जिसे वह अपना कह सकती थी और खास बात यह थी कि वह एक बड़े अधिकारी की पत्नी थी.

2 दिनों बाद ही स्वैन ने बेंगलुरु जाने की फ्लाइट बुक करवा ली थी. उस का टिकट साथ में नहीं लेने पर जब अवंतिका ने सवाल किया, तब उस ने बताया कि औफिस में हेल्थ रिलेटेड एक जरूरी प्रोजेक्ट जमा करवाना है. सेंटर की हेल्थ मिनिस्टरी का और्डर है. उसे निपटा कर एक सप्ताह में लौट आएगा. फिर कहीं घूमने का प्लान बनाएंगे. तब तक वह यहां का घर अपने अनुसार दुरुस्त कर ले.

वादे के मुताविक स्वैन ठीक आठवें रोज भुवनेश्वर आ गया था. आते ही उस ने 2 दिन बाद अवंतिका को आगे के टूर का प्रोग्राम बताया, जो गोवा का था. वह टूर भी उस के औफिस से रिलेटेड था.

वह 2 दिनों के लिए भुवनेश्वर में ठहरा था. इस दौरान स्वैन जब सुबह के समय बाथरूम में था, तब नौकरानी भागती हुई उस के पास आई. उस के हाथ में मोबाइल था, ‘‘मैडम! देखिए आप के फोन में कौल आ रही है?’’

‘‘मेरा मोबाइल! वह तो मेरे पास है. अरे, यह साहब का है. यहीं रख दो वह बाथरूम से आएंगे तब देख लेंगे. एप्पल मोबाइल एक जैसे दिखते हैं, किस का कौन है पहचाना ही नहीं जाता.’’

अवंतिका के बोलतेबोलते काल डिस्कनेक्ट हो गई थी. कुछ सेकेंड बाद फिर कौल आया, नाम उभरा ‘वाइफ डाक्टर’. सोचा किसी डाक्टर की वाइफ का फोन होगा. कुछ सेकेंड बाद फोन फिर डिस्कनेक्ट हो गया. किंतु तुरंत एक कौल आ गई. उस में दूसरा नाम उभरा था ‘वाइफ बेंगलुरु’.

अवंतिका को स्वैन पर होने लगा शक

यह नाम देख कर अवंतिका को एक बार फिर अजीब लगा. खुद से बातें करने लगी, ‘वाइफ बेंगलुरु’ का मतलब क्या हो सकता है?

उस फोन के कटते ही अवंतिका ने स्वैन का फोन उस समय आए मिस काल को स्क्राल कर दिया. देखा, उस से पहले और 2 काल आई थी. एक में ‘वाइफ टीचर’ था, जबकि दूसरे में सिर्फ ‘डब्ल्यू भुवनेश्वर’ लिखा था.

उसी वक्त स्वैन बाथरूम से निकल आया. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर एक झपट्टे के साथ ले लिया. डांटते हुआ बोला, ‘‘मेरा मोबाइल क्यों देख रही हो. जरा भी मैनर नहीं है क्या? एजूकेटेड हो.’’

अवंतिका अभी अपनी सफाई देती उस से पहले ही स्वैन ने उसे खूब खरीखोटी सुना दी. अचानक स्वैन के बदले तेवर को देख कर अवंतिका सहम गई. स्वैन उस रोज नाश्ता किए बगैर चला गया.

उस के जाने के बाद अवंतिका उदास हो गई. नौकरानी ने आ कर उसे नाश्ता दिया. हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेम साहब, साहब की बातों का बुरा नहीं मानना. वह ऐसे ही हैं. तुरंत नाराज हो जाते हैं, लेकिन तुरंत शांत भी हो जाते हैं. देखना अभी एक घंटे में वापस आएंगे और कोई गिफ्ट भी देंगे.’’

‘‘अच्छा?’’ अवंतिका बोली.

‘‘जी मेमसाहब!’’ नौकरानी मुसकराती हुई बोली.

‘‘और कुछ बताओ साहब के बारे में,’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘और क्या बताऊं उन के बारे में… सब कुछ तो ठीक है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, बताओ. हो सका तो मैं तुम्हारी मदद करूंगी,’’ अवंतिका बोली.

‘‘साहब को मत बोलना… मैं खुद बोल दूंगी. मेरा 3 महीने का पैसा बाकी है. सोचा थी आज मांगूंगी… लेकिन साहब नाराज हो गए,’’ नौकरानी मायूसी के साथ बोली.

‘‘कितना पैसा बाकी है? बताओ मैं दे देती हूं.’’

‘‘जी 9 हजार,’’ नौकरानी झिझकती हुई बोली. अवंतिका ने तुरंत अपने बैग से 10 हजार रुपए निकाले और नौकरानी के हाथ में रख दिए.

‘‘मेमसाहब आप बहुत अच्छी हैं. इस में एक हजार अधिक हैं,’’ नौकरानी बोली.

‘‘कोई बात नहीं, रख लो मेरी तरफ से गिफ्ट है.’’ अवंतिका ने कहा.

नौकरानी के कहे मुताबिक स्वैन उस रोज नहीं आ पाया. अवंतिका ने रात होने पर नौकरानी से स्वैन के नहीं आने का कारण पूछा. किंतु उस से कोई सही जवाब नहीं मिल पाया. उस ने सिर्फ आश्चर्य जताते हुए कहा कि ऐसा तो पहली बार हुआ है.

अगले रोज स्वैन शाम के वक्त आया. वह हड़बड़ी में था. फटाफट खुद सामान पैक किया और तुरंत निकल पड़ा. अवंतिका कुछ पूछती, इस से पहले ही उस ने सौरी बोलते हुए बताया कि उसे एक दिन पहले ही निकलना पड़ेगा. अगली बार बेंगलुरु ले चलने का वादा कर चला गया.

इस तरह 2-3 दिन और अगले सप्ताह करतेकरते 3 माह बीत गए. कभी कोरोना तो औफिस के काम की व्यस्तता बताता हुआ स्वैन उस से वादे करता रहा. इस दौरान उसे स्वैन के बारे में बहुत कुछ पता चल गया था.

घर के सारे खर्च का भार उस के ऊपर ही आ गया था. नौकरानी के वेतन से ले कर दूसरे खर्चे तक वही वहन कर रही थी. अवंतिका काफी तनाव में आ गई थी. परेशान रहने लगी थी.

स्वैन से जब भी फोन पर बातें होतीं तो सौरी बोलते हुए काम की व्यस्तता का बहाना  बना देता  था. एक बार उस ने खुद फ्लाइट से बेंगलुरु आने की बात कही तब उस ने मना कर दिया. बोला कि वह वहां गेस्टहाउस में रहता है. अस्थाई ठिकाना है. जब अपना फ्लैट ले लेगा तब बुला लेगा.

पति की सच्चाई जानकर हो गई हैरान

इस बीच अवंतिका के दिमाग में वाइफ डाक्टर और वाइफ टीचर शब्द भी घूमते रहे. उस का संदेह गहरा गया. एक रोज नौकरानी को विश्वास में ले कर पूछ बैठी.

नौकरानी ने दबी जुबान में बताया कि उस की पहले से भुवनेश्वर में 2 शादियां हो चुकी हैं. वह वहां किस इलाके में रहती हैं, उसे नहीं मालूम. यह सुन कर अवंतिका को लगा जैसे उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई हो.

अगली बार जब स्वैन आया तब उस ने बेंगलुरु जाने की जिद पकड़ ली. साथ ही अपने मायके जबलपुर चलने के लिए जोर दिया. उस ने कहा कि वह अपने परिवार के सामने वैदिक रीति और विधिविधान से शादी की रस्में करना चाहती है. उस के परिवार वाले उसे तभी स्वीकार कर पाएंगे जब वे शादी की रस्मों में शामिल होंगे.

इस बात को ले कर उन के बीच तूतूमैंमैं होने लगी. किसी तरह से मामला शांत हुआ, लेकिन आए दिन झगड़े होने लगे. अवंतिका समझ गई थी उस के साथ धोखा हुआ है. उस ने स्वैन के बारे में और जानकारियां जुटानी शुरू कीं.

संयोग से उसे आधा दरजन ऐसी महिलाओं के फोन नंबर मिल गए, जो स्वैन के मोबाइल में वाइफ बेंगलुरु, वाइफ टीचर, वाइफ दिल्ली, वाइफ आईटीबीपी आदि के नाम से सेव थे.

उस ने सभी का वाट्सऐप ग्रुप बना लिया. उन से स्वैन के बारे में बातें शेयर होने लगीं. जल्द ही स्वैन की पोल खुल गई. उस के कारनामों के बारे में मालूम हो गया कि वह कई महिलाओं को झांसा दे कर शादियां कर चुका था. सभी को केंद्र सरकार का एक बड़ा अफसर बताया था.

साथ ही अवंतिका को यह भी पता चल गया कि जिसे वह डा. विधु प्रकाश स्वैन समझ रही थी, वह वास्तव में रमेश चंद्र स्वैन था. उस के अन्य नाम डा. रमानी रंजन स्वैन और डा. विजयश्री स्वैन भी था. सभी में सरनेम स्वैन ही था.

स्वैन के खिलाफ दर्ज हुई शिकायत

अवंतिका के सिर से पानी ऊपर जा चुका था. उस ने देरी किए बगैर अक्तूबर 2020 में भुवनेश्वर के एक थाने में  स्वैन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी. शिकायत में उन सभी महिलाओं की भी चर्चा की, जो अलगअलग राज्यों की थीं और उस के द्वारा ठगी जा चुकी थी.

शिकायत में शादी के नाम पर उन से देहज में मोटी रकम लिए जाने की बात लिखी. शिकायत के अनुसार स्वैन ने अलगअलग बहाने बना कर भी पैसे मांगे थे. जैसे आईटीबीपी पत्नी से उस ने कुछ अर्जेंसी के बहाने से 10 लाख रुपए मांगे थे. वह अकसर अपनी पत्नी से स्टाफ को 1-2 लाख रुपए पेमेंट करने के लिए कहता था, या फिर अकाउंट में ट्रांसफर करने को बोलता था.

