मानसिक रोगों का सीधा संबंध हमारे तंत्रिकातंत्र से जुड़ा होता है पर हमारे शारीरिक अंग भी इन रोगों को उत्पन्न करने के कारक बनते हैं. मुंह, दांत, जीभ, तालू में अगर थोड़ा सा विकार है तो रोग की यह समस्या धीरेधीरे पीडि़त व्यक्ति को मनोरोगी बना देती है क्योंकि दांतों की जड़ें भी सूक्ष्म तंत्रिकाओं के माध्यम से मस्तिष्क से जुड़ी रहती हैं.

यही हाल मुंह में विद्यमान और अंगों का भी है. जीभ, मसूड़े सभी तंत्रिकाओं के तानेबाने से जुड़े हैं और ये अतिसूक्ष्म तंत्रिकाएं बेहद संवेदी होती हैं. दांतों में दर्द का एहसास, खट्टेमीठे का अनुभव यही संवेदी तंत्रिकाएं मस्तिष्क को कराती हैं. जब यह समस्या लगातार बनी रहती है तो मस्तिष्क का सारा ध्यान इसी पर केंद्रित हो जाता है और हमारा मन वहीं पर अटका रहता है. मन के एक ही जगह पर स्थित रहने से व्यक्ति धीरेधीरे एक मनोरोगी की भांति व्यवहार करने लगता है.

हालांकि केवल मुंह और दांत की समस्या से व्यक्ति मनोरोगी हो जाता है, ऐसा कहना उचित नहीं होगा पर आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास तनाव बहुत अधिक है. तनाव कहीं न कहीं दांतों, मसूड़ों और मुख से संबंधित बीमारियों पर अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है.

नई दिल्ली स्थित मौलाना आजाद इंस्टिट्यूट औफ डैंटल साइंसैज के डायरैक्टर और प्रिंसिपल डा. महेश वर्मा कहते हैं, ‘‘तनाव से दांत घिसने लगते हैं. कुछ लोग रात को सोते समय दांत किटकिटाते हैं. इस से दांत घिस जाते हैं. तनाव की वजह से कई मरीज दिन में ऐसा करते भी हैं. इस से दांत का बाहरी हिस्सा घिस जाता है और दांत बहुत सैंसिटिव हो जाते हैं. दांतों का स्ट्रक्चर घिस जाता है और नीचे की नसें बाहर आ जाती हैं. दांत किटकिटाने जैसी समस्या से नजात पाना है तो इस के लिए अच्छी नींद और सही देखभाल आवश्यक है.’’

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