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Yrkkh : अबीर को पाने के लिए एक-दूसरे से लड़ेंगे अक्षरा और अभिमन्यु

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए- नए ट्विस्ट आ रहे हैं, फैंस अभि और अक्षरा को एक साथ देखना चाहते हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है. आए दिन कुछ न कुछ ट्विस्ट आ जा रहा है.

इन दिनों अभि और अक्षरा के बीच में काफी गंभीर लड़ाई चल रही है ,दोनों अबीर को पाने के लिए कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं. इसी बीच दोनों के बीच लड़ाई होती नजर आई. बीते एपिसोड में आपने देखा था कि अभिनव पैसा कमाने के चक्कर में अबीर पर ध्यान नहीं दे पा रहा है.जिस वजह से अक्षरा काफी परेशान हो जाती है. दूसरी तरफ अभिममन्यु से रूही और आरोही भी परेशान हो जाते हैं. अभि एकदम से बीच ें फंसा हुआ है.

 

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अभि पहले जितना रूही और आरोही पर प्यार नहीं दे पा रहा है इसलिए वह दोनों अभि से नाराज है. आने वाले एपिसोड में नए ड्रामे देखने को मिलने वाले हैं. बीते एपिसोड में मंजरी और आरोही के बीच बहस दिखाई गई थी. जिस वजह से आरोही घर छोड़ने की बात कह रही थी. हालांकि ऐसा होगा नहीं.

अभि आरोही और रूही के पीछे आ जाएगा और उन दोनों को घर से बाहर नहीं जाने देगा, वह अपनी मां से भी कहेगा कि वह अबीर के लिए रूही को बिल्कुल भी नहीं खो सकता है.

समर स्पेशल : जब भेजें बच्चे को डे केयर

कुछ दिन पहले नवी मुंबई के एक क्रेच में 10 महीने की एक बच्ची को पीटने और पटकने की दिल दहलाने वाली घटना सामने आई थी. जब पुलिस एवं बच्ची के अभिभावकों ने क्रेच के सीसी टीवी कैमरे में फुटेज देखीं तो वे हैरान रह गए. फुटेज में डे केयर सैंटर की आया बच्ची की पिटाई कर रही थी. उसे लातें और थप्पड़ मार रही थी. वैसे यह पहली घटना नहीं है जब क्रेच में बच्चों के साथ ऐसा किया गया हो. इस से पहले भी दिल्ली में पुलिस ने क्रेच चलाने वाले करीब 70 साल के एक शख्स को गिरफ्तार किया था, जिस पर आरोप था कि वह क्रेच में 5 साल की बच्ची के साथ छेड़छाड़ करता था.

आए दिन इस तरह की घटनाएं घटती हैं, जिन में क्रेच में बच्चों के साथ शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है.

दरअसल, आज महिलाएं सासससुर के साथ रहना पसंद नहीं करतीं और न ही अपने कैरियर के साथ किसी तरह का समझौता करती हैं. उन्हें लगता है क्रेच तो हैं ही, जहां उन के बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं. वहां उन के खानेपीने से ले कर खेलने, आराम करने और ऐक्टिविटीज सीखने तक का पूरा इंतजाम होता है. वे सुबह औफिस जाते समय बच्चे को क्रेच में छोड़ देती हैं और शाम को घर लौटते समय साथ ले आती हैं. अगर किसी दिन वे लेट हो जाती हैं, तो क्रेच संचालक को फोन कर के बता देती हैं.

जब बच्चे को घर ले कर आती हैं तब उस के साथ समय बिताने के बजाय अन्य कामों में व्यस्त हो जाती हैं, सिर्फ संडे को ही बच्चे के साथ समय बिताती हैं.

मगर अपने बच्चे को पूरी तरह से डे केयर के हवाले छोड़ना सही नहीं है. ऐसा करने से आप के और बच्चे के बीच बौंडिंग नहीं बन पाती है. वह आप से अपनी बातें शेयर नहीं कर पाता, उदास रहने लगता है. कई बार तो बच्चा अपने साथ हो रहे शोषण को समझ ही नहीं पाता कि उस के साथ क्या हो रहा है.

क्रेच में बच्चे का अच्छी तरह ध्यान रखा जाता है, वह वहां नईनई चीजें भी सीखता है, लेकिन इस के बावजूद हर दिन बच्चे की मौनिटरिंग करें कि क्रेच में उसे किस तरह से रखा जाता है, उसे वहां कोई परेशानी तो नहीं होती, क्योंकि बच्चे कुछ कहते नहीं हैं, बस रोते रहते हैं और मातापिता को लगता है कि वे वहां जाना नहीं चाहते, इसलिए रो रहे हैं. यह आप की जिम्मेदारी है  कि आप जानें कि आखिर बच्चा वहां क्यों नहीं जाना चाहता.

हर दिन करें ये काम

– औफिस से घर आने के बाद आप कितनी भी क्यों न थक गई हों, अपने बच्चे के साथ समय जरूर बिताएं. उस से बातें करें कि आज क्रेच में क्या किया, क्या खाया, क्या सीखा? वहां मजा आता है या नहीं? अगर बच्चा कुछ अजीब सा जवाब दे तो उसे हलके में न लें, बल्कि यह जानने की कोशिश करें कि बच्चा ऐसा क्यों कह रहा है.

– बच्चा जब क्रेच से वापस आए तो जरूर चैक करें कि उस के शरीर पर कोई निशान तो नहीं है. अगर है तो बच्चे से पूछें कि निशान कैसे पड़ा, साथ ही यह भी देखें कि उस का नैपी बदला गया है या नहीं. आप ने लंच में उसे जो खाने के लिए दिया था क्या उस ने वह खाया है या नहीं.

जब करें क्रेच का चयन

– बिजली व पानी की कैसी व्यवस्था है, बिस्तर साफ है या नहीं, बच्चे के खेलने के लिए किस तरह के खिलौने हैं, यह जरूर देखें.

– क्रेच हमेशा हवादार, खुला और रोशनी वाला होना चाहिए.

– यह भी देखें कि क्रेच में जो बच्चे का ध्यान रखती है वह कैसी है, बच्चों के प्रति उस का व्यवहार कैसा है.

– वहां आने वाले बच्चों के मातापिता से बात करें कि क्रेच कैसा है, वे संतुष्ट हैं कि नहीं, वे अपने बच्चे को कब से वहां भेज रहे हैं आदि.

– सस्ते व घर के पास के चक्कर में अपने बच्चे को किसी भी क्रेच में न रखें, क्योंकि वहां आप के बच्चे को रहना है, इसलिए कोशिश करें क्रेच साफसुथरा हो.

कोलैस्ट्रौल पर रखें नजर

उच्च कोलैस्ट्रौल ऐसी स्थिति है जहां रक्त में कोलैस्ट्रौल का स्तर सामान्य सीमा से अधिक हो जाता है. कोलैस्ट्रौल एक वसा जैसा पदार्थ है जो शरीर की हर कोशिका में पाया जाता है. यह हार्मोन, विटामिन डी और भोजन को पचाने में मदद करने वाले पदार्थों के उत्पादन के लिए आवश्यक है. हालांकि जब रक्त में कोलैस्ट्रौल का स्तर बहुत अधिक हो जाता है तो इस से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

कोलैस्ट्रौल को रक्त में 2 प्रकार के लिपोप्रोटीन द्वारा ले जाया जाता है, कम डैंसिटी वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) और उच्च डैंसिटी वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल). एलडीएल कोलैस्ट्रौल को अकसर खराब कोलैस्ट्रौल कहा जाता है क्योंकि यह धमनियों में प्लाक का निर्माण कर सकता है जिस से हृदय रोग, स्ट्रोक और अन्य हृदय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. दूसरी ओर एचडीएल कोलैस्ट्रौल को अच्छा कोलैस्ट्रौल माना जाता है क्योंकि यह रक्तप्रवाह से एलडीएल को हटाने में मदद करता है.

मानव शरीर अधिकांश कोलैस्ट्रौल का उत्पादन करता है जिस की उसे आवश्यकता होती है. हालांकि हम अपने द्वारा खाए जाने वाले भोजन से भी कोलैस्ट्रौल प्राप्त करते हैं, विशेष रूप से मांस, अंडे और डेयरी जैसे पशु उत्पादों से. ट्रांस वसा वाला आहार रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को बढ़ा सकता है.
उच्च कोलैस्ट्रौल को अकसर साइलैंट किलर के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण पैदा नहीं करता. उच्च कोलैस्ट्रौल जानने का एकमात्र तरीका है कि आप रक्त परीक्षण करवाएं. 20 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति को हर 5 साल में अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की जांच करवानी चाहिए.

अमेरिकन कालेज औफ कार्डियोलौजी (जेएसीसी) के एक जर्नल के अनुसार, कोलैस्ट्रौल के लिए स्वीकार्य सीमाएं निम्न हैं :
टोटल कोलैस्ट्रौल : 200 से कम (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर).
एचडीएल (अच्छा) कोलैस्ट्रौल : 40 से अधिक (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर).
एलडीएल (बुरा नहीं) कोलैस्ट्रौल:60 से कम (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर)
ट्राइग्लिसराइड : 150 से कम (मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर).

जोखिम कारक
ऐसे कई जोखिम कारक हैं जो उच्च कोलैस्ट्रौल में योगदान कर सकते हैं. इन में उच्च कोलैस्ट्रौल का पारिवारिक इतिहास, सैचुरेटेड और ट्रांस वसा में उच्च आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, मोटापा, धूम्रपान और मधुमेह व हाइपोथायरायडिज्म जैसी कुछ चिकित्सीय स्थितियां शामिल हैं.
नतीजे
उच्च कोलैस्ट्रौल एक सामान्य व गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है जो दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है. उच्च कोलैस्ट्रौल को गंभीरता से लेना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस से हृदय रोग और स्ट्रोक हो सकता है.उच्च कोलैस्ट्रौल के परिणाम गंभीर हो सकते हैं. एलडीएल कोलैस्ट्रौल के उच्च स्तर से धमनियों की दीवारों में प्लाक का निर्माण हो सकता है जिस से वे संकरे और कठोर हो सकते हैं. इस स्थिति को एथेरोस्क्लेरोसिस के रूप में जाना जाता है और इस से दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

कैसे रखें कंट्रोल
जीवनशैली में बदलाव आप के उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने में मदद कर सकता है. इस में स्वस्थ आहार अपनाना, नियमित व्यायाम करना, यदि आवश्यक हो तो वजन कम करना, धूम्रपान छोड़ना और शराब का सेवन सीमित करना शामिल हैं.

फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और प्रोटीन से भरपूर आहार रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है. नियमित व्यायाम भी एचडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को बढ़ाने व एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है.

जीवनशैली में बदलाव के अलावा कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने के लिए दवाओं का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. उच्च कोलैस्ट्रौल के लिए सब से अधिक निर्धारित दवाएं स्टैटिन हैं. स्टैटिन कोलैस्ट्रौल के उत्पादन को अवरुद्ध कर के काम करती हैं जो रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम कर सकते हैं.
धूम्रपान छोड़ना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि धूम्रपान धमनियों की दीवारों को नुकसान पहुंचा सकता है. शराब के सेवन को सीमित करने की भी सलाह दी जाती है क्योंकि शराब रक्त में ट्राइग्लिसराइड के स्तर को बढ़ा सकती है, जो उच्च कोलैस्ट्रौल में योगदान कर सकती है.

यहां कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थों के उदाहरण दिए गए हैं जो कोलैस्ट्रौल के स्तर को प्रतिबंधित करने में मदद कर सकते हैं-
फल और सब्जियां : फल और सब्जियां फाइबर से भरपूर होती हैं जो एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकती हैं. इन में सेब, नाशपाती, जामुन, खट्टे फल, ब्रोकली, गाजर, शकरकंद और पत्तेदार साग शामिल हैं.
साबुत अनाज : साबुत अनाज फाइबर के एक अच्छे स्रोत हैं और एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं. इन में ओट्स, ब्राउन राइस, होल व्हीट ब्रैड और होल व्हीट पास्ता शामिल हैं.
मेवे और बीज : मेवे और बीज स्वस्थ वसा और फाइबर का अच्छा स्रोत हैं. इन में बादाम, अखरोट, पिस्ता, चिया के बीज और अलसी शामिल हैं.
प्लांट बेस्ड औयल्स : प्लांट बेस्ड औयल्स, जैसे औलिव औयल, कैनोला औयल और एवोकाडो औयल स्वस्थ वसा के अच्छे स्रोत हैं और ये कोलैस्ट्रौल के स्तर को सुधारने में मदद कर सकते हैं.
सोया : सोया उत्पाद, जैसे टोफू और एडामेम में आइसोफ्लेवोन्स नामक यौगिक होते हैं जो एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं.
मछली : सैल्मन, ट्यूना और मैकेरल जैसी वसायुक्त मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड की अच्छी स्रोत हैं जो ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने और समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकती हैं.
यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि भोजन की मात्रा और खाना पकाने के तरीके भी कोलैस्ट्रौल के स्तर को मैनेज करने में भूमिका निभाते हैं. उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने के लिए आप कई कदम उठा सकते हैं. पहला कदम यह है कि आप अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की नियमित जांच करवाएं. यदि आप के कोलैस्ट्रौल का स्तर अधिक है तो आप का डाक्टर आप के कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद करने के लिए जीवनशैली में बदलाव और दवा की सलाह दे सकता है.

स्वस्थ आहार अपनाना उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और प्रोटीन से भरपूर आहार रक्त में एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है. सैचुरेटेड और ट्रांस वसा वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए, क्योंकि वे एलडीएल कोलैस्ट्रौल के स्तर को बढ़ा सकते हैं.

आप का डाक्टर आप के उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने में मदद करने के लिए जीवनशैली में बदलाव और दवाओं के संयोजन की सलाह दे सकता है. यदि आप का उच्च कोलैस्ट्रौल का निदान किया गया है तो नियमित रूप से अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की निगरानी करना भी महत्त्वपूर्ण है.

उच्च कोलैस्ट्रौल को मैनेज करने के अलावा, हृदय रोग और स्ट्रोक के लिए अन्य जोखिम कारकों को मैनेज करना भी महत्त्वपूर्ण है. इन में ब्लडप्रैशर, मधुमेह, मोटापा और धूम्रपान शामिल हैं. इन जोखिम कारकों को मैनेज कर के आप कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के विकास के अपने जोखिम को कम कर सकते हैं.
अपने कोलैस्ट्रौल के स्तर की नियमित रूप से जांच करवाना महत्त्वपूर्ण है और यदि वे उच्च हैं तो अपने डाक्टर से तुरंत सलाह लें. अपने चिकित्सक के साथ एक उपचार योजना विकसित करने के लिए काम करें जो आप के लिए सही हो. सही उपचार योजना और जीवनशैली में बदलाव के साथ आप अपने उच्च कोलैस्ट्रौल को कंट्रोल में ला सकते हैं और एक स्वस्थ व पूर्ण जीवन जी सकते हैं. द्य
(लेखक मैक्स अस्पताल, शालीमार बाग, दिल्ली में कार्डियोलौजिस्ट हैं. )

सैचुरेटेड फैट से शरीर पर असर
गुड फैट्स जैसे सब्जियों से बने तेल जैसे कैनोला, सूरजमुखी, सोया और कौर्न का तेल, बीज, मछली, नट्स आदि. इन के सेवन से गंभीर बीमारियों का खतरा कम रहता है. यह फूड अनसैचुरेटेड फैट में आते हैं जिन्हें गुड फैट भी कहा जाता है. वहीं सैचुरेटेड फैट अनसैचुरेटेड फैट की तुलना में सेहत पर नैगेटिव असर डालता है. खासकर, यह दिल के लिए अनहैल्दी फैट है.

सैचुरेटेड फैट्स युक्त फूड्स के नियमित सेवन से शरीर में कोलैस्ट्रौल की मात्रा हाई हो सकती है. यह फैट आर्टरीज वाल पर धीरेधीरे जमा होने लगता है और ब्लौकेज के कारण दिल तक ब्लड सर्कुलेशन में रुकावट का काम करता है. इस तरह से दिल अपना कार्य सही से नहीं कर पाता है, जिस से हार्ट अटैक, स्ट्रोक, कार्डियक अरेस्ट आने का जोखिम बढ़ जाता है.

सैचुरेटेड फैट जैसे बटर, घी, नारियल तेल, केक, बिसकुट, पैस्ट्री, सौसेजेज, बेकन, मीट के चरबी वाले भाग, सलामी, चीज, मिल्कशेक, कोकोनट क्रीम, मेयोनीज, आइसक्रीम, चौकलेट, चौकलेट स्प्रैड्स, एनिमल फैट जैसे चिकन, डक इत्यादि होते हैं.

औलाद की खातिर : रेखा ने बेटे के इलाज के खातिर क्या कदम उठाएं?

सूरज की गरमी के बढ़ने के साथ ही गांव धनुहावासियों की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी अभी तक सो कर क्यों नहीं उठे. जबकि गांव में वही दोनों सब से पहले उठते थे. बालबच्चे थे नहीं,

इसलिए बूढ़ाबुढ़ऊ रात को जल्दी सो जाते थे. यही वजह थी कि वे सुबह जल्दी उठ भी जाते थे. लेकिन उस दिन सुबह दोनों में से कोई दिखाई नहीं दिया तो पड़ोस में रहने वाले उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद पता लगाने के लिए उन के घर जा पहुंचे. वह यह देख कर हैरान रह गए कि बाहर ताला लगा है.इस की वजह यह थी कि लल्लूराम कभी बाहर दरवाजे में ताला लगाते ही नहीं थे. वैसे तो वह जल्दी कहीं आतेजाते नहीं थे. अगर कभी किसी के शादीब्याह में जाना भी होता था तो घरद्वार सब भाई को ही सौंप कर जाते थे. अब तक 9 बज चुके थे. बिना बताए कहीं बाहर जाने का सवाल ही नहीं था. अगर गांव या खेतों की ओर कहीं गए होते तो अब तक आ गए होते. यह खबर सुन कर पूरा गांव लल्लूराम के घर के सामने इकट्ठा हो गया था.

दरवाजे पर जो ताला लगा था, वह एकदम नया था, इसलिए लोगों को किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी. लल्लूराम का घर सड़क के किनारे था. लोगों ने विचार किया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि रात में डकैतों ने इन के घर धावा बोल कर लूटपाट करने के साथ दोनों को खत्म कर दिया हो. यही सोच कर कुछ बुजुर्गों ने वहां खड़े लड़कों से कहा कि दरवाजे पर चढ़ कर ऊपर लगी जाली से देखो तो अंदर कोई दिखाई दे रहा है या नहीं?

बुजुर्गों के कहने पर 2 लड़कों ने दरवाजे पर चढ़ कर अंदर झांका तो उन के मुंह से चीख निकल गई. लल्लूराम और उन की पत्नी सुशीला देवी की रक्तरंजित लाशें अलगअलग चारपाइयों पर पड़ी थीं. तुरंत क्षेत्रीय थाना नैनी को फोन द्वारा इस घटना की सूचना दी गई.सूचना मिलने के लगभग आधा घंटे बाद थाना नैनी के थानाप्रभारी रामदरश यादव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर आ पहुंचे. पुलिस ने ताला तोड़वा कर दरवाजा खोलवाया. अंदर जाने पर पता चला कि बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दे कर लाश तथा घटनास्थल का निरीक्षण शुरू कर दिया. थोड़ी देर में डीआईजी एन.रवींद्र और एसएसपी मोहित अग्रवाल, एसपी यमुनापार लल्लन राय डाग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम के साथ वहां पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंचे फोरेंसिक एक्सपर्ट प्रेम कुमार भारती ने खून के धब्बों का नमूना उठाने के साथ वहां पड़े 2 पत्थरों से अंगुलियों के निशान उठाए. उन पत्थरों पर खून लगा था. पुलिस का अंदाजा था कि पत्थरों से बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या की गई थी. सारी औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. यह 14 जून, 2013 की बात है.

काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतक लल्लूराम के बड़े भाई जमुना प्रसाद से पूछताछ शुरू की तो उन्होंने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार लल्लूराम निस्संतान थे. वह अपने काम से काम रखते थे. भाइयों में भी आपस में कोई झगड़ाझंझट नहीं था. हां, उन के पास रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. इसलिए लगता यही है कि लूट के लिए पतिपत्नी को मारा गया है.

लल्लूराम के परिवार वालों के अनुसार, उन का मकान ही लगभग 20 लाख रुपए के आसपास था. इस के अलावा उन के पास कई बीघा जमीन थी, जो करोड़ों रुपए की थी. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने अपना एक बीघा खेत 15 लाख रुपए में बेचा था. उन के पास लाखों के गहने भी थे. जबकि उन की करोड़ों की इस संपत्ति का कोई वारिस नहीं था. उन के बड़े भाई जमुना प्रसाद का बेटा रवि जरूर उन की तथा उन के खेतों की देखभाल के लिए उन्हीं के घर ज्यादा रहता था. दोनों भाइयों के घर अगलबगल ही थे, इसलिए रवि को चाचाचाची की देखभाल में कोई परेशानी नहीं होती थी.

लेकिन रवि एक नंबर का नशेड़ी था. वह हमेशा स्मैक के नशे में डूबा रहता था. उस की शादी भी हो चुकी थी और वह 3 बच्चों का बाप था. ये तीनों बच्चे उस की दूसरी पत्नी रेखा तिवारी से थे. उस की पहली पत्नी ने उस के नशेड़ीपने की वजह से ही तलाक ले लिया था. उस के बाद लल्लूराम की पत्नी यानी रवि की चाची सुशीला देवी ने उस की शादी अपनी बहन की बेटी रेखा से करा दी थी.
रेखा भी रवि के नशे से आजिज आ चुकी थी. यही वजह थी कि इधर वह बच्चों को ले कर करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां रह रही थी.

एक तो रवि नशेड़ी था, दूसरे करताधरता भी कुछ नहीं था. इस के अलावा लल्लूराम के यहां रहने की वजह से उसे उन के घर के बारे में पूरी जानकारी थी, इसलिए पुलिस को पहले उसी पर संदेह हुआ. पुलिस ने उसे थाने ला कर हर तरह से पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में रवि निर्दोष साबित हुआ. हत्याएं लूटपाट के इरादे से की गई थीं. लेकिन घर का कोई सामान गायब हुआ हो ऐसा लग नहीं रहा था.

अगर कुछ गायब हुआ भी था तो इस की जानकारी रवि की पत्नी रेखा से ही मिल सकती थी. क्योंकि लल्लूराम और सुशीला देवी के अलावा उस घर के बारे में सब से ज्यादा जानकारी रेखा को ही थी. पुलिस रेखा से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आ रही थी. वह सिर्फ क्रियाकर्म वाले दिन ही दिखाई दी थी. उस के बाद गायब हो गई थी.मामले के खुलासे के लिए एसपी यमुनापार लल्लन राय ने सीओ राधेश्याम राम के नेतृत्व में इंस्पेक्टर नैनी रामदरश यादव, एसआई वी.पी. तिवारी, हेडकांस्टेबल शशिकांत यादव, कांस्टेबल मोहम्मद खालिद, शिवबाबू आदि को ले कर एक टीम बनाई. इस टीम ने पहले तो अपने मुखबिरों को सक्रिय किया.

अपने इन्हीं मुखबिरों से पुलिस को पता चला कि नशेड़ी पति के अत्याचार से परेशान रेखा के संबंध धनुहा के ही रहने वाले बब्बू पांडेय से बन गए थे.रेखा इस समय कहां है, पुलिस टीम ने यह पता किया तो जानकारी मिली कि उस का मंझला बेटा लक्ष्य काफी बीमार है, जिसे उस ने इलाहाबाद के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कर रखा है. उस के इलाज का सारा खर्च करछना का रहने वाला बब्बू पांडे का दोस्त रामबाबू पाल उठा रहा है.

पुलिस का माथा ठनका. रेखा के बेटे का इलाज एक गैर आदमी क्यों करा रहा है? पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार पति की प्रताड़ना और ससुराल वालों की उपेक्षा से रेखा पति और ससुराल वालों से दूर होती चली गई थी. उसी बीच गांव के ही रहने वाले बब्बू पांडेय और उस के दोस्त रामबाबू पाल ने उस से सहानुभूति दिखाई तो दोनों से ही उस के घनिष्ठ संबंध बन गए थे.

इन बातों से पुलिस को लगा कि इस हत्याकांड में कहीं रेखा और उस से सहानुभूति दिखाने वालों का हाथ तो नहीं है. यह बात दिमाग में आते ही थाना नैनी पुलिस ने 18 जून की रात छापा मार कर बब्बू पांडेय और रामबाबू पाल को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की जाने लगी. पहले तो दोनों कहते रहे कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया.लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि लल्लूराम तिवारी और उन की पत्नी सुशीला देवी की हत्या उन्हीं लोगों ने रेखा की मदद से की थी. रामबाबू पाल ने रेखा से अपने अवैध संबंध होने की बात भी स्वीकार कर ली. लेकिन बब्बू ने ऐसी कोई बात नहीं स्वीकार की. जबकि रेखा से उस के भी संबंध थे, क्योंकि उसी की वजह से रामबाबू पाल रेखा तक पहुंचा था.

रेखा को रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह बच्चों को ले कर फरार हो गई. मगर जल्दी ही पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से की गई पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार यह कहानी कुछ इस प्रकार है.मध्यप्रदेश के जिला रीवां के चाकघाट के गांव मरवरा की रहने वाली रेखा का विवाह सन 2010 में उस की सगी मौसी सुशीला देवी ने अपने जेठ जमुना प्रसाद के बेटे रवि से करा दिया था. रेखा विदा हो कर ससुराल आई तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि उस का पति हद दर्जे का नशेड़ी है. इस की वजह यह थी कि निस्संतान सुशीला देवी को रवि से सहानुभूति थी. इसीलिए वह उसे ज्यादातर अपने साथ रखती थीं.

रवि भी उन लोगों की हर तरह से देखभाल करता था. सुशीला देवी ने रेखा की शादी उस से यह सोच कर कराई थी कि रेखा अपनी है, इसलिए वह बुढ़ापे में उन की देखभाल ठीक से करेगी. लेकिन शादी के बाद मौसी को कोसने और अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाने के अलावा रेखा के पास कोई उपाय नहीं था.
समय धीरेधीरे बीतता रहा और रेखा अंश, लक्ष्य और सुख, 3 बेटों की मां बनी. 3 बेटों का बाप बनने के बाद भी रवि की नशे की आदत छूटने के बजाय बढ़ती ही गई. रेखा मना करती तो वह उसे जानवरों की तरह पीटता.

रेखा के लिए एक परेशानी यह थी कि रवि उस के पास के पैसे भी छीन लेता था. शादी में मिले गहने तो उस ने पहले ही नशे की भेंट चढ़ा दिए थे. पति के उत्पातों से आजिज आ कर रेखा कभीकभी करछना में रहने वाली अपनी बड़ी बहन के यहां चली जाती थी. वक्तजरूरत मौसी सुशीला भी मदद कर देती थी. लेकिन जिस तरह की मदद की उम्मीद रेखा उन से करती थी, वह भी नहीं करती थी. सासससुर ने तो पहले ही हाथ खींच लिए थे. इस तरह रेखा और उस के बच्चे उपेक्षित सा जीवन जी रहे थे. इस के लिए वह अपनी मौसी सुशीला को ही दोषी मानती थी.

पति और ससुराल वालों से त्रस्त रेखा अकसर करछना में रहने वाली अपनी बहन के यहां आतीजाती रहती थी. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात उस के बहनोई राजू पांडेय तथा गांव के बब्बू पांडेय के दोस्त रामबाबू पाल से हुई. रामबाबू पाल से रेखा ने अपनी परेशानी बताई तो वह रेखा से सहानुभूति दिखाने के साथसाथ वक्तजरूरत उस की मदद भी करने लगा. इसी का नतीजा था कि दोनों के बीच संबंध बन गए.
बब्बू की वजह से रेखा के संबंध रामबाबू पाल से बन गए, बब्बू रामबाबू का पक्का दोस्त था. यही नहीं, गांव का होने की वजह से बब्बू रेखा के घर भी आताजाता था और रवि का दोस्त होने की वजह से रेखा को भाभी कहता था. भले ही रेखा ने दोनों से मजबूरी में शारीरिक संबंध बनाए थे, लेकिन संबंध तो बन ही गए थे.

मई के अंतिम सप्ताह में रेखा का मंझला बेटा 7 साल का लक्ष्य अचानक बीमार पड़ा. रेखा ने मौसा लल्लूराम और मौसी सुशीला देवी से बच्चे की बीमारी के बारे में बताया. लेकिन किसी ने खास ध्यान नहीं दिया. झोलाछाप डाक्टर से दवा ला कर उसे दी जाती रही. फायदा होने के बजाए धीरेधीरे उस की बीमारी बढ़ती गई. रवि को बेटे की बीमारी से कोई मतलब नहीं था. वह स्मैक पिए पड़ा रहता था.

रेखा ने देखा कि लक्ष्य की बीमारी को ससुराल में कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है तो वह बेटों को ले कर अपनी बहन के यहां करछना चली गई. वहां उस ने बेटे की बीमारी के बारे में रामबाबू को बताया तो एक पल गंवाए बगैर वह उसे सीधे इलाहाबाद ले गया और एक प्राइवेट अस्पताल में भरती करा दिया. जांचपड़ताल के बाद डाक्टरों ने लक्ष्य को जो बीमारी बताई, उस के इलाज पर लंबा खर्च आने वाला था.
डाक्टर की बात सुन कर रेखा रोने लगी. उसे रोता देख रामबाबू ने तड़प कर कहा, ‘‘रेखा, तुम रो क्यों रही हो? मैं हूं न. मेरे रहते तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. चाहे जैसे भी होगा, मैं लक्ष्य का इलाज कराऊंगा.’’

रेखा जानती थी कि रामबाबू के पास भी उतने पैसे नहीं हैं, जितने लक्ष्य के इलाज के लिए जरूरत है. रामबाबू की करछना बाजार में चाय की एक छोटी सी दुकान थी. उसी की कमाई से किसी तरह घर का खर्च चलता था. यही सब सोच कर रेखा ने कहा, ‘‘कहां से लाओगे इतने रुपए. यहां 10-20 हजार रुपए की बात नहीं है, डाक्टर ने लाख रुपए से ऊपर का खर्च बताया है. सासससुर के पास इतना पैसा है नहीं. पति बेकार ही है. जिन के पास पैसा है, उन से किसी तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती.’’
‘‘रेखा, मन छोटा मत करो. मेरे खयाल से एक बार अपने मौसामौसी से बात कर लो. पोते का मामला है, शायद वे इलाज के लिए पैसे दे ही दें.’’

‘‘वे लोग बहुत कंजूस है, फूटी कौड़ी नहीं देंगे,’’ रेखा ने कहा, ‘‘फिर भी तुम कह रहे हो तो गांव जा कर जरूर कहूंगी, बेटे के लिए उन के पैरों पर गिर कर रोऊंगीगिड़गिड़ाऊंगी. इस पर भी उन का दिल न पसीजा तो क्या होगा?’’‘‘उस के बाद देखा जाएगा. कोई न कोई रास्ता तो निकालूंगा ही. वैसे भी तुम्हारी मौसी के पास पैसों की कमी नहीं है. करोड़ों की संपत्ति है उन के पास. कोई खाने वाला भी नहीं है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मना नहीं करेंगी.’’ रामबाबू ने कहा.

रामबाबू के कहने पर रेखा धनुहा जा कर लल्लूराम से मिली. उस ने रोते हुए उन से बेटे की बीमारी और इलाज पर आने वाले खर्च के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है. तुम अपने ससुर से क्यों नहीं कहती.’’सुशीला देवी ने भी अपना पल्ला झाड़ लिया.रेखा को पता था कि उस के ससुर जमुना प्रसाद की माली हालत जर्जर है. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. रेखा क्या करती, इलाहाबाद वापस आ गई. रेखा का उतरा चेहरा देख कर ही रामबाबू समझ गया कि उस के वहां जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. उस ने कहा, ‘‘मैं ने वहां भेज कर तुम्हें बेकार ही परेशान किया.’’

रामबाबू की बात सुन कर रेखा रोते हुए बोली, ‘‘मेरे मौसा और मौसी कंजूस ही नहीं, बेरहम भी हैं. इतना पैसा जोड़ कर रखे हैं, न जाने किसे देंगे. कल को मर जाएंगे, सब यहीं रह जाएगा. उन की कोई औलाद तो है नहीं, वे औलाद का दर्द क्या जानें.’’‘‘पैसा उन का है. नहीं दे रहे हैं तो कोई कर ही क्या सकता है.’’ रामबाबू ने कहा.‘‘कर क्यों नहीं सकता. अगर तुम मेरा साथ दो तो उन की सारी दौलत हमारी हो सकती है. लक्ष्य का इलाज भी हो जाएगा और मैं उस नशेड़ी को तलाक दे कर हमेशाहमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी.’’ रेखा ने कहा.

‘‘इस के लिए करना क्या होगा?’’
‘‘हत्या, उन दोनों बूढ़ों की हत्या करनी होगी. आज नहीं तो कल, उन्हें वैसे भी मरना है. क्यों न यह शुभ काम हम लोग ही कर दें. बोलो, तुम मेरा साथ दे सकते हो?’’
‘‘तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. मैं ही क्या, इस नेक काम में बब्बू भी हमारा साथ दे सकता है. इस के एवज में उसे भी कुछ दे दिया जाएगा.’’

‘‘ठीक है, बब्बू से बात कर लो. अब यह नेक काम हमें जल्द ही कर लेना चाहिए. ऐसे लोगों का ज्यादा दिनों तक जीना ठीक नहीं है. इस तरह के लोग इसी लायक होते हैं.’’ रेखा ने कहा.रामबाबू ने फोन कर के बब्बू को भी वहीं बुला लिया. इस के बाद तीनों ने बैठ कर लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या कर के उन के यहां लूटपाट की योजना बना डाली.उसी योजना के तहत रेखा अपनी ससुराल जा पहुंची. रात में खापी कर लल्लूराम और सुशीला गहरी नींद सो गए तो उस ने फोन कर के रामबाबू और बब्बू को बुला लिया. दरवाजा उस ने पहले ही खोल दिया था.

दोनों सावधानीपूर्वक अंदर पहुंचे और गहरी नींद सो रहे वृद्ध दंपत्ति के ऊपर भारीभरकम पत्थर पटक कर उन की जीवनलीला समाप्त कर दी. इस के बाद तीनों ने रुपए और गहने की तलाश में कमरों का एकएक सामान खंगाल डाला. लेकिन उन के हाथ कुछ भी नहीं लगा. रामबाबू और बब्बू लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का पछतावा करते हुए भाग निकले.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने रेखा, रामबाबू पाल और बब्बू पांडेय के खिलाफ लल्लूराम और सुशीला देवी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के 21, जून को इलाहाबाद की अदालत में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में नैनी जेल भेज दिया गया. इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी मोहित अग्रवाल ने 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है.

लेखिका -प्रेमा देवी

मेरी बेटी की शादी होने वाली है,औफिस जाने की वजह से उसे वक्त नहीं मिलता, त्वचा में ग्लो लाने का कोई उपाय बताएं?

सवाल
मेरी बेटी की जल्द ही शादी होने वाली है. औफिस जाने की वजह से उसे त्वचा की देखभाल के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिल पाता है. त्वचा में ग्लो व आकर्षण लाने का कोई उपाय बताएं?

जवाब
आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से प्रीब्राइडल ट्रीटमैंट बुक करवा लें. इस के अंतर्गत बौडी पौलिशिंग, पैडीक्योर, मैनीक्योर, फेशियल, ब्लीच, हैड मसाज, हेयर स्पा जैसे ट्रीटमैंट्स करवाए जाते हैं, जो न सिर्फ आप के चेहरे बल्कि आप की बौडी की हर एक समस्या का निदान कर त्वचा में निखार लाते हैं. इस के साथसाथ घरेलू तौर पर आप रात को थोड़ी सी केसर 2 चम्मच दूध में भिगो दें और सुबह उस में चंदन पाउडर और चुटकी भर हलदी डाल कर चेहरे पर मास्क की तरह लगाएं. सूखने पर पानी से धो लें. इस के अलावा सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

लड़की- भाग 3 : क्यों डर रही थी वो बेटी को खो देने से?

आज उसे लग रहा था कि उस ने व उस के पति ने बेटी के प्रति न्याय नहीं किया. क्या हमारी सोच गलत थी? उस ने अपनेआप से सवाल किया. शायद हां, उस के मन ने कहा. हम जमाने के साथ नहीं चले. हम अपनी परिपाटी से चिपके रहे.

पहली गलती हम से यह हुई कि बेटी के परिपक्व होने के पहले ही उस की शादी कर देनी चाही. अल्हड़ अवस्था में उस के कंधों पर गृहस्थी का बोझ डालना चाहा. हम जल्द से जल्द अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. और दूसरी भूल हम से तब हुई जब वीणा ने अपनी पसंद का लड़का चुना और हम ने उस की मरजी को नकार कर उस की शादी में हजार रोडे़ अटकाए. अब जब वह अपनी शादी से खुश नहीं थी और पति से तलाक लेना चाह रही थी तो हम दोनों पतिपत्नी ने इस बात का जम कर विरोध किया.

बेटी की खुशी से ज्यादा उन्हें समाज की चिंता थी. लोग क्या कहेंगे, यही बात उन्हें दिनरात खाए जाती थी. उन्हें अपनी मानमर्यादा का खयाल ज्यादा था. वे समाज में अपनी साख बनाए रखना चाहते थे, पर बेटी पर क्या बीत रही है, इस बात की उन्हें फिक्र नहीं थी. बेटी के प्रति वे तनिक भी संवेदनशील न थे. उस के दर्द का उन्हें जरा भी एहसास न था. उन्होंने कभी अपनी बेटी के मन में पैठने की कोशिश नहीं की. कभी उस की अंतरंग भावनाओें को नहीं जानना चाहा. उस के जन्मदाता हो कर भी वे उस के प्रति निष्ठुर रहे, उदासीन रहे.

अहल्या को पिछली बीसियों घटनाएं याद आ गईं जब उस ने वीणा को परे कर बेटों को कलेजे से लगाया था. उस ने हमेशा बेटों को अहमियत दी जबकि बेटी की अवहेलना की. बेटों को परवान चढ़ाया पर बेटी जैसेतैसे पल गई. बेटों को अपनी मनमानी करने की छूट दी पर बेटी पर हजार अंकुश लगाए. बेटों की उपलब्धियों पर हर्षित हुई पर बेटी की खूबियों को नजरअंदाज किया. बेटों की हर इच्छा पूरी की पर बेटी की हर अभिलाषा पर तुषारापात किया. बेटे उस की गोद में चढ़े रहते या उस की बांहों में झूलते पर वीणा के लिए न उस की गोद में जगह थी न उस के हृदय में. बेटे और बेटी में उस ने पक्षपात क्यों किया था? एक औरत हो कर उस ने औरत का मर्म क्यों नहीं जाना? वह क्यों इतनी हृदयहीन हो गई थी?

बेटी के विवर्ण मुख को याद कर उस के आंसू बह चले. वह मन ही मन रो कर बोली, ‘बेटी, तू जल्दी होश में आ जा. मुझे तुझ से बहुतकुछ कहनासुनना है. तुझ से क्षमा मांगनी है. मैं ने तेरे साथ घोर अन्याय किया. तेरी सारी खुशियां तुझ से छीन लीं. मुझे अपनी गलतियों का पश्चात्ताप करने दे.’

आज उसे इस बात का शिद्दत से एहसास हो रहा था कि जानेअनजाने उस ने और उस के पति ने बेटी के प्रति पक्षपात किया. उस के हिस्से के प्यार में कटौती की. उस की खुशियों के आड़े आए. उस से जरूरत से ज्यादा सख्ती की. उस पर बचपन से बंदिशें लगाईं. उस पर अपनी मरजी लादी.

वीणा ने भी कठपुतली के समान अपने पिता के सामंती फरमानों का पालन किया. अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं का दमन कर उन के इशारों पर चली. ढकोसलों, कुरीतियों और कुसंस्कारों से जकड़े समाज के नियमों के प्रति सिर झुकाया. फिर एक पुरुष के अधीन हो कर उस के आगे घुटने टेक दिए. अपने अस्तित्व को मिटा कर अपना तनमन उसे सौंप दिया. फिर भी उस की पूछ नहीं थी. उस की कद्र नहीं थी. उस की कोई मान्यता न थी.

प्रतीक्षाकक्ष में बैठेबैठे अहल्या की आंख लग गई थी. तभी भास्कर आया. वह उस के लिए घर से चायनाश्ता ले कर आया था. ‘‘मांजी, आप जरा रैस्टरूम में जा कर फ्रैश हो लो, तब तक मैं यहां बैठता हूं.’’

अहल्या नीचे की मंजिल पर गई. वह बाथरूम से हाथमुंह धो कर निकली थी कि एक अनजान औरत उस के पास आई और बोली, ‘‘बहनजी, अंदर जो आईसीयू में मरीज भरती है, क्या वह आप की बेटी है और क्या वह भास्करजी की पत्नी है?’’

‘‘हां, लेकिन आप यह बात क्यों पूछ रही हैं?’’

‘‘एक जमाना था जब मेरी बेटी शोभा भी इसी भास्कर से ब्याही थी.’’

‘‘अरे?’’ अहल्या मुंहबाए उसे एकटक ताकने लगी.

‘‘हां, बहनजी, मेरी बेटी इसी शख्स की पत्नी थी. वह इस के साथ कालेज में पढ़ती थी. दोनों ने भाग कर प्रेमविवाह किया, पर शादी के 2 वर्षों बाद ही उस की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, यह सुन कर बहुत अफसोस हुआ.’’

‘‘हां, अगर उस की मौत किसी बीमारी की वजह से होती तो हम अपने कलेजे पर पत्थर रख कर उस का वियोग सह लेते. उस की मौत किसी हादसे में भी नहीं हुई कि हम इसे आकस्मिक दुर्घटना समझ कर मन को समझा लेते. उस ने आत्महत्या की थी.

‘अब आप से क्या बताऊं. यह एक अबूझ पहेली है. मेरी हंसतीखेलती बेटी जो जिजीविषा से भरी थी, जो अपनी जिंदगी भरपूर जीना चाहती थी, जिस के जीवन में कोई गम नहीं था उस ने अचानक अपनी जान क्यों देनी चाही, यह हम मांबाप कभी जान नहीं पाएंगे. मरने के पहले दिन वह हम से फोन पर बातें कर रही थी, खूब हंसबोल रही थी और दूसरे दिन हमें खबर मिली कि वह इस दुनिया से जा चुकी है. उस के बिस्तर पर नींद की गोलियों की खाली शीशी मिली. न कोई चिट्ठी न पत्री, न सुसाइड नोट.’’

‘‘और भास्कर का इस बारे में क्या कहना था?’’

‘‘यही तो रोना है कि भास्कर इस बारे में कुछ भी बता न सका. ‘हम में कोई झगड़ा नहीं हुआ,’ उस ने कहा, ‘छोटीमोटी खिटपिट तो मियांबीवी में होती रहती है पर हमारे बीच ऐसी कोई भीषण समस्या नहीं थी कि जिस की वजह से शोभा को जान देने की नौबत आ पड़े.’ लेकिन हमारे मन में हमेशा यह शक बना रहा कि शोभा को आत्महत्या करने को उकसाया गया.

‘‘बहनजी, हम ने तो पुलिस में भी शिकायत की कि हमें भास्कर पर या उस के घर वालों पर शक है पर कोई नतीजा नहीं निकला. हम ने बहुत भागदौड़ की कि मामले की तह तक पहुंचें पर फिर हार कर, रोधो कर चुप बैठ गए. पतिपत्नी के बीच क्या गुजरती थी, यह कौन जाने. उन के बीच क्या घटा, यह किसी को नहीं पता.

‘‘हमारी बेटी को कौन सा गम खाए जा रहा था, यह भी हम जान न पाए. हम जवान बेटी की असमय मौत के दुख को सहते हुए जीने को बाध्य हैं. पता नहीं वह कौन सी कुघड़ी थी जब भास्कर से मेरी बेटी की मित्रता हुई.’’

अहल्या के मन में खलबली मच गई. कितना अजीब संयोग था कि भास्कर की पहली पत्नी ने आत्महत्या की. और अब उस की दूसरी पत्नी ने भी अपने प्राण देने चाहे. क्या यह महज इत्तफाक था या भास्कर वास्तव में एक खलनायक था? अहल्या ने मन ही मन तय किया कि अगर वीणा की जान बच गई तो पहला काम वह यह करेगी कि अपनी बेटी को फौरन तलाक दिला कर उसे इस दरिंदे के चंगुल से छुड़ाएगी.

वह अपनी साख बचाने के लिए अपनी बेटी की आहुति नहीं देगी. वीणा अपनी शादी को ले कर जो भी कदम उठाए, उसे मान्य होगा. इस कठिन घड़ी में उस की बेटी को उस का साथ चाहिए. उस का संबल चाहिए. देरसवेर ही सही, वह अपनी बेटी का सहारा बनेगी. उस की ढाल बनेगी. हर तरह की आपदा से उस की रक्षा करेगी.

एक मां होने के नाते वह अपना फर्ज निभाएगी. और वह इस अनजान महिला के साथ मिल कर उस की बेटी की मौत की गुत्थी भी सुलझाने का प्रयास करेगी.

भास्कर जैसे कई भेडि़ये सज्जनता का मुखौटा ओढ़े अपनी पत्नी को प्रताडि़त करते रहते हैं, उसे तिलतिल कर जलाते हैं और उसे अपने प्राण त्यागने को मजबूर करते हैं. लेकिन वे खुद बेदाग बच जाते हैं क्योंकि बाहर से वे भले बने रहते हैं. घर की चारदीवारी के भीतर उन की करतूतें छिपीढकी रहती हैं.

वह वापस प्रतीक्षाकक्ष में पहुंची तो उस ने देखा कि एक डाक्टर आईसीयू से निकल कर सीधा उस की तरफ आ रहा था. अहल्या के हृदय में धुकधुकी होने लगी. उस की आशान्वित नजरें उस डाक्टर पर टिक गईं.

 

YRKKH: अभिमन्यु के सामने आया आरोही का काला सच

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों धमाल मचा हुआ है, सीरियल की कहानी हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौड़ और अबीर के आस-पास घूमम रही है. बता दें कि सीरियल में इन दिनों अबीर को लेकर आरोही चाल चल रही है. आरोही नहीं चाहती है कि अबीर अभि के करीब आए.

वहीं अभिमन्यु अपने बेटे अबीर को पाना चाहता है लेकिन अक्षरा खुद से अबीर को दूर नहीं होने देना चाहती है. दोनों में अबीर को लेकर लड़ाई चल रही है. वह अबीर अक्षरा को लेकर दूर जाना चाहती है. अबीर के लिए अभि हर कोई कोशिश करता नजर आ रहा है.

 

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अभि अबीर को पाने के लिए कोर्ट पहुंच गया है, जहां जाकर वह अबीर के लिए फाइल करता है. वहीं आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अबीर घर से चला जाता है जिसके बाद मंजरी का गुस्सा आरोही पर भड़क जाता है.

अभि को मंजरी के गुस्से से समझ में आ जाता है कि आरोही अबीर को नहीं पसंद करती है. जिसके बाद अभि भी आरोही से नाराज हो जाता है. जिसके बाद से आरोही को कुछ समझ नहीं आता है कि अभि को कैसे समझाए.

संसद में जब राघव चड्ढा को याद दिलाया गया पहला प्यार, स्पीकर ने दिया ये जवाब

इन दिनों अभिनेत्री परिणीति  चोपड़ा और राघव चर्चा में बने हुए हैं, परिणीति और राघव की जोड़ी को रागनीति नाम दिया गया है. बीते दिनों उनकी इंग्जेंटममेंट हुई है जहां पर बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक हस्तियां इक्टठ्ठा हुई थीं.

हालांकि दिलचस्प बात यह है कि संसद में सभी उन्हें बधाई दे रहे हैं, वहीं स्पीकर वैंकया नायडू ने भी राघव के मजे लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा. वह पूछते हैं कि राघव मुझे लगता है कि प्यार एक बार ही होता है, पहला प्यार होता हा या दूसरा प्यार भी होता है, इस पर राघव हंसते हुए जवाब देते है कि मुझे इस बारे में ज्यादा अनुभव नहीं है . जिस पर सभी लोग हंसने लगते हैं.

 

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इसके बाद राघव के जवाब के बाद से वैंकया नायडू कहते हैं कि मुझे लगता है कि पहला प्यार अच्छा होता है, अच्छा होता है वहीं रहना है जिंदगी भर.

बता दें कि राघव और परिणीति का प्यार ज्यादा पुराना नहीं है वह दोनों फिल्म के सेट पर मिले थें, जहां से दोनों की कहानी की शुरुआत हुई थी. बता दें कि परिणिती इम्तयाज अली की फिल्म चमकीला की शूटिंग कर रही थीं.हालांकि दोनों बहुत प्यारे कपल हैं. अब साथ में दोनों काफी ज्यादा अच्छे लग रहे हैं.

धर्मकर्म में उलझी मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति

यह तो कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान ही स्पष्ट हो गया था कि भाजपा को धर्म की राजनीति के अलावा कुछ और आता नहीं. इसलिए वहां भाजपा नेता बेहद लड़खड़ाए से नजर आए थे..प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में बजरंगबली बजरंगबली करते रहे थे लेकिन हिंदीभाषी राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित सभी भाजपाई मुख्यमंत्री बड़ा सहज महसूस करते हैं क्योंकि यहां वे अपने मनपसंद मुद्दों और एजेंडे पर खुल कर बोलते हैं. कैसे, इसे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो इन दिनों चुनाव की तैयारियों में दिनरात जुटे हैं, की कुछ गतिविधियों और बयानों से समझते हैं.

-24 अप्रैल को शिवराज सिंह तंत्रमंत्र के जरिए दुश्मनों का नाश कर देने के लिए प्रसिद्ध दतिया स्थित पीतांबरा पीठ की रथयात्रा में रथ खींच रहे थे. रथ के अंदर ऋषि वशिष्ठ की सी मुद्रा में एक स्वामी बैठे हुए थे. भव्यता के लिए दिल्ली से मंगाए गए हैलिकौप्टर से पुष्पवर्षा का इंतजाम किया गया था. उन के साथ राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया और मध्यप्रदेश के गृह मंत्री पंडित नरोत्तम मिश्रा भी रथ में जुते थे. इस दिन शिवराज सिंह पूरे वक्त माईमाई करते रहे.

उज्जैन के महाकाल लोक की तर्ज पर पीतांबरा माई महालोक बनाने की घोषणा करते उन्होंने  कहा, ‘मैया की ऐसी इच्छा है कि पीतांबरा माई महालोक बन जाए तो काहे की चिंता, हम पर तो माई की कृपा है. माई, तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा, मैया जो बनाना है बनवा लो, मां क्या बनाना है, यह गृहमंत्री संतों से मिल कर तय कर लें.’ कुछ और इधर उधर की हांक कर वे उपसंहार में बोले, ‘मां, कृपा की बरसात करना.’

पूरी तरह माई की भक्ति के रंग में रंगे शिवराज के ये शब्द भी यह साबित करते हैं कि सबकुछ ऊपरवाला करता है. नीचे वाले तो अलाल और निकम्मे हैं. उन्होंने कहा, “मैं माई से प्रार्थना करता हूं कि सुखसमृद्धि और रिद्धिसिद्धि दतिया और मध्यप्रदेश की जनता की जिंदगी में आए. माई, ऐसी कृपा करना कि इन के पैरों में कांटा भी न लग पाए.”

यह अनिष्ट और दैवीय प्रकोप से डरे और सहमे हुए घोर भाग्यवादी, भक्तटाइप की भाषाशैली थी जो बातबात में प्रभु और हरिइच्छा का राग अलापता रहता है. उस में इतना आत्मविश्वास भी नहीं होता कि अपने किए का श्रेय भी खुद लेने का साहस जुटा पाए. बात जहां तक शिवराज सिंह और भाजपा की है तो हर कोई जानता है कि मध्यप्रदेश की सत्ता उन्हें माई की कृपा से नहीं, बल्कि खालिस बेईमानी से मिली थी.

 

ब्राह्मण श्राप से महंगी मुक्ति

दतिया के 4 दिन पहले शिवराज सिंह भोपाल की एक कथा में प्रवचन करते नजर आए थे. उस दिन मौजूदा दौर के ब्रैंडेड बाबा बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री ब्राह्मणों के आराध्य परशुराम की जयंती मनाने भोपाल खासतौर से तशरीफ लाए थे. ब्राह्मणों को साधने शिवराज सिंह ने परशुराम की जन्मस्थली जानापाव में 11 करोड़ की लागत से परशुराम लोक और परशुराम धाम बनाने का ऐलान कर दिया.

इतना ही नहीं, मत चूको चौहान की तर्ज पर ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन की भी घोषणा करते उन्होंने कहा कि अब मंदिर की गतिविधियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होगा. मंदिरों की जमीन की नीलामी कलैक्टरों द्वारा नहीं, बल्कि पुजारियों द्वारा की जाएगी. गौरतलब है कि राज्य के 21 हजार से भी ज्यादा मंदिरों में से 1,320 मंदिरों के पास 10 एकड़ से ज्यादा जमीन है जो सीधेसीधे पुजारियों की मिल्कीयत हो जाएगी.

वे बिना कुछ करेधरे करोड़ों के मालिक हो जाएंगे. जिन मंदिरों के पास जमीनें नहीं हैं उन के पुजारियों को 5 हजार रुपए महीना दिया जाएगा. अच्छा तो उन का यह ऐलान न करना रहा कि जो ब्राह्मण पुजारी भी नहीं हैं उन्हें 2 हजार रुपए महीना दिया जाएगा. लग ऐसा रहा था जैसे वैदिककालीन राजा ने खजाने का मुंह ब्राह्मणों के भले के लिए खोल दिया है, बाकी जातियों वाले, उन में भी खासतौर से दलितपिछड़ेआदिवासी, बदहाली में जिएं तो जीते रहें. उन की फिक्र सिर्फ भाषणों का आभूषण बन कर रह गई है.

सरकारी खजाने से तो करोड़ों रुपए जाएंगे ही लेकिन जमीनों की नीलामी से जो अरबों मिलते वे भी ब्राह्मणों को खैरात में दे दिए गए हैं. जनता के पैसे की इतनी खुली लूट एक मिसाल है जो भाजपा के राज में ही मुमकिन है. महज 6 फीसदी ब्राह्मणों को खुश करने के लिए  शिवराज सिंह ने यह रिस्क बेवजह नहीं उठाई है. असल में साल 2018 के चुनाव में ब्राह्मणों ने भोपाल की सड़कों पर आ कर उन्हें खुलेतौर पर श्राप दिया था और इसे फलीभूत करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

ब्राह्मणों की नारागजी की बड़ी वजह शिवराज सिंह का दलितों की एक सभा में सीना ठोक कर दिया गया यह बयान था कि कोई माई का लाल आप का आरक्षण छीन नहीं सकता. इस पर ब्राह्मण युवा इतने गुस्साए थे कि उन्होंने शिवराज के खिलाफ तख्तियां ले कर प्रदर्शन भी किया था. माई के लाल वाले बयान से ताल्लुक रखता एक दिलचस्प वाकेआ भोपाल के शिवाजीनगर स्थित परशुराम मंदिर में 17 अप्रैल, 2018 को देखने में आया था जब वे ब्राह्मणों की एक सभा को संबोधित करने गए थे.

शिवराज का भाषण पूरा हो पाता, इस के पहले ही ब्राह्मण युवाओं ने आक्रामक अंदाज में मंच की तरफ बढ़ते उन के खिलाफ हायहाय के नारे लगाए थे तो घबराए शिवराज सिंह चुपचाप वहां से खिसक लिए थे. जब चुनावी नतीजे आए तो कोई 30 सीटों से यह साफ हो गया था कि ब्राह्मणों की नाराजगी भाजपा को ले डूबी.

यह दोहराव न हो, इसलिए इस परशुराम जयंती पर शिवराज ने ब्राह्मणों की स्तुति धीरेंद्र शर्मा से सहमति जताते इन शब्दों से की, ‘ब्राह्मणों ने हमेशा धर्म की रक्षा की है. अगर आप देखेंगे तो हम सब को बहुत गर्व होता है कि ब्राह्मण धर्म, आध्यात्म, ज्ञानविज्ञान, योगआयुर्वेद, परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करने का काम करते हैं. ब्राह्मणों ने यज्ञोंहवनों और शस्त्रशास्त्रों सब को सुरक्षित रखने का काम किया है.’ इस पूरे झमेले से साबित यह भी हुआ कि ब्राह्मण श्राप से मुक्ति सरकारी पैसे को ब्राह्मणों को दान में देने से भी मिलती है. इस के लिए शिव आराधना करना या हनुमान चालीसा पढ़ने की अब बहुत ज्यादा जरूरत नहीं.

इस प्रसंग के पहले शिवराज सिंह चुनावी वैतरणी पार करने अपने गृहनगर विदिशा में बागेश्वर बाबा के दरबार में राम भजन गा रहे थे. इस के और पहले वे फलां मंदिर और उस के भी पहले ढिकाने मंदिर में हाथ जोड़े दंडवत हो रहे थे. सालभर उन का सार्वजनिक पूजापाठ चलता ही रहता है.

धर्मकर्म की इस धुआंधार राजनीति से आम लोगों में चुनाव को ले कर हताशा है कि कोई तुक की बात भाजपा की तरफ से नहीं हो रही. रस्म अदा करने को एकदो काम या योजनाएं गिना दी जाती हैं. हकीकत में आम लोग भी बेहतर समझने लगे हैं कि भाजपा अब धर्म बेचने की राजनीति कर रही है और चुनाव तक यह सिलसिला जारी रहेगा.

कांग्रेस की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तंज कस चुके हैं कि भाजपा ने धर्म का ठेका ले रखा है. हिंदू होने पर गर्व हमें भी है लेकिन हम वेबकूफ नहीं हैं, हम धर्म को राजनीतिक मंच पर नहीं लाते. भाजपा महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगार जैसे अहम मुद्दों से ध्यान हटा रही है.

 

गायब हैं मुद्दे

लगभग 6 महीने बाद होने जा रहे न केवल मध्यप्रदेश बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव 2024 का सैमी फाइनल करार दे रहे हैं. यह एक बेतुकी और हकीकत से परे बात है क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दों में जमीनआसमान का फर्क होता है. कई बार तो रातोंरात वोटर का मूड और इरादा बदल जाता है. इस की एक बेहतर मिसाल 232 विधानसभा सीटों वाला मध्यप्रदेश ही है.

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 115 सीटें मिलीं थी जबकि सत्तारूढ़ भाजपा 109 पर अटक कर रह गई थी. तब भाजपा को 41.6 फीसदी और कांग्रेस को थोड़े कम 41.5 फीसदी वोट मिले थे.

वोटर का मिजाज कैसे बदलता है, यह 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चला था. उस चुनाव में भाजपा को 58.5 फीसदी रिकौर्ड वोट मिले थे जबकि कांग्रेस 34.8 फीसदी वोटों पर सिमट कर रह गई थी. पूरे देश की तरह यहां भी मोदी लहर थी जिस का फायदा भाजपा को मिला था. इस के भी पहले जाएं तो 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 165 सीटें और 44.88 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 58 सीटें और 36.38 फीसदी वोट मिले थे.

इस बिना पर कोई राय कायम नहीं की जा सकती. हां, अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को ज्यादा वोट मिले थे. सीटें भी उस ने 29 में से 28 जीती थीं और 180 विधानसभा सीटों पर वह बढ़त पर रही थी. अगर इसी थ्योरी पर लोकसभा में भाजपा का भविष्य देखा जाए तो उसे विधानसभा में हारने तैयार रहना चाहिए. हकीकत में ऐसी थ्योरियां तोता छाप ज्योतिषियों की तरह सियासी पंडित गढ़ा करते हैं जिस से आम वोटरों का गणित और मूड गड़बड़ा जाता है.

मौजूदा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के पास मतदाता को लुभाने वाला कोई मुद्दा नहीं है. वे हर जाति के लोगों के लिए घोषणाएं कर रहे हैं कि आप के लिए ये कर देंगे वो कर देंगे. इस से भी बात बनते नहीं दिखी तो शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाड़ली बहिना योजना’ बड़े जोरशोर से लांच कर दी जिस के तहत बेसहारा औरतों को एक हजार रुपए महीना सरकार देगी.

भाजपा को इस योजना से बहुत ज्यादा चुनावी लाभ मिलेगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि हर कोई कहने लगा है कि हमारे खूनपसीने की कमाई यों न लुटाओ और कब तक मुफ्तखोरी फैला कर चुनाव जीतने का ख्वाब आप देखते रहेंगे. जो थोड़ाबहुत फायदा इस के बाद भी भाजपा को मिलेगा, उस से कहीं ज्यादा रोजगार के मुद्दे पर उस के वोट कटेंगे. इसी साल जनवरी में राज्य में कुल 38 लाख 93 हजार बेरोजगार थे.

ये तो वे बेरोजगार हैं जिन्होंने रोजगार कार्यालयों में पंजीयन करा रखा है, वरना तो असल बेरोजगारों की तादाद इस से कहीं ज्यादा है. मध्यप्रदेश सरकार का सब से बड़ा मजाक देखिए कि वह विधानसभा में कांग्रेस विधायक मेघाराम जाटव के किए सवाल के एवज में स्वीकार चुकी है कि पिछले 22 सालों  में रोजगार कार्यालयों में 39 लाख बेरोजगारों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. उन में से महज 21 को ही नौकरी दी जा सकी है. खुद सरकार के जारी किए गए एक आंकड़े के मुताबिक, अब राज्य में शिक्षित बेरोजगारों की तादाद 95.07 फीसदी हो गई है जो कि एक रिकौर्ड है.

बेरोजगारी का मुद्दा जब चुनाव आतेआते मुंह उठाएगा तब भाजपा को बेरोजगारों से आंख मिलाने में भी परेशानी होगी. उलट इस के, कांग्रेस इस मुद्दे को असरदार तरीके से नहीं उठा पा रही है तो इस के पीछे उस की भी कमियां व कमजोरियां हैं क्योंकि मुख्यमंत्री रहते कमलनाथ भी बेरोजगारी की बाबत कुछ खास नहीं कर पाए थे. अब उन की कोशिश यह होनी चाहिए कि बेरोजगारी का ठीकरा, जैसे भी हो, शिवराज सरकार के सिर फूटे.

उधर अपना सिर बचाने सरकार 3 महीने से वैकेंसियां निकाल रही है. पटवारी, क्लर्क, नर्स और टीचर जैसी छोटी नौकरियों के लिए लाखों नौजवान फौर्म भर रहे हैं और कुछ में प्रवेशपरीक्षा भी हो रही है. लेकिन नतीजे कब आएंगे और नियुक्तिपत्र कब मिलेंगे, यह किसी को नहीं पता. हां, यह जरूर इन नौजवानों को पता है कि इन नौकरियों में 5 हजार आवेदकों पर एक को नौकरी मिलेगी, बाकी 4,999 बेरोजगार ही रहेंगे.

 

चंबल पर ज्यादा जोर

महंगाई, बेरोजगारी और प्रदेश में सुरसा से मुंह की तरह पसरते भ्रष्टाचार पर कोई ज्यादा तवज्जुह न दे, इस के लिए चुनाव की तैयारी जाति और इलाके पर सिमटती जा रही है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस गुणाभाग और जोड़तोड़ में लगे हैं कि पिछली बार जहांजहां से हारे थे वहांवहां ज्यादा जोर लगाया जाए. चंबल इलाके में भाजपा की उम्मीद से ज्यादा दुर्गति हुई थी जहां उसे 8 जिलों की कुल 34 सीटों में से महज 7 सीटें मिली थीं, कांग्रेस 26 सीटें ले गई थी. खत्म होती बसपा के खाते में भी एक सीट गई थी.

तब चंबल ग्वालियर इलाके में खासा असर रखने वाले दिग्गज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी पार्टी कांग्रेस को जिताने में एड़ीचोटी का जोर इस उम्मीद के साथ लगाया था कि मुख्यमंत्री उन्हें ही बनाया जाएगा. उन का यह सपना पूरा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री कमलनाथ को बना दिया गया. इस के बाद पार्टी के अंदर जम कर अनदेखी होने लगी तो एक सौदेबाजी के तहत वे अपने 21 विधायकों सहित भाजपा में शामिल हो गए जिस से भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिल गया और बगैर कुछ किएधरे शिवराज सिंह चौथी बार सीएम बन बैठे.

यह साफतौर पर बेईमानी थी क्योंकि जनता ने भाजपा और शिवराज दोनों को नकार दिया था. 15 सालों बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार 15 महीने ही चल पाई. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. इस के बाद 27 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा 19 ले गई और कांग्रेस के खाते में महज 9 सीटें आ पाईं.

सौदे और वादे के मुताबिक सिंधिया कोटे के सभी प्रमुख विधायक मंत्री बनाए गए और बतौर इनाम, उन्हें राज्यसभा में ले कर उन्हें केंद्र में मंत्री भी बनाया गया लेकिन एक गिल्ट ज्योतिरादित्य सिंधिया के दिल में भी है और शिवराज सिंह के तो दिलोदिमाग दोनों में घर कर चुका है जिस से छुटकारा पाने के लिए वे धर्म का सहारा ले रहे हैं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ अब चंबल में ढीली पड़ रही है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि वे 34 में से कितनी सीटों से भाजपा की झोली भर सकते हैं. चूंकि इस इलाके में सपा और बसपा भी हैं, इसलिए मुकाबला बेहद करीबी और दिलचस्प होना तय है.हालफिलहाल तो भाजपा वोटर से ज्यादा भरोसा ऊपरवाले पर जता रही है.

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