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सतीश कौशिक को बेटी ने दी आखिरी विदाई, इमोशनल हुए फैंस

फिल्म इंडस्ट्री जाने माने एक्टर और डॉयरेक्टर सतीश कौशिक ने सिर्फ 66 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है,  इस खबर से न सिर्फ इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगा है बल्कि परिवार पर भी दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है.

सतीश के चाहने वाले इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि सतीश इस दुनिया में नहीं रहें, बता दें कि अपने पीछे अपनी 10 साल की बेटी वंशिका को छोड़कर गए हैं. पिता के यूं चले जाना का सबसे ज्यादा दुख वंशिका को हुआ है. वंशिका ने अपने दुख को सोशल मीडिया पर शेयर किया है.

 

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वंशिका ने एक फोटो शेयर किया है जिसमें वह अपने पिता को गले से लगाए हुए हैं, जिसे देखकर साफ लग रहा है कि वंशिका अपने पापा से काफी ज्यादा क्लोज थीं.

इस तस्वीर को शेयर करते हुए वंशिका ने अपने पापा को अंतिम विदाई दी है, तस्वीर को देखने के बाद सभी की आंखे नम हो जा रही हैं. फैंस भी वंशिका की इस तस्वीर को देखकर उसे हिम्मत दे रहे हैं.

वंशिका के इस तस्वीर पर एक्ट्रेस सोनल चौहान ने लिखा है कि तुम्हें बहुत सारा प्यार और स्नेह भेज रही हूं.  आप पापा कि स्ट्रॉंग बेटी हो एक यूजर ने लिखा है. बता दें कि गुरुवार को सतीश कौशिक को हार्ट अटैक आया जिसके बाद से अस्पताल के गेट पर पहुंचते ही उन्होंने दम तोड़ दिया.

Satyakatha: बेटी बनी सौतन

राखी की जगह कोई और औरत होती तो क्रोध का ज्वालामुखी बन जाती. बेटी अन्नु की बात सुन कर कलेजा फट जाता उस का. लेकिन राखी के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. वह पत्थर का बुत बनी सामने नजरें झुकाए शांत खड़ी बेटी को टुकुरटुकुर निहारती रही. उस की सांसों में तेजी और गरमी जरूर आई. आंखें भी क्रोध से चहकीं, लेकिन क्रोध होंठों के रास्ते लावा बन कर निकलने के बजाय आंखों के रास्ते आंसू बन कर बहा.

राखी और अन्नु के बीच सन्नाटा छाया था. आंसू दोनों की आंखों में थे. फर्क था तो सिर्फ इतना कि अन्नु के आंसुओं में दर्द था, दयनीयता थी, मजबूरी थी, जबकि राखी के आंसुओं में क्रोध और घृणा के मिलेजुले भाव थे.

पलभर की चुप्पी के बाद खामोशी राखी ने ही तोड़ी. वह साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछ कर गहरी सांस लेते हुए गंभीर स्वर में बोली, ‘‘तो तू मेरी सौत बन गई. मुझे शक तो था, पर मैं यह सोचने की हिम्मत नहीं जुटा सकी कि ऐसा भी हो सकता है.’’

मां की बात सुन कर अन्नु खुद पर काबू नहीं रख सकी. आंसुओं के साथ उस का गला भी रुंध गया. फफक कर रोते हुए वह अंदर चारपाई पर जा कर लेट गई.

राखी का सिर चकरा रहा था. पैरों पर खड़े रहना मुश्किल हो गया तो वह दीवार का सहारा ले कर वहीं बैठ गई.

नरेश कुमार के लौटने तक घर में मरघट सा सन्नाटा छाया रहा. नरेश कुमार रोज की तरह उस दिन भी घर लौटा तो दारू के नशे में था. आंखों में क्रोध की चिंगारी समेटे राखी थोड़ी देर उसे ऐसे देखती रही, जैसे क्रोध की ज्वाला में भस्म कर देगी. लेकिन वह आग उगलती, इस से पहले ही नरेश कुमार ने लड़खड़ाते स्वर में पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? कभी पहले नहीं देखा क्या मुझे?’’

‘‘देख तो सालों से रही हूं. लेकिन मन में इंसानियत का भ्रम पाले थी. तुम्हारे अंदर का हैवान आज नजर आया है. दिल चाहता है या तो खुद मर जाऊं या तुम्हें मार डालूं. मैं ने कभी सोचा तक नहीं था कि तुम इतने जाहिल और कमीने निकलोगे.’’

‘‘ऐसा क्या किया मैं ने, जो इतना गुस्सा कर रही हो?’’ नरेश कुमार ने कहा तो राखी गुस्से में बोली, ‘‘किया तो तुम ने वो है, जिसे करने से पहले हैवान भी कई बार सोचता है. बेटी अन्नु को मेरी सौत बना दिया तुम ने. बिना यह सोचे कि इस का अंजाम क्या होगा?’’

नरेश कुमार दारू के नशे में जरूर था. लेकिन जब उसे पता चला कि पत्नी उस की हकीकत जान गई है तो उस का नशा काफूर हो गया. बात ही कुछ ऐसी थी. कुछ नहीं सूझा तो वह हथियार डालते हुए बोला, ‘‘जो हुआ, नशे में हो गया. मैं खुद अपनी नजरों में गिर गया हूं. तुम मेरी पत्नी हो, जो चाहे सजा दे सकती हो.’’

राखी गुस्से में थी. आंखें अंगारे की तरह दहक रही थीं. वह पति को देख कर घृणा भरे स्वर में बोली, ‘‘तुम ने बेटी के साथ जो कुछ किया है, उस के लिए अगर तुम्हें मौत की सजा भी दी जाए तो वह भी कम है.’’

‘‘मेरी मौत से अगर तुम्हे शांति मिलती है तो मुझे मौत दे दो, लेकिन सोचो मेरी मौत से तुम्हारी मांग तो उजड़ ही जाएगी, अन्नु भी अनाथ हो जाएगी.’’

नरेश कुमार की नीयत में बेशक फरेब था. लेकिन उस ने जो कहा, वह सोलह आने सच था. उस की मौत के बाद न राखी की जिंदगी में कुछ बचता और न उस की बेटी अन्नु का भविष्य सुरक्षित रह पाता.

पति की बात सुन कर राखी सोच में डूब गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि नरेश कुमार की नशेबाजी और अय्याशियों की वजह से अनायास जो स्थिति बन गई है, उस से कैसे निपटा जाए.

काफी सोचविचार के बाद राखी ने पति नरेश कुमार को इस हिदायत के साथ माफ कर दिया कि वह अब बेटी अन्नु पर बुरी नजर नहीं डालेगा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के डेरापुर थाना क्षेत्र में एक कस्बा है मुंगीशापुर. इसी कस्बे की मसजिद वाली गली में नरेश कुमार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी राखी के अलावा एक बेटी अन्नु थी. नरेश कुमार मूलरूप से मुबारकपुर का रहने वाला था. लेकिन बरसों पहले मुंगीशापुर कस्बे में आ कर बस गया था.

नरेश कुमार प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. जबकि उस की पत्नी राखी सिकंदरा स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में काम करती थी.

नरेश कुमार प्रौपर्टी के काम में पैसा तो कमाता था, लेकिन वह घटिया दरजे का शराबी था. शुरूशुरू में वह कम शराब पीता था, लेकिन जब से राखी ने आंगनबाड़ी में काम करना शुरू किया, उस ने परिवार की सारी आर्थिक जिम्मेदारियां राखी के सिर लाद दीं और खुद रातदिन नशे में चूर रहने लगा.

नरेश की नजर पत्नी की कमाई पर भी रहती. वह उस से भी पैसे मांगता, मना करने पर पत्नी को जानवरों की तरह मारता, भद्दीभद्दी गालियां भी देता. राखी ने पति को कई बार समझाया. घर की सुखशांति व बेटी के भविष्य का वास्ता दिया. लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

नरेश सिर्फ शराब ही पीता होता तो भी शायद राखी सहन कर लेती. लेकिन नशे में जो नंगापन वह दिखाता था, उसे बरदाश्त करना जहर का घूंट पीने के समान था. दारू पी कर रात भर घर में हुड़दंग मचाना, मारपीट करना, गुस्से में घर का सामान फेंकना उस के लिए साधारण बात थी.

नशे में वह नीचता की इस हद तक गिर गया था कि उसे उचितअनुचित, शर्महया और मानमर्यादा का खयाल भी नहीं रहता था. बेटी के सामने हवस शांत करने में भी उसे शर्म नहीं आती.

अन्नु भी अपने बाप नरेश से डरती थी. उसे न जाने क्यों बाप के चेहरे पर शैतानी छाया और आंखों में अजीब सी भूख नजर आती. उस की भावभंगिमा देख कर अन्नु का रोमरोम कांपने लगता. वह अकेले उस के सामने जाने का साहस भी नहीं कर पाती.

अन्नु समझदार और जवान हो चुकी थी. वह कुशाग्र बुद्धि वाली लड़की थी. पढ़ाईलिखाई में सब से आगे रहती. उस ने मुंगीशापुर स्थित राम जानकी इंटर कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी. वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. लेकिन उस के शराबी बाप ने उस की पढ़ाई बंद करा दी और उसे घर के काम में लगा दिया.

अन्नु की मां राखी आंगनबाड़ी केंद्र में काम करती थी. पिता नरेश भी सुबह ही प्रौपर्टी के काम से निकल जाता था. मांबाप के काम पर चले जाने के बाद घर की जिम्मेदारी अन्नु के कंधों पर रहती. सारे काम निपटाने के बाद जो वक्त मिलता, उस में सिलाई, कढ़ाई, बुनाई जैसे काम कर के वह घर बैठे ही कुछ रुपए कमा लेती. अन्नु के घर से चंद कदम की दूरी पर राजकुमार कठेरिया का मकान था. वह संपन्न किसान था.

उस का बड़ा बेटा अमित उर्फ सिंटू था. अमित जनरल स्टोर चलाता था. उस की दुकान पर अन्नु भी सामान खरीदने जाती थी. दुकान पर आतेजाते अमित और अन्नु में अकसर बातें होती रहती थीं.

अमित के सद्व्यवहार से जहां अन्नु प्रभावित थी, वहीं अन्नु की सादगी और हंसमुख स्वभाव से अमित भी प्रभावित था. दिन में जब तक दोनों एकदो बार एकदूसरे को देख न लेते और बतिया न लेते, तब तक उन को चैन न मिलता था.

अन्नु और अमित के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ी तो उन की धड़कनें तेज हो गईं. वे दोनों प्यार का इजहार करना चाहते थे, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. अन्नु नारी सुलभ लज्जा के कारण जुबान नहीं खोल पा रही थी. वह चाहती थी कि पहले अमित ही प्यार का इजहार करे.

जबकि अमित इस डर से हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि कहीं अन्नु बुरा न मान जाए. कहीं वह नाराज हो कर बात भी करनी बंद न कर दे.

इस तरह कई माह बीत गए. आखिर जब अमित से न रहा गया तो एक दोपहर दुकान बंद कर वह अन्नु के घर पहुंच गया. अन्नु उस समय घर में अकेली थी. उस की मां आंगनबाड़ी केंद्र गई थी और पिता प्रौपर्टी के काम से डेरापुर तहसील गया था. अन्नु ने अमित को देखा तो लजाते हुए बोली, ‘‘अमित, तुम इस वक्त! मम्मीपापा तो घर में नही हैं.’’

अमित ने अकस्मात अन्नु का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘अन्नु, मैं तुम से मिलने आया हूं, तुम्हारे मम्मीपापा से नहीं.’’

‘‘मुझ से क्या काम है?’’ अन्नु हाथ छुड़ाते हुए बोली. अमित ने फिर उस का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘अन्नु, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब सब कुछ सूनासूना सा लगता है. तुम मेरा प्यार कुबूल कर लो. मैं तुम्हें वह सब कुछ दूंगा, जिस की तुम्हें चाह है.’’

अमित की बात सुन कर अन्नु के चेहरे पर शरमोहया छा गई. वह लजाते हुए बोली, ‘‘अमित, प्यार तो मैं भी तुम से करती हूं, लेकिन लाजशरम के कारण मैं अपनी बात होंठों पर नहीं ला पाई.’’

‘‘सच अन्नु!’’ कहते हुए अमित ने अन्नु को अपनी बांहों में समेट लिया.

उस दिन के बाद अन्नु और

अमित का प्यार दिन दूना और रात चौगुना बढ़ने लगा.

अन्नु सामान लेने के बहाने अमित की दुकान पर जाती और देर तक प्यार भरी बातें करती. अमित को भी जब मौका मिलता तो वह अन्नु के घर पहुंच जाता, फिर दोनों खूब हंसतेबतियाते और छेड़छाड़ करते. अमित ने अन्नु को एक मोबाइल फोन भी दे दिया ताकि वह रात में उस से बतिया सके. अपने दिल की लगी बुझा सके.

अमित और अन्नु का प्यार परवान चढ़ा तो दोनों के बीच दूरियां कम होने लगीं. वे शारीरिक सुख पाने के लिए लालायित रहने लगे.

ऐसे ही एक रोज प्यार के क्षणों में जब अमित ने अन्नु के शरीर से छेड़छाड़ शुरू की और प्रणय निवेदन किया तो अन्नु खुद को रोक न पाई और अमित की बांहों में झूल गई. इस के बाद वह सब कुछ हुआ, जो अमर्यादित था. जवानी के जोश में न अमित को होश रहा न अन्नु को. दोनों ने उस दिन अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

अमित और अन्नु ने एक बार शारीरिक सुख पाया तो इस सुख को पाने के लिए बारबार लालायित रहने लगे. दोनों को जब भी मौका मिलता, मिलन कर लेते. किसी को कानोंकान उन के मिलन की भनक न लगती.

अन्नु के मातापिता को भी दोनों के प्यार व मिलन की बात पता न चल सकी. क्योंकि राखी और नरेश दोनों ही सुबह काम पर चले जाते थे और शाम को ही वापस आते थे. लेकिन पाप के घड़े को चाहे कुएं में छिपा दो, उस का भांडा फूट ही जाता है.

अन्नु और अमित के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक दोपहर अमित अन्नु के घर पहुंचा और अन्नु के साथ कमरे में मौजमस्ती करने लगा. जल्दबाजी में वह घर का मुख्य दरवाजा बंद करना भूल गया था.

अभी दोनों मौजमस्ती कर ही रहे थे कि अचानक अन्नु का बाप नरेश आ गया. वह नशे में धुत था. उस ने कमरे में पड़ोसी युवक अमित को अपनी बेटी अन्नु के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

वह गुस्से से बोला, ‘‘मादर… कमीने, मेरे ही घर में मेरी बेटी के साथ कुकर्म कर रहा है. आज तुझे सबक सिखा कर ही रहूंगा.’’ कहते हुए वह अमित की ओर लपका. लेकिन अमित सिर पर पैर रख कर भाग गया. लेकिन अन्नु भाग कर कहां जाती. रंगेहाथ पकड़े जाने के कारण वह थरथर कांप रही थी. वह सोचने लगी कि उस का बाप आज उस की हड्डीपसली एक कर देगा.

पर उस का सोचना गलत साबित हुआ. नरेश ने जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाई और गहरेगहरे कश ले कर अजीब सी निगाहों से बेटी को घूरने लगा.

भयभीत हो कर अन्नु कमरे से बाहर को भागी. अभी वह कुछ कदम ही बढ़ी थी कि नरेश बाज की तरह अन्नु पर टूट पड़ा. अपनी बांहों में भरते हुए वह उसे पागलों की तरह चूमने लगा.

अन्नु बाप के चंगुल से छूटने के लिए जोरों से कसमसाई. लेकिन नरेश ने उसे उठा कर चारपाई पर पटक दिया और एक हाथ से उस का मुंह बंद कर के दूसरे हाथ से उस के कपड़े उतारने लगा. अन्नु हिम्मत जुटा कर भागने को हुई तो उस ने पकड़ लिया और 2-3 थप्पड़ अन्नु के गाल पर जड़ दिए. फिर वह उसे घसीटता हुआ दूसरे कमरे में ले गया. अपने बचाव में अन्नु चीखने लगी तो उस ने उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, साथ ही दोनों हाथ बांध दिए. अन्नु बिलकुल बेबस और लाचार हो गई.

अन्नु रोई, गिड़गिड़ाई लेकिन उस का बाप नरेश लेशमात्र भी नहीं पसीजा. शराब के नशे और वासना के जुनून में वह हैवान बन गया. बेटी से हवस की भूख मिटाने के बाद नरेश चला गया. उस के जाने के बाद अन्नु घंटों तक अपनी हालत पर आंसू बहाती रही. इतना बड़ा जुल्म होने के बाद भी वह किसी से शिकायत नहीं कर सकती थी.

कहती भी तो किस मुंह से? अन्नु ने बाप के कुकर्म की शिकायत अपनी मां राखी से भी नहीं की. घर में कलह व बदनामी से बचने के लिए शायद उस ने ऐसा किया.

अन्नु की इस खामोशी से बाप नरेश का हौसला बढ़ गया और वह आए दिन अपनी बेटी अन्नु के शरीर से खेलने लगा. वासना में डूबा नरेश भूल गया कि अन्नु उस की सगी बेटी है.

रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद अमित और अन्नु का मिलनाजुलना तो बंद हो गया था. नरेश भी सख्त था, जिस से वे दोनों नहीं मिल पाते थे. एक रोज किसी तरह अन्नु और अमित का आमनासामना हुआ. अन्नु अपने प्रेमी के समक्ष अपने दर्द को छिपा न सकी और सारा दर्द बयां कर दिया.

अन्नु का दर्द सुन कर अमित अवाक रह गया. उस ने अन्नु को सलाह दी कि वह सारी बात अपनी मो को बताए. वह जरूर कोई न कोई उपाय खोजेगी और नरेश के जुल्मों से मुक्ति दिलाएगी.

अन्नु उदास व खोईखोई सी घर में रहती थी. राखी ने कई बार बेटी को कुरेदा और उस के दर्द को समझने की कोशिश की. लेकिन अन्नु ने कुछ नहीं बताया. राखी की समझ में नहीं आ रहा था कि बेटी को कौन सा गम खाए जा रहा है.

आखिर एक दिन जब राखी ने प्यार से उसे कुरेदा तो अन्नु फूट कर रो पड़ी. फिर उस ने मां के सामने अपना सारा दर्द बयां कर दिया.

अन्नु का दर्द सुन कर राखी अवाक रह गई. उस के मन में पति के प्रति घृणा भर गई. देर शाम पति नशे में धुत हो कर घर आया तो राखी ने बेटी की आबरू लूटने के संबंध में उस से सवालजवाब किया तो वह गिड़गिड़ाते हुए बोला कि जो कुछ भी उस ने किया, होशोहवास में नहीं किया. आज के बाद कभी भी ऐसी घटिया हरकत नहीं करेगा. राखी ने सीने पर पत्थर रख कर पति पर विश्वास कर लिया. नरेश कुछ समय तक तो अपनी बात पर कायम रहा. उस के बाद वह फिर नीच और कमीनेपन पर उतर आया. वह

फिर बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाने लगा.

लेकिन इस बार अन्नु चुप नहीं रही. उस ने मां को सारी बात बताई और अपने प्रेमी अमित को भी. इस के बाद मांबेटी व उस के प्रेमी ने नरेश को सबक सिखाने की ठान ली.

17 मार्च, 2022 की सुबह 8 बजे थाना डेरापुर प्रभारी निरीक्षक अखिलेश कुमार जायसवाल को सूचना मिली कि मुंगीशापुर कस्बे में मसजिद वाली गली में नरेश कुमार की किसी ने हत्या कर दी है.

सूचना पाते ही वह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उन्होंने वारदात के संबंध में पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया.

अखिलेश कुमार जब घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां भीड़ जुटी थी. एक महिला व एक युवती शव के पास दहाड़ मार कर रो रही थी. पूछने पर पता चला कि महिला मृतक की पत्नी राखी है और युवती मृतक की बेटी अन्नु है. इंसपेक्टर जायसवाल ने दोनों को धैर्य बंधाया और फिर निरीक्षण में जुट गए.

मृतक नरेश की उम्र 40-42 साल के आसपास थी और उस की हत्या किसी धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्या कहीं और की गई थी और शव को वहां फेंका गया था. कारण घटनास्थल पर न तो संघर्ष का कोई निशान था और न ही खून फैला था. हत्या बीती रात ही की गई थी.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी स्वप्निल ममगाई, एएसपी घनश्याम चौरसिया तथा सीओ शिव ठाकुर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर मौके पर मौजूद मृतक की पत्नी राखी व बेटी अन्नु से पूछताछ की. मांबेटी ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि नरेश बीती रात 8 बजे घर आए थे. वह नशे में थे. उन्होंने खाना भी नहीं खाया और गैलरी में पड़ी चारपाई पर लुढ़क गए. इस के बाद वे दोनों भी दरवाजा बंद कर कमरे में जा कर सो गईं.

सुबह उठी तो वह चारपाई पर नहीं थे और मुख्य दरवाजा खुला था. कुछ देर बाद पता चला कि उन की किसी ने हत्या कर दी और शव घर के पिछवाड़े पड़ा है. उस के बाद वे दोनों वहां पहुंचीं.

‘‘तुम्हारे पति की हत्या किस ने की? तुम्हें किसी पर शक है?’’ सीओ शिव ठाकुर ने राखी से पूछा.

‘‘साहब, वह प्रौपर्टी का काम करते थे. शराब भी खूब पीते थे. उन के एक नहीं, कई दुश्मन थे. उन्ही में से किसी ने उन की हत्या कर दी. लेकिन हम उन को जानतेपहचानते नहीं.’’

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने शव पोस्टमार्टम हेतु माती भिजवा दिया. साथ ही थानाप्रभारी अखिलेश कुमार को आदेश दिया कि वह रिपोर्ट दर्ज कर जल्द से जल्द हत्या का परदाफाश करें.

आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने मृतक की पत्नी राखी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और जांच शुरू की. उन्होंने सब से पहले राखी व उस की बेटी अन्नु से पूछताछ की तथा उन के मोबाइल फोन सुरक्षित कर लिए.

पड़ोसियों की पूछताछ से पता चला कि राखी और उस के पति के बीच किसी बात को ले कर तनाव रहता था और अकसर दोनों में झगड़ा होता रहता था. मांबेटी के पेट में ही नरेश की हत्या का राज छिपा है.

मांबेटी शक के दायरे में आईं तो जांच अधिकारी अखिलेश कुमार ने राखी और अन्नु के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. दोनों के मोबाइल फोन में एक नंबर कौमन था, जिस पर घटना वाली रात 9 बजे बात की गई थी. इस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि यह नंबर राखी के पड़ोसी युवक अमित कठेरिया का है.

21 मार्च, 2022 की रात 10 बजे पुलिस ने अमित कठेरिया को उस के घर से उठा लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो अमित टूट गया. उस ने बताया कि नरेश की हत्या में उस की पत्नी राखी व बेटी अन्नु भी शामिल थीं.

यह पता चलते ही पुलिस ने राखी व अन्नु को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में उन दोनों ने भी नरेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, उन्होंने घर में छिपा कर रखा गया आलाकत्ल फावड़ा भी बरामद करा दिया.

अन्नु ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह अमित से प्यार करती थी. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी थे. एक रोज उस के बाप नरेश ने हम दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया. उस के बाद उस की नीयत में खोट आ गई और वह उसे अकसर अपनी हवस का शिकार बनाने लगा.

डर व बदनामी के कारण उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. लेकिन जब आजिज आ गई तो मां व प्रेमी को सब कुछ बता दिया. मां ने उस के बाप को समझाया पर वह नहीं माना. उस के बाद तीनों ने मिल कर उसे सबक सिखाने की ठानी.

16 मार्च, 2022 की रात 8 बजे वह नशे की हालत में आया. आते ही वह उस पर हावी हो गया. मां ने उसे किसी तरह बचाया. उस के बाद मां ने फोन कर अमित को बुला लिया. उस ने भी अमित से बात की थी.

रात 10 बजे जब बाप नरेश गहरी नींद में सो गया तब राखी, शिवांगी और अमित ने मिल कर उसे फावड़े से हमला कर मौत के घाट उतार दिया और उस के शव को घर के पीछे कूड़ा डालने वाली जगह पर फेंक दिया.

चूंकि राखी, अन्नु तथा उस के प्रेमी अमित ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल फावड़ा भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी अखिलेश कुमार ने भादंवि की धारा 302/201 के तहत राखी, अन्नु व अमित को नामजद कर दिया तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

22 मार्च, 2022 को पुलिस ने आरोपी राखी, अन्नु तथा अमित कठेरिया को कानपुर (देहात) की माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित  कथा में अन्नु परिवर्तित नाम है.

मैं लड़की देखने गया था, लेकिन लड़की मुझे पसंद नहीं आईं अब मैं उसके घरवालों को क्या जवाब दूं?

सवाल

मैं 28 वर्षीय युवक हूं. घरवाले मेरी शादी के लिए लड़की ढूंढ़ रहे हैं. 3 बार लड़की वाले मुझे देखने हमारे घर हर आ चुके हैं. लेकिन कहीं बात नहीं बनी. पिछले हफ्ते लड़की देखने मैं लड़की वालों के घर गया. लड़की वालों ने हमारी खूब खातिरदारी की लेकिन मुझेलड़की पसंद नहीं आई. जब हम वहां से जाने लगे तो लड़की के पापा ने मुसे कहा कि बेटा, घर जा कर अच्छी तरह सोचविचार कर के मुझेफोन करना कि विवाह के लिए हां या नहीं. मुझेतुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा.

अब मुझे सम नहीं आ रहा है कि लड़की के पापा को न कैसे बोलूं, अच्छे शरीफ लोग हैं. लड़की में भी कोई बुराई नहीं है लेकिन मैं क्या करूं, मैं जैसी लड़की चाहता हूं, वह वैसी नहीं है. शादी बारबार तो नहीं की जाती न, मैं समझता नहीं करना चाहता, इसलिए न करना चाहता हूं. लेकिन कैसे न बोलूं, सम नहीं आ रहा?

जवाब

लड़की की शादी को ले कर मातापिता अकसर टैंशन में रहते हैं. ऐसे में लड़का उन की लड़की देखने आए और लड़का उन को पसंद आ जाए तो उन को बड़ी आस रहती है कि लड़के वालों की तरफ से हां सुनने को मिले. अगर आप न कह कर उन का दिल नहीं तोड़ना चाहते हैं तो खामोश रह कर उन की टैंशन बढ़ाने का भी आप को कोई अधिकार नहीं. सो, अब जब आप पूरी तरह से इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं, लड़की आप के मनमुताबिक नहीं है तो उन्हें तुरंत फोन लगाइए.

पहले तो आप उन के आदरआतिथ्य की तारीफ करें. उन के परिवार की तारीफ करें. फिर आराम से कहिए कि आप की लड़की बहुत सुंदर और सुशील है. कोई भी लड़का उस को पसंद कर लेगा लेकिन मुझेलगता है मैं उस के लिए परफैक्ट नहीं हूं.

इतना कह कह कर बात पलट दो और कहो कि अंकल कहीं और रिश्ता पक्का हो तो शादी में जरूर बुलाना और फोन काट दो और चिंतामुक्त हो जाओ. यह तरीका आप को ठीक लगता है तो इम्प्लीमैंट करने में देर मत लगाइए.

रेज्ड बेड प्लांटर: करे एक साथ कई काम

रेज्ड बैड प्लांटर खेती में काम आने वाला एक ऐसा यंत्र है, जो जुताई के बाद तैयार खेत में नाली व मेंड़ बनाने का काम तो करता ही है, साथ ही साथ बीज की बोआई भी करता है और खाद भी लगाता है. इस तकनीक से मेंड़ पर बीज की बोआई मेंड़ बनाते समय ही हो जाती है, साथ ही नाली व मेंड़ समतल बनती हैं, तो पानी का प्रबंधन भी अच्छा होता है.

उचित गहराई पर बीज बोने पर बीज का अंकुरण भी अच्छा होता है. खेत में पानी की अधिकता हो भी जाए, तो पानी नालियों के जरीए बाहर भी निकल जाता है यानी पानी ठहरता नहीं है. अगर पानी भरा भी रह जाए, तो पौधे खराब नहीं होते क्योंकि पौधे मेंड़ की ऊंचाई पर होते हैं. आमतौर पर अगर समतल खेत में या बिना मेंड़ बनाई तकनीक से बोआई करें, तो न तो खाद और बीज ही समान मात्रा में लगता है और न ही पानी का अच्छा प्रबंधन हो पाता है. इस यंत्र द्वारा मेंड़ पर बोई गई फसलों में पौधों की जड़ों का विकास भी अच्छा होता है, जिस से पौधों की मजबूती के साथसाथ अच्छी उपज मिलती है.

साथ ही, खेत में फालतू के खरपतवारों में कमी आती है. अगर खरपतवार पनपते भी हैं, तो उन्हें निकालने में भी आसानी होती है. किन फसलों की होती?है बोआई इस यंत्र की मदद से मक्का, मटर, सोयाबीन, चना व अन्य दलहनी फसलें और तिलहनी फसलों की बोआई की जाती है. जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां पर गेहूं बोने के लिए भी यह यंत्र बेहतर माना गया है. इस यंत्र के द्वारा बोआई करने पर तकरीबन 10-20 फीसदी तक खाद, बीज और पानी की भी बचत होती है.

खेतों में नमी ज्यादा समय तक बनी रहती है. ये हैं खूबियां रिज्ड बैड प्लांटर की मदद से एकसाथ बैड पर 2 या 3 लाइनों में बोआई की जा सकती है. इस यंत्र में खाद व बीज भरने के लिए अलगअलग बौक्स लगे होते हैं और उन को सही मात्रा में खेत में डालने के लिए मापक प्रणाली भी लगी होती है, जिसे फसल के अनुसार खाद व बीज गिरने की दूरी को घटायाबढ़ाया जा सकता है.

इस यंत्र में खाद व बीज भरने के लिए जो बौक्स लगे होते हैं, उन में पाइप लगे होते हैं, जिन के द्वारा खाद और बीज खेत में तय जगह पर गिरता जाता है. ऐसे करें इस्तेमाल रिज्ड बैड प्लांटर यंत्र को इस्तेमाल करने के लिए कम से कम 35 हौर्सपावर या इस से ज्यादा शक्ति वाले ट्रैक्टर की जरूरत होती?है, जिस के साथ इस यंत्र को जोड़ कर चलाया जाता है. रिज्ड बैड प्लांटर द्वारा आमतौर पर 20 से 22 इंच चौड़ी मेंड़ बनती है जिन की ऊंचाई तकरीबन 6 इंच तक होती है.

यंत्र की कीमत व सरकारी मदद रेज्ड बैड प्लांटर को अनेक कृषि यंत्र निर्माता बना रहे हैं, जिस की कीमत उन की काम करने की कूवत, कितनी लाइनों में बोआई करता है आदि पर भी निर्भर होती है, फिर भी आमतौर पर इस यंत्र की कीमत 70,000 से एक लाख रुपए के आसपास तक हो सकती है. यंत्र खरीदते समय सब्सिडी यानी सरकारी मदद भी मिलती है, जो अलगअलग राज्यों के हिसाब से अलगअलग हो सकती है. इस के लिए अपने राज्य के कृषि विभाग की वैबसाइट पर देखें या संबंधित विभाग से जानकारी लें. ‘नर्मदा’ इनक्लाइंड प्लेट प्लांटर वेदा फार्म इंप्लीमैंट्स प्राइवेट लिमिटेड के इस बैड प्लांटर पर भी सरकार द्वारा तय सब्सिडी मिलती है.

इस यंत्र में अलगअलग फसल की बोआई के लिए अलगअलग साइज की डिस्क लगाई जा सकती है, जिस से तय दूरी पर बीज गिरता है. ‘नर्मदा’ के इस यंत्र से एकसाथ 2 फसलों की बोआई की जा सकती?है. इन का मानना है कि इस यंत्र के इस्तेमाल से बीज में 10 फीसदी और खाद में तकरीबन 20 फीसदी की बचत होती है. साथ ही साथ उत्पादन में भी 25 से 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है.

अधिक जानकारी के लिए किसान वेदा फार्म इंप्लीमैंट्स प्राइवेट लिमिटेड के फोन नंबर : 09109166102, 09109166108, 09109166109 पर संपर्क कर सकते हैं. ठ्ठ पूसा का बैड प्लांटर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कृषि अभियांत्रिकी विभाग द्वारा बनाया गया बैड प्लांटर 30 सैंटीमीटर चौड़ी रिज (मेंड़) व फरो (नाली) बनाता है. रिज के ऊपर 3 लाइनों में गेहूं, धान या सोयाबीन की बोआई की जाती है. इस यंत्र से एक दिन में 4 से 5 एकड़ खेत में बोआई कर सकते हैं.

भारत भूमि युगे युगे: ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत

ऋषि सही कह गए कि स्वर्गनर्क, लोकपरलोक वगैरह सब काल्पनिक बातें हैं जो कुछ भी है इसी जन्म और जिंदगी में है, लिहाजा, खूब कर्ज लो और घी पियो. कोई और माने न माने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जरूर चार्वाक को फौलो करते हैं. उन की सरकार ने चालू वित्त वर्ष में तीसरी बार 5 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया है. इस तरह राज्य पर कुल कर्ज 3 लाख करोड़ रुपए का हो गया है. यानी प्रदेशवासियों की तीन पुश्तें अभी ही गलेगले तक घी की दलदल में डूब चुकी हैं.

चुनावी साल में यह कर्ज भोगविलास के लिए नहीं, बल्कि कथित विकास के लिए लिया जा रहा है. सरकार की नई योजना लाड़ली बहनों को एक हजार रुपए महीने देने की है, हालांकि इस से भाजपा का कोर वोटर भड़का हुआ है कि हमारे टैक्स के पैसों से खैरात मत बांटो. जल्द ही लाड़ली दादी, लाड़ली भाभी, लाड़ली मौसी, लाड़ली चाची, लाड़ली नानी और लाड़ली पत्नी जैसी योजनाएं आ जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. उधो, चुनाव चिह्न न भये दसबीस आजकल विधायकों की संख्या कंपनियों के शेयर सरीखी हो गई है. जिस गुट के पास ज्यादा विधायक होते हैं उसे चुनाव चिह्न दे दिया जाता है जो कि किसी मालिकाना हक से कम नहीं होता. लेकिन शिवसेना के मामले में शेयरों की संख्या नहीं, बल्कि उन का बाजार मूल्य देखा गया और चुनाव चिह्न शिंदे गुट को गिफ्ट कर दिया गया. उद्धव ठाकरे की नजर में चुनाव आयोग बिका हुआ है और नरेंद्र मोदी की तानाशाही चल रही है.

उलट इस के, शिंदे गुट इसे लोकतंत्र की जीत मानता है. आखिरी फैसला अब सुप्रीम कोर्ट लेगा लेकिन उद्धव के साथ ज्यादती तो हुई है जिसे उन्हें बरदाश्त करनी पड़ेगी. बेहतर तो यह होता कि चुनाव आयोग और ऊपरी अदालत किसी एक गुट को तीर और किसी एक को कमान देते, जायदाद भी फिफ्टीफिफ्टी कर देते. पार्टियों की हैट्रिक बिहार या भारत के ही नहीं, बल्कि उपेंद्र कुशवाह दुनिया के पहले ऐसे नेता हो गए हैं जिन्होंने तीसरी बार नई पार्टी बना ली है. उस का हश्र भी बनते ही पहले की 2 पार्टियों सरीखा होना तय दिख रहा है. 63 वर्षीय इस नेता की पीड़ा हमेशा से ही नीतीश कुमार और लालू तेजस्वी यादव रहे हैं. पिछली 20 फरवरी को भी उन्होंने नीतीश को कोसते मेन रोड छोड़ कर पगडंडी का रुख किया.

बिहार में बच्चाबच्चा जानता है कि उपेंद्र कुशवाह राजद और जेडीयू के गठबंधन से नाखुश थे क्योंकि उन्हें कोई भाव चाचाभतीजे ने नहीं दिया था जिसे उन्होंने भांप लिया था कि उन के पांवतले वोटों की जमीन कभी नहीं रही. 2005 और 2013 में भी उपेंद्र कुशवाह ने नई पार्टियां बनाई थीं लेकिन हर बार उन्हें नीतीश की शरण में वापस आना पड़ा. वैसे, 8 बार वे पलटी मार कर अपने अग्रज नीतीश को पीछे छोड़ चुके हैं. अब लोगों की दिलचस्पी इस बात में भी नहीं है कि वे कोई गुल खिला पाएंगे, क्योंकि उन की ही बिरादरी के लोग उन पर भरोसा नहीं करते.

मैं रमेश भंगी आमतौर पर आरक्षित वर्ग के अफसरमुलाजिम अपनी जातिगत पहचान छिपाने की कोशिश करते हैं क्योंकि सवर्ण समाज अभी भी उन्हें हिकारत से देखता है और ऐसा करने के पीछे कुछकुछ उन का भो अपराधबोध और ग्लानि रहती है. लेकिन रमेश भंगी अपनी जाति पर गर्व करने वालों में से एक हैं जिन का नाम दलित साहित्य में इज्जत से लिया जाता है. वे एक दिलचस्प लेकिन सच्ची बात यह बताते हैं कि भारत में समाजशास्त्र की किताबें जाति से ही शुरू होती हैं. उन की कहानी संघर्षशील सफल आम दलितों जैसी ही है जो उत्तर प्रदेश के बागपत से आ कर दिल्ली में बस गए और खुद की बेहतरी के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. आखिरकार उन्हें गृह मंत्रालय के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में नौकरी मिल गई और फिर वे लिखने लगे. अब हर कहीं वे अपना परिचय यह कहते देते हैं कि मैं रमेश भंगी.

रामचरितमानस पर हंगामा क्यों बरपा

पिछले 6 दशकों से सरिता के सुधारवादी लेखों ने लोगों को हिंदू समाज की 2000 सालों की गुलामी के कारणों पर तार्किक तरीके से तथ्य प्रस्तुत किए हैं कि दोष हमारे धर्मग्रंथों का है, जिस का प्रभाव किसी सुबूत का मुहताज नहीं. रामचरितमानस जैसे ग्रंथों ने इस भूभाग को गुलाम और पिछड़ा किस तरह बनाए रखा है, इस पर हालिया विवाद यह बताता है कि पौराणिक सोच की हमारी धारणाएं अभी भी वैज्ञानिक तर्कों पर भारी हैं.

रामचरितमानस की आड़ में देश में बीते दिनों एक बवंडर मचा. उसे राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र और बंदी (वंदिनी) की बहस सरीखा इस लिहाज से कहा जा सकता है कि उस दौर में भी शास्त्रार्थ एक खास मकसद से ही किए जाते थे कि वर्णव्यवस्था का नवीनीकरण होता रहे. आज फिर ब्राह्मणवादी सोच और शूद्र आमनेसामने हैं. दोनों ही रामचरितमानस को ले कर वाक्युद्ध कर रहे हैं. आज के अष्टावक्र कह रहे हैं कि इस में जो कुछ लिखा है वह आपत्तिजनक और शूद्रों (व सवर्ण औरतों) को अपमानित करने वाला है, इसलिए या तो रामचरितमानस के कुछ अंश हटाए जाएं या फिर इस ग्रंथ को प्रतिबंधित किया जाए. मुमकिन यह भी है कि यह विवाद सोचीसम?ा साजिश यानी पूर्व नियोजित षड्यंत्र हो जिस का मकसद पौराणिक सवर्ण हिंदू राष्ट्र की स्थापना है. सो, जरूरी है कि मानस को आज फिर रामचरित के विवादित पहलुओं को उभार कर संपूर्ण हिंदू समाज को शीशा दिखाया जाए. मंशा असल में यह देखने की है कि पिछले दशकों के दौरान कितने दलित, पिछड़ों, आदिवासियों और सवर्ण औरतों की हिम्मत टूटी है कि जो वे बराबरी, शिक्षा, तर्क, विज्ञान के तथ्यों को जान कर भी धर्मग्रंथों में निर्देशित सामाजिक व्यवस्था को ज्यों का त्यों स्वीकारने को तैयार हैं और अगर उन में से कुछ के मन में विरोध या एतराज जताने का माद्दा बचा है तो कौन सा विकल्प बेहतर है- इंतजार करने का या फिर रामचरितमानस जैसे ग्रंथों में संशोधनों की मांग मान लेने का? शुरुआत बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफैसर चंद्रशेखर ने 11 जनवरी को की थी.

उन्होंने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में कहा था कि, मनुस्मृति में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके के खिलाफ गालियां दी गईं व रामचरितमानस के उत्तरकांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि ये नफरत फैलाने वाले ग्रंथ हैं. उन का आरोप था कि एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का ‘बंच औफ थौट’, ये सभी देश व समाज में नफरत बांटते रहे हैं. वे जोर दे कर यह कहते रहे कि नफरत कभी देश को महान नहीं बनाएगी, देश को केवल मोहब्बत ही महान बनाएगी. इस के 10 दिनों बाद 22 जनवरी को उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सिर्फ रामचरितमानस का हवाला दिया, इसलिए कि भारतीय जनमानस पर रामचरितमानस का सीधा और ज्यादा असर है और रोजरोज इसी की घुट्टी लोगों को पिलाई जाती है. भव्य धार्मिक समारोहों में रामकथा और श्रीमद्भागवत के अलावा प्रवचनों में भी रामचरितमानस के प्रसंग होते हैं जो सहज समझ आते हैं.

इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘इसी मानस में बताया गया है कि कोई व्यभिचारी हो, दुराचारी हो, अनपढ़ हो या देशद्रोही भी हो, अगर वह ब्राह्मण हो तो पूजिए, वहीं कितना भी ज्ञानी क्यों न हो, विद्वान हो, ज्ञाता हो लेकिन अगर वह शूद्र है तो उस का सम्मान मत करिए. अगर यही धर्म है तो मैं ऐसे धर्म को नमस्कार करता हूं जो हमारा सत्यानाश चाहता हो. ‘सरिता’ ने तो बहुत पहले कहा था- प्रोफैसर चंद्रशेखर या सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जो कहा, ‘सरिता’ उन्हें उस वक्त से कहती समाज और देश को आगाह कर रही है जब ये दोनों पैदा भी नहीं हुए होंगे और हो भी गए होंगे तो बच्चे रहे होंगे. सरिता के सुधारवादी लेखों का प्रभाव आज की पीढ़ी में भी है क्योंकि सुधार शाश्वत होता है.

इस सुधार के एवज में यह और बात है कि सरिता के संपादक और लेखकों को जीभर कर परेशान किया गया. उन पर धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली धारा 295 के तहत बहुत से मुकदमे थोप दिए गए लेकिन तर्क सुनने के बाद अदालतों के फैसले सरिता के पक्ष में ही आए. निष्पक्ष और निर्भीक लेखन व पत्रकारिता के अपने मिशन से वह टस से मस नहीं हुई चाहे संपादक और लेखकों को धमकियां दी गईं. सरिता के कार्यालय को आग भी लगाई गई. कांग्रेस के युग में भी धर्मनिष्ठ मंत्रियों ने अपना पूरा जोर लगाया.

सरिता के मार्च 1961 के अंक में प्रकाशित लेख ‘रामचरितमानस में ब्राह्मणशाही’ के कुछ अंश यहां दिए जा रहे हैं जिस से चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे करोड़ों लोगों की भड़ास समझा आए कि सरिता पत्रिका आज से 60-65 साल पहले भी वैसी ही थी जैसी बातें आज व्यक्त की जा रही हैं-

सापत ताड़त परुष कहंता बिप्र पूज्य अस गावहिं संता पूजिअ बिप्र सील गुन हीना सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना. -अरण्य काण्ड 40-1. (ब्राह्मण चाहे शाप दे, मारे या कटु वचन कहे तो भी वह पूज्य होता है.

ब्राह्मण शील और गुणों से हीन हो तो भी उसे पूजना चाहिए और शूद्र गुण और ज्ञान में निपुण हो तो भी उसे नहीं पूजना चाहिए. ऐसा संत पुरुष कहते हैं).

‘‘स्वयं राम के मुंह में डाली गई स्वार्थमूलक समाजहित विरोधिनी इन विषैली चौपाइयों की और किसी तरह व्याख्या हो ही नहीं सकती सिवा इस के कि यहां पहुंच कर ब्राह्मणों के निहित स्वार्थों ने एकदम नंगा रूप धारण कर लिया है. यदि शील और गुणों से हीन होने पर भी ब्राह्मणों की पूजा करना और गुणों तथा शील ज्ञान में प्रवीण होने पर भी शूद्रों की पूजा न करना ही संत मत है तो फिर असंत मत किसे कहते हैं.’’ (सरिता, मार्च 1951 के अंक से).

आइए, इसी लेख के कुछ और अंश देखें- भाई को समझाने में असमर्थ रह कर विभीषण शत्रु पक्ष में राम के पास चला आया है तो राम कहते हैं-

सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम सुन्दर काण्ड-49 (जो सगुन ब्रह्म के उपासक हैं, जो परोपकार करने में तत्पर हैं, जो नीतिमान और दृढ़ नियम वाले हैं और जिन का ब्राह्मणों के चरणों में प्रेम है वे मनुष्य मुझे प्राण के समान प्यारे हैं).

यदि किसी व्यक्ति या जाति में प्रथम तीनों गुण हों लेकिन मात्र चौथा गुण ब्राह्मणों के चरणों में प्रेम न हो तो उस की क्या स्थिति होगी? ब्राह्मणों के चरणों में प्रेम होने में ऐसी क्या विशेषता है अथवा उस में ऐसा कौन सा समाजहित होता है कि उस के कारण वह व्यक्ति अथवा समाज राम को प्राण के समान प्यारा हो जाता है.

इसी लेख में आगाह करते कहा गया था, ‘‘इस में संदेह नहीं कि तुलसी ने रामचरितमानस में ब्राह्मण पक्षपात का अनुपम उदाहरण उपस्थित किया है. यह पक्षपात या तो उन की जड़ धारणाओं की अभिव्यक्ति है या फिर ब्राह्मण समाज के निहित स्वार्थों की रक्षा का जानबूझकर कर किया गया साहित्यिक प्रयास है. लेकिन हमें डर है कि भावी इतिहास लेखक का फैसला कहीं यह न हो कि ऐसा कर के तुलसी ने स्वयं ब्राह्मणों का भी अहित ही किया.’’ संतोष का विषय है कि जनता जागरूक है और अब रामचरितमानस की विषैली शिक्षाओं का प्रभाव दिनोंदिन घट रहा है. जो चंद्रशेखर का रोना है, उस का जिक्र भी इसी लेख में किया गया है.

ब्राह्मण समाज के लिए तुलसी इस से अधिक और क्या लिख सकते थे. इस सारे ब्राह्मण माहात्म्य को निम्नलिखित चौपाइयों के साथ पढि़ए जिन्हें तुलसी ने एक पूर्वजन्म के शूद्र से कहलवाई हैं-

अधम जाति मैं विद्या पाए भयऊ जथा अहि दूध पिआए मानी कुटिल कुभाग्य कुजाती गुर कर द्रोह करऊं दिनुराती -उत्तरकांड 163-3, 4 (नीच जाति का मैं विद्या पाने पर वैसा हो गया जैसे दूध पिलाने पर सांप हो जाता है. अभिमान, कुटिल, कुभाग्य वाला कुजाति मैं दिनरात गुरु का द्रोह करता रहता हूं.)

हिंसक प्रतिक्रियाएं

स्वामी प्रसाद मौर्य की गुस्ताखी सत्तारूढ़ पक्ष के लोग आखिर कैसे बरदाश्त कर लेते? आखिर वे उन की हकीकत उजागर करती और दुकानदारी पर चोट करती सच बयानी कर रहे थे.

उन के बयान और मांग पर हिंसक प्रतिक्रियाएं उम्मीद के मुताबिक हुईं. जगहजगह उन के पुतले फूंके गए. हद तो तब हो गई जब 16 फरवरी को लखनऊ के एक होटल में एक न्यूज चैनल के प्रोग्राम में दोनों अपने समर्थकों सहित भिड़ गए. संत, महंतों और सनातनियों में गुस्सा इस बात को ले कर ज्यादा भरा था कि स्वामी प्रसाद ने कथित रूप से रामचरितमानस की प्रतियां जलाई थीं और वे अपने बयान से टस से मस नहीं हो रहे थे और न ही माफी मांगने को तैयार हो रहे थे.

16 फरवरी को ही एक सनातनी महिला का वीडियो तेजी से वायरल हुआ था जिस में वह उन्हें अपशब्द कहते नजर आ रही थी. कोई वजह नहीं कि इस भाषा को सभ्य समाज की भाषा माना जाए. अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी जिस नफरत की बात करते रहे थे वह साफतौर पर उजागर हुई. यह नफरत केवल किसी स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रति ही नहीं थी बल्कि देश के तमाम छोटी जाति वालों यानी शूद्रों के प्रति है जिन के बारे में तुलसीदास ने तरहतरह से जहर उगला है. सरिता के जुलाई (प्रथम) 1980 के अंक में प्रकाशित एक लेख ‘रामचरितमानस में ब्राह्मणवाद’ में कहा गया है कि- ‘‘जनता में सांस्कृतिक चेतना आई, वह किसी भी ब्राह्मण मत को तर्क की कसौटी पर रख कर जांचपड़ताल करने लगी.

अकबर के शासन काल तक पहुंचतेपहुंचते ब्राह्मणों का आधिपत्य लगभग समाप्त हो चुका था, जाति बंधन ढीले पड़ गए. नतीजतन वेद और कुरान में भेद भुलाया जाने लगा. ‘‘ऐसे समय में ब्राह्मण वर्ग एक ऐसे ब्राह्मण विद्वान की खोज में लगा हुआ था जो फिर से ब्राह्मण राज्य स्थापित करने में मदद कर सके, जनता को गुमराह कर के धर्म की ध्वजा फहरा सके, वर्ण व्यवस्था को फिर से जीवित कर सके, लोगों के मन में तीर्थों व व्रतउपवासों के प्रति आस्था जगा सके और ब्राह्मणों की सर्वश्रेष्ठता प्रमाणित कर सके.’’ ऐसे ही समय तुलसीदास का आगमन हुआ.

उन्होंने हिंदू समाज की नाड़ी भलीभांति पहचानी. ब्राह्मणवाद पर आए घोर संकट को भी उन्होंने सम?ा. उस संकट के निवारण के लिए उन्होंने ब्राह्मणवाद को स्थापित करने वाले ग्रंथों का चिंतनमनन किया और अंत में रामचरितमानस का प्रणयन किया. तुलसी के समय में जातिपांति का बंधन कितना ढीला था व ब्राह्मणों की स्थिति क्या थी, इस की जानकारी मानस के इस दोहे से मिल जाती है-

बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटि जानई ब्रह्म सो बिप्रबर आंखि देखावहिं डाटि अर्थात, शूद्र लोग ब्राह्मणों के साथ विवाद करते हैं कि क्या वे उन से कुछ कम हैं. जो ब्रह्म को जाने वही ब्राह्मण है, (ऐसा कह कर) वे उन्हें डांट कर आंख दिखाते हैं.

इन पंक्तियों में ब्राह्मणवाद की वेदना परिलक्षित होती है. लेख में प्रमुखता से चेतावनी दी गई थी कि अभी बुद्ध या कबीर की आत्मा मरी नहीं है. लेकिन दुख यह देख कर हुआ कि आज 2023 में भी हमारे युवा धर्मग्रंथों के बहकावे में आ कर अपराधी होते जा रहे हैं. बीती 19 फरवरी को राजस्थान और हरियाणा की पुलिस मोनू मानेसर नाम के नौजवान को ढूंढ़ रही थी, जिस पर आरोप है कि उस ने 7 फरवरी को पटौदी कसबे में गौकशी के शक में 2 मुसलिम युवकों जुनैद और नासिर को जिंदा जला कर मार डाला था. गुरुग्राम के गांव मानेसर के 28 वर्षीय मोनू का असली नाम मोहित यादव है और उसे लोग गौरक्षक के नाम से जानते हैं. मोनू पर इस तरह के और भी मामले दर्ज हैं.

मोनू पर बचपन से ही धर्म का जनून सवार हो गया था जिस के चलते वह बजरंग दल से जुड़ गया और गौ तस्करी करने वालों को खुद सजा देने लगा. इस चक्कर में उस ने सहीगलत कुछ नहीं देखा. मुमकिन है यह मानस विवाद पर परदा डालने की कोशिश हो और माहौल को हिंदूमुसलिम बना कर ध्यान बंटाने का टोटका हो पर इस से वे वजहें छिप नहीं जातीं जिन से ऐसे हिंसक कांड होते हैं. हिंदू धर्म में गाय की महत्ता किसी सुबूत की मुहताज नहीं, खुद तुलसीदास कहते हैं4-

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार निज इच्छा निर्मित तनु माया गन गो पार -बाल कांड 224 अर्थात, यद्यपि भगवान माया, गुण और इंद्रियों से परे हैं तो भी उन्होंने ब्राह्मण, गौ देवता और संतों के हित में मनुष्य रूप धारण किया. लेकिन क्या ऐसे विवादों और फसादों से भला देश का कोई हित होता है,

यह गंभीरता से सोचने की बात है पर अफसोस इस बात पर होना चाहिए कि देश के कर्णधार इस पर कुछ बोलने का जोखिम नहीं उठा पाए. इस के विपरीत उन्हें तो सुकून इस बात का है कि कोई मुद्दों की बात नहीं करता और जो वे कहते हैं उसे सच मान लिया जाता है. मिसाल अर्थव्यवस्था की लें, सरकार की तरफ से बड़े जोरशोर से यह दावा अकसर किया जाता है कि हम दुनिया की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. ऐसा ही दावा रामचरितमानस में समाज के गठन के बारे में कही गई बातों को भगवान की कही गई बातों की तरह कहा गया है. कुछ ऐसा ही सरकार का दावा है.

कोई ये सवाल नहीं करता कि भारत प्रतिव्यक्ति आय के मामले में 194 देशों के बीच 144वें नंबर पर क्यों है, क्यों आज भी शूद्र बिना सिर पर छत, बिना चिकित्सा, बिना भरपेट जी रहे हैं? बीते दिनों गोदी मीडिया ने गागा कर यह बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पार करती 5वें पायदान पर जा पहुंची है लेकिन हकीकत कुछ और है. हकीकत को बड़ी चालाकी से आंकड़ों के आईने से ढक दिया गया. भारत में प्रतिव्यक्ति सालाना आय 22 सौ डौलर है जबकि ब्रिटेन में प्रतिव्यक्ति आय 47 हजार डौलर है. यानी, अंतर 20 गुना के लगभग है. इस पर भी यह जगजाहिर तथ्य निगल लिया गया कि भारत की जीडीपी पर 10 फीसदी अमीरों का कब्जा है जिन के पास कुल आय का 57 फीसदी हिस्सा है और देश के 50 फीसदी लोगों के पास आय का महज 13 फीसदी हिस्सा है.

रामचरितमानस इसी तरह बारबार ‘ईश्वरीय’ आदेश देता है और 501 सालों से वह हमारा सामाजिक संविधान बना रहा है. अब यह बताना धरमकरम में डूबी देश की मौजूदा भगवा सरकार की जिम्मेदारी है कि हम कौन से एंगल से और किस मुंह से ब्रिटेन का मुकाबला करने का ढोल पीट रहे हैं. भारत में 90 फीसदी से भी ज्यादा लोगों की मासिक आय 10 हजार रुपए से भी कम है. ये लोग न तो ट्रेन का महंगा किराया अफोर्ड कर पाते हैं और न ही इन्हें चमचमाते एयरपोर्टों का इस्तेमाल करना है. सारी सहूलियतें, दरअसल अमीरों के लिए हैं, वरना किसी हाईवे पर बैलगाड़ी चलती न दिखाई देती.

बीते दिनों ब्राह्मणवाद की सनातनी वेदना फिर व्यक्त हुई लेकिन इस बार इस में गुस्सा इस बात को ले कर ज्यादा था कि शूद्र मानस का सच उधेड़ने की जुर्रत क्यों कर रहे हैं? अब लेनदेन की बात कही जा रही है, सम?ाने की कोशिश की जा रही है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अब वर्णव्यवस्था को ले कर कह डाला कि वर्ण भगवान ने नहीं, पंडितों ने बनाए हैं. रविदास जयंती पर बीती 5 फरवरी को मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा था, ‘‘जाति भगवान ने नहीं बनाई है, पंडितों ने बनाई जोकि गलत है. भगवान के लिए हम सभी एक हैं. हमारे समाज को बांट कर पहले देश में आक्रमण हुए, फिर बाहर से आए लोगों ने इस का फायदा उठाया.’’ मोहन भागवत के मुंह से संघ प्रमुख रहते हुए ज्ञान की यह बात सुनना वाकई हैरानी की बात थी कि वे क्यों जातिव्यवस्था के खिलाफ बोल रहे हैं? इस सवाल के संभावित जवाबों में से एक यह है कि वे धर्मग्रंथों में बदलाव की मांग कर रहे स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे दलितपिछड़े नेताओं की चेतना से घबरा गए हैं क्योंकि 8-10 फीसदी सवर्णों के दम पर हिंदू राष्ट्र बनना अब मुमकिन नहीं दिख रहा.

मुसलमानों के खिलाफ जो माहौल पिछले 8 सालों में बना है, उसे वे सवर्णदलित संघर्ष की बलि चढ़ते देखना गवारा नहीं कर रहे क्योंकि बीते 2 लोकसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता दलितों के दम पर ही मिली. आरएसएस और भाजपा इन्हीं 85 फीसदी वोटों के सहारे हैं जो अपने समर्थन के एवज में अब स्वाभिमान और बराबरी की बात करने लगे हैं. ब्राह्मणों ने मोहन भागवत के इस ज्ञान से इत्तफाक नहीं रखा बल्कि उस का विरोध शंकराचार्य से ले कर तहसील स्तर तक ब्राह्मण संगठनों ने किया. सो, घबराए आरएसएस प्रमुख को अपने सजातियों के सामने यह कहते ?ाकना पड़ा कि उन का मतलब ब्राह्मणों से न हो कर विद्वानों से था.

यह निहायत ही बचकाना स्पष्टीकरण था क्योंकि हर कोई जानता समझता है कि इस देश में ब्राह्मण ही पंडित और पंडित ही ब्राह्मण होता है और किसी को तो यह हक कभी मिला ही नहीं. मोहन भागवत यह भी साबित नहीं कर सकते कि जाति भगवान ने नहीं बनाई और उस ने नहीं बनाई तो किस काल के कौन सी जाति के पंडितों ने बनाई? वे यह भी दावा नहीं कर सकते कि क्या वर्ण के बाद जातियों की उत्पत्ति धर्मग्रंथों से नहीं हुई. उपजातियां किस ने बनाईं, यह कहना भी आसान नहीं.

लेकिन मानस में ऐसी चौपाइयों की भरमार है जो उस समय फैले जातिवाद को साफतौर पर उजागर करती हैं.

मसलन- स्वपच सबर खस जमन जड़, पावंर कोल किरात रामू कहत पावन परम होत भुवन बिख्यात -अयोध्या काण्ड 195 (चांडाल, भंगी, शबर, खस, यवन, मूर्ख, नीच, कोल, भील, किरात इत्यादि सभी राम का नाम लेने से पवित्र हो जाते हैं, यह बात सारे संसार में प्रसिद्ध है.)

तुलसीदास को इन जातियों के बारे में कहां से पता चला? इस के पहले न भी जाएं तो यह तो कोई भी समझा सकता है कि उस वक्त जातियां थीं. लेकिन जैसा कि ऊपर बताया गया कि जातिवाद दम तोड़ रहा था जिसे जिलाने के लिए तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की.

सरिता के ही एक लेख ‘ब्राह्मण, धर्म और हिंदू समाज’ के निम्न अंश इस गड़बड़ ले को समझाने में बहुत सहायक होंगे-

  1. जिसे सामान्यतया हिंदू धर्म कहा जाता है उसे पौराणिक ब्राह्मण धर्म कहना चाहिए. ब्राह्मण अर्थात भारत में प्रचलित पौराणिक धार्मिक विश्वासों और सिद्धांतों के प्रवर्तक व्याख्याता. यह समाज का एक छोटा सा किंतु अतिप्रभावी हिस्सा है. असल में ब्राह्मण धर्म पर होने वाले प्रहार, जो असल में धर्म की पोल खोलना होता है, को समाजविरोधी बताने की रणनीति बड़ी धूर्ततापूर्ण है. विरोध उस वर्ग से है जो समाज को घुन की तरह खा रहा है.

धर्म की आलोचना की जाए तो तुरंत हल्ला मचा दिया जाता है कि राष्ट्रद्रोह हो रहा है और करने वाला तय है नास्तिक वामपंथी या अर्बन नक्सली है. सीधेतौर पर बोलने की आजादी का गला घोंटा जा रहा है. किसी भी कर्मकांड या भाग्यवाद की आलोचना करना और उसे अतार्किक व अवैज्ञानिक बनाना भी इन दिनों देशद्रोह करार दिया जा चुका है तो सहज समझा सा सकता है कि देश एक वैचारिक विस्फोट के मुहाने पर खड़ा हुआ है. इस विस्फोट के मूल में जातिवाद ही है जो सत्ता हथियाए रखने के लिए रचा गया था.

क्यों बदले ताड़ना के माने

फरवरी के महीने में ही मानस के उस दोहे की खूब चर्चा हुई थी जिस में ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी’ का उल्लेख है.

इस दोहे की बखिया उधेड़ता लेख जब 60 के दशक में सरिता में प्रकाशित हुआ था, खासा विवाद देश में हो गया था. सरिता को हजारों आपत्तियां चारों कोनों से मिली हुई थीं. सरिता ने सभी की आपत्तियों के उत्तर धारावाहिक रूप में छापे थे. बाद में ‘हिंदू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास’ नाम की किताब विश्व विजय प्रकाशन ने प्रकाशित की थी जिस की बहुत बिक्री हुई और अब भी इस की बहुत मांग है लेकिन पुस्तक मेलों में इसे बेचने पर एक तरह का अघोषित प्रतिबंध लगा दिया जाता है. इस पुस्तक में अधिकतर सरिता में प्रकाशित लेख हैं. हालिया विवाद के बाद हर किसी द्वारा इस दोहे के अर्थ को तोड़मरोड़ कर पेश किया जाने लगा है और यह भी कहा जाने लगा है कि मूल दोहा ऐसा नहीं ऐसा था और उस में ताड़ना का अर्थ यह नहीं, वह था.

एक तरह से यह बचाव ही था कि मानस शूद्रविरोधी ग्रंथ नहीं है. इस दोहे को ले कर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने एक लेख लिखा था कि कैथोलिक चर्च को यह मानने में साढ़े तीन सौ साल लग गए जो कौपरनिकस, गैलेलियो और ब्रूनो कह रहे थे कि धरती स्थिर नहीं है बल्कि सूर्य के चारों और परिक्रमा करती है. आस्था और विज्ञान के बीच चले लंबे संघर्ष के बाद चर्च और वैटिकन ने आखिरकार मान लिया कि धरती घूमती है और ऐसा कहने वाले वैज्ञानिकों और विद्वानों से सार्वजनिक माफी मांगी. मैं यह देख कर दंग रह गया कि उत्तर भारत के सब से लोकप्रिय धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस की सब से विवादास्पद पंक्तियों ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’, में ताड़ना के अर्थ को अब बदल दिया गया है. रामचरितमानस को 16वीं सदी में तुलसीदास ने लिखा था.

इस की एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं. हिंदू धर्म की पुस्तकें प्रकाशित करने वाला रामचरितमानस भी प्रकाशित करता है. सैकड़ों अनुवादकों के अनुसार उस का अनुवाद संस्कृत से किया और सभी अनुवादों की भाषा एक ही है. ताड़ना का अर्थ सभी संस्कृत ज्ञानियों ने पीटना या मारना ही कहा है. गीता प्रैस, गोरखपुर रामचरितमानस का सब से बड़ा प्रकाशक है. ?उरखंड में यात्रा करते समय मु?ो गीता प्रैस की 1953 में प्रकाशित रामचरितमानस की कौपी मिली. उस में मूल अवधि भाषा की रचना और हनुमान प्रसाद पोद्दार (1892-1971) द्वारा किया गया उस का हिंदी अनुवाद व उस की व्याख्या है. इस में ताड़ना के लिए दंड का इस्तेमाल किया गया है. ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी, ये सब दंड के अधिकारी हैं. लेकिन कहा जा रहा है, गीता प्रैस द्वारा प्रकाशित जो रामचरितमानस 2022 से बाजार में है उस में ताड़ना शब्द का मतलब बदल दिया गया है.

अब इन सभी को शिक्षा का अधिकारी बताया गया है. दिलीप मंडल की इस विषय पर अपनी राय है पर यह साजिश सदियों से रची जा रही है और आज वोटों व दक्षिणा के लिए यह ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि हम तो इन वंचितों की शिक्षा की हिमायत करते रहे हैं. गोया कि दलित और औरतें इन के रहमोकरम से शिक्षित हुए हैं और फिर ढोल व पशुओं को पढ़ाने की कौन सी तकनीक विकसित हो गई, वह ये जानें या इन का भगवान जाने. यहां यह भी सोचने की बात है कि औरतों से अर्थ क्या है, क्या औरतों का अर्थ सवर्ण औरतें ही नहीं. शूद्र शब्द में शूद्र पुरुष व स्त्री आ गए हैं. इसी तरह पशु में नर व मादा दोनों हैं. दरअसल रामचरितमानस में सवर्ण औरतों को भी पशुओं और शूद्रों की बराबरी पर रखा गया है जो तुलसी और श्रेष्टि वर्ग के स्त्रीविरोधी संस्कारों को उजागर करता है. तुलसी की नजर में औरत क्या है, आइए, सरिता के ही एक अन्य लेख

‘‘तुलसी साहित्य : अनुवादों की सफल नुमाइश के सिवा क्या है’’ में देखें-

नारि सुभाऊ सत्य सब कहहीं अवगुण आठ सदा उर रहहीं साहस, अनृत, चपलता, माया भय, अविवेक, असौच, अदाया -लंका काण्ड मतलब बहुत साफ है कि स्त्रियों के 8 अवगुण हैं- जरूरत से ज्यादा साहस, ?ाठ बोलना, चंचलता, माया रचना, डरपोक होना, अविवेकी यानी मूर्ख होना, निर्दयता और अपवित्रता.

ऐसे कई दोहे देख लगता है कि तुलसीदास औरतों की भी बेइज्ज्ती का कोई मौका चूके नहीं हैं, बल्कि उन्होंने जानबूझ कर ऐसे कई मौके पैदा किए हैं. यह औरत सवर्ण परिवारों की औरतें ही हैं जो घर व बाहर सब की सेवा करती हैं, बच्चे पैदा करती हैं, रसोई देखती हैं, फिर भी उन्हें लांछनें मिलती हैं.

रामचरितमानस जैसे धर्मग्रंथों को आदर्श मान लेने का नतीजा है कि सभ्य और आधुनिक समाज में भी औरतें नुमाइश की चीज हो कर रह गई हैं. उन के पास महंगेमहंगे कपड़े और गहने हैं पर असल में उन की हैसियत दोयम दरजे व जरूरतें पूरी करते रहने भर की हैं. अच्छे घरों की औरतें भी जराजरा सी बात के लिए पति की अनुमति लेती नजर आती हैं.

दिलीप मंडल का एक ट्वीट भी बीते विवाद के दिनों में सुर्खियों में रहा था जिस में उन्होंने लिखा था, ‘तुलसीदास ने रामचरितमानस में ठाकुरों के साथ जो किया है वह मैं तभी बताऊंगा जब क्षत्रिय महासभा इस के लिए मु?ा से अनुरोध करेगी और मानदेय देगी, वरना मु?ो क्या है. आज ठाकुर उच्च न्यायपालिका, मीडिया, बिजनैस, कला, साहित्य, फिल्म, उच्च नौकरशाही से जिस तरह लापता हैं, उस के सूत्र तुलसीदास की रामचरितमानस में हैं. ‘रामचरितमानस में ठाकुर राजा सांस भी ब्राह्मण की आज्ञा से लेता और बारबार पैर छूता है पर मैं ऐसे बताऊंगा नहीं या बता दूं?’

इस ट्वीट पर यूजर्स ने खूब कमैंट किए जो ठाकुरों की दुर्दशा को उजागर करते हुए थे. बारीकी से देखें तो वैश्य भी कम दुर्दशा के शिकार नहीं हैं जो भेड़ों की तरह ब्राह्मणों के निर्देशों के पीछे अब फिर चल रहे हैं. देश में दिनरात हायहाय धर्म और जातिपांति की ही हो रही है. महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे सामयिक मुद्दों से किसी का कोई वास्ता नहीं रह गया है. यही वह खूबी है जिस ने प्रबुद्ध और जागरूक वर्ग का ध्यान हालात से मोड़े रखा.

पर जाति का क्या होगा

सियासी लिहाज से रामचरितमानस विवाद का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह अभी नहीं कहा सकता लेकिन सामाजिक तौर पर अंदरूनी उथलपुथल मच चुकी है. हर कोई अपनी पहचान और पहुंच को ले कर फिक्र में है. बिहार में जाति आधारित जनगणना से भगवा गैंग के माथे पर सिलवटें हैं क्योंकि सवर्णों और ब्राह्मणों के अगुआ होने की पोल अब खुलने लगी है. एक बार फिर ‘जिस की जितनी आबादी, उतनी उस की हिस्सेदारी’ की मानसिकता जोर पकड़ने लगी है. भाजपा कई दलित नेताओं से उन की मेहनत व बनाई जगह छीन चुकी है. इस में बसपा प्रमुख मायावती, आरपीआई के मुखिया रामदास अठावले और लोजपा चीफ चिराग पासवान के नाम अहम हैं. अठावले तो अभी भगवा रथ पर लटके हैं लेकिन चिराग न घर के रहे न घाट के. मायावती का हश्र तो अब शब्दों का भी मुहताज नहीं रहा जो रामचरितमानस विवाद पर मुंह में दही जमाए बैठी रहीं.

महाराष्ट्र में पिछड़ों से क्षत्रिय बने मराठाओं को शिंदे और ठाकरे गुटों में बांट कर कुर्कवंश को बांटने का काम किया गया है जिस में चचेरे भाइयों दुर्योधन और युधिष्ठर एकदूसरे को मारने पर लग गए. यही शिवशेना को समाप्त करने के लिए महाराष्ट्र में किया गया. रामचरितमानस विवाद से किसी का कोई तात्कालिक भला होगा, इस में संदेह है लेकिन यह तय है कि शूद्रों यानी दलित, पिछड़ों, आदिवासियों को एक बार फिर अपने गिरहबान में ?ांकने और आंकने का मौका तो मिला है कि वे किस पायदान पर खड़े हैं. यह ठीक है कि पहले के मुकाबले थोड़ी राहत उन्हें महसूस हो सकती है पर यह उन्हें कोई मौर्य नहीं सम?ा पाएगा कि यह राहत उन्हें उस संविधान में दिए गए शिक्षा और आरक्षण के अधिकारों की वजह से मिली है जिस से धर्म अब वापस लेने की चेष्टा कर रहा है. अब फैसला इन एकलव्यों के विवेक पर है कि दक्षिणा में पहले अंगूठा दें और बाद में जान दें या नहीं.

अगर तुम न होते : अपूर्व ने संध्या मैडम की तस्वीर को गले से क्यों लगाया?

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी ने मैनेजर पर लगाया बेटी को लेकर ये आरोप

एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की लाइफ में इन दिनों काफी ज्यादा उथल-पुथल चल रही है, नवाज की एक्स वाइफ आलिया ने हाल  ही में एक्टर पर रेप के आरोप लगाए थें, इसके बाद से उनकी लाइफ में काफी ज्यादा परेशानी चल रही थीं.

जिसके बाद से एक्टर ने कहा था कि मुझे हर जगह गलत बताया जा रहा है, मुझे कोई सफाई नहीं देनी है, नवाज ने अपनी पत्नी को लेकर कहा था कि वह उसके बच्चों को भी बंधक बनाकर रखी है और वह सिर्फ पैसों के लिए ऐसा कर रही है. वह मेरे बच्चों को स्कूल भी नहीं भेज रही है.

वहीं आलिया ने नवाज के इस इंटरव्यू पर रिएक्ट करते हुए कहा है कि तुम एक गैर जिम्मेदार पिता हो,जिसके अपनी नबालिक बेटी को होटल में मैनेजर के साथ ठहराया था, मैनेजर ने उसे गलत तरीके से उसे गले लगाया था.मेरी बेटी उसके साथ असहज महसूस कर रही थी. आप हमारी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं.

आलिया ने नवाज को 10 लाख रुपये के बयान पर कहा कि मुझे हर महीने दुबई में पैसे के लिए भीख मांगनी पड़ती थी.10 तो छोड़ों उन्होंने हमें 3-4 लाख रुपय तक नहीं दिए हैं. हालांकि इस बयान के बाद से अभी तक नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

रणबीर कपूर ने आलिया की तारीफ में कही ये बात

बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर  अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बने रहते हैं,  लेकिन इन दिनों वह अपनी पत्नी आलिया को लेकर काफी ज्यादा तारीफ करते नजर आएं हैं,  रणबीर कपूर ने आलिया भट्ट को लेकर कहा है कि आलिया भट्ट एक बेहतरीन मां है, वह अपनी बेटी का काफी ज्यादा ध्यान रखती हैं.

आगे उन्होंने कहा कि मैं डायपर बदलने का काम आसानी से कर लेता हूं, वहीं आलिया भट्ट एक अच्छी मां की तरह अपनी बेटी का फीड कराती हैं, वह अपनी बेटी का बेहतरीन  तरीके से ध्यान रखती हैं, मैं उन दोनों को खुश देखकर खुश रहता हूं.

 

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इसके साथ ही रणबीर कपूर अपनी अपकमिंग फिल्म तू झूठी मैं मक्कार को लेकर भी काफी ज्यादा चर्चा में बने हुए हैं. रणबीर कपूर के साथ इस फिल्म में श्रद्धा कपूर भी हैं. इन दोनों की जोड़ी लोगों को खूब पसंद आ रही है.

ऐसा पहली बार हुआ है जब रणबीर कपूर अपनी बेटी राहा को लेकर बात करते नजर आएं हैं, रणबीर कपूर की बेटी राहा काफी ज्यादा सुंदर हैं उनके बात से लगा.

वहीं यह पहली बार हुआ है कि रणबीर कपूर ने अपनी पत्नी और बेटी को लेकर बात करती नजर आए हैं. रणबीर कपूर अपनी लाइफ को लेकर बहुत ज्यादा प्राइवेसी रखते हैं.

चटनी -भाग 3 : रेखा को अचानक सुरुचि की याद क्यों आ गई?

सुरुचि कालेज की पढ़ाई और नौकरी साथसाथ करने लगी. उस की कड़ी मेहनत रंग लाई और 3 साल बाद उस ने स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली, वह भी पहेली श्रेणी से. इतना ही नहीं, उस ने अपनी कक्षा में टौप भी किया. वह बहुत खुश थी क्योंकि वह अपने लक्ष्य की ओर एक कदम बढ़ा चुकी थी. अब उस ने ‘बैंकिंग एंड फाइनैंस कोर्से’ में एडमिशन ले लिया. ऋण अधिकारी बनने के लिए यह कोर्स करना जरूरी था. इस कोर्स को करते समय उस ने फिर से वही भेदभाव महसूस किया जो उसे डिपार्टमैंटल स्टोर और कालेज में देखने को मिला था. लेकिन सुरुचि ने अपने जीवन की लड़ाई को जारी रखा.

कोर्स पूरा होने के 3 महीने बाद सुरुचि को दिल्ली के ही एक प्रतिष्ठित बैंक में ऋण अधिकारी की नौकरी मिल गई. दिल्ली आने के 8-10 सालों में उसे बहुत से कटु अनुभव हुए पर उस ने अपना लक्ष्य नहीं छोड़ा.

4-5 साल बाद सुरुचि का लोन मैनेजर के रूप में पहला दिन था. वह बहुत खुश थी क्योंकि उस का सपना पूरा हो गया था. वह आज उस जगह थी जहां का सपना उस ने देखा था. सुबह से 5 लोग लोन की प्रक्रिया में उस से मिल चुके थे. कुछ देर बाद बैंक में एक दंपती दाखिल हुआ. सुरुचि को वह दपती जानापहचाना लगा. लेकिन फिर भी वह उन्हें पहचानने में असफल रही. कुछ देर सोचने के बाद उसे याद आया कि ये तो रेखा और मनोज शर्मा हैं जिन के घर में वह नौकरानी का काम किया करती थी. सुरुचि को एक अधिकारी से पता चला कि वे पिछले 2 हफ्ते से बैंक के चक्कर काट रहे है. वे बैंक से कार लोन लेना चाहते है लेकिन किसी वजह से उन का कार लोन पास न हो सका. ऋण अधिकारी के पद पर बैठी एक महिला को देखते ही वे दोनों उस ओर आए. “मैडम, हम आप के बैंक से कार लोन लेना चाहते हैं. हमारे पास सभी जरूरी कागज हैं. आप इन्हें देख ले और हमारी मदद करें.’’

दरअसल, पढ़ाईलिखाई और शादी के बाद सुरुचि की पर्सनैलिटी पूरी तरह बदल गई थी. इसलिए वे उसे पहचान न सके. लेकिन सुरुचि उन्हें पहचान चुकी थी.

सुरुचि यह सोचने लगी कि यही वह मौका है जब वह इन से अपने भेदभाव का बदला ले सकती है. लेकिन दूसरी ओर उस की पढ़ाईलिखाई थी जो उस को किसी भी तरह भेदभाव करने से रोक रही थी. अपनी नकारात्मक सोच से निकलते हुए उस ने सभी जरूरी कागज वैरीफाई कर कार लोन पास कर दिया. इस समय तक लंच भी हो चुका था. चूंकि सुरुचि का घर बैंक के पास ही था, इसलिए वह खाना खाने घर ही जाया करती थी.

जब वह बाहर गई तो उस ने देखा बहुत तेज बारिश हो रही है. रेखा और मनोज अपनी स्कूटी पर बैठे सोच रहे हैं कि वे कैसे घर जाएं, तभी वहां सुरुचि आ गई और उस ने सोचा, ये भीग जाएंगे, क्यों न इन्हें मैं अपनी कार से घर छोड़ दूं.

‘‘आइए, मैं आप को घर छोड़ देती हूं, बहुत तेज बारिश हो रही है, आप भीग जाएंगे,’’ सुरुचि ने कहा. ‘‘नहींनहीं, हम चले जाएंगे,” मनोज ने जवाब दिया.

‘‘देखिए, बारिश बहुत तेज हो रही है और ऐसे में स्कूटी से जाने पर आप दोनों भीग जाएंगे जिस से आप बीमार भी पड़ सकते हैं. मेरी विनती है कि आप मेरे साथ चलें.’’

यह सुन कर रेखा और मनोज एकदूसरे को देखने लगे और आंखों ही आंखों में इशारा करते हामी भरी और सुरुचि की कार में बैठ गए. करीब 10 मिनट के बाद कार तीनमंजिला घर के सामने आ कर रुकी.

‘‘सर, मुझे लगता है, बारिश अभी नहीं रुकेगी. आइए, आप लोग मेरे घर चलिए. हम साथ में खाना खाते हैं. इस के बाद मैं आप को आप के घर छोड़ दूंगी,’’ सुरुचि ने कहा.

“नहींनहीं मैडम, इस की कोई जरूरत नहीं है. आप का बहुतबहुत धन्यवाद,” मनोज ने कहा. “मैडम, मुझे बहुत अच्छा लगेगा अगर आप लोग मेरे साथ खाना खाएगे,’’ सुरुचि रेखा की ओर देखती हुई बोली.

सुरुचि अब उन्हें अपने घर के अंदर ले आई. आप लोग बैठें, मैं पानी ले कर आती हूं,” यह कहती हुई सुरुचि रसोईघर में चली गई.

‘वाह, कितना सुंदर घर है, यह तो हमारे घर से भी बड़ा है, यहां की तो पेंटिग भी हमारे घर की पेंटिग से बड़ी है और वह डाइनिंग टेबल तो देखो, ऐसे लग रहा है जैसे विदेश से मंगाया गया हो. काश, हमारे पास भी ऐसी डाइनिंग टेबल होती.’

“लीजिए, पानी पीजिए,” ‘पानी के 2 गिलास उन की तरफ करती हुई सुरुचि ने कहा.

रेखा और मनोज ने पानी पिया और अपने बारे में बताया. सुरुचि उन के बारे में पहले से जानती थी, इसलिए उसे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. जब रेखा ने उसे अपने बारे में बताने को कहा तो सुरुचि ने बताया, ‘‘6 महीने पहले शादी हुई है. पति बेंगलुरु के एक होटल में मैनेजर हैं. शादी के बाद उन्होंने अपनी पिछली बचत और लोन से यह कार व मकान लिए हैं.” इस के बाद सुरुचि खाना लेने रसोई में चली गई.

“कितनी भली लडक़ी है यह. इस ने पहले हमारा रुका हुआ काम करवाया और अब हमें खाना खाने के लिए आमंत्रित किया. हो न हो, यह किसी बड़े घर की होगी,” रेखा ने मनोज से कहा.

“आइए, खाना खाते हैं,” कहती हुई सोफे पर बैठे रेखा और मनोज को सुरुचि ने खाने की टेबल पर आमंत्रित किया. खाने में सुरुचि ने मटरपनीर की सब्जी, चटनी, खीरे का रायता और रोटी बनाई थी. खाना परोसते हुए सुरुचि ने कहा, “आप लोग खाइए, मैं अभी आती हूं.”

जैसे ही रेखा ने चटनी को चखा वैसे ही उस के मन में कई प्रश्नों ने घर कर लिया, यह चटनी, यह चटनी तो बिलकुल वैसी ही है जैसी सुरुचि शांता को बताया करती थी और फिर वह बनाती थी. वही रंग, वही स्वाद. ऐसा कैसे हो सकता है, कोई इतनी नकल कैसे कर सकता है. “सुनो, क्या आप ने इस लडक़ी का नाम पूछा,” हैरान होते हुए रेखा ने मनोज से पूछा.

“नहीं, इस सब का तो वक्त ही नहीं मिला. जैसे ही हमारा बैंक का काम हुआ, हम घर की ओर निकल पड़े कि तभी बारिश होने लगी और इस भली लडक़ी ने हमें घर छोडऩे के लिए कहा. इस बीच, मैं उस का नाम नहीं पूछ सका.”

सुरुचि रसोई में खड़ी हो कर ये सब बातें सुन रही थी. जैसे ही वह खाने की टेबल पर आई, रेखा उसे हैरानी से देखती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

“सुरुचि जाटव,” यह सुनते ही रेखा और मनोज के पैरोंतले जमीन खिसक गई. वे हैरान हो कर एकदूसरे को देखने लगे.

‘‘हां. मैं वही हूं जो आप लोग समझ रहे हैं,’’ सुरुचि ने कहा.

‘‘लेकिन तुम, तुम यहां और इतना बड़ा घर, कैसे?’’ रेखा ने हैरानी से पूछा.

‘‘कहते हैं न, मेहनत से सब हासिल किया जा सकता है और देखिए, आज जो कुछ भी मेरे पास है वह सब मेरी मेहनत का ही नतीजा है. आप ने तो कभी मुझे खाने में आलूमटर की सब्जी भी नहीं दी और देखिए, आज मैं अपनी पसंद का खाना खा रही हूं, अपनी पसंद के कपड़े पहन रही हूं, यह सब मेरी जाति से नहीं है, मेरी मेहनत से है. आप ने मेरी जाति को चटनी से आंका था जो कि किसी भी लिहाज से सही नहीं था. मैं अपनी मेहनत से कहां से कहां पहुंच गई. खैर छोडि़ए, चलिए चटनी खाइए.”

यह सुनते ही रेखा और मनोज शर्म से पानीपानी हो गए. अब वे समझ चुके थे कि सामाजिक भेदभाव कर के उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है.

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