वह देश जो हर समय मंदिरों, पुजारियों, मंत्रों, पूजापाठ आदि का गुणगान करता रहता है और मंत्रों व दंडवत प्रणामों को सौहार्द, शांति तथा सुख की कुंजी मानता है, वहां एक छोटे, पर मजेदार, मामले में अच्छी पोलपट्टी खुली. सडक़ों पर लूटपाट करने वाला एक शख्स अजय शर्मा, जो 17 वर्षों से भगोड़ा था, के 3 साथी तो घटना के बाद पकड़े गए पर अजय शर्मा नाम बदल कर हापुड़ के एक मंदिर में पुजारी की तरह रह रहा था.
मंदिर में रहते हुए भी अजय शर्मा का चालचरित्र सुधरा हो, इस का कोई प्रमाण नहीं क्योंकि उस के रहस्य को उस के भाई अरुण शर्मा द्वारा पुलिस को बताने पर अब उसे पकड़ा गया है. अजय शर्मा और अरुण शर्मा में गांव की संपत्ति को ले कर विवाद इतना गहरा था कि पुजारी का चोला और मंदिर का आंगन भी उक्त विवाद को न तो हल कर पाए न दोनों भाइयों को सुधार पाए.
पुजारी अपने को दूसरों से श्रेष्ठ कहते हैं, भगवान के एजेंट कहते हैं पर ‘गाइड’ फिल्म के देवानंद की तरह भी हो सकते हैं जिस ने अपनी प्रेमिका के इंश्योरैंस के पैसे जाली दस्तख्त कर हड़प लिए और इस वजह से जेल से निकल कर सीधे एक मंदिर का स्वामी बन गया. अजय शर्मा भी ऐसा ही था.
लगभग हर धर्म के पुजारी, पादरी, मुल्ला, ग्रंथी अपराधों में पकड़े जाते रहते हैं. ईसाई धर्म हर साल लाखों डौलर उन बच्चों को मुआवजा देता है जिन के साथ चर्च के पादरियों ने कुकर्म किया था. चर्चों की यह बीमारी बहुत अधिक सामने आने लगी है क्योंकि पश्चिमी देशों में धर्म की पोल खोलना आसान है.
हिंदू या मुसलिम देशों में धर्म के दुकानदारों के खिलाफ बोलने पर बोलने वाले का मुंह ही सी दिया जाता है. आमतौर पर तो इसे ईश्वर या खुदा की मरजी कह दिया जाता है पर अगर कोई न माने तो उसे डंडे से सबक सिखा दिया जाता है.
हापुड़ के गांव के मंदिर में एक अपराधी 17 साल तक छिपा रहा और उस के परिवार को पता था वरना भाई कैसे पुलिस को बताता. यह पुजारी न तो अपना चरित्र बदल पाया, न अपने भाई को सहबुद्धि दे पाया कि संपत्ति का मोह ठीक नहीं है. संपत्ति के विवाद में वह जेल चला गया है हालांकि अब उस पर अपराध साबित करना मुश्किल ही होगा क्योंकि अधिकांश गवाह मुकर जाएंगे. हां, इस दृष्टि से मंदिर, चर्च अच्छे हैं कि वे गुनाहगारों को पनाह देते हैं, जिन को वास्तव में जेल में होना चाहिए.