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बेरोजगार बौयफ्रैंड

लोग कहते तो हैं कि प्यार सभी बंधनों व दीवारों को तोड़ कर हो जाता है. चलो मान लिया पर जैसे बच्चे को पालने के लिए पैसों की जरूरत होती है वैसे ही प्यार को पालने के लिए भी पैसों की जरूरत होती है. ऐसे में क्या हो जब बौयफ्रैंड बेरोजगार हो. कहावत है ‘न बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया’. यह बिलकुल सही है क्योंकि पैसे के बिना कुछ नहीं हो सकता और पैसा हर रिश्ते में अहम रोल अदा करता है.

ऐसे में अगर किसी लड़की का बौयफ्रैंड बेरोजगार हो तो उन का रिलेशन न सिर्फ उतारचढ़ाव से भरा होगा बल्कि यह तनाव से भरा भी होगा. सांवली सूरत वाली 20 वर्षीया काव्या 22 वर्षीय निखिल को पिछले 4 महीने से डेट कर रही है. वे दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. जहां काव्या एक बीपीओ कंपनी में जौब करती है वहीं निखिल पिछले कई महीनों से जौब ढूंढ़ रहा है. निखिल कहता है, ‘‘उस का जौबलैस होना काव्या को अखरता है क्योंकि वह उस के मनमुताबिक खर्च नहीं कर पाता. वह कहता है कि जौब न होने की वजह से उसे खुद शर्मिंदगी महसूस होती है. काव्या का कहना है, ‘‘अगर कोई रिलेशनशिप है तो खर्चा तो होगा ही.

हां, यह कमज्यादा जरूर हो सकता है लेकिन खर्चा होगा, यह तय है.’’ 23 साल का वेद जो दिखने में काफी स्मार्ट है. वह कहता है, ‘‘एक दिन उस की गर्लफ्रैंड श्रुति, जो 21 साल की है, ने मूवी का प्लान बनाया. जिस में उस के दोस्त अपनेअपने गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड के साथ आए थे. सभी लड़कियों के बौयफ्रैंड ने टिकट और पौपकोर्न लिए लेकिन मैं सिर्फ मूवी टिकट ही ले पाया क्योंकि मेरे पास पौपकोर्न लेने लायक बजट नहीं था.’’ वह आगे कहता है, ‘‘यह देख कर श्रुति की सहेलियां हंसते हुए बोलीं, ‘श्रुति, क्या तुम्हारे बौयफ्रैंड के पास पौपकोर्न के भी पैसे नहीं हैं.’ यह सुन कर मैं शर्मिंदा हो गया.

वेद के अनुसार अगर वह जौब कर रहा होता तो उसे ऐसी नौबत न देखनी पड़ती और न ही कोई उन का मजाक उड़ाता. हमारे आसपास ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जिन के बौयफ्रैंड के पास कोई जौब नहीं है और अगर देश की बात की जाए तो देश में ऐसे लाखोंहजारों युवा हैं जो बेरोजगार हैं. सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, 28 मार्च, 2023 तक भारत में बेरोजगारी दर 7.9 रही. सीएमआईई का कहना है कि भारत में रोजगार मिलने की दर बहुत कम है और यह सब से बड़ी समस्या है. देश में इतनी बेरोजगारी होने के कई कारण हैं जिन में सरकार सब से अहम है. युवाओं का कहना है कि सरकारें आती हैं,

अपना उल्लू सीधा करती हैं और चली जाती हैं. हमारी सरकारें हमें रोजगार देने में नाकामयाब रही हैं और फिर भी वे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनी रहती हैं. जो लड़का कमाता नहीं है, अगर उस की गर्लफ्रैंड अपने दोस्तों को बौयफ्रैंड से मिलाने अपने साथ ले आए तो उस का बौयफ्रैंड प्रौब्लम में पड़ जाता है क्योंकि उस के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह उन्हें किसी रैस्तरां में कौफी तक पिला सके या अच्छी जगह घुमा सके. वहीं अगर कमाऊ बौयफ्रैंड हो तो वह आसानी से उन्हें एक अच्छे रैस्टोरैंट में खाना तक खिला सकता है. 19 साल की अदिति और 21 साल के मयंक के रिलेशन को एक साल होने वाला है.

अदिति चाहती है कि वह अपनी एनिवर्सरी किसी अच्छी और महंगी जगह पर सैलिब्रेट करे. अदिति ने जब यह बात मयंक से शेयर की तो मयंक परेशान हो गया, क्योंकि उस के पास कोई जौब नहीं है. ऐसे में वह महंगी जगह कैसे अफोर्ड कर सकता है. बड़ी मुश्किल से वह डेट के खर्चे को उठा पा रहा था और फिर अदिति की यह फरमाइश. न चाहते हुए भी उस ने अदिति को यह प्लान कैंसिल करने को कहा तो वह नाराज हो कर वहां से चली गई. मयंक कहता है कि उस के पास कोई जौब नहीं है,

इसलिए अदिति ने ऐसा बिहेव किया. अगर वह भी जौब करता तो अदिति की सारी फरमाइशें पूरी कर देता और अदिति उस से नाराज न होती. वह कहता है, ‘‘बेरोजगार बौयफ्रैंड किसी को नहीं चाहिए. सब लड़कियों को अमीर और सक्सैसफुल बौयफ्रैंड ही चाहिए.’’ जागृति (बदला हुआ नाम) बताती है कि जब कभी भी वह आउट औफ स्टेशन का प्लान बनाती है तो हमेशा उस का बौयफ्रैंड प्लान को कैंसिल कर देता है. इस का कारण यह है कि उस का बौयफ्रैंड अभी जौब नहीं करता, ऐसे में वह ट्रैवल का खर्चा नहीं उठा सकता. वह कहती है, ‘‘बारबार प्लान कैंसिल होने से उस का मूड खराब हो जाता है.

