Download App

Cannes 2023 : ऐश्वर्या की फोटो पर कमेंट कर फसें विवेक अग्निहोत्री, उर्फी ने दिया ये जवाब

विवेक अग्निहोत्री आएं दिन अपने बयान पर फंस जाते हैं, जिसे लेकर कंट्रोवर्सी का शिकार हो जाते हैं. विवेक हाल ही में ऐश्वर्या राय को लेकर बयान दिए हैं. दरअसल, ऐश्वर्या राय के हुडी वाले ड्रेस को संभालने वाले व्यक्ति को लेकर कुछ ऐसा बयान दे दिया है जिससे वह चर्चा में आ गए है.

विवेक अग्निहोत्री के इन बातों का जवाब उर्फी जावेद ने सोशल मीडिया पर दिया है, जिसे लेकर फैशन इंडस्ट्री के लोग भी कुछ न कुछ कहते नजर आ रहे हैं. द कश्मीर फाइल्स मेकर्स अक्सर अपने बयान को लेकर चर्चा में बने रहते हैं.

विवेक अग्निहोत्री ने लिखा कि क्या आपने कऊी कॉस्टयूम सेलेव्स शब्द का नाम सुना है, अब लगभग भारत में भी अब लगभग हर फिमेल सेलेब्स के साथ देखा जा सकता है. हम अनकंफर्टेबल फैशन के लिए इतने लाचार क्यों बन जाते हैं.

बताते चले की ऐश्वर्या ने रेड कारपेट पर सोफी टंडन का डिजाइन किया हुआ गॉउन पहना हुआ है. बता दें कि बड़ी सी हुड़ी को लेकर काफी ज्यादा चर्चा हुआ है.  इस पोस्ट के बाद से उर्फी जावेद ने जमकर सोशल मीडिया पर विवेक को जवाब दिया है. उर्फी ने लिखा है कि मैं जानना चाहती हूं कि आपने कौन से फैशन स्कूल से डिग्री ली है. आपको देखकर लगता है कि आपको फैशन का काफी समझ है आपको फैशन मूवी डायरेक्ट करनी चाहिए.

आकाश से भी ऊंचा : भाग 4

‘‘रानोजी, अब कैसी हैं आप. उंगलियां तो नहीं जलीं. रात में तो मैं ठीक से देख नहीं पाया था,” शलभ बोला.

अब तो रानो का चेहरा और भी दम उठा. झुके चेहरे से ही ‘नहीं’ कह कर चेहरा और भी नीचे झुका लिया.

‘‘और कहिए बन्नी रानी, आप के क्या हाल हैं.’’ संजय बोला.

‘‘बस जीजाजी, कृपा है हम सालियों पर आप की. रानो को आग की लपटों से बचा कर पुरस्कार देने योग्य काम कर दिया है आप लोगों ने,’’ उमा भी संजय की तरह विनोदी स्वभाव की थी, सो बोल पड़ी.

‘‘अरे भई, दिलाइए न पुरस्कार. क्या दे रही हैं?’’

‘‘जो आप चाहें,’’ कहती हुई उमा रानो की ओर देख कर मुसकरा दी. रानो की उठी हुई पलकें फिर झुक गईं. एकबारगी तो शलभ का कंठ कुछ कहतेकहते अटक गया. फिर हिम्मत कर के बोल ही पड़ा, ‘‘तो फिर मेरी फरमाइश पूरी करा दीजिए. समझ लूंगा पुरस्कार पा लिया. एक गजल सुनवा दीजिए.’’

रानो अभी भी छुईमुई सी चुपचाप बैठी थी.

‘‘अच्छा तो रानोजी, अपनी जान बचाने वाले को पुरस्कार दीजिए.’’

‘‘दीदी, जिसे गाना या गजल सुनने का शौक होता है वह खुद भी अच्छा गायक होता है. पहले शलभजी कुछ सुनाएंगे, फिर मैं.’’

‘‘ये रही न बात. तो शलभजी, पहले हमारी फरमाइश पूरी करिए,’’ उमा चहकी.

‘‘अब एक नहीं सुनी जाएगी छोटे जीजाजी. बस, शुरू हो जाइए चुपचाप. देख रहे हैं न सालेसालियों का जमघट.’’

शलभ को बहुत के आगे झुकना पड़ा. उस ने फिल्मी गीत गाया. सुनते ही चारों ओर तालियां बजीं.

अब बारी थी रानो की. उस ने गजल गाई तो जैसे समां बंध गया. फिर तो जैसे होड़ लग गई. बारीबारी से सब ने कुछ न कुछ सुनाया. शलभ और रानो ने तो जैसे रिकौर्ड ही तोड़ दिए. अब तो खाने के समय को छोड़ कर दिनभर महफिल जमी रहती. बरात आने तक बराबर दिनरात जैसे गीतों के खजाने खुल गए.

अकेले में जब भी कभी रानो दिख जाती तो शलभ उस की तारीफ किए बिना न रहता. हर क्षण हासपरिहास तथा मस्तीभरा बीत रहा था. कब उस की शादी हो गई और 8 दिन बीत गए, वह जान ही न सका.

उमा के विदा होने के बाद घर उदास अवश्य हो गया पर शादी सकुशल संपन्न हो गई थी, इस से सब संतुष्ट थे.

उस दिन दोपहर के खाने के बाद शलभ उसी कमरे में लेटा था जहां उमा रहती थी. संजय भी थकाहारा पड़ा था और भी नन्हेमुन्ने बच्चे फर्श पर खर्राटे ले रहे थे.

तभी रानो किसी काम से आई और उसे बैठा देख कर झेंप कर लौटने लगी तो शलभ ने पुकार कर रोक लिया. ‘‘आओ रानो, बैठो न थोड़ी देर. अब मैं गजल की फारमाइश नहीं करूंगा. वह माहौल तो उमा के विदा होते ही चला गया. अब मैं भी कल जाने की सोच रहा हूं. तुम से कुछ बातें करना चाहता हूं, बैठो न,’’ यह कहते हुए उस ने हाथ पकड़ कर रानो को पास में बैठा लिया. फिर कुछ क्षण हाथ वैसे पकड़े रह कर बोला, ‘‘आप तो रहेंगी अभी?’’

रानो का चेहरा सुर्ख हो उठा. मुट्ठी पसीने से तर हो गई.

‘‘परसों जाएंगे हम,’’ वह किसी तरह बोली.

‘‘अरे, इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, वहां घर सूना है.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बात कहना चाह रहा हूं, आप इस साल बीए जरूर कर डालें.’’

‘‘यह अब संभव नहीं है. किताबें, फीस, समय कुछ भी तो नहीं है मेरे पास,’’ रानो का स्वर भर्रा सा गया.

‘‘किताबों और फीस की चिंता मत करो. मैं जाते ही रुपए भेज दूंगा, पर समय तो आप को निकालना ही पड़ेगा,’’ शलभ बोला.

अब रानो की हथेली और भी ज्यादा तर हो गई. यही हाल शलभ का भी था.

‘‘हमीरपुर के पास एक गांव के स्कूल में अध्यापक हैं जीजाजी. कौन परीक्षा दिलाने शहर ले जाएगा. तमाम समस्याएं हैं. घर में इतना काम रहता है कि थक कर चूर हो जाती हूं. पता नहीं पढ़ पाऊंगी या नहीं.’’

‘‘वह सब हो जाएगा. मैं ने संजय से बात कर ली है. वह आ कर फौर्म भरवा देगा और फीस भी मैं उसी से भरवा दूंगा. मैं सोचता हूं कि आप सैंटर हमारे यहां का भरें. इलाहाबाद में कोई परेशानी नहीं आएगी. वहां आप की बहन यानी मेरी भाभी और मां हैं.’’

रानो ने सिर झुका लिया जैसे एहसान के बोझ से दबी जा रही हो. संजय, जो वहीं लेटा हुआ था, उन की ओर करवट ले कर बोला, ‘‘अब सोचो मत, रानो. जैसा शलभ कहते हैं, मान लो. किताबें अभी आ जाएंगी. मैं अपनी ओर से तुम्हारी दीदी से बात कर लूंगा. मैं ही फौर्म भरवा आऊंगा और अपनी परीक्षा के बाद तुम्हें ले भी जाऊंगा.’’

रानो चुप बैठी रही. संजय और शलभ उस का चेहरा देखते जा रहे थे.

‘‘अरे, क्या होंठ सिल गए हैं?’’

संजय ने उस का हाथ पकड़ कर झटका तो वह खुद को न रोक सकी. बहुत रोकने पर भी उस की आंखें बरस पड़ीं. यह देख कर दोनों अचकचा गए.

‘‘अरे, क्या बात हुई, क्या मेरी मदद स्वीकार नहीं है?’’ शलभ चिंतित स्वर में बोला.

‘‘अरे भई, तुम्हारे यहां सुविधा नहीं है तो शलभ ने सोचा कि बीए की उन की कुछ किताबें पड़ी हैं और शेष कुछ लेना इन के लिए मुश्किल थोड़े ही है. किताबें किसी भी विद्यार्थी से ले कर भेज देंगे जो बीए कर चुका है.’’

‘‘नहीं, संजय, मैं इसलिए नहीं रो रही हूं. ये आंसू तो इसलिए आ गए कि मेरा यह सपना पूरा होने जा रहा है कि मैं आगे पढ़ सकूं. मैं तो सोचती थी कि यह सपना कभी पूरा ही नहीं होगा.’’

‘‘अरे पगली, हम तो वैसे ही डर गए.’’

‘‘पर, शलभजी के इतने एहसानों का बोझ क्या मैं कभी चुका पाऊंगी.’’

‘‘यह एहसान कैसा. यह तो कर्तव्य है. यही समझ कर अपने मन से सारी हीनभावना निकाल दीजिए और जीवन पथ पर बढ़ चलिए.’’

बिहार में नरेंद्र नहीं धीरेंद्र, निकल रही है कर्नाटक की खीझ

कर्नाटक की करारी हार से भगवा गैंग ने क्या सबक सीखा, इस सवाल का जबाब बीते दिनों  बिहार से मिला कि कुछ खास नहीं सीखा. उलटे, उसकी कट्टरता और बढ़ गई है. सोशल मीडिया की पोस्ट पानी पीपी कर हिंदुओं को कोस रही हैं कि तुमने अपने हाथों से अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार ली, अब अंजाम भुगतने को तैयार रहना.

