Download App

मकर संक्रांति 2023: जानें, कैसे बनाएं पालक दाल खिचड़ी

पालक दाल खिचड़ी को दही, चटनी, या रायता के साथ सर्व कर सकते हैं. इसके अलावा ​आप पापड़ भी सर्व कर सकते हैं,  इसके साथ खीचड़ी काफी टेस्टी लगेगी.

सामग्री

दाल (1 कप)

जीरा (1 टी स्पून)

सरसों के दाने (1 टी स्पून)

हल्दी पाउडर

नमक (स्वादानुसार)

लाल मिर्च पाउडर (स्वादानुसार)

कढ़ीपत्ता (5-6)

घी (1 टी स्पून)

हरी मिर्च

लहसुन का पेस्ट (1 टी स्पून अदरक)

पानी (आवश्यकतानुसार)

पालक (1 कप)

1 प्याज ( टुकड़ों में कटा हुआ)

2 टमाटर (टुकड़ों में कटा हुआ)

चावल (½ कप)

बनाने की वि​धि

चावल को 15 मिनट के लिए भिगो दें और दाल को  धो लें.

एक प्रेशर कूकर लें और इसमें तेल डालें.

एक बार जब तेल गर्म हो जाए तो इसमें सरसों के दाने, जीरा, कढ़ीपत्ता, ताजा बना अदरक लहसुन का पेस्ट डालकर अच्छी तरह भूनें.

इसमें बारीक कटा हुआ टमाटर और प्याज डालें, अपने स्वादानुसार हरी मिर्च डालें और पकने दें.

इसमें हल्दी, धनिया और लाल मिर्च पाउडर डालकर भूनें और स्वादानुसार नमक डालें.

दाल और चावल डालें और साथ ही इसमें एक गिलास पानी भी डालें.

और इसे 2 मिनट पकाने के बाद ताजी कटी पालक डालकर प्रेशर कूकर को बंद कर दें.

इसे 10 से 12 मिनट पकने दें.

निकाह : बेटे की अनोखी जिद

भविष्यफल-भाग 2 : क्या मुग्धा भविष्यफल के जाल से बच पाई?

डा. नारियलवाला से वह व्यक्तिगत तौर पर कई बार मुलाकात कर चुकी है और उन के निर्देशानुसार अपनी उंगलियों में 5 तरह के रत्न भी धारण किए हुए थी. इन रत्नों को पहनने के बाद उस के जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आए और रत्न धारण करते ही उसे कालेज में विभागाध्यक्ष का पद मिल गया था. उस के बाद काफी दिनों से लंबित पड़ी उस की थीसिस भी पूरी हो गई और वह पीएचडी की उपाधि पा गई थी. उसे अप्रत्याशित प्रमोशन भी मिल गया था.

ज्योतिष के प्रति इस कदर सनक की हद तक आस्था के कारण उसे अकसर सहकर्मियों के संग तार्किक वादविवाद में भी उल?ा जाना पड़ता था. एक बार प्रोफैसर पांडेजी चाय पर उस के घर आमंत्रित थे. उस समय टीवी पर समाचार चल रहे थे. तभी एक समाचार ने उन का ध्यान आकर्षित किया, ‘अभिषेक और ऐश्वर्या पर ग्रहों की वक्र दृष्टि. ऐश्वर्या की कुंडली में मांगलिक दोष. दोष बना उन के विवाह के मार्ग की बाधा.’

समाचार सुन कर पांडेजी भड़क उठे, ‘ज्योतिषफ्योतिष सब बकवास है. भोलीभाली जनता को अंधविश्वास और रूढि़यों का भय दिखा कर लूटने का कुचक्र. ज्योतिष का न तो कोई वैज्ञानिक सिद्धांत है और न ही तार्किक आधार.’ ‘नहीं पांडेजी,’ मुग्धा ने तिलमिला कर प्रतिवाद जताया, ‘वैदिक सूत्रों पर आधारित भरेपूरे ज्योतिष को इस तरह आसानी से खारिज कैसे कर सकते हैं आप? ज्योतिष विज्ञान तो विज्ञान से भी ज्यादा आस्था की चीज है जो मस्तिष्क से नहीं, हृदय से संचालित हुआ करती है.’

‘अरे मैडम, जिसे आप आस्था का नाम दे रही हैं, दरअसल वही तो अंधविश्वास है. मैं तो बस इतना ही जानता हूं कि ज्योतिष में अगर भविष्य जान लेने की इतनी ही क्षमता है तो क्यों नहीं देश में घटित होने वाली भयानक दुर्घटनाओं व हादसों का पूर्वानुमान कर लिया करता है वह? लातूर का कुछ अरसे पहले का और गंगटोक का हाल का हृदयविदारक भूकंप, अंडमान की विनाशकारी सुनामी और 26/11 की आतंकवादी घटना. इन सब के बारे में भविष्यवाणी कर के राष्ट्र को जान और माल की सुरक्षा के प्रति सचेत किया जा सकता था. पर ज्योतिष में ऐसी क्षमता हो तब न?

यहां तो हर समस्या का बस एक ही समाधान है कि इस या उस तरह के नगीने धारण कर लें. हुंह, पत्थर पहनने से ही भाग्य बदलता हो तो मैं हाथों की ही नहीं, पैरों की उंगलियों में भी उन्हें धारण करने को तैयार हूं, सफलता की गारंटी देने वाला कोई महारथी सामने आए तो?’ पांडेजी खिलखिला कर अट्टहास कर उठे.

मुग्धा का तनबदन क्रोध से सुलग उठा. उसे अफसोस हुआ, कैसेकैसे असभ्य सहकर्मियों को वह घर पर बुला लेती है. प्रकट क्रोध को जज्ब करते हुए बोली, ‘नास्तिक व्यक्ति ज्योतिष के महत्त्व को कभी नहीं समझ पाएगा, पांडेजी. ज्योतिष गणना धार्मिक और वैदिक परंपरा का आध्यात्मिक विस्तार है. मैक्समूलर जैसे विद्वान ने यों ही नहीं कहा कि आधुनिक विज्ञान जहां खत्म होता है वहीं से ज्योतिष शुरू होता है.’ पांडेजी फिर भी खीखी कर के हंसते रहे, ‘आप कोई भी तर्क क्यों न दें, मेरी समझ से ज्योतिष आप जैसी धर्मभीरु को भाग्यवादी तो बनाता ही है, उस की संवेदनशीलता का नाश भी करता है.’

इस लगभग 1 माह बाद वह डा. नारियलवाला से एक समस्या के सिलसिले में मिलने गई तो वहां पांडेजी को सपत्नीक प्रतीक्षालय में अपनी बारी का इंतजार करते पाया. मुग्धा की आंखों में विस्मय भर गया. ज्योतिष के कट्टर आलोचक डा. नारियलवाला की शरण में? अद्भुत. बाद में पता चला कि पांडेजी को एक के बाद एक 3 पुत्रियां हासिल हो गई थीं. इस बार जैसे ही मिसेज पांडे के गर्भ में चौथे भ्रूण का अंकुरण हुआ, प्रोफैसर पांडे डा. नारियलवाला के पास ज्योतिषीय मुक्ति की तलाश में गए थे कि अब की बार उन्हें सिर्फ और सिर्फ पुत्ररत्न की ही प्राप्ति हो.

अचानक ‘धप्प’ की आवाज से मुग्धा की तंद्रा टूट गई.
प्रतीक्षित अखबार की प्रति मिसाइल की तरह नीचे से उड़ान भरती हुई बालकनी में सीधे उस के पास आ कर गिरी थी. मुग्धा की बाछें खिल उठीं. तेजी से अखबार उठा कर बैडरूम में आ गई. नजरें साप्ताहिक भविष्यफल वाले पृष्ठ को तलाशने लगीं. भीतर के पूरे 2 पृष्ठों पर सभी 12 राशियों का भविष्यफल फैला हुआ था. हर राशि के सातों दिनों का विशद विश्लेषण. उस की राशि ‘सिंह’ थी. सिंह राशि का भविष्यफल पढ़ते हुए आंखों में चमक भरती चली गई. 6 दिनों का भविष्यफल कमोबेश सामान्य ही था, परंतु आज इतवार के लिए एक अद्भुत भविष्यवाणी थी, ‘आज आप को अप्रत्याशित स्रोत से आकस्मिक धन प्राप्ति का प्रबल योग है. कहीं से भी किसी भी स्रोत से चल कर आप के घर में लक्ष्मी का आगमन निश्चित है.’

भविष्यफल पढ़ कर वह रोमांच से भर उठी. आकस्मिक धन प्राप्ति का योग. ओह, खुशी के मारे पलकें ढलक गईं. मन ही मन वह आगत धन के संभावित स्रोतों का अनुमान लगाने लगी. कहां से चल कर आ सकता है पैसा? वह लौटरी टिकट कभी नहीं खरीदती कि उस पर पुरस्कार की घोषणा हो जाए. किसी सहयोगी या पड़ोसी को भी उधार पैसा दिया हो, याद नहीं आ रहा. मम्मीपापा के भी उस के पास मिलने आने की संभावना नहीं है कि वे ही सौगात के बतौर उसे कुछ रुपए दे दें. फिर?

लेकिन उस का मन डा. नारियलवाला के भविष्यफल को ले कर किसी भी तरह की दुविधा में न था. जब उन्होंने भविष्यवाणी की है कि आज धन प्राप्ति का प्रबल योग है तो बेशक धन आएगा ही आएगा. कहीं से भी आए. उन का कहा आज तक मिथ्या नहीं हुआ.

समय अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था. देखतेदेखते दोपहर के 2 बज गए. आदित्य औफिस के काम से टूर पर गया था. कल सुबह 11 बजे वाली ट्रेन से लौटेगा. कालेज की छुट्टी थी ही. दोपहर के भोजनादि से निबट कर मुग्धा बिस्तर पर आ लेटी. कुछ देर टीवी देखा, फिर ?ापकी आ गई.

कौलबैल की मधुर आवाज से नींद खुली तो घड़ी की ओर नजरें चली गईं. 5 बजे थे. कौन हो सकता है दरवाजे पर? हाथों में उस को देने के लिए कड़क नोट थामे कोई देवदूत? धड़कते दिल से दरवाजा खोला. सामने काम वाली बाई खड़ी थी. उत्तेजना की रौ में महरी की दैनिक समय की बात दिमाग से काफूर हो गई थी. वह मन ही मन मुसकरा कर रह गई.

बिना किसी स्रोत के रुपए कहां से आएंगे भला? तीनचौथाई दिन तो बीत गया. शेष बचे कुछ घंटे भी मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाएंगे. डा. नारियलवाला के भविष्यफल को ले कर पहली बार मन शंका से भर उठा. देह शिथिल होने लगी. पर मन के एक कोने में क्षीण सी आशा की लौ अभी भी टिमटिमा रही थी. अभी भी दिन को बीतने में कुछ घंटे शेष हैं. चमत्कार घटने के लिए तो एक ही पल काफी होता है.

पिछले दिनों ही मार्खेज का उपन्यास ‘हंड्रैड ईयर्स औफ सौलिच्यूड’ खरीदा था. व्यस्तता की वजह से पढ़ नहीं सकी थी. उपन्यास ले कर पढ़ने के लिए पलंग पर आ लेटी. उपन्यास इतना रोचक था कि शेष होने के बाद ही छूटा. अरे, 7 बज गए. यानी कि पहली बार गुरुजी का भविष्यफल गलत साबित होने जा रहा है. मन बेचैनी से भरने लगा तो बेचैनी को दूर करने के लिए उस ने सोचा, चौक तक की एक छोटी सी सैर ही कर ली जाए.

Bigg Boss 16 : निमृत -श्रीजिता को पीछे किया सुंबुल ने, इस एक्ट्रेस का शो से कटेगा पत्ता

बिग बॉस 16 पर इन दिनों हर किसी कि नजर बनी हुई है, कौन आ रहा है कौन जा रहा है, सभी जानना चाहते हैं, घर के अंदर आए दिन कुछ न कुछ नया देखने को मिलते रहता है.

इस हफ्ते एलिमिनेश में 4 कंटेस्टेंट फंसे हुए हैं. एमसी स्टेन, सुंबुल तौकीर खान, निमृत कौर और श्रीजिता डे. सोशल मीडिया पर फैंस अपने पसंदीदा कंटेस्टेंट को खूब सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन बात करें इन चारों की तो सुंबुल सबसे आगे चल रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sumbul Touqeer (@sumbul_touqeer)

वहीं एमसी स्टेंन को पसंदीदा और मजबूत कंटेस्टेंट के तौर पर देखा जा रहा है शायद यहीं वजह है कि वह बचे हुए हैं. इस बार उन्हें रैपर वोटिंग 46 प्रतिशत मिली है. इसके बाद सुंबुल तौकीर खान का नाम है जो इस लिस्ट में आगे चल रही हैं.

वहीं वाइल्ड कार्ड एंट्री श्रीजिता डे की बात करें तो इन्हें 18 प्रतिशत वोट मिले हैं.निमृत कौर आहूवालिया को फैंस खेलते हुए देखना चाहते हैं लेकिन इन्हें 15 प्रतिशत ही वोट मिले हैं. देखा जाए तो निमृत इस वक्त वोटिंग लाइन में सबसे पीछे चल रही हैं. शनिवार तक वोटिंग में उल्ट पल्ट भी हो सकता है.

इस वोटिंग में श्रीजिता डे को भी जोरदार झटका मिल सकता है. शो में निमृत के पापा ने एंट्री लिया था, जिसमें उन्होंने निमृत को अपनी लॉबी से हटकर काम करने को कहा था, जिसपर निमृत चिड़ गई थी और पापा से नाराज हो गई थी. खैर देखना यह है कि शो के फाइनल कंटेस्टेंट कौन बनता है.

राखी सावंत का एक बार फिर से टूटा दिल, आदिल ने भी छोड़ा साथ

राखी सावंत अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं, इन दिनों राखी सावंत की सीक्रेट वेडिंग सुर्खियों में हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया है कि अपने बॉयफ्रेंड आदिल खान के साथ उन्होंने मुस्लिम रिति रिवाज से शादी रचा ली है.

जबकी आदिल खान ने इस बात से साफ इंकार कर दिया है कि यह बात एक दम गलत है, आदिल खान के इस तरह से इंकार करने के बाद से राखी सावंत काफी ज्यादा दुखी हैं. एक इंटरव्यू में राखी सावंत ने बताया है कि आदिल ने हमारी शादी को एक साल तक रिवील नहीं करने को कहा था, क्योंकि उसकी बहन की शादी होने वाली थी.

मैंने उसकी बातों पर भरोसा किया और बिग बॉस सीजन 4 में चली गई लेकिन उसके बाद से वह मेरा विश्वास तोड़ता चला गया. मुझे पता है पक्का उसपर फैमली प्रेशर आ रहा होगा. राखी सावंत ने बताया कि उनकी शादी हलाला लीगल की तहत हुई थी.

आगे एक्ट्रेस ने बताया कि आदिल अब उनसे बात भी नहीं कर रहा है, मेरी मां हॉस्पिटल में भर्ती है उन्हें ब्रेन कैंसर है मैं इसलिए ज्यादा परेशान हूं. क्या आप लोग मेरी मदद कर सकते हैं कि आदिल मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे हैं. पता नहीं क्यों मेरे साथ ऐसी बुरी चीजें होती हैं.

राखी के इस बयान के बाद से कई लोगों का दिल राखी के ऊपर पिघल रहा है कि राखी को बार-बार धोखा क्यों मिलता है.

अजब मृत्यु -भाग 3: चौकीदार ने मुहल्ले वालों को क्या खबर दी

मां रमा रोतीपीटती ही रह गई थी. पहले मंदबुद्धि बड़े लड़के के बाद 2 लड़कियां, फिर जगत, 5वीं फिर एक लड़की. जगत के जन्म पर तो बड़ा जश्न मना. बड़ी उम्मीद थी उस से. पर जैसेजैसे बड़ा होता गया, कांटे की झाडि़यों सा सब को और दुखी करता गया.’’ अखिलेश अंकल बताए जा रहे थे. अखिलेश अंकल की बातें सुन कर कंचन बोल उठी, ‘‘आज मैं भी जरूर कुछ कहूंगी. अम्मा जब तक जिंदा थीं, आएदिन के अपने झगड़े से उन्हें परेशान कर रखा था उस ने. सब से लड़ताझगड़ता और मां बेचारी झगड़े सुलटाती माफी ही मांगती रहतीं. बाबूजी के दफ्तर में अम्मा को क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. कम तनख्वाह से सारे बच्चों की परवरिश के साथ जगत की नितनई फरमाइशें करतीं लेकिन जब पूरी कर पाना संभव न हो पाता तो जगत उन की अचार की बरनी में थूक आता, आटे के कनस्तर में पानी, तो कभी प्रैस किए कपड़े फर्श पर और उन का चश्मा कड़ेदान में पड़े मिलते. ऊंची पढ़ीलिखी नम्रता से धोखे से शादी कर ली, बच्चे पढ़ाई में अच्छे निकल गए. वैसे वह तो सभी को अंगूठाछाप, दोटके का कह कर पंगे लेता रहता. उस के बच्चों पर दया आती,’’ अपनी बात कह कर कंचन ने माइक शील को दे दिया.

‘‘कुछ शब्द ऐसे रिश्तेदार को क्या कहूं. मेरे घर में तो घर, मेरी बहनों की ससुराल में भी पैसे मांगमांग कर डकार गया. कुछ पूछो तो कहता, ‘कैसे भूखेनंगे लोग हैं जराजरा से पैसों के लिए मरे जा रहे हैं. भिखारी कहीं के. चोरी का धंधा करते हो, सब को सीबीआई, क्राइम ब्रांच में पकड़वा दूंगा. बचोगे नहीं,’ उसी के अंदाज में कहने की कोशिश करते हुए शील ने कहा. उस के बाद कई लोगों ने मन का गुस्सा निकाला. सीधेसादे सुधीर साहब बोल उठे, ‘‘मुझ से पहले मेरा न्यूजपेपर उठा ले जाता. उस दिन पकड़ लिया, ‘क्या ताकझांक करता रहता है घर में?’ तो कहने लगा, ‘अपनी बीवी का थोबड़ा तुझ से तो देखा जाता नहीं, मैं क्या देखूंगा.’ ‘‘मैं पेपर उस के हाथों से छीनते हुए बोला, ‘अपना पेपर खरीद कर पढ़ा कर.’ तो कहता ‘मेरे पेपर में कोई दूसरी खबर छपेगी?’ मैं उसे देखता रह जाता.’’ कह कर वे हंस पड़े. अपनी भड़ास निकाल कर उन का दर्द कुछ कम हो चला था. ‘‘अजीब झक्की था जगत. मेरी बेटी की शादी में आया तो सड़क से भिखारियों की टोली को भी साथ ले आया. बरात आने को थी, प्लेटें सजासजा कर भिखारियों को देने लगा. मना किया तो हम पर ही चिल्लाने लगा, ‘8-10 प्लेटों में क्या भिखारी हो जाओगे.

आने दो बरातियों को, देखूं कौन रोकता है?’ ‘‘जी कर रहा था सुनाऊं उस को पर मौके की नजाकत समझ कर चुप रहना मुनासिब समझा.’’ उस दिन न कह पाने का मलाल आज खत्म हुआ था, जगत के फूफा रविकांत का और अपनी बात कह कर वह मुसकरा उठे थे. गंगाधर ने हंसते हुए अपनी घड़ी की ओर अचानक देखा और फिर बोले, ‘‘भाइयो और बहनो, शायद सब अब अपनेअपने मन को हलका महसूस कर रहे होंगे, हृदय को शांति मिल गई हो, तो सभा विसर्जित करते हैं.’’ सभी ने सहमति जाहिर की और एकएक कर खड़े होने लगे थे कि लगभग भागता हुआ चौकीदार गोपी आ गया. उस के पीछे दोतीन और आदमी थे. जिन के हाथों में चायपानी का सामान था. ‘‘सुनीता भाभीजी जो जगत के घर के बराबर में रहती हैं, ने सब के लिए चाय, नमकीन बिस्कुट व समोसे भिजवाए हैं. मुझे इस के लिए पैसे दे गई थीं कि समय से सब को जरूर पहुंचा देना. पर ताजा बनवाने व लाने में जरूर थोड़ी देर हो गई. सारा सामान माखन हलवाई से गरमागरम लाया हूं.’’ गोपी अपने बंदों के साथ सब को परोस कर साथियों संग खुद भी खाने लगा. ‘‘भई वाह, कमाल है, न बाहर किसी को न घर में किसी को अफसोस. उलटे राहत ही राहत सब ओर. ऐसी श्रद्धांजलि तो न पहले कभी देखी न सुनी हो.’’

सभी के चेहरों की मंदमंद हंसी धीरेधीरे ठहाकों में बदलने लगी थी. जिस की गूंज पंडाल से बाहर तक आने लगी. अगले दिन सुबह हर रोज की तरह नम्रता उठ बैठी. जगत का हल्ला सुबह शुरू जो हो जाता था. आज शांति थी. बगल में सोए बच्चों को देखा. आज सालों बाद उन्हें इतनी गहरी नींद आईर् थी. वह परदा सरका कर विंडो से बाहर देखने लगी. इतना मुक्त, इतना हलका महसूस कर रही थी वह कि उसे यकीन नहीं हुआ. जो पड़ोसी उन के घर से कन्नी काटते निकलते थे, आज सुबह वे सब आराम से खड़े थे. द्य बाल बाल बचे मेरे पिताजी वकील थे. बहुत दिन किराए के घर में रहने के बाद मकान के लिए लोन ले कर उन्होंने खुद का मकान बनवाया. मकान छोटा था किंतु सुंदर और अच्छा बना था. ग्राउंडफ्लोर पूरा बन गया था. किंतु ऊपर छत खुली थी. रेलिंग आदि भी नहीं लगी थी. छत के दोनों कोनों पर 4-5 सरिए 3-4 फुट ऊंचे छोड़ दिए गए थे, ताकि ऊपर पिलर के सहारे फर्स्टफ्लोर बन सके. कुछ महीने किराए के मकान में रहने के बाद हम सब अपने मकान में जब आए तो सब की खुशी का ठिकाना नहीं था.

कुछ महीने बाद दीवाली आई. हम ने बच्चों से घर के कोनेकोने में दीया रखने को कहा. मैं थाली में दीए ले कर छत पर रखने के लिए गई. दीए रखने में मैं इतनी मशगूल थी कि मुझे पता ही नहीं चला कि छत का किनारा कब आ गया. अचानक एक पैर नीचे चला गया. गिरतेगिरते मैं ने सरिया पकड़ लिया और जोरजोर से चिल्लाने लगी. किंतु दीवाली के शोरशराबे में किसी ने मेरी आवाज नहीं सुनी. इतने में पड़ोस का एक बच्चा अपनी छत पर दीया रखने आया. मुझे इस हालत में देख वह सरपट नीचे भागा और सब को बताया. आननफानन बांस की सीढ़ी लगाई गई. नीचे से मुझे ऊपर की तरफ पुश कर रहे थे. ऊपर भी लोग मुझे धीरेधीरे उठा रहे थे. किसी तरह काफी मशक्कत के बाद मुझे ऊपर उठा लिया गया. ईंट और सीमेंट की वजह से पीठ और पैर आदि में तमाम खरोचें आ गई थीं.

उस दिन मैं मरतेमरते बालबल बची. वह दीवाली मुझे जीवनभर याद रहेगी. पुष्पा श्रीवास्तवा (सर्वश्रेष्ठ) बात तब की है जब मेरा बड़ा बेटा 3 साल का था और मैं दूसरी बार मां बनने वाली थी. मेरा 8वां महीना चल रहा था. हम देररात 12 बजे किसी रिश्तेदार के घर से वापस घर कार से जा रहे थे. कार मेरे पति चला रहे थे कि तभी सड़क के डिवाइडर को फांद कर एक गाड़ी तेजी से हमारी गाड़ी से आ टकराई. हमें समझ नहीं आया कि हुआ क्या है. गाड़ी साइड से पूरी तरह पिचक गई लेकिन मुझे और बेटे को कोई चोट नहीं लगी. पर झटका बहुत जोर का लगा. कुछ भी अनहोनी हो सकती थी क्योंकि प्रैग्नैंट थी. लेकिन बालबाल बच गई. आज भी वह ऐक्सिडैंट याद कर सिहर जाती हूं.

मुहरे-भाग 3 : विपिन के लिए रश्मि ने कैसा पैंतरा अपनाया

8 बजे निकलती है, मैं उसी समय डस्टबिन बाहर रख देती हूं. हमारी बिल्डिंग में 4 फ्लैट हैं. 2 में महाराष्ट्रियन परिवार रहते हैं. दोनों परिवारों में पतिपत्नी कामकाजी हैं. चौथे फ्लैट में बस एक आदमी ही है. उम्र पैंतीस के आसपास होगी. वीकैंड पर उस के दरवाजे पर ताला लगा रहता है. मेरा अंदाजा है शायद अपने घर, आसपास के किसी शहर जाता होगा. इस आदमी की विपिन और हमारे बच्चों से कभी कोई हायहैलो नहीं हुई है. एक दिन मुझ से सामना होने पर उस ने पूछा, ‘‘मैडम, पीने के पानी की एक बौटल मिलेगी प्लीज? मेरा फिल्टर खराब हो गया है.’’

मैं ने ‘श्योर’ कहते हुए उस की बौटल में पानी भर दिया था. जब मैं डस्टबिन रख रही होती हूं तो वह भी अकसर अपने घर से निकल रहा होता है और मुझे गुडमौर्निंग मैम कहता हुआ सीढि़यां उतर जाता है. उस से सामना होने पर अब मेरी हायहैलो हो जाती है. बस, हायहैलो और कभी कोई बात नहीं. एक दिन हम चारों बाहर से आ रहे थे और लिफ्ट का वेट कर रहे थे तो वह आदमी मुझे गुड ईवनिंग मैम कहता हुआ सीढि़यां चढ़ गया. मैं ने भी सिर हिला कर जवाब दे दिया.

विपिन ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’ ‘‘हमारा पड़ोसी.’’

‘‘वह किराएदार?’’ ‘‘हां.’’

‘‘तुम से हायहैला कब शुरू हो गई? तुम्हें कैसे जानता है?’’ ‘‘एक दिन पानी मांगा था, तब से.’’

‘‘तुम से ही क्यों पानी मांगा, भई?’’ ‘‘बाकी दोनों फ्लैट दिन भर बंद रहते हैं. पानी मांगना कोई बहुत बड़ी बात थोड़े ही है.’’

‘‘तमीज देखो महाशय की. सिर्फ तुम्हें विश कर के गया.’’ ‘‘अरे, तुम लोगों को जानता ही नहीं है तो विश क्या करेगा? तुम लोग भी तो अपनी धुन में रहते हो… कहां किसी में इंट्रैस्ट लेते हो.’’

‘‘हां, ठीक है, घर में तुम हो न सब में इंट्रैस्ट लेने के लिए. आजकल बड़ी सोशल हो रही हो… कभी लिफ्ट वाले लड़के को अपना नाम बताती हो, तो कभी पड़ोसी को पानी देती हो.’’ मैं ने नाटकीय ढंग से सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘भई, बढ़ती उम्र में आसपास के लोगों से जानपहचान होनी चाहिए. क्या पता कब किस की जरूरत पड़ जाए.’’

‘‘क्या बुजुर्गों जैसी बातें कर रही हो?’’ ‘‘हां, विपिन, उम्र बढ़ने के साथ आसपास के लोगों से संबंध रखने में ही समझदारी है.’’

विपिन मुझे घूरते रह गए. कहते भी क्या. अब बातें करतेकरते हम घर आ कर चेंज कर रहे थे. कई दिन बाद लिफ्ट वाला प्रशांत मुझे शाम के समय गार्डन में भी दिखा तो मैं चौकन्नी हो गई. वह गार्डन में अब मेरे आनेजाने के समय कुछ बातें भी करने लगा था जैसे ‘आप कैसी हैं, मैम?’ या ‘कल आप सैर करने नहीं आईं’ या ‘यह ड्रैस आप पर बहुत अच्छी लग रही है, मैम.’ उस के हावभाव से, नजरों से मैं सावधान होने लगी थी. यह तो कुछ और ही सोचने लगा है.

विपिन और मेरे डिनर के बाद टहलने के समय प्रशांत रोज नीचे मिलने लगा था और मुझे देख कर मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. प्रशांत का मेरे आसपास मंडराना तो इरादतन था पर नए पड़ोसी का मुझ से आमनासामना होना शतप्रतिशत संयोग होता था. स्त्री हूं इतना तो समझती ही हूं पर विपिन की बेचैनी देखने लायक थी.

वान्या को बाय कहती हुई मैं अकसर पड़ोसी की भी गुडमौर्निंग का जवाब देती तो ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ते विपिन मुझे अंदर आते हुए देख कर यों ही पूछते, ‘‘कौन था?’’

मैं पड़ोसी कह कर किचन में व्यस्त हो जाती. अब अच्छे मूड में विपिन अकसर मुझे ऐसे छेड़ते, ‘‘इतनी वैलड्रैस्ड हो कर सैर पर जाती हो… लगता ही नहीं कि तुम्हारे इतने बड़े बच्चे हैं… बहन लगती हो वान्या की.’’

मैं हंस कर उन के गले में बांहें डाल देती, ‘‘कितनी भी बहन लगूं पर उम्र तो हो ही रही है न?’’

‘‘अभी तो तुम बहुत स्मार्ट और यंग दिखती हो, फिर उम्र की क्या टैंशन है?’’ ‘‘सच?’’ मैं मन ही मन खुश हो जाती.

‘‘और क्या? देखती नहीं हो? आकर्षक हो तभी तो वह लिफ्ट वाला और यह पड़ोसी तुम से हायहैलो का कोई मौका नहीं छोड़ते.’’ ‘‘अरे, उन की क्या बात करनी… उन की उम्र देखो, दोनों मुझ से छोटे हैं.’’

‘‘फिर भी उम्र की तो बात छोड़ ही दो, नजर तुम पर उठती ही है. तुम ने अपनेआप को इतना फिट भी तो रखा है.’’ मैं मुसकराती रही. अब मैं ने नोट किया विपिन ने पूरी तरह से उम्र बढ़ने के मजाक बंद कर दिए थे पर अब भी जब प्रशांत और पड़ोसी मुझे विश कर रहे होते, ये मुझे गंभीर होते लगते.

विपिन और मैं एकदूसरे को दिलोजान से चाहते हैं. सालों का प्यार भरा साथ है, जो दिन पर दिन बढ़ ही रहा है. मैं उन्हें इन गैरों के लिए टैंशन में नहीं देख सकती थी. मुझे उम्र के मजाक हर बात में पसंद नहीं थे, वे अब बंद हो चुके थे. यही तो मैं चाहती थी. मुझे स्वयं को ऊर्जावान, फिट रखने का शौक है और मैं स्वयं को कहीं से भी बढ़ती उम्र का शिकार नहीं समझती तो क्यों विपिन उम्र याद दिलाएं. अब ऐसा ही हो रहा था. विपिन को सबक सिखाने के लिए अब प्रशांत और उस पड़ोसी का जानबूझ कर सामना करने की शरारत की जरूरत नहीं थी मुझे. मैं डस्टबिन और पहले बाहर रखने लगी थी. सैर के समय में भी बदलाव कर लिया था. मुझे आते देख कर प्रशांत लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा होता तो मैं झट सीडि़यां चढ़ जाती थी. प्रशांत और पड़ोसी मुहरे ही तो थे. इन का काम अब खत्म हो गया था. इन से मेरा अब कोई लेनादेना नहीं था.

सवेरा होने को है : कोरोना को दी मात

कमरे के अंदर पापा दर्द से बेचैन हो रहे थे. बुखार था कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मैं एयरकंडीशनर चला कर कमरे को ठंडा करने की कोशिश कर रही थी और फिर गीली पट्टियों से बुखार को काबू करने की कोशिश में लगी हुई थी. बाहर फिर से मनहूस एंबुलेंस का सायरन बज रहा था. ना जाने कोविड नामक राक्षस किस के घर की खुशियों को लील कर गया है आज?

मेरी निराशा अपने चरम पर थी. इतना हताश, इतना बेबस शायद ही कभी मानव ने महसूस किया होगा. सब
अपने ही तो हैं, जो शहर के विभिन्न कोनों में हैं, पर साथ खड़े होने के लिए कोई तैयार नहीं था.

पापा न जाने तेज बुखार में क्या बड़बड़ा रहे थे? जितना सुनने या समझने की कोशिश करती, उतनी ही मेरी अपनी बेचैनी बढ़ रही थी. बारबार मैं घड़ी को
देख रही थी. किसी तरह से ये काली रात बीत जाए. पर पिछले हफ्ते से ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि
मानो इस रात की सुबह नहीं है.

पापा का शरीर भट्टी की तरह तप रहा था और औक्सिलेवेल 90 से नीचे जा रहा था. व्हाट्सएप पर बहुत सारे मैसेज थे, कुछ ज्ञानवर्धक तो कुछ हौसला देने वाले और कुछ बस यों ही. फिर खुद के शरीर को जबरदस्ती उठाया और पापा को एक बिसकुट खिलाया और फिर बुखार कम करने की टेबलेट दी.

मन में तरहतरह के बुरे खयाल आ रहे थे, चाह कर भी विश्वास का दीया नहीं जला पा रही थी. किस पर
भरोसा रखूं, इस मुश्किल घड़ी में? समाचार ना सुन कर भी पता था कि बाहर अस्पताल में घर से भी ज्यादा खतरा है. औक्सीजन क्या इतनी महंगी पड़ सकती है कभी, सोचा नहीं था. न गला खराब होता है और न ही
जुकाम पर कोविड वायरस का अंधकार आप के अंदर के इनसान को धीमीधीमे लील जाता है.

मैं खुद इस बीमारी से लड़ रही थी, पर अपने हीरो पापा की लाचारी देखी नहीं जा रही थी. ऐसा लग रहा
था कि वो एक छोटे बच्चे बन गए हों और मैं उन की बूढ़ी, डरपोक मां. कब किस पहर पापा का बुखार कम हुआ, मुझे नहीं पता, पर फिर से यमराज एंबुलेंस के सायरन के झटके से मेरी आंख खुली.

हंसतेखेलते गुप्ता अंकल के दिल स्टेरौइड्स को झेल नहीं पाए और 5 दिन बाद ही संसार को अलविदा कह
कर चले गए. ये यमराज का वाहन गुप्ता अंकल को ले कर जाने के लिए आया था.
इतना सहमा हुआ और इतना विचलित कभी खुद को महसूस नहीं किया था. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम एक स्वतंत्र देश में रहते हैं. हर छोटी सी दवाई से ले कर औक्सीजन सिलिंडर तक की कालाबाजारी थी.

सोसाइटी में रहने वाले संदीप का ग्रुप में मैसेज था. उस की मम्मी को वेंटिलेटर की आवश्यकता है. वह हाथ जोड़ कर सब से गुहार लगा रहा था. सब उसे हिम्मत और हौसले का ज्ञान बांट रहे थे. परंतु कोई राह नहीं सुझा रहा था. कोई साथ खड़े होने को राजी नहीं था.

2-2 वैक्सीन लगवाने के बावजूद भी लोग अपनों को अकेले जूझते हुए देख रहे थे. कोरोना हो चुका है, मगर फिर भी वो लोग पास आ कर साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं. सब दूर से गीता का ज्ञान दे रहे हैं कि
‘मनुष्य अकेला आया है और अकेले ही जाएगा.’

मगर आज इस नीरव रात में किसी मनुष्य के स्पर्श की चाह करती हुई मैं जारजार बच्चों की तरह रो उठी हूं.
कोई तो एक ढांढ़स भर स्पर्श दे कर बोल दे, ‘सब ठीक हो जाएगा.’

स्पर्श में कितनी ताकत है, यह आज जान पाई हूं. कोई तो हो ऐसा, जो आज इस अंधकार में चाहे दूर से ही मेरी थकी हुई और सहमी हुई कोशिकाओं को स्पर्श के स्पंदन से जीवित और निडर कर दे.

आज इस अंधकार में बैठी हुई उन तमाम लोगों का दर्द समझ पा रही हूं, जिन्हें लोग अछूत समझते हैं. अछूतों
की तरह हम लोग हर रोज इस विषाणु से अकेले लड़ रहे हैं. सारी ताकत, जिंदगी की उमंग और हंसी तो इस
वायरस ने सोख ली है. खून का स्थान अब नफरत ने ले लिया है. इतनी विषैली हो गई हूं अंदर से कि मन करता है, अगर मेरे घर में
हुआ है तो सब के घर में हो. ऊपर वाला उन्हें भी शक्तिशाली होने का मौका दे.

कोई भी सकारात्मक विचार मन में नहीं आ रहा था. चिड़चिड़ापन और अपनों से नाराजगी बढ़ती ही जा रही थी. सबकुछ जान कर भी ना जाने कौन सी तामसिक प्रवृत्ति अंदर ही अंदर बलशाली हो रही थी. अंदर
का अंधकार जीने की प्रेरणा दे रहा था.

कल पापा का स्कैन कराने जाना था. कैसे जाऊं, कैब की स्थिति कोई ठीक नहीं थी. स्कूटर चलाने की स्थिति में मैं नहीं थी.

जब सुबह की पहली किरण खिड़की से अंदर आई, तो बुद्धि के द्वार भी खुले. सोचा, प्रमोद चाचा के बेटे को फोन कर लेती हूं. कितनी बार तो संचित ने कहा था, ‘दीदी बेझिझक बोल दीजिए.’

‘मुझे एक वैक्सीन लग भी चुकी है और कोरोना भी हो चुका है,’ चाय का पानी चढ़ा कर मैं ने संचित को फोन किया, मगर उधर से ऐसे टालमटोल वाला जवाब आया कि खौलते चाय के पानी के साथ मेरा खून भी खौल उठा.

पापा का बुखार थोड़ा कम लग रहा था, जो मेरे लिए राहत की खबर था. मैं पापा को चाय और बादाम पकड़ा रही थी कि पापा खुद से बोल उठे, ‘मृगया, तू भी कोरोना पौजिटिव है. संचित को बोल दे, वो स्कैन करवा देगा.’

‘कितनी बार तो उस ने कहा था.’

मैं ना जाने क्यों भावनात्मक रूप से इतनी कमजोर हो गई थी कि बरतन धोने के शोर में अपनी रुलाई को
दबा रही थी.

‘क्या करूं,’ ये सोचते हुए मैं नाश्ते की तैयारी कर रही थी. 2 आटो वालों के नंबर सेव थे मेरे पास, सोचा, उन की ही मिन्नत कर के देख लूं.

जब बबलू ने फोन उठाया, तो बड़ी मिन्नतों से कहा, ‘भैया मदद कर दोगे क्या, यहीं पास में ही चलना है.’

बबलू ने कहा, ‘दीदी कितनी देर में आना है?’

एक बार मन में आया छुपा लूं कि मैं और पापा दोनों ही कोविड पौजिटिव हैं. एक हफ्ता बीत गया है और फिर
हम दोनों डबल मास्क पहन कर रखेंगे. पर मन नहीं माना, खुशामदी स्वर में कहा, ‘भैया, पापा और मैं दोनों ही कोविड पौजिटिव हैं, ले कर चल सकते हो क्या?’

बबलू ने कहा, ‘क्यों नहीं दीदी, ये कोरोना से मैं नहीं डरता, एक टीका लगवा लिया हूं और दूसरा भी लग
जाएगा.

‘आप क्यों चिंता कर रही हैं, अंकलजी को कुछ नहीं होगा और ना ही आप को.’

ना जाने क्यों उस दिन पहली बार ऐसा लगा कि इंसानियत से बड़ा कोई रिश्ता, धर्म या जात नहीं होती है.

बबलू का उस दिन आना, मेरे साथ खड़ा होना मैं शायद ताउम्र नहीं भूल पाऊंगी.

मुझे देखते ही बबलू ने अपनी तरफ से एक परदा गिरा दिया, ये देख कर दिल को थोड़ा सुकून मिला कि एक आटो वाला हो कर भी वो सारे कोविड के प्रोटोकाल फौलो कर रहा था.

मुझे और पापा को उतार कर वह दूर से बोला, ‘दीदी, सामान मंगवाना हो, तो मैं ले आता हूं.’

मैं ने तो ये सोचा ही नहीं था. मैं ने फल, जूस, नारियल पानी इत्यादि बता दिए थे.

बबलू के जाने के पश्चात हम अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे. 4,500 रुपए की परची कटवाते हुए ये सोच
खुद को ही आत्मग्लानि से भर रही थी कि कहीं बबलू को ना लग जाए, वो कैसे इन महंगे चोंचलों को सहन
करेगा.

चारों तरफ बड़ा ही निराशात्मक वातावरण था. कुछ लोग औक्सीजन सिलिंडर पर ही थे, तो कुछ लोग दर्द से कराह रहे थे. पर, उस सैंटर में बैठे हुए कर्मचारी शायद पत्थर के बने थे. दोनों रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़कियों
के चेहरों पर मानो लाल लिपस्टिक नहीं, इनसानों का खून लगा हुआ हो. बड़ी ही मुर्दानगी से वो परची काट कर ऐसे दूर से पकड़ा रही थी, मानो कोविड पौजिटिव के साथ होना एक अपराध हो.

पापा को इतनी कमजोरी आ चुकी थी कि वे पूरी तरह झुके हुए थे. जैसे ही पापा के नाम का फरमान आया,
मैं पागलों की तरह उन के साथ अंदर जाने लगी. बेहद ही रूखी आवाज आई, ‘तुम यहीं खड़ी रहो.’

मैं मिमियाते हुए बोली, ‘वे बहुत कमजोर हो गए हैं और उन्हें ऊंचा सुनाई देता है.’

‘कमजोर हो गए हैं, पर मरे तो नही हैं ना.’

धपाक से दरवाजा मेरे मुंह पर बंद हो गया. फिर से मेरी आंखें पनीली हो उठीं, दिल में कड़वाहट की लहरें
उठने लगीं. हांफते हुए पापा बाहर आए, ऐसा लग रहा था, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.

मैं ने प्यार से कहा, ‘पापा, आप 2 सेकंड के लिए मास्क निकाल दो.’

वार्ड ब्वाय बोला, ‘तुम जैसे जाहिल लोगों के कारण ही ये कोरोना फैल रहा है.’

मैं बाहर आई, तो बबलू का आटो ना देख कर लगा कि शायद वो नहीं आएगा, आएगा भी क्यों इस वायरस से सब डरते हैं.

पापा की सांस उफन रही थी और सूरज की तपिश के साथ उन का बुखार भी बढ़ रहा था.

मैं कैब बुक करने की कोशिश कर रही थी कि तभी बबलू आ गया. आते ही वह बोला, ‘दीदी, वो सामान खरीदने में देर हो गई थी.’

आज उस आटो में बैठते हुए ऐसा लग रहा था कि वो आटो नहीं, बल्कि कोई देवदूत का वाहन है.

घर पहुंच कर बबलू ने ग्लव्स पहन कर सामान उतारा. मैं ने उस के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘बबलू, ये 500 रुपए रख लो, एक हफ्ते में पहली बार किसी ने इनसान की तरह व्यवहार किया है.’

बबलू 200 रुपए वापस करते हुए बोला, ‘दीदी, गरीब हूं, पर इनसान हूं, आप की मुसीबत पर रोटियां सेंकने का
मेरा कोई इरादा नहीं है.

‘आप को अगर कुछ मंगवाना हो, तो आप बेझिझक बता दीजिए. मैं घर के दरवाजे पर रख जाऊंगा.’

आज 8 दिन के पश्चात पापा के बुखार ने भी हौसला नहीं तोड़ा. बबलू का आना और मदद करना संबल दे गया
था. ऐसा लगा इंसानियत शायद अभी भी जिंदा है.
शाम होतेहोते मुझे भी तेज बुखार हो गया था. डाक्टर बारबार ये ही कह रहा था कि आप अपना भी ध्यान रखें. आप अगर 35 वर्ष की हैं, तो इस का यह मतलब नहीं कि कोविड आप के लिए आसान रहेगा.

अब तक तो मैनेज कर रही थी, परंतु खुद को बुखार होने के बाद उठने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी.
समझ नहीं आ रहा था कि ये बुखार मुझे तनाव, अकेलेपन या फिर कोविड की वजह से हुआ है?

ना चाहते हुए भी औनलाइन खाना मंगाने की सोच रही थी. घी, तेल और मसालों से भरा हुआ खाना इस
समय मेरे और पापा के लिए सही नहीं होगा, पर क्या करूं?

तभी दरवाजे पर घंटी बजी. देखा, यमुना खड़ी है. यमुना को देख कर मैं बोली, ‘यमुना, तुझे फोन पर बताया तो था कि मुझे और पापा को कोविड हो गया है.’

‘तुझे पैसों की जरूरत है, तो मैं दे देती हूं, तेरी तनख्वाह निकाल रखी है, पर कहीं हम से बीमारी ना लग जाए.’

यमुना मास्क को ठीक करते हुए बोली, ‘अरे दीदी, क्या अपनों का हाल नहीं पूछते हैं, अगर कोई बीमार हो तो…’

‘आप ने तो फिर भी बता दिया था मुझे, 204 वाली मेमसाहब और 809 वाली आंटी ने तो बिना बताए ही
मुझ से पूरा काम करवाया है.’

‘आप कहें तो मैं आप के यहां भी काम कर दूंगी, बस इन दिनों थोड़ी तनख्वाह ज़्यादा दे दीजिए.’

मैं डरतेडरते बोली, ‘वो तो ठीक है, पर क्या तुझे डर नहीं लगेगा.’

यमुना सौंधी सी हंसी हंसते हुए बोली, ‘गरीबी से अधिक कोई भी बीमारी भयानक नहीं होती है.’

‘आप पैसे दीजिए या मैडिकल स्टोर वाले को बोल दीजिए. मैं अपने लिए आप के घर में घुसने से पहले अलग मास्क और सैनिटाइजर ले आती हूं.’

फिर यमुना ने डबल मास्क पहन कर मेरे फ्लैट में प्रवेश किया. मैं और पापा ने खुद को एक कमरे में बंद कर
लिया था.

जाने से पहले उस ने फोन पर ही बता दिया कि क्या क्या काम हो गया है.

यमुना के जाने के बाद जब मैं बाहर आई तो आंखें भर आईं. यमुना ने डिस्पोजेबल क्राकरी डाइनिंग टेबल पर
रखी हुई थी, ताकि मुझे बरतन ना करने पड़े.

सूप, खिचड़ी, चटनी और सलाद काट कर सलीके से लगाया हुआ था. दूध उबाल रखा था. प्रोटेनिक्स का डब्बा भी था. फल भी काट कर रखे हुए थे. बादाम और किशमिश भी शायद सुबह के लिए भीगी हुई थी.

ना जाने क्या हुआ कि मेरा बुखार बिना दवा के ही उतर गया. यमुना को फोन किया, पर गला रुंध गया. कुछ
बोल नहीं पाई मैं. उधर से भी बस ये ही आवाज आई, ‘दीदी, आप चिंता मत करना. मैं हूं आप के और अंकलजी के साथ.’

यमुना के घर में प्रवेश करते ही नकारात्मकता और कोरोना दोनों ही बाहर निकल गए थे. आज शायद 11 दिनों के पश्चात ऐसा लग रहा है सवेरा होने को है. ये दवाओं का असर है या फिर यमुना और बबलू का साथ खड़ा होना, जिस ने अंदर तक मेरे फेफड़ों को इंसानियत की स्वच्छ हवा से भर दिया है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें