हमारे समाज में तलाकशुदा व विधवा के अकेले रहने को गलत संस्कार से जोड़ कर देखा जाता है पर यदि परिवार के साथ में निभ नहीं रही तो अकेले रहने में हर्ज नहीं. आज के समय में तलाकशुदा और विधवा महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. शुरूशुरू में ये संयुक्त परिवारों में रहने का प्रयास करती हैं जहां इन की आजादी, फैसला लेने की क्षमता और भविष्य में आगे बढ़ने के रास्तों पर पहरेदारी हो जाती है. इस से तलाकशुदा और विधवा की जिंदगी और भी खराब हो जाती है. इस की वजह यह होती है कि उन की जिंदगी के फैसले कहीं और से लिए जाने लगते हैं.
हमारे समाज में आज भी तलाकशुदा और विधवा होते ही महिला की जिंदगी खत्म मान ली जाती है. उस के लिए केवल दो रोटी का प्रबंध ही किया जाता है जिस से वह जिंदगी केवल जी सके. 32 साल की नीलिमा की शादी के 8 साल बीत गए थे. पति नरेश के साथ उस की बहुत निभती थी. परेशानी की बात यह थी कि नीलिमा के कोई संतान नहीं थी. पतिपत्नी दोनों डाक्टरों के पास भी गए. डाक्टरों ने उम्मीद कम और खर्च ज्यादा बताया. नरेश के परिवार वाले चाहते थे कि वह दूसरी शादी कर ले. नरेश इस बात के लिए राजी नहीं था. नरेश ने नीलिमा के साथ मिल कर यह तय किया कि वे एक बच्चा गोद लेंगे. यहां फिर परिवार वालों का नया अड़ंगा लगा. वे कहने लगे कि अगर कोई बच्चा गोद लेना ही है तो उसे परिवार के बीच से लो. बाहर का बच्चा कैसे उन के खानदान की रक्षा कर पाएगा.
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