भुवनेश्वर पुलिस ने रमेश चंद्र स्वैन के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 (ए), 419, 468, 471 और 494 के तहत मामला दर्ज कर लिया था. जबकि वह गिरफ्त में नहीं आ पाया था.

भुवनेश्वर की पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी गई थी. रमेश को शायद इस बात की भनक लग गई थी, इसलिए उस ने अपना मोबाइल नंबर बदल लिया था. वह भुवनेश्वर से फरार हो गया था.

पुलिस को तलाशी के सिलसिले में मालूम हुआ था कि वह गुवाहाटी में रहने वाली अपनी एक और पत्नी के साथ रह रहा है. 7 महीने बाद रमेश मामले के ठंडा होने की उम्मीद के साथ भुवनेश्वर वापस आ गया था.

इसी बीच दिल्ली वाली पत्नी भी सक्रिय हो चुकी थी. उस ने भुवनेश्वर में ही अपने मुखबिर लगा रखे थे. उसे जैसे ही मालूम हुआ कि रमेश अपने भुवनेश्वर के खंडगिरी वाले फ्लैट में वापस आ चुका है, तुरंत इस की सूचना भुवनेश्वर पुलिस को दे दी.

उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने वाली महिलाओं में मध्यप्रदेश की महिला के अलावा दिल्ली की 48 वर्षीया स्कूल टीचर भी थी.

दिल्ली की टीचर ने उस के खिलाफ मई 2021 में ओडिशा के भुवनेश्वर और कटक के कमिश्नरेट पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. उस ने भी शिकायत में लिखा था कि स्वैन ने कई शादियां की हैं और उस से दहेज के नाम पर 13 लाख रुपए ठगे थे.

उस की शादी 29 जुलाई, 2018 को दिल्ली के एक आर्य समाज मंदिर में हुई थी. भुवनेश्वर की यात्रा के दौरान उसे स्वैन की एक नौकरानी से पता चला कि उस की पहले से ही वहां 2 पत्नियां रह रही हैं.

इस शिकायत पर पुलिस ने स्वैन के फोन नंबर से पता लगाया कि उस के कई पते हैं और हर पते पर पाया गया कि उस की एक पत्नी रहती है. उस के बारे में यह भी मालूम हुआ कि वह अकसर यात्रा पर रहता था.

जहां उस की पहली शादी हुई थी और जिस से उस के बच्चे थे वहां कभीकभार ही आता था. पुलिस ने उस के फोन को ट्रैक कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया था.

भुवनेश्वर पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए चकमा दे कर भागने वाले रमेश चंद्र स्वैन को गिरफ्तार कर लिया. बताते हैं कि उस रोज वह 19वीं शादी करने वाला था.

उस की गिरफ्तारी वेलेंटाइन डे की पूर्व संध्या पर 13 फरवरी की देर रात भुवनेश्वर के केंद्रपाड़ा में सिंघला गांव से हुई. उस दिन वह भुवनेश्वर में शनि मंदिर के दर्शन करने के लिए गया था.

इस मामले की जांच के लिए एक टास्क फोर्स गठित की गई थी. उस के पास से 13 क्रेडिट कार्ड, 4 आधार कार्ड, चार पैन कार्ड, अलगअलग नामों वाले अशोक चिन्ह लोगो के साथ विजिटिंग कार्ड बरामद किए गए. अगले रोज उसे कोर्ट में पेश किया. वहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

हाईप्रोफाइल वाली कमाऊ महिलाओं को फांसने में है माहिर

66 साल का रमेशचंद्र स्वैन दिखने में बेहद ही साधारण शख्स की तरह है. छोटेछोटे बाल, चार्ली चैपलिन स्टाइल की मूंछें, छोटी कदकाठी (5 फीट 2 इंच). फिर भी अपने प्रोफेशनल चार्म के चलते उस ने कई इंडिपेंडेंट महिलाओं को अपने जाल में फांस लिया था.

उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आने वाली महिलाओं में सुप्रीम कोर्ट की वकील, केरल प्रशासनिक सेवा की एक अधिकारी, एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, आईटीबीपी की एक अधिकारी, एक बीमा कंपनी की वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी और डाक्टर शामिल थी. उस से पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह बेहद चौंकाने वाली थी.

रमेश की गिरफ्तारी पूरे 38 सालों बाद हुई थी. पुलिस में दर्ज रिकौर्ड के अनुसार उस ने 10 राज्यों की अकेले जीवनयापन करने वाली महिलाओं (विधवा, तलाकशुदा या फिर विवाह की उम्र गुजर चुकी 40 पार की महिलाओं) को अपना शिकार बनाया था. उन को सच्चे लाइफ पार्टनर के नाम पर बेवकूफ बनाया था और उन से लाखों रुपए की ठगी की थी.

इस धोखाधड़ी के अलावा वह और भी दूसरी तरह की ठगी में शामिल रह चुका था. भुवनेश्वर के डीसीपी उमा शंकर दास के मुताबिक स्वैन 2006 में एक बैंक फ्रौड के सिलसिले में भी गिरफ्तार किया गया था.

