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Bigg Boss 16 : निमृत -श्रीजिता को पीछे किया सुंबुल ने, इस एक्ट्रेस का शो से कटेगा पत्ता

बिग बॉस 16 पर इन दिनों हर किसी कि नजर बनी हुई है, कौन आ रहा है कौन जा रहा है, सभी जानना चाहते हैं, घर के अंदर आए दिन कुछ न कुछ नया देखने को मिलते रहता है.

इस हफ्ते एलिमिनेश में 4 कंटेस्टेंट फंसे हुए हैं. एमसी स्टेन, सुंबुल तौकीर खान, निमृत कौर और श्रीजिता डे. सोशल मीडिया पर फैंस अपने पसंदीदा कंटेस्टेंट को खूब सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन बात करें इन चारों की तो सुंबुल सबसे आगे चल रही है.

 

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वहीं एमसी स्टेंन को पसंदीदा और मजबूत कंटेस्टेंट के तौर पर देखा जा रहा है शायद यहीं वजह है कि वह बचे हुए हैं. इस बार उन्हें रैपर वोटिंग 46 प्रतिशत मिली है. इसके बाद सुंबुल तौकीर खान का नाम है जो इस लिस्ट में आगे चल रही हैं.

वहीं वाइल्ड कार्ड एंट्री श्रीजिता डे की बात करें तो इन्हें 18 प्रतिशत वोट मिले हैं.निमृत कौर आहूवालिया को फैंस खेलते हुए देखना चाहते हैं लेकिन इन्हें 15 प्रतिशत ही वोट मिले हैं. देखा जाए तो निमृत इस वक्त वोटिंग लाइन में सबसे पीछे चल रही हैं. शनिवार तक वोटिंग में उल्ट पल्ट भी हो सकता है.

इस वोटिंग में श्रीजिता डे को भी जोरदार झटका मिल सकता है. शो में निमृत के पापा ने एंट्री लिया था, जिसमें उन्होंने निमृत को अपनी लॉबी से हटकर काम करने को कहा था, जिसपर निमृत चिड़ गई थी और पापा से नाराज हो गई थी. खैर देखना यह है कि शो के फाइनल कंटेस्टेंट कौन बनता है.

राखी सावंत का एक बार फिर से टूटा दिल, आदिल ने भी छोड़ा साथ

राखी सावंत अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं, इन दिनों राखी सावंत की सीक्रेट वेडिंग सुर्खियों में हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया है कि अपने बॉयफ्रेंड आदिल खान के साथ उन्होंने मुस्लिम रिति रिवाज से शादी रचा ली है.

जबकी आदिल खान ने इस बात से साफ इंकार कर दिया है कि यह बात एक दम गलत है, आदिल खान के इस तरह से इंकार करने के बाद से राखी सावंत काफी ज्यादा दुखी हैं. एक इंटरव्यू में राखी सावंत ने बताया है कि आदिल ने हमारी शादी को एक साल तक रिवील नहीं करने को कहा था, क्योंकि उसकी बहन की शादी होने वाली थी.

मैंने उसकी बातों पर भरोसा किया और बिग बॉस सीजन 4 में चली गई लेकिन उसके बाद से वह मेरा विश्वास तोड़ता चला गया. मुझे पता है पक्का उसपर फैमली प्रेशर आ रहा होगा. राखी सावंत ने बताया कि उनकी शादी हलाला लीगल की तहत हुई थी.

आगे एक्ट्रेस ने बताया कि आदिल अब उनसे बात भी नहीं कर रहा है, मेरी मां हॉस्पिटल में भर्ती है उन्हें ब्रेन कैंसर है मैं इसलिए ज्यादा परेशान हूं. क्या आप लोग मेरी मदद कर सकते हैं कि आदिल मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे हैं. पता नहीं क्यों मेरे साथ ऐसी बुरी चीजें होती हैं.

राखी के इस बयान के बाद से कई लोगों का दिल राखी के ऊपर पिघल रहा है कि राखी को बार-बार धोखा क्यों मिलता है.

अजब मृत्यु -भाग 3: चौकीदार ने मुहल्ले वालों को क्या खबर दी

मां रमा रोतीपीटती ही रह गई थी. पहले मंदबुद्धि बड़े लड़के के बाद 2 लड़कियां, फिर जगत, 5वीं फिर एक लड़की. जगत के जन्म पर तो बड़ा जश्न मना. बड़ी उम्मीद थी उस से. पर जैसेजैसे बड़ा होता गया, कांटे की झाडि़यों सा सब को और दुखी करता गया.’’ अखिलेश अंकल बताए जा रहे थे. अखिलेश अंकल की बातें सुन कर कंचन बोल उठी, ‘‘आज मैं भी जरूर कुछ कहूंगी. अम्मा जब तक जिंदा थीं, आएदिन के अपने झगड़े से उन्हें परेशान कर रखा था उस ने. सब से लड़ताझगड़ता और मां बेचारी झगड़े सुलटाती माफी ही मांगती रहतीं. बाबूजी के दफ्तर में अम्मा को क्लर्क की नौकरी मिल गई थी. कम तनख्वाह से सारे बच्चों की परवरिश के साथ जगत की नितनई फरमाइशें करतीं लेकिन जब पूरी कर पाना संभव न हो पाता तो जगत उन की अचार की बरनी में थूक आता, आटे के कनस्तर में पानी, तो कभी प्रैस किए कपड़े फर्श पर और उन का चश्मा कड़ेदान में पड़े मिलते. ऊंची पढ़ीलिखी नम्रता से धोखे से शादी कर ली, बच्चे पढ़ाई में अच्छे निकल गए. वैसे वह तो सभी को अंगूठाछाप, दोटके का कह कर पंगे लेता रहता. उस के बच्चों पर दया आती,’’ अपनी बात कह कर कंचन ने माइक शील को दे दिया.

‘‘कुछ शब्द ऐसे रिश्तेदार को क्या कहूं. मेरे घर में तो घर, मेरी बहनों की ससुराल में भी पैसे मांगमांग कर डकार गया. कुछ पूछो तो कहता, ‘कैसे भूखेनंगे लोग हैं जराजरा से पैसों के लिए मरे जा रहे हैं. भिखारी कहीं के. चोरी का धंधा करते हो, सब को सीबीआई, क्राइम ब्रांच में पकड़वा दूंगा. बचोगे नहीं,’ उसी के अंदाज में कहने की कोशिश करते हुए शील ने कहा. उस के बाद कई लोगों ने मन का गुस्सा निकाला. सीधेसादे सुधीर साहब बोल उठे, ‘‘मुझ से पहले मेरा न्यूजपेपर उठा ले जाता. उस दिन पकड़ लिया, ‘क्या ताकझांक करता रहता है घर में?’ तो कहने लगा, ‘अपनी बीवी का थोबड़ा तुझ से तो देखा जाता नहीं, मैं क्या देखूंगा.’ ‘‘मैं पेपर उस के हाथों से छीनते हुए बोला, ‘अपना पेपर खरीद कर पढ़ा कर.’ तो कहता ‘मेरे पेपर में कोई दूसरी खबर छपेगी?’ मैं उसे देखता रह जाता.’’ कह कर वे हंस पड़े. अपनी भड़ास निकाल कर उन का दर्द कुछ कम हो चला था. ‘‘अजीब झक्की था जगत. मेरी बेटी की शादी में आया तो सड़क से भिखारियों की टोली को भी साथ ले आया. बरात आने को थी, प्लेटें सजासजा कर भिखारियों को देने लगा. मना किया तो हम पर ही चिल्लाने लगा, ‘8-10 प्लेटों में क्या भिखारी हो जाओगे.

आने दो बरातियों को, देखूं कौन रोकता है?’ ‘‘जी कर रहा था सुनाऊं उस को पर मौके की नजाकत समझ कर चुप रहना मुनासिब समझा.’’ उस दिन न कह पाने का मलाल आज खत्म हुआ था, जगत के फूफा रविकांत का और अपनी बात कह कर वह मुसकरा उठे थे. गंगाधर ने हंसते हुए अपनी घड़ी की ओर अचानक देखा और फिर बोले, ‘‘भाइयो और बहनो, शायद सब अब अपनेअपने मन को हलका महसूस कर रहे होंगे, हृदय को शांति मिल गई हो, तो सभा विसर्जित करते हैं.’’ सभी ने सहमति जाहिर की और एकएक कर खड़े होने लगे थे कि लगभग भागता हुआ चौकीदार गोपी आ गया. उस के पीछे दोतीन और आदमी थे. जिन के हाथों में चायपानी का सामान था. ‘‘सुनीता भाभीजी जो जगत के घर के बराबर में रहती हैं, ने सब के लिए चाय, नमकीन बिस्कुट व समोसे भिजवाए हैं. मुझे इस के लिए पैसे दे गई थीं कि समय से सब को जरूर पहुंचा देना. पर ताजा बनवाने व लाने में जरूर थोड़ी देर हो गई. सारा सामान माखन हलवाई से गरमागरम लाया हूं.’’ गोपी अपने बंदों के साथ सब को परोस कर साथियों संग खुद भी खाने लगा. ‘‘भई वाह, कमाल है, न बाहर किसी को न घर में किसी को अफसोस. उलटे राहत ही राहत सब ओर. ऐसी श्रद्धांजलि तो न पहले कभी देखी न सुनी हो.’’

सभी के चेहरों की मंदमंद हंसी धीरेधीरे ठहाकों में बदलने लगी थी. जिस की गूंज पंडाल से बाहर तक आने लगी. अगले दिन सुबह हर रोज की तरह नम्रता उठ बैठी. जगत का हल्ला सुबह शुरू जो हो जाता था. आज शांति थी. बगल में सोए बच्चों को देखा. आज सालों बाद उन्हें इतनी गहरी नींद आईर् थी. वह परदा सरका कर विंडो से बाहर देखने लगी. इतना मुक्त, इतना हलका महसूस कर रही थी वह कि उसे यकीन नहीं हुआ. जो पड़ोसी उन के घर से कन्नी काटते निकलते थे, आज सुबह वे सब आराम से खड़े थे. द्य बाल बाल बचे मेरे पिताजी वकील थे. बहुत दिन किराए के घर में रहने के बाद मकान के लिए लोन ले कर उन्होंने खुद का मकान बनवाया. मकान छोटा था किंतु सुंदर और अच्छा बना था. ग्राउंडफ्लोर पूरा बन गया था. किंतु ऊपर छत खुली थी. रेलिंग आदि भी नहीं लगी थी. छत के दोनों कोनों पर 4-5 सरिए 3-4 फुट ऊंचे छोड़ दिए गए थे, ताकि ऊपर पिलर के सहारे फर्स्टफ्लोर बन सके. कुछ महीने किराए के मकान में रहने के बाद हम सब अपने मकान में जब आए तो सब की खुशी का ठिकाना नहीं था.

कुछ महीने बाद दीवाली आई. हम ने बच्चों से घर के कोनेकोने में दीया रखने को कहा. मैं थाली में दीए ले कर छत पर रखने के लिए गई. दीए रखने में मैं इतनी मशगूल थी कि मुझे पता ही नहीं चला कि छत का किनारा कब आ गया. अचानक एक पैर नीचे चला गया. गिरतेगिरते मैं ने सरिया पकड़ लिया और जोरजोर से चिल्लाने लगी. किंतु दीवाली के शोरशराबे में किसी ने मेरी आवाज नहीं सुनी. इतने में पड़ोस का एक बच्चा अपनी छत पर दीया रखने आया. मुझे इस हालत में देख वह सरपट नीचे भागा और सब को बताया. आननफानन बांस की सीढ़ी लगाई गई. नीचे से मुझे ऊपर की तरफ पुश कर रहे थे. ऊपर भी लोग मुझे धीरेधीरे उठा रहे थे. किसी तरह काफी मशक्कत के बाद मुझे ऊपर उठा लिया गया. ईंट और सीमेंट की वजह से पीठ और पैर आदि में तमाम खरोचें आ गई थीं.

उस दिन मैं मरतेमरते बालबल बची. वह दीवाली मुझे जीवनभर याद रहेगी. पुष्पा श्रीवास्तवा (सर्वश्रेष्ठ) बात तब की है जब मेरा बड़ा बेटा 3 साल का था और मैं दूसरी बार मां बनने वाली थी. मेरा 8वां महीना चल रहा था. हम देररात 12 बजे किसी रिश्तेदार के घर से वापस घर कार से जा रहे थे. कार मेरे पति चला रहे थे कि तभी सड़क के डिवाइडर को फांद कर एक गाड़ी तेजी से हमारी गाड़ी से आ टकराई. हमें समझ नहीं आया कि हुआ क्या है. गाड़ी साइड से पूरी तरह पिचक गई लेकिन मुझे और बेटे को कोई चोट नहीं लगी. पर झटका बहुत जोर का लगा. कुछ भी अनहोनी हो सकती थी क्योंकि प्रैग्नैंट थी. लेकिन बालबाल बच गई. आज भी वह ऐक्सिडैंट याद कर सिहर जाती हूं.

मुहरे-भाग 3 : विपिन के लिए रश्मि ने कैसा पैंतरा अपनाया

8 बजे निकलती है, मैं उसी समय डस्टबिन बाहर रख देती हूं. हमारी बिल्डिंग में 4 फ्लैट हैं. 2 में महाराष्ट्रियन परिवार रहते हैं. दोनों परिवारों में पतिपत्नी कामकाजी हैं. चौथे फ्लैट में बस एक आदमी ही है. उम्र पैंतीस के आसपास होगी. वीकैंड पर उस के दरवाजे पर ताला लगा रहता है. मेरा अंदाजा है शायद अपने घर, आसपास के किसी शहर जाता होगा. इस आदमी की विपिन और हमारे बच्चों से कभी कोई हायहैलो नहीं हुई है. एक दिन मुझ से सामना होने पर उस ने पूछा, ‘‘मैडम, पीने के पानी की एक बौटल मिलेगी प्लीज? मेरा फिल्टर खराब हो गया है.’’

मैं ने ‘श्योर’ कहते हुए उस की बौटल में पानी भर दिया था. जब मैं डस्टबिन रख रही होती हूं तो वह भी अकसर अपने घर से निकल रहा होता है और मुझे गुडमौर्निंग मैम कहता हुआ सीढि़यां उतर जाता है. उस से सामना होने पर अब मेरी हायहैलो हो जाती है. बस, हायहैलो और कभी कोई बात नहीं. एक दिन हम चारों बाहर से आ रहे थे और लिफ्ट का वेट कर रहे थे तो वह आदमी मुझे गुड ईवनिंग मैम कहता हुआ सीढि़यां चढ़ गया. मैं ने भी सिर हिला कर जवाब दे दिया.

विपिन ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’ ‘‘हमारा पड़ोसी.’’

‘‘वह किराएदार?’’ ‘‘हां.’’

‘‘तुम से हायहैला कब शुरू हो गई? तुम्हें कैसे जानता है?’’ ‘‘एक दिन पानी मांगा था, तब से.’’

‘‘तुम से ही क्यों पानी मांगा, भई?’’ ‘‘बाकी दोनों फ्लैट दिन भर बंद रहते हैं. पानी मांगना कोई बहुत बड़ी बात थोड़े ही है.’’

‘‘तमीज देखो महाशय की. सिर्फ तुम्हें विश कर के गया.’’ ‘‘अरे, तुम लोगों को जानता ही नहीं है तो विश क्या करेगा? तुम लोग भी तो अपनी धुन में रहते हो… कहां किसी में इंट्रैस्ट लेते हो.’’

‘‘हां, ठीक है, घर में तुम हो न सब में इंट्रैस्ट लेने के लिए. आजकल बड़ी सोशल हो रही हो… कभी लिफ्ट वाले लड़के को अपना नाम बताती हो, तो कभी पड़ोसी को पानी देती हो.’’ मैं ने नाटकीय ढंग से सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘भई, बढ़ती उम्र में आसपास के लोगों से जानपहचान होनी चाहिए. क्या पता कब किस की जरूरत पड़ जाए.’’

‘‘क्या बुजुर्गों जैसी बातें कर रही हो?’’ ‘‘हां, विपिन, उम्र बढ़ने के साथ आसपास के लोगों से संबंध रखने में ही समझदारी है.’’

विपिन मुझे घूरते रह गए. कहते भी क्या. अब बातें करतेकरते हम घर आ कर चेंज कर रहे थे. कई दिन बाद लिफ्ट वाला प्रशांत मुझे शाम के समय गार्डन में भी दिखा तो मैं चौकन्नी हो गई. वह गार्डन में अब मेरे आनेजाने के समय कुछ बातें भी करने लगा था जैसे ‘आप कैसी हैं, मैम?’ या ‘कल आप सैर करने नहीं आईं’ या ‘यह ड्रैस आप पर बहुत अच्छी लग रही है, मैम.’ उस के हावभाव से, नजरों से मैं सावधान होने लगी थी. यह तो कुछ और ही सोचने लगा है.

विपिन और मेरे डिनर के बाद टहलने के समय प्रशांत रोज नीचे मिलने लगा था और मुझे देख कर मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. प्रशांत का मेरे आसपास मंडराना तो इरादतन था पर नए पड़ोसी का मुझ से आमनासामना होना शतप्रतिशत संयोग होता था. स्त्री हूं इतना तो समझती ही हूं पर विपिन की बेचैनी देखने लायक थी.

वान्या को बाय कहती हुई मैं अकसर पड़ोसी की भी गुडमौर्निंग का जवाब देती तो ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ते विपिन मुझे अंदर आते हुए देख कर यों ही पूछते, ‘‘कौन था?’’

मैं पड़ोसी कह कर किचन में व्यस्त हो जाती. अब अच्छे मूड में विपिन अकसर मुझे ऐसे छेड़ते, ‘‘इतनी वैलड्रैस्ड हो कर सैर पर जाती हो… लगता ही नहीं कि तुम्हारे इतने बड़े बच्चे हैं… बहन लगती हो वान्या की.’’

मैं हंस कर उन के गले में बांहें डाल देती, ‘‘कितनी भी बहन लगूं पर उम्र तो हो ही रही है न?’’

‘‘अभी तो तुम बहुत स्मार्ट और यंग दिखती हो, फिर उम्र की क्या टैंशन है?’’ ‘‘सच?’’ मैं मन ही मन खुश हो जाती.

‘‘और क्या? देखती नहीं हो? आकर्षक हो तभी तो वह लिफ्ट वाला और यह पड़ोसी तुम से हायहैलो का कोई मौका नहीं छोड़ते.’’ ‘‘अरे, उन की क्या बात करनी… उन की उम्र देखो, दोनों मुझ से छोटे हैं.’’

‘‘फिर भी उम्र की तो बात छोड़ ही दो, नजर तुम पर उठती ही है. तुम ने अपनेआप को इतना फिट भी तो रखा है.’’ मैं मुसकराती रही. अब मैं ने नोट किया विपिन ने पूरी तरह से उम्र बढ़ने के मजाक बंद कर दिए थे पर अब भी जब प्रशांत और पड़ोसी मुझे विश कर रहे होते, ये मुझे गंभीर होते लगते.

विपिन और मैं एकदूसरे को दिलोजान से चाहते हैं. सालों का प्यार भरा साथ है, जो दिन पर दिन बढ़ ही रहा है. मैं उन्हें इन गैरों के लिए टैंशन में नहीं देख सकती थी. मुझे उम्र के मजाक हर बात में पसंद नहीं थे, वे अब बंद हो चुके थे. यही तो मैं चाहती थी. मुझे स्वयं को ऊर्जावान, फिट रखने का शौक है और मैं स्वयं को कहीं से भी बढ़ती उम्र का शिकार नहीं समझती तो क्यों विपिन उम्र याद दिलाएं. अब ऐसा ही हो रहा था. विपिन को सबक सिखाने के लिए अब प्रशांत और उस पड़ोसी का जानबूझ कर सामना करने की शरारत की जरूरत नहीं थी मुझे. मैं डस्टबिन और पहले बाहर रखने लगी थी. सैर के समय में भी बदलाव कर लिया था. मुझे आते देख कर प्रशांत लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा होता तो मैं झट सीडि़यां चढ़ जाती थी. प्रशांत और पड़ोसी मुहरे ही तो थे. इन का काम अब खत्म हो गया था. इन से मेरा अब कोई लेनादेना नहीं था.

सवेरा होने को है : कोरोना को दी मात

कमरे के अंदर पापा दर्द से बेचैन हो रहे थे. बुखार था कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मैं एयरकंडीशनर चला कर कमरे को ठंडा करने की कोशिश कर रही थी और फिर गीली पट्टियों से बुखार को काबू करने की कोशिश में लगी हुई थी. बाहर फिर से मनहूस एंबुलेंस का सायरन बज रहा था. ना जाने कोविड नामक राक्षस किस के घर की खुशियों को लील कर गया है आज?

मेरी निराशा अपने चरम पर थी. इतना हताश, इतना बेबस शायद ही कभी मानव ने महसूस किया होगा. सब
अपने ही तो हैं, जो शहर के विभिन्न कोनों में हैं, पर साथ खड़े होने के लिए कोई तैयार नहीं था.

पापा न जाने तेज बुखार में क्या बड़बड़ा रहे थे? जितना सुनने या समझने की कोशिश करती, उतनी ही मेरी अपनी बेचैनी बढ़ रही थी. बारबार मैं घड़ी को
देख रही थी. किसी तरह से ये काली रात बीत जाए. पर पिछले हफ्ते से ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि
मानो इस रात की सुबह नहीं है.

पापा का शरीर भट्टी की तरह तप रहा था और औक्सिलेवेल 90 से नीचे जा रहा था. व्हाट्सएप पर बहुत सारे मैसेज थे, कुछ ज्ञानवर्धक तो कुछ हौसला देने वाले और कुछ बस यों ही. फिर खुद के शरीर को जबरदस्ती उठाया और पापा को एक बिसकुट खिलाया और फिर बुखार कम करने की टेबलेट दी.

मन में तरहतरह के बुरे खयाल आ रहे थे, चाह कर भी विश्वास का दीया नहीं जला पा रही थी. किस पर
भरोसा रखूं, इस मुश्किल घड़ी में? समाचार ना सुन कर भी पता था कि बाहर अस्पताल में घर से भी ज्यादा खतरा है. औक्सीजन क्या इतनी महंगी पड़ सकती है कभी, सोचा नहीं था. न गला खराब होता है और न ही
जुकाम पर कोविड वायरस का अंधकार आप के अंदर के इनसान को धीमीधीमे लील जाता है.

मैं खुद इस बीमारी से लड़ रही थी, पर अपने हीरो पापा की लाचारी देखी नहीं जा रही थी. ऐसा लग रहा
था कि वो एक छोटे बच्चे बन गए हों और मैं उन की बूढ़ी, डरपोक मां. कब किस पहर पापा का बुखार कम हुआ, मुझे नहीं पता, पर फिर से यमराज एंबुलेंस के सायरन के झटके से मेरी आंख खुली.

हंसतेखेलते गुप्ता अंकल के दिल स्टेरौइड्स को झेल नहीं पाए और 5 दिन बाद ही संसार को अलविदा कह
कर चले गए. ये यमराज का वाहन गुप्ता अंकल को ले कर जाने के लिए आया था.
इतना सहमा हुआ और इतना विचलित कभी खुद को महसूस नहीं किया था. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम एक स्वतंत्र देश में रहते हैं. हर छोटी सी दवाई से ले कर औक्सीजन सिलिंडर तक की कालाबाजारी थी.

सोसाइटी में रहने वाले संदीप का ग्रुप में मैसेज था. उस की मम्मी को वेंटिलेटर की आवश्यकता है. वह हाथ जोड़ कर सब से गुहार लगा रहा था. सब उसे हिम्मत और हौसले का ज्ञान बांट रहे थे. परंतु कोई राह नहीं सुझा रहा था. कोई साथ खड़े होने को राजी नहीं था.

2-2 वैक्सीन लगवाने के बावजूद भी लोग अपनों को अकेले जूझते हुए देख रहे थे. कोरोना हो चुका है, मगर फिर भी वो लोग पास आ कर साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं. सब दूर से गीता का ज्ञान दे रहे हैं कि
‘मनुष्य अकेला आया है और अकेले ही जाएगा.’

मगर आज इस नीरव रात में किसी मनुष्य के स्पर्श की चाह करती हुई मैं जारजार बच्चों की तरह रो उठी हूं.
कोई तो एक ढांढ़स भर स्पर्श दे कर बोल दे, ‘सब ठीक हो जाएगा.’

स्पर्श में कितनी ताकत है, यह आज जान पाई हूं. कोई तो हो ऐसा, जो आज इस अंधकार में चाहे दूर से ही मेरी थकी हुई और सहमी हुई कोशिकाओं को स्पर्श के स्पंदन से जीवित और निडर कर दे.

आज इस अंधकार में बैठी हुई उन तमाम लोगों का दर्द समझ पा रही हूं, जिन्हें लोग अछूत समझते हैं. अछूतों
की तरह हम लोग हर रोज इस विषाणु से अकेले लड़ रहे हैं. सारी ताकत, जिंदगी की उमंग और हंसी तो इस
वायरस ने सोख ली है. खून का स्थान अब नफरत ने ले लिया है. इतनी विषैली हो गई हूं अंदर से कि मन करता है, अगर मेरे घर में
हुआ है तो सब के घर में हो. ऊपर वाला उन्हें भी शक्तिशाली होने का मौका दे.

कोई भी सकारात्मक विचार मन में नहीं आ रहा था. चिड़चिड़ापन और अपनों से नाराजगी बढ़ती ही जा रही थी. सबकुछ जान कर भी ना जाने कौन सी तामसिक प्रवृत्ति अंदर ही अंदर बलशाली हो रही थी. अंदर
का अंधकार जीने की प्रेरणा दे रहा था.

कल पापा का स्कैन कराने जाना था. कैसे जाऊं, कैब की स्थिति कोई ठीक नहीं थी. स्कूटर चलाने की स्थिति में मैं नहीं थी.

जब सुबह की पहली किरण खिड़की से अंदर आई, तो बुद्धि के द्वार भी खुले. सोचा, प्रमोद चाचा के बेटे को फोन कर लेती हूं. कितनी बार तो संचित ने कहा था, ‘दीदी बेझिझक बोल दीजिए.’

‘मुझे एक वैक्सीन लग भी चुकी है और कोरोना भी हो चुका है,’ चाय का पानी चढ़ा कर मैं ने संचित को फोन किया, मगर उधर से ऐसे टालमटोल वाला जवाब आया कि खौलते चाय के पानी के साथ मेरा खून भी खौल उठा.

पापा का बुखार थोड़ा कम लग रहा था, जो मेरे लिए राहत की खबर था. मैं पापा को चाय और बादाम पकड़ा रही थी कि पापा खुद से बोल उठे, ‘मृगया, तू भी कोरोना पौजिटिव है. संचित को बोल दे, वो स्कैन करवा देगा.’

‘कितनी बार तो उस ने कहा था.’

मैं ना जाने क्यों भावनात्मक रूप से इतनी कमजोर हो गई थी कि बरतन धोने के शोर में अपनी रुलाई को
दबा रही थी.

‘क्या करूं,’ ये सोचते हुए मैं नाश्ते की तैयारी कर रही थी. 2 आटो वालों के नंबर सेव थे मेरे पास, सोचा, उन की ही मिन्नत कर के देख लूं.

जब बबलू ने फोन उठाया, तो बड़ी मिन्नतों से कहा, ‘भैया मदद कर दोगे क्या, यहीं पास में ही चलना है.’

बबलू ने कहा, ‘दीदी कितनी देर में आना है?’

एक बार मन में आया छुपा लूं कि मैं और पापा दोनों ही कोविड पौजिटिव हैं. एक हफ्ता बीत गया है और फिर
हम दोनों डबल मास्क पहन कर रखेंगे. पर मन नहीं माना, खुशामदी स्वर में कहा, ‘भैया, पापा और मैं दोनों ही कोविड पौजिटिव हैं, ले कर चल सकते हो क्या?’

बबलू ने कहा, ‘क्यों नहीं दीदी, ये कोरोना से मैं नहीं डरता, एक टीका लगवा लिया हूं और दूसरा भी लग
जाएगा.

‘आप क्यों चिंता कर रही हैं, अंकलजी को कुछ नहीं होगा और ना ही आप को.’

ना जाने क्यों उस दिन पहली बार ऐसा लगा कि इंसानियत से बड़ा कोई रिश्ता, धर्म या जात नहीं होती है.

बबलू का उस दिन आना, मेरे साथ खड़ा होना मैं शायद ताउम्र नहीं भूल पाऊंगी.

मुझे देखते ही बबलू ने अपनी तरफ से एक परदा गिरा दिया, ये देख कर दिल को थोड़ा सुकून मिला कि एक आटो वाला हो कर भी वो सारे कोविड के प्रोटोकाल फौलो कर रहा था.

मुझे और पापा को उतार कर वह दूर से बोला, ‘दीदी, सामान मंगवाना हो, तो मैं ले आता हूं.’

मैं ने तो ये सोचा ही नहीं था. मैं ने फल, जूस, नारियल पानी इत्यादि बता दिए थे.

बबलू के जाने के पश्चात हम अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे. 4,500 रुपए की परची कटवाते हुए ये सोच
खुद को ही आत्मग्लानि से भर रही थी कि कहीं बबलू को ना लग जाए, वो कैसे इन महंगे चोंचलों को सहन
करेगा.

चारों तरफ बड़ा ही निराशात्मक वातावरण था. कुछ लोग औक्सीजन सिलिंडर पर ही थे, तो कुछ लोग दर्द से कराह रहे थे. पर, उस सैंटर में बैठे हुए कर्मचारी शायद पत्थर के बने थे. दोनों रिसेप्शन पर बैठी हुई लड़कियों
के चेहरों पर मानो लाल लिपस्टिक नहीं, इनसानों का खून लगा हुआ हो. बड़ी ही मुर्दानगी से वो परची काट कर ऐसे दूर से पकड़ा रही थी, मानो कोविड पौजिटिव के साथ होना एक अपराध हो.

पापा को इतनी कमजोरी आ चुकी थी कि वे पूरी तरह झुके हुए थे. जैसे ही पापा के नाम का फरमान आया,
मैं पागलों की तरह उन के साथ अंदर जाने लगी. बेहद ही रूखी आवाज आई, ‘तुम यहीं खड़ी रहो.’

मैं मिमियाते हुए बोली, ‘वे बहुत कमजोर हो गए हैं और उन्हें ऊंचा सुनाई देता है.’

