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मैं 53 वर्षीय गृहणी हूं, मेरी सास बेड पर है मेरी मेड मेरे पति उनकी पूरी सेवा करते हैं , मैं परेशान हूं क्या करू?

सवाल

मैं 53 वर्षीय गृहिणी हूं. बच्चे बड़े हो चुके हैं. बेटी कालेज में पढ़ती है और बेटा जौब करता है. पति का अपना बिजनैस है. ससुरजी का देहांत 3 साल पहले हो गया था. तभी से सास पूरी तरह से बिस्तर से लग गईं. मेरे पति उन का पूरा ध्यान रखते हैं. वक्त पर उन्हें दवाई देते हैं. यहां तक कि यदि अगर अटेंडैंट नहीं आ पाती तो वे उन का डाइपर तक चेंज करते हैं. मु  झ से यह काम नहीं होता. सास की तबीयत के कारण हम उन्हें घर में अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते. मैं कई बार बहुत परेशान हो जाती हूं. घर को मैंटेन करने के कई काम पैंडिंग पड़े हैं जो उन के कारण हम नहीं करवा पा रहे हैं. कई बार तो मेरी हिम्मत जवाब दे देती है. इस कारण अब मैं मैंटल स्ट्रैस में आ गई हूं. क्या करूंकुछ राय दें.

जवाब

हमें आप के साथ सहानुभूति है. देखिएजिंदगी में कब किस के साथ क्या हो जाएकहा नहीं जा सकता.बसजरा एक बार सोच कर देखिएयदि आप को कुछ हो जाए और आप बिस्तर पर आ जाएं और आप के बच्चे आप के बारे में वही सोचें जो आप इस समय अपनी सास के लिए सोच रही हैं तो आप को कैसा लगेगा.

बसयही सोच कर अपने मन को सम  झाइए. बच्चे वही सीखते हैं जो अपने मातापिता को करते देखते हैं. आप आज अपनी सास की देखभाल कर रही हैं तो कल आप के बच्चे आप की सेवा करेंगे. यही जीवन चक्र है. जहां तक आप परेशानी की बात कर रही हैं तो उन के लिए कोई फुलटाइम मेड रख लें. आप का काम आसान हो जाएगा. यदि आप को 4-5 घंटे के लिए परिवार के साथ कहीं जाना होगा तो वह भी हो जाएगा. किसी तरह से वक्त निकाल लीजिए. वैसेआप के पति आप का पूरा हाथ बंटाते हैं. इस बात से आप को खुश होना चाहिए. 

Father’s Day Special : सांझ का साथी- दीप्ति क्यों नही समझ पाई पापा का दर्द?

‘‘पापा, यह क्या किया आप ने? इतना बड़ा धोखा वह भी अपने बच्चों के साथ, क्यों किया आप ने ऐसा? आखिर क्या कमी थी हमारे प्यार में, हमारी देखभाल में, जो आप ने ऐसा कदम उठा लिया? एक ही पल में सारे रिश्तों को भुला दिया. चकनाचूर कर दिया उन सारी यादों को, उन सारी बातों को, जिन्हें याद कर के हम खुशी से पागल हुआ करते थे. गर्व किया करते थे अपने पापा पर कि हमारे पापा दुनिया के बैस्ट पापा हैं जिन्होंने कभी भी हमारी किसी भी बात को नहीं टाला, जो मुंह से निकला, फौरन ला कर दिया.

‘‘मुझे याद है, आज भी बचपन के वे दिन, जब हम स्कूल जाया करते थे और हम लेट न हो जाएं, आप अपने हाथों से एकएक निवाला खिलाया करते थे. कभी कहानी सुनासुना कर, कभी बहलाफुसला कर. और हम बहकावे में आ कर खा लिया करते थे. पता तब चलता था जब सारा खाना खत्म हो जाता था और आप जीत की खुशी से मुसकराते थे. कितना प्यार लुटाते थे हम बच्चों पर आप.

‘‘आप का सारा प्यार हमारा था, पापा. मां भी कितना खुश होती थीं हमें खुश देख कर. याद है आप को जब एक बार मुझे तेज बुखार आया था तो आप ने ही मेरे माथे पर पट्टियां रखी थीं और मैं ने आप का हाथ सारी रात नहीं छोड़ा था.

‘‘लेकिन आप ने एक ही पल में सबकुछ खत्म कर दिया. मां के साथ भी विश्वासघात किया है आप ने. धोखा किया है. एक बार भी नहीं सोचा कि मां को गुजरे हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ. जबतब उन की यादें आंखों के सामने उभरती रहती हैं. उन की खुशबू, उन की चूड़ी की खनक आज भी कमरे से आती होगी. उन के हाथों का स्पर्श आज भी आप के कपड़ों पर होगा. घर के हर सामान में होगा. कितना प्यार करती थी वह हम सब को.

‘‘उन की अलमारी को खोल कर तो देखिए. उन की साडि़यों के बीच में कुछ रुपए छिपे हुए जरूर मिलेंगे जिन को उन्होंने संभाल कर रखा था, उस समय के लिए जब आप का जन्मदिन हो या कोई जरूरत पड़े तो वे चुपके से आप की जरूरत का सामान ला सकें और उपहार पाने के बाद आप के चेहरे की खुशी को महसूस कर सकें. वे हमेशा आप के साथ खड़ी रहीं हर सुखदुख में.

‘‘याद कीजिए उस भयानक हादसे को जब आप कार ऐक्सिडैंट में बुरी तरह जख्मी हो गए थे और डाक्टर ने जवाब दे दिया था. तब मां का अटूट विश्वास था कि वे आप को बचा लेंगी और उन की सेवा ने आप को बचा भी लिया. एक बोतल खून मामाजी ने और एक मां ने दिया था. इस के बावजूद भी वे आप की सेवा में दिनरात लगी रहीं बिना थके, बिना किसी शिकायत के.

‘‘देखा जाए तो दूसरा जीवन आप को मां ने ही दिया है. आप उन के कर्जदार हैं, पापा. फिर आप उन को धोखा कैसे दे सकते हैं? उन के प्यार को कैसे भुला सकते हैं?

‘‘जब वे दुनिया से विदा ले रही थीं तो भी उन की आंखें आप ही को तलाश रही थीं और उन के आखिरी शब्द आज भी मेरे कानों में गूंज रहे हैं. उन्होंने टूटीफूटी आवाज में कहा था, ‘दीप्ति, अपने पापा का ध्यान रखना. वे मेरे बगैर नहीं रह पाएंगे.’ यह कहते हुए उन्होंने आखिरी सांस ली थी और हम सब को रोताबिलखता छोड़ गई थीं.

‘‘आप तो कठोर होने का बस नाटक ही कर रहे थे. कैसे बच्चों की तरह, मुझ से भी ज्यादा, फूटफूट कर रोए थे आप. अब क्या हो गया पापा?

‘‘क्या वह रोना महज एक दिखावा था. मां के साथ बिताए हुए 26 साल एक धोखा थे जो आप मां को देते आ रहे थे. आप इतने खुदगर्ज कैसे हो सकते हैं? मां की यादों को कैसे भुला सकते हैं?

‘‘अब मेरी मां की साडि़यां वह पहनती होगी, जिन से मेरी मां की खुशबू अभी तक नहीं गई होगी. मां के करीने से सजाए किचन में वह चाय बनाती होगी और चाय के पतीले को यों ही छोड़ देती होगी. मां को कितनी चिढ़ थी कि चाय का पतीला गंदा पड़ा हो. हमेशा वे हाथ के हाथ साफ कर के रखती थीं. पूरा का पूरा घर मां की यादों से भरा है. कहां वह अपना घर बसाएगी. कैसे वह किसी और के पति और पिता को अपना कह सकेगी?

‘‘पापा, रात को आसमान में देखना एक छोटा सा टिमटिमाता हुआ तारा नजर आएगा. जो ठीक अपनी छत के ऊपर ही होगा और हमेशा छत के ऊपर ही रहेगा. वह तारा नहीं है पापा, वह हमारी मां हैं जो वहां से आप को देख रही हैं.

‘‘आंगन में रखे हुए तुलसी के पौधे पर कुछ ओस की बूंदें दिखाई देंगी. वे सिर्फ बूंदें नहीं हैं, शायद, मां के आंसू हैं. वे जरूर रोती होंगी, क्योंकि रिश्तों के विश्वास की नींव अब दरक चुकी है.