इस के बाद 2010 में मैडिकल कालेजों में दाखिले के नाम पर उसे स्टूडेंट्स से 2 करोड़ रुपए की ठगी करने पर हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

रमेश की पहली शादी साल 1979 में हुई थी. उस से उस के 2 बेटे और एक बेटी है. बाद में पत्नी उस से अलग रहने लगी थी. बताते हैं कि उस ने दूसरी शादी झारखंड की एक डाक्टर से की थी. उसे जब स्वैन के पकड़े जाने की सूचना मिली तब उन्होंने इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं की.

2018 के बाद उसने कई मैट्रिमोनियल साइट्स पर अपने अकाउंट बनाए. वह अधिकतर 40 साल से अधिक उम्र वाली ऐसी महिलाओं को निशाना बनाता था, जिन पर शादी का दबाव रहता है. उस ने अलगअलग प्रोफाइल में खुद को डाक्टर और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत अधिकारी के रूप में बताया है.

बदनामी के डर से पीडि़त महिलाएं नहीं आईं सामने

जिन से शादी की, उन में अधिकांश अविवाहित या विधवा थीं. उन की नजर में वह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य शिक्षा और प्रशिक्षण के उपमहानिदेशक था. ऐसा बताने पर अधिकतर महिलाएं बिना किसी संदेह के उस के साथ शादी के बंधन में बंध गई थीं. इस सिलसिले में पुलिस ने स्वैन द्वारा बरगलाई गई करीब 90 महिलाओं से संपर्क किया, लेकिन उन में से कोई भी समाज में बदनामी के डर से जांच का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हुईं.

मात्र दसवीं तक पढ़ा हुआ रमेश चंद्र स्वैन ओडिशा और झारखंड की कई क्षेत्रीय भाषाओं के अलावा हिंदी और अंग्रेजी धाराप्रवाह बोलता था. उस की इस धोखाधड़ी के बारे में जानकारी उस के परिवार के दूसरे सदस्यों को टीवी की खबरों से मिली.

शादी के लिए झांसा देने के सिलसिले में वह अपनी उम्र 1971 की जन्म तिथि के अनुसार बताता था. जबकि वह वास्तव में 1958 में पैदा हुआ था. इस के लिए पहले वह वैवाहिक वेबसाइट पर अपनी प्रोफाइल अपलोड करता था. उस के बाद संपर्क करने वाली महिलाओं से संपर्क कर सीधा उसी से या फिर उस के परिवार से मिलता था.

उन्हें विश्वास में ले कर बताता था कि वह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में एक बड़ा अधिकारी है. प्रमाण के लिए वह कुछ फरजी दस्तावेज दिखा देता था.

इस के अलावा खुद को प्रभावशाली व्यक्ति बताने के लिए अपने कार्यालय से मिलने वाला पत्र भी दिखाता था, जिस में ‘छुट्टी का अस्वीकार प्रार्थनापत्र’ होता था. यह कहते हुए बताता था कि वह औफिस के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है, इसलिए उस की छुट्टी जल्दी मंजूर नहीं होती है. इस तर्क के सहारे वह अपनी पत्नी से लंबे समय तक दूर रहता था.

पुलिस ने दिल्ली की टीचर वाइफ से स्वैन पर भरोसा करने के संबंध में भी पूछताछ की. इस पर उस ने बताया, ‘‘जब मैं पहली बार स्वैन से मिली थी, तब बातचीत में बेहद ही सज्जन पुरुष जैसा लगा. चूंकि मेरा कोई अभिभावक नहीं था और मैं अकेली रह रही थी. खुद के बारे में मुझे ही निर्णय लेने थे. इसलिए मैं उस की पिछली जिंदगी के बारे में जांच नहीं कर सकी. हां, उस के ईमेल आईडी सरकारी अधिकारियों की तरह असली लगा और मैं ने हामी भर दी. मेरा बचपन ओडिशा में बीता था, और मेरा मानना था कि ओडिशा के पुरुष कभी धोखा नहीं देंगे.’’

इस घटना के बाद उस ने उन अन्य महिलाओं से संपर्क किया, जिन से स्वैन ने अपने फोन का उपयोग कर शादी की थी, और उन के साथ संपर्क में रही थी. ऐसा कर उस ने अन्य महिलाओं को भी सतर्क कर दिया, जो वैवाहिक वेबसाइटों पर उस की प्रोफाइल के प्रभाव में आ कर उस से संपर्क करेंगी.

पुलिस ने पाया कि उस ने 2018 में दिल्ली की शिक्षका से शादी के बाद करीब 25 महिलाओं से संपर्क किया. उन में एक गुवाहाटी की डाक्टर भी थी, जिस ने स्वैन द्वारा आश्वस्त होने के बाद शादी के पंजीकरण के लिए अपने परिवार के साथ सड़क मार्ग से गुवाहाटी की यात्रा की.

वह वहां शादी के बाद कुछ महीनों तक उस के साथ रही. ऐसी ओडिशा में 5 महिलाएं थीं, जिन में से 3 शिक्षिकाएं थीं. शिक्षिकाओं में एक विधवा थी, जिस की बड़ी बेटी थी.

