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Family Story : सी सा – मां और पत्नी से बचने के लिए पूरन ने क्या रास्ता निकाला?

Family Story : पूरन ने चैन की सांस ली. सालभर से वह परेशान था. वह दो पाटों के बीच पिसा जा रहा था. एक पाट थी मां और दूसरा थी पत्नी. पूरन इकोनौमिक्स में एमबीए था और एक एमएनसी में सीनियर ऐनैलिस्ट की जौब पर था. वह अलमोड़ा का निवासी था पर उस की शिक्षादीक्षा इलाहाबाद में हुई थी. अब यहीं के ब्रांच में उसे नौकरी मिल गई. पिता का देहांत बचपन में हो गया था. मां अभी भी पहाङिन बेटी थी. पति की अकाल मौत के बाद वह इकलौते बेटे को ले कर इलाहाबाद चली आई. उस ने एक स्कूल में नर्सरी में आया का काम कर के बेटे को उच्च शिक्षा दिलाई.

पढ़ाई पूरी करने के बाद बेटे को नौकरी भी मिल गई. 2 साल पहले एक सुंदर लङकी देख कर मां ने उस की शादी भी कर दी. पत्नी का नाम तारा था. उस का पिता सचिवालय में विभागाध्यक्ष था. तारा हर दृष्टि से सुंदर थी. उस ने हिंदी में प्रथम श्रेणी में एमए किया था. गृहकार्य में वह अधिक कुशल नहीं थी. पहाड़ी रीतिरिवाज, खानपान, भाषा आदि से भी वह अपरिचित थी, क्योंकि उस के पूर्वज 3 पीढ़ी पहले लखनऊ आ बसे थे. अब तो वे पहाड़ों पर सैलानियों की भांति ही जाते थे.

शादी के बाद तारा का 1 साल आनंद से बीता. वह कभी इलाहाबाद में रहती, कभी अपनी मां के पास लखनऊ चली जाती. सासबहू दोनों ही एकदूसरे को तौल रही थीं, आपस में तालमेल बैठाने का प्रयत्न कर रही थीं। सालभर बाद जब जम कर साथ रहने का अवसर आया तो दोनों एकदूसरे की कसौटी पर खरी नहीं उतरीं.

मां का पहले से पूरन पर पूरा अधिकार था. सात फेरे पड़ते ही जैसे किसी ने उस के अधिकार को चुनौती दे दी थी. उसे लगता, जैसे बेटे पर उस की पकड़ ढीली होती जा रही है. वह उस के हाथ से निकला जा रहा है. उस की ओर कम ध्यान देता है. उस की कम सेवा करता है. फुजूलखर्ची अधिक करता है और रात देर तक जागजाग कर अपना स्वास्थ्य चौपट कर रहा है.

मां को रात बहुत देर से और बहुत कम नींद आती. पास के कमरे से पूरन और तारा की गुटरगूं देर रात सुनाई पड़ती रहती. मां करवटें बदलती रहती और गठिया के दर्द को सहती रहती. मां ने सोचा था कि बहू के आ जाने पर वह पलंग पर बैठी राज करेगी.

उधर तारा की सब से बड़ी कसक यह थी कि पूरन उसे कहीं हनीमून के लिए नहीं ले गया था. शादी जिंदगी में एक ही बार तो होती है. पूरनचंद उसे मां के कारण ही हनीमून के लिए नहीं ले गया था. कहता रहा, ‘‘मां अकेली कैसे रहेगी.’’

तारा सोचती, ‘मां कोई बच्चा है कि उसे बंदर उठा ले जाएगा. पति न हुआ दूधपीता बच्चा हो गया, जो हर समय मिमियाता रहता है. हर समय मां का ही गुणगान करता रहता है. मां की सेवा, मां का त्याग, मां का परिश्रम. कौन मां अपने बच्चे के लिए यह सब नहीं करती. पशुपक्षी भी अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं. मां को जब देखो, तब पहाड़ी गांव वाले व्यंजनों की रट लगी रहती है. उस ने कई बार कहा है कि वह बनाना नहीं जानती, न ही उसे पसंद है. पर वह उन्हीं के गुण गाती रहती है.’

लखनऊ में तो तारा रोज शाम को घूमने निकल जाती थी, सहेलियों के साथ या भाइयों के साथ. यहां शाम को बोर होती. कितनेकितने दिन हो जाते फिल्म देखे, शौपिंग किए, घूमने गए. क्यों? कारण वही, मां का पुछल्ला. मां बोर न हो, पत्नी भले ही बोर होती रहे. टीवी या मोबाइल पर आखिर कितना कुछ क्या देखा जाए.

हाथपैर मारने के बाद तारा को एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी भी मिल गई. मां चाहती कि बेटा दिनभर का हाराथका आता है, घर पर आराम करे. पत्नी जानती थी कि दफ्तर में कोई चक्की तो पीसता नहीं है. मां का मन करता है कि वह भी उन लोगों के साथ जाए. कोई जानपहचान का मिले तो बता सके कि यह मेरा बेटा पूरन है और यह उस की बहू. पर सिनेमा हौल में 3 घंटे बैठे रहना उस के बस का नहीं. बिना औटो के 2 कदम भी चलना उस से भी कठिन है. फिर औटो में 2 व्यक्ति बैठते हैं, 3 नहीं. तीनों को जाना होता तो टैक्सी करनी पढ़ती.

शौपिंग में मां की पंसद आधुनिकाओं के लिए कोई अर्थ नहीं रखती. दृष्टि क्षीण होने के कारण वैसे भी वह ठीक रंग या डिजाइन नहीं आंक पाती थी और आजकल जो भी मौल थे उन में चलना बहुत पड़ता था. घूम भी वह ज्यादा नहीं पाती थी. पर अकेला घर उसे काटने को दौड़ता. उस का जी घबराने लगता. कभी कोई पड़ोसिन आ जाती तो वह बेटेबहू की अपने प्रति उदासीनता की चर्चा करने लगती. पड़ोसिनें भी इक्कादुक्का ही थीं क्योंकि उन के आसपास जनरल कास्ट भी ज्यादा थे जो अब उन से बात करने में कतराते थे, क्योंकि वे पिछङी जाति से थे।

तारा के संबंध में वह पूरन से भी चोरीछिपे कहती. सलोनी सूरत पर रीझ जाने के अपने निर्णय पर मलाल करती. बहू के आलसी होने, गृहकार्य में कुशल न होने, सेवा न करने आदि की बात कहती. पुराने जमाने की, आपबीती कहती रहती. पूरन हां…हूं करता रहता. क्या कहता. उसे तो अपने प्रति समर्पण में तारा में कहीं कमी नहीं दिखाई देती थी. पर वह अशिक्षित सी मां की आंखों पर लगा एक पीढ़ी पुराना चश्मा कैसे उतार फेंकता. मां के संस्कारों को कैसे पलटता. जिस मां का समूचा स्नेह उसी को मिला हो, उसे कैसे समझाता.

मां और तारा दोनों ही पूरन के दफ्तर से लौटने की प्रतीक्षा करतीं. तारा भी स्कूल से 2 बजे तक आ जाती थी. उस का भी समय काटे नहीं कटता था. यदि वह मां के पास बैठ जाता तो तारा के बढ़े रक्तचाप का ज्ञान उसे रसोई में गिरतेखनकते बरतनों से हो जाता. वह रसोई में नहीं होती तो धपधप कर के आंगन में कई बार बेमतलब गुजरती. स्वागत की मुसकराहट के स्थान पर उस के अधरों पर उपेक्षा का भाव रहता.
यदि पूरन सीधा पत्नी के पास भीतर चला जाता तो मां कराहती, घिसटती, घुटनों के जोड़ों में दर्द को कोसती, स्वयं कमरे के बाहर बरामदे में आ जाती और कहने लगती, ‘‘कफ सिरप से खांसी में तो लाभ है, पर जोड़ों के दर्द में कतई फायदा नहीं है. उन से यह भी कहना कि भूख एकदम कम हो गई है. पूछना, मुनक्के सर्दी तो नहीं करेंगे…’’

फिर वह साड़ी ऊपर उठा कर घुटनों की सूजन पर हाथ फेरने लगती. तारा को चायनाश्ता लाने का आदेश देती.
तारा कुढ़ जाती. मां नहीं कहेंगी तो क्या वह नाश्ता नहीं देगी. रात देर तक तारा का मूड बिगड़ा रहता. वह कहती कि मां का बुढ़ापा है, रोग भी है पर वह नाटक अधिक करती हैं. दिन में खुद 2 बार बाथरूम हो आती हैं, गैस पर पानी गरम कर लेती हैं, पर पूरन के आते ही ठिनकने लगती हैं.

पूरन समझाता, ‘‘बच्चे और बूढ़े एकजैसे होते हैं. जीवन के आखिरी दौर में हैं, जितनी बन पड़े सेवा कर लो.’’

तारा सुबह जल्दी उठती थी. पर स्कूल जाने में कुछ और काम करने का समय नहीं होता. पूरन भी सवेरे जल्दी उठता. तारा को बैड पर ही चाय देता. उस के बिना तो उस की आंख ही नहीं खुलती थी. फिर मां को हाथमुंह बिस्तर पर ही धोने को गरम पानी देता. बाथरूम ले जाता. शेव बना कर नहाताधोता और बाजार से दूध का पैकेट और सब्जी लेने चला जाता. उसी समय लौट कर नाश्ता करता और काम पर चल देता.

शाम को हाराथका लौटता. चायनाश्ते के बाद मां के पास बैठता. उस के जोड़ों पर हाथ फेरता, तेल लगाता, दवा के बारे में पूछता, डाक्टर की दवाई लाने की पेशकश करता. तारा तब तक खाना बनाती. पूरन मां को गरम खाना खिलाता. दर्द अधिक बताती तो सिंकाई करता. उसे बिस्तर पर लिटा कर फिर अपराधी की तरह तारा के सम्मुख जाता.

तारा खाना सामने रखती हुई कहती, ‘‘मिल गई छुट्टी?’’

सोने जाने से पहले पूरन फिर एक बार मां को देख कर आता, दवाई देता.
मां तो यहां तक चाहती थीं कि पूरन या तारा में से कोई एक रात को उस के ही कमरे में सोए, वह घूमाफिरा कर कहती, ‘‘रात को आंख खुल जाती तो बहुत जी घबराता है. कोई पानी देने वाला भी नहीं होता. किसी दिन ऐसे ही तड़पतड़प कर मर जाऊंगी. कोई पास हो तो दर्द बढ़ने पर दवा तो मल सकता है. बाथरूम जाना होता है तो बिजली का स्विच खोलने में दीवार से टकरा जाती हूं.’’

पूरन कहता, ‘‘मां पुकार लिया करो न. बराबर के कमरे में ही तो हम सोते हैं. रातभर बिजली खुली रखा करो.’’ पर रोशनी में मां को नींद नहीं आती थी. वह आंखों की रहीसही रोशनी से भी हाथ धो बैठने का डर बताती.

पूरन की अपनी जिंदगी जैसे कुछ रह ही नहीं गई थी. भरसक दोनों की सेवा करता था. पर कोई भी उस से संतुष्ट नहीं था. तारा के लिए कपङे लाता तो मां का मुंह टेढ़ा हो जाता, ‘‘मेरे लिए भी कफन ले आया होता. बढ़िया, महंगी दवाएं तो लाता नहीं है और…’’
तारा को सदा शिकायत रहती, ‘‘तुम्हारा सारा वेतन मां की दवादारू पर खर्च हो जाता है और मेरे लिए हाथ तंग…’’

पूरन के अपने शौक तो जैसे हिरण हो गए थे. उस का जी करता, वह दोस्तों में बैठे, गपशप करे. जब घर पर कम रहता तो चिकचिक भी कम सुनने को मिलेगी. आखिर कहता भी तो किस से. करता भी तो क्या. फिर कौन दर्द बांटता है.

सालभर में पूरन टूट सा गया. दिनभर दफ्तर में खपता और शेष मां व पत्नी में खप जाता. सासबहू का माध्यम बनेबने तो वह पिसता चला जाएगा. उसे लगा वह अब अधिक नहीं निभा पाएगा.

एक शाम दफ्तर से लौटते समय मोहल्ले के बाहर पार्क का जंगला पकड़ कर वह 2 मिनट के लिए रुक गया. बच्चे खेल रहे थे. किलकारी मार रहे थे. दौड़ रहे थे. सब से अधिक भीड़ झूलों पर थी. तभी उस की दृष्टि ‘सी सा’ पर संतुलन करती 2 छोटी लड़कियों पर पड़ी स्थिर स्तंभ पर लंबा तख्ता लगा हुआ था. एक लङकी एक छोर पर और दूसरी लङकी दूसरे छोर पर बैठी थी. तख्ता किसी पक्षी के पंखों की तरह हवा में लहरा रहा था.

एक लङका पास में खड़ा था. वह कभी एक छोर पर बैठ जाता, कभी दूसरे पर. जिस छोर पर वह बैठता, वह नीचा हो जाता और दूसरा हलका होने के कारण अनायास ऊपर उठ जाता. ऊपर जाती लङकी चीख पड़ती. लङका खुश हो कर ताली बजाता. हंसने लगता. वह कूद पड़ता तो फिर संतुलन हो जाता. वह बारीबारी कभी इधर के, कभी उधर के छोर पर बैठ कर संतुलन बिगाड़ देता. जिधर वह बैठा होता उस छोर की लङकी स्वयं को सुरक्षित महसूस करती. दूसरी लङकी को अकस्मात ऊपर उठ जाने से गिरने का भय रहता.

पूरनचंद विचार में डूब गया. यही स्थिति तो उस की है. मां के पास बैठता है तो पत्नीत्व डोलने लगता है और पत्नी के पास रहने में मातृत्व डगमगाने लगता है. यदि वह हट जाए, किनारा कर जाए तो दोनों संतुलित रह सकती है. उसे लगा कि असंतुलन का कारण यही है.
रातभर वह कुछ सोचता रहा. अगले दिन उस ने 1 माह की छुट्टी ली और मुंबई में एक मित्र के पास जाने का कार्यक्रम बना लिया. घर पर उस ने कह दिया कि उस का मुंबई में तबादला हो गया है. फिलहाल अकेला जाएगा. मुंबई में मकान आसानी से नहीं मिलता. जब मकान की सुविधा हो जाएगी तब मां व पत्नी को भी ले जाएगा.

मां परेशान हो गई. पूरन के बिना कैसे काम चलेगा. कौन उस की सेवा करेगा. बोली, ‘‘बेटा, तबादला रुक क्यों नहीं सकता.’’

‘‘तरक्की पर जा रहा हूं मां, मार्केटिंग मैनेजर हो कर. अवसर छोड़ दिया तो फिर आगे कोई नहीं पूछेगा. सारी जिंदगी ऐनैलिस्ट में सड़ते रहना पड़ेगा.’’

तारा अलग परेशान थी. कैसे रहेगी अकेली. और फिर मां के साथ या मायके चली जाए. पर स्कूल की जौब भी थी. कम पैसे मिलते थे तो क्या समय तो कटता था और घर के खर्च पूरे होते थे. पर लोग क्या कहेंगे. दोस्त रिश्तेदार थूकेंगे. पीछे कहीं मां दुनिया छोड़ गई तो मिट्टी खराब होगी. रात को आंसुओं से पूरन की छाती भिगोते हुए उस ने भी वही बात कही, ‘‘तबादला रुक नहीं सकता क्या?’’
और पूरन ने वही उत्तर दोहरा दिया.
आखिर पूरन चला गया.

अगली सुबह तारा बिस्तर में ही थी कि सास चाय ले कर आ गई. तारा आश्चर्यचकित आंखें मलमल कर देखती रही. मां ही थी. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. सास बोली, ‘‘गरम पानी करने को गैस जलाई थी. सोचा, तेरी चाय भी बना दूं.’’

घंटे भर बाद मां सब्जी की टोकरी उठाती हुई बोली, ‘‘ला तारा, सब्जी ला दूं. तू इतने में स्कूल जाने की तैयारी कर। दोपहर को क्या खाएगी? यहां तो ठेले वाला दोपहर को आएगा, वह भी बासी सब्जी लिए. बेचेगा भी महंगी. मसालावसाला तो कुछ नहीं लाना है? डाक्टर को अपना हाल बता कर दवाई भी लेती आऊंगी.’’

तारा ने खोएखोए 500 का नोट बढ़ा दिया, ‘मां ने तो बेटे का काम संभाल लिया,’ वह बुदबुदाई.

बाजार से लौट कर मां अपने घुटनों पर तेल मलने बैठ गई. तारा ने जब झाड़ूपोंछा किया तो सास का कमरा भी साफ कर दिया. बिस्तर धूप में डाल दिया. पहले यह काम पूरन करता था. तारा को कमरे में जहांतहां पड़े थूकबलगम से उबकाई आती थी. आज पहली बार उसे घृणा नहीं हुई.
1 सप्ताह में सासबहू पर्याप्त निकट आ गईं, अब मां को पूरन का अभाव नहीं अखर रहा था. कोई तो है उस की देखभाल को. तारा को भी सास से अपनत्व होता जा रहा था. सालभर का अलगाव धीरेधीरे पिघलता जा रहा था. तारा ने अपनी खाट सास के कमरे में ही डाल ली. सास तो जैसे निहाल हो गई.

1 माह बाद पूरन लौटा. आंगन में घुसते ही उस का चेहरा खिल गया. तारा बरामदे में बैठी मां के घुटनों पर तेल मल रही थी. दोनों के चेहरे तनावमुक्त थे. दिनभर दोनों में से किसी ने उस से कोई शिकवाशिकायत नहीं की. पूरन की मां से अकेले में भी बातचीत हुई. वह तारा की भूरिभूरि प्रशंसा कर रही थी. कह रही थी, ‘‘खरा सोना है मेरी तारा.’’

रात को तारा से भेंट होने पर पूरन बोला, ‘‘प्लेन में पहाड़ के एक पंडित मिले थे. मां को जानते हैं. कह रहे थे हरिद्वार भेज दो. वृद्धाश्रम है, सस्ता भी है. लंगर में खा लिया करेंगी. बहुत से बुजुर्ग वहां रहते हैं.’’

तारा तेवर चढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या कह रहे हो. मां क्या कोई हम पर भार है. मैं उन्हें कहीं नहीं भेजने दूंगी. जब तक हैं, यहीं रहेंगी.’’

पूरन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. अगले दिन उस ने घर पर बताया कि मुंबई की जलवायु माफिक न आने के कारण उस ने इलाहाबाद अपने पुराने पद पर ही तबादला करा लिया है. सास और बहू के मुंह से एकसाथ प्रसन्नता से निकला, ‘‘सच.’’

पूरन के जीवन का ‘सी सा’ पूर्ण संतुलित हो गया था.

Romantic Story : पिघलते दायरे – नंदिनी क्यों राजीव से दूर थी

Romantic Story : नवीन को अपनी यादों से निकालना मुश्किल था नंदिनी के लिए, लेकिन जिंदगी में मूव औन तो करना ही था पर राजीव के साथ जुड़ना भी आसान न था.

परदे की झिर्री से आती धूप जैसे ही नंदिनी के चेहरे पर पड़ी वह अचकचा कर उठ बैठी. पलट कर देखा, राजीव नींद में बेसुध थे. रात को देर हो जाने के कारण उसी सिल्क के कुरतेपाजामे में ही सो गए थे जो शादी के समय पहना था.

धीरे से उठ कर कमरे से बाहर आ गई. पूरे घर पर नजर घुमाई. सबकुछ एकदम अजनबी सा लग रहा था, मैरून रंग के परदे, ड्राइंगरूम में रखा लकड़ी का सोफा, कमरे के कोने में रखे शोकेस पर सजे कुछेक पुराने शोपीस जिन को धूल ने अपना रंग चढ़ा कर बदरंग सा कर दिया था.

दरवाजे पर लगी गुलाब की लड़ियों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो कहीं से यह नहीं लग रहा था कि यह शादी वाला घर है.

शादी के बाद आज इस घर में उस की पहली सुबह थी. राजीव की मां, बहन गृहप्रवेश करवा कल रात को ही अपनेअपने घर चली गई थीं. जातेजाते राजीव की मां ने कहा था, ‘अब से यह तुम्हारा घर है, तुम इसे जैसे चाहे संभालो, सजाओ व संवारो.’

घर शब्द सुनते ही न चाहते हुए भी उस के मन में नवीन की यादों ने सेंध लगा दी. कितनी खुश थी वह नवीन के साथ, शेयरिंग, केयरिंग व हरदम हंसनेहंसाने वाले नेचर का नवीन हर तरह से आदर्श पति था.

शादी के 2 साल पूरे होतेहोते वह एक गोलमटोल बेटे की मां भी बन गई थी. बेटे का नाम दोनों ने मिल कर रखा आरव.

नंदिनी अपने जीवन की खुशियों से पूरी तरह संतुष्ट थी. जिंदगी हंसीखुशी गुजर रही थी. तभी एक भयानक हादसे ने नंदिनी की सारी खुशियां छीन लीं. राजीव औफिस से लौट रहा था अपने स्कूटर पर तभी पीछे से आते ट्रक ने जोरदार टक्कर मारी कि राजीव गिर गया. टक्कर इतनी जोर की थी कि गिरते ही उस की मृत्यु हो गई.

नंदिनी के जीवन की खुशियों की बगिया उजड़ चुकी थी. इस हादसे ने नंदिनी को एकदम तोड़ कर रख दिया. आरव को ले कर मांबाबूजी के पास रहने को चली आई. मन के कुछ संभलने के बाद एक स्कूल में टीचर की नौकरी करने लगी.

यों कहने को तो समय अपनी गति से बीत रहा था लेकिन मांबाबूजी के चेहरे की सिलवटें दिनोंदिन बढ़ती जा रही थीं. बेटी के भविष्य की चिंता में वे लोग उम्र से अधिक बूढ़े लगने लगे थे. नवीन के जाने के एक साल बाद उन्होंने नंदिनी पर दोबारा शादी कर के घर बसाने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

‘बेटा, अभी तेरी उम्र ही क्या है, अकेले कैसे जिंदगी गुजारेगी, हम लोग तो पके फल हैं न जाने कब टूट जाएंगे, ऐसे में किसी हमसफर का होना बहुत जरूरी है.’

‘नहीं मां, मैं नवीन की यादों व आरव के साथ जिंदगी गुजार दूंगी’ कह तो दिया था मां से लेकिन उस ने महसूस किया कि बेटी के भविष्य की चिंता में वे लोग उम्र से अधिक बूढ़े लगने लगे थे.

फिर इसी बीच एक दिन बरेली वाली चाची राजीव का रिश्ता ले कर आई, ‘मैं तो कहती हूं भाभीजी, आप तो इस रिश्ते के लिए किसी तरह नंदिनी को राजी कर ही लो.’

‘राजीव मेरा जांचापरखा है, सरकारी नौकरी, अपना घर है. शराबसिगरेट जैसा कोई ऐब नहीं है उस में. अपनी नंदिनी बहुत खुश रहेगी उस के साथ.’

नंदिनी की मां ने जब उस से इस रिश्ते की बाबत बात की तो उस ने सोचने के लिए थोड़े समय की मांग की.

रात को सोते समय मन में सोचा कि जिंदगी जीने का कोई तयशुदा फार्मूला तो नहीं होता तो जिंदगी से समझौता कर लेने में ही भलाई है और उस ने इस रिश्ते के लिए हां कर दी.

नंदिनी व राजीव दोनों की ही यह दूसरी शादी थी. फर्क सिर्फ इतना था कि नंदिनी आरव की मां थी जबकि राजीव अकेला ही था. शादी के 6 महीने बाद ही उस की पहली पत्नी किसी बीमारी के कारण चल बसी थी. राजीव की मां भी चाहती थी कि राजीव दोबारा शादी कर के अपना घर एक बार फिर से बसा ले.