‘‘पापा, अब आप हमारे पापा नहीं हैं, मेरे मां के पति भी नहीं. अब आप, बस, उस औरत के पति हैं सिर्फ उस औरत के पति.

‘‘अपनी मां की बेटी, दीप्ति.’’

अपने पापा को ई मेल कर दीप्ति फफक कर रो पड़ी. आज उसे अपनी मां की बहुत याद आ रही थी. अपना ही घर पराया सा लगने लगा था. कैसे पैर रख पाऊंगी उस घर में मैं? क्या बताऊंगी अपने दोस्तों को? कैसे सामना करूंगी आप का? अब कहां जाऊंगी मैं?

उसे लग रहा था जैसे उस के पापा ने नहीं, उस ने ही कोई गुनाह किया हो? तमाम सवालों में उलझी वह अंदर ही अंदर टूट रही थी.

शाम को कालेज से लौटते ही उस ने लैपटौप खोला. पापा का जवाबी मेल आ चुका था, जिसे वह एक सांस में पढ़ती चली गई :

‘‘मेरी बच्ची,

‘‘जैसा तू सोच रही है, ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं तेरा स्वार्थी पापा नहीं हूं. मैं आज भी तुम लोगों को बहुत प्यार करता हूं, बल्कि पहले से भी कहीं ज्यादा और हमेशा ही करता रहूंगा. तेरी मां यह जिम्मेदारी मुझे सौंप कर गई है कि मैं उस के हिस्से का प्यार भी तुम दोनों को करूं.

‘‘तेरी मां की कमी को कभी भी कोईर् भी पूरा नहीं कर सकता. उस के प्रति जो प्रेम था मेरा, वह आज भी वैसा ही है. बस, दिल के किसी कोने में कैद हो गया है. मैं उसे बाहर ला नहीं सकता और न ही दिखा सकता हूं. मैं पुराने और जर्जर पेड़ की तरह अकेला खड़ा हूं, एक ऐसा पेड़ जो फल तो देता है मगर उस के आसपास कोई भी पौधा नहीं पनपता.

‘‘तुझे याद है 6 महीने पहले जब मुझे हार्टअटैक आया था. तो तू ने ही यहां आ कर कितनी सेवा की थी और आननफानन संजू की शादी भी करवा दी थी, यही सोच कर कि, घर फिर से बस जाएगा. घर में बहू आएगी. बच्चे होंगे तो मेरा भी मन लगा रहेगा. पर तुझे याद है, मैं ने कितना मना किया था कि संजू की शादी मत करवा. संजू बिगड़ गया है. बुरी आदतों का शिकार हो गया है. पर तू नहीं मानी. तूने सोचा, परिवार की जिम्मेदारी पड़ेगी, पत्नी आएगी, तो वह सुधर जाएगा. पर वह तेरी भूल थी बेटा, बहुत बड़ी भूल.

‘‘वह पत्नी के आते ही सवासेर हो गया. यह तो तू जानती ही है कि शादी के एक महीने बाद ही वह मुझ से अलग हो गया था. घर का सारा कीमती सामान ले कर वह दरियागंज वाले मकान में शिफ्ट हो गया. अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों में इतना व्यस्त हो गया कि उस के बाद उस ने कभी आ कर भी नहीं झांका कि मैं मरा हूं या जिंदा हूं.

‘‘बस, एक बार आया था, कार की चाबी और कुछ जरूरी पेपर ले कर चला गया. बड़े ही रुखे और सपाट स्वर में उस ने कहा था, ‘आप को बुढ़ापे में दो रोटी ही तो चाहिए, मिल जाएंगी.’

‘‘मैं उस के पीछेपीछे दौड़ा था, गाड़ी के पीछे भी, पर वह नहीं रुका, चला गया मुझे कुछ कपड़े, बरतन और पुराने फर्नीचर के साथ छोड़ कर. जिंदा रहने के लिए दो रोटी ही काफी नहीं होती बेटा. मुझे खाने और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पर कोई अपना नहीं था. कोई पास नहीं था. कोई बोलने वाला नहीं था.

‘‘यहां तक कि कमलाबाई, जो बरसों से खाना बना रही है आज भी बनाती है, से अब मैं बात करते हुए डरता हूं. न जाने कब वह मुझे गलत समझ बैठे. वैसे भी कई बार वह कह चुकी है, ‘बाबूजी, कोई दूसरी कामवाली देख लो, अब मुझे आना अच्छा नहीं लगता. मेरा मर्द कहता है कि जहां औरत नहीं, वहां तू काम नहीं करेगी.’

‘‘पूरी दुनिया ही जैसे बदल गई

थी. घर की दीवारें भी मुंह

चिढ़ाने लगी थीं. खाली समय काटे नहीं कटता था. चौबेजी के साथ पार्क में घंटेदोघंटे कट जाते थे. पर एक दिन वे भी कहने लगे, ‘पत्नी नाराज होती है. पोते को होमवर्क कराना होता है.’ मैं ही भूल गया था कि खाली तो बस मैं ही हूं, बाकी सब तो परिवार वाले हैं.

‘‘पर मैं क्या करूं? कहां जाऊं? और कितनी देर? चारों तरफ अंधकार ही अंधकार नजर आने लगा था.

‘‘उस रात जब मैं टिमटिमाते तारे में पुष्पा को देख रहा था, तो बातों का सिलसिला चल पड़ा. कुछ उस ने अपनी कही, कुछ मेरी सुनी. इस कहासुनी में आधी रात कब निकल गई, पता ही नहीं चला.

‘‘बूढ़ी हड्डियां और जाड़े की ओस, बुखार ने तेजी पकड़ ली. मैं पूरी रात लौन में झूले पर पड़ा रहा. सुबह जब घनश्याम सफाई करने आया तो देख कर घबरा गया. उस ने मुझे अंदर लिटाया. और तुझे और संजू को फोन किया था. संजू आया, उस ने मुझे डाक्टर को दिखाया और कुछ फल, दवाएं रख कर चला गया. जिन्हें मैं छू भी न सका. छूता भी कैसे? मुझे उस की जरूरत थी ही नहीं.

‘‘तू फोन पर परेशान हो गई थी और तूने कहा था, ‘पापा, आप अपना खयाल रखना. दवाई लेते रहना. कमलाबाई से दलिया बनवा लेना. मैं पुणे से कैसे आ पाऊंगी? फाइनल एग्जाम में एक महीना ही बचा है. आप हिम्मत से काम लो, मैं आप को फोन करती रहूंगी.’

‘‘पर अब हिम्मत मुझ में नहीं बची थी. कहां से लाता हिम्मत? एक तो बीमारी और दूसरा अकेलापन जो हरदम मुझे काटता रहता था. हार्टअटैक के बाद से दिल बहुत घबराता था.

‘‘घर की हर चीज में पुष्पा की यादें बसी थीं. मेरा उस से बातें करने को जी करता था. मैं उसे ढूंढ़ता तो झट से सामने आ कर खड़ी हो जाती और समझाती थी कि ‘तुम अपना खयाल रखो, तुम्हें मेरी कसम, तुम्हें अभी जीना है अपने बच्चों के लिए.’

‘‘और फिर, मैं मरता भी कैसे? यह इतना आसान नहीं था. तभी मेरी मुलाकात सुमित्रा से हुई. उसे भी एक साथी की जरूरत थी और मुझे भी. वह भी बरसों से अकेली रह रही थी. इसलिए हम ने साथ रहने का फैसला किया, सात फेरे समाज के लिए जरूरी थे, वे भी हम ने ले लिए.

‘‘वह तेरी मां की जगह कभी नहीं ले सकती और न ही मेरी पत्नी बन सकती है. बस, अब मैं खाली दीवारों से बातें नहीं करता. अब घर में एक और इंसान है जो सांस लेता है. जिस के चलने की आवाज सन्नाटे के एहसास को खत्म करती है. दोपहर को हम दोनों लूडो खेलते हैं और शाम को काफी देर पार्क में बैठते हैं. जब चौबेजी चले जाते हैं उस के बाद भी. वह मेरा खयाल रखती है. दोनों टाइम दवा अपने हाथ से देती है. मैं उसे रात में गुनगुने पानी मेें नमक डाल कर देता हूं ताकि वह पैरों की सिंकाई कर सके. काफी समय से उस के पैरों में सूजन है जो जाती ही नहीं. जब मैं पुष्पा को याद कर के रोता हूं तो वह आंसू पोंछ कर चुप कराती है. अब उसे भी अकेलेपन से डर नहीं लगता. मेरी तरह वह भी खुद को सुरक्षित महसूस करती है, कहती है, ‘जब मरूंगी तो लावारिस की तरह नहीं मरूंगी.’

‘‘वह चाय का पतीला धो कर रखती है. कमलाबाई भी अब काम छोड़ने को नहीं कहती. सुमित्रा खाली समय में स्वेटर बुनती रहती है. जब मैं ने पूछा कि यह किस का स्वेटर है? तो हंस कर कहने लगी, ‘दीप्ति के लिए पौंचू बना रही हूं.’

‘‘उस के इस जवाब से मुझे आत्मसंतुष्टि सी मिली है. फिर भी वह तेरी मां नहीं है. मेरी पत्नी भी नहीं है. उस के साथ मेरा अलग सा रिश्ता बन चुका है. वह है, बस, मेरी सांझ का साथी और मैं उस का.

‘‘तेरा पापा.’’

‘‘पापा, मुझे माफ कर दीजिए. मैं आप की अच्छी बेटी नहीं बन पाई. जब से आप का मेल मिला है, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. रातभर सो नहीं पाई हूं. मैं ने कभी अपनी खुशहाल जिंदगी में रहते हुए कल्पना भी नहीं की कि आप उस अकेलेपन में कैसे जीते होंगे? पहाड़ सा दिन और सुनसान घर की रातें कैसे काटते होंगे? हम ने चिंता की तो बस आप के खाने की और आप की बीमारी की. इस से ऊपर हमारी सोच कभी गई ही नहीं थी. धिक्कार है मुझे अपनेआप पर. पर अब मैं ने कुछ सोचा है. कल मैं पहली फ्लाइट से दिल्ली आ रही हूं. अपनी मां से मिलने और आप की रजिस्टर्ड मैरिज करवाने, आप को आप की पत्नी और खुद को अपनी मां देने.

‘‘आप की बेटी दीप्ति.’’

दांत दर्द दे सकता है भावनात्मक तनाव

मानसिक रोगों का सीधा संबंध हमारे तंत्रिकातंत्र से जुड़ा होता है पर हमारे शारीरिक अंग भी इन रोगों को उत्पन्न करने के कारक बनते हैं. मुंह, दांत, जीभ, तालू में अगर थोड़ा सा विकार है तो रोग की यह समस्या धीरेधीरे पीडि़त व्यक्ति को मनोरोगी बना देती है क्योंकि दांतों की जड़ें भी सूक्ष्म तंत्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क से जुड़ी रहती हैं.

यही हाल मुंह में विद्यमान और अंगों का भी है. जीभ, मसूड़े सभी तंत्रिकाओं के तानेबाने से जुड़े हैं और ये अतिसूक्ष्म तंत्रिकाएं बेहद संवेदी होती हैं. दांतों में दर्द का एहसास, खट्टेमीठे का अनुभव यही संवेदी तंत्रिकाएं मस्तिष्क को कराती हैं. जब यह समस्या लगातार बनी रहती है तो मस्तिष्क का सारा ध्यान इसी पर केंद्रित हो जाता है और हमारा मन वहीं पर अटका रहता है. मन के एक ही जगह पर स्थित रहने से व्यक्ति धीरेधीरे एक मनोरोगी की भांति व्यवहार करने लगता है.

हालांकि केवल मुंह और दांत की समस्या से व्यक्ति मनोरोगी हो जाता है, ऐसा कहना उचित नहीं होगा पर आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास तनाव बहुत अधिक है. तनाव कहीं न कहीं दांतों, मसूड़ों और मुख से संबंधित बीमारियों पर अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है.

नई दिल्ली स्थित मौलाना आजाद इंस्टिट्यूट औफ डैंटल साइंसैज के डायरैक्टर और प्रिंसिपल डा. महेश वर्मा कहते हैं, ‘‘तनाव से दांत घिसने लगते हैं. कुछ लोग रात को सोते समय दांत किटकिटाते हैं. इस से दांत घिस जाते हैं. तनाव की वजह से कई मरीज दिन में ऐसा करते भी हैं. इस से दांत का बाहरी हिस्सा घिस जाता है और दांत बहुत सैंसिटिव हो जाते हैं. दांतों का स्ट्रक्चर घिस जाता है और नीचे की नसें बाहर आ जाती हैं. दांत किटकिटाने जैसी समस्या से नजात पाना है तो इस के लिए अच्छी नींद और सही देखभाल आवश्यक है.’’

डा. महेश वर्मा आगे कहते हैं, ‘‘इस से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, मसलन, ऐसे लोग खाना नहीं खा सकते, पानी नहीं पी सकते, दांतों में हवा भी लगती है. जब तक इस का सही तरीके से इलाज नहीं होगा तब तक लोग सामान्य महसूस नहीं कर सकते.’’

वे आगे बताते हैं, ‘‘शारीरिक विकार के चलते जब मस्तिष्क भावनात्मक तनाव का शिकार होने लगता है तो यह स्थिति साइकोसोमैटिक कहलाती है. इन में से एक है बर्निंग माउथ सिंड्रोम. इस में ऐसा लगता है कि मुंह से आग निकल रही हो. ऐसा लगता है कि मुंह पूरा जल रहा है. यह अकसर महिलाओं में देखने को मिलता है. इस में मरीज का मुंह सूख जाता है यानी थूक में लार की कमी हो जाती है. इस से दांतों की दूसरी बीमारियां शुरू हो जाती हैं.

‘‘इस के अलावा कई बार तनाव की वजह से व्यक्ति अपने मांस को कुतरता रहता है. यह भी साइकोसोमैटिक या न्यूरोटिक हैबिट की वजह से वह ऐसा करता है. केवल इतना ही नहीं, आटोइम्यून कारणों से लाइकन प्लानेस की समस्या हो जाती है जिस में मुंह में धारीदार सफेद चकत्ते हो जाते हैं. यह तनाव वाले मरीजों में ज्यादा होता है. जिन लोगों में तनाव अधिक होता है उन के मुंह में छाले जल्दीजल्दी होते हैं.’’

डा. महेश वर्मा आगे कहते हैं, ‘‘जिन व्यक्तियों में तनाव अधिक होता है उन में सोरयासिस नामक बीमारी भी देखने को मिलती है. हालांकि, यह चमड़े की बीमारी है पर इस के लक्षण मुंह में भी देखने को मिलते हैं. तनाव से जीभ में गहरे फिशेज पड़ने के साथसाथ छाले वाली होंठों की हरपीज, पायरिया आदि से ग्रस्त हो जाता है. कुल मिला कर कहें तो साइकोसोमैटिक शारीरिक गतिविधियों को कमजोर करती है. इस का इलाज कराना बहुत ही जरूरी है. इस के लिए मनोचिकित्सक, चर्म रोग विशेषज्ञ और मुंह के रोग विशेषज्ञ से परामर्श कर के इलाज कराना ज्यादा बेहतर होता है.’’

स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर का कारण है. अगर मन तनावमुक्त होगा तो बहुत सारी बीमारियां स्वयं ही दूर हो जाएंगी.

Father’s Day Special: दूरियां- क्यों हर औलाद को बुरा मानता था सतीश?

‘‘सुरेखा, सुरेखा…’’ किचन में कुकर की सीटी की आवाज के आगे सतीश की आवाज दब गई. जब पत्नी ने पुकार का कोई जवाब नहीं दिया तो अखबार हाथ में उठा कर सतीश खुद अंदर चले आए.

हाथ का अखबार पास पड़ी कुरसी पर पटक कुछ जोर से बोले सतीश, ‘‘क्या हो रहा है? मैं ने कल की खबर तुम्हें सुनाई थी कि पिता के पैसों के लिए बेटे ने उस की हत्या की सुपारी अपने ही एक दोस्त को दे दी. देखा, कलियुगी बच्चों को…बेटाबेटी ने मिल कर अपने बूढ़े मातापिता को मौत के घाट उतार दिया, ताकि उन के पैसों से मौजमस्ती कर सकें. हद है, आज की पीढ़ी का कोई ईमान ही नहीं रहा.’’  सुरेखा ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, ‘‘आप इन खबरों को पढ़ कर इतने परेशान क्यों होते हैं? यह भी देखिए कि ये बच्चे किस वर्ग के हैं और कितने पढ़ेलिखे हैं?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम? ये बच्चे बाहर से एमबीए आदि पढ़लिख कर आए थे. जरा सोचो सुरेखा, इन की पढ़ाईलिखाई पर मांबाप ने कितना पैसा खर्च किया होगा. आजकल के बच्चे इतने नकारा हैं कि…’’

कहतेकहते हांफने लगे सतीश. सुरेखा पानी का गिलास ले कर उन के पास चली आईं, ‘‘आप रोजरोज इस तरह की खबरें पढ़ कर अपने को क्यों दुखी करते हैं? छोडि़ए न, हम तो अच्छेभले हैं. बस, 2 महीने रह गए हैं आप के रिटायरमैंट को. अपना घर है. पैंशन आती रहेगी. और क्या चाहिए हमें? जितना है वह अपने बच्चों का ही तो है.’’

सतीश पानी का एक घूंट ले कर कुछ रुक कर बोले, ‘‘बच्चों का क्यों? तीनों को पढ़ालिखा दिया. अब जो करना है, उन्हें खुद करना है. मैं एक पैसा किसी पर खर्च नहीं करने वाला.’’

सुरेखा चौंकीं, ‘‘अरे, यह क्या कह   रहे हैं? सिर्फ अमन की ही तो   शादी हुई है. अभी तो आभा की होनी है. आरुष भी आगे पढ़ाई करना चाहता है. फिर…’’

इस ‘फिर’ से बचते हुए सतीश बाहर निकल गए. दरअसल, जब से उन्होंने अपनी ही कालोनी में रहने वाले जगत को सुबहसुबह पार्क में फूटफूट कर रोते देखा तो उन की सोच ही बदल गई. जगत उम्र में उन से 10 साल बड़े थे. एक बेटा धनंजय और एक बेटी छवि. धनंजय को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. रिटायरमैंट में मिले फंड के पैसों से छवि की शादी कर दी. बचाखुचा पत्नी की बीमारी में निकल गया. बेटे की शादी के बाद वे साथ ही रहते थे. महीना भर पहले बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. जगत की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस उम्र में जाएं तो कहां जाएं. अपनी पूरी कमाई बच्चों पर लगा दी. उन की पढ़ाई और शादी की वजह से अपना घर नहीं बना पाए. पैंशन नहीं, देखरेख करने वाला भी कोई नहीं.

सतीश, जगत का हाल सुन कर हिल गए. धनंजय को बचपन में देखा था उन्होंने. वह ऐसा निकलेगा, क्या कभी सोचा था?  सुरेखा को पता था कि सतीश एक बार जो ठान लेते हैं उस से पलटते नहीं हैं. कल रात ही आरुष ने उन से कहा था, ‘‘पापा, मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता हूं. छात्रवृत्ति के लिए कोशिश तो कर रहा हूं, फिर भी 3 लाख तक का खर्च आ ही जाएगा.

पापा, क्या आप इतने पैसे उधार दे सकेंगे?’’

आरुष ने बिलकुल एक बच्चे की तरह कहा, ‘‘ममा, 2 साल बाद मेरा एमबीए हो जाएगा. इस के बाद मुझे कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मैं पापा के सारे पैसे चुका दूंगा. आप बात कीजिए न उन से,’’ उस समय तो सुरेखा ने हां कह दिया था, पर अपने पति का रुख देख कर उसे शंका हो रही थी कि पता नहीं वे क्या जवाब देंगे.

घर का काम निबटा कर सुरेखा सतीश के कमरे में आईं, तो वे कंप्यूटर के सामने चिंता में बैठे थे. सुरेखा धीरे से उन के पीछे आ खड़ी हुईं. कुछ क्षण रुकने के बाद बोलीं, ‘‘यह क्या चिंता ले कर बैठ गए? बच्चे भी पूछने लगे हैं अब तो. खाना भी सब के साथ नहीं खाते और…’’  सतीश ने पलट कर सुरेखा की तरफ देखा, ‘‘मेरे पास उन से बात करने के लिए कुछ नहीं है. वे अपनी अलग दुनिया में जीते हैं सुरेखा. मैं साथ बैठता हूं तो सब असहज महसूस करते हैं.’’  ‘‘ऐसा नहीं है, सब आप की इज्जत करते हैं. अच्छा, कल बहू मायके जाने को कह रही है, भेज दें?’’

सतीश झल्ला गए, ‘‘तुम ये सब बातें मुझ से क्यों  पूछ रही हो, उन्हें तय करने दो. अमन जिम्मेदार शादीशुदा आदमी  है. उसे अपनी जिंदगी खुद जीनी चाहिए.’’ सुरेखा चुप हो गईं. ऐसे मूड में आरुष के विदेश जाने की बात करतीं भी कैसे?

अगले दिन नाश्ते के समय आरुष ने खुद बात छेड़ दी, ‘‘पापा, मैं ने आप को बताया था न कि एमबीए के लिए मेरा अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में चयन हो गया है. बस, पहले साल मुझे 40 प्रतिशत स्कौलरशिप मिलेगी. मैं सोच रहा था कि अगर आप…’’  सतीश एकदम से भड़क गए, ‘‘सोचना भी मत. तुम्हें इंजीनियर बना दिया, बस, अब इस से आगे मैं कुछ नहीं कर सकता. यही तो दिक्कत है तुम जैसी नई पीढ़ी की, बस अपनी सोचते हो. यह नहीं सोचते कि कल तुम्हारे मातापिता का क्या होगा? हम अपनी बाकी जिंदगी कैसे जिएंगे?’’

आरुष सकपका गया. अमन भी वहीं बैठा था. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘पापा, आप ऐसा क्यों कहते हैं? हम लोग हैं न.’’  सतीश के होंठों पर व्यंग्य तिर आया, ‘‘तुम लोग क्या करोगे, यह मुझे अच्छी तरह पता है. मुझे तुम लोगों से कोई उम्मीद नहीं, तुम लोग भी मुझ से कोई उम्मीद मत रखना…’’ प्लेट छोड़ उठ खड़े हुए सतीश. सुरेखा को झटका सा लगा. अपने बच्चों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं सतीश? आज तक बच्चों की परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं रखी, अच्छे स्कूलकालेजों में पढ़ाया. अब अचानक उन के सोचने की दिशा क्यों बदल गई है?

अमन उठ कर सुरेखा के पास चला आया, ‘‘मां, पापा को आजकल क्या हो गया है? आजकल इतने गुस्से में क्यों रहते हैं?’’ अचानक सुरेखा की आंखों से आंसू निकल आए, ‘‘पता नहीं क्याक्या पढ़ते रहते हैं. सोचते हैं कि उन के बच्चे भी उन के साथ…’’

‘‘क्या मां, क्या लगता है उन्हें? हम उन के पैसों के पीछे हैं?’’ अमन ने सीधे पूछ लिया.

सुरेखा की हिचकी बंध गई, ‘‘पता नहीं बेटा, ऐसा ही कुछ भर गया है उन के दिमाग में. मैं तो समझासमझा कर हार गई कि सब घर एक से नहीं होते.’’

अमन ने सुरेखा के हाथ थाम लिए और धीरे से बोला, ‘‘इस में पापा की गलती नहीं है. आजकल रोज इस तरह की खबरें आ रही हैं. पहले भी आती होंगी, पर आजकल मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. आप जाने दीजिए मां, सब ठीक हो जाएगा. पापा से कह दीजिए कि हमें उन के पैसे नहीं चाहिए. बस, हमें चाहिए कि वे सुकून से रहें.’’

अमन और आरुष अपनेअपने रास्ते पर चले गए. आभा अब तक कालेज से नहीं आई थी. इस साल उस की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी. आभा चाहती थी कि वह नौकरी करे. सुरेखा को लगता था कि समय पर उस की शादी हो जानी चाहिए. पर उन की सुनने वाला घर में कोई नहीं था.  आरुष ने अमन की मदद से बैंक से लोन लिया और महीने भर बाद वह अमेरिका चला गया. आभा को भी कैंपस इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. जब उस ने अपनी पहली तनख्वाह सतीश के हाथ में रखी तो वे निर्लिप्त भाव से बोले, ‘‘अपनी कमाई तुम अपने पास रखो, जमा करो. कल तुम्हारे काम आएगी.’’

सुरेखा ने समझ लिया था कि सतीश को समझाना बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि कम से कम बच्चे समझदार हैं. 6 महीने बाद अमन को भी मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई. अमन अपनी पत्नी के साथ मुंबई चला गया.  सुरेखा को घर का अकेलापन काटने लगा. आभा का काम कुछ ऐसा था कि दफ्तर से लौटने में देर हो जाती. सुरेखा टोकतीं तो आभा कहती, ‘‘मां, आजकल हर प्राइवेट नौकरी में यही हाल है. देर तक काम करना पड़ता है. कोई जल्दी घर जाने की बात नहीं करता तो मैं कैसे आऊं.’’  आभा इतनी व्यस्त रहती कि उसे खानेपीने की सुध ही नहीं रहती. सुरेखा चाहती थीं कि उन की युवा बेटी शादी कर के सुख से रहे. दूसरी लड़कियों की तरह सजेसंवरे, अपनी दुनिया बसाए. एक दिन वह सतीश के सामने फट पड़ीं, ‘‘आप को पता भी है कि आभा कितने साल की हो गई है? उस की शादी की बात आप चलाएंगे या मैं चलाऊं? मैं अपनी बेटी को खुश देखना चाहती हूं.’’

सतीश अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने रमे हुए थे कि बेटी का रिश्ता खोजना उन्हें भारी लग रहा था. पर सुरेखा के कहने पर वे कुछ चौकन्ने हुए. अखबार में देख कर एक सही सा लड़का ढूंढ़ा. आभा को यह बिलकुल पसंद नहीं था कि वह किसी के देखने की खातिर सजेसंवरे. बड़ी मुश्किल से वह लड़के वालों के सामने आने को तैयार हुई. सुरेखा उत्साह से तैयारी में जुट गईं. बेटी की शादी का सपना हर मां अपनी आंखों में संजोए रहती है.  आभा 2-3 बार उस से कह चुकी थी कि मां, अभी रिश्ता हुआ नहीं है. आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं  है. बस, चाय और बिस्कुट रखिए मेज पर.  सुरेखा हंसने लगीं, ‘‘ऐसा कहीं होता है भला? जिस घर में तेरी शादी होनी है उस घर के लोगों की कुछ तो खातिरदारी करनी पड़ेगी.’’

आभा चुप हो गई. सुरेखा ने घर पर ही गुलाबजामुन बनाए, नारियल की बरफी बनाई, नमकीन में समोसे, कटलेट और पनीर मंचूरियन बनाया. साथ ही जलजीरा आदि तो था ही. चुपके से जा कर वे अपने होने वाले दामाद के लिए सोने की चेन भी ले आई थीं. रिश्ता पक्का होने के बाद कुछ तो देना पड़ेगा.

सतीश को जिस बात का अंदेशा था, आखिरकार वही हुआ. प्रमोद चार्टर्ड अकाउंटैंट था और आते ही उस की मां ने बढ़चढ़ कर बताया कि प्रमोद को सीए बनाने में उन्होंने कितने पापड़ बेले हैं.

सतीश ने कुछ देर तक उन का त्याग- मंडित भाषण सुना, फिर पूछ लिया, ‘‘देखिए मैडम, हर मातापिता अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए कुछ न कुछ त्याग तो करते ही हैं. मैं ने भी अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत खर्च किया है. आप कहना क्या चाहती हैं, यह स्पष्ट बताइए.’’

प्रमोद की मां सकपका गईं. बात प्रमोद के मामा ने संभाली, ‘‘आप तो दुनियादार हैं सतीशजी. बेटे की शादी भी कर रखी है. आप को क्या बताना.’’

सतीश गंभीर हो गए, ‘‘अगर बात लेनदेन की कर रहे हैं तो मैं आप से कोई संबंध नहीं रखना चाहूंगा.’’

सतीश की आवाज इतनी तल्ख थी कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. इस के बाद बात बस, औपचारिक बन कर रह गई. उन के जाने के बाद सुरेखा अपने पति पर बरस पड़ीं, ‘‘लगता है, आप अपनी बेटी की शादी करना ही नहीं चाहते. आप का ऐसा रुख रहेगा, तो कौन आप से संबंध रखना चाहेगा भला?’’

सतीश ने अपनी पत्नी की तरफ निगाह डाली और शांत आवाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी बेटी को इसलिए नहीं पढ़ाया कि उस का रिश्ता ऐसे घर में करूं.’’

सुरेखा रोने लगीं, ‘‘आप पैसे के पीछे पागल हो गए हैं. अपनी बेटी की शादी में कौन पैसा खर्च नहीं करता.’’

सुरेखा के रोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. वे वहां से चले गए. अचानक सुरेखा ने कंधे पर एक कोमल स्पर्श महसूस किया, आभा खड़ी थी. आभा धीरे से बोली, ‘‘मां, रोओ मत. पापा ने सही किया. मुझे खुद दहेज दे कर शादी नहीं करनी. मैं अपने लिए राह खुद बना लूंगी, तुम चिंता मत करो.’’

बेटी का आश्वासन भी सुरेखा को शांत न कर पाया.

6 महीने बाद आभा ने एक दिन सुरेखा से कहा, ‘‘मां, मैं किसी को आप से मिलवाना चाहती हूं.’’

सुरेखा को खटका लगा. पहली बार आभा उस से किसी को मिलवाने को कह रही है. कौन है?

शाम को आभा अपने से उम्र में काफी बड़े एक आदमी को घर ले कर आई, ‘‘मां, मेरे साथ काम करते हैं हरिहरण. बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं और हम दोनों…’’

आभा की बात पूरी होने से पहले सुरेखा उसे खींच कर कमरे में ले गईं और बोलीं, ‘‘आभा, उम्र में इतने बड़े आदमी से…ऐसा क्यों कर रही है बेटी? ऊपर से साउथ इंडियन?’’

‘‘मां,’’ आभा ने सुरेखा का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘हरी बेहद सुलझे हुए और इंटेलिजैंट व्यक्ति हैं. आजकल नार्थसाउथ में क्या रखा है मां? तुम्हें भी तो इडलीसांभर पसंद है. क्या तुम होटल जा कर रसम और चावल नहीं खातीं? हरि को तो अपनी तरफ का राजमा, अरहर की दाल और आलू के परांठे बहुत पसंद हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से जाननेसमझने लगे हैं. मैं उन के साथ बहुत खुश रहूंगी मां,’’ कहतेकहते आभा की आंखों में पानी भर आया. सुरेखा ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘आभा, मेरे लिए तेरी खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं है बेटी. पर एक मां हूं न, क्या करूं, दिल नहीं मानता.’’

आभा की पसंद के बारे में सतीश ने कुछ कहा नहीं. उन्हें हरिहरण अच्छे लगे. आभा ने कोर्ट में जा कर शादी की. सुरेखा कहती रह गईं कि पार्टी होनी चाहिए, पर हरि ने हंस कर कहा, ‘‘मिसेज सतीश, आप पैसा क्यों खर्च करना चाहती हैं? वह भी दूसरों को खिलापिला कर. सेव इट फौर टुमारो.’’

तीनों बच्चे अपनी जिंदगी में रम गए. गाहेबगाहे आते तो कुछ लेने के बजाय बहुत कुछ दे जाते. सतीश अब पहले से कम बोलने लगे. अब उन्हें भी बच्चों की कमी खलने लगी थी.

ऐसे ही चुपचाप एक दिन रात को जो वे सोए तो सुबह उठे ही नहीं. पहला दिल का दौरा इतना तेज था कि उन के प्राण निकल गए. सुरेखा अकेली रह गईं. आभा महीना भर आ कर उन के पास रह गई, पर उस की भी नौकरी थी, जाना तो था ही. अमन भी आरुष का साथ देने अमेरिका पहुंच गया और वहीं जा कर बस गया.

इतने बड़े घर में सुरेखा अब अकेली पड़ गईं, सतीश की पैंशन, उन के कमाए पैसों और अपने गहनों के साथ. रहरह कर उस के मन में टीस उठती कि समय पर अगर बच्चों की मदद कर दी होती तो आज यह पैसा बोझ बन कर उन के दिल को ठेस न पहुंचाता.

अमन से जब भी वे अपने दिल की बात करतीं, वह तुरंत जवाब देता, ‘‘मां, तुम सब छोड़छाड़ कर यहां आ जाओ हमारे पास. सब साथ रहेंगे. मेरी बेटी बड़ी हो रही है. उसे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

बहुत सोचसमझ कर सुरेखा ने अपनी जायदाद के 3 हिस्से किए और कागजात साइन करवाने अमन, आभा और आरुष के पास भेज दिए. सप्ताह भर बाद अमन की लंबी चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था, ‘‘मां, हमें वहां से कुछ नहीं चाहिए. हम तीनों बच्चों को आप ने बहुत कुछ दिया है. आप अपना पैसा जरूरतमंदों में बांट दीजिए, किसी अनाथालय के नाम कर दीजिए. शायद इस से पापा की आत्मा को भी शांति मिलेगी. और हां, देर मत कीजिए, जल्दी आइए. अब तो कम से कम हम सब को साथ वक्त बिताना चाहिए.’’

सुरेखा फूटफूट कर रोने लगीं. काश, आज यह दिन देखने के लिए सतीश जिंदा होते. जिस पैसे की खातिर सतीश अपने बच्चों से दूर हो गए, वह पैसा आज उन के किसी काम का रहा नहीं.

गरमी में सेहतमंद रहने के लिए फौलो करें ये टिप्स

गरमी आते ही भूख कम और प्यास ज्यादा लगने लगती है. इसलिए जब गरमी आती है तो हमें अपनी सेहत के साथ-साथ खान पान का भी खास ध्यान रखना पड़ता है. इसलिए हम लेकर आये हैं आपके लिए कुछ खास टिप्स जिसे फौलो करने से आपकी सेहत चुस्त-दुरुस्त बनी रहेगी.

1 गरमियों में अगर थोड़ी-थोड़ी देर बाद लगने वाली प्यास से बचना चाहते हैं, तो डिनर से पहले एक प्लेट सलाद जरूर खाएं. इसमें प्याज़, टमाटर, खीरा, गाजर, स्प्राउट्स और बंदगोभी जरूर शामिल करें. इससे आपकी बौडी भी कूल रहेगी और शरीर में जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी जाएंगे. सिर्फ यही नहीं, रात के खाने से पहले एक प्लेट सलाद खाने से भी वजन कम करने में हेल्प मिलती है.

2 अगर आप नौनवेज फूड खाते हैं तो अपने खाने में फिश को शामिल करें. फिश में फैटी एसिड्स होता जो आम तौर पर कम फूड आइटम्स में मौजूद होते हैं, जैसे कि- ओमेगा-3 और ओमेगा-6. फिश मीट, रेड मीट और चिकन के मुकाबले शरीर को ज्यादा ठंडक देता है. इसलिए गर्मियों में ये आपकी बौडी के लिए फायदेमंद है.

3 छाछ एक ऐसा फूड आइटम है जो डिहाइड्रेशन को रोकता है. इसे आप दही से घर पर भी बना सकते हैं या फिर बाजार से भी ले सकते हैं. गर्मियों में अनहेल्दी सोडा या कोल्ड ड्रिंक से बचने के लिए छाछ पिएं.

4 इलायची, वैसे तो मुंह की ताजगी बढ़ाती है पर जब बात गरमी की करें तो इलायची में इंस्टेंट कूलिंग प्रौपर्टीज होती हैं, इसलिए गर्मियों में इलायची वाली चाय पीने से शरीर को तुरंत ठंडक मिलती है.

5 अगर आप अपनी सेहत के लिए कौनशियश है, जिम जाते हैं, तो आंवला आपके शरीर की सहनशक्ति बढ़ाता है. इसे खाने से दिल भी स्वस्थ रहता है और गरमियों में ये बौडी को हेल्दी भी रखता है.

तो अगर आपने ये टिप्स फौलो किए तो इस समर आप हेल्दी और फ्रेश जरुर रहेंगे.

परिवार: टोकाटाकी छोड़ो रिश्ते जोड़ो

पुरानी पीढ़ी अकसर अपने नियम अगली पीढ़ी पर थोपने की कोशिश में लगी रहती है जिसे बदलते वक्त के साथ अगली पीढ़ी के लिए स्वीकारना मुश्किल होता है. दोनों के बीच ऐसे में बातबात पर टोकाटाकी का सिलसिला शुरू हो जाता है जो रिश्तों में कड़वाहट घोलता है. पास की सोसाइटी में शोभाजी रहती हैं. भरापूरा परिवार है, पति विनोद, बेटा रवि और बहू तानिया. रवि की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी. तानिया बड़ी हंसमुख लड़की है, यह हमें शादी के समय ही महसूस हो गया था. खूब हंसती, खिलखिलाती तानिया ने सब का मन मोह लिया था.

टू बैडरूम फ्लैट में आराम से तानिया ने नए जीवन की शुरुआत की. शोभाजी हमेशा तानिया की खुलेदिल से तारीफ करतीं, कहतीं, ‘तानिया के आने से घर में बेटी की कमी पूरी हो गई. सबकुछ अच्छा चल रहा था. सालभर बाद विनोदजी गंभीर रूप से बीमार पड़े तो मैं उन्हें देखने गई. पता चला, बेटाबहू विनोदजी को ले कर डाक्टर को दिखाने गए हुए हैं. शोभाजी को हलका बुखार था तो वे नहीं गई थीं. पहले मैं ने उन के उतरे चेहरे को बुखार का असर समP पर उन की बातों से समझा आया कि घर का माहौल तो बिलकुल बदल चुका है. शोभाजी मुझसे काफी बड़ी हैं, मैं उन्हें दीदी कहती हूं. मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ है, आप बहुत परेशान लग रही हैं?’’ एक ठंडी सांस ले कर उन्होंने अपना दिल हलका कर ही लिया, ‘‘तानिया ने मुझे से बात करना बंद कर दिया है, उतनी ही बात करती है जितनी के बिना काम नहीं चलता.’’ मुझे एक ?टोटका सा लगा, ‘‘क्या कह रही हो दीदी, आप दोनों की बौंडिंग तो बहुत अच्छी थी. अचानक क्या हुआ?’’ ‘‘उसे मेरी जरा सी बात भी बरदाश्त नहीं.’’

‘‘जैसे?’’ ‘‘जरा सा टोक क्या दिया, बुरा ही मान मान गई.’’ ‘‘क्या टोक दिया?’’ ‘‘उस का शरीर इतना भारी हो गया है, उस पर मुझे जीन्स अच्छी नहीं लगती पर रवि और उसे पसंद है तो पहनती है, ठीक है पहनो. पर न बिंदी, न मंगलसूत्र, न चूडि़यां पहनती है, न बिछुए. ये सब तो पहना करे, बस नहीं सुनती. ये सब मानने में उसे क्या परेशानी है. तुम ही बताओ, क्या मैं गलत बात कहती हूं?’’ ‘‘हां, दीदी, गलत तो है, यह उस की मरजी ही होनी चाहिए कि उसे क्या पहनना है, वह इतनी सुशिक्षित है, मुंबई जैसे शहर में रहती है, उसे फैशन की समझा तो होगी ही और वैस्टर्न कपड़ों पर ये बिंदी, मंगलसूत्र बहुत अजीब ही लगता है, न इधर के, न उधर के कपड़े लगते हैं. ‘‘भाईसाहब का ध्यान रखती है,

उन्हें ले कर डाक्टर के पास गई हुई है, अपनी जिम्मेदारी समझाती है. आप के घर का मामला है, मुझे कोई राय देनी नहीं चाहिए पर थोड़ी टोकाटाकी कम कर के देखें, उसे एक बहू ही नहीं, एक स्वतंत्र व्यक्तित्व समझा कर देखें, शायद सब ठीक हो जाए.’’ मैं जितनी देर उन के पास बैठी, मैं ने महसूस किया वे जो भी बातें बता रही हैं, वे सब मुझे उन की टोकाटाकी की आदत लगी. तानिया स्पाइसी खाना न खाए, मायके ज्यादा बात न करे, जोरजोर से न हंसे, बहू है, बहू की तरह रहे. 20 साल की राधिका और उस का 16 साल का भाई रौनक अपने नानानानी के आने से बहुत परेशान हो जाते हैं. राधिका बताती है,

‘‘नानानानी बहुत अच्छे लगते हैं पर नानी रोज सुबह 6 बजे उठाने लगती है, हम देर रात तक कोचिंग से आते हैं, नींद पूरी नहीं होती. मम्मी को भी टोकती रहती हैं कि इसे कैसे कपड़े पहनाती हो, इसे किचन के काम समझाने शुरू करो. ये दोनों रात देर से क्यों आते हैं, पता नहीं कितने सवाल, कितनी टोकाटाकी. ‘‘कई बार तो मम्मी भी परेशान हो जाती हैं. दादी के आने पर भी यही हाल होता है. इन सब के आने की खुशी, बस, एक दिन ही टिक पाती है. कोई समझाता ही नहीं कि अब जमाना बदल गया है. हम शाम के 5 बजे घर आ कर नहीं बैठ सकते. इन सब का आना अच्छा लगता है पर टोकाटाकी से परेशान हो जाते हैं.’’ आजकल सचमुच समय बहुत बदल गया है.

वह समय तो कतई नहीं रहा कि कोई भी रिश्ता किसी तरह की, बेवजह की टोकाटाकी चुपचाप सुन ले. पड़ोस की एक आंटी तो घर की शांति का मूलमंत्र यही बताती हैं कि घर में जब बहू आ जाए तो गांधीजी के बंदरों की तरह आंख, कान और मुंह बंद रखने चाहिए, तभी घर में शांति रह सकती है. नीता तो अपनी बैस्ट फ्रैंड सीमा की आदत से ही परेशान है. वह बताती है, ‘‘जब भी सीमा उस के घर आती है, किचन की सैटिंग पर टोकटोक कर दिमाग खराब कर देती है. यह चीज यहां क्यों रखी हुई है, यह वहां होनी चाहिए, किचन में यह डब्बा यहां क्यों रखती है, आदिआदि. मैं उस से मजाक करती हूं कि तू बहुत बुरी सास बनेगी, तेरे घर में तेरी बहू दुखी हो जाएगी अगर तू ने अपनी यह सब टोकने की आदत खत्म न की तो. युवा पीढ़ी अपने हिसाब से, अपने अनुभव, अपने ज्ञान से अपने काम करना चाहती है.

युवा को थोड़ी छूट दी जाए, हां, अगर वे कहीं कुछ गलती कर रहे हैं तो जरूर टोका जाए, समझाया जाए पर यह सोच कर कि उन्हें कुछ नहीं आता, वे कुछ नहीं जानते, उन्हें ज्ञान देना हमारा फर्ज है, सही नहीं है. आज की युवा पीढ़ी अपनी समस्याओं से निबटना खूब जानती है. 27 साल की कुहू को सोलो ट्रिप पर जाना पसंद है. वह अकसर औफिस की छुट्टी ले कर कहीं घूम आती है.

उस के पेरैंट्स को भी इस में कोई परेशानी नहीं. कुहू का कहना है, ‘‘सारे दोस्तों का एक समय पर फ्री होना जल्दी संभव नहीं होता तो अपनेआप ही चली जाती हूं. पापा के औफिस की वजह से मम्मी उन्हें अकेला छोड़ हर समय मेरे साथ नहीं चल पाती हैं. फोन और इंटरनैट की सहूलियत आजकल है ही, मम्मीपापा के टच में रहती ही हूं पर जो भी सुनता है, मम्मी के पीछे पड़ जाता है कि मुझे इतनी छूट क्यों दी हुई है. मम्मी को रास्ते में मिलने पर टोकटोक कर परेशान कर देती हैं ये आंटियां.’’ कुछ रिश्ते बहुत अच्छे, बहुत अपने होते हैं. उन में स्नेह, प्यार सब होता है पर जरा सी टोकाटाकी से मन में दरार आने लगती है. इस से बचना चाहिए. जरूरी है रिश्तों में मिठास बनाए रखना. इस के लिए किसी को टोकते रहने की आदत छोड़नी पड़े तो क्या बुराई है?

अडानी-अंबानी की जगह अब जनता के मुद्दें पर आई कांग्रेस

कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने अपनी नीति में बड़े बदलाव किए. इसमें सबसे प्रमुख बात ये रही की जहां अबतक कांग्रेस बीजेपी पर सूट-बूट के साथ 2 मित्रों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए सरकार पर निशाना साधती थी, वहीं अब कांग्रेस आम जनता और दलितों की बात करते नजर आ रही है.

इसकी शुरूआत कांग्रेस ने हिमाचल से की जहां सबसे पहले पार्टी ने पुरानी पेंशन स्कीम की बात करते हुए हिमाचल की जनता के दिल में जगह बनाई और जीत दर्ज की. इसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस ने अहिंदा कार्ड खेला और दलित, मुस्लिम और पिछड़ों की बात करते राज्य में अच्छे वोटों से जीत हासिल की.

इससे पहले राहुल गांधी मोदी सरकार पर अडानी-अंबानी का नाम लेकर आक्रामक रहे, लेकिन जमीन पर पार्टी को उसका कोई फायदा मिलता नजर नही आ रहा था. राफेल मामले को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर भी जनता पर कोई असर पड़ता नजर नहीं आ रहा था. यही वजह है की कांग्रेस अब पूंजीवाद, अडानी-अंबानी जैसे मुद्दों को छोड़ अब आरक्षण, मुस्लिम उत्पीड़न के साथ दलितों की बात कर रही है.

हाल ही में यूपी कांग्रेस की बैठक में ऐलान किया गया की पार्टी जातीय जनगणना कराने और OBC आरक्षण बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलन करेगी. कांग्रेस का ये ऐलान बेहद चौंकाने वाला था, क्योंकि इससे पहले पार्टी ऐसे मुद्दों पर ज्यादात्तर चुप्पी साधना ही पसंद करती थी. लेकिन अब जातीय जनगणना और ओबीसी की बात कर कांग्रेस अब नए तेवर में नजर आ रही है.

इसका एक और उदाहरण राहुल गांधी के 6 दिवसीय अमेरिका दौरे में देखने को मिल रहा है. जहां राहुल गांधी बीजेपी-RSS पर हमला करते हुए संविधान पर चोट की बात कर रहे है. इसके अलावा राहुल ने अपने पहले दिन की बातचीत में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और गरीबों की बात करते हुए कहा.. आज भारत इनके लिए सहीं जगह नहीं रह गई है.

राहुल ने अमेरिका में बातचीत के दौरान कहा की आज भारत में मुस्लिम खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है, क्योंकि उनके साथ सबसे ज्यादा ज्यादती की जा रही है. और मैं गारंटी से कह सकता हूं की मेरे सिख, ईसाई, दलित और आदिवासी भाई भी ऐसा महसूस कर रहे होंगे.

राजनीतिक जानकारों का मानना है की राहुल गांधी और कांग्रेस के ये बयान पार्टी की नई रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि अबतक अडानी-अंबानी और अमीरों की सरकार वाली बात पर जनता कांग्रेस के साथ जुड़ नहीं पा रही थी.

लड़कियों पर क्यों हावी फिगर फोबिया

कई वर्षों से सिनेमा, टीवी और मौडलिंग के बढ़ते दबाव की वजह से सौंदर्य के मानदंड तेजी से बदलने लगे हैं. साफ शब्दों में कहा जाए तो आजकल जरूरत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की अनर्गल चाहत, ऊपर से फैशन का अनावश्यक दबाव और उस पर खुले बाजार की मार ने यहां बहुतकुछ बदल डाला है.

सौंदर्य की इस मौजूदा परिभाषा से इत्तफाक रखने वाले भी इस सचाई को स्वीकार करने लगे हैं कि फिगर का यह फोबिया कई तरह की मुसीबतों को जन्म देने लगा है.सौंदर्य में नए अवतार जीरो फिगर की चाहत युवतियों के दिलोदिमाग पर इस हद तक हावी है कि वे सौंदर्य ही नहीं, अपने स्वास्थ्य को भी दांव पर लगा रही हैं.

नकल में माहिर होती युवा पीढ़ी को अब इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कल तक प्रीति जिंटा, रानी मुखर्जी और काजोल जैसी गोलमटोल व गदराए यौवन की मल्लिकाएं लोगों की पहली पसंद हुआ करती थीं. आज तो जिसे देखो वही दिशा पाटनी, अनन्या पांडे, आलिया भट्ट और दीपिका पादुकोण जैसी फिगर पाना चाहती हैं.

टीवी, सिनेमा और मौडलिंग की इस भेड़चाल पर टिप्पणी करते हुए मशहूर मौडल और मिस चंडीगढ़ रह चुकीं दिशा शर्मा ने कहा कि करीना कपूर की फिल्म ‘टशन’ जैसी फिगर प्राप्त करने के लिए अब कालेजगोइंग युवतियां ही नहीं, बल्कि नवविवाहिता और कईकई बच्चों की मांएं भी डाइटिंग के साथसाथ जिस प्रकार ऐंटीबायोटिक दवाएं गटक रही हैं, उस ने उन के सामने कई तरह की शारीरिक समस्याएं खड़ी कर दी हैं.

दरअसल, भारत में जीरो फिगर की गपशप पहली बार करीना कपूर ‘टशन’ फिल्म से ले कर आई थीं. इस फिल्म में करीना कपूर ने तोतिया रंग की सैक्सी बिकिनी पहनी थी. उस सीन को समुद्र में फिल्माया गया. इस के बाद से ही बड़े जोरशोर से जीरो फिगर यानी सैक्सी दिखना समझा गया. हाल में दीपिका पादुकोण ने भी फिल्म ‘पठान’ में बिकिनी पहनी. वो तो बवाल भगवा बिकिनी पर मच गया, वरना जिस करीने से दीपिका पादुकोण के फिगर को फिल्माया गया उस ने यंग लड़कियों के दिमाग में जरूर रश्क पैदा किया होगा.

आज भी जितने भी फैशन शो होते हैं वहां जीरो फिगर वाली मौडल ही रहती हैं. हालांकि कई पश्चिमी देशों ने जीरो फिगर वाली मौडल्स की प्रतियोगिताओं और फैशन परेडों के इतर ऐसी मौडल्स के लिए भी प्रतियोगिता आयोजित करनी शुरू की हैं जो चरबीयुक्त हैं. लेकिन इस के बावजूद जीरो फिगर आज युवतियों के सिर चढ़ कर बोल रहा है.

समस्या यह है कि इस से मासिकधर्म में गड़बड़ी, सिर चकराने और पेट में जलन होने की शिकायतें देखी गई हैं लेकिन बाजारवाद ने जीरो फिगर को इस हद तक लोकप्रिय बना दिया है कि तमाम समस्याओं के बावजूद यह ट्रैंड में रहता है.

जीरो फिगर की अवधारणा

सौंदर्य के मानक हर समय और स्थान के अनुरूप कभी स्थाई नहीं होते. जीरो फिगर 32-22-34  के नाम में परिभाषित है.इस में छाती 32 इंच, हिप 34 इंच और कमर की माप 22 इंच है, जो आमतौर पर किसी 8-9 साल की बच्ची का होता है.

इसी साइज को मौडलिंग और सौंदर्य प्रतियोगिता की दुनिया में मुफीद माना जाता है. हलकी और छरहरी काया की प्राप्ति के लिए कम से कम भोजन कर के मौडलिंग के क्षेत्र में जमी लड़कियों की मजबूरी को तो समझा जा सकता हैमगर आजकल इस के लिए लड़कियों का मकसद युवाओं को आकर्षित करना भी है. भले ही इस के लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े.

आजकल कमर ही क्यों, चेहरे पर चरबी की जरा सी भी परत जमा न हो, इस के लिए अब कौस्मेटिक सर्जरी के अलावा भी बहुत से विकल्पों का इस्तेमाल किया जा रहा है. चंडीगढ़ स्थित एक जिम की संचालिका सविता प्रदीप कहती हैं,““केवल फिगर की दीवानगी में शरीर को कंकाल बनाना समझदारी की बात नहीं है. यह एक जनून है और हद से गुजर जाने के बाद यही चाहत आगे चल कर मानसिक बीमारी बन जाती है.”

 बेकाबू हो रही है ग्लैमर की स्थिति

ग्लैमरस फिगर वैसे तो हर औरत की चाहत होती हैलेकिन जीरो फिगर की चाहत में युवतियां जिस प्रकार संतुलित आहार तक को नजरअंदाज कर रही हैं,वह अत्यंत घातक है. ब्यूटी थेरैपिस्ट और पेरिस ब्यूटीपार्लर की प्रमुख डाइटीशियन संजना चौधरी का कहना है,““इस से शरीर में पौष्टिक तत्त्वों की कमी से पाचनतंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, जिस से इंसान की भूख मर जाती है.

““इस से एनोरौक्सिया की चपेट में आने पर चक्कर आना, बेहोशी के दौरे पड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. साथ ही, इस से गर्भाशय की समस्या और हड्डियों के कमजोर होने का भी खतरा बना रहता है.””

संजना का मानना है कि औरत के शरीर को रोज औसतन 1,500 से 2,500 कैलोरी की जरूरत होती है लेकिन जब यह घट कर 1,200 रह जाती है तो शरीर अंदरूनी हिस्सों और हड्डियों से इस कमी को पूरा करना शुरू कर देता है, जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी बुरा संकेत है.

 

समय से पहले बुढ़ापे को आमंत्रण

फिगर को मेंटेन रखने का दबाव मौडलिंग, एंकरिंग और अभिनय से जुड़ी युवतियों पर रहने की बात तो फिर भी समझ में आती हैलेकिन शादी की तारीख नजदीक आते ही विवाह की तैयारियों में जुटी युवतियां भी जीरो फिगर की गिरफ्त में आए बिना नहीं रहतीं.

शादी से ठीक पहले कमर को पतला करने का क्रेज युवतियों के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी होता है कि इस के लिए वे 15 से 16 किलोग्राम वजन कम कर लेती हैं. 18 से 25 साल के आयुवर्ग की युवतियों में यह प्रवृत्ति सर्वाधिक देखने को मिलती है.

हाल ही में वेटवाचर पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वे में कहा गया है कि युवतियां भूख मार कर भले ही छरहरे बदन की मल्लिकाएं बन जाएं मगर थोड़े समय बाद उन का रूप प्रौढ़ औरत जैसा दिखाई देने लगता है.वे उम्र से पूर्व ही बड़ी दिखाई देने लगती हैं. सच तो यह है कि भरे गाल और मांसल देह वाली औरत बड़ी उम्र में भी ज्यादा युवा दिखाई देती है.

 

डाइटिंग के साइड इफैक्ट

आमतौर पर महिलाएं पतली होने के लिए डाइटिंग पर फोकस करती हैं. मशहूर महिला रोग एवं गाईनी विशेषज्ञ डा. सुषमा नौहेरिया की राय में वजन कम करने और फिर खुद को संतुलित रखने के लिए जौगिंग, व्यायाम का सहारा लेना डाइटिंग और वजन घटाने वाली दवा लेने से कहीं बेहतर है.

अत्यधिक डाइटिंग से समूचे शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है, मसलन, उपवास की स्थिति से शरीर में पाचक तत्त्वों का संचार कम होने से इंसान की पाचनशक्ति क्षीण हो जाती है, जिस से लिवर और मांसपेशियों पर बुरा असर पड़ता है. कुछ मामलों में हार्मोन असंतुलन की वजह से युवतियों में मासिकधर्म भी अनियमित होता देखा गया है. अत्यधिक व्यायाम या जिम जाने से शरीर में पानी की कमी के साथसाथ चेहरे पर झुर्रियां और आंखों के नीचे काले घेरे भी नजर आने लगते हैं.

टीवी शो ‘महाभारत’ के ‘शकुनी मामा’ की तबीयत हुई खराब, अस्पताल में हुए भर्ती

साल 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ सीरियल महाभारत इन दिनों काफी ज्यादा सोशल मीडिया पर चर्चा पर बना हुआ है क्योंकि इस सीरियल में शकुनी मामा का किरदार निभा रहे गूफीं पेंटल इन दिनों काफी ज्यादा बीमार है. बता दें कि गूफी पेंटल की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.

बता दें कि इनकी हेल्थ की जानकारी टीना घई ने सोशल मीडिया पर दिया है, फैंस उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं, एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि भगवान आपको जल्द स्वस्थ रखें, तो वहीं दूसरे यूजर्स ने लिखा है कि भगवान आपको जल्द अस्पताल से बाहर करें.

 

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बता दें कि गूफी पटेल ने अपने कैरियर की शुरुआत साल 1975 में की थी, जिसके बाद से वह कई सारे फिल्मों में नजर आ चुके हैं. दिललगी, परदेश के अलावा और भी कई सारी फिल्मों में वह अपने किरदार से जलवा बिखेर चुके हैं. जिस वजह से उन्हें याद किया जाता है.

बता दें कि गुफी पेंटल एक जाने माने अभिनेता रह चुके हैं, इनकी रोल को कुछ लोग पसंद करते हैं तो कुछ लोग नापसंद करते हैं. गुफी पेंटल को ज्यादातर निगेटीव रोल में देखा जाता है.

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