Download App

अकेली रहना सीखें तलाकशुदा और विधवा

हमारे समाज में तलाकशुदा व विधवा के अकेले रहने को गलत संस्कार से जोड़ कर देखा जाता है पर यदि परिवार के साथ में निभ नहीं रही तो अकेले रहने में हर्ज नहीं. आज के समय में तलाकशुदा और विधवा महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. शुरूशुरू में ये संयुक्त परिवारों में रहने का प्रयास करती हैं जहां इन की आजादी, फैसला लेने की क्षमता और भविष्य में आगे बढ़ने के रास्तों पर पहरेदारी हो जाती है. इस से तलाकशुदा और विधवा की जिंदगी और भी खराब हो जाती है. इस की वजह यह होती है कि उन की जिंदगी के फैसले कहीं और से लिए जाने लगते हैं.

हमारे समाज में आज भी तलाकशुदा और विधवा होते ही महिला की जिंदगी खत्म मान ली जाती है. उस के लिए केवल दो रोटी का प्रबंध ही किया जाता है जिस से वह जिंदगी केवल जी सके. 32 साल की नीलिमा की शादी के 8 साल बीत गए थे. पति नरेश के साथ उस की बहुत निभती थी. परेशानी की बात यह थी कि नीलिमा के कोई संतान नहीं थी. पतिपत्नी दोनों डाक्टरों के पास भी गए. डाक्टरों ने उम्मीद कम और खर्च ज्यादा बताया. नरेश के परिवार वाले चाहते थे कि वह दूसरी शादी कर ले. नरेश इस बात के लिए राजी नहीं था. नरेश ने नीलिमा के साथ मिल कर यह तय किया कि वे एक बच्चा गोद लेंगे. यहां फिर परिवार वालों का नया अड़ंगा लगा. वे कहने लगे कि अगर कोई बच्चा गोद लेना ही है तो उसे परिवार के बीच से लो. बाहर का बच्चा कैसे उन के खानदान की रक्षा कर पाएगा.

नीलिमा और नरेश इस के लिए राजी नहीं हुए. वे लोग यह तय कर चुके थे कि बच्चा सरकारी नियमकानून से गोद लेना है. उन को एक साल का बच्चा गोद मिल भी गया. पतिपत्नी दोनों ही अपने बच्चे की तरह से उस का पालन पोषण करने लगे. समय को कुछ और ही मंजूर था. नरेश को कोरोना के काल ने निगल लिया. नीलिमा के लिए यह सहन करने वाला सदमा नहीं था. 5-6 माह तो उसे किसी चीज का होश ही नहीं रहा. घरपरिवार के लोग मदद करने की जगह पर उसे परेशान करने लगे थे. वे चाहते थे कि गोद लिए बच्चे को नीलिमा छोड़ दे. नीलिमा इस के लिए तैयार नहीं हुई. नीलिमा बच्चे को नरेश की आखिरी निशानी सम झ कर पालनपोषण कर रही थी. परिवार उस बच्चे को नरेश का वारिस मानने को तैयार नहीं था. एक साल नीलिमा की रस्साकशी चलती रही.

नीलिमा ने अपने बच्चे को साथ ले कर ससुराल और मायका दोनों छोड़ दिया. अब वह अपार्टमैंट में एक रूम का फ्लैट किराए पर ले कर रहती है. घर छोड़ने के बाद 3 माह का ब्यूटीपार्लर का कोर्स किया और ब्यूटीपार्लर में 20 हजार रुपए माह की नौकरी कर ली. अपनी जानपहचान के बल पर वह सैलून के अलावा बाहर का काम भी सप्ताह में छुट्टी वाले दिन करने लगी. इस तरह से वह माह में 20-25 हजार रुपए कमाने लगी. शादीविवाह और पार्टी सीजन में उस की कमाई बढ़ जाती थी. घरपरिवार से दूर नीलिमा कहती है, ‘‘हम अगर परिवार के साथ और रहे होते तो अपना भला नहीं सोच सकते थे. लड़ाई झगड़े में लगे रहते. बच्चे पर भी उस का असर पड़ता. घरपरिवार से दूर हैं.

अपना काम कर रहे हैं. खुश हैं. इस के बाद भी समाज की नजरों में घरपरिवार से अलग नहीं बताती हूं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि समाज के लोगों को जब यह पता चलता है कि औरत अकेली है, अलग रहती है और घरपरिवार का सहयोग नहीं है तो समाज वाले अलग नजर से देखने लगते हैं. ‘‘जिस तरह से घरपरिवार अकेली तलाकशुदा या विधवा महिला को साथ रखने में मनमानी करने लगते हैं उसी तरह समाज के लोग भी उसे अकेला सम झ कर लाभ उठाने की सोचते हैं. इस से बचने के लिए तलाकशुदा या विधवा महिला को मायके या ससुराल में रहने की जगह किराए पर मकान ले कर रहे तो उस के जीवन में सुकून रहता है. वह अपने फैसले खुद ले सकती है. समाज के लोगों को इस बात का एहसास कराती रहे कि घरपरिवार उस के साथ हैं तो सामाजिक रूप से सुरक्षा बनी रहती है.’

’ अपना घर जरूरी ससुराल हो या मायका दोनों को ही अपना घर तभी तक कह सकते हैं जब तक सबकुछ सही चल रहा होता है. शादी के पहले हर लड़की को पिता का घर अपना घर लगता है और शादी के बाद पति का घर उस का अपना हो जाता है. अगर किसी भी कारणवश उसे तलाक या विधवा जीवन गुजारना पड़े तो यह घर अपना घर नहीं रह जाता है. ऐसे में भले ही छोटा घर हो, किराए पर ही क्यों न लेना पड़े, वहां रहे. इस का लाभ यह होता है कि इस के बाद महिला आत्मनिर्भर हो कर जीवन के फैसले ले सकती है. जीवन छोटा नहीं होता, अगर साथ में बच्चा है तो और खराब हालत हो जाती है. किराए के पैसे बचाने के लिए उसे ससुराल या मायके की शरण लेनी पड़ती है. ऐसे में लड़कियों को हमेशा पहला प्रयास यह करना चाहिए कि वह अपनी कमाई करे. विधवा और तलाकशुदा होना एक दुर्घटना की तरह से है. अगर लड़की आत्मनिर्भर होगी तो अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी.

अलग रहने में बुराई नहीं कई बार केवल महिला ही नहीं, उस के बच्चों के साथ भी भेदभाव होता है. एक ही घर में रहने से आपस में झगड़े होते रहते हैं. कभी शांति नहीं मिलती. जब विधवा या तलाकशुदा होने की हालत हो तो अपने मन की शांति व सुकून के लिए अपने पैरों पर खड़े होने का विकल्प तलाशें. तभी आगे जीवन सही से कट सकेगा. लड़ झगड़ कर एकसाथ रहने से अच्छा है कि दूरदूर रह कर आपस में मधुर संबंध बनाए रखें, जिस से जरूरत पड़ने पर एकदूसरे के काम आ सकें. अलग रहते हुए जब एकदूसरे के फैसले लेने में टीकाटिप्पणी नहीं करेंगे तो संबंध अच्छे चलेंगे. हमारे समाज में अलग रहने को गलत संस्कार से जोड़ कर देखा जाता है. यह सब किताबी बातें होती हैं. यथार्थ अलग होता है. फैसले अपने जीवन को सामने रख कर लें. इस में किसी तरह के दकियानूसी विचारों में पड़ कर फैसला न लें. तभी जीवन में आगे बढ़ सकेंगे.

