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Crime Story: इश्क की पतंग

सौजन्या- मनोहर कहानियां

जनपद हरदोई के अतरौली थाना क्षेत्र के गांव बहोइया के रहने वाले रामसिंह की भरावन चौराहे पर

दरजी की दुकान थी. उस का विवाह गांव मांझगांव की रीता से हुआ था. बाद में उस से एक बेटा हुआ. लेकिन रीता राम सिंह से उम्र में बड़ी थी, इसी बात को ले कर उस का पत्नी से विवाद होता रहता था.

यह विवाद इतना बढ़ गया कि रीता अपने मायके चली गई, तो फिर लौट कर वापस नहीं आई. रामसिंह ने कई सालों तक उस के वापस आने की राह देखी, जब वह वापस नहीं आई तो राम सिंह ने करीब 12 साल पहले गांव बसंतापुर की रीना से विवाह कर लिया.

रीना रामसिंह से 10 साल छोटी थी. कालांतर में रीना 2 बच्चों की मां बनी. उस के बड़े बेटे का नाम सौरभ था और छोटे का गौरव. बाद में रीना आंगनवाड़ी में सहायिका के रूप में काम करने लगी.

जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, रामसिंह का दमखम जवाब देने लगा था. दिन भर दुकान पर खटने के बाद वह घर आता तो रास्ते में दारू के ठेके से दारू पी कर घर लौटता था. घर आ कर खाना खाते ही सो जाता था. उसे बीवी की जरूरतों को पूरा करने की सुध ही नहीं रहती थी.

रामसिंह के मकान के बराबर में ही उस के चाचा श्रीपाल रहते थे. श्रीपाल के 2 बेटे थे सोनेलाल उर्फ भूरा और कमलेश. कमलेश लखनऊ में बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. भूरा भरावन चौराहे पर ही एक दुकान पर सिलाई का काम करता था. वह अविवाहित था.

रामसिंह और भूरा की उम्र में काफी अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों भाइयों में अच्छी पटती थी. एक दिन भूरा अपने साथियों के साथ तालाब में मछलियां पकड़ने गया. वह काफी मछलियां पकड़ कर लाया. उस ने सोचा क्यों न थोड़ी मछलियां रामसिंह भैया को दे आए. वह मछलियां ले कर रामसिंह के घर पहुंचा तो रीना सब्जी बनाने के लिए बैंगन काट रही थी.

थैला उस के आगे रखते हुए भूरा बोला, ‘‘छोड़ो भाभी, ये बैंगनसैंगन काटना. ये लो मस्त मछलियां, इन को साफ कर के पकाओ. आज रात मैं भी खाना यहीं खाऊंगा.’’

 

रीना ने एक नजर मछलियों पर डाली, फिर होंठों पर मुसकान सजाते हुए बोली, ‘‘भूरा शिकार फंसाने में तो तुम माहिर हो. गजब की मछलियां फंसाई हैं.’’

भूरा ने भी मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, ‘‘ये तो छोटीछोटी मछलियां हैं, कोई बड़ी मछली फंसे तो बात बने.’’

‘‘देवरजी, उस के लिए दमदार कांटा होना चाहिए.’’ रीना ने तिरछी नजरों से कामुक वार किया.

‘‘कांटा तो दमदार है भाभी, पर कोई आजमाए तो.’’ भूरा की इस बात पर रीना लजा गई.

मछलियां दे कर भूरा बाहर निकला तो घर के बाहर बैठे राम सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आज भाभी मछलियां बनाएंगी और मैं शाम को यहीं आ कर खाना खाऊंगा.’’ भूरा बोला.

‘‘फिर तो दारू मुझे ही मंगानी पड़ेगी. शाम को जल्दी आ जाना.’’ रामसिंह ने कहा.

शाम हुई तो रीना ने मछली और रोटियां तैयार कर के रख दीं. इस बीच रामसिंह और भूरा भी आ गए. रामसिंह और भूरा दारू पीते हुए गपशप करने लगे. कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला.

रामसिंह ने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली. जब वह सुधबुध खोने लगा तो रीना ने कलाई पकड़ कर उसे उठाया और कमरे के अंदर ले जा कर पलंग पर लिटा दिया. पलंग पर ढेर होते ही राम सिंह खर्राटे भरने लगा.

भूरा ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भाभी, भैया कुछ ज्यादा ही पी गए. गलती मेरी भी है, मुझे उन को रोकना चाहिए था. खैर आप भी खाना खा लो. मछलियां बहुत स्वादिष्ट बनाई हैं आप ने, मजा आ गया.’’ भूरा  ने रीना की प्रशंसा की.

रीना ने भरपूर नजरों से भूरा को देखा. भूरा का युवा चेहरा नशे की मस्ती में चमक रहा था. वह बोली, ‘‘तुम्हारे भैया को सचमुच ज्यादा चढ़ गई, पड़ते ही सो गए.’’

‘‘शराब चीज ही ऐसी है, भाभी. कितनी भी थकान हो, गम हो, परेशानी हो, आराम से नींद आ जाती है.’’

रीना ने ठंडी आह भरी, ‘‘हां दारू पी कर लोग थकान उतार लेते हैं. जहां असली नशा हो, वहां नजर भी नहीं डालते.’’

रीना के इन शब्दों में दर्द भी था और आमंत्रण भी. भूरा ने उस की आंखों में आंखें डालीं तो वहां उसे प्यास का समंदर ठाठें मारता दिखा.

वह रोमांटिक अंदाज में बोला, ‘‘सच कहती हो भाभी. अब खुद को ही देख लो. आप के पास क्या नहीं है. अपने आप में पूरा मयखाना हो. जिस के रोमरोम में नशा है और भैया घर के मयखाने न देख कर शराब में डूब जाते हैं.’’

‘‘ओह, तो मैं तुम्हें नशे की बोतल लगती हूं.’’ रीना एकदम से भूरा के करीब आ गई.

भूरा ने दुस्साहस किया. रीना की कलाई पकड़ कर उसे अपने पास खींच लिया और उस का हाथ अपने सीने पर रखते हुए बोला, ‘‘मेरे दिल से पूछ कर देख लो. यह बता देगा कि तुम कैसी हो. तुम हसीन हो, नशीली हो, मस्त हो.’’

 

3 बच्चों की मां, जो शरीर सुख से वंचित हो, कोई कुंवारा जवां मर्द उस के हुस्न की तारीफ करे, उस का हाथ थामे तो उस का बहकना स्वाभाविक है. रीना भी भूरा का अंदाज देख कर गदगद हो गई. भूरा ने उस का चेहरा थाम कर अपनी हथेलियों में लिया और अपनी गर्म सांसों से उस के चेहरे को नहलाना शुरू किया तो वह सुधबुध खोने लगी. धीरेधीरे यह खेल अपनी सीमाएं लांघता गया और उन के बीच अनैतिक संबंध बन गए.

कुंवारे भूरा ने रीना की व्याकुल देह को उस रात जो सुख दिया, उस से रीना उस की दीवानी हो गई. अब वह अकसर पति रामसिंह की नजरों से बच कर वासना का खेल खेलने लगी.

महीनों बीत गए. उन का खेल इसी तरह चलता रहा. भूरा रीना से ऐसे समय मिलने जाता, जब रामसिंह दुकान पर होता. एक दिन भूरा रीना को अपनी बांहों में समेटे पड़ा था. तभी अचानक रीना ने सास की झलक देखी तो उस ने भूरा को धक्का दे कर परे किया और हड़बड़ा कर उठ बैठी. भूरा पकड़े गए चोर की तरह सिर झुका कर वहां से चला गया. रीना भी सिर झुकाए धरती निहारने लगी.

सास राधा देवी का खून खौल रहा था. उस ने आंखें निकाल कर कहा, ‘‘कुलच्छिनी, तू इतनी नीच निकली. अरे, कुछ तो शरम की होती.’’

रीना ने सास के पैर पकड़ लिए, ‘‘अम्मा, इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है. भूरा ही न जाने क्यों मेरे पीछे पड़ा रहता है.’’

‘‘पीछे पड़ा रहता है,’’ राधा अपना हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘आज मैं ने तेरी चोरी पकड़ ली तो पाकसाफ होने का ढोंग कर रही है. मैं कल ही तेरे बाप को बुला कर तेरी करतूत बताती हूं.’’ सास ने धमकी दी.

रीना सास के पैरों में गिर पड़ी. माफी मांगते हुए गिड़गिड़ाई, ‘‘इस बार माफी दे दो अम्मा. आइंदा उस से बात करते भी देखा तो अपने हाथों से मेरा गला घोंट देना.’’

 

खानदान की इज्जत का सवाल था. इसलिए राधा देवी ने चेतावनी दे कर रीना को माफ कर दिया. बाद में उन्होंने यह बात अपने पति श्यामलाल को जरूर बता दी.

बहू की हरकत से श्यामलाल भी सन्न रह गए. उन्होंने राधा से कहा, ‘‘बात अपनी ही इज्जत की है, इसलिए ज्यादा तूल देंगे तो अपनी ही बदनामी होगी. बहू ने अगर गलती मान ली है और दोबारा गलती न करने का भरोसा दिया है तो एक बार उसे सुधरने का मौका देना ही ठीक है.’’

उस दिन से राधा सतर्क हो गई. सासससुर ने यह बात राम सिंह की जानकारी में नहीं आने दी थी. इस के बाद भूरा ने रीना के घर आनाजाना बंद कर दिया.

कुछ दिन दोनों शांत रहे, पर अंदर ही अंदर दोनों बेचैन थे. उन से यह दूरी बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. आखिरकार एक दिन दोनों को मौका मिल ही गया. भूरा अपनी ताई राधा की नजरें बचा कर किसी तरह रीना के पास पहुंच गया और हसरतें पूरी कर लौट आया.

 

इस के बाद दोनों को लंबे समय तक मिलन का मौका नहीं मिला. राधा की नजरें हमेशा बहू की पहरेदारी करती रहतीं.

एक दिन शाम को दुकान से वापस आते समय राम सिंह को भूरा मिल गया. राम सिंह ने उस से पूछा, ‘‘भूरा, क्या बात है आजकल तुम मिलते ही नहीं, घर भी नहीं आते.’’

भूरा चौंका. इस का मतलब राधा ताई ने रामसिंह को कुछ नहीं बताया था. भूरा ने तुरंत बहाना ढूंढ लिया, ‘‘अरे भैया, बस ऐसे ही कुछ काम में फंसा हुआ था.’’

‘‘बहुत दिन हो गए हैं, बैठे हुए. कल शाम को आओ, फिर महफिल जमाते हैं.’’

भूरा ने हां तो कर दी, पर उसे डर था कि रामसिंह के साथ उस के घर में खातेपीते देख कर राधा कहीं तूफान न खड़ा कर दे. उस का साहस जवाब दे गया. उस ने राम सिंह के घर न जाने का निश्चय कर लिया. अगले दिन शाम को भूरा घर नहीं पहुंचा तो रामसिंह उसे खुद जा कर पकड़ लाया. इत्तफाक से राधा और श्यामलाल घर पर ही थे. दोनों को देख कर भूरा की नजरें झुक गईं. वे दोनों भूरा को देख कर कुढ़ रहे थे, पर बेटे का भूरा के प्रति अपनत्व देख कर उन्होंने उस वक्त कुछ कहना ठीक नहीं समझा. भूरा ऐसा जाहिर कर रहा था, जैसे उसे अपनी गलती का बहुत पछतावा हो. उस ने रीना को नजर उठा कर भी नहीं देखा.

 

उस दिन से भूरा के लिए फिर से रीना के घर जाने का रास्ता खुल गया. राधा चाह कर भी रामसिंह को रीना और भूरा के रिश्ते की बात नहीं बता सकी. उस ने इशारोंइशारों में बेटे को समझाना चाहा कि जवान लड़के का यों उस के घर में घुसे रहना ठीक नहीं है.

लेकिन रामसिंह भूरा पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करता था. उस के इस विश्वास का फायदा उठाते हुए रीना और भूरा फिर से वासना के खेल में डूब गए. अब उन को राधा की भी परवाह नहीं थी.

लेकिन एक साल पहले राम सिंह ने दोनों को एक दिन खेत पर रंगरलियां मनाते हुए देख लिया. रामसिंह ने दोनों को जम कर मारापीटा. उस दिन के बाद से रीना और भूरा मोबाइल पर बात कर के अपने मन को समझाने लगे. जब मौका होता, रीना उसे बुला लेती. भूरा भी रामसिंह के सामने पड़ने से बचने लगा. इस के बाद तो भूरा अपनी दुकान से हट कर कहीं जाता तो रामसिंह उस का पीछा करता कि कहीं वह घर पर रीना से तो मिलने नहीं जा रहा.

करीब 8 महीने पहले रीना ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन वह अधिक दिन जीवित नहीं रह सकी. भूरा उसे अपनी बेटी मान रहा था. उस के मरने से वह बहुत दुखी हुआ.

 

17 जुलाई, 2020 की शाम 7 बजे रामसिंह अपनी दुकान से लौटा. वह शराब पी कर आया था. उस ने खाना खाया, रीना घर पर नहीं थी. उस की बहन शिल्पी आई हुई थी, पता चला कि रीना सुबह ही उसी के साथ मायके बसंतापुर चली गई थी. इसलिए रामसिंह खाना खा कर घर के बाहर चारपाई डाल कर सो गया. दूसरे दरवाजे पर उस के पिता श्यामलाल और रामसिंह के बच्चे सो रहे थे.

 

18 जुलाई की सुबह साढ़े 5 बजे गांव की महिलाएं बाहर निकलीं तो उन्होंने राम सिंह की चारपाई के नीचे खून पड़ा देखा तो दंग रह गईं. महिलाओं ने शोर मचाया तो रामसिंह के घर वाले व गांव के अन्य लोग वहां एकत्र हो गए. घर वालों ने रीना को खबर करने के बाद अतरौली थाने में घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर संतोष तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

रामसिंह की लाश चारपाई पर पड़ी थी. उस के सिर, चेहरे व पेट पर गहरे घाव थे जो किसी तेज धारदार हथियार के मालूम पड़ रहे थे. घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से करीब 70 मीटर की दूरी पर एक सूखे कुएं में खून से सनी एक कुल्हाड़ी पड़ी दिखी. इस पर इंसपेक्टर तिवारी ने फोरैंसिक टीम बुला ली. फोरैंसिक टीम ने कुएं से कुल्हाड़ी निकलवा कर उस के हत्थे से फिंगरप्रिंट उठाए. घटना की खबर पा कर रीना भी तुरंत घर वापस आ गई थी.

इंसपेक्टर संतोष तिवारी ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद रीना, श्यामलाल व घर के अन्य लोगों से पूछताछ की तो उन्हें आभास हो गया कि हत्या के पीछे किसी करीबी का ही हाथ है. घर वाले जानते हैं लेकिन बता नहीं रहे हैं.

आलाकत्ल कुल्हाड़ी का घटनास्थल के पास मिलना दर्शा रहा था कि घटना को अंजाम देने के बाद हत्यारे ने जल्दी में कुल्हाड़ी को कुएं में फेंका और घर जा कर सो गया. फिलहाल इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

रीना की तरफ से उन्होंने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने घर वालों से सख्ती से पूछताछ की तो सारी हकीकत सामने आ गई. पूछताछ के बाद उन्होंने 19 जुलाई, 2020 को रीना और सोनेलाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

रामसिंह के बराबर निगरानी रखने से भूरा और रीना का मिलना मुश्किल होता जा रहा था. घटना से एक महीने पहले भूरा अपनी दुकान से कहीं काम से गया और वापस लौट कर आया तो राम सिंह को शक हुआ कि वह रीना से मिल कर आ रहा है. गुस्से से उबल रहे रामसिंह ने भूरा को कैंची से मारा. अपने आप को बचाने के लिए भूरा ने अपना दायां हाथ आगे किया तो से उस के हाथ में घाव हो गया और खून बहने लगा.

 

घर आ कर उस ने मोबाइल पर बात कर के रीना को खेत पर बुलाया और उसे अपना हाथ दिखा कर पूरी बात बताई. इस पर रीना ने कहा, ‘‘अब बहुत ज्यादा हो गया. अगर साथ रहना है तो इसे (रामसिंह को) रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.’’

इस के बाद दोनों घर लौट गए.

अब भूरा राम सिंह से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा, जिस से उसे विश्वास में ले कर उस की हत्या कर सके. लेकिन राम सिंह शराब पी कर अकसर भूरा को डांट देता था.

17 जुलाई, 2020 की सुबह रीना भूरा से मिली और कहा, ‘‘मैं आज मायके जा रही हूं, मौका देख कर आज इस का काम तमाम कर देना.’’ कह कर रीना चली गई.

रीना के जाने के बाद रामसिंह दुकान पर चला गया, उस के पीछे से भूरा भी अपनी दुकान चला गया. शाम को रामसिंह दुकान से सीधे शराब के ठेके पर गया और शराब पी कर घर चला गया. उस के जाने के 10 मिनट बाद भूरा भी शराब पी कर घर चला आया.

 

शाम 7 बजे खाना खाने के बाद राम सिंह सो गया. रात 10 बजे भूरा ने राम सिंह के बड़े बेटे बिन्नू से कुल्हाड़ी ले कर अपने पास रख ली. रात साढ़े 12 बजे के आसपास भूरा अपने घर से निकला. बीच रास्ते में गाय बंधी थी. किसी तरह की आवाज न हो, इस के लिए उस ने गाय की रस्सी खूंटे से खोल दी, जिस से गाय वहां से चली गई.

भूरा रामसिंह की चारपाई के पास पहुंचा और रामसिंह के सिर पर साथ लाई कुल्हाड़ी का एक तेज प्रहार कर दिया. रामसिंह के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. इस के बाद भूरा ने उस के ऊपर 4 वार किए. रामसिंह की मौत होने के बाद वह पास के एक सूखे कुएं के पास गया और कुल्हाड़ी कुएं में फेंक दी. फिर घर आ कर सो गया.

लेकिन भूरा और रीना का गुनाह कानून की नजर में आ ही गया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद दोनों को सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

समर स्पेशल: सेहत के लिए फायदेमंद है चटनी, ट्राय करें ये 7 रेसिपी

चटनियां हरी पत्तियों व विविध हैल्दी मसालों को मिला कर बनाई जाती हैं. फिर इन्हें पकाया भी नहीं जाता, इसलिए इन में प्रयोग मसाले, फल, सब्जियां, दाल आदि के खनिज व विटामिन पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं.

टमाटर, आंवला, अलसी, लहसुन, तिल व इमली जैसी चीजों की चटनी ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करती है. जहां धनिया, पुदीना, बैगन व तोरई की चटनी आयरन व क्लोरोफिल से भरपूर होती है, वहीं दालों व दही के साथ बनाई गई चटनी प्रोटीन से भरपूर होती है.

अपने स्वाद व मौसम के अनुसार विविध प्रकार चटनियां बना कर फ्रिज में रखें. किसीकिसी चटनी को साल भर तक भी सुरक्षित रखा जा सकता है जैसे आम, आंवला व मेथी की चटनी. लहसुन, अलसी, तिल व टमाटर की चटनी को भी 10-15 दिन फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है. दालों, धनिया, पुदीना, तोरई व बैगन आदि की चटनी को भी 5-6 दिन तक फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है.

पेश हैं, विभिन्न प्रकार की चटनियां बनाने की विधियां:

1. मेथीदाना की चटनी

सामग्री: 2 बड़े चम्मच मेथीदाना, 1/4 कप किशमिश, 1/2-1/2 छोटा चम्मच हलदी व लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच सौंफ पिसी, 1 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर, 1/2 कप कद्दूकस किया गुड़, चुटकी भर हींग, 1 छोटा चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि: मेथी को धो कर साफ पानी में 2 घंटों के लिए भिगो दें. फिर स्टीम कर लें. पैन में तेल गरम कर हींग भून कर हलदी डालें. मैथी डाल कर थोड़ी देर भूनें. अब 1/2 कप पानी डाल शेष सामग्री डाल कर धीमी आंच पर गाढ़ा होने तक पकाएं.

लाभ: यह चटनी पित्त व वायु की वृद्धि रोकती है, वात रोग में भी लाभदायक है, पाचनशक्ति को सुचारु बनाती है. इस चटनी को 5-6 महीने तक रखा जा सकता है.

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2. अदरक की चटनी

सामग्री: 50 ग्राम अदरक, 1 छोटा चम्मच इमली का पेस्ट, 1 बड़ा चम्मच गुड़, 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि: अदरक को धो छील कर कद्दूकस करें. पैन में तेल गरम करें. अदरक लच्छा डाल कर थोड़ी देर भूनें फिर इमली का पेस्ट डाल कर भूनें. ठंडा कर के गुड़ छोड़ कर सारी सामग्री मिला कर पीस लें. अब गुड़ कद्दूकस कर के मिलाएं और थोड़ी देर पकाएं. ठंडा होने पर बोतल में रखें. इसे 3-4 महीने तक रखा जा सकता है.

लाभ: आमवात की शिकायत में लाभदायक है. गैस, जुकाम, दमा व खांसी आदि में भी इस का सेवन लाभदायक है.

3. लहसुन व अलसी की चटनी

सामग्री: 1/2 कप लहसुन की कलियां, 2 बड़े चम्मच अलसी, 8-10 सूखी लालमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस, नमक स्वादानुसार.

विधि: लहसुन छील कर सारी सामग्री मिला कर बारीक पीस लें. ब्रैड स्पै्रड की तरह इसे प्रयोग किया जा सकता है. इसे 10-15 दिन तक रखा जा सकता है.

लाभ: लहसुन ऐंटीऔक्सीडैंट है, अलसी ओमेगा ऐसिड से भरपूर है, जो ब्लडप्रैशर को नियंत्रित करती है. इस से कोलैस्ट्रौल कम होता है.

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4. तिल व नारियल की चटनी

सामग्री: 1 कप भुने सफेद तिल, 1 कप कद्दूकस किया नारियल, 5-6 कलियां लहसुन, 3-4 हरीमिर्चें, 2 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी, 1 कप इमली का रस, नमक स्वादानुसार.

विधि: तिल, नारियल, लहसुन, हरीमिर्च व धनियापत्ती को मिला कर पीसें. नमक व इमली का रस मिलाएं. इसे 5-6 दिन रखा जा सकता है.

लाभ: तिल कैल्सियम से भरपूर है. नारियल में फास्टोरस, प्रोटीन कैल्सियम व आयरन जैसे खनिज विटामिन होते हैं.

5. दही की चटनी

सामग्री: 1 कप दही, 1 कप धनियापत्ती या पुदीनापत्ती, 5-6 हरीमिर्चें, 1/2 कप कद्दूकस किया नारियल, 2 बड़े चम्मच नीबू का रस, 2 बड़े चम्मच चीनी, नमक स्वादानुसार.

विधि: सारी सामग्री को मिक्सी में डाल कर बारीक पीस लें. फ्रिज में ठंडा कर के सर्व करें. इसे 5-6 दिन फ्रिज में रखा जा सकता है.

लाभ: दही, धनिया, व नारियल सभी विटामिन व खनिज से भरपूर होते हैं. गरमी के मौसम में यह चटनी विशेष ठंडक प्रदान करती है.

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6. करीपत्ते की चटनी

सामग्री: 1/2-1/2 कप नारियल व करीपत्ता, 6 हरीमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच इमली का पेस्ट, 1 बड़ा चम्मच उरद दाल, नमक स्वादानुसार.

विधि: उरद दाल को ड्राई रोस्ट करें. फिर सारी सामग्री मिला कर पीस लें. इसे 7-8 दिन फ्रिज में रखा जा सकता है.

लाभ: करीपत्ता औषधीय गुणों की खान है, यह कब्ज दूर करता है, बाल काले रखता है व पाचनतंत्र ठीक करता है.

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7. चना दाल चटनी

सामग्री: 1/2 कप चने की दाल, 3 लालमिर्चें, चुटकी भर हींग, 5-6 करीपत्ते, 1 बड़ा चम्मच तेल, 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस, 1/2 छोटा चम्मच राई, 2 बड़े चम्मच दही, नमक स्वादानुसार.

विधि: दाल को सूखा रोस्ट करें. फिर धो कर 1/2 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. दाल, लालमिर्च को बारीक पीसें. पैन में तेल गरम कर राई, हींग भूनें. फिर कटे करीपत्ते डाल कर भूनें. पिसी दाल में यह तड़का डालें. दही व नमक मिलाएं.

इसे भी 4-5 दिन फ्रिज में रखा जा सकता है.

लाभ: यह प्रोटीन व फाइबर से भरपूर होती है.

शरीफा-भाग 3 : आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब वह पछता रही थी?

अपने पश्चाताप की पोथी बांच रही थी निकिता कि तभी मोबाइल की घंटी बज उठी, ओह, बौस का फोन है, अपनेआप को संयत करने का हर संभव प्रयास करते हुए बोली, “गुड आफ्टरनून सर.”

“गुड नून, हाऊ आर यू निकिता?”

आंखों की नमी को पीछे धकेलते हुए वह बोली, “आई एम फाइन सर.”

“सौरी निकिता, आई नो, टूडे इज संडे, बट इट्स अर्जैंट, प्लीज, सैंड सम डौक्यूमैंट्स इमिडिएटली.”

“ओके सर. आई विल सैंड इमिडिएटली,” निकिता गालों को सहलाते हुए बोली. उस के गाल बहुत जलन कर रहे थे.

फोन रखते ही निकिता ने एक बार खुद को आईने में देखा तो पाया, गालों पर फजल के हस्ताक्षर साफसाफ दिखाई दे रहे थे. शुक्र है, आज संडे है, औफिस नहीं जाना, वरना क्या जवाब देती लोगों को कि यह उसी फजल के प्यार भरे हस्ताक्षर हैं जिन के लिए उस ने अपनी जिंदगी की किताब से उन प्यार भरे पन्नों को फाड़ कर फेंक दिया, जिस पर ममता और दुलार की कई गाथाएं लिखी थीं.

उफ, जिंदगी भी क्या शै है, इस तरह बेतहाशा भाग रही है कि इतमीनान से बैठ कर अपना दुख मनाने का वक्त भी नहीं देती, आंसू पोंछ कर मुंह पर पानी के छींटे डाल वह पुनः ड्राइंगरूम में आ गई, किंतु जैसे भी टेबल के सामने आई, फिर से सिर पकड़ कर बैठ गई, लैपटौप… वह तो फजल की मेहरबानी का शिकार हो गया, जाने किस जन्म की दुश्मनी निभा रहा है, किस तरह मेरी जिंदगी बदलहाल किए हुए है, क्या हो अब…? बौस को प्रौमिस कर चुकी हूं, अर्जैंट है, उन्हें बता भी नहीं सकती यह हालात, किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी बैठी रही कुछ देर निकिता. फिर वह उठ कर बैडरूम में गई और फजल का लैपटौप ले आई.

जैसे ही खोला, यह क्या… खुल नहीं रहा. मगर, उस का पासवर्ड तो यही है मेरा बर्थ डेट, यही पासवर्ड तो था, जो उस ने मुझ से शेयर किया था, लेकिन कब बदल दिया और क्यों?

फिलहाल निकिता को बौस का काम करना था. सो, उस ने अपनी आईटी का टैलेंट आजमाते हुए लैपटौप खोल लिया, बौस का काम कोई बहुत बड़ा नहीं था उस के लिए, आधे घंटे में कर के एक मेल सैंड किया बौस को, लगा अब वह अपना शोक इतमीनान से मना सकती है. वह लैपटौप बंद कर के अपने अतीत की गलियों में खोने जा ही रही थी कि अचानक जैसे उसे कुछ स्मरण हो आया, ‘आखिर फजल ने पासवर्ड क्यों बदल दिया? क्या वह मुझ से कुछ छिपा रहा है? क्या उस का कहीं और अफेयर चल रहा है, जिस के रहते वह मुझ से इस तरह का व्यवहार कर रहा है? क्या मुझ से अलग होना चाहता है?’

कई सवाल घूमने लगे निकिता के दिमाग में और उंगली कीबोर्ड पर चलने लगी, बस लैपटौप में सेव वह फाइल उधड़ती चली गई…

‘प्रेमी ने प्रेमिका के किए 300 टुकड़े. पहले दोनों हाथ, फिर पैर काटे. उन्हें अटैची में भर कर खाई में फैंक दिया. कारण, लिव इन में रहते थे दोनों. अब प्रेमिका शादी के लिए दवाब दे रही थी.

‘उस ने कलाई और टखनों के पीस करने से पहले क्रूरतापूर्वक चाकू और कैंची से उस की आंतें काटी.

‘गन्ने के खेत में मिली 5 साल के मासूम की लाश. उस का सिर किसी धारदार हथियार से काटा गया था.

‘पति ने अपनी पत्नी के किए कई टुकड़े और उसे फ्रिज में सहेज कर रखा, पति रोज सेक कर खाता था पत्नी के शरीर का एक पीस. कारण, वह पत्नी से बहुत नफरत करता था.

‘प्रेमी ने प्रेमिका के किए 35 टुकड़े और उन टुकड़ों को शहर के कोनेकोने में बिखेर आया. कारण वही, पहले लिव इन में रहने की शर्त थी, अब पत्नी बनना चाहती थी.

‘वह लड़कियों की हत्या करने के बाद करता था उन के साथ बलात्कार. डाक्टर ने उसे मानसिक रोगी बताया… ‘

इस तरह की न जाने कितनी हिंसक खबरें उस ने सहेज रखी हैं… मगर, क्यों? क्या वास्ता है उस का इन खबरों से? क्या फजल अपराधी है? मानसिक रोगी तो नहीं? हां, शायद यह मानसिक रोगी ही है?

लैपटौप में सेव इतनी फाइलों से तो लगता है कि वह इस क्षेत्र में कोई रेकी कर रहा है कि कैसे सुरक्षित ढंग से इस तरह के काम को अंजाम दिया जा सकता है?

ओह फजल, तुम इस तरह अपनी फितरत पर नकाब ओढ़े रहे, तुम्हारे भीतर का जानवर इतना भयानक हो सकता है, मैं ने कल्पना भी नहीं की थी. क्या समझा था तुम्हें और तुम क्या निकले.

भीतर से बुरी तरह डर गई थी निकिता. एक पल को विचार आया कि पापा को फोन कर के बुला लूं, मगर शायद वह ना आए या आना भी चाहे तो भाई आने नहीं देगा उन्हें, भरोसा जो तोड़ा है उस ने अपनों का. लेकिन अगर अकेली पड़ गई तो उस का अंजाम भी इन्हीं के जैसा होगा यानी शरीर के टुकड़ेटुकड़े…

नहींनहीं…वह फजल की हिंसा का शिकार नहीं होना चाहती. जिस तरह वह आजकल बातबेबात पर हाथ उठाने लगा है, उस से उसे अंदेशा है कि वह शीघ्र ही अपने खतरनाक इरादों को अंजाम देने वाला है.

निकिता की आंखों के सामने फजल का वह अनोखे अंदाज में शरीफा खाना, हैवानियत भरी मुसकान के साथ एकएक कर उस के अंश को कांटे की सहायता से भंग करना, मुंह में रखना और… और… सब घूमने लगा. एक पल को लगा, वह शरीफा वही है, फजल कांटे की सहायता से उस के भी इसी तरह अंग भंग करेगा, कोई आश्चर्य नहीं कि वह उसे अपना भोजन भी बना ले. ओह, उसे अपने बचाव में कुछ करना ही होगा. उस ने झट अपने 2-3 फ्रैंड्स को फोन लगा कर जल्द से जल्द घर पहुंचने को कहा. बहुत घबराई हुई थी वह. दरवाजा भीतर से बंद कर उस ने बैडरूम में फटाफट अपना सामान निकाल कर पैक किया. दरवाजे पर घंटी बजी, तो उस की सांस ही थम गई, ‘लगता है, फजल आ गया शायद.’

किसी अनहोनी से उस की रूह कांप रही थी. उस के कदम दरवाजे की ओर जाने को उठ नहीं रहे थे और घंटी थी कि बारबार बजती जा रही थी. दरवाजा नहीं खुला, तो दरवाजे पर खड़े फ्रैंड्स ने उसे फोन लगाया, “निकिता कहां हो? दरवाजे पर खड़े हैं. खोल क्यों नहीं रही हो? बाहर सब ठीक तो है?”

“आं… हां, खोलती हूं, खोलती हूं,” घबराहट भरी आवाज के साथ निकिता ने दरवाजे की कुंडी खोली. सामने महेश, श्याम, रीना और रुचिता को देख वह उन के गले लग जोरजोर से रोने लगी.

डरीसहमी निकिता को देखकर वो भी अचंभित हुए, “अरे, क्या हुआ? कुछ बताएगी भी? इतनी डरीसहमी क्यों है?”

निकिता ने फजल के व्यवहार के बारे में बताया और लैपटौप की वह सारी स्टोरी उन्हें दिखाई तो वो भी सकते में आ गए.

जिस फजल की तहजीब के वे गुण गाते थे, उस के भीतर ऐसा भयानक शैतान बसा है.

“निकिता, तुम्हें जल्द से जल्द उस के चंगुल से निकल जाना चाहिए.”

“हां, मैं ने भी यही तय किया है. अपना सामान पैक कर लिया है. मित्रो, जिंदगी में एक गलती की और खुद को खाई में धकेल दिया मैं ने. अब मुझे ही इस खंदक से निकलना होगा, आप सब का साथ रहेगा तो मेरा आत्मविश्वास बना रहेगा.”

“हम तुम्हारे साथ हैं निकिता, लेकिन जल्दी करो,” निकिता ने अपना सामान उठाया और दोस्तों के साथ बाहर की ओर चल पड़ी कि तभी दरवाजे से फजल का भीतर आना हुआ. सामना होते ही औफिस के कर्मचारियों को देख वह समझ तो गया कि आज की घटना इन तक पहुंच चुकी है, किंतु उस के भीतर चल रही योजना से भी सब वाकिफ हो चुके हैं, इस का अंदाजा नहीं था उसे. अतः झट चेहरे पर नकाब ओढ़ते हुए वह बोला, “सौरी निकिता. मैं ने तुम्हारे साथ बेअदबी की, बहुत अफसोस है मुझे…”

“अफसोस तो मुझे भी है कि मैं ने तुम जैसे जलील इनसान के लिए अपने मातापिता और परिवार का दिल दुखाया. मगर शुक्र है दोस्तों का, जिन्होंने समय रहते मुझे आगाह कर दिया.”

“यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो निकिता, झगड़ा किस में नहीं होता.”

“बस… बस करो, इस तरह लड़कियों की जिंदगी से खेलना बंद करो फजल, यह जान लो कि मैं शरीफा नहीं बनना चाहती, इसलिए तुम्हें एक बुरा सपना मान कर. जा रही हूं तुम्हारी जिंदगी से,” कहते हुए निकिता ने एक नए सूरज की ओर अपना कदम बढ़ा दिया.

फिल्म ‘‘कोरागज्जा‘‘ में 12 वीं शताब्दी के राजा का रोल करेंगे 77 साल के कबीर बेदी

1971 में प्रदर्षित ओ पी रल्हन निर्देषित फिल्म ‘‘हलचल’’ से बौलीवुड में कदम रखने वाले अभिनेता कबीर बेदी सतहत्तर साल की उम्र में भी उसी जोष के साथ अभिनय में रमे हुए हैं.कबीर बेदी ऐसे अंतरराष् ट्ीय कलाकार हैं,जिनके अभिनय का डंका तीन महाद्वीपों यानी कि भारतसंयुक्त राज्य अमेरिका और विशेष रूप से इटली सहित अन्य यूरोपीय देशों में बज चुका है.वह थिएटर,फिल्म और टीवी तीनों माध्यमों में अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं. उन्हें अकबर खान की फिल्म ताजमहलः एन इटरनल लव स्टोरी’ और 1980 के दशक की ब्लॉकबस्टर खून भरी मांगके लिए भी याद किया जाता है.

कबीर बेदी इटली और यूरोप में लोकप्रिय इतालवी टीवी लघु-श्रृंखला में समुद्री डाकू संडोकन की भूमिका निभाने के लिए और 1983 की जेम्स बॉन्ड फिल्म ऑक्टोपसी में खलनायक गोबिंदा के रूप में अभिनय का जलवा विखेर .चुके हैं. कुछ समय पहले वह फिल्म ‘‘षाकंुतलम’’ में रिषि कष्यप के किरदार में नजर आ चुके हैं.अब वह पहली बार फिल्मकार सुधीर अत्तावर निर्देषित और त्रिविक्रम सापल्या निर्मित कन्नड़ फिल्म में अभिनय करते हुए नजर आएंगेजिसका नाम-‘‘कन्नड़ फिल्म ‘‘करी हैदाकोरागज्जा‘‘ है.

इस पीरियड फिल्म में कबीर बेदी के अलावा संदीप सोपारकरसाउथ स्टार्स श्रुतिभव्या और नवीन पडील इत्यादि ने काम किया हैभरत सूर्या और रितिका की यह पहली फिल्म है.फिल्म के संगीतकार सुधीर-कृष्णा हैं.फिल्म के एडिटर सुरेश उर्स (बॉम्बे और दिल से ) और विद्याधर शेट्टी हैं.फिल्म की कहानी 12 षताब्दी के उस युवा आदिवासी की है,जिसे ईष्वर के रूप में पूजा जाता था.इस फिल्म को देखकर कुछ लोगों को कंतारा’ की भी याद आएगी.

इस कन्नड़ फिल्म में कबीर बेदी एक राजा के किरदार में नजर आएंगे.खुद कबीर बेदी ने कहा- ‘‘हालांकि मैने पहले भी कई बार विभिन्न राजा के किरदार निभाए हैं.लेकिन दक्षिण के राजा का किरदार पहली बार निभाया है.यह मेरे लिए एक खूबसूरत अनुभव है.कन्नड़ भाषी फिल्म में काम करना मेरे लिए बहुत अच्छा और खास अनुभव रहा.फिल्म की कहानी 800 साल पूर्व के एक आदिवासी लड़के की कहानी है,जिसे लोग आज पूजते हैंउसके नाम का मंदिर बनाते हैं. इस कहानी की बहुत गहरी जड़ें हैं.मुझे खुशी है कि इस कहानी पर फिल्म बनी है.फिल्म के निर्देषक सुधीर अत्तावर कमाल के हैं.मुझे लगता है कि यह दर्शकों के दिलों को छुएगी.यह फिल्म भी कनतारा के ट्रेडिशन में आती है और हमें उम्मीद है कि ये फिल्म भी कनतारा जैसी सफलता हासिल करेगी.

फिल्म के निर्देशक सुधीर अत्तावर बताते हैं-कबीर बेदी जैसे दिग्गज अभिनेता के साथ काम करना मेरे लिए बड़े गर्व की बात रहीकाफी अच्छा अनुभव रहा.जब मैंने उन्हें डर डर कर फिल्म की स्क्रिप्ट भेजी थतो मुझे अंदाजा नहीं था कि वह यह भूमिका स्वीकार करेंगे या नहीं.लेकिन उन्होंने मेरे साथ काम करना मंजूर कियामुझे बहुत सपोर्ट कियाउनसे मैंने बहुत कुछ सीखा. उनके लिए कन्नड़ भाषा के संवादउच्चारण करना बिल्कुल नया था. लेकिन उन्होंने बेहतरीन संवाद अदायगी की हैडबिंग में भी जिस तरह अदायगी कीवह कमाल है. मैं यह कहूंगा कि मैंने इन्हें इस फिल्म में डायरेक्ट नहीं किया बल्कि कबीर सर से मुझे काफी सीखने का मौका मिला और यह मेरे लिए जीवन भर का लर्निंग एक्सपीरियंस रहा.‘‘

फिल्म के निर्देशक ने आगे कहा-‘‘मैंने इस विषय पर काफी रिसर्च किया. फिल्म लिखने से पहले संबंधित आदिवासी समुदाय से बातचीत कीजिससे कई नई जानकारी मिली.दर्जनों निर्माता निर्देशक ने इस सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का प्रयास किया.मगर भगवान के आशीर्वाद से मुझे इस विषय पर सिनेमा बनाने और कबीर बेदी जैसे दिग्गज अभिनेता संग काम करने का अवसर मिला.‘‘ कबीर बेदी ने आगे कहा-‘‘ यह बहुत अनूठी फिल्म है.इसकी कहानी इतनी प्यारी है कि फिल्म दिलों को छू लेगी. कन्नड़ संवाद अदायगी और डबिंग में भी मेरा सौ प्रतिशत प्रयास रहा है कि मैं परफेक्ट लाइन्स बोलूं क्योंकि काम के प्रति परफेक्शन में मैं यकीन रखता हूँ.

मोदी की हार

कनार्टक में विधानसभा चुनावों में वोटों को कटने से बचाने के साथ व पार्टीजनों
की एकता के बल पर कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को भारी
शिकस्त दी है. अरविंद केजरीवाल पंजाब व दिल्ली में, ममता बनर्जी बंगाल में,
कम्यूनिस्टों ने केरल में व नवीन पटनायक ओडिशा में नरेंद्र मोदी को शिकस्त देते
रहे हैं.

असल में नरेंद्र मोदी का गुणगान जितना होता रहा, उस में ढोल पीटना ज्यादा रहा है और ढोलनुमा इसी सर्कस के बल पर जमा हुई भीड़ के बलबूते भाजपा एकछत्र राज्य कर पा रही थी. नरेंद्र मोदी की भाषाकला और भाजपा सरकार की विरोधियों को कुचलने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों को इस्तेमाल करने ने एक माहौल पैदा कर दिया था कि मोदी का कोई पर्याय नहीं है.

इस पर ऊपर से भगवा लपेटा लगाया गया है जिस में मंदिर, पूजापाठ, धर्म, आयुर्वेद, वस्तु, प्रवचनों, शादियों आदि के व्यापार से जुड़े लोग शामिल हैं जिन्हें पाखंड और भेदभाव में ही अपना वर्तमान व भविष्य दिखता है. कर्नाटक में 224 में से 137 सीटें जीत कर सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को
65 पर धकेल कर कांग्रेस ने साबित कर दिया है कि 150-200 साल की जाति व्यवस्था का लपेटा अभी भी देश की जान नहीं बन पाया और 2004 को दोहराया जा सकता है.

नरेंद्र मोदी की केंद्र की सरकार हो या उन की पार्टी की राज्य सरकारें, अपना ज्यादा समय, शक्ति और बहुत पैसा पूजापाठ के कार्यक्रमों में लगाती हैं. देश उन्नति कर रहा है तो इसलिए कि पहले मुगलों ने और बाद में अंगरेजों ने देश को एक कर के एक बड़ा देश बना दिया जहां राज कानून का चलता था, शास्त्रों का
नहीं. कांग्रेस के राज में 30-40 साल संविधान के आदर व सम्मान से बीते पर वह पाखंड की ताकतों से लडऩे में कमजोर रहने लगी.

शिवाजी के तार्किक शासन की जगह पेशवाओं ने पूजापाठी राज थोपा था और उसी के बल पर बड़ा साम्राज्य बना दिया था पर वह ज्यादा साल चल नहीं पाया. अंगरेजों ने उस राज से पैदा हुई भयंकर लूटपाट, अराजकता व फूट का पूरा लाभ उठाया. उन्होंने कुछेक राजाओं को दूसरे से भिड़ा कर और कुछ अपनी नई तोपों, बंदूकों की तकनीक व अनुशासित सेना के बल पर कुछ हजार होते हुए भी पूरे देश
पर कब्जा कर लिया. वे गए तो इसलिए कि भारत से आर्थिक लाभ मिलना बंद हो गया था.

अब कर्नाटक में वोटों को बंटने से बचाने के साथ और कांग्रेस में राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की जोड़ी की दमदार एंट्री ने भगवा दल के हौसले पस्त कर दिए जो सिर्फ मोदी की छवि पर निर्भर है, अपने राजकाज पर नहीं. केंद्र व राज्य सरकार ने पुलिस व जांच एजेंसियों का अंत तक इस्तेमाल किया पर जैसे पश्चिम बंगाल में व पंजाब में उन की नहीं चली, कर्नाटक में भी नहीं चली. कर्नाटक में भाजपा की हार के पीछे उस की वोटों की घटत उतनी नहीं है जितनी कांग्रेस का भाजपाविरोधी सारे वोटों को बटोर लेना है.

देश की आम जनता आज भी सामान्य पूजापाठी होते हुए भी धर्म के नाम पर रातदिन सिर फोडऩे, मंदिरों की कतारें बनवाने, अपने पसंदीदा नेता का ढोल बजाते रहने में रुचि नहीं रखती है. वह अपना काम बिना रुकावट के करते रहना चाहती है.  उसे जितना मरजी चाहे लूट लो लेकिन परेशान न करो.

वह गरीबी व गुरबत में रहने को तैयार है पर हर कोने पर लाठियां लिए दूसरे धर्म या जाति वालों का सिर
फोडऩे को तैयार नहीं. कांग्रेस ने शायद ऐसे वादे हमेशा किए और तभी 1947 से 1917 फिर 1980 से 1981, 1891 से 1986 और आखिर में 2004 से 2014 तक राज किया.

भाजपा इस हार से सबक लेगी, ऐसा लगता नहीं. पौराणिक कहानियां बताती हैं कि इस पुण्यभूमि पर हर दैविक राजा पीढ़ीदरपीढ़ी अदैविक राजाओं को नष्ट करने में लगा रहा चाहे राजा महाबलि का समय हो या रावण का. उन के राज में लोग सोने के महलों में रहते थे और दैविक राजाओं के यहां सिर्फ यज्ञ, हवन और दान होता था. पौराणिक राजाओं ने कुछ पिछली पीढ़ी से नहीं सीखा तो अब क्या

घरेलू नुस्खे हैं कितने कारगर

किसी भी समाचारपत्र या पत्रिका को उठा कर देख लीजिए, उस में विभिन्न बीमारियों के उपचार हेतु नुस्खे अवश्य छपे होते हैं. ये नुस्खे साधारण स्वास्थ्य समस्याओं से ले कर गंभीर बीमारियों तक में आजमाए जाते हैं. क्या ये घरेलू नुस्खे वाकई दवा का काम कर सकते हैं?

घरेलू नुस्खे पूरी तरह बकवास नहीं होते. उन में दम अवश्य होता है. वे बीमारी का निदान नहीं कर पाते, लेकिन उन में थोड़ाबहुत लाभ अवश्य पहुंचा सकते हैं. लेकिन घरेलू नुस्खों की पुस्तक पढ़ कर अपने स्तर पर इलाज करना उचित नहीं है. डाक्टर, वैद्य का काम उन्हें ही करने दें. खुद अपने डाक्टर बनने की कोशिश न करें.

कुछ लोग दोचार किताबों में घरेलू नुस्खे पढ़ कर अपनेआप को डाक्टर या वैद्य मानने लगते हैं और फिर दूसरों को नुस्खे सुझाते रहते हैं. हर व्यक्ति की तासीर या प्रकृति अलगअलग होती है, इसलिए कोई एक नुस्खा हर व्यक्ति पर फिट नहीं बैठ सकता या कारगर नहीं हो सकता.

घरेलू नुस्खों का आधार पेड़पौधे, फूल, उन की जड़, बीज, गुठली होता है या फिर घरेलू मसाले जैसे हलदी, सौंफ, जीरा, इलायची, लौंग, अजवाइन आदि. फल, सब्जियों और वनस्पति से जुड़े घरेलू नुस्खे भी कुछ कम नहीं हैं.

जड़ीबूटियों, भस्म, रसायन, चूर्ण, मिट्टी आदि से जुडे़ नुस्खे भी बहुत हैं. लेकिन कोई भी नुस्खा बिना विशेषज्ञ की सलाह के आजमाना ठीक नहीं है.

घरेलू नुस्खे किसी भी शोधपरीक्षण का नतीजा नहीं होते. दादादादी से सुनी बातें या अखबारों में छपे नुस्खे आजमा कर क्या कोई बीमार व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है? कभी नहीं. घरेलू नुस्खे भले ही तात्कालिक राहत प्रदान करते हों लेकिन बीमारी का उपचार पूरा करने में समर्थ नहीं होते.

किसी भी बीमारी का इलाज अकेले घरेलू नुस्खों से होना संभव नहीं है. बीमारी है तो उस की जड़ में जाना होगा. जब तक उस के मूल कारण का पता नहीं लगाया जाता, उपचार कैसे संभव है? चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत आज बीमारी के उपचार से पूर्व गहन जांच और परीक्षण किए जाते हैं ताकि बीमारी किस स्टेज पर है, इस का पता लगाया जा सके. खूनपेशाब की जांच, एक्सरे, सोनोग्राफी, सीटी स्कैन, एमआरआई और अन्य जांचों के जरिए बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाता है.

कुछ बीमारियां ऐसी हैं जिन में घरेलू नुस्खों पर निर्भर रहने से उन की गंभीरता या जटिलता बढ़ जाती है. कुछ बीमारियों में तो ताउम्र दवा लेनी ही पड़ती है. यदि इन दवाओं को त्याग कर घरेलू नुस्खों से उपचार करने की कोशिश करेंगे, तो व्यक्ति की जान ही चली जाएगी.

डायबिटीज में घरेलू नुस्खे मन समझाने की चीज हैं. इन नुस्खों के दम पर डायबिटीज ठीक नहीं हो सकती. यदि कोई व्यक्ति दवाओं को छोड़ कर इन नुस्खों पर निर्भर रहता है, तो उस की ब्लडशुगर खतरनाक स्तर पर पहुंच सकती है. डायबिटीज की दवा आमतौर पर नियत समय पर ताउम्र लेनी पड़ती है.

कुछ घरेलू नुस्खे ब्लडप्रैशर नियंत्रित करने के लिए भी होते हैं. लेकिन क्या ये नुस्खे किसी भी व्यक्ति के ब्लडप्रैशर को सामान्य बनाए रखने में कारगर हो सकते हैं? कभी नहीं. यदि हाई ब्लडप्रैशर की समस्या है, तो बुद्धिमानी इसी में है कि घरेलू नुस्खों के चक्कर में न पड़ते हुए डाक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवाएं लें और समयसमय पर अपना ब्लडप्रैशर चैक कराते रहें.

आमतौर पर हाई ब्लडप्रैशर की दवाएं ताउम्र चलती हैं. यदि दवाओं को नजरअंदाज कर किसी घरेलू नुस्खे को अपनाया तो हार्टअटैक आ सकता है, ब्रेन हेमरेज हो सकता है या लकवा मार सकता है. सो, ब्लडप्रैशर का घरेलू नुस्खों से उपचार न करें.

हृदय रोग यानी हार्ट डिजीज में घरेलू नुस्खों का कोई रोल नहीं होता. यदि हृदय में कोई खराबी है, कोई नलिका बंद है या धड़कन असामान्य है, या हार्ट वाल्व में छेद है, तो घरेलू नुस्खों से ये समस्याएं कभी दूर नहीं हो सकतीं. बेहतर होगा कि हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखा कर अपना इलाज कराएं.

कोई भी घरेलू नुस्खा थायराइड का सफलतापूर्वक उपचार नहीं कर सकता. यह हार्मोन से जुड़ी बीमारी है. यदि जरूरी हुआ तो ताउम्र दवाएं लेनी पड़ सकती हैं. दवाओं से ही वह नियंत्रित रहती है.

हाई कोलैस्ट्रौल कई समस्याओं को जन्म दे सकता है. कोई भी घरेलू नुस्खा इस का रामबाण इलाज नहीं है. यदि आप को मालूम है कि आप को हाई कोलैस्ट्रौल की शिकायत है, तो घरेलू नुस्खे से उस के उपचार करने की भूल न करें.

कुछ नुस्खे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के उपचार के भी मिलते हैं. दुनिया में कोई भी घरेलू नुस्खा ऐसा नहीं है जिस से कैंसर ठीक हो या उस के बढ़ने, फैलने को रोका जा सके. यदि ऐसा संभव होता, तो दुनियाभर के कैंसर हौस्पिटल में ताला लग गया होता. बेहतर होगा कि कैंसर की शुरुआत में ही विशेषज्ञ से इलाज कराएं, न कि घरेलू नुस्खे के चक्कर में पड़ें, वरना जान से हाथ धोना पड़ सकता है.

महिलाओं की माहवारी की समस्या के लिए भी लोग घरेलू नुस्खे लिए हाजिर रहते हैं. यही नहीं, बारबार गर्भपात होने से रोकने हेतु भी घरेलू नुस्खे बताए जाते हैं. लेकिन, जब तक उचित उपचार नहीं कराएंगे तो माहवारी नियमित कैसे होगी या गर्भ कैसे रुकेगा.

कब्ज, एसिडिटी, बवासीर आदि पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए ढेरों घरेलू नुस्खे पढ़ने में आते हैं. यही बात पुरुषों की यौन संबंधी समस्याओं जैसे नपुंसकता, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष आदि के बारे में लागू होती है. महिलाओं में श्वेत प्रदर या अन्य यौनरोग हेतु भी घरेलू नुस्खे देखे जा सकते हैं. लेकिन इन में से कितनों का रोग दूर हुआ? शायद एक का भी नहीं.

आमतौर पर ये घरेलू नुस्खे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धिति की आड़ में बताए या सुझाए जाते हैं.

कोई भी डाक्टर या वैद्य सिर्फ घरेलू नुस्खों से उपचार नहीं करता. आयुर्वेद में भी कई छोटीमोटी बीमारियों का इलाज है, लेकिन घरेलू नुस्खों में नहीं.

प्राकृतिक चिकित्सा भी चिकित्सा की एक पद्धति है. लोग सुनेसुनाए या पढ़े हुए घरेलू नुस्खे बता कर स्वयं को चिकित्सक बताने पर तुले रहते हैं. लेकिन कोई भी अकेला नुस्खा बीमारी का उपचार नहीं कर सकता.

कुछ लोगों को किसी खाद्यपदार्थ विशेष से एलर्जी होती है या रिऐक्शन हो सकता है. ऐसे में यदि सुझाए गए नुस्खे में प्रयुक्त किसी चीज से उसे एलर्जी या रिऐक्शन हुआ तो लेने के देने पड़ सकते हैं. तब, ऐसे व्यक्ति को संभालना मुश्किल होता है.

मैं कॉलेज फ्रेंड से 8 साल बाद मिला, मेरा दिल आ गया है उसपें क्या करूं?

सवाल

कालेजटाइम में मैं अपने फ्रैंड्स ग्रुप में एक लड़की को बहुत पसंद करता था जबकि मुझे पता था कि वह किसी और से प्यार करती है. मैं ने थोड़ीबहुत कोशिश भी की कि उस का दिल जीत सकूं. लेकिन बात नहीं बनी और कालेज खत्म होने के बाद उस ने अपने बौयफ्रैंड से शादी कर ली. मैं ने भी कुछ साल सैटल होने के बाद शादी कर ली. अब 8 साल के बाद हमारी कालेज रियूनियन पार्टी हुई तो उस में वह लड़की भी आई.

उसे देख कर मेरा दिल बेकाबू हो गया. वह पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी. हैरानी की बात यह हुई कि वह मुझसे बड़े अच्छे तरीके से मिली. हम ने कंफर्टेबल हो कर बातें कीं. बातोंबातों में पता चला कि वह अब अपने पति से ज्यादा खुश नहीं है. हम ने अपने मोबाइल नंबर शेयर किए.

अगले दिन ही उस का फोन आ गया. उस ने मुसे मिलने की बात कही. हम मिले और एकदूसरे से खूब बातें कीं. उस ने कहा कि हम अच्छे फ्रैंड्स की तरह एकदूसरे से यों ही मिलते रहेंगे. मैं भी उस से बातें कर के बहुत खुश रहने लगा हूं.

मेरी वाइफ ने मुझे इस बात के लिए एक दिन टोक भी दिया कि आप बहुत खुश रहते हैं आजकल और पहले से ज्यादा रोमांटिक भी हो गए हैं. मैं ने बात हंसी में टाल दी लेकिन अंदर ही अंदर डर गया. मैं क्या कुछ गलत कर रहा हूंक्या मैं अपनी वाइफ के साथ चीट कर रहा हूंलेकिन मैं उस लड़की को अपना सिर्फ एक अच्छा दोस्त मानता हूं.

हम सिर्फ एकदूसरे के साथ अपनी फीलिंग्स शेयर करते हैं. मैं अपनी वाइफ से भी बहुत प्यार करता हूंउस के प्यार में भी मेरे प्रति कोई कमी नहीं है. क्या मैं उस लड़की से मिल कर अपनी गृहस्थी खतरे में डाल रहा हूंआप की क्या राय है?

जवाब

आप जिसे दोस्ती का नाम दे रहे हैं वह दोस्ती से बढ़ कर है. आप के मन में अभी भी उस लड़की के लिए फीलिंग्स हैंइस बात को आप ?ाठला नहीं सकते. वह लड़की अपने पति से खुश नहीं है और जानती है कि आप उसे कालेजटाइम से पसंद करते थेइसलिए आप अभी भी उस की केयर करेंगेइसलिए उस ने आप से मेलजोल बढ़ाया है. वह कभी भी अपनी जरूरतों के लिए आप का इस्तेमाल कर सकती है.

वह अपने सुखदुख आप से शेयर करती है. लेकिन दोस्ती की यह मर्यादा कभी भी टूट सकती है क्योंकि आप के मन में उस लड़की के लिए प्यार है और वह लड़की अपने पति से नाखुश.

बेशकआप अपनी पत्नी से चीट कर रहे हैं. आप की पत्नी ऐसा करे जैसा आप कर रहे हैं तो क्या आप से बरदाश्त होगा. फिर पत्नी से क्यों उम्मीद रखी जाए कि वह मर्यादा में रहे और पति कहीं और अपनी खुशियां तलाशता फिरे.

आप दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं जो पौसिबल नहीं. दो कश्ती का सवार डूबता ही है. इसलिए वक्त रहते संभल जाइए. इस दोस्ती के चक्कर में आप की अच्छीखासी गृहस्थी बरबाद हो सकती है. इसलिए हमारी मानें तो इस दोस्ती पर यहीं ब्रेक लगा दें. अपनी वाइफ के साथ खुश रहिए.

बेरोजगार बौयफ्रैंड

लोग कहते तो हैं कि प्यार सभी बंधनों व दीवारों को तोड़ कर हो जाता है. चलो मान लिया पर जैसे बच्चे को पालने के लिए पैसों की जरूरत होती है वैसे ही प्यार को पालने के लिए भी पैसों की जरूरत होती है. ऐसे में क्या हो जब बौयफ्रैंड बेरोजगार हो. कहावत है ‘न बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया’. यह बिलकुल सही है क्योंकि पैसे के बिना कुछ नहीं हो सकता और पैसा हर रिश्ते में अहम रोल अदा करता है.

ऐसे में अगर किसी लड़की का बौयफ्रैंड बेरोजगार हो तो उन का रिलेशन न सिर्फ उतारचढ़ाव से भरा होगा बल्कि यह तनाव से भरा भी होगा. सांवली सूरत वाली 20 वर्षीया काव्या 22 वर्षीय निखिल को पिछले 4 महीने से डेट कर रही है. वे दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. जहां काव्या एक बीपीओ कंपनी में जौब करती है वहीं निखिल पिछले कई महीनों से जौब ढूंढ़ रहा है. निखिल कहता है, ‘‘उस का जौबलैस होना काव्या को अखरता है क्योंकि वह उस के मनमुताबिक खर्च नहीं कर पाता. वह कहता है कि जौब न होने की वजह से उसे खुद शर्मिंदगी महसूस होती है. काव्या का कहना है, ‘‘अगर कोई रिलेशनशिप है तो खर्चा तो होगा ही.

हां, यह कमज्यादा जरूर हो सकता है लेकिन खर्चा होगा, यह तय है.’’ 23 साल का वेद जो दिखने में काफी स्मार्ट है. वह कहता है, ‘‘एक दिन उस की गर्लफ्रैंड श्रुति, जो 21 साल की है, ने मूवी का प्लान बनाया. जिस में उस के दोस्त अपनेअपने गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड के साथ आए थे. सभी लड़कियों के बौयफ्रैंड ने टिकट और पौपकोर्न लिए लेकिन मैं सिर्फ मूवी टिकट ही ले पाया क्योंकि मेरे पास पौपकोर्न लेने लायक बजट नहीं था.’’ वह आगे कहता है, ‘‘यह देख कर श्रुति की सहेलियां हंसते हुए बोलीं, ‘श्रुति, क्या तुम्हारे बौयफ्रैंड के पास पौपकोर्न के भी पैसे नहीं हैं.’ यह सुन कर मैं शर्मिंदा हो गया.

वेद के अनुसार अगर वह जौब कर रहा होता तो उसे ऐसी नौबत न देखनी पड़ती और न ही कोई उन का मजाक उड़ाता. हमारे आसपास ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जिन के बौयफ्रैंड के पास कोई जौब नहीं है और अगर देश की बात की जाए तो देश में ऐसे लाखोंहजारों युवा हैं जो बेरोजगार हैं. सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, 28 मार्च, 2023 तक भारत में बेरोजगारी दर 7.9 रही. सीएमआईई का कहना है कि भारत में रोजगार मिलने की दर बहुत कम है और यह सब से बड़ी समस्या है. देश में इतनी बेरोजगारी होने के कई कारण हैं जिन में सरकार सब से अहम है. युवाओं का कहना है कि सरकारें आती हैं,

अपना उल्लू सीधा करती हैं और चली जाती हैं. हमारी सरकारें हमें रोजगार देने में नाकामयाब रही हैं और फिर भी वे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनी रहती हैं. जो लड़का कमाता नहीं है, अगर उस की गर्लफ्रैंड अपने दोस्तों को बौयफ्रैंड से मिलाने अपने साथ ले आए तो उस का बौयफ्रैंड प्रौब्लम में पड़ जाता है क्योंकि उस के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह उन्हें किसी रैस्तरां में कौफी तक पिला सके या अच्छी जगह घुमा सके. वहीं अगर कमाऊ बौयफ्रैंड हो तो वह आसानी से उन्हें एक अच्छे रैस्टोरैंट में खाना तक खिला सकता है. 19 साल की अदिति और 21 साल के मयंक के रिलेशन को एक साल होने वाला है.

अदिति चाहती है कि वह अपनी एनिवर्सरी किसी अच्छी और महंगी जगह पर सैलिब्रेट करे. अदिति ने जब यह बात मयंक से शेयर की तो मयंक परेशान हो गया, क्योंकि उस के पास कोई जौब नहीं है. ऐसे में वह महंगी जगह कैसे अफोर्ड कर सकता है. बड़ी मुश्किल से वह डेट के खर्चे को उठा पा रहा था और फिर अदिति की यह फरमाइश. न चाहते हुए भी उस ने अदिति को यह प्लान कैंसिल करने को कहा तो वह नाराज हो कर वहां से चली गई. मयंक कहता है कि उस के पास कोई जौब नहीं है,

इसलिए अदिति ने ऐसा बिहेव किया. अगर वह भी जौब करता तो अदिति की सारी फरमाइशें पूरी कर देता और अदिति उस से नाराज न होती. वह कहता है, ‘‘बेरोजगार बौयफ्रैंड किसी को नहीं चाहिए. सब लड़कियों को अमीर और सक्सैसफुल बौयफ्रैंड ही चाहिए.’’ जागृति (बदला हुआ नाम) बताती है कि जब कभी भी वह आउट औफ स्टेशन का प्लान बनाती है तो हमेशा उस का बौयफ्रैंड प्लान को कैंसिल कर देता है. इस का कारण यह है कि उस का बौयफ्रैंड अभी जौब नहीं करता, ऐसे में वह ट्रैवल का खर्चा नहीं उठा सकता. वह कहती है, ‘‘बारबार प्लान कैंसिल होने से उस का मूड खराब हो जाता है.

सो, कभी भी बेरोजगार लड़के के साथ रिलेशन में मत आओ क्योंकि वहां आप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ेगा.’’ यह कड़वा सच है कि कोई भी लड़की ऐसा बौयफ्रैंड नहीं चाहती जो कमाता न हो क्योंकि ऐसे लड़के के साथ रहना आसान नहीं है. उसे यह सम झना पड़ेगा कि उस का बौयफ्रैंड उस पर ज्यादा खर्चा नहीं कर पाएगा क्योंकि उस के बौयफ्रैंड के पास पैसों का कोई सोर्स नहीं है. अंश बताता है कि 4 साल पुराने रिश्ते को उस की स्कूलटाइम गर्लफ्रैंड ने यह कहते हुए तोड़ दिया कि वह एक ऐसे लड़के के साथ नहीं रह सकती जो उस का खर्चा नहीं उठा सकता. वह कहता है कि देश में इतनी बेरोजगारी है कि उसे अपनी योग्यता के मुताबिक जौब ही नहीं मिल रहा.

वह अपना पक्ष रखते हुए कहता है, ‘‘एमबीए की पढ़ाई करने के बाद कोई 8-10 हजार वाला जौब वह नहीं करना चाहता. यह देखा गया है कि जिस लड़की का बौयफ्रैंड बेरोजगार होता है वह लड़की छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने लग जाती हैं. कई बार वह अपने बेरोजगार बौयफ्रैंड को उस की बेरोजगारी के लिए ताने भी देती है. कई मामलों में लड़कियां ऐसे लड़कों से रिश्ता भी तोड़ लेती हैं. सरकारी जौब की तैयारी कर रहे 22 साल के नवीन का मानना है कि सरकारी जौब पाना आसान नहीं है. वह कहता है, ‘‘उम्मीदवारों की संख्या लाखों में है जबकि सीटें सीमित हैं.’’ नवीन खुद भी सरकारी जौब की रेस का एक हिस्सा है, इसलिए वह अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहता है.

यही कारण है कि वह फिलहाल कोई जौब नहीं कर रहा. शायद इसलिए कोई भी लड़की उस का प्रपोजल ऐक्सैप्ट नहीं करती है. वह कहता है, ‘‘सभी को कमाऊ बौयफ्रैंड चाहिए, बेरोजगार बौयफ्रैंड नहीं.’’ भारत एक युवा प्रधान देश है, जिस में 15 साल से 29 साल के लोगों को युवा माना गया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने ‘यूथ इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट पेश की जिस में 15 से 29 साल के युवाओं की संख्या 27.3 करोड़ है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इस युवा प्रधान देश में ही सब से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं. इस का कारण है कि सरकार अपने विजन को ले कर क्लीयर नहीं है. रोजगार न मिलने की वजह से यूथ डिप्रैस्ड हैं.

बेरोजगार युवा किसी से कौन्फिडैंस से बात नहीं कर पाता. वह सब से कटाकटा रहता है. बेरोजगार युवा रिश्तेदारों के घर आनेजाने से कतराता है. मनन बताता है कि जब कभी भी वह रिश्तेदारों और पड़ोसी के घर जाता है तो बारबार उस से एक ही सवाल पूछा जाता है कि कोई जौब मिली. वह कहता है, ‘ऐसे सवाल का जवाब देदे कर मैं थक गया हूं, इसलिए अब मैं किसी के घर नहीं जाता.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि पकौड़ा तलना भी एक रोजगार है. गृहमंत्री अमित शाह ने भी उन का समर्थन किया. वहीं पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस का कड़ा विरोध किया.

प्रधानमंत्री के दिए इस बयान ने देश के युवाओं के भविष्य को अंधकार में डाल दिया है. क्या वे पढ़ाईलिखाई करने के बाद पकौड़े की दुकान लगाएंगे. अगर यही करना है तो वे पढ़ेलिखे ही क्यों? क्यों वे इतनी मेहनत करें, क्यों वे अपने दिनरात खराब करें, आखिर में तो उन्हें पकौड़े का स्टौल ही लगाना है. विकास कहता है, ‘‘अगर ग्रेजुएशन करने के बाद भी पकौड़े का स्टौल लगाना पड़े तो हमारी पढ़ाई का क्या फायदा? क्या हम ने पकौड़ा तलने के लिए दिनरात मेहनत कर के पढ़ाई की है.’’ वहीं, अगर कालेज स्टूडैंट की बात करें तो डीयू के एसओएल डिपार्टमैंट में पढ़ने वाला विवेक कहता है, ‘‘नेताओं को ऐसे बयान न दे कर के रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पर फोकस करना चाहिए.

यह सरकार अपनी रणनीति में पूरी तरह फेल रही है, लीपापोती करने के लिए कुछ भी कह रही है.’’ 2022 में अपनी ग्रेजुएशन कंपलीट करने वाली आनंदी कहती है, ‘‘मोदी सरकार का ऐसा बयान देना उस की नाकामी को दर्शाता है. हम अपनी योग्यता के अनुसार काम करना चाहते हैं न कि कोई भी काम मिले और हम उसे कर लें.’’ सुधीर मिश्रा का मानना है, इतनी पढ़ाईलिखाई करने के बाद ऐसा काम करना सैल्फ कौन्फिडैंस को चोट पहुंचाता है. सुधीर मिश्रा कहता है कि वह पिछले 9 साल से नोएडा की एक जानीमानी कंपनी में जौब करता आ रहा था लेकिन बेरोजगारी की मार इस तरह गिरी कि कंपनी में कर्मचारियों की छंटाई होने लगी और इस में से एक कर्मचारी वह भी था.

वह बताता है, ‘‘पिछले 3 महीने से हमें सैलरी भी नहीं दी गई है. आम आदमी किस तरह अपना गुजारा करे?’’ अगर यह बात की जाए कि शहर या गांव, कहां ज्यादा बेरोजगारी है तो गांव के मुकाबले शहरों में बेरोजगारी दर ज्यादा है. गांव में जहां 7. 75 प्रतिशत बेरोजगारी दर है वही शहरों में यह दर 8.96 प्रतिशत है. भारत में ग्रेजुएट करीब 86.11 फीसदी, पोस्टग्रेजुएट 12.07, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट वाले 1.01 फीसदी युवा रिसर्च वर्क से जुड़े हैं. इन्हें इन की योग्यता के अनुसार जौब नहीं मिली. अगर ये सभी सड़क पर रेहड़ी लगा कर पकौड़े बेचते दिखें तो यह सरकार के लिए हैरान करने वाली बात नहीं होगी क्योंकि उस के हिसाब से तो यह भी जौब ही है.

ऐसे युवा जिन के पास जौब नहीं है और वे रिलेशनशिप में हैं तो उन के मन में अपने रिलेशन को ले कर हमेशा इनसिक्योरिटी बनी रहती है. उन के मन में हमेशा यह डर रहता है कि कहीं उन की गर्लफ्रैंड उन्हें छोड़ कर न चली जाए क्योंकि वह उन्हें अच्छी और महंगी जगह नहीं ले जा पाते क्योंकि उन के पास इस के खर्च के पैसे नहीं होते. ऐसे लोगों की लाइफ में रोमांस की भी थोड़ी कमी होती है. यही कारण है कि वे हमेशा इस डर में रहते हैं कि कहीं बेरोजगारी उन्हें उन के प्यार से दूर न कर दे. युवकों का मानना है कि बहुत से ऐसे कपल हैं जिन्हें अपनी गर्लफ्रैंड से सिर्फ इसलिए दूर कर दिया जाता है क्योंकि वे बेरोजगार होते हैं. बिहार के रहने वाले पंकज ने अपना एक ट्वीट नीतीश कुमार के नाम लिखते हुए कहा,

‘कुछ ऐसा कीजिए कि कोई भी युवा बेरोजगार न रहे और उस की गर्लफ्रैड उस से दूर न हों.’ पंकज ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सरकारी नौकरी न होने की वजह से उस की गर्लफ्रैंड के पिता ने अपनी बेटी की शादी उस से नहीं कराई. आएदिन ऐसे बहुत से केस आते हैं जिन में पत्नी अपने पति को छोड़ देती है. इस की एक बड़ी वजह पति का बेरोजगार या कंगला होना भी है. लड़की शादी कर के जब अपने पति के घर आती है तो वह यह सोच कर आती है कि उस का पति खर्च उठाएगा, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया जाता है. लेकिन जब उसे यह पता चले कि उस के पति की जौब चली गई है और अब वह बेरोजगार हो गया है, वह खर्च उठाने में अब असमर्थ है तो कई बार कुछ समय तक हैंडल करने के बाद वह अपना संयम खो देती है और अलग होने का फैसला ले लेती है. कोई भी रिलेशन खर्चा जरूर मांगता है.

ऐसे में यह उम्मीद करना कि एक बेरोजगार बौयफ्रैंड के साथ रिश्ता अच्छे से निभाया जा सकता है, यह पूरी तरह से सही नहीं होगा क्योंकि कोई भी लड़की बेरोजगार बौयफ्रैंड नहीं चाहती. वह चाहती है एक ऐसा पार्टनर जिस के साथ उस की यादें जुड़ी हों और ये यादें उन के अलगअलग जगह जाने, वहां मजा करने से बनती हैं. लेकिन समस्या यह कि उन जगहों पर जाने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत होगी और यह पैसा कुछ कमाधमा कर ही आ सकता है. इसलिए लड़के का जौब करना बेहद जरूरी है.

लेखिका- प्रियंका यादव

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