नंदिनी की चाची व राजीव की मां एकदूसरे को जानती थीं. इसी कारण नंदिनी की चाची इस रिश्ते में एक तरह से बिचौलिए का रोल अदा कर रही थी. शादी से पहले राजीव व नंदिनी की एक औपचारिक मुलाकात करवा दी थी उन के पेरैंट्स ने और दोनों ने ही इस शादी के लिए अपनी स्वीकृति दे दी थी.

शादी एकदम सादगी से संपन्न हुई थी. हां, शादी से पहले राजीव की मां ने यह शर्त जरूर रखी थी कि शादी के बाद आरव… इतना ही बोल पाई थी कि नंदिनी की मां ने बात संभाली कि आप निश्चिंत रहिए, शादी के बाद आरव यहां रहेगा अपने नानानानी के पास.
नंदिनी ने जब यह बात सुनी तो उस का कलेजा मुंह को आ गया और न चाहते हुए भी उस की आंखों में आंसू झलक आए थे.

इस एक रिश्ते के लिए उसे न जाने क्याक्या और छोड़ना पड़ेगा. नवीन के साथ बिताए सुनहरे पल और अब उस के कलेजे का टुकड़ा आरव, कैसे रह पाएगी वह आरव के बिना. आरव तो अभी सिर्फ 3 साल का है, क्या वह रह पाएगा मेरे बिना.

रसोई में जा कर नंदिनी ने चाय का पानी गैस पर चढ़ा दिया. अब तक राजीव भी उठ कर रसोई की तरफ आ गए थे. ‘‘सुनो नंदिनी, चाय में अदरक जरूर डाल देना, मु?ो अदरक वाली चाय ही पसंद है.’’

नंदिनी के मन में फिर से यादों का रेला उमड़ आया, कितना फर्क है राजीव व नवीन की आदतों में. नवीन को चाय में अदरक कतई पसंद नहीं थी.

यादों के सैलाब में डूबतेउतराते नंदिनी ने अदरक डाल कर चाय बनाई और चाय के कप ला कर डाइनिंग टेबल पर रख दिए. आमनेसामने बैठ कर दोनों चुपचाप चाय पीने लगे. बातचीत शुरू करने की गरज से राजीव ने कहा, ‘‘हूं, चाय वाकई बहुत अच्छी बनी है एकदम मेरे टेस्ट के मुताबिक.’’ नंदिनी चुपचाप बैठी रही.

बातचीत फिर से राजीव ने ही शुरू की, ‘‘सुनो, शाम को औफिस से लौटते समय मैं खाने को कुछ बाहर से ही लेता आऊंगा, तुम दिन में थोड़ा आराम कर लेना. कल की थकान अभी पूरी तरह कहां उतर पाई होगी.’’

नंदिनी ने फिर उसी तटस्थ भाव से हां की मुद्रा में बिना कुछ बोले ही सिर हिला दिया.

राजीव के घर से बाहर निकलते ही नंदिनी ने अपनी मां को फोन मिलाया, ‘‘मां, आरव ठीक तो है न. आप को अधिक तंग तो नहीं कर रहा, उस ने नाश्ता किया या नहीं?’’

‘‘अरे, आरव तो अभी सो रहा है. अब तू आरव की चिंता छोड़. अब तुम को अपने व राजीव के बारे में अधिक सोचना चाहिए न कि आरव के बारे में.’’

नंदिनी रोंआसी सी हो आई. उस ने फोन बंद कर दिया. कमरे में लेट कर न जाने कब तक तकिया भिगोती रही.

शाम को दरवाजे पर दस्तक हुई तो देखा, राजीव हाथ में कई सारे पैकेट लिए खड़े थे. ‘‘लगता है तुम अभी सो कर उठी हो,’’ राजीव ने उस के चेहरे की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम फ्रैश हो जाओ, तब तक मैं कौफी बनाता हूं.’’

नंदिनी बाथरूम से लौटी तो देखा कि राजीव 2 कप कौफी लिए बालकनी में उस का इंतजार कर रहे थे.

राजीव ने नंदिनी के चेहरे पर छाई उदासी को देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, कुछ परेशानी है क्या? कौफी अच्छी तो बनी है न. जानती हो नंदिनी, सलोनी जब तक मेरे साथ थी तो शाम की कौफी हमेशा मैं ही बनाता था. उसे रसोई के काम करने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी जिंदगी आराम से चल रही थी. ऊपर वाले की किताब भला कोई कहां पढ़ पाया है. तभी तो इतनी जल्दी साथ छोड़ कर चली गई. तुम्हें भी नवीन की याद तो आती ही होगी.’’

नंदिनी ने हड़बड़ा कर राजीव के चेहरे की तरफ देखा, लगा यादों के ठहरे पानी में किसी ने पत्थर फेंक दिया हो. नवीन एक बार फिर यादों में उतर आए थे.

नवीन ने नोटिस किया कि नंदिनी अपनी तरफ से कुछ कह ही नहीं रही थी, सिर्फ उस की कही बातों का हां-हूं में जवाब दे रही थी.

राजीव ने टेबल पर रखे फूड पैकेट खोले और नंदिनी से कहा, ‘‘आओ, खाना खा लेते हैं.’’
‘‘मुझे अभी भूख नहीं है, आप खा लीजिए, मैं बाद में खा लूंगी,’’ कह कर रूम में पलंग पर जा लेटी.

प्लेट खटकने की आवाज से उसे लगा कि राजीव खाना खा रहे हैं. उस के मन में यादों के भंवर चक्कर लगाने लगे. जब कभी वह नवीन से नाराज हो कर बिना खाना खाए सो जाती थी तो नवीन भी बिना खाना खाए सो जाते थे.

सुबह सो कर उठी तो देखा कि राजीव ने भी खाना नहीं खाया.
उस ने राजीव से पूछा, ‘‘आप ने खाना नहीं खाया?’’
‘‘नहीं, मैं ने सोचा, जब तुम उठोगी तो एकसाथ बैठ कर खा लेंगे.’’
नंदिनी को पहली बार अपनेआप पर गुस्सा व राजीव के लिए अपनापन, प्यार महसूस हुआ. उस ने सोचा, राजीव बिलकुल भी वैसे नहीं हैं जैसा वह सोच रही थी.

नंदिनी व राजीव की दूरियां कम नहीं हो पा रही थीं. ऐसे में एक दिन औफिस से आ कर राजीव ने कहा, ‘‘आज मां का फोन आया था. वे तुम्हारे बारे में पूछ रही थीं कि तुम खुश तो हो न मेरे साथ?’’ मैं ने कह दिया कि नंदिनी कुछ उदास सी है, पता नही क्यों? मां ने कहा कि शादी के बाद तुम दोनों कहीं एकसाथ घूमने नहीं गए हो, हनीमून के लिए.’’ अभी राजीव की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि नंदिनी ने राजीव को अजीब सी नजरों से देखा.

नंदिनी को इस तरह अपनी तरफ देखने से राजीव कुछ सकपका से गए. ‘‘नहीं, मां का मतलब था कि कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर घूम आओ.’’
‘‘मेरा मन नहीं है, फिर मेरी तबीयत भी ठीक नहीं है.’’
नंदिनी का इस तरह का जवाब सुन कर राजीव चुप हो गए.

राजीव के औफिस जाते ही नंदिनी ने फिर से मां को फोन लगाया, ‘‘मां, आरव कैसा है, उस से मेरी बात करवाओ.’’ उधर से आरव की रोंआसी आवाज सुनाई दी.
‘‘मां, तुम कहां चली गईं, मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है, तुम कब वापस आओगी?’’
‘‘राजा बेटा, मैं जल्दी ही वापस आऊंगी, तेरे लिए बड़ी सी चौकलेट व रिमोट से चलने वाली कार ले कर.’’

बड़ी मुश्किल से नंदिनी ने अपने आंसुओं को रोका. मन अपराधबोध से भर गया. आखिर, इस दूसरी शादी के लिए मैं ने हां ही क्यों की थी.

एक दिन राजीव औफिस से लौटे तो मेज पर कुछ पेपर रख कर फ्रैश होने चले गए. नंदिनी ने पेपर उठा कर देखा तो 3 लोगों के प्लेन के टिकट थे. चाय पीते हुए उस ने राजीव से पूछा, ‘‘3 कौन लोग जा रहे हैं?’’

राजीव ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘तुम, मैं व हमारा बेटा आरव. आखिर कब तक तुम आरव की याद में यों उदासी की चादर ओढ़े रहोगी. अब से आरव हमारे साथ ही रहेगा.’’ यह सुनते ही नंदिनी के मन में जमी हुई बर्फ एक पल में ही पिघल गई और वह राजीव के सीने से जा लगी.

लेखिका : माधुरी

Social Media : हम इंस्टा फेसबुक वासी हैं

Social Media : सोशल मीडिया भी गजब पाठशाला है चाहे जिसे पलभर में बदल देता है. कोई मीर है तो कोई गालिब कोई परसाई तो कोई प्रेमचंद. पर असल में कौन क्या है कोई नहीं जानता.

हम लोग अपने घर, दुकान, बाजार, स्कूल या औफिस में मिलें न मिलें, लेकिन इंस्टाग्राम व फेसबुक पर हरेक आधे घंटे पर मिल ही जाते हैं. जब हम अपना बहुमूल्य समय मेटा को समर्पित कर रहे हैं तो जाहिर है इंस्टा भी हमेशा हर मेटावासी के फेस पर स्माइल बुक करने की जुगत में लगा ही रहता है. विभिन्न रूपों में इंस्टा की बहुआयामी उपयोगिता और फेसबुकवासियों की आस्था के संदर्भ में ही आज चर्चा और चिंतन करने वाले हैं.

खुशफहमी : इंस्टाग्राम व फेसबुक सांता क्लौज की तरह खुशियां बांटने का काम करता है. इंस्टा पर 60 साल का बूढ़ा भी 25 साल की उम्र वाला प्रोफाइल बना कर तथा कम उम्र की महिला मित्र बना कर फिर से अपनी जवानी जी लेता है. घरघर पानी सप्लाई करने वाला लड़का भी अपने प्रोफाइल में खुद को किसी कंपनी का मैनेजिंग डायरैक्टर घोषित कर देता है. सब से बड़ी बात, इंस्टा व एफबी की वजह से व्यक्ति साल में 2 बार जन्मदिन भी मना लेता है. एक तो वास्तविक जन्मदिन, दूसरा इंस्टा बर्थडे. मजे की बात यह है कि इंस्टा बर्थडे पर बिना ट्रीट/पार्टी दिए झोलाभर बधाई संदेश हासिल हो जाते हैं.

ईगो डैवलपर के रूप में : बंदा भले ही वास्तविक जीवन में दब्बू/मुंहधप्पा क्यों न हो, लेकिन फेसबुक व इंस्टा पर पूरे टशन में रहता है. हर पोस्ट पर बंदे का एटीट्यूड कूटकूट कर भरा रहता है. महल्लेभर का ताना बटोरने वाले निठल्ले, आवारागर्द युवक के मनोबल को इंस्टा हाई बनाए रखता है. पौकेट मनी के नाम पर पिता से घुड़कियां अर्जित करने वाला बंदा भी हनी सिंह स्टाइल में पोज देते हुए स्वाभिमान से ओतप्रोत स्टेटमैंट के साथ सैल्फी को इस प्रकार शेयर करता है, मानो किसी स्टेट का प्रिंस या इंटरनैशनल सैलिब्रिटी हो.

चिकित्सक के रूप में : सोशल मीडिया के इस प्लेटफौर्म पर इंसान लैंगिक कृतित्व को चुटकियों में चुनौती दे सकता है. इंस्टा व एफबी अस्पताल में जैंडर बदलने की पूर्ण आजादी होती है. मसलन, कोई भी मेल बंदा महिला बन कर अपनी प्रोफाइल बना सकता है और चला सकता है. यानी बिना चिकित्सकीय संलिप्तता के कोई भी पुरुष जब चाहे नारी बन सकता है और नारी, नर के रूप में कन्वर्ट हो सकती है.

वास्तविक जीवन का लालो पासी इंस्टा प्रोफाइल पर किसी भी हीरोइन/महिला की तसवीर चिपका लिली प्रेयसी बन मर्दों को लुभा सकता है. प्रोफाइल में पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बननेभर की देर है, फिर तो हमेशा ही दर्जनों मेल फ्रैंड रिक्वैस्ट पैंडिंग में पड़ी रहती हैं.

समाजसेवी प्रमाणपत्र प्रदाता के रूप में : इंस्टा फेसबुक छुटभैया नेताओं के लिए दूरदर्शन की तरह कार्य करता है. मसलन, नेताजी यदि अपने कार्यकर्ता के साथ किसी अस्पताल में मरीजों के बीच प्रति मरीज 2 पीस केला वितरण कर दिए हों तो मरीज के हाथों में केला सौंपते हुए उन की तसवीर एफबी पर अपडेट करना उसी तरह मैंडेटरी होता है जिस प्रकार सत्यनारायण की कथापूजन के बाद आरती.

इंस्टा में तो हीरो स्टाइल रील बनाने का क्रेज है. नेताजी किसी की मय्यत में शरीक हों या किसी के मुंडन समारोह में, किसी स्थान पर धरना दिए हों या कोई विरोध जुलूस निकाला हो तो उन परिस्थितियों में उपस्थिति वाली तसवीरें या सैल्फी इंस्टा पर चेंप कर अपने समाजसेवी होने का प्रमाणपत्र प्राप्त कर लेते हैं.

साहित्य व कला के संवर्धक : इंस्टा व एफबी के कारण घरघर सुकरात, गालिब, मीरा बाई, हरिशंकर परसाई पैदा होने लगे हैं, जो इंस्टा पर फौरवर्ड की हुई सूक्तियों, दोहों, व्यंग्य आदि का रायता हर घंटे फैलाने को व्यग्र रहते हैं. एफबी पर बाथरूम सिंगर भी विभिन्न ऐप के माध्यम से इंडियन आइडल सदृश माहौल प्राप्त कर लेता है.

कान में हैडफोन लगा कर राग आलाप कर तथाकथित गवैया भी प्लेबैक सिंगर सा अनुभव प्राप्त करता है. कौमेडी वीडियो बना कर खुद को कपिल शर्मा, सुनील ग्रोवर के समकक्ष मान सकता है या फिर डायलौग मार कर अक्षय कुमार, अजय देवगन को चुनौती दे सकता है.

औकात प्रदर्शनी मंच : बंदे ने किस रैस्टोरैंट में क्या खाया, बंदा सैर पर झुमरीतलैया गया है या होनोलूलू, बंदे ने नई कार खरीदी या टैंपो, किस महंगे होटल में ठहरा या किस मल्टीप्लैक्स में मूवी देख रहा है आदि सबकुछ इंस्टा पर शेयर किया जाता है. इस प्रकार इंस्टा लोगों की औकात, स्टैंडर्ड या सामाजिक स्टेटस को शोऔफ करने का बेहतरीन माध्यम भी है.

ज्ञानप्रसार केंद्र : फोड़ाफुंसी से खूनी बवासीर, बालतोड़ से कैंसर तक के घरेलू या आयुर्वेदिक इलाज का ज्ञान, टोनाटोटका, वास्तुदोष, कारण व निवारण, महान विभूतियों के कथन, वचन, गीता, कुरान के उपदेश आदि इंस्टा पर हमेशा विचरण करते रहता है. एफबी भक्त या एफबी उपभोक्ता इन फेसबुकिया ज्ञान को बांचते भी हैं और आत्मसात भी करते हैं. इंस्टा पर 16 से 20 सैकंड की ज्ञान से ओतप्रोत रील बना डालते हैं.

परिपक्व पाठशाला : इंस्टा समय से पहले बच्चों को परिपक्व बना रहा है. पहले 18 पार का युवा दिस-दैट वीडियो या मूवी देखने के लिए मौर्निंग शो या लास्ट नाइट शो में गांव वालों से छिपछिपा कर बायोलौजी का ज्ञान हासिल करता था. आज 12-14 साल का बच्चा घर वालों से नजर बचा कर उसी बायोलौजी क्लास को इंस्टा पर पूरा कर रहा है. एफबी की ही महिमा है कि अल्पवयस्क भी बिना दवाईइंजैक्शन के समय से पहले परिपक्व और जानकार हो रहा है.

खुन्नस निष्कासन मंच : जब किसी मित्र से आप का मनमुटाव हो जाए, तो आप उसे अपनी पोस्ट पर जबरन टैग करें या मैसेंजर में बारबार अपनी ऊलजुलूल रचनाएं भेज कर अप्रत्यक्ष रूप से उसे प्रताडि़त कर सकते हैं और अपनी खुन्नस निकाल सकते हैं.

समानता का पैरोकार : भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त समता और समानता से अधिक प्रभावी समभाव इंस्टा पर देखने को मिल रहा है. इंस्टा वह प्लेटफौर्म है, जहां आपसी भेदभाव नहीं है. सभी लोगों के बीच एक ही रिश्ता कायम है और वह है मैत्री संबंध. सासबहू, पितापुत्र, अधिकारीचपरासी, 18 साल अथवा 81 साल का हर मानव आपस में सिर्फ और सिर्फ मित्र (एफबी फ्रैंड) हैं. भले ही सास घर में बहू से दिनभर मुंह फुलाए हुए हो लेकिन इंस्टा व फेसबुक पर लाइक व कमैंट्स करने से गुरेज नहीं करती.

Gold Jewellery : गोल्ड लोन बाजार में नएनए खिलाड़ी

Gold Jewellery : भारत में सोना गिरवी रख कर उधार देने वाले साहूकारों, ज्वैलर्स और व्यापारियों के पास इस बाजार की लगभग 65 फीसदी हिस्सेदारी है. जबकि बाकी 35 फीसदी हिस्सेदारी बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच है. अपना बिजनैस चलाने के लिए ये सभी महिलाओं के गहनों पर नजर गड़ाते हैं जिन के लिए उन की संपत्ति व सम्मान उन का अपना सोना है.

सोना हमेशा से भारतीय परिवारों के लिए एक भरोसेमंद संपत्ति रही है. भारतीय महिलाओं के लिए तो यह उन की एकमात्र पूंजी होती है. वे उन जेवरों को पीढ़ीदरपीढ़ी सहेजती हैं जो उन के परिवार की निशानी ही नहीं बल्कि जिन से उन का भावनात्मक रिश्ता भी होता है. कोई भी महिला अपने जेवरों को खुद से अलग नहीं करना चाहती. एक अनुमान के अनुसार भारत के घरों में 25 हजार से 30 हजार टन सोना मौजूद है, जिस की अनुमानित कीमत 125 लाख करोड़ रुपए से अधिक है. महिलाओं के इस सोने पर सरकार की ही नहीं बल्कि बैंकों व तमाम छोटीबड़ी सरकारी गैरसरकारी वित्तीय संस्थानों की भी गिद्ध नजरें जमी हैं.

वे किसी भी तरह देश की औरतों की अलमारियों, संदूकों और तिजोरियों से उन के बेशकीमती जेवर निकलवाना चाहती हैं, क्योंकि जिस तरह हर दिन सोने के दाम बढ़ रहे हैं, व्यवसायियों को इस में बहुत बड़ा बाजार और बहुत बड़ा मुनाफा नजर आ रहा है.

एक रिपोर्ट के अनुसार, गोल्ड लोन बाजार का आकार कोई 18 लाख करोड़ रुपए का है, जिस की 15-20 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने की उम्मीद है. इसीलिए आजकल गोल्ड लोन को तत्काल ऋण के लिए सब से अच्छे विकल्प के तौर पर विभिन्न माध्यमों से प्रचारित किया जा रहा है.

महिलाओं को यह समझने की कोशिश हो रही है कि आप के जेवर तो आप की अलमारी में रखेरखे सड़ रहे हैं, सो क्यों नहीं आप उन को गिरवी रख कर अपनी सुखसुविधा के साधन जुटाती हैं. यह समझने की कोशिश हो रही है कि गिरवी रखने से आप का सोना सुरक्षित है और आप को उस पर लिए लोन से मनपसंद सामान खरीदने का मौका भी मिल रहा है.

सोना गिरवी रखने वाली वित्तीय संस्थाएं यह नहीं बतातीं कि किस्त अदा करने में जरा सी चूक हो जाने पर वे अपना सारा सोना गंवा बैठेंगी.

इस विषय पर पिछले अंक में काफी चर्चा हो चुकी है कि महिलाओं को अपने जेवर गिरवी रखने पर क्याक्या नुकसान उठाने पड़ सकते हैं. हैरानी की बात है कि सरकार और वित्तीय संस्थाओं (बैंक और गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थाएं) की नजरें इस वक्त सिर्फ हिंदुस्तान की महिलाओं के जेवरों पर हैं जबकि भारत के मंदिरों खासकर दक्षिण के मंदिरों, में अथाह सोना भरा पड़ा है. उन को गिरवी रखने की बात कहीं नहीं उठ रही है. वित्तीय संस्थाएं और सरकार चाहें तो उस से कहीं ज्यादा मुनाफा कमा सकती हैं.

महिलाएं तो रिश्तेदारों की शादीब्याह में अपने गहने पहन कर ही परिवार के बीच कुछ तारीफ पा लेती हैं, कुछ सोशल स्टेटस अच्छा बना लेती हैं वरना उन के हाथ में और है ही क्या?

मंदिरों की कोठरियों में सदियों से जो टनों सोना जमा है उस का तो कोई यूज भी नहीं है. वित्तीय संस्थानों को यदि मुनाफा कमाना ही है तो उन्हें उस सोने को गिरवी रखने के आकर्षक विज्ञापन जारी करने चाहिए.

इस समय भारत का गोल्ड लोन बाजार एक परिवर्तनकारी चरण में है, जिस में पारंपरिक ऋण को फिनटेक नवाचार के साथ मिलाया जा रहा है. सोने की बढ़ती कीमतों, आर्थिक अनिश्चितता और ऋण की बढ़ती मांग के कारण बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थानों को इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं दिखाई दे रही हैं.

गोल्ड लोन के क्षेत्र में कई नए और उभरते स्टार्टअप्स आ गए हैं जो तकनीक और औनलाइन माध्यमों के जरिए ऋण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. कुछ प्रमुख उदाहरणों में रुपीक, ओरो मनी, इंडियागोल्ड और मणिपाल फिनटेक शामिल हैं, जो डिजिटल प्लेटफौर्म, डोरस्टेप गोल्ड लोन और अन्य तकनीकी समाधानों के माध्यम से गोल्ड लोन की सुविधा प्रदान करते हैं.

बेंगलुरु स्थित रुपीक, चेन्नई स्थित ओरो मनी, नोएडा की इंडियागोल्ड और गुरुग्राम की मणिपाल फिनटेक इस क्षेत्र में काम करने वाले कुछ प्रमुख स्टार्टअप्स हैं. इस साल की शुरुआत में मणिपाल फिनटेक ने पूजा अभिषेक सिंह को अपना नया मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया है. पूजा अभिषेक सिंह इस से पहले पेटीएम कंपनी में थीं, जहां उन्होंने व्यवसाय को संचालित करने में महती भूमिका निभाई है.

अफसोस कि एक महिला होने पर भी उन को सरकार और वित्तीय संस्थाओं की वह साजिश समझ में नहीं आ रही जिस के चलते वे भारत की महिलाओं को आर्थिक रूप से कमजोर करने की कोशिश में लगी हैं.

एक मजेदार घटना का जिक्र करते चलें. लखनऊ में सआदतगंज कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत एक मोटर मैकेनिक की पत्नी की कान की बाली नोंच कर फरार हुए गैंगस्टर को पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर गिरफ्तार किया. उस से पूछताछ हुई तो उस ने बताया कि जो गहने वह छीनता या चोरी करता है उसे वह बैंक में गिरवी रख कर गोल्ड लोन ले लेता है.

पूछताछ में गैंगस्टर देवेंद्र ने कहा कि लूटे गए गहने किसी सर्राफ को बेचने पर पकड़े जाने का भय होता है, क्योंकि पुलिस सर्राफ तक आसानी से पहुंच जाती है. वहीं, फाइनैंस कंपनी में गहने गिरवी रख कर लोन लेना आसान होता है. चूंकि गिरवी रखे गए जेवर कभी छुड़ाने नहीं होते, इसलिए वह फर्जी आईडी लगा कर लोन लेता था. ऐसा वह कई बार कर चुका है. उस ने चोरी के गहनों पर कई बैंकों से गोल्ड लोन ले रखा है.

बैंकों को मुनाफे से मतलब

इस घटना से स्पष्ट है कि बैंक सोना ले कर पैसा देने में कितनी जल्दबाजी दिखा रहे हैं. वे यह तक जानना नहीं चाहते कि व्यक्ति जो सोना ले कर उन के पास आया है वह सोना उस व्यक्ति के पास कहां से आया. वह उस का है भी या नहीं.

आजकल तो कई साहूकार और ज्वैलर्स पैसे की जरूरत ले कर आए व्यक्ति का सोना अपने पास 12 फीसदी ब्याज पर गिरवी रख लेते हैं और फिर उस गहने को किसी बैंक में गिरवी पर रख कर लोन उठा कर वह पैसा अपने बिजनैस में लगा लेते हैं. जब सोने का मालिक अपना सोना वापस लेने के लिए आता है तो वे उस से अगले हफ्ते आने के लिए कहते हैं और बैंक को भुगतान कर सोना वापस ले लेते हैं. यह धंधा भी खूब फलफूल रहा है. इसी सोच पर नईनई स्टार्टअप कंपनियां भी चल रही हैं.

गौरतलब है कि भारत में सोना गिरवी रख कर उधार देने वाले साहूकारों, ज्वैलर्स और व्यापारियों के पास इस बाजार की लगभग 65 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि बाकी 35 फीसदी हिस्सेदारी बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच है. बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान इस हिस्सेदारी को तेजी से बढ़ाना चाहते हैं.

सोने की चमक और व्यावसायिक मुनाफा

पिछले 2 महीनों में एल एंड टी फाइनैंस और पूनावाला फिनकौर्प जैसे नए ऋणदाताओं ने गोल्ड लोन व्यवसाय में प्रवेश की घोषणा की है. स्टार्टअप संस्थापकों का मानना है कि बहुत जल्द इस क्षेत्र में नए सहउधार के अवसर खुलेंगे. उपभोक्ता ऋण देने वाली स्टार्टअप कंपनी मनीव्यू, जिस का सितंबर 2024 में आंतरिक फंडिंग राउंड के माध्यम से मूल्यांकन एक बिलियन डौलर था, गोल्ड लोन की पेशकश शुरू करने की योजना बना रही है. गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थान मुथूट फिनकौर्प ने भी15 करोड़ रुपए का निवेश कर के बैंक बाजार में एक छोटी हिस्सेदारी हासिल की है. डिजिटल चैनलों के माध्यम से ये ग्राहकों को लुभाने में लगी हैं.

चोला मंडलम इन्वैस्टमैंट एंड फाइनैंस ने गोल्ड लोन सेगमैंट में प्रवेश किया है, जिस का लक्ष्य 120 नई शाखाओं के माध्यम से 1,500 करोड़ रुपए की लोन बुक हासिल करना है. इस का प्रारंभिक फोकस भारत के दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों पर है. अपनी विविधीकरण रणनीति के तहत चोला ने वाहन वित्त हिस्सेदारी को कम करने और सुरक्षित ऋण, बंधक और छोटे उद्यम ऋणों में वृद्धि को बढ़ावा देने की योजनाएं बनाई हैं. चोला मंडलम इन्वैस्टमैंट सोना उधार देने के कारोबार में प्रवेश करने वाला नवीनतम ऋणदाता है.

गोल्ड लोन मार्केट में पहले नौनबैंकिंग फाइनैंशियल कंपनियों का वर्चस्व था, लेकिन हाल के दिनों में सरकारी बैंकों की इस मार्केट में हिस्सेदारी बहुत तेजी से बढ़ी है. अब लगभग हर सरकारी बैंक गोल्ड लोन मार्केट में उतर आया है. मिसाल के तौर पर, वर्ष 2023 की सितंबर तिमाही से पहले की तिमाहियों में एसबीआई के रिटेल गोल्ड लोन सेगमैंट में 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. बैंक औफ बड़ौदा ने इस सेगमैंट में 62 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की जबकि एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक ने 23 और 26 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की.

कड़वी सच्चाई

भारत की अर्थव्यवस्था मोदी-निर्मित संकट में गहराई से फंसी हुई है. 2024 तक लगातार आर्थिक सुस्ती के कारण बीते 5 वर्षों में गोल्ड लोन में 300 फीसदी की वृद्धि हुई, जो पहली बार 1 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर गई है.

भारत की महिलाओं के लिए बुरी खबरें लगातार बढ़ रही हैं. फरवरी 2025 में आरबीआई के आंकड़ों में पता चला कि गोल्ड लोन में 71.3 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने में बुरी तरह नाकाम रही है. इस की सब से बड़ी कीमत भारत की महिलाओं को चुकानी पड़ रही है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में संकट की वजह से परिवारों को अपने घर की महिलाओं के गहने बेच कर कर्ज लेना पड़ रहा है और बैंक इस के लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा उत्साहित कर रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों में कई ऐसी रिपोर्टें सामने आई हैं जिन में कहा गया है कि गोल्ड लोन डिफौल्ट में भारी बढ़ोतरी हुई है. मतलब गोल्ड लोन लेने वाले समय पर किस्त अदा नहीं कर पा रहे हैं. आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जून 2024 के दौरान गोल्ड लोन डिफौल्ट में 30 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया. इस दौरान बैंकों और गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों का गोल्ड लोन डिफौल्ट 5,149 करोड़ रुपए से बढ़ कर 6,696 करोड़ रुपए पर पहुंच गया. जाहिर है, बैंकों के पास आप के सोने को तुरंत नीलाम करने या बेचने का विकल्प है जिस से वे अपना नुकसान पूरा करें. मगर आप को अपना सोना गिरवी रख कर क्या मिला, जरा सोचें.

Terrorism : आतंकवाद से मौतें, युद्धों पर भारी

Terrorism : कश्मीर घाटी के पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को आतंकवादी हमला हुआ. आतंकवाद से लगभग पूरी दुनिया त्रस्त है. यूरोप, अमेरिका और एशिया आतंकवाद का दंश झेल रहे हैं और आतंकवाद से लगातार लड़ भी रहे हैं लेकिन आतंकवाद खत्म नहीं हो पा रहा. सवाल यह है कि पूरी दुनिया में आतंकवाद है क्यों? आतंकवाद के पीछे राजनीति है या धर्म? आतंकवादियों के निशाने पर निर्दोष लोग ही क्यों होते हैं?

विश्व वर्ष 1945 के बाद युद्धों से तो छुटकारा पा गया और बहुत बड़े भूभाग में कहीं भी कोई वर्षों चलने वाला बड़ा युद्ध नहीं हुआ. कोरिया, मिस्र, वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक, कुवैत, सीरिया, यूक्रेन में युद्ध हुए या हो रहे हैं पर उस पैमाने पर नहीं जो 1914 से 1919 और 1940 से 1945 के बीच हुए.

उस से पहले लोगों को शांति गरमी की बारिश की तरह मिलती थी, कुछ दिनों के लिए. 1945 के बाद बहुत खतरनाक बमों, एटमबमों के कारण युद्ध छोटे से इलाके, 2 देशों में या एक देश के कुछ हिस्सों में हो रहे हैं. हर समय दुनिया की 90-95 प्रतिशत जनता शांति से ही नहीं रहती रही, वह अगले 10, 20, 30, 40 वर्षों की योजनाएं भी बनाती रही. आतंकवाद इस मामले में अपवाद है कि उस से मरने वालों की संख्या किसी भी एक बड़े शहर में सालभर में होने वाली कार दुर्घटनाओं से मरने वालों से कम रही है.

7 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 22 अप्रैल को हुए पहलगाम हत्याकांड पर पूरे पाकिस्तान पर हमला नहीं किया, हालांकि नरेंद्र मोदी की पार्टी के अंधभक्त यही चाहते थे. नरेंद्र मोदी को मालूम था कि एटम बमों से लैस पाकिस्तान पर हमला कभी भी सफल नहीं हो सकता. वे सिर्फ भारत की जनता को संतुष्ट करने के लिए कुछ कर सकते हैं और बाजेगाजे के साथ भारतीय सीमा में उड़ते हुए हवाई जहाजों ने मिसाइलें उन मकानों पर मारीं जहां आतंकवादियों के होने का अंदाजा था.

बरसैन में जिन्होंने हत्याकांड को अंजाम दिया था, वे वहां थे, यह पक्का नहीं था क्योंकि 9 ठिकानों पर मिसाइल हमले किए गए जबकि आतंकवादी सिर्फ 4 थे. वे एक जगह होने चाहिए थे या 4 जगह लेकिन हमारी खुफिया एजेंसियों को यह मालूम नहीं था. 22 अप्रैल से 7 मई तक भारत सरकार ने किसी भी आतंकवादी के भारत में पकड़े जाने, उन का साथ देने, उन को ठहराने, उन को लाने व ले जाने के लिए किसी को भी पकड़ने की घोषणा नहीं की. हमारा यह अनुमान था कि इन 9 ठिकानों पर वे आतंकवादी होंगे.

4 दिनों की कार्रवाई से क्या भारत पर आतंकवादी हमले रुक जाएंगे और पाकिस्तान में ब्रेनवाश करने वाले और हथियार जमा करने वाले अपनी दुकानें बंद कर देंगे, ऐसा नहीं लगता. भारत व पाक के बीच बातचीत जो शायद जेनेवा में अगले माहों में हो, पाकिस्तान के कसबों में से आतंकवादियों की उपज को जला देगी, ऐसा भी नहीं हो सकता. 70 सालों में हम अपने दलितों और शूद्रों के प्रति हो रहे सामूहिक अत्याचारों को बंद नहीं कर पाए जबकि हमारे पास मुस्तैद पुलिस है, कानून हैं, अदालतें हैं और संविधान की सुरक्षा है.

आतंकवाद क्या है और इस की शुरुआत कहां से हुई?

किसी सरकार पर दबाव बनाने के लिए कुछ संगठित पर बहुत छोटे गिरोहों द्वारा हिंसा का इस्तेमाल और उस हिंसा में आम लोगों को निशाना बनाया जाना आतंकवाद कहलाता है. धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक या निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए कुछ आतंकी संगठन हिंसा का प्रयोग करते हैं और आम लोगों को निशाना बनाते हैं. ये लोग पूरी सेना का गठन नहीं कर पाते तो 100-200 लोगों को मिला कर आम लोगों को निशाना बना कर सरकार को डराते हैं. इन का अतापता आमतौर पर नहीं होता क्योंकि ये खंडहरों, जंगलों, पहाडि़यों में आम लोगों की तरह रहते हैं और देश की सरकार की सेना, पुलिस या गुप्तचर असहाय रह जाते हैं. अपनी मानसिकता को बलात थोपने की प्रकिया में शामिल ये कट्टरपंथी लोग आतंकी कहलाते हैं. वैसे, इस धरती पर आतंकवाद तो तब से है जब से एक ताकतवर कबीले से बदला लेने के लिए कुछ संगठित गिरोहों ने उस कबीले के निर्दोष लोगों को निशाना बनाया.

पहली शताब्दी ईसवी के ‘सिकारि जीलट्स समूह’ को इतिहास के शुरुआती आतंकवादी संगठनों में से माना जाता है जिस ने रोमन साम्राज्य के यहूदिया प्रांत में भयंकर आतंक मचाया था. ये लोग रात के अंधेरे में भीड़भाड़ वाली जगहों पर हमला करते और निर्दोष लोगों की बेरहमी से हत्या कर फरार हो जाते थे.

एक दशक तक ‘सिकारी जीलट्स’ ने उत्पात मचाया और हजारों बेकुसूरों की हत्याएं कीं. यह यहूदियों का एक समूह था जो ‘सिकारी जीलट्स’ के नेतृव में रोमन शासन के खिलाफ बगावत पर उतर आया था. रोमन की सेना मजबूत थी. ये लोग उस से सीधी लड़ाई में जीत नहीं सकते थे, इसलिए ‘सिकारी जीलट्स’ ने ‘आतंक’ का रास्ता अपनाया.

इंग्लिश में ‘टैररिज्म’ शब्द की उत्पत्ति फ्रांस में 5 सितंबर, 1793 से 28 जुलाई, 1794 के दौरान हुई थी. यह फ्रांसीसी क्रांति के दौरान 11 महीनों की अवधि थी जब जैकोबिन्स ने शासन के दुश्मनों को डराने और सत्ता को मजबूर करने के लिए हिंसा का इस्तेमाल किया था.

फ्रांसीसी क्रांति के बाद आतंकवाद के अलगअलग रूप दुनियाभर में उभरे. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया की औपनिवेशिक ताकतों के पीछे हटने के साथ ही एशिया, अफ्रीका और यूरोप में कई नए राष्ट्र अस्तित्व में आए. राष्ट्रों की नई सीमाएं निर्धारित हुईं और देशों के इस बंटवारे के बीच कई गुटों को नजरअंदाज कर दिया गया जिस से कई राष्ट्रवादी समूह उभर कर सामने आए और उन्होंने अपनी मांगों के लिए आतंकवाद का रास्ता अपनाया. इस तरह 20वीं सदी के अंत तक दुनियाभर में धार्मिक, राजनीतिक और राष्ट्रवादी आंदोलनों के नाम पर आतंकवाद जारी रहा.

रशिया और अमेरिका के बीच चले शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका की तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों को खड़ा करने में भूमिका रही लेकिन अमेरिका खुद ही आतंकवाद का शिकार हो गया. 11 सितंबर, 2001, जिसे 9/11 कहा जाता है, को अमेरिका में भयंकर आतंकवादी हमला हुआ जिस के पीछे इन्हीं तालिबान का हाथ था. अमेरिका में हुए 9/11 के हमलों के बाद आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए सब से बड़ा खतरा बन गया.

क्या आतंकवाद का धर्म नहीं होता?

समयसमय पर सभी धर्मों को ‘आतंकवाद’ की जरूरत पड़ती है. आतंकवाद के एलिमैंट्स सभी धर्मों में मौजूद होते हैं. दुनिया के किसी भी धर्म से यदि हिंसा, युद्ध, घृणा और अंधविश्वास जैसे तत्त्वों को निकाल दिया जाए तो उस में कुछ बचेगा ही नहीं. आतंकवाद के बिना कोई भी धर्म इतनी सदियों तक वजूद में नहीं होता. सभी धर्मों की पोथियों में हिंसा एक अवश्यंभावी तत्त्व जरूर रहा है. गीता, रामायण, कुरआन, बाइबिल या कोई भी धर्मग्रंथ हो, सभी में हिंसा मौजूद है.

यही कारण है कि जिहाद, क्रूसेड और धर्मयुद्ध के नाम पर हिंसा का लंबा इतिहास रहा और आतंकवाद से हर धर्म का संबंध रहा. हालांकि दुनिया में कई ऐसे आतंकी संगठन भी हैं जिन का किसी भी धर्म से कोई संबंध नहीं है. सो ऐसे में आतंकवाद से किसी एक धर्म को जोड़ना गलत है. लेकिन पूरी दुनिया में पिछले

30 वर्षों में हुई आतंकी घटनाओं के लिए जिम्मेदार ज्यादातर आतंकी संगठनों का संबंध इसलाम से ही रहा है, इसलिए ‘इसलामिक आतंकवाद’ शब्द पूर्वाग्रह नहीं बल्कि एक कड़वी सच्चाई है.

पहलगाम में दिन के उजाले में पर्यटकों को इसलामिक आतंकवाद का क्रूर चेहरा देखने को मिला, जब धर्म पूछ कर गोलियां मारी गईं.

इसलामिक आतंकवाद

दुनियाभर में पिछले 30 या 40 सालों में हुए आतंकी हमलों पर नजर डालें तो 95 फीसदी आतंकी हमलों के पीछे इसलामिक गुटों की सक्रियता रही है. इस से पूरी दुनिया में आतंकवाद को इसलाम से जोड़ना आसान हो गया है.

हालांकि पूरी दुनिया में सक्रिय आतंकी गुटों में ईसाई और कई गैरइसलामी गुट भी शामिल हैं लेकिन 1979 से अप्रैल 2024 के बीच हुए 80 प्रतिशत आतंकी हमलों के लिए 5 इसलामी समूह तालिबान, इसलामिक स्टेट, बोको हरम, अल शबाब और अलकायदा जिम्मेदार रहे हैं.

जरमन अखबार वेल्ट एम सोनटैग के अनुसार, 11 सितंबर, 2001 से 21 अप्रैल, 2019 के बीच 31,221 आतंकी हमले हुए, जिन में 146,811 लोग मारे गए. इन हमलों के लिए जिम्मेदार सभी आतंकी गुट इसलाम से संबंधित थे.

पहलगाम की आतंकी घटना के दौरान यह पहली बार देखने को मिला है कि आतंकियों ने लोगों से धर्म पूछ कर निशाना बनाया जबकि पूरी दुनिया में आतंक का सब से ज्यादा शिकार मुसलमान ही हुए हैं. 1990 के दशक से दुनियाभर में इसलामी आतंकवादी घटनाएं हुई हैं और इन आतंकी हमलों में मुसलमानों व गैरमुसलमानों दोनों को निशाना बनाया गया. ज्यादातर आतंकी हमले मुसलिम देशों में ही हुए हैं, इसलिए आतंक का शिकार भी ज्यादातर मुसलमान ही हुए हैं. एक अध्ययन के अनुसार, 1990 से 2024 के बीच हुए आतंकी हमलों में 80 से 90 फीसदी पीडि़त मुसलिम हैं. 2011 से 2014 के बीच हुए आतंकी हमलों में कुल 33,438 लोग मारे गए थे जिन में 29,663 मुसलमान थे.

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2024 के अनुसार, दुनियाभर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों की लिस्ट में आईएस और हमास के नाम सब से ऊपर हैं. 7 अक्तूबर, 2022 को इसराइल में हमास द्वारा किए गए हमले के बावजूद इसलामिक स्टेट दुनिया का सब से घातक आतंकवादी समूह बना हुआ है.

अर्थशास्त्र एवं शांति संस्थान यानी आईईपी द्वारा तैयार वार्षिक वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2024 यानी जीटीआई के अनुसार, 2023 में सब से ज्यादा मौतों के लिए जिम्मेदार चार आतंकवादी समूह इसलामिक स्टेट यानी आईएस, हमास, जमात नुसरत अलइसलाम वलमुसलिमीन यानी जेएनआईएम और अलशबाब थे. ये 4 समूह संयुक्त रूप से 4,443 मौतों के लिए जिम्मेदार थे. इन मौतों में 1,636 मौतों के लिए इसलामिक स्टेट जिम्मेदार था.

2023 में आईएस आतंकवादी हमलों से सब से ज्यादा प्रभावित देश सीरिया था, जहां 2023 में 224 हमले दर्ज किए गए, जो 2022 में हुए 152 हमलों से ज्यादा हैं. सीरिया में आईएस हमलों से सब से ज्यादा मौतें भी दर्ज की गईं. आईएस की वजह से होने वाली सभी मौतों में से एकचौथाई सीरिया में हुईं.

वर्ष 2023 में हमास दूसरा सब से खतरनाक आतंकवादी संगठन था जो 2023 के 9 आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार था जिन में 1,209 मौतें हुईं. 7 अक्तूबर, 2023 को हमास के आतंकवादियों ने इसराइल पर रौकेट हमले किए जिस के परिणामस्वरूप 1,200 मौतें हुईं, 4,500 से ज्यादा लोग घायल हुए और 250 लोगों को बंधक बनाया गया. यह 1970 के बाद से दर्ज किए गए उन 4 भीषण आतंकवादी हमलों में से एक था, जिस के परिणामस्वरूप 1,000 से अधिक मौतें हुईं. यह 9/11 के बाद किसी एक हमले में हुई सब से अधिक मौतें थीं.

जमात नुसरत अलइसलाम वलमुसलिमीन ‘जेएनआईएम’ 2023 में तीसरा सब से खतरनाक आतंकवादी समूह रहा जिस ने 2023 में 1,099 मौतों और 112 हमलों की जिम्मेदारी ली थी.

अलशबाब पूर्वी अफ्रीका में सक्रिय सलाफी आतंकवादी समूह 2023 में चौथा सब से घातक आतंकवादी संगठन रहा, जिस ने 2023 में 227 हमले और 499 लोगों की मौत की जिम्मेदारी ली थी. अनुमान है कि अलशबाब के पास 7,000 से 9,000 लड़ाके हैं.

मुसलिम देशों में बेरोजगारी और इसलामिक कट्टरता की वजह से नौजवान आतंकी संगठनों का हिस्सा बनते हैं जहां कुरान और हदीसों के नाम पर उन्हें जिहाद के लिए ब्रेनवाश किया जाता है. कुछ लोग मानते हैं कि 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत से पहले इसलाम में कोई आतंकवाद नहीं था, जबकि यह पूरी तरह सच नहीं है. इसलाम की शुरुआत से ही ऐसे विद्रोही गुट सक्रिय रहे हैं जिन्होंने इसलाम के नाम पर आम नागरिकों का कत्लेआम किया. जिहाद के नाम पर दहशतगर्दी का सिलसिला इसलाम की शुरुआत से ही जारी है. खारिजाइट्स, साहल इब्न सलामा, बारबहारी, कादिजादेली और इब्न अब्द अलवहाब जैसे आतंकी गुट 7वीं सदी के बाद से सक्रिय रहे और कई सदियों तक आतंक फैलाया. अल्लाह के सच्चे दीन की पुनर्स्थापना के नाम पर 7वीं सदी के खारिजाइट्स ने बड़ी तादाद में कत्लेआम किया. शिया और सुन्नियों के अलगअलग गुटों ने भी इसलाम के नाम पर सदियों तक रक्त बहाया.

1960 के दशक में अलफतह और पौपुलर फ्रंट फौर द लिबरेशन औफ फिलिस्तीन (पीएफएलपी) जैसे इसलामिक संगठनों ने आम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था. 1967 में अरब सेनाओं पर इसराइल की जीत के बाद फिलिस्तीनी उग्रवादी नेताओं को यह एहसास होने लगा कि अरब दुनिया मिल कर भी युद्ध के मैदान में इसराइल को नहीं हरा सकती और तब फिलिस्तीनी गुटों ने आतंकवाद का रास्ता अपनाया.

1979 में हुई ईरानी क्रांति के बाद ईरानइराक युद्ध और लेबनान पर इसराइल के कब्जे से लड़ने वाले शिया समूहों को आयतुल्लाह खोमैनी का समर्थन मिलने से आतंकवाद के उदय में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आ गया.

पड़ोसी देश पाकिस्तान आतंकी संगठनों को पोसता है, इसलिए पाकिस्तान को ‘आतंकियों का स्वर्ग’ कहा जाता है. लश्कर ए तैयबा, लश्कर ए ओमर, जैश ए मोहम्मद, हरकतुल मुजाहिद्दीन, सिपाह ए सहाबा, हिजबुल मुजाहिदीन आदि सब के सब पाकिस्तान में रह कर अपनी आतंकी गतिविधियां चलाते हैं और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इन्हें ट्रेनिंग देती है. भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान के इन आतंकी संगठनों की ही अहम भूमिका होती है. भारत सरकार ने अभी तक ऐसे कुल 42 संगठनों को आतंकवादी संगठन घोषित किया है.

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2024 के अनुसार, 2023 में आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों में 22 फीसदी की वृद्धि हुई है और यह 8,352 हो गई है.

इसलामिक कट्टरवाद से ही ‘इसलामिक आतंकवाद’ का जन्म हुआ है. इसलाम में कट्टरवाद हमेशा से रहा है. इसी कट्टरवाद के कारण पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे इसलामिक देशों में अल्पसंख्यकों का जीना दूभर हो गया है और यह कट्टरवाद भी एक तरह का इसलामिक आतंकवाद ही है. पाकिस्तान में ईसाई अल्पसंख्यक हैं और पिछले कई दशकों से वे इसलामिक कट्टरवाद का जबरदस्त शिकार हो रहे हैं.

16 अगस्त, 2023 को टीएलपी के इसलामिक आतंकवादियों ने पाकिस्तान के जरनवाला में ईसाइयों पर हमला किया जिस में 80 से ज्यादा चर्चों को जला दिया गया और कई ईसाई बस्तियों को आग लगा दी गई.

9 अगस्त, 2002 को बंदूकधारियों ने पाकिस्तान के पंजाब राज्य के तक्षशिला क्रिश्चियन अस्पताल के मैदान में एक चर्च में हथगोले फेंके, जिस में 4 ईसाइयों की मौत हो गई और 25 लोग घायल हो गए.

25 सितंबर, 2002 को मुसलिम आतंकवादी कराची के इंस्टिट्यूट फौर पीस एंड जस्टिस की तीसरी मंजिल के कार्यालय में घुस गए और 6 ईसाइयों के सिर में गोली मार दी.

25 दिसंबर, 2002 को एक मौलवी ने ईसाइयों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिया और बुर्का पहने 2 मुसलिम बंदूकधारियों ने पूर्वी पाकिस्तान के चियानवाला में एक प्रेस्बिटेरियन चर्च में ग्रेनेड फेंका, जिस में 3 लड़कियों की मौत हो गई.

नवंबर 2005 में 3,000 इसलामवादी उग्रवादियों ने पाकिस्तान के सांगला हिल में ईसाइयों पर हमला किया और ईसाइयों की कई इबादतगाहों को नष्ट कर दिया.

फरवरी 2006 में डेनमार्क के एक अखबार में हजरत मुहम्मद के छपे कार्टून के विरोध में पाकिस्तान के कई चर्चों और ईसाई स्कूलों को इसलामिक आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाया गया.

22 सितंबर, 2013 को पेशावर के आल सैंट्स चर्च में हुए एक आत्मघाती हमले में 75 ईसाई मारे गए.

15 मार्च, 2015 को लाहौर के योहानाबाद शहर में रविवार की प्रार्थना के दौरान एक रोमन कैथोलिक चर्च और एक क्राइस्ट चर्च में विस्फोट हुए, इन हमलों में कम से कम 15 लोग मारे गए और 70 घायल हो गए.

27 मार्च, 2016 को जब ईसाई ईस्टर की सभा आयोजित कर रहे थे, लाहौर में एक खेल के मैदान पर आत्मघाती हमला हुआ. उस हमले में 70 लोग मारे गए और 340 से अधिक घायल हो गए.

17 दिसंबर, 2017 को एक बम विस्फोट में 9 लोगों की मौत हो गई और 57 घायल हो गए.

16 अगस्त, 2023 को पाकिस्तान के पंजाब के जरनवाला में 26 ईसाई चर्चों को जला दिया गया.

कट्टरवाद हर धर्म में होता है लेकिन जब किसी धर्म का आम आदमी अपने मजहब के कट्टरवाद को जिंदा रखने के लिए किसी की जान लेने या अपनी जान देने पर आमादा हो जाए, ऐसा मजहब दुनिया के लिए नासूर ही साबित होता है. दुनिया के लिए इसलाम कुछ ऐसा ही नासूर बनता जा रहा है.

19वीं सदी तक कट्टर ईसाइयत हिंसा दुनिया के लिए नासूर बनी रही लेकिन ईसाइयों ने खुद आगे आ कर पादरियों व चर्चों की सत्ता को खत्म किया. इस से ईसाई धर्म की कट्टरता और उद्दंडता पर लगाम लगी और उस के बाद ही ईसाइयों ने मानवता व विज्ञान के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को हासिल किया.

आज पूरी दुनिया में इसलाम को ले कर जो भय है उसे इसलामोफोबिया का नाम दे कर छिपाया नहीं जा सकता. यह डर स्वाभाविक है और मुसलिमों को ले कर इस डर के पीछे गैरमुसलिमों की साजिश नहीं है बल्कि यह मुसलमानों की हरकतों से पैदा हुआ गैरमुसलिम जमात का रिऐक्शन है, जिसे ठीक से समझने की जरूरत है.

अगर दुनिया में इसलामोफोबिया है भी, तो यह मुसलमानों की करतूतों की वजह से है और यदि मुसलमान इसलामोफोबिया को खत्म करना चाहते हैं तो इस का तरीका यह नहीं होगा कि गैरमुसलिमों के अंदर बैठे स्वाभाविक डर को झुठा साबित करने के लिए मुसलमान इसलामोफोबिया जैसे शब्दों की आड़ में छिप जाएं बल्कि मुसलमानों को अपनी कमियों को नजरअंदाज करने की गंदी आदत को छोड़ना होगा.

अगर मुसलमानों को इसलामोफोबिया के माहौल को खत्म करना है और दुनिया में मुहब्बत व तरक्की के साथ जीना है तो उन्हें जहर उगलने वाले अपने नफरती उलेमाओं का बौयकाट करना होगा और ‘इसलामिक आतंकवाद’ के खिलाफ आगे आ कर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी.

हमास, तालिबान, हिजबुल्ला, लश्करे तैयबा या तहरीके लब्बैक जैसे संगठनों ने दहशतगर्दी को इसलाम का पर्यायवाची बना दिया है. इसलाम के मुल्ला और उलेमाओं की फौज मुसलमानों की आजाद सोच के खिलाफ इसलाम का डंडा लिए खड़ी है.

मुसलमानों को उल्लू बनाए रखने में मुल्लाओं को जन्नतुल फिरदौस मिलने की गारंटी होती है, इसलिए वे कौम के भविष्य को मुट्ठियों में कैद कर रखना चाहते हैं. अगर दुनिया में इसलामोफोबिया है तो इस की वजह वे लोग हैं जो मुसलमानों की रहनुमाई करने का दावा करते हैं. आम मुसलमान इन धूर्तों के चंगुल में फंस कर बरबाद होता है. वह यह नहीं जानता कि मुसलमानों की तरक्की इन मुल्लाओं ने ही रोकी हुई है.

मुसलमानों को इसलामोफोबिया की आड़ में अपनी कमियों को ढकने की आदतों को छोड़ना होगा और इसलामोफोबिया के लिए अपने गरीबान में झांक कर देखना होगा.

कट्टरपंथी मुसलमानों की गलतियों की वजह से ही दक्षिणपंथी जमातों को ताकत मिलती है और फासिस्ट जमातें सत्ता पर काबिज हो जाती हैं. इटली हो या इंडिया, आज हर जगह मुसलमानों के खिलाफ राजनीति का बाजार गरम है, तो इस के लिए जिम्मेदार मुसलमान ही हैं.

यह कहना सही न होगा कि मुसलमानों के खिलाफ उन के धर्म के आधार पर ज्यादती नहीं होती. पिछले एक दशक से भारत की दक्षिणपंथी राजनीति का शिकार मुसलमान ही हो रहे हैं. दुनिया में कहीं भी होने वाली बर्बरता पूरी मानवता के लिए कलंक है. ज्यादती चाहे मुसलमानों के खिलाफ हो या मुसलमानों के द्वारा दूसरे धर्मों के खिलाफ हो, दोनों ही गलत हैं.

गैरइसलामिक आतंकवाद

‘इसलामिक आतंकवाद’ से अलग दुनियाभर में कई ऐसे आतंकी संगठन रहे हैं जिन्होंने हजारों बेकुसूर लोगों की जानें लीं और शहरों को तबाह किया. भारत में ही कई गैरइसलामी आतंकवादी पनपते रहे हैं.

खालिस्तानी आतंकवाद – पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली और राजस्थान के कुछ इलाकों को मिला कर एक अलग देश बनाने के लिए सिख अलगाववादी समूहों ने 1947 में भारत की आजादी के साथ ही खालिस्तान बनाने की मांग कर दी थी.

1947 के बाद पाकिस्तान की आईएस के समर्थन से खालिस्तानी आंदोलन पंजाब में फलाफूला और 1980 के दशक तक यह आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया. 1984 के दशक में उग्रवाद की शुरुआत हुई जो 1995 तक चला.

औपरेशन ब्लू स्टार की प्रतिक्रिया में सिख आतंकवादियों ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारी पुलिस एवं सैन्य कार्रवाई से एक बड़ी सिख आबादी का इस आंदोलन से मोहभंग हो गया जिस के परिणामस्वरूप 1990 तक खालिस्तानी आतंकवाद कमजोर पड़ने लगा और 1995 तक यह लगभग खत्म हो गया. अब कनाडा में कुछ सिख गुट इसे जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं.

बोड़ो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स (बीएलटी) नामक इस उग्रवादी संगठन को बोड़ो लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) के नाम से भी जाना जाता है. यह असम में सक्रिय एक आतंकवादी समूह था. बीएलटी की स्थापना 18 जून, 1996 को प्रेम सिंह ब्रह्मा और हाग्रामा मोहिलारी द्वारा की गई थी. हाग्रामा मोहिलारी संगठन के प्रमुख थे. 1996 से 2003 के बीच बीएलटी ने असम के कई इलाकों में दहशतगर्दी फैलाई. 10 फरवरी, 2003 को बीएलटीएफ और भारत सरकार के बीच दिल्ली में एक समझौता हुआ. समझौते के बाद 6 दिसंबर, 2003 को असम में बीएलटीएफ के 2,641 कैडरों ने आत्मसमर्पण कर दिया.

लिट्टे (एलटीटीई) जिसे लिबरेशन टाइगर्स औफ तमिल ईलम के नाम से भी जाना जाता है, एक श्रीलंकाई तमिल आतंकवादी संगठन था जो 1980 के दशक से 2009 तक सक्रिय रहा. इस का नेतृत्व वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने किया था. लिट्टे श्रीलंका में तमिलों के लिए एक अलग राज्य की मांग कर रहा था.

लिट्टे ने कई सालों तक श्रीलंकाई सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया. इस आतंकी संगठन ने कई आत्मघाती हमले किए थे जिन में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी. यह आतंकी संगठन राजीव गांधी की हत्या में भी शामिल रहा जिस की वजह से लिट्टे को कई देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था.

2009 में श्रीलंकाई सेना ने वेलुपिल्लई प्रभाकरण को मार दिया और प्रभाकरण की मौत के साथ ही लिट्टे खत्म हो गया. उसी दौरान एक बार श्रीलंका सरकार को सहायता देने के लिए 40 हजार भारतीय सैनिकों को लिट्टे से निबटने के लिए श्रीलंका भेजा गया पर वे बिना कुछ पाए लौट आए पर फिर सिंहली सेना ने तमिल उग्रवादियों को समाप्त कर ही दिया.

उत्तरी आयरलैंड में आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) नामक यह एक आतंकवादी संगठन था जिस का उद्देश्य आयरलैंड से ब्रिटिशर्स को खदेड़ना था. 1960 और 1990 के बीच इस संगठन ने कई बम धमाकों को अंजाम दिए जिन में बड़ी तादाद में लोग मारे गए. आयरलैंड के लिए वह समय इतना भयानक था कि 1960 से 1990 के बीच के उस दौर को ‘द ट्रबल’ के नाम से जाना जाता है.

स्पेन के बास्क इलाके के लोग स्वतंत्र देश बनाने के लिए आतंकवादी घटनाएं करते रहे हैं और 2004 में मैड्रिड में उन्होंने रेलों में एक ही दिन कई बम विस्फोट किए.

आगे का अंश बौक्स के बाद 

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क्या आतंकवाद को खत्म करने का एकमात्र तरीका युद्ध है?

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई. भारतीय सेना ने पाकिस्तान स्थित कई आतंकी अड्डों पर सर्जिकल स्ट्राइक की तो पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय सीमा में गोलाबारी की. 10 मई को सीजफायर के ऐलान के बाद भारत के प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम ने पाकिस्तान के आतंकी और सैन्य ठिकानों पर अपनी जवाबी कार्रवाई को अभी सिर्फ स्थगित किया है, आने वाले दिनों में हम पाकिस्तान के हर कदम को इस कसौटी पर मापेंगे कि वह क्या रवैया अपनाता है.’’

प्रधानमंत्री के इस बयान से साफ है कि युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है. सवाल यह है कि क्या आतंकवाद से निबटने के लिए इस तरह के महंगे युद्ध जरूरी होते हैं? आतंकवाद को खत्म करने के लिए क्या युद्ध ही एकमात्र विकल्प है?

9/11 हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवाद से निबटने के नाम पर अफगानिस्तान में युद्ध छेड़ दिया. तालिबान ने अमेरिकी हमलों के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को सौंपने से इनकार कर दिया था. अमेरिका ने अलकायदा को नष्ट करने और तालिबान को हटाने के लिए अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.

2001 में शुरू हुआ यह युद्ध 2021 तक चला. अमेरिका ने इस युद्ध पर 2.26 ट्रिलियन डौलर खर्च किए जिस में अप्रैल 2021 तक कुल 2,41,000 लोग मारे गए. इन में 70,000 अफगानिस्तान और पाकिस्तान के वे आम नागरिक थे जिन का युद्ध से लेनादेना नहीं था. 20 वर्षों तक चले इस युद्ध में अमेरिका के भी हजारों सैनिक मारे गए थे, फिर भी न आतंकवाद खत्म हुआ, न तालिबान खत्म हुआ और न ही अलकायदा. इन 20 सालों में अमेरिका की उपलब्धि यह रही कि 2 मई, 2011 को अमेरिकी नेवी सील्स की एक विशेष टीम ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ‘औपरेशन नेप्चयून स्पियर’ को अंजाम दिया और रात के अंधेरे मे ओसामा बिन लादेन को मार डाला. यानी, खोदा पहाड़ और निकला चूहा, वह भी तब जब मर सा चुका था क्योंकि पाकिस्तान सेना उसे कोई काम नहीं करने दे रही थी.

2 देशों के बीच का युद्ध और आतंकवाद के खिलाफ होने वाले युद्ध में बड़ा फर्क होता है. दुश्मन देश को सीधी लड़ाई में चुनौती दी जा सकती है, उसे हराया जा सकता है. दो राष्ट्रों के बीच होने वाली लड़ाई असल में दो सेनाओं के बीच का युद्ध होता है जिस में दोनों ओर से अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन किया जाता है और सीजफायर होने पर दोनों ओर की सेनाओं को युद्ध से पीछे हटना होता है लेकिन आतंकवाद के मामले में ऐसा नहीं होता.

आतंकवादियों की लड़ाई किसी देश और उस की सेना के खिलाफ ही होती है. आतंकी समूह जानते हैं कि वे किसी देश की सेना से सीधी लड़ाई में कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकते, इसलिए वे अपने से ताकतवर देश और उस की सेना को चुनौती देने के लिए आतंकवाद का रास्ता अपनाते हैं और आम लोगों को निशाना बनाते हैं. युद्ध में सैनिक शहीद होते हैं, यह गर्व की बात होती है लेकिन आतंकवाद से आम नागरिक मारा जाए, यह किसी भी देश के लिए सब से शर्मनाक स्थिति होती है.

सरकारों को यह समझना होगा कि सीधी लड़ाई में आतंक को खत्म नहीं किया जा सकता. सीधी लड़ाई में दुनिया का सब से ताकतवर देश अमेरिका भी आतंकवाद को नहीं हरा पाया. युद्ध के जरिए दहशतगर्दी का खात्मा मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. आतंकवाद को रोकने के लिए सरकारों को उन कारणों पर काम करना चाहिए जिन की वजह से आतंकवाद पैदा होता है.

आतंकवाद के लिए धार्मिक कट्टरवाद सब से बड़ा कारण है. सरकारों को सब से पहले धार्मिक कट्टरवाद पर लगाम लगाने के लिए दीर्घकालिक कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करनी होगी. आतंकवाद के लिए सामाजिक और आर्थिक असमानताएं भी बड़े कारक रहे हैं लेकिन सरकारें कभी भी इन असमानताओं को कम करने का प्रयास नहीं करतीं. शिक्षा और रोजगार की पहुंच जैसेजैसे बढ़नी शुरू होगी, आतंकवाद की मानसिकता कम होती जाएगी. नागरिकों के बीच विश्वास और सहिष्णुता को बढ़ावा देना भी अत्यंत जरूरी है वरना राष्ट्र के भीतर ही कई ऐसे विघटनकारी समूह तैयार हो जाएंगे जो भविष्य के लिए चुनौती ही साबित होंगे.

आतंकवाद से लड़ने में खुफिया तंत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. पहलगाम आतंकी हमला हमारे खुफिया तंत्र की बड़ी असफलता है. 2008 का मुंबई आतंकी हमला भी खुफिया तंत्र की नाकामी के कारण ही संभव हुआ. 2016 के उरी हमले में जम्मूकश्मीर के सैन्य अड्डे को निशाना बनाया गया था. उस में भी खुफिया एजेंसियों की नाकामी सामने आई थी. इसी तरह 2019 का पुलवामा हमला जिस में 40 सैनिकों की जान चली गई वह भी खुफिया विफलता का परिणाम था. हालांकि, कई बार खुफिया एजेंसियों की मुस्तैदी से बड़ी आतंकी घटनाएं रोकी गई हैं और आतंकियों को वारदात को अंजाम देने से पहले ही पकड़ा जा चुका है.

हर साल 21 मई को भारत राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस मनाता है. हर साल 21 मई हमें यह याद दिलाता है कि आतंकवाद किसी भी राष्ट्र के लिए एक गंभीर खतरा है लेकिन आतंकवाद से लड़ने का उपाय केवल युद्ध नहीं है. युद्ध से आतंकवाद कभी खत्म नहीं हो सकता.
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हिंदू आतंकवाद

‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग तब हुआ जब समझौता एक्सप्रैस में हुए बम विस्फोट के आरोप में हिंदुत्वादी गुट ‘अभिनव भारत’ के कुछ लोगों को पकड़ा गया.

18 फरवरी, 2007 को आधी रात के आसपास समझता एक्सप्रैस के 2 डब्बों में दोहरे विस्फोट हुए. उन विस्फोट में 68 लोग मारे गए. उस घटना को हिंदू कट्टरपंथी समूह अभिनव भारत से जुड़े लोगों ने अंजाम दिया था. 8 जनवरी, 2011 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक स्वामी असीमानंद ने यह कबूल किया कि वह समझता एक्सप्रैस में किए गए बम विस्फोट में शामिल था.

11 अक्तूबर, 2007 को राजस्थान के अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बाहर बम विस्फोट हुआ था, जिसे हिंदुत्व संगठन द्वारा अंजाम दिया गया था. 22 अक्तूबर, 2010 को इस विस्फोट के सिलसिले में 5 आरोपी अपराधियों को गिरफ्तार किया गया, जिन में से 4 के आरएसएस से जुड़े होने की बात कही गई.

स्वामी असीमानंद ने अपने कबूलनामे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर आतंकवादी हमला करने का आदेश देने का आरोप लगाया और बम विस्फोटों के एक अन्य आरोपी भावेश पटेल ने असीमानंद के इन आरोपों की पुष्टि की. हालांकि, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने इन आरोपों को गलत बताया.

29 सितंबर, 2008 को गुजरात और महाराष्ट्र में 3 बम विस्फोट हुए जिन में 8 लोग मारे गए और 80 घायल हुए. महाराष्ट्र में जांच के दौरान हिंदू चरमपंथी समूह अभिनव भारत को विस्फोटों के लिए जिम्मेदार पाया पाया. गिरफ्तार किए गए 3 लोगों की पहचान साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, शिव नारायण गोपाल सिंह कलसंघरा और श्याम भंवरलाल साहू के रूप में हुई.

विकिलीक्स द्वारा जारी दस्तावेजों के अनुसार, कांग्रेस पार्टी के महासचिव राहुल गांधी ने जुलाई 2009 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा उन के निवास पर आयोजित लंच में अमेरिकी राजदूत टिम रोमर से कहा था कि आरएसएस भारत के लिए लश्कर ए तैयबा से भी बड़ा खतरा है. 16 सितंबर, 2011 को नई दिल्ली में आयोजित पुलिस महानिदेशकों के वार्षिक सम्मेलन में खुफिया ब्यूरो (आईबी) के एक विशेष निदेशक ने पुलिस प्रमुखों को सूचित किया कि देश में बम विस्फोटों की 16 घटनाओं में हिंदुत्व कार्यकर्ताओं पर या तो संदेह है या वे जांच के दायरे में हैं.

हिंदुत्ववादियों द्वारा अंजाम दी गई ये आतंकी घटनाएं इसलाम व मुसलमानों के खिलाफ थीं, इसलिए इसे ‘हिंदू आतंकवाद’ का नाम दिया गया. अगर हिंदुत्ववादियों द्वारा दलितों पर किए गए हमलों को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा जाए तो ऐसी घटनाओं की सूची बहुत लंबी हो जाएगी.

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार : 30 नवंबर और 1 दिसंबर, 1997 की रात को किए गए नरसंहार में ऊंची जाति के राजपूतों की बनी रणवीर सेना ने 1 घंटे में 58 दलित लोगों की हत्या की थी. उस में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को भी निशाना बनाया गया था.

शंकर बिगहा नरसंहार : 25 जनवरी, 1999 की रात बिहार के जहानाबाद जिले में हुए शंकर बिगहा नरसंहार में 22 दलितों की हत्या कर दी गई थी.

बथानी टोला : साल 1996 में भोजपुर जिले के बथानी टोला गांव में दलित, मुसलिम और पिछड़ी जाति के 22 लोगों की हत्या कर दी गई. माना जाता है कि बारा गांव नरसंहार का बदला लेने के लिए ये हत्याएं की गई थीं. गया जिले के बारा गांव में माओवादियों ने 12 फरवरी, 1992 को अगड़ी जाति के 35 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी थी.

मियांपुर नरसंहार : औरंगाबाद जिले के मियांपुर में 16 जून, 2000 को 35 दलित लोगों की हत्या कर दी गई थी.

बेल्छी नरसंहार : साल 1977 में पटना जिले के बेल्छी गांव में एक खास पिछड़ी जाति के लोगों ने 14 दलितों की हत्या कर दी थी.

1968 में किल्वेनमनी, तमिलनाडु में 44 दलित ग्रामीण मजदूरों की हत्या कर दी गई थी जो उच्च मजदूरी की मांग को ले कर हड़ताल पर थे.

1987 में बिहार में दलितों के खिलाफ एक नरसंहार हुआ था, जिस में कई लोग मारे गए थे.

1992 में बिहार में दलितों के खिलाफ एक और नरसंहार हुआ था, जिस में कई लोग मारे गए थे.

2006 में महाराष्ट्र में दलितों के खिलाफ एक नरसंहार हुआ था, जिस में कई लोग मारे गए थे.

हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद कोई नई चीज नहीं है. ऊंची जाति के हिंदुओं द्वारा निचली जातियों पर किए गए आतंकी हमलों का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन, निचली जातियों के प्रति हिंसा को कभी ‘आतंकवाद’ की श्रेणी में नहीं रखा गया. इसे सिर्फ सबक सिखाना कहा गया पर यह असल में इसलामी, आयरिश, बास्क, रेड आर्मी आतंकवाद से किसी तरह अलग नहीं है.

आतंकियों के निशाने पर आम आदमी ही क्यों

26 साल के विनय नरवाल अपनी पत्नी हिमांशी नरवाल के साथ पहलगाम में हनीमून मनाने गए थे. आतंकी हमले से 3 सप्ताह पहले ही विनय की शादी हिमांशी से हुई थी. पहलगाम में आतंकी हमले में लैफ्टिनैंट विनय नरवाल की मौत हो गई.

26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान में प्रशिक्षित और अत्याधुनिक हथियारों से लैस लश्कर ए तैयबा के 10 आतंकवादियों ने एक नाव के सहारे समुद्र के रास्ते मुंबई में प्रवेश किया था और मुंबई के भीड़भाड़ वाली जगहों पर तबाही मचाते हुए ताज होटल को निशाना बनाया. उस आतंकी हमले में 160 से अधिक लोग मारे गए थे और 200 से ज्यादा घायल हुए थे. उन आतंकवादियों का मानना था कि भारत में रह रहे मुसलमान जेलों में हैं जबकि हिंदू खुले में घूमते हैं.

भारत समेत दुनियाभर में ऐसी वीभत्स आतंकी घटनाएं होती रहती हैं जिन में आम आदमी को टारगेट किया जाता है. आतंकियों के लिए आम आदमी को टारगेट करना आसान होता है. देश के नेताओं और अभिनेताओं की सुरक्षा के लिए तो विशेष इंतजाम होते हैं लेकिन जनता की सुरक्षा तो भगवान भरोसे रहती है.

आतंकी संगठनों के लिए किसी देश की सेना से उलझना बड़ी चुनौती का काम होता है, इसलिए वे आम लोगों को निशाना बना कर मृतकों की संख्या के हिसाब से दहशतगर्दी फैलाते हैं. वे इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे कर सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. किसी देश की सरकार और कुछ विद्रोही समूहों के बीच की लड़ाई में आम नागरिक मारे जाते हैं.

एक घर का कोई व्यक्ति सुबह घर से काम पर निकला और किसी आतंकी हमले में मारा गया. इस में उस व्यक्ति का क्या कुसूर था? एक औरत अपने पति के साथ हनीमून पर गई और आतंकियों ने उस के सामने ही उस के पति को मार डाला.

आतंकी घटनाओं में सैकड़ों लोग बेमौत मारे जाते हैं. हर घटना के बाद मृतकों के घरवालों को मुआवजे के रूप में आर्थिक सहायता दी जाती है लेकिन सवाल यह है कि क्या कुछ लाख रुपयों के मुआवजे से उस औरत के जख्म को भरा जा सकता है जिस ने शादी के 3 सप्ताह के भीतर ही अपने पति को खो दिया?

हर आतंकी सिविलियन को निशाना बनाता है. बम ब्लास्ट में सिविलियन ही मरते हैं. सरकारें अपने नागरिकों को आतंकवाद से सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पातीं. आम आदमी मेहनत करता है, परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करता है, कानून का पालन करता है और अपनी सुरक्षा के लिए सरकार को टैक्स देता है. इस के बदले में उसे क्या मिलता है?

देश की सुरक्षा के लिए लड़ना सेना का काम है. देश की जनता के टैक्स के पैसों से ही सेना का खर्च वहन किया जाता है. लेकिन सेना पर भारीभरकम खर्च किए जाने के बावजूद आतंकवाद से देश की जनता ही सुरक्षित नहीं. कई बार खुफिया एजेंसियों की नाकामी से आतंक की वारदातें होती हैं और कई बार सेना की चूक से भी आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब होते हैं. नतीजतन, बेकुसूर नागरिक मारे जाते हैं. हर घटना के बाद सरकारें खानापूर्ति में लग जाती हैं. जनता की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर सरकारों से सवाल करने की जिम्मेदारी मीडिया की है. लेकिन मीडिया अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से किनारा कर चुकी है. जनतंत्र में सब से महत्त्वपूर्ण जनता होती है. लेकिन यह कैसा जनतंत्र है जहां जनता ही सुरक्षित नहीं है?

Hindi Kahani : अनमोल मंत्र – आखिर शिला भाभी ने कौन-सा मंत्र बताया

Hindi Kahani : दिल्ली एअरपोर्ट पर सुधाको देखते ही नीला जोर से चिल्लाई, ‘‘अरे सुधा तू, कहां जा रही है?’’‘‘अहमदाबाद और तू?’’‘‘तेरे पड़ोस में, वडोदरा. भूल गई मेरी शादी ही वहीं हुई थी. तू कब से है अहमदाबाद में?’’‘‘पिछले महीने ही इन की बदली वहां हुई है. मैं तो पहली बार जा रही हूं. कितना अच्छा होता अगर वडोदरा के बजाय तू भी अहमदाबाद में होती.’’

‘‘मैं न सही शिखा तो वहीं है. अकसर याद करती है तुझे, बहुत खुश होगी तुझ से मिल कर. वैसे मेरा चक्कर भी अकसर लग ही जाता है अहमदाबाद का, क्योंकि ऋषभ तो अपने काम के सिलसिले में वहां जाते ही रहते हैं.’’‘‘सच, तब तो बहुत मजा आएगा. शिखा कब आई अमेरिका से?’’

‘‘कई साल हो गए. लड़कियों के किशोरावस्था में पहुंचते ही उन लोगों ने वापस आना बेहतर समझा था. शादी कर दी है दोनों बेटियों की और संयोग से अहमदाबाद में रहने वाले लड़के ही मिल गए. तू बता तेरे बालबच्चे कहां हैं?’’‘‘मेरी तो एक ही बेटी है. वह डाक्टर है दिल्ली में. और तेरा परिवार कितना बड़ा है?’’

‘‘बस हम 2 हमारे 2. अब उन 2 का परिवार बढ़ रहा है. बेटी नोएडा में ब्याही है, लड़का हुआ है कुछ सप्ताह पहले. उसी सिलसिले में उस के पास आई थी. बेटा और बहू वडोदरा में ऋषभ के साथ बिजनैस संभालते हैं और मैं उन की बेटी.’’‘‘तेरा समय तो मजे से कट जाता होगा?’’‘‘हां, वैसे भी कई साल हो गए यहां रहते इसलिए काफी जानपहचान है. शिखा के वहां रहने से तेरा भी दिल लगा रहेगा वरना नई जगह में मुश्किल होती है.’’

‘‘वह तो है. मेरी एक रिश्ते की भाभी भी हैं अहमदाबाद में. तू भी आती रहेगी तो अच्छा लगेगा.’’प्लेन में भी दोनों साथ ही बैठीं और नीला ने उसे शिखा का फोन नंबर दे कर कहा कि तू उसे जाते ही फोन कर ले. वह बहुत खुश होगी. पिछले महीने ही शादी की है छोटी बेटी की तो फुरसत में है.

लेकिन इतने दिन बाद पति से मिलने और नया बंगला देखने के उल्लास में सुधा शिखा को फोन नहीं कर सकी. अगले रोज भी सुबह का समय बंद सामान खोलने और बाजार से सामान लाने में निकल गया और दोपहर आराम करने में. शाम को उस ने शिखा को फोन करने की सोची फिर यह सोच कर कि वह अपनी बेटियों की शादी के बाद अकेलेपन का रोना रो कर उस का अच्छाखासा मूड खराब कर देगी, उस ने पहले शीला भाभी को फोन करना बेहतर समझा. शीला उस के चचेरे भाई मनोहर की पत्नी थीं. 2 छोटेछोटे बच्चों और एक नई लगाई फैक्टरी की जिम्मेदारी शीला पर डाल कर मनोहर एक सड़क हादसे में चल बसा था. शीला भाभी ने बड़ी हिम्मत से फैक्टरी चलाई थी और बच्चों को पढ़ायालिखाया था. उन्होंने कभी अकेलेपन या उदासी का रोना नहीं रोया. समयाभाव के कारण वे दिल्ली अधिक नहीं आ पाती थीं लेकिन संपर्क सभी से रखती थीं. कुछ रोज पहले ही उन्होंने अपने छोटे बेटे की शादी की थी. तब सुधा को भी निमंत्रण भेजा था.

सुधा ने शीला भाभी का नंबर मिलाया. फोन नौकरानी ने उठाया, ‘‘मांजी तो अभी व्यस्त हैं. आप अपना नंबर दे दीजिए.’’‘‘मैं खुद ही दोबारा फोन कर लूंगी.’’‘‘मगर 7 बजे के बाद करिएगा.’’अभी 6 ही बजे थे. रवि के आने में भी देरी थी, इसलिए उस ने शिखा का नंबर मिलाया. शिखा उस की आवाज सुनते ही चहकी, ‘‘मैं अभी तुझ से मिलने आ जाती लेकिन क्या करूं मेरी छोटी बेटी और दामाद अपने कुछ दोस्तों के साथ मेरे हाथ का बना खाना खिलाने ला रहे हैं…’’‘‘अरे वाह, तू इतना बढि़या खाना बनाने लगी है?’’ सुधा ने कहा.‘‘यह तो तू खाने के बाद ही बताना. असल में बच्चों ने यह पार्टी मेरा दिल बहलाने के लिए रखी है. वरुण आजकल बाहर गए हुए हैं, मुझे अकेलापन न लगे, इसलिए मुझे इस तामझाम में उलझा रहे हैं.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है. मैं तो सोच रही थी कि बेटियों की शादी के बाद तू एकदम अकेली हो गई होगी.’’‘‘अरे नहीं. पहले 2 बेटियां थीं अब 2 बेटे भी मिल गए. एक बात बताऊं सुधा, पहले जब वरुण बाहर जाते थे तो लड़कियों के साथ अकेले बहुत डर लगा करता था. रात को ठीक से सो भी नहीं पाती थी. पर पिछली बार जब वरुण गए तो मेरी बड़ी बेटी और दामाद मेरे पास थे. मैं इतनी गहरी नींद में सोई कि मेरी बेटी को सुबह नाक पर हाथ रख कर देखना पड़ा कि मेरी सांस चल रही है या नहीं.’’

‘‘एक दामाद को घरजंवाई क्यों बना लेतीं?’’‘‘न बाबा न, सब अपनेअपने घर सुखी रहें. फुरसत मिलने पर मुझ से मिल लें, मैं इसी में खुश हूं. यह बता कल क्या कर रही है?’’‘‘कुछ बंद सामान खोलूंगी.’’‘‘वह परसों खोल लेना. कल मेरे पास आ जा.’’‘‘अच्छा, रवि से पूछूंगी कि कब गाड़ी भेजवाएंगे.’’‘‘गाड़ी तो मैं भेज दूंगी.’’‘‘उस गाड़ी में बैठ कर तू ही क्यों नहीं आ जाती?’’

‘‘चल यही सही, तो फिर मिलते हैं कल,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.कुछ देर बाद सुधा ने शीला भाभी को फोन  किया. कुशलक्षेम के बाद सुधा ने कहा, ‘‘कमाल है भाभी, पहले आप के पास वक्त नहीं होता था…’’अब अनीष व मनीष सब संभाल लिया है. मैं तो बस आधे दिन के लिए फैक्टरी जाती हूं, उस के बाद घर आ कर अनीष के बेटे से खेलती हूं. शाम को वह अपने मम्मीपापा के पास खेलता है.’’

‘‘उस के बाद?’’‘‘टीवी देखती हूं फिर खाना खा कर सो जाती हूं.’’‘‘बहूबच्चों के साथ नहीं खातीं?’’‘‘अगर वे लोग घर में हों तब तो सब साथ ही खाते हैं वरना मैं अपने वक्त पर खा लेती हूं, और सुना दिल्ली में कैसे हैं सब?’’‘‘वह सब मिलने पर बताऊंगी भाभी. कब मिल रही हो?’’‘‘जब तुम कहो. कल आ जाऊं?’’‘‘कल तो मुझे कुछ काम है भाभी.’’‘‘कोई बात नहीं. इतमीनान से काम निबटा लो फिर मुझे फोन कर देना, मैं आ जाऊंगी.’’‘‘ठीक है भाभी, वैसे आना तो मुझे चाहिए आप के पास.’’‘‘मैं इस ‘चाहिए’ के चोंचले में विश्वास नहीं करती सुधा. तुम अभीअभी इस शहर में आई हो, व्यवस्थित होने में व्यस्त होगी. मेरे पास तो फुरसत भी है और गाड़ी भी, इसलिए जब तुम कहोगी आ जाऊंगी.’’

अगले रोज शिखा अपनी नवविवाहित बिटिया के साथ आई.‘‘यह मेरी छोटी बेटी नन्ही है. तेरे बारे में सुनते ही कहने लगी कि मैं भी मौसी से मिलने चलूंगी…’’‘‘मम्मी और नीला आंटी जब भी मिलती हैं न आप को बहुत याद करती हैं. जैसे, सुधा होती तो मजा आ जाता या सुधा होती तो यह कहती. और कल तो मम्मी की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी. तो आप ही बताइए, ऐसी मौसी से मिले बगैर मैं कैसे रह सकती थी?’’ सुधा को भी चुलबुली नटखट नन्ही बहुत प्यारी लगी.

‘ससुराल में भी तू ऐसी ही शैतानी करती है?’’ सुधा ने पूछा.‘‘इस से भी ज्यादा,’’ जवाब शिखा ने दिया, ‘‘वहां इस का साथ देने को हमउम्र जेठानी जो है. जब ये दोनों साथ होती हैं तो खूब ठहाके लगाती हैं.’’‘‘मैं चलती हूं मौसी,’’ कह कर नन्ही चली गई.‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है…’’‘‘चुन्नी को देखेगी तो वह इस से भी ज्यादा प्यारी लगेगी तुझे,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘आजकल दोनों मियांबीवी सिंगापुर गए हुए हैं. अगले हफ्ते आ जाएंगे.’’

‘‘तो फिर हम भी अगले हफ्ते ही आएंगे तेरे घर.’’दोनों सहेलियों को गप्पें मारने में समय का पता ही नहीं चला. नन्ही घूमफिर कर मां को लेने आ गई. शिखा के जाने के बाद उस ने शीला भाभी को फोन किया. वह अगले रोज शाम को आना मान गईं.शीला भाभी से वह कई साल के बाद  मिल रही थी. उन के चेहरे की झुर्रियां थोड़ी बढ़ गई थीं, लेकिन अब चेहरे पर थकान और फिक्र की जगह स्फूर्ति और आत्मतुष्टि की गरिमा थी.‘‘इस से पहले कि तुम मुझ से कुछ पूछो, मुझे दिल्ली के समाचार दो, अरसा हो गया सब से मिले हुए इसलिए सब के बारे में जानने की बेचैनी हो रही है,’’ शीला भाभी सब के बारे में पूछती रहीं.

‘‘अब जब फैक्टरी बच्चों ने संभाल ली है और घर की देखभाल के लिए बहुएं आ गई हैं तो आप दिल्ली हो आओ न भाभी. छोटे चाचाजी ने कहा भी था आप से कहने के लिए,’’ सब बताने के बाद सुधा ने कहा.शीला भाभी हंसने लगीं, ‘‘फुरसत तो जरूर हो गई है लेकिन अब बच्चों को खास कर पोते को छोड़ कर जाने को दिल नहीं करता. खैर, अंशु स्कूल जाने लगे और नई बहू दिव्या को भी कुछ दिन तक मौजमस्ती करवा दूं फिर जाऊंगी. अभी तो उस पर औफिस के काम का ज्यादा भार नहीं डाला मैं ने.’’

‘‘और बड़ी बहू?’’‘‘रजनी इंजीनियर है. पहले तो सारा दिन फैक्टरी में ही रहती थी लेकिन बच्चा होने के बाद अब दोपहर को जाती है. जितने अच्छे अनीषमनीष हैं उतनी अच्छी ही दोनों की बीवियां भी हैं. बहुत स्नेह है सब का आपस में और मुझ पर तो सब जान छिड़कते हैं. मेरा घर अब बच्चों के ठहाकों से गूंजता रहता है.’’

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है भाभी. एक रोज आऊंगी आप के घर.’’‘‘तुम्हारा घर है जब चाहो आ जाओ लेकिन घर पर कौनकौन मिलेगा इस की गारंटी मैं नहीं लूंगी. बच्चों से पूछ कर बुलाऊंगी तुम्हें और रवि जी को. अनीष और रजनी तो ज्यादातर घर पर ही रहते हैं, लेकिन मनीष और दिव्या की नईनई शादी हुई है तो वे कहीं न कहीं निकल जाते हैं. फिर ससुराल भी शहर में ही है, इसलिए वहां भी जाना पड़ता है. इसीलिए मैं यह हुक्मनामा जारी नहीं करना चाहती कि फलां दिन मैं दावत कर रही हूं घर पर रहना. वैसे मैं ने तुम्हारे बारे में बताया तो मनीष बहुत खुश हुआ कि चलो शहर में हमारा कोई अपना भी आ गया. ऐसा है सुधा कि अगर बच्चों से प्यार पाना है तो अपनी मरजी उन पर मत थोपो.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं भाभी,’’ सुधा बोली, ‘‘मेरी एक सहेली है शिखा. उस की 2 बेटियां हैं. दोनों की शादी हो गई है. वह खूब इतराती है अपने दामादों पर.’’‘‘शिखा की बात कर रही हो न?’’ शीला भाभी हंसी, ‘‘जिस किट्टी पार्टी की मैं मेंबर हूं उसी की वह भी है, इसलिए हर महीने उस का इतराना देखने को मिल जाता है. असल में शिखा ने दामाद बड़ी होशियारी से चुने हैं. बड़े वाले की नौकरी यहां है लेकिन परिवार चंडीगढ़ में, इसलिए बीवी के परिवार को अपना मानेगा ही. छोटे वाला बिखरे घर से है यानी मांबाप का अलगाव हो चुका है. मां डाक्टर है, पैसे की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन व्यस्त एकल मां के बच्चे को शिखा के घर का उष्मा भरा घरेलू वातावरण तो अच्छा लगेगा ही. तुम ने यह भी सुना होगा कि विवाह के बाद बेटा तो पराया हो जाता है, लेकिन बेटी अपने साथ एक बेटा भी ले आती है. ऐसा क्यों होता है?’’

‘‘आप ही बताओ.’’‘‘क्योंकि ससुराल में दामाद को बहुत मानसम्मान और लाड़प्यार मिलता है. उसे आप कह कर बुलाया जाता है. इतनी इज्जत की चाह किसे नहीं होगी?’’ शीला भाभी हंसीं, ‘‘किसी सासससुर को कभी बहू को ‘आप’ कहते सुना सुना है तुम ने? कोई भूलाभटका अगर कभी बहू को आप कह देता है तो कोई न कोई उसे जरूर टोक देता है कि क्या गैरों की तरह आप कह रहे हो. यह तुम्हारी बेटी जैसी है. जैसे बेटे को तुम या तू कहते हो इसे भी कहो. दामाद अगर आप की बेटी के आगेपीछे घूमता है तो आप उस पर वारिवारि जाती हैं और ऐसा ही जब आप का बेटा बहू के साथ करता है तो आप जलभुन जाती हैं. उस पर व्यंग्य कसती हैं. जाहिर है, बेटा पहले तो आप से खिंचाखिंचा रहेगा और धीरेधीरे दूर होता जाएगा. इसलिए बेहतर है कि याद रखिए आप का बेटा भी आप के दामाद की तरह ही जवान है. उस की भी उमंगें हैं, अरमान हैं. उसे भी अपना जीवन अपनी सहचरी के साथ बांटने दीजिए उस के निजी जीवन में हस्तक्षेप कदापि मत करिए. मेरा तो प्यार व सम्मान से जीने का यही मंत्र है.’’

‘‘मेरा तो बेटा नहीं है शीला भाभी, लेकिन जिन के हैं उन्हें आप का यह अनमोल मंत्र अवश्य बताऊंगी,’’ सुधा ने सराहना के स्वर में कहा.

Hindi Story : गुरुदक्षिणा – निधि को ऐसा क्या दिया दीपा ने?

Hindi Story : दंग रह गई. साथ ही यह सोच कर सुखद एहसास से भी भर गई कि इतनी बड़ी कंपनी की वह सर्वेसर्वा है, जिस में उस के नीचे सैकड़ों लोग काम करते हैं और उसे सलाम ठोंकते हैं. यों तो दीपा के स्वभाव को वह शुरू से ही जानती है. एक बार वह जिस काम को करने की ठान लेती उसे पूरा कर के ही दम लेती थी. उस के तुरंत निर्णय लेने की क्षमता की वह हमेशा कायल रही है पर एक दिन वह इतनी ऊंचाई तक पहुंच जाएगी, उस ने कल्पना भी नहीं की थी. दीपा के गंभीर और रोबीले व्यक्तित्व को देख कर सहसा निधि को विश्वास ही नहीं हुआ कि यह कालेज के दिनों की वही चुलबुली दीपा है जिस की चुहल से खामोशी भी मुसकराने लगती थी. औफिस के कैबिन में बैठी निधि अतीत में खो गई.

दीपा को उस से बेहतर कोई नहीं जानता. जिंदगी उस के लिए एक खूबसूरत नगमे की तरह थी जिस के हरएक पल को वह भरपूर मौजमस्ती और जिंदादिली के साथ जीती थी. निधि उस की क्लासमेट, रूममेट, सखी और इस से भी कहीं अधिक बहन की तरह थी. निधि के मस्तिष्क के किसी कोने में वे गुजरे लमहे झांकने लगे थे जो कभी उन की खट्टी- मीठी सुखद अनुभूतियों के साक्षी रहे थे.

वह दिल्ली की कुहरे भरी एक ठिठुरती हुई शाम थी. लगातार 2 दिनों से सूरज के दर्शन न होने से ठंड बहुत बढ़ गई थी. तीर की तरह चुभती बर्फीली हवाओं से बचने के लिए निधि ने खिड़की और दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लिए थे और पूरे कपड़े पहने ही बिस्तर में दुबक कर पढ़ने में मशगूल हो गई थी. बढ़ती ठंड की वजह से कालेज बंद चल रहे थे और कुछ दिनों के बाद ऐग्जाम होने थे इसलिए वह कमरे में बंद रह कर ज्यादातर वक्त पढ़ाई में गुजारती थी.  निधि ने नजर उठा कर दीवार घड़ी की ओर देखा. रात के 8 बज रहे थे. महानगर के लिहाज से तो अभी शाम ही थी फिर भी सामान्य दिनों में बाहर दौड़ताभागता शहर गहरी खामोशी में की चादर ओढ़ चुका था.

खराब मौसम होने के बावजूद दीपा अभी तक नहीं आई थी. उस के मोबाइल पर निधि कई बार ट्राई कर चुकी थी पर नेटवर्क बिजी होने से एक बार भी बात नहीं हो सकी. उस के बेतरतीब रुटीन से वह आजिज आ चुकी थी. कुछ नहीं हो सकता इस लापरवाह लड़की का. साहबजादी किसी डिस्को में थिरक रही होगी या…क्या फायदा उस के बारे में कुछ भी सोचने से. वह भुनभुनाने लगी. लाख समझाओ पर वह करेगी वही जो उस का मन चाहेगा.  निधि बिखरी सोचों को एकजुट करने की कोशिश कर रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘कौन?’ उस ने बिस्तर में बैठेबैठे ही पूछा.

‘दीपा,’ बाहर से आवाज आई.

‘यह कोई वक्त है आने का?’ दरवाजा खोल कर निधि बरस पड़ी उस पर.

‘रिलैक्स स्वीटहार्ट. तू गुस्से में इतनी हसीन लगती है कि मैं यदि तेरा बौयफ्रैंड होती तो मुकेश का गाया हुआ गीत, ‘तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं…’ गाती रहती.’

निधि की हंसी छूट गई.  वह और दीपा एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. कालेज में निधि का पहला परिचय दीपा से ही हुआ था, जो जल्दी ही गहरी दोस्ती में तबदील हो गया था. इस की खास वजह उन का उत्तर प्रदेश के पड़ोसी शहरों का होना भी था. उन्होंने कालेज के पास ही एक किराए का कमरा ले लिया था. दीपा रईस घराने से संबंध रखती स्वच्छंद विचारों की युवती थी और निधि मध्यवर्गीय परिवार के संस्कारों में पलीबढ़ी सरल स्वभाव की. फिर भी दोनों में खूब पटती थी.  ‘निधि, तू देवेश को तो जानती है न?’ दीपा ने उस की रजाई में घुस कर पूछा.

‘वही न जो कौफी हाउस में तुझ से चिपकचिपक कर बातें कर रहा था,’ निधि ने किताब से नजरें हटा कर दीपा की ओर देखा, ‘तेरा बैस्ट फ्रैंड जो कालेज में अकसर तेरे आसपास मंडराता दिखाई देता है.’

‘बैस्ट फ्रैंड नहीं, बौयफ्रैंड. मेरी बैस्ट फ्रैंड तो सिर्फ तू है.’

‘बसबस, साफसाफ बोल, कहना क्या चाहती है?’

‘आज मैं उस के ही साथ थी. तुझे पता है, आज वह मेरे पीछे ही पड़ गया कि आज की हसीन शाम मेरे साथ गुलजार करेगा.’

‘तू यहां पढ़ने आई है या मौजमस्ती करने?’

‘दोनों,’ दीपा चहकती हुई बोली, ‘याद है, उस दिन क्लास में अनमोल सर कह रहे थे कि जीवन के सब से अनमोल क्षण वे होते हैं जो इस समय हम लोग जी रहे हैं, यानी कि स्टूडैंट लाइफ. यह बेफिक्री और खुमारी का हसीन दौर होता है. मन के आंगन में कोई धीरे से उतर कर एक ऐसी अनोखी कहानी लिख देता है जिस के पात्र जीवनभर साथ निभाते हैं. ऐसीऐसी सुखद अनुभूतियां होती हैं इस दौर में जिन्हें वक्त बीतने के साथ हम हर पल महसूस करते हैं. मैं इस खूबसूरत वक्त के हर लमहे को जी भर कर जी लेना चाहती हूं.’

निधि खामोशी से उस का चेहरा देखती रही.  ‘एक बात बता यार,’ निधि के हाथ को अपने हाथ में ले कर दीपा शोखी से बोली, ‘देवेश मुझ से अकेले में मिलने की जिद कर रहा है. तेरी क्या राय है इस बारे में?’

‘तेरे दिमाग में कोई सीधी बात क्यों नहीं आती है?’

‘मैं ने तेरी राय पूछी है.’

‘मैं अपनी राय ही दे रही हूं,’ वह कुढ़ कर बोली, ‘घर से इतनी दूर मांबाप ने हमें पढ़ने को भेजा है. उन्होंने हम से जो अपेक्षाएं संजो रखी हैं, कभी उन के बारे में भी सोचने का वक्त निकाल. बेहतर है ऐसी बेकार की बातों में न पड़ कर पढ़ाई में मन लगा.’

‘ओके बाबा. थैंक्स फौर मौरल एडवाइज.’

‘निधि, गोलचा टाकीज में तेरे फेवरेट हीरो आमिर खान की फिल्म लगी है,’ एक दिन दीपा बोली, ‘देख कर आ न.’

‘मुझे नहीं देखनी.’

‘प्लीज,’ उस ने खुशामद करते हुए निधि के हाथ में टिकट थमा दिया.

‘एक टिकट,’ निधि ने उस की ओर आश्चर्य से देखा, ‘तू चाहती है मैं अकेली जाऊं फिल्म देखने?’

‘हां,’ दीपा मुसकराते हुए बोली.

‘और तू?’ निधि ने आश्चर्य से कहा.

‘मैं ने देवेश को यहां बुलाया है.’  यह सुन कर निधि सिर पकड़ कर बैठ गई, ‘मतलब, तू ने उस से अकेले में मिलने का फुलपू्रफ प्लान तैयार किया है. जानती है कितना खतरनाक हो सकता है तेरा यह आइडिया.’

‘तू तो बेवजह ही बात को खींचने लगती है.’  पसंदीदा अभिनेता की फिल्म होने के बावजूद निधि का मन फिल्म देखने में नहीं लगा. पूरे 3 घंटे अजीब सी बेचैनी उस के दिमाग में रेंगती रही थी. वह वापस आई तो दीपा किताब लिए कोई रोमांटिक गीत गुनगुना रही थी. उस की आंखों में तृप्ति के भाव तैरते देख वह समझ गई कि दीपा उस वर्जित फल का स्वाद ले चुकी है, जिस के बारे में वह शादी से पहले सोच भी नहीं सकती.

‘फिल्म कैसी लगी?’ दीपा ने उस की ओर देख कर पूछा.

‘तेरी मुलाकात कैसी रही?’ कोई उत्तर देने के बजाय उस ने सवाल उछाल दिया.

‘मार्वलस,’ अंगड़ाई लेती हुई दीपा एक आंख दबा कर बोली.

‘इतनी नादान तो मैं भी नहीं हूं कि एकांत में मिलने का अर्थ न समझ सकूं,’ निधि गंभीरता से बोली, ‘पर इस के दूरगामी परिणाम कितने वीभत्स हो सकते हैं, समझने की कोशिश कर. तरबूज चाकू पर गिरे या चाकू तरबूज पर, दोनों स्थितियों में कटता तरबूज ही है. लाख दागदार होने के बावजूद पुरुष का दामन पाकसाफ रहता है और कुछ ऊंचनीच हो जाने पर जिल्लत का ठीकरा औरत के सिर ही फूटता है.’  ‘जमाना कहां से कहां पहुंच गया. आज नारी हर ओर पुरुषों द्वारा स्थापित आर्थिक, मानसिक और दैहिक बंधनों को तोड़ कर स्वतंत्रता के कीर्तिमान रच रही है और तू अभी तक उन्हीं घिसीपिटी मान्यताओं में जी रही है.’  ‘दुनिया ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो पर औरत की स्थिति आज भी दोयम दरजे की है. पूरब हो चाहे पश्चिम, हर जगह एकदो अपवाद छोड़ कर पुरुष कैसा भी हो पर बीवी वह पाकसाफ ही चाहता है,’ निधि ने दीपा को समझाने की कोशिश की, ‘बेशक तू उस समाज से ताल्लुक रखती है जहां खुलापन आम बात है पर हमारे देश का अभी इतना नैतिक पतन नहीं हुआ कि मांबाप शादी से पहले बेटी के शारीरिक संबंध स्वीकार कर सकें.  ‘हो सकता है, अभी मेरी बातें तेरी समझ से परे हों पर जब तक तू समझेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.’

‘माई फुट,’ दीपा पैर पटक कर बोली, ‘मैं अपनी जिंदगी किसी और की मरजी से क्यों जीऊं? मैं उन में से नहीं हूं जो किसी भी ऐरेगैरे के पीछे आंख बंद किए चलती रहती हैं. अपनी मंजिल खुद तय करने और लक्ष्य तक अकेले ही पहुंचने का दमखम है मुझ में. शादी और पति को परमेश्वर मानने जैसे वाहियात खयालों के बारे में सोचने की मूर्खता वे करती हैं जिन्हें किसी के सहारे की आवश्यकता होती है. मैं तो खुद कुआं खोद कर पानी पीने में यकीन रखती हूं.’

इतनी विषमताओं के बावजूद निधि को दीपा से कोई शिकायत नहीं थी. हर व्यक्ति के जीने का ढंग अलगअलग होता है. दीपा बिंदास जीवन शैली के पक्ष में थी और निधि इस के विरोध में. ये एक वैचारिक मतभेद था जिस ने उन के निजी जीवन को कभी प्रभावित नहीं किया.  फाइनल इयर की परीक्षा के बाद निधि के मातापिता ने उस की शादी तय कर दी. उस की ससुराल तो लखनऊ में थी पर उस का पति दीपक दिल्ली की एक मल्टी- नैशनल कंपनी में किसी अच्छे ओहदे पर कार्यरत था.  सगाई से ले कर शादी तक के हर कार्यक्रम में दीपा उस के साथ रही थी. दिल्ली में उस ने निधि और दीपक को न केवल शानदार पार्टी दी थी बल्कि अपने खर्चे पर उन्हें हनीमून के लिए गोआ भी भेजा था. निधि ने बहुत मना किया था पर उस की जिद के आगे उस की एक न चली. एक अच्छी दोस्त के साथसाथ बहन का भी फर्ज अदा किया था दीपा ने.

शादी के कुछेक महीनों तक तो दीपा निधि के संपर्क में रही फिर अचानक उस का आनाजाना बंद हो गया. निधि ने कई बार उस को मोबाइल पर फोन भी किया पर हर बार स्विच औफ मिला. वीकएंड में 1-2 बार दीपक के साथ निधि ने दीपा की खोजखबर भी ली पर वह कहीं नहीं मिली. फिर व्यस्तता और समय बीतने के साथ धीरेधीरे उस के दिमाग में बसी दीपा की तसवीर धुंधली पड़ती गई.  आज जब दीपा अपने कैबिन में निधि से मिली तो गुजरे लमहों की खुशबू से वातावरण महक उठा. इतना ऊंचा ओहदा होने और एक लंबा अरसा बीतने के बावजूद दीपा की आत्मीयता में कोई कमी नहीं आई थी. पल भर को निधि को लगा कि उस के सामने कंपनी की मैनेजिंग डायरैक्टर नहीं बल्कि कालेज के दिनों की खिलंदड़ दीपा खड़ी है. बातचीत के बीच दीपा ने विनम्रता के साथ कहा कि काम की व्यस्तता के चलते फिलहाल 2-4 दिन तो दम मारने की भी फुरसत नहीं मिलेगी. अगले संडे को घर में बैठ कर इत्मीनान से बातें होंगी.

निधि औफिस से लौट कर आई तो बेहद प्रफुल्लित थी. वैसे शाम को घर आतेआते काम के बोझ और बस की धक्कामुक्की में वह थक कर चूर हो जाती थी पर आज वह जैसे हवा में उड़ती आई थी.  संडे की सुबह दीपा आई. निधि को बहुत खुशी हुई.

‘‘दीपक के क्या हालचाल हैं?’’ बैठते हुए दीपा ने पूछा.

‘‘अच्छे हैं. 2 दिन पहले औफिस के काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गए हैं.’’

‘‘तू कैसी है?’’

‘‘मैं भी ठीक हूं. पर तुझ से मिलने के बाद बड़ी मुश्किल से कटा है 3-4 दिन का वक्त. एकएक पल बीतने के साथ तेरे बारे में जानने की उत्सुकता गहराती जा रही है. मैं आज भी हैरानपरेशान हूं कि अचानक कहां गायब हो गई थी तू?’’

‘‘मुंबई में थी मैं.’’

‘‘दिल्ली से मुंबई इतनी दूर भी नहीं है कि अपनों से मिलने न आया जा सके,’’ निधि उलाहना देती बोली, ‘‘वैसे भी संचार माध्यमों ने दुनिया को इतना छोटा कर दिया है कि धरती के दूसरे छोर से भी हालचाल लिया और दिया जा सकता है. तेरी खैरियत पाने को मैं अंधेरे में तीर मारती रही पर तू तो मेरा ठौरठिकाना जानती थी. एक बार भी याद नहीं आई मेरी?’’  दीपा खामोशी से मुसकराती रही.

‘‘मैं मरी जा रही हूं तेरे बारे में जानने को और तू है कि कुछ बोलना ही नहीं चाहती.’’

‘‘परेशान न हो…सब कुछ बता रही हूं, सुन. मैं ने जिस आटोमोबाइल कंपनी को जौइन किया था वह नईनई मार्केट में उतरी थी. मेरे देखतेदेखते थोड़े ही समय में जिस रफ्तार से वह देश की नामीगिरामी कंपनियों में शुमार की जाने लगी वह मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था. मैं भी उसी तेजी से आगे बढ़ना चाहती थी. कंपनी का हैड औफिस मुंबई में था. वहां प्रोग्रेस के चांस अधिक थे. मेरा पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था जिसे मैं किसी भी कीमत पर हासिल कर लेना चाहती थी. अत: किसी तरह जुगाड़ लगा कर मैं हैड औफिस पहुंचने में सफल हो गई थी.’’

‘‘कभी मुझ से मिलने भी तो आ सकती थी.’’

‘‘तू क्या समझती है मैं यहां ऐसे ही आ गई,’’ दीपा के होंठों पर रहस्य भरी मुसकान थिरकने लगी, ‘‘दीपक जिस औफिस में काम करते हैं उस की फाइनैंस डील कुछ वर्षों से मुंबई स्थित मेरी कंपनी के हैड औफिस से हो रही है. संयोग से उस वक्त यह काम मैं ही देख रही थी. याद कर दीपक अकसर मुंबई दौरे पर जाते हैं कि नहीं?’’

‘‘हां,’’ निधि मंत्रमुग्ध सी बोली.

‘‘‘मुंबई में दीपक को देख कर मैं अभिभूत हो गई थी. जल्दीजल्दी काम निबटा कर मैं उन्हें लंच के लिए अपने घर ले गई थी और कुरेदकुरेद कर तुझ से जुड़ी हर सारी जानकारी हासिल कर ली थी. मैं यह जान कर खुश थी कि तू दिल्ली में मेरी कंपनी की ब्रांच में काम करती हुई खुशहाल जिंदगी जी रही है. दीपक के जाने से पहले मैं ने उन से वादा ले लिया था कि जब तक मैं न चाहूं मुझ से मिलने की बात तुझे नहीं बताएंगे. दरअसल, मैं अचानक आ कर तुझे सरप्राइज देना चाहती थी.’’  निधि की आंखें हैरत से फैल गईं.

‘‘मुंबई से यहां आने की 2 खास वजह हैं, निधि,’’ दीपा उस की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘पहली तो यह कि मैं उस दिन को आज तक नहीं भूली जब तू ने औरत की मानमर्यादा की दुहाई देते हुए यह बताने की कोशिश की थी कि औरत बेहद कमजोर और असहाय होती है. हालांकि तेरी इन बातों से न मैं उस वक्त सहमत थी और न आज. सच तो यह है कि औरत कमजोर होती ही नहीं है, कमजोरी तो दिमाग में होती है. हम जैसी मानसिकता बना लें वैसा ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है. जो ऊंचे सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने का माद्दा जिन के भीतर होता है वे चाहें तो हाथ बढ़ा कर आसमान से सितारे भी तोड़ सकते हैं. तेरे सामने मैं इस की प्रत्यक्ष गवाह हूं.

‘‘असंभव शब्द मेरे शब्दकोष में नहीं है. मुझे सख्त नफरत है उन लोगों से जो नारी को कम कर के आंकते हैं. दरअसल, इस के लिए भी पूरी तरह से नारी ही जिम्मेदार है. वह क्योंकर खुद को पुरुषों की जमापूंजी समझती है. अपने अनुभव की एक बात और बता दूं, औरत अगर चाहे तो कोई उस की ओर देखने की भी हिमाकत नहीं कर सकता. जब तक यह सचाई उस की समझ में नहीं आएगी, उस का शोषण होता रहेगा.  ‘‘मेहनत, लगन और दृढ़निश्चय के बलबूते मैं सफलता की सीढि़यां चढ़ती गई. परिणाम तेरे सामने है. आज हजारों पुरुष मेरे सामने हाथ बांधे खड़े रहते हैं. ऐसेऐसे तीसमार खां जिन के सामने किसी की बोलने की जुर्रत नहीं होती, मैं ने उन्हें अपने सामने गिड़गिड़ाते देखा है. ऐसा भी नहीं है कि वे हर औरत के सामने ऐसे ही पेश आते हों. कहीं न कहीं वे अपने अहं को तुष्ट जरूर करते होंगे. पर जिस दिन औरत ने खुद को पहचान लिया, उन्हें हर हाल में अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा.

‘‘मेरा यहां आने का मकसद तुझे अपमानित करना नहीं बल्कि आईना दिखा कर सचाई से रूबरू कराना है. आगे बढ़ने के रास्ते में बेशक कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. कई झंझावात भी झेलने पड़ते हैं और जो इन सब का डट कर मुकाबला करता हुआ आगे बढ़ता जाता है वही मंजिल पर पहुंचता है.  ‘‘उस दिन की तेरी वे सारी बातें हर पल जहां मुझे चुभती रही हैं वहीं कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित भी करती रही हैं. इस नाते तू मेरी गुरु हुई सो तुझे गुरुदक्षिणा भी तो देनी थी,’’ इतना बोल कर दीपा ने पर्स से एक लिफाफा निकाल कर उस के हाथों में थमा दिया, ‘‘प्लीज, इसे स्वीकार कर के मुझे ऋण से मुक्त कर दे.’’

‘‘क्या है यह?’’ चौंक कर पूछा निधि ने.

‘‘तेरा नियुक्तिपत्र. अब तू कोई साधारण कर्मचारी नहीं बल्कि इतनी बड़ी कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर की प्राइवेट सेके्रटरी है.’’

‘‘दीपा…’’ इतना ही बोल पाई निधि. भावावेश में उस का गला रुंध गया था.

‘‘कमऔन यार. तू भावुक बहुत जल्दी हो जाती है,’’ दीपा हंस कर बोली, ‘‘यहां आने की दूसरी वजह भी तो सुन ले. इंसान जिंदगी में धनदौलत, मानप्रतिष्ठा सबकुछ हासिल कर सकता है पर अच्छा और सच्चा दोस्त कभीकभी ही मिलता है. जीवन में मैं ने जब जो चाहा वह पाया. आज महंगी से महंगी गाड़ी, आलीशान बंगला, लाखों का बैंकबैलेंस और ऐश्वर्य की हर चीज मौजूद है मेरे पास पर तेरी कमी हर पल महसूस हुई है मुझे. मैं यहां नईनई आई हूं, समझने में थोड़ा वक्त लगेगा. तू ये जिम्मेदारी भरा पद संभाल ले तो मेरी राह और आसान हो जाएगी.’’

‘‘तुझे समझने में भूल हो गई मुझ से,’’ निधि की पलकें भीग गईं, ‘‘तू इतना कुछ…’’

‘‘फिर शुरू हो गई,’’ दीपा आंखें तरेरती हुई बीच में बोल पड़ी, ‘‘पता है, सुबह से मैं ने कुछ भी नहीं खाया. बड़ी जोरों की भूख लगी है. अब कुछ खिलाएगीपिलाएगी भी या यों ही भूखा मार डालेगी.’’

निधि की हंसी छूट गई. ‘‘तू जरा भी नहीं बदली, दीपा. आज भी वैसी की वैसी है. पर खाना तू खाएगी तो अकेली मैं क्यों बनाऊं. तू भी साथ चल मेरे.’’

निधि, दीपा का हाथ पकड़ कर रसोई में खींच ले गई.

Love Story : प्रेम संबंध – क्या पूर्वा और रोहित की शादी हो पाई ?

Love Story : दियाबाती कर अभी उठी ही थी कि सांझ के धुंधलके में दरवाजे पर एक छाया दिखी. इस वक्त कौन आया है यह सोच कर मैं ने जोर से आवाज दी, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैं, रोहित, आंटी,’’ कुछ गहरे स्वर में जवाब आया.

रोहित और इस वक्त? अच्छा है जो पूर्वा के पापा घर पर नहीं हैं, यदि होते तो भारी मुश्किल हो जाती, क्योंकि रोहित को देख कर तो उन की त्यौरियां ही चढ़ जाती हैं.

‘‘हां, भीतर आ जाओ बेटा. कहो, कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं, आंटी, सिर्फ यह शादी का कार्ड देने आया था.’’

‘‘किस की शादी है?’’

‘‘मेरी ही है,’’ कुछ शरमाते हुए वह बोला, ‘‘अगले रविवार को शादी और सोमवार को रिसेप्शन है, आप और अंकल जरूर आना.’’

आज तक हमेशा उसे शादी के लिए उत्साहित करने वाली मैं शादी का कार्ड हाथ में थामे मुंहबाए खड़ी थी.

‘‘चलूं, आंटी, देर हो रही है,’’ रोहित बोला, ‘‘कई जगह कार्ड बांटने हैं.’’

‘‘हां बेटा, बधाई हो. तुम शादी कर रहे हो, आएंगे हम, जरूर आएंगे…’’ मैं जैसे सपने से जागती हुई बोली.

बहुत खुश हो कर कहा था यह सब पर ऐसा लगा कि रोहित मेरा अपना दामाद, मेरा अपना बेटा किसी और का हो रहा है. उस पर अब मेरा कोई हक नहीं रह जाएगा.

रोहित हमारी ही गली का लड़का है और मेरी बेटी पूर्वा के साथ बचपन से स्कूल में पढ़ता था. पूर्वा की छोटीछोटी जरूरतों का खयाल करता था. पेंसिल की नोंक टूटने से ले कर उसे रास्ता पार कराने और उस का होमवर्क पूरा कराने तक. बचपन से ही रोहित का हमारे घर आनाजाना था. बच्चों के बचपन की दोस्ती ?पर पूर्वा के पापा ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन जैसे ही दोनों बच्चे जवानी की ओर कदम बढ़ाने लगे वह रोहित को देखते ही नाकभौं चढ़ा लेते थे. रोहित और पूर्वा दोनों ही पापा की इस अचानक उपजी नाराजगी का कारण समझ नहीं पाते थे.

पापा का व्यवहार पहले जैसा क्यों नहीं रहा, यह बात 12वीं तक जातेजाते वे अच्छी तरह से समझ गए थे क्योंकि उन के दिल में फूटा हुआ प्रेम का नन्हा सा अंकुर अब विशाल वृक्ष बन चुका था. पापा को उन का साथ रहना क्यों नहीं अच्छा लगता है, इस का कारण वे समझ गए थे. छिप कर पूर्वा रोहित के घर जा कर नोट्स लाती थी और रोहित का तो घर के दरवाजे पर आना भी मना था.

रोहित और पूर्वा ने एकदूसरे को इतना चाहा था कि सपने में भी किसी और की कल्पना करना उन के लिए मुमकिन न था. मेरे सामने ही दोनों का प्रेम फलाफूला था. अब इस पर यों बिजली गिरते देख कर वह मन मसोस कर रह जाती थी.

एक और कारण से पूर्वा के पापा को रोहित पसंद नहीं था. वह कारण उस की गरीबी थी. पिता साधारण सी प्राइवेट कंपनी में क्लर्क थे. घर में उस के एक छोटा भाई और एक बहन थी. 3 बच्चों का भरणपोषण, शिक्षा आदि कम आय में बड़ी मुश्किल से हो पाता था. इस कारण रोहित की मां भी साड़ी में पीकोफाल जैसे छोटेछोटे काम कर के घर खर्चे में पति का हाथ बंटाती थीं. हमारी कपड़ों की 2 बड़ीबड़ी दुकानें थीं. शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार की इकलौती बेटी पूर्वा राजकुमारी की तरह रहती थी.

रुई की तरह हलके बादलों के नरम प्यार पर जब हकीकत की बिजली कड़कड़ाती है तो क्या होता है? आसमान का दिल फट जाता है और आंसुओं की बरसात शुरू हो जाती है. मैं कभी यह समझ नहीं पाई कि दुनिया बनाने वाले ने दुनिया बनाई और इस में रहने वालों ने समाज बना दिया, जिस के नियमानुसार पूर्वा रोहित के लिए नहीं बनी थी.

तभी फोन की घंटी बजी. लंदन से पूर्वा का फोन था. फोन पर पूछ रही थी, मम्मी, कैसी हो? यहां विवेक का काम ठीक चल रहा है, सोहम अब स्कूल जाने लगा है. तुम कब आओगी? पापा की तबीयत कैसी है? और भी जाने क्याक्या.

मैं कहना चाह रही थी कि रोहित के बारे में नहीं पूछोगी, उस की शादी है, बचपन की दोस्ती क्या कांच के खिलौने से भी कच्ची थी जो पल में झनझना कर टूट गई…पर कुछ न कह सकी और न ही रोहित की शादी होने वाली है यह खुशखबरी उसे सुना सकी.

दामाद विवेक के साथ बेटी पूर्वा खुश है, मुझे खुश होना चाहिए पर रोहित की आंखों में जब भी गीलापन देखती थी, खुश नहीं हो पाती थी. विवेक लंदन की एक बड़ी फर्म में इंजीनियर है. अच्छी कदकाठी, गोरा रंग, उच्च कुल के साथसाथ उच्च शिक्षित, क्या नहीं है उस के पास. पहले पूर्वा जिद पर अड़ी थी कि शादी करेगी तो रोहित से वरना कुंआरी ही रह जाएगी. पर दुनिया की ऊंचनीच के जानकार पूर्वा के पापा ने खुद की बहन के घर बेटी को ले जा कर उस को कुछ ऐसी पट्टी पढ़ाई कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि रोहित के छोटे से घर में रहने से बेहतर है विवेक के साथ लंदन में ऐशोआराम से रहना.

बूआ के घर से वापस आ कर जब पूर्वा ने शरमाते हुए मुझ से कहा कि मुझे विवेक पसंद है, तब मेरा दिल धक् कर रह गया था. मैं अपना दिल पत्थर का करना चाहूं तो भी नहीं कर पाती और यह लड़की…मेरी अपनी लड़की सबकु छ भूल गई. लेकिन यह मेरी भूल थी.

लंदन में सबकुछ होते हुए भी वह रोहित के बेतहाशा प्यार को अभी भी भूल नहीं पाई थी.

पूर्वा के पापा आ गए थे. बोले, ‘‘क्या हुआ, आज बड़ी अनमनी सी लग रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ उन के हाथ से बैग लेते हुए मैं बोली, ‘‘पूर्वा की याद आ रही है.’’

‘‘तो फोन कर लो.’’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले ही तो उस का फोन आया था, आप को याद कर रही थी.’’

‘‘हां, सोचता हूं, अगले माह तक हम लंदन जा कर पूर्वा से मिल आते हैं. और यह किस की शादी का कार्ड रखा है?’’

‘‘रोहित की.’’

‘‘चलो, अच्छा हुआ जो वह शादी कर रहा है. हां, लड़की कौन है?’’

‘‘फैजाबाद की किसी मिडिल क्लास परिवार की लगती है.’’

‘‘अच्छा है, जितनी चादर हो उतने ही पांव पसारने चाहिए.’’

मैं रसोई में जा कर उन के लिए थाली लगाने लगी. वह जाने क्याक्या बोल रहे थे. मेरा ध्यान रोहित की ओर गया, जिसे मैं बेटे से बढ़ कर मानती हूं. उस के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुन सकती.

पूर्वा के विवाह वाले दिन वह कैसे सुन्न खड़ा था. मैं ने देखा था और देख कर आंखें भर आई थीं. कुछ और तो न कर सकी, बस, पीठ पर हाथ फेर कर मैं ने मूक दिलासा दिया था उसे.

उस का यह उदास रूप देख कर हाथ में रखी द्वाराचार के लिए सजी थाली मनों भारी हो गई थी, पैर दरवाजे की ओर उठ नहीं रहे थे. मैं पूर्वा की मां हूं, बेटी की शादी पर मुझे बहुत खुश होना चाहिए था पर भीतर से ऐसा लग रहा था कि जो कुछ हो रहा है, गलत हो रहा है. शादी के लिए जिस पूर्वा को जोरजबरदस्ती से तैयार किया था, वह जयमाला से पहले फूटफूट कर रो पड़ी थी. तब मैं ने उसे कलेजे से लगा लिया था.

बिदाई के समय पीछे मुड़मुड़ कर पूर्वा की आंखें किसे ढूंढ़ रही थीं वह भी मुझे मालूम था. उस समय दिल से आवाजें आ रही थीं :  पूर्वा, रूपरंग और दौलत ही सबकुछ नहीं होते, इस प्यार के सागर को ठुकराएगी तो उम्रभर प्यासी रह जाएगी.

पता नहीं ये आवाजें उस तक पहुंचीं कि नहीं, पर उस के जाने के बाद मानो सारा घरआंगन चीखचीख कर कह रहा था, मन के रिश्ते कोई और होते हैं, जो किसी को दिखाए नहीं जाते और निभाने के रिश्ते कोई और होते हैं जो सिर्फ निभाए जाते हैं. तब से जब भी रोहित को देखती हूं दिल फट जाता है.

पूर्वा की शादी को अब पूरे 7 बरस हो गए हैं और रोहित इन 7 वर्षों तक उस की याद में तिलतिल जलने के बाद अब ब्याह कर रहा है. कितने दिनों से उसे समझा रही थी कि अब नौकरी लग गई है. बेटा, तू भी शादी कर ले तो वह हंस कर टाल जाता था. पिता के रिटायर होने पर उन की जगह ही उसे काम मिला था और घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है. उस से अच्छीखासी कमाई हो जाती है. 2 साल हुए उस ने छोटी बहन की अच्छे घर में शादी कर दी है और भाई को इंजीनियरिंग करवा रहा है. मां का काम उस ने छुड़वा दिया है और मुझे लगता है कि मां को आराम मिले इस के लिए ही उस ने शादी की सोची है.

रोहित जैसा गुणी और आज्ञाकारी पुत्र इस जमाने में मिलना कठिन है. मेरे तो बेटा ही नहीं है, उसे ही बेटे के समान मानती थी. उस की शादी फैजाबाद में थी. वहां जाना नहीं हो सकता था इसलिए बहू की मुंहदिखाई और स्वागत समारोह में जाना मैं ने उचित समझा.

रोहित के लिए सुंदर रिस्टवाच और बहू के लिए साड़ी और झुमके खरीदे थे. बहुत खुशी थी अब मन में. इन 7 वर्षों के अंतराल में रिश्ते उलटपुलट गए थे. रोहित, जिसे मैं दामाद मानती थी, बेटा बन चुका था. अब मेरी बहू आ रही थी. पता नहीं कैसी होगी बहू…पगले ने फोटो तक नहीं दिखाई.

स्वागत समारोह के उस भीड़- भड़क्के में रोहित ने पांव छू कर मुझे नमस्कार किया. उस की देखादेखी अर्चना भी नीचे झुकने लगी तो मैं ने उसे बांहों में भर झुकने से मना किया.

अर्चना सांवली थी पर तीखे नैननक्श के कारण भली लग रही थी. उपहार देते हुए मैं चंद पलों को उन्हें निहारती रह गई. परिचय कराते वक्त रोहित ने अर्चना से धीरे से कहा, ‘‘ये पूर्वा के मम्मीपापा हैं.

उस लड़की ने नमस्कार के लिए एक बार और हाथ जोड़ दिए. जेहन में फौरन सवाल उभरा, ‘क्या पूर्वा के बारे में सबकुछ रोहित ने इसे बता दिया है.’ मैं असमंजस में पड़ी खड़ी थी. तभी रोहित की मां हाथ पकड़ कर खाना खिलाने के लिए लिवा ले गईं.

अर्चना ने रोहित का घर खूब अच्छे से संभाल लिया था. अपनी सास को तो वह किसी काम को हाथ नहीं लगाने देती थी. कभीकभी मेरे पास आती तो पूर्वा के बारे में ही बातें करती रहती थी. न जाने कितने प्रकार के व्यंजन बनाने की विधियां मुझ से सीख कर गई और बड़े प्रयत्नपूर्वक कोई नया व्यंजन बना कर कटोरा भर मेरे लिए ले आती थी.

पूर्वा के पापा का ब्लडप्रेशर पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था, अत: हमारा लंदन जाने का कार्यक्रम स्थगित हो चुका था. अब की सितंबर में पूर्वा आ रही थी. विवेक को छुट्टी नहीं थी. पूर्वा और सोहम दोनों ही आ रहे थे. जिस रोहित से पूर्वा लड़तीझगड़ती रहती थी, जिस पर अपना पूरा हक समझती थी, अब उसे किसी दूसरी लड़की के साथ देख कर उस पर क्या बीतेगी, मैं यही सोच रही थी.

रोहित की शादी के बारे में मैं ने उसे फोन पर बताया था. सुन कर उस ने सिर्फ इतना कहा था कि चलो, अच्छा हुआ शादी कर ली और कितने दिन अकेले रहता.

अभी पूर्वा को आए एक दिन ही बीता था. रोहित और अर्चना तैयार हो कर कहीं जा रहे थे. मैं ने पूर्वा को खिड़की पर बुलाया तो रोहित के बाजू में अर्चना को चलते देख मानो उस के दिल पर सांप लोट रहा था. मैं ने कहा, ‘‘वह देख, रोहित की पत्नी अर्चना.’’

अर्चना को देख कर पूर्वा ने मुंह बना कर कहा, ‘‘ऊंह, इस कालीकलूटी से ब्याह रचाया है.’’

‘‘ऐसा नहीं बोलते, अर्चना बहुत गुणी लड़की है,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘हूं, जब रूप नहीं मिलता तभी गुण के चर्चे किए जाते हैं,’’ उपेक्षित स्वर में पूर्वा बोली.

‘‘छोड़ यह सब, चल, सोहम को नहला कर खाना खिलाना है,’’ मैं ने उस का ध्यान इन सब बातों से हटाने के लिए कहा.

पर अर्चना को देखने के बाद पूर्वा अनमनी सी हो गई थी. दोपहर को बोली, ‘‘मम्मी, मुझे रोहित से मिलना है.’’

‘‘शाम 6 बजे के बाद जाना, तब तक वह आफिस से आ जाता है. हां, पर भूल कर भी अर्चना के सामने कुछ उलटासीधा न कहना.’’

‘‘नहीं, मम्मी,’’ पूर्वा मेरे गले में हाथ डाल कर बोली, ‘‘पागल समझा है मुझे.’’

मैं, सोहम और पूर्वा शाम को रोहित के घर गए. गले में फंसी हुई आवाज के साथ पूर्वा उसे विवाह की बधाई दे पाई. रोहित ने कुछ देर को उस के और विवेक के बारे में पूछा फिर सोहम के साथ खेलने लगा. इतने में अर्चना चायनाश्ता बना लाई. मैं, अर्चना और रोहित की मां बातें करने लगे.

खेलखेल में सोहम ने रोहित की जेब से पर्स निकाल कर जब हवा में उछाल दिया तो नोटों के साथ कुछ गिरा था. वह रोहित और पूर्वा के बचपन की तसवीर थी जिस में दोनों साथसाथ खडे़ थे.

तसवीर देख कर हम मांबेटी भौचक्के रह गए पर अर्चना ने पैसों के साथ वह तसवीर भी वापस पर्स में रख दी और हंस कर कहा, ‘‘पूर्वा दीदी, बचपन में कटे बालों में आप बहुत सुंदर दिखती थीं. रोहित को देख कर तो मैं बहुत हंसती हूं…इस ढीलेढाले हाफ पैंट में जोकर नजर आते हैं.’’

बात आईगई हो गई पर हम समझ चुके थे कि अर्चना पूर्वा के बारे में सब जानती है. पूर्वा जिस दिन लंदन वापस जा रही थी, अर्चना उपहार ले कर आई थी.

‘‘लो, दीदी, मेरी ओर से यह रखो. आप रोहित का पहला प्यार हैं, मैं जानती हूं, वह अभी तक आप को नहीं भूले हैं. वह आप को बहुत चाहते हैं और मैं उन्हें बहुत चाहती हूं. इसलिए वह जिसे चाहते हैं मैं भी उसे बहुत चाहती हूं.’’

उस की यह सोच पूर्वा की समझ से बाहर की थी. पूर्वा ने धीरे से ‘थैंक्यू’ कहा.

आज तक रोहित पर अपना एकाधिकार जताने वाली पूर्वा समझ चुकी थी कि प्रेम का दूसरा नाम त्याग है. आज अर्चना के प्रेम के समक्ष उसे अपना प्रेम बौना लग रहा था.

Social Story : फर्ज का एहसास – जवानी का हिसाब लगाती शालिनी

Social Story : शालिनी ने हिसाब लगाया. उस ने पूरी रात खन्ना, तिवारी और शर्मा के साथ गुजारी है. सुबह होते ही उस ने 10 हजार रुपए झटक लिए. वे तीनों उस के रंगरूप, जवानी के दीवाने हैं. शहर के माने हुए रईस हैं. तीनों की शहर में और शहर से बाहर कईकई प्लाईवुड की फैक्टरियां हैं. तीनों के पास माल आता भी 2 नंबर में है. तैयार प्लाई भी 2 नंबर में जाती है. वे सरकार को करोड़ों रुपए के टैक्स का चूना लगाते हैं. शालिनी ने उन तीनों के साथ रात गुजारने के 25 हजार रुपए मांगे थे. सुबह होने पर तिवारी के पास ही 10 हजार रुपए निकले. खन्ना और शर्मा खाली जेबों में हाथ घुमाते नजर आए. कमबख्त तीनों रात को 5 हजार रुपए की महंगी शराब पी गए थे. उस ने जब अपने बाकी के 15 हजार रुपए के लिए हंगामा किया, तो खन्ना ने वादा किया कि वह दोपहर को आ कर उस के दफ्तर से पैसे ले जाए.

सुबह के 10 बजने को थे. शालिनी ने पहले तो सस्ते से होटल पर ही पेट भर कर नाश्ता किया. कमरे पर जाना उस ने मुनासिब नहीं समझा. सोचा कि अगर कमरे पर गई, तो चारपाई पर लेटते ही नींद आ जाएगी. फिर तो बस्ती के कमरे से इंडस्ट्रियल एरिया आने का मन नहीं करेगा. पूरे 7 किलोमीटर दूर है. अभी खन्ना के दफ्तर से 15 हजार भी वसूल करने थे. गरमी बहुत हो रही थी. शालिनी ने सोचा कि रैस्टोरेंट में जा कर आइसक्रीम खाई जाए. एसी की ठंडक में घंटाभर गुजारा जाए. इतने में दोपहर हो जाएगी, फिर वह अपने रुपए ले कर ही कमरे पर जा कर आराम करेगी. रेस्टोरैंट में अगर कोई चाहने वाला मिल गया, तो खाना भी मुफ्त में हो जाएगा. अगली रात भी 5-10 हजार रुपए में बुक हो जाएगी. वैसे तो उस ने अपना मोबाइल नंबर 5-6 दलालों को दे रखा था.

शालिनी आइसक्रीम खा कर पूरे 2 घंटे के बाद रैस्टोरैंट से निकली. अगली 2 रातों के लिए एडवांस पैसा भी मिल गया था. पूरे 5 हजार रुपए. मोबाइल में समय देखा, तो दोपहर के एक बजने को था. शालिनी रिकशा पकड़ कर खन्ना के दफ्तर पहुंचना चाहती थी. शहर के चौराहे पर रिकशे के इंतजार में थी कि तभी थानेदार जालिम सिंह ने उस के सामने गाड़ी रोक दी. थानेदार जालिम सिंह को देख शालिनी ने निगाहें घुमा लीं, मानो उस ने पुलिस की गाड़ी को देखा ही न हो. वह जालिम सिंह को अच्छी तरह जानती थी. अपने नाम जैसा ही उस का बरताव था. रात में मजे लूटने को तो बुला लेगा, पर सुबह जाते समय 50 रुपए का नोट तक नहीं निकालता. उलटा दारू भी पल्ले से पिलानी पड़ती है. बेवजह अपना जिस्म कौन तुड़वाए. शालिनी वहां से आगे जाने लगी, तो जालिम सिंह ने रुकने को कहा.

शालिनी ने बहाना बनाया, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है. रातभर बुखार से तपती रही हूं. किसी डाक्टर के पास दवा लेने जा रही हूं. अच्छा हुआ कि आप मिल गए. एक हजार रुपए चाहिए मुझे. अगर आप…’’ जालिम सिंह ने शालिनी की बाजू पकड़ी और उस के चेहरे को गौर से देखते हुए बड़ी बेशर्मी से गुर्राया, ‘‘हम पुलिस वालों को बेवकूफ बना रही है. रातभर मजे लूटे हैं. गाल पर दांत गड़े नजर आ रहे हैं. हमें बता रही है कि बीमार है. तुझे शहर में धंधा करना है या भागना है?’’

‘‘ठीक ही तो कह रही हूं. कभी 10-20 रुपए तो हम मजदूरों पर तुम खर्च नहीं करते,’’ शालिनी बोली. ‘‘तुझे धंधा करने की इजाजत दे दखी है, वरना हवालात में तड़पती नजर आएगी. आज हमारे लिए भी मजे लूटने वाला काम कर. पूरे 5 सौ रुपए दूंगा, लेकिन काम पूरा होने पर,’’ जालिम सिंह ने अपना इरादा जाहिर किया.

शालिनी समझ गई कि यह कमबख्त कोई खतरनाक साजिश रचने वाला है, तभी तो 5 सौ रुपए खर्च करने को कह रहा है, वरना 10 रुपए जेब से खर्च नहीं करता. शालिनी ने सोचा कि काम के बदले मोटी रकम की मांग करे. शायद मुरगा फंस जाए. मौका हाथ आया था.

शालिनी के पूछने पर थानेदार जालिम सिंह ने कहा, ‘‘तुम को एक प्रैस फोटोग्राफर अर्जुन की अक्ल ठिकाने लगानी है. उसे अपनी कातिल अदाओं का दीवाना बना कर अपने कमरे पर बुला लेना. नशा वगैरह पिला कर तुम वीडियो फिल्म बना कर उस की प्रैस पत्रकारिता पर फुल स्टौप लगाना है.’’ ‘‘अर्जुन ने ऐसा क्या कर दिया, जो आप इतना भाव खा रहे हैं?’’ शालिनी ने शरारत भरी अदा से जालिम सिंह की आंखों में झांकते हुए पूछा.

शालिनी के चाहने वाले बताया करते हैं कि उस की बिल्लौरी आंखों में जाद है. जिसे भी गहरी नजरों से देखती है, चारों खाने चित हो जाता है. जालिम सिंह भी उस के असर में आ गया था. ‘‘अरे, रात को अग्रसेन चौक पर नाका लगा रख था. 2 नंबर वाली गाडि़यों से थोड़ा मालपानी बना रहे थे. बस, पता नहीं अर्जुन को कैसे भनक लग गई. उस ने हमारी वीडियो फिल्म बना ली. कहता है कि पहले मुख्यमंत्री को दिखाऊंगा, फिर टैलीविजन चैनल पर और अखबार में खबर देगा. हमें सस्पैंड कराने का उस ने पूरा इंतजाम कर रखा है. एक बार उसे नंगा करो, फिर मैं उसे कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘पहले तो तुम मुझे अपनी गाड़ी में बैठा कर खन्ना के दफ्तर ले चलो. कुछ हिसाब करना है. उस के बाद तुम्हारे काम को करूंगी. अभी मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा,’’ शालिनी ने मोबाइल फोन पर समय देखते हुए अपनी बात कही. ‘‘इधर अपना समय खराब चल रहा है और तेरे भाव ऊपर आ गए हैं. आ, बैठ गाड़ी में,’’ झुंझलाते हुए जालिम सिंह बोला.

वह शालिनी को खन्ना के दफ्तर ले गया. वहां से उस ने रुपए लिए. अब वे दोनों कमानी चौक पर आ गए. ‘‘तुम अर्जुन को जानती हो न?’’ जालिम सिंह ने पूछा.

‘‘हांहां, वही प्रैस फोटोग्राफर, जिस ने पिछले महीने पुलिस चौकी में हुए बलात्कार की वीडियो फिल्मी चैनल पर दिखा कर तहलका मचा दिया था,’’ शालिनी ने मुसकराते हुए उस के कारनामे का बखान किया, तो जालिम सिंह भद्दी सी गाली बकते हुए गुर्राया, ‘‘तू पहले उसे अपने जाल में फंसा, फिर तो उस की जिंदगी जेल में कटेगी.’’ ‘‘इस काम के मैं पूरे 50 हजार रुपए लूंगी और 10 हजार रुपए एडवांस,’’ शालिनी ने अपनी मांग रखी, तो जालिम सिंह उछल पड़ा, ‘‘अरे, कुछ तो लिहाज कर. तू हमें जानती नहीं?’’

‘‘लिहाज कर के ही तो 50 हजार रुपए मांगे हैं. इस काम का मेहनताना तो एक लाख रुपए है,’’ शालिनी भी बेशर्मी से सौदेबाजी पर उतर आई. ‘‘मजाक मत कर शालिनी. यह काम 5 हजार रुपए का है. ये संभाल एक हजार रुपए.’’

‘‘10 हजार पहले लूंगी, 40 बाद में. नकद. वरना तुम्हारी सारी मेहनत पर पानी फेर दूंगी. अगर रुपए नहीं दोगे, तो मैं अर्जुन को तुम्हारी साजिश के बारे में बता सकती हूं,’’ शालिनी ने शातिराना अंदाज में थानेदार जालिम सिंह को खौफजदा कर दिया. थानेदार ने 10 हजार रुपए शालिनी को दिए और चेतावनी भी दी कि अगर उस का काम नहीं हुआ, तो उस की फिल्म खत्म हुई समझे.

इस के बाद थानेदार जालिम सिंह शालिनी को गाड़ी से उतार कर चलता बना. शालिनी अपने पर्स में पूरे 25 हजार रुपए संभाले हुए थी. उस के 15 साल के बेटे ने मोटरसाइकिल लेने की जिद पकड़ रखी थी 2-4 दिन में वह बेटे को मोटरसाइकिल ले कर देगी. शालिनी गांव की रहने वाली थी, लेकिन उस का रहनसहन, पहनावा वगैरह रईस अमीर औरतों जैसा था. उस की शादी गांव के मजदूर आदमी से हुई थी. पति उसे जरा भी पसंद नहीं था. उस की बेरुखी के चलते पति मेहनतमजदूरी कर के जो कमाता, उस रुपए की शराब पी जाता था. शालिनी देहधंधा कर के अमीर बनना चाहती थी. बेटा आवारा हो गया था. स्कूल नहीं जाता था. सारासारा दिन आवारा लड़कों के साथ नशा करता रहता था. वह छोटेमोटे अपराध भी करने लगा था.

बाप शराबी और मां बदचलन हो, तो बेटे का भविष्य इस से बढ़ कर क्या हो सकता है? शालिनी अपने बिगड़ते परिवार से बेखबर पराए मर्दों की रातें रंगीन कर रही थी. अभी शालिनी का कमरा 4 किलोमीटर दूर था. सामने पेड़ की छांव में एक रिकशे वाला सीट पर बैठा रुपए गिन रहा था. उस के हाथों में नोट देख कर शालिनी की आंखों में चमक आ गई. शालिनी ने अपने पहने कसे ब्लाउज का ऊपर वाला हुक खोला और उस के सामने आ कर खड़ी हुई.

रिकशे वाला भी शालिनी की उम्र का था. उस की कामुक निगाहें भी उस के उभारों पर ठहर गईं. उस का दिल धड़क रहा था. अपने रुपए पर्स में रखे और पर्स को पतलून की पीछे वाली जेब में लापरवाही से ठूंस दिया. उस ने शालिनी को रोमांटिक नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘मैडम, आप को कहां चलना है?’’ ‘‘मोती चौक चलना है. कितने रुपए लोगे?’’

‘‘जो मरजी दे देना. मुझे भी उसी तरफ जाना है. मेरा कमरा भी उसी तरफ है. अकेला रहता हूं,’’ रिकशे वाले ने जवाब दिया, तो शालिनी समझ गई कि वह उस पर मरमिटा है. वह रिकशे पर बैठ गई और रिकशे वाले से मीठीमीठी बातें करने लगी. तभी उस ने देखा, रिकशे वाले की पतलून के पीछे वाली जेब से पर्स बाहर खिसका हुआ था. उसे बातों में उलझा कर शालिनी ने पर्स खिसका लिया.

मोती चौक आ गया था. शालिनी अपने कमरे से पहले ही चौराहे पर उतर गई. उस ने रिकशे वाले को किराया देना चाहा, मगर रिकशे वाले ने तो उस के मनचले उभारों को देखते हुए पैसे लेने से इनकार कर दिया. शालिनी चोर भी थी. वह तो पलक झपकते ही कालोनी की गलियों में गुम हो गई. शालिनी आज बहुत खुश थी. उस की अच्छीखासी कमाई हो गई थी. कमरा खोला. निढाल सी चारपाई पर लेट गई. पूरी रात और दिनभर की थकी हुई थी. कुछ देर बाद वह कपड़े उतार कर पहले अच्छी तरह नहाई. भूख लगी थी. खाना बनाने की हिम्मत नहीं थी. होटल से खाना पैक करा लाई और खा कर सो गई. इतनी गहरी नींद आई कि रात कैसे गुजरी, कुछ पता न चला.

शालिनी सुबह उठी, तो चायनाश्ता करते हुए उस ने रिकशे वाले का चुराया पर्स खोला. उस में छोटेबड़े नोटों की मोटी गड्डी थी. गिनने पर पूरे 4 हजार रुपए निकले. उस का मन खुश हो गया. उन रुपयों के साथ एक चिट्ठी भी थी, जो रिकशे वाले की घरवाली ने उसे लिखी थी. उस में लिखा था कि उस का बेटा बहुत बीमार है. अस्पताल में दाखिल कराया है. जितनी जल्दी हो सके, 10 हजार रुपए ले कर फौरन गांव आ जाओ. बेटे का इलाज रुक गया है. डाक्टर का कहना है कि अगर बच्चे की जिंदगी बचानी है, तो फौरन इलाज कराओ. जो 1-2 गहने थे, वे सब बेटे के इलाज की भेंट चढ़ गए हैं. जितना जल्दी हो सके, पैसे ले कर आ जाओ.

चिट्ठी पढ़ कर शालिनी को धक्का सा लगा. उस ने यह क्या किया? लालच में आ कर उस ने एक मजदूर आदमी की जेब काट कर उस के मासूम बेटे की जिंदगी को मौत के दलदल में धकेल दिया. पता नहीं, उस के बेटे का क्या हाल होगा? वह अपने बेटे को मोटरसाइकिल ले कर देने के लिए उलटेसीधे तरीके से पैसा इकट्ठा कर रही है, यह पाप की कमाई न जाने कैसा असर दिखाएगी? शालिनी ने रिकशे वाले को तलाश कर उस के रुपए वापस देने का मन बना लिया. वह यहां तक सोच रही थी कि उस गरीब को 10 हजार रुपए देगी, ताकि उस के बेटे का इलाज हो सके.

शालिनी सारा दिन पागलों की तरह रिकशे वाले को ढूंढ़ती रही, मगर वह नहीं मिला. जैसे कि वह रिकशे वाला शहर से गायब हो गया था. थानेदार जालिम सिंह का कितनी बार फोन आ चुका था. वह बारबार धमकी दे रहा था कि उस का काम कर, नहीं तो उसे टपका दिया जाएगा. मगर शालिनी ने थानेदार जालिम सिंह की धमकी को ठोकर पर रखा. वह जानती थी कि जालिम सिंह उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, उलटा प्रैस फोटोग्राफर को बलात्कार के अपराध में फंसाने की सुपारी देने का मामला बनवा देगी.

2 दिन से शालिनी ने अपना धंधापानी भी बंद कर रखा था. उस के कितने चाहने वालों के फोन आ चुके थे. उस ने सब को न में जवाब दे दिया था. उस ने तीसरे दिन भी रिकशे वाले को तलाश करने की मुहिम जारी रखी. उस दिन उस ने अखबार में खबर पढ़ी कि थानेदार जालिम सिंह को 2 नंबर का सामान लाने वाली गाडि़यों से वसूली करने के आरोप में सस्पैंड कर दिया गया. अखबार में पत्रकार अर्जुन की खोजी पत्रकारिता की तारीफ हो रही थी.

अभी शालिनी अखबार में छपी यह खबर पढ़ ही रही थी कि तभी उस की नजर सड़क पर आते हुए उसी रिकशे वाले पर पड़ी. वह लपक कर आगे बढ़ी और उस का रिकशा रुकवा कर बोली, ‘‘अरे रिकशे वाले, मुझे माफ करना. मैं ने 3 दिन पहले तेरा पर्स चुराया था. उस में तेरे 4 हजार रुपए थे. अपनी गलती मानते हुए मैं तुम्हें 10 हजार रुपए वापस दे रही हूं. फौरन जाओ और अपने बेटे का इलाज कराओ.’’ रिकशा वाला खामोशी से उस की तरफ देखता रहा. जबान से कुछ नहीं बोला. शायद उस की आंखों से बहते आंसुओं ने समूची कहानी बता दी थी. मगर शालिनी अभी तक सचाई समझ न पाई. पर वह उस की खामोशी से सहम गई थी.

‘‘देखो भैया, पुलिस में शिकायत मत करना. तुम्हारे रुपए मैं ज्यादा कर के दे रही हूं. अपने बेटे का किसी बड़े अस्पताल में इलाज कराना,’’ शालिनी ने 10 हजार रुपए उस के सामने कर दिए. ‘‘अब रुपए ले कर क्या करूंगा मैडम. मेरा बेटा तो इलाज की कमी में मर गया. उस के गम में पत्नी भी चल बसी. अब तुम इतनी मेहरबानी करो कि किसी गरीब की जेब मत काटना, वरना किसी का मासूम बेटा फिर मरेगा,’’ भर्राई आवाज में रिकशे वाले ने कहा और रुपए लिए बिना ही आगे बढ़ गया.

अब शालिनी को अपनी बुरी आदतों पर भारी पछतावा हो रहा था.

Best Hindi Story : इजाबेला – एनी की कौन सी बात मौसी को अच्छी नहीं लगी

Best Hindi Story : ‘‘इजाबेला नाम है इस का,’’ एनी पौल ने बड़े प्यार से एक दुबलीपतली लड़की को अपने से सटाते हुए कहा, ‘‘हमारी बेटी.’’

यद्यपि किसी को उन की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन जब वह कह रही हैं तो मानना ही पड़ेगा. अत: सभी ने गरमागरम पकौड़े खाते हुए उन की और उन के पति की मुक्तकंठ से प्रशंसा की.

दरअसल मद्रास से लौटने के बाद उसी दिन शाम को एनी ने अपनी पड़ोसिनों को चाय पर बुलाया और सूचना दी कि उन्होंने एक लड़की गोद ली है.

उस 13 साल की दुबलीपतली लड़की को देख कर नहीं लगता था कि उस का नाम इजाबेला भी हो सकता है. एनी ने ही रखा होगा यह खूबसूरत नाम. उस की सेहत ही बता रही थी कि उस ने शायद ही कभी भरपेट भोजन किया हो.

इस अप्रत्याशित सूचना से पड़ोस की महिलाएं हैरान थीं. सब मन ही मन एनी पौल की घोषणा पर अटकलें लगा रही थीं कि आखिर समीरा ने झिझकते हुए पूछ ही लिया, ‘‘एनी, तुम्हारे 2 बेटे तो हैं ही, फिर आज की महंगाई में…’’

उस की बात को बीच में काटती हुई एनी बोलीं, ‘‘अरे, बेटे हैं न, बेटी कहां है. और तुम तो जानती हो कि बेटी के बिना भी घर में रौनक होती है क्या? आर्थर को एक बेटी की बहुत चाहत थी. हम ने 2 साल बहुत सोचविचार किया और खुद को बड़ी मुश्किल से मानसिक रूप से तैयार किया. सोचा, यदि गोद ही लेनी है तो क्यों न किसी गरीब परिवार की बच्ची को लिया जाए.’’

अपनी बात को खत्म करतेकरते एनी की आंखों में प्यार के आंसू उमड़ आए. इस दृश्य और बातचीत के अंदाज से सब का संदेह कुछकुछ दूर हो गया. कुछकुछ इसलिए क्योंकि ज्यादातर लोगों की सोच यह थी कि कामकाज के लिए एनी बेटी गोद लेने के बहाने नौकरानी ले आई हैं.

इजाबेला अब कभीकभी नए कपड़ों में दिखाई देने लगी. लेकिन उस के नए कपड़े ऐसे नहीं थे कि वह एनी पौल की बेटी लगे. एनी के बेटे आपस में खेलते नजर आते पर उन की दोस्ती इजाबेला से नहीं हुई थी. वह बरामदे के एक कोने में खड़ी रहती. उदास या खुश, पता नहीं चलता था. हां, सेहत जरूर कुछ सुधर गई थी…शायद ढंग से नहानेधोने के कारण रंग भी कुछ निखरानिखरा सा लगता था.

धीरेधीरे सब अपने कामों में मशगूल हो गए. फिर कभी वह लौन में से पत्तियां उठाती दिखाई देती तो कभी पौधों में पानी देती. एक बार झाड़ू लगाती भी नजर आई थी. घर में काम करने वाली गंगूबाई से कालोनी की औरतों को यह भी पता चला कि इजाबेला अब खाना भी बनाने लगी है.

महिलाओं की सभा जुड़ी और सब के चेहरे पर एक ही भाव था कि मैं ने कहा था न…

महिलाओं की यह सुगबुगाहट एनी तक पहुंच गई थी और उन्होंने सोने के टौप्स दिखा कर सब का शक दूर कर दिया. सभी उस के सामने एनी की तारीफ तो करती थीं पर मन एनी के दिखावे को सच मानने को तैयार न था.

समय धीरेधीरे सरकता रहा. एनी और इजाबेला की खबरें कालोनी की औरतों को मिलती रहती थीं. लगभग 10 माह बाद एक दिन मीरा मौसी ने कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि घर का सारा काम इज्जु ही करती है.’’

‘‘कौन इज्जु?’’ एक महिला ने पूछा.

‘‘अरे, वही इज्जाबेला.’’

‘इज्जाबेला नहीं मौसी, इजाबेला… और समीरा एनी उसे इजू कहती हैं, न कि इज्जु,’’ लक्ष्मी ने बात स्पष्ट की.

‘‘कुछ भी कह लक्ष्मी, अगर बेटी होती तो क्या स्कूल नहीं जाती? यदि गोद लिया है तो अपनी औलाद की तरह भी तो पालना चाहिए न. काम के लिए नौकरानी लानी थी तो इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी. ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं एनी पौल को,’’ मौसी ने कहा.

कभी कोई महिला इस लड़की के मांबाप पर गुस्सा निकालती कि कितनी दूर भेज दिया है लड़की को. ये लोग उसे कभी बाहर नहीं आने देते. किसी से बात नहीं करने देते. घर जाओ तो उसे दूसरे कमरे में भेज देते हैं. क्यों? मीरा मौसी को कुछ ही नहीं सबकुछ गड़बड़ लगता था. एक दिन एनी से पूछ ही लिया, ‘‘एनी, साल भर होने को आया, अभी तक अपनी बेटी का किसी स्कूल में एडमीशन नहीं करवाया.’’

एनी बड़ी नजाकत से बोली थीं, ‘‘मौसी, अब किसी ऐसेवैसे स्कूल में तो बेटी को भेजेंगे नहीं. जहां इस के भाई जाते हैं वहीं जाएगी न? और वहां दाखिला इतनी आसानी से कहां मिलता है. आर्थर प्रिंसिपल से मिला था. उम्र के हिसाब से इसे 9वीं में होना चाहिए. 14 की हो गई है. पर इसे कहां कुछ आता है. एकाध साल घर में ही तैयारी करवानी पड़ेगी. आर्थर पढ़ाता तो है.’’

मौसी कुछ और जानने की इच्छा लिए अंदर आतेआते बोलीं, ‘‘तो वहां कुछ नहीं पढ़ासीखा इस ने?’’

‘‘वहां सरकारी स्कूल में जाती थी. 5वीं तक पढ़ी है. फिर मां ने काम पर लगा दिया. अब यही तो कमी है न इन लोगों में. मुफ्त की आदत पड़ी हुई है फिर मैनर्स भी तो चाहिए. वैसे मौसी, इजाबेला चाय बहुत अच्छी बनाने लगी है,’’ फिर आवाज दे कर बोलीं, ‘‘इजू बेटे, मौसी को बढि़या सी चाय बना कर पिलाओ.’’

जब वह चाय बना कर लाई तो मौसी ने देखा कि उस ने बहुत सुंदर फ्राक पहनी हुई थी और करीने से बाल संवारे हुए थे. मौसी खुश हो गईं और संतुष्ट भी. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ रखा तो एनी संतुष्ट हो गई.

‘‘इजू, शाम को बाहर खेला करो न. मेरी पोती भी तुम्हारी उम्र की है.’’

वह कुछ कहती उस से पहले एनी बोल उठीं, ‘‘मौसी, यह हिंदी, अंगरेजी नहीं जानती है. सिर्फ तमिल बोलती है. टूटीफूटी हिंदी की वजह से झिझकती है.’’

इजू अब सारा दिन घर में इधरउधर चक्कर काटती दिखाई देती और एनी घर से निश्ंिचत हो कर बाहर घूमती रहती. महल्ले की औरतों की हैरानी तब और बढ़ गई जब गंगूबाई छुट्टी पर थी और एनी ने एक बार भी किसी से कोई शिकायत नहीं की. मस्त थी वह. तो काम कौन करता है? पर अब कोई नहीं पूछता कुछ उस से क्योंकि जिन की बेटी है उन्हें ही कुछ परवा नहीं तो महल्ले वाले क्यों सोचें.

अब मौसी भी कुछ नहीं कह सकतीं. भई, जब बेटी बनाया है, घर दिया है तो वह कुछ काम तो करेगी ही न? और सब लोगों के बच्चे भी तो करते हैं. अब समीरा की बेटी को ही देख लो. 7वीं में पढ़ती है पर सुबह स्कूल जाने से पहले दूध ले कर आती है, डस्टिंग करती है और कोई घर पर आता है तो चाय वही बनाती है.

मीरा मौसी की पोती भी कुछ कम है क्या? टेबल लगाती है, दादीदादा को कौन सी दवा कब देनी है आदि बातों के साथसाथ मम्मी के आफिस से आने से पहले कितना काम कर के रखती है तो इजू क्यों नहीं अपने घर में काम कर सकती?

गंगूबाई बीमारी से लौट कर काम पर आई तो सब से पहले एनी के ही घर गई थी. लौट कर बाहर आई तो जोरजोर से बोलने लगी. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. फिर समीरा के घर पर हाथ  नचानचा कर कहने लगी, ‘‘सब जानती हूं मैं, 1,500 रुपए में खरीद कर लाए हैं, काम करने के वास्ते.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता, गंगूबाई?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘अब कामधंधे पर निकलो तो सब की जानकारी रहती ही है. आप लोगों जैसे घर के अंदर बैठ कर बतियाते रहने से कहां कुछ पता चलता है,’’ फिर थोड़ा अकड़ कर गंगूबाई बोली, ‘‘मेरा भाई, आर्थर साहब के चपरासी का दोस्त है,’’ कह कर गंगूबाई मटकती हुई चली गई.

अब एनी पौल को घर और महल्लेवालों की परवा नहीं थी. वह नौकरी करने लगीं और इजू बिटिया घर की देखभाल. दत्तक बेटी से इजू नौकरानी बन गई थी. नौकरानी तो वह शुरू से ही थी पर पहले प्रशिक्षण चल रहा था अत: पता नहीं चलता था, अब फुल टाइम जौब है तो पता चल रहा है. इस तरह यह मुद्दा खत्म हो गया था कि बेटी है या नौकरानी. अब मुद्दा यह था कि उस के पास फुल टाइम मेड क्यों है? धीरेधीरे यह मुद्दा भी ठंडा पड़ने लगा.

इजाबेला ने नया माहौल स्वीकार कर लिया था. उस के पास और कोई चारा भी तो नहीं था. हंसतीमुसकराती इजाबेला सुबह काम में जुटती तो रात को 11-12 बजे ही बिस्तर पर जाने को मिलता. किसी दिन मेहमान आ जाते तो बस…

अपने कमरे में जा कर लेटती तो बोझिल पलकें लिए ‘रानी’ बन सुदूर गांव के अपने मांबाप के पास पहुंच जाती. सागर के किनारे खेलती रानी, रेत में घर बनाती रानी, छोटे भाईबहनों को संभालती रानी. बीमार मां की जगह राजश्री मैडम के घर बरतन मांजती… मां ने एक दिन उस के शराबी बाप से रोतेरोते कहा था, ‘शराब के लिए तू ने अपनी बेटी को बेच दिया है.’ उसे याद है एनी पौल का छुट्टियों में राजश्री के घर आना.

वह आंखें बंद कर मां के गले लग कर रोती. उसे इस तरह रोते 3 साल हो गए हैं. एनी मैडम ने कहा था कि हर साल छुट्टी पर उसे घर भेजेगी. कल वह जरूर बात करेगी.

अगली सुबह एडी को तेज बुखार था और वह सब भूल गई. एडी से तो उसे बहुत लगाव था. वह भी उस से खूब बातें करता था. इजाबेला पूरीपूरी रात एडी के कमरे में बैठ कर काट देती. पलक तक न झपकाती थी.

तीसरी रात जाने कैसे उसे नींद आ गई. और जब नींद खुली तो देखा आर्थर उस के ऊपर झुका हुआ था. वह जोरों से चीख पड़ी. पता नहीं किसी ने सुना या नहीं. अब इजाबेला आर्थर को जब भी देखती तो उस में अपने बाप का चेहरा नजर आता. इसीलिए वह बड़ी सहमी सी रहने लगी और फिर एक भरी दोपहरी में इजू बड़ी जोर से चीखी थी पर महानगरीय शिष्टता में उस की चीख किसी ने नहीं सुनी.

सुघड़, हंसमुख इजू अब सूखती जा रही थी. वह हर किसी को ऐसे देखती जैसे कुछ कहना चाह रही हो पर किसे क्या बताए, एनी को? वह मानेगी? और किसी से बात करे? पर ये लोग जिंदा नहीं छोड़ेंगे. ऐसे कई सवाल उस के मन में उमड़तेघुमड़ते रहे और ताड़ती निगाहों ने जो कुछ अनुमान लगाया उस की सुगबुगाहट घर के बाहर होने लगी. चर्चा में कालोनी की औरतें कहती थीं, ‘‘गंगूबाई पक्की खबर लाई थी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘क्या आर्थर के चपरासी ने बताया?’’

‘‘नहीं, कल घर में कोई नहीं था. इजाबेला ने खुद ही बताया.’’

‘‘एनी मेम साहब को नहीं पता? आर्थर जबरदस्ती पैसे दे देता है और साथ में धमकी भी.’’

‘‘मैं बताऊंगी एनी मेम साहब को,’’ गंगूबाई बोली.

‘‘नहीं, गंगूबाई. वह बेचारी पिट जाएगी,’’ हमदर्दी जताते हुए समीरा बोली.

और एक दिन एनी ने भी देख लिया. उस का पति इतना गिर सकता है? उस ने अब ध्यान से बड़ी होती इजू को देखा. रंग पक्का होने पर भी आकर्षक लगती थी. एनी ने आर्थर को आड़े हाथों लिया. फिर अपने घर की इज्जत बखूबी बचाई थी. अगली सुबह ‘इजू बिटिया’ को पीटपीट कर बरामदे में लाया गया.

‘‘जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है,’’ गुस्से से एनी बोलीं, ‘‘हम इतने प्यार से रखते रहे और इसे देखो… यह ले अपना सामान, यह रहे तेरे पैसे… अब कभी मत आना यहां…’’

तभी गंगूबाई जाने कहां से आ पहुंची.

‘‘क्यों मार रही हो बेचारी को?’’

‘‘बेचारी? जानती हो क्या गुल खिला रही है?’’

‘‘गुल इस ने खिलाया है या तुम्हारे साहब ने?’’

‘‘गंगूबाई, यह मेरी बच्ची की तरह है. गलती करने पर पेट जाए को भी मारते हैं या नहीं? इस ने चोरी की है,’’ कहतेकहते उस की नजर इजू पर पड़ी.

इजू ने बस यही कहा, ‘‘मैं ने चोरी नहीं की.’’

गंगूबाई चिल्ला पड़ी थी, ‘‘मुझे पता है क्या बात है? ऐसे बाप होते हैं… सगी बेटी होती तो उसे देख कर भी लार टपकाता क्या?’’

जिन लोगों ने यह सुना सकते में आ गए.

‘‘एनी,’’ आर्थर का कहना था, ‘‘ऐसे ही होते हैं यह लोग. घटिया, जितना प्यार करो उतना ही सिर पर चढ़ते हैं. बदनाम करा दिया मुझे न,’’ आर्थर देख रहा था कि गंगूबाई की बात का लोगों ने लगभग यकीन कर लिया था.

और वे लोग जो उस के बेटी या नौकरानी होने के मुद्दे को ले कर कल तक परेशान थे, आज चुप थे. कल को उन के नौकरनौकरानी भी कुछ ऐसा कह सकते हैं न. भई, इन लोगों का क्या भरोसा? ये तो होते ही ऐसे हैं, झट से नई कहानी गढ़ लेते हैं. कल को कुछ भी हो सकता है, सच भी, झूठ भी. अगर इजू का साथ देते हैं तो कल उन का साथ कौन देगा.

एनी को लगा कि सभी उसे देख रहे हैं और उस का मजाक बना रहे हैं. इसलिए दरवाजा बंद करते हुए और जोर से बोली थीं, ‘‘शुक्र है पुलिस में नहीं दिया.’’

अपने ट्रंक पर बैठी इजाबेला गेट के बाहर रो रही थी.

गंगूबाई आगे आई थी.

‘‘चल मेरे साथ. पैसा नहीं दे सकती पर सहारा तो दे सकती हूं. सब से बड़ी बात मर्द नहीं है मेरे घर में. जो खाती हूं वही मिलेगा तुझे भी. एकदूसरे की मदद करेंगे हम दोनों. चल, पर मैं इज्जाबेला न कहूंगी. ये कोई नाम हुआ भला? या तो इज्जा या बेला… बेला ठीक है न?’’

बेला धीरेधीरे गंगूबाई के पीछेपीछे चल पड़ी. अपने जैसे लोगों के साथ रहना ही ठीक है.

कुछ दिन बाद सब ने देखा कि बेला अपनी नई मां गंगूबाई के साथ काम पर जाने लगी थी.

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