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ऐतिहासिक कहानी- भाग 3 : राजा और नर्तकी की प्रेम कथा

पंडितजी की दृष्टि नूरी की दृष्टि से जा टकराई, मानो वह आगे कहने की इजाजत मांग रहे हों. नूरी ने भी आंखें झुका कर के मानो पंडितजी को अपनी ओर से अनुमति दे दी. पंडितजी ने कहा, “तो सुनिए, नजरें झुकी रहीं तो रही अंजुमन खामोश,

नजरें जब उठ गईं तो हजारों बहक गए.”

नूरी इस शेर पर शरमा कर रह गई. उस के मुख पर लज्जा की रक्तिम आभा फैल गई. बड़ीबड़ी कजरारी नयनों वाली नूरी के नेत्र झुक गए. माथे पर शोभित शीर्ष फूल भी खुशी में माथे को छोड़ कर झूम उठा. गुलाबी रसीले अधरों के बीच दंतपंक्ति दमक उठी और लोग चिल्ला उठे, “वाह पंडितजी, क्या शेर है? गजब के खयालात हैं. हर शेर अपने में लाजवाब. अब आगे

फरमाइए.”

पंडितजी ने नूरी की तरफ हंसती हुई आंखों से देखा और कहा, “बेगम साहिबा, कहने की इजाजत है?”

नूरी की नजरें उठीं. पंडितजी ने रतनारी नयन सीपियों में झांक कर देखा. वे सिहर उठे. नूरी ने बड़ी ही शालीनतापूर्वक उत्तर दिया, “कहिए.”

पंडितजी ने महफिल को संबोधित करते हुए कहा, “जरा इस आखिरी शेर पर खास तौर से गौर फरमाएं.”

सामूहिक आवाज गूंज उठी, “जरूरजरूर, अर्ज करें.”

पंडितजी ने शेर पढ़ा, “उस के नूरे जिस्म की, रौनक को क्या कहें, निकला न आफताब, परंदे चहक गए. ऐसी चली बयार कि गुलशन महक गए.”

पूरा कक्ष गूंज उठा, “क्या बात है? वाह खूब. कमाल है पंडितजी. क्या नई सोच है? क्या अंदाजे बयां है. सुभान अल्लाह.” वगैरहवगैरह.

नूरी की खाला, जो अभी तक शांत बैठी थी, अपनी नूरी की इस प्रकार की प्रशंसा सुन कर बागबाग हो उठी. उस के मुंह से भी निकला, “वाह पंडितजी, वाह! इस शेर ने तो बड़ेबड़े शायरों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.”

इतना कहते ही उस ने दोनों हाथों से नूरी की बलैयां लीं. पंडितजी की तरफ से उस के दिल में दिली हमदर्दी और अपनेपन का अंकुर शायद उसी समय निकला था और नूरी तो जैसे लाज की गठरी बन कर सिमट कर रह गई. उस की चुनरी के बेजान सलमासितारे मुसकरा उठे. गर्व से वक्ष उन्नत हो उठा. पूरी देह में सिहरन का एक कंपन सा हुआ. उस क्षणिक कंपन में पैरों में

बंधे घुंघरू भी झंकृत हो उठे.

धानी सलवार और पायजामा सिहरन में दामिनी की भांति चमक उठे. कुछ देर बाद वातावरण शांत हो गया. लोगों की नजरें अब नूरी पर उठीं और केंद्रित हो गईं और उस रात के बाद तो फिर…

नूरी और पंडितजी का एकदूसरे के प्रति समर्पण बढ़ता ही गया. महफिल में हर रात जवान होती और एकांत में वे दोनों एकाकार होते. एक रात ऐसी भी आई, जब उन दोनों के प्यार की निशानी नूरी के पेट में आ गई. जब पंडितजी को यह मालूम पड़ा, तो वे बहुत दुखी हो गए. क्योंकि उन्हें बदनामी का भय था. इसलिए उन्होंने नूरी को बहुत समझाया कि वह उस निशानी को गिरा दे.

लेकिन नूरी इस पर तैयार नहीं हुई. पर पंडितजी ने उस से यह आश्वासन अवश्य लिया कि होने वाली संतान, पिता के नाम पर गुमनाम अंधेरी जिंदगी में ही जिएगी और कभी भी उस के मुंह से पिता के नाम पंडित शिवनारायण मिश्र का नाम नहीं निकलेगा.

नूरी नर्तकी नहीं बनाना चाहती थी बेटी रसकपूर को

नूरी ने कलेजे पर पत्थर रख कर यह शर्त स्वीकार कर ली. उस के ऊपर पंडितजी के प्यार की निशानी का कुछ ऐसा मोहजाल छा गया था कि वह अपना भविष्य ही भूल गई. क्योंकि जमाना कभी यह नहीं चाहता है कि एक नर्तकी कभी मां बने. उस के दिल में ममता का दीप जले. उस के स्तनों में दूध जन्म ले. उस के आंगन में कभी किसी शिशु की किलकारी या उस के नन्हेंनन्हें पैरों में बंधी पायल के घुंघरुओं की झंकार गूंजे.

पर जो जमाना नहीं चाहता है, नर्तकी के दीवाने नहीं चाहते हैं, वही हुआ. नूरी बेगम ने एक कन्या को जन्म दिया, श्वेत रूई सी कोमल. नूरी प्रसन्न हो उठी, लेकिन पंडित शिवनारायण की छाती पर मानो सांप लोट गया. नूरी के चहेतों पर मानो गाज गिर गई. उन्हें ऐसा लगा, जैसे कि नूरी ने सब के अरमानों का गला घोंट कर बहुत बड़ा कोई अपराध किया हो. और अपराध

की सजा नूरी को धीरेधीरे कटे हुए जख्म पर नमक छिडक़ने जैसी मिलती ही गई.

उस की साख गिरती ही गई. महफिल से उस के चाहने वाले एकएक कर के वृक्ष से झडऩे वाले पत्तों की तरह कटते चले गए.

बहारें खिजां बन के रह गईं. रंगीनियां बदनसीबी के आलम में डूब गईं. महफिल के ठहाकों और फिकरेबाजी का दौर कम हो गया. जयपुर की सर्वश्रेष्ठ नूरी एक साधारण नर्तकी के रूप में रह गई.

नवजात कन्या का नाम रखा गया रसकपूर. पंडित शिवनारायण मिश्र ने यह नाम इसलिए सोच कर रखा कि कपूर में शीतलता और दर्द नाशिनी शक्ति दोनों ही हैं. साथ में देवीदेवताओं की आरती उतारने के लिए एक पवित्र वस्तु है. लेकिन उन्होंने शायद कभी यह नहीं सोचा होगा कि रसकपूर पारे से निर्मित वह औषधि भी होती है, जिस से कामोत्तेजक शक्ति के साथसाथ असावधानी हो जाने पर वही रसकपूर भयंकर विष भी बन जाता है.

रसकपूर के जीवन में भी यही सब घटित हुआ. नूरी के प्यार के साए में रसकपूर पलनेबढऩे लगी. रसकपूर का बचपन इसी हवेली में ठुमकतेठुमकते बीता. जैसेजैसे वह उम्र की सीढ़ी पर एकएक वर्ष कर के चढ़ती गई, वैसे ही वैसे उस के रूप का निखार सूर्य की आभा की भांति बढ़ता गया. किशोरावस्था तक पहुंचतेपहुंचते उस के अंगप्रत्यंगों से अनिंद्य रूप गर्विता बनने

के लक्षण स्पष्ट दिखने लगे.

नूरी व पंडितजी दोनों ही उस के अप्रतिम रूपलावण्य और सुकुमारता से मन ही मन बहुत प्रसन्न थे. लेकिन दोनों की मनोस्थिति में भिन्नता थी. नूरी ने जहां अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि उस की रसकपूर बड़े होने पर पैरों में घुंघरू नहीं बांधेगी. वह अपनी मां की भांति तवायफ नहीं कहलवाएगी, लेकिन दूसरी ओर पंडितजी कुछ और ही सोचा करते

थे, जो नूरी की समझ से परे था.

पंडितजी ने कुछ और ही सोच रखा था बेटी रसकपूर के लिए

पंडितजी नूरी के कहने पर यही समझाते कि भले ही हम समाज के सामने अपने को रसकपूर का पिता न कहें, लेकिन आखिर मैं उस का पिता तो हूं ही और कोई भी पिता अपनी औलाद का अहित नहीं सोचता है.

“तो फिर आप का हित रसकपूर के पैरों में घुंघरू बांध कर महफिलों में नचा कर धन कमाने में ही है क्या?”

“नहीं, बिलकुल नहीं. लेकिन अर्जुन की तरह हमारा एक ही लक्ष्य है कि मेरी रसकपूर किसी राजमहल की महारानी बने.”

“आप तो आसमान के तारे तोडऩा चाह रहे हैं, जो जीवन में कभी भी संभव नहीं है और फिर एक तवायफ या नाचनेगाने वाली की बेटी के लिए.”

“नूर, सौंदर्य के आगे तो विश्वामित्र जैसे का तप भंग हो सकता है. मेनका भी तो वही थी, जो तुम हो. केवल अंतर स्वर्ग और मृत्युलोक का है. मेनका स्वर्ग की अप्सरा थी और तुम आज के युग में जयपुर जैसी रंगीन शामों व रातों वाले नगर की अप्सरा हो. फिर हमारी रसकपूर का तो कहना ही क्या है. शायद तुम ने कभी उस के सौंदर्य को आत्मा की गहराई में जा कर न समझा

है और न ही परखा है.”

“दुनिया में सौंदर्य की क्या कमी है? यह तो विधाता की देन है. रसकपूर से भी बढ़ कर भी तो कोई और सौंदर्य की देवी हो सकती है.”

“नहीं. विश्वास के साथ कह सकता हूं कि रसकपूर की रतनारी नयन सीपियों में ऐसे लगता है जैसे मोतियों का ढेर एक साथ समा गया हो. पुतलियां जैसे काले घुमड़ते मेघ हैं, जिन से जल के स्थान पर मद की वर्षा होती है और बरौनियां जैसे समुद्र की हिलोरें. निश्चय है कि एक बार अगर जयपुर नरेश महाराजा जगत सिंह भी इन हिलोरों की भंवर में कहीं फंस जाएं तो उन

का निकलना भी कठिन हो जाएगा. मेरे तीर का निशाना बस यही है नूर. लेकिन इस में तुम्हें बस मेरे तीरों के लिए धनुष बनना पड़ेगा.”

 

“मतलब क्या है? साफसाफ कहिए.”

“यही कि रसकपूर को नृत्य और गायन में ऐसी निपुणता हासिल हो जाए कि वह तुम्हें भी कोसों पीछे छोड़ दे.”

“आप अपनी औलाद को नाचते हुए देखना पसंद करेंगे और वह भी महफिलों में?”

“नृत्य और महफिल दोनों अलगअलग तथ्य हैं, अलग-अलग पहलू हैं. नृत्य और गायन कलाएं हैं और कलाएं भी सामान्य कलाएं नहीं, बल्कि ललित कलाओं के नाम पर जहां एक ओर नृत्य नटराज शिव का प्रसाद है, वहीं दूसरी ओर गायन मां सरस्वती की कृपा है. नृत्य और गायन दोनों में ही लय है. लय में ही रागात्मकता है. रागात्मकता में ही असीम प्रेम की अनुभूति है. उस अनुभूति में ही सम्मोहन है. उस सम्मोहन में ही आत्मा का आनंद है और आत्मा का आनंद ही जीवन का सच्चा सुख है, जीवन का सच्चा आनंद परमानंद है.

“रही बात महफिल की, वह तो एक कसौटी है, जिस पर नर्तन और गायन की गुणवत्ता कसी जाती है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी रसकपूर नृत्य और गायन कला में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करेगी और जिस दिन वह मेरे लक्ष्य प्राप्ति में सफल हो जाएगी, उस दिन मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा.

“मैं अपने को परम भाग्यशाली समझूंगा. उस दिन संभव है कि मैं बड़े गर्व से कह सकूं कि रसकपूर एक तवायफ या नर्तकी की बेटी नहीं, बल्कि पंडित शिवनारायण मिश्र की बेटी है. उस दिन भले ही मेरे ऊपर तिरस्कार और बदनामी के हृदयभेदी बाण चलाए जाएं, मैं उन सब की पीड़ा खुशी से सहन कर लूंगा, क्योंकि मुझे अपने लक्ष्य में सफलता पाने का गर्व होगा.”

इस के बाद वह समय भी आ गया, जब नूरी ने अपने पंडितजी की इच्छा पूरी करने के लिए अपने भावी भविष्य की सुखद कल्पनाओं के संसार को अपने ही हाथों छिन्नभिन्न कर दिया. अपनी सुखद आशाओं को कच्चे धागे की तरह तोड़ कर रख दिया.

नूरी ने अपने हृदय को भर लिया एक असहनीय मर्मांतक वेदना से, जिस को सहने के लिए उस ने घुटघुट कर जीना स्वीकार कर लिया.

नृत्य और गायन में पारंगत हो गई रसकपूर

जीवन की शतरंजी चाल में पंडित शिवनारायण मिश्र की जीत हुई. रसकपूर के पैरों में नूरी के न चाहते हुए भी घुंघरू आखिरकार बंध ही गए और उन घुंघरुओं की झंकार में नूरी को रसकपूर की ओर से भावी भयंकर अट्ïटहास की भयानकता सुनाई पडऩे लगी. रसकपूर को नूरी के पुराने उस्ताद रहमत खां और गुरु बृजनिधि के शिष्यत्व में सौंप दिया गया.

उस्ताद रहमत खां ने उसे शास्त्रीय संगीत में पारंगत बनाया, वहीं गुरु बृजनिधि ने कत्थक में उसे शिक्षा दे कर पारंगत बना दिया. रसकपूर को वीणा, सितार वादन के साथसाथ शास्त्रीय गायन की विधिवत शिक्षा उस्ताद रहमत खां ने दे कर दक्ष बना दिया. रसकपूर ने अपनी अटूट लगन, अनवरत साधना, अथक परिश्रम से जल्दी ही एक श्रेष्ठतम गायिका और नृत्यांगना के

रूप में अपने दोनों गुरुओं का शुभ आशीर्वाद प्राप्त कर लिया.

उस के कंठ से गायन के नाम पर रागों की परिपक्वता और अविरल मिठास के साथसाथ नृत्य में घुंघरुओं की स्वरलहरी में किसी सरिता के प्रवाह जैसी निश्छलता, मधुरता एवं मनमोहकता थी. उस के पैरों की थिरकन में बिजली जैसी चपलता की चर्चा कांचमहल की रंगीन दीवारों से एक मादक गंध की भांति निकल कर, नगर के कलावंतों और रसिकों के कानों तक पहुंच

गई.

वे लालयित हो उठे, उस की अनूठी रूपराशि को देखने के लिए. उस के नृत्य व संगीत का असीम आनंद प्राप्त करने के लिए, लेकिन यौवन की दहलीज की ओर कोमल कदम बढ़ाती हुई रसकपूर को देखना उतना ही असंभव था.

उस समय जयपुर के महाराजा जगत सिंह द्वितीय थे. सवाई प्रताप सिंह के बेटे सवाई जगतसिंह ने 15 वर्षों तक शासन (1803-1818) किया. कच्छवाहों की गौरवशाली पंक्ति में सब से अभागा शासक जगत सिंह द्वितीय, एक राजा के रूप में नहीं बल्कि एक प्रेमी और लापरवाह बांका के रूप में याद किए जाते हैं.

 

मेवाड़ की राजकुमारी कृष्णा कुमारी, जो एक प्रसिद्ध सुंदरी थी, का हाथ जीतने के लिए जोधपुर के राजा के खिलाफ एक सेना का नेतृत्व करने में संकोच नहीं किया. यह एक दु:खद असफलता में समाप्त हुआ, जब राजकुमारी कृष्णा कुमारी ने आत्महत्या कर ली.

राजा जगह सिंह ने रसकपूर को सभी रानियों से ज्यादा दिया प्यार

जगत सिंह की 21 रानियां और 24 रखैलें थीं. जगत सिंह बाद में असाधारण सुंदरता और मधुर आवाज वाली रसकपूर, जो एक नर्तकी थी और तवायफ व नर्तकी नूरी बेगम की पुत्री थी. पहली नजर में ही आसक्त हो गए. रसकपूर का नृत्य देखने के बाद महाराजा जगत सिंह उसे पाने को मचल उठे.

जगत सिंह को रसकपूर के आगे अपनी 21 रानियां और 24 रखैलें फीकी लगने लगीं. उसे जगत सिंह ने इतना मानसम्मान व प्यार दिया कि वह भी जगत सिंह की दीवानी बन गई. जगत सिंह और रसकपूर रास रचाने लगे.

रसकपूर के रूप पर महाराजा इतने मुग्ध हुए कि वह कई दिनों तक उस की आगोश में दिनरात पड़े रहते थे. यह सब रानियों व राजपूत सरदारों को बहुत अखर रहा था, मगर वे करते भी तो क्या. राजा जगत सिंह पर रसकपूर का जादू इस कदर छाया था कि राजकाज भूल कर उसी के मोहपाश में बंध गए.

रसकपूर ने नृत्य व गायन सीखने के बाद दरबार की संगीत महफिलों में जाना शुरू किया. जगत सिंह ने रसकपूर को महफिल में पहली बार देखा और वे उस की अनुपम सुंदरता पर मर मिटे. एक समय ऐसा आया, जब रसकपूर जो कहती, वही रियासत में होता. वह महाराजा के साथ सिंहासन पर दरबार में बैठने लगी और उसे सामंतों की जागीरी के फैसले करने का अधिकार मिल गया.

महाराजा जगत सिंह ने अपने जन्मदिन पर रसकपूर के लिए हवामहल में रस विलास महल भी बनवा दिया. महाराजा ने लोकनिंदा की परवाह नहीं की और प्रेयसी रसकपूर को अपने साथ हाथी के हौदे पर बिठा कर नगर में फाग खेलने (होली खेलने) निकल गए. इतना ही नहीं महाराजा ने रसकपूर को आधा राज्य भी दे दिया.

यह सब देख कर रानियों ने सामंतों से कहा कि वे या तो रसकपूर का इलाज करें या फिर चूडिय़ां पहन लें. तब विश्वस्त सामंतों ने एक रोज मौका पा कर रसकपूर पर कई तरह के आरोप लगा कर उसे जगत सिंह की अनुपस्थिति में नाहरगढ़ किले में कैद करवा दिया.

वर्ष 1818 में अंग्रेजों से संधि के बाद जगत सिंह को दुश्मनों ने षडयंत्र रच कर जहर दे कर हत्या करवा दी. जगत सिंह की मृत्यु की खबर रसकपूर को मिली तो वह वेश बदल कर नाहरगढ़ किले से निकल भागी और गेटोर श्मशान में जगत सिंह की धधकती चिता में कूद गई.

रसकपूर एक तवायफ की संतान जरूर थी. मगर वह राजा जगत सिंह का प्यार पा कर निहाल हो उठी थी. भले ही राजा ने रसकपूर को पत्नी का दरजा नहीं दिया था, मगर वह उन की सच्ची प्रेमिका थी. यह उस ने राजा जगत सिंह की जलती चिता में कूद कर प्राण दे कर साबित कर दिया.

जयपुर के जौहरी बाजार का कांचमहल आज भी रसकपूर की याद ताजा कर देता है. इस प्रेमकथा का अंत इतना भयानक हुआ कि उस समय के लोगों की रूह कांप गई थी. आज भी यह कहानी सुनने वाले सहम जाते हैं.

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के नोट बंदी का जिन्न

आठ नवंबर 2016 की ऐतिहासिक नोट बंदी के ठीक साढ़े छह साल बाद अब “दो हजार के नोटों” को चलन से हटाने की घोषणा अबकी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने नहीं बल्कि सरकार के निर्देशानुसार भारतीय रिजर्व बैंक ने की है. जिससे एक बार फिर देश में सन्नाटा पसर गया है और लोग नोट बंदी को लेकर के कयास लगाने लगे हैं.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि नोटबंदी का चक्रव्यूह बुनकर के नरेंद्र मोदी ही उसमें बुरी तरह फस गए हैं और जितनी आलोचना नोटबंदी को लेकर के नरेंद्र मोदी की हुई है कि अब संभवत उन्हें भी साहस नहीं है कि सामने आकर स्वयं इसकी घोषणा करते, इसके बजाय जब नरेन्द्र मोदी विदेश यात्रा पर हैं तब यह घटना क्रम सामने आया है.

पहले नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री बतौर अचानक रात 8 बजे टेलीविजन पर प्रकट होकर यह घोषणा की थी कि देश में चल रहे नोट अब लीगल टेंडर नहीं रहेंगे. नरेंद्र मोदी को संभवत ऐसा लगा था मानो वह बहुत महान काम करने जा रहे हैं और देश उनका इसके लिए सदैव ऋणी रहेगा, मगर हुआ उल्टा.

दो हजार के नोटो को बंद करने की घोषणा के साथ एक बार फिर नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर हैं और इसे “नोटबंदी दो” कहा जा रहा है. तब एक झटके में देश में नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. अब नोटों को चलन से बाहर नहीं किया गया है, बल्कि 30 सितंबर तक बैंकों में जाकर बदलवाया जा सकता है.
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने जब नोट बंदी की थी तो यह ऐलान किया था कि 2000 के नोट और नोट नीति के कारण आने वाले समय में देश से “काला धन” खत्म हो जाएगा “आतंकवाद” समाप्त हो जाएगा.

यह दोनों ही चीजें नहीं हो पाई उन्होंने बड़े गर्व के साथ कहा था कि नोटबंदी के लाभ देश की जनता को नहीं मिलेंगे तो बीच चौराहे पर उन्हें दंडित किया जा सकता है. देश की जनता के गुस्से को इस तरह काम करने का काम नरेंद्र मोदी ने किया था. मगर धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता चला गया कि नरेंद्र मोदी की सिर्फ एक ही मंशा थी कि पूर्ववर्ती सरकार के नोटों को बंद करके अपनी करेंसी लाई जाए और इतिहास में अपना नाम और हुकूमत दर्ज करा दी जाए. मगर कुल जमा यह दांव उल्टा ही पड़ा है. और नरेंद्र मोदी की जितनी छवि नोटबंदी के कारण खराब हुई है बाकी सभी घटनाक्रम एक तरफ कहे जा सकते हैं.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार के आंकड़ों से यह साफ है कि कुछ समय से काला धन रखने के लिए दो हजार रुपए के नोटों का प्रयोग लोग करने लगे थे भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी
इस मसले को संसद में भी उठा चुके हैं. वर्ष 2019 से ही आरबीआई ने दो हजार के नोटों को छापना बंद कर दिया है. आमतौर पर बाजार में 2000 के नोट वैसे भी दिखने कम हो गए थे और यह जन चर्चा का विषय था कि अघोषित रूप से 2000 का नोट बंद हो चुका है सरकार साहस नहीं कर पा रही है कि सामने आकर कह सके कि सच यह है. अब नरेंद्र मोदी सरकार फिर नोटबंदी 2 के कारण विवादों में आ गई है.

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विपक्ष के जायज सवाल

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भारतीय रिजर्व बैंक की यह घोषणा जैसे ही लोगों तक पहुंची आवाम के सामने नोटबंदी के वह सारे दृश्य सामने आ गए वह त्रासदी भला कौन भूल सकता है. इधर दूसरी तरफ कांग्रेस ने भारतीय रिजर्व रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 2,000 रुपए के नोट को सितंबर, 2023 के बाद चलन से बाहर करने की घोषणा किए जाने के बाद सरकार पर निशाना साधा और कटाक्ष करते हुए कहा, ” नोटबंदी वाला ‘जिन्न’ फिर से लोगों को परेशान करने के लिए बाहर आ गया है तथा सरकार को ऐसे कदम के मकसद के बारे में बताना चाहिए.”

कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी पर सरकार अपना ‘जन विरोधी और गरीब विरोधी एजंडा’ जारी रखने गंभीर आरोप लगाया है.महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘स्वयंभू विश्वगुरु की चिरपरिचित शैली. पहले करो, फिर सोचो.आठ नवंबर, 2016 को तुगलकी फरमान (नोटबंदी) के बाद बड़े धूमधाम से 2000 रुपये का नोट जारी किया गया था.अब इसे वापस लिया जा रहा है.’

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा,- “आठ नवंबर, 2016 का जिन्न फिर से देश को परेशान करने के लिए लौट आया है. नोटबंदी देश के लिए भयावह त्रासदी बना हुआ है.प्रधानमंत्री ने 2000 रुपए के नोट के फायदों के बारे में देश के समक्ष उपदेश दिया था.” यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का यह नोट बंदी का ऐलान देश कभी नहीं भूल पाएगा. यह भी बड़ा सवाल है कि नोट बंदी को लेकर के जहां भारतीय जनता पार्टी में कुछ समय तक इसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए हर साल 8 नवंबर को मोदी जी को धन्यवाद ज्ञापित करने का नाटक किया. मगर जब पोल खुलने लगी तो अब भाजपा के नेता नोटबंदी का नाम लेने से भी कतराते हैं.

प्रेगनेन्सी से पहले घटाएं वजन

मोटी महिलाएं मां बनना चाहती हैं तो हो जाएं सावधान. पहले आपको अपना वजन घटाना होगा फर आप बन सकती हैं मां एक नए अध्ययन के मुताबिक,  भारत में मोटापे की दर तेजी से बढ़ रही है. भारतीय महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मोटी होती हैं.

सिर्फ भारत ही नहीं महिलाओं के मोटापे की समस्या हर जगह है. हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में जहां 2 करोड़ महिलाएं मोटी थीं, वहीं पुरुषों की संख्या 98 लाख ही थी.

ओबेसिटी यानि मोटापा कई तरह की बीमारियों का घर है. इंफर्टिलिटी,  डायबिटीज,  सांस की दिक्कत से ले कर दूसरी छोटीबड़ी समस्याएं मोटापे से जुड़ी हैं.

सत्तर फीसदी महिलाओं को अधिक वजन होने की वजह से गर्भधारण करने में दिक्कत होती है.

महिलाओं का समय पर गर्भधारण न कर पाना बहुत ज्यादा गंभीर विषय है क्योंकि समाज में मातृत्व को नारीत्व से जोड़ कर देखा जाता है. इसके साथ ही परिवार को आगे बढ़ाने के लिए भी महिलाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. समाज में स्त्रीत्व व मातृत्व को अलगअलग नहीं माना जाता है. इसी सोच की वजह से महिला जब गर्भधारण करने में असमर्थ होती है तो वह बहुत ज्यादा मानसिक प्रताड़ना झेलती है.

आईओएसआर जनरल आफ नर्सिंग व हेल्थ साइंस में प्रकाशित 2014 के रिसर्च अध्ययन के परिणामों के अनुसार महिलाओं में मोटापा और बांझपन के साथ मानसिक तनाव उनके जीवन और यौन कार्यक्षमता को प्रभावित करता है.

इस बारे में नई दिल्ली स्थित बीएलके सुपर स्पेशैलिटी अस्पताल के सर्जिकल गैसट्रोइंटरो विभाग, बैरीऐट्रिक और मिनिमल एक्सेस सर्जरी के डायरेक्टर डा. दीप गोयल का कहना है कि  ‘‘दुबली महिलाओं के मुकाबले मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में बांझपन की समस्या का रिस्क तीन गुना ज्यादा होता है. ज्यादा वजन महिलाओं को प्रजनन के प्रत्येक स्टेज को प्रभावित करता है.’’

विभिन्न अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि शरीर में वसा जमा होने पर पुरुष हार्मोन एंड्रोजन उत्पन्न होने लगता है जिस से फालीक्यूलर परिपक्वता पर असर पड़ता है और इस से बांझपन की संभावना हो सकती है. अध्ययनों के अनुसार गर्भधारण करने से पहले मोटापे से ग्रस्त महिलाओं को अतिरिक्त चर्बी को कम करने की आवश्यकता है जिस से उन के गर्भधारण की संभावना बढ़ सके.

शारीरिक गतिविधियों और डाइट को नियंत्रित करके काफी हद तक वजन नियंत्रित किया जा सकता है, आधुनिक तकनीक बैरीऐट्रिक सर्जरी की मदद से भी स्थिर वजन कम किया जा सकता है.

बैरीऐट्रिक सर्जरी में पेट के आकार को छोटा कर दिया जाता है जिस से रोगी को कम खाना खा कर भी पेट भरे होने का एहसास होता है. इसके साथ अन्य मेटाबॉलिक बदलाव भी होते हैं क्योंकि पेट और छोटी आंत वजन कम करने में सहायक होते हैं. यह प्रक्रिया पर निर्भर करता है कि सर्जरी के बाद रोगी 85 से 90 प्रतिशत अतिरिक्त वजन कम कर सकते हैं और 70 से 80 फीसदी तक मेटाबॉलिक विकारों में सुधार कर सकता है.

मेरे विवाह को 1 वर्ष हुआ है, मैं सैक्स लाइफ एंजौय कर सकूं, इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं विवाहित महिला हूं. विवाह को अभी 1 वर्ष ही हुआ है. समस्या यह है कि मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं, मुझे दर्द व तकलीफ से गुजरना पड़ता है. जिस की वजह से मैं सैक्स संबंध को एंजौय नहीं कर पाती. मैं अपनी इस समस्या को ले कर बहुत स्ट्रैस में रहती हूं. लेकिन समझ नहीं आता कि किस से अपनी समस्या शेयर करूं. मैं अपनी सैक्स लाइफ एंजौय कर सकूं, इस के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

हाल ही में ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि 10 में से 1 महिला को सैक्स के दौरान दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है. आप को सैक्स के दौरान दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है तो इस को ले कर हिचकिचाएं नहीं और अपने पति से खुल कर यह बात शेयर करें. क्योंकि यह सामान्य बात है.

अगर आप किसी बात को ले कर स्ट्रैस में हैं या चिंतित हैं तो आप अपनी गाइनीकोलौजिस्ट से भी इस बारे में सलाह लें. क्योंकि सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि चिंता व भावनात्मक कारणों से सैक्स संबंध के दौरान दर्द व तकलीफ की समस्या और बढ़ती है.

यह समस्या 20-30 वर्ष की आयु की महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है. आप अपने पार्टनर और गाइनीकोलौजिस्ट से इस बारे में खुल कर बात करें. पति से अपनी पसंद और नापसंद को शेयर करें. ऐसा करने से काफी हद तक आप की समस्या का समाधान हो जाएगा.

मेरी सास : जब बहू का सास से पाला पड़ा तो क्या हुआ

कहानियों व उपन्यासों का मुझे बहुत शौक था. सो, कुछ उन का असर था, कुछ गलीमहल्ले में सुनी चर्चाओं का. मैं ने अपने दिमाग में सास की एक तसवीर खींच रखी थी. अपने घर में अपनी मां की सास के दर्शन तो हुए नहीं थे क्योंकि मेरे इस दुनिया में आने से पहले ही वे गुजर चुकी थीं.

सास की जो खयाली प्रतिमा मैं ने गढ़ी थी वह कुछ इस प्रकार की थी. बूढ़ी या अधेड़, दुबली या मोटी, रोबदार. जिसे सिर्फ लड़ना, डांटना, ताने सुनाना व गलतियां ढूंढ़ना ही आता हो और जो अपनी सास के बुरे व्यवहार का बदला अपनी बहू से बुरा व्यवहार कर के लेने को कमर कसे बैठी हो. सास के इस हुलिए से, जो मेरे दिमाग की ही उपज थी, मैं इतनी आतंकित रहती कि अकसर सोचती कि अगर मेरी सास ही न हो तो बेहतर है. न होगा बांस न बजेगी बांसुरी.

बड़ी दीदी का तो क्या कहना, उन की ससुराल में सिर्फ ससुरजी थे, सास नहीं थीं. मैं ने सोचा, उन की तो जिंदगी बन गई. देखें, हम बाकी दोनों बहनों को कैसे घर मिलते हैं. लेकिन सब से ज्यादा चकित तो मैं तब हुई जब दीदी कुछ ही सालों में सास की कमी बुरी तरह महसूस करने लगीं. वे अकसर कहतीं, ‘‘सास का लाड़प्यार ससुर कैसे कर सकते हैं? घर में सुखदुख सभीकुछ लगा रहता है, जी की बात सास से ही कही जा सकती है.’’

मैं ने सोचा, ‘भई वाह, सास नहीं है, इसीलिए सास का बखान हो रहा है, सास होती तो लड़ाईझगड़े भी होते, तब यही मनातीं कि इस से अच्छा तो सास ही न होती.’

दूसरी दीदी की शादी तय हो गई थी. भरापूरा परिवार था उन का. घर में सासससुर, देवरननद सभी थे. मैं ने सोचा, यह गई काम से. देखें, ससुराल से लौट कर ये क्या भाषण देती हैं. दीदी पति के साथ दूसरे शहर में रहती थीं, यों भी उन का परिवार आधुनिक विचारधारा का हिमायती था. उन की सास दीदी से परदा भी नहीं कराती थीं. सब तरह की आजादी थी, यानी शादी से पहले से भी कहीं अधिक आजादी. सही है, सास जब खुद मौडर्न होगी तो बहू भी उसी के नक्शेकदमों पर चलेगी.

दीदी बेहद खुश थीं, पति व उन की मां के बखान करते अघाती न थीं. मैं ने सोचा, ‘मैडम को भारतीय रंग में रंगी सास व परिवार मिलता तो पता चलता. फिर, ये तो पति के साथ रहती हैं. सास के साथ रहतीं तब देखती तारीफों के

पुल कैसे बांधतीं. अभी तो बस आईं

और मेहमानदारी करा कर चल दीं.

चार दिन में वे तुम से और तुम उन से क्या कहोगी?’

बड़ी दीदी से सास की अनिवार्यता और मंझली दीदी से सास के बखान सुनसुन कर भी, मैं अपने मस्तिष्क में बनाई सास की तसवीर पूरी तरह मिटा न सकी.

अब मेरी मां स्वयं सास बनने जा रही थीं. भैया की शादी हुई, मेरी भाभी की मां नहीं थी. सो, न तो वे कामकाज सीख सकीं, न ही मां का प्यार पा सकीं. पर मां को क्या हो गया? बातबात पर हमें व भैया को डांट देती हैं. भाभी को हम से बढ़ कर प्यार करतीं?. मां कहतीं, ‘‘बहू हमारे घर अपना सबकुछ छोड़ कर आई है, घर में आए मेहमान से सभी अच्छा व्यवहार करते हैं.’’

मां का तर्क सुन कर लगता, काश, सभी सासें ऐसी हों तो सासबहू का झगड़ा ही न हो. कई बार सोचती, ‘मां जैसी सासें इस दुनिया में और भी होंगी. देखते हैं, मुझे कैसी सास मिलती है.’

इसी बीच, एक बार अपनी बचपन की सहेली रमा से मुलाकात हुई. मैं उस के मेजर पति से मिल कर बड़ी प्रभावित हुई, उस की सास भी काफी आधुनिक लगीं, पर बाद में जब रमा से बातें हुईं तो पता लगा उन का असली रंग क्या है.

रमा कहने लगी, ‘‘मैं तो उन्हें घर के सदस्या की तरह रखना चाहती हूं पर वे तो मेहमानों को भी मात कर देती हैं. शादी के इतने सालों बाद भी मुझे पराया समझती हैं. मेरे दुखसुख से उन्हें कोई मतलब नहीं. बस, समय पर सजधज कर खाने की मेज पर आ बैठती हैं. कभीकभी बड़ा गुस्सा आता है. ननद के आते ही सासजी की फरमाइशें शुरू हो जाती हैं, ‘ननद को कंगन बनवा कर दो, इतनी साडि़यां दो.’ अकेले रमेश कमाने वाले, घर का खर्च तो पूरा नहीं पड़ता, आखिर किस बूते पर करें.

‘‘रमेश परेशान हो जाते हैं तो उन का सारा गुस्सा मुझ पर उतरता है. घर का सुखचैन सब खत्म हो गया है. रमेश अपनी मां के अकेले बेटे हैं, इसलिए उन का और किसी के पास रहने का सवाल ही नहीं है. पोतेपोतियों से यों बचती हैं गोया उन के बेटे के बच्चे नहीं, किसी गैर के हैं. कहीं जाना हुआ तो सब से पहले तैयार, जिस से बच्चों को न संभालना पड़े.’’

रमा की बातें सुन कर मैं बुरी तरह सहम गई. ‘‘अरे, यह तो हूबहू वही तसवीर साक्षात रमा की सास के रूप में विद्यमान है. अब तो मैं ने पक्का निश्चय कर लिया कि नहीं, मेरी सास नहीं होनी चाहिए. लेकिन होनी, तो हो कर रहती है. मैं ने सुना तो दिल मसोस कर रह गई. अब मां से कैसे कहूं कि यहां शादी नहीं करूंगी. कारण पूछेंगी तो क्या कहूंगी कि मुझे सास नहीं चाहिए. वाह, यह भी कोई बात है.

मन ही मन उलझतीसुलझती आखिर एक दिन मैं डोली में बैठ विदा हो ही गई. नौकरीपेशा पिता ने हम भाईबहनों को अच्छी तरह पढ़ायालिखाया, पालापोसा, यही क्या कम है.

मेरी देवरानियांजेठानियां सभी अच्छे खातेपीते घरों की हैं, मैं ने कभी यह आशा नहीं की कि ससुराल में मेरा भव्य स्वागत होगा. ज्यादातर मैं डरीसिमटी सी बैठी रहती. कोई कुछ पूछता तो जवाब दे देती. अपनी तरफ से कम ही बोलती. रिश्तेदारों की बातचीत से पता चला कि सास पति की शादी कहीं ऊंचे घराने में करना चाहती थीं. लेकिन पति को पता नहीं मुझ में क्या दिखा, मुझ से ही शादी करने को अड़ गए. लेनदेन से सास खुश तो नजर नहीं आईं, पर तानेबाने कभी नहीं दिए, यह क्या कम है.

मैं ने मां की सीख गांठ बांध ली थी कि उलट कर जवाब कभी नहीं दूंगी. पति नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर में रहते थे. मैं उन्हीं के साथ रहती. बीचबीच में हम कभी आते. मेरी सास ने कभी भी किसी बात के लिए नहीं टोका. मुझ से बिछिया नहीं पहनी गई, मुझे उलटी मांग में सिंदूर भरना कभी अच्छा नहीं लगा, गले में चेन पहनना कभी बरदाश्त न हुआ, हाथों में कांच की चूडि़यां ज्यादा देर कभी न पहन पाईं. मतलब सुहाग की सभी बातों से किसी न किसी प्रकार का परहेज था. पर सासजी ने कभी जोर दे कर इस के लिए मजबूर नहीं किया.

दुबलीपतली, गोरीचिट्टी सी मेरी सास हमेशा काम में व्यस्त रहतीं. दूसरों को आदेश देने के बजाय वे सारे काम खुद निबटाना पसंद करती थीं. बेटियों से ज्यादा उन्हें अपनी बहुओं के आराम का खयाल था.

इस बीच, मैं 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. समयसमय पर बच्चों को उन के पास छोड़ जाना पड़ता तो कभी उन के माथे पर बल नहीं पड़ा. मेरे सामने तो नहीं, पर मेरे पीछे उन्होंने हमेशा सब से मेरी तारीफ ही की. मेरी बेटियां तो मुझ से बढ़ कर उन्हें चाहने लगी थीं. मेरी असली सास के सामने मेरी खयाली सास की तसवीर एकदम धुंधली पड़ती जा रही थी.

इसी बीच, मेरे पति का अपने ही शहर में तबादला हो गया. मैं ने सोचा, ‘चलो, अब आजाद जिंदगी के मजे भी गए. कभीकभार मेहमान बन कर गए तो सास ने जी खोल कर खातिरदारी की. अब हमेशा के लिए उन के पास रहने जा रहे हैं. असली रंगढंग का तो अब पता चलेगा. पर उन्होंने खुद ही मुझे सुझाव दिया कि 3 कमरों वाले उस छोटे से घर में देवरननदों के साथ रहना हमारे लिए मुश्किल होगा. फिर अलग रहने से क्या, हैं तो हम सब साथ ही.

मेरी मां मुझ से मिलतीं तो उलाहना दिया करतीं. ‘‘तुझे तो सास से इतना प्यार मिला कि तू ने अपनी मां को भी भुला दिया.’’

शायद इस दुनिया में मुझ से ज्यादा खुश कोई नहीं. मेरे मस्तिष्क की पहली वाली तसवीर पता नहीं कहां गुम हो गई. अब सोचती हूं कि टीवी सीरियल व फिल्मों वगैरा में गढ़ी हुई सास की लड़ाकू व झगड़ालू औरत का किरदार बना कर, युवतियां अकारण ही भयभीत हो उठती हैं. जैसी अपनी मां, वैसी ही पति की मां, वे भला बहूबेटे का अहित क्यों चाहेंगी या उन का जीवन कलहमय क्यों बनाएंगी. शायद अधिकारों के साथसाथ कर्तव्यों की ओर भी ध्यान दिया जाए तो गलतफहमियां जन्म न लें. एकदूसरे को दुश्मन न समझ कर मित्र समझना ही उचित है. यों भी, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती.

मेरी सास मुझ से कितनी प्रसन्न हैं, इस के लिए मैं लिख कर अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बनना चाहती, इस के लिए तो मेरी सास को ही एक लेख लिखना पड़ेगा. पर उन की बहू अपनी सास से कितनी खुश है, यह तो आप को पता चल ही गया है.

नवजात के लिए संजीवनी साबित होती गर्भनाल

घर में नए मेहमान के आते ही मांबाप की पूरी जीवनशैली बदल जाती है. ज्यादातर मातापिता स्वस्थ खानपान अपनाते हैं. उन के द्वारा सभी प्रयास अपने शिशु को स्वस्थ भविष्य देने की हसरत के साथ किए जाते हैं. इन सब प्रयासों के अलावा शिशु और पूरे परिवार के स्वस्थ भविष्य के लिए मातापिता को एक और जरूरी कदम भी उठाना चाहिए.

यह जरूरी कदम शिशु के जन्म पर स्टेम कोशिकाओं को सुरक्षित रखने का है. भारत में करीब 15 स्टेम कोशिका बैंक हैं. अगर आप के मन में सवाल हो कि यह क्यों जरूरी है, तो यहां इस के प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं कि शिशु की गर्भनाल सुरक्षित रख कर कैसे आप खुद को व शिशु को सर्वोत्तम उपहार दे सकते हैं.

गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं से समृद्ध होती है: शरीर के विभिन्न अंगों में स्टेम कोशिकाएं पाई जाती हैं, लेकिन गर्भनाल विशुद्ध और युवा स्टेम कोशिकाओं का समृद्ध भंडार है. ये स्टेम कोशिकाएं एक तरह से मास्टर कोशिकाएं होती हैं, जो पूरे शरीर के लिए बिल्डिंग ब्लौक की तरह काम करती हैं. जन्म के समय अपने शिशु की गर्भनाल से एकत्र करने पर ये स्टेम कोशिकाएं 80 से अधिक चिकित्सा स्थितियों का इलाज करने में प्रयोग हो सकती हैं, क्योंकि इन में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को बदलने व मरम्मत करने दोनों की क्षमता होती है. प्रकृति के इस अनूठे उपहार को सुरक्षित करने का मौका सिर्फ शिशु के जन्म के समय ही मिलता है.

गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को एकत्र करने में आसानी: स्टेम कोशिकाएं सुरक्षित करने के लिए गर्भनाल का रक्त सब से आसान तरीका है. शिशु के जन्म के ठीक बाद गर्भनाल को क्लैंप कर के गर्भनाल के रक्त और टिशू को फुरती से चंद सैंकड्स में एकत्र कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया से शिशु या मां को कोई खतरा नहीं रहता है. एकत्र किए नमूने लैब में भेजे जाते हैं, जहां उन्हें भविष्य में प्रयोग के लिए संरक्षित किया जाता है. गर्भनाल की कोशिकाएं जरूरत के समय सुसंगत स्टेम कोशिका यूनिट पाने का सब से त्वरित तरीका भी है.

यदि आप ने जन्म के समय समझदारी से अपने शिशु की स्टेम कोशिकाएं संरक्षित कराई हों तो आप को डोनर स्टेम कोशिकाएं खोजनी नहीं पड़ती हैं. स्टेम कोशिकाएं ह्यूमन ल्युकोसाइट ऐंटीजेन आधार पर मैच की जाती हैं, जो स्टेम कोशिकाओं की सतह पर पाया जाने वाला एक तरह का प्रोटीन होता है. स्टेम कोशिकाओं के अन्य स्वरूपों के विपरीत गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं से प्राप्त स्टेम कोशिकाओं के लिए 4/6 का आंशिक एचएलए मैच पर्याप्त है.

कैसे संरक्षित की जाती हैं स्टेम कोशिकाएं: जब लैब में नूमना आता है तो उसे परीक्षण के लिए ले जाते हैं. नमूना संक्रामक बीमारियों से मुक्त है. यह सुनिश्चित करने के लिए आमतौर पर मां का रक्त नमूना लिया जाता है. स्टेम कोशिका प्रोसैसिंग शुरू करने से पहले कोशिका गिनती और व्यवहार्यता (कोशिकाएं सक्रिय हैं और संरक्षण के लिए उपयुक्त हैं, यह देखने) की जांच के लिए गर्भनाल का रक्त नमूना भी लिया जाता है. गर्भनाल के रक्त में न केवल स्टेम कोशिकाएं, बल्कि रक्त के अन्य घटक भी होते हैं, जिन्हें संरक्षण से पहले हटाना पड़ता है. स्टेम कोशिकाओं से लाल रक्त कणिकाओं को अलग करने के लिए गर्भनाल रक्त को सैंट्रीफुगेशन व अन्य तकनीकों से गुजारा जाता है.

अच्छी स्टेम कोशिका ऐक्सट्रैक्शन तकनीक 2 बातों पर निर्भर करती है:

पहली- उच्च स्टेम कोशिका रिकवरी. नमूने से रिकवर की गई स्टेम कोशिकाओं की मात्रा, जो स्टेम गणना तकनीक द्वारा अनुमानित हो सकती है.

दूसरी- आरबीसी की कमी. नमूने से स्टेम कोशिकाएं ऐक्सट्रैक्ट करने के बाद वे विभिन्न गुणवत्ता परीक्षणों से गुजरती हैं ताकि स्टेम कोशिकाओं की स्टरिलिटी और व्यवहार्यता सुनिश्चित हो.

स्टेम कोशिकाओं का संरक्षण: यदि ऐक्सट्रैक्ट की गई स्टेम कोशिकाएं व्यवहार्य, दूषण से मुक्त हों और वांछित मात्रा में कोशिका वृद्धि दर्शाएं तो उन्हें क्रायो वायल में रखा जाता है और क्रायोप्रिजर्वेशन एरिया में ले जाते हैं. दीर्घकालीन भंडारण के लिए स्टेम कोशिकाओं को क्रायोप्रिजर्वेशन कक्ष में सावधानी से रखा जाता है. सफल संरक्षण पर स्टेम सैल बैंक माता को प्रिजर्वेशन सर्टिफिकेट देता है, जिस में कोशिका गणना, संरक्षण तारीख आदि की जानकारी होती है.

स्वास्थ्य प्रोफैशनल्स का विश्वास: डाक्टरों द्वारा स्टेम कोशिकाओं के अन्य स्रोत के बजाय गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को वरीयता दी जाती है, क्योंकि इस में शुद्धता, बेहतर सुमेल सुविधा, मरीजों में अस्वीकार की कम दर और प्रत्यारोपण के दौरान बेहतर परिणाम जैसे बेजोड़ गुण होते हैं.

स्टेम कोशिका बैंकिंग किफायती है यदि आप ने अपने शिशु के जन्म के समय गर्भनाल को सुरक्षित नहीं किया है तो जरूरत के समय डोनर स्टेम कोशिकाओं को हासिल करने की लागत लगभग 15-20 लाख हो सकती है. हालांकि यदि आप ने अपने शिशु की गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को सुरक्षित कर लिया हो तो सिर्फ 60 हजार बेसिक संरक्षण लागत पर अपने शिशु समेत पूरे परिवार को इस का लाभ मिल सकता है. इस तरह गर्भनाल संरक्षण पूरे परिवार के लिए बेहद किफायती और लाभदायक है.

अपने शिशु की गर्भनाल स्टेम कोशिकाओं को संरक्षित करने के अपने समझदार फैसले के बाद सही स्टेम सैल बैंक चुनना न भूलें, जो आप के फायदों को बढ़ाए. आदर्श स्टेम सैल बैंक चुनने के लिए अनिवार्य मानदंड ये हैं:

– एएबीबी, आईएसओ, डीजीसीआई, सीएपी प्रमुख शासकीय संस्थाओं से मान्यता.

– स्टेम सैल बैंक की वित्तीय मजबूती.

– उन मातापिताओं का बेस जो अपने शिशु की स्टेम कोशिकाएं बैंक को सौंप चुके हैं.

– प्रयुक्त प्रोसैसिंग टैक्नोलौजी, जो स्टेम कोशिकाओं की सर्वोच्च रिकवरी रेट देती है.

– बैकिंग का मौडल जिसे कम्यूनिटी स्टेम सैल बैंक नाम से जाना जाता है. कम्यूनिटी स्टेम सैल बैंक अपनी स्टेम कोशिकाएं संरक्षित करने वाले मातापिताओं के समुदाय के बीच स्टेम कोशिकाओं को साझा करने के कौंसेप्ट पर काम करता है. स्टेम सैल बैकिंग का यह मौडल शिशु, उस के भाईबहन, मातापिता, दादादादी इत्यादी को लाभ दे सकता है.

अंत: अपने शिशु की स्टेम कोशिकाओं के संरक्षण द्वारा परिवार की खुशियों को आजीवन कायम रखा जा सकता है, क्योंकि इन के संरक्षण से पूरे परिवार को आरोग्य का आधार मिलता है.

– मयूर अभया, सीईओ, एमडी, लाइफसेल का संदेश

कर्नाटक: सिद्धारमैया के हाथ सत्ता

पांच दिनों तक तमाम ऊहापोह, बैठकों, फ़ोन कौल्स और मानमुनौवलों के बाद भी जब कोई रास्ता नहीं निकला तो सोनिया गांधी को दखल देना पड़ा और चंद मिनटों में कर्नाटक को अपना किंग मिल गया. तय हो गया कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुरसी पर सिद्धारमैया बैठेंगे और डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम बनेंगे.बेंगलुरु में 20 मई को दोपहर 12.30 बजे शपथग्रहण समारोह होगा.

कांग्रेस के मजबूत नेता डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठने के लिए अड़े हुए थे, लेकिन आलाकमान पहले ही सिद्धारमैया का नाम तय कर चुका था क्योंकि समाज के सभी तबकों तक सिद्धारमैया की अच्छी पहुंच है. वे सोशल इंजीनियरिंग में भी माहिर हैं और उनकी छवि भी साफसुथरी है. इसके अलावा सिद्धारमैया अच्छे प्रशासन के लिए जाने जाते हैं. इस से पहले भी वे मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने पर बहुत संभव था कि केंद्र के आदेश पर दिल्ली की तर्ज पर केंद्रीय जांच एजेंसियां शिवकुमार पर शिकंजा कसने और उन्हें जेल भेजने की कवायद में लग जातीं. ऐसे में पार्टी की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर बहुत नुकसान पहुंचता.

हालांकि चुनावप्रचार के दौरान दोनों ने ही खूब मेहनत की थी. डीके शिवकुमार ने राज्य के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त ऊर्जा भर दी, इसमें शक नहीं है. शिवकुमार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे और सिद्धारमैया साथ थे. दोनों कर्नाटक में पार्टी के लिए बहुत बड़ा कद रखते हैं. दोनों बहुत काबिल हैं. दोनों ही नेता मुख्यमंत्री बनने के काबिल हैं. दोनों ही प्रदेश को अच्छा चला सकते हैं. इसलिए इनमें से किसी को भी निराश नहीं किया जा सकता था.

लेकिन सीएम के तौर पर एक का नाम तय करना था. शिवकुमार वोक्कालिंगासमाज से आते हैं.यह समाज डी के शिवकुमार को सीएम के तौर पर देखने के लिए उत्सुक था. ऐसे में जब कोई रास्ता नहीं निकला तब सोनिया गांधी ने दखल दिया. शिवकुमार से फ़ोन पर वार्त्ता हुई.आखिरकार वे डिप्टी सीएम पद के लिए मान गए. अंदरखाने की खबर यह है कि सोनिया गांधी ने शिवकुमार से कहा कि हमारी पार्टी संकट में है, इसलिए आप समस्या नहीं बढ़ाइए. बाकी आप मुझ पर छोड़ दीजिए. आप मेरे बेटे के समान हैं, मैं आपका ख़याल रखूंगी.

कहते हैं डीके शिवकुमार पर सोनिया गांधी का असर काफी अधिक है. शिवकुमार को कर्नाटक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाने में सोनिया गांधी की प्रमुख भूमिका रही है. यहां यह याद रखना जरूरी है कि शिवकुमार ने चुनावी नतीजों के सामने आने के तुरंत बाद बेहद भावुक होकर कहा था कि वे सोनिया गांधी के बहुत आभारी हैं, क्योंकि वे उनसे मिलने तिहाड़ जेल गई थीं. जेल में हुई मुलाकात के दौरान ही सोनिया गांधी ने शिवकुमार को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने का भरोसा दिया था. ऐसे में शिवकुमार सोनिया गांधी के आदेश की अवहेलना कैसे कर सकते थे.

कर्नाटक में वोक्कालिंगा और लिंगायत समाज की अच्छी संख्या है. इस बार इन दोनों तबकों ने कांग्रेस पर प्यार लुटाया. आलाकमान के फैसले से एमबी पाटिल और जी परमेश्वर नाराज बताए जा रहे हैं. एमबी पाटिल लिंगायत और परमेश्वर दलित समुदाय से आते हैं. सिद्धारमैया की पिछली सरकार में डिप्टी सीएम रहे जी परमेश्वर ने आलाकमान के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, ‘मैं भी सरकार चला सकता था. अगर सीएम नहीं तो कम से कम मुझे डिप्टी सीएम तो बनाना चाहिए था.’

पहले ऐसी चर्चा हो रही थी कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर एक सीएम और 2 डिप्टी सीएम होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोनिया गांधी ने सिर्फ शिवकुमार को ही डिप्टी सीएम का पदभार ग्रहण करने को कहा. सोनिया जानती हैं कि इससे एक ओर मोदीशाह की चालों से सरकार पर आंच नहीं आएगी और फिर शिवकुमार के आगे पूरा मैदान खुला हुआ है. उनकी उम्र भी कम है और अभी उन्हें राजनीति में लंबी पारी खेलनी है

किरेन रिजिजू का डिमोशन

वैसे तो भू-विज्ञान मंत्रालय की अपनी महत्ता हैलेकिन किरेन रिजिजू के हाथ से कानून मंत्रालय छीन लिया जाना बताता है कि मोदी कैबिनेट में उनके कद को छांट कर छोटा कर दिया गया है. किरेन रिजिजू का मंत्रालय अब राजस्थान के बड़े दलित नेता और कई मंत्रालय संभाल चुके अर्जुन राम मेघवाल संभालेंगे. दरअसल, रिजिजू द्वारा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बारबार टिप्पणी करना और बारबार सुप्रीम कोर्ट से उलझना प्रधानमंत्री मोदी को रास नहीं आ रहा था. इससे सरकार की छवि भी प्रभावित हो रही थी.

गौरतलब है कि 2 साल पहले रविशंकर प्रसाद को हटाकर किरेन रिजिजू को कानून मंत्री की अहम जिम्मेदारी दी गई थी. इससे पहले वे खेल मंत्री थे. किरेन युवा नेता हैं. जुझारू हैं. खूब खेलते हैं, खूब बोलते हैं मगर सुप्रीम कोर्ट के कलीजियम सिस्टम के खिलाफ उनकी बारबार की जाने वाली टिप्पणियां प्रधानमंत्री मोदी को पसंद नहीं आईं क्योंकि इस वक़्त केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से किसी टकराव के मूड में नहीं है.

आम धारणा है कि जब सुप्रीम कोर्ट कुछ कहता है तो सरकार उसे सुनती है. पलटवार करने, जवाब देने या कोर्ट के खिलाफ खुलकर कुछ भी बोलने से बचा जाता है. लेकिन हाल के दिनों में कानून मंत्री किरेन रिजिजू मीडिया में आकर और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कर रहे थे, उसने मोदी सरकार को बहुत असहज कर दिया था.

रिजिजू द्वारा जजों की नियुक्ति और अदालतों के काम करने के तौरतरीकों को लेकर की जा रही टिप्पणियों व हस्तक्षेप ने मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं. लिहाजा, सरकार को अपनी छवि बचाने के लिए रिजिजू की बलि लेनी पड़ी.

रिजिजू जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम प्रणाली की खुलकर आलोचना कर रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि जजों की नियुक्ति की कलीजियम प्रणाली पारदर्शी नहीं है. उन्होंने इसे संविधान से अलग भी करार दिया. अपना विरोध करने वालों के लिए यहां तक कह दिया कि रिटायर्ड जज और ऐक्टिविस्ट भारतविरोधी गिरोह का हिस्सा हैं.

यही नहीं, रिजिजू ने दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आरएस सोढ़ी के एक इंटरव्यू के कुछ अंश भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर डालेजिन में कहा गया था कि-‘कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता क्योंकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का अपहरण कर लिया है.’

इसके अलावा रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को यह मशवरा भी दे डाला कि भारतीय न्यायपालिका में कोई आरक्षण नहीं है. मैं सभी जजों और विशेषरूप से कलीजियम के सदस्यों को याद दिलाना चाहता हूं कि वे पिछड़े समुदायों, महिलाओं और अन्य श्रेणियों के सदस्यों को शामिल करने के लिए नामों की सिफारिश करते समय ध्यान में रखें क्योंकि उनका न्यायपालिका में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है.

रिजिजू की इन तमाम बड़बोली बातों से ऐसा संदेश गया कि केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति में अपनी भूमिका चाहती है. रिजिजू के बयानों पर विपक्ष भी कहने लगा कि सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को धमकाया जा रहा है.

हाल यह हो गया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कलीजियम सिस्टम के खिलाफ की गई टिप्पणी पर कार्रवाई की मांग की जाने लगी. हालांकि कोर्ट ने बड़ा दिल दिखाते हुए उस याचिका को यह कह कर खारिज कर दिया कि उसके पास इससे निबटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने कलीजियम सिस्टम के खिलाफ बोलने पर किरेन रिजिजू की काफी आलोचना की थी. उन्होंने जजों की नियुक्ति में केंद्र के दखल को लोकतंत्र के लिए घातक बताया था. कलीजियम के नामों को सरकार द्वारा लटकाने पर भी काफी विवाद हुआ था.

रिजिजू को हटाना सरकार की मजबूरी बन गई थी. लिहाजा, रातोंरात राष्ट्रपति भवन की तरफ से विज्ञप्ति जारी कर दी गई कि, “राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रधानमंत्री की सलाह पर केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों को विभागों का पुन:आवंटन किया है और भू-विज्ञान मंत्रालय की जिम्मेदारी किरेन रिजिजू को सौंपी गई है.”

रिजिजू को हटा कर अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री बनाने के पीछे एक वजह और है. मेघवाल दलित समुदाय से हैं और राजस्थान से आते हैं. राजस्थान में कुछ ही समय में चुनाव होने वाले हैं.राजस्थान में दलितों की आबादी 17 फीसदी है. मेघवाल दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं. बीकानेर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद मेघवाल का कद बढ़ाकर राजस्थान को संदेश देने की भी कोशिश की गई है. अब तक मेघवाल संस्कृति और संसदीय कार्य राज्यमंत्री थे. अर्जुन राम मेघवाल 2009 से बीकानेर से सांसद हैं.

मेघवाल का जन्म बीकानेर के किस्मीदेसर गांव में हुआ था. उन्होंने बीकानेर के डूंगर कालेज से बीए और एलएलबी की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने इसी कालेज से मास्टर्स डिग्री हासिल कर फिलीपींस विश्वविद्यालय से एमबीए किया.

राजनीति में आने से पहले मेघवाल राजस्थान प्रशासनिक सेवा में थे. प्रमोशन हुआ तो मेघवाल चुरू के जिलाधिकारी भी रहे. वीआरएस लेकर राजनीति में आए और उन्होंने 3 बार लोकसभा चुनाव जीता. उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जाति के मजबूत चेहरे के रूप में देखा जाता है.

मेघवाल 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीकानेर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए. उन्हें 2013 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से भी नवाजा गया था.अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान वे लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के मुख्य सचेतक थे. मई 2019 मेंमेघवाल को संसदीय मामलों और भारी उद्योग व सार्वजनिक उद्यम राज्यमंत्री बनायागया और अब उन्हें कानून मंत्रालय बड़ा जिम्मा सौंपा गया है.

हालांकि अर्जुन मेघवाल के साथ विवाद भी जुड़े हुए हैं. कोरोनाकाल में उन्होंने ‘भाभीजी पापड़’ लौंच किया और बिना तथ्यों के यह बयान दिया कि इस से कोरोना नहीं होगा. यह वही समय था जब देश में कोरोना पीड़ित अस्पतालों में औक्सीजन और सिलैंडर की कमी के चलते मर रहे थे.

बाप की ऊपरी कमाई किस को रास आई

आज के समाज में अवैध कमाई को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता है. जिन घरों में पैसा मेहनत से नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार से आता है, देखा गया है कि उन घरों के बच्चों में अहंकार, जिद्दीपन, बुरी आदतें, दूसरों से असम्मानित व्यवहार और नशे की लत होना आम है. 90 के दशक की बात है. लखनऊ के एक स्वयंभू पत्रकार थे. लोगबाग उन्हें पंडितजी कह कर पुकारते थे.

खुद ही प्रकाशक और संपादक भी थे. एक पौलिटिकल मैगजीन और एक दैनिक अखबार निकालते थे. एक पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके थे. वे उन की अंदरूनी बातों की जानकारी रखते थे. बाद में जब उन से नाराज हुए तो उन के खिलाफ खबरें छापने लगे. मुंह बंद करवाने के लिए मुख्यमंत्रीजी ने काफी पैसा पहुंचाया लेकिन वे कुछ दिन चुप रहते, फिर शुरू हो जाते. इस तरह पंडितजी ने काफी पैसा बनाया. बाद में बड़ेबड़े नौकरशाहों से दोस्ती गांठ ली. उन की कृपा से अखबार और पत्रिका को लाखों रुपए के सरकारी विज्ञापन धड़ल्ले से मिलने लगे.

एक प्रिंटिंग प्रैस खड़ी कर ली. कुछ खोजी टाइप के रिपोर्टर्स की टीम बना ली, जो रिपोर्टिंग कम ब्लैकमेलिंग में ज्यादा उस्ताद थे. इस अधिकारी की गुप्त जानकारी उस को और उस अधिकारी की गुप्त जानकारी उस को पहुंचा कर ये लोग अच्छा पैसा बनाने लगे. पंडितजी की पत्नी और बच्चों को उन के अवैध कामों की पूरी जानकारी थी, मगर किसी ने उन्हें ऐसा करने से टोका नहीं. पत्नी खुश थी कि अच्छा पहननेओढ़ने को मिल रहा है. नएनए डिजाइन के जेवर खरीदती थी. लड़के को बालिग होते ही लग्जरी कार मिल गई थी और बेटी भी जी खोल कर अपनी सहेलियों पर पैसे उड़ाती थी.

पंडितजी की अवैध कमाई पर पलने वाले उन के दोनों बच्चों ने पैसे का मूल्य कभी नहीं सम झा. न पढ़ाई पूरी की और न ही कोई नौकरी की. मेहनत करना क्या होता है, यह उन्होंने जाना ही नहीं. वे सिर्फ नौकरों पर हुक्म चलाना ही सीख पाए. लड़की जवान होते ही मौडल बनने के चक्कर में मुंबई चली गई. 3 वर्षों बाद लुटीपिटी, डिप्रैशन का शिकार हो कर लौटी. लड़के को कम उम्र में ही शराब का चस्का लग गया. पंडितजी के मरने के बाद वह प्रैस का मालिक बन गया. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण पंडितजी के धूर्त्त रिपोर्टर्स की टीम ने उस को नशे की गर्त में डुबो दिया. वह रातदिन नशे में रहने लगा. 2 बार शादी की और दोनों बार तलाक हो गया. घरेलू हिंसा का मामला उस पर अलग दर्ज हो गया.

एक दिन शराब के नशे में तेज गाड़ी चलाते हुए उस का ट्रक से ऐक्सिडैंट हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मृत्यु हो गई. लड़के की मृत्यु के बाद प्रैस बंद हो गई. आय का साधन खत्म हो गया. पंडितजी ने जिनजिन नेताओं, अधिकारियों को परेशान किया था, ब्लैकमेल किया था, अब वे मांबेटी पर हावी होने लगे. आखिरकार लखनऊ की संपत्ति बेच कर पंडितजी की पत्नी अपनी अवसादग्रस्त बेटी के साथ देहरादून में एक छोटे से अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गई. सारा वैभव, सारा ऐशोआराम समाप्त हो गया. पंडितजी जीवनभर अवैध कमाई के चक्कर में न तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाए, न संस्कार. छोटी उम्र में बच्चों के हाथों में अथाह पैसा आने से वे पैसे का मूल्य भी नहीं समझे.

मेहनत कर के पैसा कमाना उन्होंने कभी सीखा ही नहीं. नतीजा भयानक निकला. अहंकार का बढ़ना ऐसा ही एक किस्सा नोएडा विकास प्राधिकरण में कार्यरत रहे एक सज्जन का है. वे प्राधिकरण में ऐसी पोस्ट पर थे जहां महीने की लंबीचौड़ी तनख्वाह के अलावा प्रतिदिन ऊपरी कमाई 5 हजार से ले कर कभीकभी तो 50 हजार रुपए तक हो जाती थी. हाथ आई लक्ष्मी को तिवारीजी ने कभी न नहीं कहा. लोग अपनी जमीनों और दुकानों से संबंधित फाइलों को आगे बढ़वाने के लिए तिवारीजी को घर पर भी भेंट पहुंचा जाते थे. तिवारीजी की पांचों उंगलियां घी में थीं.

उन की पत्नी भी पति की कमाई से बहुत खुश थी. रिश्तेदारों पर उन का पूरा रोब रहता था. त्योहारों, समारोहों में रिश्तेदारों और दोस्तों को पूरे अहंकार के साथ कीमती गिफ्ट बांटती थीं. अपने मायके वालों पर भी खूब पैसा लुटाती थीं. कोई पूछने वाला नहीं था. तिवारीजी का एक ही बेटा था, गौरव. गौरव ने बचपन से अपने घर में खूब पैसा देखा. खूब महंगीमहंगी चीजें इस्तेमाल कीं. हमेशा ब्रैंडेड कपड़ेजूते पहने. बड़ेबड़े मौल में शौपिंग की. बड़ी गाडि़यों में घूमा. 12वीं करने के बाद उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो 3 साल दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ाने में बिता दिए. इकलौता बेटा था, लिहाजा मांबाप ने कभी कोई सख्ती नहीं दिखाई. इस के चलते वह बहुत जिद्दी भी हो गया.

फिर उस को विदेश जाने का चस्का चढ़ा और वह कनाडा निकल गया. बाप के पैसे धड़ल्ले से उड़ाए. करीब 20 लाख रुपए बरबाद करने के बाद वापस लौट आया. दिल्ली के एक बार में उस का दोस्तों संग आनाजाना था. वहीं की एक बारगर्ल से आशिकी हो गई और उस ने उस बारगर्ल से शादी कर ली. उस लड़की ने जब गौरव के घर में पैसे की ऐसी रेलमपेल देखी तो उस की आंखें चुंधिया गईं. धीरेधीरे उस ने गौरव को नशे का आदी बना कर उसे पूरी तरह अपने वश में कर लिया. सासससुर से आएदिन उस की कलह होती. तनाव के चलते गौरव की मां ब्लडप्रैशर की मरीज हो गई. बहू ने धीरेधीरे पूरे घर पर कब्जा जमा लिया. लौकर की चाबी अब उस के पास रहती है. सेवानिवृत्ति के बाद तिवारीजी और उन की पत्नी अब बहू के रहमोकरम पर हैं. घर में बस, अब बहू की पसंद चलती है.

बेटा अपने मांबाप की सुनता नहीं है. पोतेपोती का मोह उन्हें बेटे से अलग नहीं होने देता. फिर बुढ़ापा और बीमारी दोनों को घेरे हुए है. ऐसे में अकेले अलग भी कैसे रहें. जीवनभर अंधी कमाई के चक्कर में तिवारीजी भी अपने बेटे को अच्छी शिक्षा और संस्कार नहीं दे पाए. सोचनेसम झने और जीवन के फैसले ठीक तरीके से लेने की क्षमता उस में विकसित नहीं कर पाए. बाप के पैसे पर ऐयाशी करने का आदी रहा गौरव न कोई नौकरी कर सका और न व्यवसाय. अब पिता की पैंशन और जमा कमाई से 6 जनों का परिवार चल रहा है. इस साल जनवरी में जबलपुर के भसीन आर्केड के सामने स्थित रितिक अपार्टमैंट में पुलिस ने एक देररात शराब और ड्रग्स पार्टी की सूचना पर रेड मारी. वहां से 13 युवकयुवतियों को पकड़ा गया. उन में टौप बिजनैसमैन, हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट, सीनियर डाक्टर्स, सीनियर पुलिस अफसर और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले सीनियर लौयर्स के बेटेबेटियां शामिल थे. उस अपार्टमैंट के एक रूम को बार का लुक दिया गया था, जहां शराब और ड्रग्स की कमी नहीं थी. रात के 3 बजे जब पुलिस की रेड पड़ी तो सभी युवकयुवतियां नशे में धुत थे. इन लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश की मगर आबकारी एक्ट और एमपी कोलाहल नियंत्रण अधिनियम के तहत सभी पर केस दर्ज किया गया. नेताओं की मलाईदार कमाई भारतीय जनता पार्टी के नामचीन नेता प्रमोद महाजन के पुत्र राहुल महाजन के बिगड़ने का किस्सा कौन नहीं जानता.

ड्रग्स, नशा और सैक्स ने उसे राजनीतिक रूप से बिलकुल समाप्त कर दिया. वरना पिता की इतनी बड़ी राजनीतिक विरासत का वह अकेला हकदार था. बाद में बौलीवुड की चकाचौंध में रहासहा भी डूब गया. शादी भी खत्म, इज्जत भी खत्म. कांग्रेस के बड़े नेता विनोद शर्मा के अहंकारी और बिगड़ैल बेटे मनु शर्मा ने 29 अप्रैल, 1999 को बार में सिर्फ शराब न परोसने के कारण पिस्तौल निकाल कर जेसिका लाल की कनपटी पर गोली चला दी, जिस में उस की मौत हो गई. इस घटना में बेटे को बचाने के लिए मंत्री पिता ने कई दांव चले. हत्या के गुनाह से बचा कर निकाल लेने के लिए पुलिस के बड़े अधिकारियों और नामी वकीलों की मदद ली. लेकिन आखिरकार मनु शर्मा को आजीवन कारावास की सजा हुई.

मशहूर फिल्म अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली पर इलजाम था कि उस ने अपनी प्रैग्नैंट गर्लफ्रैंड जिया खान को न सिर्फ लंबे समय तक टौर्चर किया बल्कि उस की वजह से जिया ने आत्महत्या कर ली. हालांकि इस मामले में सुबूत न होने के चलते सूरज पंचोली कोर्ट से बरी हुए हैं. पैसे की अधिकता में बिगड़े हुए बच्चों की अनगिनत कहानियां हमारे आसपास बिखरी हुई हैं. अफसोसजनक है कि आज के समाज में अवैध कमाई को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता है. कभीकभी तो लड़कियों की शादियां यह देख कर होती हैं कि लड़का मलाईदार पोस्ट पर है या नहीं अथवा लड़के की ऊपरी कमाई कितनी है. जिन घरों में पैसा मेहनत से नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार से आता है,

देखा गया है कि उन घरों के बच्चों में अहंकार, जिद्दीपन, बुरी आदतें, दूसरों से असम्मानित व्यवहार और नशे की लत होना आम है. बच्चों की वित्तीय आदतें पेरैंट्स की देखरेख में ही विकसित होती हैं. अगर पेरैंट्स भ्रष्ट और अव्यवस्थित हैं तो निश्चित रूप से उन के बच्चों से अनुशासित व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती. बच्चे शुरू से घर में जो होता हुआ देखते हैं वैसा ही व्यवहार करते हैं. जिस बच्चे को मुक्त हाथों से पैसा दिया जा रहा हो, उस को कभी पैसे के लिए मना कर दो तो वह उग्र हो बैठेगा, मांबाप से झगड़ा करेगा या कोई अप्रत्याशित कदम उठा लेगा.

इसी तरह किसी खास लाइफस्टाइल को मेंटेन करने के लिए अगर कोई व्यक्ति लगातार लोन लेता रहता है तो उस के बच्चे पर भी उस का असर पड़ता है. अगर आप लगातार लोन चुकाने की प्रक्रिया में शामिल हैं या एक के बाद दूसरे लोन के दुष्चक्र में पड़े हैं तो बच्चे को यह सम झ में आएगा कि यह सामान्य चलन है. वह भी अपने जीवन में इस प्रोसैस को फौलो करेगा. बच्चे के मन में यह धारणा बन जाएगी कि लाइफस्टाइल मेंटेन करने के लिए लोन लेने में कोई बुराई नहीं है और वह इसे भी अपने जीवन का हिस्सा बना लेगा. अगर वह अच्छी नौकरी नहीं पा सका और लोन समय से नहीं चुका पाया तो यह स्थिति उस के जीवन में तनाव पैदा करेगी. वह डिप्रैशन में जा सकता है. उस का जीवन बरबाद हो सकता है. जो पेरैंट्स ‘लिव लाइफ किंग साइज’ में भरोसा करते हैं,

वे अपने बच्चों पर भी जम कर खर्च करते हैं. बिना सवाल पूछे बच्चे की इच्छा पूरी होती रहती है. यह जरूरी नहीं है कि वह बच्चा बड़ा होने के बाद भी उसी स्थिति में हो कि पुराना लाइफस्टाइल मेंटेन कर सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह फ्रस्ट्रेटेड महसूस करेगा. उसी लाइफस्टाइल को मेंटेन करने के लिए या तो वह बहुत कर्ज लेने की आदत डाल लेगा या दूसरे आपराधिक तरीके अख्तियार करेगा जिस से अपनी जरूरतें पूरी कर सके. बचपन से ही मुंहमांगी मुराद पूरी होने पर बच्चे उस लाइफस्टाइल के आदी बन जाते हैं. वे बचपन से ही जरूरत से ज्यादा खर्च करने के अभ्यस्त होते हैं और निवेश पर उन का कोई फोकस नहीं होता. इस से उन के जीवन के वित्तीय लक्ष्य को पाना और मुश्किल हो जाता है. उन्हें जीवन में एडजस्ट करना नहीं आता. धन को ले कर सदैव मस्तिष्क में उथलपुथल मची रहती है. ऐसे में उन का जीवन सहज नहीं होता.

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