सो, कभी भी बेरोजगार लड़के के साथ रिलेशन में मत आओ क्योंकि वहां आप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ेगा.’’ यह कड़वा सच है कि कोई भी लड़की ऐसा बौयफ्रैंड नहीं चाहती जो कमाता न हो क्योंकि ऐसे लड़के के साथ रहना आसान नहीं है. उसे यह सम झना पड़ेगा कि उस का बौयफ्रैंड उस पर ज्यादा खर्चा नहीं कर पाएगा क्योंकि उस के बौयफ्रैंड के पास पैसों का कोई सोर्स नहीं है. अंश बताता है कि 4 साल पुराने रिश्ते को उस की स्कूलटाइम गर्लफ्रैंड ने यह कहते हुए तोड़ दिया कि वह एक ऐसे लड़के के साथ नहीं रह सकती जो उस का खर्चा नहीं उठा सकता. वह कहता है कि देश में इतनी बेरोजगारी है कि उसे अपनी योग्यता के मुताबिक जौब ही नहीं मिल रहा.

वह अपना पक्ष रखते हुए कहता है, ‘‘एमबीए की पढ़ाई करने के बाद कोई 8-10 हजार वाला जौब वह नहीं करना चाहता. यह देखा गया है कि जिस लड़की का बौयफ्रैंड बेरोजगार होता है वह लड़की छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने लग जाती हैं. कई बार वह अपने बेरोजगार बौयफ्रैंड को उस की बेरोजगारी के लिए ताने भी देती है. कई मामलों में लड़कियां ऐसे लड़कों से रिश्ता भी तोड़ लेती हैं. सरकारी जौब की तैयारी कर रहे 22 साल के नवीन का मानना है कि सरकारी जौब पाना आसान नहीं है. वह कहता है, ‘‘उम्मीदवारों की संख्या लाखों में है जबकि सीटें सीमित हैं.’’ नवीन खुद भी सरकारी जौब की रेस का एक हिस्सा है, इसलिए वह अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहता है.

यही कारण है कि वह फिलहाल कोई जौब नहीं कर रहा. शायद इसलिए कोई भी लड़की उस का प्रपोजल ऐक्सैप्ट नहीं करती है. वह कहता है, ‘‘सभी को कमाऊ बौयफ्रैंड चाहिए, बेरोजगार बौयफ्रैंड नहीं.’’ भारत एक युवा प्रधान देश है, जिस में 15 साल से 29 साल के लोगों को युवा माना गया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने ‘यूथ इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट पेश की जिस में 15 से 29 साल के युवाओं की संख्या 27.3 करोड़ है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इस युवा प्रधान देश में ही सब से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं. इस का कारण है कि सरकार अपने विजन को ले कर क्लीयर नहीं है. रोजगार न मिलने की वजह से यूथ डिप्रैस्ड हैं.

बेरोजगार युवा किसी से कौन्फिडैंस से बात नहीं कर पाता. वह सब से कटाकटा रहता है. बेरोजगार युवा रिश्तेदारों के घर आनेजाने से कतराता है. मनन बताता है कि जब कभी भी वह रिश्तेदारों और पड़ोसी के घर जाता है तो बारबार उस से एक ही सवाल पूछा जाता है कि कोई जौब मिली. वह कहता है, ‘ऐसे सवाल का जवाब देदे कर मैं थक गया हूं, इसलिए अब मैं किसी के घर नहीं जाता.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि पकौड़ा तलना भी एक रोजगार है. गृहमंत्री अमित शाह ने भी उन का समर्थन किया. वहीं पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस का कड़ा विरोध किया.

प्रधानमंत्री के दिए इस बयान ने देश के युवाओं के भविष्य को अंधकार में डाल दिया है. क्या वे पढ़ाईलिखाई करने के बाद पकौड़े की दुकान लगाएंगे. अगर यही करना है तो वे पढ़ेलिखे ही क्यों? क्यों वे इतनी मेहनत करें, क्यों वे अपने दिनरात खराब करें, आखिर में तो उन्हें पकौड़े का स्टौल ही लगाना है. विकास कहता है, ‘‘अगर ग्रेजुएशन करने के बाद भी पकौड़े का स्टौल लगाना पड़े तो हमारी पढ़ाई का क्या फायदा? क्या हम ने पकौड़ा तलने के लिए दिनरात मेहनत कर के पढ़ाई की है.’’ वहीं, अगर कालेज स्टूडैंट की बात करें तो डीयू के एसओएल डिपार्टमैंट में पढ़ने वाला विवेक कहता है, ‘‘नेताओं को ऐसे बयान न दे कर के रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पर फोकस करना चाहिए.

यह सरकार अपनी रणनीति में पूरी तरह फेल रही है, लीपापोती करने के लिए कुछ भी कह रही है.’’ 2022 में अपनी ग्रेजुएशन कंपलीट करने वाली आनंदी कहती है, ‘‘मोदी सरकार का ऐसा बयान देना उस की नाकामी को दर्शाता है. हम अपनी योग्यता के अनुसार काम करना चाहते हैं न कि कोई भी काम मिले और हम उसे कर लें.’’ सुधीर मिश्रा का मानना है, इतनी पढ़ाईलिखाई करने के बाद ऐसा काम करना सैल्फ कौन्फिडैंस को चोट पहुंचाता है. सुधीर मिश्रा कहता है कि वह पिछले 9 साल से नोएडा की एक जानीमानी कंपनी में जौब करता आ रहा था लेकिन बेरोजगारी की मार इस तरह गिरी कि कंपनी में कर्मचारियों की छंटाई होने लगी और इस में से एक कर्मचारी वह भी था.

वह बताता है, ‘‘पिछले 3 महीने से हमें सैलरी भी नहीं दी गई है. आम आदमी किस तरह अपना गुजारा करे?’’ अगर यह बात की जाए कि शहर या गांव, कहां ज्यादा बेरोजगारी है तो गांव के मुकाबले शहरों में बेरोजगारी दर ज्यादा है. गांव में जहां 7. 75 प्रतिशत बेरोजगारी दर है वही शहरों में यह दर 8.96 प्रतिशत है. भारत में ग्रेजुएट करीब 86.11 फीसदी, पोस्टग्रेजुएट 12.07, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट वाले 1.01 फीसदी युवा रिसर्च वर्क से जुड़े हैं. इन्हें इन की योग्यता के अनुसार जौब नहीं मिली. अगर ये सभी सड़क पर रेहड़ी लगा कर पकौड़े बेचते दिखें तो यह सरकार के लिए हैरान करने वाली बात नहीं होगी क्योंकि उस के हिसाब से तो यह भी जौब ही है.

ऐसे युवा जिन के पास जौब नहीं है और वे रिलेशनशिप में हैं तो उन के मन में अपने रिलेशन को ले कर हमेशा इनसिक्योरिटी बनी रहती है. उन के मन में हमेशा यह डर रहता है कि कहीं उन की गर्लफ्रैंड उन्हें छोड़ कर न चली जाए क्योंकि वह उन्हें अच्छी और महंगी जगह नहीं ले जा पाते क्योंकि उन के पास इस के खर्च के पैसे नहीं होते. ऐसे लोगों की लाइफ में रोमांस की भी थोड़ी कमी होती है. यही कारण है कि वे हमेशा इस डर में रहते हैं कि कहीं बेरोजगारी उन्हें उन के प्यार से दूर न कर दे. युवकों का मानना है कि बहुत से ऐसे कपल हैं जिन्हें अपनी गर्लफ्रैंड से सिर्फ इसलिए दूर कर दिया जाता है क्योंकि वे बेरोजगार होते हैं. बिहार के रहने वाले पंकज ने अपना एक ट्वीट नीतीश कुमार के नाम लिखते हुए कहा,

‘कुछ ऐसा कीजिए कि कोई भी युवा बेरोजगार न रहे और उस की गर्लफ्रैड उस से दूर न हों.’ पंकज ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सरकारी नौकरी न होने की वजह से उस की गर्लफ्रैंड के पिता ने अपनी बेटी की शादी उस से नहीं कराई. आएदिन ऐसे बहुत से केस आते हैं जिन में पत्नी अपने पति को छोड़ देती है. इस की एक बड़ी वजह पति का बेरोजगार या कंगला होना भी है. लड़की शादी कर के जब अपने पति के घर आती है तो वह यह सोच कर आती है कि उस का पति खर्च उठाएगा, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया जाता है. लेकिन जब उसे यह पता चले कि उस के पति की जौब चली गई है और अब वह बेरोजगार हो गया है, वह खर्च उठाने में अब असमर्थ है तो कई बार कुछ समय तक हैंडल करने के बाद वह अपना संयम खो देती है और अलग होने का फैसला ले लेती है. कोई भी रिलेशन खर्चा जरूर मांगता है.

ऐसे में यह उम्मीद करना कि एक बेरोजगार बौयफ्रैंड के साथ रिश्ता अच्छे से निभाया जा सकता है, यह पूरी तरह से सही नहीं होगा क्योंकि कोई भी लड़की बेरोजगार बौयफ्रैंड नहीं चाहती. वह चाहती है एक ऐसा पार्टनर जिस के साथ उस की यादें जुड़ी हों और ये यादें उन के अलगअलग जगह जाने, वहां मजा करने से बनती हैं. लेकिन समस्या यह कि उन जगहों पर जाने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत होगी और यह पैसा कुछ कमाधमा कर ही आ सकता है. इसलिए लड़के का जौब करना बेहद जरूरी है.

लेखिका- प्रियंका यादव

फेसबुक फ्रैंडशिप : जब सच्चाई से वास्ता पड़ता है तो ये होता है

Yrkkh: अबीर की कस्टडी छोड़ेगा अभिमन्यु, मां को देगा जवाब

सीरियल ये रिश्ता में आए दिन ड्रामा होते रहता है, लेकिन इन दिनों सीरियल में काफी ज्यादा इमोशनल माहौल बना हुआ है , फैंस इस सीरियल को देखने के लिए इसलिए परेशान हैं क्योंकि वह चाहते हैं कि अभि औऱ अक्षरा एक हो जाए.

हालांकि सीरियल में कुछ मोड़ ऐसे आते नजर आ रहे हैं कि दोनों जल्द अपने बेटे की खुशी के लिए एक होने वाले हैं, अभिमन्यु अक्षरा से इन दिनों सबकुछ अच्छे से डिल कर रहा है. अबीर के ऑपरेशन के बाद से अक्षरा और अभिनव दोनों का धन्यवाद करते नजर आ रहे हैं.

 

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सीरियल में दिखाया गया है कि अभिनव चार्ट पेपर देते हुए अभिनव और अक्षरा को बताता है कि इसे क्या खिला सकते हैं और क्या नहीं खिला सकते हैं. इसके बाद अक्षरा अपने बेटे को लेकर कॉलेज पहुंच जाती है, वहीं अबीर कसौली जाने की जिद्द कर बैठता है.

वह कहता है कि एक बार कसौली जाना चाहता है, हांलाकि अबीर की वजह जल्द अभि और अक्षरा एक होने वाले हैं. इऩ दोनों को एक करके मानेगा. अक्षरा और अभिनव का क्या होगा फैंस के लिए ये बड़ा सवाल है.

Shahrukh Khan ने पूरी की कैंसर मरीज की इच्छा, ऐसे दिया सरप्राइज

बॉलीवुड किंग शाहरुख खान अपनी दरियादिली के लिए काफी ज्यादा मशहूर हैं, हाल ही में उन्होंने कछ ऐसा का किया है जिससे फिर से वो चर्चा में आ गए हैं, दरअसल, 60 वर्षीय चक्रवर्ती बंगाल की रहने वाली हैं और वह कैंसर से जूझ रही हैं .

उन्होंने एक टीवी शो के जरिए इच्छा जताया कि वह शाहरुख खान से मिलना चाहती हैं, जिसके बाद से शाहरुख खान के कान तक यह बात पहुंची और उन्होंंने शिवानी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए शाहरुख खान ने वीडियो कॉल पर उनसे बात कि और उन्होंने 30 मिनट तक शिवानी से बात किया.

 

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साथ ही उन्होंने शिवानी की मदद करने की इच्छा जताई, शाहरुख खान का यह वीडियो खूब वायरल हो रहा है. पठान के बाद से शाहरुख खान जल्द जवान फिल्म के जरिए धमाल मचाने वाले हैं. यह फिल्म यसराज बैनर के जरिए बन रही है .

इस फिल्म में किंंग खान स्पेशल अवतार में नजर आएंंगे.फैंस को इस फि्ल्म का काफी ज्यादा इंतजार हैं. बता दें कि शाहरुख खान की फिल्म पठान को लेकर बहुत बाते हुई थी लेकिन फिर भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई थी.

आकाश से भी ऊंचा : भाग 5

शलभ ने जैसे सांत्वना से रानो का मन भर दिया. उस के चेहरे पर चमक आ गई.

इलाहाबाद पहुंच कर शलभ ने किताबें भेज दीं. संजय उन्हें ले कर दे आया और समय पर फौर्म भरवा कर फीस भी जमा कर दी.

शलभ निश्चिंत था कि समय पर रानो परीक्षा देने उस के घर आ कर जरूर ठहरेगी. इस की चर्चा उस ने भाभी से भी कर दी थी, पर यह नहीं बता सका था कि यह सब उसी के प्रयास से हो रहा था. संजय के पत्र का जिक्र किया था कि उस ने ऐसा लिखा है.

समय गुजरता गया. परीक्षाएं शुरू हो कर समाप्त भी हो गईं. न संजय का कोई पत्र आया न रानो ही आई. गुस्से से शलभ का कलेजा जल उठा. सोचने लगा बहुत ही लापरवाह हैं ये लोग. हद कर दी. किसी के रुपए क्या फालतू हैं. क्या जाने रानो के बहनबहनोई ने न आने दिया हो.

शलभ ने कई पत्र संजय के पते से डाले पर सब गोल. उस का मन रातदिन गुस्से से उबलता रहा.

 

गरमी की छुट्टियां फिर आ गई थीं. भाभी बच्चों को ले कर पीहर जाने वाली थीं. संजय लेने आ रहा था. पत्र आया था उस के पिता का. शलभ सोच बैठा था कि हजरत को आड़े हाथों लूंगा. कम से कम पत्रों के उत्तर तो दे देता कि रानो इस कारण परीक्षा में बैठने नहीं आ रही है.

निश्चित समय पर संजय आ धमका. एकांत पाते ही शलभ ने सब से पहले अपनी भड़ास निकाली, ‘‘मैं तुम्हें एक जिम्मेदार लडक़ा समझता था परंतु तुम ने तो हद ही कर दी. एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया. आखिर, तुम रानो को ले कर आए क्यों नहीं.’’

‘‘मैं क्या जानता था कि आप रानो की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठे हैं, नहीं तो परीक्षा देती या न देती उसे ले ही आता,’’ संजय हंस कर बोला.

‘‘यह क्या बकवास है. जब एक काम का बोझ उठाने का वचन दिया तो उसे पूरा क्यों नहीं किया, पहले यह बतलाओ?’’

‘‘अरे छोटे जीजाजी, वहां की हालत भी तो सुनो पहले. पहली बात तो यह है कि मैं ने एक पत्र डाला था.’’

‘‘बिलकुल गलत. मुझे कोई पत्र नहीं मिला,’’ शलभ चिढ़ कर बोला.

‘‘मैं अपनी परीक्षा देने जाने से पहले हमीरपुर गया था. वहीं से रानो के कहने पर उसी के सामने लिख कर पत्र डाला था. न मिले तो क्या करूं.’’

‘‘भई, मुझे तो आज तक कोई पत्र नहीं मिला, तभी तो खीझ रहा हूं. अब कारण बको, क्यों नहीं आई वह.’’

‘‘कोई 5 महीने पहले रानो के जीजाजी का ऐक्सिडैंट हो गया. जांघ की हड्डी टूट गई थी उन की. 2 माह अस्पताल में पड़े रहे. शहर का खर्च नहीं उठा सके तो वैसी ही हालत में गांव लौट आए. पैसा मिला तो दवाइलाज चालू, नहीं तो इलाज बंद. आप की दी हुई किताबें तक बिक गईं. बच्चों की पढ़ाई छूट गई. खानेपीने के लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में कैसी पढ़ाई, कैसी परीक्षा. थोड़ीबहुत मदद मैं कर आया था. घर का मालिक जब मरणासन्न हो, तब और क्या सोचा जा सकता है.’’

यह सुन कर तो शलभ का चेहरा एकदम पीला पड़ गया. उसे अपार वेदना होने लगी.

‘‘बस, एक ही पत्र डाल कर तुम ने छुट्टी पा ली. दूसरा पत्र डाल देते तो क्या तुम्हारा कुछ बिगड़ जाता.’’

‘‘जब एक ही पत्र का उत्तर नहीं आया तब मैं दूसरा कैसे डालता. क्या जानता था कि आप को पत्र नहीं मिला. मैं तो सोचता था कि आप जानबूझ कर उत्तर डकार गए.’’

‘‘बेवकूफ हो तुम. अरे, कम से कम अपनी दीदी को ही कुछ लिख दिया होता, उन्हीं से पता चल जाता,’’ शलभ बोला.

‘‘मैं अपनी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा रहा. फिर परीक्षाएं होते ही घूमने निकल गया उमा दीदी के पास. उन्हें ले कर 8 दिन हुए तब लौटा. फिर यहां दीदी को लेने आ गया. खत लिखने की मेरी आदत ही नहीं,’’ संजय ने बताया.

‘‘जब रानो के जीजाजी की टांग टूटी, तुम दोबारा गए थे.’’

‘‘नहीं, बाबूजी गए थे. वही रुपएपैसे दे आए थे.’’

 

शलभ कुछ क्षण चुपचाप बैठा रहा. संजय देख रहा था कि वह किसी गहरी सोच में डूबा है.

‘‘आजकल वे लोग कहां हैं?’’ शलभ ने पूछा.

‘‘उसी गांव में.’’

‘‘मैं भी देखने जाना चाहता हूं. अभी तो तुम 8-10 दिन रुक कर जाओगे भाभी को ले कर.’’

‘‘हां, 6-7 दिन इलाहाबाद घूमने का इरादा है.’’

‘‘नहीं, तुम्हें लखनऊ घूमने के बहाने हमीरपुर चलना होगा. बोलो, मानोगे मेरी बात?’’

‘‘हां, मानूंगा, पर लखनऊ जाने का बहाना क्यों, सीधे चलिए न.’’

‘‘तुम हो बड़े बुद्धू. सब पूछेंगे नहीं कि क्यों जा रहे हो. मिस्टर, यही तो मैं नहीं चाहता. सच तो यह है कि मैं किसी को यह राज पता नहीं होने देना चाहता कि मैं उन की मदद करना चाहता हूं.’’

‘‘क्यों? वही तो पूछ रहा हूं,’’ संजय ने मुसकरा कर उस की ओर देखा तो क्षणभर को शलभ का चेहरा चमक उठा. वह बोला, ‘‘अब तुम उडऩा सीख गए हो. जो कारण है वह तुम जान तो गए ही हो और अगर नहीं जाने तो कुछ दिनों बाद जान जाओगे. पहले यह बताओ, मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘जरूर दूंगा पर इस राज को छिपाने के लिए मुझे कमीशन देना पड़ेगा.’’

‘‘मुझे मंजूर है, बताओ कितना कमीशन दूं?’’

‘‘मुझे लखनऊ की सैर करा देना, बस.’’

‘‘हम हमीरपुर से लौटते हुए सीधे लखनऊ ही चलेंगे, तब आएंगे यहां.’’

‘‘तब मैं एकदम तैयार हूं.’’

दूसरे दिन वे अपनी योजना के अनुसार रवाना हो गए.

 

भाजपा कर्नाटक से सबक क्यों नहीं सीखना चाहती?

दक्षिण भारत में सत्ता में काबिज रही कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक हार हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी सारे सिद्धांतों को छोड़ कर पूरी ताकत के साथ कर्नाटक में चुनावी अभियान चला रहे थे. एक ऐसा अभियान, जिस में कानून, नैतिकता, धर्म सब की बलि चढ़ा दी गई. चुनाव में बजरंगबली हिंदुओं के इष्टदेव को बीच में ले आना, बजरंगबली के नाम पर मतदाताओं को वोट देने की अपील करना, ऐतिहासिक बता कर के 10 किलोमीटर की रैलियों में जाना और चुनाव आयोग का मुंह बंद हो जाना वगैरह यह सब कर्नाटक में देश ने देखा है. इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी चारों खाने चित हो गई.

आप को याद होगा कि बड़े गर्व के साथ यह कहना कि देश को कांग्रेस से मुक्त कर देंगे. कहने वालों को मुंह की खानी पड़ी और स्थिति यह है कि दक्षिण भारत से भाजपा का सफाया हो गया. बड़ीबड़ी, ऊंचीऊंची बातें करने वालों के लिए यह एक सबक हो सकता है कि कभी भी अपनी जमीन को नहीं छोड़ना चाहिए. मगर सब से बड़ी बात यह है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक की करारी हार के बावजूद अपने रीतिनीति को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं. अभी भी देश की आम जनता को बांटने और भ्रमित करने की अपनी चाल चलने से बाज नहीं आ रहे हैं.

नफरत की दुकान या प्रेम की दुकान

कांग्रेस ने एक बार फिर तथ्यों के साथ आरोप लगाया है, “भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा कर्नाटक में उस के खिलाफ आए निर्णायक फैसले को पचा नहीं पा रही है और वह ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है.”

कांग्रेस ने 13 मई, 2023 को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में 136 विधानसभा सीटों में परचम लहरा कर पूर्ण बहुमत हासिल कर जबरदस्त वापसी की. मगर इस के बाद भारतीय जनता पार्टी को मानो यह सब सहा नहीं जा रहा है और अपने चालचरित्र को उजागर कर रही है, जिस का खुलासा कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने एक ट्वीट में किया, ‘कर्नाटक में समाज के सभी वर्गों से कांग्रेस के पक्ष में निर्णायक फैसले को भाजपा हजम नहीं कर पा रही है और भाजपा की नफरत फैलाने की ‘औनलाइन फैक्टरी’ झूठ पर झूठ फैलाने के लिए ‘दिनरात’ लगी हुई है.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘निस्संदेह यह प्रधानमंत्री की नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति से प्रेरित है.’

कांग्रेस का यह पलटवार भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय की ओर से जारी उस ट्वीट पर किया गया है, जिस में कथिततौर पर कर्नाटक के भटकल में एक व्यक्ति को अर्धचंद्र और तारे वाला हरा झंडा लहराते हुए देखा जा सकता है.

अमित मालवीय ने वीडियो के साथ ट्वीट किया, ‘भटकल कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के तुरंत बाद.’ भाजपा नेता ने एक अन्य ट्वीट में कथिततौर पर बेलगावी का एक वीडियो पोस्ट किया और कहा, ‘बेलगावी में भड़काऊ नारे लगाए गए… पुलिस देखती रही, क्योंकि कांग्रेस कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए तैयार है… भटकल से बेलगावी तक, ‘मोहब्बत की दुकान’ कुछ ऐसे खुल गई है.’

दरअसल, भाजपा नेता अमित मालवीय ने आरोप लगाया, ‘कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति कर्नाटक के सामाजिक तानेबाने को तहसनहस कर देगी.’

राज्य में 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल करते हुए 136 सीट जीतीं, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा नीत जनता दल (सैकुलर) को क्रमशः 66 और 19 सीटें ही मिल पाईं.

कुलमिला कर भाजपा को यह समझना और मानना होगा कि भारत देश की तासीर प्रेम और सद्भाव है. यहां नफरत फैलाने वाले कभी भी सफल नहीं हो पाते हैं. यही कारण है कि हजारों साल से भारत हिंदुस्तान है, भारत है.

पुरुषों में भी बेबी ब्लूज

आमतौर पर यही माना जाता है कि बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं में अजीब सी चिंता, अवसाद, झुंझलाहट और तनाव की अनुभूति होती है, जिसे पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहते हैं. लेकिन समाजशास्त्रियों, मनोविज्ञानियों और व्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि पिता बनने के बाद बहुत सारे पुरुष भी पैनिक अटैक और डिप्रैशन के शिकार हो जाते हैं.

‘पीडिएट्रिक्स जर्नल’ में एक अध्ययन के मुताबिक 25 वर्ष की उम्र के आसपास पिता बनने वाले पुरुषों में शिशु के जन्म के बाद डिप्रैशन बढ़ने के चांस 68 फीसदी ज्यादा होते हैं. अध्ययन के मुखिया डा. क्रैग गारफील्ड कहते हैं, ‘‘बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं की तरह पुरुषों को भी भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है, लेकिन उन की जरूरत को कोई महसूस नहीं करता.’’

उदासी और ऊर्जाहीनता

2 बच्चों के पिता रिकी शेट्टी पिता बनने के बाद अपने जीवन में आए बदलावों से बहुत परेशान हो गए. उन्हें बेहद बुरी भावनात्मक उथलपुथल का सामना करना पड़ा. इस बुरे दौर से उबरने के बाद उन्होंने अपने अनुभवों को उजागर किया और इन पर आधारित एक किताब ही लिख डाली, ‘विजडम फ्रौम डैडीज.’ शेट्टी कहते हैं, ‘‘बहुत सारे युवक पिता बनने के बाद डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी की चपेट में आ जाते हैं. उन्हें कई तरह की चिंताएं सताती हैं जैसे बढ़ी हुई आर्थिक जिम्मेदारियां, उन के वैवाहिक जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव, सैक्स का कम या बिलकुल भी मौका न मिलना, कई प्रकार की अतिरिक्त जिम्मेदारियां और रात को बच्चे की चिल्लपों के कारण ठीक से सो न पाना.’’

‘जर्नल औफ द अमेरिकन मैडिकल ऐसोसिएशन’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सब से ज्यादा डिप्रैशन 3 से 6 महीने के नवजात शिशु के पिताओं में पाया जाता है. बच्चे के आगमन के बाद इन्हें अपना महत्त्व कम होता लगता है, क्योंकि पत्नी की दिलचस्पी इन में घट जाती है. इस दौर में वे हर वक्त रात को नींद पूरी न होने, थकान, उदासी और ऊर्जाहीनता की शिकायत करते हैं.

लाइफस्टाइल में बदलाव

फोर्टिस अस्पताल, कोलकाता के मनोविज्ञानी संजय गर्ग कहते हैं, ‘‘आजकल एकल परिवारों का जमाना है. इसलिए बच्चे को संभालने के लिए दादी, बूआ, ताई या चाची तो होती नहीं, न ही जरूरत पड़ने पर डाक्टर वगैरह के पास जाने के लिए घर में कोई दूसरा पुरुष होता है. ऐसे में सारी जिम्मेदारी पतिपत्नी को ही निभानी पड़ती है और इस से उन की आजादी और मस्ती पूरी तरह छिन जाती है. युवा दंपती अचानक आए इस दबाव से घबरा जाते हैं और भावनात्मक रूप से परेशान हो जाते हैं.’’

डा. संजय गर्ग बताते हैं कि जब भी कोई पुरुष पहली बार पिता बनता है, तो उस की जिंदगी पूरी तरह बदलने लगती है. इस की वजह यह है कि एक तो साल 2 साल पूर्व ही पत्नी के रूप में उस पर निर्भर रहने वाला एक व्यक्ति उस की जिंदगी में आ चुका होता है, फिर जल्द ही ऐसा दूसरा इनसान भी संतान के रूप में आ जाता है. इस से पति का खुद पर बढ़ती जिम्मेदारियों और खर्चों से चिंतित होना स्वाभाविक बात है. 3 महीने पहले ही पिता बने नीतेश अग्रवाल कहते हैं, ‘‘बच्चे के आने से पहले मन में बड़ा रोमांच था. पहली बार मुझे कोई पापा और मेरी पत्नी को मम्मी बोलने वाला होगा, यह सोच कर ही मन खुशी के 7वें आसमान पर था. हम दोनों रोज होने वाले बच्चे के नामकरण पर चर्चा करते, उस के बारे में तरहतरह की प्लानिंग करते. लेकिन जैसे ही मेरे बेटे का जन्म हुआ, मेरा लाइफस्टाइल ही बदल गया. पत्नी को मेरे होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. दिन भर बेटे की केयर करती है. कभी चाइल्ड स्पैशलिस्ट के पास ले कर जाते हैं, तो 2-3 घंटे इसी में खत्म हो जाते हैं. कभी ये लाओ, कभी वह लाओ, सचमुच दिमाग भन्ना जाता है.’’ व्यवहार विशेषज्ञ और काउंसलर रेखा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘अगर किसी पुरुष की जिंदगी में विवाह एक महत्त्वपूर्ण घटना है तो पिता बनना उस से भी बड़ी घटना है. पिता बनने के बाद वे स्ट्रैस के उस दौर से गुजरते हैं, जिस के लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते. पिता बनने के बाद जब परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं, तो पुरुषों को सब कुछ अपने हाथ से निकलता नजर आता है और वे तेजी से डिप्रैशन की स्थिति में चले जाते हैं.’’

इमोशनल स्विंग

गाइनोकोलौजिस्ट डा. स्मिता गुटगुटिया बताती हैं, ‘‘पुरुषों में पोस्टपार्टम डिप्रैशन की मूल वजह है उन के हारमोंस में परिवर्तन. उन में दबाव के कारण टेस्टोस्टेरौन लैवल गिर जाता है, जबकि ऐस्ट्रोजन, प्रोलैक्टिन और कोर्टिसोल का लैवल बढ़ जाता है. इस से उन में स्ट्रैस की समस्या हो जाती है.’’ ‘कमांडो डैड रौ रिक्रुइट्स’ के लेखक नील सिंक्लेयर कहते हैं, ‘‘कमांडो के रूप में मैं ने खाड़ी युद्घ में जांबाजी के साथ मोरचा संभाला, लेकिन पिता बनना मेरे जीवन का सब से तनाव देने वाला वक्त रहा. माना कि मैं अपने बच्चे से बेइंतहा प्यार करता था, लेकिन पता नहीं क्यों एकक अनजानी चिंता मुझे सताती थी. मुझे लगता था कि नई सिचुएशन को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रहा और इस स्थिति में खुद को सैटल नहीं कर पा रहा. मुश्किल यह है कि पुरुषों को हर कोई स्ट्रौंग समझता है, इसलिए न तो उन की मनोस्थिति को महसूस करता है, न ही उन्हें किसी प्रकार की सपोर्ट देता है.’’

मनोविज्ञानी, अमरनाथ मलिक कहते हैं कि पुरुषों में यह डिप्रैशन लगातार उदासी या ऐंग्जाइटी के रूप में नहीं होता, बल्कि एक प्रकार का इमोशनल स्विंग होता है, जो अचानक बहुत खुशी की स्थिति से बहुत उदासी की स्थिति में बदल जाता है. समाजशास्त्री, रेखा श्रीवास्तव बताती हैं कि पुरुषों में पोस्टपार्टम स्ट्रैस की एक बड़ी वजह यह भी है कि हर कोई उन से एक अच्छा पति और पिता होने की उम्मीद रखता है. आजकल के पापा ऐसा काम भी करते हैं, जिन्हें करने की पहले सिर्फ मम्मियों से उम्मीद की जाती थी. जैसे नैपी बदलना, बच्चे को बोतल से दूध पिलाना, टीका लगवा कर लाना आदि.

‘न्यू डैड्स सर्वाइवल गाइड’ के लेखक रोब कैंप कहते हैं, ‘‘हम औफिस वर्क और पापा बनने के बाद घरेलू कामों की डिमांड के बीच संतुलन बनाना सीख रहे हैं. ज्यादातर युवा घर में पत्नी के सहायक और एक अच्छे पिता बनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं, फिर भी वे जब वांछित उत्साहवर्द्धन नहीं पाते या आत्मसंतुष्टि महसूस नहीं करते तो डिप्रैशन स्वाभाविक है.’’

क्या करें नए डैडी

भले ही प्रैगनैंसी को महिलाओं का मामला माना जाता हो, लेकिन यह पुरुष और महिला की सम्मिलित जिम्मेदारी होती है. इसलिए जैसे महिलाएं एक सफल और जिम्मेदार मां बनने के लिए तत्पर रहती हैं ठीक उसी प्रकार पुरुषों को भी एक सफल, समझदार और जिम्मेदार डैडी बनने के लिए निम्न बातों पर अमल करना चाहिए: – परिवार के सदस्यों, मित्रों और सहयोगियों से बातचीत करें. उन से भावनात्मक सहयोग लें व कुछ कार्यों में भी हाथ बंटाने की मदद मांगें.

– स्ट्रैस महसूस हो, तो मनोविज्ञानी की मदद लेने में न हिचकें.

– मन में किसी प्रकार का अपराधबोध महसूस न करें. धीरेधीरे खुद को नई भूमिका में ऐडजस्ट करने की कोशिश करें.

– पलायन करने के बजाय अपने कर्तव्य का पालन करें.

लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रैशन के

आप बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं या किसी भी बात से चिढ़ जाते हैं.

अपनी पत्नी और बच्चे से दूर जाने के बहाने ढूंढ़ते हैं.

पहले से ज्यादा स्मोकिंग और ड्रिंकिंग करने लगे हैं.

कभी अपने बच्चे को देख कर खूब इमोशनल हो जाते हैं और उसे चूमतेदुलारते हैं और कभी अचानक चिढ़ कर उस से दूर हो जाते हैं.

जानबूझ कर औफिस से लेट आते हैं या दूसरे शहर में जाने का असाइनमैंट खोजते हैं ताकि घर पर न रहना पड़े.

मैं 25 वर्षीय लड़की हूं, मेरे ऑफिस का लड़का मुझे अच्छा लगने लगा है, मैं कैसे समझूं , वह मुझे पसंद करता है कि नहीं?

सवाल

मेरी उम्र 25 साल है, प्राइवेट जौब करती हूं,औफिस में एक लड़का है जो मुझे अच्छा लगने लगा है, यहां तक कि मैं अब रातदिन उस के बारे में सोचने लगी हूं. औफिस में मेरी निगाहें उसे ढूंढ़ती रहती हैं. मुझे नहीं पता कि उस के दिल में मेरे लिए कैसी फीलिंग्स हैं, हैं भी या नहीं क्योंकि हमारा आई कौंटैक्ट तो होता है और जब उसे देखती हूं तो उस की आंखों में मेरे लिए प्यार मैं महसूस करती हूं लेकिन इस से ज्यादा कुछ नहीं. उस ने खुद आगे बढ़ कर मुझे से बात करने की कोशिश नहीं की है. मुझे समझ नहीं आता कि उस का काम दूसरे फ्लोर पर है और मेरा फर्स्ट फ्लोर पर, कैसे बात शुरू करूं.

हमारे डिपार्टमैंट का उस के डिपार्टमैंट से कोई लेनादेना भी नहीं है. सोचती हूं मैं ही आगे बढ़ कर उस से बात करने की कोशिश करूं. लेकिन डरती हूं कि उस ने बात करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी. मुझे यह भी तो नहीं पता कि उस की औलरेडी कोई गर्लफ्रैंड तो नहीं है. देखने में बहुत स्मार्ट है तो चांसेस बढ़ जाते हैं कि गर्लफ्रैंड होगी. ऐसे में मेरा बात करना कोई माने नहीं रखेगा. बहुत परेशान हूं. मन को समझाती हूं कि शांत रहे. आप ही बताएं क्या करूं?

जवाब

यह प्यार भी बहुत अजीब होता है. हो जाए और सामने वाले को इजहार न कर पाएं तो जीना मुश्किल कर देता है. आप का दिल उस लड़के पर आ गया है और उस की ओर से कोई पहल नहीं हो रही तो अब कोशिश आप को करनी होगी. लड़के ही हर बार पहल करें, यह जरूरी नहीं. अब आप को ही जीजान लगानी पड़ेगी जांचपड़ताल करने में. जी हां, सब से पहले आप को पता करना है कि उस लड़के की कोई गर्लफ्रैंड तो नहीं. अगर है तो आप को आगे कदम उठाने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि दो प्यार करने वालों के बीच में पड़ना बेवकूफी होगी. हां, यदि नहीं है तो बात आगे बढ़ाते हैं. आप को कोई न कोई तिकड़म लगा कर उस लड़के से बात करनी होगी. बस, एक बार बात हो जाए तो उसे अपनी तरफ अट्रैक्ट करने की कोशिश करनी होगी. उसे आप में जरा भी इंट्रैस्ट होगा तो वह भी अपना कदम आगे जरूर बढ़ाएगा. अगर आप देखती हैं कि आप की कोशिशों के बावजूद वह आप पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा तो उस लड़के पर अपना वक्त बरबाद मत कीजिए. सम?ा लीजिए उसे आप में कोई रुचि नहीं. अपनी फीलिंग्स ऐसे लड़के पर खर्च मत कीजिए जिसे आप में रुचि नहीं. ऐसे में उसे इग्नोर करने में ही समझदारी है.

कर्नाटक में बजरंग दल

कर्नाटक में चुनावी महाभारत पर विजय हासिल करने के बावजूद कांग्रेस इस बात से परेशान है कि उस के चुनावी घोषणापत्र में मुसलिम समर्थक प्रोग्रैसिव फ्रंट औफ इंडिया व हिंदू समर्थक बजरंग दल पर कंट्रोल करने का वादा उसे कट्टर हिंदू वोटों का नुकसान न करा दे. ऐसा वादा करना अपनेआप में बहुत साहसी बात है. कांग्रेस, हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से हिंदूहिंदू हवा में बहने लगी थी और उस के ब्राह्मण पूजापाठी नेता (जिन की कांग्रेस में कमी नहीं है) मंदिरों, मठों, स्वामियों, मूर्तियों, घाटों पर अपनी श्रद्धा दर्शाने लगे थे.

इस कांग्रेसी रुख को नरम हिंदुत्व कहा जा रहा था जबकि इस से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिल रहा था. भारतीय जनता पार्टी इस का फायदा उठा रही थी क्योंकि वह नरम को नहीं बल्कि कट्टर हिंदुत्व को देश के हित में कहती रहती है. कांग्रेसी मतदाता इस नकली हिंदुत्व से असल में खिन्न हो रहे थे.

इस देश में पूजापाठ चाहे फैक्ट्री, दुकान, खेत, दफ्तर में काम करने से ज्यादा प्राथमिकता पाता हो, यह पक्का है कि हर आम आदमी की तार्किक बुद्धि यही कहती है कि पूजापाठ से न अनाज उगेगा, न कपड़ा बनेगा, न दवा तैयार होगी, न स्कूल खुलेंगे, न मकान बनेंगे आदि.

आम हिंदू को यह भी मालूम रहता है कि वह कुछ खास मंदिरों में ही जा सकता है क्योंकि पंडितों ने हर हिंदू को अपना अलग देवी, देवता, मंदिर जाति या उपजाति के हिसाब से दे रखा है. बजरंगी अगर खुद को हनुमान कहते हैं तो यह जानना जरूरी है कि हर जाति का मुख्य देवता हनुमान नहीं है. दलितों और पिछड़ों की बहुत सी जातियों को परेशान करने में बजरंग दल के लोग ही आगे आते हैं. बजरंग दल वालों ने सत्ता में बैठे लोगों से सीधे संबंध जोड़ रखे हैं क्योंकि ये ही चुनाव में बूथ मैनेजमैंट करते हैं और ये ही राजनेता के शहर में आने पर भीड़ जुटाते हैं. कमाई के लिए ये मुसलमानों को अगर धमकाते हैं तो हिंदुओं, चाहे वे किसी जाति के हों, से चंदा वसूलते हैं.

बजरंग दल में सिर पर पट्टा बांधे, हाथ में डंडा लिए जो घरों से बेजार, बेकार युवा दिखते हैं, वे समाज के किसी काम के नहीं हैं. वे न सडक़ों की सफाई करते हैं, न ट्रैफिक कंट्रोल करने में सहायता देते हैं, न बाढ़ या आपदा में आगे आ कर सहायता करते हैं, न स्कूल चलाते हैं. वे हिंदू लड़कियों को संस्कार सिखाने के बहाने उन की ड्रैस पर कमैंट करते हैं और उन से मारपीट तक कर डालते हैं. वैलेंटाइन डे पर वे सब से ज्यादा सक्रिय रहते हैं.

दलितों से बजरंग दल वाले काम कराने में आगे रहते हैं पर उन्हें गरीबी के जंजाल से निकालने के लिए कुछ नहीं करते क्योंकि वे खुद गरीब घरों से आते हैं. पार्टी के अमीर नेताओं के बेटे बजरंग दल में रातदिन सडक़ों पर गायों को लाने व ले जाने वालों के पास खड़े नहीं होते. उन का काम तोडफ़ोड़ का है.

कांग्रेस ने उन का नाम ले कर हिम्मत दिखाई है और उस की कर्नाटक ईकाई में जिस ने भी घोषणापत्र लिखा वह काबिलेतारीफ है कि उस ने पूरे माफिया बने त्रिशूलधारी बजरंगियों को साफ़साफ़ हथियारधारी कह दिया है.

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