प्रतीक्षा : नंदिता के बीमारी के दौरान राजेंद्र ने क्या सहयोग दिया

चोर : घर में ही सेंध

न जाने क्यों मुझे कुंआरे रहने का अफसोस कभी नहीं हुआ. हां, कालेजकाल में एक लड़की से प्रेम जरूर हुआ, हम दोनों साथसाथ खूब घूमे, मजे किए और बात भी यहां तक पहुंची कि दोनों शादी भी करने वाले थे, मगर किस्मत को मंजूर नहीं था. पढ़ाई में स्कौलर होने के नाते वह डाक्टर बनने के लिए दिल्ली चली गई और मैं एमएससी तक ही पढ़ सका. कुछ महीने संपर्क रहा. दोनों ने मोबाइल फोन पर घंटोंभर रात में देरी तक बात की, मगर फिर संजोग यों हुए कि हमारा संपर्क टूटने लगा. अपनी पढ़ाई या फिर अपने सहपाठी के साथ रहने के कारण उस का मुझ से फोन पर मिलना भी बंद हो गया. हफ्ते में मिलने वाले महीनों में मिलने लगे, और फिर महीनों तक बातचीत न हो पाई और दोनों ने अपनीअपनी व्यस्तता और भाग्य को स्वीकृत करते हुए बिछड़ना ही ठीक समझा.

कुछ महीने तो मेरे बड़ी कठिनाई से गुजरे. रातदिन मेरी आंखों के सामने अपनी गर्लफ्रैंड का चहेरा ही घूमता रहता. ऐसा लगा जैसे जिंदगी में सबकुछ लुट चुका हो. फिर तब और आघात सा लगा, जब मेरा ही सहपाठी मनोज मिश्रा, जो अपनी क्लासमेट सीमा से प्रेम करता था, उन्होंने शादी रचा ली.

कुछ समय मैं ने अफसोस के साथ बिताया. अपनी प्रेमिका को भूलने की कोशिश करता रहा. मेरे जेहन में फिल्मस्टार देव आनंद साहब का वह गाना गूंजने लगा – “मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.“

अध्यापक बन मैं कालेज में बोटनी पढ़ाने लगा. शादी का खयाल न जाने क्यों फिर आया ही नहीं. और मैं वह उम्र भी पार कर गया. फिर मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मुझे शादी कर लेनी चाहिए. यहां तक कि अब तो मुझे अपने अविवाहित होने का एहसास भी नहीं होता. क्या शादीशुदा लोग हमेशा खुश रहते हैं? क्या अविवाहित लोग दुखी हो जाते हैं? उन्हें अकेलापन खलने लगता है? ऐसे कई सवाल मेरे दिल में कभीकभार उठते रहते थे. मैं स्वयं भी इस का उत्तर खोजने की चेष्टा कर रहा था, तभी मेरा वह सहपाठी मनोज मिश्रा मुझे अचानक बाजार में मिल गया. उसे देखते ही मैं हैरान रह गया और पहले तो उसे पहचान ही नहीं पाया. उस का फीका चेहरा देख यों लगा जैसे वह महीनों से बीमार हो और शरीर से भी वह काफी दुबलापतला लग रहा था.

“अरे मनोज… ये क्या हाल बना रखा है तुम ने?“ मैं ने चिंतित हो कर पूछा.

“कुछ मत पूछ… यार,“ वह दुखित स्वर में बोला. फिर उस ने आग्रह किया, “आ, चाय पीते हैं. मैं सबकुछ बतलाता हूं.“

हम दोनों वीरा रेस्त्रां के एक कोने पर रहे टेबल पर बैठे और चाय पीतेपीते मनोज मिश्रा ने करीब डेढ़ घंटे तक अपनी आपबीती सुनाई.

कहते हैं, लव मैरिज में विवाहित जीवन सफल होना बड़ी चुनौती भरा होता है. या यों कहिए कि ज्यादातर लव मैरिज शारीरिक आकर्षण खत्म होने के बाद टूट ही जाते हैं. समय बीतते ही पतिपत्नी को एकदूसरे की खामियां खलने लगती हैं और दंपती ये सोचने लगते हैं कि दोनों ने अपनाअपना जीवनसाथी चुनने में गलती कर डाली है. फिर उन की सांसारिक नाव डूबने लगती है. ऐसी परिस्थिति में दोनों का किसी अन्य के प्रति आकर्षित हो कर नए सिरे से विवाहेत्तर संबंध बांध लेना स्वाभाविक लगता है.

मनोज मिश्रा की बातें सुन कर यही लग रहा था. उस की स्वतंत्रमिजाजी और महत्वाकांक्षी बीवी अपने ही दफ्तर के मैनेजर के साथ अफेयर कर बैठी थी. पहलेपहल तो मिश्रा को इस की भनक तक नहीं आई थी, क्योंकि वह स्वयं अपनी बैंक के कामकाज में डूबा रहता था.

दोनों मोटरसाइकिल पर ही अपने दफ्तर जाते थे, क्योंकि उस की बीवी का बीमा कंपनी का दफ्तर रास्ते में ही पड़ता था. लौटते वक्त दोनों बाजार होते हुए जरूरी सामान खरीद कर साथसाथ घर लौट आते थे. फिर न जाने क्यों उस की बीवी ने उस के साथ घर लौटना छोड़ दिया, यह कहते हुए कि वह आटो से आ जाएगी.

फिर एक शाम वह घर लौटा तो उस ने देखा कि उस की बीवी किसी कार से उतर कर घर की ओर चली आ रही थी.

“कौन था…?“ पूछने पर उस ने बेपरवाही से कह दिया कि उस के दफ्तर में कार्यरत है, मगर नाम नहीं बताया.

मिश्रा को अच्छा नहीं लगा, पर वह चुप ही रहा.

इसी तरह कुछ दिन बीत जाने पर मिश्रा को लगा कि उसे अपनी बीवी के दफ्तर पहुंचना चाहिए, यह जानने के लिए कि आखिर माजरा क्या है?

बैंक से जल्दी छूट कर जब वह बीवी के दफ्तर पहुंचा, तो देखा कि उस की बीवी दफ्तर में मौजूद नहीं थी.

चपरासी ने बड़े मजाकिया अंदाज में उत्तर दिया था कि वे तो उन के साहब के साथ जल्दी ही निकल गई थीं.

मिश्रा ने तुरंत मोबाइल फोन जोड़ा तो अपनी बीवी का प्रत्युत्तर सुन कर वह और परेशान हो गया. बीवी शापिंग के लिए जल्द ही दफ्तर से निकल गई थी.

रात खाने के वक्त जब मिश्रा ने खुलासा मांगा, तब वह आगबबूला हो गई, “देखिए, आप मुझ पर शक कर रहे हैं. ये मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कल हमारे मैनेजर दीक्षितजी का जन्मदिन है, तो उन की पार्टी के लिए कुछ शापिंग करनी थी.“

अगले रोज फिर खाना खाते वक्त अचानक मिश्रा की नजर बीवी की उंगली पर पड़ी, जिस में एक नई सोने की अंगूठी दिखाई दी.

“ये अंगूठी…“ हक्काबक्का सा उसे देखता रह गया.

“हम लोग दीक्षितजी की बर्थडे गिफ्ट लेने सुनार की दुकान पर गए थे, तब उन की सोने की चैन लेते वक्त मुझे भी यह अंगूठी पसंद आ गई, तो मैं ने भी खरीद ली,“ बीवी ने सफाई दी.

यह सुन मिश्रा सन्न रह गया.

कहते हैं, दो बातें व्यक्ति कभी भी छुपा नहीं सकता. एक, यदि वह नशे में हो और दूसरा, वह प्रेम में हो.
फिर अफेयर वाली बात कहां छिपती है?

मिश्रा की बीवी की बात अब दफ्तर तक ही सीमित नहीं रह गई थी. वह मिश्रा के दफ्तर तक फैल चुकी थी. उस के सहकर्मचारी उसे परोक्ष रूप से ताने कसते थे. कई लोग तो उसे दयनीय नजरिए से देखते थे.

फिर तो उस की बीवी के अपने मैनेजर दीक्षित के साथ संबंध इतने आगे बढ़ गए कि वह मिश्रा की अनुपस्थिति में उसे घर तक ले आई.

यह रहस्य उसे तब पता चला, जब उन के निवास ‘आशीर्वाद अपार्टमेंट’ के चौकीदार धनराज ने उसे बताया.

फिर क्या था? उस ने धनराज को पैसे दे कर अपना जासूस बना लिया, जो अकसर उस की गैरहाजिरी में उस की बीवी जब भी अपने मैनेजर दीक्षित के साथ आती, वह उसे खबर कर देता था. मगर इस से क्या? उस में इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि अपनी बीवी को रंगे हाथ पराए मर्द के साथ पकड़ ले और पुलिस के हवाले कर दे. वह मन मसोस कर बैठ जाता.

मिश्रा बेबस, मजबूर, निराश और बेहद दुखी था.

उस की दास्तान सुन कर मेरा भी दिल दहल गया. उस की बीवी पर इतना गुस्सा आया कि सोचा उसे रंगे हाथ उस बदमाश मैनेजर के साथ पकड़ कर उस की पिटाई कर दूं और मैनेजर को जेल भिजवा दूं.

शादी न करने का अपना निर्णय मुझे ठीक लगने लगा.

तभी मिश्रा के मोबाइल फोन में घंटी बजी. उस ने फोन पर बात की. उस फीके चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट होने लगीं. उस ने कुछ देर बातें सुनी, फिर असहाय से स्वर में इतना ही कहा, “ठीक है, मैं अभी आता हूं.“

उस ने अपना मोबाइल फोन मेज पर रखा और बोला, “बीवी घर पर आ चुकी है उसी मैनेजर के साथ. चौकीदार धनराज ने बताया.”

“मैं अभी आया,“ उठ कर रेस्त्रां के टायलेट की तरफ मिश्रा चल दिया.

उस का मोबाइल फोन मेरे सामने ही पड़ा था. मुझे अचानक खयाल आया. मैं ने तुरंत फोन उठा कर पुलिस स्टेशन का इमर्जेंसी फोन लगाया.

“मैं मनोज मिश्रा बोल रहा हूं, आशीर्वाद एपार्टमेंट, फ्लैट नंबर 203, इमामबाड़ा से. मेरे घर में चोर घुस आया है. जल्दी आइए. मेरा फोन नंबर यही है.“

मैं ने फोन रख दिया. मिश्रा टायलेट से बाहर आया, तब तक मैं ने अपना काम कर डाला था.

रेस्त्रां से बाहर निकलते ही मैं ने सहानुभूति से उस के कांधे पर हाथ रखा और ढाढ़स बंधाया, “चिंता मत करो. वक्त रहते सब ठीक हो जाएगा.“

मिश्रा अपनी बाइक पर सवार हो कर चल दिया.
मैं भी चुपचाप उस के पीछेपीछे अपने दुपहिए को दौड़ा कर उस के निवास आशीर्वाद फ्लैट की तरफ चल दिया. मुझे देखना था कि पुलिस वहां आ कर मेरे दोस्त के घर में छुपे हुए असली चोर को पकड़ती है या नहीं.

मनोज मिश्रा ने अपने एपार्टमेंट के प्रांगण में ही पुलिस की गाड़ी खड़ी देखी. वह चौंक कर वहीं अटक गया. वहां लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. उस के देखतेदेखते ही दो पुलिस वाले, जिस में एक महिला भी थी, मैनेजर दीक्षित और उस की बीवी को पुलिसवैन की तरफ पकड़ कर ले जा रहे थे. उस की बीवी ने दुपट्टे से अपने चेहरे को शर्म से छिपा रखा था. उस के देखतेदेखते ही पुलिसवैन वहां से निकल पड़ी.

मैं भी आशीर्वाद एपार्टमेंट के पास रही पान की दुकान पर खड़ा रह कर कुछ लोगों की बातें सुनने लगा. एक नवयुवक हंस रहा था, “क्या जमाना आ गया है? आजकल के मर्द किसी की बीवी को मिलने भी चोर की तरह आते हैं.”

पति ने शिकायत कर दी होगी और वह रंगे हाथ पकड़ा गया.

मैं ने मनोज मिश्रा को इमामबाड़ा पुलिस स्टेशन की ओर अपनी बाइक पर जाते हुए देखा. मैं भी सोच रहा था, या तो मनोज मिश्रा का दांपत्य जीवन हमेशा के लिए गर्त में डूब जाएगा या फिर यदि उस की बीवी में जरा सी भी शर्म होगी तो वह जरूर पश्चाताप करेगी और अपने मैनेजर दीक्षित के साथ रहे संबंध हमेशा के लिए खत्म कर देगी.

मैं बड़ी बेसब्री से दोस्त मनोज मिश्रा के फोन का इंतजार कर रहा था, मगर दो दिन बाद वह खुद ही अवकाश के समय मुझ से मिलने बैंक आ पहुंचा.

“जरूर… जरूरी बात है. चाय पे करते हैं…“

हम फिर वही रेस्त्रां में आए. वह अत्यंत खुश हो कर बोला, “शुक्रिया रमेश. जो मैं न कर सका, वह तू ने कर दिखाया. तू ने मेरे ही फोन से पुलिस को फोन कर के मेरे घर के चोर को पकड़वा दिया. मेरी तो हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी. डरता था कि कहीं बीवी तलाक ही न दे दे. मगर, वह तो बुरी तरह हड़बड़ा गई थी और पुलिस स्टेशन से घर आते ही बिलख पड़ी थी. आइंदा ऐसी हरकत कभी नहीं करेगी, ये माफी मांगते हुए बोल पड़ी थी.”

उस के चेहरे पर चमक थी.
मैं ने भी राहत की सांस ली. ये सोच कर कि चलो, मेरे दोस्त मनोज मिश्रा का दांपत्य जीवन बिखरने से बच गया. आखिर उस की बीवी को सबक सिखाने पर उस ने ह्रदयपूर्वक पश्चाताप कर लिया. मगर, फिर भी आगे भी उन का दांपत्य जीवन खुशी से बीतेगा, इस की गारंटी मैं दे नहीं पाता हूं. वैवाहिक नाता बड़ा ही नाजुक है, कब टूट जाए, कोई नहीं जानता. फिर मैनेजर दीक्षित जैसे चोर तो हमेशा ताक में ही रहते हैं. इसलिए हालांकि मैं अविवाहित हूं, अपनी कथा के अंत में ये सीख देना जरूर चाहूंगा – सावधान रहिए. अपने दांपत्य जीवन के सुखमय घर में किसी चोर को कभी मत घुसने दीजिएगा.

सोच में बदलाव की जरूरत

जैसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार वाले कर्नाटक को कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के दौरान उमड़ी भीड़ का मुकाबला करने के लिए नौकरियों में एससी, एसटी या दलित व आदिवासी कोटा नौकरियों में बढ़ाने का फैसला लेना पड़ा है, वैसे ही हर घर को लेना पड़ेगा. वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था हिंदू संस्कृति का मूल है. कुंडली, संस्कारों, पूजापाठ के नियमों, अपने आराध्य देवीदेवताओं को बांट कर हरेक हिंदू के लिए संस्कृति के नाम पर क्या खाओगे, किस को दोस्त बनाओगे, किस से शादी करोगे आदि तय कर दिया गया है.

जब तक यह विभाजन दूर नहीं होगा, राजनीतिक तौर पर सब होते हुए भी देश में दरारें पड़ी रहेंगी और उस युवा पीढ़ी के लिए चुनौती बनती रहेंगी जिसे अब हर जाति, उपजाति, धर्म के लोगों के साथ उठनाबैठना जरूरी होता जा रहा है.

पहले लोग गांवों में, महल्लों में बंटे होते थे और एक जाति के लोगों का दूसरी जाति के लोगों से न ज्यादा मेलजोल होता था, न संघर्ष होता था. अब स्कूल, कालेज, सिनेमाहौल, मौल, नौकरियों, बसों, रेलों, हवाई जहाजों, कार्यालयों में बराबर वाला कौन होगा या होगी, इस का फैसला जाति और धर्म को देख कर नहीं किया जा सकता.

कर्नाटक की भाजपा सरकार ने सरकारी कोटा एससी के लिए 15 फीसदी से बढ़ा कर 17 फीसदी करने का फैसला किया और एसटी 3 फीसदी से 4 फीसदी. कोई बड़ी बात नहीं कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जैसेजैसे और राज्यों में पहुंचेगी और अगर उसे वही भीड़ मिली जो तमिलनाडू, केरल व कनार्टक में मिली तो दूसरी भाजपा सरकारों को अपने यहां बदलाव करने पड़ें. भले यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ हो पर अब तो आवश्यक हो ही गया है कि हर परिवार तैयार रहे कि कब उस के यहां दूसरे क्षेत्र, जाति, धर्म की घुसपैठ हो जाए.

आज का युवा पहले चेहरा और स्वभाव देखता है और दोस्ती बनाता है, जातिधर्म बाद में पता चलता है. बहुत घरों में अभी भी इतनी मानसिक दीवारें बनी हैं कि वहां पूजापाठियों के इशारों पर बच्चों पर तरहतरह की जातीय बंदिशें लगाई जाती हैं. ये युवाओं को कुंठित करती हैं. हमारे पुराणों में भी अंतर्जातीय प्रेम या विवाहों की लंबी लाइनें लगी हैं. शूर्पणखा ने प्रेमनिवेदन किया था जबकि वह जानतीसमझती थी कि वह किसी और जाति की है. एक राजा की बेटी मूर्ख नहीं होती. भीम ने हिडिंबा से विवाह किया था जो उसे मारने आई थी और दूसरी जाति की थी. मत्स्यगंधा से शांतनु ने विवाह किया था.

आज तो मेलजोल और ज्यादा हो रहा है. ऊंचे 50 मंजिले, 500-1000 घरों के टौवरों वाले कौंपलैक्स में आप अपने पड़ोसी को चुन नहीं सकते और लिफ्ट में मुंह फेर कर नहीं खड़े हो सकते. हर जाति की लडक़ी, हर जाति का लडक़ा एकसा लगता है. सब बराबर से पढ़ रहे हैं, सब समझदार हैं.

जाति का मोह तो छोडऩा पड़ेगा चाहे धर्म के दुकानदार कितना ही जोर लगाएं. धर्म के ठेकेदारों की हजार कोशिशों के मद्देनजर समाज में सदियों से पड़ी बड़ीबड़ी खाइयां दूर करनी होंगी ही. यह सामाजिक आवश्यकता है, धार्मिक हृदय परिवर्तन नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत को भी अपनी सोच बदलनी पड़ रही है. उन्हें मंदिरों और सरकारी दफ्तरों की सत्ता चाहिए तो मन बदलना होगा. घरों में पारिवारिक सौहार्द बनाए रखना है तो जाति का सवाल मन से मिटाना होगा क्योंकि न जाने किस दिन दबेपांव यह सवाल घर के ड्राइंगरूम से होता हुआ बैडरूम व किचन तक पहुंच जाए.

सौदर्या शर्मा ने लगाया बिग बॉस पर यह घटिया इल्जाम, टीना और शालीन को किया टारगेट

सलमान खान का सबसे चर्चित शो बिग बॉस 16 इन दिनों चर्चा में बना हुआ है, शो में अर्चना गौतम , प्रियंका चहल चौधरी , अब्दु राजिक सबको इंटरटेन करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं सौदर्या  शर्मा की प्रेम कहानी सबके निशाने पर बनी हुई है.

बीते दिन सौदर्या शर्मा और प्रियंका चहल चौघरी को कठघरे में खड़ा किया गया था, जहां किसी ने उनकी प्रेम कहानी को बेस्ट बताया तो किसी ने उनका साथ दिया. इन सबके बीच इनका रवैया इन लोगों को पसंद नहीं आया.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ColorsTV (@colorstv)

सौदर्या शर्मा ने बिग बॉस को  पक्षपाती होने का इल्जाम लगाया है, खास बात यह है कि  सौदर्या शर्मा के साथ फैंस भई अब जुड़ गए हैं उन्हें सपोर्ट करने के लिए. दरअसल, बिग बॉस 16 में अदालत लगाया गया जिसमें दिखाया गया कि शालीन भनोट के साथ गौतम विज फूटेज पाने के लिए दोस्ती कर रहे हैं.

उन्होंने जानबुझकर जज रखा है. गौतम विज को ताना मारने वाले लोग यहीं नहीं रूके , उन्होंने दोनों को कठघरे में खड़ाकरके तंज कसा और कहा कि शालीन और टीना क्या कर रहे हैं. अचानक किसी के लिए प्यार कैसे पनप गया है.

सौदर्या घर में शालीन और टीना को टारगेट कर रही है.

भोजपुरी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह ने इस अंदाज में अपने फैंस पर बरसाया प्यार

भोजपुरी इंडस्ट्री फेमस एक्ट्रेस अक्षरा सिंह आए दिन चर्चा में बनी रहती हैं, उन्होंने अपने दम पर एक अलग पहचान बनाई है. एक्ट्रेस की फैन फॉलोविंग इतनी ज्यादा तगड़ी है कि हर कोई उन पर जान छिड़कता है.

अक्षरा सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं. अपने फैंस के लिए वह हर दिन कुछ न कुछ नया वीडियो शेयर करती रहती हैं. अक्षरा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर वीडियो शेयर किया है जिसमें वह अपने फैंस को धन्यवाद देती नजर आ रही हैं. उन्होंने एक नया वीडियो शेयर किया है जिसकी रिच 5 हजार पहुुंच चुकी हैं, फैंस इस वीडियो को खूब पसंद भी कर रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Akshara Singh (@singhakshara)

वीडियो में अक्षरा सिंह कह रही हैं कि गुड मर्निंग मैं आप सभी का धन्यवाद देना चाहती हूं कि आप सभी लोग हमारे वीडियो को इतना पसंद करते हैं और प्यार देते हैं.

इससे पहले अक्षरा सिंह ने दीवाली के त्योहार को मनाते हुए वीडियो को शेयर किया है, जिसमें वह त्योहार को खूब धूमधाम से मनाती नजर आ रही हैं.

अक्षरा सिंह का गाना भी लोगों को खूब पसंद आता है, अक्षरा सिंह अपने फैंस को खूब प्यार करती नजर आती हैं. वह ट्रेडिशनल ड्रेस में बला की खूबसूरत लग रही हैं.

 

कॉलेज ट्रिप पर मुझे अपनी दोस्त का कजिन पसंद आ गया है, अब मैं उसके बिना नहीं रह पाउंगी क्या करुं बताओ?

सवाल

मैं अपने कालेज गु्रप के साथ ट्रिप पर गई थी. गु्रप में लड़के भी थे लेकिन सब की गर्लफ्रैंड्स थीं जो गु्रप में ही थीं. एक अकेली मैं ही थी जिस का कोई बौयफ्रैंड नहीं था. हमारे 8 दिन के ट्रिप में 5वें दिन मेरी सहेली का कजिन जो वहीं रहता था जहां हमारा ग्रुप गया हुआ था, उस से मिलने आया.

मेरी सहेली ने अपने कजिन से मु झे मिलाया. मैं और उस लड़के ने 3-4 दिन तक खूब एकदूसरे के साथ मजे किए. घूमेफिरे, खायापिया, बातें कीं. उस से मिल कर मु झे ऐसा लगा जैसे मु झे दुनियाजहान की खुशियां मिल गई हों. ट्रिप के आखिरी दिन वह मु झे सी औफ करने आया. मु झे पूरी उम्मीद थी कि वह मु झे कुछ तो बोलेगा लेकिन वह कुछ नहीं बोला. खामोशी के साथ मु झे बाय कह कर चला गया.

घर आ कर मैं खूब रोई. ऐसा लग रहा है मेरा सब लुट गया है. मैं उस के बिना नहीं जी पाऊंगी. आप ही बताए मैं क्या करूं?

जवाब

आप क्यों इतनी परेशान हो रही हैं. आप अपनी सहेली से बात कर सकती हैं. वह अपने कजिन से बात कर के सारी स्थिति का पता लगा सकती है कि उस के मन में क्या है. वह आप से प्यार करता है या नहीं, कहीं ऐसा तो नहीं आप को कजिन की सहेली मान कर आप को घुमाफिरा रहा हो, या टाइमपास कर रहा था, या यह भी हो सकता है कि आप से अपने मन की बात कहने में वह  िझ झक रहा हो.

सहेली से बात कीजिए. वह पता लगा कर सब बात आप को बता देगी. नहीं तो आप ज्यादा वक्त नहीं गंवाना चाहती तो उस का मोबाइल नंबर तो आप के पास होगा. साफसाफ उस से बात कीजिए. प्यार की तरफ लड़की भी कदम उठा सकती है. जरूरी नहीं लड़के ही पहल करें. जैसे हालात आप ने बयां किए हैं, लगता है लड़का आप से अपने दिल की बात करने में  िझ झक रहा है तो पहल आप ही कर दें. औल द बैस्ट.

भारत भूमि युगे युगे: सच्चे झूठे अनुयायी

सच्चेझूठे अनुयायी कार्यक्रम सरकारी सा था जिस में बैठनेउठने, हिलनेडुलने की स्टाइल से ले कर हंसना तक सरकारी होता है. अंबेडकर एंड मोदी रिफौर्म्स आइडियाज परफौर्मर्स इंप्लीमैंटेशन नाम की किताब के विमोचन समारोह में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उबाऊ खुलासा यह कहते किया कि नरेंद्र मोदी ही भीमराव अंबेडकर के सच्चे अनुयायी हैं क्योंकि वे भी बाबासाहेब की तरह भारत की बात करते हैं. फिर मुद्दे की बात बोले कि मोदीजी ने कश्मीर से धारा 370 हटा कर बाबासाहेब का सपना पूरा किया है.

बोले थे तो पूरा सच ही बोल देते कि भीमराव अंबेडकर की जिंदगी का पहला मिशन यह था कि जातपांत फैलाते धर्मग्रंथ जला दिए जाएं तो सारी झंझटें जड़ से खत्म हो जाएंगी. इधर मोदी के सच्चे अनुयायी चाहते यह हैं कि संविधान ही खत्म कर दो जिस से हिंदू राष्ट्र बनने का रास्ता साफ हो जाए. विमोचित इतना भर हुआ कि आस्थाएं और निष्ठाएं कभी भूतपूर्व नहीं होतीं. झारखंड की अपर्णा हेमंत सोरेन कब तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहने दिए जाएंगे, यह फ्लैश के खेल जैसी ब्लाइंड है जिस का शो उस भगवा गैंग के हाथों में है जिसे गैरभाजपाई मुख्यमंत्रियों को हटाने में क्रूर आनंद आता है. लाभ के पद के मामले में संकट से घिरे हेमंत को अपने सगे वाले भी कम हैरानपरेशान नहीं कर रहे.

इन में सब से अहम नाम उन की विधायक भाभी सीता सोरेन का है जो खुद को ससुर शिबू सोरेन की सियासी विरासत का असली हकदार होने की खुशफहमी पाले हैं. आजकल अपने वाले पहले जैसे नहीं रहे कि चोट लग जाने पर फर्स्टएड बौक्स ले कर दौड़े चले आएं बल्कि वे हाथ में नमक ले कर आते हैं. यही सीता कर रही हैं जिन्होंने हेमंत सरकार के खिलाफ मोरचाबंदी तेज कर दी है. इसलिए झारखंड में उन की तुलना अपर्णा यादव से की जाने लगी है. कुछ लोग तो उन्हें लेडी विभीषण भी कहने लगे हैं. अब यह और बात है कि वे सतयुग की सीता सी भाभी होतीं तो उन का लक्ष्मण उन्हें कैबिनेट में तो जरूर लेता.

श्री आदित्यनाथ मंदिर 32 वर्षीय प्रभाकर मौर्य समझदार कह लें या धूर्त नौजवान है जो उस ने 10 लाख रुपए की लागत से ऐसा कारोबार शुरू किया जिस में घाटे की कोई गुंजाइश ही नहीं है. दरअसल प्रभाकर ने अयोध्या में भरत कुंड के नजदीक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मंदिर बनाया है जिस में रोज बाकायदा योगीजी की आदमकद मूर्ति का पूजन और आरती होती है. कुछ दिनों में वहां यज्ञ, हवन, अनुष्ठान और भंडारे भी होते दिखेंगे जिस से प्रतिदिन आने वाले चढ़ावे में बढ़ोतरी होगी और देखतेदेखते ही वह बिना कोई गेम शो खेले करोड़पति बन जाएगा. इस युवा ने कहने को यह मंदिर योगीजी और उन के हिंदुत्व से प्रभावित हो कर कोई कसम पूरी होने पर बनाया है.

हकीकत तो यह है कि प्रभाकर बैठेबिठाए कमाई चाहता था जो मंदिर से ही मुमकिन है. वैसे भी, यह दौर जीवित देवताओं का है, मंदिरों और हार्ड हिंदुत्व का है, ढोंगपाखंडों का है. सो, यह तो होना ही था. हवा हुई मां कसम लोग तो पी कर हवा में उड़ते हैं लेकिन हवा में उड़ने के बाद पीने का यह अनूठा मामला है.

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हवाई जहाज में शराब पी कर झूम नहीं, बल्कि लड़खड़ा रहे थे, जिन्हें उन की पत्नी गुरप्रीत कौर और सिक्योरटी वालों ने जैसेतैसे संभाल रखा था. हंगामा हुआ तो उन्हें जरमनी के फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर नीचे उतार दिया गया जहां से वे वापस लौट रहे थे. बकौल आप, मान ने पी नहीं थी बल्कि वे बीमार थे और बकौल विरोधी, उन्होंने पी रखी थी जिस से पंजाबी अस्मिता का अपमान हुआ है. इस हवाई कांड से मान की मंच से 2019 में खाई वह कसम याद आ गई जिस में उन्होंने कहा था कि मां कसम मैं ने पहली जनवरी से पीना छोड़ दिया है.

मोह भंग-भाग 3 : रिश्तों में सेंधमारी

पर मुझे ही चुप होना पड़ता था. मेरे तो पीहर के दरवाजे भी बंद थे. कहां जाती. अन्नू कभीकभी कुछ प्रश्न करने लग गई थी, पर हम उसे बहला कर शांत कर देते थे.
इस उलझी हुई जिंदगी में अब कोरोना ने लंबी छलांग लगा दी थी. हर जगह कोरोना का खौफ छा गया था.

दिसंबर में संजय की बुआ के लड़के की शादी थी. मैं ने संजय को शादी में जाने से मना कर दिया था और अपने डरपोक स्वभाव की वजह से वो मान भी गए.

जनवरी में एकाएक मालूम पड़ा कि संजय के पिताजी और गीता को कोरोना हो गया है और वो अस्पताल में भरती हैं.

दोनों बच्चे नौकरानी के भरोसे थे. मैं ने तो उन के प्रति आंखें मूंद लीं. साथ ही, संजय को भी समझा दिया. ‘‘देखो, यह बहुत खराब बीमारी है, बात करने से या पास जाने से ही आदमी कोरोना की चपेट में आ जाता है. वैसे भी चिंता की क्या बात है. घर की नौकरानी संभाल रही है ना और बच्चे भी अब 13-14 साल के हैं और मां भी घर में हैं.’’

वास्तव में अपनी कायर प्रवृत्ति की वजह से घबरा कर संजय ने अपने घर की तरफ रुख भी नहीं किया और संजय की इसी आदत की वजह से अब मेरा मन कुढ़ता था. वो कोई भी निर्णय लेने में हिचकिचाते थे. न वो गीता को छोड़ पाए और न ही मुझे पूरी तरह से अपना पाए.

अब तो मुझे बहुत अफसोस होता था कि कैसे अपने निर्णय से मैं खुद ही मंझधार में फंस गई. अन्नू की स्कूल में भी पिता की जगह मैं ने संजय नाम बड़ी मुश्किल से लिखवाया था.

जिंदगी में धीरेधीरे एक सन्नाटा सा छाने लगा था. हमारी आपस की बातचीत भी कम होती जा रही थी.
25 अप्रैल का दिन था. सुबह जब 8 बजे तक संजय अपने कमरे से बाहर नहीं आए, तो मैं ने पास जा कर देखा. खांसी चल रही थी, हाथ लगाया तो बदन गरम लगा. मैं एकदम से घबरा गई. यह तो कोरोना के लक्षण लग रहे हैं. अभी तक हम ने वैक्सीन भी नहीं लगवाई थी. बुखार देखा तो पूरा 101 डिगरी था.

यह देख मेेरे तो हाथपांव फूल गए, क्या करूं. फौरन गरम पानी दिया. अब तो मुझे एक ही सहारा दिखा, संजय के पापा.

मैं ने संजय को फोन करने को कहा, पर पापा की सख्ती देखते हुए उस ने अपनी मम्मी को फोन लगाया.

मां का दिल पिघल गया, ‘‘घबराना नहीं बेटा.” और उन्होंने फौरन संजय के पापा को फोन पकड़ा दिया.

पापा ने कहा, “घबराना मत. मैं भाप का यंत्र भेज देता हूं. भाप लेते रहना. और मेरे कंपाउंडर को फोन कर के कोरोना की जांच भी करवा लेना.

“और हां, दीपक ड्राइवर के साथ डा. जोशी के पास चले जाना.”

कोरोना की रिपोर्ट पौजिटिव आ गई थी. संजय तो ज्यादा ही घबरा रहे थे. संजय के घर से बारबार हालचाल पूछने के लिए लगातार फोन आ रहे थे. संजय ने धीरे से कहा, ‘‘मम्मी, दवा भी मंगानी है.”

‘‘तू चिंता मत कर, ड्राइवर को लिस्ट दे दे. मैं मंगवा दूंगी. थोड़ी हिम्मत रख बेटा, सब ठीक हो जाएगा. और हां, सीटी स्केन भी करवा ले. मम्मी ने कई हिदायतें दे दीं.’’

दूसरे दिन शाम होतेहोते मेरी तबीयत भी ढीली हो गई, खांसी के झटकों से लग रहा था कि मुझे भी कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है.
सुबह तो मुझ से उठा भी नहीं जा रहा था. अन्नू को समझाबुझा कर मैं ने दूसरे कमरे में भेज दिया. वो भी रोज कोरोना का सुनती थी. सो, डर कर झट से दूसरे कमरे में चली गई.

सुबह 8 बजे जैसे ही मम्मी का फोन आया, तो संजय ने कहा, ‘‘मम्मी, मेरा बुखार तो वैसा ही है, पर शीना को भी कोरोना हो गया है. अब तो औनलाइन ही नाश्ता खाना मंगवाना पड़ेगा.’’

मम्मी ने एकदम चौंकते हुए कहा, ‘‘कैसी बात करता है पगले, तू खाने की चिंता मत कर. गीता तुम तीनों का खाना बना कर ड्राइवर के साथ भेज देगी. और हां, डा. जोशी से बात हो गई है. अस्पताल जाने की जरूरत नहीं है. घर में ही धीरेधीरे ठीक हो जाएगा.’’

फिर मम्मी आगे बोली, ‘‘किसी भी चीज को मंगाने में संकोच मत करना. जिस चीज की जरूरत हो, लिस्ट बना कर ड्राइवर को दे देना.’’

मैं देख रही थी कि गीता दोनों समय मीठे नमकीन के साथ स्वादिष्ठ खाना बना कर भेज रही थी. खाते हुए मेरी आंखें अकसर तर हो जाती थीं.

इतना काम होते हुए भी गीता संजय को रोज 2 बार फोन कर देती थी, बल्कि उस ने 2-3 बार मुझे भी तबीयत का मैसेज भेज दिया था. मुझे शर्मिंदगी और ग्लानि महसूस हो रही थी.
15 दिन बीत चुके थे. दोनों की तबीयत काफी संभल गई थी. और साथ ही अब मेरे मन में बहुत उथलपुथल मच गई थी.

आज मुझे एहसास हो रहा था कि एक घर की खुशियों को छीन कर मुझे क्या मिला. मेरे पिताजी के घर के द्वार मेरे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए थे. मेरे पिताजी मेरा गम लिए 2 साल बाद ही इस दुनिया से विदा हो गए थे.

ऐसे रिश्ते से न तो मैं अपना कैरियर बना पाई और न ही संजय को उन्नति के शिखर पर बैठा पाई, बल्कि सच पूछो तो एक होशियार डाक्टर को मैं ने कूपमंडूक बना दिया. समाज और परिवार से दूर हो कर भी मुझे पत्नी का दर्जा भी नहीं मिला.

रहरह कर मन सारे समय कचोटता था. मैं ने भी किस वृक्ष पर कुल्हाड़ी चलाई, जो हरभरा और फूलों से लदा था. मेरे मन ने कहा, ‘अरे पगली, प्यार का मतलब तो होता है सामने वाले की खुशियां, और तू ने तो संजय के चेहरे की रौनक और उत्साह ही खत्म कर दिया. आगे बढ़ने का रास्ता ही बंद कर दिया.’

‘‘शीना, अब तू कुछ ऐसा कर कि संजय का घर फिर से हराभरा हो जाए और तू स्वयं भी अपनी जिंदगी सही ढंग से जी सके.’’

मेरा मोह भंग हो चुका था.
कुछ सोच कर मैं ने दृढ़ता से अपनी बड़ी बहन मीना को फोन किया, जो गुरुग्राम में रहती थी और मेरी हमदर्द थी.

‘‘दीदी, मेरा इस शहर में अब दम घुटता है. यदि मैं आप के शहर में आ जाऊं तो क्या मुझे नौकरी मिल जाएगी?’’ मैं ने झिझकते हुए कहा.

मेरी बहन एकदम से बोल पड़ी, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. शीना यह तू ने बहुत अच्छा सोचा है. कुछ दूरी पर यहां 2 महीने पहले ही नया कालेज खुला है. तेरे जीजाजी की पहचान भी है और फिर तेरी तो इंगलिश भी अच्छी है. तुझे तो जरूर ही रख लेंगे.’’

‘‘ठीक है,” मैं ने चहकते हुए कहा, ’’अन्नू को भी वहीं स्कूल में भरती करा दूंगी.
मुझे पैकिंग करते देख संजय ने संशय से पूछा, ‘‘कहीं जा रही हो क्या?’’

