सवाल
मैं 53 वर्षीय गृहिणी हूं. बच्चे बड़े हो चुके हैं. बेटी कालेज में पढ़ती है और बेटा जौब करता है. पति का अपना बिजनैस है. ससुरजी का देहांत 3 साल पहले हो गया था. तभी से सास पूरी तरह से बिस्तर से लग गईं. मेरे पति उन का पूरा ध्यान रखते हैं. वक्त पर उन्हें दवाई देते हैं. यहां तक कि यदि अगर अटेंडैंट नहीं आ पाती तो वे उन का डाइपर तक चेंज करते हैं. मु झ से यह काम नहीं होता. सास की तबीयत के कारण हम उन्हें घर में अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते. मैं कई बार बहुत परेशान हो जाती हूं. घर को मैंटेन करने के कई काम पैंडिंग पड़े हैं जो उन के कारण हम नहीं करवा पा रहे हैं. कई बार तो मेरी हिम्मत जवाब दे देती है. इस कारण अब मैं मैंटल स्ट्रैस में आ गई हूं. क्या करूं, कुछ राय दें.
जवाब
हमें आप के साथ सहानुभूति है. देखिए, जिंदगी में कब किस के साथ क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता.बस, जरा एक बार सोच कर देखिए, यदि आप को कुछ हो जाए और आप बिस्तर पर आ जाएं और आप के बच्चे आप के बारे में वही सोचें जो आप इस समय अपनी सास के लिए सोच रही हैं तो आप को कैसा लगेगा.
बस, यही सोच कर अपने मन को सम झाइए. बच्चे वही सीखते हैं जो अपने मातापिता को करते देखते हैं. आप आज अपनी सास की देखभाल कर रही हैं तो कल आप के बच्चे आप की सेवा करेंगे. यही जीवन चक्र है. जहां तक आप परेशानी की बात कर रही हैं तो उन के लिए कोई फुलटाइम मेड रख लें. आप का काम आसान हो जाएगा. यदि आप को 4-5 घंटे के लिए परिवार के साथ कहीं जाना होगा तो वह भी हो जाएगा. किसी तरह से वक्त निकाल लीजिए. वैसे, आप के पति आप का पूरा हाथ बंटाते हैं. इस बात से आप को खुश होना चाहिए.
मानसिक रोगों का सीधा संबंध हमारे तंत्रिकातंत्र से जुड़ा होता है पर हमारे शारीरिक अंग भी इन रोगों को उत्पन्न करने के कारक बनते हैं. मुंह, दांत, जीभ, तालू में अगर थोड़ा सा विकार है तो रोग की यह समस्या धीरेधीरे पीडि़त व्यक्ति को मनोरोगी बना देती है क्योंकि दांतों की जड़ें भी सूक्ष्म तंत्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क से जुड़ी रहती हैं.
यही हाल मुंह में विद्यमान और अंगों का भी है. जीभ, मसूड़े सभी तंत्रिकाओं के तानेबाने से जुड़े हैं और ये अतिसूक्ष्म तंत्रिकाएं बेहद संवेदी होती हैं. दांतों में दर्द का एहसास, खट्टेमीठे का अनुभव यही संवेदी तंत्रिकाएं मस्तिष्क को कराती हैं. जब यह समस्या लगातार बनी रहती है तो मस्तिष्क का सारा ध्यान इसी पर केंद्रित हो जाता है और हमारा मन वहीं पर अटका रहता है. मन के एक ही जगह पर स्थित रहने से व्यक्ति धीरेधीरे एक मनोरोगी की भांति व्यवहार करने लगता है.
हालांकि केवल मुंह और दांत की समस्या से व्यक्ति मनोरोगी हो जाता है, ऐसा कहना उचित नहीं होगा पर आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास तनाव बहुत अधिक है. तनाव कहीं न कहीं दांतों, मसूड़ों और मुख से संबंधित बीमारियों पर अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है.
नई दिल्ली स्थित मौलाना आजाद इंस्टिट्यूट औफ डैंटल साइंसैज के डायरैक्टर और प्रिंसिपल डा. महेश वर्मा कहते हैं, ‘‘तनाव से दांत घिसने लगते हैं. कुछ लोग रात को सोते समय दांत किटकिटाते हैं. इस से दांत घिस जाते हैं. तनाव की वजह से कई मरीज दिन में ऐसा करते भी हैं. इस से दांत का बाहरी हिस्सा घिस जाता है और दांत बहुत सैंसिटिव हो जाते हैं. दांतों का स्ट्रक्चर घिस जाता है और नीचे की नसें बाहर आ जाती हैं. दांत किटकिटाने जैसी समस्या से नजात पाना है तो इस के लिए अच्छी नींद और सही देखभाल आवश्यक है.’’
डा. महेश वर्मा आगे कहते हैं, ‘‘इस से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, मसलन, ऐसे लोग खाना नहीं खा सकते, पानी नहीं पी सकते, दांतों में हवा भी लगती है. जब तक इस का सही तरीके से इलाज नहीं होगा तब तक लोग सामान्य महसूस नहीं कर सकते.’’
वे आगे बताते हैं, ‘‘शारीरिक विकार के चलते जब मस्तिष्क भावनात्मक तनाव का शिकार होने लगता है तो यह स्थिति साइकोसोमैटिक कहलाती है. इन में से एक है बर्निंग माउथ सिंड्रोम. इस में ऐसा लगता है कि मुंह से आग निकल रही हो. ऐसा लगता है कि मुंह पूरा जल रहा है. यह अकसर महिलाओं में देखने को मिलता है. इस में मरीज का मुंह सूख जाता है यानी थूक में लार की कमी हो जाती है. इस से दांतों की दूसरी बीमारियां शुरू हो जाती हैं.
‘‘इस के अलावा कई बार तनाव की वजह से व्यक्ति अपने मांस को कुतरता रहता है. यह भी साइकोसोमैटिक या न्यूरोटिक हैबिट की वजह से वह ऐसा करता है. केवल इतना ही नहीं, आटोइम्यून कारणों से लाइकन प्लानेस की समस्या हो जाती है जिस में मुंह में धारीदार सफेद चकत्ते हो जाते हैं. यह तनाव वाले मरीजों में ज्यादा होता है. जिन लोगों में तनाव अधिक होता है उन के मुंह में छाले जल्दीजल्दी होते हैं.’’
डा. महेश वर्मा आगे कहते हैं, ‘‘जिन व्यक्तियों में तनाव अधिक होता है उन में सोरयासिस नामक बीमारी भी देखने को मिलती है. हालांकि, यह चमड़े की बीमारी है पर इस के लक्षण मुंह में भी देखने को मिलते हैं. तनाव से जीभ में गहरे फिशेज पड़ने के साथसाथ छाले वाली होंठों की हरपीज, पायरिया आदि से ग्रस्त हो जाता है. कुल मिला कर कहें तो साइकोसोमैटिक शारीरिक गतिविधियों को कमजोर करती है. इस का इलाज कराना बहुत ही जरूरी है. इस के लिए मनोचिकित्सक, चर्म रोग विशेषज्ञ और मुंह के रोग विशेषज्ञ से परामर्श कर के इलाज कराना ज्यादा बेहतर होता है.’’
स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर का कारण है. अगर मन तनावमुक्त होगा तो बहुत सारी बीमारियां स्वयं ही दूर हो जाएंगी.
गरमी आते ही भूख कम और प्यास ज्यादा लगने लगती है. इसलिए जब गरमी आती है तो हमें अपनी सेहत के साथ-साथ खान पान का भी खास ध्यान रखना पड़ता है. इसलिए हम लेकर आये हैं आपके लिए कुछ खास टिप्स जिसे फौलो करने से आपकी सेहत चुस्त-दुरुस्त बनी रहेगी.