इन के अलावा एक अन्य सुप्रीम कोर्ट की वकील हैं, जिस ने अब अपनी शादी को रद््द करने के लिए निचली अदालत में एक याचिका दायर कर दी है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि सामाजिक बदनामी के कारण कई महिलाएं औपचारिक शिकायत दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आ रही हैं. पुलिस ने यह भी कहा कि स्वैन ने स्पष्ट रूप से महिलाओं को उन के अंतरंग वीडियो सार्वजनिक करने की धमकी दी थी.

बहरहाल, कथा लिखे जाने तक स्वैन न्यायिक हिरासत में था.

   —कथा में अवंतिका परिवर्तित नाम है

त्यौहार 2022: जीना इसी का नाम है- सांवरी क्या यहां भी छली गई

यह कोई नई बात नहीं थी. सांवरी कोशिश करती कि ऐसी स्थिति में वह सामान्य रहे, लेकिन फिर भी उस का मन व्यथित हो रहा था. किचन में से भाभी की नफरत भरी बातें उसे सुनाई दे रही थीं, जो रहरह कर उसे कांटे की तरह चुभ रही थीं. किचन से बाहर निकल कर जलती हुई दृष्टि से सांवरी को देखते हुए भाभी बोलीं, ‘‘जाइए, जा कर तैयार हो जाइए महारानीजी, जो तमाशा हमेशा होता आया है, आज भी होगा. लड़के वाले आएंगे, खूब खाएंगेपीएंगे और फिर आप का यह कोयले जैसा काला रूप देख कर मुंह बिचका कर चले जाएंगे.’’

भाभी की कटाक्ष भरी बातें सुन कर सांवरी की आंखें डबडबा आईं. वह भारी मन से उठी और बिना कुछ कहे चल दी अपने कमरे में तैयार होने. भाभी का बड़बड़ाना जारी था, ‘‘पता नहीं क्यों मांबाबूजी को इन मैडम की शादी की इतनी चिंता हो रही है? कोई लड़का पसंद करेगा तब तो शादी होगी न. बीसियों लड़के नापसंद कर चुके हैं.

‘‘अरे, जब इन की किस्मत में शादी होना लिखा होता तो कुदरत इन्हें इतना बदसूरत क्यों बनाती? सोनम भी 23 साल की हो गई है. सांवरी की शादी कहीं नहीं तय हो रही है तो उस की ही शादी कर देनी चाहिए. उसे तो लड़के वाले देखते ही पसंद कर लेते हैं.’’

मां ने अपनी विवशता जाहिर की, ‘‘ऐसे कैसे हो सकता है, बहू. बड़ी बेटी कुंआरी घर में बैठी रहे और हम छोटी बेटी की शादी कर दें.’’

भाभी आंखें तरेर कर बोलीं, ‘‘आप को क्या लगता है मांजी, आज लड़के वाले सांवरी को पसंद कर लेंगे? ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. सांवरी की वजह से सोनम को घर में बैठा कर बालों में सफेदी आने का इंतजार मत कीजिए. मेरी मानिए तो सोनम की शादी करा दीजिए.’’

सांवरी अपनी मां जैसी ही सांवली थी. सांवले रंग के कारण मां ने उस का नाम सांवरी रखा था. मांबाप, भाईबहन को छोड़ कर सांवरी औरों को काली नजर आती थी. उस के पैदा होने पर दादी सिर पकड़ कर बोली थीं, ‘‘अरे यह काली छिपकली घर में कहां से आ गई? कैसे बेड़ा पार होगा इस का?’’

भाभी जब इस घर में ब्याह कर आई थीं तो सांवरी को देख कर उन्होंने तपाक से कहा था, ‘‘तुम्हारा नाम तो कलूटी होना चाहिए था. यह सांवरी किस ने रख दिया.’’

भाभी ने एक बार तो यहां तक कह दिया था, ‘‘सांवरी को अपनी मां के जमाने में पैदा होना चाहिए था, क्योंकि उस समय तो लड़की देखने का रिवाज ही नहीं था. शादी के बाद ही लड़कालड़की को देख पाता था. अगर सांवरी उस समय पैदा हुई होती तो मांजी की तरह ही निबट जाती.’’

मां ने जब यह व्यंग्य सुना तो वह तिलमिला उठीं और सांवरी पर चिल्ला उठीं, ‘‘इतनी सारी अच्छी और महंगी क्रीमें घर में ला कर रखी हैं, लगाती क्यों नहीं उन्हें?’’ सांवरी अपमान और पीड़ा से भर उठती थी, ‘‘मुझे जलन होती है उन क्रीमों से, मैं नहीं लगा सकती.’’ मां जानती थी कि चेहरे का रंग नहीं बदला जा सकता. फिर भी अपनी तसल्ली के लिए ढेर सारी अंगरेजी और आयुर्वेदिक क्रीमें लाला कर रखती रहती थीं.

सभी लोगों को सांवरी का गहरा सांवलापन पहले ही दिख जाता था, पर वह कितनी गुणी है, काबिल है, प्रतिभावान है, अनेक खूबियों से भरपूर है, यह किसी को नजर ही नहीं आता था. घर के सारे कामों में निपुण सांवरी जिस कालेज में पढ़ी थी, उसी कालेज में लैक्चरर नियुक्त हो गई थी और साथसाथ वह प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए भी तैयारी कर रही थी.

इतनी गुणवान और बुद्धिमान होने के बाद भी मातापिता के मन में एक टीस थी. कई बार उस ने पापा को कहते सुना था, ‘‘काश, सांवरी थोड़ी सी गोरी होती तो सोने पर सुहागा होता,’’ ऐसा वाक्य सांवरी को अकसर निराश कर देता था. वैवाहिक विज्ञापनों में भी मांबाप को निराशा ही हाथ लगी थी. उन में लड़कों की पहली शर्त होती थी कि लड़की गोरी होनी चाहिए. फिर बाद में सारे गुणों का उल्लेख रहता था.

उस दिन शाम को भी वही हुआ जिस की आशंका थी. सोनम को अंदर ही रहने को कह दिया गया था, ताकि कहीं पिछली बार की तरह सांवरी की जगह सोनम को न पसंद कर लें लड़के वाले. मां प्रार्थना करती रहीं, पर सब बेकार गया. सांवरी को देखते ही लड़के की मां की भौंहें तन गईं. वे उठ खड़ी हुईं, ‘‘इतनी भद्दी, काली और बदसूरत लड़की, इस से मैं अपने बेटे की शादी कभी नहीं कर सकती.’’

कमरे में सन्नाटा छा गया. पापा हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘‘बहनजी, हमारी बेटी केवल रंग से मात खा गई है. आप की घरगृहस्थी को अच्छे से जोड़ कर रखेगी. बहुत ही गुणी और सुशील है, मेरी बेटी. कालेज में भी इस का बहुत नाम है.’’

‘‘रहने दीजिए, भाईसाहब, गुण और नाम तो बाद में पता चलता है, लेकिन हर कोई रूप सब से पहले देखता है. मैं इस लड़की को बहू बना कर ले जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे कि जरूर मेरे बेटे में कोई कमी है. तभी ऐसी बहू घर आई है,’’ कह कर सब चलते बने.

घर का वातावरण तनावयुक्त और बोझिल हो उठा. पापा चुपचाप सोफे पर बैठ कर सिगरेट पीने लगे. मां रोने लगीं. भैया बाहर निकल गए. सोनम अंदर से आ कर चायनाश्ते के बरतन समेटने लगी. भाभी के ताने शुरू हो गए थे और सांवरी सबकुछ देखसुन कर फिर से सहज और सामान्य हो गई.

उस वर्ष सांवरी को अपने कालेज की सब से लोकप्रिय प्रवक्ता का पुरस्कार मिला था. अपने अच्छे व्यवहार और काबिलीयत के दम पर वह कालेज के प्रत्येक विद्यार्थी और शिक्षक की पहली पसंद बन गई थी. इतनी कम उम्र में किसी प्रवक्ता को यह पुरस्कार नहीं मिला था. उसे लगातार बधाइयां मिल रही थीं. एक दिन कालेज पहुंच कर जैसे ही वह स्टाफरूम में गई तो वहां टेबल पर एक बड़ा सा बुके देखा. समूचा वातावरण उस बुके के फूलों की खुशबू से महक रहा था.

‘‘कितना सुंदर बुके है,’’ सांवरी के मुंह से निकला.

वहीं बैठी सांवरी की एक सहयोगी और दोस्त रचना हंस पड़ी और बोली, ‘‘यह बुके आप के लिए ही है, मिस सांवरी.’’

‘‘मुझे किस ने बुके भेजा है?’’

‘‘मैं ने,’’ पीछे से किसी युवक की आवाज आई.

सांवरी चौंक कर पलटी तो देखा कि एक सुंदर और स्मार्ट युवक उस की तरफ देख कर मुसकरा रहा था. ‘‘आप कौन हैं?’’ सांवरी ने पूछा.

रचना ने दोनों को परिचय कराया, ‘‘सांवरी, ये मिस्टर राजीव, हिंदी के लैक्चरर. आज ही कालेज जौइन किया है. ये कवि भी हैं और मिस्टर राजीव ये हैं मिस सांवरी, जीव विज्ञान की लैक्चरर.’’

‘‘कमाल है, आप लैक्चरर हैं. मुझे तो लगा शायद कालेज की कोई स्टूडैंट है,’’ सांवरी ने हैरान हो कर कहा.

‘‘हैरान तो मैं हूं. इतने कम समय में आप कालेज में इतनी लोकप्रिय हो गई हैं, वरना लोगों की तो पूरी जिंदगी ही निकल जाती है कालेज में हरेक की पसंद बनने में.’’ सांवरी हंस दी.

मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. खाली समय में राजीव सांवरी से कविता और साहित्य पर बातें करता था, जो सांवरी को बहुत अच्छी लगती थीं. उन दिनों राजीव एक कविता संग्रह लिखने की तैयारी कर रहा था. कविता संग्रह छपने के बाद वह काफी प्रसिद्ध हो गया. हर तरफ से बधाइयों का तांता लग गया. राजीव को सब से पहले बधाई सांवरी ने ही दी.