मोदी बारबार पैदा नहीं होता. ऐसी कई भड़काऊ बातों से भक्त अपनी खीझ, बौखलाहट और भड़ास अभी भी निकाल रहे हैं. डीके शिवकुमार और सीएम घोषित कर दिए गए सिद्धारमैया के टोपी पहने फोटो वायरल किए. वे 12 फीसदी थे और तुम 85, फिर भी सत्ता उस पार्टी को दे दी जो मुसलिम आरक्षण की हिमायती है और हिंदुत्व की दुश्मन है जैसी उत्तेजक बातों के जरिए भी खंभा नोचा गया.

पटना से यही आवाजें आधा दर्जन बड़े भाजपा नेता (वहां हैं ही इतने) भी निकालते दिखे जिन में वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से पूछ रहे हैं कि तुम लोग बागेश्वर बाबा की कथा में क्यों नहीं आए जबकि मुसलमानों की रोजा इफ्तार पार्टियों में तो खूब टोपी पहनकर, मटकमटक कर जाते हो.

बागेश्वर बाबा के तमाशे में न जाने मात्र से आप किस तरह हिंदू और सनातन धर्म के दुश्मन और पापी तक हो जाते हैं, यहकेंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समेत भाजपा के तमाम छोटेबड़े नेता बिहार से तरहतरह से चिल्लाचिल्ला कर बताते रहे.यह और बात है कि इन दोनों पर शादी के नाराज फूफा की तरह कोई असर होता नहीं दिखा.

फर्जी चमत्कार

पटना के नौबतपुर में इन दिनों के हिट और ब्रैंडेड बाबा आचार्य धीरेंद्र शास्त्री की 5-दिवसीय बजरंग कथा 17 मई तक चली जिस में भक्त लोग पागलों की तरह टूट पड़े थे. रोजाना कोई 4 लाख लोग इस भव्य और खर्चीले आयोजन में पहुंचे थे. उमसभरी भीषण गरमी में सैकड़ों लोग चक्कर आने से बेहोश से होकर गिर पड़े लेकिन यह चमत्कारी बाबा कुछ न कर पाया जिसके मंच पर एकदो नहीं, बल्कि 8-8 एसी लगे थे.

जो बाबा जिंदा लोगों को राहत नहीं दे सकता वह क्या खाकर भूतप्रेत और पिशाचों से मुक्ति दिलाएगा, यह तो भगवान, कहीं हो तो वही, जाने. हां, यह जरूर सच है कि ये अज्ञात शैतानी ताकतें काल्पनिक और पंडों के खुराफाती दिमाग की उपज हैं, इसलिए इन्हें भगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. वे तो चुटकीभर राख, जिसे भभूत कहा जाता है, से सिर झुकाकर छू हो जाती हैं.

गौरतलब है कि इस बाबा के चमत्कारों की पोल कई मर्तबा खुल चुकी है और उन्हें चुनौतियां भी मिलती रही हैं लेकिन अभी उनका जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है ठीक वैसे ही जैसे कभी आसाराम और राम रहीम जैसों का बोलता था. इसलिए, उनकी हकीकत पर कोई ध्यान नहीं दे पा रहा.

 गिरिराज क्यों इफ्तार में नहीं जाते

बाबाओं और राजनेताओं की दुकानें परस्पर सहयोग से यानी सहकारिता के सिद्धांत पर चलती हैं. बाबा चमत्कारों के नाम पर भीड़ इकट्ठा कर दक्षिणा बटोरने के कारोबार में व्यस्त रहते हैं तो नेता लाखों की भीड़ में वोट टटोलते रहते हैं.

गिरिराज सिंह जैसे घिसे नेता नीतीश और तेजस्वी को कोस कर अपील असल में यह कर रहे हैं कि कर्नाटक जैसी गलती मत करना नहीं तो पछताओगे. अब भक्त बेचारा, परेशानी का मारा, इस गोरखधंधे को समझ ही नहीं पाता कि सूदखोर साहूकार और बनिए दोनों एक छत के नीचे छतरी लगाए अपनेअपने हिस्से का मुनाफा मेला लगाकर वसूल रहे हैं जबकि कर्ज या उधारी उसे किसी की नहीं देना.

उधर गिरराज सिंह के हमले से खासतौर से लड़खड़ाए नीतीश कुमार संविधान की दुहाई देते रहे  लेकिन यह पलटवार नहीं कर पाए कि गिरिराजजी, आप क्यों इफ्तार में नहीं जाते लेकिन कथाओं में कूदकूद कर जा रहे हो.

अब शायद नीतीश को समझ आ रहा होगा कि भगवा धोती का छोर पकड़ कर 2020 में चुनावी वैतरणी तो पार कर ली थी लेकिन बीच नदी में धोती छोड़ देने से मोक्ष भी आधाअधूरा मिला, पतवार अब लालूपुत्रों के हाथों में है.

 शिव और कृष्ण बनते हैं तेजप्रताप

भीड़ देख गदगद हुए जा रहे धीरेंद्र शास्त्री नेभगवा गैंग केमन की बात कह ही दी कि हिंदू राष्ट्र बनना चाहिए.इसी पुनीत काम के लिए तो वे छतरपुर से 682.2 किलोमीटर दूर पटना गए थे वरना तो भक्तों और पैसों की कमी एमपी में भी नहीं है.

बाबा ने हिंदुओं को आगाह करते बड़े ज्ञान की बात यह कही कि हिंदुओं में 33 करोड़ देवीदेवता हैं, फिर भी कुछ हिंदू चादर चढ़ाने मजारों पर जाते हैं.

इस सनातनी धिक्कार से लगता नहीं कि अंधविश्वासियों ने कुछ सीखा होगा जो हर उस जगह पैसा चढ़ा आते हैं जहां चमत्कारों के जरिए उनकी परेशानी दूर करने की बेमियादी गारंटी दी जा रही हो.

बिहार में5 दिन माहौल ऐसा रहा मानो नीतीश सहित तेजस्वी और तेजप्रताप दोनों मुसलमान हों. इस पर लालू यादव ने धीरेंद्र शास्त्री का मजाक सा उड़ाते कहा था, ‘हट… वह कोई बाबा है क्या.’

असल में वे एक देहाती कहावत की तरफ इशारा कर रहे थे जिसके तहत रातोंरात चमत्कारी बन गए बाबाओं के बारे में मुंह बिदकाकर कहा जाता है कि ‘हुंह .. कल के जोगी और फलां अंग तक जटा.’

लालू परिवार, खासतौर से उनके बड़े बेटे तेजप्रताप तो इतने बड़े सनातनी हैं कि हर कभी शिव और कृष्ण का रूप धरकर सार्वजनिक स्थलों पर शरीर पर भभूत लपेटे, बांसुरी बजाते घूमा करते हैं. फिर वे कैसे चादर और फादर वालेया टोपी वाले हिंदू हुए, यह भी राम जाने.

 नरेंद्र से ज्यादा धीरेंद्र पर भरोसा

भगवा गैंग कर्नाटक का जला है, लिहाजा, बिहार अभी से फूंकफूंक कर पी रहा है. कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जय बजरंगबली करते रह गए और अली वाले बाजी मार ले गए. इस बात को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभाओं में कई बार कह भी चुके हैं कि उनके पास अली है तो हमारे पास बजरंगबली है.

कर्नाटक में तो महज 12 फीसदी मुसलमान थे लेकिन बिहार में 18 फीसदी के लगभग हैं. इसलिए वहां किसी जीतेजागते देवता सरीखे आदमी की जरूरत पड़ी तो बागेश्वर बाबा को अभी से शिफ्ट और लिफ्ट कर दिया गया. बाबा ने भी निराश नहीं किया और भूखप्यास से बेहाल होती भीड़ का बुंदेलखंडी से, जितना हो सकता था, मनोरंजन किया.

लेकिन बिहार की छाछ भगवा गैंग को अभी और फूंकनी पड़ेगी क्योंकि वहां भी ब्राह्मणों के वोट महज 6 फीसदी हैं और अगर सभी अगड़ों व भूमिहारों को भी अपने खेमे में गिन लें तो भी उसके गारंटेड वोटों की तादाद 15 फीसदी तक ही पहुंचती है. दलित, महादलित, पिछड़े, आदिवासी और ईसाई वगैरह अगर कर्नाटक की तरह हिंदू राष्ट्र से बिदक गए तो सीटों की हाफ सैंचुरी लगाना भी उसके लिए मुश्किल हो जाएगा. पिछले चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के गठबंधन के तहत 78 सीट मिल भी गईं थीं.

जो भक्त हिंदीभाषी राज्यों को लेकर चिंतित और व्यथित हैं, उन्हें कर्नाटक के हिंदू राष्ट्र के मौडल पर एक बार और गौर करते यह समझ लेना चाहिए कि बिहार में पिछड़ों और दलितों को सत्ता ब्राह्मणवाद के खात्मे के बाद ही मिली है. बिहार की नई पीढ़ी तो जगन्नाथ मिश्र को जानती भी नहीं ठीक वैसे ही जैसे उत्तरप्रदेश की नई पीढ़ी नारायणदत्त तिवारी और मध्यप्रदेश की नई पीढ़ी पंडित श्यामाचरण शुक्ल को नहीं जानती.

जाहिर है ये और ऐसे तमाम समीकरण भगवा गैंग को समझ आ रहे हैं, इसीलिए उसने धीरेंद्र पर भरोसा किया जो एक तरह का नया प्रयोग है कि किसी लोकप्रिय संत को अघोषित प्रचारक घोषित कर उससे हिंदू राष्ट्र का शंख बजवाया जाए तो आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा. अगर वाजिब असर पड़ता दिखा तो बाबा घोषित तौर पर भाजपा भी जौइन कर सकते हैं.

अब यह और बात है कि नतीजे तो कर्नाटक जैसे ही आने हैं क्योंकि बाबाओं, धर्म, हिंदुत्व और 33 करोड़ देवीदेवताओं के होहल्ले में फायदा विपक्ष को ज्यादा होता है और बिहार में तो जीतनराम मांझी जैसे तेजतर्रार दलित नेता पहले से ही तैयार बैठे हैं जो खुलेआम ब्राह्मणवाद, मनुवाद, रामायण और रामचरितमानस जैसे धर्मग्रंथों की बखिया उधेड़ रहे हैं जिससे दलित वोट खिसके नहीं.

 इन्हें कभी कुछ नहीं मिलता

पटना के तमाशे से किसे क्या मिला, यह हिसाबकिताब अब कई दिनों तक लगता रहेगा, लेकिन तरस उन भक्तों की अक्ल पर आता है जो चिलचिलाती, झुलसती गरमी में बेहाल बैठे रहे फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिला. ये लोग सदियों से यों ही उम्मीदें और आस लेकर दरबारों में आते हैं और खुद को ठगा कर चले जाते हैं.

सदियों से ही यह वर्ग वहीं खड़ा है जहां से धर्म ने उसे छलना शुरू किया था.बाबा आशीर्वाद और झूठा आश्वासन देकर चलते बनते हैं लेकिन करोड़ों अरबों की नकदी बटोर ले जाते हैं. यही आम आदमी की जिंदगी का कड़वा सत्य है जिसका कोई इलाज नहीं.

बाबाओं के चमत्कारों और देश के हिंदू राष्ट्र बन जाने से अगर बेरोजगारों को रोजगार, बेऔलादों को औलाद मिलती हो,कैंसर जैसी बीमारी ठीक होती हो तो फिर जरूर बात हर्ज की नहीं बशर्ते आम लोग तर्क की कसौटी पर इन्हें कस कर देखें तो.

 

पत्थर- भाग 4 : भाग्यजननी अध्ययन के बाद क्यों परेशान थी?

भाग्यजननी ने सारी रात जागते हुए ही बिताई. वह चाहती तो भी उसे नींद नहीं आती. आज तक जो कुछ भी उस के लिए सैद्धांतिक था, अब व्यावहारिक बन कर सामने आ चुका था. रातभर न तो नासा की ओर से कोई मैसेज आया, न ही कहीं से ऐसा कुछ ज्ञात हुआ कि किसी को कुछ मालूम है.

भाग्यजननी को यह संदेह अवश्य जागा कि कहीं सिस्टम में कुछ गड़बड़ी तो नहीं पैदा हो गई है, जिस के कारण एक सौमंप धरती से टकराता हुआ प्रतीत हो रहा है. हो सकता है कि वास्तविकता कुछ और हो और शायद यह सौमंप भी अन्य सौमंपों की तरह धरती के हजारों किलोमीटर ऊपर से बाहर से ही गुजर जा रहा हो और प्रोग्राम में त्रुटि होने से प्रोग्राम गलत अंदेशा दे रहा हो.

विक्रम लैब, हिमालय की एक पहाड़ी शिखर पर मौजूद टैलीस्कोप से फाइबर औप्टिक केबल से जुडी हुई थी. इस टैलीस्कोप का यही काम था कि सौमंपों पर नजर रखे. टैलीस्कोप के रियल टाइम पर्यवेक्षण का डेटा सीधे विक्रम लैब में आता था, जहां पर उस की प्रोसैसिंग होती थी. डेटा प्रोसैसिंग से सौमंप के वक्र मापदंडों का पता चलता था और उस के वक्र की गणना होती थी. यह काम टर्मिनल पर होते दिखता था, लेकिन दरअसल यह काम पीठ पीछे ‘इंद्रांचल’ द्वारा किया जा रहा था. सौमंप सैकड़ों या हजारों की संख्या में नहीं, अपितु लाखों की संख्या में मापे जा रहे थे. प्रतिक्षण उन का रियल टाइम डेटा ‘इंद्रांचल’ को फीड किया जा रहा था. ‘इंद्रांचल’ पर इतना लोड होते हुए भी कभी उस ने चूं तक नहीं की.

स्वदेशी तकनीक से भारत में ही बनाया गया ‘इंद्रांचल’ एक सफल स्वदेशी टैक्नोलौजी की मिसाल थी.
टैलीस्कोप के कंट्रोल रूम में कोई न कोई जरूर मौजूद रहता था. रात में तो और भी कहीं न कहीं से आए हुए वैज्ञानिक और उन की टीम के सदस्य रहते थे, जो टैलीस्कोप से प्राप्त हो रहे डेटा पर रिसर्च कर रहे होते थे. कुछ डाक्टरैट करने वाले छात्रछात्राएं भी इन में होते थे. कभी रातभर उन के गाइड उन के साथ रहते थे जो खुद भी टैलीस्कोप से आते हुए डेटा को देखने के उत्सुक होते थे.

अपने जमाने में उन्होंने इस गति से आते हुए डेटा की कभी कल्पना भी नहीं की थी. आज बिजली की गति से डेटा उन्हें प्राप्त हो रहा था. छात्रों के लिए यह आम बात थी. सैकड़ों गीगाबाइट का डेटा एक ही मिनट के भीतर डाउनलोड करने की उन की आदत बन गई थी, इसीलिए टैलीस्कोप से आते हुए टैराबाइट डेटा से उन्हें कुछ नायाब नहीं लगा. आने वाले कुछ वर्षों में अपने बुजुर्गों की तरह ही वे भी हैरान हो सकते थे.

टैलीस्कोप तक पहुंचने के लिए भाग्यजननी ने ट्रांसपोर्ट डिपार्टमैंट को फोन लगाया. टैलीस्कोप फैसिलिटी में देर रात और असमय कोई भी जाते रहता था, इसीलिए चौबीसों घंटे दिनरात ड्राइवर अपनी गाड़ी के साथ मौजूद रहते थे. तुरंत एक ड्राइवर अपनी गाड़ी ले कर विक्रम लैब तक आ गया. उस में बैठ कर भाग्यजननी टैलीस्कोप फैसिलिटी पहुंची और उस के कंट्रोल रूम में प्रवेश किया.

कंट्रोल रूम में काम कर रहे अभियंताओं ने कई बार मैस में भोजन के समय भाग्यजननी को देखा था, इसीलिए उन्होंने भाग्यजननी की पूछताछ पर कोई एतराज प्रकट नहीं किया. ख़ुशी से टैलीस्कोप की प्रणालियों को चैक किया. कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी. सबकुछ वैसे ही काम कर रहा था जैसे आज से पहले. कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि टैलीस्कोप में कोई दोष आ गया है.

तत्पश्चात भाग्यजननी ने केबल वाले को फोन लगाया. आधे घंटे बाद केबल वाला आंखें मींचता, भुनभुनाता हुआ टैलीस्कोप फैसिलिटी तक पहुंचा.

भाग्यजननी ने उसे टैलीस्कोप से विक्रम लैब जाते हुए औप्टिकल फाइबर को पूरी तरह से चैक करने को कहा. केबल वाले ने अस्पष्ट रूप से कुछ बुदबुदाते हुए अपने मीटर लगाए और दोनों सिरों पर सिग्नल ड्राप नापा.

विक्रम लैब तक आतेआते सिग्नल उतना ही तगड़ा था, जितना टैलीस्कोप पर. कहीं भी सिग्नल कमजोर होता नहीं दिखाई दिया.

नासा के मैसेज का इंतजार करतेकरते और टैलीस्कोप और केबल को चेक करतेकरते सुबह के 6 बज गए थे. रातभर के वाक्यों के बावजूद भाग्यजननी को थकान महसूस नहीं हो रही थी. उलटे, आज तो तूफान का दिन था. पता नहीं, किसकिस को क्याक्या समझाना पड़ सकता था. लेकिन उस के पहले अभी बहुत काम बाकी थे.

भाग्यजननी ने हंड्रेड डेज लैब की ओर प्रस्थान किया. यह लैब विश्व के सौमंप डेटा को संरक्षित रखती थी. सब से पहले यह देखना था कि क्या कल रात उस ने जिस सौमंप को पृथ्वी तक आते पाया था, वह पहले से सौमंप डेटाबेस में मौजूद था या यह एक बिलकुल नया सौमंप था? हंड्रेड डेज लैब, फाइबर औप्टिक केबल और 5जी टैक्नोलौजी से लैस थी. डेटा सर्वर के लिए इस में अत्याधुनिक माइक्रोप्रोसैसर कंट्रोलर बोर्ड लगे हुए थे.

इस लैब के एक टर्मिनल पर भाग्यजननी ने लाग इन किया और ‘इंद्रांचल’ से कनैक्ट किया. कुछ ही पलों में लाल लकीर बनाने वाले सौमंप का डेटा उस ने हंड्रेड डेज के सर्वर पर पोर्ट कर दिया. फिर उसे सर्वर के मौजूदा डेटाबेस से मिलान के लिए डाल दिया. नतीजा सामने आ गया. इस सौमंप की ऐंट्री किसी भी सौमंप डेटाबेस से मेल नहीं खा रही थी. शायद नासा वाले भी इसी मेलमिलाप की प्रक्रिया में लगे हों और उन्हें इत्तला करने में इसी वजह से देरी हो रही हो, यह सोच कर भाग्यजननी ने इस नए सौमंप के नामकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी.

चूंकि यह अप्रैल, 2023 के पहले पखवारे में खोजा गया था, इसीलिए इस का नाम 2023 जी से शुरू होना था. सौमंपों के नामकरण की प्रक्रिया इस प्रकार से थी कि खोज वर्ष पहले आता था, फिर साल का पखवारा, यानी अगर उस वर्ष जनवरी के पहले पखवारे में इस की खोज होती थी, तो इस का नाम 2023 ए हो जाता, दूसरे पखवाड़े में 2023 बी हो जाता इत्यादि.

अब भाग्यजननी के सामने यह प्रश्न उठा कि अप्रैल, 2023 के पहले पखवारे में कितने नए सौमंपों की खोज की जा चुकी थी. हंड्रेड डेज के डेटाबेस से ज्ञात हुआ कि यह इस पखवारे की पहली नई खोज थी. इसीलिए इस सौमंप का पूरा नाम अंतर्राष्ट्रीय नाम पद्धति के अनुसार हो गया 2023 जीए. ऐसा बिलकुल नहीं था कि चूंकि भाग्यजननी ने इस सौमंप की खोज की थी, इसीलिए इस का नाम उस के खोजकर्ता के नाम पर भाग्य या भाग्या रख दिया जाए. नामकरण के सख्त प्रोटोकाल थे.

सुबह के 7 बज रहे थे, जब डायरैक्टर सतेंद्र गिल ने भाग्यजननी को फोन कर के पूछा, “इस सौमंप के पृथ्वी पर किस स्थान पर टकराने की सब से ज्यादा संभावना है?”

भाग्यजननी ने डायरैक्टर से कहा कि वह सिमुलेशन रन कर के ही इस बात का जवाब दे सकेगी. तुरंत उस ने विक्रम लैब की ओर तेजी से कदम बढाए. डायरैक्टर के प्रश्न का उत्तर देना इतना आसान नहीं था. उस के लिए सब से पहले यह गुत्थी हल करनी होगी कि क्या इस घातक आगंतुक का वक्र पूरी तरह से निर्धारित हो चुका है? एक रात के, वह भी महज 8 घंटे के डेटा के बल पर तो इस सौमंप का वक्र निश्चित तौर पर नहीं निर्धारित किया जा सकता है. ‘इंद्रांचल’ के लिए यह बताना, कि 2023 जीए धरती से टकराएगा,आसान था, क्योंकि इस के लिए सौमंप के वक्र को पूरी तरह परिभाषित करना जरूरी नहीं था. लेकिन वह कहां जा कर पृथ्वी से टकराएगा, इस के लिए धरती के वर्तन और परिक्रमण ही नहीं, अपितु सौमंप के भी सटीक वक्र मापदंडों की आवश्यकता थी. इस प्रकार के सिमुलेशन को ‘इंपैक्ट सिमुलेशन’ कहा जाता था, और इस के लिए 8 ‘इंद्रांचल’ पर प्रोग्राम पहले से ही था, जिसे अब भाग्यजननी ने ओपन किया. प्रोग्राम की इनपुट फाइल के रूप में 2023 जीए की डेटाफाइल भरी और उसे रन करने के लिए छोड़ दिया.

भाग्यजननी ने अपनी औन कैंपस हाउसिंग की तरफ प्रस्थान किया. डायरैक्टर से ले कर हर वैज्ञानिक को वहीं केंद्र की फैसिलिटी में ही रहने की सुविधा थी. वह नहाई, फ्रैश कपड़े पहने और मैस में चायनाश्ता किया. जो थोड़ेबहुत लोग सुबह 8 बजे मैस में आ गए थे, उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि भाग्यजननी के दिमाग में कैसी उथलपुथल चल रही है. उस का पूरा ध्यान अपने चलते हुए सिमुलेशन में था. कुछ घंटे तक उस सिमुलेशन को रन होना था, और जब वह पूरा हो जाता, तो उसे ईमेल पर मैसेज आ जाता. उस ने ‘इंद्रांचल’ के हर मैसेज को प्रायोरिटी मैसेज बना कर रखा था, जिस से ‘इंद्रांचल’ की ओर से किसी भी प्रकार के मैसेज आने पर उस का मोबाइल एक अलग ही प्रकार की बीप देता था और वाइब्रेट करता था. सुबह 10 बजे तक ‘इंद्रांचल’ का कोई भी मैसेज नहीं था. सिमुलेशन अब भी रन हो ही रहा था.

सुबह 10 बजे खूब सोचविचार कर डायरैक्टर ने 2023 जीए को केंद्र की प्राथमिकता बना दी और ‘अखअ’ के टैलीस्कोप को पूरे समय उस की ट्रैकिंग के लिए निर्धारित कर दिया. केंद्र में मौजूद सभी वैज्ञानिक भौंचक्का हो गए.

जो लोग पुणे, बेंगलुरु, मुंबई से टैलीस्कोप डेटा के बल पर अपनी रिसर्च के लिए आए थे, उन्हें धक्का लगा. उन की समयसारणी में खलल पड़ गया. कोई दूरदराज की मंदाकिनी पर रिसर्च कर रहा था, कोई एक नए पल्सर पर और पुणे का ग्रुप अपने रेडियो एस्ट्रोनौमी का प्रोजैक्ट ले कर आया था. सभी की रिसर्च में अवरोध पड़ गया. लेकिन चूंकि केंद्र की प्राथमिकता ही सौमंपों पर नजर रखना थी और सौमंप रिसर्च ही टैलीस्कोप की प्रमुखता थी, अत: किसी ने कुछ नहीं कहा. सौमंपों से बने खतरे के सामने उन की मंदाकिनियों और पल्सरों से जुड़ी रिसर्च गौण थी. सभी जानने के लिए उत्सुक हो गए कि ऐसी क्या बात हो गई. कुछ ही समय में 2023 जीए की खबर वैज्ञानिक समुदाय के बीच आग की तरह फैल गई.

जब इन वैज्ञानिकों के माध्यम से केंद्रीय विज्ञान सलाहकारों तक यह बात पहुंची, तो उन के अहं को चोट लगी कि केंद्र के डायरैक्टर ने सीधे उन्हें क्यों नहीं सूचित किया. प्रधानमंत्री को सिचुएशन से अवगत करा दिया गया. सभी ने इस प्रकरण को नोवेल्टी के तौर पर ले लिया. दुनिया में कुछ नया होने जा रहा है, इस बात से सभी विस्मित हो गए.

विज्ञान मंत्रालय द्वारा विदेशों के विज्ञान संस्थाओं के अधिकारियों को संपर्क किया गया और पुष्टि करने के लिए कहा गया. दूसरी ओर से जवाब आया कि अभी इस वाकिए की जांचपड़ताल जारी है और निश्चित तौर पर जवाब नहीं दिया जा सकता है.

दोपहर के बाद ‘ब्रेकिंग न्यूज’ के रूप में यह समाचार टीवी पर हावी हो गया. प्रलय के दृश्य अंग्रेजी पिक्चरों और यूट्यूब की डौक्यूमैंट्रियों से काटकाट कर दिखाए जाने लगे. शाम होने तक पूरे हिंदुस्तान को इस बात की खबर हो गई. टीवी पर डिबेट के लिए नामी लोगों को बुलाया गया और चर्चा सत्र रखे गए. कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने आगाह किया कि ऐसे समाचार पहले भी कई बार आ चुके हैं कि फलां सौमंप आने वाले कुछ सालों में धरती से टकराने वाला है, लेकिन ऐसे समाचार बाद में निरर्थक साबित हुए.

नामी पंडितों को टीवी पर पूजापाठ करते दिखाया गया. सब ने आती हुई मुसीबत से बचने के अपनेअपने उपाय बताए. पूजा के पंडाल देशभर में बिठा दिए गए. यज्ञ शुरू हो गए. विष्णु की इस पृथ्वी के संरक्षक के रूप में पूजा होने लगी और उन से आह्वान किया जाने लगा कि आई हुई मुसीबत से इस धरती को बचाने के लिए वे अवतार लें. 2023 जीए से लोगों की रक्षा करने और इस पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने के लिए पूजा की जाने लगी. आने वाली दुर्घटना से बचने और किसी प्रकार से सौमंप को पृथ्वी से दूर करने के लिए भक्तों द्वारा अपनेअपने ऊपर वाले को पूजा जाने लगा. कृष्ण को और शिव को 2023 जीए की विपदा को मिटा कर मानव जाति की रक्षा करने के लिए कहा गया और महाप्रसाद आयोजित किए गए.

जब ‘इंद्रद्रांचल’ द्वारा किए जा रहे ‘इंपैक्ट सिमुलेशन’ का नतीजा भाग्यजननी के समक्ष आया, तो उस की आंखें फट गईं. सौमंप धरती पर किस जगह आ कर टकराएगा, इस का नतीजा उस के सामने था. उस ने तुरंत अपने रिजल्ट को पैनड्राइव में लिया और डायरैक्टर के कक्ष में पहुंची. डायरैक्टर ने वहां मौजूद लोगों को यकायक बरखास्त किया और अपने डैस्कटौप में यूएसबी डाली. इंपैक्ट लोकेशन देख कर डायरैक्टर हैरान हो गया. ‘इंद्रांचल’ के इंपैक्ट प्रोग्राम के अनुसार, सौमंप के धरती से टकराने का इंपैक्ट लोकेशन हिंदुस्तान के पश्चिमी तट से थोड़ी दूरी पर अरब महासागर में था.

साफ जाहिर था कि इंपैक्ट की वजह से जो सुनामी उठेगी, उस से न केवल भारत का पश्चिमी तट, बल्कि पूरा हिंदुस्तान ही डूब जाएगा. मेडागास्कर, मारिशस और श्रीलंका पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, यह तो बाद में विस्तृत सिमुलेशन से ही पता चलेगा, लेकिन अरब महासागर की 12-15 फुट ऊंची लहरों से और धूलधुएं के बादलों की वजह से सूरज के छिप जाने से हिंदुस्तान का संपूर्ण विध्वंस प्रत्याभूत था. ऐसी किसी त्रासदी की तो कल्पना भी किसी ने नहीं की थी.

काफी देर तक दोनों यों ही बैठे सोचविचार करते रहे. डायरैक्टर के कमरे में अजीब सी चुप्पी छा गई थी. तनावग्रस्त वातावरण था. आखिरकार डायरैक्टर ने चुप्पी तोड़ी, “इंपैक्ट लोकेशन की तो खबर किसी को नहीं है न?”

भाग्यजननी ने धीरे से ‘न’ में सिर हिला दिया.

कुछ सोच कर डायरैक्टर ने उस से कहा, “इस को ऐसे ही रहने देते हैं. किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है.”

भाग्यजननी भी इस बात से सहमत थी. इस खबर से पूरे देश में हाहाकार मच जाने की आशंका थी. यहांवहां दंगेफसाद हो जाते. पता नहीं, किस प्रकार का वातावरण सारे देश में फैल जाता. इमर्जेंसी लागू कर दी जाती. पूरे समय के लिए कर्फ्यू लगा दिया जाता.
अगले कुछ दिनों में सतेंद्र ने इंपैक्ट लोकेशन किसी से भी शेयर न करने की दुनिया की अन्य खगोलशास्त्रीय संस्थाओं से बेजोड़ लौबी की. भारत के प्रमुख ‘अखअ’ केंद्र के डायरैक्टर से आ रहे अनुरोध से लगभग सभी समर्थन में थे. उन्होंने यहां तक सुझाया कि इंपैक्ट लोकेशन को आर्कटिक या अंटार्टिका के किसी दूरस्थ इलाके में बता देते हैं.

लेकिन सतेंद्र ने सुझाया कि इस बात को फिलहाल यही कहते हैं कि इंपैक्ट लोकेशन स्पष्ट रूप से नहीं बताई जा सकती है और इस में काफी अनिश्चितता है. सभी इस से सहमत हो गए. नापाक इरादे रखने वाली संस्थाओं तक यह बात न पहुंचे, इसीलिए इस बात को सिर्फ अंतरिक्षीय खतरों से संबंधित केंद्रों के डायरैक्टरों तक ही सीमित रखने का विचार किया गया.

पता नहीं कैसे, ‘अखअ’ और दुनिया में उस के जैसे केंद्रों का यह प्लान कामयाब हो गया और किसी ने इस बात की तह में जाने की कोशिश नहीं की कि इंपैक्ट लोकेशन धरती के ध्रुवीय इलाके में वाकई है या नहीं. मानव जाति की सुरक्षा के लिए यह कदम अनिवार्य था.

वह दिन भी आ गया, जब सौमंप अरब महासागर में गिरने वाला था. सब कामकाज छोड़ कर हिंदुस्तानी आकाश की ओर दृष्टि लगाए बैठे थे. पता नहीं, वे क्या उम्मीद कर रहे थे. कुछ टीवी चैनल वाले पृथ्वी के ध्रुवीय इलाके तक जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें सचेत कर दिया गया था कि सौमंप के टकराने से संपूर्ण बर्फीला क्षेत्र अस्थाई हो जाएगा, इसीलिए किसी का भी बच पाना नामुमकिन है. यही कारण था कि टीवी पर कुछ भी इस बारे में लाइव नहीं प्रसारित किया जा रहा था.

परंतु वैज्ञानिक जो काम धरती पर नहीं कर सकते थे, वह था 2023 जीए की आतंरिक संरचना का पूरी तरह से पता लगाना. किसी भी खगोलीय वस्तु की आतंरिक संरचना में बहुत अनिश्तितता होती है.

वैज्ञानिकों को यह पता नहीं चल पाया कि 2023 जीए अंदर से खोखला है. खोखली वस्तुओं की भीषण तापमान सहन करने की शक्ति नहीं होती है. इसी वजह से, 2023 जीए जब पृथ्वी के भीतर प्रवेश कर रहा था, तो पृथ्वी के वायुमंडल में भीषण घर्षण से उस का पत्थर तत्त्व जलने लगा और उस के टुकड़ेटुकड़े हो गए, क्योंकि उस के अंदर कुछ था ही नहीं. ये हजारों टुकड़े आग की लपटों में राख हो गए और आकाश में महज एक आतिशबाजी के कुछ भी न रहा. समूचे विश्व को जैसे ही यह समाचार ज्ञात हुआ, तो खुशी की लहर दौड़ उठी.

सत्ता और सरकारी एजेंसियां

यह खेद की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की सीबीआई, ईडी व एनआईए जैसी जांच एजेंसियों के जरिए विपक्षी दलों को डराने की कोशिशों को गलत ठहराने से इनकार कर दिया है. एक याचिका में विपक्षी दलों ने आंकड़ों से स्पष्ट किया कि 2014 से इन जांच एजेंसियों का विपक्षी दलों के खिलाफ जम कर इस्तेमाल हो रहा है और अनसुल झे मामले भरे पड़े हैं पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे सरकार और जांच एजेंसियों की स्वायत्तता का मामला कह कर टाल दिया.

विपक्षी दलों की याचिका में स्पष्ट किया गया था कि ईडी यानी एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट के 121 मामलों और सीबीआई यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो के 124 मामलों में से 95 फीसदी विपक्षी दलों के खिलाफ ही हैं और कुछ में ही अंतिम फैसला हो पाया है. लेकिन कोर्ट ने इसे सामान्य बात कह कर ठुकरा दिया. नेता दूध के धुले हैं, यह कोई नहीं मानता पर भाजपा के नेता गाय के दूध, गौमूत्र और गंगाजल तीनों से धुले व पवित्र हैं, यह भी कोई नहीं मान सकता. यह अनायास ही नहीं है कि ऐन चुनावों से पहले ये एजेंसियां उन राज्यों में विपक्षी दलों के खिलाफ सक्रिय हो जाती हैं जो भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरा बन सकते हैं.

दिल्ली में नगरनिगम के चुनावों से पहले और तुरंत बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी क्या साबित करती है? ममता बनर्जी को परेशान करने के लिए ठीक चुनावों से पहले वहां कई नेताओं को लपेटे में लिया गया. राजनीति में जम कर बेईमानी हो रही है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि हर राजनेता बहुत थोड़े से वेतन के बावजूद शानदार तरीके से रहना शुरू कर देता है. चुनावों पर भारी खर्च होता है जो कहीं से तो आता है पर यह काम सिर्फ विपक्षी दल कर रहे होते तो वे ही जीतते और भारतीय जनता पार्टी पैसे की कमी के कारण हारती नजर आती.

सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर आंखें क्यों मूंदीं, यह अस्पष्ट है. राजनीति में बेईमानी हटाना असंभव है और आज जब एक शासकीय फैसला लेने वाले लोग 5-7 लाख रुपए नहीं, 500-700 करोड़ रुपए कमा सकते हैं, यह सोचना भी नामुमकिन है कि जिस के हाथ में शक्ति है वह अपना हिस्सा नहीं रखेगा पर यह काम सिर्फ विपक्षी पार्टियां कर रही हों और भारतीय जनता पार्टी जनता के वोटों व उन की इच्छा से दिए चंदे से चल रही हो, यह मानना भी ठीक नहीं है. जांच एजेंसियों को अपनी साख बनाए रखना बहुत जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र उन्हीं पर निर्भर है.

उन्हीं की रिपोर्टें संसद व बाहर राजनीतिक आरोपों का आधार बनती हैं. जिन के पास सत्ता होती है आमतौर पर वे पैसा नहीं चाहते क्योंकि जो पैसे वाले होते हैं वे तो खुद अपना पैसा लगा कर सत्ता में आने के लिए छटपटाते हैं क्योंकि उस की आनबान पैसे से कहीं बड़ी होती है. सत्ता में बैठा हर राजनीतिबाज पैसे का लालची है, यह सम झना भी गलत है पर हाल की घटनाएं कुछ ऐसी छवि ही प्रकट करती हैं.

हाल तो यह हो गया है कि अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गिरफ्तारी के बाद बीसियों कार्टून भारत में बने जिन में ट्रंप को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की बात कही गई ताकि वे आरोपों से छुटकारा पा सकें. इस असंभव बात को कार्टूनिस्टों और चुटकुले बनाने वालों ने इस्तेमाल किया. यह बात दरअसल जांच एजेंसियों और सत्ताधारी पार्टी के गैरसंवैधानिक संबंधों की छवि स्पष्ट करती है.

नीलकंठ – भाग 4 : अकेलेपन का दंश

स्वाभाविक था कि नानी को यह सब सहन हो सकता है, पर मामी को चिंता अपने बच्चों की थी, कहीं उन के बच्चों पर उस का असर न हो जाए. सो, उन का उदासीन भाव रहा. जैसेतैसे एक बरस दोनों ओर से अनचाहे रिश्ते का निर्वाह हुआ, किंतु उस से अधिक निभाह न हो सका.

कोई समाधान न देख कर काका ने उसे पुन: गांव चलने को कहा, किंतु उस ने मानो गांव न लौटने की प्रतिज्ञा कर ली थी. उस का व्यवहार बेहद रूखा हो गया था, इसलिए काका अधिक कुछ कहने से बचते, कहीं कुछ कर न बैठे लड़का… जैसा भी है कम से कम आंखों के सामने तो है. अतः उस की इच्छानुसार उसे फिर से शहर के एक स्कूल में एडमिशन दिला दिया. समझ आ रहा था उस की जिंदगी कैसे तहसनहस हो रही है, मगर कोई चारा भी तो नहीं.

दिल पर जब कोई भारी बोझ हो तो अपने जीवन के सुखदुख सब निरर्थक लगते हैं. अपने बाबू को पिछले एक बरस से देख रही थी रानू अपने ब्याह के लिए दरदर भटकते हुए. नजरें नहीं मिला पाती थी उन से, औलाद मांबाप का बोझ हलका करने के लिए होती है… मैं ने तो उन्हें कभी न खत्म होने वाला दर्द दिया है. किस्मत की मारी मैं, अपनों के लिए ही भार बन गई. महज 18 बरस की उम्र में जिंदगी इतनी पथरीली राहों से हो कर गुजरी है कि अब दामन में बस कांटे ही कांटे नजर आ रहे थे. बस इसी से नाउम्मीद हो उस ने काका से कहा था, “बाबू, मुझे ब्याह नहीं करना है.”

किंतु बेटियों को घर में रखने का हौसला भला कौन बाप कर पाया है. फिर जो कलंक उस के सिर लगा है, तो भला आसानी से कोई वर कैसे मिल जाता, भले ही जमाना बदला हो, मगर आज भी समाज में निर्दोष सीता को ही कुसूरवार ठहराया जाता है. ऊपर से समझौता गरीब की बेटियों के नसीब में लिखा होता है. सो, बड़ी मुश्किल से काका एक दूजवर को खोज पाए. एक परिवार बिना कोई अपराध किए अपराधी सिद्ध कर दिया गया.

किसी ओर काका के हाथ सफलता नहीं आ रही थी. एक ओर बेटी, तो वहीं दूसरी ओर बेटा दोनों ही का भविष्य दांव पर लगा था.

काका मनोचिकित्सकों के चक्कर दर चक्कर लगाते हुए समय से पहले ही बालों में सफेदी उतर आई. नीलकंठ पहले से अधिक गुमसुम रहने लगा. बातबात पर वह गुस्साता. अब की बार डाक्टर ने नई चुनौती सामने रख दी, “सूरज सिंह, आप का बच्चा ‘सिजोफ्रेनिया’ का शिकार है.”

भारीभरकम बीमारी का नाम सुन कर काका घबरा गए, “डाक्टर साहब, क्या बहुत बड़ी बीमारी है…? कभी सुने नहीं ये नाम…? मेरा बेटा ठीक तो हो जाएगा न?”

“यह एक मानसिक बीमारी है, जो अकसर इस उम्र के बच्चों को होती है. हां, ऐसी लाइलाज भी नहीं, मगर यह कोई छोटी बीमारी नहीं. आप के बेटे को यह बीमारी उस के अकेलेपन से उपजी है.”

“अकेलेपन से…, का करें साहब, नियति ने सारा खेल बिगाड़ दिया.

“दरअसल, इस घटना के तुरंत बाद उसे यह अहसास कराने की आवश्यकता थी कि उस ने एक गलत आदमी को उस के अंजाम तक पहुंचा कर कोई गलत काम नहीं किया.

“जिस तरह सैनिक आतंकवादी को मार कर वीरता की पदवी पाते हैं, उस ने भी वीरता दिखाई है अपनी बहन की जान बचा कर.”

“आप कह तो ठीक रहे हैं, मगर हमारा कानून तो उसे गुनाहगार मान ले गया अपने संग… बच्चे का भविष्य बिगाड़ दिया.”

“हम्म, जिस समय उसे आप के स्नेह और हौसले की जरूरत थी, वह बाल सुधारगृह में अनचाहे लोगों के बीच था. निश्चित उस में कुछ हिंसक बच्चे भी रहे होंगे, जिन से धीरेधीरे उस के मन में यह बात घर कर गई कि वह अपराधी है.”

“डाक्टर साहब, हम तो कोर्ट में बहुत कहे थे कि बच्चे को हमारे पास रहने दें. वे जब कहेंगे, हम ले कर हाजिर हो जाएंगे… मगर, किसी ने हमारी बात न सुनी और दूर कर दिया हमारे बबुआ को हम से.”

“यही तो विडंबना है, हमारे कानून व्यवस्थाओं में सुधार की बहुत आवश्यकता है, अरे, वह कोई जन्मजात अपराधी तो था नहीं… छोड़ दिया उसे अपराधियों के बीच. जानते हो, इस से उस के मन में एक डर बैठ गया है कि इस दुनिया में वह अकेला है. रातों को उसे डरावने सपने सोने नहीं देते. हर समय उसे यह भय बना रहता है कि कोई उसे मारने का प्रयास कर रहा है.”

“मेरा बच्चा… जाने किस दौर से गुजर रहा है. अब तो डाक्टर साहब वह हमारे साथ गांव आना ही नहीं चाहता.”

“तो आप आ जाइए शहर, उस के पास.”

“डाक्टर साहब, कोई नौकरीचाकरी नहीं है हमारे पास. तनिक जमीनजायजाद है, उसी से परिवार का पालन करते हैं. भला जमीन को बेच कर शहर में कैसे गुजारा होगा?”

“हम्म, किंतु यह बात जान लो कि उस के भीतर बड़ी लड़ाई चल रही है, जिस से वह खुद को हारा हुआ महसूस कर रहा है. ऐसे मरीज आत्महत्या की कोशिश भी कर सकते हैं.”

“ऐसे मत बोलिए साहब. हमें बताइए कि हम क्या करें कि हमारा बच्चा हमें वापस मिल जाए. पढ़ने में इतना होशियार था… अब तो तनिक भी ध्यान नहीं है पढ़ने में उस का.”

“कैसे होगा, डर के साए में जीतेजीते उस के सोचनेसमझने की शक्ति खो गई है.”

“डाक्टर साहब, वह तो अपनी मां और बहन को भी मिलना नहीं चाहता. हम कैसे उसे समझाएं… कैसे उस के पास आएं?”

“यह बात नहीं है, शुरू में उस ने अपनी बात किसी को कहना चाही होगी, भले ही आप से, बाल सुधारगृह में, पुलिस वालों को या उस के साथ रह रहे लड़कों को… मगर, किसी ने उस की बात को नहीं सुना. उस का यह परिणाम है कि उसे लगता है, कोई नहीं उस का अपना.”

“डाक्टर साहब ठीक तो हो जाएगा हमार बबुआ?”

“हम कोशिश कर सकते हैं. यह दिमागी बीमारी है, जो सामान्य नहीं बहुत कम लोगों को होती है और उस का परिणाम… आप ने फिल्म ऐक्ट्रैस परवीन बौबी का नाम तो सुना होगा, उन्हें हुई थी यह बीमारी.”

“ओह, वे तो…”

“हम्म… मगर, इतना निराश होने की आवश्यकता नहीं. हम सब प्रयास करेंगे. दिक्कत तो यह है कि ऐसे मरीज दवा भी नहीं लेते, इन्हें दवा भी दी जाए तो ये फैंक देते हैं, क्योंकि इन्हें भ्रम होता है कि कोई इन्हें जहर देना चाहता है.”

“ये मुई कैसी बीमारी है डाक्टर साहब?”

“हमारे दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर पाया जाता है, जिसे डोपामाइन कहते हैं, इस के असंतुलन से यह बीमारी होती है, जिस का एकमात्र कारण है तनाव. यही लक्षण है इस बीमारी के. इस में रोगी की संवेदनाएं मर जाती हैं… वह किसी से रिश्ता नहीं रखना चाहता. उसे सुखदुख कुछ महसूस नहीं होता.”

“फिर भी कुछ तो बताइए डाक्टर साहब?”

“हम कोशिश कर सकते हैं, अब तो स्थिति और भी नाजुक हो गई है… आप ने इलाज में देर कर दी. ऐसे बच्चे प्राय: ड्रग के भी आदी हो जाते हैं, पर शुक्र मनाइए कि आप का बच्चा इस से बचा हुआ है.”

“मैं समझा नहीं डाक्टर साहब?”

“बात यह है कि नीलकंठ को कानों में आवाजें सुनाई देती हैं, जिस से वह किसी काम में ध्यान नहीं दे पाता, ये इस बीमारी के लक्षण हैं.

“अच्छा, ये बताइए कि उन दिनों में उस के कौनकौन से शौक थे, जिस से वह बहुत खुश रहता था?”

“शौक तो ऐसा कुछ नहीं था हमार बचुआ को… हां, अपने कुत्ते के संग बहुत खुश रहता था वह.”

“गुड… आप ऐसा करिए, उस को वापस गांव ले जाइए, स्थितियों से भागने से समस्या हल नहीं होती… और उस के लिए एक कुत्ते का प्रबंध कीजिए. हो सके तो वैसा ही कुत्ता लाइए. और कुछ रिलैक्स होने को दवाएं मैं लिख देता हूं. जितना हो सके, उस के साथ रहिए. उस का आत्मबल बढ़ाइए… उसे अहसास करने की आवश्यकता है कि वह अकेला नहीं है, सब उस के साथ हैं.”

नीलकंठ घर आ गया, किंतु घर में अपनी जिस बहन के साथ मिल कर वह धूममस्ती करता था उस बहन के ब्याह को ले कर उस में तनिक उत्साह नहीं. गई थी मैं भी रानू के ब्याह में, तब देखा था टाबर को… कुत्ता, पहले भी टाबर ही नाम था कुत्ते का. नीलकंठ को बहुत लगाव था उस से. डाक्टर का यह वाक्य कि ‘वास्तव में हर बीमारी का इलाज डाक्टर नहीं होता. कुछ रोग प्रेम के स्पर्श से भी ठीक हो जाते हैं.’

काश, सच हो, फिर भी इन 8 बरसों में उस ने जो कुछ खोया है, उसे किसी भी कीमत पर लौटाया नहीं जा सकता. हां, उस के भविष्य को सहेज पाएं तो शायद इस घर की खामोश दीवारों में कुछ हलचल हो.

चौक पूरे आंगन में घर की सुहागनें मंगलगीत के साथ तेल चढ़ा रही हैं, रानू एक जिंदा लाश सी खामोश बैठी थी. उसे सचेत करते हुए कहा था मैं ने, “रानू, तेरा ब्याह है… चेहरे पर रौनक ला… यों बुझीबुझी सी क्यों बैठी है री, पिया के घर जा रही है.”

बहुत मायूस, आंखों में आंसू ले बोली थी वह, “कैसे रौनक लाऊं ऋतु दी? ये जो तेल से भरा कटोरा है, इस में मुझे तेल नहीं भाई के आंसू नजर आ रहे हैं, जो उस ने पिछले 8 बरस घर से दूर रह कर बहाए हैं. हलदी लगी है मेरी देह पर, किंतु हलदी का रंग तो उदासियों से घिरे मेरे लाड़ले भाई के पीले पड़े चेहरे पर चढ़ा है. हाथों की मेहंदी के लाल रंग में मुझे भाई के रक्त में डूबे भविष्य का अहसास हो रहा है.

“दरवाजे पर खड़ी बरात मुझे सुख का अहसास नहीं दे रही. बारबार खुद को अपराधिनी महसूस कर रही हूं. अपने ही भाई के वीरान हुए जीवन पर भला मेरे सुखद भविष्य का घरौंदा कैसे खड़ा हो सकता है…? मेरा इन खुशियों पर कैसा अधिकार…? और कैसी खुशी…? समझौता कभी खुशी को जन्म नहीं दे सकता. सप्तपदी में फेरों के समय भाई के हाथों को हाथों में ले अग्नि को धानी आहुत करती मैं अपने सपनों के राजकुमार के लिए मंगलकामना करने के बजाय अपने भाई के सुखी और उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रही थी अग्नि देव से. इसी उहापोह में कब सात फेरे हो गए, मुझे नहीं पता. मैं तो महज देह से वहां उपस्थित थी… मन… वह स्वयं नहीं जानती कहां चक्कर खा रहा है,” हैरान मैं सोच रही थी कि क्या यह ‘सिजोफ्रेनिया’ की निशानी नहीं…?”

पिछले 8 बरस से रानू ने भी तनाव को पलपल जिया है, बचपन तो उस का भी उसी दिन आहूत हो गया था, मगर क्या उस का दर्द कोई समझ पाएगा? एक इनसान के कुकर्म ने दो बच्चों के बचपन को तहसनहस कर खुद तो उसी समय मुक्ति पा ली, मगर एक निर्दोष परिवार के जीवन को कभी न समाप्त होने वाला कुरुक्षेत्र बना दिया है.

सोच रही हूं एक नीलकंठ वे थे भोले भंडारी, जिन्होंने समुद्रमंथन से निकले उस विष को लोक कल्याण की रक्षार्थ अपने कंठ में समाहित कर अमर हो गए, फिर भी उस विष को पचाने के लिए उन्हें भी हिमालय पर एकांतवास झेलना पड़ा. दूसरा नीलकंठ, जिस ने बहन के मंगल की कामना से समाज की उपेक्षा और तिरस्कार का विष पी लिया… एक सामान्य इंसान है यह नीलकंठ, विषपान के पश्चात मिला एकांतवास ही उस के जीवन का कंटक बना वह उस बिष को पचा नहीं पा रहा. तीसरी रानू, जिसे निर्दोष होते हुए भी विष पीना पड़ा, एक स्त्री में विष को पचाने की क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है. शायद इसी से रानू ने खामोशी से अपना बचपन ही नहीं, अपना यौवन भी खोया और आज जीवन का सब से बड़ा समझौता कर इस देहरी से तो विदा हो गई, मगर क्या वह विष उस का पीछा छोड़ पाएगा…?

काश, नीलकंठ लौट आए… फिर भी सोच रही हूं कि इन तीनों नीलकंठ को किस क्रम में रखूं , रानू, नीलकंठ, भोला… नीलकंठ, रानू , भोला या…?

मैं बिना मेकअप के ही खूबसूरत कैसे दिखूं ताकि पति मेरी खूबसूरती के कायल रहें, कृप्या बताएं ?

सवाल

मैं बिना मेकअप के ही खूबसूरत कैसे दिखूं ताकि पति मेरी खूबसूरती के कायल रहें. मैं जब भी मंगेतर से मिली हूंपूरे मेकअप में होती हूं. मेरी उम्र 26 साल है. जल्दी ही मेरी शादी होने वाली है. मेरे होने वाले पति मेरी खूबसूरती की बहुत तारीफ करते हैं. शादी के बाद तो मैं हर वक्त मेकअप लगा कर नहीं रह सकती न. इस के लिए मु झे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप बिलकुल सही सोच रही हैं. नैचुरल ब्यूटी की अपनी बात होती है. मेकअप तो उस खूबसूरती को और बढ़ाता है. नैचुरली चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए आप अभी से प्रयास शुरू कर दें.

स्वस्थ विकास के लिए पोषक तत्त्वों से भरपूर आहार लेना शुरू कीजिएजैसे फलसब्जियांप्रोटीनखूब पानी पीना. चेहरे को नियमित रूप से साफ करें और एक्सफोलिएटर का उपयोग करें ताकि चेहरा कीटाणुओं से फ्री रहे. शरीर को संतुलित और त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम करें. त्वचा की ताजगी के लिए सुबह की सैर बहुत फायदेमंद है. सही नींद चेहरे की चमक बढ़ाती है. स्ट्रैस न लें. अच्छे स्किनकेयर उत्पादों का उपयोग करेंएक्सफोलिएटरमौइस्चराइजरटोनरस्क्रब क्वालिटी के हों.

यदि त्वचा को ले कर किसी समस्या से जू झ रही हैं तो त्वचा विशेषज्ञ की मदद लें. आप के व्यवहार और सोच का भी असर आप की त्वचा पर पड़ता हैइसलिए अपने व्यवहार को सकारात्मक और स्वस्थ रखने का प्रयास करें.

टेक्नोलॉजी: चैट जीपीटी- टेक्नोलॉजी के बढ़ते कदम

आप सबने चैट जीपीटी का नाम तो सुना ही होगा, बल्कि उम्मीद है कि अब तक एकाध बार इस्तेमाल भी कर लिया होगा.कोई रैसिपी पूछिए, कोई बुक की रिकमेंडेशन या फिर कहीं पर्यटन के लिए सुझाव मांगिए, तुरंत जवाब दे देगा. बढ़िया है न!

वाकई एकदो पंक्तियों वाले आसान से सवाल से लेकर देशदुनिया की तमाम बड़ी खबरों के बारे में विस्तार से जवाब देने में सक्षम है यह चैटबोट. इतना ही नहीं, चैटजीपीटी चैटबोट ने पिछले दिनों एमबीए, मैडिकल और लौके एग्जाम भी पास किए हैं. आलम यह रहा कि लौंच होने के 5 दिनों के भीतर ही चैट जीपीटी के 10 लाख यूजर्स बन गए थे और महज2 महीने में ही यह आंकड़ा 100 मिलियन तक पहुंच गया.

इसकी तुलना यदि इंस्टाग्राम और टिकटौक से करें जहां100 मिलियन यूजर्स बनाने में इन्हें क्रमशः ढाई साल और 9 महीने का वक्त लगा था, तब इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाना आसान होगा. आंकड़े बताते हैं, जनवरी महीने में हर दिन औसतन 13 मिलियन लोग इससे जुड़े थे.

सच कहें तो इसे लेकर इंटरनैट जगत में हंगामासा मचा है. इस टैक्नोलौजी की क्षमता से हर कोई प्रभावित है. सबके मन में सवालों और आशंकाओं की झड़ी भी लगी है. कोई इसे इंसानों के लिए उपयोगी बता रहा है तोकई हैं जिन्हें इसमें कुछ खास नहीं दिखरहा और कुछ लोग तो इसे मानव के लिए कई तरह के खतरों की घंटी मान रहे हैं. फिलहाल हम समझते हैं कि है क्या बला यह? आखिरक्योंखबरों में छाया है चैट जीपीटी?

चैट जीपीटी की कुछ खास बातें

चैट जीपीटी,दरअसल, एक आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस टूल है जो यूजर्स के सवालों का लिखित और लगभग सटीक जवाब देता है. चैट मतलब बातचीत और जीपीटी का फुलफौर्म है जेनरेटिव परट्रेंड ट्रांसफौर्मर. यानी, ऐसी मशीन जो प्रशिक्षित हैसवालों को सुनकर उन्हें मशीनी भाषा से आम बोलचाल की भाषा में प्रवर्तित करके जवाब देने के लिए.

मसलन, यह चैटबोट आपको जटिल लेकिन लजीज रैसिपी समझा सकता है. औरतोऔर, इसी रैसिपी का नया वर्जन भी तुरंत क्रिएट कर सकता है. बस इतना ही नहीं, यह चैटबोट आप की निजी समस्याओं पर भी सलाह दे सकता है, नौकरी ढूंढने में मदद कर सकता है, कविताएं, अकादमिक पेपर और यहां तक कि खास दोस्तों को खतलिखने में भी मदद कर सकता है.कोई गेम डैवलप करना हो, व्यापार के लिए मार्केटिंग प्लान बनाना हो,देशदुनिया से संबंधित जानकारी चाहिए,पलक झपकते ही सब हाजिर.

जवाब से संतुष्ट न हों या फिर इससे संबंधित कुछ और जिज्ञासाएं हैं तब, बस, सवाल पूछ डालिए, जवाब देने को तैयार है चैट जीपीटी.यह अपनी गलतियों को स्वीकारता भी है, अनुचित अनुरोधों का जवाब देने से बचता भी है. उदहारण के तौर पर, महिलाओं पर चुटकुले बनाने संबंधी सवाल पर पर उसका जवाब होता है, “माफ करिए, मैं ऐसे चुटकुले सुनाने में असमर्थ हूं जिन्हें आपत्तिजनक या अनुचित माना जा सकता है.क्या कोई और चीज है जिसमें मैं आपकी मदद कर सकता हूं?”

कुछ ही सैकंड में एक पूरा निबंध या कंप्यूटर कोड लिख देने वाली ऐसी जादुईसी चीज के असीम ज्ञान और रचनात्मक एवं तार्किक बातचीत करने में सक्षमता ने ही इसे बहुत ही कम समय में लोगों के मध्य लोकप्रिय बना दिया है.अभी हालिया रिलीज हुए नए वर्जन जीपीटी-4 इमेज इनपुट को भी प्रोसैस करने में सक्षम है, अर्थात किसी चित्र को दिखा कर भी सवाल के जवाब मांगने की सुविधा है और इसके पुराने मौडल जीपीटी-3.5 की तुलना में ज्यादा सटीक जानकारी देने वाला और यूजर्स के साथ लंबी बातचीत करने में सक्षम बताया गया है.निसंदेह अभी तक के इंटरनैट इतिहास में यह अपने अलग तरीके का ही ऐप है जिसे ओपन एआई नाम की कंपनी ने साल 2015 में विकसित किया था.

गूगल से कैसे है अलग

गूगल से हम सब परिचित हैं.उसमें किसी भी तरह के प्रश्न पूछे जाने पर हमें उस प्रश्न से संबंधितवैबसाइट की लिंक दिखाई जाती है,परंतु चैट जीपीटी वैबसाइट के लिंक के बजाय उन प्रश्नों का उत्तर आपको लिख कर विस्तारपूर्वक देता है. यदि आप उस उत्तर से संतुष्ट नहीं हैं तो पूछने पर वह लगातार अपने रिजल्ट अपडेट करके और अधिक विस्तारपूर्वक जानकारी देता है जिससे कि आप संतुष्ट हो सकें.

खतरे की घंटी

जब बात एआई की होती है तब जेहन में सबसे पहला डर आता है मानवों के रिप्लेसमैंट का, यानी नौकरियों के जाने का. चैट जीपीटी को लेकर भी ऐसी ही कई आशंकाएं हैं. अगर यह सबकुछ कर लेगा तब हमारी नौकरी का क्या होगा? चिकित्सा और शिक्षण में भी कुछ नौकरियां खतरे में हैं. कुछ एक्सपर्ट्स ने चिंता भी जताई है कि चैटजीपीटी से इंसानों की नौकरियां ख़त्म हो सकती हैं, खासकर उन नौकरियों में जिन में शब्दों और वाक्यों पर निर्भरता है, जैसे कि पत्रकारिता. अगर सिस्टम और बेहतर हुआ तो पत्रकारों की नौकरियां कम होंगी और संभवतया एक समय ऐसा भी आ सकता है जब उनकी जरूरत ही न पड़ेगी क्योंकि हर आर्टिकल चैटबोट ही लिख देगा.

चैटजीपीटी की कोड लिखने की क्षमता एक और सैक्टर पर सवाल खड़ा कर सकती है और वह सैक्टर है- कंप्यूटर प्रोग्रामिंग.अगर एआई प्रोग्रामर के 80 प्रतिशत काम कर सकता है, तो निसंदेह लोग अपने जौब को लेकर खतरा महसूस कर सकते हैं. एक और क्षेत्र जिसमें सर्वाधिक चिंता है, वह है शिक्षक.बच्चों द्वारा धड़ल्ले से इसका उपयोग असाइनमैंट पूरा करने में किए जाने के बाद इसे कई जगह बैन करने की नौबत आ गई.लोगों का कहना है कि बच्चों में नकल करने की आदत बढ़ सकती है और नई चीजें सीखने पर उनका जोर घट सकता है.

कुछ विशेषज्ञ विचारों के मशीनीकरण होने को लेकर भी आशंकित हैं. यह दुनिया को समझने के तरीके को पलट देने जैसा है. इतना सुविधाजनक टूल के आने के बाद क्या मानवों में क्रिएटिव होने की प्रवृत्ति कम नहीं होगी?

चैट जीपीटीजैसे एडवांस्ड एआई को लेकर कई नैतिक और कानूनी चिंताएं भी जताई जा रही हैं. साइबर क्राइम से लेकर अफवाहें फैलाने तक का रिस्क जताया जा रहा है.

चैट जीपीटी की खामियां

सवाल है कि क्या वास्तव में एआई बेस्ड टूल चैट जीपीटी द्वारा बताए गए नतीजों पर हम पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं? आइए देखते हैंशोधकर्ताओं का इस संबंध में क्या कहना है:

*यह टूल अभी हर तरह के सवालों का जवाब देने के लिए सक्षम नहीं है, जैसे साल 2023 की किसी जानकारी के बारे में पूछने पर यह उसका उत्तर नहीं दे पाता है.

*अभी यह टूल हर प्रकार की इमेज या वीडियो नहीं बना सकता है.

* भाषापर अभी भी इस की कमजोर पकड़ है. यह टूल अभी हर भाषा में जवाब देने के लिए सक्षम नहीं है.

*इसके द्वारा दिया गया जवाब 100 प्रतिशत सटीक नहीं है. इसके द्वारा दिए गए जवाब पर निर्भर नहीं रहा जा सकता बल्कि इसके जवाबों को केवल सुझाव के तौर पर लेना ज्यादा अच्छा रहेगा.

*चैट जीपीटीने कई सवालों के गलत और निरर्थक जवाब भी दिए. विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें सुधार की बहुत गुंजाइश है.

*कई लोग इसकी आलोचना इस आधार पर भी करते हैं कि चैट जीपीटीका फोकस एल्गोरिदम का इस्तेमाल कर वाक्य को बेहतरीन तरीके से लिखने पर है. कुछ लोगों ने तो इसे ‘स्टोचैस्टिक तोता’ तक कहा है, यानी, बिना कुछ सोचेसमझे बोलने वाला प्राणी जो शब्दों को खास अंदाज में एकसाथ पिरोने से ज्यादा कुछ नहीं करता.

*शोधकर्ताओं ने पाया है कि चैट जीपीटीगणितीय गणनाओं के साथ भी संघर्षकरता है.

*फटाफट उत्तर पाने के लिए और नए वर्जन का उपयोग करने के लिए अच्छीखासी रकम का भुगतान भी करना होगा. मुफ्त वर्जन उपयोग करने पर आपको उत्तर के लिए इंतजार करना पड़ सकता है.

चैट जीपीटी के निर्माता सैम आल्टमैन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह काम जितना आसान दिखता है,उतना है नहीं. इसे हासिल करने में अभी और समय लगेगा. इंजीनियर दिनरात इसे स्मार्ट बनाने में लगे हुए हैं.

आप क्या सोच रहे हैं? क्या चैट जीपीटी वाकई खतरा है और आने वाले दिनों में क्या हम इसके गुलाम बनने वाले हैं या फिर इसके विपरीत आप इसे एक ऐसा उपकरण मान रहे हैं जो मानव की क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करेगा?शोधकर्ताओं के भी ऐसे ही भिन्नभिन्न मत हैं.

इसे खतरा मानने वाले वर्ग का कहना है कि इंसानों की काबिलीयत से होड़ करने वाले ये सिस्टम खतरनाक साबित हो सकते हैं. अभी हमारा समाज ऐसे बदलावों के लिए तैयार नहीं है. क्या गारंटी है कि इनका केवल पौजिटिव ही असर होगा और इनसे जो रिस्क हैं क्या उन्हें मैनेज करना हमारे लिए संभव है?

दूसरे वर्ग का कहना है कि एआई कोई नई चीज नहीं है. 90 के दशक से हम इससे परिचित हैं और ये मानवों की कार्यक्षमता को बढ़ाने में ही सहायक हुए हैं. यह सही है कि यह इंसानों से ज्यादा तेजी से सोच सकता है, रिऐक्टिव होता है और इंटैलीजैंट भी. पर सचाई यह है कि यह इंसानों द्वारा ही दिए गए इनपुट और सुधारों के बगैर बिना काम का है.

इसे कैलकुलेटर के उदहारण से समझा जा सकता है. जिस तरह कैलकुलेटर के आने से गणित पढ़ाने का तरीका बदला है,उसी तरह एआई से शिक्षक के क्षेत्र में भी नए सुधार की संभावना बनती है. साइंटिफिक रिसर्च जैसी फील्ड में शामिल कर शायद हम वह हासिल करें जो अभी नामुमकिन सा प्रतीत होता है. इसे बनाने वाली ओपन एआई कंपनी की वैबसाइट के मुताबिक भी इसका मिशन यह तय करना है कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस को पूरी मानवता के लिए फायदेमंद बनाया जाए, न कि इससे कोई क्षति हो.

निसंदेह अभी कुछ कहना जल्दबाजी है, पर हां, सरकारों और कंपनियों को इस दिशा में सोचसमझ कर कदम आगे बढ़ाने होंगे ताकि इस तकनीक का मानव जाति की सोचने की क्षमता,आजीविका आदि पर बुरा प्रभाव न पड़े.

युवाओं में बढ़ता सौलिड और्गन कैंसर

कैंसर सब से घातक बीमारियों में से एक माना जाता है. वैसे तो कैंसर से उम्रदराज लोग प्रभावित होते हैं लेकिन धीरेधीरे युवाओं में भी इस का फैलाव बढ़ रहा है, जो चिंताजनक है. दुनियाभर में मृत्यु के प्रमुख कारणों में कैंसर से मृत्यु का आंकड़ा सब से अधिक माना जाता है. ट्रैडिशनली इस रोग से बड़ी उम्र के लोग अधिक प्रभावित होते हैं, लेकिन हाल में ही किए गए अध्ययनों से पता चला है कि कैंसर युवाओं में भी तेजी से फैल रहा है, जिस से चिकित्सा के पेशेवरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों में चिंता बढ़ रही है.

युवाओं, खासकर 15 से 19 साल के यूथ, में सब से कौमन कैंसर ब्रेन ट्यूमर, थाइराइड कैंसर, मेलिग्नेट बोन ट्यूमर आदि का होना है. इस बारे में न्यूबर्ग सुप्राटैक रैफरैंस लैबोरेटरी के सीनियर कंसलटैंट डाक्टर भावना मेहता कहती हैं कि युवाओं में कैंसर वृद्धि होने की वजहें बदलती जीवनशैली, अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक गतिविधियों में कमी, पर्याप्त नींद न होना, पर्यावरण में विषाक्त पदार्थों से प्रदूषण, कीटनाशक, तंबाकू चबाने की आदत, धूम्रपान, शराब आदि हैं.

इन में सब से अधिक योगदान शारीरिक गतिविधियों की कमी और अस्वास्थ्यकर आहार का होना है. यह समस्या हर दशक के बाद कम उम्र के लोगों में देखी जा रही है, जो चिंता का विषय है. दरअसल कैंसर का पता बहुत देर से चलना भी एक बड़ी समस्या है, जिस से इलाज में देर हो जाती है. हालांकि यह देखा गया है कि कम उम्र के युवाओं में जल्दी कैंसर का पता लगने पर इलाज संभव होता है,

लेकिन यूथ को पहले विश्वास करना मुश्किल होता है कि उन्हें कैंसर है. तकरीबन 70 हजार टीनएजर्स हर साल कैंसर डायग्नोस किए जाते हैं, जिन में से 80 प्रतिशत यूथ सालों तक इलाज के बाद सरवाइव कर पाते हैं और यह एक अच्छी बात है. कैंसर की देर से जानकारी होने की मुख्य वजहें निम्न हैं- द्य कैंसर के बारे में जागरूकता की कमी. द्य यूथ होने की वजह से नियमित जांच का न होना. द्य कैंसर का पता चलने पर किसी से इस बात को कह पाने की हिचकिचाहट. द्य आर्थिक समस्याएं आदि. बेहतर स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टूल के कारण ऐसे कैंसर, जिन के बारे में पहले पता ही नहीं चल पाता था,

अब उन का शुरुआती चरणों में निदान किया जा रहा है. लेकिन इस सब के बावजूद युवा आबादी के लिए कैंसर का खतरा बड़े पैमाने पर बना हुआ है. जिन युवाओं के कैंसर का निदान हुआ है उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे शिक्षा और कैरियर में बाधा पड़ना, सामाजिक और भावनात्मक कठिनाइयों का होना और परिवार के लिए आर्थिक तनाव में वृद्धि. इस के अलावा कैंसर के कई उपचारों का प्रजनन क्षमता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है. इसलिए कैंसर से पीडि़त युवाओं को प्रजनन संबंधी अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इन निम्न समस्याओं के होने पर डाक्टर की सलाह तुरंत लें- द्य अचानक वजन का घटना. द्य थकान का अनुभव करना.

-बारबार बुखार आना लगातार दर्द का अनुभव करना. द्य त्वचा में परिवर्तन दिखाई पड़ना, मसलन तिल में बदलाव का दिखना, पीलिया का संकेत दिखाई देना आदि. डा. भावना मेहता आगे कहती हैं कि कैंसर किसी भी अन्य बीमारी की तरह है और किसी को भी हो सकती है. लोगों को परिवार और समाज में भी इस के बारे में खुल कर चर्चा करनी चाहिए. कैंसर जैसी बीमारी के बारे में बात करने से होने वाली िझ झक समाप्त होना बेहद जरूरी है.

यह बात हर किसी को पता होनी चाहिए कि कैंसर का डायग्नोस जितना शुरुआती चरण में होता है, उपचार की प्रक्रिया और उस का असर उतना ही बेहतर होता है और कुछ कैंसर पूरी तरह निदानयोग्य होते हैं. युवा आबादी देश का भविष्य है और उसे बचाना सभी की जिम्मेदारी है. सही जीवनशैली अर्थात जल्दी उठना और जल्दी सोना, स्वस्थ और संतुलित आहार लेना, किसी भी रूप में दैनिक शारीरिक गतिविधियों, जैसे टहलना, स्ट्रैचिंग व्यायाम और सब से बड़ी बात, ऐसा वातावरण बनाना जहां कोई भी बिना किसी हिचकिचाहट के कैंसर के बारे में बात कर सके व प्रारंभिक निदान और उपचार के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए प्रयास का लाभ उठा सके.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें