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शरद यादव : एक औघड़ राजनीतिज्ञ

वरिष्ठ समाजवादी नेता और (जनता दल एकीकृत) के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का निधन निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा कर रहा है. 12 जनवरी 2022 की  रात उनकी बेटी सुभाषिनी शरद यादव ने सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी जानकारी देश को दी. शरद यादव ने 75 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में उनका देहावसान हुआ. अगर शरद यादव के व्यक्तित्व की बात करें तो एक औघड़ राजनीतिज्ञ के रूप में उन्हें और उनके जीवन को रेखांकित किया जा सकता है. जिनकी अपनी एक विशिष्ट शैली थी जो उन्हें अपने समकालीन बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों से अलग करती थी. अपने राजनीति के अंतिम दिनों में जहां उन्हें नीतीश कुमार से 36 के संबंधों के कारण एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल लालू यादव के निकट पहुंचाता है, वहीं संसद सदस्य में नहीं होने के कारण दिल्ली के अपने आवास को छोड़ने के लिए सुर्ख़ियों में आकर राजनीति की असंवेदनशीलता और अंधेरे पक्ष को भी जता गया. जिसमें कहा जा सकता है कि आज की राजनीति किसी की नहीं है.

शरद यादव चाहते थे कि अपना अंतिम समय अपने उस मकान में बिताएं जिसमें उन्होंने रहकर देश की सेवा की थी. मगर  सरकार ने आखिरकार आपको अपने बंगले से बाहर निकालकर दिखा दिया कि शरद यादव जैसे राजनीतिज्ञ जो कि अपने जीवन में एक मिथक बन जाते हैं के लिए भी आज की भाजपा सरकार में संवेदनशीलता नहीं है.

भारतीय राजनीति:शरद यादव,एक मिथक

जैसे ही शरद यादव के निधन की खबर देश में फैली शोक का माहौल बन गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी सहित कांग्रेस नेता राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, राजद नेता तेजस्वी यादव समेत कई ने शोक जताया.

बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने वाले शरद यादव लंबे समय से बीमार चल रहे थे. फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक बयान में कहा गया है – यादव को अचेत अवस्था में आपातकालीन वार्ड में लाया गया . बयान में कहा गया है, ‘स्वास्थ्य जांच के दौरान, उनकी नाड़ी नहीं चल रही थी या रक्तचाप दर्ज नहीं किया गया. उपचार के सभी प्रयास नाकाम रहे। रात 10:19 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया . शरद यादव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा है उनके शोकाकुल परिजनों को अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं. देश के लिए उनका योगदान सदा याद रखा जाएगा.’कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘समाजवादी नेता और जद (एकी) के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव के निधन से मर्माहत हूँ. उन्होंने केंद्रीय मंत्री और सांसद के रूप में दशकों तक देश की सेवा की. समता की राजनीति को मजबूत किया.’

शरद यादव ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 1999 और 2004 के बीच कई मंत्रालय संभाले. बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी शरद यादव के निधन पर दुख जताते हुए कहा-‘मंडल मसीहा, वरिष्ठ नेता, महान समाजवादी नेता, मेरे अभिभावक शरद यादव के असामयिक निधन की खबर से मर्माहत हूं। कुछ कह पाने में असमर्थ हूँ .”

शरद याद के देहावसान पर  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘शरद यादव के निधन से दुखी हूं. सार्वजनिक जीवन में अपने लंबे वर्षों में, उन्होंने खुद को सांसद और मंत्री के रूप में प्रतिष्ठित किया. वे डा लोहिया के आदर्शों से बहुत प्रेरित थे. मैं हमेशा अपनी बातचीत को संजोकर रखूंगा.’

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शरद यादव को समाजवाद के पुरोधा होने के साथ एक विनम्र स्वभाव के व्यक्ति बताते हुए कहा, ‘मैंने उनसे बहुत कुछ सिखा .’पाठकों को स्मरण होगा कि जब शरद यादव पिछले समय बहुत बिमार चल रहे थे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उनके आवास पर जाकर मुलाकात की थी और शरद यादव को अपना गुरु बताया था.

Best Of Manohar Kahaniya: शक की पराकाष्ठा

सौजन्य- मनोहर कहनियां

लेखक-प्रकाश पुंज

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद की तहसील ठाकुरद्वारा से लगभग 8 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित है गांव निर्मलपुर. वैसे तो इस गांव में हर वर्ग के लोग रहते हैं, लेकिन यहां ज्यादा आबादी मुसलिम वर्ग की है. 9 जून, 2019 को रात के कोई साढ़े 10 बजे का वक्त रहा होगा. उसी समय अचानक इसी गांव में रोहताश के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

चीखने की आवाज सुन कर गांव के लोग चौंक गए, क्योंकि रोहताश का घर वैसे भी गांव के पूर्व में बाहर की ओर था. लोगों ने सोचा कि रोहताश के घर में शायद बदमाश घुस आए हैं. इसलिए पड़ोसी अपनीअपनी छतों पर चढ़ कर उस के घर की स्थिति का जायजा लेने लगे. लेकिन रात के अंधेरे में कुछ भी मालूम नहीं पड़ रहा था. इसी कारण कोई भी उस के घर पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

रोहताश के घर से लगा हुआ उस के छोटे भाई छतरपाल का मकान था. छतरपाल का बड़ा बेटा सुनील प्रजापति अपने ताऊ के घर से चीखपुकार की आवाजें सुन कर समझ गया कि वहां कुछ तो गड़बड़ है. जानने के लिए वह अपनी छत पर चढ़ गया. उस ने देखा कि एक आदमी उस की ताई पर लिपट रहा है. यह देख कर वह तैश में आ गया.

वह फुरती से अपने घर की दीवार लांघ कर ताऊ रोहताश के घर में जा पहुंचा. वहां का मंजर देख कर वह डर के मारे थर्रा गया. उस वक्त उस ने देखा कि उस के ताऊ रोहताश के हाथ में कैंची है, जिस से वह ताई को मारने की कोशिश कर रहा था. वह उसी कैंची से अपने चारों बच्चों को पहले ही लहूलुहान कर चुका था.अपने सामने खड़े शैतान बने ताऊ को देखते ही उसे डर तो लगा लेकिन फिर भी उस ने जैसेतैसे कर हिम्मत जुटाई और फुरती दिखाते हुए उस ने अपने ताऊ को दबोच लिया. उस ने ताकत के बल पर उस के हाथ से वह कैंची भी छीन कर नीचे फेंक दी.

सुनील की हिम्मत को देखते हुए पड़ोसी भी घटनास्थल पर इकट्ठे हो गए. उसी दौरान रोहताश वहां से फरार हो गया. वहां पर मौजूद लोगों ने देखा कि उस के 4 बच्चे 18 वर्षीय सलोनी, 16 वर्षीय शिवानी, 14 वर्षीय बेटा रवि और सब से छोटा 10 वर्षीय बेटा आकाश बुरी तरह से लहूलुहान पड़े हुए चीख रहे थे. उन की नाजुक हालत देखते हुए गांव वालों के सहयोग से सुनील ने उन्हें ठाकुरद्वारा के सरकारी अस्पताल में पहुंचाया. रवि को देखते ही डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

तीनों बच्चों की बिगड़ी हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें काशीपुर के हायर सेंटर रेफर कर दिया. काशीपुर में उन्हें एक निजी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां पर 2 बच्चों की हालत ज्यादा नाजुक बनी हुई थी. अगले दिन ही सोमवार को इस मामले के सामने आते ही ठाकुरद्वारा पुलिस ने काशीपुर पहुंच कर घायल बच्चों की स्थिति का जायजा लिया. पुलिस ने रोहताश की पत्नी कलावती से जानकारी हासिल की.

पुलिस पूछताछ में कलावती ने बताया कि उस का पति रोहताश शराब पीने का आदी था. वह अपनी कमाई के ज्यादातर पैसे शराब पीने में ही खर्च कर देता था. वह और उस के बच्चे जब कभी भी उस से खर्च के लिए पैसों की मांग करते तो वह पैसे देने के बजाए उन्हें मारनेपीटने पर उतारू हो जाता था. कलावती ने पुलिस को बताया कि रविवार की शाम जब पति देर रात घर वापस लौटा तो काफी नशे में था. खाना खा कर सभी लोग छत पर सो गए. रात में उठ कर रोहताश ने गहरी नींद में सोए बच्चों पर कैंची से हमला करना शुरू कर दिया. उस ने चारों बच्चों को इतनी बुरी तरह गोदा कि उन की आंतें तक बाहर निकल आईं.

बच्चों के चीखने की आवाज सुन कर कलावती जाग गई. उस ने बच्चों को बचाने की कोशिश की तो वह उस पर भी कैंची से हमला करने लगा. उसी दौरान किसी तरह सुनील आ गया. यदि वह नहीं आता तो बच्चों की तरह वह उस का भी यही हाल कर देता.

पुलिस ने रोहताश के भाई विजयपाल सिंह की तहरीर पर रोहताश के खिलाफ हत्या और हत्या का प्रयास करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. मामले की विवेचना कोतवाली प्रभारी मनोज कुमार सिंह ने स्वयं ही संभाली. कलावती से पूछताछ के बाद कोतवाली प्रभारी मनोज कुमार सिंह को पता चला कि रोहताश के परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी. कलावती के पास बच्चों का इलाज कराने के लिए पैसे भी नहीं थे. इस स्थिति को देखते हुए कोतवाल ने उसी वक्त घायल बच्चों के इलाज के लिए 50 हजार रुपए की मदद कलावती को की. उन्होंने 50 हजार रुपए कलावती के खाते में डलवा दिए.

घटना को अंजाम देने के बाद से ही रोहताश फरार हो गया था. उस का पता लगाने के लिए 3 पुलिस टीमें गठित की गईं. पुलिस टीमें रोहताश को हरसंभव स्थान पर खोजने लगीं. लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं था.

इस केस की गहराई तक जाने के लिए पुलिस ने रोहताश के परिजनों के साथसाथ उस के कुछ खास रिश्तेदारों से भी पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में पुलिस के हाथ कोई ऐसा सुराग नहीं लगा, जिस के आधार पर पुलिस की जांच आगे बढ़ सके. उसी दौरान पुलिस को पता चला कि रोहताश काफी दिनों से परेशान दिख रहा था. उसे तांत्रिकों के पास चक्कर लगाते भी देखा गया था. तांत्रिक का नाम सामने आते ही पुलिस ने कयास लगाया कि कहीं यह सब मामला तांत्रिक से ही जुड़ा हुआ तो नहीं है.

पुलिस ने उस की बीवी कलावती से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उसे किसी के द्वारा जानकारी तो मिली थी कि वह आजकल किसी तांत्रिक के पास जाता है. क्यों जाता था, यह पता नहीं. गांव के कुछ लोगों ने पुलिस को बताया कि रोहताश अकसर किसी खजाने के मिलने वाली बात कहा करता था. उस ने गांव के कई लोगों के सामने कहा था कि उसे बहुत जल्दी खजाना मिलने वाला है. उस खजाने के मिलते ही उस की सारी गरीबी खत्म हो जाएगी. लेकिन उस ने कभी भी इस बात का जिक्र नहीं किया था कि उसे खजाना किस तरह से मिलने वाला है.

तांत्रिक की बात सामने आते ही पुलिस के सामने थाना डिलारी की घटना सामने आ गई. अब से लगभग 15 साल पहले थाना डिलारी के गांव कुरी में तांत्रिक के कहने पर एक आदमी ने अपने परिवार के 5 सदस्यों को गड़ा खजाना पाने की लालसा में इसी तरह से मौत की नींद सुला दिया था. अब पुलिस टीम उस तांत्रिक को खोजने लगी, जिस के पास रोहताश जाता था. पर काफी प्रयास करने के बाद भी तांत्रिक का पता नहीं चला. इस के साथ पुलिस ने आरोपी रोहताश की तलाश में आसपास के गांवों में छापे मारे लेकिन कहीं भी उस के बारे में जानकारी नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए उस के फोटो लगे पोस्टर छपवा कर अलगअलग गांव और जिले के कई थानों में लगवा दिए थे, जिस में ईनाम की भी घोषणा की थी.

पुलिस की टीमें अपने काम में जुटी थीं. उधर अस्पताल में भरती रोहताश के दूसरे बेटे आकाश ने भी दम तोड़ दिया. इस सूचना से सारे गांव में मातम सा छा गया. कलावती पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा था. उस के 4 बच्चों में 2 लड़के थे, जिन की इलाज के दौरान मौत हो गई थी जबकि एक बेटी की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई थी. उसी दिन शुक्रवार की देर शाम पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि रोहताश निर्मलपुर के जंगलों में छिपा है. इस सूचना पर कोतवाली प्रभारी मनोज कुमार पुलिस टीम के साथ जंगलों में पहुंचे और घेराबंदी कर रोहताश को जंगल से अपनी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने रोहताश से पूछताछ की तो उस ने इस वारदात के पीछे की जो कहानी बताई, वह बड़ी ही अजीबोगरीब निकली.

जिला मुरादाबाद के कस्बा ठाकुरद्वारा से लगभग 8 किलोमीटर दूर गांव निर्मलपुर में रोहताश अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कलावती के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. रोहताश टेलरिंग का काम करता था. उस के पास खेती की ढाई बीघा जमीन भी थी. बच्चों को पढ़ाने की खातिर उसे ज्यादा पैसे कमाने की इतनी धुन थी कि टेलरिंग के काम के साथसाथ वह गांव में चौथाई पर जमीन ले कर उस में भी खेती कर लेता था.

कई साल पहले की बात है रोहताश का अपने घर वालों से जमीन को ले कर विवाद हो गया था, जिस में कलावती ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. लेकिन कुछ दिनों बाद ही रोहताश ने अपने घर वालों से बोलना शुरू कर दिया. यह बात कलावती को बहुत बुरी लगी. कलावती ने पति की इस बात का विरोध किया लेकिन रोहताश ने पत्नी की बात को तवज्जो नहीं दी. फिर क्या था, इसी बात पर रोहताश और कलावती के बीच झगड़ा होने लगा. उन दोनों के पारिवारिक जीवन में खटास पैदा हो गई.

रोहताश पहले कभीकभार शराब पीता था, लेकिन पत्नी से कलह होने के बाद वह शराब का आदी हो गया. उस ने शुरू में टेलरिंग का काम सुरजननगर कस्बे में शुरू किया था, लेकिन शराब का आदी हो जाने के बाद उस ने अपने गांव के पास स्थित कालेवाला में अपना काम शुरू कर लिया. रोहताश के चारों बच्चे स्कूल जाने लगे थे, जिस के बाद उन की पढ़ाई और खानपान व अन्य खर्च बढ़े तो रोहताश को आर्थिक तंगी हो गई. कालेवाला में उस ने काम शुरू किया तो वहां काम जमने में भी काफी वक्त लग गया, जिस के कारण वह परेशान रहने लगा. उन्हीं बढ़ते खर्चों के कारण उसे बीवीबच्चे भार लगने लगे थे. जब कभी भी कलावती या बच्चे उस से पैसों की डिमांड करते तो वह झुंझला उठता और गुस्से में उन्हें अपशब्द भी कह देता था. कलावती उसे शराब पीने को मना करती थी लेकिन वह पत्नी की नहीं सुनता था.

इस बात से दुखी हो कर कलावती ने यह बात अपने भाई लक्खू को बताई. एक दिन लक्खू कल्याणपुर निवासी अपने बड़े बहनोई को ले कर गांव निर्मलपुर पहुंचा. उन दोनों ने रोहताश को समझाने की कोशिश की तो रोहताश ने कलावती में ही तमाम खामियां गिना दीं. उस वक्त भी उस ने कहीं भी अपनी गलती नहीं मानी थी. उन के जाने के बाद रोहताश ने पत्नी को आड़े हाथों लिया. उस के बाद तो रोहताश ने शराब पीने की अति ही कर दी थी. वह सुबह ही घर से काम पर जाने की बात कह कर घर से निकल जाता और देर रात नशे में धुत हो कर घर पहुंचता. ज्यादा शराब पीने से उस का शरीर भी काफी कमजोर हो गया था. जिस के कारण उस के मन में हीनभावना पैदा हो गई थी.

एक बात और वह खुद को नामर्द भी समझने लगा. अपने इलाज के लिए वह कई नीमहकीमों से भी मिला. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. जब हकीमों से दवा लाने वाली बात कलावती को पता चली तो उस ने उसे दवा लाने से मना कर दिया. इस के बाद तो उसे अपनी पत्नी पर पूरा शक हो गया था कि उस के संबंध उस के जीजा के साथ हैं, इसी कारण वह उसे सेक्स की दवा लाने से मना करती है.

रोहताश की बेटियां काफी समझदार हो चुकी थीं, लेकिन उन्हें पढ़ाई करने की इतनी धुन थी कि उन्हें मोबाइल वगैरह से कोई लगाव नहीं था. 6 सदस्यों वाले इस घर में एक ही मोबाइल था, जो रोहताश के पास ही रहता था. जिस के कारण कलावती के किसी भी रिश्तेदार का फोन उसी के मोबाइल पर आता था. कलावती की सब से बड़ी मजबूरी यही थी कि उसे जब किसी भी रिश्तेदार से बात करनी होती तो वह या तो सुबह ही कर सकती थी या फिर शाम को. और रोहताश में सब से बड़ी कमी थी कि वह घर आ कर किसी के फोन आने की बात अपनी बीवी को नहीं बताता था. कई बार कल्याणपुर निवासी उस के साढ़ू ने उस की बीवी और बच्चों से बात करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन रोहताश हमेशा ही कह देता कि अभी वह बाहर है. घर जा कर बात करा देगा. घर जाने के बाद भी वह कोई न कोई बहाना करते हुए साढ़ू की बात नहीं कराता था. रोहताश अपने साढ़ू को गलत मान कर उस से चिढ़ने लगा था. फिर साढ़ू का बारबार फोन आने से उसे शक हो गया कि उस की बीवी के उस के साथ अवैध संबंध हैं, तभी तो वह बारबार उस से बात करना चाहता है.

विगत होली पर जब रोहताश के रिश्तेदार उस से मिलने आए तो उन्होंने कलावती से शिकायत की कि वह उन से फोन पर भी बात नहीं करती. तब कलावती को पता चला कि रिश्तेदारों ने उस से बात कराने के लिए रोहताश को कई बार फोन किया था, पर उस ने जानबूझ कर उस की बात नहीं कराई. इस पर कलावती बौखला उठी. उस ने पति को उलटीसीधी सुनाते हुए अपना एक अलग मोबाइल दिलाने की बात कही.

इस बात को भी रोहताश ने अपने साढ़ू से जोड़ते हुए सोचा कि वह जरूर अपने जीजा से बात करने के लिए ही अलग मोबाइल मांग रही है. यानी उस के दिमाग में शक का कीड़ा और भी बलवती हो उठा. मोबाइल दिलाने की बात को ले कर दोनों के बीच फिर से नोकझोंक हुई. बात इतनी बिगड़ी कि गुस्से में आ कर रोहताश ने अपना भी मोबाइल तोड़ डाला. उस के बाद उस ने पत्नी को हिदायत दी कि वह भविष्य में अपने जीजा से बात न करे अन्यथा अंजाम बहुत बुरा होगा. रोहताश की यह धमकी सुन कर कलावती ने इस की शिकायत अपने भाई लक्खू से कर दी. लक्खू ने फिर से अपने जीजा रोहताश को समझाने की कोशिश की, लेकिन रोहताश पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

साले के घर से जाते ही रोहताश ने बीवी को अपशब्द कहे, साथ ही उस ने उस से घर छोड़ कर चले जाने को भी कह दिया. इस पर दोनों में तकरार बढ़ गई. इसी तूतूमैंमैं के बीच कलावती ने पति से कहा कि यह घर छोड़ कर तो तुम्हें चले जाना चाहिए. यह घर मेरा, बच्चे मेरे. यहां पर तुम्हारा क्या है? रोहताश छोटी सोच का इंसान था. उस ने कलावती की बात को दूसरे नजरिए से देखते हुए अर्थ लगाया कि बच्चे भी उस के नहीं तो जरूर उस के साढ़ू के ही हैं. कलावती की बात सुनते ही वह अपना आपा खो बैठा. उस के मन में एक बात की गलतफहमी बैठी तो वह शैतान बन बैठा. वह उस दिन के बाद से बीवी और बच्चों का दुश्मन बन बैठा.

रोहताश अपने चारों बच्चों को उचित शिक्षा दिला रहा था ताकि उन की कहीं सरकारी नौकरी लग सके. उन की पढ़ाई के लिए ही उस ने दिनरात एक कर के काफी पैसा कमाया था. अपने सपने को साकार करने के लिए जितनी मेहनत उस ने की थी, उस से कहीं ज्यादा उस के बच्चे कर रहे थे. उस की सब से बड़ी बेटी सलोनी इस वक्त बीए फर्स्ट ईयर में और मंझली शिवानी कक्षा 12 में पढ़ रही थी. उस का बेटा रवि गांव गोपीवाला के जनता इंटर कालेज में 9वीं कक्षा में तथा सब से छोटा आकाश यहीं पर कक्षा-7 में पढ़ रहा था.

बीवी और बच्चों के प्रति उस के दिल में नफरत पैदा होते ही उस के दिल में शैतान पैदा हो गया. उस ने प्रण किया कि अगर ये चारों बच्चे उस के साढ़ू के हैं तो वह सभी को खत्म कर डालेगा. इस के बाद वह हर रोज ही अपनी बीवी और बच्चों को मौत की नींद सुलाने के लिए नएनए प्लान बनाने लगा. लेकिन वह अपनी साजिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था. इस दर्दनाक हादसे को अंजाम देने से 2 दिन पहले रोहताश उस रोज दुकान पर जाने के लिए घर से निकलता, लेकिन इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि बीवी और बच्चों को किस तरह से मौत की नींद सुलाया जाए. वह दुकान जाने के बजाए दारू पीने के लिए इधरउधर ही भटकता रहा.

16 जून, 2019 को शाम को वह जिस वक्त अपने घर पहुंचा तो उस ने कुछ ज्यादा ही शराब पी रखी थी. इस के बावजूद भी उस की बीवी ने उसे खाना खिलाया. वह खाना खा कर छत पर जा कर सो गया. इस के बाद कलावती ने अपने बच्चों को खाना खिलाया और घर का कामधंधा निपटा कर वह भी छत पर सोने के लिए चली गई थी. उस के 3 बच्चे छत पर सोए थे जबकि बड़ी बेटी शिवानी उस रात नीचे घर में ही सो गई थी. रात के 10 बजतेबजते सभी सो चुके थे. लेकिन उस रात रोहताश की आंखों में खून बरस रहा था. वह काफी समय से सभी के सोने का इंतजार कर रहा था. उस रात उस ने घर आते ही सब से पहले अपनी बड़ी कैंची का नटबोल्ट खोल कर 2 भागों में कर ली. उस का एक हिस्सा चाकू की तरह हो गया था. कैंची के एक हिस्से को उस ने रात के सोते समय अपने सिरहाने रख ली.

जब उस की बगल में लेटी बीवी नींद में खर्राटे भरने लगी तो उस के अंदर बैठा शैतान जाग उठा. वह अपने बिस्तर से उठा और सीधा दूसरी छत पर सोए तीनों बच्चों के पास पहुंच गया. उस ने आव देखा न ताव, शैतान बन कर कैंची के एक भाग से बच्चों पर ताबड़तोड़ वार करने लगा. देखते ही देखते बच्चे चीखपुकार मचाने लगे. बहनभाइयों की चीख सुन कर जैसे ही शिवानी जीने पर आई तो रोहताश ने उस पर भी जानलेवा हमला कर दिया. उस के बाद जैसे ही कलावती उसे बचाने के लिए पहुंची तो उस ने उसे भी मारने की कोशिश की, लेकिन उस वक्त तक उस का भतीजा सुनील शोरशराबा सुन कर वहां आ गया था. जिस की वजह से कलावती मौत के मुंह में जाने से बच गई. रोहताश का पूरे परिवार को खत्म करने का इरादा था.

पुलिस ने कैंची का वह भाग भी बरामद कर लिया, जिस से उस ने बच्चों पर हमला किया था. रोहताश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे मुरादाबाद की कोर्ट में पेश कर उसे जेल भेज दिया. रोहताश की पत्नी कलावती ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को झूठा और पूरी तरह से निराधार बताया. उस ने पुलिस को बताया कि उस के चारों बच्चे रोहताश के ही हैं. कलावती ने पुलिस को बताया कि अगर उसे मेरे चरित्र पर शक था तो मुझे ही मारना चाहिए था. मैं तो उस के पास ही सो रही थी. गांव में इस मामले को ले कर चर्चा थी कि रोहताश ने गड़ा खजाना पाने के लिए ही किसी तांत्रिक के कहने पर यह कांड किया.

अकल्पित-भाग 1 : सोनम के दादा जी क्या किया था?

जींस और ढीलेढाले टौप में लिपटी हुई उस दुबलीपतली सी लड़की को मैं शायद ही कभी पहचान पाती, मगर जिस अंदाज में उस ने मुझे ‘चिकलेट मैम’ कह कर बुलाया था, उस से मैं समझ गई थी कि यह मेरे दिल्ली के स्कूल की मेरी ही कोई छात्रा रही होगी.

गोराचिट्टा रंग, कंधों तक खुले बाल और बड़ीबड़ी आंखों वाला निहायत मासूम सा चेहरा… देखते ही देखते मैं उसे पहचान तो गई थी, मगर अचानक मैं उन के पैरों की तरफ देखने लगी थी. कभी पोलियोग्रस्त रहने वाला उस का एक पैर अब काफी ठीक लग रहा था. लेकिन पुराने मर्ज के कुछ लक्षण शायद अभी भी बाकी थे. और उसी से मैं ने उसे क्षणभर में ही पहचान लिया था. वह यकीनन सोनम वर्मा ही थी.

‘‘सोनम… तू यहां… पूना में…” मैं ने पलभर में ही उसे गले लगाते हुए कहा था.

‘‘हां, हां… बस मैम… मैं अब यहां पूना में ही हूं… यहां मुझे इंफोसिस कंपनी में जौब मिली है… अभी तो मेरी ट्रेनिंग चल रही है…’’

‘‘अरे वाह. वैरी गुड… बहुत अच्छी और बड़ी कंपनी है… तुम ने पढ़ाई कब खत्म की…’’

‘‘मै ने दिल्ली में ही अपनी इंजीनियरिंग पूरी की मम… और फिर मुझे कालेज कैंपस इंटरव्यू में ही यह जौब मिली…’’

‘‘वैरी गुड… मुझे बहुत खुशी हुई. कौंग्रेच्युलेशन… चलो, अब मेरे घर चलो… मैं घर ही जा रही हूं… घर चल कर खूब बात करेंगे…’’

‘‘नहीं मैम… अभी नहीं… अभी तो हम सब फ्रैंड्स पिक्चर देखने जा रहे हैं… आप मुझे अपना एड्रैस बताइए…
मैं कल… कल पक्का आऊंगी…”

मैं ने फिर उसे अपने घर का पता ठीक से समझा दिया था और मैं अपने घर आ गई थी…

घर आते ही कहने को तो मैं अपने रोज के कामधाम निबटा रही थी, मगर मन 10-15 साल पीछे जा कर दिल्ली पहुंच गया था.

मैं उन दिनों दिल्ली के एक अंगरेजी मीडियम स्कूल में सीनियर केजी की टीचर थी. मेरी क्लास में 60 बच्चे होने के कारण यह क्लास हम 2 टीचर मिल कर संभालते थे. एक मैं और दूसरी मेरी सहशिक्षिका मिसेस आभा…

आभा मुझ से 3 साल सीनियर थी और उसे अपने काम का अच्छाखासा अनुभव था. देखने में बहुत ही खूबसूरत और नाजुक सी होने के बावजूद वह बच्चों के मामले में काफी सख्त थी. उस के शिक्षाबद्ध स्वभाव की वजह से क्लास के अधिकतर बच्चे मुझ से ज्यादा घुलमिल जाते थे… ‘चिकलेट मैम’, ‘चिकलेट मैम’ कहते हुए मेरे आसपास मंडराते रहते.

लेकिन सोनम जाने क्यों आभा को ज्यादा पसंद करती थी. बच्चों की मानसिकता भी बड़ी अजीब होती है. जो उन्हें पसंद आ जाए, उसे ही वे पसंद करते हैं… और उस का कोई कारण नहीं होता. सोनम भी ऐसी ही थी.

भगवन, तेरी कृपा बरसती रहे: भाग 2

आप बताइए, कब करवाना ठीक रहेगा?’’ पंडितजी एकदम बैड पर उचक कर उकड़ूं बैठ गए और उन के होंठों पर स्निग्ध मुसकान फैल गई. जिह्वा पर दसियों व्यंजनों का स्वाद छाने लगा. मन ही मन भगवान को धन्यवाद देते हुए उन्होंने स्वयं को संयत किया और सुमधुर स्वर में बोले, ‘‘नमस्कार भाभीजी, कैसी रही आप की यात्रा? यह तो बहुत बढि़या विचार है आप का.

किसी भी तीर्थ की पूर्ति तब तक नहीं होती जब तक कि सत्यनारायणजी की कथा न करवाई जाए, कब करवाना है, भाभीजी?’’ ‘‘इसीलिए तो आप को फोन किया है, आप बताइए कब का मुहूर्त ठीक रहेगा? वैसे हमें संकोच हो रहा था आप को फोन करते हुए क्योंकि आप की अभी 15 दिनों पहले ही शादी हुई है न पर हम ने सोचा, पहले आप से पूछ लें. यदि आप फ्री नहीं होंगे तो फिर दूसरे पंडितजी को बुलाएं.’’ ‘‘अरे नहींनहीं, भाभीजी. इस में संकोच की क्या बात है. शादीब्याह तो जीवन की एक प्रक्रिया है, सो, हो गई. बाकी आप को तो पता ही है, हम तो भगवान के भक्त हैं, भाभीजी.

मैं आप को आधे घंटे में फोन करता हूं पंचांग देख कर कि कब का शुभ मुहूर्त है.’’ पंडितजी ने जल्दी से बात समाप्त कर के फोन काट दिया और कमरे में खुश होते हुए इधरउधर चक्कर काटने लगे. चक्कर काटतेकाटते वे सोच रहे थे, हे प्रभु, तू कितना ध्यान रखता है अपने भक्तों का. इतने दिनों से बढि़या खाना और वीआईपी ट्रीटमैंट के लिए तरस गया था मैं. यों तो आजकल पंडिताइन खाना बनाती है पर एक तो वह नई है, दूसरे घर में कुछ भी बनाओ, खर्चा तो अपना ही होना है. यजमान तो जीभर कर खिलाते ही हैं, साथ ही, पंडिताइन के लिए बांध भी देते हैं. तभी उन्हें ध्यान आया कि अभी तो भाभीजी को फोन भी करना है. कहीं भाभीजी अपना मन बदल न दें.

सो, उन्होंने फटाफट मिसेज गुप्ता को फोन मिला दिया, ‘‘भाभीजी, कल का मुहूर्त सब से अच्छा है. वैसे भी तीर्थ से आने के बाद शीघ्रातिशीघ्र कथा करवा लेना चाहिए तभी तीर्थयात्रा सफल होती है.’’ ‘‘पर पंडितजी, इतनी जल्दी सब व्यवस्था कैसे हो पाएगी?’’ मिसेज गुप्ता ने कुछ चिंतित स्वर में कहा. ‘‘अरे भाभीजी, मेरे रहते आप उस की जरा भी चिंता मत कीजिए. आप तो, बस, आदेश कीजिए. पूजा की समस्त सामग्री मैं ले आऊंगा. आप सिर्फ पूजावाला भोजन और भगवान का भोगप्रसाद बना लीजिएगा.’’ ‘‘ठीक है पंडितजी तो कल ही रख लेते हैं. वैसे भी हमें आए एक सप्ताह हो ही गया है और अधिक लेट नहीं करते. सो, कल आप आ जाइएगा और हां, कल आप का और पंडिताइनजी का भोजन हमारे यहां से ही रहेगा,’’ मिसेज गुप्ता ने खुश होते हुए कहा.

‘‘ठीक है, भाभीजी. मैं कल सुबह 10 बजे आ जाता हूं.’’ ‘‘जी, पंडितजी.’’ पंडितजी खुश होते हुए कल की तैयारी में लग गए. उन्होंने अपनी अलमारी खोली और पूजा में प्रयोग की जाने वाली समस्त सामग्री एक थैले में भर कर रख ली ताकि सुबह कोई हड़बड़ाहट न हो. कहते हैं न, मन चंगा तो कठौती में गंगा. सो, पंडितजी का मन आज तो बल्लियों उछाल ले रहा था, उस पर नईनवेली पत्नी बगल में हो तो फिर क्या कहने. सो, पंडितजी ने अपनी खूबसूरत पत्नी को खींच कर अपने सीने से लगाया और चैन की नींद सो गए. अगले दिन सुबहसुबह बढि़या कलफदार पीली धोती व पीला कुरता पहन, कंधे पर जरी के बौर्डर वाला गमछा डाल, बिना नाश्तापानी किए पंडितजी निकल पड़े अपने यजमान के घर. सत्यनाराण की कथा करा कर मिसेज गुप्ता ने डाइनिंग टेबल पर पंडितजी के लिए थाली लगा दी.

आहाहा, थाली में खीर, पूरी, हलवा, पनीर की सब्जी, बूंदी का रायता और पुलाव आदि देख कर तो पंडितजी की बांछें खिल गईं. तृप्त हो कर भोजन किया. मिसेज गुप्ता ने चलते समय एक टिफिन और बैग दिया और बोलीं, ‘‘पंडितजी, यह भाभीजी के लिए भोजन है और यह चढ़ावे का सामान व आप दोनों के कपड़े हैं.’’ पंडितजी ने खुशीखुशी सामान लिया और मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया, हे प्रभु, तू ऐसे ही अपने इस भक्त की पुकार सुन लिया कर और हर दूसरेतीसरे दिन ऐसे ही यजमानों से अपनी मुलाकात करवा दिया कर तो अपनी घरगृहस्थी बढि़या चलती रहेगी. अपनी शादी में मिली नई निकोर पल्सर बाइक पर पंडितजी ने अपना सामान बांधा और चल दिए. घर पहुंच कर तो उन के पास बैड पर लमलेट होने के अलावा कोई चारा ही न था क्योंकि महीनेभर बाद मिले इतने स्वादिष्ठ भोजन को पचाने के लिए अब विश्राम करना बेहद आवश्यक था. जैसे ही वे बैड पर लेटे, अचानक मन बरसों पहले अपने गांव खिलचीपुर पहुंचा जो मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की एक तहसील थी. जहां परिवार में उन के अलावा 5 भाईबहन और थे. परिवार के मुखिया यानी उन के पिता रामचरण एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क थे और क्लर्क की मामूली सी तनख्वाह में 5 सदस्यीय परिवार का गुजारा कर पाना परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए बेहद चुनौतीभरा था.

मां सुरती 8वीं पास थीं पर दिमाग के मामले में वे अच्छेखासे पढ़ेलिखे को भी मात दे दिया करती थीं. एक दिन कमजोरी की वजह से सुरती बेहोश हो गईं. जब उन्हें होश आया तो पाया कि गांव वाले उन्हें घेर कर खड़े हैं, कोई थाल में दीपक लिए उन की पूजा कर रहा है तो कोई उन के चरण पूज रहा है. होश आने पर सुरती असहज हो उठीं और सिर पर पल्ला रख कमरे की तरफ दौड़ पड़ीं. तभी बाहर से आती कुछ आवाजें उन के कानों में पड़ीं, ‘आज गुरुवार है और सुरती भाभी पर तो वैसे ही देवीजी का हाथ है आज तो माताजी ने सुरती के रूप में खुद दर्शन दे दिए. बोलो, जय मां भगवती की.’ देवी और वे, उन के रूप में देवी, उन्हें कुछ सम?ा नहीं आ रहा था पर दिमाग बहुत तेजी से दौड़ रहा था. कुछ सोचविचार कर बेहोशी का परिणाम एक बार फिर देखने के लिए अगले गुरुवार को उन्होंने बेहोश होने की ऐक्ंिटग कर डाली. यह क्या, इस बार तो आसपास के लोग ही उन के चारों तरफ जमा हो गए पर इस बार होश में आने पर भी अंदर की तरफ दौड़ न लगा कर वे वहीं बैठीं रहीं.

बस, अपने सिर का पल्ला थोड़ा ठीक कर लिया. पिछली बार की अपेक्षा इस बार देवी के रूप में उन के चरण छू कर कुछ मुद्रा भी लोगों ने चढ़ाई और कुछ फल आदि भी. फिर क्या था, सुरती देवी पर हर गुरुवार देवी आने लगी. धीरेधीरे आसपास के गांवों से भी लोग देवी के दर्शन करने व अपनी समस्याएं ले कर उन के पास आने लगे और अब देवी की कृपा से घर की आर्थिक विपन्नता भी काफी हद तक काबू में आने लगी थी. घर वाले भी खुश और आने वाले भी खुश. पंडितजी को याद आया कि उस समय वे गांव के स्कूल में ही 12वीं कर रहे थे जब एक दिन उन की मां सुरती देवी ने उन्हें अपने पास बैठा कर कहा- ‘देख बेटा, बहुत ज्यादा तो हम तु?ो पढ़ालिखा नहीं पाएंगे और न ही तू पढ़ पाएगा. मैं चाहती हूं कि तू अब से मेरी मदद कर दिया कर. इस से मु?ो तो आराम मिलेगा ही, साथ ही, तू लोगों को डील करना और मानसिकता को सम?ाना सीख जाएगा.

कल को कभी नौकरी नहीं लगी तो भगवान की सेवा कर के अपनी गुजरबसर तो कर लेगा. आने वाले नवरात्र से मैं नौ दिनों तक मां का दरबार लगाऊंगी, तुम उस में मेरी मदद करो.’ ‘पर मां, मैं तेरी क्या मदद कर पाऊंगा, मु?ो तो कुछ भी पता नहीं है.’ ‘तू उस की चिंता मत कर, मैं सब बता दूंगी.’ ‘ठीक है, तू जैसा कहे,’ कह कर वे अपने दोस्तों के साथ चले गए थे. 10 दिनों बाद जब नवरात्र का प्रथम दिन आया तो घर का नजारा पूरी तरह बदल चुका था. घर के बाहरी कमरे में देवी मां की बड़ी सी मूर्ति स्थापित की गई. शाम को मां सुरती देवी ने नहाधो कर सुर्खलाल साड़ी धारण की और उन्हें भी गेरुए रंग का एक धोतीकुरता पहनने को दिया और साथ में, एक कटोरी में कुछ ज्वार के दाने. कमरे में सुगंधित अगरबत्ती और धूपबत्ती जला दी गई. जब भक्तजन आने लगे तो मां ने मुख पर घूंघट डाले, पीठ तक खुले बालों को आगे किए हुए सिर को गोलाई में घुमाते हुए कमरे में प्रवेश किया. पिताजी ने हाथ जोड़ कर ‘अम्बे माता की जय’ का जोरजोर से जयकारा लगाना शुरू किया.

YRKKH: अभिमन्यु को आएगी बेटे की याद , अभिनव से करेगा जिक्र

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है सालों से दर्शकों के बीच छाया हुआ है. इस सीरियल की कहानी में अब तक कई सारे बदलाव आ चुके हैं. लेकि कहानी इतनी ज्यादा अच्छी है कि दर्शकों को हमेशा से पसंद आ ही जाती है. दर्शक भी इस सीरियल में आगे क्या होने वाला है देखने के लिए उत्साहित रहते हैं.

सीरियल में अब 6 साल का गैप आ चुका है जिसमें अक्षरा और अभिमन्यु अपनी- अपनी लाइफ में काफी ज्यादा खुश हैं. बीते एपिसोड में देखने को मिला कि अक्षरा अपने बेटे अबीर के साथ हैं.तभी अभिनव की मुलाकात अभिमन्यु से होती है.

आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अबीर अपने पापा को कहेगा इंजेक्शन लाने के लिए वह बात अभिमन्यु सुन लेगा अपने बेटे कि आवाज को सुनकर वह तड़प उठेगा, वह अपनी पुरानी यादों में खो जाएगा. इसके बाद अभिमन्यु अभिनव के साथ स्कूल पहुच जाता है.

सीरियल में आगे दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु जैसे ही स्कूल के गेट पर पहुंचेगा तभी उसकी बेटी रूही का फोन आ जाएगा और वह इतनी लंबी बात करने लगेगी तब तक अबीर के स्कूल का प्रोग्राम खत्म हो जाएगा औऱ वह अपने बेटे अबीर से नहीं मिल पाएगा. अब आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि क्या अक्षरा अभिमन्यु एक दूसरे से मिल पाएंगे.

Bigg Boss 16: इस हफ्ते शो से बाहर होंगे साजिद खान!

`बिग बॉस 16 में इन दिनों लगातार कुछ न कुछ नया देखने को मिल रहा है, अब इस सीजन के कुछ आखिरी दिन ही बचे हैं. जिसमें हर दिन कुछ कुछ नया देखने को मिल रहा है.

इस हफ्ते कंटेस्टेंट को अपने परिवार वालों से मिलने का मौका मिला. जिसमें सभी अपने परिवार वालों से मिलकर काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे थें. वहीं साजिद खान से मिलने उनकी बहन फराह खान आईं.जिनके साथ सभी घरवालों ने खूब एंटरटेन किया.

जिसके बाद से खबर आ रही है कि शो से जल्द साजिद खान का पत्ता कटने वाला है. खबर के मुताबिक वह इस हफ्ते शो से बाहर हो जाएंगे.

दरअसल, साजिद खान कम वोटिंग कि वजह से नहीं जाएंगे, उन्होंने बिग बॉस मेकर्स से कम समय का कंट्रेक्ट साइन किया था इसलिए वह चले जाएंगे.

बता दें कि मी टू की वजह से बहुत सारी अभिनेत्रियों ने साजिद पर आरोप लगाया था, जिस वजह से साजिद की छवि लगातार खराब हो रही थी. उनके कैरियर पर भी बुरा असर पड़ रहा था. हालांकि बिग बॉस में आकर साजिद खान ने एक मंडली बनाई है जिसमें उनके फेवरेट पर्सन हैं. इसमें सबसे पहला नाम अब्दु का आता है.

टेस्टी फूड को कैसे बनाएं हेल्दी, जानें यहां

पोषाहार पाककला और चिकित्सा विज्ञान का उत्तम समन्वय ही नहीं, रोग के निदान और स्वस्थ जीवन की कुंजी भी है. बहुत कम डाक्टर सही मायनों में मरीजों को यह कुंजी थमाने में प्रवीण होते हैं.

पाकशास्त्री डाक्टर के नाम से मशहूर डाक्टर टिमोथी हार्लन सैंटर के कार्यकारी निदेशक हैं. उन का मत है कि हर चिकित्सक का एक ही ध्येय है जन स्वास्थ्य. लोगों के जंक और फास्ट फूड की तरफ बढ़ते रुझान से मोटापा और मधुमेह आज विकराल रूप धारण करते जा रहे हैं. आज इन के उपचार से पहले इन की रोकथाम करनी ज्यादा जरूरी है. इसीलिए अब डाक्टर सही खानपान की सलाह देने लगे हैं. महंगी खा-सामग्री के कम खर्चीले विकल्प बताने लगे हैं. बाल चिकित्सक सब से अधिक गुणकारी सब्जियों में छोटे बच्चों की रुचि बढ़ाने के तरीके सुझाने लगे हैं.

स्वाद में सेहत जगाएं ऐसे

दैनिक खानपान को सुस्वादु बनाने के बहुत से सरल तरीके हैं. जैसे कि:

– ब्रेकफास्ट का सब से उत्तम विकल्प है स्मूदी. शहद, लो फैट दूध, दही और सहज उपलब्ध फल या ज्यादा पके केलों का पौष्टिक ब्लैंड पी कर भूख जल्दी नहीं लगेगी. संतरे, अनार, आम, स्ट्राबैरी के अलावा खरबूजे, तरबूज, अमरूद या टमाटर, पालक आदि के चटपटे जूस की कौकटेल्स बनाइए.

 

– गाजर, मूली, खीरे, ककड़ी आदि के पतले कतलों को थोड़ से शहद, कुचली लहसुन की कलियों, सेंधा नमक, साबूत काली व लालमिर्च के साथ नीबू या सिरके की खटास में धनिएपुदीने के पेस्ट से चटपटा सलाद या अचार बनाया जा सकता है.

– आलू, गोभी, ब्रोकली, शकरकंदी, गाजर, बींस, कद्दू, बैंगन आदि को छौंकने के लिए तेल की कुछ बूंदें ही काफी हैं. जीरा अजवाइन, करीपत्ता, मोटी कुटी कालीमिर्च, धनिया और मेथी पाउडर के साथ धीमी आंच पर भूनने या बेक करने से इन का स्वाद और बढ़ेगा. साइड डिश की तरह खाइए या फिर दाल के पानी में उबाल कर सूप बनाएं.

– भारतीय रसोई की दाल उत्तम सूप है. सादे पानी में सब्जियों के छिलके उबाल कर स्टौक बना कर रखें. उस में दाल या सब्जी अधिक रुचिकर बनेगी. मीट स्टौक से नौनवैजिटेरियन डिशेज का स्वाद बढ़ेगा. घी, मक्खन या मलाई का विकल्प है गाढ़ा दही.

 

– दाल में मनपसंद सब्जियां या फिर चाहें तो चिकन वगैरह डालें और नाममात्र घी या तेल से छौंकने के बाद गाढ़े दही से स्वाद बढ़ाएं. सादे बेसन या दाल की पकौडि़यों को तलने के बजाय भाप में या खौलते खुले पानी में पकाएं या फिर ढोकले सरीखी बना कर तवे पर हलकी चिकनाई लगा सेंक कर या वैसे ही खाएं.

– चोखा केवल आलू या बैंगन का ही नहीं, अन्य सब्जियों का भी बन सकता है. गोभी, कद्दू लौकी, तुरई, गाजर, मटर आदि का अलगअलग या मिलाजुला बनाएं. काले चनों, चुकंदर, राजमा, लोबिया या मूंग की दाल का भी कम स्वादिष्ठ न होगा.

– फ्राइड के बजाय बेक्ड पोटैटो चिप्स, पापड़, खाखरा, सूखा पोहा, चना, मुरमुरा, पौपकौर्न, खील, सूखे मेवे, फल, पपीता, कद्दू, सनफ्लौवर के भुने बीज और ग्रनोला आदि से स्नैकिंग कीजिए. केले के स्लाइस प्लास्टिक बैग में फ्रीज कर के खाएं. किशमिश की तरह सूखी स्ट्राबैरी, चैरी, कमरख, पाइनऐप्पल, आम, करौंदे, अनारदाना, बेर आदि भी फांकने के लिए उत्तम हैं. सुखाने के लिए धूप न मिले तो बेक कर लें.

 

– शाम के समय हलदी व अदरक मिली कौफी या चाय को शहद से हलका मीठा करें. चीनी के बजाय शहद मिली शिकंजी में खीरेककड़ी का रस, चुटकीभर नमक, पिसा जीरा व कालीमिर्च, क्लब सोडा और कुटी बर्फ मिलाने से तरावट का भरपूर मजा आएगा.

– शाही स्वाद के लिए घी या तेल ही जरूरी नहीं, काजू, बादाम, तिल, पोस्तादाना से भी ग्रेवी को रिच किया जा सकता है. मसालों का जादू जगाया जा सकता है. रिच ग्रेवी के लिए प्याज, लहसुन, अदरक, टमाटर के पेस्ट को घी या तेल में भूनने के बजाय इन्हें कड़ाही या तवे पर साबूत अलगअलग सूखा भून लें.

– 5-6 बादाम, काजू या एक चम्मच खसखस और तिल भी सूखे भून कर सभी चीजों के साथ थोड़े से दूध में उबाल कर मिक्सी में पीस लें. चाहें तो छान भी सकती हैं.

– बच्चों को मैकरोनी, चीज बहुत भाता है, तो उसे मैदे की जगह आटे के पास्ता, लो फैट चीज से बनाएं. सौस में मक्खन वगैरह कम कर के भुनीपीसी सब्जियां आदि बढ़ा दीजिए.

बाजार में उपलब्ध बने बनाए खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए चीनी, नमक, चिकनाई और ऐडिटिव, प्रिजर्वेटिव पर नियंत्रण नहीं हो सकता. खाना बनाना भी एक तरह की थेरैपी है. समय और सुविधानुसार ताजा खाना बनाएं और खाएं.

मैं हस्तमैथुन का आदी हूं, दोस्त कहते हैं कि यह गलत आदत है, इस बारे में डिटेल से बताएं?

सवाल

मैं एक 18 वर्षीय युवक हूं और हस्तमैथुन का आदी हूं. दोस्त कहते हैं कि यह गलत आदत है, इस से सैक्स संबंधी बीमारियां होती हैं. आप से अनुरोध है कि इस बारे में डिटेल से बताएं. आज बहुत से युवा इस के आदी हैं. इस के साइड इफैक्ट क्या हैं?

जवाब

सब से पहले तो आप को बता दें कि यह हानिकारक नहीं है बल्कि युवावस्था में आम समस्या है. युवावस्था में कदम रखते ही युवकों के मन में सैक्स के प्रति जिज्ञासा के साथसाथ विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है, जिस से उत्तेजना की अवस्था में हस्तमैथुन द्वारा यौन आनंद प्राप्त करना सहज लगता है और युवा इस के आदी हो जाते हैं. आज डाक्टरों ने यह साबित कर दिया है कि यह कोई बीमारी नहीं है.

युवाओं में हस्तमैथुन स्वाभाविक है और इसे नौर्मल व स्वस्थ हैबिट के रूप में लिया जाता है, लेकिन सैक्स की अधूरी जानकारी के कारण इस के आदी युवाओं में निराशा, हताशा और डिप्रैशन हो जाता है, इस से बचना चाहिए.

हां, अति हर चीज की बुरी होती है और हस्तमैथुन भी उस से अलग नहीं. यह आदत तब खतरनाक व हानिकारक है जब इस से आप की पढ़ाई व अन्य कार्यों पर असर पड़े. अत: चिंता न करें. इसे स्वाभाविक क्रिया मान कर अपने अन्य कामों पर हावी न होने दें.

जब बीवी पेट से हो, तो उस दौरान हम किस महीने तक संबंध बना सकते हैं?

सवाल

जब बीवी पेट से हो, तो उस दौरान हम किस महीने तक शारीरिक संबंध बना कर सकते हैं, ताकी बच्चे को नुकसान न हो?

जवाब

जब बीवी पेट से हो, तो 3-4 महीने बाद ही हमबिस्तरी करना बंद कर देना चाहिए. ऐसी हालत में अगर हमबिस्तरी करें भी तो इस बात का खयाल रखें कि पेट के ऊपर ज्यादा दबाव न पड़ने पाए.

प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स करने को लेकर अलग-अलग बातें या तर्क सामने आते है. प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ ज्यादा सेक्स करना चाहते हैं जबकि दूसरी तरफ कुछ लोग इस दौरान सेक्स करने से डरते हैं. इसकी एक वजह यह भी है कि कुछ महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स की इच्छा बढ़ जाती है.

कुछ औरतें इसलिए डरती हैं कि कहीं सेक्स करने से गर्भ में पल रहे बच्चे को खतरा न हो उत्पन्न हो जाए. प्रेग्नेंसी के दौरान सेक्स के बारे में कोई संदेह या डर हो तो अपने डॉक्टर से आपको खुल कर बातचीत करनी चाहिए. प्रेग्नेंसी के दौरान यौन संबंध बनाना नुकसानदेह नहीं होता. नॉर्मल प्रेग्नेंसी में आप प्रसव होने तक यौन संबंध बना सकते हैं. यह माना जाता है कि प्रेग्नेंसी के आखिरी कुछ हफ्तों में सेक्स नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे समय से पहले डिलीवरी हो सकती है या फिर बच्चे को नुकसान हो सकता है. लेकिन जानकारों के मुताबिक अगर इस दौरान पार्टनर या गर्भवती महिला को सेक्स में तकलीफ हो तो सेक्स करने से बचना चाहिए.

डॉक्टरों के मुताबिक जैसे-जैसे प्रेगनेंसी पीरियड बढ़ती जाती है आपको सावधानियां बरतनी चाहिए. गर्भवास्था में महिलाओं का पेट चौथे या पांचवें महीने के बाद पेट का आकार बढ़ता है और ऐसी स्थिति में सेक्स सहज नहीं रहता और उसमें तकलीफ होने की संभावना बनी रहती है.

आपका शरीर आपके बच्चे को गर्भावस्था के दौरान हर तरह से सुरक्षित रखने में सक्षम है इसलिए आपका बच्चा सेक्स के दौरान भी सुरक्षित ही है. कुछ जानकारों के मुताबिक प्रेगनेंसी के दौरान सेक्स करने से यह बच्चे के जन्म से पहले पैदा होने के खतरे को कम करता है. हालांकि कुछ मामलो में प्रेगनेंसी के दौरान सेक्स करना नुकसानदायक हो सकता है. प्रेगनेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने, पेट में दर्द होने, गर्भाशय के कमजोर होने की स्थिति में सेक्स हर्गिज नहीं करना चाहिए.

वापसी : सविता-विकास को कब आई परिवार की याद?

सविता के छोटे बेटे विकास ने एक दिन आ कर अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आप हम ढाई प्राणियों के लिए भी घरखर्च के लिए 2 हजार लेती हैं और भैयाभाभी के अलावा उन के 3 बच्चे हैं, उन से भी 2 हजार रुपए ही लेती हैं, यह कहां का न्याय है?”

‘‘क्यों रे, अब तू कमाने वाला हो गया है तो न्यायअन्याय समझाने आया है?जब तक तेरी नौकरी नहीं थी तब तक बड़े ही तो घर का पूरा खर्च चला रहा था. उस समय तेरा न्याय कहां चला गया था?’’ सविता ने उसी से प्रश्न किया. बड़े बेटे प्रवाश का वह नाम नहीं लेती थीं, ‘बड़े’ कह कर ही बुलाती थीं.

‘‘उस समय मैं कमाता नहीं था तो कहां से देता,’’ विकास ने सफाई दी.

‘‘संयुक्त परिवार का नियम ही यह कहता है कि जो कमाए और ज्यादा कमाए वही ज्यादा खर्च करे. और उस हिसाब से तेरी आमदनी बड़े से ज्यादा है इसलिए घर के खर्चें में तेरा योगदान ज्यादा होना चाहिए. पर मैं तो दोनों से बराबर ही लेती हूं. अगर तुम लोग अलग रहते तो क्या 2 हजार रुपए में खर्च चल जाता?’’ सविता ने तर्क किया.

‘‘क्यों नहीं चल जाता. हम लोगों का खर्च ही कितना है?’’ विकास बोला.

‘‘तो ठीक है, कुछ दिन तुम लोग अलग रह कर भी देख लो. जब तबीयत भर जाए तो साथ रहने आ जाना,’’ सविता ने दोटूक जवाब दे दिया.

विकास ने नौकरी लगते ही कंपनी के फ्लैट में जाने का सोचा था, पर उस समय तो सब के समझानेबुझाने के साथ ही रहने को राजी हो गया था मगर पिछले कुछ दिनों से उस की पत्नी दिव्या उसे कंपनी का फ्लैट लेने को उकसा रही थी. विकास ने उस के कहने पर क्वार्टर के लिए अरजी तो दे दी थी और एक फ्लैट उसे अलाट भी हो गया था, परंतु अलग जाने की बात को मां से कैसे कहे यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

आज जब मौका हाथ लगा तो उस ने पहल कर दी थी और समस्या इतनी आसानी से सुलझ जाएगी उस ने सोचा भी नहीं था. दिव्या तो बहुत खुश हुई और नए घर में जाने की तैयारी करने लगी.

एक दिन अच्छा मुहूर्त देख कर वे लोग नए मकान में चले गए. जरूरत की थोड़ीबहुत चीजें तो सविता ने पहुंचा दी थीं पर दिव्या तो अपने स्टैंडर्ड से रहना चाहती थी. कमरों की साजसज्जा आधुनिक डिजाइन से करवाने और नया सामान खरीदने में ही जमा की हुई पूंजी खर्च हो गई. फिर भी वे संयुक्त थे कि वहां सिर्फ पतिपत्नी व उन का अपना बेटा था.

दिव्या की तो मन की मुराद पूरी हो गई थी पर विकास को अंदर ही अंदर ऐसा एहसास होता कि उस ने कहीं कुछ भूल की है और इसीलिए मां का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. प्रवाश व उस की पत्नी सुधा कभीकभी उन से मिलने चले जाते थे और कहते थे कि मां और बाबूजी याद करते हैं पर विकास व्यस्तता का बहाना कर देता.

कुछ दिन तो जोश में घर की सजावट करने में निकल गए. अब मुख्य समस्या घर के काम की आई. नौकरनौकरानियों के दर्शन दुर्लभ थे. नई कालोनी तो बस गर्ई थी पर सर्वेंट क्वार्टर किसी भी फ्लैट में नहीं था. सुबह से शाम तक बरतन से ले कर झाड़ूपोंछा तक सबकुछ दिव्या को ही करना पड़ रहा था. बाजार का सामान विकास ले आता था. रसोई का पूरा काम था ही, बबलू अलग उसी से चिपका रहता था.

जब सब इकट्ठे रहते थे तब बबलू तो बच्चों के साथ ही खेलताखाता था. उस की ज्यादातर फरमाइशें दादी ही पूरा कर देती थीं. घर के काम के लिए भी पुराने नौकरनौकरानियां लगी हुई थीं जो दिव्या को कुछ भी काम नहीं करने देती थीं. रसोई का काम पूरा था पर सुबह तो सविता ही खाना बनाती थी और सुधा तथा दिव्या बच्चों का काम देखती थीं. शाम को सुधा ही अकसर खाना बनाती थी, दिव्या तो सिर्फ मदद कर देती थी.

अब सब काम दिव्या के जिम्मे ही आ गया तो शाम तक वह इतनी थक जाती कि जैसेतैसे शाम का खाना बना पाती. अकेले में पति व पुत्र को नएनए पकवान बना कर खिलाने का जो चाव था वह हवा हो गया.

उधर मां की मन नहीं मानता. सविता जब भी बबलू, विकास या दिव्या की पसंद की कोई चीज बनातीं तो उन के लिए जरूर भेजतीं.

कुछ दिन बाद बहुत कोशिश व मानमनुहार करने पर 2000 रुपए महीने पर सिर्फ चौकाबरतन व झाड़ूपोंछा करने के लिए एक काम वाली तैयार हो गई. दिव्या का 2000 रुपए महीने निकालना खला तो बहुत पर इस के अलावा कोई चार भी नहीं था. सविता के घर में तो पुराने नौकर ही बहुत सा फालतू काम कर देते थे पर यहां बंधेबधाएं काम के अलावा दूसरे काम में नौकरानी हाथ भी नहीं लगाती थी.

दिव्या को सब से ज्यादा परेशानी हुई कपड़ों की धुलाई की. घर में कपड़े धो भी ले तो इस्तिरी करवाने ही पड़ते थे. सविता के घर में तो एक धोबी को क्वार्टर दे दिया था जिस की बीवी कपड़े धो कर इस्तिरी करवा कर रख जाती थी. सविता हर महीने उसे बंधीबंधाई रकम दे देती थीं.

दूसरी परेशानी दिव्या को बबलू को ले कर हुई. पहले वह सब बच्चों के साथ खेलता रहता था. कहां है वह दिव्या का पता भी नहीं चलता था, मगर अब हर आधा घंटे बाद आ कर मां से कहता, ‘‘मन नहीं लग रहा. किस के साथ खेलूं.’’

कभीकभार तो दिव्या बबलू पर ही झुंझला पड़ती, फिर रोआंसी हो जाती. बबलू भी कहता कि वह दादी से कहेगा कि मां डांटती हैं. इतनी परेशानियों के बावजूद उन लोगों के घर को अच्छी तरह सेट कर लिया.
नया सोफासेट लिया, उस के लिए कुशन, डाइनिंग टेबल, चेअर, नया डबलबैड आदि खरीद लिए. शादी में मिली सारी चीजें सजा दीं. स्टील के प्रेम में अपना व विकास का तथा एक फ्रेम में बबलू का फोटो मढ़ दिया. दिव्या ने अपने मातापिता का फोटो भी टांग दिया. ड्राइंगरूम तो ऐसे सजा दिया मानो शोरूम हो.

अब दिव्या को चाव हुआ कि अम्मांजी व बाबूजी आ कर घर देखें. यह मौका भी आ गया. बबलू की वर्षगांठ पड़ी तो नए तरीके से मनाने का सोचा. केक का और्डर दिया. दिव्या के मायके वाले, ससुराल वाले और पड़ोस के 1-2 घर सब को निमंत्रण दिया. शाम को कमरे को खूब सजाया गया. केक पर मोमबत्तियां लगाई गईं. सब लोग आए तो दिव्या ने उन्हें घर दिखाया. सभी ने उस की रुचि की तारीफ की. जेठानी सुधा तो दिव्या से कहे बिना न रह सकी, ‘‘दिव्या बहन, तुम ने तो अपना घर खूब अच्छी तरह जमाया है. हम लोग तो कुछ कर ही नहीं पाते.’’

‘‘जैसे आप लोग रहते हैं दीदी, उस तरह मेरे वश की बात नहीं थी. थोड़े दिन काट लिए वही काफी था. अब अपनी तरह से रह सकते हैं इसलिए अलग हुए हैं.’’

‘‘विकास भैया की तरह यह मेरे कहे में थोड़े ही हैं,’’ सुधा ने सफाई दी, ‘‘अगर अम्मांजी व बाबूजी के पूछे बिना कुछ लेने को कहो तो झट कह देते हैं, काम चल तो रहा है.’’

‘‘ उस के लिए भी हुनर आना चाहिए कि पति को कैसे वश में किया जाए,’’ दिव्या हंस पड़ी.

सुधा भी खिसियानी हंसी हंस दी.
सभी दिव्या की सराहना कर रहे थे. दावत भी उन्होंने अच्छी ही दी थी. बबलू भी सब के उपहार पा कर बहुत खुश था. दादीबाबा को तो वह छोड़ ही नहीं रहा था. दिव्या भी अपनी तारीफ सुन कर खुश थी, पर सविता के एक चीज अवश्य खटकी थी. बबलू झटक गया था. विकास भी कुछ उदास था. उतना खुल कर बातें नहीं कर रहा था जैसे सब के साथ रहने पर करता था.

तभी सविता दिव्या से पूछ बैठी, ‘‘बबलू इतना कमजोर क्यों लग रहा है. क्या खाना ढंग से नहीं खाता?’’

‘‘पता नहीं, अम्मांजी, बबलू को क्या हो गया है. न ढंग से खाना खाता है न दूध पीता है. उस से कहती हूं बाहर जा कर खेल तो बाहर भी नहीं जाता,’’ दिव्या बोली.

‘‘बेटा, उसे घर में 4 भाईबहनों के साथ खानेखेलने की आदत पड़ी हुई थी, यहां वह अकेला पड़ गया है. तुम लोग तो इस वातावरण के आदी हो सो कोई फर्क नहीं पड़ा, परंतु बबलू को यह वातावरण माफिक नहीं आ रहा. अब दूसरा उस के साथ लिए चाहिए,’’ सविता ने कहा.

‘‘दूसरा कहां से ढूंढ़ूं,’’ दिव्या ने अपनी कठिनाई बताई.

‘‘तुम भी दिव्या बहुत भोली हो. बबलू अब 4 साल का हो गया है. साथ के लिए उसे भाईबहन की जरूरत है,’’ सविता ने स्पष्ट किया.

दिव्या झेंप गई, बोली, ‘‘अभी नहीं, अम्मांजी, अभी तो हम 3 का खर्च ही मुश्किल से चल पाता है. अभी तो हम परिवार बढ़ाने की सोच भी नहीं सकते.’’

‘‘तो ऐसा करो, बबलू को स्कूल भेजने लगो. वहां से बड़े के बच्चों के साथ घर आ जाया करेगा और शाम को विकास दफ्तर से लौटते समय ले आया करेगा. घर के पास ही तो विकास का दफ्तर है. वहां बच्चों के साथ मन लगा रहेगा,’’ सविता ने सुझाव दिया.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ दिव्या बोली, उस ने सोचा उसे भी घर के काम के लिए फुरसत मिल जाएगी. दोपहर को थोड़ा आराम भी कर लेगी. बबलू से जब कहा गया तो वह भी खुश हो गया.

अब सबकुछ ढर्रे पर आ गया, पर जब बबलू की पढ़ाई का खर्च और बढ़ गया मगर वह भी जरूरी था. 200 रुपए नौकरानी के अलग से निकल जाते. महीने में गैस का खर्च, दूध आदि सभी कुछ अलग से खरीदना पड़ता, बिजली का बिल व कपड़ों की धुलाई का खर्च अलग. वहां तो बाबूजी के ही जिम्मे ये सब खर्चे थे, यहां तो ऊपर से 2 हजार रुपए महीने फ्लैट का किराया देना पड़ता है. काम में भी वहां ता सिर्फ शाम को ही मदद करनी पड़ती थी मगर यहां तो पूरे दिन खटना पड़ता है.

अब दिव्या को आटेदाल का भाव मालूम पडऩे लगा. उस के शौक की सभी चीजों में कटौती होती गई. सिनेमा देखना तो करीब छोड़ ही दिया था. इस घर में आने के बाद रेस्तरां की शक्ल तो देखी ही नहीं थी, जबकि वहां सब के बीच रहते थे तब तो पतिपत्नी महीने में एक बार सिनेमा जा बाहर ही खाना खा कर आते. जब भी घूमने जाते तो कोल्ड कौफी या आइसक्रीम का आनंद लेते. अब सब चीजें बंद हो गर्ई परंतु किसी से कुछ कह भी नहीं सकते थे. रास्ते तो स्वयं उन का चुना हुआ था.

एक दिन विकास के दफ्तर के लोगों ने सपरिवार पिकनिक का कार्यक्रम बनाया. शहर से बाहर सभी अपनाअपना खाना ले कर जाएंगे. दिनभर घूमेंगे. ताश खेलेंगे और शाम को वापस आ जाएंगे. दफ्तर की एक बड़ी गाड़ी का प्रबंध कर लिया था. विकास भी दिव्या व बबलू को ले कर गया. हंसीखुशी में दिन कट गया.

जब वे लोग घर लौटे तो देखा घर का ताला टूटा पड़ा है. अंदर जा कर देखा तो पता लगा सारा कीमती सामान गायब है. स्टील की अलमारी खुली पड़ी है आर उस में से कैश व ज्वैलरी चोरी हो गए. अड़ोसपड़ोस में पूछा तो कोई नहीं बता पाया, कब चोर आए और सारा कीमती सामान ले कर नौ दो ग्यारह हो गए.

दोनों माथा पकड़ कर बैठ गए.
विकास ने पुलिस को खबर की. पुलिस आर्ई भी पूछताछ करने, कुत्ता भी छोड़ा गया पर चोर कहां मिलते हैं, अगर पकड़ भी लिए जाएंगे तो सामान तो एक बार गया हुआ वापस मिलता नहीं.

खबर मिलते ही सविता व जेठानी सुधा भी आ पहुंची. वे दिव्या को धीरज बंधाती रहीं. सुधा ने दिव्या का गला सूना देख कर पूछा, ‘‘चेन जो तुम पहने रहती थीं, वह कहां गई.’’

‘‘भाभी, पिकनिक जाते समय इन्होंने उतरवा दी थी कि बाहर अकसर चेन ङ्क्षखच जाती हैं. सामान के साथ वह भी चली गई,’’ कहतेकहते दिव्या की आंखों में आंसू आ गए.

सविता ने दिव्या को दिलासा दिया, ‘‘बहू, हिम्मत मत हारो. खैर मनाओ तुम लोग ठीकठाक हो नहीं तो ऐसे मौकों पर ये लोग जान लेने में भी नहीं हिचकते.’’

तभी सुधा ने अपने गले की चेन उतार कर दिव्या को पहना दी, ‘‘सूना गला अच्छा नहीं लगता,’’ और दिव्या कहती रह गई, ‘‘भाभी, क्या कर रही हैं.’’ उस ने यह रूप तो सुधा का कभी जाना नहीं था.

‘‘दुखी न हो, बहू. शुक्र मनाओ कि संकट इसी में टल गया. सबकुछ फिर आ जाएगा.’’

‘‘अम्मांजी, तनख्वाह में तो महीने का खर्च ही मुश्किल से चलता है. फिर से बनाने का तो अब हम सोच ही नहीं सकते,’’ दिव्या रोंआसी हो कर बोली.
‘‘क्यों दिव्या, तुम्हारे तो एक ही बच्चा है और तनख्वाह भी विकास की अपने भैया से ज्यादा है, फिर तुम्हारी तो अच्छीखासी बचत हो जानी चाहिए,’’ सुधा ने व्यंग्य कर ही दिया. उस के बच्चों के लिए ही तो विकास ने कहा था कि खर्च ज्यादा होता है. वह इस बात को भूल नहीं पाई, मुंह से बात निकल ही गई, हालांकि यह कह कर उसे पछतावा भी हुआ.

दिव्या के पास इस का कोई जवाब नहीं था, बस, यही कहते बना, ‘‘हम लोग अपने स्टैंडर्ड से रहने आए थे, वही किसी को सहन नहीं हुआ.’’

‘‘यह स्टैंडर्ड ही तो आज परिवारों को तोडऩे का कारण बन रहा है. यह तो तुम उस घर में भी बना सकती थीं, ऊपर के कमरे तो खाली ही पड़ते हैं. आखिर बहुएं आ कर ही तो घर को नए सांचे में ढालती हैं,’’ सविता बोलीं.

‘‘पर अम्मांजी, इन्होंने तो कभी नहीं कहा कि वहां रह कर भी हम सब सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं. कुछ कहने पर यही कह देते थे कि ‘मां से पूछ लो,’’’ दिव्या ने सफाई दी.

‘‘अगर तुम पूछ कर मुझे थोड़ा मान दे देतीं और तुम्हारा काम न होता तब तुम्हें शिकायत होनी चाहिए थी, परंतु तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था,’’ सविता ने भी उलाहना दिया.

‘‘हां, अम्मांजी, यह भूल मुझ से जरूर हुई. उस का नतीजा भुगत लिया,’’ दिव्या दुखी मन से बोली.

‘‘अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अगर चाहो तो तुम्हारे कमरे खाली पड़े हैं, वहीं आ कर जैसे यहां रह रहे हो उसी तरह से रहने लगो,’’ सविता ने समझाया.

‘‘पर मां, यहां इतना सामान जुटा लिया है, इसे कहां ले जाएंगे.’’ दिव्या ने अपनी असमर्थता जताई.
‘‘जैसे यहां सेट किया है, अपना घर समझ कर वहां भी इसी तरह सेट कर देना. घर को अच्छी तरह रखना किसे बुर लगता है. मैं ने तुम्हें सुझाव दे दिया है, मानना न मानना तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है,’’ सविता ने दिव्या पर ही निर्णय लेना छोड़ दिया. फिर समझाते हुए कहा, ‘‘साथ रहने में जो आपस में स्नेह पनपता है, बड़ों में भी और छोटों में भी वह अलग रहने में नहीं.’’

सविता व सुधा विकास व दिव्या को काफी दिलासा दे गई. इस बीच सविता ने अपने कुछ जेवर और सुधा न कुछ नई साडिय़ां खरीद कर दिव्या के लिए भिजवा दीं.

दिव्या अपनी पिछली कही बातों से जो उस ने अलग होते समय कही थी, बहुत लज्जित थी. उन लोगों को काफी सबक मिल चुका था. सब से ज्यादा तो मकान का किराया देना खलता था जबकि सविता के घर में रहती थी तब तो हाउस एलाउंस जो कंपनी से मिलता था, एक तरह से अतिरिक्त आमदनी ही थी, जो बचता था. महीने का अंत होतेहोते विकास व दिव्या मां के पास ही वापस आ गए कभी अलग न होने के लिए.

लेखक- शांति चतुर्वेदी ‘नीरजा’ 

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