मैं ने इतमीनान से जवाब दिया, ‘‘देखो संजय, मैं तुम्हारी जिंदगी में एक मृगतृष्णा बन कर आई थी. अब इस दोहरी जिंदगी का बोझ हम खत्म कर दें, तो दोनों के लिए अच्छा है.’’

अटैची बंद करते हुए मैं ने आगे कहा, “तुम इसे एक बुरा सपना समझ कर भुला देना और अपने घर लौट जाना, वहां अभी भी तुम्हारा इंतजार है. मैं भी नई खुशियां बटोरने की कोशिश करूंगी.’’

फिर कुछ मिनट रुक कर मैं ने कहा, ‘‘मैं गीता और तुम्हारे बच्चों की गुनाहगार हूं, शायद अब वो मुझे माफ कर सकें.’’

लगा कि संजय भी इस जिंदगी से उकता गए थे. इसलिए बिना कुछ बोले अपने कमरे में चले गए.

पशुओं की लंपी स्किन डिजीज : कारण और निवारण

लेखक-वृंदा वर्मा, आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या ] कार्तिकेय वर्मा, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ ] राजीव रंजन कुमार, भाकृअनुप-केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान, मेरठ छावनी ] संजीव कुमार वर्मा

आजकल फैली लंपी स्किन डिजीज के कारण पशुओं और पशुपालकों को बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस रोग के कारण पशुओं की उत्पादकता कम हो जाने के साथसाथ पशु हानि का भी सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में राजस्थान में लंपी स्किन डिजीज के कारण हजारों गाएं बेमौत मर गई हैं. गुजरात, पंजाब, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में भी उक्त रोग (एलएसडी) की घटनाओं की खबरें हैं.

भारत में लंपी स्किन डिजीज का पहला मामला अगस्त, 2019 में ओडिशा के 5 जिलों में दर्ज किया गया था, जहां कुलमिला कर 2,539 पशुओं में से 182 पशु इस रोग से ग्रसित पाए गए और बीमारी की दर 7.16 फीसदी आंकी गई, मगर इन में से कोई भी पशु हताहत नहीं हुआ. तब से यह रोग केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों सहित पूरे देश में फैल चुका है. रोग की वजह, लक्षण, रोगजनन और निदान लंपी स्किन डिजीज यानी एलएसडी गोवंशी पशुओं और भैंसों का एक अत्यधिक संक्रामक रोग है, जो कैप्रीपौक्स वायरस के चलते होता है. इस के कारण संक्रमित पशुओं की त्वचा पर गांठें बन जाती हैं. यह वायरस पौक्सविरिडे परिवार का सदस्य है, जो मुख्यत: पशुओं और पक्षियों में संक्रमण की वजह बनता है.

इस रोग में त्वचा के ऊपर गोलगोल गांठें बन जाती हैं, जो आकार में 0.5 सैंटीमीटर से 5 सैंटीमीटर व्यास की हो सकती हैं. इस रोग के कारण लसिका ग्रंथियों में भी सूजन आ जाती है, नाक से स्राव बहता रहता है, पशु को बुखार हो जाता है और पशु के पूरे शरीर में अकड़न हो जाती है. संक्रमित पशुओं के अंगों में सूजन आ जाती है और लंगड़ापन भी हो सकता है. इस के अतिरिक्त यह रोग शारीरिक कमजोरी, कम दूध देना, बांझपन, गर्भपात और कभीकभी मौत की वजह बनता है. दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन घट जाता है और पशुपालक को माली नुकसान पहुंचता है.

वैसे तो इस रोग में मृत्युदर आमतौर पर कम है, मगर पहले से ही कमजोर पशुओं में रोग की अधिकता अथवा द्वितीयक संक्रमण के कारण पशु की मौत तक हो सकती है. यह रोग एक वायरस द्वारा फैलता है, मगर इस के फैलने का प्रमुख माध्यम काटने वाले कीड़े जैसे मच्छर, मक्खी और चिंचडि़यां या किलनियां ही हैं. इन कीटों के काटने से यह वायरस संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु तक पहुंच जाता है और स्वस्थ पशु भी संक्रमित हो जाता है. इस के अलावा यह संक्रमित पशुओं के स्वस्थ पशुओं से संपर्क में होने के कारण व दूषित चारे से भी फैल सकता है.

लंपी स्किन डिजीज पैदा करने वाला वायरस कीटों के काटने से मेजबान पशु की त्वचा से होता हुआ शरीर में प्रवेश करता है. यह वायरस गैस्ट्रो आंत्र पथ के माध्यम से भी पशु शरीर में प्रवेश कर सकता है. इस के बाद यह वायरस लसिका ग्रंथियों (लिम्फ नोड्स) में पहुंच जाता है, जिस से लसिका ग्रंथि शोथ (लिम्फैडेनाइटिस) हो जाता है. वायरस त्वचा पर सूजन वाले नोड्यूल के विकास के साथ विशिष्ट कोशिका और रक्त वाहिकाओं की दीवारों में तेजी से गुणन करने के कारण त्वचा के घावों का कारण बनता है. एक बार संक्रमित होने के बाद यह वायरस पशु शरीर में 2 से 5 सप्ताह तक रह सकता है. इस रोग में पशुओं को तेज बुखार होता है, जो 105 से 107 डिगरी फारेनहाइट तक पहुंच जाता है.

पशु की नाक से लगातार स्राव गिरता रहता है और दूध उत्पादन में गिरावट आती है. पशुओं की त्वचा की गांठें मुख्यत: सिर, गरदन और थन पर विकसित होती हैं. मुंह और नाक की श्लेष्मा झिल्ली पर भी नोड्यूल विकसित होते हैं. छोटी गांठें इलाज के दौरान ठीक हो जाती हैं, जबकि बड़ी गांठों की कोशिकाएं निर्जीव हो जाती हैं और कुछ समय बाद वे सख्त होने लगती हैं. कभीकभी गांठों में मवाद भी बन जाता है और वे फूट जाती हैं, जिस के कारण इन गांठों पर मक्खियां बैठने लगती हैं और उन में कीड़े पड़ जाते हैं. साथ ही, दूसरे जीवाणु संक्रमण भी हो जाते हैं, जो स्थिति को और भी गंभीर बना देते हैं.

संक्रमित पशु को पुन: ठीक होने में कई महीने भी लग सकते हैं. प्रभावित पशु अकसर कमजोर हो जाते हैं और पेट से होने वाली गायों में गर्भपात भी हो सकता है. माथे, पलकों, कान, थूथन, नासिका, थन, शरीर के सभी अंगों पर उभरी त्वचा की गांठों को देख कर भी समझा जा सकता है कि पशु लंपी स्किन डिजीज वायरस से ग्रसित है. फिर भी रोग की और अधिक पुष्टि के लिए त्वचा से लिए गए नमूनों की बायोप्सी कर के भी इस रोग का पता लगाया जा सकता है.

प्रयोगशाला में वायरस न्यूट्रिलाइजेशन टैस्ट, इनडायरैक्ट फ्लोरेसैंस टैस्ट, अगार जेल इम्यूनोडिफ्यूजन टैस्ट, एलिसा और वैस्टर्न ब्लौट टैस्ट सहित विभिन्न परीक्षणों का उपयोग कर के इस वायरस का निदान किया जाता है. इस रोग से ग्रसित पशुओं की मृत्यु होने पर शव विच्छेदन करने पर ऊपर वर्णित एपिडर्मल और म्यूकोसल घाव स्पष्ट दिखाई देते हैं. श्वास की नली और जठरांत्र संबंधी मार्ग की अंदरूनी सतह में अल्सर पाया जा सकता है. हलके भूरे रंग के पिंडों से युक्त फेफड़े के घाव भी देखे जा सकते हैं. रोग का निवारण, उपचार और नियंत्रण लंपी स्किन डिजीज से बचने के लिए पशुओं का टीकाकरण बहुत ही आवश्यक है. संक्रमण की स्थिति में पशुओं के शरीर पर बनी गांठों में घाव होने पर द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं से उपचार किया जाता है.

साथ ही, घावों पर मक्खियों को न बैठने देने के लिए कोई भी मक्खीरोधी दवा लगाई जाती है और घावों की ड्रैसिंग की जाती है. पशु को बुखार होने पर एंटीपाईरेटिक दवाएं दी जाती हैं. इस के अलावा शरीर की सूजन उतारने और दर्द कम करने के लिए सूजनरोधी और दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं. पशुओं की भूख बढ़ाने के लिए पाचक चूर्ण, प्रीबायोटिक और मल्टीविटामिन दवाएं दी जाती हैं. इस रोग से ग्रसित पशुओं को तरल चारा, हरा नरम सुपाच्य मौसमी चारा और अच्छी क्वालिटी का अधिक प्रोटीनयुक्त दाना रातिब, गुड़ आदि खिलाने की सिफारिश की जाती है. पशु की त्वचा पर बनी गांठों में घाव होने पर उसे किसी भी एंटीसैप्टिक दवा से साफ कर के कोई भी हर्बल स्प्रे या हर्बल मलहम या एंटीसैप्टिक एलोपैथिक मलहम लगा कर ड्रैसिंग करनी चाहिए.

इस के साथ ही पशु को लेवामिसोल, जो कि एक इम्यूनोमौड्यूलेटरी दवा है, का इंजेक्शन लगाया जा सकता है. साथ ही, एंटीहिस्टामाइन की 10 मिलीलिटर दवा प्रतिदिन 3 दिन तक दी जा सकती है. घावों में द्वितीयक जीवाणु संक्रमण की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक्स जैसे एमोक्सिलिन 10-12 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार की दर से बीमार पशु को दी जा सकती है. पशुपालक इन औषधियों का उपयोग योग्य पशु चिकित्सक की सलाह पर ही करें, जो कि पशु की वास्तविक स्थिति के अनुसार दवाएं बता सकते हैं. जहां तक मुमकिन हो, संक्रमित जानवर का उपचार खिलाने वाली दवा और त्वचीय मलहम इत्यादि के माध्यम से किया जाना चाहिए, ताकि उपचार प्रक्रियाओं के माध्यम से बीमारी के प्रसार और उपचार के दौरान उपचार के सामान और कर्मियों के संदूषण से बचा जा सके. इस रोग के स्वदेशी उपचार (आयुर्वेदिक उपचार) के अंतर्गत वे सब जड़ीबूटियां दी जा सकती हैं, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती हैं. पान के पत्ते-10 नग, काली मिर्च-10 ग्राम, नमक-10 ग्राम ले कर उन्हें पीस लें और थोड़े से गुड़ के साथ मिलाएं. पहले दिन हर 3 घंटे में एक खुराक खिलाएं. दूसरे दिन से आगामी 2 सप्ताह तक प्रतिदिन 3 खुराकें खिलाएं. इस नुसखे से अप्रत्याशित लाभ बतलाया गया है.

इसी तरह एक अन्य स्वदेशी पद्यति में : लहसुन-2 पोथी, काली मिर्च-10 ग्राम, धनिया-10 ग्राम, जीरा-10 ग्राम, हलदी का पाउडर-10 ग्राम, चिरायता पाउडर-30 ग्राम, ताजा तुलसी पत्ता-1 मुट्ठी, तेज पत्ता-10 ग्राम, पान के पत्ते-5 नग, बेल पत्ता-1 मुट्ठी, गुड़-100 ग्राम को एक जगह घोंट कर 2 सप्ताह तक रोज 3 खुराकें खिलाने को कहा गया है.

इस से भी पशु की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होने और पशु के शीघ्र स्वस्थ होने की संभावना है. पशु के शरीर पर बनी गांठों में हुए घावों की ड्रैसिंग करने के लिए : हलदी पाउडर-20 ग्राम, हरित मंजरी के पत्ते-1 मुट्ठी, मेहंदी के पत्ते-1 मुट्ठी, तुलसी के पत्ते-1 मुट्ठी, नीम के पत्ते-1 मुट्ठी, लहसुन-10 पोथी को नारियल या तिल का तेल-500 मिलीलिटर में मिला कर पेस्ट बना कर पशु के शरीर पर बनी गांठों में हुए घावों पर लगाया जा सकता है.

इस रोग की रोकथाम के लिए सभी स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराएं. उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में प्रवेश करने से पहले आयातित पशुओं का टीकाकरण अवश्य कराएं. प्रभावित क्षेत्र से आनेजाने वाले लोगों की आवाजाही प्रतिबंधित रखें. पशुपालकों और प्रभावित पशुओं की देखभाल करने वालों को स्वस्थ पशुओं से दूर रहने की सलाह दें. संक्रमित जानवर से निबटने वाले व्यक्ति दस्ताने और चेहरे पर मास्क पहनें और हर समय स्वच्छ और कीटाणुशोधन उपाय करें.

इन सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. संक्रमित गांवों की पहचान करें, ताकि एक विशिष्ट क्षेत्र में एहतियाती योजना बनाई जा सके और प्रभावित गांव के आसपास 5 किलोमीटर तक के गांवों में रिंग टीकाकरण किया जा सके. पशुओं की किसी भी असामान्य बीमारी की सूचना नजदीकी पशु चिकित्सालय को जरूर दें. पशुशाला का नियमित अंतराल पर कीटाणुशोधन करें और स्वस्थ पशुओं को भी बाह्य परजीवीनाशक लगा कर बाह्य परजीवी मुक्त करते रहें. मच्छर, मक्खियों, चिंचड़ी, पिस्सू आदि वैक्टर को नियंत्रित करने के लिए पशुशाला, सामान्य चराई क्षेत्र, जानवरों के इकट्ठा होने वाले स्थानों और जानवरों की आवाजाही के रास्तों पर कीटनाशकों का छिड़काव करें.

इस रोग से संक्रमित पशु की मृत्यु होने पर मृतक पशु के शव को गहरे गड्ढे में चूने एवं नमक के साथ दबा देना चाहिए. ऐसे पशुओं के मृत शरीर को खुले में नहीं फेंकना चाहिए. मृत पशु को दफनाने का स्थान आवासीय क्षेत्र, पशु आवास एवं जल स्रोतों से दूर होना चाहिए. मृत पशु के परिवहन के लिए प्रयोग किए गए वाहन व जिस पशु आवास में वह पशु रखा गया था, को सोडियम हाईपोक्लोराइड के 2-3 फीसदी के घोल से विसंक्रमित करना चाहिए.

मृत पशु के चारे, दाने को विसंक्रमित कर जला कर नष्ट कर देना चाहिए. वैसे तो मनुष्यों में इस रोग के फैलने का जोखिम लगभग न के बराबर है, फिर भी संक्रमण के खतरे से बचने के लिए दूध को पीने से पहले भलीभांति उबाल लेना चाहिए. संक्रमित पशु के कच्चे दूध के सेवन से बचना चाहिए और लाने व ले जाने से बचा जाना चाहिए. लंपी स्किन डिजीज ने देश के कई हिस्सों में महामारी का रूप ले लिया है. टीकाकरण ही इस रोग से बचाव का एकमात्र प्रभावी उपाय है. विषाणुजनित रोग होने के कारण रोग लाक्षणिक उपचार ही संभव है. अच्छे खानपान प्रबंधन और साफसफाई के द्वारा भी जल्द ही इस रोग पर काबू पाया जा सकता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें