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चारलुगाई : अच्छे विषय पर बनी लचर फिल्म

रेटिंग : 1 स्टार

निर्माता : गीता शर्मा और अशोक शर्मा

लेखक व निर्देशक : प्रकाश सैनी

कलाकार : निधि उत्तम,मानसी जैन,दीप्ति गौतम,कमल शर्मा,ब्रजेंद्र काला,सानंद वर्मा व अन्य.

अवधि :2 घंटा 23 मिनट

लगभग पूरे देश में हर गांव के तमाम पुरूष शहरों में अकेले रहकर नौकरी करते हुए धन कमाने के लिए प्रयासरत नजर आते हैं.इनकी पत्नियां गांव में रहती हैं और अपने पतियों के आने का इंतजार करती रहती हैं.पुरूष हो या औरत,यौन सुख सभी की शारीरिक जरुरत है.

पुरूष शहर में रहते हुए छोटी नौकरी करने की वजह से जल्दी गांव नहीं जा पाते.पुरूष अपनी पत्नियों को पैसे भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैंपर औरतें पति के प्यार व सैक्स की भूखी रह जाती है.पुरूष शहरों में वह अपनी सैक्स की भूख वेश्याओं के पास जाकर पूरी कर लेते हैंपर बेचारी गांव में रह रही पत्नियां अपनी सैक्स की भूख कैसे मिटाए?

यदि वह मजबूरन अपनी शरीर की इस जरुरत को गांव के किसी मर्द से पूरा करती हैं,तो उन पर बदचलन होने का आरोप लगता है.इसी मूल मुद्दे पर फिल्मकार प्रकाश सैनी फिल्म ‘चार लुगाई’लेकर आए हैं.

कहानी

फिल्म की कहानी ऊषा (निधि उत्तम), रश्मि (मानसी जैन), मीनू (दीप्ति गौतम) और रंजू (कमल शर्मा) की है जो कि मथुरा स्थित पानीगांव नामक गांव में एकदूसरे की पड़ोसी हैं. इन चारों के पति मुंबई में नौकरी करते हैं और सालदो साल घर नहीं आते हैं, जिसकी वजह से इन चारों की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं.

अपने सासससुर की प्यारी उषा ने अपनी शारीरिक जरुरतों को पूरा करने के लिए गांव के एक युवक डुग्गू (अभिनव सीशोर) को फांस रखा है.डुग्गू का रोमांस गांव के डाक्टर रस्तोगी (ब्रजेंद्र काला) की बेटी संग भी चल रहा है.यह बात रंजू को पता चल जाती है.तब एक दिन रंजू, रश्मि और मीनू को बताती है कि हम सभी की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं होती है.

अब रश्मि और मीनू फैसला करती हैं कि वह भी ऊषा को बोलकर डुग्गू के जरिए अपनी जरूरतें पूरी करेंगी.

एक दिन जब सभी लोग गांव के प्रधान के भाई की शादी में चले जाते हैंतो उसी रात ऊषा,डुग्गू को घर पर बुलाती है और बताती है कि उसे अब उसके अलावा रश्मि और मीनू की भी जरूरतें पूरी करनी होगी.

डुग्गू,ऊषा के नजदीक पहुंचता है कि बिजली चली जाती है और धड़ाम से गिरने की आवाज आती है. जब लाइट आती है तो इन चारों सहेलियों को पता चलता है कि डुग्गू की मौत हो चुकी है.

रश्मि अपने आकर्षण का उपयोग करके डा. रस्तोगी (बृजेंद्र काला) को शरीर को ठिकाने लगाने में मदद करने के लिए मना लेती है.फिर पुलिस इंस्पेक्टर संतोष (सानंद वर्मा) अपराध की जांच शुरू करते हैं.

लेखन व निर्देशन

लेखक व निर्देशक प्रकाश सैनी ने अपनी फिल्म में एक ऐसे ज्वलंत मुद्दे को उठाया है,जिस पर कोई बात ही नहीं करतालेकिन अफसोस लचर कहानी,लचर पटकथा व लचर निर्देशन के चलते यह मानवीय और शारीरिक जरुरत का मुद्दा महज एक ‘सैक्स’ की घटिया भूख बनकर रह गया है.

इंटरवल के बाद पूरी फिल्म हास्य के साथ हत्यारे की तलाश में बीतती है.जबकि इस समस्या के सबंध में काफी कुछ कहा जाना चाहिए था.पुरूष प्रधान समाज में औरतों के अकेलेपन,शारीरिक अंतरंगता के लिए उनका तरसना आदि तथा इस वजह से उत्पन्न होने वाली शारीरिक व मानसिक बीमारियों की बात की जानी चाहिए थी,मगर फिल्मकार ऐसा कुछ नहीं कर पाए.

फिल्म का ट्रीटमेंट काफी कमजोर है. वास्तव में निर्देशक प्रकाश सैनी ने एक मानवीय व औरत की जरुरत की बात करने की बजाय पूरी कहानी को अपराध व रोमांच के साथ हास्य का जामा पहना कर फिल्म का सत्यानाश कर डाला.

फिल्मकार ने प्यार और भावनात्मक समर्थन की लालसा की बजाय सारा ध्यान शारीरिक जरूरतों पर कर डाला.परिवार और आसपड़ोस के पुरुषों की चारों दोस्तों पर नजर डालने वाली बात कुछ मजबूर सी लगती है.

एक दृष्य में चारों महिलाएं अपने रुख को सही ठहराने की कोशिश करती हैं और अनुचित व्यवहार के बारे में बात करती हैंतब वह उतना उत्साहजनक नहीं हैजितना होना चाहिए था.

वह विषयवस्तु के साथ न्याय करने में बुरी तरह से विफल रहे हैं. गांव की स्थापना और पात्रों के रूप और बोली प्रामाणिक हैंलेकिन कथा असंगत है.

अभिनय

निधि उत्तम और मानसी जैन ने जोखिम भरी महिलाओं के रूप में अच्छा अभिनय किया है. कमल शर्मा, मासूम और मददगार रंजू के रूप में, और बृजेंद्र काला अपनी भूमिकाओं में जमे हैं.सानंद वर्मा का अभिनय ठीकठाक है.

कच्चे लिम्बू : नाम के अनुरूप फिल्म भी कच्ची

रेटिंग : 1 स्टार

निर्माताः नेहा आनंद,ज्योति देशपांडे,प्रांजल खंधड़िया,

लेखक: नीरज पांडे,शारण्या राजगोपाल व सुकन्या सुब्रमणियम

निर्देशक: शुभम योगी

कलाकारः रजत बारमेचा, राधिका मदान,आयुष मेहरा, महेश ठाकुर व अन्य

अवधिः 1 घंटा 46 मिनट

ओटीटीः जियो सिनेमा

भारतीय सिनेमा जगत में क्रिकेट आधारित कई फिल्में बन चुकी हैंमगर यदि हम एम एस धोनी पर बनी फिल्म ‘एम एस धोनी : अन टोल्ड स्टोरी’ को नजरंदाज कर दें तो क्रिकेट के खेल पर आधारित फिल्मों को सफलता नसीब नही हुई है.

अब फिल्मकार शुभम योगी ‘गली क्रिकेट’ के कांसेप्ट और भाईबहन के प्यार को रेखांकित करने वाली मध्यमवर्गीय परिवारों की कहानी ‘कच्चे लिंबू’ लेकर आए हैं,जो कि अपने नाम के अनुरूप कच्ची ही रह गई है.

लेखक व निर्देशक दोनों इसे सही ढंग से बना नही पाए.बहरहाल, यह फिल्म 19 मई से ओटीटी प्लेटफार्म ‘जियो सिनेमा’’ पर स्ट्रीमहुईचुकी है.

कहानी

फिल्म की कहानी के केंद्र में मध्यमवर्गीय नाथ परिवार की पिता की आज्ञाकारी बेटी अदिति (राधिका मदान ) और बड़ा बेटा आकाश नाथ (रजत बरमेचा) हैं.

आकाश नाथ केवल क्रिकेट के दीवाने हैं और अपनी गली के गली क्रिकेट के स्टार हैं. सोशल मीडिया पर आकाश की टीम,आकाश और उसकी टीम के खिलाड़ी, कबीर सेन ( आयुष मेहरा) छाए रहते हैं.

यहां तक कि आकाश नाथ के क्रिकेट खेलने के वीडियो तो सचिन भी पोस्ट करते रहते हैं.अदिति अपनी मां के कहने पर भरत नाट्यम डांस सीख रही है.जबकि पिता की आज्ञाकारी बेटी होने के कारण वह मेडिकल की पढ़ाई कर रही है.

उसका मकसद फैशन डिजायनर बनना है.उनके पिता के मुताबिक कालेज जाने वाली हर लड़की फैशन डिजाइनर बनना चाहती है.आकाश क्रिकेट जगत में कैरियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है.उसे एक ब्रांड अपने साथ जोड़ना भी चाहता है.

क्रिकेट के किंगमेकर चाहते हैं कि वह ‘अंडरआर्म प्रीमियर लीग’ का चेहरा बने. आकाश के पिता (महेश ठाकुर) चाहते हैं कि उनका बेटा आकाश नाथ एक अच्छी नौकरी पा जाए.इसके लिए वह अपने स्रोतों को फोन करते रहते हैं. लेकिन आकाश हर जगह इंटरव्यू में कह देता है कि वह क्रिकेट से बाहर की जिंदगी की कल्पना ही नहीं करता.

एक मुकाम पर आकाश अपनी बहन अदिति को अपनी खुद की टीम बनाने और उसके खिलाफ एक खेल जीतने के लिए खुले तौर पर चुनौती देता है.आकाश नाथ अपनी बहन अदिति के सामने शर्त रख देता है कि अगर अदिति की टीम ने उसकी टीम को हरा दिया तो वह नौकरी कर लेगा.

यहां से कहानी का ट्रैक अदिति को अपनी टीम बनाने में आने वाली परेशानियों,प्रेमी कबीर सेन को अपने भाई की टीम से बाहर करवा अपने साथ जोड़ने से लेकर क्रिकेट मैच तक चलती है.

लेखन व निर्देशन

‘बिन बुलाए’,‘ग्लिच’,‘सुनो’ और ‘कांदे पोहे’ जैसी लघु फिल्मों के बाद फीचरी फिल्म निर्देशक के तौर पर शुभम योगी ने लंबी छलांग जरुर लगायी है. वह उम्मीदें जगाते हैंपर यहां पूरी तरह से सफल नही रहे.

जब फिल्म ‘गली क्रिकेट’ के बारे में होतो भरत नाट्यम या फैशन आदि पिरोकर फिल्मकार ने महज दर्शकों को भटकाने का ही काम किया है.इतना ही नहीं इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह से ‘लगान’ की नकल लगती है.

फिल्म में अदिति, आकाश व कबीर सेन की निजी आकांक्षाओं,सपनों आदि पर ज्यादा बात की जानी चाहिए थीपर यह सब गायब है.

फिल्म के कुछ सीन जरुर बेहतर बन पड़े हैं.मसलन- मातापिता के साथ मतभेद होने के बाद अदिति को माता पिता के ही कमरे में एक विस्तारित बिस्तर पर सोना पड़ता है और वह चुपचाप दिल से रोती है.

यही हर मध्यवर्गीय परिवार के अंदर का कटु सत्य है क्योंकि उसके पिता आकाश को नौकरी दिलाने पर तुले हुए हैं.

फिल्मकार ने इस बात को भी अच्छे ढंग से रेखांकित किया है कि मध्यम वर्गीय परिवारों में आज भी किस तरह बेटे व बेटी के बीच अंतर किया जाता है.भाईबहन के बीच प्यार को सही अंदाज में पेश किया गया है.रूढ़िवादिता को चुनौती भी दी गई है.

फिल्मकार ने आकाशनाथ के पिता के किरदार को ठीक से लिखा नहीं गया.हर छोटी सी समस्या के समय युवा पीढ़ी को शराब का सेवन करते हुए दिखाना जरुरी तो नहीं था.क्रिकेट के मैदान पर भाई बहन प्रतिस्पर्धी बनकर उतरते हैं,पर उनके बीच वैमनस्यता या दुश्मनी के भाव न दिखाकर फिल्मकार ने एक नई सोच को जन्म दिया है.

अभिनय

आकाशनाथ के किरदार में ‘उड़ान’ फेम रजत बरमेचा का अभिनय ठीकठाक है.अदिति के किरदार में राधिका मदान केवल सुंदर नजर आई हैं.हां, एकदो इमोशनल दृश्योंमें जरुर वह छा जाती हैं.

राधिक मदान और रजत बरमेचा भाईबहनों के बीच के छोटेछोटे तनाव और उसके पीछे छिपे सम्मान और स्नेह को बाखूबी पेश करते हैं.कबीर सेन के किरदार में आयुष मेहरा निराश करते हैं.महेश ठाकुर के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.

शादी को लव जिहाद कहने पर देबोलीना का करारा जवाब ,पति को बताया सच्चा मुस्लिम

टीवी फेम एक्ट्रेस देबोलीना भट्टाचार्जी इन दिनों अपनी शादी को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं. हाल ही में वह अपने पति शहनवाज के साथ द केरल स्टोरी देखने गई थी, जिसके बाद से लगातार उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया.

एक शख्स ने उनकी शादी को लव जिहाद से जोड़ दिया, जिसके बाद से लगातार उन्हें ट्रोल किया जा रहा है. देबोलीना ने इस सवाल पर करारा जवाब दिया है, जिससे साफ पता चल रहा है कि देबोलीना अपने पति के साथ खुश हैं,

 

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देबोलीना ने सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स का जवाब देते हुए लिखा है कि वह एक सच्चा भारतीय मुस्लमान है. यह सब तब शुरू हुआ जब  राइट विंग की मेंबर साध्वी प्राची ने द केरल स्टोरी के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की है.

एक यूजर ने देबोलीना को जवाब देते हुए लिखा है लव जिहाद ऐसा ही होता है.

बता दें कि देबोलीना ने कुछ वक्त पहले ही शादी किया है, इन दोनों कि मुलाकात जिम में हुई थी, जिसके बाद से इनकी दोस्ती प्यार में बदल गई.

आयुष्मान खुराना ने नम आंखों से दी पिता की अंतिम विदाई

बीते दिनों आयुष्मान खुराना के पिता का निधन हो गया है, दिल की बीमारी से जुझ रहे पी खुराना बीते कुछ दिनों से दिल की बीमारी से जुझ रहे थें, अस्पताल में भर्ती थें. पी खुराना के अंतिम संस्कार से जो तस्वीर आई है वह दिल तोड़ने वाली है.

बता दें कि 19 मई को आयुष्मान खुराना के पिता का निधऩ हो गया है, जिसकी खबर मिलते ही परिवार वालों पर दुखों का पहाड़ टूट गया. बता दें कि आयुष्मान के पिता उनके सबसे बड़े मेंटर भी रहे हैं. आयुष्मान ने इस बात की जानकारी दी है कि हम भारी मन से आप सभी को सूचित कर रहे हैं कि अब हमारे पिता जी नहीं रहें.

पी खुराना का ज्योतिष के क्षेत्र में काफी ज्यादा योगदान रहा है, आयुष्मान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मेैं ज्योतिष पर विश्वास नहीं करता था लेकिन मेरे पिता मुझे हमेशा समझाते थें कि बेटा पब्लिक की नब्ज पकड़ो और मैंने वही किया मुझे ड्रीम गर्ल 2 में एंट्री मिल गई.

बता दें कि उनके अलावा इस फिल्म में अन्नया पांडे कि अहम भूमिका होगी, बता दें कि पी खुराना पंजाब के चंडीगढ़ से थे. उन्होंने ज्योतिष पर कई सारी पुस्तकें भी लिखी है. इस खबर से पूरे परिवार में शोक का लहर है.

ऐतिहासिक कहानी- भाग 3 : राजा और नर्तकी की प्रेम कथा

पंडितजी की दृष्टि नूरी की दृष्टि से जा टकराई, मानो वह आगे कहने की इजाजत मांग रहे हों. नूरी ने भी आंखें झुका कर के मानो पंडितजी को अपनी ओर से अनुमति दे दी. पंडितजी ने कहा, “तो सुनिए, नजरें झुकी रहीं तो रही अंजुमन खामोश,

नजरें जब उठ गईं तो हजारों बहक गए.”

नूरी इस शेर पर शरमा कर रह गई. उस के मुख पर लज्जा की रक्तिम आभा फैल गई. बड़ीबड़ी कजरारी नयनों वाली नूरी के नेत्र झुक गए. माथे पर शोभित शीर्ष फूल भी खुशी में माथे को छोड़ कर झूम उठा. गुलाबी रसीले अधरों के बीच दंतपंक्ति दमक उठी और लोग चिल्ला उठे, “वाह पंडितजी, क्या शेर है? गजब के खयालात हैं. हर शेर अपने में लाजवाब. अब आगे

फरमाइए.”

पंडितजी ने नूरी की तरफ हंसती हुई आंखों से देखा और कहा, “बेगम साहिबा, कहने की इजाजत है?”

नूरी की नजरें उठीं. पंडितजी ने रतनारी नयन सीपियों में झांक कर देखा. वे सिहर उठे. नूरी ने बड़ी ही शालीनतापूर्वक उत्तर दिया, “कहिए.”

पंडितजी ने महफिल को संबोधित करते हुए कहा, “जरा इस आखिरी शेर पर खास तौर से गौर फरमाएं.”

सामूहिक आवाज गूंज उठी, “जरूरजरूर, अर्ज करें.”

पंडितजी ने शेर पढ़ा, “उस के नूरे जिस्म की, रौनक को क्या कहें, निकला न आफताब, परंदे चहक गए. ऐसी चली बयार कि गुलशन महक गए.”

पूरा कक्ष गूंज उठा, “क्या बात है? वाह खूब. कमाल है पंडितजी. क्या नई सोच है? क्या अंदाजे बयां है. सुभान अल्लाह.” वगैरहवगैरह.

नूरी की खाला, जो अभी तक शांत बैठी थी, अपनी नूरी की इस प्रकार की प्रशंसा सुन कर बागबाग हो उठी. उस के मुंह से भी निकला, “वाह पंडितजी, वाह! इस शेर ने तो बड़ेबड़े शायरों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.”

इतना कहते ही उस ने दोनों हाथों से नूरी की बलैयां लीं. पंडितजी की तरफ से उस के दिल में दिली हमदर्दी और अपनेपन का अंकुर शायद उसी समय निकला था और नूरी तो जैसे लाज की गठरी बन कर सिमट कर रह गई. उस की चुनरी के बेजान सलमासितारे मुसकरा उठे. गर्व से वक्ष उन्नत हो उठा. पूरी देह में सिहरन का एक कंपन सा हुआ. उस क्षणिक कंपन में पैरों में

बंधे घुंघरू भी झंकृत हो उठे.

धानी सलवार और पायजामा सिहरन में दामिनी की भांति चमक उठे. कुछ देर बाद वातावरण शांत हो गया. लोगों की नजरें अब नूरी पर उठीं और केंद्रित हो गईं और उस रात के बाद तो फिर…

नूरी और पंडितजी का एकदूसरे के प्रति समर्पण बढ़ता ही गया. महफिल में हर रात जवान होती और एकांत में वे दोनों एकाकार होते. एक रात ऐसी भी आई, जब उन दोनों के प्यार की निशानी नूरी के पेट में आ गई. जब पंडितजी को यह मालूम पड़ा, तो वे बहुत दुखी हो गए. क्योंकि उन्हें बदनामी का भय था. इसलिए उन्होंने नूरी को बहुत समझाया कि वह उस निशानी को गिरा दे.

लेकिन नूरी इस पर तैयार नहीं हुई. पर पंडितजी ने उस से यह आश्वासन अवश्य लिया कि होने वाली संतान, पिता के नाम पर गुमनाम अंधेरी जिंदगी में ही जिएगी और कभी भी उस के मुंह से पिता के नाम पंडित शिवनारायण मिश्र का नाम नहीं निकलेगा.

नूरी नर्तकी नहीं बनाना चाहती थी बेटी रसकपूर को

नूरी ने कलेजे पर पत्थर रख कर यह शर्त स्वीकार कर ली. उस के ऊपर पंडितजी के प्यार की निशानी का कुछ ऐसा मोहजाल छा गया था कि वह अपना भविष्य ही भूल गई. क्योंकि जमाना कभी यह नहीं चाहता है कि एक नर्तकी कभी मां बने. उस के दिल में ममता का दीप जले. उस के स्तनों में दूध जन्म ले. उस के आंगन में कभी किसी शिशु की किलकारी या उस के नन्हेंनन्हें पैरों में बंधी पायल के घुंघरुओं की झंकार गूंजे.

पर जो जमाना नहीं चाहता है, नर्तकी के दीवाने नहीं चाहते हैं, वही हुआ. नूरी बेगम ने एक कन्या को जन्म दिया, श्वेत रूई सी कोमल. नूरी प्रसन्न हो उठी, लेकिन पंडित शिवनारायण की छाती पर मानो सांप लोट गया. नूरी के चहेतों पर मानो गाज गिर गई. उन्हें ऐसा लगा, जैसे कि नूरी ने सब के अरमानों का गला घोंट कर बहुत बड़ा कोई अपराध किया हो. और अपराध

की सजा नूरी को धीरेधीरे कटे हुए जख्म पर नमक छिडक़ने जैसी मिलती ही गई.

उस की साख गिरती ही गई. महफिल से उस के चाहने वाले एकएक कर के वृक्ष से झडऩे वाले पत्तों की तरह कटते चले गए.

बहारें खिजां बन के रह गईं. रंगीनियां बदनसीबी के आलम में डूब गईं. महफिल के ठहाकों और फिकरेबाजी का दौर कम हो गया. जयपुर की सर्वश्रेष्ठ नूरी एक साधारण नर्तकी के रूप में रह गई.

नवजात कन्या का नाम रखा गया रसकपूर. पंडित शिवनारायण मिश्र ने यह नाम इसलिए सोच कर रखा कि कपूर में शीतलता और दर्द नाशिनी शक्ति दोनों ही हैं. साथ में देवीदेवताओं की आरती उतारने के लिए एक पवित्र वस्तु है. लेकिन उन्होंने शायद कभी यह नहीं सोचा होगा कि रसकपूर पारे से निर्मित वह औषधि भी होती है, जिस से कामोत्तेजक शक्ति के साथसाथ असावधानी हो जाने पर वही रसकपूर भयंकर विष भी बन जाता है.

रसकपूर के जीवन में भी यही सब घटित हुआ. नूरी के प्यार के साए में रसकपूर पलनेबढऩे लगी. रसकपूर का बचपन इसी हवेली में ठुमकतेठुमकते बीता. जैसेजैसे वह उम्र की सीढ़ी पर एकएक वर्ष कर के चढ़ती गई, वैसे ही वैसे उस के रूप का निखार सूर्य की आभा की भांति बढ़ता गया. किशोरावस्था तक पहुंचतेपहुंचते उस के अंगप्रत्यंगों से अनिंद्य रूप गर्विता बनने

के लक्षण स्पष्ट दिखने लगे.

नूरी व पंडितजी दोनों ही उस के अप्रतिम रूपलावण्य और सुकुमारता से मन ही मन बहुत प्रसन्न थे. लेकिन दोनों की मनोस्थिति में भिन्नता थी. नूरी ने जहां अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि उस की रसकपूर बड़े होने पर पैरों में घुंघरू नहीं बांधेगी. वह अपनी मां की भांति तवायफ नहीं कहलवाएगी, लेकिन दूसरी ओर पंडितजी कुछ और ही सोचा करते

थे, जो नूरी की समझ से परे था.

पंडितजी ने कुछ और ही सोच रखा था बेटी रसकपूर के लिए

पंडितजी नूरी के कहने पर यही समझाते कि भले ही हम समाज के सामने अपने को रसकपूर का पिता न कहें, लेकिन आखिर मैं उस का पिता तो हूं ही और कोई भी पिता अपनी औलाद का अहित नहीं सोचता है.

“तो फिर आप का हित रसकपूर के पैरों में घुंघरू बांध कर महफिलों में नचा कर धन कमाने में ही है क्या?”

“नहीं, बिलकुल नहीं. लेकिन अर्जुन की तरह हमारा एक ही लक्ष्य है कि मेरी रसकपूर किसी राजमहल की महारानी बने.”

“आप तो आसमान के तारे तोडऩा चाह रहे हैं, जो जीवन में कभी भी संभव नहीं है और फिर एक तवायफ या नाचनेगाने वाली की बेटी के लिए.”

“नूर, सौंदर्य के आगे तो विश्वामित्र जैसे का तप भंग हो सकता है. मेनका भी तो वही थी, जो तुम हो. केवल अंतर स्वर्ग और मृत्युलोक का है. मेनका स्वर्ग की अप्सरा थी और तुम आज के युग में जयपुर जैसी रंगीन शामों व रातों वाले नगर की अप्सरा हो. फिर हमारी रसकपूर का तो कहना ही क्या है. शायद तुम ने कभी उस के सौंदर्य को आत्मा की गहराई में जा कर न समझा

है और न ही परखा है.”

“दुनिया में सौंदर्य की क्या कमी है? यह तो विधाता की देन है. रसकपूर से भी बढ़ कर भी तो कोई और सौंदर्य की देवी हो सकती है.”

“नहीं. विश्वास के साथ कह सकता हूं कि रसकपूर की रतनारी नयन सीपियों में ऐसे लगता है जैसे मोतियों का ढेर एक साथ समा गया हो. पुतलियां जैसे काले घुमड़ते मेघ हैं, जिन से जल के स्थान पर मद की वर्षा होती है और बरौनियां जैसे समुद्र की हिलोरें. निश्चय है कि एक बार अगर जयपुर नरेश महाराजा जगत सिंह भी इन हिलोरों की भंवर में कहीं फंस जाएं तो उन

का निकलना भी कठिन हो जाएगा. मेरे तीर का निशाना बस यही है नूर. लेकिन इस में तुम्हें बस मेरे तीरों के लिए धनुष बनना पड़ेगा.”

 

“मतलब क्या है? साफसाफ कहिए.”

“यही कि रसकपूर को नृत्य और गायन में ऐसी निपुणता हासिल हो जाए कि वह तुम्हें भी कोसों पीछे छोड़ दे.”

“आप अपनी औलाद को नाचते हुए देखना पसंद करेंगे और वह भी महफिलों में?”

“नृत्य और महफिल दोनों अलगअलग तथ्य हैं, अलग-अलग पहलू हैं. नृत्य और गायन कलाएं हैं और कलाएं भी सामान्य कलाएं नहीं, बल्कि ललित कलाओं के नाम पर जहां एक ओर नृत्य नटराज शिव का प्रसाद है, वहीं दूसरी ओर गायन मां सरस्वती की कृपा है. नृत्य और गायन दोनों में ही लय है. लय में ही रागात्मकता है. रागात्मकता में ही असीम प्रेम की अनुभूति है. उस अनुभूति में ही सम्मोहन है. उस सम्मोहन में ही आत्मा का आनंद है और आत्मा का आनंद ही जीवन का सच्चा सुख है, जीवन का सच्चा आनंद परमानंद है.

“रही बात महफिल की, वह तो एक कसौटी है, जिस पर नर्तन और गायन की गुणवत्ता कसी जाती है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी रसकपूर नृत्य और गायन कला में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करेगी और जिस दिन वह मेरे लक्ष्य प्राप्ति में सफल हो जाएगी, उस दिन मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा.

“मैं अपने को परम भाग्यशाली समझूंगा. उस दिन संभव है कि मैं बड़े गर्व से कह सकूं कि रसकपूर एक तवायफ या नर्तकी की बेटी नहीं, बल्कि पंडित शिवनारायण मिश्र की बेटी है. उस दिन भले ही मेरे ऊपर तिरस्कार और बदनामी के हृदयभेदी बाण चलाए जाएं, मैं उन सब की पीड़ा खुशी से सहन कर लूंगा, क्योंकि मुझे अपने लक्ष्य में सफलता पाने का गर्व होगा.”

इस के बाद वह समय भी आ गया, जब नूरी ने अपने पंडितजी की इच्छा पूरी करने के लिए अपने भावी भविष्य की सुखद कल्पनाओं के संसार को अपने ही हाथों छिन्नभिन्न कर दिया. अपनी सुखद आशाओं को कच्चे धागे की तरह तोड़ कर रख दिया.

नूरी ने अपने हृदय को भर लिया एक असहनीय मर्मांतक वेदना से, जिस को सहने के लिए उस ने घुटघुट कर जीना स्वीकार कर लिया.

नृत्य और गायन में पारंगत हो गई रसकपूर

जीवन की शतरंजी चाल में पंडित शिवनारायण मिश्र की जीत हुई. रसकपूर के पैरों में नूरी के न चाहते हुए भी घुंघरू आखिरकार बंध ही गए और उन घुंघरुओं की झंकार में नूरी को रसकपूर की ओर से भावी भयंकर अट्ïटहास की भयानकता सुनाई पडऩे लगी. रसकपूर को नूरी के पुराने उस्ताद रहमत खां और गुरु बृजनिधि के शिष्यत्व में सौंप दिया गया.

उस्ताद रहमत खां ने उसे शास्त्रीय संगीत में पारंगत बनाया, वहीं गुरु बृजनिधि ने कत्थक में उसे शिक्षा दे कर पारंगत बना दिया. रसकपूर को वीणा, सितार वादन के साथसाथ शास्त्रीय गायन की विधिवत शिक्षा उस्ताद रहमत खां ने दे कर दक्ष बना दिया. रसकपूर ने अपनी अटूट लगन, अनवरत साधना, अथक परिश्रम से जल्दी ही एक श्रेष्ठतम गायिका और नृत्यांगना के

रूप में अपने दोनों गुरुओं का शुभ आशीर्वाद प्राप्त कर लिया.

उस के कंठ से गायन के नाम पर रागों की परिपक्वता और अविरल मिठास के साथसाथ नृत्य में घुंघरुओं की स्वरलहरी में किसी सरिता के प्रवाह जैसी निश्छलता, मधुरता एवं मनमोहकता थी. उस के पैरों की थिरकन में बिजली जैसी चपलता की चर्चा कांचमहल की रंगीन दीवारों से एक मादक गंध की भांति निकल कर, नगर के कलावंतों और रसिकों के कानों तक पहुंच

गई.

वे लालयित हो उठे, उस की अनूठी रूपराशि को देखने के लिए. उस के नृत्य व संगीत का असीम आनंद प्राप्त करने के लिए, लेकिन यौवन की दहलीज की ओर कोमल कदम बढ़ाती हुई रसकपूर को देखना उतना ही असंभव था.

उस समय जयपुर के महाराजा जगत सिंह द्वितीय थे. सवाई प्रताप सिंह के बेटे सवाई जगतसिंह ने 15 वर्षों तक शासन (1803-1818) किया. कच्छवाहों की गौरवशाली पंक्ति में सब से अभागा शासक जगत सिंह द्वितीय, एक राजा के रूप में नहीं बल्कि एक प्रेमी और लापरवाह बांका के रूप में याद किए जाते हैं.

 

मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णा कुमारी, जो एक प्रसिद्ध सुंदरी थी, का हाथ जीतने के लिए जोधपुर के राजा के खिलाफ एक सेना का नेतृत्व करने में संकोच नहीं किया. यह एक दु:खद असफलता में समाप्त हुआ, जब राजकुमारी कृष्णा कुमारी ने आत्महत्या कर ली.

राजा जगह सिंह ने रसकपूर को सभी रानियों से ज्यादा दिया प्यार

जगत सिंह की 21 रानियां और 24 रखैलें थीं. जगत सिंह बाद में असाधारण सुंदरता और मधुर आवाज वाली रसकपूर, जो एक नर्तकी थी और तवायफ व नर्तकी नूरी बेगम की पुत्री थी. पहली नजर में ही आसक्त हो गए. रसकपूर का नृत्य देखने के बाद महाराजा जगत सिंह उसे पाने को मचल उठे.

जगत सिंह को रसकपूर के आगे अपनी 21 रानियां और 24 रखैलें फीकी लगने लगीं. उसे जगत सिंह ने इतना मानसम्मान व प्यार दिया कि वह भी जगत सिंह की दीवानी बन गई. जगत सिंह और रसकपूर रास रचाने लगे.

रसकपूर के रूप पर महाराजा इतने मुग्ध हुए कि वह कई दिनों तक उस की आगोश में दिनरात पड़े रहते थे. यह सब रानियों व राजपूत सरदारों को बहुत अखर रहा था, मगर वे करते भी तो क्या. राजा जगत सिंह पर रसकपूर का जादू इस कदर छाया था कि राजकाज भूल कर उसी के मोहपाश में बंध गए.

रसकपूर ने नृत्य व गायन सीखने के बाद दरबार की संगीत महफिलों में जाना शुरू किया. जगत सिंह ने रसकपूर को महफिल में पहली बार देखा और वे उस की अनुपम सुंदरता पर मर मिटे. एक समय ऐसा आया, जब रसकपूर जो कहती, वही रियासत में होता. वह महाराजा के साथ सिंहासन पर दरबार में बैठने लगी और उसे सामंतों की जागीरी के फैसले करने का अधिकार मिल गया.

महाराजा जगत सिंह ने अपने जन्मदिन पर रसकपूर के लिए हवामहल में रस विलास महल भी बनवा दिया. महाराजा ने लोकनिंदा की परवाह नहीं की और प्रेयसी रसकपूर को अपने साथ हाथी के हौदे पर बिठा कर नगर में फाग खेलने (होली खेलने) निकल गए. इतना ही नहीं महाराजा ने रसकपूर को आधा राज्य भी दे दिया.

यह सब देख कर रानियों ने सामंतों से कहा कि वे या तो रसकपूर का इलाज करें या फिर चूडिय़ां पहन लें. तब विश्वस्त सामंतों ने एक रोज मौका पा कर रसकपूर पर कई तरह के आरोप लगा कर उसे जगत सिंह की अनुपस्थिति में नाहरगढ़ किले में कैद करवा दिया.

वर्ष 1818 में अंग्रेजों से संधि के बाद जगत सिंह को दुश्मनों ने षडयंत्र रच कर जहर दे कर हत्या करवा दी. जगत सिंह की मृत्यु की खबर रसकपूर को मिली तो वह वेश बदल कर नाहरगढ़ किले से निकल भागी और गेटोर श्मशान में जगत सिंह की धधकती चिता में कूद गई.

रसकपूर एक तवायफ की संतान जरूर थी. मगर वह राजा जगत सिंह का प्यार पा कर निहाल हो उठी थी. भले ही राजा ने रसकपूर को पत्नी का दरजा नहीं दिया था, मगर वह उन की सच्ची प्रेमिका थी. यह उस ने राजा जगत सिंह की जलती चिता में कूद कर प्राण दे कर साबित कर दिया.

जयपुर के जौहरी बाजार का कांचमहल आज भी रसकपूर की याद ताजा कर देता है. इस प्रेमकथा का अंत इतना भयानक हुआ कि उस समय के लोगों की रूह कांप गई थी. आज भी यह कहानी सुनने वाले सहम जाते हैं.

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के नोट बंदी का जिन्न

आठ नवंबर 2016 की ऐतिहासिक नोट बंदी के ठीक साढ़े छह साल बाद अब “दो हजार के नोटों” को चलन से हटाने की घोषणा अबकी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने नहीं बल्कि सरकार के निर्देशानुसार भारतीय रिजर्व बैंक ने की है. जिससे एक बार फिर देश में सन्नाटा पसर गया है और लोग नोट बंदी को लेकर के कयास लगाने लगे हैं.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि नोटबंदी का चक्रव्यूह बुनकर के नरेंद्र मोदी ही उसमें बुरी तरह फस गए हैं और जितनी आलोचना नोटबंदी को लेकर के नरेंद्र मोदी की हुई है कि अब संभवत उन्हें भी साहस नहीं है कि सामने आकर स्वयं इसकी घोषणा करते, इसके बजाय जब नरेन्द्र मोदी विदेश यात्रा पर हैं तब यह घटना क्रम सामने आया है.

पहले नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री बतौर अचानक रात 8 बजे टेलीविजन पर प्रकट होकर यह घोषणा की थी कि देश में चल रहे नोट अब लीगल टेंडर नहीं रहेंगे. नरेंद्र मोदी को संभवत ऐसा लगा था मानो वह बहुत महान काम करने जा रहे हैं और देश उनका इसके लिए सदैव ऋणी रहेगा, मगर हुआ उल्टा.

दो हजार के नोटो को बंद करने की घोषणा के साथ एक बार फिर नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर हैं और इसे “नोटबंदी दो” कहा जा रहा है. तब एक झटके में देश में नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. अब नोटों को चलन से बाहर नहीं किया गया है, बल्कि 30 सितंबर तक बैंकों में जाकर बदलवाया जा सकता है.
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने जब नोट बंदी की थी तो यह ऐलान किया था कि 2000 के नोट और नोट नीति के कारण आने वाले समय में देश से “काला धन” खत्म हो जाएगा “आतंकवाद” समाप्त हो जाएगा.

यह दोनों ही चीजें नहीं हो पाई उन्होंने बड़े गर्व के साथ कहा था कि नोटबंदी के लाभ देश की जनता को नहीं मिलेंगे तो बीच चौराहे पर उन्हें दंडित किया जा सकता है. देश की जनता के गुस्से को इस तरह काम करने का काम नरेंद्र मोदी ने किया था. मगर धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता चला गया कि नरेंद्र मोदी की सिर्फ एक ही मंशा थी कि पूर्ववर्ती सरकार के नोटों को बंद करके अपनी करेंसी लाई जाए और इतिहास में अपना नाम और हुकूमत दर्ज करा दी जाए. मगर कुल जमा यह दांव उल्टा ही पड़ा है. और नरेंद्र मोदी की जितनी छवि नोटबंदी के कारण खराब हुई है बाकी सभी घटनाक्रम एक तरफ कहे जा सकते हैं.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार के आंकड़ों से यह साफ है कि कुछ समय से काला धन रखने के लिए दो हजार रुपए के नोटों का प्रयोग लोग करने लगे थे भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी
इस मसले को संसद में भी उठा चुके हैं. वर्ष 2019 से ही आरबीआई ने दो हजार के नोटों को छापना बंद कर दिया है. आमतौर पर बाजार में 2000 के नोट वैसे भी दिखने कम हो गए थे और यह जन चर्चा का विषय था कि अघोषित रूप से 2000 का नोट बंद हो चुका है सरकार साहस नहीं कर पा रही है कि सामने आकर कह सके कि सच यह है. अब नरेंद्र मोदी सरकार फिर नोटबंदी 2 के कारण विवादों में आ गई है.

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विपक्ष के जायज सवाल

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भारतीय रिजर्व बैंक की यह घोषणा जैसे ही लोगों तक पहुंची आवाम के सामने नोटबंदी के वह सारे दृश्य सामने आ गए वह त्रासदी भला कौन भूल सकता है. इधर दूसरी तरफ कांग्रेस ने भारतीय रिजर्व रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 2,000 रुपए के नोट को सितंबर, 2023 के बाद चलन से बाहर करने की घोषणा किए जाने के बाद सरकार पर निशाना साधा और कटाक्ष करते हुए कहा, ” नोटबंदी वाला ‘जिन्न’ फिर से लोगों को परेशान करने के लिए बाहर आ गया है तथा सरकार को ऐसे कदम के मकसद के बारे में बताना चाहिए.”

कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी पर सरकार अपना ‘जन विरोधी और गरीब विरोधी एजंडा’ जारी रखने गंभीर आरोप लगाया है.महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘स्वयंभू विश्वगुरु की चिरपरिचित शैली. पहले करो, फिर सोचो.आठ नवंबर, 2016 को तुगलकी फरमान (नोटबंदी) के बाद बड़े धूमधाम से 2000 रुपये का नोट जारी किया गया था.अब इसे वापस लिया जा रहा है.’

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा,- “आठ नवंबर, 2016 का जिन्न फिर से देश को परेशान करने के लिए लौट आया है. नोटबंदी देश के लिए भयावह त्रासदी बना हुआ है.प्रधानमंत्री ने 2000 रुपए के नोट के फायदों के बारे में देश के समक्ष उपदेश दिया था.” यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का यह नोट बंदी का ऐलान देश कभी नहीं भूल पाएगा. यह भी बड़ा सवाल है कि नोट बंदी को लेकर के जहां भारतीय जनता पार्टी में कुछ समय तक इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए हर साल 8 नवंबर को मोदी जी को धन्यवाद ज्ञापित करने का नाटक किया. मगर जब पोल खुलने लगी तो अब भाजपा के नेता नोटबंदी का नाम लेने से भी कतराते हैं.

प्रेगनेन्सी से पहले घटाएं वजन

मोटी महिलाएं मां बनना चाहती हैं तो हो जाएं सावधान. पहले आपको अपना वजन घटाना होगा फर आप बन सकती हैं मां एक नए अध्ययन के मुताबिक,  भारत में मोटापे की दर तेजी से बढ़ रही है. भारतीय महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मोटी होती हैं.

सिर्फ भारत ही नहीं महिलाओं के मोटापे की समस्या हर जगह है. हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में जहां 2 करोड़ महिलाएं मोटी थीं, वहीं पुरुषों की संख्या 98 लाख ही थी.

ओबेसिटी यानि मोटापा कई तरह की बीमारियों का घर है. इंफर्टिलिटी,  डायबिटीज,  सांस की दिक्कत से ले कर दूसरी छोटीबड़ी समस्याएं मोटापे से जुड़ी हैं.

सत्तर फीसदी महिलाओं को अधिक वजन होने की वजह से गर्भधारण करने में दिक्कत होती है.

महिलाओं का समय पर गर्भधारण न कर पाना बहुत ज्यादा गंभीर विषय है क्योंकि समाज में मातृत्व को नारीत्व से जोड़ कर देखा जाता है. इसके साथ ही परिवार को आगे बढ़ाने के लिए भी महिलाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. समाज में स्त्रीत्व व मातृत्व को अलगअलग नहीं माना जाता है. इसी सोच की वजह से महिला जब गर्भधारण करने में असमर्थ होती है तो वह बहुत ज्यादा मानसिक प्रताड़ना झेलती है.

आईओएसआर जनरल आफ नर्सिंग व हेल्थ साइंस में प्रकाशित 2014 के रिसर्च अध्ययन के परिणामों के अनुसार महिलाओं में मोटापा और बांझपन के साथ मानसिक तनाव उनके जीवन और यौन कार्यक्षमता को प्रभावित करता है.

इस बारे में नई दिल्ली स्थित बीएलके सुपर स्पेशैलिटी अस्पताल के सर्जिकल गैसट्रोइंटरो विभाग, बैरीऐट्रिक और मिनिमल एक्सेस सर्जरी के डायरेक्टर डा. दीप गोयल का कहना है कि  ‘‘दुबली महिलाओं के मुकाबले मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में बांझपन की समस्या का रिस्क तीन गुना ज्यादा होता है. ज्यादा वजन महिलाओं को प्रजनन के प्रत्येक स्टेज को प्रभावित करता है.’’

विभिन्न अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि शरीर में वसा जमा होने पर पुरुष हार्मोन एंड्रोजन उत्पन्न होने लगता है जिस से फालीक्यूलर परिपक्वता पर असर पड़ता है और इस से बांझपन की संभावना हो सकती है. अध्ययनों के अनुसार गर्भधारण करने से पहले मोटापे से ग्रस्त महिलाओं को अतिरिक्त चर्बी को कम करने की आवश्यकता है जिस से उन के गर्भधारण की संभावना बढ़ सके.

शारीरिक गतिविधियों और डाइट को नियंत्रित करके काफी हद तक वजन नियंत्रित किया जा सकता है, आधुनिक तकनीक बैरीऐट्रिक सर्जरी की मदद से भी स्थिर वजन कम किया जा सकता है.

बैरीऐट्रिक सर्जरी में पेट के आकार को छोटा कर दिया जाता है जिस से रोगी को कम खाना खा कर भी पेट भरे होने का एहसास होता है. इसके साथ अन्य मेटाबॉलिक बदलाव भी होते हैं क्योंकि पेट और छोटी आंत वजन कम करने में सहायक होते हैं. यह प्रक्रिया पर निर्भर करता है कि सर्जरी के बाद रोगी 85 से 90 प्रतिशत अतिरिक्त वजन कम कर सकते हैं और 70 से 80 फीसदी तक मेटाबॉलिक विकारों में सुधार कर सकता है.

मेरे विवाह को 1 वर्ष हुआ है, मैं सैक्स लाइफ एंजौय कर सकूं, इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं विवाहित महिला हूं. विवाह को अभी 1 वर्ष ही हुआ है. समस्या यह है कि मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं, मुझे दर्द व तकलीफ से गुजरना पड़ता है. जिस की वजह से मैं सैक्स संबंध को एंजौय नहीं कर पाती. मैं अपनी इस समस्या को ले कर बहुत स्ट्रैस में रहती हूं. लेकिन समझ नहीं आता कि किस से अपनी समस्या शेयर करूं. मैं अपनी सैक्स लाइफ एंजौय कर सकूं, इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

हाल ही में ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि 10 में से 1 महिला को सैक्स के दौरान दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है. आप को सैक्स के दौरान दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है तो इस को ले कर हिचकिचाएं नहीं और अपने पति से खुल कर यह बात शेयर करें. क्योंकि यह सामान्य बात है.

अगर आप किसी बात को ले कर स्ट्रैस में हैं या चिंतित हैं तो आप अपनी गाइनीकोलौजिस्ट से भी इस बारे में सलाह लें. क्योंकि सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि चिंता व भावनात्मक कारणों से सैक्स संबंध के दौरान दर्द व तकलीफ की समस्या और बढ़ती है.

यह समस्या 20-30 वर्ष की आयु की महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है. आप अपने पार्टनर और गाइनीकोलौजिस्ट से इस बारे में खुल कर बात करें. पति से अपनी पसंद और नापसंद को शेयर करें. ऐसा करने से काफी हद तक आप की समस्या का समाधान हो जाएगा.

नवजात के लिए संजीवनी साबित होती गर्भनाल

घर में नए मेहमान के आते ही मांबाप की पूरी जीवनशैली बदल जाती है. ज्यादातर मातापिता स्वस्थ खानपान अपनाते हैं. उन के द्वारा सभी प्रयास अपने शिशु को स्वस्थ भविष्य देने की हसरत के साथ किए जाते हैं. इन सब प्रयासों के अलावा शिशु और पूरे परिवार के स्वस्थ भविष्य के लिए मातापिता को एक और जरूरी कदम भी उठाना चाहिए.

यह जरूरी कदम शिशु के जन्म पर स्टेम कोशिकाओं को सुरक्षित रखने का है. भारत में करीब 15 स्टेम कोशिका बैंक हैं. अगर आप के मन में सवाल हो कि यह क्यों जरूरी है, तो यहां इस के प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं कि शिशु की गर्भनाल सुरक्षित रख कर कैसे आप खुद को व शिशु को सर्वोत्तम उपहार दे सकते हैं.

गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं से समृद्ध होती है: शरीर के विभिन्न अंगों में स्टेम कोशिकाएं पाई जाती हैं, लेकिन गर्भनाल विशुद्ध और युवा स्टेम कोशिकाओं का समृद्ध भंडार है. ये स्टेम कोशिकाएं एक तरह से मास्टर कोशिकाएं होती हैं, जो पूरे शरीर के लिए बिल्डिंग ब्लौक की तरह काम करती हैं. जन्म के समय अपने शिशु की गर्भनाल से एकत्र करने पर ये स्टेम कोशिकाएं 80 से अधिक चिकित्सा स्थितियों का इलाज करने में प्रयोग हो सकती हैं, क्योंकि इन में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को बदलने व मरम्मत करने दोनों की क्षमता होती है. प्रकृति के इस अनूठे उपहार को सुरक्षित करने का मौका सिर्फ शिशु के जन्म के समय ही मिलता है.

गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को एकत्र करने में आसानी: स्टेम कोशिकाएं सुरक्षित करने के लिए गर्भनाल का रक्त सब से आसान तरीका है. शिशु के जन्म के ठीक बाद गर्भनाल को क्लैंप कर के गर्भनाल के रक्त और टिशू को फुरती से चंद सैंकड्स में एकत्र कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया से शिशु या मां को कोई खतरा नहीं रहता है. एकत्र किए नमूने लैब में भेजे जाते हैं, जहां उन्हें भविष्य में प्रयोग के लिए संरक्षित किया जाता है. गर्भनाल की कोशिकाएं जरूरत के समय सुसंगत स्टेम कोशिका यूनिट पाने का सब से त्वरित तरीका भी है.

यदि आप ने जन्म के समय समझदारी से अपने शिशु की स्टेम कोशिकाएं संरक्षित कराई हों तो आप को डोनर स्टेम कोशिकाएं खोजनी नहीं पड़ती हैं. स्टेम कोशिकाएं ह्यूमन ल्युकोसाइट ऐंटीजेन आधार पर मैच की जाती हैं, जो स्टेम कोशिकाओं की सतह पर पाया जाने वाला एक तरह का प्रोटीन होता है. स्टेम कोशिकाओं के अन्य स्वरूपों के विपरीत गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं से प्राप्त स्टेम कोशिकाओं के लिए 4/6 का आंशिक एचएलए मैच पर्याप्त है.

कैसे संरक्षित की जाती हैं स्टेम कोशिकाएं: जब लैब में नूमना आता है तो उसे परीक्षण के लिए ले जाते हैं. नमूना संक्रामक बीमारियों से मुक्त है. यह सुनिश्चित करने के लिए आमतौर पर मां का रक्त नमूना लिया जाता है. स्टेम कोशिका प्रोसैसिंग शुरू करने से पहले कोशिका गिनती और व्यवहार्यता (कोशिकाएं सक्रिय हैं और संरक्षण के लिए उपयुक्त हैं, यह देखने) की जांच के लिए गर्भनाल का रक्त नमूना भी लिया जाता है. गर्भनाल के रक्त में न केवल स्टेम कोशिकाएं, बल्कि रक्त के अन्य घटक भी होते हैं, जिन्हें संरक्षण से पहले हटाना पड़ता है. स्टेम कोशिकाओं से लाल रक्त कणिकाओं को अलग करने के लिए गर्भनाल रक्त को सैंट्रीफुगेशन व अन्य तकनीकों से गुजारा जाता है.

अच्छी स्टेम कोशिका ऐक्सट्रैक्शन तकनीक 2 बातों पर निर्भर करती है:

पहली- उच्च स्टेम कोशिका रिकवरी. नमूने से रिकवर की गई स्टेम कोशिकाओं की मात्रा, जो स्टेम गणना तकनीक द्वारा अनुमानित हो सकती है.

दूसरी- आरबीसी की कमी. नमूने से स्टेम कोशिकाएं ऐक्सट्रैक्ट करने के बाद वे विभिन्न गुणवत्ता परीक्षणों से गुजरती हैं ताकि स्टेम कोशिकाओं की स्टरिलिटी और व्यवहार्यता सुनिश्चित हो.

स्टेम कोशिकाओं का संरक्षण: यदि ऐक्सट्रैक्ट की गई स्टेम कोशिकाएं व्यवहार्य, दूषण से मुक्त हों और वांछित मात्रा में कोशिका वृद्धि दर्शाएं तो उन्हें क्रायो वायल में रखा जाता है और क्रायोप्रिजर्वेशन एरिया में ले जाते हैं. दीर्घकालीन भंडारण के लिए स्टेम कोशिकाओं को क्रायोप्रिजर्वेशन कक्ष में सावधानी से रखा जाता है. सफल संरक्षण पर स्टेम सैल बैंक माता को प्रिजर्वेशन सर्टिफिकेट देता है, जिस में कोशिका गणना, संरक्षण तारीख आदि की जानकारी होती है.

स्वास्थ्य प्रोफैशनल्स का विश्वास: डाक्टरों द्वारा स्टेम कोशिकाओं के अन्य स्रोत के बजाय गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को वरीयता दी जाती है, क्योंकि इस में शुद्धता, बेहतर सुमेल सुविधा, मरीजों में अस्वीकार की कम दर और प्रत्यारोपण के दौरान बेहतर परिणाम जैसे बेजोड़ गुण होते हैं.

स्टेम कोशिका बैंकिंग किफायती है यदि आप ने अपने शिशु के जन्म के समय गर्भनाल को सुरक्षित नहीं किया है तो जरूरत के समय डोनर स्टेम कोशिकाओं को हासिल करने की लागत लगभग 15-20 लाख हो सकती है. हालांकि यदि आप ने अपने शिशु की गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को सुरक्षित कर लिया हो तो सिर्फ 60 हजार बेसिक संरक्षण लागत पर अपने शिशु समेत पूरे परिवार को इस का लाभ मिल सकता है. इस तरह गर्भनाल संरक्षण पूरे परिवार के लिए बेहद किफायती और लाभदायक है.

अपने शिशु की गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को संरक्षित करने के अपने समझदार फैसले के बाद सही स्टेम सैल बैंक चुनना न भूलें, जो आप के फायदों को बढ़ाए. आदर्श स्टेम सैल बैंक चुनने के लिए अनिवार्य मानदंड ये हैं:

– एएबीबी, आईएसओ, डीजीसीआई, सीएपी प्रमुख शासकीय संस्थाओं से मान्यता.

– स्टेम सैल बैंक की वित्तीय मजबूती.

– उन मातापिताओं का बेस जो अपने शिशु की स्टेम कोशिकाएं बैंक को सौंप चुके हैं.

– प्रयुक्त प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी, जो स्टेम कोशिकाओं की सर्वोच्च रिकवरी रेट देती है.

– बैकिंग का मौडल जिसे कम्यूनिटी स्टेम सैल बैंक नाम से जाना जाता है. कम्यूनिटी स्टेम सैल बैंक अपनी स्टेम कोशिकाएं संरक्षित करने वाले मातापिताओं के समुदाय के बीच स्टेम कोशिकाओं को साझा करने के कौंसेप्ट पर काम करता है. स्टेम सैल बैकिंग का यह मौडल शिशु, उस के भाईबहन, मातापिता, दादादादी इत्यादी को लाभ दे सकता है.

अंत: अपने शिशु की स्टेम कोशिकाओं के संरक्षण द्वारा परिवार की खुशियों को आजीवन कायम रखा जा सकता है, क्योंकि इन के संरक्षण से पूरे परिवार को आरोग्य का आधार मिलता है.

– मयूर अभया, सीईओ, एमडी, लाइफसेल का संदेश

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