1 गरमियों में अगर थोड़ी-थोड़ी देर बाद लगने वाली प्यास से बचना चाहते हैं, तो डिनर से पहले एक प्लेट सलाद जरूर खाएं. इसमें प्याज़, टमाटर, खीरा, गाजर, स्प्राउट्स और बंदगोभी जरूर शामिल करें. इससे आपकी बौडी भी कूल रहेगी और शरीर में जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी जाएंगे. सिर्फ यही नहीं, रात के खाने से पहले एक प्लेट सलाद खाने से भी वजन कम करने में हेल्प मिलती है.
2 अगर आप नौनवेज फूड खाते हैं तो अपने खाने में फिश को शामिल करें. फिश में फैटी एसिड्स होता जो आम तौर पर कम फूड आइटम्स में मौजूद होते हैं, जैसे कि- ओमेगा-3 और ओमेगा-6. फिश मीट, रेड मीट और चिकन के मुकाबले शरीर को ज्यादा ठंडक देता है. इसलिए गर्मियों में ये आपकी बौडी के लिए फायदेमंद है.
3 छाछ एक ऐसा फूड आइटम है जो डिहाइड्रेशन को रोकता है. इसे आप दही से घर पर भी बना सकते हैं या फिर बाजार से भी ले सकते हैं. गर्मियों में अनहेल्दी सोडा या कोल्ड ड्रिंक से बचने के लिए छाछ पिएं.
4 इलायची, वैसे तो मुंह की ताजगी बढ़ाती है पर जब बात गरमी की करें तो इलायची में इंस्टेंट कूलिंग प्रौपर्टीज होती हैं, इसलिए गर्मियों में इलायची वाली चाय पीने से शरीर को तुरंत ठंडक मिलती है.
5 अगर आप अपनी सेहत के लिए कौनशियश है, जिम जाते हैं, तो आंवला आपके शरीर की सहनशक्ति बढ़ाता है. इसे खाने से दिल भी स्वस्थ रहता है और गरमियों में ये बौडी को हेल्दी भी रखता है.
तो अगर आपने ये टिप्स फौलो किए तो इस समर आप हेल्दी और फ्रेश जरुर रहेंगे.
पुरानी पीढ़ी अकसर अपने नियम अगली पीढ़ी पर थोपने की कोशिश में लगी रहती है जिसे बदलते वक्त के साथ अगली पीढ़ी के लिए स्वीकारना मुश्किल होता है. दोनों के बीच ऐसे में बातबात पर टोकाटाकी का सिलसिला शुरू हो जाता है जो रिश्तों में कड़वाहट घोलता है. पास की सोसाइटी में शोभाजी रहती हैं. भरापूरा परिवार है, पति विनोद, बेटा रवि और बहू तानिया. रवि की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी. तानिया बड़ी हंसमुख लड़की है, यह हमें शादी के समय ही महसूस हो गया था. खूब हंसती, खिलखिलाती तानिया ने सब का मन मोह लिया था.
टू बैडरूम फ्लैट में आराम से तानिया ने नए जीवन की शुरुआत की. शोभाजी हमेशा तानिया की खुलेदिल से तारीफ करतीं, कहतीं, ‘तानिया के आने से घर में बेटी की कमी पूरी हो गई. सबकुछ अच्छा चल रहा था. सालभर बाद विनोदजी गंभीर रूप से बीमार पड़े तो मैं उन्हें देखने गई. पता चला, बेटाबहू विनोदजी को ले कर डाक्टर को दिखाने गए हुए हैं. शोभाजी को हलका बुखार था तो वे नहीं गई थीं. पहले मैं ने उन के उतरे चेहरे को बुखार का असर समP पर उन की बातों से समझा आया कि घर का माहौल तो बिलकुल बदल चुका है. शोभाजी मुझसे काफी बड़ी हैं, मैं उन्हें दीदी कहती हूं. मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ है, आप बहुत परेशान लग रही हैं?’’ एक ठंडी सांस ले कर उन्होंने अपना दिल हलका कर ही लिया, ‘‘तानिया ने मुझे से बात करना बंद कर दिया है, उतनी ही बात करती है जितनी के बिना काम नहीं चलता.’’ मुझे एक ?टोटका सा लगा, ‘‘क्या कह रही हो दीदी, आप दोनों की बौंडिंग तो बहुत अच्छी थी. अचानक क्या हुआ?’’ ‘‘उसे मेरी जरा सी बात भी बरदाश्त नहीं.’’
‘‘जैसे?’’ ‘‘जरा सा टोक क्या दिया, बुरा ही मान मान गई.’’ ‘‘क्या टोक दिया?’’ ‘‘उस का शरीर इतना भारी हो गया है, उस पर मुझे जीन्स अच्छी नहीं लगती पर रवि और उसे पसंद है तो पहनती है, ठीक है पहनो. पर न बिंदी, न मंगलसूत्र, न चूडि़यां पहनती है, न बिछुए. ये सब तो पहना करे, बस नहीं सुनती. ये सब मानने में उसे क्या परेशानी है. तुम ही बताओ, क्या मैं गलत बात कहती हूं?’’ ‘‘हां, दीदी, गलत तो है, यह उस की मरजी ही होनी चाहिए कि उसे क्या पहनना है, वह इतनी सुशिक्षित है, मुंबई जैसे शहर में रहती है, उसे फैशन की समझा तो होगी ही और वैस्टर्न कपड़ों पर ये बिंदी, मंगलसूत्र बहुत अजीब ही लगता है, न इधर के, न उधर के कपड़े लगते हैं. ‘‘भाईसाहब का ध्यान रखती है,
उन्हें ले कर डाक्टर के पास गई हुई है, अपनी जिम्मेदारी समझाती है. आप के घर का मामला है, मुझे कोई राय देनी नहीं चाहिए पर थोड़ी टोकाटाकी कम कर के देखें, उसे एक बहू ही नहीं, एक स्वतंत्र व्यक्तित्व समझा कर देखें, शायद सब ठीक हो जाए.’’ मैं जितनी देर उन के पास बैठी, मैं ने महसूस किया वे जो भी बातें बता रही हैं, वे सब मुझे उन की टोकाटाकी की आदत लगी. तानिया स्पाइसी खाना न खाए, मायके ज्यादा बात न करे, जोरजोर से न हंसे, बहू है, बहू की तरह रहे. 20 साल की राधिका और उस का 16 साल का भाई रौनक अपने नानानानी के आने से बहुत परेशान हो जाते हैं. राधिका बताती है,
‘‘नानानानी बहुत अच्छे लगते हैं पर नानी रोज सुबह 6 बजे उठाने लगती है, हम देर रात तक कोचिंग से आते हैं, नींद पूरी नहीं होती. मम्मी को भी टोकती रहती हैं कि इसे कैसे कपड़े पहनाती हो, इसे किचन के काम समझाने शुरू करो. ये दोनों रात देर से क्यों आते हैं, पता नहीं कितने सवाल, कितनी टोकाटाकी. ‘‘कई बार तो मम्मी भी परेशान हो जाती हैं. दादी के आने पर भी यही हाल होता है. इन सब के आने की खुशी, बस, एक दिन ही टिक पाती है. कोई समझाता ही नहीं कि अब जमाना बदल गया है. हम शाम के 5 बजे घर आ कर नहीं बैठ सकते. इन सब का आना अच्छा लगता है पर टोकाटाकी से परेशान हो जाते हैं.’’ आजकल सचमुच समय बहुत बदल गया है.
वह समय तो कतई नहीं रहा कि कोई भी रिश्ता किसी तरह की, बेवजह की टोकाटाकी चुपचाप सुन ले. पड़ोस की एक आंटी तो घर की शांति का मूलमंत्र यही बताती हैं कि घर में जब बहू आ जाए तो गांधीजी के बंदरों की तरह आंख, कान और मुंह बंद रखने चाहिए, तभी घर में शांति रह सकती है. नीता तो अपनी बैस्ट फ्रैंड सीमा की आदत से ही परेशान है. वह बताती है, ‘‘जब भी सीमा उस के घर आती है, किचन की सैटिंग पर टोकटोक कर दिमाग खराब कर देती है. यह चीज यहां क्यों रखी हुई है, यह वहां होनी चाहिए, किचन में यह डब्बा यहां क्यों रखती है, आदिआदि. मैं उस से मजाक करती हूं कि तू बहुत बुरी सास बनेगी, तेरे घर में तेरी बहू दुखी हो जाएगी अगर तू ने अपनी यह सब टोकने की आदत खत्म न की तो. युवा पीढ़ी अपने हिसाब से, अपने अनुभव, अपने ज्ञान से अपने काम करना चाहती है.
युवा को थोड़ी छूट दी जाए, हां, अगर वे कहीं कुछ गलती कर रहे हैं तो जरूर टोका जाए, समझाया जाए पर यह सोच कर कि उन्हें कुछ नहीं आता, वे कुछ नहीं जानते, उन्हें ज्ञान देना हमारा फर्ज है, सही नहीं है. आज की युवा पीढ़ी अपनी समस्याओं से निबटना खूब जानती है. 27 साल की कुहू को सोलो ट्रिप पर जाना पसंद है. वह अकसर औफिस की छुट्टी ले कर कहीं घूम आती है.
उस के पेरैंट्स को भी इस में कोई परेशानी नहीं. कुहू का कहना है, ‘‘सारे दोस्तों का एक समय पर फ्री होना जल्दी संभव नहीं होता तो अपनेआप ही चली जाती हूं. पापा के औफिस की वजह से मम्मी उन्हें अकेला छोड़ हर समय मेरे साथ नहीं चल पाती हैं. फोन और इंटरनैट की सहूलियत आजकल है ही, मम्मीपापा के टच में रहती ही हूं पर जो भी सुनता है, मम्मी के पीछे पड़ जाता है कि मुझे इतनी छूट क्यों दी हुई है. मम्मी को रास्ते में मिलने पर टोकटोक कर परेशान कर देती हैं ये आंटियां.’’ कुछ रिश्ते बहुत अच्छे, बहुत अपने होते हैं. उन में स्नेह, प्यार सब होता है पर जरा सी टोकाटाकी से मन में दरार आने लगती है. इस से बचना चाहिए. जरूरी है रिश्तों में मिठास बनाए रखना. इस के लिए किसी को टोकते रहने की आदत छोड़नी पड़े तो क्या बुराई है?
कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने अपनी नीति में बड़े बदलाव किए. इसमें सबसे प्रमुख बात ये रही की जहां अबतक कांग्रेस बीजेपी पर सूट-बूट के साथ 2 मित्रों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए सरकार पर निशाना साधती थी, वहीं अब कांग्रेस आम जनता और दलितों की बात करते नजर आ रही है.
इसकी शुरूआत कांग्रेस ने हिमाचल से की जहां सबसे पहले पार्टी ने पुरानी पेंशन स्कीम की बात करते हुए हिमाचल की जनता के दिल में जगह बनाई और जीत दर्ज की. इसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस ने अहिंदा कार्ड खेला और दलित, मुस्लिम और पिछड़ों की बात करते राज्य में अच्छे वोटों से जीत हासिल की.
इससे पहले राहुल गांधी मोदी सरकार पर अडानी-अंबानी का नाम लेकर आक्रामक रहे, लेकिन जमीन पर पार्टी को उसका कोई फायदा मिलता नजर नही आ रहा था. राफेल मामले को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर भी जनता पर कोई असर पड़ता नजर नहीं आ रहा था. यही वजह है की कांग्रेस अब पूंजीवाद, अडानी-अंबानी जैसे मुद्दों को छोड़ अब आरक्षण, मुस्लिम उत्पीड़न के साथ दलितों की बात कर रही है.
हाल ही में यूपी कांग्रेस की बैठक में ऐलान किया गया की पार्टी जातीय जनगणना कराने और OBC आरक्षण बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलन करेगी. कांग्रेस का ये ऐलान बेहद चौंकाने वाला था, क्योंकि इससे पहले पार्टी ऐसे मुद्दों पर ज्यादात्तर चुप्पी साधना ही पसंद करती थी. लेकिन अब जातीय जनगणना और ओबीसी की बात कर कांग्रेस अब नए तेवर में नजर आ रही है.
इसका एक और उदाहरण राहुल गांधी के 6 दिवसीय अमेरिका दौरे में देखने को मिल रहा है. जहां राहुल गांधी बीजेपी-RSS पर हमला करते हुए संविधान पर चोट की बात कर रहे है. इसके अलावा राहुल ने अपने पहले दिन की बातचीत में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और गरीबों की बात करते हुए कहा.. आज भारत इनके लिए सहीं जगह नहीं रह गई है.
राहुल ने अमेरिका में बातचीत के दौरान कहा की आज भारत में मुस्लिम खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है, क्योंकि उनके साथ सबसे ज्यादा ज्यादती की जा रही है. और मैं गारंटी से कह सकता हूं की मेरे सिख, ईसाई, दलित और आदिवासी भाई भी ऐसा महसूस कर रहे होंगे.
राजनीतिक जानकारों का मानना है की राहुल गांधी और कांग्रेस के ये बयान पार्टी की नई रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि अबतक अडानी-अंबानी और अमीरों की सरकार वाली बात पर जनता कांग्रेस के साथ जुड़ नहीं पा रही थी.
कई वर्षों से सिनेमा, टीवी और मौडलिंग के बढ़ते दबाव की वजह से सौंदर्य के मानदंड तेजी से बदलने लगे हैं. साफ शब्दों में कहा जाए तो आजकल जरूरत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की अनर्गल चाहत, ऊपर से फैशन का अनावश्यक दबाव और उस पर खुले बाजार की मार ने यहां बहुतकुछ बदल डाला है.
सौंदर्य की इस मौजूदा परिभाषा से इत्तफाक रखने वाले भी इस सचाई को स्वीकार करने लगे हैं कि फिगर का यह फोबिया कई तरह की मुसीबतों को जन्म देने लगा है.सौंदर्य में नए अवतार जीरो फिगर की चाहत युवतियों के दिलोदिमाग पर इस हद तक हावी है कि वे सौंदर्य ही नहीं, अपने स्वास्थ्य को भी दांव पर लगा रही हैं.
नकल में माहिर होती युवा पीढ़ी को अब इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कल तक प्रीति जिंटा, रानी मुखर्जी और काजोल जैसी गोलमटोल व गदराए यौवन की मल्लिकाएं लोगों की पहली पसंद हुआ करती थीं. आज तो जिसे देखो वही दिशा पाटनी, अनन्या पांडे, आलिया भट्ट और दीपिका पादुकोण जैसी फिगर पाना चाहती हैं.
टीवी, सिनेमा और मौडलिंग की इस भेड़चाल पर टिप्पणी करते हुए मशहूर मौडल और मिस चंडीगढ़ रह चुकीं दिशा शर्मा ने कहा कि करीना कपूर की फिल्म ‘टशन’ जैसी फिगर प्राप्त करने के लिए अब कालेजगोइंग युवतियां ही नहीं, बल्कि नवविवाहिता और कईकई बच्चों की मांएं भी डाइटिंग के साथसाथ जिस प्रकार ऐंटीबायोटिक दवाएं गटक रही हैं, उस ने उन के सामने कई तरह की शारीरिक समस्याएं खड़ी कर दी हैं.
दरअसल, भारत में जीरो फिगर की गपशप पहली बार करीना कपूर ‘टशन’ फिल्म से ले कर आई थीं. इस फिल्म में करीना कपूर ने तोतिया रंग की सैक्सी बिकिनी पहनी थी. उस सीन को समुद्र में फिल्माया गया. इस के बाद से ही बड़े जोरशोर से जीरो फिगर यानी सैक्सी दिखना समझा गया. हाल में दीपिका पादुकोण ने भी फिल्म ‘पठान’ में बिकिनी पहनी. वो तो बवाल भगवा बिकिनी पर मच गया, वरना जिस करीने से दीपिका पादुकोण के फिगर को फिल्माया गया उस ने यंग लड़कियों के दिमाग में जरूर रश्क पैदा किया होगा.
आज भी जितने भी फैशन शो होते हैं वहां जीरो फिगर वाली मौडल ही रहती हैं. हालांकि कई पश्चिमी देशों ने जीरो फिगर वाली मौडल्स की प्रतियोगिताओं और फैशन परेडों के इतर ऐसी मौडल्स के लिए भी प्रतियोगिता आयोजित करनी शुरू की हैं जो चरबीयुक्त हैं. लेकिन इस के बावजूद जीरो फिगर आज युवतियों के सिर चढ़ कर बोल रहा है.
समस्या यह है कि इस से मासिकधर्म में गड़बड़ी, सिर चकराने और पेट में जलन होने की शिकायतें देखी गई हैं लेकिन बाजारवाद ने जीरो फिगर को इस हद तक लोकप्रिय बना दिया है कि तमाम समस्याओं के बावजूद यह ट्रैंड में रहता है.
जीरो फिगर की अवधारणा
सौंदर्य के मानक हर समय और स्थान के अनुरूप कभी स्थाई नहीं होते. जीरो फिगर 32-22-34 के नाम में परिभाषित है.इस में छाती 32 इंच, हिप 34 इंच और कमर की माप 22 इंच है, जो आमतौर पर किसी 8-9 साल की बच्ची का होता है.
इसी साइज को मौडलिंग और सौंदर्य प्रतियोगिता की दुनिया में मुफीद माना जाता है. हलकी और छरहरी काया की प्राप्ति के लिए कम से कम भोजन कर के मौडलिंग के क्षेत्र में जमी लड़कियों की मजबूरी को तो समझा जा सकता हैमगर आजकल इस के लिए लड़कियों का मकसद युवाओं को आकर्षित करना भी है. भले ही इस के लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े.
आजकल कमर ही क्यों, चेहरे पर चरबी की जरा सी भी परत जमा न हो, इस के लिए अब कौस्मेटिक सर्जरी के अलावा भी बहुत से विकल्पों का इस्तेमाल किया जा रहा है. चंडीगढ़ स्थित एक जिम की संचालिका सविता प्रदीप कहती हैं,““केवल फिगर की दीवानगी में शरीर को कंकाल बनाना समझदारी की बात नहीं है. यह एक जनून है और हद से गुजर जाने के बाद यही चाहत आगे चल कर मानसिक बीमारी बन जाती है.”
बेकाबू हो रही है ग्लैमर की स्थिति
ग्लैमरस फिगर वैसे तो हर औरत की चाहत होती हैलेकिन जीरो फिगर की चाहत में युवतियां जिस प्रकार संतुलित आहार तक को नजरअंदाज कर रही हैं,वह अत्यंत घातक है. ब्यूटी थेरैपिस्ट और पेरिस ब्यूटीपार्लर की प्रमुख डाइटीशियन संजना चौधरी का कहना है,““इस से शरीर में पौष्टिक तत्त्वों की कमी से पाचनतंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, जिस से इंसान की भूख मर जाती है.
““इस से एनोरौक्सिया की चपेट में आने पर चक्कर आना, बेहोशी के दौरे पड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. साथ ही, इस से गर्भाशय की समस्या और हड्डियों के कमजोर होने का भी खतरा बना रहता है.””
संजना का मानना है कि औरत के शरीर को रोज औसतन 1,500 से 2,500 कैलोरी की जरूरत होती है लेकिन जब यह घट कर 1,200 रह जाती है तो शरीर अंदरूनी हिस्सों और हड्डियों से इस कमी को पूरा करना शुरू कर देता है, जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी बुरा संकेत है.
समय से पहले बुढ़ापे को आमंत्रण
फिगर को मेंटेन रखने का दबाव मौडलिंग, एंकरिंग और अभिनय से जुड़ी युवतियों पर रहने की बात तो फिर भी समझ में आती हैलेकिन शादी की तारीख नजदीक आते ही विवाह की तैयारियों में जुटी युवतियां भी जीरो फिगर की गिरफ्त में आए बिना नहीं रहतीं.
शादी से ठीक पहले कमर को पतला करने का क्रेज युवतियों के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी होता है कि इस के लिए वे 15 से 16 किलोग्राम वजन कम कर लेती हैं. 18 से 25 साल के आयुवर्ग की युवतियों में यह प्रवृत्ति सर्वाधिक देखने को मिलती है.
हाल ही में वेटवाचर पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वे में कहा गया है कि युवतियां भूख मार कर भले ही छरहरे बदन की मल्लिकाएं बन जाएं मगर थोड़े समय बाद उन का रूप प्रौढ़ औरत जैसा दिखाई देने लगता है.वे उम्र से पूर्व ही बड़ी दिखाई देने लगती हैं. सच तो यह है कि भरे गाल और मांसल देह वाली औरत बड़ी उम्र में भी ज्यादा युवा दिखाई देती है.
डाइटिंग के साइड इफैक्ट
आमतौर पर महिलाएं पतली होने के लिए डाइटिंग पर फोकस करती हैं. मशहूर महिला रोग एवं गाईनी विशेषज्ञ डा. सुषमा नौहेरिया की राय में वजन कम करने और फिर खुद को संतुलित रखने के लिए जौगिंग, व्यायाम का सहारा लेना डाइटिंग और वजन घटाने वाली दवा लेने से कहीं बेहतर है.
अत्यधिक डाइटिंग से समूचे शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है, मसलन, उपवास की स्थिति से शरीर में पाचक तत्त्वों का संचार कम होने से इंसान की पाचनशक्ति क्षीण हो जाती है, जिस से लिवर और मांसपेशियों पर बुरा असर पड़ता है. कुछ मामलों में हार्मोन असंतुलन की वजह से युवतियों में मासिकधर्म भी अनियमित होता देखा गया है. अत्यधिक व्यायाम या जिम जाने से शरीर में पानी की कमी के साथसाथ चेहरे पर झुर्रियां और आंखों के नीचे काले घेरे भी नजर आने लगते हैं.
साल 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ सीरियल महाभारत इन दिनों काफी ज्यादा सोशल मीडिया पर चर्चा पर बना हुआ है क्योंकि इस सीरियल में शकुनी मामा का किरदार निभा रहे गूफीं पेंटल इन दिनों काफी ज्यादा बीमार है. बता दें कि गूफी पेंटल की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.
बता दें कि इनकी हेल्थ की जानकारी टीना घई ने सोशल मीडिया पर दिया है, फैंस उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं, एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि भगवान आपको जल्द स्वस्थ रखें, तो वहीं दूसरे यूजर्स ने लिखा है कि भगवान आपको जल्द अस्पताल से बाहर करें.
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बता दें कि गूफी पटेल ने अपने कैरियर की शुरुआत साल 1975 में की थी, जिसके बाद से वह कई सारे फिल्मों में नजर आ चुके हैं. दिललगी, परदेश के अलावा और भी कई सारी फिल्मों में वह अपने किरदार से जलवा बिखेर चुके हैं. जिस वजह से उन्हें याद किया जाता है.
बता दें कि गुफी पेंटल एक जाने माने अभिनेता रह चुके हैं, इनकी रोल को कुछ लोग पसंद करते हैं तो कुछ लोग नापसंद करते हैं. गुफी पेंटल को ज्यादातर निगेटीव रोल में देखा जाता है.