देश में हर साल भक्तों की टोली तीर्थ भ्रमण करती है. ऐसे मौकों पर हादसे भी हो जाते हैं जिन में कई भक्त लापरवाही से मौत के मुंह में समा जाते हैं. अगर भगवान ही इन भक्तों की रक्षा नहीं कर पाते तो तीर्थ पर जाने का क्या मतलब? क्या भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं? आएदिन होने वाले धार्मिक उत्सवों और आयोजनों के दौरान घटने वाले दर्दनाक हादसे देखने के बाद इस तथ्य में सच्चाई कहीं नजर नहीं आती. कोरोनाकाल में जहां लोगों से सरकार जोर दे कर कह रही थी कि भीड़ न लगाएं, उस दौरान तबलीगी जमात और कुंभ मेले जैसे उदाहरण होना दिखाता है कि धर्म के मामले में लोग कितने मूर्ख बने रहे और खुद के साथ करोड़ों लोगों की जान को जोखिम में डालते दिखे.

यहां तक कि जिन नेताओं को इन लोगों को सम?ाने और सख्त नियम लागू करने की जरूरत थी वे खुद अपनी चुनावी रैलियों में भारी भीड़ इकट्ठी करते दिखे. इस का परिणाम यह हुआ कि लाखों परिवारों ने अपने करीबियों को खो दिया. इन बेवकूफों के चलते वे असमय मौत के मुंह में समा गए. अभी 13 अगस्त, 2022 की ही तो घटना है. राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम मंदिर में अचानक भगदड़ मचने से 3 से अधिक औरतें मारी गईं और कई घायल हो गए. 2008 में जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में बने चामुंडा देवी के मंदिर में 216 जानें गईं. संतों और देवी के भक्त दरबार में ही मौत के मुंह में समा गए और संत व देवी बुत बने चुपचाप यह मंजर देखते रहे. जली दबी, कुचली लाशें कंपकंपी पैदा करने वाली थीं. महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों में चीत्कार और हाहाकार मच गया था. सर्वशक्तिमान सम?ो जाने वाले भगवानों ने अपने भक्तों को मौत के मुंह में जाने से नहीं बचाया.

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