Download App

प्रदूषण होगा दूर, जब पौधे हों भरपूर

घर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति घर के कोनों में तरहतरह के सुंदर फूलों व पत्तों वाले पौधे उगा सकता है. पिछले कुछ वर्षों में घरों के अंदर उगाए जाने वाले सजावटी पौधों की तरफ लोगों का झुकाव काफी बढ़ा भी है. पौधों को बैडरूम, रसोईघर, खाना खाने वाले कमरे, सीढि़यों, बरामदे, बालकनी में या फिर दूसरे अन्य स्थानों की शोभा बढ़ाने के लिए भी रखा जाता है. इन सभी जगहों के लिए वहां के वातावरण, खासतौर पर रोशनी और तापमान के मद्देनजर विभिन्न किस्मों के पौधों का चयन व उपयोग किया जा सकता है.

पौधे का चुनाव

पौधों का चुनाव, उन के लगाने के स्थान विशेष व उपयोग के अनुसार किया जा सकता है. घर के अंदर यदि ‘फोकल पौइंट’, ऐसी जगह जहां नजर सब से पहले जाए, बनाना है तो पौधे को इस तरह से रखा जाना चाहिए कि वह घर का ही एक हिस्सा लगे. इस के लिए कमरे व पौधे के आकार का गहरा संबंध है. एक विकसित रबड़ प्लांट फाइकस इलास्टिका छोटे कमरे के लिए उचित नहीं होगा. इसी तरह अकेला ‘फर्न’ का पौधा बड़े कमरे में अपनी छटा नहीं बिखेर पाएगा.

पेड़ों की बहुत सी किस्में जो बाहर बहुत बड़ा आकार ले लेती हैं, उन्हें अंदर गमलों में बहुत छोटे आकार में कई सालों तक रखा जा सकता है. इन में ‘फाइकस’ की कई किस्में खास हैं जोकि बहुत ही शानदार व प्रभावी दिखती हैं और उन्हें गमलों में सुविधापूर्वक उगाया जा सकता है. ‘फाइकस बैंजामिना’, ‘फाइकस इलास्टिका’, ‘फाइकस ट्राईऐंगुलेरिस’, ‘फाइकस जैपोनिका’, ‘ग्रेविलिया रोबस्टा’, ‘सैफ्रलेरा आरवोरिकोला’ और ‘सैफ्रलेरा ग्रैनुलोसा’ खासी मशहूर हैं. इन्हें गमलों में उगा कर घर के अंदर की सजावट में प्रयोग किया जा सकता है.

कभीकभी इन पौधों को बड़े कमरों के विभाजन के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता है. इस के लिए ‘डरासीना’, ‘मोनेस्टेरा’, ‘फिलोडेंड्रोन’, ‘सैफ्रलेरा’, ‘सिंगोनियम’ इत्यादि की जातियां व प्रजातियां तथा ‘कोडियम वैरीगेटम’, ‘कोलियस ब्लूमी’ और ‘कोरडीलाइन टरमीनेलिस’ की किस्में अच्छी रहती हैं.

घरों के अंदर बहुत से काम इन पौधों की मदद से किए जा सकते हैं. लेकिन यह जानना आप के लिए जरूरी है कि आप के घर के वातावरण में कौनकौन से पौधे आसानी से उग सकते हैं, क्योंकि इन सभी की रोशनी, तापमान व आर्द्रता की अपनी अलगअलग जरूरतें होती हैं.

ये पौधे 15-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान को अधिक पसंद करते हैं. इसी तरह से इन के लिए आर्द्रता, गमले व गमले की मिट्टी, खाद व पानी तथा अन्य देखरेख, पौधे की जाति व प्रजाति पर निर्भर करती है. मगर यह जरूरी है कि कम से कम 15 दिन में एक बार पौधे को भरपूर मात्रा में पानी दें ताकि गमलों के पेंदों में बने छेद से पानी बाहर निकल जाए.

इसी के साथसाथ यदि सुबह की रोशनी इन पौधों को मिले तो ये लंबे समय तक तरोताजा रहते हैं. ध्यान रहे, पौधों के बीच उचित दूरी हो ताकि वे अच्छी तरह से फैल सकें. फूल वाले पौधों को छायादार कोने में न रखें. पौधों को अत्यधिक गरमी व ठंड से दूर रखें. चाय या कौफी के बचे हिस्से को गमले में न डालें. पत्तों की ज्यादा चमक के लिए पानी के अलावा दूसरी चीज इस्तेमाल न करें.

घरों के अंदर इन पौधों के न पनपने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि ठंड, कुहरा, रोशनी की कमी या अधिकता, अत्यधिक पानी, लवणीय पानी का इस्तेमाल, गलत समय में गमले बदलना इत्यादि. पौधे सिर्फ सजावट का ही काम नहीं करते बल्कि घरों के अंदर तापमान व प्रदूषण को कम करने में भी मदद करते हैं.

ये पौधे न सिर्फ वायुमंडलीय हवा को शुद्ध करते हैं बल्कि वे घरों के अंदर की हवा को भी शुद्ध रखते हैं और सीमित वातावरण में उस की गुणवत्ता को और भी बढ़ावा देते हैं. जो घर हवादार नहीं होते हैं उन के अंदर गैसीय जहरीले पदार्थ एकत्रित होते रहते हैं. ये पदार्थ घर के अंदर रहने वालों के लिए हानिकारक भी हैं. इन पदार्थों की मात्रा उन घरों में अधिक बढ़ जाती है जहां ठंड से बचने के लिए हवादार खिड़कियां कम होती हैं और ऊर्जा संचित करने के लिए साधन ज्यादा. आधुनिक शैली के घरों में जहां तारपीन व विभिन्न पेंट का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है वहां घर के अंदर के प्रदूषक जैसे फौरमैल्डीहाइड की मात्रा पहले की तुलना में अधिक पाई गई है. फौरमैल्डीहाइड की मात्रा बढ़ जाने से आंख, गला और फेफड़ों में खुजली, सांस से संबंधित समस्याएं और एलर्जी जैसी बीमारियों का भय बढ़ जाता है.

पिछले कुछ वर्षों में घरों से इस तरह के प्रदूषण को दूर करने के लिए सजावटी पौधों का उपयोग किया जा रहा है. इस के साथसाथ ऐसे नए सजावटी पौधों को पहचाना जा रहा है जो इन प्रदूषणों की मात्रा को कम या खत्म करते हैं. इसी कड़ी में नासा के वैज्ञानिकों ने 3 सजावटी पौधों ‘क्लोरोफाइटम इलेटम’, ‘सिनडैपसिम औरियस’ और ‘सिंगोनियम पोडोफाइलम’ को फौरमैल्डीहाइड की मात्रा को कम करने के लिए चुना. इन तीनों किस्मों के पौधों को कम रोशनी की जरूरत होती है.

वहीं, ‘क्लोरोफाइटम इलेटम’ और ‘सिनडैपसिस औरियस’ घरों के अंदर के अन्य प्रदूषकों जैसे नाइट्रोजन डाईऔक्साइड और कार्बन मोनोऔक्साइड की मात्रा को भी कम करते हैं.

हवाजनित जीवाणुओं, जोकि कम हवादार घरों में ज्यादा पाए जाते हैं, को कम करने के लिए ‘रैपिस एक्सैल्सा’ नाम के सजावटी पौधे को उपयुक्त पाया गया है. सजावटी पौधे घरों के अंदर औक्सीजन की मात्रा को बढ़ाते हैं और कार्बन डाईऔक्साइड को कम करते हैं. चौड़े पत्तों वाले पौधे औक्सीजन की मात्रा को अधिक बनाए रखने में सब से अधिक सहायक हैं जबकि कार्बन डाईऔक्साइड की मात्रा को कम करने में चौड़ी पत्ती वाले पौधे व सकुलैंट्स, दोनों बहुत उपयोगी हैं.

हाल ही में हुई रिसर्च से पता चला है कि घरों के अंदर सजावट के लिए रखे जाने वाले पौधे, हानिकारक वाष्पशील जैविक पदार्थों यानी वौलेटाइल औरगेनिक कंपाउंड्स को नष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. घरों के अंदर ‘वाष्पशील जैविक पदार्थ’ बहुत ठोस व द्रवीय चीजों जैसे कारपैंटिंग, फर्नीचर, दीवारों के ढकने के लिए प्रयुक्त सामग्री और छत पर लगी टाइलें इत्यादि से उत्पन्न होते हैं. वैज्ञानिकों ने यहां तक साबित कर दिया है कि इन पौधों की जड़ें यानी मिट्टी के अंदर वाला भाग व मिट्टी के बाहर वाला भाग, दोनों ही घरों के अंदर की हवा को शुद्ध करने में मदद करते हैं. एक शोधकार्य, जोकि पौधों की 7 जातियों व प्रजातियों पर किया गया था, ने यह सिद्ध किया है कि हानिकारक वाष्पशील जैविक पदार्थों को नष्ट करने की क्षमता की अधिकता के लिए पौधे की जड़ों वाला व ऊपरी हिस्से दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं.

दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि यदि हमें अपने घरों के अंदर के वातावरण को शुद्ध रखना है तो घरों के अंदर पौधे को गमलों इत्यादि में उगाना ही पड़ेगा, सिर्फ फूलदानों में पत्ते या फूल रखने से काम नहीं चलेगा.

बाहर के वातावरण में हवा में फैले हुए पदार्थ जैसे मिट्टी व धूल के कण, परागकण और धुआं जिस तरह प्रदूषण फैलाते हैं ठीक उसी तरह ये पदार्थ घरों के अंदर भी प्रदूषण फैलाते हैं. ये पदार्थ घरों के उन कमरों में जहां सजावटी पौधे रखे गए हों, कम पाए गए हैं. घरों के अंदर ये सजावटी पौधे आक्रामक गंध को दूर कर के भी वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं.

गार्डनिंग प्रकृति का बसेरा

गार्डनिंग किसी भी तरह की हो, करने वाले की कलात्मक रुचि व प्रकृति प्रेम का आईना होती है. पेड़पौधे हमें जीवनवायु यानी औक्सीजन देते हैं. वैज्ञानिक तथ्यों से यह भी साबित हो चुका है कि हमारे चारों ओर पेड़पौधों की उपस्थिति हमें विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त रखने के साथसाथ तापमान को कम करती है और हरियाली हमारे मानसिक तनाव को कम करती है. अपने हाथों से गार्डनिंग करना न केवल आप को मानसिक संतुष्टि प्रदान करेगा बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से भी मुक्त रखेगा.

घर का आंगन छोटा हो या बड़ा, आप अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रकार की गार्डनिंग जैसे टैरेस गार्डन, रौक गार्डन, वाटर गार्डन या संकन गार्डन इत्यादि बना सकते हैं. परंतु यदि आप के घर में आंगन नहीं है और आप बहुमंजिली इमारत में रहते हैं तो भी बिलकुल निराश न हों. आधुनिकता की दौड़ में आज ऐसे बहुत से विकल्पों का सृजन हो गया है जिन से आप घर के अंदर, टेबल पर बौटल गार्डन, खिड़कियों में विंडो गार्डन, दीवारों पर वर्टिकल गार्डन या छतों पर रूफ गार्डन बना कर प्रकृति का भरपूर आनंद उठा सकते हैं.

विंडो गार्डन

इस में विंडो के बाहर गार्डनिंग की जाती है. इसे 2 तरह से किया जा सकता है, पहली खिड़की के बाहर लकड़ी, मैटल या सीमेंट का बौक्स बना कर, सीधे ही मिट्टी का उपजाऊ मिश्रण डाल कर पौधे लगाएं. दूसरा, इस बौक्स को प्लांटर की तरह उपयोग करें, जिस में विभिन्न प्रकार के पौधे पहले गमलों में लगाएं और फिर इन गमलों को विंडो बौक्स में करीने से सजाएं. दूसरा तरीका अधिक कामयाब है क्योंकि गमलों को फेरबदल कर विंडो गार्डन को हर मौसम में नवीन बनाया जा सकता है.

विंडो गार्डन के लिए पौधों का चुनाव करने से पहले खिड़की की दिशा, प्रकाश व धूप का समय इत्यादि जानकारी अवश्य इकट्ठी करें. आमतौर पर अगर खिड़की उत्तरपूर्व दिशा में हो तो धूप व प्रकाश प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहते हैं. ऐसी खिड़की में विभिन्न रंगों के मौसमी या बहुवार्षिक पौधे जैसे गुलाब, जिरेनियम, मौसमी फूल लगाएं. दक्षिण दिशा की खिड़की में कम प्रकाश व धूप होती है, इसलिए इस विंडो में कम प्रकाश पसंद करने वाले पौधे जैसे हाईड्रेंजिया, सैंसेविएरिया, बिगोनिया लगा सकते हैं. खिड़कियां चूंकि ऊंचाई पर स्थित होती हैं तो इन में पौधे जैसे नौस्टरशियम, एप्टीनिया, सिनेशियो या वारनोमिया भी खूब फबते हैं.

बौटल गार्डन/टैरेरियम

क्या आप ऐसे बागीचे की परिकल्पना कर सकते हैं जो आप के ड्राइंगरूम की सैंटर टेबल या डाइनिंग टेबल की शान बढ़ाए? जी हां, इस का एक अनूठा विकल्प है बौटल गार्डन व टैरेरियम. जब बागीचा कांच की पारदर्शी बोतल के अंदर बना हो तो इसे बौटल गार्डन कहा जाता है, जबकि अगर यह एक बड़े चौकोर आयताकार कांच के बौक्स में बना हो तो इसे टैरेरियम कहा जाता है. इसे बनाना बहुत ही सरल है. सब से पहले कांच के बरतन का चुनाव करें. रुचि के अनुसार गोल, चपटी या चौकोर बोतल लें. बोतल का मुंह इतना बड़ा अवश्य हो कि जिस से चिमटी अंदर जा सके. सब से पहले बोतल को अच्छी प्रकार साफ करें व सुखा लें. इस गार्डन के लिए पौधों का चुनाव महत्त्वपूर्ण है. इस प्रकार के पौधों को चुनें जो कम प्रकाश या फिल्टर्ड प्रकाश में भी जीवित रह सकें व जिन का फैलाव या बढ़त बहुत कम या न के बराबर हो. बौटल गार्डन में हरे, दोरंगे या रंगबिरंगे पत्तों वाले पौधे अत्यंत आकर्षक लगते हैं. इन में पैपरोमिया, क्लोरोफाइटम, हिड्रा, एडिएंटम, पीलीया और छोटे आकार के क्रोटन प्रमुख हैं.

टैरेरियम के आकार के अनुसार इस के लिए सब से पहले एक कागज पर पौधों को नियोजित करने की योजना बना लें. चूंकि बौटल गार्डन में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं होती इसलिए इसे बनाते समय पहले छोटेछोटे कंकड़, पत्थरों की एक सतह बनाएं. इस के लिए इमारतों के फर्श में इस्तेमाल होने वाले रंगबिरंगे, चिप्स, जोकि लगभग हर घर में उपलब्ध रहते हैं, प्रयोग किए जा सकते हैं. बौटल के अंदर सामान पहुंचाने के लिए कागज की कीप का प्रयोग करें. इस के ऊपर पहले से गीली की गई मौस बिछाएं, ताकि मिट्टी का मिश्रण नीचे की सतह पर न पहुंचे. मौस के ऊपर चारकोल की 0.5 से 1.0 सैंटीमीटर ऊंची सतह बनाएं और आखिर में मिट्टी व सड़ीगली पत्तों की खाद का मिश्रण डालें. इन सभी सतहों को बोतल के 1/3 भाग तक ही डालें, ऊपर का भाग पौधों के लिए रहने दें.

अब एक लंबी चिमटी ले कर पौधों को बौटल के अंदर उतारें और लगा दें. चुने हुए पौधों को इस प्रकार लगाएं कि ऊंचे पौधे पीछे व छोटे पौधे आगे आएं. यदि बौटल गार्डन आप की सैंटर टेबल की शान बढ़ाने वाला है तो पौधों को इस प्रकार लगाएं कि चारों ओर से दृश्य मनोरम लगे. पौधारोपण के पश्चात पतली नली से पानी दें या हलका स्प्रे करें. पानी उतना दें कि जिस से मिश्रण गीला हो, उस से अधिक नहीं.

बौटल गार्डन का मुंह बंद रखना चाहते हैं तो इसे कई सप्ताह तक पानी देने की आवश्यकता नहीं है, यद्यपि आवश्यकतानुसार स्प्रे से नमी बनाए रखें. बौटल गार्डन को कभी भी सीधे प्रकाश या धूप में न रखें.

ग्रीन रूफ या रूफ गार्डन

साल 2005 में यूनिवर्सिटी औफ टोरंटो, अमेरिका द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रीनरूफ गार्डन हवा में मौजूद कार्बन डाईऔक्साइड व दूसरे प्रदूषणों को कम करता है. यह गरमी में ठंडक और सर्दियों में हीटिंग के व्यय को कम करता है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, ग्रीन रूफ से घर के अंदर का तापमान 1.4 से 4.4 डिगरी सैल्सियस तक कम किया जा सकता है. इन्हीं शोधों और आंकड़ों के आधार पर जरमनी, स्विट्जरलैंड व अन्य यूरोपीय देशों ने शहरों की बहुमंजिली इमारतों पर ग्रीन रूफ अनिवार्य कर दिया है. विश्व के सभी देशों में जरमनी में सर्वाधिक ग्रीन रूफ हैं.

आधुनिक युग में शहरों में इमारतों का निर्माण ही इस प्रकार किया जाता है कि उन की छतें जल प्रतिरोधी यानी वाटरप्रूफ व मिट्टी व पेड़पौधों का भार सहन करने की क्षमता रखती हों. इस प्रकार का गार्डन बनाने के लिए पूर्व योजना बनाएं और इंजीनियर की मदद से इमारत की भार सहने की क्षमता व वाटर प्रूफिंग का प्रबंधन करें. रूफ गार्डन को ग्रीन रूफ भी कहा जाता है, जोकि प्रकृति, कला और विज्ञान का अनुपम संगम है.

ये 2 प्रकार के होते हैं, इंटैंसिव रूफ गार्डन व एक्सटैंसिव रूफ गार्डन. इंटैंसिव प्रकार का रूफ गार्डन थोड़ा महंगा होता है और इस में मिट्टी के मिश्रण की मोटी परत 50 सैंटीमीटर से 1 मीटर तक बिछाई जाती है. इस प्रकार के गार्डन में छोटे पौधों के साथसाथ पेड़ भी लगाए जा सकते हैं. इसे बनाने के लिए सर्वप्रथम इंजीनियर की मदद से वाटर प्रूफिंग की जाती है. इस के ऊपर बारीबारी विभिन्न सतहें जैसे पौंड लाइनर, फिल्टर लेयर व इंसुलेशन बिछाई जाती हैं, जिन के ऊपर मिट्टी या मिट्टी रहित हलका मिश्रण बिछाया जाता है. पहले कागज पर नक्शा बनाया जाता है और उस के अनुसार पौधों का चुनाव किया जाता है.

गार्डन के नक्शे के मुताबिक मिश्रण की ऊंचाई तय की जाती है. नन्हीनन्ही पहाडि़यां, रूफ गार्डन को अधिक प्राकृतिक बनाती हैं. रूफ गार्डन में विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए जा सकते हैं. वृक्षों में कम गहरी जड़ों वाले पाम, क्यूप्रेसस, फूलदार टीकोमा स्टांस, प्लूमेरिया लगाएं. वृक्षप्रेमी विभिन्न प्रकार के वृक्षों के बोनसाई रख कर भी वृक्षों का आनंद उठा सकते हैं. फूलदार, अलंकृत बांस की प्रजातियां रूफ गार्डन की शान दोगुना कर देती हैं. रूफ गार्डन में लगा लौन, गार्डन की जान है. नर्सरियों में लौन टाइल के रूप में भी उपलब्ध रहता है, जोकि इस गार्डन में सब से सफल है. मौसमी फूलों के रंगों से कोई भी गार्डन जीवंत हो उठता है. इन्हें छोटी क्यारियों के गमलों में लगाएं. फूलदार व खुशबूदार हलकी लताएं भी लगाएं, ये विंड ब्रेक का काम करने के साथसाथ अनचाहे दृश्यों से स्क्रीनिंग भी करेंगी.

रूफ गार्डन या ग्रीन रूफ बनाने के लिए बड़ेबड़े शहरों में बहुत सी व्यावसायिक कंपनियां स्थापित की गई हैं जो आप के घर की छत को नया रूप देने में सक्षम हैं.

वर्टिकल गार्डन

शहरों में भूमि की उपलब्धता कम होने से वैज्ञानिकों ने अब पौधों को दीवारों पर लगाने की वर्टिकल गार्डन प्रणाली विकसित की है. इस में दीवारों पर पौधे लगाए जाते हैं. इस के लिए पौधों की जानकारी होने के साथ इंजीनियरिंग की निपुणता की भी आवश्यकता है. इस प्रकार के गार्डन बनाने के लिए रेडिमेड वर्टिकल पैनलों का प्रयोग किया जाता है. इन पर पौधों के लिए पर्याप्त स्थान बना होता है. ड्रिप नलियों द्वारा पानी की व्यवस्था होती है.

विभिन्न प्रकार के सीडम, सीनेशियों, एप्टीनिया, ट्रैडेसकैंशिया इत्यादि का प्रयोग इस गार्डन में किया जाता है. ये अनूठे गार्डन खूबसूरत दिखने के साथसाथ पर्यावरण व वातावरण को शुद्ध करते हैं और बड़ीबड़ी बिल्डिंग के एअरकंडीशनिंग के खर्चे की बचत करते हैं. ग्रीन रूफ या रूफ गार्डन की तरह ही इस गार्डन को बनाने के लिए आप व्यावसायिक कंपनियों व इंजीनियरों की मदद लें. कुछ लोग पत्तेदार बेलों जैसे फाइकस रैपेंस को दीवारों पर चढ़ा देते हैं, इसे भी वर्टिकल गार्डन कहा जा सकता है.

जिन इमारतों पर ग्रीन रूफ वर्टिकल गार्डन बनाए जाते हैं, उन्हें ग्रीन बिल्ंिडग कहा जाता है. मौसम के बदलते परिवेश में ग्रीन बिल्डिंग्ज का अपना महत्त्व है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, ये ‘हीट आइलैंड इफैक्ट’ को भी कम करने में कारगर हैं. यह समय की मांग है, इसीलिए कुछ देशों ने इन्हें बनाना अनिवार्य कर दिया है.

लैंडस्केपिंग प्राकृतिक सुंदरता

वृक्ष, झाड़ियों, लताओं व फूलों का ऐसा स्थान जो प्राकृतिक वनस्पतियों व कृत्रिम साधनों के मिलेजुले रूप में वैज्ञानिक व कलात्मक उपायों द्वारा सुसज्जित किया गया हो, अलंकृत उद्यान कहलाता है. अनेक प्राकृतिक स्थल जो आकर्षक व प्रिय नहीं होते उन्हें वनस्पतियों के जरिए कलात्मक रूप प्रदान किया जा सकता है. इसे लैंडस्केपिंग कहते हैं.

अलंकृत उद्यानों की शैलियां : अलंकृत उद्यानों की 2 मुख्य शैलियां होती हैं, एक नियमित या ज्यामितीय शैली और दूसरी प्राकृतिक या दृश्यभूमि शैली. पहली शैली में ज्यामितीय यानी नियमित नियमों का पालन कर के उद्यान बनाया जाता है जबकि दूसरी शैली में आधुनिक उद्यान कला यानी मौडर्न गार्डन आर्ट के सिद्धांत के आधार पर उद्यान बनाए जाते हैं. वृक्षों व झाड़ियों के झाड़ों आदि के द्वारा इस में विभिन्न प्राकृतिक तत्त्वों का समायोजन किया जाता है.

इन 2 शैलियों के अतिरिक्त तीसरी शैली भी है जिस में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों शैलियों के कुछ तत्त्वों को ले कर लैंडस्केपिंग की जाती है.

उद्यान अभिकल्पना के सिद्धांत : उद्यान तैयार करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है : उद्यान का स्थान, उद्यान की बाड़, उद्देश्य की प्रधानता, जरूरत के मुताबिक बदलाव की गुंजाइश, एकरूपता, आकार, विभाजन, क्रमिक प्रबंध, प्रकाश, छाया, गठन या बनावट, रंग व रंग की गहनता और लय तथा सामंजस्य.

लैंडस्केपिंग में सड़क, रास्ते व पगडंडियां बनाने का उद्देश्य यह होता है कि दर्शक प्रत्येक सौंदर्यस्थल पर सुगमता से पहुंच सकें. सड़कें औपचारिक उद्यान शैली के अनुसार हो सकती हैं. सड़कों के किनारे सुंदर पुष्पीय व छायादार वृक्ष लगाए जाते हैं. आमतौर पर भारत के मैदानी क्षेत्रों में वृक्षों को जून से अगस्त तक लगाया जाता है. इन दिनों मानसून के कारण पानी देने की जरूरत नहीं होती है.

वृक्षों के बिना कोई भी उद्यान पूर्ण नहीं माना जाता है. वृक्ष लगाने से पहले फूलों का रंग, फूलों के उगने का समय ऊंचाई व फैलाव आदि के बारे में जानकारी लेनी आवश्यक है. घरों व छोटे उद्यानों में कम फैलने वाले वृक्ष जैसे डूपिंग अशोक, आकाशनीम गुलतुर्रा उपयुक्त रहते हैं जबकि बड़े उद्यानों में वृक्षावली के रूप में बड़े वृक्षों को लगाया जाता है.

लताएं या बेल का उपयोग घर के द्वार पर चढ़ाने, मेहराब बनाने, छायागृह बनाने, आकर्षक आकृति को बनाने, भद्दे या गंदे स्थानों को ढकने आदि के लिए किया जाता है. दीवारों को सजाने के लिए पाइरोजेस्टिया, बोगनबेलिया, रंगून क्रीपर आदि बेलें उपयोग में लाई जाती हैं.

सुंदर पत्तियों वाली लताओं में एस्पैरेगस, आइमी हैं जबकि सुंदर फूल वाली लताओं में पाइरोजेस्टिया, रंगून क्रीपर शामिल हैं और सुंगधित पुष्पों वाली लताएं जैसे चमेली व गुलाब हर जगह उपलब्ध रहती हैं.

इस तरह अलंकृत उद्यान तैयार करने के साथ आप जमीन सुदर्शनीकरण यानी लैंडस्केपिंग सफलतापूर्वक कर सकते हैं. आप की मेहनत हरियाली प्रेमियों के दिलों को बागबाग कर देगी.

बैंकिंग क्षेत्र में नए लाइसैंस से गांवों का भला

रिजर्व बैंक ने नए बैंकों के लिए लाइसैंस के द्वार खोल कर बैंकिंग क्षेत्र में नए खिलाडि़यों को भूमिका निभाने का मौका दिया है. लाइसैंस देने में यह भी शर्त है कि बैंक अपनी 25 फीसदी शाखाएं 1 हजार से कम आबादी वाले गांव में खोलेंगे और ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेंगे.

रिजर्व बैंक के इस निर्णय पर उद्योग मंडल फिक्की ने बैंकों, औद्योगिक व कौर्पोरेट घरानों को शामिल कर के एक सर्वेक्षण किया है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने बैंक लाइसैंस के लिए रखी शर्तों पर खुशी जताई है और कहा है कि इस से छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के लोगों को बैंक सुविधाएं हासिल हो सकेंगी. गौरतलब है कि विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों में 45 फीसदी लोगों के पास बैंक खाते हैं जबकि भारत में सिर्फ 35 प्रतिशत आबादी के पास ही बैंक खाते हैं. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है. देश में करीब साढ़े 6 लाख गांव हैं और ज्यादातर गांवों में बैंक की कोई शाखा नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में साढ़े 37 हजार से अधिक बैंक शाखाएं हैं जबकि बैंकिंग आउटलेट यानी जहां पैसे का बैंकिंग आधार पर लेनदेन होता है, ऐसी शाखाएं 2 लाख से भी कम हैं.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के इस निर्णय से बैंकिंग बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और नई तकनीक का इस्तेमाल होगा व गांव के उपभोक्ताओं को भी बेहतर सेवा और सुविधाएं मिलेंगी. सर्वेक्षण में शामिल 53 फीसदी लोगों ने कहा है कि उन्हीं कंपनियों या औद्योगिक घरानों को लाइसैंस मिलने चाहिए जिन की वित्तीय स्थिति अच्छी हो और जिन का वित्तीय रिकौर्ड भी बेहतर रहा हो जबकि 29 फीसदी लोगों का कहना है कि अच्छी वित्तीय समझ और अनुभवी कंपनियों को यह अवसर दिया जाना चाहिए. इसी तरह से 69 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सिर्फ औद्योगिक व कौर्पोरेट घरानों को लाइसैंस मिलने चाहिए जबकि 31 प्रतिशत ने यह भी कहा है कि औद्योगिक घरानों और कौर्पोरेट को बैंकों का संचालन नहीं करना चाहिए.

चीन की असलियत : दूध का दूध पानी का पानी

कहते हैं न कि कितने ही ऊटपटांग काम कर के तरक्की पा लीजिए लेकिन आखिरकार दूध का दूध और पानी का पानी वाली स्थिति आ ही जाती है.  हाल ही में ब्रिटेन के रिटेल बाजार से खबर आई है कि वहां दूध के पाउडर की मांग तेजी से बढ़ी है. पाउडर जैसे ही स्टौल पर आता है, देखते ही देखते बिक जाता है. इस की खरीद बड़े पैमाने पर हो रही है. स्टोर खाली हो रहे हैं. इस स्थिति से निबटने के लिए विक्रेताओं ने दूध पाउडर बेचने की सीमा तय कर दी और एक ग्राहक को सीमित स्तर पर ही पाउडर देना शुरू कर दिया. जांचपड़ताल पर जल्द ही पता चल गया कि चीनी दूध पाउडर के सब से बड़े ग्राहक बन गए हैं. इस की वजह चीनी दूध निर्माता कंपनियों से उठा उन का विश्वास है.

चीन में जो दूध पाउडर बन रहा है वह खतरनाक है और हाल ही में इस के सेवन से 6 शिशुओं की मौत हुई है. इस से पहले चीन में 2008 में पाउडर दूध के सेवन से 3 लाख शिशु बीमार पड़े थे. चीन में मध्यवर्गीय परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ी है और इस से कामकाजी महिलाओं की संख्या में बड़ा इजाफा हो रहा है. ऐसी स्थिति में शिशु के लिए पाउडर दूध ही सब से अच्छा आहार है और इस की खपत चीन में बहुत अधिक है लेकिन हाल की घटना से वहां संकट पैदा हो गया है और विदेशों से तेजी से दूध पाउडर मंगाया जा रहा है.

चीन के लोग अपने दूध निर्माताओं की हेराफेरी समझ गए हैं. चिंतनीय यह भी है कि चीन का यह दूध भारतीय बाजार में आ सकता है. भारतीय उपभोक्ता सस्ते के चक्कर में शिशु की जान की परवा किए बिना इस दूध पर लपक सकते हैं. इसलिए सरकार को इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए.

 

चुनावी साल में भर्तियां खोल कर धोखा दे रही सरकार

अखबारों में यह खबर सुर्खियों में है कि चालू वित्त वर्ष में सरकार बैंकिंग क्षेत्र में 50 हजार नौकरियां उपलब्ध कराएगी. खबर में कहा गया है कि ये भर्तियां मार्च 2014 से पहले की जानी हैं. इस से पहले भी खबर आई थी कि इस साल मार्च तक 63 हजार लोगों को बैंकों में नौकरियां मिलेंगी. इस खबर से लगता है कि सरकार को अचानक याद आया है कि बैंकिंग क्षेत्र कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है और इस कमी को दूर किया जाना जरूरी है. तेजी से बैंकों में इस साल सचमुच भर्तियां भी हुई हैं लेकिन आने वाले दिनों में फिर बड़े पैमाने पर भर्तियां होनी हैं. तर्क दिया जा रहा है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक बैंकों को 8 हजार नई शाखाएं खोलनी हैं. ग्रामीण बैंकों की भी 2 हजार शाखाएं खुलनी हैं यानी मार्च तक देश में 10 हजार नई शाखाएं खुलनी हैं. बैंकिंग क्षेत्र में इस तरह की भर्तियां खुलने से बेरोजगारों को नौकरी मिलेगी लेकिन यह बाढ़ वाली स्थिति है.

सरकार को बैंकों की शाखाएं खोलनी और ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग की पहुंच बढ़ानी है तो पिछले 9 साल में यह सरकार क्या करती रही. अचानक उसे याद आई कि बैंकों की नई शाखाएं खोलनी हैं. सरकार की इस नीति से साबित होता है कि वह चुनावी वर्ष को भुनाने में जुट गई है और इस के लिए वह असंतुलित हो कर भी काम करने को तैयार है. यदि वह अपने पहले कार्यकाल में ही इस योजना को तैयार करती तो पिछले 9 साल में बेरोजगारी से परेशान रहे लोगों को भी राहत मिलती और आज उन्हें बैंकों में इस तरह की भर्ती खुली देख कर अपनी उम्र निकलने पर खूनी आंसू नहीं बहाने पड़ते. सिर्फ वोट के लोभ में उलटेसीधे निर्णय लेने से कभी लाभ नहीं होता है और इस सरकार को भी इस का खमियाजा भुगतना पड़ेगा. क्रमबद्ध तरीके से बैंक खुलते और उन में भर्तियां होतीं तो बेरोजगारों को भी लाभ मिलता और धीरेधीरे गांव तक बैंकिंग प्रक्रिया की पहुंच भी बनती लेकिन यहां तो बाढ़ वाली स्थिति पैदा हो गई है.

 

रुपए की कमजोरी से बाजार में उथलपुथल

जुलाई की शुरुआत बंबई शेयर बाजार यानी बीएसई में अच्छे माहौल में हुई. माह के पहले दिन बाजार में तेजी का रुख रहा और सूचकांक 182 अंक चढ़ कर 1 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. जून के आखिरी सप्ताह में भी तेजी रही लेकिन रुपए के लगातार कमजोर होने से निवेशकों में ऊहापोह का माहौल था. 5 जुलाई को भी बाजार तेजी पर बंद हुआ.

डौलर के मुकाबले लगातार कमजोर पड़ रहा रुपया 60 रुपए प्रति डौलर के स्तर को पार कर गया है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रुपए की स्थिति में सुधार का आश्वासन दिया है लेकिन इस के बावजूद रुपया स्थिर नहीं हो रहा है. उन्होंने राजकोषीय घाटे और चालू खाते पर भी अंकुश लगाने और जल्द ही ब्याज दरों में कमी लाने की बात की है लेकिन बाजार में फिलहाल इस का असर देखने को नहीं मिल रहा है.

विदेशी फंड की लिवाली के दम पर जून के आखिरी और जुलाई के शुरुआती सप्ताह में बाजार में तेजी रही लेकिन जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में उस की चाल कंपनियों के तिमाही परिणाम और महंगाई के आंकड़े पर निर्भर करेगी. अमेरिका में फेड रिजर्व की गति भी बाजार की चाल को प्रभावित करेगी. फेड रिजर्व की स्थिति में सुधार हो रहा है. जून में फेड के रोजगार संबंधी आंकड़े में जबरदस्त सुधार हुआ था. उसे देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि अमेरिकी सरकार राहत पैकेज वापस लेने पर विचार कर सकती है. इस का भारतीय बाजार पर अच्छा असर देखने को मिलेगा.

 

भारत भूमि युगे युगे

खर्च या निवेश

लोकसभा में भाजपा के उपनेता गोपीनाथ मुंडे ने ताल ठोंकते हुए कह दिया कि वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने 8 करोड़ रुपए खर्च किए थे, अब जिसे जो करना है सो कर ले. सब हैरान हैं कि कोई मुंडे का क्या कर लेगा. बात पतिपत्नी के विवाद के बाद के उपसंहार जैसी है जिस में पत्नी खी?ा कर धौंस दे डालती है कि जो बने सो कर लो, मैं मायके जा रही हूं.

चुनाव आयोग क्या करेगा, क्योंकि मुंडे की स्वीकारोक्ति थानों में अपराधियों सरीखी है जिसे अदालत में पुलिस को साबित करना होता है. जाहिर है बात अगर बढ़ेगी तो मुंडे कहेंगे यह कि मैं ने तो यों ही मजाक या गुस्से में कह दिया था. बहरहाल, लोकतंत्र का, नियमों का और कानूनों का मखौल उड़ा कर मुंडे ने अपनी व दूसरे सांसदों की पोल खोल दी है.

सर्वव्यापी अंधविश्वास

दुनिया में एक ही चीज है जो सभी जगह बराबरी से पाई जाती है और वह है अंधविश्वास. इस के शिकार रंक भी होते हैं और राजा भी. दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला फेफड़ों के संक्रमण के चलते लंबे समय तक जोहांसबर्ग के प्रिटोरियर अस्पताल में भरती रहे. इसी दौरान पता चला कि उन का असल संक्रमण वायरल नहीं बल्कि पितृदोष है.

पितृदोष दरअसल कोई लाइलाज बीमारी नहीं बल्कि अंधविश्वास है. जब पंडेपुजारियों को कुछ नहीं सू?ाता तो परेशानियों की वजह वे पितृदोष के सिर मढ़ देते हैं और फिर उस की शांति व निवारण के नाम पर तगड़ी रकम दक्षिणा के रूप में ऐंठते हैं. पूर्वज श्राप क्यों देते हैं और निंदित कर्म क्यों करते हैं यह कोई नहीं बताता. वजह, सभी लोग सबकुछ धर्म व भाग्य के अधीन मानते हैं. यों 94 साल की उम्र में इंसान बीमार होता ही होता है, मंडेला बीमार हुए तो इस में कुछ नया नहीं था. हां, उन के बीमार होने से यह जरूर साबित हो गया कि यूरोप, एशिया और अफ्रीका में अंधविश्वासों के मामले में फर्क तो दूर की बात है, कोई मतभेद तक नहीं है.

खाला का देश

महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि अमेरिकी व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्लोडन को कहीं शरण नहीं मिल रही, महत्त्वपूर्ण विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद का बयान है कि भारत खाला का घर नहीं है.

अमेरिका से ताल्लुक रखती अहम जानकारियां रखने वाले नागरिकताविहीन इस नागरिक को शायद ही मालूम होगा कि खाला का घर एक कहावत है. इसे सराय भी कहा जा सकता है जिस में ठहरने के लिए अब फोटो पहचानपत्र वगैरह की जरूरत पड़ने लगी है. अभी तक धारणा यह थी कि भारत में विवादित भगोड़ों को आसानी से पनाह मिल जाती है, खासतौर से कलाकारों व साहित्यकारों के लिए तो वाकई यह खाला का देश था. दरअसल, डर अमेरिका और ओबामा का है.

झारखंड में हेमंत सरकार

नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य राज्य ?ारखंड में राष्ट्रपति शासन लगा रहे या लोकतांत्रिक ढंग से चुनी सरकार हो, फर्क खास नहीं पड़ता. और जो फर्क पड़ता भी है तो वह सिर्फ राजनीतिक होता है. कांग्रेस के समर्थन से ?ारखंड मुक्ति मोरचा के हेमंत सोरेन वहां के मुख्यमंत्री बन गए हैं. कांग्रेस की मंशा सम?ा से परे है कि आखिरकार वह चाहती क्या है. बीती 4 जुलाई को हेमंत, सोनिया दरबार में बैठे रहे पर उन्हें सोनिया से मिलने का वक्त नहीं मिला. लिहाजा, वे दूसरी पंक्ति के कांगे्रसियों के साथ हंसीमजाक कर वापस चले गए.

दरअसल, सोनिया की निगाह में वे विशिष्ट नहीं बल्कि एक जरूरतमंद व्यक्ति हैं जो कुरसी पाने को बेताब थे. कांग्रेस को पेश आने वाली बड़ी परेशानी बिहार, ?ारखंड में नीतीश या लालू से किसी एक का चुनाव करना है जिस से निबटने के लिए ?ारखंड का मसौदा अहम था.        

प्रकृति से पाएं खूबसूरत व बेदाग त्वचा

खूबसूरत व बेदाग त्वचा की चाहत सभी को होती है लेकिन रोजरोज की भागदौड़, प्रदूषण, तनाव व धूप त्वचा संबंधी अनेक समस्याओं जैसे मुहांसे, दागधब्बे, झाईयां व ब्लैकहैड्स को जन्म देती है जिस से त्वचा का नूर कहीं खो सा जाता है. बेदाग और निखरी त्वचा के लिए प्राकृतिक तत्त्व जैसे ऐलोवेरा, बादाम, केसर व चंदन कैसे हो सकते हैं मददगार, आइए जानें :

बादाम : बादाम में मौजूद विटामिन ई व बी त्वचा के लिए एंटीऔक्सीडैंट के रूप में काम करते हैं. बादाम त्वचा का रूखापन हटा कर उस का पोषण करने के साथसाथ उसे मुलायम भी बनाता है.

चंदन : चंदन त्वचा को ठंडक प्रदान करने के साथसाथ कीलमुहांसों को हटा कर त्वचा के लिए प्राकृतिक एंटीसैप्टिक का काम करता है. चंदन के प्राकृतिक तत्त्व त्वचा की रंगत को निखार कर उस को नमी भी प्रदान करते हैं.

केसर : केसर में मौजूद प्राकृतिक ऐंटीबैक्टीरियल और एक्सफ्लोएटिंग तत्त्व प्रदूषण से पनपे बैक्टीरिया का अंत कर के त्वचा को बेदाग व चमकदार बनाते हैं.

ऐलोवेरा : ऐलोवेरा स्किन में मौजूद डैडसैल्स को हटा कर एक बेहतर क्लींजर का काम करता है. ऐलोवेरा का प्रयोग त्वचा पर कीलमुहांसों को आने से रोकता है.

गुलाबजल : चाहे सनबर्न हो या त्वचा की डीप क्लींजिंग करनी हो, गुलाबजल प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधन का एक बेहतर उपाय है. गुलाबजल के रोजाना प्रयोग से झुर्रियां चली जाती हैं. इस में मौजूद एस्ट्रिजैंट, टोनर की तरह काम करता है. 

 

जब भक्त मर रहे थे तो देव कहां थे…

केदारनाथ में आए मौत के सैलाब से शिव की नगरी श्मशान में तबदील हो गई. हजारों अंधभक्त, धर्मभीरु श्रद्धालु धर्म के ठेकेदारों की साजिश के तहत अपना घरपरिवार छोड़ कर ऐसी दुर्गम जगहों पर आ कर हादसों को बुलावा देते हैं. इस हादसे से जिंदा लौटे कुछ लोगों की आपबीती और धर्म के धंधेबाजों की मानसिकता पर रोशनी डाल रही हैं बुशरा खान.

4 जून को जबकेदारधाम मंदिर के कपाट खुले तो प्रतीक्षारत श्रद्धालुओं के जत्थे के जत्थे उत्तराखंड की ओर रवाना हो चले. लेकिन बीती 16-17 जून की रात देवभूमि कहे जाने वाले उत्तरकाशी में अचानक  आई भीषण तबाही ने हजारों जानों को लील लिया. मांगने गए थे खुशियां व सलामती पर भक्तों को बदले में आंसू, मौत और अपनों के बिछोह का गम मिला. आस्था की उमड़ती हिलोरें चंद ही क्षणों में मौत की सिसकियों में बदल गईं. भक्तों पर सुखसमृद्धि की जगह आसमान से मौत बरस पड़ी.

इस तबाही ने लंबे समय तक अपना तांडव दिखाया. भक्तों सहित देशदुनिया के लोग इस तबाही से सकते में थे. बच्चे मरते रहे, महिलाओं का बलात्कार होता रहा, जेवरात लूटने वाले उन के हाथ काट कर चूडि़यांकंगन उतारते रहे और भगवान चुप बैठा रहा. श्रद्धालु जिस भगवान की जयजयकार करते उस की शरण में अपने दुखों से मुक्ति पाने के लिए गए थे उस भगवान ने भक्तों को मरने के लिए असहाय छोड़ दिया.

स्वयं को भगवान का ठेकेदार बताने वाले पंडेपुजारी भी मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए. धर्म के ठेकेदार चुपचाप अपने सिंहासनों पर बैठे श्रद्धालुओं की मौत का तमाशा देखते रहे. आपदा से किसी तरह बच कर जिंदा लौटे लोगों की आपबीती ने सब को सन्न कर दिया.

दिल्ली के पीतमपुरा इलाके का 19 साल का उदय इस भीषण आपदा से जिंदा लौट कर घर तो आ गया लेकिन अभी भी वह बुरी तरह सहमा हुआ है. यात्रा पर उस के साथ गए उस के ताऊ और ताई का आज तक कोई पता नहीं है. वे कहां हैं, कैसे हैं, कोई नहीं जानता.

उदय ने बताया कि उस के ताऊ व ताई केदारनाथ मंदिर जाने के लिए घोड़ों पर निकले थे. जबकि उदय की तबीयत खराब हो जाने के कारण वह ऊपर नहीं गया. उन के मोबाइल फोन भी उदय के ही बैग में रह गए थे इसलिए उन से कोई संपर्क भी नहीं हो पाया. इस के बाद उदय मीलों पैदल चलता रहा. आखिरकार सेना के जवानों ने उसे ऋषिकेश पहुंचाया जहां से उसे दिल्ली लाया गया.

उदय के पिता का कहना है, ‘‘पुरानी दिल्ली में एक ट्रैवल एजेंसी है जो श्रद्धालुओं को धार्मिक यात्राओं पर ले कर जाती है. मेरे बड़े भाई, भाभी व बेटा उसी टै्रवल एजेंसी के माध्यम से वहां गए थे. ये ट्रैवल एजेंसियां चारधाम यात्रा का पूरा पैकेज देती हैं और जत्थे के जत्थे श्रद्धालुओं को तीर्थयात्राआें पर जाने का प्रबंध करती हैं.’’

दिल्ली के रोहिणी इलाके के निवासी सियाराम गुप्ता भी इन्हीं लोगों में शामिल हैं जिन का 30 वर्षीय बेटा, बहू व 3 वर्षीय पोती केदारनाथ से आज तक नहीं लौटे. बेटे के साथ उस के सासससुर भी यात्रा के लिए निकले थे. आज तक इन में से किसी की कोई खबर नहीं है.

सियाराम के घर में मातम पसरा था. मांबहनों का रोरो कर बुरा हाल था. सियाराम आपदा राहत केंद्र में अपनी शिकायत भेजभेज कर थक  चुके, मगर कहीं से कोई खबर नहीं मिली. वे कहते हैं, ‘‘हम तो बहुत धार्मिक प्रवृत्ति वाले लोग हैं, सोचा भी नहीं था कि यात्रा पर बच्चों को ऐसी भीषण आपदा का सामना करना पड़ेगा.’’

सुल्तानपुरी में अपना क्लिनिक चलाने वाले डा. विजय यादव और उन की पत्नी अनीता यादव सहित उन के परिवार से कुल 7 लोग चारधाम यात्रा पर निकले थे. उन के साथ बस में 27 अन्य लोग भी थे. इस आपदा में सब बिछड़ गए. विजय ने आप बीती सुनाते हुए बताया, ‘‘हम केदारनाथ के एक होटल में ठहरे हुए थे. होेटल वालों ने चिल्ला कर कहा कि सब ऊपर चढ़ जाएं. कुछ अनहोनी होने वाली है. लोग बदहवास हो कर होटल की छत की ओर दौड़ पड़े. कुछ ही देर में चारों ओर लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी थीं.

डा. विजय की पत्नी सुनीता ने बताया, ‘‘हम ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि ऐसी भीषण आपदा से बच कर जिंदा घर लौट पाएंगे. हजारों लोग वहां मर चुके थे और मर रहे थे. यदि थोड़ी देर हम और वहां फंसे रहते तो जल्द ही भूखप्यास से दम तोड़ देते.’’

ऐसी ही मार्मिक कहानी अलीगढ़ के ओमप्रकाश की है जिन्होंने अपनी आंखों के सामने अपनी पत्नी व छोटेछोटे 3 बच्चों व अपने परिजनों को दम तोड़ते देखा. शायद ही ओमप्रकाश इस सदमे से अब कभी उबर सकें.

केदारनाथ से मौत के मुंह से बच कर लौटे दिल्ली के जीटीबी नगर के निवासी दुर्गाप्रसाद दुबे व उन की पत्नी ज्ञानदेवी केदारधाम के एक  होटल में ग्राउंड फ्लोर पर ठहरे हुए थे. दूबे अपनी पत्नी व 3 अन्य लोगों के साथ चारधाम की यात्रा पर निकले थे. उन के अनुसार, ‘‘सुबह के समय अचानक तेज धमाका हुआ और इस से पहले कि कोई कुछ सम?ा पाता तेज वेग से पानी खिड़की और दरवाजों से कमरे में घुसने लगा. पानी का वेग इतना अधिक था कि कमरे के अंदर पड़े बैड व सारा सामान पानी में तैरने लगा.’’

इस आपदा में बरबाद हुए हजारों घरों की आपबीती लगभग एक जैसी है. इस हृदयविदारक मंजर को देख कर भक्तों का विश्वास देवीदेवताओं से उठना चाहिए था. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उलटे बच कर आए लोग इसे प्रभु की कृपा और मौतों को नियति बता कर अपने दिल को तसल्ली दे रहे हैं. होनी को कौन टाल सकता है, सोच कर भक्त फिर भगवान से मोक्ष और कल्याण मांगने चल पड़े हैं. भक्त हैं कि सबक  नहीं सीखते. कैसी अंधश्रद्धा है. भक्तों के अनुसार भगवान तो कहता है कि वह कणकण में मौजूद है और विपदा के समय अपने भक्तों की रक्षा करता है. तो फिर जब छोटेछोटे मासूम बच्चे और लाचार बूढे़ मर रहे थे तो वह कहां छिप गया था.

शासनप्रशासन की निंदा करने के बजाय उन असली दोषियों यानी धर्मगुरुओं का बहिष्कार होना चाहिए था जिन के माथे पर इन हजारों मौतों के बाद भी कोई शिकन दिखाई नहीं देती बल्कि केदारधाम में मरने वालों को वे भाग्यशाली बता कर लीपापोती करने में लग गए. खुद अपने द्वारा बरगला कर तीर्थों पर बुलाए गए भोलेभाले लोगों को मरते देख भाग खड़े हुए. हद तो तब हो गई जब वे इस आपदा के लिए उलटे उन भक्तों को ही यह  कह कर दोषी ठहरा रहे हैं कि परंपराओं का पालन नहीं हो रहा और भक्त यहां अच्छी भावना से नहीं आते इसलिए भगवान नाराज हैं.

केदारधाम में भक्तों के सड़ते शवों की परवा किए बगैर पूजापाठ के अधिकार को ले कर आपस में लड़ने लगे. शंकाराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, संत समाज व केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी रावल के बीच मंदिर में पूजा के अधिकार को ले कर धर्मयुद्ध छिड़ गया.

दरअसल, सारा ?ागड़ा धर्म के नाम पर तीर्थस्थल पर चढ़ाए जाने वाले उन करोड़ों रुपयों का है जो यहां आने वाले भक्तों द्वारा दानदक्षिणा के रूप में चढ़ाया जाता है. इसी पैसे के दम पर पंडेपुजारी ऐश करते हैं. लोगों के बीच तीर्थ के ?ाठे महत्त्व बताने वाले व कल्याण व मोक्ष के लिए भगवान की शरण में जाने की सलाह देने वाले धर्मगुरु सदा से लोगों की आस्था को भुनाते आए हैं. ये लोगों की आंखों पर अंधी आस्था की पट्टी बांध उन्हें लूटते हैं. इन के बहकावे में आ क र भक्त अपनी व अपने परिवार वालों की जानों को जोखिम में डाल कर दुर्गम यात्राओं पर चल पड़ते हैं, जहां धर्म के धंधेबाज आस्था के नाम पर उन को लूटने के लिए भगवा धारण कर अपनी दुकानें सजाए बैठे होते हैं.

दरअसल, धर्म का मार्केटिंग नैटवर्क बहुत सुदृढ़ है. किसी ने कह दिया कि फलां देवीदेवता के मंदिर या तीर्थस्थल में जाने या साधुसंत या गुरु को मानने से कल्याण हो जाएगा, मंशा पूरी हो जाएगी. तो सुनने वाला कल्याण और मंशा पूर्ति के लालच में वैसा ही किए बिना नहीं रहेगा. बात एक  से दूसरे, तीसरे, चौथे व्यक्ति से होते हुए हजारोंलाखों लोगों तक पहुंचेगी. इस तरह धर्मस्थलों का प्रचार बढ़ता जाता है. लोग जुटते जाते हैं. गाडि़यों में भीड़ शहरों से होते हुए धर्मस्थलों तक जाती है तो वहां की सारी व्यवस्था चरमरा उठती है. आस्था में अंधे हुए लोगों को यह सब जाननेसम?ाने का विवेक नहीं रहता और हादसे हो जाते हैं.

उत्तरकाशी में भी यदि इतनी अधिक  संख्या में भक्तों का जमावड़ा न होता तो हजारों जानें बच जातीं. इस भीड़ के चढ़ावे से धर्मस्थलों की तिजोरियां तो भर जाती हैं पर भक्तों को जानें और जेबें गंवानी पड़ती हैं. इन धर्मगुरुओं के एजेंटों के रूप में काम करने वाले धार्मिक ट्रैवल एजेंसियां खोल कर, गलीमहल्लों में जा कर लोगों को तीर्थस्थलों पर ठेलने का काम करते हैं. इन्हीं के द्वारा श्रद्घालुओं के जत्थे के जत्थे धार्मिक यात्राओं पर धकेले जाते हैं और पूरी यात्रा के दौरान धर्म के  नाम पर वे जीभर कर लूटे जाते हैं. इसी कारण हमारे  देश में ऐसे निकम्मे लोगों की एक बड़ी फौज बन गई है. साधुसंत गृहत्याग का बहाना बना धर्म की आड़ में बिना हाथपांव हिलाए पेट भरते हैं.

अचंभा तो तब होता है जब इस तरह की घटनाओं में जानें गंवानेके बाद भी लोग बाज नहीं आते. इतिहास गवाह है धर्म के नाम पर जितने लोगों की जानें गई हैं उतनी किसी अन्य कारण से नहीं. सभी धर्मों के हाथ खून से रंगे हैं. 

ये हादसे एक सबक हैं उन लोगों के लिए जो आंख मूंद कर धर्म के सौदागरों की बातों में फंस कर अपना सबकुछ लुटा देने को तैयार रहते हैं. धर्म के नाम पर पंडोंपुजारियों की ?ोलियां भर देते हैं.   

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें