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राखी सावंत का शॉकिंग खुलासा, जान से मारना चाहता था पति आदिल

टीवी इंडस्ट्री कि ड्रामा क्वीन राखी सावंत इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में बनी हुई हैं,  7 महीने पहले उन्होंने आदिल दुर्रानी के साथ निकाह किया था, जिसके बाद वह काफी ज्यादा चर्चा में आ गई थी. हालांकि अब राखी औऱ आदिल के रिश्ते में दरार आ गई है.

राखी ने  सिर्फ आदिल पर धोखा देने का इल्जाम लगाया है बल्कि उसने मारपीट का भी इल्जाम लगाया है, अब हाल ही में राखी ने आदिल को लेकर ऐसा खुलासा किया है जिसे जानकर सभी फैंस हैरान हो गए हैं. राखी ने बताया कि आदिल उन्हें जान से मारने की प्लानिंग कर रहे थें.

 

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राखी का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें राखी कह रही है कि या खुदा आदिल को ऐसा नेक इंसान जेल में बना दो कि वह सुधर जाए वहां पर . वह जिंदगी में किसी के साथ दुष्कर्म ना करें. इसके साथ ही राखी ने ये भी कहा कि वह जो मुझे मारने की धमकी दे रहा था, वह काफी ज्यादा परेशान करने वाली थी.

उन्होंने कहा कि अगर मुझे इसमें न्याय मिला तो हम कोर्ट जाएंगे उसे समझाएंगे, जो ऑडियो उस लड़की की मेरे पास आई है उससे मेरा दिमाग खराब हो गया है. खैर देखते है कि आदिल को न्याय मिलता है कि नहीं या फिर आदिल दुर्रानी पूरी जिंदगी जेल की हवा खाएंगे.

बेहद खूबसूरत हैं सिद्धार्थ की सास, कियारा ने शेयर की फोटो

सिद्धार्थ मल्होत्रा कि वाइफ कियारा आडवाणी आए दिन सोशल मीडिया पर बनी रहती  हैं, हाल ही में उन्होंने अपनी मां के साथ फोटो शेयर किया है. जिसमें वह अपनी मां को जन्मदिन की बधाई दें रही हैं.

कियारा ने एक के बाद एक नई तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर कि है. जिसमें वह अपनी मां को जन्मदिन की बधाई दे रही हैं. कियारा ने बेहद खूबसूरत तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि सिद्धार्थ की सासू मां काफी ज्यादा खूबसूरत है. शेयर किए हुए तस्वीर में कियारा अपने परिवार के साथ नजर आ रही हैं.

 

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कियारा बहुत सारी फोटो में शानदार पोज देती नजर आ रही हैं, कियारा के इस स्टाइलिश लुक को लोग काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं. कियारा के फैंस भी उनकी मां को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं. कियारा ने अपनी मां जैसा ट्रेडिशनल ड्रेस पहना हुआ है.

कियारा के पति सासू मां के साथ नजर आ रहे हैंं, कियारा अपनी फैमली के साथ बेहद खूबसूरत लग रही है, कियारा ने तस्वीर में चश्मा लगाकर तस्वीर को और भी ज्यादा खूबसूरत बना दिया है. कुछ दिनों पहले ही कियारा हमेशा- हमेशा के लिए सिद्धार्थ के साथ शादी के बंधन में बंधी हैं. जिसकी चर्चा काफी ज्यादा हो रही है. सिद्धार्थ और कियारा अपनी शादी को लेकर एक लंबे समय तक चर्चा में बनी हुईं थी.

मेरे ब्रेस्ट काफी ढीले हो गए हैं, कृपया बताएं कि मैं कैसे अपने स्तनों को सुडौल और आकर्षक बनाऊं?

सवाल
मैं 27 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरा 8 साल का एक बेटा है. संतानोत्पत्ति के बाद से ही मेरा वक्षस्थल काफी ढीला हो गया है, साथ ही आकार भी कम हो गया है जिस कारण मेरा व्यक्तित्व काफी अनाकर्षक हो गया है. कोई भी पहनावा खासकर टाइट फिटिंग ड्रैस कतई अच्छी नहीं लगती. मैं ने इंटरनैट पर सर्च करके कुछ दवाएं लेनी शुरू की थीं. मगर उन से भी कोई फर्क नहीं पड़ा. उलटे मेरी सहेलियों का कहना है कि इस से ब्रैस्ट कैंसर का खतरा रहता है. मैं ने कुछ दिन जैतून के तेल की मालिश भी की पर उस से भी कोई फायदा नहीं हुआ. कृपया बताएं कि कैसे स्तनों को सुडौल और आकर्षक बनाऊं?

जवाब
आप ने पूरा खुलासा नहीं किया है कि आप का स्वास्थ्य कैसा है. यदि आप पहले से ही कमजोर हैं, तो उसी के अनुरूप वक्षस्थल का आकार भी कम हुआ होगा. यदि स्वास्थ्य में कोई कमी नहीं आई अर्थात वजन कम नहीं हुआ तब अवश्य ही प्रसव से पहले और प्रसव के बाद आप ने ब्रा पहनने में कोताही की होगी. सही नाप की ब्रा नहीं पहनी होगी. वजह जो भी रही हो स्तनों के आकार को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर तनाव न पालें. पौष्टिक आहार लें. व्यायाम करें. लाभ होगा. इस के अलावा न ज्यादा कसी और न ही ज्यादा ढीली पोशाकें पहनें. बाहर जाते या विशेष अवसर पर पैडेड ब्रा पहन कर स्तनों को सुडौल दिखा सकती हैं.

जहां तक दवाओं से वक्षस्थल को सुडौल बनाने की बात है तो इन से विशेष लाभ नहीं होता. अत: विज्ञापनों के भुलावे में आ कर पैसा और समय बरबाद न करें. आप किसी से कम नहीं हैं, यह आत्मविश्वास रखेंगी तो आकर्षक दिखेंगी.

धार्मिक चोले में अपराधी

वह देश जो हर समय मंदिरों, पुजारियों, मंत्रों, पूजापाठ आदि का गुणगान करता रहता है और मंत्रों व दंडवत प्रणामों को सौहार्द, शांति तथा सुख की कुंजी मानता है, वहां एक छोटे, पर मजेदार, मामले में अच्छी पोलपट्टी खुली. सडक़ों पर लूटपाट करने वाला एक शख्स अजय शर्मा, जो 17 वर्षों से भगोड़ा था, के 3 साथी तो घटना के बाद पकड़े गए पर अजय शर्मा नाम बदल कर हापुड़ के एक मंदिर में पुजारी की तरह रह रहा था.

मंदिर में रहते हुए भी अजय शर्मा का चालचरित्र सुधरा हो, इस का कोई प्रमाण नहीं क्योंकि उस के रहस्य को उस के भाई अरुण शर्मा द्वारा पुलिस को बताने पर अब उसे पकड़ा गया है. अजय शर्मा और अरुण शर्मा में गांव की संपत्ति को ले कर विवाद इतना गहरा था कि पुजारी का चोला और मंदिर का आंगन भी उक्त विवाद को न तो हल कर पाए न दोनों भाइयों को सुधार पाए.

पुजारी अपने को दूसरों से श्रेष्ठ कहते हैं, भगवान के एजेंट कहते हैं पर ‘गाइड’ फिल्म के देवानंद की तरह भी हो सकते हैं जिस ने अपनी प्रेमिका के इंश्योरैंस के पैसे जाली दस्तख्त कर हड़प लिए और इस वजह से जेल से निकल कर सीधे एक मंदिर का स्वामी बन गया. अजय शर्मा भी ऐसा ही था.

लगभग हर धर्म के पुजारी, पादरी, मुल्ला, ग्रंथी अपराधों में पकड़े जाते रहते हैं. ईसाई धर्म हर साल लाखों डौलर उन बच्चों को मुआवजा देता है जिन के साथ चर्च के पादरियों ने कुकर्म किया था. चर्चों की यह बीमारी बहुत अधिक सामने आने लगी है क्योंकि पश्चिमी देशों में धर्म की पोल खोलना आसान है.

हिंदू या मुसलिम देशों में धर्म के दुकानदारों के खिलाफ बोलने पर बोलने वाले का मुंह ही सी दिया जाता है. आमतौर पर तो इसे ईश्वर या खुदा की मरजी कह दिया जाता है पर अगर कोई न माने तो उसे डंडे से सबक सिखा दिया जाता है.

हापुड़ के गांव के मंदिर में एक अपराधी 17 साल तक छिपा रहा और उस के परिवार को पता था वरना भाई कैसे पुलिस को बताता. यह पुजारी न तो अपना चरित्र बदल पाया, न अपने भाई को सहबुद्धि दे पाया कि संपत्ति का मोह ठीक नहीं है. संपत्ति के विवाद में वह जेल चला गया है हालांकि अब उस पर अपराध साबित करना मुश्किल ही होगा क्योंकि अधिकांश गवाह मुकर जाएंगे. हां, इस दृष्टि से मंदिर, चर्च अच्छे हैं कि वे गुनाहगारों को पनाह देते हैं, जिन को वास्तव में जेल में होना चाहिए.

नैनो उर्वरक के प्रयोग से फसल उत्पादन में बढ़ोतरी

उर्वरक के प्रयोग से फसल उत्पादन में बढ़ोतरी नैनो उर्वरकों को पारंपरिक उर्वरकों, उर्वरकों की थोक सामग्रियों के संश्लेषित या संशोधित रूप में या मिट्टी की उर्वरता, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नैनो तकनीक की मदद से विभिन्न रासायनिक, भौतिक, यांत्रिक या जैविक तरीकों से पौधे की विभिन्न वनस्पति या प्रजनन भागों से निकाला जाता है. नैनो उर्वरकों का सतह क्षेत्र अधिक होता है.

यह मुख्य रूप से कणों के बहुत कम आकार के कारण होता है, जो पौधे प्रणाली में विभिन्न चयापचय प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए अधिक साइट प्रदान करते हैं, जिस के परिणामस्वरूप अधिक प्रकाश संश्लेषण होता है. उच्च सतह क्षेत्र और बहुत कम आकार के कारण अन्य यौगिकों के साथ उन की उच्च प्रतिक्रियाशीलता होती है. पानी जैसे विभिन्न विलायकों में इन की उच्च विलेयता होती है. नैनो कण पोषक तत्त्वों का उपयोग दक्षता बढ़ाते हैं और पर्यावरण संरक्षण की लागत को कम करते हैं. फसलों की पोषण सामग्री और स्वाद की गुणवत्ता में सुधार होता है.

लोहे का इष्टतम उपयोग और गेहूं के दाने में प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि होती है. रोगों का प्रतिरोध कर के पौधों की वृद्धि में वृद्धि और फसलों की गहरी जड़ें और झुकने से पौधों की स्थिरता में सुधार ने यह भी सुझाव दिया कि नैनो तकनीक के माध्यम से फसल के पौधे से संतुलित उर्वरक प्राप्त किया जा सकता है. अमेरिकी भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फेनमैन ने वर्ष 1959 में नैनो टैक्नोलौजी की अवधारणा का परिचय दिया.

15 वर्षों के बाद एक जापानी वैज्ञानिक नोरियो तानिगुची वर्ष 1974 में ‘नैनो टैक्नोलौजी’ शब्द का उपयोग और परिभाषित करने वाले पहले व्यक्ति थे : ‘नैनो टैक्नोलौजी में मुख्य रूप से एक परमाणु या एक अणु द्वारा सामग्री के पृथक्करण, समेकन और विरूपण का प्रसंस्करण शामिल है.’ भारत की सब से बड़ी उर्वरक सहकारी संस्था इफको ने 33 वर्षीय भारतीय वैज्ञानिक रमेश रालिया द्वारा आविष्कृत नैनो यूरिया का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू कर दिया है.

तरल नैनो यूरिया के उपयोग की विधि नैनो यूरिया का 2 से 4 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल का खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए. नाइट्रोजन की कम आवश्यकता वाली फसलों में 2 एमएल और अधिक आवश्यकता वाली फसलों में 4 एमएल तक नैनो यूरिया प्रति लिटर पानी की दर से उपयोग करें. अनाज, तेल, सब्जी, कपास इत्यादि फसलों में 2 बार और दलहनी फसलों में एक बार नैनो यूरिया का उपयोग किया जा सकता है, जिस में पहला छिड़काव अंकुरण या रोपाई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरा छिड़काव फूल आने के एक सप्ताह पहले किया जा सकता है. एक एकड़ खेत के लिए प्रति छिड़काव तकरीबन 140-150 लिटर पानी की मात्रा पर्याप्त होती है.

इफको ने भारत में पहला नैनो नाइट्रोजन यानी नैनो यूरिया तैयार किया है, जिसे यूरिया के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. नैनो नाइट्रोजन का सही तरीके से इस्तेमाल करने पर यह यूरिया की खपत को 50 फीसदी तक कम कर सकता है. नैनो जिंक को जिंक उर्वरक के विकल्प के रूप में विकसित किया गया है. इस का इस्तेमाल करने पर जिंक की पूरी मात्रा पौधों को मिलेगी. इस से पौधों में जिंक ग्रहण करने की क्षमता का विकास होगा.

इस का फसल की पैदावार पर सीधा असर पड़ेगा. तीसरा उत्पाद इफको नैनो कौपर है, जो पौधे को पोषण और सुरक्षा दोनों में मदद करता है. इसे कवकनाशी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह पौधे में नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से लड़ने की ताकत पैदा करता है. इस से पौधे में ग्रोथ हारमोन तेजी से बढ़ते हैं और पौधा भी तेजी से विकास करता है. नैनो कौपर का कृषि रसायन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. नैनो यूरिया की कीमत और बिक्री केंद्र नैनो यूरिया की 500 एमएल की एक बोतल की कीमत तकरीबन 250 रुपए रखी गई है.

खरीदने के लिए अपने नजदीकी इफको बिक्री केंद्र पर संपर्क करें. नैनो यूरिया के लाभ

* उत्पादन वृद्धि के साथ उत्पादक गुणवत्ता में वृद्धि होती है.

* परिवहन एवं भंडारण खर्चों में कमी एवं सुगम परिवहन किया जा सकता है.

* यह सभी फसलों के लिए उपयोगी है. बिना उपज प्रभावित किए यूरिया और अन्य नाइट्रोजनयुक्त यूरिया की बचत करता है.

* वातावरण प्रदूषण की समस्या से मुक्ति यानी मिट्टी, हवा और पानी की गुणवत्ता में सुधार के साथ उर्वरक उपयोग दक्षता भी इस की अधिक है. उपयोग करने के दिशानिर्देश और सावधानियां

* उपयोग से पहले अच्छी तरह से बोतल को हिलाएं. प्लेट फैन नोजल का उपयोग करें.

* सुबह या शाम के समय छिड़काव करें. तेज धूप, तेज हवा और ओस हो, तब इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

* यदि नैनो यूरिया के छिड़काव के 12 घंटे के भीतर बारिश होती है, तो छिड़काव को दोहराना चाहिए.

* जैव उत्प्रेरक जैसे सागरिका, 100 फीसदी घुलनशील उर्वरकों और कृषि रसायनों के साथ मिला कर उपयोग किया जा सकता है. लेकिन जार परीक्षण कर के ही प्रयोग करें.

* बेहतर परिणाम के लिए नैनो यूरिया का उपयोग इस के निर्माण की तारीख से 2 वर्ष के अंदर कर लेना चाहिए.

* नैनो यूरिया विषमुक्त है, फिर भी सुरक्षा की दृष्टि से फसल पर छिड़काव करते समय फेस मास्क और दस्ताने का उपयोग करने की सलाह दी जाती है.

* नैनो यूरिया को बच्चों और पालतू जानवरों की पहुंच से दूर ठंडी और सूखी जगह पर ही रखें.

लेख- विकास सिंह, कृशानु, शोध छात्र, मुकेश कुमार, सहायक प्रोफैसर, आरएस सेंगर, प्रोफैसर, कृषि जैव प्रौद्योगिकी, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि

भगवान भक्तों की रक्षा क्यों नहीं करते

देश में हर साल भक्तों की टोली तीर्थ भ्रमण करती है. ऐसे मौकों पर हादसे भी हो जाते हैं जिन में कई भक्त लापरवाही से मौत के मुंह में समा जाते हैं. अगर भगवान ही इन भक्तों की रक्षा नहीं कर पाते तो तीर्थ पर जाने का क्या मतलब? क्या भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं? आएदिन होने वाले धार्मिक उत्सवों और आयोजनों के दौरान घटने वाले दर्दनाक हादसे देखने के बाद इस तथ्य में सच्चाई कहीं नजर नहीं आती. कोरोनाकाल में जहां लोगों से सरकार जोर दे कर कह रही थी कि भीड़ न लगाएं, उस दौरान तबलीगी जमात और कुंभ मेले जैसे उदाहरण होना दिखाता है कि धर्म के मामले में लोग कितने मूर्ख बने रहे और खुद के साथ करोड़ों लोगों की जान को जोखिम में डालते दिखे.

यहां तक कि जिन नेताओं को इन लोगों को सम?ाने और सख्त नियम लागू करने की जरूरत थी वे खुद अपनी चुनावी रैलियों में भारी भीड़ इकट्ठी करते दिखे. इस का परिणाम यह हुआ कि लाखों परिवारों ने अपने करीबियों को खो दिया. इन बेवकूफों के चलते वे असमय मौत के मुंह में समा गए. अभी 13 अगस्त, 2022 की ही तो घटना है. राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम मंदिर में अचानक भगदड़ मचने से 3 से अधिक औरतें मारी गईं और कई घायल हो गए. 2008 में जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में बने चामुंडा देवी के मंदिर में 216 जानें गईं. संतों और देवी के भक्त दरबार में ही मौत के मुंह में समा गए और संत व देवी बुत बने चुपचाप यह मंजर देखते रहे. जली दबी, कुचली लाशें कंपकंपी पैदा करने वाली थीं. महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों में चीत्कार और हाहाकार मच गया था. सर्वशक्तिमान सम?ो जाने वाले भगवानों ने अपने भक्तों को मौत के मुंह में जाने से नहीं बचाया.

कई साल पहले छत्तीसगढ़ के रायपुर के 3 अभिन्न मित्र शेख समीर, अब्दुल वहीद और शमशेर खान नागपुर में बाबा ताजुद्दीन की दरगाह की जियारत कर वहां से लौट रहे थे कि सड़क हादसे में उन की मौके पर ही मौत हो गई. भला अल्लाह ने उन्हें बंदगी का यह कैसा तोहफा दिया. इन के परिजन अपने नसीब को तो कोसते हैं लेकिन अल्लाह को क्रूर नहीं मानते. सीरिया, इराक, अफगानिस्तान में अल्लाह के बंदे मरते रहे पर उन को किसी ने पनाह की छत न दी. अगस्त 2003 की सुबह नासिक के महोत्सव में भगदड़ में 39 लोगों की मृत्यु हो गई. वहां सैकड़ों भक्तों का हूजूम मौजूद था. अपने लाड़ले को खोने वाले सचिन के मातापिता इस घटना के लिए प्रशासन को कोसते नजर आए.

लेकिन पुण्य स्नान से आखिर क्या मिला? इस सवाल पर मौन साध लिया. वैष्णों देवी के दर्शन हेतु जम्मूकश्मीर के कटरा पहुंचे डोडा जिले के बलयोर के रहने वाले कितने ही लोग भूस्खलन होने से देवी दरबार में ही जीवित दफन हो चुके होंगे. पूछा जा सकता है, सुख समृद्धि और सभी मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी दर्शन से उन्हें यह कैसा सुख मिला? एक बार आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में कृष्णा पुरकरणम उत्सव के तहत कृष्णा नदी में हजारों श्रद्धालुओं द्वारा पवित्र डुबकी लेने के दौरान मची भगदड़ में 5 लोगों की मौत हो गई और 11 लोग घायल हो गए. ऐसी घटनाएं और हादसे अनगिनत हैं जो यह साबित करते हैं कि अपने दरबार पहुंचे भक्तों की रक्षा करने वाला तथाकथित भगवान वास्तव में कितना लाचार है.

उस की ही आंखों के सामने उस के भक्त कभी डूब कर, कभी जल कर कभी दब कर, कुचल कर और कभी बंदूक की गोली से मर जाते हैं लेकिन वह मूक दर्शक बन यह मंजर देखता भर है. तर्क भक्तों के हमारे ऐसे सवालों पर भगवानभक्त बौखला जाते हैं. वे भगवान की तरफदारी करते हुए कहते हैं, ‘इस में भगवान क्या करेगा? जिस की मौत जब और जैसे लिखी है, वह आती है. इस के लिए व्यक्ति के इस जन्म और पूर्वजन्म के कर्म दोषी हैं.’ यहां पूछा जा सकता है कि सब की रक्षा करने वाला अगर अपने भक्तों की रक्षा नहीं कर सकता है और सब कर्मों का ही खेल है तो दर्दनाक हादसे होने पर सरकारी तंत्र की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल क्यों उठाया जाता है?

सतारा से ले कर मक्का, मदीना तक भयंकर हादसों की लंबी फेहरिस्त है. लेकिन फिर भी भगवान भक्त यह सवाल करने की गुस्ताखी नहीं करते कि सबकुछ जानने वाला भगवान या अल्लाह ऐसे हादसे की पूर्व सूचना अपने भक्तों को दे कर उन्हें आगाह क्यों नहीं करता? लाखोंलाख भक्तों के सुरक्षा इंतजाम में सरकार और प्रशासनतंत्र भले ही फेल हो जाए लेकिन ईश्वर तो हवा में हाथ लहरा कर यह काम चुटकी में कर सकता है तो फिर, करता क्यों नहीं? क्यों बरसता है भक्तों पर कहर भक्तों पर बरसने वाले ऐसे कहर के पीछे, दरअसल उन की अंधभक्ति और अंधश्रद्धा ही सब से बड़ा कारण है. हमें यह देख कर आश्चर्य होता है कि सतारा के मांढर देवी मंदिर में भयंकर हादसा होने के बाद जब मंदिर फिर से श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु खोला गया, तब उसी तादाद में लोगों का जनसैलाब उमड़ा.

ऐसी घटनाओं से सबक न लेने वाले श्रद्धालु किसी अनचाहे हादसे का शिकार होते हैं तो उस के पीछे उन की अंधभक्ति ही होती है. विभिन्न तीर्थस्थानों पर भगदड़ मचने से हुई तमाम जनहानि के पीछे वहां उमड़ा जनसैलाब होता है. दरअसल श्रद्धालु किसी प्रसिद्ध धार्मिक उत्सव के लिए लाखों की संख्या में स्थल पर पहुंचते हैं. बेकाबू भीड़ में पहले पहुंचने और पहले निकलने की जुगत में अफरातफरी मचती है. लोग अन्य को पैरोंतले रौंद कर आगे बढ़ने की कवायद करते नजर आते हैं. ऐसी ही कोशिशों में भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है और अप्रिय स्थिति से सामना होता है. भक्तों की शक्ति, आफत सरकार की मक्कामदीना तक हज की यात्रा हो या फिर कुंभ मेला, असीम शक्ति के चलते तनमनधन खर्च कर के भक्तों का बेहिसाब, बेकाबू रेला उमड़ता है. भीड़ की वजह से भगदड़ मचती है और फिर दर्दनाक हादसे होते हैं. भक्तों की अंधशक्ति का खमियाजा पूरा समाज भुगतता है.

हादसों के शिकार और उन के परिजन सरकारी व्यवस्था को पानी पीपी कर कोसते हैं. धार्मिक स्थलों में पहुंचने वालों की संख्या सूचना से कहीं अधिक होती है. लिहाजा, तमाम सरकारी बंदोबस्त ध्वस्त हो जाते हैं. दर्शन, कथित पुण्य और मो के नशे में लोग एकदूसरे को कुचल कर आगे बढ़ने से परहेज नहीं करते. ऐसे में किसी जानलेवा घटना के लिए सरकार नहीं, दर्शनार्थी दोषी होते हैं. ऐसे घायलों और मृतकों के परिजनों को सरकारी खजाने से पर्याप्त राहत राशि पहुंचाने के लिए अपनी करनी का फल भोगने वालों के लिए सरकारी धन मुहैया कराना सरकारी खजाने का दुरुपयोग है, जिसे रोका जाना चाहिए. तीर्थयात्रियों का स्वागत क्यों मक्कामदीना से हज कर के लौटे हज यात्रियों का जत्था हो या तीर्थयात्रियों का जत्था, स्टेशनों पर फूलमालाएं पहना कर इन का स्वागत करते आएदिन देखा जा सकता है. यहां तक कि सरकारी पैसों से कांवडि़यों पर आसमान से फूल बरसाए जाते हैं.

उन के लिए सरकारी आयोजन किए जाते हैं. समय से परे है कि आखिर इन का सम्मान किस लिहाज से किया जाता है. इन्होंने ऐसी कौन सी कुर्बानी या बलिदान दिया है जिस की वजह से राजनेता तक तीर्थयात्रियों, कांवड़ यात्रियों, हज यात्रियों का सम्मान करते देखे जाते हैं. कथित पुण्य और मोक्ष के लिए तीर्थों में जाने वाले लोगों का यह शिगूफा असल में समाज में अतिधार्मिक व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित होने का होता है. हज करने के लिए एक व्यक्ति तकरीबन एक लाख रुपए खर्च करता है. हज यात्रियों के हज का बंदोबस्त राज्य की हज कमेटी द्वारा किया जाता है. हज कमेटी को राज्य सरकार लाखों रुपए का अनुदान देती है जिसे हज यात्रियों की सुविधा देने के लिए खर्च किया जाता है. हज यात्रा से लौटने के बाद हाजी (पुरुष), हज्जन (महिला) समाज के लिए खास और पवित्र हो जाते हैं.

पूछा जा सकता है कि तीर्थयात्रियों, हज यात्रियों से देश का या समाज का भला किस तरह होता है. फिर इन का स्वागत या सम्मान किस लिहाज से हो? स्वागत या सम्मान की हकदार वह मां है जिस का बेटा देश की सरहद की रक्षा में खुद को न्योछावर कर देता है. सम्मान के हकदार वे वैज्ञानिक हैं जिन के प्रयोगों से देश की और समाज की उन्नति हो रही है. रक्षक रक्षा नहीं करता, क्यों? – भक्त कहते हैं सब की रक्षा ऊपर वाला (भगवान) करता है तब रक्षा करने वाले के दरबार में घायल और मृतकों के परिजन राहत और सुरक्षा के लिए सरकार, स्वयंसेवियों और जवानों की ओर मुंह क्यों ताकते हैं?

Crime Story: पति से प्यारा देवर

सौजन्यासत्यकथा

हेमलता उर्फ हेमा अपने रिश्ते के देवर योगेश के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. साथसाथ तैयारी करते उन्हें प्रेम हो गया. उन के प्रेम रोग में हेमलता का पति दिनेश वर्मा बलि का ऐसा बकरा बना कि…

राजस्थान की राजधानी जयपुर के थाना फुलेरा के गांव हिरनोदा में दिनेश वर्मा पत्नी हेमलता उर्फ
हेमा एवं 2 बच्चों के साथ रहता था. बच्चों में बेटी की उम्र 5 साल और बेटे की उम्र 3 साल थी. दिनेश की शादी करीब 7 साल पहले हुई थी. दिनेश पढ़ालिखा था, मगर सरकारी नौकरी नहीं लगी तो परिवार का गुजारा करने के लिए दूसरे काम करने लगा था. वह रोज सुबह काम पर जाता और शाम को घर लौटता था. हेमलता पढ़ीलिखी थी. वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करती थी. उस के पड़ोस में रहने वाला रिश्ते का देवर योगेश वर्मा भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था.

हेमलता और योगेश प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी साथ बैठ कर करते थे. प्रतियोगी परीक्षा होती तब भी दोनों साथ ही जाते थे. देवरभाभी का रिश्ता था. दोनों के बीच हंसी ठिठोली भी होती थी. गुरुवार, 4 मार्च, 2021 की बात है. रात करीब ढाई बजे हेमा के कमरे से उस के रोने की आवाज आने लगी. रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर मकान के दूसरे हिस्से में सो रही हेमा की सास, चाचा ससुर का परिवार और आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आधी रात को क्या हो गया जो हेमा रो रही है.
उन सभी ने बंद कमरे का दरवाजा खटखटाया, ‘‘दिनेश, दरवाजा खोलो. बहू क्यों रो रही है?’’

सुन कर हेमा ने रोते हुए कमरे की चिटकनी गिरा कर दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही जो मंजर लोगों ने देखा, वह बड़ा भयावह था. दिनेश बेड पर खून से लथपथ मृत हालत में पड़ा था. उस का गला कटा हुआ था. काफी खून बिखरा हुआ था. यह दृश्य देख कर दिनेश की मां रोने लगी. किसी तरह उन्हें चुप कराया गया.
हेमा ने कहा, ‘‘मैं सो रही थी. इसी दौरान इन्होंने खुद का गला काट कर खुदकुशी कर ली. मैं नींद से जागी तब यह दृश्य देख कर रोने लगी. हाय राम इन्होंने यह क्या कर लिया. अब मेरा और बच्चों का क्या होगा.’’
दिनेश की लाश के पास बेड पर खून से सना एक चाकू पड़ा था. शायद उसी से गला काट कर उस ने आत्महत्या की थी. उसी समय पुलिस थाना फुलेरा में फोन कर के घटना की सूचना दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी रणजीत सिंह पुलिस टीम के साथ हिरनोदा स्थित दिनेश वर्मा के घर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का मौकामुआयना किया. उन्हें दिनेश की मौत संदेहास्पद लगी. इसलिए उन्होंने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दी. सूचना पा कर दुदू के एडिशनल एसपी ज्ञान प्रकाश नवल, सीओ (सांभर) कीर्ति सिंह, सांभर के थानाप्रभारी हवा सिंह घटनास्थल पर आ गए. मौके पर एफएसएल टीम, एमओबी एवं डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

एफएसएल एवं एमओबी टीम ने साक्ष्य वगैरह उठाए. मृतक दिनेश का गला कटा हुआ था. उस के बिस्तर पर सलवटें वगैरह नहीं थीं. पुलिस अधिकारियों को पता था कि दिनेश अगर अपने हाथ से गला काटता तो चाकू का वार लगते ही वह छटपटाता. उठता या बैठता.गला काटने पर खून का फव्वारा बहता तो उस के हाथ खून से सने होते. जबकि उस के हाथ साफ थे. इस के अलावा यदि दिनेश स्वयं गला काटता तो वह इतना ज्यादा गला नहीं काट पाता. मृतक की बीवी हेमा ने पुलिस को बताया कि वह सो रही थी और उस के पति ने स्वयं गला काट कर खुदकुशी कर ली. वह नींद से जागी तब उसे यह पता चला. हेमा की बात पुलिस अधिकरियों के गले नहीं उतरी.

उपस्थित भीड़ में एक ऐसा युवक था, जो पुलिस अधिकारियों के ईर्दगिर्द मंडरा रहा था. वह पुलिस पर नजर रख रहा था. पुलिस ने उस के बारे में पूछा तो पता चला कि वह मृतक के रिश्ते का भाई योगेश है.
साइबर टीम को भी घटनास्थल पर बुलाया था. सभी ने अपना कार्य पूरा किया तो शव को फुलेरा पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस अधिकारियों को मृतक की बीवी की बातों पर यकीन नहीं हुआ. तब उसे पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पुलिस ने आसपास के लोगों से पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि पिछले एकडेढ़ साल से हेमलता उर्फ हेमा और पड़ोस में रहने वाले रिश्ते के देवर योगेश वर्मा के बीच नजदीकियां हैं.

बस, यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने योगेश वर्मा को भी उसी समय पूछताछ के लिए गिरफ्त में ले लिया. हेमलता उर्फ हेमा और यागेश वर्मा से पुलिस अधिकारियों ने मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की. पूछताछ में दोनों टूट गए. उन दोनों ने दिनेश वर्मा की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने मात्र 3 घंटे में ही दिनेश वर्मा हत्याकांड से परदा उठा दिया. जुर्म कबूल करते ही पुलिस ने हेमलता उर्फ हेमा और उस के प्रेमी देवर योगेश वर्मा को गिरफ्तार कर लिया.मैडिकल बोर्ड से दिनेश के शव का पोस्टमार्टम करा शव उस के परिजनों को सौंप दिया. हेमलता उर्फ हेमा और उस के प्रेमी योगेश वर्मा से की गई पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

राजस्थान की राजधानी जयपुर के गांव हिरनोदा के बलाइयों का मोहल्ला में रहने वाले दिनेश वर्मा की शादी करीब 7 साल पहले हेमलता उर्फ हेमा से हुई थी. बाद में दिनेश 2 बच्चों का पिता बना.
घर के खर्चे बढ़ गए लेकिन दिनेश की कहीं नौकरी न लगी तो वह दूसरे काम कर के परिवार का पालनपोषण करने लगा. हेमलता प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. यह बात एक साल पहले की है.
उस के पड़ोस में रहने वाला 26 वर्षीय योगेश वर्मा भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. योगेश उस का देवर लगता था. दोनों प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. इस दौरान एकदूसरे के संपर्क में आए.
दिनेश सुबह काम पर घर से चला जाता था. फिर वह शाम को ही घर वापस लौटता था. हेमा की सास अपने छोटे बेटे के पास सटे मकान में रहती थी. हेमा अपने दोनों बच्चों के साथ पूरे दिन घर में अकेली रहती थी.

योगेश अकसर दिनेश की गैर मौजूदगी में हेमलता के पास आ कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगा. दोनों सवालजवाब करते और पढ़ाई करते. थोड़े दिनों तक साथ रहतेरहते दोनों प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के साथ प्रेम परीक्षा की तैयारी में लग गए. योगेश वर्मा जब भी हेमलता के घर आता. वह हेमा को ही ताकता रहता था. एक दिन हेमा ने कहा, ‘‘योगेश, तुम ऐसे घूरघूर कर क्या देखते हो. मैं कोई आठवां अजूबा हूं?’’ सुन कर योगेश बोला, ‘‘भाभी आप इतनी खूबसूरत हैं. मगर देखो कहां ऐसे आदमी के पल्ले बंधी हैं, जो दिन में काम और रात में शराब पी कर अपने में ही मस्त रहता है. उसे आप की परवाह नहीं है.’’
‘‘यह किस्मत का खेल है, योगेश. इस में किसी का दोष नहीं है?’’

हेमा ने उदास स्वर में कहा. इस पर योगेश बोला, ‘‘किस्मत बनाना और बिगाड़ना खुद के हाथ में होता है. आप चाहो भाभी तो आप की और मेरी किस्मत संवर सकती है.’’ योगेश बोला. ‘‘वो भला कैसे?’’ वह चौंकते हुए बोली. ‘‘भाभी मैं आप से प्यार करता हूं. मुझे आप बहुत अच्छी लगती हैं. जब मैं आता हूं तो रूप की रानी को ही देखता रहता हूं.’’ योगेश ने कहा. ‘‘अच्छा, तो यह बात है. ऐसे में यह सब सोचना पाप है.’’ हेमलता ने समझाते हुए कहा.योगेश ने उसी वक्त एक और तीर चलाया, ‘‘आप को देख कर लगता नहीं कि आप 2 बच्चों की मां हैं.’’ योगेश ने कहा तो हेमा मुसकरा पड़ी. तभी योगेश ने कहा, ‘‘भाभी. आई लव यू?’’

कहने के साथ योगेश ने हेमा को बांहों में भर लिया. हेमा ने दिखावे के लिए नानुकूर की. मगर उस का मन भी योगेश की बांहों में झूलने का था. उस दिन मौका मिलने पर दोनों अपनी मर्यादाएं लांघ कर एकदूसरे में समा गए. एक बार अवैध संबंध कायम हुए तो यह खेल हर रोज खेला जाने लगा. बेचारा दिनेश दिन भर काम में खपता और उस की पत्नी गैर मर्द की बांहों में झूलती. काफी समय तक दोनों के अवैध संबंधों की भनक किसी को नहीं लगी. लेकिन जब दोनों ने सावधानी बरतनी छोड़ी तो उन के अवैध संबंधों की चर्चा घर के बाहर होने लगी. एक रोज जब हेमा और योगेश आपत्तिजनक स्थिति में थे तो हेमा की सास ने उन्हें देख लिया. तब योगेश वहां से भाग गया.

योगेश के जाने के बाद सास ने हेमा को खूब खरीखोटी सुनाई. सास ने कहा, ‘‘आज के बाद योगेश को घर में देख तो मैं दिनेश से कह दूंगी. फिर वह तुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा. तू योगेश से कह दे कि वह आइंदा घर नहीं आए.’’ हेमा सास की कड़वी बातें सुनती रही. उस की चोरी पकड़ी गई थी. वह कुछ बोलती तो बखेड़ा होता. एक दिन मां ने दिनेश से भी इशारों में कहा, ‘‘बेटा, तू काम करने चला जाता है. योगेश दिनभर बहू के पास पड़ा रहता है. कहता है दोनों प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं.
‘‘मुझे इन के लक्षण अच्छे नहीं लग रहे. योगेश का घर आना बंद करा और बहू पर नकेल कस. वरना वह हमें मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी.’’

मां की बात सुन कर दिनेश सब समझ गया. वह कोई दूध पीता बच्चा नहीं था. दिनेश ने पत्नी हेमा से कहा, ‘‘सुना है, योगेश दिन भर यहां पड़ा रहता है. उस को मैं आज के बाद घर में नहीं देखना चाहता. न ही तुम उस से फोन पर बात करोगी. प्रतियोगी परीक्षा कोई जरूरी नहीं.’’ सुन कर हेमा को बहुत बुरा लगा. मगर वह इतना ही बोली, ‘‘जैसी आप की मरजी.’’ थोड़े दिन तक हेमा व योगेश दूर रहे. हेमा ने फोन कर के योगेश को बता दिया था कि उन के अवैध संबंधों की पोल खुल गई है. इसलिए वह कुछ दिनों तक दूर ही रहे.

इस दौरान वह मौका मिलने पर फोन पर बात कर लेते थे. लेकिन ऐसा वह ज्यादा दिनों तक नहीं कर सके. दोनों मिलने के लिए तड़पने लगे तो एक दिन योगेश ने हेमा से कहा, ‘‘हेमा एक बार तो मिलो बहुत दिन हो गए हैं.’’ ‘‘मैं देखती हूं.’’ हेमा ने कहा. एक दिन सास ढाणी में किसी के घर गई तो हेमा ने फोन कर के योगेश को घर बुला लिया. योगेश और हेमा काफी दिन बाद मिले थे. इसलिए दोनों कमरे में बंद हो गए. मगर उन्हें डर था कि कोई आ जाएगा.

वासना की आग जल्दी से बुझा कर योगेश घर के बाहर निकला तो सामने से आते दिनेश को उस ने देख लिया. वह सिर पर पैर रख कर भाग खड़ा हुआ. दिनेश घर आया. उस ने हेमलता को आवाज दी. पति की आवाज सुन कर हेमलता अंदर तक कांप गई. उसे यह भान हो गया था कि दिनेश ने योगेश को घर से निकलते देख लिया है. वह थरथर कांपती हाजिर हुई. तब दिनेश बोला, ‘‘जब हम ने मना किया है तो योगेश घर किसलिए आया था.’’

‘‘वह एक सवाल पूछने आया था.’’ हेमा झूठ बोली. दिनेश ने हेमा के गाल पर तड़ाक से एक थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘तुझे मना किया है कि उस कमीने से कभी बात नहीं करना. फिर भी वह सवाल पूछने के बहाने से आया. आज आखिरी बार कह रहा हूं कि सुधर जा, नहीं तो…’’ दांत पीस कर दिनेश बोला तो हेमा डर गई. वह बोली, ‘‘दोबारा कभी गलती नहीं होगी. आज माफ कर दें.’’ दिनेश ने कहा, ‘‘ठीक है.’’
यह बात एक माह पहले की है. हेमा ने अगले दिन मौका मिलने पर योगेश को फोन कर के सारी बात बता दी. हेमा ने कहा, ‘‘योगेश, अगर तुम मुझे प्यार करते हो तो दिनेश को रास्ते से हटाना होगा. या फिर मुझे भूलना होगा.’’

सुन कर योगेश बोला, ‘‘मैं तुम्हें हरगिज नहीं भुला सकता. इसलिए दिनेश को ही रास्ते से हटाते हैं.’’
उस के बाद हेमलता और योगेश ने दिनेश की हत्या की साजिश रची. साजिश के तहत दिनेश की हत्या कर के उसे आत्महत्या का रूप देना था. एक महीने से दोनों मौके की ताक में थे. बुधवार, 3 मार्च, 2021 को योगेश बाजार से 2 चाकू खरीद लाया. उन में से एक तेज धारदार था और दूसरा सब्जी काटने वाला छोटा चाकू था. यह चाकू हेमलता के घर में छिपा दिए.

4 मार्च, 2021 की शाम को दिनेश वर्मा ने शराब पी. शराब का नशा हावी हुआ तो वह खाना खा कर कमरे में जा कर बिस्तर पर सो गया. हेमा ने फोन कर के योगेश को बता दिया कि दिनेश शराब पी कर सोया है. आज रात उस का काम तमाम करना है. आधी रात के बाद करीब 1 बजे योगेश छिपता हुआ दिनेश के घर आया. हेमा ने कमरे का दरवाजा खोला. दिनेश नशे में सो रहा था. योगेश ने हेमा से चाकू लिया और दबे पांव चल कर दिनेश के बैड के पास पहुंच गया.

एक पल की देर किए बगैर योगेश सोते हुए दिनेश की छाती पर चढ़ बैठा, दिनेश के दोनों हाथ योगेश ने अपने पैरों से दबा दिए. हेमलता अपने पति के पैरों पर चढ़ बैठी. दिनेश नींद से जागता उस से पहले ही योगेश ने तेजधार चाकू से उस का गला रेत दिया. दिनेश नींद में थोड़ा छटपटाया और मौत की नींद सो गया. फिर हेमा ने छोटा चाकू दिनेश के बहते खून में डुबोया और वहीं रख दिया. योगेश गला रेतने वाला चाकू ले कर हेमा से यह कह कर कि थोड़ी देर बाद रो कर बताना कि दिनेश ने खुदकुशी कर ली है.
इस के बाद रात करीब ढाई बजे हेमा ने रोना शुरू किया तो सास, चाचा ससुर एवं पड़ोस के लोग आए. इस के बाद हेमा ने सभी को नियोजित कहानी बताई. पुलिस को संदेह हुआ तो उन दोनों से पूछताछ की और हत्या का राज खोल दिया.

योगेश की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. पूछताछ पूरी होने पर हेमा और योगेश को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया. जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

फैसला-भाग 2 : राजनीति के चक्रव्यूह में रत्ना

अपनी मंजिल की ओर रत्ना का पहला कदम बढ़ चुका था. कारण राजनीति का एक महत्वपूर्ण पहलू खुद चल कर उस की झोली में आ गिरा. हुआ दरअसल यह कि बदुआ इलाके में एक दलित महिला के साथ अभद्र व्यवहार किए जाने की खबर सुर्खियों में बनी.

“दीदी, आप हमारी मदद कीजिए. दरअसल, शहर का गुंडा पप्पू भैया हमारे परिवार की बहू पर बुरी नीयत रखे है. कुछ कहें तो दादागीरी पर उतारू हो जाता है. प्रभावशाली है, राजनीति में सिक्का चलता है उस का. अब आप ही हमारी सहायता कर सकती हैं.”

यद्यपि, रत्ना का यह कदम राजनीति से प्रेरित नहीं था. केवल मानवता के नाते उस ने पीड़िता की सहायता के लिए पप्पू भैया को आड़े हाथों लिया.

शहर में रत्ना का इतना प्रभाव बन चुका था कि कोई भी राजनीतिक पार्टी उस से पंगा ले कर अपने लिए गड्ढा खोदना नहीं चाहती थी. सो, सभी सत्ताधारियों ने हाथ पीछे खींच लिए, जब सत्ता का आश्रय छिन जाए तो सत्ता की उंगलियों पर नाचने वाले कानून की क्या ताकत, जो पप्पू भैया को सहारा दे. परिणाम सीआरपीसी की धारा 154 के तहत एफआईआर दर्ज कर पप्पू भैया को हवालात का रास्ता दिखा दिया रत्ना ने.

रत्ना के कदमों को राजनीति में ठोस आधार देने के लिए यह घटना काफी थी. अब तो रत्ना पूरे सागर जिले की दीदी हो गई. लोग दिल से उस का सम्मान करते, उस की बात को ध्यान से सुनते. वह अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए मंचों का प्रयोग करती. जहां कहीं कोई आयोजन होता, वह वहां जा कर सभा के बीच अपनी बात रख उन से समर्थन मांगती, उन्हें भ्रष्टाचार के विरोध हेतु आगाह करती.

“प्यारे देशवासियो, आज राजनीति अवसरवादिता, गुटबंदी, झंडा बदलू प्रवृत्ति और नेताओं की व्यभिचारिता, स्वार्थ साधना, चरित्रगत मूल्यों की गिरावट, असामाजिक तत्त्वों के गठबंधन से पीड़ित है. इस का दुष्परिणाम केवल और केवल आम जनता को झेलना पड़ रहा है.

“अफसोस, ये पथभ्रष्ट जिन के मन में तनिक देशप्रेम नहीं, वे देश की बागडोर अपने हाथों में लिए बैठे हैं. भला देश कैसे कोई सही दिशा पाएगा?”

रत्ना कुशल वक्ता है, भाषा पर उस का पूरा अधिकार है, अपनी बात को श्रोताओं के बीच किस तरह रखना है, यह कला है उस में, उस पर उस के दिल की सचाई को भी कहीं न कहीं जनता देख और समझ पा रही थी. इसी का परिणाम है कि उसे शीघ्र ही जनता का भरपूर समर्थन मिलने लगा. उस की ख्याति दिल्ली के दरबार तक पहुंच गई, जिस से विपक्षी पार्टियों के आलाकमान की फटकार पड़ने लगी अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं को.

“ससुर के नातियो, क्या नशा कर के पड़े हो…अरे उ, कल की छोकरी आ कर चार दिन में जनता के सिर पर नाचने लगी, का इ बार पार्टी का भट्ठा बैठाने का इरादा है?” उस के प्रभुत्व को स्थापित होता देख दोनों विपक्षी पार्टियों (नैशनल पार्टी और देश हिताय पार्टी) में खलबली मच गई.

राजनीति का सब से सस्ता फंडा है, अगर कोई दल मजबूत लग रहा है तो अपनी पार्टी छोड़ कर उस से जा मिलो या उसे अपनी पार्टी में मिला लो. रत्ना आखिर एक स्त्री है. स्त्री की सत्ता स्वीकारना पुरुषों के लिए यों भी पाच्य नहीं, इसलिए दोनों पक्षों ने अपने खुफिया दलाल रत्ना के पास भेजने आरंभ कर दिए.

“उ बिटिया, हम तोहार के बचपन से जानत है, इ राजनीति औरतन के बस की बात नाही बिटिया… फिर भी तोहार मन है तो हम नैशनल पार्टी वालन से बात करेंगे तोहार अपनी पार्टी में सामिल कर लेय. जइसन घर में बिना मरद के औरत की कोई बखत नाही. वैसन बिना पार्टी के इकल्ले आदमी की कोई पूछपरख नाही. तू कहे तो हम बात करेंगे रामकिशनजी से… हमाय अच्छे मित्र हैं.”

उधर देश हिताय पार्टी से भी किसी न किसी रूप में लोग रत्ना के घर आने लगे.

“मैडमजी, आप जैसे होनहार नेताओं का हमारी पार्टी में स्वागत है, हमारी पार्टी महिलाओं को सम्मान देना जाती है, आप हमारी पार्टी में शामिल हो जाइए, आप को हमारी पार्टी में वही सम्मान मिलेगा, जो सुषमा स्वराज को अपनी पार्टी में मिला था. हम प्रतिभा की कदर करना जानते हैं.”

 

अनुज को अपने करीब लाएगी माया, अनुपमा उठाएगी ये कदम

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना शो अनुपमा में इन दिनों लगातार नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं,वहीं सीरियल की टीआरपी में कोई कमी ना आए उसके लिए मेकर्स जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं.

बीते दिन दिखाया गया कि अनुपमा में अनुज के कारण आंसू आ गया. इन दिनों माया की जाल में अनुज पूरी तरह से फंस गया है,  अनुज उसे मनाने की कोशिश करता है लेकिन वह मानती नहीं है . उस इस बात का बुरा लगता है कि माया अनुज के साथ पिकनिक पर जाती है.

 

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वहीं अनुपमा शाह हाउस जाती है और किंजल और समर को फटकार लगाती है कि तुमलोग हर छोटी-छोटी बात पर मुझपर डिपेंड मत हो. वहीं गुस्से में अनुपमा कहती है, कि आज तुमलोगों की वजह से अनु के साथ पिकनिक पर माया गई है. तुम लोग क्या चाहते हो कि मेरी लाइफ खराब हो जाए.

ऐसे में बा कहती है कि वह अनु की मां बनकर आई है या फिर अनुज की बीवी बनकर आई है, यह बात सुनकर अनुपमा को बड़ा झटका लगता है. अनुपमा भले ही शाह परिवार में होती है लेकिन उसके दिमाग में अनुज और छोटी अनु ही चल रहे होते हैं.

माया अनुज को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती है. आने वाले एपिसोड में पता चलेगा कि क्या होने वाला है.

चटनी -भाग 1 : रेखा को अचानक सुरुचि की याद क्यों आ गई?

सामान्य कदकाठी, सांवली सूरत और कत्थई आंखें यही खासीयत थी सुरुचि की. वैसे तो सुरुचि 16 साल की थी लेकिन समझदारी में वह किसी से कम न थी. वह जातिपांति की शिकार थी. खुद उस की अपनी जाति जाटव थी, शायद, इसलिए ही उसे और उस के परिवार को हमेशा ही भेदभाव का सामना करना पड़ता था.

तकरीबन 4 साल पहले सुरुचि उत्तर प्रदेश के बरखेड़ा गांव से अपने परिवार के साथ दिल्ली आई थी. उस ने अपनी आंखों के सामने देखा था कि मंदिर में प्रवेश करने को ले कर किस तरह से उस के परिवार के साथ भेदभाव किया गया था. यह भेदभाव ऊंची जाति के लोगों ने किया था. इस तरह के व्यवहार करने से उस के पिता को बहुत ठेस पहुंची जिस के बाद उन्होंने फैसला किया कि वे एक तो मंदिरों में नहीं जाएंगे और वे अब यहां रहेंगे भी नहीं. इस के बाद ही वे दिल्ली आ गए.

दिल्ली आने के बाद उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. सब से पहले तो उन्हें रहने के लिए झुग्गी चाहिए थी, जिसे ढूंढने में उन्हें कई दिन लग गए. इस के बाद नौकरी तलाशना सुरुचि के पिता की दूसरी सब से बड़ी मुश्किल थी. कुछ दिनों की तलाश के बाद उन्हें दिहाड़ी मजदूर की नौकरी मिल गई. इस तरह उन का गुजरबसर चलने लगा. लेकिन दिल्ली आने के 5 महीने बाद ही एक सडक़ दुर्घटना में सुरुचि के पिता की मौत हो गई.

पिता की मौत के बाद सुरुचि की मां घरों में झाडूपोंछे का काम करने लगी. लेकिन एक साल बाद ही कोरोना की चपेट में उन की भी मौत हो गई. जो भी पैसे उन के पास थे, वह सब उन के इलाज में खर्च हो गए. झुग्गीमालिक ने अब सुरुचि को घर से बाहर निकाल दिया. सुरुचि के पास अब न तो पैसा था न ही ठिकाना. इस दुनिया में वह एकदम अकेली हो गई थी.

सुरुचि जब सडक़ किनारे पड़ी बैंच पर सुबकसुबक कर रो रही थी, तभी रेखा शर्मा की नजर उस पर पड़ी. रेखा को अपने घर में नौकरानी की जरूरत थी, इसलिए वह उसे अपने घर ले आई. दोनों की बातचीत होने के बाद यह तय हुआ कि रेखा उसे घर में रहने की जगह और वेतन के रूप में 3 हजार रुपए देगी. सुरुचि की सहमति के बाद वह वहां रहने लगी.

रेखा उच्च जाति की थी और सुरुचि नीच जाति की. इसलिए सुरुचि का घर के मंदिर और रसोईघर में जाना मना था. सोने के लिए उसे स्टोररूम में जगह दी गई थी. वह वहीं चटाई बिछा कर सोती थी और रेखा के दिए पुराने कपड़े पहनती थी. रेखा अपनी बातों के जरिए उसे पलपल यह एहसास करवाती थी कि वह गरीब और छोटी जाति की है. रेखा की यह बात सुरुचि को जरा भी पसंद नहीं थी. पर वह बचपन से ही इसे सहती आई थी. जाति जोकि उस के नाम से जुड़ चुकी है वह कभी बदल नहीं सकती, यह बात वह अच्छी तरह समझ गई थी. लेकिन पढ़ाईलिखाई के जरिए वह अपना समय तो जरूर बदल सकती है, बस, यही सोच कर उस ने अपनी सारी कमाई पढ़ाई में लगा दी.

शांता ताई, जोकि रेखा के घर में खाना बनाने का काम करती थी, सुरुचि के बहुत करीब थी. सुरुचि उन से अपने सारे दुखदर्द बयां करती थी. सुरुचि चूंकि रसोईघर के अंदर जा नहीं सकती थी, इसलिए वह जो भी बात करती, रसोईघर से दूर हट कर ही करती.

रात के समय जब सुरुचि अपना खाना ले कर बैठी तो रेखा उस का खाना देख कर आगबबूला हो गई. ‘तुम से कितनी बार कहा है कि तुम हमारे जैसा खाना नहीं खा सकती. जाओ, जा कर वही अपनी चटनीरोटी खाओ. यही तुम जैसों का खाना है. तुम जैसे लोगों के लिए यही खाना बना है.’

क्या खाना भी जाति के हिसाब से बंटा होता है, क्या धर्म, जाति भूख से बढ़ क़र होती है? इन सवालों ने सुरुचि को परेशान कर दिया था. वह भी आलूमटर की सब्जी खाना चाहती थी, वह भी चाहती थी कि शाहीपनीर खाए. वह भी सर्दी में गाजर का हलवा खाना चाहती थी. लेकिन समाज ने तो खाने की भी जाति बांटी हुई है. यही सोचते हुए सुरुचि ने अपनी थाली में चटनी डाली और खाना खाया. यह चटनी उस की मां बनाया करती थी. उसे यह बहुत पसंद थी. इसलिए जिद कर के उस ने इसे बनाना सीख लिया था.

कुछ दिनों बाद रेखा रसोईघर में आई और बोली, ‘शांता ताई, आज चटनी भी बना लो.’ यह सुनते ही हौल में फर्श पर बैठ कर पढ़ाई करती सुरुचि को कुछ याद आया. रेखा के जाते ही सुरुचि रसोईघर के गेट से बोली, ‘मेरी मां एक चटनी बनाया करती थी, वह बहुत स्वादिष्ठ होती थी. क्या आप आज आप वही बनाओगी?.’ ‘मुझे तो वह चटनी बनानी नहीं आती,’ शांता ताई ने कहा.

लेखिका – प्रियंका यादव

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