‘कमजोर हो गए हैं, पर मरे तो नही हैं ना.’

धपाक से दरवाजा मेरे मुंह पर बंद हो गया. फिर से मेरी आंखें पनीली हो उठीं, दिल में कड़वाहट की लहरें
उठने लगीं. हांफते हुए पापा बाहर आए, ऐसा लग रहा था, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.

मैं ने प्यार से कहा, ‘पापा, आप 2 सेकंड के लिए मास्क निकाल दो.’

वार्ड ब्वाय बोला, ‘तुम जैसे जाहिल लोगों के कारण ही ये कोरोना फैल रहा है.’

मैं बाहर आई, तो बबलू का आटो ना देख कर लगा कि शायद वो नहीं आएगा, आएगा भी क्यों इस वायरस से सब डरते हैं.

पापा की सांस उफन रही थी और सूरज की तपिश के साथ उन का बुखार भी बढ़ रहा था.

मैं कैब बुक करने की कोशिश कर रही थी कि तभी बबलू आ गया. आते ही वह बोला, ‘दीदी, वो सामान खरीदने में देर हो गई थी.’

आज उस आटो में बैठते हुए ऐसा लग रहा था कि वो आटो नहीं, बल्कि कोई देवदूत का वाहन है.

घर पहुंच कर बबलू ने ग्लव्स पहन कर सामान उतारा. मैं ने उस के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘बबलू, ये 500 रुपए रख लो, एक हफ्ते में पहली बार किसी ने इनसान की तरह व्यवहार किया है.’

बबलू 200 रुपए वापस करते हुए बोला, ‘दीदी, गरीब हूं, पर इनसान हूं, आप की मुसीबत पर रोटियां सेंकने का
मेरा कोई इरादा नहीं है.

‘आप को अगर कुछ मंगवाना हो, तो आप बेझिझक बता दीजिए. मैं घर के दरवाजे पर रख जाऊंगा.’

आज 8 दिन के पश्चात पापा के बुखार ने भी हौसला नहीं तोड़ा. बबलू का आना और मदद करना संबल दे गया
था. ऐसा लगा इंसानियत शायद अभी भी जिंदा है.
शाम होतेहोते मुझे भी तेज बुखार हो गया था. डाक्टर बारबार ये ही कह रहा था कि आप अपना भी ध्यान रखें. आप अगर 35 वर्ष की हैं, तो इस का यह मतलब नहीं कि कोविड आप के लिए आसान रहेगा.

अब तक तो मैनेज कर रही थी, परंतु खुद को बुखार होने के बाद उठने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी.
समझ नहीं आ रहा था कि ये बुखार मुझे तनाव, अकेलेपन या फिर कोविड की वजह से हुआ है?

ना चाहते हुए भी औनलाइन खाना मंगाने की सोच रही थी. घी, तेल और मसालों से भरा हुआ खाना इस
समय मेरे और पापा के लिए सही नहीं होगा, पर क्या करूं?

तभी दरवाजे पर घंटी बजी. देखा, यमुना खड़ी है. यमुना को देख कर मैं बोली, ‘यमुना, तुझे फोन पर बताया तो था कि मुझे और पापा को कोविड हो गया है.’

‘तुझे पैसों की जरूरत है, तो मैं दे देती हूं, तेरी तनख्वाह निकाल रखी है, पर कहीं हम से बीमारी ना लग जाए.’

यमुना मास्क को ठीक करते हुए बोली, ‘अरे दीदी, क्या अपनों का हाल नहीं पूछते हैं, अगर कोई बीमार हो तो…’

‘आप ने तो फिर भी बता दिया था मुझे, 204 वाली मेमसाहब और 809 वाली आंटी ने तो बिना बताए ही
मुझ से पूरा काम करवाया है.’

‘आप कहें तो मैं आप के यहां भी काम कर दूंगी, बस इन दिनों थोड़ी तनख्वाह ज़्यादा दे दीजिए.’

मैं डरतेडरते बोली, ‘वो तो ठीक है, पर क्या तुझे डर नहीं लगेगा.’

यमुना सौंधी सी हंसी हंसते हुए बोली, ‘गरीबी से अधिक कोई भी बीमारी भयानक नहीं होती है.’

‘आप पैसे दीजिए या मैडिकल स्टोर वाले को बोल दीजिए. मैं अपने लिए आप के घर में घुसने से पहले अलग मास्क और सैनिटाइजर ले आती हूं.’

फिर यमुना ने डबल मास्क पहन कर मेरे फ्लैट में प्रवेश किया. मैं और पापा ने खुद को एक कमरे में बंद कर
लिया था.

जाने से पहले उस ने फोन पर ही बता दिया कि क्या क्या काम हो गया है.

यमुना के जाने के बाद जब मैं बाहर आई तो आंखें भर आईं. यमुना ने डिस्पोजेबल क्राकरी डाइनिंग टेबल पर
रखी हुई थी, ताकि मुझे बरतन ना करने पड़े.

सूप, खिचड़ी, चटनी और सलाद काट कर सलीके से लगाया हुआ था. दूध उबाल रखा था. प्रोटेनिक्स का डब्बा भी था. फल भी काट कर रखे हुए थे. बादाम और किशमिश भी शायद सुबह के लिए भीगी हुई थी.

ना जाने क्या हुआ कि मेरा बुखार बिना दवा के ही उतर गया. यमुना को फोन किया, पर गला रुंध गया. कुछ
बोल नहीं पाई मैं. उधर से भी बस ये ही आवाज आई, ‘दीदी, आप चिंता मत करना. मैं हूं आप के और अंकलजी के साथ.’

यमुना के घर में प्रवेश करते ही नकारात्मकता और कोरोना दोनों ही बाहर निकल गए थे. आज शायद 11 दिनों के पश्चात ऐसा लग रहा है सवेरा होने को है. ये दवाओं का असर है या फिर यमुना और बबलू का साथ खड़ा होना, जिस ने अंदर तक मेरे फेफड़ों को इंसानियत की स्वच्छ हवा से भर दिया है.

छत्तीसगढ़: राज भवन का राज हट

कभी राज हट, बाल हट और स्त्री हट के बारे में कहा जाता था कि इन्हें शांत करना बहुत कठिन होता है .  आजकल आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ में राजभवन का राज हट चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां राज्यपाल के रूप में अनुसूचित जनजाति से अनुसुइया उईके राज्यपाल की भूमिका का निर्वहन कर रही है और आरक्षण के मसले पर उनका हट चर्चा में है.

छत्तीसगढ़ में सरकार और राजभवन में एक ऐसी खींचतान चल रही है जिसकी मिसाल शायद देश में नहीं मिल सकती. ऐसा लगता है मानो सविधान का कोई सम्मान राजभवन नहीं करना चाहता और एक हेटी के चक्कर में आरक्षण का मुद्दा एक दावानल की तरह प्रदेश की फिजाओं में धड़क रहा है. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है इसीलिए यहां अक्सर छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग जोर पकड़ती रही है अगर हम कथित रूप से प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी को छोड़ दें तो विगत 22 वर्षों में छत्तीसगढ़ को आदिवासी मुख्यमंत्री तो नहीं मिला है आरक्षण का जो अधिकार था उस पर भी ग्रहण लगा हुआ है.

हद तो तब हो गई है, जब विधानसभा में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण हेतु विशेष सत्र 2 और 3 दिसंबर 20220 को बुलाकर  आरक्षण का विधेयक पास कर दिया. मगर अब राज्यपाल अनुसुइया उइके ने प्रश्नों की झड़ी लगा कर के एक ऐसी हठधर्मिता देश को दिखाई है जो आज तक किसी राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ में कम से कम नहीं दिखाई थी. इस मसले को लेकर के एक तरह से सरकार और राज्य भवन में ठन गई है इसमें न तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कोई पहल कर रही है और ना ही देश की उच्चतम न्यायालय ने अभी तक कोई संज्ञान लिया है. परिणाम स्वरूप 30 दिन से ज्यादा हो जाने के बावजूद राजभवन में आरक्षण विधेयक धूल खा रहा है और प्रदेश में आदिवासी समाज में इसको लेकर के राज्यपाल अनुसुइया उइके के विरोध में अब आवाजें उठने लगी हैं और राजभवन को घेरने भी घटना भी घटित हो चुकी है.

सरकार और राजभवन अब खुलकर आमने- सामने

विधानसभा के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही शुरू होते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्यपाल अनुसूईया उइके पर खुलकर हमला किया. आरक्षण विधेयक पर मचे घमासान के बीच उन्होंने सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री ने लिखा-“अगर ये तुम्हारी चुनौती है तो मुझे स्वीकार है, लेकिन तुम्हारे लड़ने के तरीके पर धिक्कार है.”

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल यहीं नहीं रुके. उन्होंने लिखा-” सनद रहे ! – भले ‘संस्थान’ तुम्हारा हथियार हैं, लड़कर जीतेंगे! वो भीख नहीं आधिकार है। फिर भी एक निवेदन स्वीकार करो-कायरों की तरह न तुम छिपकर वार करो, राज्यपाल पद की गरिमा मत तार-तार करो.” ‌

एक दिन पहले कांग्रेस ने रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में जन अधिकार महारैली का आयोजन किया जिसमें पचास हजार से ज्यादा कांग्रेसियों ने भागीदारी की और यह संदेश दिया कि राजभवन और भारतीय जनता पार्टी जो कर रही है वह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा-, छत्तीसगढ़ में दो-चार बंधुआ लोगों को छोड़कर सभी लोग आरक्षण विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. राज्यपाल ने उस विधेयक को रोक रखा है.” मुख्यमंत्री ने  आगे कहा, -” मैने

पहले भी आग्रह किया है, फिर कर रहा हूं कि राज्यपाल हठधर्मिता छोड़ें. या तो वे विधेयक पर दस्तखत करें या फिर उसे विधानसभा को लौटा दें. राज्यपाल न विधेयकों पर दस्तखत कर रही हैं और न विधानसभा को लौटा रही हैं, सवाल सरकार से कर रही हैं. मुख्यमंत्री ने रैली में कहा था, उच्च न्यायालय के एक फैसले की वजह से छत्तीसगढ़ में आरक्षण खत्म हो चुका है. भाजपा का आरक्षण  विरोधी चरित्र है वह नहीं चाहती है कि अनुसूचित जनजाति को आरक्षण मिले. इसी वजह से केंद्र सरकार 14 लाख पद खाली होने के बाद भी नई भर्ती नहीं कर रही है. सार्वजनिक उपक्रमों को बेचा जा रहा है ताकि आरक्षण का लाभ न देना पड़े. छत्तीसगढ़ सरकार लोगों को नौकरी देना चाहती है.”

यहां यह भी बताते चलें कि अनुसुइया उइके स्वयं अनुसूचित जनजाति से हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री बघेल के समक्ष पहले पहल की थी कि अगर आरक्षण पर विधेयक सरकार लाएगी तो वह तत्काल हस्ताक्षर कर देंगी .

इस संपूर्ण वाद विवाद में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि राज्यपाल अनुसूया सरकार से  लगातार  प्रश्न कर रही है आरक्षण के परीक्षण की बात कर रही हैं जबकि विधि विशेषज्ञों का मानना है कि या उनके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है.

मुख्यमंत्री ने जन अधिकार महारैली में कहा था, मंत्रिमंडल राज्यपाल को सलाह देने के लिए होता है. लेकिन विधानसभा उन्हें सलाह देने के लिए नही है. मंत्रिमंडल सलाह देगी, जो जानकारी मांगेंगी वह देंगे, लेकिन जो संपत्ति विधानसभा की है उसका है जवाब सरकार नहीं देती. इसकी वजह है कि विधायिका का काम अलग है, कार्यपालिका का काम अलग है. कुल मिलाकर के आने वाले समय में यह मामला और भी गर्माहट भरा होगा.

Holi Special: मिशन मोहब्बत भाग-3

विशाल सिटपिटा गया, ‘‘एहसान कैसा? कंपनी का गैस्टहाउस है, सलिल का निजी बंगला नहीं, फिर भी तुम्हें पसंद नहीं है तो जाने दो,’’ विशाल ने मायूसी से कहा, ‘‘राहुल को देखने को बहुत ही दिल कर रहा है, इसीलिए कह रहा था.’’

मानसी पिघल गई, ‘‘राहुल से पूछो, वह क्या कहता है.’’

‘‘ठीक है, शाम को बात करेंगे.’’

लेकिन राहुल से पहले विशाल ने कामिनी से बात की.

‘‘अरे वाह, आप के उसूलों का ही आईना दिखा दिया मानसीजी ने आप को,’’ कामिनी हंसी.

‘‘बेशक, लेकिन मुझे आजकल सब आईनों में आप का ही अक्स नजर आता है.’’

‘‘अच्छा,’’ कामिनी ने आह भर कर कहा, ‘‘हमें तो आईने की जरूरत भी नहीं पड़ती.’’

‘‘मगर मेरा काम अब तसव्वुर से नहीं चलता, रूबरू होने की तदबीर करो कुछ.’’

‘‘इतनी अच्छी तरकीब सुझाई तो थी. प्रेम तो वहां जा कर जीभर कर सोएंगे और मैं आप को गोल्फ, बिलियर्ड या ऐसे ही और किसी खेल में जिस में मानसीजी की दिलचस्पी न हो, अपना साथ देने के लिए बुला सकती हूं.’’

‘‘मानसी को किसी खेल में दिलचस्पी नहीं है, सुबह की सैर में भी नहीं. वह तो देर तक सोने में खुश रहती है.’’

‘‘अरे, मजा आ गया फिर तो, क्योंकि वहां कालोनी में सैर करने के लिए सुनसान रास्ते, हरेभरे पेड़ों के झुरमुट और एकदम रूमानी माहौल है.’’

‘‘मगर राहुल को भी अगर मानसी की बात सही लगी तो?’’

‘‘राहुल से अभी बात ही मत करो. मैं वहां जा कर राहुल से आप लोगों को बुलाने को कहूंगी और सलिल से आप के रहने का इंतजाम करवाने को.’’

‘‘क्या कमाल का आइडिया है, आप जा कब रही हैं?’’

‘‘कल शाम को. परसों राहुल से मिलूंगी और उस से आप को बुलाने के लिए कहूंगी.’’

‘‘और उस से 1-2 रोज के बाद हम आप की खिदमत में हाजिर हो जाएंगे.’’

शाम को उस ने मानसी से कहा कि अभी राहुल से आने के बारे में कुछ न कहे, एक जरूरी काम आ गया है, 2-3 रोज में उसे पूरा करने के बाद देखेगा कि छुट्टी मिलेगी या नहीं.

तीसरे रोज वह बेसब्री से शाम का इंतजार करने लगा क्योंकि राहुल तो हमेशा शाम के बाद ही फोन करता था. राहुल ने तो नहीं लेकिन शाम को कामिनी ने फोन किया.

‘‘मेरे पीए का फोन है,’’ कह कर विशाल बाहर आ गया और धीरे से बोला, ‘‘कैसी गुजर रही है?’’

‘‘राहुल आया हुआ है,’’  दूसरी ओर से आवाज आई.

‘‘कैसा लगा मेरा बेटा…’’

उस ने बात काटी, ‘‘फिलहाल तो बेटे से ज्यादा मेरी दिलचस्पी उस के बाप को यहां बुलाने में है जिस का कोई जुगाड़ नहीं बन रहा. मेरे इस सुझाव को कि सलिल आप के ठहरने की व्यवस्था कंपनी के गैस्टहाउस में करवा दे, अर्पि ने यह कह कर काट दिया कि सलिल राहुल का बौस जरूर है लेकिन इतना बड़ा अफसर नहीं कि अपने निजी मेहमानों को कंपनी के गैस्टहाउस में ठहरा सके.

‘‘निक्की और राहुल एकदूसरे को पसंद करते हैं, यह बात अभी फैक्टरी या कालोनी में किसी को पता न चल जाए. इसलिए सलिल ने राहुल को अपने पापा के दोस्त का बेटा बताया हुआ है ताकि उस के हमारे घर आने पर कोई उंगली न उठा सके.

‘‘मैं ने मौका लपका कि पापा के दोस्त को तो वह अपने घर पर भी ठहरा सकता है तो अर्पि और निक्की भड़क गईं कि घर में जगह कहां है उन्हें ठहराने को. और फिर उन से मिलने की इतनी जल्दी क्यों? राहुल अपने पापा को आप लोगों को मिलने का कह कर यह बता ही चुका है कि उस ने अपने लिए लड़की पसंद कर ली है. सो, अब मिलनामिलाना जब सगाईशादी करनी होगी तब करना.

‘‘मैं ने राहुल से पूछा कि मम्मीपापा से मिलने को दिल नहीं करता तो उस ने कहा कि करता तो है लेकिन मिलूंगा तो ट्रेनिंग खत्म होने पर ही. मैं ने फिर मौका लपका कि वह आप लोगों को यहां बुला ले, ठहरने का इंतजाम हम करवा देंगे तो उस ने साफ मना कर दिया कि पापा को यह सुझाव दे कर डांट नहीं खाएगा. तुम और तुम्हारे उसूल.’’

विशाल ने गहरी सांस ली, ‘‘उन्हें ताक पर रख कर बैंक के काम के बहाने से अहमदाबाद आ जाता हूं. फिर वहां से राहुल को देखने के बहाने जिसे देखना है उसे भी देख लूंगा.’’

‘‘मगर जल्दी.’’

विशाल को उस की बेचैनी अच्छी लगी. मानसी किसी से फोन पर बात कर रही थी, उसे देखते ही बोली, ‘‘पापा आ गए हैं, उन से बात कर.’’

‘‘कैसे हो बेटे?’’ उस ने मुश्किल से अपने को पूछने से रोका, ‘‘अपनी ससुराल से इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘ठीक हूं, पापा. मम्मी कह रही थीं कि आप मुझ से मिलने आना चाह रहे हैं तो अभी 15-20 रोज तक तो मत आइए, प्लीज.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘जब रूम से फोन करूंगा तब बताऊंगा. अभी मैं बाहर हूं.’’

‘‘तो अभी फोन क्यों किया?’’ उस ने चिढ़े स्वर में पूछा.

‘‘फोन मैं ने नहीं, मम्मी ने किया था,’’ कह कर राहुल ने फोन रख दिया.

विशाल ने दांत पीसे. यह मानसी भी… मना किया था राहुल से बात मत करना पर कर ली. अब बैंक के काम के बहाने भी गया तो राहुल शायद अपने पास न आने दे. अब क्या करे?

खाना खा कर वह टहलने के लिए बाहर निकल गया. जब लौट कर आया तो मानसी ने बताया कि राहुल का फोन आया था. सलिल मेहरा के सासससुर वहां आए हुए हैं. उन की सास के इस सुझाव पर कि राहुल भी अपने मातापिता को वहां बुला ले, सलिल मेहरा भड़क गए कि इस से तो फैक्टरी में लोगों को निकिता और राहुल के रिश्ते के बारे में शक हो जाएगा और उन दोनों के लिए ट्रेनिंग पूरी करनी मुश्किल हो जाएगी. मेहरा साहब ने तो जब तक उन के सासससुर वहां हैं, राहुल को अपने घर आने से भी रोक दिया है. सो, राहुल का कहना है कि ऐसे में अगर आप लोग आ गए तो मेहरा साहब समझेंगे कि राहुल ने उन की अवज्ञा की है.

विशाल का दिल अपना सिर पीटने को किया. अगली दोपहर कामिनी का फोन आया, ‘‘मिलने की बात तो छोड़ो, यहां तो फोन करने का मौका मिल जाए तो गनीमत है. मैं सुबह सैर के बहाने निकला करूंगी और एकांत में तुम से बात किया करूंगी.’’

‘‘ठीक है, मैं भी सुबह की सैर शुरू कर देता हूं.’’

और फिर सुबह की सैर के इंतजार में रात की नींद भी हराम हो गई मगर फिर भी सारा दिन इतनी मस्ती और चुस्ती रहती थी कि मानसी कहे बगैर नहीं रह सकी, ‘‘तुम्हें सैर में मिलता आनंद देख कर मैं सोच रही हूं कि मैं भी तुम्हारे साथ चलना शुरू कर दूं.’’

‘‘लेकिन मेरे कदम से कदम मिला कर तेज चलने की प्रैक्टिस पहले अपने बगीचे में करो, फिर मेरे साथ चलना,’’ विशाल ने बड़ी सफाई से उसे टाला.

एक रोज कामिनी ने बताया कि सलिल के पापा ने उसे किसी जरूरी काम के लिए दिल्ली बुलाया है और अर्पिता भी सलिल के साथ जा रही है. सो, कल सुबह का नाश्ता बनाने के चक्कर में उसे घर पर ही रहना पड़ेगा. फोन तो जरूर करेगी लेकिन देर से.

मगर लंच से पहले ही कामिनी के बजाय सलिल का फोन आया.

‘‘अंकल, आप से अभी कुछ जरूरी बात करनी है, थोड़ा लंबा लंचब्रेक ले सकते हैं?’’

‘‘हां, मेरे साथ घर पर चलिए, साथ में लंच करेंगे और बातचीत भी. कहां से पिक करूं आप लोगों को?’’ विशाल ने उत्साह से पूछा.

‘‘घर पर आंटी के सामने नहीं, अंकल. आप से अकेले में बात करनी है.’’

‘‘ठीक है, इंडिया इंटरनैशनल सैंटर पर आ जाइए. मैं लंच के लिए टेबल बुक करवा देता हूं,’’ कह कर विशाल ने फोन रख दिया. सोचा, लगता है सलिल के पापा किसी वित्तीय संकट में हैं. सो, सलिल उस के बैंक से ऋण लेना चाह रहा होगा. कामिनी का दामाद है, सो उस के लिए कुछ तो करना ही होगा.

‘‘अचानक कैसे आना हुआ, आप के मम्मीपापा तो ठीक हैं?’’ विशाल ने पूछा.

‘‘जी हां, अभी उन से मिल कर ही आ रहे हैं. आप के साथ लंच ले कर एअरपोर्ट चले जाएंगे और 5 बजे की फ्लाइट से वापस अहमदाबाद,’’ सलिल ने बताया.

‘‘ऐसा क्या जरूरी काम था जो इतनी जल्दी पूरा हो गया और आप वापस भी जा रहे हैं?’’ विशाल ने हैरानी से पूछा.

‘‘काम मुझे नहीं अर्पि को है, अंकल, मैं तो बस इस की मुहब्बत में इस के साथ चला आया हूं.’’

‘‘ओह, आई सी, मिशन मुहब्बत…’’

‘‘आप ने बिलकुल ठीक कहा, अंकल,’’ अब तक चुप अर्पिता ने बात काटी, ‘‘मिशन मुहब्बत ही तो है यह. चलिए, खाना खाते हुए बात करते हैं.’’

‘‘राहुल और निकिता दोनों आजकल अमेरिका के विभिन्न संस्थानों में एमबीए में दाखिले के लिए आवेदन कर रहे हैं और अपनी तनख्वाह भी जोड़ रहे हैं ताकि ट्रेनिंग के बाद नौकरी न करने पर फैक्टरी को उस के एवज में बौंड का पैसा दे सकें,’’ सलिल खाना खाते हुए बोला, ‘‘ठीक भी है, भविष्य तो विदेशी डिगरी मिलने के बाद ही उज्ज्वल होगा.’’

‘‘बौंड का पैसा तो हम भी भर देंगे मगर ऐडमिशन भी तो मिलना चाहिए न,’’ विशाल ने कहा, ‘‘और फिर ये दोनों तो एक ही जगह पढ़ना चाहेंगे.’’

‘‘ऐसी कोई शर्त नहीं है, अंकल. दोनों ही को पहले तो कैरियर संवारना है फिर निजी जिंदगी के बारे में सोचना है. सो, जिसे भी जहां और जब ऐडमिशन मिल जाए, उन्हें मंजूर है.’’

‘‘और यह बहुत अच्छा रवैया है, अंकल,’’ अर्पिता ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘क्योंकि मुझे नहीं लगता कि जो खेल आप और मम्मी खेल रहे हैं, उस के चलते इन दोनों बेचारों की शादी हो भी सकेगी.’’

विशाल के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘आप ने वह कहावत तो सुनी ही होगी, इश्क, मुश्क, खांसी, खुशी छिपाए नहीं छिपतीं. आजकल निकिता से ज्यादा इश्क की मदमस्ती में मम्मी हैं. फिलहाल तो सिवा मेरे किसी और ने ध्यान नहीं दिया और न ही मम्मी के मोबाइल की इनकमिंग या आउटगोइंग कौल्स चैक की हैं लेकिन कब तक, अंकल? इस से पहले कि पापा या मानसी आंटी को पता चले और 2 सुखी परिवार तहसनहस हो जाएं, मैं ने और सलिल ने आप से मिलना बेहतर समझा,’’ अर्पिता ने विशाल की आंखों में देखा.

‘‘बिलकुल सही किया, बच्चो,’’ विशाल ने बगैर नजरें चुराए कहा, ‘‘आप को अब कुछ और करने और कहने की जरूरत नहीं है, जो करना और कहना है मैं करूंगा. आप इत्मीनान से वापस जाओ. आप का मिशन मुहब्बत सफल रहा.’’

मेरे एक लड़की से संबंध थे, शादी के बाद भी वो लड़की मुझसे फोन पर बातें करती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवक हूं. मुझे एक लड़की से प्यार हुआ और उस से शारीरिक संबंध भी बन गए. लेकिन 3 महीने बाद लड़की की शादी कहीं और हो गई. शादी के बाद भी लड़की मुझ से फोन पर बातें करती रही. कुछ बातें, जिन्हें अश्लील कहा जा सकता है, उस के पति ने रिकौर्ड कर ली. उस का पति अब कहता है कि वह उसे छोड़ देगा. अभी तक छोड़ा तो नहीं है लेकिन दिक्कत यह है कि उस लड़की का पति अमीर है और वह मुझे मरवाने की योजना बना रहा है. बताएं, मैं क्या करूं?

जवाब

वैसे देखा जाए तो इस में गलती आप की है. लड़की की अगर शादी हो गई थी तो उस से ताल्लुक नहीं रखना चाहिए था. बल्कि उसे समझाना चाहिए था कि वह अब अपने पति और उस के घर की तरफ ध्यान दे.

कोई भी पति यह बरदाश्त नहीं करेगा कि उस की पत्नी किसी गैरपुरुष से संबंध रखे. खैर, यदि आप भी अपनी गलती मानते हैं तो उस लड़की के पति को समझाने की कोशिश कर सकते हैं कि भविष्य में आप उस की पत्नी से किसी तरह का कोई संबंध नहीं रखेंगे. आप किस आधार पर कह रहे हैं कि वह आप को मरवाने की योजना बना रहा है, यह आप ने बताया नहीं. फिर भी आप को ऐसा लगता है तो नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं कि आप को अपनी जान का खतरा है.

मैं अपनी भानजी को बहुत पसंद करता हूं, उस से शादी करना चाहता हूं, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एलएलबी का छात्र हूं और अपनी दूर के रिश्ते की भानजी को बहुत पसंद करता हूं. उस से शादी करना चाहता हूं. लेकिन उस की तरफ से कोई जवाब नहीं मिल रहा. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

शादी करना कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं होता. कोई भी फैसला बहुत ही सोचसमझ कर लेना चाहिए. आप जिस से शादी करना चाहते हैं वह रिश्ते में आप की भानजी लगती है. भारतीय समाज में वैसे भी भानजी से शादी नहीं होती है. हां, कई जगह यह परंपरा है कि मामा भानजी की शादियां होती हैं. पर आप के मामले में ऐसा है कि नहीं, यह आप ने नहीं बताया.

वैसे भी आप कानून की पढ़ाई कर रहे हैं तो आप को मालूम होना चाहिए कि हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 5 (4) के अनुसार वर्जित संबंधों (प्रोहिबिटेड रिलेशन) में शादी नहीं हो सकती. वह कानूनन मान्य नहीं होगी. दूसरी तरफ, हो सकता है आप की भानजी रिश्तों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहती हो, इसलिए उस की तरफ से आप को कोई जवाब नहीं मिल रहा. सब पक्षों को ध्यान में रखते हुए स्वयं फैसला लें कि यह विवाह करना आप के लिए कितना उचित रहेगा.

सर्दियों की इन परेशानियों का इलाज है हरा लहसुन

सर्दियों में कई तरह की सब्जियां बाजार में रहती हैं. इस दौरान जो सब्जी सबसे ज्यादा बाजार में दिखती है वो है हरा लहसुन. सर्दियों में इसे खाने से कई लाभ होते है. यहां हम इसके कुछ फायदे बता रहे हैं.

1.ब्‍लड शुगर को करे नियंत्रित

ब्लड सुगर पर नियंत्रण करने में हरा लहसुन काफी कारगर है. डायबिटीज के मरीजों को इसका सेवन जरूर करना चाहिए. ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए ये किसी दवा से कम नहीं है.

2.श्‍वसन तंत्र के लिए फायदेमंद

सांस की परेशानियों में इसका रोज सेवन बेहद फायदेमंद है. यह श्वसन तंत्र की कार्य प्रणाली को बेहतर बनाता है.

3. आयरन का स्‍त्रोत

हरे लहुसन में मौजूद प्रोटीन फेरोपौर्टिन कोशिका के अंदर आयरन को संग्रहित करता है, जिससे शरीर को आवश्यकतानुसार आयरन मिलता रहता है.

4.दिमाग में ब्‍लड सकुर्लेशन बढ़ाए

दिमाग में ब्लड सकुर्लेशन को बेहतर करने में भी हरा लहसुन काफी फायदेमंद होता है. इस मौसम में आप दिमाग तेज करना चाहते हैं तो हरे लहसुन का सेवन करना शुरू कर दें.

5.गुड कौलेस्‍ट्रौल बढ़ाता है

हरे लहसुन में पौलीसल्फाइड की भरपूर मात्रा होती है. दिल की बीमारी में ये काफी लाभकारी होता है. इसके अलावा इसमें मैग्‍नीज की भरपूर मात्रा होती है, ये गुड कौलेस्ट्रौल के लिए महत्वपुर्ण कारक है. दिल की बेहतरी के लिए ये काफी कारगर होता है.

6.एंटीसेप्टिक की तरह करता है काम

हरे लहुसन में एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं. यह एक बेहतरीन एंटीसेप्टिक की तरह काम करता है. किसी भी तरह के घाव में ये काफी असरदार होता है. इसको नियमित खाने से आपके अंदर घावों को जल्दी भरने की क्षमता विकसित होती है.

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