Best Hindi Satire : अरे वाह, तोंद की महिमा तो कुछ और ही है. पेट का आकार बढ़तेबढ़ते मानो सफलता की निशानी बन गया हो. पहले कहते थे, ‘पतले रहो, स्वस्थ रहो,’ अब तो आलम है कि ‘जितना बड़ा पेट, उतनी बड़ी शान.’
हिंदू शास्त्रों में समय को 4 युगों, यथा सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग में बांटा गया है. विद्वानों के अनुसार, अभी कलियुग चल रहा है. लेकिन मौजूदा समय को ‘तोंदुल युग’ कहना ज्यादा प्रासंगिक होगा. हालांकि इन्हें किसी कालखंड में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि तोंदुलों का अस्तित्व अनादिकाल से बना हुआ है. मामले में ये कौकरोचों को भी पीछे छोड़ चुके हैं. आज ये बहुसंख्यक हैं और देश को चलाने में इन की अहम भूमिका है. इतना ही नहीं, ऊर्जावान और क्षमतावान होने की वजह से दुनियाभर में इन की तूती बोल रही है.
तोंद की महिमा हर युग में बनी हुई रही है और तोंदुलों को ईसा पूर्व से मानसम्मान मिलता रहा है. उस जमाने में गणमान्य व्यक्ति यानी नगर सेठ, पुरोहित, राज पुरोहित आदि तोंदुल ही हुआ करते थे, लेकिन वे अर्थव्यवस्था और धर्म के आधार थे. इन के सहयोग के बिना राजा कुछ भी नहीं कर सकता था. वे इतने ताकतवर होते थे कि कभी भी राजा का तख्ता पलट सकते थे. आज भी तोंदुल आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक दिशानिर्देशों व नियमकायदों को तय करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
तोंदुल की श्रेष्ठता से जलनेभुनने वाले इन की महिमामंडन करने से बचते रहे हैं पर आज जरूरत इस बात की है कि तोंदुलों के एहसान को माना जाए, उन की अहमियत को सम झा जाए, बेवजह उन की लानतमलामत न की जाए, हमेशा श्रद्धाभाव से उन का इस्तकबाल किया जाए आदि.
दुनिया में तोंदुलों के महत्त्व को या उन की महिमा को सिर्फ इथोपिया जैसा देश ही सम झ सका है, जहां निवास करने वाले बोदी जनजाति में जिस पुरुष की तोंद सब से ज्यादा बढ़ी हुई होती है, उसे सब से सुंदर या हैंडसम माना जाता है. वहां सभी पुरुष हमेशा तोंद बढ़ाने की जुगत में रहते हैं. बड़े व बढ़े तोंद पर लड़कियां मरती हैं, जान छिड़कती हैं. मोटे पुरुषों के लिए सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है और सब से मोटे पुरुष को विजेता घोषित कर के उस का मानसम्मान किया जाता है, साथ ही साथ, उसे पुरस्कार के रूप में एक मोटी राशि दी जाती है.
वर्तमान में तसवीर थोड़ी बदल गई है. राजा अर्थात नेता यानी सांसद, विधायक, मंत्री आदि तोंदुल बन गए हैं. देश यही चला रहे हैं. नेता को मामले से अलग कर दें तो भी रोजगार सृजन का कार्यभार तोंदुलों ने अपने कंधों पर ले रखा है.
डाक्टर और दवाखाना वाले तो पूरी तरह से तोंदुलों के रहमोकरम पर जिंदा हैं. मिठाई, पिज्जाबर्गर, गोलगप्पे व समोसाचाट, जलेबी, पूरीकचौड़ी व घूघनी, बकरामुर्गा, मोमौजचाउमीन आदि बेचने वालों की दुकानें भी तोंदुल ही चला रहे हैं. कपड़े बेचने वाले, दर्जी आदि के मुनाफे को बढ़ाने में भी इस प्रजाति की अहम भूमिका है.
वीएलसीसी, जिम चलाने वाले, स्लिमिंग मशीन का कारोबार करने वाले कारोबारी तोंदुलों की वजह से ही चांदी काट रहे हैं. करोड़ोंअरबों रुपयों के वारेन्यारे कर रहे हैं ये लोग. सिर्फ एकदो किलोग्राम वजन कम करने के लिए तोंदुल डाक्टरों और कारोबारियों की मोटी रकम से जेब गरम कर रहे हैं.
बड़ी संख्या में महिलाएं तोंदुल पति की वजह से ही आज चैन की नींद सो पा रही हैं. पति की जासूसी करवाने का भी टैंशन उन्हें नहीं रहता है. पति की सेक्रेटरी सुंदर कन्या के रहने पर उन्हें डर नहीं लगता है. कभी बुरे सपने नहीं आते हैं. तोंदुल पति इधरउधर मुंह नहीं मारेगा और चरबीदार और गुब्बारे जैसे फूले पेट वाले पति को कोई भी कन्या घास नहीं डालेगी, इस का भरोसा पत्नी के मन में सर्वदा बना रहता है. हां, एकाध प्रतिशत कोई चंट या मक्कार लड़की पैसों के चक्कर में तोंदुल पति पर डोरे डालने की कोशिश करती भी है तो आसानी से पत्नी बेलन से या गालियों की बौछार से उस की छीछालेदर कर सकती है.
इश्क के चक्कर से बचे रहना, लड़की के चक्कर में पत्नी से लड़ाई नहीं होना, काम पर फोकस बना रहना, हमेशा मनपसंद भोजन करना, कसरत करने या मौर्निंग वौक करने में समय बरबाद नहीं करना, फिजिकल खेलकूद में व्यर्थ के पैसे खर्च करने से बचे रहना, हमेशा खुश रहना आदि तोंदुल होने के ही तो फायदे हैं.
देखा जाए तो आज दुनिया तोंदुलों के रहमोकरम की वजह से ही चल रही है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भ में देखेंगे तो इन का भारतीय अर्थव्यवस्था में कम से कम 25-30 प्रतिशत का योगदान जरूर होगा. सो, अब वक्त आ गया है कि हम इन्हें हिकारत की नजरों से देखना बंद करें और तोंदुल महाराज का सोतेजागते अविरल जयकारा लगाएं.