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Superstitions : अंधविश्वास की जड़ें पूरी दुनिया में फैली हैं

Superstitions : अंधविश्वास के लिए भारत हमेशा बदनाम रहा है, मगर यह बीमारी दुनिया के अनेक देशों में फैली हुई है. लगभग हर समाज और संस्कृति में अनेक तरह के अंधविश्वास पनपे. कुछ तो ऐसे अंधविश्वास रहे हैं जो बहुत खतरनाक साबित हुए, फिर भी बहुत प्रचलित रहे. इन अंधविश्वासों ने बड़ी संख्या में लोगों की जान ली और समाज को नुकसान पहुंचाया. इस में कोई दोराय नहीं कि अंधविश्वास की पहली शिकार औरत और दूसरा शिकार मासूम बच्चे होते हैं.

दुनिया के सब से खतरनाक लेकिन बहुप्रचलित अंधविश्वास में चुड़ैल-टोना और डायन प्रथा प्रमुख थी. यूरोप में ‘विच हंट्स’ (16वीं–17वीं सदी) के दौरान हजारों महिलाओं को सिर्फ चुड़ैल समझ कर जिंदा जला दिया गया. भारत और अफ्रीका में भी आज तक कई जगह महिलाओं को ‘डायन’ कह कर मार दिया जाता है. मानव बलि और नरबलि सिर्फ भारत में ही नहीं दी जाती बल्कि प्राचीन संस्कृतियों (माया, एजटेक, इंका, भारत के कुछ हिस्सों) में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इंसानों की बलि दी जाती थी. यह विश्वास इतना गहरा था कि समाज इसे धर्म समझ कर इस का पालन करता था.

काली बिल्ली द्वारा रास्ता काटना बड़ा अशुभ माना जाता है. यूरोप से ले कर एशिया तक यह अंधविश्वास फैला कि बिल्ली या उल्लू को देखना अशुभ है. नतीजा बिल्लियों का सामूहिक कत्लेआम हुआ, खासकर मध्यकालीन यूरोप में. इस से चूहों की संख्या बढ़ी और प्लेग जैसी महामारी फैली.

एक और अंधविश्वास काफी समय तक लोगों की जान लेता रहा. ये था खून से इलाज यानी ब्लड-लेटिंग. यूरोप और एशिया में माना जाता था कि बीमारियों को खून निकालने से ठीक किया जा सकता है. लाखों मरीज इस ‘इलाज’ से मर गए क्योंकि असल में इससे शरीर और कमजोर हो जाता था.

जाति और जन्म आधारित अंधविश्वास तो आज तक दुनिया भर में कायम है. भारत और कई समाजों में यह मान्यता रही कि जन्म से कोई ऊंचा नीचा होता है. इस के चलते भेदभाव, छुआछूत और लाखों लोगों का सामाजिक शोषण हुआ और हो रहा है.

भारत में शनि ग्रहण और ग्रहदोष का डर दिखा कर औरतों का खूब शोषण होता है. ग्रहण को अपशकुन मान कर गर्भवती महिलाओं को कैद कर देना, खानापीना रोक देना, या ग्रह शांति के नाम पर महंगे अनुष्ठान करवाना भारत में आज भी जारी है.

कई देशों में बीमारी की वजह जादूटोना को माना जाता था. अफ्रीका और एशिया के कई हिस्सों में एचआईवी, मलेरिया, और मानसिक रोगों को टोना टोटका या दुष्ट आत्मा का असर माना जाता रहा और उस के इलाज की जगह झाड़फूंक कराने से लाखों जानें गईं.

मध्य पूर्व, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और अफ्रीका में यह अंधविश्वास रहा कि परिवार या कबीले के खून का बदला खून से ही चुकाना चाहिए. लिहाजा पीढ़ियों तक हिंसा और कत्लेआम चलते रहे, साफ है कि अंधविश्वास केवल व्यक्तिगत नहीं होते, बल्कि पूरी सभ्यता और मानव इतिहास को प्रभावित करते हैं. कई बार अंधविश्वासों ने विज्ञान और उसकी खोजों की राह रोक दी. उदाहरण के लिए – यूरोप में डार्क एजेस के दौरान धार्मिक अंधविश्वासों के कारण वैज्ञानिक खोजों को दबाया गया. शासक अंधविश्वासों का उपयोग जनता पर नियंत्रण रखने के लिए करते थे. जैसे ‘दैवी अधिकार’ का विचार, जिस में राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था और उस का आदेश ईश्वर का आदेश होता था.

ऐसे ही समय में मानव वध या बलिदान को भी अंधविश्वासों से वैध ठहराया गया. जबजब अंधविश्वास प्रबल हुए, विज्ञान और आलोचनात्मक सोच पीछे छूट गई. लेकिन जबजब समाज ने अंधविश्वासों को चुनौती दी पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति हुई और तभी सभ्यताएं तेजी से आगे बढ़ीं. यानी अंधविश्वास सिर्फ व्यक्तिगत भ्रम नहीं, बल्कि सभ्यता की गति और दिशा तय करने वाले कारक भी हैं.  Superstitions

Peter Navarro : ब्राहमणों पर ऐसा क्या बोला अमेरिका जो भारत में मच गया सियासी बवाल

Peter Navarro : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने कहा कि ‘मैं बस इतना कहूंगा कि भारतीय लोग समझें कि यहां क्या हो रहा है. ब्राह्मण भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफा कमा रहे हैं और हमें इसे रोकना होगा.’

पीटर नवारो ने वो कहा जो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी लगातार कहते आ रहे हैं. राहुल गांधी ने ओबीसी को समाने रख कर यही बात कही थी कि पीएमओ में ओबीसी का अफसर नहीं होता है. पीएमओ को ऊंची जातियों के अफसर चला रहे हैं. राजनीतिक कारणो से राहुल गांधी ने ब्राहमण शब्द का इस्तेमाल कम किया था. जो मुद्दा राहुल गांधी ने उठाया था वही डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो उठा रहे हैं.

फौक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में नवारो ने अमेरिका की ओर से भारत पर लगाए 50 प्रतिशत टैरिफ को सही ठहराया. उन्होंने कहा कि नई दिल्ली क्रेमलिन के लिए सिर्फ एक धोबीघर है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि भारत दुनिया का सब से बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद पुतिन और शी जिनपिंग के साथ क्यों घुलमिल रहा है ?

नवारो ने आगे कहा मैं बस इतना कहूंगा कि भारतीय लोग समझें कि यहां क्या हो रहा है. ब्राह्मण भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफा कमा रहे हैं और हमें इसे रोकना होगा.

पीटर नवारो इस बात कि तरफ ध्यान दिलाना चाहते थे कि भारत जो क्रूड आयल रूस से खरीद रहा है उस का लाभ भारत के ‘ऊंची जाति’ वाले कारोबारी ले जा रहे हैं. ‘ऊंची जाति’ को पीटर नवारो ने ‘ब्राहमण’ का नाम दे दिया. भारत में इस को ‘ब्राहमण वर्ग’ की अलोचना के रूप में लिया गया. इस को ले कर सोशल मीडिया पर आलोचना और समर्थन का सैलाब आ गया.

शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि “नवारो का ये बयान बुढ़ापे के चरम पर पहुंची उन की निराशा है. नवारो का भारत में किसी खास जाति का जिक्र कर के अपनी बात समझाने की कोशिश करना, चाहे उन का मकसद यह दिखाना ही क्यों न हो कि कुछ लोग बाकी लोगों से अधिक फायदे में हैं, बेहद शर्मनाक और डराने वाली बात है. अमेरिकी प्रशासन में किसी वरिष्ठ व्यक्ति की ओर से ब्राह्मण शब्द का प्रयोग भारत के संदर्भ में अचानक नहीं हो सकता, यह जानबूझ कर किया गया था.”

टीएमसी नेता सागरिका घोष ने नवारो के बयान पर लिखा ‘”बोस्टन ब्राह्मण कभी अमेरिका में न्यू इंग्लैंड के अमीर अभिजात वर्ग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द था. अंगरेजी भाषी दुनिया में आज भी ब्राह्मण को आर्थिक और सामाजिक रूप से अमीर दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है.”

साकेत गोखले ने कहा “अज्ञानता का एक सही उदाहरण पीटर नवारो कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स से हैं. न्यू इंग्लैंड में खासकर बोस्टन और उन के आसपास के इलाकों में ‘ब्राह्मण’ शब्द का इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है, जो काफी अमीर हो.”

पीटर नेवारो के रूसी तेल के ब्राह्मण कनेक्शन जोड़ने पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि “अमेरिका कह रहा है कि रुस के तेल का फायदा ब्राह्मण जाति को हो रहा है, तेल लेने वाले कौन हैं, भारत सरकार, क्या पीएम मोदी ब्राह्मण हैं? निजी कम्पनी के कौन से मालिक ब्राह्मण हैं ? लगता है कि राहुल गांधी की अज्ञानता का स्क्रिप्ट अमेरिका पहुंचा गई है. अमेरिका को सत्य नडेला, सुंदर पिचई, इंदिरा नुई के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि ये सभी ब्राह्मण हैं और अमेरिका की कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं.”  Peter Navarro

Illegal Immigrants : घुसपैठियों ने बनाई दुनिया

Illegal Immigrants : इन दिनों बिहार के चुनाव में भी घुसपैठियों का मुद्दा जोरों पर है. वोटर लिस्ट की जांच चल रही है ताकि घुसपैठियों को पहचाना जा सके. महाराष्ट्र में देश के दूसरे राज्यों के मजदूरों को घुसपैठिया बता कर उन्हें खदेड़ने की राजनीति लंबे समय से चलती आ रही है. घुसपैठियों के नाम पर यह नैरेटिव सैट करने की कोशिश की जाती है कि दूसरे देशों या राज्यों से आने वाले लोग बोझ की तरह होते हैं जो संसाधनों पर डाका डालते हैं और क्षेत्र के आम नागरिकों के लिए खतरा बन जाते हैं. क्या यह नैरेटिव उचित है?

पूरी दुनिया में हमेशा से लोग माइग्रेट करते आए हैं. एक सदी पहले तक पूरी दुनिया में लोग बेरोकटोक इधर से उधर आतेजाते और बसते रहे हैं. पूरी दुनिया में कला, संस्कृति और व्यापार के आदानप्रदान में माइग्रेशन की अहम भूमिका रही. किसी ने मजबूरी में तो किसी ने अवसरों की तलाश में दूसरी जगहों को खोजा और वहां पर प्रवास किया. कोलंबस ने अमेरिका को खोजा और फिर यूरोप से अमेरिका की ओर प्रवास का सिलसिला शुरू हुआ. इन्हीं माइग्रेट करने वाले लोगों ने अमेरिका को बनाया और बसाया. भारत समेत तमाम एशियाई देशों की भी यही सच्चाई है.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में औपनिवेशिक ताकतें कमजोर हुईं और उन्होंने उन देशों को अपने शिकंजे से मुक्त कर दिया जो वर्षों से इन औपनिवेशिक शक्तियों की गुलामी को झेल रहे थे. नए बने राष्ट्रों में राष्ट्रवाद कुलांचें मारने लगा जिस से उन्होंने अपनी सीमाओं की घेराबंदी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह हुआ कि माइग्रेशन बंद हो गया. राष्ट्रवाद के नाम पर दुनिया के तमाम देश आइसोलेट हो कर अपनीअपनी सीमाओं में बंद हो गए.

यह मानव विकास के खिलाफ एक राजनीतिक षड्यंत्र था. मानवता के संपूर्ण इतिहास में यह सब से बड़ी त्रासदी थी. जिस माइग्रेशन की वजह से दुनियाभर में संस्कृतियों और सभ्यताओं का आदानप्रदान व विकास हुआ था वह अचानक रुक गया और इस से मानवता की सांस्कृतिक गति भी रुक गई.

वर्ष 1947 से पहले के भारत में लोग कहीं भी जा सकते थे और कोई भी भारत में आ सकता था. कोई रुकावट नहीं थी. व्यापारी, कलाकार और खानाबदोश जनजातियां भारत से निकल कर यूरोप तक पहुंचती रहीं तो यूरोप और चीन से भी बड़ी संख्या में लोग भारत में आते रहे. इस तरह के माइग्रेशन से फायदा सभी को होता है लेकिन आज सभी देशों ने अपनीअपनी सीमाओं की ऐसी घेराबंदियां की हैं कि इंसान तो क्या, जानवर भी इन सीमाओं को नहीं लांघ सकता.

पिछले हजारों वर्षों से भारत में जो भी आया वह यहीं का हो कर रह गया. शक भारत में दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के आसपास आए. मध्य एशिया का यह कबीला भारत को लूटने आया था लेकिन यहीं का हो कर रह गया. शक कबीले से ही भारत में महेश्वर और रुद्रदामन जैसे महान राजा हुए जिन्होंने पहली और दूसरी शताब्दी ईसवी में पश्चिमी भारत में शासन किया.

कुषाण भारत में पहली सदी ईस्वी में आए. कुषाण कबीला भी मध्य एशिया से भारत में आया और इस कबीले ने उत्तरपश्चिमी भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया. इसी कबीले से कनिष्क जैसे महान शासक पैदा हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और एशिया में भारतीय संस्कृति के विस्तार में अहम भूमिका निभाई.

भारत में 5वीं शताब्दी की शुरुआत में हूण आए. यह भी खानाबदोश जनजाति थी जो मध्य एशिया से भारत में आई थी. हूणों ने गुप्त शासक स्कंदगुप्त (455-467 ईस्वी) के शासनकाल में भारत पर आक्रमण किया और मिहिरकुल के नेतृत्व में उत्तर भारत में अपनी शक्ति स्थापित की. इन कबीलों के अलावा कई छोटीबड़ी जनजातियां यूरोप और मध्य एशिया से भारत में दाखिल हुईं और यहां के कल्चर में समा कर यहीं की हो कर रह गईं. भारत में आने वाला कोई कबीला भारत से वापस नहीं गया और न ही उन्हें किसी ने यहां से भगाने की कोशिश की.

भारत में घुसपैठिए समस्या हैं या समाधान

पिछले साल हुए झारखंड के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने घुसपैठियों का मुद्दा जोरशोर से उठाया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने चुनावी भाषणों में इस मुद्दे को हवा दी थी. बीजेपी का आरोप था कि झारखंड में आदिवासियों की जमीन बंगलादेशी घुसपैठिए हड़प रहे हैं.

झारखंड में घुसपैठ के मुद्दे को राजनीतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील बनाया गया है तो इस के पीछे कुछ कारण भी हैं. झारखंड के संथाल परगना में 1951 में आदिवासी आबादी 44.67 फीसदी थी, जो 2011 में घट कर 28.11 फीसदी रह गई.

बीजेपी का आरोप है कि इलाके में आदिवासियों की घटती जनसंख्या के लिए बंगलादेशी घुसपैठिए जिम्मेदार हैं. घुसपैठियों द्वारा आदिवासी लड़कियों से शादी की जाती है. इस तरह वे आदिवासी समाज में घुसपैठ कर उन की जमीनें हथिया लेते हैं.

छोटानागपुर टेनेंसी और संथाल परगना में इसी तरह आदिवासियों की जमीनें हथियाने की घटनाएं सामने आई हैं. इस तरह की घटनाओं को ले कर बीजेपी ने इसे आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने की तरह पेश किया. झारखंड चुनावों में बीजेपी ने घुसपैठिये के मुद्दे को ‘रोटी, बेटी, माटी’ की सुरक्षा के नारे के साथ जोड़ दिया जबकि सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोरचा (जेएमएम) सरकार ने घुसपैठ के दावों को खारिज कर दिया.

असम में घुसपैठियों का मुद्दा लंबे समय से चल रहा है. असम में यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण इसलिए भी रहा है क्योंकि असम की बड़ी सीमा बंगलादेश से लगती है. इस सीमा से बंगलादेशियों की लगातार घुसपैठ हुई है. ब्रिटिश शासन के दौरान पूर्वी बंगाल (वर्तमान बंगलादेश) से लोगों को असम में खेती और श्रम के लिए लाया गया, जिस से प्रवास का एक पैटर्न शुरू हुआ और यह लगातार चलता रहा.

1971 में बंगलादेश की स्थापना के बाद वर्षों तक बंगलादेश में आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता बनी रही जिस के कारण बड़ी संख्या में लोग भारत-बंगलादेश सीमा के माध्यम से असम में घुसपैठ करते रहे.

बोड़ो उग्रवादी गुट ने 3 दशकों तक बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष किया. असम की अस्मिता बचाने के नाम पर चले इस संघर्ष में हजारों लोग मारे गए. असम की राजनीति में लंबे समय से घुसपैठिए मुख्य मुद्दा रहे हैं और जब से असम में बीजेपी सत्ता में आई है उस के लिए सब से जरूरी काम घुसपैठियों को उखाड़ फेंकना ही है.

जुलाई 2025 को असम के धुबरी जिला थर्मल पावर प्रोजैक्ट की 3,500 बीघा जमीन पर बने करीब 1,700 घरों को बुल्डोजर से ढहाया गया. इस कार्रवाई में 1,400 परिवार विस्थापित हुए. कई संगठनों ने इस कार्यवाही का विरोध किया जिस के बाद बिस्वा सरमा सरकार ने आश्वासन दिया कि जिन के पास जमीन के वैध कागजात हैं, उन्हें मुआवजा या वैकल्पिक जमीन दी जाएगी.

जून 2025 को असम के गोलपारा में लगभग 1,500 एकड़ वन भूमि पर बने 667 घरों को ध्वस्त किया गया, जिन में ज्यादातर बंगलादेशी मूल के लोग रहते थे. सरकार ने इसे अवैध कब्जा हटाने का अभियान बताया. पिछले कुछ महीनों में असम के नलबाड़ी और लखीमपुर जैसे जिलों में भी ऐसी कार्रवाइयां हुईं, जिन में 2,300 से अधिक परिवार बेघर हुए.

असम और झारखंड की तरह ही दिल्ली में भी घुसपैठियों का मुद्दा जबतब गरमाता रहता है. 2020 में उत्तरपूर्वी दिल्ली और 2022 में जहांगीरपुरी में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस ने रोहिंग्या और बंगलादेशी मुसलमानों की संलिप्तता पाई जिस से दिल्ली के ये घुसपैठिए दक्षिणपंथ की राजनीति में अहम मुद्दा बन गए.

असम में सरकार ने घुसपैठियों की बस्तियों पर बुल्डोजर चलाया तो दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से सरकारी बुल्डोजर लगातार ऐक्शन में है.

जून 2025 में दिल्ली के अशोक विहार में 200 से अधिक अवैध मकानों को ध्वस्त किया गया. गोविंदपुरी में 300 से अधिक झुग्गियों को तोड़ा गया. कालकाजी में 300 से ज्यादा घरों को ध्वस्त किया गया. निजामुद्दीन इलाके में 600 से अधिक मकानों को तोड़ा गया. तैमूर नगर में अवैध झुग्गियों पर बुल्डोजर कार्रवाई की गई.

इस के अलावा यमुना पुस्ता, बवाना, जहांगीरपुरी, सीमापुरी और कालिंदी कुंज जैसे इलाकों में भी घुसपैठियों की बस्तियों पर कार्रवाई की गई. इन में से कुछ डीडीए की जमीनों पर अवैध कब्जे को हटाने की कार्रवाई थीं. ज्यादातर बस्तियों को रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठियों को खदेड़ने के नाम पर तोड़ा गया.

घुसपैठियों की समस्या को नफरत से हल करना मानवता नहीं है. वर्षों की मेहनत से बनाए लोगों के घरों को रातोंरात धूल में मिला देने में कौन सी इंसानियत है. जो लोग भारत में पहले ही आ चुके हैं उन्हें डिटैंशन कैंपों में ठूंस देना भी इंसानियत नहीं है. रातोंरात जिन घरों को तोड़ा गया वे कहां जाएंगे?

घुसपैठियों के प्रति बेशक हमदर्दी मत रखिए लेकिन इस तरह की नफरत की भावना रखना भी उचित नहीं है. नफरत के नजरिए से देखें तो पड़ोसी देशों से भारत में आए लोग भी घुसपैठिए ही हैं लेकिन इसे तार्किक और मानवीय नजरिए से सम?ों तो यह आधुनिक प्रवास या मौडर्न माइग्रेशन है.

माइग्रेशन करने वाले लोग, जो बंगलादेश और म्यांमार की सीमाओं से भारत में आते हैं, ज्यादातर वह गरीब तबका होता है जिस के लिए अपना देश ही पराया हो जाता है. बेहद मजबूरी में ही कुछ लोग जोखिमभरा ऐसा कदम उठाते हैं और अपने देश की सीमाओं को लांघ कर भारत में घुसपैठ करते हैं. भारत में आ कर वे ?ाग्गियां बनाते हैं और यहां निम्न श्रेणी के कार्यों से अपने परिवार का पेट पालते हैं.

इन घुसपैठियों की औरतें शहरों में लोगों के घरों में काम करती हैं तो मर्द कूड़ा बीनने से ले कर रिकशा चलाने तक का काम करते हैं. इस में दोराय नहीं कि इन में कुछ चोरी या नशे के कारोबार में भी संलिप्त हो जाते हैं जिस से ये लोग आम नागरिकों के लिए खतरा बन जाते हैं. ऐसे में इन घुसपैठियों के प्रति नकारात्मक वातावरण पैदा होना भी स्वाभाविक बात है लेकिन इस का समाधान बुल्डोजर और डिटैंशन कैंप तो कतई नहीं है.

झुग्गीझोपड़ियों में बसर करने वाले ये लोग, जिन्हें सरकार घुसपैठिया कहती है, शहरों और शहरियों की जरूरत हैं. इन घुसपैठियों के खिलाफ माहौल खड़ा करने और इन्हें सब से बड़ी समस्या बताने के पीछे सिर्फ राजनीति है. वरना शहरों में महज 5 हजार में घर का झाड़ूबरतन करने वाली मेड किस की जरूरत नहीं.

क्या है घुसपैठियों की त्रासदी का समाधान

एशिया और मिडिल ईस्ट के ज्यादातर देश लंबे वक्त तक औपनिवेशिक ताकतों के गुलाम रहे हैं. इन देशों को आजादी तो मिली लेकिन इस आजादी के साथ सीमा विवाद के गहरे जख्म भी मिले. इसी सीमा विवाद के चलते एक भूभाग में रहने वाले लोग कई देशों में बंट गए. रातोंरात सब बदल गया. सदियों जिस जगह को लोग अपना सम?ाते रहे वे उन से छीन ली गई. लाखों लोग विस्थापित हुए और विस्थापित लोगों को नई जगह पर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

इन देशों में दशकों तक राजनीतिक अस्थिरता बनी रही जिस का खमियाजा आम लोगों को ही भुगतना पड़ा. कुछ लोगों ने भविष्य की बेहतरी के लिए तो कुछ लोगों ने जान के डर से पलायन किया और देशों की सीमाओं को लांघ कर घुसपैठिए बन गए. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्थापन होता रहा और यूनाइटेड नैशन देखता रहा. घुसपैठ और घुसपैठिए किसी भी देश के लिए समस्या नहीं बल्कि समाधान होते हैं. यह माइग्रेशन की स्वाभाविक प्रक्रिया है जो सदियों से चलती आई है.

गौरतलब यह है कि 1937 तक बर्मा (म्यांमार) ब्रिटिश भारत का हिस्सा था. उस समय व्यापार और रोजगार के लिए भारतीय मूल के लोग म्यांमार गए थे और आज भी वहां 25 लाख भारतीय समुदाय के लोग निवास करते हैं. वर्ष 2021 में भारत में घुसपैठ करने वाले लोगों में बड़ी तादाद भारतीय मूल के लोगों की भी है जो ब्रिटिश काल में म्यांमार चले गए थे.

आज के समय घुसपैठ और घुसपैठियों को ले कर बीजेपीशासित राज्यों ने सख्त कदम तो उठाए हैं लेकिन घुसपैठियों के खिलाफ बीजेपी की कार्रवाई सिर्फ राजनीति से प्रेरित नजर आती है. बीजेपी के पास इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं है. अगर बीजेपी सरकार ऐसा सोचती है कि बुल्डोजर से घुसपैठियों की बस्तियों को तबाह कर देने से यह समस्या खत्म हो जाएगी तो यह सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाने का तरीका भर है.

घुसपैठ कोई समस्या नहीं है. यह माइग्रेशन की सामान्य प्रक्रिया है जो वर्षों से चलती आई है. अगर इसे समस्या मान भी लें तो इस समस्या का समाधान करना राज्यों का काम नहीं है. इस के लिए केंद्र सरकार को विवेकपूर्ण नीतियां बनानी होंगी और इस समस्या के समाधान के रास्ते में इंसानियत का भी खयाल रखना होगा.

केंद्र सरकार को बंगलादेश और म्यांमार सरकारों से घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए प्रत्यर्पण नीतियों को मूर्त रूप देना होगा. इस के अलावा कोई रास्ता नहीं है. फिर भी जो लोग भारत में रह जाएं उन्हें नागरिकता प्रदान कर शिक्षा व रोजगार के जरिए मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास करना होगा. यही इस जटिल समस्या का एक विवेकपूर्ण और मानवीय समाधान हो सकता है.

भारत की संस्कृति हमेशा से समावेशी रही है. ‘वसुधैव कुटुंबकम’, ‘पूरा विश्व एक परिवार’ है’ यह वाक्य भारतीय दर्शन और संस्कृति की महानता साबित करने वाले लोग बारबार दोहराते हैं. अपने अंतर्राष्ट्रीय दौरों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर इस वाक्य की विवेचना करते नजर आते हैं. आरएसएस के मोहन भागवत भी वसुधैव कुटुंबकम को भारत की आनबानशान बताते हैं लेकिन बीजेपी भारत की इस आनबानशान को बुलडोज करने में लगी हुई नजर आती है.

घुसपैठियों के खिलाफ डोनाल्ड ट्रंप

वर्ष 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमेरिका की खोज की. आधुनिक अमेरिका का इतिहास कोलंबस की इसी खोज से शुरू होता है. कोलंबस के बाद स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस और इंग्लैंड के व्यापारियों ने अमेरिका को बनाया व बसाया. इस तरह देखा जाए तो आज अमेरिका में बसे 95 फीसदी लोग घुसपैठिए ही हैं. दुनिया की सब से बड़ी आर्थिक महाशक्ति होने के कारण आज पूरी दुनिया से लोग अमेरिका जाने का ख्वाब देखते हैं. बाहरी लोगों की मेहनत से ही अमेरिका बना है लेकिन जब से डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए हैं उन्होंने घुसपैठियों के खिलाफ मोरचा खोल दिया है.

ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को बड़े पैमाने पर देश से निकालने की शुरुआत की. इसी क्रम में 100 से अधिक भारतीय नागरिकों को बेहद शर्मनाक तरीके से डिपोर्ट कर दिया. ट्रंप ने शपथ लेते ही सब से पहले रिफ्यूजी रिसैटलमैंट प्रोग्राम को रद्द कर दिया और हजारों शरणार्थियों को अमेरिका से खदेड़ दिया.

अमेरिका में प्रवासियों के लिए इस वक्त हालात बुरे हैं. इस बीच भारतीयों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव की घटनाएं भी बढ़ी हैं. प्रवासियों के खिलाफ ट्रंप की नीतियों से अमेरिकी समाज के अंदर दबी हुई ‘वाइट सुप्रीमेसी’ वाली नस्लीय मानसिकता ने एक बार फिर उभार मारना शुरू कर दिया है. इस का खमियाजा अमेरिका में बसे लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

विदेश नीति से जुड़े भारत सरकार के तमाम दावों के बावजूद ट्रंप सरकार ने भारतीयों के साथ कोई रियायत नहीं बरती. ट्रंप भारतीयों को घुसपैठिया मान रहे हैं. यही कारण है कि भारतीयों के खिलाफ नस्लीय घटनाओं में भी तेजी आई है.

जौर्जिया में 3 भारतीय डाक्टरों (डा. कपिल पारीक, डा. ज्योति मानेकर और डा. अनिशा पटेल) ने नौर्थईस्ट जौर्जिया हैल्थ सिस्टम पर नस्लभेद का मुकदमा दायर किया है. इन डाक्टरों का आरोप है कि उन के भारतीय मूल के होने के कारण उन की कार्यक्षमता पर सवाल उठाए गए और उन के काम में जानबूझ कर रुकावटें डाली गईं. कुछ भारतीय डाक्टर्स पर बेहद संगीन आरोप भी लगे हैं. इन घटनाओं को अमेरिकी मीडिया ने व्यापक रूप से उछाला जिस से भारतीय मूल के डाक्टर्स के खिलाफ ऐसा माहौल बना कि सैकड़ों डाक्टर्स को अमेरिका छोड़ कर भारत आना पड़ रहा है.

न्यू जर्सी के डा. रितेश कालरा पर मरीजों को अवैध नशीली दवाएं (जैसे औक्सीकोडोन) देने और दवाओं के बदले यौन संबंध बनाने की मांग करने के आरोप लगे हैं. इस के अलावा, डा. उमैर एजाज पर महिलाओं व बच्चों के नग्न वीडियो बनाने जैसे गंभीर आरोप हैं. इन मामलों ने भारतीय डाक्टरों की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है.

अमेरिका में 38 फीसदी डाक्टर भारतीय मूल के हैं. अगर अमेरिका में घुसपैठियों का मुद्दा और गरमाता है तो इस से सब से बड़ा नुकसान उन डाक्टरों को उठाना पड़ सकता है जिन्होंने बहुत मेहनत से अमेरिका में जगह बनाई है. अगर भारतीय मूल के डाक्टरों का यह हाल है तो जो भारतीय अमेरिका में छोटेमोटे कामों में लगे हैं उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा होगा.

आगे का अंश बौक्स के बाद 

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घुसपैठियों के खिलाफ ईरान

ईरान ने महज 16 दिनों में 5 लाख से ज्यादा अफगान नागरिकों को देश से बाहर निकाल दिया है. यह कार्रवाई 24 जून से 9 जुलाई के बीच हुई है. यानी, हर दिन औसतन 30,000 से ज्यादा अफगानों को देश से निकाला गया. संयुक्त राष्ट्र ने इसे दशक की सब से बड़ी जबरन निकासी में से एक करार दिया है. इजराइल के साथ युद्ध के बाद देश की सुरक्षा के नाम पर ईरान ने यह कदम उठाया है.

अफगानिस्तान से बड़ी तादाद में बेरोजगार ईरान की ओर रुख करते हैं. अफगानिस्तान से निकलने वाले लोगों का यह माइग्रेशन दशकों से चल रहा है. कई अफगानी लोगों ने ईरान में दुकानें खोलीं तो कई छोटेमोटे रोजगार में लगे हुए थे. इन में बड़ी तादाद मजदूरों की थी जो अब वापस अफगान भेजे जा रहे हैं. एक मुसलिम देश को दूसरे देश के मुसलिम बरदाश्त नहीं लेकिन स्वीडेन जैसे गैरइसलामिक देशों ने इंसानियत दिखाते हुए मुसलिम देशों के आंतरिक कलह से बरबाद हुए लोगों को अपने देशों में शरण दी.

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माइग्रेशन को रोकना मानवता के विरुद्ध एक षड्यंत्र ही है

अफ्रीका से बाहर निकलने वाले पहले मानव प्रवास से ले कर आज तक के प्रवास में कोई विशेष अंतर नहीं है. 74 हजार साल पहले अफ्रीका से बाहर निकलने वाले लोगों को भी अवसरों की तलाश थी, आज भी लोग इसी कारण माइग्रेट करते हैं. पूरी दुनिया को माइग्रेट करने वाले लोगों ने ही बनाया और बसाया है. लेकिन आज राष्ट्रवाद की आड़ में देशों ने अपनीअपनी घेराबंदियां कर दीं हैं जिस से माइग्रेशन के द्वार बंद हो गए हैं. कहीं हजारों किलोमीटर लंबी कंटीली तार बिछा दी गई है तो कहीं ऊंची दीवारें खड़ी कर दी गई हैं.

हैरानी की बात यह है कि यह सब पहले से सभ्य मानी जानी वाली दुनिया में किया जा रहा है और लोगों को माइग्रेट करने से रोकने के लिए यह सब हो रहा है. क्या यह मानवता का हृस नहीं है? जो लोग किन्ही भी कारणों से देशविहीन हो गए हों, क्या उन्हें धरती पर रहने का हक नहीं है? 2 देशों की लड़ाई में विस्थापित होने वाले लोगों का ठिकाना क्या है?

अगर वे अपने परिवार की खातिर किसी दूसरी दुनिया की तलाश करें तो इस में गलत क्या है? अपने लिए थोड़ी सी जमीन की तलाश करते, इधरउधर भटकते परिवारों को घुसपैठिया कहें तो क्या यह सभ्यता की निशानी है?

इस धरती पर रहने वाले हर इंसान को दुनिया में कहीं भी रहने और बसने का अधिकार होना चाहिए. माइग्रेशन मानवता के इतिहास और उस के विकासक्रम का सब से जरूरी हिस्सा रहा है, इसे रोकना मानवता के विरुद्ध एक षड्यंत्र ही है. यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी आधुनिक और सभ्य दुनिया को बनाने व बसाने में उन लोगों का सब से बड़ा योगदान रहा है जिन्हें आज हम घुसपैठिया कहते हैं. Illegal Immigrants

Stress Management : मातापिता मुझ पर अच्छे अंक लाने का दबाव डालते हैं

Stress Management : मैं 20 वर्षीया कालेज छात्रा हूं. पढ़ाई का दबाव, परीक्षाओं की चिंता और कैरियर की असुरक्षा. इन सब ने मुझे इतना तनावग्रस्त कर दिया है कि नींद तक पूरी नहीं आती. कभीकभी लगता है कि यह सब मेरी क्षमता से बाहर है. मैं इस तनाव से कैसे निकलूं?

जवाब : यह समस्या आज के लगभग हर छात्र की है. कैरियर और प्रतिस्पर्धा का दबाव युवाओं की जिंदगी का सब से बड़ा तनाव बन चुका है. लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि तनाव से सफलता नहीं मिलती, बल्कि सही योजना और आत्मविश्वास से मिलती है.

सब से पहले, अपने दिन का टाइमटेबल बनाइए. पढ़ाई को छोटेछोटे हिस्सों में बांट कर पढ़ें. रातभर जगने के बजाय 2-2 घंटे के अंतराल में पढ़ाई करें और बीचबीच में आराम लीजिए. मातापिता से खुल कर बातें करें. उन्हें समझाइए कि आप अपनी पूरी मेहनत कर रही हैं और ज्यादा दबाव आप को तोड़ सकता है. जब वे आप के मन की स्थिति समझेंगे तो निश्चित रूप से उन का नजरिया बदलेगा.

मन को शांत करने के लिए व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें. इस से मानसिक ऊर्जा और एकाग्रता बढ़ेगी. याद रखिए, अच्छे अंक जरूरी हैं लेकिन जिंदगी सिर्फ अंकों पर नहीं टिकी है. आत्मविश्वास और कौशल ही असली पूंजी है. तनाव छोड़ कर अगर आप पूरे मन से मेहनत करेंगे तो सफलता आप के कदम चूमेगी ही. Stress Management 

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे. 

Family Responsibilities : मेरे कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारियां आ गई हैं

Family Responsibilities : मैं 40 वर्षीय पति हूं. नौकरी का तनाव, बच्चों की पढ़ाई का खर्च, घर की जिम्मेदारी, सबकुछ मुझे ही संभालना पड़ता है. पत्नी को लगता है कि मैं उस के लिए समय नहीं निकालता. सच यह है कि मेरे पास खुद के लिए भी समय नहीं है. कभीकभी लगता है कि जिंदगी सिर्फ बोझ बन गई है. मैं क्या करूं?

जवाब : आप की समस्या बिलकुल वास्तविक है. एक पति और पिता के रूप में अकसर आदमी को ‘कमाने वाली मशीन’ मान लिया जाता है. भावनाएं, थकान और तनाव उस के हिस्से में दिखाई ही नहीं देते. लेकिन याद रखिए, आप भी इंसान हैं और आप का मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है.

सब से पहले, अपने तनाव को पत्नी से साझा कीजिए. अकसर पत्नियां यह मान लेती हैं कि पति सिर्फ काम में व्यस्त हैं और भावनाओं को समझना उन का काम नहीं. लेकिन जब आप खुल कर बताएंगे कि नौकरी और जिम्मेदारियों का दबाव आप को कितना थका रहा है तो वे निश्चित ही आप को समझेंगी.

बच्चों और पत्नी के साथ रोजाना थोड़ा समय बिताइए. साथ में खाना खाना या सिर्फ बातचीत करना भी पर्याप्त है. इस से आप के रिश्ते मजबूत होंगे और परिवार को भी लगेगा कि आप सिर्फ कमाने वाले नहीं, बल्कि साथ निभाने वाले भी हैं.

खुद को आराम देना सीखें. हर समय काम और जिम्मेदारी के बोझ तले दबे रहना आप की सेहत के लिए खतरनाक है. सप्ताह में एक दिन सिर्फ परिवार और अपने लिए रखिए.

सब से अहम बात यह समझें कि जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होंगी. लेकिन अगर आप संतुलन से उन्हें निभाएंगे तो न सिर्फ आप खुश रहेंगे, बल्कि परिवार भी आप की अहमियत को और बेहतर समझेगा. Family Responsibilities

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Family Conflicts : मेरी सास मुझे घर के काम न करने के चलते ताने मारती है

Family Conflicts : मैं एक नौकरीपेशा महिला (29 वर्ष) हूं. मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं. मेरी सासुमां को लगता है कि मैं घर की जिम्मेदारी नहीं निभा रही हूं. वे आएदिन मुझ पर ताने मारती हैं कि मैं ‘घर की बहू जैसी नहीं हूं’ और ‘घर बरबाद कर रही हूं.’ मैं दिनभर औफिस में मेहनत करती हूं, फिर भी मुझे समझने वाला कोई नहीं है. मेरे पति मुझ से कहते हैं कि मैं मां को नजरअंदाज करूं, पर यह रोजरोज सहना आसान नहीं है.

जवाब : सब से पहले, यह समझना जरूरी है कि पीढि़यों के बीच सोच का अंतर सामान्य है पर इसे संवाद से सुलझाया जा सकता है. आप अपनी सास के साथ एक दिन बैठें और उन से विनम्रता से बात करें. उन्हें बताएं कि आप घर को ले कर लापरवाह नहीं हैं, बल्कि संतुलन बनाने की कोशिश कर रही हैं. एक बार सासुमां से अकेले में शांति से बात करें, उन्हें बताइए कि आप उन की इज्जत करती हैं और घर को भी उतना ही अपना मानती हैं जितना वह.

यह भी पूछें कि उन्हें किस चीज से सब से ज्यादा तकलीफ होती है. शायद वे सिर्फ ध्यान चाहती हैं. अगर संभव हो तो किसी काम में उन्हें शामिल करें, ताकि वे उपयोगी महसूस करें, जैसे घर की रसोई में उन से राय लेना, उन्हें बताना कि आप औफिस में क्या करती हैं आदि.

उन्हें यह महसूस कराइए कि वह बेकार नहीं हो रही हैं. उन की जगह अब भी खास है. पति से भी कहें कि वे सुलह की प्रक्रिया में हिस्सा लें. पति को सिर्फ सुनने वाला नहीं, साथ निभाने वाला बनाएं.

उन से कहिए, ‘तुम मुझे नजरअंदाज नहीं करते, यह मैं जानती हूं लेकिन जब घर में मुझे बारबार नीचा दिखाया जाता है तो तुम्हारी चुप्पी मुझे अकेला कर देती है.’

उन से अनुरोध करें कि वे मां को समझाएं कि आप दोनों मिल कर घर चला रहे हैं. अकेले कोई नहीं. पति को बीच में ‘ढाल’ नहीं बनाना है, बल्कि ‘सेतु’ बनाना है मां और पत्नी के बीच.

आप किसी को जबरन नहीं बदल सकतीं लेकिन रिश्ते में बदलाव लाने का पहला कदम आप जरूर उठा सकती हैं. Family Conflicts

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Donald Trump : मृत अर्थव्यवस्था

Donald Trump : ‘मृत अर्थव्यवस्थाएं’ – ये शब्द भारत और रूस के बारे में अमेरिका के वर्तमान खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हैं. शायद ये सही हैं. भारत का दिखने वाला एकमात्र लक्ष्य ‘हिंदूमुसलिम’ है, रूस का दिखने वाला एकमात्र लक्ष्य यूक्रेन पर विजय पाना है. ऐसी अर्थव्यवस्थाएं जिन का लक्ष्य ही विध्वंस, विनाश, विवाद और विकासहीनता हो उन्हें मरा हुआ ही कहा जा सकता है. भारत कुछ ऐसा ही 1707 और 1947 के बीच में रहा.

जीवित अर्थव्यवस्था वह है जिस का लक्ष्य लोगों को खुश करना, उन की रोजीरोटी का इंतजाम करना, समाज के हर हिस्से को बराबरी व सुरक्षा दिलवाना, सरकारी कारिन्दों को काबू में रखना, लिखनेपढ़ने व समझने की सब को छूट देना हो. हमारी अर्थव्यवस्था में यह कहीं नजर आ रहा है क्या? रूस के शासक व्लादिमीर पुतिन के मुंह से आम रूसी के लिए कुछ कहते सुना जा रहा है क्या?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को सिर्फ इसलिए हिला दिया है क्योंकि वे अमेरिका को अपने हिसाब से महान देखना चाहते हैं. वे नए हथियारों की बात नहीं कर रहे, जमीनें छीनने की बात नहीं कर रहे बल्कि वे अमेरिकियों को काम के नए मौके और उन्हें बेहतर जीवन देने की बात कर रहे हैं. इधर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत का नारा तो दिया पर किया पाखंड का विकास जो गलीगली में पैर पसार रहा है. पुतिन गलीगली से पुरुषों को पकड़ कर यूक्रेन भेज रहे हैं और हम कांवड़ यात्रा पर. डोनाल्ड ट्रंप ये दोनों हरकतें नहीं कर रहे.

डोनाल्ड ट्रंप का राज कोई आदर्श नहीं है. वे मागा गैंग चला रहे हैं, जिसे सिर्फ गोरों का राज चाहिए, चर्च का राज चाहिए. सिवा गैरकानूनी ढंग से घुसे विदेशियों को बाहर निकालने के ट्रंप अपने नागरिकों को परेशान नहीं कर रहे. उन्होंने बहुत सी सोशल सेवाओं में कटौती की है क्योंकि उन का विश्वास है कि लोग मेहनत करें, पैसा कमाएं, पैसा बचाएं. उन्होंने टैरिफ के भिड़ का छत्ता छेड़ दिया है ताकि दूसरे देश अमेरिकी माल पर उतना ही टैक्स लगाएं जितना दूसरे देशों के सामान पर अमेरिका में लगता रहा है. वे बारबार अमेरिका में ज्यादा जौब्स, सस्ता सामान, कारखानों की बात कर रहे हैं. वे पुतिन और मोदी की तरह धर्म और युद्ध में पैसा बरबाद करने की बात नहीं कर रहे.

भारतीय नेता उन के मृत अर्थव्यवस्था बयान से चिढ़े हुए हैं क्योंकि वे जानते हैं कि जो भी भारत की अर्थव्यवस्था में दिख रहा है वह उस पैसों के चलते है जो विदेशों में भारतीय मूल के मजदूर 12-14 घंटे काम कर कमा व अपने भूखे परिवारों को भारत में भेज रहे हैं. हमारी उन्नति तो केवल धर्मस्थलों में दिख रही है जहां भीड़ बढ़ गई है क्योंकि मौजूदा भगवा सरकार भरपूर प्रचार कर लोगों को तीर्थों, मंदिरों, पहाड़ों के मंदिरों, अविश्वसनीय चिकित्सा व्यवस्थाओं की ओर धकेल रही है. यह 1947 से पहले का जमाना है जो लौट रहा है.

वर्ष 1947 से पहले अंगरेजों को सिर्फ भारत से सैनिक चाहिए होते थे जिन का इस्तेमाल वे अपने छोटे से द्वीप और उस के पचासियों उपनिवेशों की रक्षा में करते थे. हमारी अर्थव्यवस्था लगभग मरी हुई थी. आज अगर विदेशों से आए मजदूरों के पसीने के पैसों को छोड़ दें तो हमारी अर्थव्यवस्था मरी हुई ही समझ. हे राम!  Donald Trump

Election Commission Of India : वोट का अधिकार

Election Commission Of India : चुनाव आयोग ने अपनी प्रैस कौन्फ्रैंस में एक ऐसा पैंतरा फेंका जो हर सरकारी कारिन्दा अकसर फेंकता है. यह पैंतरा है अपनी गलती होते हुए भी गलती न मानना बल्कि दूसरे को गलत ठहरा देना. गलत तो हमेशा नागरिक होता है और सरकार ने गलती की भी है तो यह नागरिक का दायित्व है कि वह उसे ठीक कराए, सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे, फौर्म दर फौर्म भरे, दस्तावेज संलग्न करे.

देश के संविधान के मुताबिक, चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह सही ढंग से चुनाव कराए कि देश का कोई वोटर वोट देने से वंचित न रह जाए. लेकिन चुनाव आयोग एक आम टैक्स विभाग और पुलिस विभाग की तरह कहने लगा है कि उस का काम सुविधा देने का नहीं, बस, प्लेटफौर्म बनाने का है. उक्त प्लेटफौर्म में वह मनमाने नियमों के अनुसार नागरिक को जबरन धक्के खाते हुए मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए फोर्स करता है.

17 अगस्त को चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार गुप्ता एक तानाशाह अफसर की तरह प्रैस को संबोधित करते हुए बारबार अपनी गलतियों को स्वीकार न करते हुए उन की जिम्मेदारी नागरिकों पर डालते रहे.

अगर मतदाता सूची चुनाव आयोग के अफसरों ने घरघर जा कर बनाई तो उस में गलती हुई ही क्यों? अगर गलती है तो चुनाव आयोग के अफसर क्यों न सजा पाएं? मतदान के हक को छीनने के अपराध को हत्या के अपराध की तरह क्यों न माना जाए, चाहे वह चुनाव आयोग के अफसर द्वारा छीना गया हो? देश की जमीन, नदियों, संपत्ति, पहाड़ों, पेड़ों, कंपनियों, न्यायालयों, रेलों आदि को चलाने की नीतियां बनाने के लिए उन की मालिक जनता चुनाव के जरिए नेताओं को सिर्फ प्रबंध करने का अवसर सौंपती है. चुनाव आयोग कोई संपत्ति का हस्तांतरण नहीं करता.

लेकिन चुनाव आयोग की प्रैस कौन्फ्रैंस साफ दर्शाती है कि लोकतंत्र की ‘नसबंदी’ किए जाने की पूरी कोशिश की जा रही है और जनता को चुनाव के समय यह सम?ाया जा रहा है कि वोट देना तो केवल मात्र एक टोकन है, वरना जनता तो उतनी ही गुलाम है जितनी 1947 से पहले थी, अंगरेजों व मुगलों के जमाने में थी, रामायण, महाभारत और पुराणों की कहानियों में थी.

जनता का फर्ज चुनने के हक पर आंच न आने देने का है. यह सब से बड़ा हक है. यही हक उस के बाकी हकों की सुरक्षा करता है. जिस दिन यह हक छिन गया उस दिन से जनता की न अपनी संपत्ति का हक बचेगा, न नौकरी का, न शिक्षा का, न स्वास्थ्य का, न घूमनेफिरने का और न ही बोलने का. सरकार की आलोचना करने के हक को तो भूल ही जाएं. अभी इस वोट के हक को चुनाव आयोग छीन रहा है, खुल्लमखुल्लाElection Commission Of India

Hindi Love Stories : सायोनारा – उस दिन क्या हुआ था अंजू और देव के बीच ?

Hindi Love Stories : उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

देव ने वहीं बिष्टुपुर के केएमपीएस स्कूल से पढ़ाई की थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई उस ने झारखंड की राजधानी रांची के बिलकुल निकट बीआईटी मेसरा से की थी. उसी कालेज में कैंपस से ही टाटा स्टील में उसे नौकरी मिल गई थी. वैसे उस के पास और भी औफर थे, पर बचपन से इस औद्योगिक नगर में रहा था. यहां की साफसुथरी कालोनी, दलमा की पहाड़ी, स्वर्णरेखा नदी और जुबली पार्क से उसे बहुत लगाव था और सर्वोपरी मातापिता का सामीप्य.

खरकाई नदी के पार आदित्यपुर में उस के पापा का बड़ा सा था. पर सोनारी की कालोनी में कंपनी ने देव को एक औफिसर्स फ्लैट दे रखा था. आदित्यपुर की तुलना में यह प्लांट के काफी निकट था और उस की शिफ्ट ड्यूटी भी होती थी. महीने में कम से कम 1 सप्ताह तो नाइट शिफ्ट करनी ही पड़ती थी, इसलिए वह इसी फ्लैट में रहता था. बाद में उस के पापामम्मी भी साथ में रहने लगे थे. पापा की दुकान बिष्टुपुर में थी जो यहां से समीप ही था. आदित्यपुर वाले मकान के एक हिस्से को उन्होंने किराए पर दे दिया था.

इसी बीच टाटा स्टील का आधुनिकीकरण प्रोजैक्ट आया था. जापान की निप्पन स्टील की तकनीकी सहायता से टाटा कंपनी अपनी नई कोल्ड रोलिंग मिल और कंटिन्युअस कास्टिंग शौप के निर्माण में लगी थी. देव को भी कंपनी ने शुरू से इसी प्रोजैक्ट में रखा था ताकि निर्माण पूरा होतेहोते नई मशीनों के बारे में पूरी जानकारी हो जाए. निप्पन स्टील ने कुछ टैक्निकल ऐक्सपर्ट्स भी टाटा भेजे थे जो यहां के वर्कर्स और इंजीनियर्स को ट्रेनिंग दे सकें. ऐक्सपर्ट्स के साथ दुभाषिए (इंटरप्रेटर) भी होते थे, जो जापानी भाषा के संवाद को अंगरेजी में अनुवाद करते थे. इन्हीं इंटरप्रेटर्स में एक लड़की थी अंजु. वह लगभग 20 साल की सुंदर युवती थी. उस की नाक आम जापानी की तरह चपटी नहीं थी. अंजु देव की टैक्निकल टीम में ही इंटरप्रेटर थी. वह लगभग 6 महीने टाटा में रही थी. इस बीच देव से उस की अच्छी दोस्ती हो गई थी. कभी वह जापानी व्यंजन देव को खिलाती थी तो कभी देव उसे इंडियन फूड खिलाता था. 6 महीने बाद वह जापान चली गई थी.

देव उसे छोड़ने कोलकाता एअरपोर्ट तक गया था. उस ने विदा होते समय 2 उपहार भी दिए थे. एक संगमरमर का ताजमहल और दूसरा बोधगया के बौद्ध मंदिर का बड़ा सा फोटो. उपहार पा कर वह बहुत खुश थी. जब वह एअरपोर्ट के अंदर प्रवेश करने लगी तब देव ने उस से हाथ मिलाया और कहा, ‘‘बायबाय.’’

अंजु ने कहा, ‘‘सायोनारा,’’ और फिर हंसते हुए हाथ हिलाते हुए सुरक्षा जांच के लिए अंदर चली गई.

कुछ महीनों के बाद नई मशीनों का संचालन सीखने के लिए कंपनी ने देव को जापान स्थित निप्पन स्टील प्लांट भेजा. जापान के ओसाका स्थित प्लांट में उस की ट्रेनिंग थी. उस की भी 6 महीने की ट्रेनिंग थी. इत्तफाक से वहां भी इंटरप्रेटर अंजु ही मिली. वहां दोनों मिल कर काफी खुश थे. वीकेंड में दोनों अकसर मिलते और काफी समय साथ बिताते थे.

देखतेदेखते दोस्ती प्यार में बदलने लगी. देव की ट्रेनिंग खत्म होने में 1 महीना रह गया तो देव ने अंजु से पूछा, ‘‘यहां आसपास कुछ घूमने लायक जगह है तो बताओ.’’

हां, हिरोशिमा ज्यादा दूर नहीं है. बुलेट ट्रेन से 2 घंटे से कम समय में पहुंचा जा सकता है.

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं वहां जाना चाहूंगा. द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने पहला एटम बम वहीं गिराया था.’’

‘‘हां, 6 अगस्त, 1945 के उस मनहूस दिन को कोई जापानी, जापानी क्या पूरी दुनिया नहीं भूल सकती है. दादाजी ने कहा था कि करीब 80 हजार लोग तो उसी क्षण मर गए थे और आने वाले 4 महीनों के अंदर ही यह संख्या लगभग 1 करोड़ 49 लाख हो गई थी.’’

‘‘हां, यह तो बहुत बुरा हुआ था… दुनिया में ऐसा दिन फिर कभी न आए.’’

अंजु बोली, ‘‘ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं. परसों ही तो 6 अगस्त है. वहां शांति के लिए जापानी लोग इस दिन हिरोशिमा में प्रार्थना करते हैं.’’

2 दिन बाद देव और अंजु हिरोशिमा गए. वहां 2 दिन रुके. 6 अगस्त को मैमोरियल पीस पार्क में जा कर दोनों ने प्रार्थना भी की. फिर दोनों होटल आ गए. लंच में अंजु ने अपने लिए जापानी लेडी ड्रिंक शोचूं और्डर किया तो देव की पसंद भी पूछी.

देव ने कहा, ‘‘आज मैं भी शोचूं ही टेस्ट कर लेता हूं.’’

दोनों खातेपीते सोफे पर बैठे एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि एकदूसरे की सांसें और दिल की धड़कनें भी सुन सकते थे.

अंजु ने ही पहले उसे किस किया और कहा, ‘‘ऐशिते इमासु.’’

देव इस का मतलब नहीं समझ सका था और उस का मुंह देखने लगा था.

तब वह बोली, ‘‘इस का मतलब आई लव यू.’’

इस के बाद तो दोनों दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए थे. दोनों कब 2 से 1 हो गए किसी को होश न था.

जब दोनों अलग हुए तब देव ने कहा, ‘‘अंजु, तुम ने आज मुझे सारे जहां की खुशियां दे दी हैं… मैं तो खुद तुम्हें प्रपोज करने वाला था.’’

‘‘तो अब कर दो न. शर्म तो मुझे करनी थी और शरमा तुम रहे थे.’’

‘‘लो, अभी किए देता हूं. अभी तो मेरे पास यही अंगूठी है, इसी से काम चल जाएगा.’’

इतना कह कर देव अपने दाहिने हाथ की अंगूठी निकालने लगा.

अंजू ने उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘तुम ने कहा और मैं ने मान लिया. मुझे तुम्हारी अंगूठी नहीं चाहिए. इसे अपनी ही उंगली में रहने दो.’’

‘‘ठीक है, बस 1 महीने से भी कम समय बचा है ट्रेनिंग पूरी होने में. इंडिया जा कर मम्मीपापा को सब बताऊंगा और फिर तुम भी वहीं आ जाना. इंडियन रिवाज से ही शादी के फेरे लेंगे,’’ देव बोला.

अंजू बोली, ‘‘मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा.’’

ट्रेनिंग के बाद देव इंडिया लौट आया. इधर उस की गैरहाजिरी में उस के पापा ने उस के लिए एक लड़की पसंद कर ली थी. देव भी उस लड़की को जानता था. उस के पापा के अच्छे दोस्त की लड़की थी. घर में आनाजाना भी था. लड़की का नाम अजिंदर था. वह भी पंजाबिन थी. उस के पिता का भी टाटा में ही बिजनैस था. पर बिजनैस और सट्टा बाजार दोनों में बहुत घाटा होने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

अजिंदर अपनी बिरादरी की अच्छी लड़की थी. उस के पिता की मौत के बाद देव के मातापिता ने उस की मां को वचन दिया था कि अजिंदर की शादी अपने बेटे से ही करेंगे. देव के लौटने के बाद जब उसे शादी की बात बताई गई तो उस ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया.

उस की मां ने उस से कहा, ‘‘बेटे, अजिंदर की मां को उन की दुख की घड़ी में यह वचन दिया था ताकि बूढ़ी का कुछ बोझ हलका हो जाए. अभी भी उन पर बहुत कर्ज है… और फिर अजिंदर को तो तुम भी अच्छी तरह जानते हो. कितनी अच्छी है. वह ग्रैजुएट भी है.’’

‘‘पर मां, मैं किसी और को पसंद करता हूं… मैं ने अजिंदर को कभी इस नजर से नहीं देखा है.’’

इसी बीच उस के पापा भी वहां आ गए. मां ने पूछा, ‘‘पर हम लोगों को तो अजिंदर में कोई कमी नहीं दिखती है… अच्छा जरा अपनी पसंद तो बता?’’

‘‘मैं उस जापानी लड़की अंजु से प्यार

करता हूं… वह एक बार हमारे घर भी आई थी. याद है न?’’

देव के पिता ने नाराज हो कर कहा, ‘‘देख देव, उस विदेशी से तुम्हारी शादी हमें हरगिज मंजूर नहीं. आखिर अजिंदर में क्या कमी है? अपने देश में लड़कियों की कमी है क्या कि चल दिया विदेशी लड़की खोजने? हम ने उस बेचारी को वचन दे रखा है. बहुत आस लगाए बैठी हैं मांबेटी दोनों.’’

‘‘पर पापा, मैं ने भी…’’

उस के पापा ने बीच में ही उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘कोई परवर नहीं सुननी है हमें. अगर अपने मम्मीपापा को जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें अजिंदर से शादी करनी ही होगी.’’

थोड़ी देर तक सभी खामोश थे. फिर देव के पापा ने आगे कहा, ‘‘देव, तू ठीक से सोच ले वरना मेरी भी मौत अजिंदर के पापा की तरह निश्चित है, और उस के जिम्मेदार सिर्फ तुम होगे.’’

देव की मां बोलीं, ‘‘छि…छि… अच्छा बोलिए.’’

‘‘अब सबकुछ तुम्हारे लाड़ले पर है.’’ कह कर देव के पापा वहां से चले गए.

न चाहते हुए भी देव को अपने पापामम्मी की बात माननी पड़ी थी.

देव ने अपनी पूरी कहानी और मजबूरी अंजु को भी बताई तो अंजु ने कहा था कि ऐसी स्थिति में उसे अजिंदर से शादी कर लेनी चाहिए.

अंजु ने देव को इतनी आसानी से मुक्त तो कर दिया था, पर खुद विषम परिस्थिति में फंस चुकी थी. वह देव के बच्चे की मां बनने वाली थी. अभी तो दूसरा महीना ही चला था. पर देव को उस ने यह बात नहीं बताई थी. उसे लगा था कि यह सुन कर देव कहीं कमजोर न पड़ जाए.

अगले महीने देव की शादी थी. देव ने उसे भी सपरिवार आमंत्रित किया था. लिखा था कि हो सके तो अपने पापामम्मी के साथ आए. अंजु ने लिखा था कि वह आने की पुरजोर कोशिश करेगी. पर उस के पापामम्मी का तो बहुत पहले ही तलाक हो चुका था. वह नानी के यहां पली थी.

देव की शादी में अंजु आई, पर उस ने अपने को पूरी तरह नियंत्रित रखा. चेहरे पर कोई गिला या चिंता न थी. पर देव ने देखा कि अंजु को बारबार उलटियां आ रही थीं.

उस ने अंजु से पूछा, ‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

अंजु बोली, ‘‘हां तबीयत तो ठीक है… कुछ यात्रा की थकान है और कुछ पार्टी के हैवी रिच फूड के असर से उलटियां आ रही हैं.’’

शादी के बाद उस ने कहा, ‘‘पिछली बार मैं बोधगया नहीं जा सकी थी, इस बार वहां जाना चाहती हूं. मेरे लिए एक कैब बुक करा दो.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बड़ी गाड़ी बुक कर लेता हूं. अजिंदर और मैं भी साथ चलते हैं.’’

अगले दिन सुबहसुबह देव, अजिंदर और अंजु तीनों गया के लिए निकल गए. अंजु ने पहले से ही दवा खा ली थी ताकि रास्ते में उलटियां न हों. दोपहर के कुछ पहले ही वे लोग वहां पहुंच गए. रात में होटल में एक ही कमरे में रुके थे तीनों हालांकि अंजु ने बारबार अलग कमरे के लिए कहा था. अजिंदर ने ही मना करते कहा था, ‘‘ऐसा मौका फिर मिले न मिले. हम लोग एक ही रूम में जी भर कर गप्प करेंगे.’’

अंजु गया से ही जापान लौट गई थी. देव और अजिंदर एअरपोर्ट पर विदा करने गए थे. एअरपोर्ट पर देव ने जब बायबाय कहा तो फिर अंजु ने हंस कर कहा, ‘‘सायोनारा, कौंटैक्ट में रहना.’’

समय बीतता गया. अजिंदर को बेटा हुआ था और उस के कुछ महीने पहले अंजु को बेटी हुई थी. उस की बेटी का रंग तो जापानियों जैसा बहुत गोरा था, पर चेहरा देव का डुप्लिकेट. इधर अजिंदर का बेटा भी देखने में देव जैसा ही था. देव, अजिंदर और अंजु का संपर्क इंटरनैट पर बना हुआ था. देव ने अपने बेटे की खबर अंजु को दे रखी थी पर अंजु ने कुछ नहीं बताया था. देव अपने बेटे शिवम का फोटो नैट पर अंजु को भेजता रहता था. अंजु भी शिवम के जन्मदिन पर और अजिंदर एवं देव की ऐनिवर्सरी पर गिफ्ट भेजती थी.

देव जब उस से पूछता कि शादी कब करोगी तो कहती मेरे पसंद का लड़का नहीं मिल रहा या और किसी न किसी बहाने टाल देती थी.

एक बार देव ने अंजु से कहा, ‘‘जल्दी शादी करो, मुझे भी गिफ्ट भेजने का मौका दो. आखिर कब तक वेट करोगी आदर्श पति के लिए?’’

अंजु बोली, ‘‘मैं ने मम्मीपापा की लाइफ से सीख ली है. शादीवादी के झंझट में नहीं पड़ना है, इसलिए सिंगल मदर बनूंगी. एक बच्ची को कुछ साल हुए अपना लिया है.’’

‘‘पर ऐसा क्यों किया? शादी कर अपना बच्चा पा सकती थी?’’

‘‘मैं इस का कोई और कारण नहीं बता सकती, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तुम जो ठीक समझो. बेबी का नाम बताओ?’’

‘‘किको नाम है उस का. इस का मतलब भी बता देती हूं होप यानी आशा. मेरे जीवन की एकमात्र आशा किको ही है.’’

‘‘ओके उस का फोटो भेजना.’’

‘‘ठीक है, बाद में भेज दूंगी.’’

‘‘समय बीतता रहा. देव और अंजु दोनों के बच्चे करीब 7 साल के हो चुके थे. एक दिन अंजु का ईमेल आया कि वह 2-3 सप्ताह के लिए टाटा आ रही है. वहां प्लांट में निप्पन द्वारा दी मशीन में कुछ तकनीकी खराबी है. उसी की जांच के लिए निप्पन एक ऐक्सपर्ट्स की टीम भेज रही है जिस में वह इंटरप्रेटर है.’’

अंजु टाटा आई थी. देव और अजिंदर से भी मिली थी. शिवम के लिए ढेर सारे गिफ्ट्स लाई थी.

‘‘किको को क्यों नहीं लाई?’’ देव ने पूछा.

‘‘एक तो उतना समय नहीं था कि उस का वीजा लूं, दूसरे उस का स्कूल… उसे होस्टल में छोड़ दिया है… मेरी एक सहेली उस की देखभाल करेगी इस बीच.’’

अंजु की टीम का काम 2 हफ्ते में हो गया. अगले दिन उसे जापान लौटना था. देव ने उसे डिनर पर बुलाया था.

अगली सुबह वह ट्रेन से कोलकाता जा रही थी, तो देव और अजिंदर दोनों स्टेशन पर छोड़ने आए थे. अंजु जब ट्रेन में बैठ गई तो उस ने अपने बैग से बड़ा सा गिफ्ट पैक निकाल कर देव को दिया.

‘‘यह क्या है? आज तो कोई बर्थडे या ऐनिवर्सरी भी नहीं है?’’ देव ने पूछा.

अंजु ने कहा, ‘‘इसे घर जा कर देखना.’’

ट्रेन चली तो अंजु हाथ हिला कर बोली, ‘‘सायोनारा.’’

अजिंदर और देव ने घर जा कर उस पैकेट को खोला. उस में एक बड़ा सा फ्रेम किया किको का फोटो था. फोटो के नीचे लिखा था, ‘‘हिरोशिमा का एक अंश.’’

देव और अजिंदर दोनों कभी फोटो को देखते तो कभी एकदूसरे को प्रश्नवाचक नजरों से. शिवम और किको बिलकुल जुड़वा लग रहे थे. फर्क सिर्फ चेहरे के रंग का था. Hindi Love Stories  

Family Story : वापसी – तृप्ती अमित के पास वापस क्यों लौट आई ?

Family Story : मैं अटैची लिए औटो में बैठ गई. करीब 1 महीने बाद अपने पति अमित के पास लौट रही थी. मुझे विदा करते मम्मीडैडी की आंखों में खुशी के आंसू थे. मैं ने रास्ते में औटो रुकवा कर एक गुलदस्ता और कार्ड खरीदा. कार्ड पर मैं ने अपनी लिखावट बदल कर लिखा, ‘हैपी बर्थडे, सीमा’ और फिर औटो में बैठ घर चल. सीमा मेरा ही नाम है यानी गुलदस्ता मैं ने खुद के पैसे खर्च कर अपने लिए ही खरीदा था. दरअसल, पटरी से उतरी अपने विवाहित जीवन की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए इनसान को कभीकभी ऐसी चालाकी भी करनी पड़ती है. पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई थी. मम्मीपापा का सोचना था कि उसे ससुराल जाते देख कर मैं ने अपने घर अमित के पास लौटने का फैसला किया. उन का यह सोचना पूरी तरह गलत है. सचाई यह है कि मैं अमित के पास परसों रात एक तेज झटका के बाद लौट रही हूं.

मुझे सामने खड़ी देख कर अमित हक्केबक्के रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं बिना कोई सूचना दिए यों अचानक घर लौट आऊंगी.

मैं मुसकराते हुए उन के गले लग कर बोली, ‘‘इतना प्यार गुलदस्ता भिजवाने के लिए थैंक यू, माई लव.’’

उन के गले लग कर मेरे तनमन में गुदगुदी की तेज लहर दौड़ गई थी. मन एकदम से खिल उठा था. सचमुच, उस पल की सुखद अनुभूति ने मुझे विश्वास दिला दिया कि वापस लौट आने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

‘‘तुम्हें यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ उन की आवाज में नाराजगी के भाव मौजूद थे.

‘‘अब शरमा क्यों रहे हो? लो, आप से पहले मैं स्वीकार कर लेती हूं कि आज सुबह उठने के बाद से मैं आप को बहुत मिस कर रही थी. वैसे एक सवाल का जवाब दो. अगर मैं यहां न आती तो क्या आप आज के दिन भी मुझ से मिलने नहीं आते? क्या सिर्फ गुलदस्ता भेज कर चुप बैठ जाते?’’

‘‘यार, यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ वे एकदम से चिड़ उठे, ‘‘और रही बात तुम से मिलने आने की तो तुम मुझे नाराज कर के मायके भागी थीं. फिर मैं क्यों तुम से मिलने आता?’’

‘‘चलो, मान लिया कि आप ने यह गुलदस्ता नहीं भेजा है, पर क्या आप को खुशी भी नहीं हुई है मुझे घर आया देख कर? झूठ ही सही, पर कम से कम एक बार तो कह दो कि सीमा, वैलकम बैक.’’

‘‘वैलकम बैक,’’ उन्हें अब अपनी हंसी रोकने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘आई लव यू, माई डार्लिंग. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘अगर आप ने नहीं भेजा है, तो फिर यह गुलदस्ता मुझे किस ने गिफ्ट किया है?’’

‘‘यह तो तुम ही बता सकती हो. मुझ से दूर रह कर किस के साथ चक्कर चला रही हो?’’

‘‘मैं आप की तरह अवैध रिश्ता बनाने में विश्वास नहीं रखती हूं. बस, जिंदगी में जिस एक बार दिल दे दिया, सो दे दिया.’’

‘‘अवैध प्रेम करने का शौक मुझे भी नहीं है, पर यह बात तुम्हारे शक्की मन में कभी नहीं घुसेगी,’’ वे एकदम नाराज हो उठे.

‘‘देखोजी, मैं तो इस मुद्दे को ले कर कभी झगड़ा न करने का फैसला कर के लौटी हूं. इसलिए मुझे उकसाने की आप की सारी कोशिशें अब बेकार जाने वाली हैं,’’ उन का गुस्सा कम करने के लिहाज से मैं प्यार भरे अंदाज में मुसकरा उठी.

‘‘तुम तो 1 महीने में ही बहुत समझदार हो गई हो.’’

‘‘यह आप सही कह रहे हो.’’

‘‘मैं क्या सही कह रहा हूं?’’

‘‘यही कि एक महीना आप से दूर रह कर मेरी अक्ल ठिकाने आ गई है.’’

‘‘तुम तो सचमुच बदल गई हो वरना तुम ने कब अपने को कभी गलत माना है,’’ वे सचमुच बहुत हैरान नजर आ रहे थे.

‘‘अब क्या सारा दिन हम ऐसी ही बेकार बातें करते रहेंगे? यह मत भूलिए कि आज आप की जीवनसंगिनी का जन्मदिन है,’’ मैं ने रूठने का अच्छा अभिनय किया.

‘‘तुम कौन सा मुझे बता कर लौटी हो, जो मैं तुम्हारे लिए एक भव्य पार्टी का आयोजन कर के रखता,’’ वे मुझ पर कटाक्ष करने का मौका नहीं चूके.

‘‘पतिदेव, जरा व्यंग्य और दिल दुखाने वाली बातों पर अपनी पकड़ कमजोर करो, प्लीज. आज रविवार की छुट्टी है और मेरा जन्मदिन भी है. आप का क्या बिगड़ जाएगा अगर मुझे आज कुछ मौजमस्ती करा दोगे? साहब, प्यार से कहीं घुमाफिरा लाओ… कोई बढि़या सा गिफ्ट दे दो,’’ मैं भावुक हो उठी थी. कुछ पलों की खामोशी के बाद वे बोले, ‘‘वह सब बाद में होगा. पहले सोच कर यह बताओ कि यह गुलदस्ता तुम्हें किस ने भेजा होगा.’’ मैं ने भी फौरन सोचने की मुद्रा बनाई और फिर कुछ पलों के बाद बोली, ‘‘भेजना आप को चाहिए था, पर आप ने नहीं भेजा है…तो यह काम विकास का हो सकता है.’’

‘‘कौन है यह विकास?’’ वे हैरान से नजर आ रहे थे, क्योंकि उन्हें अंदाजा नहीं था कि मैं किसी व्यक्ति का नाम यों एकदम से ले दूंगी. ‘‘पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई है. यह विकास उस के बड़े भाई का दोस्त है.’’

‘‘आगे बोलो.’’

‘‘आगे क्या बोलूं? पति से दूर रह रही स्त्री को हर दिलफेंक किस्म का आदमी अपना आसान शिकार मानता है. वह भी मुझ पर लाइन मार रहा था, पर मैं आप की तरह…सौरी… मैं कमजोर चरित्र वाली लड़की नहीं हूं. उस ने ही कोशिश नहीं छोड़ी होगी और मुझे अपने प्रेमजाल में फंसाने को यह गुलदस्ता भेज दिया होगा. मैं अभी इसे बाहर फेंकती हूं,’’ आवेश में आ कर मैं ने अपना चेहरा लाल कर लिया. ‘‘अरे, यों तैश में आ कर इसे बाहर मत फेंको. कोई पक्का थोड़े ही है कि उसी कमीने ने इसे भेजा होगा.’’

‘‘यह भी आप ठीक कह रहे हो. तो एक काम करते हैं,’’ मैं उन की आंखोें में प्यार से देखने लगी थी.

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘आप इस से ज्यादा प्यारा और ज्यादा बड़ा एक गुलदस्ता मुझे भेंट कर दो. उसे पा कर मैं खुश भी बहुत हो जाऊंगी और अगर इसे विकास ने ही भेजा होगा, तो इस की अहमियत भी बिलकुल खत्म हो जाएगी.’’

‘‘तुम तो यार सचमुच समझदार बन कर लौटी हो,’’ उन्होंने इस बार ईमानदार लहजे में मेरी तारीफ की.

‘‘सच?’’

‘‘हां, अभी तक तो तुम्हारे अंदर आया बदलाव सच ही लग रहा है.’’

‘‘तो इसी बात पर बाहर लंच करा दो,’’ मैं ने आगे बढ़ कर उन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नो प्रौब्लम, स्वीटहार्ट. मैं नहा लेता हूं. फिर घूमने चलते हैं.’’ फिर जब कुछ देर बाद मैं उन के मांगने पर तौलिया पकड़ाने गई, तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गुसलखाने के अंदर खींच लिया. मेरा मन तो चाह ही रहा था कि ऐसा कुछ हो जाए. 1 महीने की दूरी की कड़वाहट को मिटाने का काम सिर्फ बातों से नहीं हो सकता था. अत: उन की बांहों में कैद हो कर मेरा उन के साथ मस्त अंदाज में नहाना हम दोनों की मनमुटाव की कड़वाहट को एक झटके में साफ कर गया था. वे मुझे गोद में उठा कर शयनकक्ष में ले आए… प्यार के क्षण लंबे होते गए, क्योंकि महीने भर की प्यास जो हम दोनों को बुझानी थी. बाद में मैं ने उन से लिपट कर तृप्ति भरी गहरी नींद का आनंद लिया.

जब 2 घंटे बाद मेरी आंखें खुलीं तो मैं खुद को बहुत हलकाफुलका महसूस कर रही थी. मन में पिछले 1 महीने से बसी सारी शिकायतें दूर हो गई थीं. मुझे परसों रात को विकास के साथ घटी वह घटना याद आने लगी जिस के कारण मैं खुद ही अमित के पास लौट आई थी. परसों रात मैं तो विकास के सामने एकदम से कमजोर पड़ गई थी. कविता की शादी में हम दोनों खूब काम कर रहे थे. हमारे बीच होने वाली हर मुलाकात में उस ने मेरी सुंदरता व गुणों की तारीफ करकर के मुझे बहुत खुश कर दिया था. लेकिन मुझे यह एहसास नहीं हुआ था कि अमित से दूर रहने के कारण मेरा परेशान व प्यार को प्यासा मन उस के मीठे शब्दों को सुन कर भटकने को तैयार हो ही गया था. मैं उस रात कविता के घर की छत पर बने कमरे से कुछ लाने गई थी. तब विकास मेरे पीछेपीछे दबे पांव वहां आ गया. दरवाजा बंद होने की आवाज सुन कर मैं मुड़ी तो वह सामने खड़ा नजर आया. उस की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़ कर मैं बुरी तरह घबरा गई. मेरा सारा शरीर थरथर कांपने लगा.

‘‘विकास, तुम मेरे पास मत आना. देखो, मैं शादीशुदा औरत हूं…मेरे हंसनेबोलने का तुम गलत अर्थ लगा रहे हो…मैं वैसी औरत नहीं हूं…’’ उस ने मेरे कहने की रत्ती भर परवाह न कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘प्लीज, मुझे जाने दो…छोड़ो मुझे,’’ मैं उस से ऐसी प्रार्थना जरूर कर रही थी पर इस में भी कोई शक नहीं कि मुझे उस की नाजायज हरकत पर तेज गुस्सा नहीं आया था. उस कमरे के साथ बालकनी न जुड़ी होती तो न जाने उस रात क्या हो जाता. उस बालकनी में 2 किशोर लड़के गपशप कर रहे थे. अगर ऐन वक्त पर उन दोनों की हंसने की आवाजें हमारे कानों तक न आतीं, तो विकास थोड़ी सी जोरजबरदस्ती कर मेरे साथ अपने मन की करने में सफल हो जाता. उस की पकड़ ढीली पड़ते ही मैं कमरे से जान बचा कर भाग निकली थी. मैं सीधी अपने घर पहुंची और बिस्तर पर गिर कर खूब देर तक रोई थी. बाद में कुछ बातें मुझे बड़ी आसानी से समझ में आ गई थीं. मुझे बड़ी गहराई से यह एहसास हुआ कि अमित के साथ और उस से मिलने वाले प्यार की मेरे तनमन को बहुत जरूरत है. वे जरूरतें अगर अमित से नहीं पूरी होंगी तो मेरा प्यासा मन भटक सकता है और किसी स्त्री के यों भटकते मन को सहारा देने वाले आशिकों की आजकल कोई कमी नहीं.

तब मैं ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने में जरा भी देर नहीं लगाई थी. किसी विकास जैसे इनसान को प्रेमी बना कर अपनी इज्जत को दांव पर लगाने से बेहतर मुझे अमित के पास लौटने का विकल्प लगा. मैं मायके में रहने इसलिए आई थी, क्योंकि मुझे शक था कि औफिस में उस के साथ काम करने वाली रितु के साथ अमित के गलत संबंध हैं. वे हमेशा ऐसा कुछ होने से इनकार करते थे पर जब उन्होंने उस के यहां मेरे बारबार मना करने पर भी जाना चालू रखा, तो मेरा शक यकीन में बदलता चला गया था.उस रात मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यों मायके भाग कर अमित से दूर हो जाना तो इस समस्या का कोई हल था ही नहीं. यह काम तो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा था. यों दूर रह कर तो मैं अकेले रह रहे अमित को रितु से मिलने के ज्यादा मौके उपलब्ध करा रही थी. तभी मैं ने अमित के पास लौट आने का फैसला कर लिया था और आज सुबह औटो कर के लौट भी आई थी.

कुछ देर तक सो रहे अमित के चेहरे को प्यार से निहारने के बाद मैं ने उन के कान में प्यार से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है, जनाब.’’

‘‘तो प्यार करना फिर से शुरू कर देता हूं, जानेमन,’’ नींद से निकलते ही उन के दिलोदिमाग पर मौजमस्ती हावी हो गई.

‘‘अभी तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं.’’

‘‘तो बोलो खाना खाने कहां चलें?’’

‘‘मेरा चाइनीज खाने का मन है.’’

‘‘तो चाइनीज खाने ही चलेंगे.’’

‘‘पहले से तो किसी के साथ कहीं जाने का कोई प्रोग्राम नहीं बना रखा है न?’’

‘‘तुम रितु के साथ मेरा कोई प्रोग्राम होने की तरफ इशारा कर रही हो न?’’ वे एकदम गंभीर नजर आने लगे.

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ मैं ने झूठ बोला.

‘‘झूठी,’’ उन्होंने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित करने के बाद संजीदा लहजे में कहा, ‘‘मैं तुम्हें आज फिर से बता देता हूं कि रितु के साथ मेरा कोई गलत चक्कर…’’

‘‘मुझे आप पर पूरा विश्वास है,’’ मैं ने उन्हें टोका और हंस कर बोली, ‘‘मैं तो आप को बस यों ही छेड़ रही थी.’’

‘‘तो अब इस जरा सा छेड़ने का परिणाम भी भुगतो,’’ उन्होंने मुझे अपने आगोश में भरने की कोशिश की जरूर, पर मैं ने बहुत फुरती दिखाते हुए खुद को बचाया और कूद कर पलंग से नीचे उतर आई.

‘‘भूखे पेट न भजन होता है, न प्यार, मेरे सरकार. अब फटाफट तैयार हो जाओ न.’’

‘‘ओके, पहले तुम्हारी पेट पूजा कर ही दी जाए नहीं तो प्यार का कार्यक्रम रुकावट के साथ ही चलेगा,’’ मेरी तरफ हवाई चुंबन उछाल कर वे तैयार होने को उठ गए. रितु को ले कर अमित के अडि़यल व्यवहार ने मुझे विकास की तरफ लगभग धकेल ही दिया था. अगर हमारा मनमुटाव मुझे गलत रास्ते पर धकेल सकता है, तो मैं अपने प्यार, सेवा और विश्वास के बल पर उन को अपनी तरफ खींच भी सकती हूं. उन की आंखों में अपने लिए गहरी चाहत और प्यार के भावों को पढ़ कर मुझे लग रहा कि बिना शर्त लौटने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.  Family Story

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