Best Hindi Poem : जो नहीं थे,
मेरे सुख के साझेदार,
जिनके लिए मेरी खुशियों का
कोई मोल ही न था...
जो मेरे होकर भी मेरे ना थे...
उन तमाम लोगों को आज
अपने दुख से बेदखल करती हूँ
कि न आये वो, दुख में मेरा हाथ थामने!

जानना जरूरी होगा, सभी को
कि अकेला पड़ जाना
और अकेले छोड़ देने की
महीन रेखा को,
उससे उठते दर्द की परिभाषा कहीं लिखा नहीं जाता,
पर मैं लिखूंगी, इसकी परिभाषा
अपने वसीयत में!

जरूरत को पूरा करना
हर बार जरूरी नहीं होता
कभी वक्त वेवक्त प्रेम/परवाह जताना भी अपनेपन की निशानी है....
ये निशानियां अब नजर नहीं आती...
मुझे! तुम में तुम नजर नहीं आते
इसलिए भी मैं, तुम्हें अपने दुख से बेखल करती हूँ।

मुझे कोई रोग कोई पीड़ा
है की नहीं, नहीं जानती
फिर भी चेहरे का पीला पड़ना
मन खाली होना और दिल का भारी होना
यह सब क्यूँ हो रहा है...
आँसू आँख में अटके रहते.
कि कभी कोई आयेगा....पोछने
इस इंतजार में मन मकड़ी के जालों की तरह उलझा रहता..
जो नहीं देता मेरे मन पर दस्तक...क्या करूँ मैं
ऐसे अपनों का...

जो नहीं बैठा, मुझे अपना समझकर
मेरे साथ, उन सभी को
मैं अपने दुख से बेदखल करती हूँ..

कि मत आना राम नाम सत्य कहने भी,
कि उस समय भी तुम दुख का कारण बनोगे...
तुम दुख में भी, दुख का कारण बनो,
ऐसा मैं हरगिज नहीं चाहती
इसलिए भी
जो नहीं थे मेरे सुख के साझेदार
उन तमाम लोगों को
अपने दुख से बेदखल कर रही हूँ...

लेखिका : प्रतिभा श्रीवास्तव अंश

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