आठ नवंबर 2016 की ऐतिहासिक नोट बंदी के ठीक साढ़े छह साल बाद अब "दो हजार के नोटों" को चलन से हटाने की घोषणा अबकी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने नहीं बल्कि सरकार के निर्देशानुसार भारतीय रिजर्व बैंक ने की है. जिससे एक बार फिर देश में सन्नाटा पसर गया है और लोग नोट बंदी को लेकर के कयास लगाने लगे हैं.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि नोटबंदी का चक्रव्यूह बुनकर के नरेंद्र मोदी ही उसमें बुरी तरह फस गए हैं और जितनी आलोचना नोटबंदी को लेकर के नरेंद्र मोदी की हुई है कि अब संभवत उन्हें भी साहस नहीं है कि सामने आकर स्वयं इसकी घोषणा करते, इसके बजाय जब नरेन्द्र मोदी विदेश यात्रा पर हैं तब यह घटना क्रम सामने आया है.

पहले नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने प्रधानमंत्री बतौर अचानक रात 8 बजे टेलीविजन पर प्रकट होकर यह घोषणा की थी कि देश में चल रहे नोट अब लीगल टेंडर नहीं रहेंगे. नरेंद्र मोदी को संभवत ऐसा लगा था मानो वह बहुत महान काम करने जा रहे हैं और देश उनका इसके लिए सदैव ऋणी रहेगा, मगर हुआ उल्टा.

दो हजार के नोटो को बंद करने की घोषणा के साथ एक बार फिर नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर हैं और इसे "नोटबंदी दो" कहा जा रहा है. तब एक झटके में देश में नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था. अब नोटों को चलन से बाहर नहीं किया गया है, बल्कि 30 सितंबर तक बैंकों में जाकर बदलवाया जा सकता है.
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने जब नोट बंदी की थी तो यह ऐलान किया था कि 2000 के नोट और नोट नीति के कारण आने वाले समय में देश से "काला धन" खत्म हो जाएगा "आतंकवाद" समाप्त हो जाएगा.

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