बधाई स्वीकार करते हुए राजीव ने कहा, ‘‘पता है सांवरी, मेरी इन कविताओं को लिखने की प्रेरणा तुम्हीं हो. तुम मेरे पतझड़ जैसे जीवन में बसंत बन कर आई हो,’’ बिना किसी भूमिका के राजीव ने यह बात कह दी.

सांवरी के दिल की धड़कनें मानो तेज हो उठीं. उस दिन सांवरी ने राजीव की आंखों में अपने लिए दोस्ती के अलावा और भी कुछ देखा था. ‘क्या वे सचमुच मुझ से प्यार करते हैं?’ यह विचार मन में आते ही सांवरी का रोमरोम पुलकित हो उठा. उन्होंने मेरे रंग को नहीं देखा, मेरी सुंदर आंखें देखीं, सुंदर बाल देखे, सुंदर होंठ देखे. राजीव कवि हैं और कवि तो हर चीज में सुंदरता ढूंढ़ ही लेते हैं. वह भी राजीव को चाहने लगी थी.

रौयल्टी की रकम मिलने के बाद राजीव ने पार्टी रखी. सोनम को पार्टियों में जाने का बहुत शौक था, लिहाजा, सांवरी उसे भी साथ लेती गई.

‘‘आई कांट बिलीव दिस, क्या वाकई में सोनम तुम्हारी बहन है?’’ सोनम को देख कर राजीव आश्चर्य और हैरानी से सांवरी से बोला. राजीव की इस बात पर दोनों हंसने लगीं, क्योंकि यह सवाल उन के लिए नया नहीं था. जो भी उन दोनों को साथ देखता, विश्वास नहीं न करता कि दोनों बहनें हैं.

पूरी पार्टी के दौरान राजीव सोनम के इर्दगिर्द मंडराता रहा. सांवरी की ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया. सांवरी को यह थोड़ा बुरा भी लगा, पर वह यह सोच कर सामान्य हो गई कि शायद राजीव अपनी होने वाली साली से मेलजोल बढ़ा रहे हैं.

पार्टी खत्म होने के बाद राजीव ने उन दोनों से कहा, ‘‘तुम्हारे मांबाप ने तुम दोनों बहनों का नाम बहुत सोचसमझ कर रखा है. सांवली सी सांवरी और सोने जैसी सुंदर सोनम. दोनों बहनें यह सुन कर मुसकरा दीं.’’

उस के बाद राजीव का सांवरी के घर भी आनाजाना शुरू हो गया. घर के सभी सदस्यों से वह काफी घुलमिल गया था.

एक दिन राजीव सभी लोगों से बैठा बातें कर रहा था. सांवरी किचन में चाय बना रही थी. चाय ले कर जैसे ही कमरे में घुसने को थी कि उसे भाभी का स्वर सुनाई पड़ा. वे राजीव से पूछ रही थीं, ‘‘तो कैसी लगी आप को हमारी ननद?’’

‘‘बहुत सुंदर. इन के सौम्य रूप से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं. पहली बार जब मैं ने इन्हें देखा था, तभी से इन की मूरत मेरी आंखों में बस गई. मेरी तलाश पूरी हो गई है. अब मैं इस संबंध को नया नाम देना चाहता हूं. शादी करना चाहता हूं मैं इन से. मेरे पापा तो नहीं हैं, केवल मां और एक छोटी बहन है. उन्हें ले कर कल आऊंगा शादी की बात करने.’’

सांवरी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. वह अंदर नहीं गई. रात को खाने के समय भी वह किसी के सामने नहीं गई. कहीं भाभी या सोनम उसे प्यार से छेड़ न दें.

आज रात नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. अब सबकुछ अच्छा ही होगा. पहली बार अपने जीवन को ले कर वह बहुत उत्साहित थी. राजीव से उस की शादी होने के बाद सोनम की शादी का भी रास्ता साफ हो जाएगा.

2 दिन पहले मां को पापा से कहते सुना था, ‘‘अब हमें और देर नहीं करनी चाहिए. सोनम की शादी कर देने में ही भलाई है. सांवरी के नसीब में कोई होगा तो उसे मिल जाएगा,’’ पापा ने भी हामी भर दी थी. सांवरी के जी में आया था कि उसी समय राजीव के बारे में बता दे, पर अब तो उन की सारी चिंता दूर हो गई होगी. राजीव ने खुद सांवरी का हाथ मांगा था. यही सब सोचते न जाने कब उस की आंख लग गई.

सुबह काफी देर से सांवरी की आंख खुली. घड़ी में देखा, 10 बज चुके थे. वह हड़बड़ा कर उठी. किसी ने मुझे जगाया भी नहीं. राजीव तो सुबह 9 बजे तक अपनी मां और बहन के साथ आने वाले थे. ड्राइंगरूम से जोरजोर से हंसने की आवाजें आ रही थीं. परदे की ओट से सांवरी ने देखा कि राजीव अपनी मां और बहन के साथ बैठे पापा और भैया से बातें कर रहे हैं.

उन की बातों से पता चला कि वे अभी कुछ देर पहले ही आए हैं. उस ने चैन की सांस ली. उसे गुस्सा भी आ रहा था. एक तो किसी ने जगाया नहीं, ऊपर से न तो कोई उस पर ध्यान दे रहा है और न ही तैयार होने को कह रहा है. उस ने ठान लिया कि जब मां, भाभी और सोनम खूब मिन्नतें करेंगी, तभी वह तैयार होगी.

ड्राइंगरूम में सब की बातचीत चल रही थी कि पापा ने मां को आवाज लगाई. फिर सांवरी ने जो देखा, वह उस के लिए अकल्पनीय, अविश्वसनीय और अनपेक्षित था. हाथ में चाय की ट्रे लिए सोनम उन लोगों के सामने गई. मां और भाभी साथ थीं. सोनम ने राजीव की मां के पैर छुए. उन्होंने सोनम का माथा चूम कर कहा, ‘‘सचमुच चांद का टुकड़ा है, मेरे बेटे की पसंद,’’ कह कर उन्होंने सोनम के गले में सोने की चेन पहना दी. राजीव ने सोनम को अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म पूरी कर दी.

सांवरी स्तब्ध थी. राजीव और सोनम की सगाई? यह कैसे हो सकता है? राजीव तो मुझ से प्यार करते हैं. उन की प्रेरणा तो मैं हूं. मुझे अपने जीवन का बसंत कहा था, राजीव ने. तो क्या वह सब झूठ था? धोखा दिया है राजीव ने मुझे. बेवफाई की है मेरे साथ और सोनम, उस ने मेरे साथ इतना बड़ा छल क्यों किया? वह तो मेरे सब से ज्यादा करीब थी.

वह हमेशा कहा करती थी कि दीदी, जब तक आप की शादी नहीं हो जाती, मैं अपनी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. फिर ये सब क्या है? कितनी बुरी तरह से छला है राजीव और सोनम ने मुझे. इतना बड़ा आघात, इतना भीषण प्रहार किया है इन दोनों ने मुझ पर. इन्हीं दोनों को तो मैं सब से ज्यादा प्यार करती थी. लाख चाह कर भी सांवरी सहज नहीं हो पा रही थी.

जीवन के इन कठिनतम क्षणों में उस की दोस्त रचना ने उसे सहारा दिया, ‘‘मैं जानती हूं कि यह तेरे लिए बहुत बड़ी पीड़ा है. तेरे अपनों ने ही तुझे बहुत बड़ा धोखा दिया है. कितनी बार तू अपना अपमान करवाएगी शादीब्याह के चक्कर में पड़ कर? अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना सांवरी.

’’ तू कितनी बुद्धिमान, प्रतिभाशाली और काबिल है, फिर क्यों इतनी निराश हो गई है? तेरे सामने तेरा उज्ज्वल भविष्य पड़ा है. तू कुछ भी कर सकती है, सांवरी,’’ रचना की बातों से सांवरी कुछ सहज हुई. उसे नया हौसला मिला. धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होने लगा.

वक्त बहुत आगे निकल चुका है. बहुत कुछ बदल चुका है. आज सांवरी एक प्रशासनिक अधिकारी होने के साथसाथ समाजसेविका और सैलेब्रिटी भी है. अपने बलबूते उस ने ‘जीवन रक्षा केंद्र’ नामक संस्था खोल रखी है, जिस के माध्यम से वह विकलांग, गरीब, असहाय और अनाथों के लिए काम करती है.

वह लोगों के जीवन में खुशियां लाना चाहती है. सादगी, ईमानदारी और मानवीयता जैसी भावनाओं और संवेदनाओं से पूर्ण सांवरी को जितना प्यार, सम्मान, सुख और विश्वास गैरों से मिला, अपनों से उतनी ही बेरुखी, नफरत, धोखा, छल और बेवफाई मिली थी पर सांवरी अब इन सब से दूर हो गई थी.

अब यहां न तो मांबाप की बेबसी थी, न ही थे भाभी के चुभते ताने, न बहन का धोखा और न ही विश्वासघाती और बेवफा राजीव.

आज उस ने इन सब पर विजय प्राप्त कर ली है. समाज के उपेक्षित लोगों के जीवन में अंधकार कम करना ही सांवरी का एकमात्र लक्ष्य है.

गरीबों और असहाय लोगों के लिए वह ढेर सारा काम करना चाहती है. जो मन में है, उसे पूरा करने के लिए सांवरी फिर से जन्म लेना चाहती है. एक जन्म काफी नहीं है. छोटेछोटे बच्चों, बड़ेबूढ़ों के चेहरे पर अपनी वजह से मुसकान देख कर सांवरी को अपार सुख और संतुष्टि प्राप्त होती है.

सचमुच आज उस ने जान लिया है कि दूसरों के लिए जीने में कितना सुख है. दूसरों के लिए जीना ही तो सही माने में जीना है. आखिर, जीना इसी का नाम है.

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