Download App

Romantic Story : पुनर्मिलन – प्रेमियों के लिए वैलेंटाइन डे बना खास

Romantic Story : वर्षों की दूरियों के बावजूद समीर और अवनी के दिलों में प्यार अब भी जिंदा था. अचानक हुई मुलाकात से दोनों की आंखों में बीते समय की यादें उमड़ पड़ी थीं. क्या वैलेंटाइन डे उन के लिए एक नई शुरुआत का संदेश ले कर आया था?

वैलेंटाइन डे की शाम थी और समीर और अवनी 5 वर्षों बाद अचानक एक कैफे में आमनेसामने थे, दोनों की आंखों में बीते वक्त की यादें उमड़ पड़ीं. हैरान हो कर समीर बोला, ‘‘अवनी, तुम यहां?’’
मुसकराने की कोशिश करती हुई अवनी बोली, ‘‘हां, सोचा, जरा कौफी पी लूं. लेकिन तुम?’’
हलकी सांस लेते हुए समीर बोला, ‘‘मैं भी बस यों ही आ गया, अकेले.’’
यह सुन कर अवनी थोड़ा रुकी, फिर बोल पड़ी, ‘‘अच्छा, तुम अब भी अकेले हो?’’
समीर ने बेबाकी से कहा, ‘‘हां, शायद तुम्हारे बाद किसी से जुड़ने की हिम्मत नहीं हुई. तुम कैसी हो?’’
अवनी थोड़ा भावुक हो कर बोली, ‘‘अच्छी हूं लेकिन कुछ अधूरी सी.’’
समीर चौंकते हुए बोला, ‘‘अधूरी, क्यों?’’
अवनी ने जवाब दिया, ‘‘तुम से दूर हो कर ऐसा लगा जैसे जिंदगी का सब से खूबसूरत हिस्सा कहीं छूट गया, शादी हुई, निभाने की कोशिश की, लेकिन…रिश्ते कागज़ी थे, दिल से नहीं.’’

समीर गहरी सांस लेते हुए बोला, ‘‘मुझे हमेशा अफसोस रहा कि हम ने एकदूसरे को यों ही खो दिया. अगर हम थोड़ा और सम झदारी से सोचते तो शायद जुदाई कभी न होती.’’

अवनी नम आंखों से बोली, ‘‘हां, वक्त ने हमें अलग किया, लेकिन शायद यह भी जरूरी था. हम दोनों ने बहुतकुछ सीखा. लेकिन एक बात कभी नहीं बदली, समीर, वह है मेरा प्यार.’’

समीर ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘क्या इस वैलेंटाइन डे पर हम फिर से एक नई शुरुआत कर सकते हैं?’’

जवाब में अवनी उस का हाथ थामती हुई, हलकी मुसकान के साथ बोली, ‘‘शायद समय ने हमें आज फिर से मिलाने के लिए ही यहां बुलाया है. हां, समीर, मैं फिर से तुम्हारे साथ चलना चाहती हूं, इस बार हमेशा के लिए.’’

दोनों की आंखों में गजब की खुशी और उन के चेहरों पर राहत थी. सालों की दूरियां मिट गईं और वैलेंटाइन डे ने फिर से ‘दो दिलों’ को एक कर दिया.

लेखक : संजय सिंह चौहान

Allahabad High Court : जमानत पर हैं तो क्यों नहीं जा सकते विदेश?

Allahabad High Court : किसी आरोपी को जमानत पर रिहा किए जाने पर अदालत कुछ शर्तें लगा सकती है, जैसे विदेश यात्रा पर जाने के लिए अदालत से अनुमति लेना वगैरह लेकिन सवाल यह है कि अदालत जब यात्रा के अधिकार को व्यक्तिगत आजादी का हिस्सा मानती है तो जमानत मिलने के बाद विदेश जाने पर रोक क्यों?

आदित्य मूर्ति उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में श्रीराम मूर्ति स्मारक आयुर्विज्ञान संस्थान में एडवाइजर हैं. वे एक दशक से अधिक समय से सीबीआई मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं. कोर्ट ने उन को जमानत दे रखी है. 22 मई, 2025 को आदित्य मूर्ति को अपने रिश्तेदार की शादी के लिए अमेरिका और उस के बाद शादी समारोह में हिस्सा लेने के लिए 3 मई से 22 मई, 2025 तक फ्रांस जाना चाहते थे. जमानत पर होने के कारण विदेश यात्रा करने के पहले उन को कोर्ट से आज्ञा लेनी है. आदित्य मूर्ति ने इस की एक अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की.

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने श्रीराम मूर्ति स्मारक आयुर्विज्ञान संस्थान, बरेली के परामर्शदाता आदित्य मूर्ति की याचिका को खारिज करते फैसला सुनाया कि विदेश में रिश्तेदार की शादी और दूसरे देश की मौजमस्ती के लिए यात्रा करना विचाराधीन आरोपी के लिए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा करने के लिए आवश्यक कारण नहीं माना जाता. जमानत पर रिहा किए गए आरोपी व्यक्ति को चिकित्सा उपचार, आवश्यक आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल होने और इसी तरह की किसी जरूरी आवश्यकता के लिए विदेश यात्रा की अनुमति दी जा सकती है.

उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि रिश्तेदार के विवाह समारोह में शामिल होना जरूरी आवश्यकता नहीं है. इस के अलावा, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस तर्क पर भी ध्यान दिया कि उसे पहले गैरआवश्यक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति दी गई थी.

पीठ ने कहा, ‘केवल इसलिए कि अधीनस्थ अदालत ने आवेदक को कई मौकों पर गैरआवश्यक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति दी थी, उसे इस बार भी गैरआवश्यक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा करने का अधिकार नहीं है, जब मुकदमा बचाव पक्ष के साक्ष्य के चरण में पहुंच गया है.’

आदित्य मूर्ति ने 24 अप्रैल, 2025 को विशेष सीबीआई अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिस ने विदेश यात्रा के लिए उन के आवेदन को खारिज कर दिया था. आदित्य मूर्ति एक दशक से अधिक समय से सीबीआई कोर्ट में एक मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं.

कानून में बदलाव की जरूरत

भारतीय कानून में जमानत की शर्त लगाना एक विवादास्पद मुद्दा है, जिस के तहत किसी आरोपी को विदेश यात्रा से पहले अदालत से पूर्व अनुमति लेनी होती है. अदालतों ने यात्रा के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग माना है, लेकिन वे कानूनी कार्यवाही के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रतिबंधों की आवश्यकता को भी स्वीकार करते हैं. विदेश यात्रा का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक प्रमुख पहलू माना जाता है.

आज भारत के 5 करोड़ 50 लाख से अधिक लोग विदेश में रहते हैं. इन के भारत में रह रहे नातेरिश्तेदारों में से तमाम ऐसे होंगे जिन के मुकदमे चल रहे होंगे. देश में किसी पर भी मुकदमा हो सकता है चाहे व्यक्ति ने अपराध किया हो या न.

कई बार अनजाने में हुई गलतियों के लिए भी मुकदमा हो जाता है. ये मुकदमें सालोंसाल चलते हैं. आंकड़ें बताते हैं कि 5 करोड़ से अधिक के मुकदमें विभिन्न कोर्टों में लंबित हैं. इस के अलावा एसडीएम, डीएम और कमिश्नर की कोर्ट में भी मुकदमें लंबित है. एक मुकदमे में करीब 8 लोग प्रभावित होते हैं. ऐसे में 40 करोड़ लोग सीधे तौर पर इन मुकदमों से प्रभावित हैं.

देश में जमानत की प्रक्रिया सरल नहीं है. जमानत के लिए दो जमानतदार की जरूरत पड़ती है. शहरों में रहने वालों के लिए जमानतदार खोजना कठिन काम होता है. कोई किसी की जमानत लेने को तैयार नहीं होता.

1860 में जब कानून बने थे उस समय मुकदमे कम होते थे. विदेश जाने की जरूरत नहीं होती थी. तब जमानत पर रिहा हुए व्यक्ति के लिए विदेश जाने का मसला बड़ा नहीं था. अब यह दौर बदल गया है. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि 2023 में जो नए कानून बनें उन में इस तरह के हालात को देखते हुए बदलाव किए जाएंगे.

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने 2023 में जब नए कानून संसद में पेश किए तो उन की बड़ी तारीफ की थी. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने देशभर में 3 नए आपराधिक कानूनों को जब लागू किया था तो बड़े जोरशोर से कहा था, ‘ये कानून दंड की जगह न्याय देने वाले और पीड़ित केंद्रित हैं.’

‘नए कानूनों में दंड की जगह न्याय को प्राथमिकता मिलेगी, देरी की जगह स्पीडी ट्रायल और स्पीडी जस्टिस मिलेगा और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होंगी. नए कानूनों को हर पहलू पर 4 वर्षों तक विस्तार से अलगअलग स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा कर के लाया गया है और आजादी के बाद से अबतक किसी भी कानून पर इतनी लंबी चर्चा नहीं हुई है.’

गृह मंत्री ने कहा कि आजादी के 77 वर्षों बाद भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली पूर्णतया स्वदेशी हो गई है. इन कानूनों के आधार में दंड की जगह न्याय, देरी की जगह त्वरित ट्रायल और त्वरित न्याय को रखा गया है. इस के साथ ही पहले के कानूनों में सिर्फ पुलिस के अधिकारों की रक्षा की गई थी लेकिन इन नए कानूनों में पीड़ितों और शिकायतकर्ता के अधिकारों की भी रक्षा करने का प्रावधान है.

उन्होंने कहा था कि इन तीन नए कानूनों के लागू होने से देश की पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय आत्मा दिखाई देगी. इन कानूनों में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिन से देश के नागरिकों को कई प्रकार के फायदे होंगे. इन कानूनों में अंगरेजों के समय विवाद में रहे कई प्रावधानों को हटा कर आज के समय के अनुकूल धाराएं जोड़ी गई हैं. इन कानूनों में भारतीय संविधान की स्पिरिट के अनुरूप धाराओं ओर अध्यायों की प्राथमिकता तय की गई है.

अब हकीकत आ रही सामने

जैसेजैसे नए कानून के प्रभाव देखने को मिल रहे हैं वैसेवैसे उन से साफ होता जा रहा है कि कानून में अभी भी समय के हिसाब से बदलाव नहीं हुए हैं. विदेश जाने का यह मसला इसी तरह के सुधार से जुड़ा है. आज हर शहर में इंटरनैशनल एयरपोर्ट है, जिस से पता चलता है कि कितने लोग विदेश जाते होंगे.

ऐसे में जमानत पर रिहा लोगों के लिए विदेश जाने के लिए कोर्ट से अनुमति लेने की जरूरत क्यों पड़ती है? जब जमानत मिलती है तो उस में यह जुड़ा होना चाहिए कि जमानत पर रिहा व्यक्ति विदेश जा सकता है.

बरुन चंद्र ठाकुर बनाम रयान औगस्टीन पिंटो केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक शर्त को बहाल कर दिया, जिस के तहत अभियुक्त को विदेश यात्रा के लिए पूर्व अनुमति लेनी होगी, इस बात पर बल देते हुए कि यात्रा का अधिकार महत्त्वपूर्ण है.

अदालतें विशिष्ट परिस्थितियों में विदेश यात्रा की अनुमति देती हैं. इन में चिकित्सा आपातस्थिति या रोजगार की जरूरतें प्रमुख हैं. न्यायालयों ने मामलों की परिस्थितियों के आधार पर शर्तों को संशोधित करने की इच्छा दिखाई है.

यदि किसी अभियुक्त ने लगातार जमानत की शर्तों का पालन किया है तो न्यायालय विदेश यात्रा के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता में ढील दे सकता है. यात्रा प्रतिबंधों सहित शर्तें लगाने के विवेक का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए. जो शर्तें बोझिल या अनुचित समझी जाती हैं, उन्हें उच्च न्यायालयों द्वारा रद्द किया जा सकता है. कानूनों में अभी भी ऐसे तमाम प्रावधान हैं जो नागरिक अधिकारों की रक्षा नहीं करते. जमानत कानून इस का एक उदाहरण है.

इस का प्रभाव हमारे घर, परिवार और बच्चों पर पड़ता है. वह भले ही सीधे तौर पर अपराध में शामिल न हो, लेकिन घर के प्रमुख पर जब अपराध में शामिल होने का आरोप लगता है तो पूरे घर का ढांचा बिगड़ जाता है. स्कूल जा रहे बच्चे पर भी उंगली उठती है जिस के पिता को पुलिस ने पकड़ कर जेल भेज दिया है. घरपरिवार चलाने के साथ ही साथ जमानत का इंतजाम करना बेहद कठिन काम होता है.

Hindi Kahani : इश्क का भूत – अपने भटकते कदम रोकते हुए युवक की सीख देती कहानी

Hindi Kahani : जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी. शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.

जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.

जब लौटती तो सहेलियों को अपने रोमांस के किस्से बता कर इंप्रैस करती. चूंकि उस की सहेलियां स्टडी में व्यस्त थीं, उन्हें तो अपने रिजल्ट की अधिक फिक्र रहती. वे उस की कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थीं.

इधर जीत भी पढ़ाई में पिछड़ता चला गया. उस का सारा वक्त शेफाली के बारे में ही सोचसोच कर निकल जाता. शेफाली के दिए गिफ्ट उसे भारी तोहफे नजर आते. वह उसे कभी टीशर्ट देती, कभी ब्रेसलेट तो कभी गौगल्स. वह खुद को हीरो से कम नहीं समझता. वह यही समझता कि शेफाली उस से विवाह करेगी और वह एक उद्योगपति का दामाद बन कर मालामाल हो जाएगा.

इधर शेफाली जीत संग आउटिंग पर थी, उधर उस के पापा अशोक ने प्राइवेट डिटैक्टिव से सारी जानकारी इकट्ठी करवा ली थी कि वह कहां जाती है, क्या करती है.

शेफाली के पापा अशोकजी ने जमाना देखा था. वे पल भर में सारा माजरा समझ गए थे. उन्हें समझ आ गया कि उन की लाडली महज दिलबहलाव कर रही है. पढ़ाई में उस का मन नहीं लग रहा.

जीत जिस तरह से बेझिझक शेफाली से तोहफे ले रहा था, इस से अशोकजी को यह भी समझ में आ गया कि इस लड़के में कोई स्वाभिमान नहीं है वरना वह इस तरह शेफाली की दी वस्तुएं न स्वीकारता. जीत का फंडा समझने में अशोकजी को ज्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि वे तो खुद व्यवसायी थे और जीत के प्रोफैशनल प्रेम को पहचान गए थे.

शेफाली के लिए उन्होंने विदेश से पढ़ाई कर के लौटा एमबीए लड़का विजय तलाश लिया था. शेफाली ने जब विजय को देखा तो देखती ही रह गई. वह स्टाइलिश और अमेरिकन अंगरेजी बोल रहा था. उसे जीत को भुला देने में एक मिनट भी नहीं लगा.

जीत देखता रह गया और शेफाली विजय के साथ शादी कर हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड चली गई.

इश्क का भूत तो धन की चमक के आगे एक पल भी नहीं ठहर पाया. वे आज के युवा ही क्या जो इश्क के लिए जिंदगी बरबाद करें. अलबत्ता जीत को संभलने में एक साल लगा, पर जबकि वह दिल से नहीं मतलब की खातिर शेफाली से जुड़ा था. अब उस के सामने अपनी युवा बहन की जिम्मेदारी थी. वह नहीं चाहता था कि कोई उस के चालचलन का हवाला दे कर उस की बहन के रिश्ते को मना करे. जीत की मां को यही तसल्ली थी कि उस का बेटा एक बेवफा के प्यार में ज्यादा नहीं भटका.

Family Story : पहला पहला प्यार – मां को कैसे हुआ अपने बेटे की पसंद का आभास

Family Story : ‘‘दा,तुम मेरी बात मान लो और आज खाने की मेज पर मम्मीपापा को सारी बातें साफसाफ बता दो. आखिर कब तक यों परेशान बैठे रहोगे?’’

बच्चों की बातें कानों में पड़ीं तो मैं रुक गई. ऐसी कौन सी गलती विकी से हुई जो वह हम से छिपा रहा है और उस का छोटा भाई उसे सलाह दे रहा है. मैं ‘बात क्या है’ यह जानने की गरज से छिप कर उन की बातें सुनने लगी.

‘‘इतना आसान नहीं है सबकुछ साफसाफ बता देना जितना तू समझ रहा है,’’ विकी की आवाज सुनाई पड़ी.

‘‘दा, यह इतना मुश्किल भी तो नहीं है. आप की जगह मैं होता तो देखते कितनी स्टाइल से मम्मीपापा को सारी बातें बता भी देता और उन्हें मना भी लेता,’’ इस बार विनी की आवाज आई.

‘‘तेरी बात और है पर मुझ से किसी को ऐसी उम्मीद नहीं होगी,’’ यह आवाज मेरे बड़े बेटे विकी की थी.

‘‘दा, आप ने कोई अपराध तो किया नहीं जो इतना डर रहे हैं. सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मम्मीपापा आप की बात सुन कर गले लगा लेंगे,’’ विनी की आवाज खुशी और उत्साह दोनों से भरी हुई थी.

‘बात क्या है’ मेरी समझ में कुछ नहीं आया. थोड़ी देर और खड़ी रह कर उन की आगे की बातें सुनती तो शायद कुछ समझ में आ भी जाता पर तभी प्रेस वाले ने डोर बेल बजा दी तो मैं दबे पांव वहां से खिसक ली.

बच्चों की आधीअधूरी बातें सुनने के बाद तो और किसी काम में मन ही नहीं लगा. बारबार मन में यही प्रश्न उठते कि मेरा वह पुत्र जो अपनी हर छोटीबड़ी बात मुझे बताए बिना मुंह में कौर तक नहीं डालता है, आज ऐसा क्या कर बैठा जो हम से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. सोचा, चल कर साफसाफ पूछ लूं पर फिर लगा कि बच्चे क्या सोचेंगे कि मम्मी छिपछिप कर उन की बातें सुनती हैं.

जैसेतैसे दोपहर का खाना तैयार कर के मेज पर लगा दिया और विकीविनी को खाने के लिए आवाज दी. खाना परोसते समय खयाल आया कि यह मैं ने क्या कर दिया, लौकी की सब्जी बना दी. अभी दोनों अपनीअपनी कटोरी मेरी ओर बढ़ा देंगे और कहेंगे कि रामदेव की प्रबल अनुयायी माताजी, यह लौकी की सब्जी आप को ही सादर समर्पित हो. कृपया आप ही इसे ग्रहण करें. पर मैं आश्चर्यचकित रह गई यह देख कर कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उलटा दोनों इतने मन से सब्जी खाने में जुटे थे मानो उस से ज्यादा प्रिय उन्हें कोई दूसरी सब्जी है ही नहीं.

बात जरूर कुछ गंभीर है. मैं ने मन में सोचा क्योंकि मेरी बनाई नापसंद सब्जी या और भी किसी चीज को ये चुपचाप तभी खा लेते हैं जब या तो कुछ देर पहले उन्हें किसी बात पर जबरदस्त डांट पड़ी हो या फिर अपनी कोई इच्छा पूरी करवानी हो.

खाना खा कर विकी और विनी फिर अपने कमरे में चले गए. ऐसा लग रहा था कि किसी खास मसले पर मीटिंग अटेंड करने की बहुत जल्दी हो उन्हें.

विकी सी.ए. है. कानपुर में उस ने अपना शानदार आफिस बना लिया है. ज्यादातर शनिवार को ही आता है और सोमवार को चला जाता है. विनी एम.बी.ए. की तैयारी कर रहा है. बचपन से दोनों भाइयों के स्वभाव में जबरदस्त अंतर होते हुए भी दोनों पल भर को भी अलग नहीं होते हैं. विकी बेहद शांत स्वभाव का आज्ञाकारी लड़का रहा है तो विनी इस के ठीक उलट अत्यंत चंचल और अपनी बातों को मनवा कर ही दम लेने वाला रहा है. इस के बावजूद इन दोनों भाइयों का प्यार देख हम दोनों पतिपत्नी मन ही मन मुसकराते रहते हैं.

अपना काम निबटा कर मैं बच्चों के कमरे में चली गई. संडे की दोपहर हमारी बच्चों के कमरे में ही गुजरती है और बच्चे हम से सारी बातें भी कह डालते हैं, जबकि ऐसा करने में दूसरे बच्चे मांबाप से डरते हैं. आज मुझे राजीव का बाहर होना बहुत खलने लगा. वह रहते तो माहौल ही कुछ और होता और वह किसी न किसी तरह बच्चों के मन की थाह ले ही लेते.

मेरे कमरे में पहुंचते ही विनी अपनी कुरसी से उछलते हुए चिल्लाया, ‘‘मम्मा, एक बात आप को बताऊं, विकी दा ने…’’

उस की बात विकी की घूरती निगाहों की वजह से वहीं की वहीं रुक गई. मैं ने 1-2 बार कहा भी कि ऐसी कौन सी बात है जो आज तुम लोग मुझ से छिपा रहे हो, पर विकी ने यह कह कर टाल दिया कि कुछ खास नहीं मम्मा, थोड़ी आफिस से संबंधित समस्या है. मैं आप को बता कर परेशान नहीं करना चाहता पर विनी के पेट में कोई बात पचती ही नहीं है.

हालांकि मैं मन ही मन बहुत परेशान थी फिर भी न जाने कैसे झपकी लग गई और मैं वहीं लेट गई. अचानक ‘मम्मा’ शब्द कानों में पड़ने से एक झटके से मेरी नींद खुल गई पर मैं आंखें मूंदे पड़ी रही. मुझे सोता देख कर उन की बातें फिर से चालू हो गई थीं और इस बार उसी कमरे में होने की वजह से मुझे सबकुछ साफसाफ सुनाई दे रहा था.

विकी ने विनी को डांटा, ‘‘तुझे मना किया था फिर भी तू मम्मा को क्या बताने जा रहा था?’’

‘‘क्या करता, तुम्हारे पास हिम्मत जो नहीं है. दा, अब मुझ से नहीं रहा जाता, अब तो मुझे जल्दी से भाभी को घर लाना है. बस, चाहे कैसे भी.’’

विकी ने एक बार फिर विनी को चुप रहने का इशारा किया. उसे डर था कि कहीं मैं जाग न जाऊं या उन की बातें मेरे कानों में न पड़ जाएं.

अब तक तो नींद मुझ से कोसों दूर जा चुकी थी. ‘तो क्या विकी ने शादी कर ली है,’ यह सोच कर लगा मानो मेरे शरीर से सारा खून किसी ने निचोड़ लिया. कहां कमी रह गई थी हमारे प्यार में और कैसे हम अपने बच्चों में यह विश्वास उत्पन्न करने में असफल रह गए कि जीवन के हर निर्णय में हम उन के साथ हैं.

आज पलपल की बातें शेयर करने वाले मेरे बेटे ने मुझे इस योग्य भी न समझा कि अपने शादी जैसे महत्त्वपूर्ण फैसले में शामिल करे. शामिल करना तो दूर उस ने तो बताने तक की भी जरूरत नहीं समझी. मेरे व्यथित और तड़पते दिल से एक आवाज निकली, ‘विकी, सिर्फ एक बार कह कर तो देखा होता बेटे तुम ने, फिर देखते कैसे मैं तुम्हारी पसंद को अपने अरमानों का जोड़ा पहना कर इस घर में लाती. पर तुम ने तो मुझे जीतेजी मार डाला.’

पल भर के अंदर ही विकी के पिछले 25 बरस आंखों के सामने से गुजर गए और उन 25 सालों में कहीं भी विकी मेरा दिल दुखाता हुआ नहीं दिखा. टेबल पर रखे फल उठा कर खाने से पहले भी वह जहां होता वहीं से चिल्ला कर मुझे बताता था कि मम्मा, मैं यह सेब खाने जा रहा हूं. और आज…एक पल में ही पराया बना दिया बेटे ने.

कलेजे को चीरता हुआ आंसुओं का सैलाब बंद पलकों के छोर से बूंद बन कर टपकने ही वाला था कि अचानक विकी की फुसफुसाहट सुनाई पड़ी, ‘‘तुम ने देखा नहीं है मम्मीपापा के कितने अरमान हैं अपनी बहुओं को ले कर और बस, मैं इसी बात से डरता हूं कि कहीं बरखा मम्मीपापा की कल्पनाओं के अनुरूप नहीं उतरी तो क्या होगा? अगर मैं पहले ही इन्हें बता दूंगा कि मैं बरखा को पसंद करता हूं तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं उठता कि मम्मीपापा उसे नापसंद करें, वे हर हाल में मेरी शादी उस से कर देंगे और मैं यही नहीं चाहता हूं. मम्मीपापा के शौक और अरमान पूरे होने चाहिए, उन की बहू उन्हें पसंद होनी चाहिए. बस, मैं इतना ही चाहता हूं.’’

‘‘और अगर वह उन्हें पसंद नहीं आई तो?’’

‘‘नहीं आई तो देखेंगे, पर मैं ने इतना तो तय कर लिया है कि मैं पहले से यह बिलकुल नहीं कह सकता कि मैं किसी को पसंद करता हूं.’’

तो विकी ने शादी नहीं की है, वह केवल किसी बरखा नाम की लड़की को पसंद करता है और उस की समस्या यह है कि बरखा के बारे में हमें बताए कैसे? इस बात का एहसास होते ही लगा जैसे मेरे बेजान शरीर में जान वापस आ गई. एक बार फिर से मेरे सामने वही विकी आ खड़ा हुआ जो अपनी कोई बात कहने से पहले मेरे चारों ओर चक्कर लगाता रहता, मेरा मूड देखता फिर शरमातेझिझकते हुए अपनी बात कहता. उस का कहना कुछ ऐसा होता कि मना करने का मैं साहस ही नहीं कर पाती. ‘बुद्धू, कहीं का,’ मन ही मन मैं बुदबुदाई. जानता है कि मम्मा किसी बात के लिए मना नहीं करतीं फिर भी इतनी जरूरी बात कहने से डर रहा है.

सो कर उठी तो सिर बहुत हलका लग रहा था. मन में चिंता का स्थान एक चुलबुले उत्साह ने ले लिया था. मेरे बेटे को प्यार हो गया है यह सोचसोच कर मुझे गुदगुदी सी होने लगी. अब मुझे समझ में आने लगा कि विनी को भाभी घर में लाने की इतनी जल्दी क्यों मच रही थी. ऐसा लगने लगा कि विनी का उतावलापन मेरे अंदर भी आ कर समा गया है. मन होने लगा कि अभी चलूं विकी के पास और बोलूं कि ले चल मुझे मेरी बहू के पास, मैं अभी उसे अपने घर में लाना चाहती हूं पर मां होने की मर्यादा और खुद विकी के मुंह से सुनने की एक चाह ने मुझे रोक दिया.

रात को खाने की मेज पर मेरा मूड तो खुश था ही, दिन भर के बाद बच्चों से मिलने के कारण राजीव भी बहुत खुश दिख रहे थे. मैं ने देखा कि विनी कई बार विकी को इशारा कर रहा था कि वह हम से बात करे पर विकी हर बार कुछ कहतेकहते रुक सा जाता था. अपने बेटे का यह हाल मुझ से और न देखा गया और मैं पूछ ही बैठी, ‘‘तुम कुछ कहना चाह रहे हो, विकी?’’

‘‘नहीं…हां, मैं यह कहना चाहता था मम्मा कि जब से कानपुर गया हूं दोस्तों से मुलाकात नहीं हो पाती है. अगर आप कहें तो अगले संडे को घर पर दोस्तों की एक पार्टी रख लूं. वैसे भी जब से काम शुरू किया है सारे दोस्त पार्टी मांग रहे हैं.’’

‘‘तो इस में पूछने की क्या बात है. कहा होता तो आज ही इंतजाम कर दिया होता,’’ मैं ने कहा, ‘‘वैसे कुल कितने दोस्तों को बुलाने की सोच रहे हो, सारे पुराने दोस्त ही हैं या कोई नया भी है?’’

‘‘हां, 2-4 नए भी हैं. अच्छा रहेगा, आप सब से भी मुलाकात हो जाएगी. क्यों विनी, अच्छा रहेगा न?’’ कह कर विकी ने विनी को संकेत कर के राहत की सांस ली.

मैं समझ गई थी कि पार्टी की योजना दोनों ने मिल कर बरखा को हम से मिलाने के लिए ही बनाई है और विकी के ‘नए दोस्तों’ में बरखा भी शामिल होगी.

अब बच्चों के साथसाथ मेरे लिए भी पार्टी की अहमियत बहुत बढ़ गई थी. अगले संडे की सुबह से ही विकी बहुत नर्वस दिख रहा था. कई बार मन में आया कि उसे पास बुला कर बता दूं कि वह सारी चिंता छोड़ दे क्योंकि हमें सबकुछ मालूम हो चुका है, और बरखा जैसी भी होगी मुझे पसंद होगी. पर एक बार फिर विकी के भविष्य को ले कर आशंकित मेरे मन ने मुझे चुप करा दिया कि कहीं बरखा विकी के योग्य न निकली तो? जब तक बात सामने नहीं आई है तब तक तो ठीक है, उस के बारे में कुछ भी राय दे सकती हूं, पर अगर एक बार सामने बात हो गई तो विकी का दिल टूट जाएगा.

4 बजतेबजते विकी के दोस्त एकएक कर के आने लगे. सच कहूं तो उस समय मैं खुद काफी नर्वस होने लगी थी कि आने वालों में बरखा नाम की लड़की न मालूम कैसी होगी. सचमुच वह मेरे विकी के लायक होगी या नहीं. मेरी भावनाओं को राजीव अच्छी तरह समझ रहे थे और आंखों के इशारे से मुझे धैर्य रखने को कह रहे थे. हमें देख कर आश्चर्य हो रहा था कि सदैव हंगामा करते रहने वाला विनी भी बिलकुल शांति  से मेरी मदद में लगा था और बीचबीच में जा कर विकी की बगल में कुछ इस अंदाज से खड़ा होता मानो उस से कह रहा हो, ‘दा, दुखी न हो, मैं तुम्हारे साथ हूं.’

ठीक साढ़े 4 बजे बरखा ने अपनी एक सहेली के साथ ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. उस के घुसते ही विकी की नजरें विनी से और मेरी नजरें इन से जा टकराईं. विकी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और उन्हें हमारे पास ला कर उन से हमारा परिचय करवाया, ‘‘बरखा, यह मेरे मम्मीपापा हैं और मम्मीपापा, यह मेरी नई दोस्त बरखा और यह बरखा की दोस्त मालविका है. ये दोनों एम.सी.ए. कर रही हैं. पिछले 7 महीने से हमारी दोस्ती है पर आप लोगों से मुलाकात न करवा सका था.’’

हम ने महसूस किया कि बरखा से हमारे परिचय के दौरान पूरे कमरे का शोर थम गया था. इस का मतलब था कि विकी के सारे दोस्तों को पहले से बरखा के बारे में मालूम था. सच है, प्यार एक ऐसा मामला है जिस के बारे में बच्चों के मांबाप को ही सब से बाद में पता चलता है. बच्चे अपना यह राज दूसरों से तो खुल कर शेयर कर लेते हैं पर अपनों से बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं.

बरखा को देख लेने और उस से बातचीत कर लेने के बाद मेरे मन में उसे बहू बना लेने का फैसला पूर्णतया पक्का हो गया. विकी बरखा के ही साथ बातें कर रहा था पर उस से ज्यादा विनी उस का खयाल रख रहा था. पार्टी लगभग समाप्ति की ओर अग्रसर थी. यों तो हमारा फैसला पक्का हो चुका था पर फिर भी मैं ने एक बार बरखा को चेक करने की कोशिश की कि शादी के बाद घरगृहस्थी संभालने के उस में कुछ गुण हैं या नहीं.

मेरा मानना है कि लड़की कितने ही उच्च पद पर आसीन हो पर घरपरिवार को उस के मार्गदर्शन की आवश्यकता सदैव एक बच्चे की तरह होती है. वह चूल्हेचौके में अपना दिन भले ही न गुजारे पर चौके में क्या कैसे होता है, इस की जानकारी उसे अवश्य होनी चाहिए ताकि वह अच्छा बना कर खिलाने का वक्त न रखते हुए भी कम से कम अच्छा बनवाने का हुनर तो अवश्य रखती हो.

मैं शादी से पहले घरगृहस्थी में निपुण होना आवश्यक नहीं मानती पर उस का ‘क ख ग’ मालूम रहने पर ही उस जिम्मेदारी को निभा पाने की विश्वसनीयता होती है. बहुत से रिश्तों को इन्हीं बुनियादी जिम्मेदारियों के अभाव में बिखरते देखा था मैं ने, इसलिए विकी के जीवन के लिए मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

मैं ने बरखा को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, सुबह से पार्टी की तैयारी में लगे होने की वजह से इस वक्त सिर बहुत दुखने लगा है. मैं ने गैस पर तुम सब के लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है, अगर तुम्हें चाय बनानी आती हो तो प्लीज, तुम बना लो.’’

‘‘जी, आंटी, अभी बना लाती हूं,’’ कह कर वह विकी की तरफ पलटी, ‘‘किचन कहां है?’’

‘‘उस तरफ,’’ हाथ से किचन की तरफ इशारा करते हुए विकी ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें चीनी और चायपत्ती बता देता हूं,’’ कहते हुए वह बरखा के साथ ही चल पड़ा.

‘‘बरखाजी को अदरक कूट कर दे आता हूं,’’ कहता हुआ विनी भी उन के पीछे हो लिया.

चाय चाहे सब के सहयोग से बनी हो या अकेले पर बनी ठीक थी. किचन में जा कर मैं देख आई कि चीनी और चायपत्ती के डब्बे यथास्थान रखे थे, दूध ढक कर फ्रिज में रखा था और गैस के आसपास कहीं भी चाय गिरी, फैली नहीं थी. मैं निश्चिंत हो आ कर बैठ गई. मुझे मेरी बहू मिल गई थी.

एकएक कर के दोस्तों का जाना शुरू हो गया. सब से अंत में बरखा और मालविका हमारे पास आईं और नमस्ते कर के हम से जाने की अनुमति मांगने लगीं. अब हमारी बारी थी, विकी ने अपनी मर्यादा निभाई थी. पिछले न जाने कितने दिनों से असमंजस की स्थिति गुजरने के बाद उस ने हमारे सामने अपनी पसंद जाहिर नहीं की बल्कि उसे हमारे सामने ला कर हमारी राय जाननेसमझने का प्रयत्न करता रहा. और हम दोनों को अच्छी तरह पता है कि अभी भी अपनी बात कहने से पहले वह बरखा के बारे में हमारी राय जानने की कोशिश अवश्य करेगा, चाहे इस के लिए उसे कितना ही इंतजार क्यों न करना पड़े.

मैं अपने बेटे को और असमंजस में नहीं देख सकती थी, अगर वह अपने मुंह से नहीं कह पा रहा है तो उस की बात को मैं ही कह कर उसे कशमकश से उबार लूंगी.

बरखा के दोबारा अनुमति मांगने पर मैं ने कहा, ‘‘घर की बहू क्या घर से खाली हाथ और अकेली जाएगी?’’

मेरी बात का अर्थ जैसे पहली बार किसी की समझ में नहीं आया. मैं ने विकी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तेरी पसंद हमें पसंद है. चल, गाड़ी निकाल, हम सब बरखा को उस के घर पहुंचाने जाएंगे. वहीं इस के मम्मीडैडी से रिश्ते की बात भी करनी है. अब अपनी बहू को घर में लाने की हमें भी बहुत जल्दी है.’’

मेरी बात का अर्थ समझ में आते ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मम्मीपापा को यह सब कैसे पता चला, इस सवाल में उलझाअटका विकी पहले तो जहां का तहां खड़ा रह गया फिर अपने पापा की पहल पर बढ़ कर उन के सीने से लग गया.

इन सब बातों में समय गंवाए बिना विनी गैरेज से गाड़ी निकाल कर जोरजोर से हार्न बजाने लगा. उस की बेताबी देख कर मैं दौड़ते हुए अपनी खानदानी अंगूठी लेने के लिए अंदर चली गई, जिसे मैं बरखा के मातापिता की सहमति ले कर उसे वहीं पहनाने वाली थी.

Love Story : अधूरा सपना – अभीन की धड़कनें कब तेज हो जाती हैं?

Love Story : ‘रभीना…’ हां, यही तो नाम था उस लड़की का, जिसे देखदेख वह फिल्मी प्यार में डूब जाता था.

रभीना अभीन के प्रति सीरियस है, पर इस का एहसास कभी भी नहीं होने देती थी.

यह बात अभीन को भी पता थी, पर हर शाम वह गुप्ता स्टोर के पास 5 बजे के करीब खड़ा हो जाता था, ताकि वह ट्यूशन जाती रभीना का दीदार कर सके.

रोज दीदार के नाम पर खड़ा तो नहीं हो सकता था वह गुप्ता अंकल के स्टोर पर, इसलिए कुछ ना कुछ रोज अभीन को दुकान से खरीदना ही पड़ता था.

गुप्ता अंकल सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते थे. अभीन अभीअभी 12वीं जमात में तो गया था.
मैथ, फिजिक्स, कैमिस्ट्री के प्रश्नों को रट्टा मारने के बाद वह तुरंत रभीना की याद में डूब जाता था… और याद में भी ऐसे डूबता मानो सच में गोता लगा रहा हो.

रभीना उस की बांहों में, रभीना उस के जोक पर लगातार हंसते हुए.

अभीन रभीना को बस सोचता जाता और अपना होश खोता जाता.

अभीन के इस पढ़ाकू व्यवहार से मां चिंतित रहने लगीं. ऐसी भी क्या पढ़ाई, जो बंद कमरे में पढ़तेपढ़ते बिना खाएपिए सो जाए.

मां को कहां पता था कि अभीन बंद कमरे सिर्फ पढ़ाई नहीं करता. 12वीं की परीक्षा खत्म होतेहोते ही अभीन का प्यार और भी परवान चढ़ने लगा.

अभीन से रभीना कभी बात नहीं करती थी. इन 2 सालों में भी अभीन रभीना से बात नहीं कर पाया. पर इस से अभीन को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अभीन रोज गुप्ता स्टोर से खरीदारी कर आता. उन की दुकान में ऐसी कोई चीज न रही हो, जिसे अभीन ने न खरीदा हो.

अब तो गुप्ता अंकल ही अभीन को बता देते थे कि बेटे आज शर्ट में लगाने वाले बटन ही खरीद ले. बेटे आज हेयर डाई ही खरीद ले. और फिर अभीन ‘दे दो अंकल’ कह कर ट्यूशन जाती रभीना को निहारता निहाल हो जाता कुछ पल के लिए.

अभीन पढ़ने में तो तेज था ही, साथ ही उस ने अपने बेहतर जीवन के सपने भी बुने थे. उस का प्यार जितना फिल्मी था, उतना ही फिल्मी उस के सपने थे.

पर, उस के खूबसूरत सपने में भी खूबसूरत रभीना भी थी. एक अच्छी पैकेज वाली नौकरी, एक मकान और छोटी सी कार में खुद से ड्राइव करते हुए रभीना को बारिश की बूंदों में घुमाना.

अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए अभीन दिनरात पढ़ाई करता था. अभी भी रभीना उस के लिए सपना ही थी. एक कल्पना, जिसे देख कर वह खुश हुआ करता था. जिसे महसूस कर वह अपने सपनों को सच करने के लिए आई लीड को पीटते नींद को भगाने के लिए आंख की पुतलियों पर पानी के छींटों के सहारे पढ़ाई करता था.

पहली कोशिश में पहली ही दफा में अभीन ने इंजीनियरिंग परीक्षा इंट्रेस निकाल ली. अपार खुशी, पर दुख इस बात का था कि अब गुप्ता अंकल की दुकान पर रोज सामान खरीदने का मौका नहीं मिलेगा.

अब वह अपनी रभीना को भी देख नहीं पाएगा, अपनी आंखों से रोज दीदार नहीं कर पाएगा.

अभीन घर वापस आते ही चिंतित हो उठा. उस के कई दिनों से इस तरह के व्यवहार से मातापिता भी चिंतित हो उठे. हमेशा खुश रहने वाला लड़का इतना परेशान क्यों है?

अभीन के होश उड़े हुए थे. वह थोड़ा बेसुध सा रहने लगा. अभीन अब उतावला सा रभीना से बात करने और उस से मिलने के रास्ते तलाशने लगा.

अपने महल्ले में ही रहने वाली रभीना के लिए उस ने कभी ऐसी कोशिश नहीं की थी. उस ने कभी यह बात नहीं सोची थी कि ऐसा भी कभी समय आएगा.

आखिरकार वह अपनी मौसी के घर रहने वाली रेंटर निकली. किसी बहाने से अभीन अपनी मौसी के यहां पहुंच भी गया. पर यह क्या, रभीना दो बार सामने से गुजरी, उस ने ध्यान ही नहीं दिया. गुप्ता अंकल के स्टोर पर तो रोज मुझे देख कर हंसती थी. वह मुझ से कहीं ज्यादा खुश लगती थी, मुझे गुप्ता अंकल के स्टोर पर इंतजार करता देख. पर आज ना जाने ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है.

अभीन को रभीना पर गुस्सा भी आ रहा था. ऐसी भी क्या बेरुखी…? आखिर अभीन गुस्सा हो कर या कहें निराश हो कर भारी मन के साथ कब वह अपने घर पहुंच गया, उसे भी पता न चला.

अभीन अभी भी गुस्से में ही था. रात का भोजन नहीं. अगले दिन भी दिनभर कमरे से बाहर नहीं निकला.

अभीन के मातापिता परेशान हो गए. कहीं ऐसा तो नहीं कि अभीन घर से दूर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जाने से दुखी है.

अभीन माता पिता से, घर से दूर रहने के फायदे और स्वावलंबी बनने की जरूरत पर लंबेलंबे लेक्चर सुनतेसुनते बोर होने लगा, तो घर से बाहर निकला. मातापिता समझे कि अब अभीन समझदार हो गया है. अभीन घर से निकल कर गुप्ता अंकल के स्टोर पर पहुंचा.

2 साल में पहली बार अभीन गुप्ता अंकल के स्टोर पर शाम 5 बजे के बाद मुरझाया चेहरा ले कर पहुंचता है. उसे देख कर गुप्ता अंकल ने पूछा, ’’अरे, तुम ने बताया नहीं कि तुम ने आईआईटी एक बार में ही निकाल ली.’’

’’हां अंकल, निकाल ली,’’ कह कर अभीन चुप हो गया. एकाएक वह अपनी मौसी के घर की ओर बढ़ चला. आज वह रभीना से पूछ ही लेगा कि शादी करोगी या नहीं? और कुछ ही देर में अभीन रभीना के घर के दरवाजे पर था. पर, ये क्या…? उस के दरवाजे पर तो ताला लगा हुआ था. तभी उस की मौसी उसे देख आवाज देती हैं, ’’अरे अभीन, उधर रेंटर के कमरे की ओर क्या कर रहा है? इधर आ…’’

’’आता हूं मौसी. ये आप के रेंटर कहां गए? इन का दरवाजा बंद है. लगता है, मार्केट गए हैं.’’

’’नहीं… नहीं, मार्केट नहीं, वे अपने गांव गए हैं. उन की बेटी है ना रभीना, उस की शादी है अगले हफ्ते.’’

यह सुन कर अभीन अंदर से हिल गया. रोते हुए वह अपने घर की ओर दौड़ा. उस का दिमाग भारी लगने लगता है.

अपने बहते आंसुओं को पोंछते हुए वह दौड़ते हुए चलने लगता है. अभीन को मालूम है कि लोग उसे रोते हुए देख रहे हैं. पर आंसू रोकना उस के बस की बात नहीं थी. सो, उस ने दौड़ कर घर जल्द पहुंचना ही अच्छा समझा और बंद कमरे में जी भर कर रोया.

अभीन रोते हुए थक कर सो गया. रात को सपने में भी आई रभीना. पर कहीं से ऐसा नहीं लगा जैसे रभीना उस की जिंदगी से चली गई हो.

पहले की तरह रभीना अभीन की बांहों में लिपटी उस के बाल को खींचती. अभीन के जोक पर पहले तो चुप रहती और कहती कि यह भी कोई जोक है. और फिर उस के बाद खिलखिला कर हसंती और जी खोल कर हंसती.

अभीन के मन में अभी भी था कि रभीना उस की जिंदगी से चली गई है. पर उस की हिम्मत ही नहीं हुई पूछने की, क्योंकि रभीना तो अभी उस की बांहों में थी.

सुबह तैयार हो कर अपने सपने को पूरा करने के लिए अभीन आईआईटी, दिल्ली के लिए निकल रहा था. पर उस का सपना थोड़ाथोड़ा अधूरा सा लग रहा था, क्योंकि इस सपने में रभीना नहीं थी.

Romantic Story : भ्रष्टाचार – पतिपत्नी के बीच ठंडे पड़ते रिश्ते की कहानी

Romantic Story : मोहिनी ने पर्स से रूमाल निकाला और चेहरा पोंछते हुए गोविंद सिंह के सामने कुरसी खींच कर बैठ गई. उस के चेहरे पर अजीब सी मुसकराहट थी.

‘‘चाय और ठंडा पिला कर तुम पिछले 1 महीने से मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ मोहिनी झुंझलाते हुए बोली, ‘‘पहले यह बताओ कि आज चेक तैयार है या नहीं?’’

वह सरकारी लेखा विभाग में पहले भी कई चक्कर लगा चुकी थी. उसे इस बात की कोफ्त थी कि गोविंद सिंह को हिस्सा दिए जाने के बावजूद काम देरी से हो रहा था. उस के धन, समय और ऊर्जा की बरबादी हो रही थी. इस के अलावा गोविंद सिंह अश्लील एवं द्विअर्थी संवाद बोलने से बाज नहीं आता था.

गोविंद सिंह मौके की नजाकत को भांप कर बोला, ‘‘तुम्हें तंग कर के मुझे आनंद नहीं मिल रहा है. मैं खुद चाहता हूं कि साहब के दस्तखत हो जाएं किंतु विभाग ने जो एतराज तुम्हारे बिल पर लगाए थे उन्हें तुम्हारे बौस ने ठीक से रिमूव नहीं किया.’’

‘‘हमारे सर ने तो रिमूव कर दिया था,’’ मोहिनी बोली, ‘‘पर आप के यहां से उलटी खोपड़ी वाले क्लर्क फिर से नए आब्जेक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. 25 कूलरों की खरीद का बिल मैं ने ठीक कर के दिया था. अब उस पर एक और नया एतराज लग गया है.’’

‘‘क्या करें, मैडम. सरकारी काम है. आप ने तो एक ही दुकान से 25 कूलरों की खरीद दिखा दी है. मैं ने पहले भी आप को सलाह दी थी कि 5 दुकानों से अलगअलग बिल ले कर आओ.’’

‘‘फिर तो 4 दुकानों से फर्जी बिल बनवाने पड़ेंगे.’’

‘‘4 नहीं, 5 बिल फर्जी कहो. कूलर तो आप लोगों ने एक भी नहीं खरीदा,’’ गोविंद सिंह कुछ शरारत के साथ बोला.

‘‘ये बिल जिस ने भेजा है उस को बोलो. तुम्हारा बौस अपनेआप प्रबंध करेगा.’’

‘‘नहीं, वह नाराज हो जाएगा. उस ने इस काम पर मेरी ड्यूटी लगाई है.’’

‘‘तब, अपने पति को बोलो.’’

‘‘मैं इस तरह के काम में उन को शामिल नहीं करना चाहती.’’

‘‘क्यों? क्या उन के दफ्तर में सारे ही साधुसंत हैं. ऐसे काम होते नहीं क्या? आजकल तो सारे देश में मंत्री से

ले कर संतरी तक जुगाड़ और सैटिंग में लगे हैं.’’

मोहिनी ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा. थोड़ी देर वहां पर मौन छाया रहा. आखिर मोहिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘तुम हमारे 5 प्रतिशत के भागीदार हो. यह बिल तुम ही क्यों नहीं बनवा देते?’’

‘‘बड़ी चालाक हो, मैडम. नया काम करवाओगी. खैर, मैं बनवा दूंगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘200-400 रुपए, जो तुम्हारी गांठ से खर्च हों, मुझ से ले लेना.’’

‘‘अरे, इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा. पूरा दिन हमारे साथ पिकनिक मनाओ. किसी होटल में ठहरेंगे. मौज करेंगे,’’ गोविंद सिंह बेशर्मी से कुटिल हंसी हंसते हुए मोहिनी को तौल रहा था.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ कहते हुए मोहिनी कुरसी से उठ खड़ी हुई. उसे मालूम था कि इन सरकारी दलालों को कितनी लिफ्ट देनी चाहिए.

गोविंद सिंह समझौतावादी एवं धीरज रखने वाला व्यक्ति था. वह जिस से जो मिले, वही ले कर अपना काम निकाल लेता था. उस के दफ्तर में मोहिनी जैसे कई लोग आते थे. उन में से अधिकांश लोगों के काम फर्जी बिलों के ही होते थे.

सरकारी विभागों में खरीदारी के लिए हर साल करोड़ों रुपए मंजूर किए जाते हैं. इन को किस तरह ठिकाने लगाना है, यह सरकारी विभाग के अफसर बखूबी जानते हैं. इन करोड़ों रुपयों से गोविंद सिंह और मोहिनी जैसों की सहायता से अफसर अपनी तिजोरियां भरते हैं और किसी को हवा भी नहीं लगती.

25 कूलरों की खरीद का फर्जी बिल जुटाया गया और लेखा विभाग को भेज दिया गया. इसी तरह विभाग के लिए फर्नीचर, किताबें, गुलदस्ते, क्राकरी आदि के लिए भी खरीद की मंजूरी आई थी. अत: अलगअलग विभागों के इंचार्ज जमा हो कर बौस के साथ बैठक में मौजूद थे.

बौस उन्हें हिदायत दे रहे थे कि पेपर वर्क पूरा होना चाहिए, ताकि कभी अचानक ऊपर से अधिकारी आ कर जांच करें तो उन्हें फ्लौप किया जा सके. और यह तभी संभव है जब आपस में एकता होगी.

सारा पेपर वर्क ठीक ढंग से पूरा कराने के बाद बौस ने मोहिनी की ड्यूटी गोविंद सिंह से चेक ले कर आने के लिए लगाई थी. बौस को मोहिनी पर पूरा भरोसा था. वह पिछले कई सालों से लेखा विभाग से चेक बनवा कर ला रही थी.

गोविंद सिंह को मोहिनी से अपना तयशुदा शेयर वसूल करना था, इसलिए उस ने प्रयास कर के उस के पेपर वर्क में पूरी मदद की. सारे आब्जेक्शन दूर कर के चेक बनवा दिया. चेक पर दस्तखत करा कर गोविंद सिंह ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया और मोहिनी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

दोपहर 2 बजे मोहिनी ने उस के केबिन में प्रवेश किया. वह मोहिनी को देख कर हमेशा की तरह चहका, ‘‘आओ मेरी मैना, आओ,’’ पर उस ने इस बार चाय के लिए नहीं पूछा.

मोहिनी को पता था कि चेक बन गया है. अत: वह खुश थी. बैठते हुए बोली, ‘‘आज चाय नहीं मंगाओगे?’’

गोविंद सिंह आज कुछ उदास था. बोला, ‘‘मेरा चाय पीने का मन नहीं है. कहो तो तुम्हारे लिए मंगा दूं.’’

‘‘अपनी उदासी का कारण मुझे बताओगे तो मन कुछ हलका हो जाएगा.’’

‘‘सुना है, वह बीमार है और जयप्रकाश अस्पताल में भरती है.’’

‘‘वह कौन…अच्छा, समझी, तुम अपनी पत्नी कमलेश की बात कर रहे हो?’’

गोविंद सिंह मौन रहा और खयालों में खो गया. उस की पत्नी कमलेश उस से 3 साल पहले झगड़ा कर के घर से चली गई थी. बाद में भी वह खुद न तो गोविंद सिंह के पास आई और न ही वह उसे लेने गया था. उन दोनों के कोई बच्चा भी नहीं था.

दोनों के बीच झगड़े का कारण खुद गोविंद सिंह था. वह घर पर शराब पी कर लौटता था. कमलेश को यह सब पसंद नहीं था. दोनों में पहले वादविवाद हुआ और बाद में झगड़ा होने लगा. गोविंद सिंह ने उस पर एक बार नशे में हाथ क्या उठाया, फिर तो रोज का ही सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन वह घर लौटा तो पत्नी घर पर न मिली. उस का पत्र मिला था, ‘हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘चलो, बड़ा अच्छा हुआ जो अपनेआप चली गई,’ गोविंद सिंह ने सोचा कि बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडी औरत के साथ गुजारा करना उसे भी कठिन लग रहा था. अब रोज रात में शराब पी कर आने पर उसे टोकने वाला कोई न था. जब कभी किसी महिला मित्र को साथ ले कर गोविंद सिंह घर लौटता तो सूना पड़ा उस का घर रात भर के लिए गुलजार हो जाता.

‘‘कहां खो गए गोविंद,’’ मोहिनी ने टोका तो गोविंद सिंह की तंद्रा भंग हुई.

‘‘कहीं भी नहीं,’’ गोविंद सिंह ने अचकचा कर उत्तर दिया. फिर अपनी दराज से मोहिनी का चेक निकाला और उसे थमा दिया.

चेक लेते हुए मोहिनी बोली, ‘‘मेरा एक कहना मानो तो तुम से कुछ कहूं. क्या पता मेरी बात को ठोकर मार दो. तुम जिद्दी आदमी जो ठहरे.’’

‘‘वादा करता हूं. आज तुम जो भी कहोगी मान लूंगा,’’ गोविंद सिंह बोला.

‘‘तुम कमलेश से अस्पताल में मिलने जरूर जाना. यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तो एक अच्छे इनसान की तरह पेश आना.’’

‘‘उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है,’’ मायूस गोविंद सिंह बोला, ‘‘यदि ऐसा होता तो वह मुझ से मिलने कभी न कभी जरूर आती. वह एक बार गुस्से में जो गई तो आज तक लौटी नहीं. न ही कभी फोन किया.’’

‘‘तुम अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहते हो. प्रेम में शर्त और जिद नहीं चलती. प्रेम चाहता है समर्पण और त्याग.’’

‘‘तुम शायद ऐसा ही कर रही हो?’’

‘‘मैं समर्पण का दावा नहीं कर सकती पर समझौता करना जरूर सीख लिया है. आजकल प्रेम में पैसे की मिलावट हो गई है. पर तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे वेतन से संतोष था. रिश्वत के चंद टकों के बदले में वह तुम्हारी शराब पीने की आदत और रात को घर देर से आने को बरदाश्त नहीं कर सकती थी.’’

‘‘मैं ने तुम से वादा कर लिया है इसलिए उसे देखने अस्पताल जरूर जाऊंगा. लेकिन समझौता कर पाऊंगा या नहीं…अभी कहना मुश्किल है,’’ गोविंद सिंह ने एक लंबी सांस ले कर उत्तर दिया.

मोहिनी को गोविंद सिंह की हालत पर तरस आ रहा था. वह उसे उस के हाल पर छोड़ कर दफ्तर से बाहर आ गई और सोचने लगी, इस दुनिया में कौन क्या चाहता है? कोई धनदौलत का दीवाना है तो कोई प्यार का भूखा है, पर क्या हर एक को उस की मनचाही चीज मिल जाती है? गोविंद सिंह की पत्नी चाहती है कि ड््यूटी पूरी करने के बाद पति शाम को घर लौटे और प्रतीक्षा करती हुई पत्नी की मिलन की आस पूरी हो.

गोविंद सिंह की सोच अलग है. वह ढेरों रुपए जमा करना चाहता है ताकि उन के सहारे सुख खरीद सके. पर रुपया है कि जमा नहीं होता. इधर आता है तो उधर फुर्र हो जाता है.

मोहिनी बाहर आई तो श्याम सिंह चपरासी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी, आप के चेक पर साहब से दस्तखत तो मैं ने ही कराए थे. आप का काम था इसलिए जल्दी करा दिया. वरना यह चेक अगले महीने मिलता.’’

मोहिनी ने अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकाला. फिर मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘श्याम सिंह, एक बात सचसच बताओगे, तुम रोज इनाम से कितना कमा लेते हो?’’

‘‘यही कोई 400-500 रुपए,’’ श्याम सिंह बहुत ही हैरानी के साथ बोला.

‘‘तब तो तुम ने बैंक में बहुत सा धन जमा कर लिया होगा. कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेते?’’

‘‘मैडमजी,’’ घिघियाते हुए श्याम सिंह बोला, ‘‘रुपए कहां बचते हैं. कुछ रुपया गांव में मांबाप और भाई को भेज देता हूं. बाकी ऐसे ही खानेपीने, नाते- रिश्तेदारों पर खर्च हो जाता है. अभी पिछले महीने साले को बेकरी की दुकान खुलवा कर दी है.’’

‘‘फिर वेतन तो बैंक में जरूर जमा कर लेते होंगे.’’

‘‘अरे, कहां जमा होता है. अपनी झोंपड़ी को तोड़ कर 4 कमरे पक्के बनाए थे. इसलिए 1 लाख रुपए सरकार से कर्ज लिया था. वेतन उसी में कट जाता है.’’

श्याम सिंह की बातें सुन कर मोहिनी के सिर में दर्द हो गया. वह सड़क पर आई और आटोरिकशा पकड़ कर अपने दफ्तर पहुंच गई. बौस को चेक पकड़ाया और अपने केबिन में आ कर थकान उतारने लगी.

मोहिनी की जीवन शैली में भी कोई आनंद नहीं था. वह अकसर देर से घर पहुंचती थी. जल्दी पहुंचे भी तो किस के लिए. पति देर से घर लौटते थे. बेटा पढ़ाई के लिए मुंबई जा चुका था. सूना घर काटने को दौड़ता था. बंगले के गेट से लान को पार करते हुए वह थके कदमों से घर के दरवाजे तक पहुंचती. ताला खोलती और सूने घर की दीवारों को देखते हुए उसे अकेलेपन का डर पैदा हो जाता.

पति को वह उलाहना देती कि जल्दी घर क्यों नहीं लौटते हो? पर जवाब वही रटारटाया होता, ‘मोहिनी… घर जल्दी आने का मतलब है अपनी आमदनी से हाथ धोना.’

ऊपरी आमदनी का महत्त्व मोहिनी को पता है. यद्यपि उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था. पर इस तरह की जिंदगी जीना उस की मजबूरी बन गई थी. उस की, पति की, गोविंद सिंह की, श्याम सिंह की, बौस की और जाने कितने लोगों की मजबूरी. शायद पूरे समाज की मजबूरी.

भ्रष्टाचार में कोई भी जानबूझ कर लिप्त नहीं होना चाहता. भ्रष्टाचारी की हर कोई आलोचना करता है. दूसरे भ्रष्टचारी को मारना चाहता है. पर अपना भ्रष्टाचार सभी को मजबूरी लगता है. इस देश में न जाने कितने मजबूर पल रहे हैं. आखिर ये मजबूर कब अपने खोल से बाहर निकल कर आएंगे और अपनी भीतरी शक्ति को पहचानेंगे.

मोहिनी का दफ्तर में मन नहीं लग रहा था. वह छुट्टी ले कर ढाई घंटे पहले ही घर पहुंच गई. चाय बना कर पी और बिस्तर पर लेट गई. उसे पति की याद सताने लगी. पर दिनेश को दफ्तर से छुट्टी कर के बुलाना आसान काम नहीं था, क्योंकि बिना वजह छुट्टी लेना दिनेश को पसंद नहीं था. कई बार मोहिनी ने आग्रह किया था कि दफ्तर से छुट्टी कर लिया करो, पर दिनेश मना कर देता था.

सच पूछा जाए तो इस हालात के लिए मोहिनी भी कम जिम्मेदार न थी. वह स्वयं ही नीरस हो गई थी. इसी कारण दिनेश भी पहले जैसा हंसमुख न रह गया था. आज पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि जीवन का सच्चा सुख तो उस ने खो दिया. जिम्मेदारियों के नाम पर गृहस्थी का बोझ उस ने जरूर ओढ़ लिया था, पर वह दिखावे की चीज थी.

इस तरह की सोच मन में आते ही मोहिनी को लगा कि उस के शरीर से चिपकी पत्थरों की परत अब मोम में बदल गई है. उस का शरीर मोम की तरह चिकना और नरम हो गया था. बिस्तर पर जैसे मोम की गुडि़या लेटी हो.

उसे लगा कि उस के भीतर का मोम पिघल रहा है. वह अपनेआप को हलका महसूस करने लगी. उस ने ओढ़ी हुई चादर फेंक दी और एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से अलग खड़ी हुई. तभी उसे शरारत सूझी. दूसरे कमरे में जा कर दिनेश को फोन मिलाया और घबराई आवाज में बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

अचानक मोहिनी का फोन आने से दिनेश घबरा सा गया. उस ने पूछा, ‘‘खैरियत तो है. कैसे फोन किया?’’

‘‘बहुत घबराहट हो रही है. डाक्टर के पास नहीं गई तो मर जाऊंगी. तुम जल्दी आओ,’’ इतना कहने के साथ ही मोहिनी ने फोन काट दिया.

अब मोहिनी के चेहरे पर मुसकराहट थी. बड़ा मजा आएगा. दिनेश को दफ्तर छोड़ कर तुरंत घर आना होगा. मोहिनी की शरारत और शोखी फिर से जाग उठी थी. वह गाने लगी, ‘तेरी दो टकिया दी नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए…’

गीजर में पानी गरम हो चुका था. वह बाथरूम में गई. बड़े आराम से अपना एकएक कपड़ा उतार कर दूर फेंक दिया और गरम पानी के फौआरे में जा कर खड़ी हो गई.

गरम पानी की बौछारों में मोहिनी बड़ी देर तक नहाती रही. समय का पता ही नहीं चला कि कितनी देर से काल बेल बज रही थी. शायद दिनेश आ गया होगा. मोहिनी अभी सोच ही रही थी कि पुन: जोरदार, लंबी सी बेल गूंजने लगी.

बाथरूम से निकल कर मोहिनी वैसी ही गीला शरीर लिए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी. आई ग्लास से झांक कर देखा तो दिनेश परेशान चेहरा लिए खड़ा था.

मोहिनी ने दरवाजा खोला. दिनेश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं, किसी राजा के रंगमहल में फौआरे के मध्य खड़ी नग्न प्रतिमा की तरह एकदम जड़ हो कर मोहिनी खड़ी थी. दिनेश भी एकदम जड़ हो गया. उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ. उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है, किसी दूसरे लोक में पहुंच गया है.

2 मिनट के बाद जब उस ने खुद को संभाला तो उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम…आखिर क्या कर रही हो?’’

मोहिनी तेजी से आगे बढ़ी और दिनेश को अपनी बांहों में भर लिया. दिनेश के सूखे कपड़ों और उस की आत्मा को अपनी जुल्फों के पानी से भिगोते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘बताऊं, क्या कर रही हूं… भ्रष्टाचार?’’और इसी के साथ दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े.

Hindi Story : चेतावनी – मीना आंटी ने क्या जिद ठान ली थी

Hindi Story : संदीप और अर्चना के प्रति मीना की दिलचस्पी इतनी बढ़ी कि वह उन की परेशानी जानने को आतुर हो उठी, यहां तक कि अर्चना को परेशानी से उबारना मीना की जिद बन गई.

पिछले कुछ दिनों से वे दोपहर 1 से 2 के बीच रोज पार्क में आते. उन दोनों की जोड़ी मुझे बहुत जंचती. युवक कार से और युवती पैदल यहां पहुंचती थी. दोनों एक ही बैंच पर बैठते और उन के आपस में बात करने के ढंग को देख कर कोई भी कह सकता था कि वे प्रेमीप्रेमिका हैं.

मैं रोज जिस जगह घास पर बैठती थी वहां माली ने पानी दे दिया तो मैं ने जगह बदल ली. मन में उन के प्रति उत्सुकता थी, इसलिए उस रोज मैं उन की बैंच के काफी पास शौल से मुंह ढक कर लेटी हुई थी, जब वे दोनों पार्क में आए.

उन के बातचीत का अधिकांश हिस्सा मैं ने सुना. युवती का नाम अर्चना और युवक का संदीप था. न चाहते हुए भी मुझे उन के प्रेमसंबंध में पैदा हुए तनाव व खिंचाव की जानकारी मिल गई.

नाराजगी व गुस्से का शिकार हो कर संदीप कुछ पहले चला गया. मैं ने मुंह पर पड़ा शौल जरा सा हटा कर अर्चना की तरफ देखा तो पाया कि उस की आंखों में आंसू थे.

मैं उस की चिंता व दुखदर्द बांटना चाहती थी. उस की समस्या ने मेरे दिल को छू लिया था, तभी उस के पास जाने से मैं खुद को रोक नहीं सकी.

मुझ जैसी बड़ी उम्र की औरत के लिए किसी लड़की से परिचय बनाना आसान होता है. बड़े सहज ढंग से मैं ने उस के बारे में जानकारी हासिल की. बातचीत ऐसी हलकीफुलकी रखी कि वह भी जल्दी ही मुझ से खुल गई.

इस सार्वजनिक पार्क के एक तरफ आलीशान कोठियां बनी हैं और दूसरी तरफ मध्यवर्गीय आय वालों के फ्लैट्स हैं. मेरा बड़ा बेटा अमित कोठी में रहता है और छोटा अरुण फ्लैट में.

अर्चना भी फ्लैट में रहती थी. उस की समस्या पर उस से जिक्र करने से पहले मैं उस की दोस्त बनना चाहती थी. तभी जिद कर के मैं साथसाथ चाय पीने के लिए उसे अरुण के फ्लैट पर ले आई.

छोटी बहू सीमा ने हमारे लिए झटपट अदरक की चाय बना दी. कुछ समय हमारे पास बैठ कर वह रसोई में चली गई. चाय खत्म कर के मैं और अर्चना बालकनी के एकांत में आ बैठे. मैं ने उस की समस्या पर चर्चा छेड़ दी.

‘‘अर्चना, तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर मैं तुम से कुछ बातें करना चाहूंगी. आशा है कि तुम उस का बुरा नहीं मानोगी,’’ यह कह कर मैं ने उस का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर प्यार से दबाया.
‘‘मीना आंटी, आप मुझे दिल की बहुत अच्छी लगी हैं. आप कुछ भी पूछें या कहें, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी,’’ उस का भावुक होना मेरे दिल को छू गया.
‘‘वहां पार्क में मैं ने संदीप और तुम्हारी बातें सुनी थीं. तुम संदीप से प्रेम करती हो. वह एक साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से अगले माह विदेश जा रहा है. तुम चाहती हो कि विदेश जाने से पहले तुम दोनों की सगाई हो जाए. संदीप यह काम लौट कर करना चाहता है. इसी बात को ले कर तुम दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा है ना?’’ मेरी आवाज में उस के प्रति गहरी सहानुभूति के भाव उभरे.

कुछ पल खामोश रहने के बाद अर्चना ने चिंतित लहजे में जवाब दिया, ‘‘आंटी, संदीप और मैं एकदूसरे के दिल में 3 साल से बसते हैं. दोनों के घर वालों को हमारे इस प्रेम का पता नहीं है. वह बिना सगाई के चला गया तो मैं खुद को बेहद असुरक्षित महसूस करूंगी.’’

‘‘क्या तुम्हें संदीप के प्यार पर भरोसा नहीं है?’’
‘‘भरोसा तो पूरा है, आंटी, पर मेरा दिल बिना किसी रस्म के उसे अकेला विदेश भेजने से घबरा रहा है.’’
मैं ने कुछ देर सोचने के बाद पूछा, ‘‘संदीप के बारे में मातापिता को न बताने की कोई तो वजह होगी.’’
‘‘आंटी, मेरी बड़ी दीदी ने प्रेम विवाह किया था और उस की शादी तलाक के कगार पर पहुंची हुई है. पापामम्मी को अगर मैं संदीप से प्रेम करने के बारे में बताऊंगी तो मेरी जान मुसीबत में फंस जाएगी.’’
‘‘और संदीप ने तुम्हें अपने घरवालों से क्यों छिपा कर रखा है?’’

अर्चना ने बेचैनी के साथ जवाब दिया, ‘‘संदीप के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं. आर्थिक दृष्टि से हम उन के सामने कहीं नहीं ठहरते. मैं एमबीए पूरी कर के नौकरी करने लगूं, तब तक के लिए उस ने अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ना टाल रखा है. मेरी एमबीए अगले महीने समाप्त होगा, लेकिन उस के विदेश जाने की बात के कारण स्थिति बदल गई है. मैं चाहती हूं कि वह फौरन अपने मातापिता से इस मामले में चर्चा छेड़े.’’

अर्चना का नजरिया तो मैं समझ गई लेकिन संदीप ने अभी विदेश जाने से पहले अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ने से पार्क में साफ इनकार कर दिया था और उस के इनकार करने के ढंग में मैं ने बड़ी कठोरता महसूस की थी. उस ने अर्चना के नजरिए को सम?ाने की कोशिश भी नहीं की थी. मुझे उस का व्यक्तित्व पसंद नहीं आया था. तभी दुखी व परेशान अर्चना का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं ने उस की सहायता करने का फैसला लिया था.

मेरा 5 वर्षीय पोता समीर स्कूल से लौट आया तो हम आगे बात नहीं कर सके क्योंकि उस की मांग थी कि उस के कपड़े बदलने, खाना परोसने व खिलाने का काम दादी ही करें.

अर्चना अपने घर जाना चाहती थी पर मैं ने उसे यह कह कर रोक लिया कि बेटी, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारी मां से मिलने का दिल है मेरा.

रास्ते में अर्चना ने उलझन भरे लहजे में पूछा, ‘‘मीना आंटी, क्या संदीप के विदेश जाने से पहले उस के साथ सगाई की रस्म हो जाने की मेरी जिद गलत है?’’

‘‘इस सवाल का सीधा ‘हां’ या ‘न’ में जवाब नहीं दिया जा सकता है,’’ मैं ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ से इस समस्या के 2 महत्त्वपूर्ण पहलू हैं.’’
‘‘कौनकौन से, आंटी?’’
‘‘पहला यह कि क्या संदीप का तुम्हारे प्रति प्रेम सच्चा है? अगर इस का जवाब ‘हां’ है तो वह लौट कर तुम से शादी कर ही लेगा. दूसरी तरफ वह ‘रोकने’ की रस्म से इसलिए इनकार कर रहा हो कि तुम से शादी करने का इच्छुक ही न हो.’’
‘‘ऐसी दिल तोड़ने वाली बात मुंह से मत निकालिए, आंटी,’’ अर्चना का गला भर आया.
‘‘बेटी, यह कभी मत भूलो कि तथ्यों से भावनाएं सदा हारती हैं. हमारे चाहने भर से जिंदगी के यथार्थ नहीं बदलते,’’ मैं ने उसे कोमल लहजे में समझाया.
‘‘मुझे संदीप पर पूरा विश्वास है,’’ उस ने यह बात मानो मेरे बजाय खुद से कही थी.
‘‘होना भी चाहिए,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई.
‘‘आंटी, मेरी समस्या का दूसरा पहलू क्या है?’’ अर्चना ने मुसकराने की कोशिश करते हुए पूछा.
‘‘तुम्हारी खुशी है. तुम्हारे मन की सुखशांति.’’
‘‘मैं कुछ समझ नहीं, आंटी.’’
‘‘अभी इस बारे में मुझ से कुछ मत पूछो पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि संदीप के विदेश जाने में अभी 2 सप्ताह बचे हैं और इस समय के अंदर ही तुम्हारी समस्या का उचित समाधान मैं ढूंढ़ लूंगी.’’
ऐसा आश्वासन पा कर अर्चना ने मुझ से आगे कुछ नहीं पूछा.
अर्चना की मां सावित्री एक आम घरेलू औरत थीं. मेरी 2 सहेलियां उन की भी परिचित निकलीं तो हम जल्दी सहज हो कर आपस में हंसनेबोलने लगे.

मैं ने अर्चना की शादी का जिक्र छेड़ा तो सावित्री ने बताया, ‘‘मीना बहनजी, इस के लिए इस की बूआ ने बड़ा अच्छा रिश्ता सुझाया है पर यह जिद्दी लड़की हमें बात आगे नहीं चलाने देती.’’
‘‘क्या कहती है अर्चना?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.
‘‘यही कि एमबीए के बाद कम से कम सालभर नौकरी कर के फिर शादी के बारे में सोचूंगी.’’
‘‘उस के ऐसा करने में दिक्कत क्या है, बहनजी?’’
‘‘अर्चना के पापा इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहते. अपनी बहन का भेजा रिश्ता उन्हें बहुत पसंद है.’’

मैं समझ गई कि आने वाले दिनों में अर्चना पर शादी का जबरदस्त दबाव बनेगा. अर्चना की जिद कि संदीप सगाई कर के विदेश जाए, मुझे तब जायज लगी.
‘‘अर्चना, कल तुम पार्क में मुझे संदीप से मिलाना. तब तक मैं तुम्हारी परेशानी का कुछ हल सोचती हूं,’’ इन शब्दों से उस का हौसला बढ़ा कर मैं अपने घर लौट आई.
अगले दिन पार्क में अर्चना ने संदीप से मुझे मिला दिया. एक नजर मेरे साधारण से व्यक्तित्व पर डालने के बाद संदीप की मेरे बारे में दिलचस्पी फौरन बहुत कम हो गई.
मैं ने उस से थोड़े से व्यक्तिगत सवाल सहज ढंग से पूछे. उस ने बड़े खिंचे से अंदाज में उन के जवाब दिए. यह साफ था कि संदीप को मेरी मौजूदगी खल रही थी.
उन दोनों को अकेला छोड़ कर मैं दूर घास पर आराम करने चली गई.
संदीप को विदा करने के बाद अर्चना मेरे पास आई. उस की उदासी मेरी नजरों से छिपी नहीं रह सकी. मैं ने प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उस के बोलने का इंतजार खामोशी से करने लगी.
कुछ देर बाद हारे हुए लहजे में उस ने बताया, ‘‘आंटी, वह सगाई करने के लिए तैयार नहीं है. उस की दलील है कि जब शादी एक साल बाद होगी तो अभी से दोनों परिवारों के लिए तनाव पैदा करने का कोई औचित्य नहीं है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने मुसकराते हुए विषय परिवर्तन किया, ‘‘देखो, परसों मेरे बड़े बेटे अंकित की कोठी में शानदार पार्टी होगी. मेरी पोती शिखा का 8वां जन्मदिन है. तुम्हें उस पार्टी में मेरे साथ शामिल होना होगा.’’
अर्चना ने पढ़ाई का बहाना कर के पार्टी में आने से बचना चाहा पर मेरी जिद के सामने उस की एक न चली. उस की मां से इजाजत दिलवाने की जिम्मेदारी मैं ने अपने ऊपर ले ली थी.
मेरा बेटा अमित व बहू निशा दोनों कंप्यूटर इंजीनियर हैं. उन्होंने प्रेम विवाह किया था. मेरे मायके या ससुराल वालों में दोनों तरफ दूरदूर तक कोई भी उन जैसा अमीर नहीं है.
अमित ने पार्टी का आयोजन अपनी हैसियत के अनुरूप भव्य स्तर पर किया. सभी मेहमान शहर के बड़े और प्रतिष्ठित आदमी थे. उन की देखभाल के लिए वेटरों की पूरी फौज मौजूद थी. शराब के शौकीनों के लिए ‘बार’ था तो डांस के शौकीनों के लिए डीजे सिस्टम मौजूद था.

मेरी छोटी बहू सीमा, अर्चना और मैं खुद इस भव्य पार्टी में मेहमान कम, दर्शक ज्यादा थे. जो एकदो जानपहचान वाले मिले वे भी हम से ज्यादा बातें करने को उत्सुक नहीं थे.
अमित और निशा मेहमानों की देखभाल में बहुत व्यस्त थे. हम ठीक से खापी रहे हैं, यह जानने के लिए दोनों कभीकभी कुछ पल को हमारे पास नियमित आते रहे.
रात को 11 बजे के करीब उन से विदा ले कर जब हम अपने फ्लैट में लौटे, तब तक 80 प्रतिशत से ज्यादा मेहमानों ने डिनर करना भी नहीं शुरू किया था.
पार्टी के बारे में अर्चना की राय जानने के लिए अगले दिन मैं 11 बजे के आसपास उस के घर पहुंच गई थी.

‘‘आंटी, पार्टी बहुत अच्छी थी पर सच कहूं तो मजा नहीं आया,’’ उस ने सकुचाते हुए अपना मत व्यक्त किया.
‘‘मजा क्यों नहीं आया तुम्हें?’’ मैं ने गंभीर हो कर सवाल किया.
‘‘पार्टी में अच्छा खानेपीने के साथसाथ खूब हंसनाबोलना भी होना चाहिए. बस, वहां जानपहचान के लोग न होने के कारण पार्टी का पूरा लुत्फ नहीं उठा सके हम.’’
‘‘अर्चना, हम दूसरे मेहमानों के साथ जानपहचान बढ़ाने की कोशिश करते तो क्या वे हमें स्वीकार करते? मैं चाहूंगी कि तुम मेरे इस सवाल का जवाब सोचसम?ा कर दो.’’
कुछ देर सोचने के बाद अर्चना ने जवाब दिया, ‘‘आंटी, वहां आए मेहमानों का सामाजिक व आर्थिक स्तर हम से बहुत ऊंचा था. हमें बराबर का दर्जा देना उन्हें स्वीकार न होता.’’
‘‘एक बात पूछूं?’’
‘‘पूछिए.’’
‘‘क्या ऐसा ही अंतर तुम्हारे व संदीप के परिवारों में नहीं है?’’
‘‘है,’’ अर्चना का चेहरा उतर गया.
‘‘तब क्या तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी नहीं है कि उस के घर वाले तुम्हें बहू के रूप में आदरसम्मान देंगे या नहीं?’’
‘‘आंटी, क्या संदीप का प्यार मुझे ये सभी चीजें उन से नहीं दिलवा सकेगा?’’
‘‘अर्चना, कल की पार्टी में अमित की मां, भाईभतीजा व भाई की पत्नी मौजूद थे. लगभग सभी मेहमान हमें पहचानने के बावजूद हम से बोलना अपनी तौहीन सम?ाते रहे. सिर्फ संदीप की पत्नी बन जाने से क्या तुम्हारे अमीर ससुराल वालों का तुम्हारे प्रति नजरिया बदल जाएगा?’’
अनुभव के आधार पर मैं ने एकएक शब्द पर जोर दिया, ‘‘तुम्हें संदीप के घर वालों से मिलना होगा. वे तुम्हारे साथ सगाई करें या न करें पर इस मुलाकात के लिए तुम अड़ जाओ, अर्चना.’’
मेरे कुछ देर तक समझने के बाद बात उस की समझ में आ गई. मेरी सलाह पर अमल करने का मजबूत इरादा मन में ले कर वह संदीप से मिलने पार्क की तरफ गई.

करीब डेढ़ घंटे बाद जब वह लौटी तो उस की सूजी आंखों को देख कर मैं संदीप का जवाब बिना बताए ही जान गई.
‘‘वह अपने घर वालों से तुम्हें मिलाने को नहीं माना?’’
‘‘नहीं, आंटी,’’ अर्चना ने दुखी स्वर में जवाब दिया, ‘‘मैं उस के साथ लड़ी भी और रोई भी पर संदीप नहीं माना. वह कहता है कि इस मुलाकात को अभी अंजाम देने का न कोई महत्त्व है और न ही जरूरत है.’’
‘‘उस के लिए ऐसा होगा पर हम ऐसी मुलाकात को पूरी अहमियत देते हुए इसे बिना संदीप की इजाजत के अंजाम देंगे, अर्चना. संदीप की जिद के कारण तुम अपनी भावी खुशियों को दांव पर नहीं लगा सकतीं,’’ मेरे गुस्से से लाल चेहरे को देख कर वह घबरा गई थी.

डरीघबराई अर्चना को संदीप की मां से सीधे मिलने को राजी करने में मुझे खासी मेहनत करनी पड़ी पर आखिर में उस की ‘हां’ सुन कर ही मैं उस के घर से उठी.

जीवन हमारी सोचों के अनुसार चलने को जरा भी बाध्य नहीं. अगले दिन दोपहर को संदीप के पिता की कोठी की तरफ जाते हुए अर्चना और मैं काफी ज्यादा तनावग्रस्त थे पर वहां जो भी घटा वह हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा अच्छा था.

संदीप की मां अंजू व छोटी बहन सपना से हमारी मुलाकात हुई. अर्चना का परिचय मुझे उन्हें नहीं देना पड़ा. कालेज जाने वाली सपना ने उसे संदीप भैया की खास ‘गर्लफ्रैंड’ के रूप में पहचाना और यह जानकारी हमारे सामने ही मां को भी दे दी.

संदीप की जिंदगी में अर्चना विशेष स्थान रखती है, अपनी बेटी से यह जानकारी पाने के बाद अंजू बड़े प्यार व अपनेपन से अर्चना के साथ पेश आईं. सपना का व्यवहार भी उस के साथ किसी सहेली जैसा चुलबुला व छेड़छाड़ वाला रहा.

जिस तरह का सम्मान व अपनापन उन दोनों ने अर्चना के प्रति दर्शाया वह हमें सुखद आश्चर्य से भर गया. गपशप करने को सपना कुछ देर बाद अर्चना को अपने कमरे में ले गई.

अकेले में अंजू ने मुझ से कहा, ‘‘मीनाजी, मैं तो बहू का मुंह देखने को न जाने कब से तरस रही हूं पर संदीप मेरी नहीं सुनता. अगला प्रमोशन होने तक शादी टालने की बात करता है. अब अमेरिका जाने के कारण उस की शादी सालभर को तो टल ही गई न.’’
‘‘आप को अर्चना कैसी लगी है?’’ मैं ने बातचीत को अपनी ओर मोड़ते हुए पूछा.
‘‘बहुत प्यारी है. सब से बड़ी बात कि वह मेरे संदीप को पसंद है,’’ अंजू बेहद खुश नजर आईं.
‘‘उस के पिता बड़ी साधारण हैसियत रखते हैं. आप लोगों के स्तर की शादी करना उन के बस की बात नहीं.’’
‘‘मीनाजी, मैं खुद स्कूलमास्टर की बेटी हूं. आज सबकुछ है हमारे पास. सुघड़ और सुशील लड़की को हम एक रुपया दहेज में लिए बिना खुशीखुशी बहू बना कर लाएंगे.’’

बेटे की शादी के प्रति उन का सादगीभरा उत्साह देख कर मैं अचानक इतनी भावुक हुई कि मेरी आंखें भर आईं.

अर्चना और मैं ने बहुत खुशीखुशी उन के घर से विदा ली. अंजू और सपना हमें बाहर तक छोड़ने आईं.

‘‘कोमल दिल वाली अंजू के कारण तुम्हें इस घर में कभी कोई दुख नहीं होगा अर्चना. दौलत ने मेरे बड़े बेटे का जैसे दिमाग घुमाया है, वैसी बात यहां नहीं है. अब तुम फोन पर संदीप को इस मुलाकात की सूचना फौरन दे डालो. देखें, अब वह सगाई कराने को तैयार होता है या नहीं.’’ मेरी बात सुन कर अब तक खुश नजर आ रही अर्चना की आंखों में चिंता के बादल मंडरा उठे.

संदीप की प्रतिक्रिया मुझे अगले दिन शाम को अर्चना के घर जा कर ही पता चली. मैं इंतजार करती रही कि वह मेरे घर आए लेकिन जब वह शाम तक नहीं आई तो मैं ही दिल में गहरी चिंता के भाव लिए उस से मिलने पहुंच गई.

हुआ वही जिस का मुझे डर पहले दिन से था. संदीप अर्चना से उस दिन पार्क में खूब जोर से झगड़ा. उसे यह बात बहुत बुरी लगी कि मेरे साथ अर्चना उस की इजाजत के बिना क्यों उस की मां व बहन से मिल कर आई.

‘‘मीना आंटी, मैं आज संदीप से न दबी और न ही कमजोर पड़ी. जब उस की मां को मैं पसंद हूं तो अब उसे सगाई करने से ऐतराज क्यों?’’ अर्चना का गुस्सा मेरे हिसाब से बिलकुल जायज था.
‘‘आखिर में क्या कह रहा था संदीप?’’ उस का अंतिम फैसला जानने को मेरा मन बेचैन हो उठा.
‘‘मुझ से नाराज हो कर भाग गया वह, आंटी. मैं भी उसे ‘चेतावनी’ दे आई हूं.’’
‘‘कैसी ‘चेतावनी’?’’ मैं चौंक पड़ी.
‘‘मैं ने साफ कहा कि अगर उस के मन में खोट नहीं है तो वह सगाई कर के ही विदेश जाएगा वरना मैं समझ लूंगी कि अब तक मैं एक अमीरजादे के हाथ की कठपुतली बन मूर्ख बनती रही हूं.’’
‘‘तू ने ऐसा सचमुच कहा?’’ मेरी हैरानी और बढ़ी.
‘‘आंटी, मैं ने तो यह भी कह दिया कि अगर उस ने मेरी इच्छा नहीं पूरी की तो उस के जहाज के उड़ते ही मैं अपने मम्मीपापा को अपना रिश्ता उन की मनपसंद जगह करने की इजाजत दे दूंगी.’’

एक पल को रुक कर अर्चना फिर बोली, ‘‘आंटी, उस से प्रेम कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है जो मैं अब शादी करने को उस के सामने गिड़गिड़ाऊं. अगर मेरा चुनाव गलत है तो मेरा उस से अभी दूर हो जाना ही बेहतर होगा.’’

‘‘मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं, बेटी,’’ मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और बोली, ‘‘दोस्ती और प्रेम के मामले में जो दौलत को महत्त्व देते हैं वे दोस्त या प्रेमी बनने के काबिल नहीं होते.’’
‘‘आप का बहुत बड़ा सहारा है मुझे. अब मैं किसी भी स्थिति का सामना कर लूंगी, मीना आंटी,’’ उस ने मुझे जोर से भींचा और हम दोनों अपने आंसुओं से एकदूसरे के कंधे भिगोने लगीं.

वैसे अर्चना की प्रेम कहानी का अंत बढि़या रहा. अपने विदेश जाने से एक सप्ताह पहले संदीप मातापिता के साथ अर्चना के घर पहुंच गया. अर्चना की जिद मान कर सगाई की रस्म पूरी कर के ही विदेश जाना उसे मंजूर था.

अगले दिन पार्क में मेरी उन दोनों से मुलाकात हुई. मेरे पैर छू कर संदीप ने पूछा, ‘‘मीना आंटी, मैं सगाई या अर्चना को अपने घर वालों से मिलाना टालता रहा, इस कारण आप ने कहीं यह अंदाजा तो नहीं लगाया कि मेरी नीयत में खोट था?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ झुठ बोला, ‘‘मैं ने जो किया, वह यह सोच कर किया कि कहीं तुम नासमझ में अर्चना जैसे हीरे को न खो बैठो.’’
‘‘थैंक यू, आंटी,’’ वह खुश हो गया.

एक पल में ही मैं मीना आंटी से डार्लिंग आंटी बन गई. अर्चना मेरे गले लगी तो लगा कि बेटी विदा हो रही है.

लेखक : अवनीश शर्मा

Best Hindi Story : बिकाऊ माल – कहानी बेटों का मोल लगाते परिवार की

Best Hindi Story : बूआ मुंह से तो न कहतीं लेकिन उन की मंशा यही थी कि लड़कों की शादी में मोटा दहेज वसूलें. लेकिन कहते हैं न ‘लालच बुरी बला.’

रिश्ते में मेरी बूआ की बेटी है जानकी. वह खूब बातूनी है और खूब कंजूस भी. बस, बातों ही में सब की मेहमानदारी कर डालती है और किसी को यह महसूस ही नहीं होने देती कि बूआ और उस ने किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछा. कंजूस तो हमारे तीनों कजिन भी हैं.

उन की जानकी मुझे बहन की तरह मानती है. भूलेभटके ही मैं उन के घर जाती हूं तो सभी खुशी से पागल हो जाते हैं. वे समझ नहीं पाते कि मेरी खातिरदारी वे कैसे करें. बातों ही बातों में खानेपीने की चीजों का अंबार लगा देते हैं, लेकिन सामने एक भी डिश नहीं आती. जब मैं उन के घर से वापस आती हूं तो मेरे पेट में भूखे चूहों की इतनी उछलकूद हो रही होती है कि मैं समझ नहीं पाती, घर कैसे जल्दी पहुंचूं और इन्हें थोड़ा चारा डाल कर रास्ते में कैसे शांत करूं.

वैसे तो थोड़ाबहुत मैं खा कर ही जाती हूं, क्योंकि मुझे मालूम होता है कि वहां से खाली पेट आना पड़ेगा. लेकिन जानकी की बातों के जवाब देतेदेते मेरे पेट को भूख महसूस होने लगती है. जब मैं उठने लगती हूं तो जानकी मेरा हाथ पकड़ कर तपाक से कह उठती, ‘नहींनहीं, इतनी जल्दी चली जाएगी, वह भी सुच्चे मुंह, अभी तो बातों से ही मेरा मन नहीं भरा. ठहर, मैं कुछ खाने को मंगवाती हूं.’ फिर वह अपने तीनों भाइयों को आवाज लगा कर अपने पास बुलाएगी और डांटने लगेगी, ‘क्यों रे, बेवकूफो, तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है. शादी लायक हो गए लेकिन अक्ल नहीं आई. देख रहे हो, तुम्हारी कजिन 3 घंटे से आई बैठी है और तुम लोग हो कि उस के लिए अभी तक चायनाश्ता ही नहीं मंगाया?’

और वे तीनों शातिर एकदूसरे का मुंह देखने लगते हैं, जैसे पूछ रहे हों, ‘क्या, जानकी सचमुच लाने को कह रही है?’ तभी जानकी फुंफकार उठती है, ‘खड़ेखड़े मुंह क्या देख रहे हो, कौफी बना लाओ.’

उन तीनों के पीठ मोड़ते ही जानकी बोल उठती, ‘ठहरो, इतनी गरमी में वह क्या कौफी पिएगी, पहले ही उस का सिर दुखता है. कुछ ठंडावंडा ले आओ. क्यों, रमा, तू बता न, क्या पिएगी? क्या मंगाऊं? तेरा गला तो ठीक है न? अच्छा रहने दे, दहीपकौड़ी मंगवा देती हूं. हायहाय, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं. याद ही नहीं रहा, चंदू स्वीट्स की तो आज छुट्टी है. कल उस के बड़े भाई गुजर गए थे न.’

रास्ते में आते हुए मैं ने देखा था कि चंदू स्वीट्स के शोकेस खाने से चमक रहे थे पर नतीजा यह होता है कि मुझे जानकी से हंसतेहंसते कहना पड़ता है, ‘छोड़ो इस खानेपिलाने की झंझट को, क्यों तकलीफ करती हो. मैं तो घर से खा कर आई थी. अभी तक पेट भरा है…’ और इस तरह हर बार मुझे बिना पानी पिए वापस आना पड़ता है.

घर के बाहर तक जानकी छोड़ने आती तो चिंता के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया होता. वह अगली बार के लिए अपने सिर की कसम दे देती कि खबरदार, जो मैं कुछ घर से खा कर आऊं?

इच्छा तो होती है जानकी से कहूं, ‘तेरी अकाल मौत के डर से मैं आज भी भूखी आई थी,’ लेकिन बोलने की इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसे समझ सकूं कि झुठी कसमें मत खाया करो, जानकी. क्या पता, किस दिन तुम्हारी वाणी पर सरस्वती विराजमान हो जाए और मेरे सामने ही तुम एनीमिया की शिकार हो जाओ. खाली पेट तो मुझ से अस्पताल भी जाना नहीं हो पाएगा.

हमारी बूआ के 3 बेटे हैं और एक जानकी है. तीनों कजिन ब्याहने लायक हैं. नाम हैं उन के राम, कृष्ण और महावीर. पूरा परिवार बड़ा धार्मिक व अंधविश्वासी है. चाचा ने तो देख कर शादी की थी पर फूफा को न जाने कौन सा भक्ति का रंग चढ़ा कि स्वतंत्रता संग्रामी का चोला छोड़ कर वे देश से विधर्मियों को निकालने की बातें करने लगे और जम कर पूजापाठ करते. हां, दानदक्षिणा कम ही देते, बातें बहुत बनाते.

लड़का रामनवमी के दिन पैदा हुआ था, सो, बूआजी कहती हैं, यह रामचंद्रजी का आशीर्वाद है, इसीलिए इस का नाम राममोहन रखा. बिचला कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दुनिया में आया था, सो वह भगवान कृष्ण का प्रसाद है. तीसरा महावीर हनुमान जयंती के दिन पैदा हुआ था इसीलिए वह हनुमानजी की कृपा का फल है. मेरी तीनों कजिनों से कभी नहीं बनी. लेकिन हैं तो कजिन ही न. तीनों अलगथलग रहते थे.

जानकी की समझ में आ गया था कि जब तक उन तीनों की शादियां न होंगी, उस का नंबर नहीं आ सकेगा. वह सब से छोटी जो थी. सो, जानकी उन तीनों के विवाह के लिए चिंतित रहती थी. आतेजाते से लड़कियां ढूंढ़ने के लिए तकाजा करती. मेरे पति को भी वह दिनरात याद दिलाती, ‘भूलना नहीं, जीजाजी. लड़कियां ऐसी ढूंढ़ना, अंदर बैठें तो बाहर तक उन के रूपरंग का उजाला पड़े.’

मेरे पति कभीकभी हंसते हुए जानकी से कह देते, ‘क्यों, जानकी, घर के बिजली खर्च में कटौती करने का इरादा है क्या?’

‘अरे, नहींनहीं, जीजाजी. महिला घर में सुंदर हो तो घर भराभरा लगता है. दहेज तो अपने मुंह से मांगेंगे नहीं. वह तो, बस, लड़की सुंदर मांगती हूं,’ जानकी कहती.

‘यह तो तुम ने अच्छी याद दिलाई, जानकी. कल ही मेरे एक मित्र कह रहे थे, कोई ऐसा लड़का बताओ जो दहेज के चक्कर में न पड़े. आप की तो मुझे याद ही नहीं आई. अब आज ही उस से बात करूंगा.’

‘न, न, बेटा. वहां बात मत करना,’ बीच में बूआ घबरा कर बोली, ‘हमारे कहने का यह मतलब नहीं कि हम तीन ही कपड़ों में लड़की ले आएंगे. मैं तो यह कहती हूं कि मैं दहेज नहीं मांगूंगी. वैसे, लड़की के मातापिता देने में कोई कसर थोड़े ही रखते हैं. लड़की खाली हाथ चली आए तो भला ससुराल में उस की कोई इज्जत होती है. पति भी बातबात में बहू को डंक मारता है कि कैसी भिखमंगों की लड़की पल्ले पड़ी है.’

बूआ बड़ी तर्कपूर्ण बात करती. जानकी भी बड़ीबूढ़ी की तरह सिर हिलाती.

‘लेकिन बूआजी, आप अपने राजकुमारों की पढ़ाई तो पूरी हो जाने दो. यह बीवी का ढोल क्यों उन के गले में बांधती हो?’ पति बूआ को समझते.

‘अरे भैया, तुम समझते क्यों नहीं, लड़कियां क्या रास्ते में बैठी हैं जो बात की और उठ कर चल देंगी. समय लगता है उन्हें ढूंढ़ने में. फिर कुछ समय तो सगाई भी रहनी चाहिए. दोनों परिवारों को एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाता है. लड़की के चालचलन का भी पता लग जाता है. इन तीनों का निबटारा हो तो जानकी की बात चलाऊं.’

‘और, बूआजी, यह क्यों नहीं कहतीं कि समधियों से खाने को माल भी मिल जाता है. आप हैं बड़ी समझदार, दूर की सोचती हैं. खैर, यह तो बताइए, हमारे सालों की उम्र क्या है?’

‘अरे, वे क्या छोटे हैं, इसीलिए तो चिंता खाए जा रही है. बड़ा राम रामनवमी पर पूरा 24 का हो जाएगा,’ बूआ होंठों को दांत के नीचे दबा कर बोली थी.
‘और अभी तक वह तो क्लर्क की नौकरी के लिए एग्जाम दे रहा है?’ मेरे पति हैरानी से बोले थे.
‘अरे, वह क्या जानबूझ कर पड़ा है. यह मेरी सरकार ही रिजल्ट सही से नहीं निकालती.

राममोहन खिलाड़ी भी था, हौकी खेलता है. सारा दिन मैदान के पास बैठा रहता है. पहले तो लड़के आते थे पर अब सब की नौकरियां लग गईं तो बच्चों के साथ थोड़ाबहुत खेल कर मन बहलाता है.

जन्माष्टमी पर 21 का हो जाएगा, वह भी 2-3 बार कौरेसपौंडेंस परीक्षा में बैठ कर फेल हो चुका है. तीसरा भी 20 का हो जाएगा. मैं जानती थी कि तीनों अव्वल दर्जे के निकम्मे हैं. फर्नीचर के नाम पर जानकी के घर में 4 कुरसियां और 2 मेजें थीं. हर कुरसी अलग डिजाइन की.

एक कुरसी का बेंत ढीला था. दो कुरसियां अभी जवान थीं. मैं ने एक बार बूआ से कहा था, ‘बूआ, फेंको इन पुरानी कुरसियों को. बैठो तो डर लगता है. न जाने किस वक्त गुस्से में इन की टांग लडखड़ा जाए और बैठने वाले को दंडवत प्रणाम करना पड़े.’

बूआ बड़ी हैरानी से मुझे देखतीं, फिर कहतीं, ‘क्यों बेटा, घर में जो बूढ़े मांबाप हो जाते हैं उन्हें भी फेंक देना चाहिए?’

मैं ने कहा, ‘इंसान और सामान में फर्क होता है, बूआ. कोई ऐसा तो है नहीं कि तुम गरीब हो. प्रकृति का दिया सबकुछ है. मकान, जायदाद, पैसा, जेवर और फूफा की अच्छीखासी ऊपर की कमाई वाली नौकरी.’ जानकी हमेशा की तरह सिर हिलाती बोली, ‘दीदी, ऐसी बातें क्या मुंह से निकाली जाती हैं, दीवारों के भी कान होते हैं. पापा क्या इस पचड़े में पड़ने वाले थे. वह तो भले ही जिद समझ जो थोड़ाबहुत ले लेते हैं. तुम ही सोचो, दीदी खालिस तनख्वाह में कहीं 6 जनों का गुजारा होता है?’

‘लेकिन घर का थोड़ाबहुत सामान तो बनवा लो. आजकल तो मेजकुरसी पर खाने का फैशन है. लेकिन तुम हो कि अभी तक कोने पर, बक्सों पर कुशन रख कर काम चलाती हो. न सही ज्यादा फर्नीचर, बैठने को एक सोफा.’

‘न, न, जैसे हैं, हम उसी तरह अच्छे हैं. घर में कुछ भी सामान लाने का मतलब है लोगों का मुंह खुलवाना. किसी का मुंह बंद तो नहीं किया जाएगा, न यही कहेंगे, ‘साला ऊपर की कमाई खाता है.’ इस तरह सीधेसादे रहने से किसी को शक नहीं होता. फिर अब तेरे भाइयों के ब्याह हैं, तीनतीन दहेज आएंगे. घर भर जाएगा सामान से,’ बूआ ने कहा था.

उन्हीं दिनों जानकी का किसी लड़के से चक्कर चलने लगा था. उस ने मुझे बताया तो सही पर कुछ ज्यादा नहीं. लड़का शायद विधर्मी था पर अच्छा कमा लेता था. जानकी ने बूआ से कई बार कहा कि भाइयों की शादी कर दो पर बूआ तो दहेज के लालच में थी. जब तक मोटा दहेज न मिले वह किसी भी बेटे की शादी करने को तैयार न थी चाहे वे मामूली शक्लसूरत के और निखट्टू थे.

‘‘लेकिन बूआ, यह मकान तो ठीक करवा लो, जगहजगह से टूट रहा है. कल को लड़की वाले घरवर देखने आएं तो ऐसा घर देख तुम्हें कौन अपनी लड़की देगा?’’
‘‘कहती तो तू सच है. हम ने भी इंतजाम कर लिया है. इन के दफ्तर का काम चल रहा है. वह पूरा हुआ कि देखना ठेकेदार हमारे घर का कैसे हुलिया बदल देगा,’’ बूआ धीरे से बोली.
‘‘वह कैसे, बूआ?’’
‘‘तेरे फूफा ने इसी शर्त पर उसे ठेका दिया था,’’ बूआ ने मेरे कान में धीरे से कहा. जानकी के कहने पर बूआ लड़कों की शादी के लिए बड़ी परेशान हो गई. बहुत से लोगों से कह रखा था. लेकिन बूआ के गुणगान सुनते ही लड़की वाले दूर से सलाम कर लेते. बूआ में एक और भी गुण था और वह था झगड़े करने का. झगड़े के ही मारे न तो घर में फूफाजी ही टिकते थे, न बरतन मांजने वाली बाई. बूआ को इस बात से हमेशा ही शिकायत रही, ‘तेरे फूफाजी को 2 बातें घर ले आती हैं, एक भूख और दूसरी नींद. अगर इस आदमी का इन बातों के लिए भी बाहर इंतजाम हो जाए तो घर में झांके तक नहीं.’ और बरतन मांजने वालियां तो बूआ को देखते ही बस कान पकड़ लेतीं. जानकी खुल कर मां से कुछ न कह सकी.

एक दिन बूआ का सवेरेसवेरे बड़े खुश स्वर में फोन आया.

‘‘रमा, मैं कहती थी न कि मेरे लड़के का अच्छा रिश्ता आएगा. अब पास के शहर के घर से रिश्ता आया है. लड़की का फोटो भी आया है. वे 5 लाख रुपए लगाएंगे शादी में.’’

जानकी को मैं ने फोन किया तो बोली, ‘‘दीदी, मां तो वैसे ही कह रही हैं. लड़की पर असल में बचपन में किसी ने तेजाब डाल दिया था और अब उन के पिता वैसे भी शादी कर देना चाहते हैं. तीनों ने फोटो देख कर ही नापसंद कर दिया पर मां अड़ी हैं कि एक से तो शादी कराएंगी,’’ थोड़ा रुक कर वह फिर बोली, ‘‘दीदी, इस चक्कर में मैं बेकार ही पिस रही हूं. मां से कुछ कहना तो आफत बुलवाना है.’’

जानकी और बूआ के घर में क्या चल रहा था, यह मुझे नहीं मालूम चल पा रहा था. बूआ का फोन कुछ कम आता था. अब वे जब भी बात करतीं तो 5 लाख रुपए के दहेज की बात जरूर बता देतीं.

एक दिन मैं ने कहा, ‘‘बूआ, पहले अपना घर तो ठीक करवा लो, एकाध कोई नीलाम घर से ही सोफा ले लो. एकाध दरी ले लो. समधी आएं तो घर देख कर कुछ तो प्रभावित हों.’’

‘‘कुरसियां तो मेरे पास हैं, बेटी.’’
‘‘कहां, इन कुरसियों पर कौन बैठ सकता है बूआ.’’
‘‘बस, दहेज मिलने दे, मैं पूरा घर चकाचक करा दूंगी.’’

हम लोग एक दिन रास्ते में टकरा गए थे. बूआ ने एक बार भी घर आने को नहीं कहा. हां, यह जरूर पूछ लिया कि मेरी गैस्ट लिस्ट में कौनकौन हैं ताकि वे होने वाले समधी को बता सकें.

यह सुनते ही हंसी तो बहुत आई लेकिन पिताजी का खयाल आते ही दबा लेनी पड़ी और कुछ बूआ की नाराजगी का भी डर था. मरते हुए पिताजी ने कहा था, ‘मैं जानता हूं, बेटी, बूआ तुम्हें कभी पसंद नहीं रही. तुम लोग तो मुझे भी मिलने से रोकते थे. लेकिन क्या करूं, सात भाईबहनों में से हम 2 ही तो बचे थे, कैसे छोड़ देता उसे, बहन जो थी. अब मैं तो जा रहा हूं. तुम्हारे दादा की यह अंतिम निशानी रह गई है, इस से रूठना मत, बेटी. मिलतीमिलाती रहना.’

एक दिन मैं ने ही उन्हें फोन किया. इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने बूआ से कहा. ‘‘अभी तो घर पर खर्चा कर डालो. जब शादी होगी तो मय सूद के पैसा वापस आ जाएगा.’’ बूआ ने कोई जवाब नहीं दिया.

खैर, एक दिन आने का संदेश दे दिया. तीनों लड़कों को बूआ ने खूब सजाया था. यही अच्छा था, लड़के अब कालेज में पढ़ते थे, सो चार कपड़े उन के पास अच्छे थे. बूआ के पास न जाने कब का सैंट रखा था. उन्होंने वह भी उन के शरीर पर मल दिया. मेरे पूछने पर बोली, ‘‘कमबख्त 8-8 दिन तक नहाते नहीं. पसीने की बू के बारे नाक सड़ने लगती है. सो, सैंट की गंध से पसीने की बू नहीं आएगी.’’

‘‘कुछ उन के लिए चायपानी का प्रबंध किया, बूआ?’’ मेरे पति बोले.
‘‘अरे बेटा, वे क्या बेटी के घर का खाएंगे?’’
‘‘पर अभी उन्होंने अपनी बेटी दी कहां है?’’ मैं ने कहा.

बूआ बुरा सा मुंह बनाती मान गईं.

लड़की वालों के साथ केवल बूआ ही बात करेंगी, ऐसी बूआ की आज्ञा थी. फूफा तो यह कह कर वहां से चले गए, ‘‘बेटी, तुम पतिपत्नी हो. बात संभाल लेना. मैं यहां रहा तो तेरी बूआ की पचरपचर कहीं मुझे आपे से बाहर न कर दे.’’ जाने को तो मेरे पति भी उठ खड़े हुए लेकिन मैं ने मिन्नत कर उन्हें रोक लिया, ‘‘पुरुष के साथ किसी पुरुष को ही बैठना चाहिए. भले ही उस का मुंह सिला हुआ हो.’’

जानकी कहीं दिख नहीं रही थी. मैं और मेरे पति बाहर वाले कमरे में बैठे थे. तब ही लड़की वाले आए. उन के हाथ खाली थे. 2 पुरुष थे. बूआ ने हमें बाहर ही रोक दिया. शायद वह दहेज की बात गुप्त रखना चाहती थी. हमें कुछ जोर से बोलने की आवाजें सुनाई दे रही थीं.

अचानक बूआ की चीख सुनाई दी, ‘हाय दैया, में तो मर गई.’

हम दोनों अंदर भागे, देखा, बूआ जोरजोर से रो रही थीं और जानकी को कोस रही थीं. सब बातों के बाद लड़कों को दिखाने की बात आई तो बूआ झट से उन के फोटो उठा लाईं. लड़की का पिता बोला, ‘‘हमें सैंपल नहीं, माल चाहिए.’’

उन्हें महावीर मोहन पसंद आया. बूआ ने झट से उस की कीमत भी बता दी, ‘‘मैं ने तो सोचा था, मैं अपने मुंह से दहेज नहीं मांगूंगी लेकिन आप अड़ ही गए हैं तो इस के लिए तो मैं 2 लाख रुपए का दहेज लूंगी.’’

‘‘मेरी तो 3 लड़कियां हैं. गरीब आदमी हूं, इतना कहां दे पाऊंगा. आप ने तो एक एकदम इतने भाव…’’

‘‘इस की बीमारी पर ही मेरा इतना खर्चा हो गया है, भाईसाहब. पढ़ाई का तो मैं ने बताया ही नहीं. जानते हैं, महंगाई का जमाना है. 2 लाख रुपए की कीमत ही क्या है? आप कृष्णमोहन से कर दीजिए रिश्ता,’’ बूआ बोलीं.

‘‘उस की आंख में नुक्स है, बहनजी. फिर जरा वह दादा टाइप है, जैसा कि आप ने बताया है. इसी से छोटा पसंद आया था,’’ समधी नम्रता से बोले.

पता चला कि जानकी ने अपने बौयफ्रैंड से शादी कर ली थी और उस की सूचना अपनी मम्मीपापा को देने की जगह लड़की वालों को दी थी. वे लोग तहकीकात करने आए थे. बूआ को पहले से शक था क्योंकि जानकी एक दिन घर से यह कह कर गई हुई थी कि वह कालेज ट्रिप में कश्मीर जा रही है. उसे स्कौलरशिप मिली है. उसी से पैसे का इंतजाम हो गया. लड़की वालों ने जानकी की शादी के फोटो और वौयस मैसेज लड़की के पिता को भेज दिए थे.

अब लड़की के पिता अपनी तेजाब डाली लड़की की शादी भी निखट्टू लड़कों से करने को मना करने आए थे.

हम दोनों नहीं समझ पा रहे थे कि बूआ का गम क्या है. 5 लाख का नुकसान, जानकी की शादी या बेटों का कुंआरा रह जाना. मेरे पति ने बूआ से कहा, ‘‘बूआ जानकी ने बिलकुल सही किया. मेरे घर के दरवाजे तो उस के लिए हमेशा खुले रहेंगे पर आप के घर के दरवाजे कोई लड़की वाला नहीं खटखटाएगा क्योंकि वजह आप का लालच और झगड़ालूपन है. यह बात सब को मालूम है. मैं बता दूं रमा को बताए बिना मैं जानकी की शादी में गवाह था. मेरे कहने पर ही मजिस्ट्रेट ने बिना कोई अड़चन लगाए शादी कराई थी क्योंकि वह मेरा सहपाठी रह चुका था. रमा को मैं ने नहीं बताया था क्योंकि कहीं आप हमारे घर में क्लेम करने न आ जाएं.’’ यह कह कर मेरे पति मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल गए. बूआ दहाड़ें मारमार कर रो रही थी.

लेखिका : लीला सिंह

Akshaya Tritiya : कमाई का जरिया अक्षय तृतीया

Akshaya Tritiya : अक्षय तृतीया किस तरह पंडितों के लिए कमाई का साधन बन गया है, यह दिल्ली के एक समाचार से साफ जाहिर है कि इस अकेले दिन 21,000 शादियां होने के कारण हर पंडित का दाम बढ़ गया. हर पंडित ने चारचारपांचपांच शादियां कराईं. दिल्ली के 1,400 बैंक्वेट हौलों, 200 एमसीडी के कम्युनिटी हौलों, 1,000 पार्कों में पंडाल लगाने के काम करने वालों ने जम कर अतिरिक्त पैसा कमाया. यह पूरे भारत में हुआ. अबूझ मुहूर्त का नाम दे कर इस दिन शादियों से जुड़े खास लोगों ने मोटी कमाई की. सोशल मीडिया ने यह सवाल नहीं उठाया कि क्या गारंटी है कि इस दिन हुए विवाह कभी टूटेंगे नहीं और डोमैस्टिक वौयलैंस, दाउरी एक्ट, तलाक के मामले नहीं बनेंगे?

Gold Price : सोना तो सोना है

Gold Price : मई 2024 से मई 2025 तक सोने के दामों में हुई 35 प्रतिशत वृद्धि से उन लोगों को तो खुशी हुई जिन्होंने पहले से सोना खरीद रखा था लेकिन उन्हें गम हुआ जो कुछ गहने बनवाना चाहते थे. विश्व की सरकारों द्वारा गोल्ड रिजर्व बढ़ाने के कारण डौलर पर भरोसा कम होना इस वृद्धि का मुख्य कारण है. गोल्ड लोन ले कर समय पर न चुका पाने वालों को बड़ा नुकसान होने वाला है. दरअसल, बैंक वाले पीठपीछे निर्णय ले कर लोन लेने वाले के सोने की मनमरजी से नीलामी कर उस से मिली रकम बना देंगे. लोन लेने वाले दोतीन लाख रुपए के लिए कहीं शिकायत भी नहीं कर पाएंगे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें