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साजिद से रिश्ते की खबर पर भड़की बिग बॉस 16 कंटेस्टेंट सौंदर्या शर्मा, कहा- पुलिस कारवाई करें

सौदर्यां शर्मा इन दिनों अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं. बिग बॉस 16 में सौदर्यां का रिश्ता गौतम विज के साथ बा हुआ था, लेकिन गौतम के जाने के बाद से सौदर्यां का नाम साजिद खान के साथ जुड़ने लगा था.

बता दें कि दोनों कि रिलेशन की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, हालांकि इस बात को कबूलने के लिए दोनों में से कोई भी तैयार नहीं है. हर जगह इस बात को फैलाई जा रही है कि सौंदर्या और साजिद एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं.

हालांकि एक्ट्रेस ने साजिद खान को डेट करने की खबर को गलत बताया है, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह परेशान करने वाली बात है, इस पर मुंबई पुलिस को एक्शन लेना चाहिए. यह बहुत ही ज्यादा परेशान करने वाली बात है.

बता दें कि बीते दिनों सौदर्या और साजिद की खबर आई थी जिसमें उन दोनों को डेट करने की बात बताई जा रही थी, सौदर्यां ने कहा कि मैं हमेशा उन्हें दोस्त बड़े भाई और एक गुरू के रूप में देखती आ रही हूं लेकिन पता नहीं क्यों लोग इस तरह कि बात कर रहे हैं.

बता दें कि साजिद खान ने अभी तक इस पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन ये साफ है कि सौदर्यां और साजिद का कोई रिलेशन नहीं है.

कनाडा की नागरिकता छोड़ना चाहते हैं अक्षय कुमार, कहा- भारत मेरा सब कुछ है

अक्षय कुमार की फिल्म सेल्फी आज रिलीज होने वाली है, इस फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म लोगों को खूब पसंद आने वाली है. इस फिल्म में अक्षय कुमार के साथ इमरा हाशमी भी नजर आने वाले हैं.

इन सबके बाद से अक्षय कुमार ने एक नया इंटरव्यू दिया है और बताया है कि भारत ही उनके लिए सबकुछ है, बता दें कि अक्षय कुमार अक्सर कानाडा कि नागरिकता को लेकर ट्रोल होते हैं लेकिन इस बार वह इस विषय पर खुलकर बात करते नजर आएं हैं.

 

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एक चैनल को इंटरव्यू के दौरान अक्षय कुमार ने बताया है कि उनके लिए भारत ही सबकुछ है, वह इस देश से काफी ज्यादा प्यार करते हैं. जो कुछ उन्होंने यहां से पाया है, वह सब भारत से ही पाया है, अगर उनको मिले इसे वापस करने का तो वह जरुर करेंगे.

मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे वापस इसे लौटाने का मौका मिला , एक समय मेरी फिल्में नहीं चल रही थी तो मैं अपने दोस्त से रिक्वेस्ट करके कानाडा गया , वहां जाकर मैंने काम करना शुरू कर दिया, लेकिन किस्मत से दोनों फिल्में हिट हो गई तो मेरे दोस्त ने कहा कि वापस इंडिया जाओ. वहां जाकर काम करों और मैं वापस आ गया.

अक्षय कुमार ने ये भी कहा कि वह भूल गए थे कि उनके पास कनाडा का पासपोर्ट भी है, लेकिन अब उन्होंने अपना पासपोर्ट वापस करने के लिए अनुमति दिया है.

बता दें कि फिल्म सेल्फी में वह एक सुपरस्टार का किरदार निभा रहे हैं, जिसमें उन्हें खूब पसंद किया जाएगा. साथ में पुलिस ऑफिसर का किरदार निभा रहे इमरान हाशमी भी शानदार एक्टिंग करते नजर आ रहे हैं.

 

समलैंगिक शादियां, कब होंगी कानूनी

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 13 दिसंबर को समलैंगिक और इंटररैशियल मैरिज को सुरक्षा देने वाले कानून पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. इस हस्ताक्षर के बाद 1996 का मैरिज एक्ट निरस्त हो गया जो एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को परिभाषित करता था.

हालांकि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ओबेर्गफेल बनाम होजेस के फैसले में देशभर में समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया था लेकिन जून में अदालत के डौब्स बनाम जैक्सन के फैसले ने संघीय स्तर पर गर्भपात के अधिकार को पलटते हुए अन्य अधिकारों के लिए संघीय सुरक्षा के बारे में चिंता जताई थी. एक तरफ जहां अमेरिकी संसद ने समलैंगिकों और अलगअलग नस्लों के बीच होने वाली शादियों की हिफाजत के लिए ऐतिहासिक विधेयक पास किया, वहीं इंडोनेशिया की संसद ने नए कानून के जरिए प्रीमैरिटल सैक्स और लिवइन रिलेशनशिप को आपराधिक करार दे दिया है.

इन सब के बीच भारत में समलैंगिक शादियों को मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को एक अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था. तब अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से 2 वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे. हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.

समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए एलजीबीटी समुदाय का कोर्ट में संघर्ष जारी है. बता दें कि देश की मोदी सरकार समलैंगिक विवाह के पक्ष में नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट में अपने हलफनामे में सरकार द्वारा तर्क दिया गया कि संसद ने देश में विवाह कानूनों को केवल एक पुरुष और एक महिला के मिलन को स्वीकार करने के लिए तैयार किया है. इस में किसी भी हस्तक्षेप से देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ तबाही मच जाएगी.

दुनियाभर में करीब 29 देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक विवाह को तमाम कानूनी दिक्कतों के बावजूद कोर्ट या कानून में बदलाव कर या फिर जनमत संग्रह कर. मई 2022 के गैलप पोल में हुए सर्वे के मुताबिक 71 फीसदी अमेरिकी समलैंगिक विवाह के समर्थन में थे, पर क्या यह बात भारत के संदर्भ में कही जा सकती है, जबकि यहां की सरकार ऐसे विवाहों तक के खिलाफ हो, सोचने वाली बात है.

निशाने पर आम आदमी

जानेमाने उद्योगपति गौतम अडानी की संपत्ति का आंकलन करना आम जनता के लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि यह संख्या इतनी बड़ी है कि आम भारतीय जो 2 डौलर यानी 160 रुपए प्रतिदिन में जीता है, इस रकम का अंदाजा ही नहीं लगा सकता. अडानी एंपायर की बैलेंस शीटें देश के कई राज्यों के वार्षिक लेखेजोखों से बड़ी हैं. अभी तो यही समझिए कि अमेरिका की एक शार्ट सैलिंग इन्वैस्ट कंपनी ने अपने शोध में जैसे ही बताया कि अडानी की संपत्ति सिर्फ भ्रम है, वह अकाउंट बुक्स की हेराफेरी पर टिकी है, दुनियाभर की इन्वैस्टमैंट कंपनियों ने अडानी के शेयरों और बौंडों से हाथ खींचना शुरू कर दिया.

अडानी ग्रुप में पैसा लगाने वालों में से बहुतों को इस बात का एहसास था कि अडानी ग्रुप में कहीं कुछ गलत है पर वे फिर भी मुनाफा कमा रहे थे, इसलिए लगातार निवेश कर रहे थे, पैसे लगा रहे थे. भारत सरकार अकसर नए कौन्ट्रैक्ट अडानी ग्रुप को मनमाने दामों पर भेंट कर रही थी. अडानी के हवाई जहाजों में ही 2014 में नरेंद्र मोदी ने देशभर में प्रचार किया था. निवेशकों को यह भरोसा भी था कि जैसे नरेंद्र मोदी ने बाबरी मसजिद को राममंदिर में बदल डाला, संसद भवन को अपनी मरजी का बनवा लिया, वैसे ही वे गौतम अडानी की कंपनियों में किए गए निवेश को नुकसान नहीं पहुंचने देंगे.

यह बिलकुल अजीब है कि आखिर में अडानी ग्रुप में निवेशकों का भरोसा फिर आ जाए और पता चले कि रिपोर्ट किसी खुन्नस में लिखी गई है. इस बारे में इतना समझना काफी है कि आमतौर पर इन्वैस्टमैंट कंपनियां किसी ऐसी रिपोर्ट पर इतनी जल्दी अपना निवेश नहीं बटोरतीं. अमेरिका की एक शोध एजेंसी हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट में अवश्य कुछ ऐसा है जिसे वे ज्यादा समझ सकते हैं जिन का अडानी की कंपनियों में निवेश है.

हिंडनबर्ग भी बिना कारण भारत के प्रधानमंत्री के निकट के उद्योगपति के खिलाफ रिपोर्ट यों ही प्रकाशित नहीं करेगी. अब तक विकीलीक्स, पनाया पेपर्स जैसी रिपोर्टों को गलत नहीं साबित किया जा सका है जबकि उन रिपोर्टों में कितने ही देशों के बहुत ही अमीर व प्रभावशाली लोग शामिल थे.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने जिन बातों का खुलासा किया है उन का अंदेशा बहुतों को बहुत समय से था पर अर्थजगत तो होता ही लौटरी जैसा है और कोई भी नहीं चाहता कि जो कागजी ढांचा झूठ और फरेब पर बना है, वह टूटे क्योंकि उस में बहुतों को फायदा है, सरकारों को चलाने वालों को भी.

फिर भी यह साबित करता है कि हर अमीर ने न तो केवल सूझबूझ से पैसा कमाया है, न ही कोई नई चीज जनता को दे कर. बहुत से अमीरों का पैसा हेराफेरी का होता है. उस का अंतिम और अगला शिकार वह आम आदमी होता है जो, गौतम अडानी या मुकेश अंबानी को तो छोडि़ए, नगरनिगम के पार्षद और पंचायत अध्यक्ष की पोल भी नहीं खोल सकता है. वह तो सबकुछ भगवान की मरजी ही मानता है. इसीलिए तो धर्म की दुकानें रातदिन चमकती हैं.

उद्धव ठाकरे की अग्नि परीक्षा

बाला साहब ठाकरे द्वारा बनाई गई शिवसेना आज संक्रमण काल से गुजर रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में रुचि रखने वाले देश भर के जानकारों के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि क्या शिवसेना को भारतीय जनता पार्टी एक “राजनीतिक चक्रव्यूह” के तहत खत्म कर रही है. हम बात कर रहे हैं शिवसेना कि जो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए बड़े भाई की भूमिका में हुआ करती थी, जब तलक बाला साहब ने शिवसेना का नेतृत्व किया उसके समक्ष भाजपा हमेशा बौनी रही.

मगर विगत विधानसभा चुनाव में जब उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ खड़े होकर सत्ता की बागडोर संभाल ली मुख्यमंत्री बन गए तो भारतीय जनता पार्टी माने आकाश से जमीन पर गिर गई और उसके बाद शुरू हुआ शिवसेना और उद्धव ठाकरे को खत्म करने का महा अभियान. जिसके तहत यह प्रचारित किया गया कि उद्धव ठाकरे बाला साहब के बताए रास्ते से भटक गई है कांग्रेस से हाथ से हाथ मिला कर के मानौ उद्धव ठाकरे दे बहुत बड़ा अपराध कर लिया हो, यहां यह भी दृष्ट्या है कि भाजपा यह चाहती थी कि मुख्यमंत्री तो हमारा होना चाहिए जिस पर उद्धव ठाकरे ने साफ पीछे हटने से इंकार मना कर दिया और राजनीति की नई बिसात बिछा दी जिससे भारतीय जनता पार्टी तिलमिला गई और केंद्र की ताकत के सहारे यात्रा शुरू हो गई कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना को खत्म कर दिया जाए.

आखिरकार आज परिस्थितियां ऐसी विपरीत हो गई है कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह दोनों ही उद्धव ठाकरे के हाथों से निकल गया है अब लाख टके का सवाल यह है कि आने वाले चुनावी महासमर में उद्धव ठाकरे क्या अपना अस्तित्व बचा पाएंगे या फिर राजनीति से हाशिए चले जाएंगे. ——————

उद्धव ठाकरे : अब संघर्ष का रास्ता _________

यह सारा देश देख रहा है कि किस तरह केंद्र सरकार के बुने गए चक्रव्यूह में आज उद्धव ठाकरे फंस गए हैं. अब उनकी अग्निपरीक्षा है कि वह जनता के बीच जाएं और उनका आशीर्वाद लेकर के एक बार फिर मुख्यमंत्री बन कर दिखाएं .

जिस तरह घटनाक्रम घटित हो गए हैं उससे स्पष्ट है कि उद्धव ठाकरे और उनकी शिवसेना का समय अच्छा नहीं चल रहा है और एक षड्यंत्र के तहत उद्धव ठाकरे का नाम मिटाने का प्रयास जारी है . इसी तारतम्य में शिवसेना के लिए चुनाव चिह्न पर निर्वाचन के फैसले के बाद संसद भवन में आबंटित कार्यालय पर भी एकनाथ शिंदे गुट का हो गया है. संसद भवन सचिवालय ने इस कार्यालय को शिंदे गुट को शिवसेना संचालित करने के लिए आबंटित कर दिया है. सदन में शिंदे के चेहरे राहुल शेवाले के पत्र के जवाब में सचिवालय ने यह कार्रवाई की है . अब शिंदे गुट को कार्यालय आवंटित करने का आदेश जारी कर कहा गया है कि संसद भवन का कमरा 128 शिवसेना संसदीय पार्टी को बतौर आबंटित किया जाता है.
सनद रहे कि निर्वाचन आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी है . और इस गुट को ही चुनाव चिह्न ‘तीर-धनुष’ भी आबंटित किया है इस मामले में लोकसभा सचिवालय ने स्पष्ट किया कि यह कक्ष शिवसेना के नाम पर आवंटित है और पार्टी इसका प्रयोग कर सकती है.

समझने वाली बात यह है कि शिवसेना की स्थापना बाला साहब ठाकरे ने की थी वह इसके सुप्रीमो थे इसके पश्चात उद्धव ठाकरे सुप्रीमो बने कोई भी राजनीतिक दल और सत्ता अलग-अलग चीजें हैं अगर किसी राजनीतिक दल के अधिकांश विधायक या सांसद बगावत कर दें या दल बदल कर ले तो स्थितियां क्या होंगी इसका बड़ा ही दिलचस्प उदाहरण शिवसेना उद्धव ठाकरे गुड और शिवसेना एकनाथ शिंदे को को लेकर समझा जा सकता है फिलहाल एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम, चुनाव चिह्न और महाराष्ट्र विधानसभा में स्थित पार्टी कार्यालय पर कब्जा मिल चुका है. एकनाथ शिंदे ने कहा था कि वह मुंबई स्थित शिवसेना भवन और उद्धव ठाकरे गुट की अन्य संपत्तियों पर दावा नहीं करेंगे.

शिंदे ने कहा कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न उन्हें योग्यता के आधार पर दिया गया है. बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा हमारी संपत्ति है हम दूसरों की संपत्ति पर निगाह नहीं रखते. शिंदे ने कहा कि करीब 76 फीसद निर्वाचित सदस्य हमें समर्थन दे रहे हैं.और हमारे पास नाम और चुनाव चिह्न भी हैं. महाराष्ट्र में जो परिस्थितियां निर्मित हुई हैं वह है जनादेश की आने वाले चुनाव में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन बाला साहब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए अधिकृत होगा .

व्रत-भाग 1: . क्या अंधविश्वास में उलझी वर्षा को अनिल निकाल पाया?

साल में 2 बार नवरात्रे आते हैं. उन दिनों में अनिल की शामत आ जाती. घर में खेती कर दी जाती और सब्जीतरकारी में प्याज का इस्तेमाल बंद हो जाता. वहीं, जरा सी ही कोई प्यार की बात की तो उसे माता रानी के कोप से डराया जाता. अनिल के दिल में यह अरमान ही रहा कि कभी उस की पत्नी उसे प्यार करने के लिए उत्साहित करे. उस ने हमेशा अनिल का तिरस्कार ही किया. अनिल कपड़े पहन कर दफ्तर जाने के लिए तैयार हो चुका था. दूसरे कमरे में उस की पत्नी वर्षा गीता का पाठ करने में मग्न थी. वह दिल ही दिल में खीझ रहा था कि उसे दफ्तर को देर हो रही है और वर्षा पाठ करने में लगी हुई है. सत्ता में नरेंद्र मोदी का फरमान लागू है, समय पर दफ्तर पहुंचने के कड़े आदेश हैं, किंतु वर्षा है कि उसे कुछ परवा ही नहीं. खाना बनने की प्रतीक्षा करूं तो देर हो जाएगी और अधिकारियों की झाड़ सुननी पड़ेगी, भूखा ही जाना होगा आज भी. उस ने एक्टिवा पर कपड़ा मारा और बाहर निकाल कर खड़ी कर दी.

वापस कमरे में आ कर बोला, ‘‘मैं आज भी भूखा ही दफ्तर चला जाऊं या कुछ खाने को मिलेगा?’’

वर्षा ने कोई उत्तर न दिया और पाठ करती रही. अनिल ने थोड़ी देर और प्रतीक्षा की, फिर बड़बड़ाता हुआ एक्टिवा उठा कर भूखा ही दफ्तर चला गया. अनिल के लिए यह नई बात नहीं थी. उस की पत्नी रोज ही सुबह नहाधो कर पूजा करने बैठ जाती और वह नाश्ते के लिए चिल्लाता रहता, किंतु उस पर कोई असर न होता. उस की शादी को 8 साल हो चुके थे, किंतु अभी तक उन के यहां कोई संतान नहीं हुई थी.

पहले वह अपने मातापिता के साथ रहता था. वर्षा सुबह उठ कर पूजापाठ में लग जाती और उस की मां उसे खाना बना कर दे दिया करती थी. कुछ समय बाद उसे सरकारी फ्लैट मिल गया और वह अपनी पत्नी को ले कर फ्लैट में चला आया था. यहां आ कर उसे नई समस्या का सामना करना पड़ रहा था. अनिल को अकसर रोज भूखे ही दफ्तर जाना पड़ता था क्योंकि वर्षा पूजापाठ में लगी रहती थी, खाना कौन बनाता? उस ने कई बार उस से कहा भी था, किंतु वह कब मानने वाली थी. वह तो अपना धर्मकर्म छोड़ने को बिलकुल तैयार न थी. अनिल का विचार था कि इंसान को भगवान की आराधना नहीं, अपनी रोजीरोटी की चिंता करनी चाहिए.

दुस्वपन: आखिर क्यों 30 साल बाद घर छोड़कर जाने लगी संविधा

मेरे प्राइवेट अंग में सफेद रंग की परत जमा हो जाती है, बदबू भी आती है, इस बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का इलाज बताएं?

सवाल
मैं 25 साल का नौजवान हूं. मेरे प्राइवेट अंग में सफेद रंग की परत जमा हो जाती है. बदबू भी आती है. पानी से धोने पर आराम मिलता है पर समस्या दोबारा हो जाती है. इस बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का इलाज बताएं?

ये भी पढ़ें- मैं ने अपने पति को अपने पुराने प्रेमी के बारे में पहले बताया था,पिछले कुछ समय से मेरे पति मुझ पर यकीन नहीं करते हैं, मैं क्या करूं?

जवाब
स्मेगमा कही जाने वाली सफेद सतह उतरी हुई चमड़ी, कोशिकाओं, स्किन औयल और नमी का मिश्रण है. यह औरत और मर्द दोनों के अंगों में होती है. अगर इसे बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाए तो इस में से बदबू आ जाती है या फिर यह इंफैक्शन की वजह बन सकती है.

इस से पीड़ित को शरीर के उन हिस्सों की नियमित सफाई करनी चाहिए जहां स्मेगमा की समस्या होती है. आप को इसे हर दिन पानी से साफ करने की सलाह दी जाती है.

 

पति जब बहक जाए

बहुत बार पति की ओछी हरकतों से पत्नी को जगहजगह शर्मिंदा होना पड़ता है. अकसर पतियों की नजरें हर महिला के शरीर पर होती हैं. मर्द अपने व्यवहार में जितनी शालीनता, मर्यादा बरतें उतनी ही उन की अपनी पत्नियों के साथ रिश्तों की खुशबू बनी रहती है. मंजुला पटेल अकसर बुला रहती है. शादी के एक साल में ही उस का यह हाल है.

हनीमून से ही वह मैंटली डिस्टर्ब होने लगी. उस के पति कभी राह चलती स्त्री की छाती घूरेंगे तो कभी नितंब. सो, इस जोड़े में विश्वास और स्नेह नहीं हो पाया. सीधीसादी मंजुला भी आक्रामक हो गई है. यही हाल एक और पत्नी जीतन महतो का भी है. हालांकि उस के पति यह सब चोर निगाहों से करते हैं पर साथ चलने वाली पत्नी से कोई कब तक कितनी नजर चुरा सकता है. कब तक वह अपने वजूद का तिरस्कार तथा दूसरी औरत की तौहीन बरदाश्त कर सकती है.

एक पुलिस अधिकारी की पत्नी कहती है, ‘‘मैं अपनी बेटी को 5 मिनट भी पति के भरोसे अकेला नहीं छोड़ सकती. यह तो अच्छा है जो वे 8 दिन में एक बार घर आते हैं, वरना थाने में ही रहते हैं.’’ अकसर मनचले पति की ये हरकतें पत्नी को ही नहीं, उस से जुड़े सभी व्यक्तियों को परेशान करती हैं. वे इस से बहुत बुरा अनुभव करते हैं. उन्हें असम्मानजनक और छवि तोड़ने वाली लगती हैं ये हरकतें. ‘लोग क्या सोचेंगे’ का वाजिब डर भी सताता है. समय रहते ऐसा पति अपने पर काबू न रखे तो यह मनोरोग उसे घेर कर त्रस्त कर देता है, कहीं का नहीं छोड़ता.

जब से गांवगांव में सरकार का ‘आशीर्वाद’ पाए नेताओं के साए में पलते गैंग बनने लगे हैं, तब से किशोर आयु में ही खून में दंगई घुसने लगी है. जो लोग हिजाब और बुर्के को ले कर मुसलिम लड़कियों को छेड़ने की हिम्मत कर सकते हैं, वे अपने समाज की लड़कियों को भी नहीं छोड़ते. यह आदत सी पड़ जाती है. बिगाड़ता है छवि मनचला पति कितना बड़ा ओहदेदार व पैसे वाला हो, प्रतिष्ठित भी हो तो भी उस की इज्जत और साख नहीं बन पाती.

गुडि़या कहती है, ‘‘मम्मी, प्लीज शाम को आप पापा को ले कर कहीं चली जाया करो वरना पापा मेरी सहेलियों को घूरने लगेंगे. फिर सहेलियां स्कूल में सब से कहती फिरेंगी. मेरी क्या इज्जत रहेगी.’’ उसी दिन गुडि़या की मम्मी ने इस समस्या के स्थायी समाधान की तैयारी शुरू कर दी. उसे खुशी हुई कि उस की बेटी ने अपनेआप उस के कहने से पहले ही यह बुराई भांप ली.

मनोज के रिश्ते योग्यता के बावजूद कम आ रहे हैं. लोग उस के पिता के मिजाज से उस घर में लड़की को ?ांकना नहीं चाहते. दीपा यादव ने कई सालों से कहीं आनाजाना छोड़ दिया है. वह चुपचाप, मायूस रहती है. पति की ये हरकतें उसे बहुत शर्मसार करती हैं. पहले तो वे महिलाओं को देख कर छिछोरी हरकतें किया करते थे, अब उपयुक्त बहाना मिलते ही कभी कुहनी से महिलाओं को छू लेंगे तो कभी बसमैट्रो में चिपक कर खड़े हो जाएंगे. कोई एतराज करेगा तो उलटा तमाशा खड़ा करने लगेंगे. दीपा को पति की यह चरित्रहीनता अभद्र और हिंसक व्यवहार महसूस होता है. सहना ठीक नहीं रूपल ने हनीमून में पति की ऐसी हरकतें रोक दीं. साफ ताकीद कर दी कि यह गैरजिम्मेदाराना व्यवहार वह कभी सहन नहीं करेगी.

उस के साथ रहना है तो जिम्मेदारीभरा व्यवहार सीखें वरना अभी ही अलग हो जाने में कोई बुराई नहीं है. दीपेश ने कुछ दिन संभल कर व्यवहार किया तो वह पुरानी आदत छूट गई. वह पहले के अपने जस्टिफाई करने के रवैए और तर्कों पर दुख अनुभव करता है. एक महिला कहती है, उन्हें इसी आदत के कारण पति पसंद नहीं आए. सुधारने की तमाम कोशिशें बेकार रहीं तो तलाक ही एकमात्र विकल्प बचा. सो, वे अकेले भी खुश हैं. ‘‘ऐसे पति के साथ से तो मरना अच्छा,’’ वे बेबाकी से कहती हैं. वीणा कुमारी कहती है उस ने तो शादी की बात चलने पर लड़के की ऐसी हरकत अपनी बहनों, भाभियों के साथ देखी तो भड़क गई.

वह लड़का इस आदत का इतना एडिक्ट था कि यह देख कर भी कि मुझे यह सब पसंद नहीं आ रहा है, फिर भी अपनेआप को रोक नहीं पा रहा था. मैं ने न कर दिया. मेरे घरवालों को यह मामूली कारण लगा, उन्होंने रिश्ता रखने का दबाव डाला पर मुझे लग रहा था मैं इस हरकत के न सुधरने पर कहीं उसे मार ही न डालूं. मैं ने घरवालों को पुलिस केस की धमकी दी. तब वे माने. सुप्रिया ने अपने पिता की ही क्लास ले ली. आखिर एक आवारा, बदचलन इधरउधर टापने वाले लड़के को जमाई बनाने का खयाल भी उन के दिमाग में कैसे आ गया.

मेघा ने अपने भाई से मन का यह दर्द कहा तो उस के भाई ने बहन की पीड़ा को समझ कर चुपचाप लड़के से कहा कि या वह सुधरे या रिश्ता तोड़े. लड़के ने मनोचिकित्सक से इलाज करवाया. वह आज अपने साले का शुक्रगुजार है. वह इसे प्रबल मनोरोग व गलत मानसिकता मानता है. यह बहुत परपीड़क और तनावदायी है. ब्यूटीफुल माइंड संस्थान के मनोचिकित्सक डा. राजीव शर्मा इस प्रवृत्ति पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहते हैं, ‘‘यदि कोई किशोर इस तरह की हरकत करता है तो उसे बायोलौजिकली नौर्मल माना जा सकता है पर सोशली यह भी ठीक नहीं माना जाता.

बढ़ती उम्र में यह हार्मोनल तथा विपरीत लिंग का आकर्षण है. इस के जरिए वे फिजिकल और इमोशनल नीड भी फुलफिल करते हैं. कभी सैक्स हार्मोन के ज्यादा स्राव से भी ऐसा हो सकता है. कुछ युवा अपनी खुशी व फैंटेसी में जीने के कारण भी इस आदत के शिकार हो जाते हैं. ‘‘हां, कोई पति ऐसा करता है तो यह औरत के लिए चिंता का विषय है. वह सोचती है उस में क्या कमी है या वह उसे क्या नहीं देती जो वह दूसरी औरत में खोज रहा है. पति की इस हरकत से उसे बहुत ठेस पहुंचती है तथा दुख होता है. ‘‘साइकैट्री में इसे पैराफीलिया कहते हैं. इसी में ये सब हरकतें आती हैं, जैसे वायरिज्म में वह महिला के अंग और कपड़े आदि देखता है.

एग्जीविशनिज्म में तो वह अपने प्राइवेट पार्ट तक दिखाने लग जाता है.’’ कुल मिला कर सैक्स एनर्जी है, उसे सही ड्राइव न कर पाने के कारण ऐसा होता है. क्लिंटन और कई सैलिब्रिटी हीरो आदि भी इस एनर्जी को ड्राइव ठीक न कर पाने के कारण बदनाम हुए. गलत है यह आदत कई पुरुषों से बात की, किसी ने भी इस तरह के मनचले पति को ठीक नहीं बताया. औटो वाहन चालक विनोद तो इसे बहुत बुरी आदत बताते हैं. कई महिलाओं के साथ काम करने वाले बेम कहते हैं, ‘‘इस आदत को तो कोई ठीक कह ही नहीं सकता.’’ एक युवक कहता है, ‘‘मैं तो ऐसी हरकतों वाले कई पुरुषों को पीट चुका हूं. एकदो को तो अंदर भी करवा चुका हूं.’’ लागी छूटे ना ‘आदत मरे मिटती है’ वाली बात ठीक नहीं. प्रयास करने पर हर स्थिति में सुधार संभव है.

मनोचिकित्सा काउंसलिंग इसे आसानी से छुड़ा सकती है. यह कानूनी, सामाजिक, नैतिक, भावनात्मक आदि हर दृष्टि से गलत है. हर मनचले पति को यही सम?ाने की जरूरत है. मयूर ने पत्नी से कहा उसे जो करना हो, कर ले, वह तो ऐसा ही रहेगा. उसे इस में कुछ भी गलत नहीं लगता. दरअसल जरा सा बड़ा होने के बाद उस का पति छुटपन में ही अपने जैसे लड़कों के साथ जमा हो कर चौराहे पर खड़ा हो कर आतीजाती लड़कियों को छेड़ने का काम करता था. पड़ोसी बुजुर्ग कभी तो टोकते थे तो कभी मजा लेते थे. अगर कोई लड़की जरा भी बनठन कर निकले तो वह सीटियां बजा कर परेशान करता था.

उस की पत्नी ने होली पर सब के बीच अपना यह दुख कहा तो मयूर महाशय अकड़ने लगे. फिर हर कोई उसे शक की दृष्टि से देखने लगा. वह सब के बीच सौरी फील कर के इस आदत से उबरने के लिए दृढ़ संकल्पित हो गया. सब के बीच उस ने इस आदत सुधार की घोषणा की. इस का तालियां बजा कर हिपहिप हुर्रे के साथ स्वागत किया गया तो मयूर ने कहा, ‘‘मैं खुद अब महसूस करता हूं कि मैं कितनी गलत और बेकार आदत का शिकार था.’’ कई बार ऐसी हरकत करने वालों को पता भी नहीं होता.

ऐसे में इस ओर ध्यान दिलाने में कोई बुराई नहीं है. रोमा कहती है, ऐसे 3-4 मनचले मर्दों को वह फटकार चुकी है. आप ठीक नहीं कर रहे हैं. इस मसले पर आवाज उठाना अच्छा है वरना इन बेजा हरकतों को और बढ़ावा मिलता है. कानूनी ऐक्शन लेने में तो स्थिति कहां से कहां रुख लेगी. मनोबल तोड़ते ही ऐसे लोग सम?ा जाते हैं. अवसादकारक जीवन ऐसे मनचले पति की पत्नियां बहुत अपमानित, लांछित अनुभव करती हैं. वे पति के मिजाज के कारण डिप्रैशन तथा अवसाद में जीती हैं. बुल्ली ने इस कारण 2 बार आत्महत्या करने की कोशिश की. रमा बेवजह उदास रहती है.

जीवन से खुशी गायब हो गई है. किसी से पहचान करते हुए डरती है, घर लाना तो बहुत दूर, पता नहीं कब किस के सामने पतिदेव नाक कटवा देंगे तथा प्रतिष्ठा दांव पर लगा देंगे. अकसर पत्नियां ‘कब हालात कैसे हो जाएं’ की स्थिति में जीती हैं, डरीसहमी, घबराई, लज्जित, पराजित और ऐसे ही कई भावों से घिरी. संभव है सुधार पति की इस हरकत और मनचलापन में सुधार संभव है. उन से इस बारे में खुल कर बात की जाए तथा इस का परिणाम बताया जाए. समाज में ऐसे बदनाम लोगों के उदाहरण और नजीरें भी दी जा सकती हैं. श्रीमान अपनी इस आदत को मर्दानगी की निशानी मानते हैं.

उन्हें लगता है कि कौन है जो रोक लेगा. एकदो बार दोस्तों की पत्नियों ने पटकनी दी तो रोते रह गए. आज दोदो पत्नियों से तलाक हो चुका है. कोई उन्हें पूछता नहीं. अपनी हरकतों का जिम्मा महिलाओं के व्यवहार पर डालने के कारण उन की थुक्का फजीहत भी खूब हुई. सामाजिक उपेक्षा तथा तिरस्कार भी ?ोलना पड़ा. अकसर ऐसे लोगों को कोई कुछ कहता नहीं, इसलिए भी यह आदत चलती रहती है. अकसर लोग इन आदतों के साथ ही ऐसे व्यक्ति को भी नजरअंदाज करते हैं. पुरुषप्रधान समाज की मानसिकता कह कर इसे जायज नहीं ठहराया जा सकता. यह स्त्रियों के प्रति दोयम दरजे का व्यवहार है. सामाजिक प्रोटोकौल का उल्लंघन है ही, कानूनन अपराध भी है.

यह मर्यादा, शालीनता के विरुद्ध भी है. मनचला पति हर रूप में हिकारत पाता है. उसे कोई अच्छा भाई, पिता, मामा, फूफा आदि जिस का जो भी रिश्ता है वह नहीं मानता. कार्यालय में ऐसे लोग सैक्सुअल हैरेसमैंट के अंतर्गत नौकरी से हाथ धो सकते हैं. निजी दफ्तर में तो छुट्टी यानी नौकरी छूटने में और भी कम समय लगेगा. व्यवहार में जितनी शालीनता, मर्यादा बरती जाए उतनी ही रिश्तों की खुशबू में बढ़ोतरी होती है. हम अपनेआप को गंभीर, परिपक्व, समझदार, मददगार तथा विश्वसनीय होने का सुख भी पाते हैं. मनचले पति की हरकतें तो उसे ही नहीं, उस से जुड़े हर व्यक्ति के तनाव का कारण बनती हैं. इस प्रवृत्ति से जल्दी से जल्दी मुक्ति पाना ही अच्छा है.

बच्चों में बहरापन और इलाज

लेखक- डा. संजय सचदेवा 

बच्चे के लिए शरीर के सभी अंगों के विकास की तरह सुनने की क्षमता का होना भी बहुत जरूरी होता है. किसी बच्चे में सुनने की अक्षमता यानी बहरापन एक छिपी हुई विकलांगता होती है. बच्चा जन्म से ले कर लगभग एक या दो वर्ष की उम्र तक तेजी से बढ़ता है. इस सैंसिटिव अवस्था में मातापिता को अपने बच्चे की वृद्धि और विकास का आकलन करना जरूरी होता है. बच्चे की वृद्धि और विकास में देरी को समय रहते पहचान कर सही उपाय कर लिया जाए तो शुरुआत से ही इस प्रक्रिया के बच्चों पर सकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं.

बाल मनोविज्ञान के अनुसार, बच्चे की वृद्धि और विकास से जुड़ी 4 अवस्थाएं होती हैं जिन के तहत मातापिता अपने बच्चे के शुरुआती दौर में विकास के इस मील के पत्थर की निगरानी कर सकते हैं. ये अवस्थाएं हैं- ग्रौस मोटर, फाइन मोटर, सामाजिक संचार और भाषा व सुनने का कौशल. यहां हम हरेक अवस्था पर चर्चा कर रहे हैं. पहली अवस्था ग्रौस मोटर है. इस में 4 महीने तक बच्चा अपने सिर को नियंत्रित करने लगता है. 8 से 10 महीने में वह बिना सहारे के बैठना सीखता है. 12 महीने तक बिना सहारे खड़ा होने लगता है. इस के अलावा, बच्चा 15 महीने में सीढि़यों पर रेंगना शुरू कर देता है.

2 साल में हाथों और घुटनों के बल सीढि़यों से ऊपर और नीचे आने की कोशिश करता है और 3 साल तक अपने दोनों पैरों से सीढि़यां उतरनेचढ़ने लगता है. फाइन मोटर की अवस्था में, 4 महीने हो जाने पर बच्चा अपने दोनों हाथों से किसी वस्तु को पकड़ने लगता है, जैसे- अकसर बच्चे अपनी दूध की बोतल को हाथ से पकड़ने की कोशिश करते हैं. 12 महीने में बच्चा एक वयस्क की तरह पेन या पैंसिल पकड़ना सीख जाता है. वहीं 18 महीने तक आतेआते पेंसिल या क्रेयान से कुछकुछ लिखने लगता है और मातापिता के गाइड करने पर वह 4 ब्लौक्स या क्यूब्स से एक बुर्ज बनाने जैसी मजेदार गतिविधियां करता है. जन्म से 3 महीने की अवस्था.

– तेज आवाजों पर रिऐक्ट करना.

– जानीपहचानी आवाजें सुनने पर शांत हो जाना.

-खिलखिलाने पर तरहतरह की आवाजें निकालना. 3 से 6 महीने की अवस्था.

– किसी की आवाज सुन कर आंखें और सिर को इधरउधर घुमाना.

.-कोई गाना सुन कर उत्साह से हाथपैर हिला कर हलचल करना. 9 से 12 महीने की अवस्था.

-दूसरों के कुछ बोलने की नकल करना.

-सरल शब्द, जैसे बौल, मम्मी, डैडी को समझाना

– सिर को विनम्र ध्वनियों की ओर घुमाना.  पहला शब्द निकालना. 1 से 1.5 वर्ष की अवस्था.

-लोगों की ओर व खिलौनों पर शरीर के अंगों की ओर इशारा कर के बताना.

– लगातार नए शब्दों का भंडार बढ़ते जाना जो शुरू में अस्पष्ट हो सकते हैं. 1.5 से 2 वर्ष की अवस्था द्य छोटे वाक्यों का प्रयोग करना सीखना जिन में दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़ने की कोशिश की जाती है, जैसे और खाना. 2 से 3 वर्ष की अवस्था

– किसी अर्थ के बीच फर्क को समना, जैसे ऊपरनीचे. 3 से 4 वर्ष की अवस्था

– अलगअलग रंगों और आकृतियों को समना.

– क्या, कौन और कहां जैसे सरल प्रश्नों के उत्तर देना. बच्चे के लिए शरीर के सभी अंगों के विकास की तरह सुनने की क्षमता का होना भी बहुत जरूरी होता है. किसी बच्चे में सुनने की अक्षमता/बहरापन एक छिपी हुई विकलांगता होती है.

बहरापन या कम सुनाई देने के ज्यादातर मामलों से जुड़े कोई बाहरी लक्षण नहीं होते हैं. जो बच्चे इस विकार से ग्रस्त होते हैं उन में अपने आसपास के माहौल में सामाजिक संकेतों से जुड़े दृश्य और अन्य सैंसरी विशेषताओं का इस्तेमाल करने की एक अनूठी क्षमता शामिल होती है, जिस से देखभाल करने वालों के लिए बहरापन को अनुभव करना मुश्किल हो जाता है.

कई बार मातापिता का इस बात से इनकार करने पर ऐसी स्थिति और भी बदतर हो जाती है कि उन का बच्चा बहरेपन के विकार से ग्रस्त है. वे एक ही सामान्य सा प्रश्न करते हैं कि ‘मेरे बच्चे में बहरापन क्यों है?’ इस रवैए के चलते अगर हम बहरापन या हियरिंगलौस को पहचानने में देरी करते हैं तो ऐसे बच्चों में भाषा का विकास, शब्दों को समझने और शब्द रचना सामान्य नहीं हो पाएगी.

6 महीने की उम्र से पहले की अवस्था को बहरेपन की पहचान और उपचार के लिए सही माना जाता है. ऐसे में यही वजह है कि नवजात शिशु को शीघ्र जांच की जरूरत पड़ती है. ऐसा करने के लिए एक जांच पर भरोसा करने के बजाय सब से बेहतर अभ्यास है टैस्ट बैटरी अप्रोच रखना.

मैडिकल के क्षेत्र में बहरेपन की शुरुआती जांच के लिए सामान्य रूप से 2 परीक्षण उपयोग में लाए जाते हैं, औटो एकौस्टिक एमिशन और औडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पौंस. बच्चों को कम सुनाई देने की समस्या के लिए विशेषज्ञ हियरिंग एड/कान की मशीन के इस्तेमाल की सलाह दे सकते हैं जोकि ऐसा यंत्र है जिस से सुनने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है.

जब बच्चा छोटा होता है तब भी इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस से बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचता. इस का उपयोग कर सुनने की क्षमता को बढ़ाना अधिक सुरक्षित है. हियरिंग एड हलके बहरेपन में काफी लाभ देते हैं. गंभीर बहरेपन, जोकि खराब स्पीच धारण या भाषण को न समझने के साथ होता है, में केवल कौक्लियर इम्प्लांट्स ज्यादा लाभकारी हो सकता है जिसे डाक्टर सर्जरी के जरिए कान में फिट कर देते हैं.

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