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Psychology : रोने को हथियार न बनाएं

Psychology : कुछ लोगों के लिए रोना जहां अपने इमोशन, अपनी परेशानी, अपने दुख को एक्सप्रेस करने का एक जरिया होता है वहीं कुछ लोगों के लिए रोना अपनी बात मनवाने का एक हथियार होता है.

“अब तो तुम्हें मेरे रोने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, पहले तुम्हें मेरे एक आंसू से कितनी तकलीफ होती थी, तुम मुझे मनाने की कोशिश करते थे.”
“यार ये क्या तुम हर बात पर रोनेधोने और आंसू बहाने लग जाती हो, क्या तुम अपनी कोई भी बात बिना रोए नहीं कर सकती.”
कुछ लोगों के लिए रोना जहां अपने इमोशन, अपनी परेशानी, अपने दुख को एक्सप्रेस करने का एक जरिया होता है. वहीं कुछ लोगों के लिए रोना अपनी बात मनवाने का एक हथियार होता है, उन्हें लगता है कि वे रोधो कर अपनी बात मनवा लेंगे.
ऊपर के दो डायलोग्स में भी ऐसा ही है जहां एक ओर वाइफ को शिकायत है कि अब पति को उस के रोने से, उस के आंसुओं से कोई फर्क नहीं पड़ता. वहीं दूसरी ओर हसबैंड वाइफ की बात पर रोने की आदत से परेशान हो चुका है. अब वाइफ का रोना उसे इरिटेट करता है.

दरअसल, हंसने, खुश होने, गुस्से, उदासी की तरह रोना भी एक इमोशन है. जैसे, खुश होना, हंसना एक सामान्य इमोशन है उसी तरह किसी बात पर दुखी होना या रोना भी एक नौर्मल इमोशन है.

रोना गलत बात नहीं है और न ही ऐसी कोई गाइडलाइंस है कि इंसान को कब और कितना रोना चाहिए. एक अध्ययन के अनुसार, महिलाएं प्रतिमाह औसतन 5.3 बार रोती हैं और पुरुष प्रति माह औसतन 1.3 बार रोते हैं.

रोना, एक नौर्मल इमोशन

रोना उतनी बुरी बात भी नहीं है, जितना इसे हमारे समाज में माना जाता है. रोना मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए अच्छा होता है क्योंकि यह अपनी भावनाओं को एक्सप्रेस करने का एक माध्यम होता है . रोने से हमारे शरीर में औक्सीटोसिन और प्रोलैक्टिन जैसे कैमिकल्स रिलीज होते हैं. ये आप की हार्टबीट को कम कर सकते हैं और आप के मन को शांत कर सकते हैं.

कई बार रोने से गुस्सा शांत हो जाता है, गुस्सा होने पर रोना इमोशंस को शांत करने में मदद करता है. यह इमोशनल रिलीज का एक हिस्सा होता है, जिस के बाद तनाव और निराशा कम होती है.

• किसी बहुत बड़ी उपलब्धि के मिलने पर खुशी में रोना खुशी के आंसू निकलना एक सामान्य रिएक्शन है.

• अपनी या किसी और की तकलीफ में, दर्द में, किसी अपने से दूर या अलग होने के दुख में रोना आंसू आना नौर्मल इमोशन है.

• कई बार काम के प्रैशर में, ज्यादा वर्कलोड होने पर सिचुएशन न संभाल पाने, ज्यादा थक जाने पर रोना आना सामान्य है.

• गुस्से में किसी से लड़ाई हो जाने पर, किसी के दिल दुखाने वाली बात कह देने पर आंखों से गंगाजमुना बहने लगना एक नौर्मल बात है.

• कई बार अपने नजदीकी रिश्तों से किसी बात पर लड़ाई होने पर रोना आना या फिर दोस्त की किसी बात पर अपसेट होने पर रोना आना भी नौर्मल है. सीधे शब्दों में जब कोई आहत महसूस करता है तो यह इमोशन तब सामने आता है, तो रोना आता है और यह बिलकुल नौर्मल है. जो लोग भावुक होते हैं, वे दिल के बिलकुल साफ होते हैं और जब किसी से लड़ाई का समय आता है, तब वे बहस करने की बजाय, अपनी बात थोपने की जगह रो कर अपनी भावना एक्सप्रेस करते हैं.

कई बार जब कोई किसी गलत बात पर कुछ कह नहीं पाता या ऐसी किसी स्थिति में होता है जो परेशान करने वाली होती है तो वह गुस्से में बस रोने लगता है. यह भी अपनी फीलिंग्स को बाहर निकालने का एक नौर्मल तरीका है.

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस के शोधकर्ता किम्बर्ली एल्सबैक और बेथ बेचकी के शोध के अनुसार परिवार में किसी की मृत्यु या बड़ी बीमारी जैसी स्थिति में, किसी व्यक्ति का रोना अपेक्षित है. लेकिन इसे आदत बनाना सही नहीं होता, यह रोने वाले की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसा करने से आप के आसपास के लोग, कलीग्स आप को कमजोर, गैरपेशेवर या चालाक समझ सकते हैं.

बातबात पर रोने से कुछ मिलता नहीं

अगर कोई वाजिब कारण पर कभीकभार रोता है तो उस के आसपास के लोग उस के रोने, उस के इमोशन को अहमियत देते हैं लेकिन अगर किसी का मोटिव यानी उद्देश्य रोने का या ढोंग कर के कर अपनी बात पूरी कराना है तो जरूरी नहीं उस का यह मोटिव हर बार पूरा होगा.

कुछ महिलाएं अपने इस इमोशन को एक घटिया चाल के रूप में चलाती हैं. अपनी बात मनवाने के लिए अपनाती हैं, ऐसा करना गलत है और लंबे समय में कोई भी उन की इस चाल के झांसे में नहीं आएगा क्योंकि जिस हसबैंड की वाइफ ने रोने को अपनी हर मांग पूरी करवाने का हथियार बना लिया हो तो उस बेचारे पति का तो सर दर्द ही हो जाएगा और एक समय के बाद उस पर पत्नी के आंसुओं और रोने का कोई असर नहीं होगा.

रोने से हर चीज या मनचाही चीज मिल जाएगी या आप की बात मान ली जाएगी यह जरूरी नहीं. कभीकभार रोने पर पति मनाएगा, पुचकारेगा पर बारबार हर बात पर रो कर बात मनवाने की साजिश से कुछ नहीं मिलेगा.

रोने को हथियार न बनाएं

अगर किसी की वाइफ बारबार रोती है, तो ये यकीनन ऐसा करना उन की शादीशुदा जीवन पर असर डाल सकता है. अधिकांश पुरुष कभी भी किसी महिला के आंसू देख कर खुश नहीं होते, फिर चाहे वह आंसू पत्नी के हों, मां के हों या बहनबेटी के हों. उन के आंसू देख कर वे खुद को कमजोर महसूस करते हैं और अपने निर्णय पर मजबूत रह पाने में असहाय महसूस करते हैं. 60% मामलों में पत्नी के आंसू पति को कमजोर बना देते हैं परंतु 40% मामलों में आंसू काम नहीं आते.

बातबात पर रोना पलटवार न कर दे
इजराइल के विजमान संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने शोध में यह खुलासा भी किया है कि महिलाओं के आंसुओं में ऐसे रसायन होते हैं जो पुरुषों में सैक्स की इच्छा को कम करते हैं. इसलिए वे महिलाएं जो पुरुषों से अपनी बात मनवाने के लिए आसुओं को अपना हथियार मानती हों, उन का यह हथियार उलटवार भी कर सकता है और उन की सैक्सलाइफ को बरबाद कर सकता है.

रोने के मामले में महिला और पुरुष के हार्मोन अलग

रोने के पीछे शरीर में पाए जाने वाले हार्मोन जिम्मेदार होते हैं. रिसर्च के मुताबिक पुरुषों में टैस्टोस्टेरोन हार्मोन होता है जो उन्हें महिलाओं के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली और मजबूत बनाता है. यही हार्मोन पुरुषों को रोने और भावुक होने से रोकता है और आंसुओं को बहने से रोकता है.

अकसर देखा जाता है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा और तेजी से रोने लगती हैं और अगर पुरुष रोता है तो उसे कहा जाता है, “क्या औरतों की तरह रो रहे हो.” हौलैंड की एक प्रोफैसर ने एक रिसर्च में पाया कि पुरुषों के कम आंसुओं के पीछे की वजह प्रोलैक्टिन हार्मोन होता है. दरअसल प्रोलैक्टिन हार्मोन मनुष्य को भावुक बनाता है और एक्सप्रेशन व्यक्त करने के लिए उत्साहित करता है.

जानकारी के मुताबिक पुरुषों में प्रोलैक्टिन हार्मोन न के बराबर होता है और औरतों में इस की मात्रा ज्यादा होती है. इसलिए अपने अंदर कूटकूट कर भरे हार्मोन के चलते ही औरतें ज्यादा रोती और भावुक होती हैं.

रोने के इमोशन पर कंट्रोल

कई बार बिना बात के रोना परेशान करने वाला, असहज, शर्मनाक और थका देने वाला हो सकता है. ऐसे में यह समझना कि रोने का कारण क्या है, और इस इमोशन पर कंट्रोल करना सीखना अकसर एक बड़ी राहत होती है.

पौजिटिव या मजेदार सोचें

जब किसी को किसी इमोशनल बात पर रोना आए तो कुछ पौजिटिव या मजेदार सोचें, हालांकि जब कोई परेशान या दुखी होता है तो यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन फिर भी जब रोना आए तो अगर किसी की कोई पौजिटिव या प्रेरणादाई बात सुनी या वीडियो देखी जाए तो इस इमोशन पर कंट्रोल किया जा सकता है.

गहरी सांस लें

जब रोना आए तो धीरेधीरे गहरी सांस लेना और सांस लेने पर ध्यान केंद्रित करने से रोने के इमोशन पर कंट्रोल हासिल करने में मदद मिल सकती है. डीप ब्रीदिंग मन को शांत करती है और इस से भावनाओं के प्रवाह को दूसरी दिशा में ले जाने में मदद करती है.

जगह बदल लें, किसी और काम में मन लगाएं

जब बहुत रोना आ रहा हो, मन उदास हो और आंसू रुकने का नाम न ले रहे हों उस समय जगह से चले जाना, उस स्थिति से खुद को डिस्ट्रैक्ट कर लेना, वौक पर चले जाना, कोई मूवी देखना, ध्यान को भटका सकता है और रोना रोकने में मदद कर सकता है. ऐसा करने से फीलगुड एंडोर्फिन निकलता है और जो बात परेशान कर रही होती है, जिस की वजह से रोना आ रहा होता है उस पर काबू पाने में मदद मिलती है.

कई बार बहुत अधिक गुस्सा, परेशान होना, या निराश होने से रोना आ सकता है, इसलिए खुद को उस स्थिति से हटा कर ध्यान घर के छोटेमोटे कामों में लगाने से रोना रोकने में मदद मिल सकती है.

Maharashtra : छोटे दलों को खत्म करेगी भाजपा

Maharashtra : बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. राजनीति में भी बड़े दल पहले छोटे दलों का लौलीपौप देते हैं फिर उन को खत्म कर देते हैं. भाजपा अब बड़ी मछली बन कर छोटे दलों को खा रही है.

भारतीय जनता पार्टी एक एक कर छोटे दलों को प्रभावहीन कर के खत्म कर रही है. इस का ताजा उदाहरण महाराष्ट्र की राजनीति में दिखाई दे रहा है. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के पहले और बाद में अंतर आ गया है. शिवसेना के जो एकनाथ शिंदे पहले मुख्यमंत्री थे अब वह उप मुख्यमंत्री हैं. एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के बीच कई मुद्दों को ले कर मतभेद हैं. महाराष्ट्र ही नहीं बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश में भी भाजपा छोटे दलों को खत्म करती जा रही है.

महाराष्ट्र की महायुति सरकार में दरार के संकेत लगातार मिल रहे हैं. सीटों, विभागों और योजनाओं पर लगातार मतभेद और टकराव सामने आ रहे हैं. एकनाथ शिंदे की नाराजगी खुल कर सामने आई है और सरकार में एक के बाद एक कई मुद्दों पर असहमति बनी हुई है. महाराष्ट्र सरकार 3 पैरों वाले तांगा जैसी है. इस में सब से आगे मुख्यमंत्री और भाजपा ने देवेन्द्र फडणवीस हैं. इस के पीछे के दो पहियों में से एक शिवसेना के एकनाथ शिंदे हैं और एक एनसीपी के अजित पंवार हैं.

तीनों पहियों में दो जिस तरफ चलेंगे वह सरकार में बना रहेगा. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. एकनाथ शिंदे और अजित पवार में से कोई भी एक के अलग होने से सरकार नहीं गिरेगी. दूसरी तरफ भाजपा इन में से किसी भी एक के साथ तोड़फोड़ कर उस को खत्म सकती है. इस के पहले भी एकनाथ शिंदे और अजित पवार शिवसेना और एनसीपी को तोड़ चुके हैं. उस समय भाजपा ने बड़ा दिल दिखाते हुए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया था.

जैसे ही विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा मजबूत हुई उस ने मुख्यमंत्री का पद छीन लिया. अब भाजपा के देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री हैं, शिवसेना के एकनाथ शिंदे और एनसीपी के अजित पंवार उप मुख्यमंत्री हैं. मुख्यमंत्री से उपमुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे के लिए तालमेल बैठाना सरल नहीं है. ऐसे में लगातार विवाद की खबरें आती रहती हैं.

महायुति में महाभारत

चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को ले कर महायुति में विवाद था. इस को किसी तरह से हल किया गया. चुनाव के बाद जब भाजपा को बड़ी जीत मिली तो भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री बनाना तय किया. इस के बाद मुख्यमंत्री के चयन को ले कर भाजपा और शिंदे में अनबन की खबरें आने लगीं. शिंदे मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ना चाहते थे और भाजपा देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी. इस के बाद समझौता हुआ और शिंदे उप मुख्यमंत्री बनने को राजी हुए.

शिंदे अगर राजी न होते तो भी भाजपा के पास दूसरा प्लान भी था. शिंदे के साथी उदय सामंत देवेन्द्र फडणवीस के करीबी माने जाते हैं. उन के साथ 20 विधायक भाजपा के पाले में आने को तैयार थे. शिंदे सेना के 57 विधायक हैं. उन में से 20 अलग होते, तो दलबदल कानून लागू नहीं होता. उदय सामंत डिप्टी सीएम बनते. इस की भनक शिंदे को लग गई और वह उप मुख्यमंत्री बनने को राजी हो गए.

टकराव के मुद्दे

शिंदे को एक बार दवाब में लेने के बाद भाजपा ने उन को आगे बढ़ने नहीं दिया. मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे पर खींचतान चलती रही. शिंदे गृह मंत्रालय चाहते थे, लेकिन कोई मुख्यमंत्री गृह विभाग दूसरे को नहीं देता है. इस के बाद राजस्व और शहर विकास विभाग की मांग की गई. भाजपा राजस्व विभाग देने को तैयार न थी. हार मान कर शिंदे को शहर विकास विभाग स्वीकार करना पड़ा. भाजपा और शिंदे के बीच एक और टकराव जिलों के गार्जियन मंत्रियों की नियुक्ति को ले कर हुआ. फडणवीस ने नासिक में अपनी पार्टी के गिरीश महाजन और रायगढ़ में अजित की पार्टी की अदिति तटकरे को नियुक्त किया. शिंदे गुट के विरोध पर 24 घंटे में यह निर्णय स्थगित करना पड़ा. दोनों जिले पूर्व में शिंदे गुट के पास ही थे. यह मामला अब तक विवादों में पड़ा है.

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पुनर्गठन में एकनाथ शिंदे का नाम नहीं था. बाद में नियमों में बदलाव कर शिंदे को शामिल किया गया. महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम के अध्यक्ष अमूमन परिवहन मंत्री होते हैं. परिवहन मंत्रालय शिंदे सेना के प्रताप सरनाईक के पास है. उन के बजाय अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय सेठी को अध्यक्ष बना दिया गया.

एकनाथ शिंदे जब मुख्यमंत्री थे उस समय अपने कार्यकाल के दौरान की उन्होंने कुछ लोकप्रिय योजनाओं का प्रस्ताव रखा था. नई सरकार द्वारा उस पर पुनर्विचार न होने से भी शिंदे नाराज हैं. इन में लाडली बहना और त्योहारों के समय गरीबों को मुफ्त दी जाने वाली राशन किट योजना ‘आनंदाचा शिघा’ भी शामिल है. इन योजनाओं ने महायुति को जिताने में अहम भूमिका निभाई. इन योजनाओं को बंद नहीं किया जाएगा, लेकिन नियमों में कड़ाई बरते जाने से कई समूह इन से बाहर हो जाएंगे.

शिंदे अपनी पार्टी का विस्तार राज्य के बाहर करना चाहते हैं. इस में भी भाजपा को दिक्कत थी. देवेन्द्र फडणवीस ने शिंदे के 20 विधायकों की सुरक्षा फडणवीस ने घटा दी. कहने के लिए भाजपा और अजित पवार के कुछ विधायकों की सुरक्षा भी घटाई गई है, लेकिन उन की संख्या शिंदे के विधायकों की तुलना में बहुत कम है. शिंदे-भाजपा के बीच टकराव की परतें खुलती नजर आ रही हैं. शिंदे को यह महसूस होना स्वाभाविक है कि उन्हें घेरा जा रहा है और उन की उपेक्षा व अनदेखी की जा रही है.

खत्म हो रहे छोटे दल

शिंदे समयसमय पर अपनी नाराजगी दिखाते रहते हैं. एकदो बार वह मंत्रिमंडल की बैठक में नहीं गए. भाजपा या अजित पवार की बैठकों का उन्होंने बहिष्कार किया. उसी विषय पर अपनी स्वतंत्र बैठक बुलाई. मुख्यमंत्री सहायता निधि की तरह ही अपना स्वतंत्र सहायता फंड भी बना लिया है. ऐसा लगता है कि शिंदे को हाशिए पर लाने के लिए भाजपा और अजित पवार एक हो गए हैं. जब तक भाजपा और अजित पंवार एक साथ हैं एकनाथ शिंदे के नाराज होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

एकनाथ शिंदे बुरे फंस गए हैं. भाजपा शिंदे और अजित पंवार के बीच तोलमोल का खेल खेल रही है. जब तक अजित पंवार भाजपा के साथ है तब तक महाराष्ट्र में महायुति सरकार को कोई खतरा नहीं है. भाजपा शिंदे को खत्म कर देगी. बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा के बीच गठबंधन चल रहा है. यहां भाजपा अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए नीतीश की जदयू को खत्म कर देगी.

बिहार 26 फरवरी को नीतीश सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ. 2025 के विधानसभा चुनाव पर इस मंत्रिमंडल विस्तार का प्रभाव पड़ेगा. मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा का पलड़ा भारी है. इस विस्तार में 7 नए मंत्रियों को जगह मिली. सभी 7 मंत्री भारतीय जनता पार्टी कोटे से हैं. भाजपा ने इस विस्तार के जरीए जातीय गणित और क्षेत्रीय संतुलन को बनाने का काम किया है. मंत्रिमंडल में पिछड़ा वर्ग के 3, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के 2 और सवर्ण जाति से दो मंत्री बनाए गए हैं.

भाजपा के इस कदम पर नीतीश कुमार अभी मौन हैं. इस से साफ लग रहा है कि वह पूरी तरह से भाजपा पर निर्भर हैं. 2025 में बिहार के विधानसभा चुनाव हैं. यहां चुनाव भाजपा भले ही नीतीश कुमार के साथ लड़ेगी. चुनाव के बाद जैसे फैसले आएंगे भाजपा वैसा कदम उठाएगी. भाजपा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. उस के अधिक विधायक होंगे तब वह अपना मुख्यमंत्री बनाएगी और जदयू खत्म हो जाएगा.

बिहार में जदयू ही नहीं चिराग पासवान की लोकजन शक्ति पार्टी का भी वही हाल है. चिराग पासवान में अपने बलबूते कुछ करने की ताकत नहीं है. ऐसे में उन की पार्टी भाजपा की पिछलग्गू ही बनी रहेगी. बिहार के नेता जीतन राम मांझी भले ही केंद्र में मंत्री हों लेकिन भाजपा से वह भी परेशान हैं. बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को ले कर सियासी बवाल मच गया है.

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. जीतन राम मांझी का कहना है कि जहां भाजपा मजबूत है वहां के चुनाव में वह सहयोगी दलों को महत्व नहीं देती है. जैसे दिल्ली के चुनाव में उस ने किया. दिल्ली में चिराग पासवान और नीतीश कुमार की पार्टी को भाजपा ने सीट में हिस्सेदारी दे दी लेकिन जीतन राम मांझी को एक भी सीट नहीं दी थी. इस को ले कर जीतन राम मांझी बुरी तरह भड़के हुए हैं. जीतन राम मांझी ने कहा कि ‘झारखंड में भी हमारी औकात नहीं थी, दिल्ली में भी हमारी औकात नहीं है लेकिन बिहार में हम अपनी औकात दिखाएंगे.’

बिहार जैसे हाल है उत्तर प्रदेश में

भाजपा बिहार में जिस तरह से नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के साथ कर रही है वही हाल उत्तर प्रदेश में लोकदल, अपना दल अनुप्रिया पटेल, ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद के साथ कर रही है. पिछड़ी जाति के आरक्षण को ले कर अनुप्रिया पटेल ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर हमला बोला. इस के बाद उन के पति और योगी सरकार में मंत्री आशीष पटेल ने कई बातें कहीं. जिस के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन को बुला कर बात की. इस के बाद से अपना दल के नेता पूरी तरह से खामोश हैं.

लोकदल के नेता जंयत चौधरी केंद्र में मंत्री रह कर ही खुश हैं. उन को लगता है कि भाजपा विरोध में उन का दल टूट जाएगा. ओमप्रकाश राजभर और सुभाष निषाद योगी सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने की हालत में नहीं हैं. असल में भाजपा ने इन दलों में अपने नेताओं को घुसा दिया है. यह विचारधारा के हिसाब से भाजपा के करीब हैं. भाजपा के इशारे पर यह नेता इन दलों को तोड़ कर खत्म कर सकते हैं. ऐसे में अनुप्रिया, ओमप्रकाश और सुभाष निषाद के पास खामोश रहने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. जो भाजपा की बात नहीं मानता वह दल टूट जाता है. महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना इस का उदाहरण हैं.

1993 में भाजपा के मुकाबले सपा-बसपा एक साथ चुनाव लड़ी. भाजपा ने बसपा नेता मायावती को मुख्यमंत्री पद का झांसा दे कर गठबंधन को तोड़ दिया. इस के बाद 3 बार मायावती भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं. दलित और पिछड़ी जातियों के बीच आपस में इतनी दूरी है कि अब समाजवादी पार्टी बसपा को भाजपा की बी टीम कहती है. बसपा के फैसले भाजपा को लाभ पहुंचाने वाले होते हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी कहते हैं, ‘अगर लोकसभा चुनाव में बसपा कांग्रेस के साथ खड़ी होती तो भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाने से रोका जा सकता था.’ बसपा ने उत्तर प्रदेश के 9 विधानसभा के उपचुनाव लड़े. जिस का प्रभाव यह हुआ कि समाजवादी पार्टी को भाजपा के मुकाबले केवल 2 सीटों पर जीत मिल सकी. सपा को इस बात की टीस है कि बसपा के चुनावी फैसलों का लाभ भाजपा को मिल रहा है. बसपा अब भाजपा पर निर्भर है.

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल भारतीय जनता पार्टी का सहयोगी दल था. अटल बिहारी बाजपेयी से ले कर नरेंद्र मोदी सरकार तक केंद्र सरकार में अकाली दल के नेताओं को मंत्री पद मिला हुआ था. कृषि कानूनों के विरोध में जब किसान आन्दोलन हुआ तब से अकाली दल और भाजपा के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हुई. भाजपा जब भी ‘हिंदूराष्ट्र’ की बात करती है तो सहज भाव से सिख को अपना खलिस्तान याद आने लगता है. अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल हिंदू और सिखों के बीच एक कड़ी का काम करते थे जो दोनों को जोड़े थे. शिरोमणि अकाली दल के कमजोर होने का प्रभाव पंजाब की राजनीति पर पड़ रहा है.

2020 में नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार ने बिना शिरोमणि अकाली दल से बात किए 3 कृषि कानून लागू कर दिए थे. इन कानूनों के विरोध में सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर ने केन्द्रीय मंत्री पद भी छोड़ दिया. इस के बाद शिरोमणि अकाली दल हाशिए पर है. भाजपा ने अकाली दल को लगभग खत्म कर दिया है. भाजपा एकएक कर छोटे दलों को खत्म करती जा रही है. नवीन पटनायक और चन्द्रबाबू नायडू के साथ भी भाजपा ने इसी तरह से खेल किया है.

भाजपा से लड़ कर ही बच रहे दल

जो दल भाजपा के पिछलग्गू बने हैं वह एकएक कर खत्म हो रहे हैं. दूसरी तरफ जो दल भाजपा का साथ छोड़ कर अलग हो गए वह अपने को बचाने में सफल हो रहे हैं. दक्षिण भारत एआईएडीएमके जयललिता के समय से भाजपा के साथ थीं. नरेंद्र मोदी के दौर में भाजपा की बदलती विस्तारवादी नीति से परेशान हो कर भाजपा से दूर हो गई. तभी अपने वर्चस्व को बचा पाई. इसी तरह से टीएमसी नेता ममता बनर्जी भी खुद को बचाने में सफल रही है.

जयललिता और ममता बनर्जी एनडीए का हिस्सा रहते हुए भी अटल सरकार की नाक में नकेल डाल कर रखा था. यह महिला नेता चाहे साथ रही या विपक्ष में अपनी शर्तों और मुद्दों पर काम किया. जिस तरह से भाजपा के प्रभाव में आ कर मायावती ने दलित राजनीति को खत्म कर दिया कुछ वैसा ही हाल जयललिता का भी हुआ. जयललिता और मायावती की राजनीतिक विरासत भी एक जैसी रही. मायावती अपने गुरू कांशीराम के बाद बसपा पर कब्जा किया तो जयललिता ने एमजी रामचन्द्रन की विरासत हासिल कर अपना प्रभाव जमाया था.

जयललिता 1991 से 1996, 2001 में, 2002 से 2006 तक और 2011 से 2014, 2015 से 2016 तक 6 बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. वह आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की महासचिव थीं. राजनीति में आने से पहले वो अभिनेत्री थीं. उन का जन्म गरीब परिवार में हुआ था. जयललिता ने तमिल के अलावा तेलुगू, कन्नड़ और एक हिंदी तथा एक अंग्रेजी फिल्म में भी काम किया था. 15 साल की आयु में कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी थीं. इस के बाद वे तमिल फिल्मों में काम करने लगीं.

1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में एमजी रामचंद्रन के साथ की थी. यहीं से वह राजनीति में आई. 1987 में रामचंद्रन का निधन के बाद उन्होंने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. जयललिता अटल सरकार का हिस्सा नहीं रही लेकिन वह एनडीए के साथ रही. उन का सहारा ले कर भाजपा ने तमिलनाडु की राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ा लिया. मोदी राज में भी जयललिता 2016 तक एनडीए का हिस्सा रही.

जयललिता के निधन के बाद भाजपा ने उन को हिंदू छवि का नेता बताया. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई कहते हैं, ‘जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक ने हिंदुत्व के आदर्शों से किनारा किया.‘

भाजपा ने इस तरह के आरोप लगा कर अन्नाद्रमुक के अंदर भीतरघात कर उस को कमजोर किया. अन्नाद्रुमुक के वोटर भाजपा और डीएमके के बीच बंट गए हैं. ऐसे में जयललिता की पार्टी को भाजपा ने खत्म सा कर दिया है.

टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने अपनी राजनीति कांग्रेस के साथ शुरू की. कुछ समय पर भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का भी हिस्सा रही. इस के बाद भी ममता बनर्जी ने इन दलों को धूल चटा कर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की. ममता बनर्जी ने 15 साल की उम्र ही राजनीति शुरू की थी. कांग्रेस (आई) की छात्र शाखा से जुड़ी थी. इस के बाद वह पश्चिम बंगाल में कांग्रेस (आई) पार्टी में बनी रहीं और पार्टी के भीतर और अन्य स्थानीय राजनीतिक संगठनों में विभिन्न पदों काम किया.

1975 में उन्होंने समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के विरोध में उन की कार पर डांस किया था. 1976 से 1980 तक महिला कांग्रेस (इंदिरा), पश्चिम बंगाल की महासचिव रहीं. 1984 के आम चुनाव में ममता बनर्जी सोमनाथ चटर्जी को हरा कर सब से कम उम्र की सांसद बनी थीं. 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के आम चुनावों में कोलकाता दक्षिण सीट को बरकरार रखा. 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने बनर्जी को मानव संसाधन विकास, युवा मामले और खेल तथा महिला एवं बाल विकास के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री बनी थीं.

1997 में कांग्रेस से नाराज को तृणमूल कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई. 1999 में वह भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार में शामिल हो गईं और रेल मंत्री बनीं. 2004 के आम चुनाव में टीएमसी ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया. इस चुनाव में सफलता नहीं मिली तो वह भाजपा से दूर हो गई. 2009 के चुनाव में टीएमसी ने कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए का साथ दिया. 2009 की मनमोहन सरकार में दोबारा रेल मंत्री बनीं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के लिए ममता बनर्जी ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. 2011 में टीएमसी ने वामपंथी सरकार को पश्चिम बंगाल की सत्ता से बाहर कर दिया. तब से वह मुख्यमंत्री पद पर बनी हुई है. वह पश्चिम बंगाल की तीसरी सब से लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनी रहने वाली नेता बन गई हैं. अगर ममता कम से कम 26 अक्टूबर 2025 तक पद पर बनी रहती हैं, तो वह बिधान चंद्र रौय को पीछे छोड़ते हुए ज्योति बसु के बाद दूसरी सब से लंबे समय तक सेवा करने वाली मुख्यमंत्री बन जाएंगी. इस से ममता बनर्जी की राजनीतिक पकड़ को समझा जा सकता है.

जो दल भाजपा के साथ पिछलग्गू बने रहे वह टूट कर बिखर गए. उन का जनाधार खत्म हो गया. दूसरी तरफ जो दल भाजपा से अलग हो कर अपना जनाधार बढ़ाने में लगे रहे भाजपा के मुकाबले डट कर खडे हुए वह सफल हो रहे हैं. इन में ममता बनर्जी सब से प्रमुख नेता हैं. बहुत सारे प्रयासों के बाद भी भाजपा पश्चिम बंगाल के किले को भेद नहीं पाई है. न ही ममता बनर्जी को झुका पाए हैं. इसी दौर में अरविंद केजरीवाल जैसे लोग जो विचारधारा की राजनीति से भटके वह बिखर गए. जनता के साथ रह कर उस के काम कर के भाजपा से लड़ा जा सकता है. ममता बनर्जी ने यह दिखा दिया है.

Hindi Story : मुझे बेबस न समझो – नेहा किस बात को यादकर सिहर उठती थी?

Hindi Story : नेहा शूटिंग के उस सीन को याद कर सिहर उठती थी. वह ओलिशा की बौडी डबल थी, सो सारे रेप सीन या उघड़े बदन वाले सीन उस पर ही फिल्माए जाते थे. वैसे तो अब उसे इन सब की आदत पड़ चुकी थी पर आज रेप सीन को विभिन्न कोणों से फिल्माने के चक्कर में वह काफी टूटी व थकी महसूस कर रही थी. फिर देर रात तक नींद उस से कोसों दूर रही. अपनी ही चीखें, चाहे डायलौग ही थे, उस के कानों में गूंज कर उस के अपने ही अस्तित्व पर सवाल खड़े कर रहे थे जिस के कारण उसे शारीरिक थकावट से ज्यादा दिमागी थकावट महसूस हो रही थी.

कब तक वह ऐसे दृश्यों पर अभिनय करती रहेगी, यह सवाल उस के सिर पर हथौड़े की तरह वार कर रहा था. विचारों के भंवर से बाहर निकलने के लिए वह कौफी का मग हाथ में पकड़ खिड़की के पास आ खड़ी हुई. बाहर आसपास की दुनिया देख उसे कुछ सुकून मिला ही था कि उसे देख 1-2 लोगों ने हाथ हिलाया और फिर आपस में कोई भद्दा मजाक कर खीखी कर हंसने लगे. सब को पता है कि वह छोटीमोटी फिल्मी कलाकार है. पर शुक्र है यह नहीं पता कि वह किसी का बौडी डबल करती है. नहीं तो उसे वेश्या ही समझ लेते. खैर, दिमाग से यह कीड़ा बाहर फेंक वह कालेज जाने की तैयारी करने लगी. बस पकड़ने के लिए स्टौप पर खड़ी थी तो देखा कि 2-4 आवारा कुत्ते एक कुतिया के पीछे लार टपकाते उसे झपटने जा रहे थे. वह कुतिया जान बचा उस के पैरों के आसपास चक्कर लगाने लगी. तभी, एक पत्थर उठा उस ने कुत्तों को भगाया. कुतिया भाग कर एक नाले में छिप गई.

बाहर आवारा कुत्ते उस कुतिया के आने का इंतजार करने लगे. किसी ने भी कुत्तों को वहां से नहीं भगाया. शायद मन ही मन इस कुतिया का तमाशा देखने की चाह रही होगी भीड़ की. तभी उस की बस आ गई और वह अपना बसपास दिखा सीट खाली होने का इंतजार करने लगी. सीट का इंतजार करतेकरते आत्ममंथन भी करने लगी. शूटिंग के समय तो वह भी इस निरीह कुतिया की तरह लार टपकाते साथी सदस्यों से इसी तरह बचती फिरती रहती है क्योंकि उन की निगाह में ऐसे सीन देने वाली युवती का अपना कोई चरित्र नहीं होता. तभी तो सीन फिल्माते समय जानबूझ कर एक ही सीन को बीसियों बार रीटेक करवाया जाता है.

कभी ऐंगल की बात तो कभी कपड़े ज्यादा नहीं उघड़े, क्याक्या बहाने नहीं बनाए जाते उस की बेचारगी का फायदा उठाने के लिए. इसी कारण वह भी हर सीन के बाद चुपचाप एक कोने में बैठ जाती है. एक बार उस ने छूट दे दी तो गरीब की जोरु बन रह जाएगी. उस की अपनी बेबसी, शूटिंग पर उपस्थित लोगों की कुटिल मुसकान भेदती निगाहें व अश्लील इशारे उस के अंतर्मन को क्षतविक्षत कर देते हैं पर वह भी क्या करे. बड़ेबड़े सपने ले कर वह चंडीगढ़ आई थी. उच्च शिक्षा के साथसाथ मौडलिंग व फिल्मों में काम करने के लिए. सब कहते थे कि वह फिल्मी सितारा लगती है, एकदम परफैक्ट फिगर है, कोई भी डायरैक्टर उसे देखते ही फिल्मों में हीरोईन साइन कर लेगा.

उच्च शिक्षा का सपना ले कर चंडीगढ़ आई नेहा की मुंबई तो अकेले जाने की व रहने की हिम्मत न पड़ी. पर यहां पढ़ाई के दौरान ही चंडीगढ़ में थोड़ी जानपहचान के बलबूते पर उसे मौडलिंग के काम मिलने लगे थे. मांबाप के मना करने के बावजूद वह इस आग के दरिया में कूद पड़ी. मौडलिंग से संपर्क बने तो इक्कादुक्का टीवी सीरियल में काम भी मिल गया. उसे इतनी जल्दी मिलती शोहरत कुछ नामीगिरामी कलाकारों को रास नहीं आई. पालीवुड में उन को नेहा का आना खतरे की घंटी लगने लगा. उन्होंने उस की छोटीछोटी कमियों को बढ़ाचढ़ा कर दिखा उस के यहां पैर ही न टिकने दिए. मांबाप ने भी सहारा देने की जगह खरीखोटी सुना दी. वह तो भला हो उस के पत्रकार मित्र साहिल का जिस ने उसे फिल्मों में ओलिशा का बौडी डबल बनने की सलाह दी और फिल्मों में काम दिलवा उसे आर्थिक व मानसिक संकट से उबार लिया. अब तो यही काम उस की रोजीरोटी है.

आज कोई रिश्तेदार उस का अपना नहीं, सभी ने उस से मुंह मोड़ लिया है. इसी वजह से पढ़ाई दोबारा शुरू कर वह कुछ बनना चाहती है ताकि इस से छुटकारा पा सके. पर क्या करे, कहां जाए, मांबाप तो स्वीकारने से रहे. ‘नहीं, नहीं, ऐसे बेचारगी वाले नैगेटिव विचारों को वह फन नहीं उठाने देगी. यही कमजोरी औरों को फायदा उठाने का मौका देगी और वह उस बसस्टौप वाली निरीह कुतिया की तरह किसी के पैरों पर गिड़गिड़ाएगी नहीं.’ इस सोच ने उसे संबल प्रदान किया. वर्तमान से रूबरू होते ही वह समझ गई कि आज भीड़ से भरी बस में उसे सीट मिलने से तो रही, इसलिए यूनिवर्सिटी तक खड़े हो कर ही जाना पड़ेगा. चलो, केवल 20 मिनट का ही सफर रह गया है, वह भी बस आराम से कट जाए. वैसे भी गली के आवारा कुत्तों से ज्यादा अश्लील व खूंखार तो कई बार सहयात्री होते हैं. सीट मिली तो विचारों की तंद्रा भी टूटी और नेहा को चैन भी आया क्योंकि आज नकारात्मक विचारों की कड़ी टूट ही नहीं रही थी.

बगल की सीट खाली हुई तो लाठी पकड़े बूढ़े ने जानबूझ कर उस पर अपना भार डाल दिया. वह किनारे खिसकी तो वृद्ध व्यक्ति ने हद ही कर दी. बैठतेबैठते उस के हिप्स पर च्यूंटी काट दी. उस ने घूर कर देखा तो खींसे निपोर सौरीसौरी बोलने लगा कि गलती से हाथ लग गया था.

जैसे ही बस रुकी, सीट बदल ली. पर यह तो दिन की शुरुआत थी. तभी अचानक बस रुकी और पीछे खड़ा व्यक्ति उस पर झूल पड़ा. वह झटके से उस वृद्ध के ऊपर लुढ़क गई. उस ने खड़े हो कर बाकी सफर करना तय करना ही सही समझा. और अपनी सीट से खड़ी हो आगे दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी. अभी वह खड़ी ही हुई थी कि तभी उसे पीछे कुछ गड़ता सा महसूस हुआ. पीछे खड़ा 17-18 साल का भारी सा लड़का उस के साथ सट कर गंदी हरकत करने लगा. उस ने उसे धकियाते हुए लताड़ा तो खींसें निपोरते उस ने नेहा पर कटाक्ष किया, ‘‘इतनी ही नाजुक है तो अपनी सवारी पर आया कर.’’

वह मुंह फेर खड़ी हो गई. कौन इन कुत्तों के मुंह लगे. इन कुत्तों का शिकार नहीं बनना उसे. उस के जवाब न देने के कारण उस लड़के की हिम्मत बढ़ गई. वह कभी पीठ पर हाथ फेरता तो कभी उस के हिप्स पर. उस की घुटन देख एक बुजुर्ग सरदारजी ने उसे अपनी सीट सौंप दी. वैसे तो उस का स्टौप आने ही वाला था फिर भी उस ने बैठने में ही भलाई समझी और सिमट कर अपनी सीट पर बैठ गई. पता नहीं, उस की इस बात को उस लड़के ने कैसे लिया क्योंकि स्टौप आने पर जैसे ही वह उठी तो उस लड़के ने उस के रास्ते में पैर अड़ा दिया. वह गिरतेगिरते बची. इस हरकत से जब उस बुजुर्ग सरदारजी ने उस लड़के को टोका तो उस ने भरी बस में उन्हें 2 मुक्के मार, पीछे सीट पर धकेल दिया. उन्हें बचाने के लिए कोई न उठा. ड्राइवर, कंडक्टर व सारी सवारियां मूकदर्शक बन तमाशा देखती रहीं जिस से उस लड़के की हिम्मत और बढ़ गई.

इस सब तमाशे की वजह से नेहा अपने स्टौप पर उतर ही नहीं पाई. लगा कौरवों की सभा में फंस कर रह गई है. तभी लालबत्ती पर बस रुकी. नेहा ने वहीं उतरने में भलाई समझी. पर यहां भी मुसीबत ही हाथ लगी. सोचने और कूदने में समय लग गया और उस के कूदतेकूदते ही बस चल पड़ी और वह सीधा सड़क पर गिरी. ज्यादा चोट नहीं लगी. हां, कुछ गाड़ी वालों ने गालियां जरूर सुना दीं. तभी, जैसे ही वह खड़ी हुई तो 2 मजबूत हाथों ने उसे घुमा कर अपनी तरफ कर लिया और फुटपाथ की तरफ खींच कर ले आए.

जैसे ही उस अनाम व्यक्ति को धन्यवाद करने के लिए उस ने उस की तरफ देखा तो उस की चीख गले में ही घुट कर रह गई. यह तो वही दुष्ट था और भरी सड़क से किनारे ला उस की इज्जत पर हमला करना चाहता था. चलतीदौड़ती सड़क को देख नेहा ने हिम्मत जुटाई और 2 करारे थप्पड़ उस दुष्ट के मुंह पर जड़ दिए.

नेहा ने कड़क लहजे में पूछा, ‘‘क्या बदतमीजी है, तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’

‘‘ओ मेरी रानी, तुम्हें तो पा कर ही रहूंगा. पहले मेरे इन गालों पर चुंबन दे, इन्हें सहलाओ, तभी तुम्हें जाने दूंगा. कब तक तड़पाओगी, मेरी जान.’’ वह वहशी ठहाका मार कर हंसा और उसे अपनी तरफ खींचने लगा. नेहा समझ गई कि कोई बड़ी मुसीबत आन पड़ी है, अपनी रक्षा स्वयं ही करनी होगी. सो, उस ने कस कर पकड़े अपने बैग में से अपने सुरक्षा कवच लालमिर्च पाउडर और मोबाइल को निकालने के लिए जद्दोजेहद शुरू की. आज तक कभी जरूरत नहीं पड़ी थी मिर्चपाउडर की. इस मुसीबत में हड़बड़ाहट में न तो उसे मिर्चपाउडर मिल रहा था और न ही मोबाइल. बेबस हो उस ने बढ़ती भीड़ की तरफ झांका. कई लोग उस की सहायता करने के बजाय अपनेअपने मोबाइल से इस सारे कांड का वीडियो बना रहे थे. उस ने सहायता के लिए गुहार लगाई. इक्कादुक्का लोग उस की सहायता को आगे बढ़े भी तो भीड़ ने उन के कदम थाम लिए, यह कह कर कि ‘देखते नहीं, शूटिंग चल रही है. कल भी यहीं एक शूटिंग चल रही थी, किसी ने ऐसे ही हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो बाउंसरों ने उस की खासी पिटाई कर दी थी.’ सारी भीड़ शूटिंग का मजा लेने के लिए घेरा बना खड़ी हो गई. यह सब सुनदेख नेहा का दिमाग पलभर के लिए सुन्न हो गया. क्या करे? वहां कोई भी मौके की नजाकत नहीं समझ रहा था. लगता था सभी बहती गंगा में हाथ धोना चाहते थे.

वैसे भी आजकल तो सजा बलात्कारी नहीं, बलात्कार होने वाली नारी को भुगतनी पड़ती है. लोगबाग तो बलात्कारी, आतंकवादी और हत्यारों के साथ सैल्फी ले हर्षित महसूस करते हैं. नहीं, वह दूसरी ‘निर्भया’ नहीं बनेगी. निर्बल नहीं, निर्भय होना है उसे, इस सोच के साथ जैसे ही वह अपने बैग में हाथ डाल अपने ‘हथियार’ निकालने लगी तो उस शख्स ने मौका पाते ही उसे जमीन पर गिरा दिया. स्वयं नेहा की छाती पर बैठ गया और बोला, ‘‘करती है, किस या नहीं. मैं चंडीगढ़ का किसर बौय हूं. देखता हूं तुम मुझे कैसे इनकार करती हो.’’

उस की इस हरकत पर भीड़ ने तालियां बजानी शुरू कर दीं. एक ने फिकरा कसा, ‘‘क्या बढि़या डायलौग है. पिक्चर सुपरहिट है, मेरे भाई. जारी रखो. बिलकुल असली सा मजा आ रहा है.’’

एक के बाद दूसरी आवाजें आ रही थीं. तब तक वह लड़का अपने होंठों को उस के होंठों तक ले आया. नेहा ने हिम्मत जुटा उसे परे धकेला. जैसे ही वह पीछे हटा तो दूर गिरा नेहा का बैग उस लड़के के पैरों से लग कर नेहा के हाथों पर आ गिरा. आननफानन नेहा ने लालमिर्च का पैकेट ढूंढ़ने की कोशिश की. उस के हाथ में पैकेट आता, उस से पहले ही वह लड़का अपनी जींस की जिप खोल उस की तरफ बढ़ा और…

भीड़ इस सब का पूरा लुत्फ उठा रही थी. लोगों के हाथ मोबाइल पर और आंखें उन दोनों पर टिकी थीं ताकि कोई भी पल ‘मिस’ न हो जाए.

भीड़ में से कोई चिल्लाया, ‘अजी, वाह, यह तो ब्लू फिल्म की शूटिंग चल रही है.’ नेहा समझ गई वासना से लिप्त भीड़ उस की कोई सहायता नहीं करेगी. क्या पता 1-2 लोग और इस मौके का फायदा उठाने को आ जाएं. उसे अपनी रक्षा खुद करनी होगी. हिम्मत जुटा उस ने हाथ में आए मिर्च के पैकेट को बाहर निकाला और उस दुष्ट की आंखों में झोंक दिया.

जब तक वह आंखें मलता तब तक नेहा ने अपने मिर्च वाले हाथों से उस का ‘वही’ अंग जिप में से निकाल कर दांतों में भींच लिया. खून का फौआरा फूट पड़ा. लड़का दर्द से बिलबिला, सड़क पर लोटने लगा.

सारी भीड़ हक्कीबक्की रह गई. वीरांगना के समान नेहा उठ खड़ी हुई. कपड़े झाड़ उस ने मिर्च का पैकेट हाथ में ले नपुंसक भीड़ पर छिड़क दिया, ‘‘लो, अब खींचों फोटो अपना व अपने इस साथी दरिंदे का.’’ और पिच्च से भीड़ पर थूक दिया. वह आगे बढ़ गई. भीड़ ने उस के लिए खुद ही रास्ता बना दिया.

लेखिका – शोभा बंसल

Emotional Story : खानाबदोश – माया और राजेश क्यों बेघर हो गए

Emotional Story : मेरा तन और मन जलता है और जलता रहेगा. कब तक जलेगा, यह मैं नहीं बतला सकती हूं. जब भी मैं उस छोटे से, खूबसूरत बंगले के सामने से निकलती हूं, ऊपर से नीचे तक सुलग जाती हूं क्योंकि वह खूबसूरत छोटा सा बंगला मेरा है. जो बंगले के बाहर खड़ा है उस का वह बंगला है और जो लोग अंदर हैं व बिना अधिकार के रह रहे हैं, उन का नहीं. मेरी आंखों में खून उतर जाता है. बंगले के बाहर लौन के किनारे लगे फूलों के पौधे मुझे पहचानते हैं क्योंकि मैं ने ही उन्हें लगाया था बहुत प्यार से. बच्चों की तरह पाला और पोसा था. अगर इन फूलों की जबान होती तो ये पूछते कि वे गोरेगोरे हाथ अब कहां हैं, जिन्होंने हमें जिंदगी दी थी. बेचारे अब मेरे स्पर्श को तरस रहे होंगे. धीरेधीरे बोझिल कदमों से खून के आंसू बहाती मैं आगे बढ़ गई अपने किराए के मुरझाए से फ्लैट की ओर.

रास्ते में उमेशजी मिल गए, हमारे किराएदार, ‘‘कहिए, मायाजी, क्या हालचाल हैं?’’

‘‘आप हालचाल पूछ रहे हैं उमेशजी, अगर किराएनामे के अनुसार आप घर खाली कर देते तो मेरा हालचाल पूछ सकते थे. आप तो अब मकानमालिक बन बैठे हैं और हम लोग खानाबदोश हो कर रह गए हैं? क्या आप के लिए लिखापढ़ी, कानून वगैरा का कोई महत्त्व नहीं है? आप जैसे लोगों को मैं सिर्फ गद्दारों की श्रेणी में रख सकती हूं.’’

‘‘आप बहुत नाराज हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि जैसे ही दूसरा घर मिलेगा, हम चले जाएंगे.’’

‘‘एक बात पूछूं उमेशजी, तारीखें आप किस तरकीब से बढ़वाते रहते हैं, क्याक्या हथकंडे इस्तेमाल करते हैं, मैं यह जानना चाहती हूं?’’

‘‘छोडि़ए मायाजी, आप नाराज हैं इसीलिए इस तरह की बातें कर रही हैं. मैं आप की परेशानी समझता हूं, पर मेरी अपनी भी परेशानियां हैं. बिना दूसरे घर के  इंतजाम हुए मैं कहां चला जाऊं?’’

‘‘एक तरकीब मैं बतलाती हूं उमेशजी, जिस फ्लैट में हम रह रहे हैं उस में आप आ जाइए और हम अपने बंगले में आ जाएं. सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी.’’

‘‘मैं इस विषय पर सोचूंगा मायाजी. आप बिलकुल परेशान न हों,’’ कह कर उमेशजी आगे बढ़ गए. मन ही मन मैं ने उन को वे सब गालियां दे डालीं, जो बचपन से अब तक सीखी और सुनी थीं.

खाना खाने के बाद मैं ने पति से कहा, ‘‘कुछ तो करिए राजेश, वरना मैं पागल हो जाऊंगी.’’ और मैं रोने लगी.

‘‘मैं क्या करूं, तारीखों पर तारीखें पड़ती रहती हैं?’’

‘‘6 साल से तारीखें पड़ती चली आ रही हैं, पर मैं पूछती हूं क्यों? किरायानामा लिखा गया था जिस में 11 महीने के लिए बंगला किराए पर दिया गया था. नियम के मुताबिक, उन लोगों को समय पूरा हो जाने पर बंगला खाली कर देना चाहिए था.’’

‘‘पर उन लोगों ने खाली नहीं किया. मैं ने नोटिस दिया. रिमाइंडर दिया, कोर्ट में बेदखली की अपील की. अब मैं क्या करूं? वे लोग किसी तरह तारीखें आगे डलवाते रहते हैं और मुकदमा बिना फैसले के चालू रहता है और कब तक चालू रहेगा, यह भी मैं नहीं कह सकता.’’

‘‘राजेश, ऐसा मत कहिए. आप जानते हैं कि बंगले का नक्शा मैं ने बनाया था. क्या चीज मुझे कहां चाहिए, उसी हिसाब से वह बना था. उस बंगले को बनवाने में आप को फंड से कर्ज लेना पड़ा. 40 लाख रुपए मैं ने दिए, जो मरते समय मां मेरे नाम कर गई थी. आप सीमेंट का फर्श लगवा रहे थे. मैं ने अपने जेवर बेच कर रुपया दिया ताकि मारबल का फर्श बन सके. कोई रिश्वत का रुपया तो हमारे पास था नहीं, इसलिए जेवर भी बेच दिए. क्या इसलिए कि हमारे बंगले में कोई दूसरा आ कर बस जाए? राजेश, मुझे मेरा बंगला दिलवा दीजिए.’’

‘‘बंगला हमारा है और हमें जरूर मिलेगा.’’

‘‘पर कब? हां, एक तरकीब है, सुनना चाहेंगे?’’

‘‘जरूर माया, तुम्हारी हर तरकीब सुनूंगा. अब तक मैं हरेक की इस बाबत कितनी ही तरीकीबें सुनता आया हूं.’’

‘‘तो सुनिए, क्यों न हम लोग कुछ लोगों को साथ ले कर अपने बंगले में दाखिल हो जाएं, क्योंकि घर तो हमारा ही है न.’’

‘‘ऐसा कर तो सकते हैं लेकिन किराएदार के साथ मारपीट भी हो सकती है और इस तरह पुलिस का केस भी बन सकता है और फिर मेरे ऊपर एक नया केस चालू हो जाएगा. मैं इस झगड़े में पड़ने को बिलकुल तैयार नहीं हूं.’’

‘‘क्या इस तरह के केसों से निबटने की कोई तरकीब नहीं है? यह सिर्फ हमारा ही झगड़ा तो है नहीं, हजारों लोगों का है.’’

‘‘होता यह है कि किराएदार मुकदमे के लिए तारीखों पर तारीखें पड़वाता रहता है, जिस से अंतिम फैसले में जितनी देर हो सके उतना ही अच्छा है और अगर न्यायाधीश का निर्णय उस के विरुद्घ हुआ तो वह उच्च अदालत में अपील कर देता है जिस से इस प्रकार और समय निकलता जाता है और उच्च अदालतों में न्यायाधीशों की और भी कमी है. हजारों केस वर्षों पड़े रहते हैं. तुम ने टीवी पर देखा नहीं, इस के चलते भारत के मुख्य न्यायाधीश उस दिन एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी के सामने भावुक हो गए.

‘‘कुछ तो उपाय होना ही चाहिए, यह सरासर अन्याय है.’’

‘‘उपाय जरूर है. ऐसा फैसला सरसरी तौर पर होना चाहिए. ऐसे मुकदमों के लिए अलग अदालतें बनाई जाएं और अलग न्यायाधीश हों, जो यही काम करें और अगर अंतिम निर्णय किराएदार के विरुद्घ हो तो दंडनीय किराया देना अनिवार्य हो. इस से फायदा यह होगा कि निर्णय को टालने की कोशिश बंद हो जाएगी और दंडनीय किराए का डर बना रहेगा तो किराएदार मकान स्वयं ही खाली कर देगा और इस तरह से एक बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा.’’

‘‘आप समस्याओं का समाधान निकालने में बहुत तेज हैं, पर कुछ करते क्यों नहीं हो?’’

‘‘माया, क्या तुम समझती हो मुझे अपना घर नहीं चाहिए.’’

‘‘अब तो मदन भी पूछने लगा है कि हम अपने बंगले में कब जाएंगे, यहां तो खेलने की जगह भी नहीं है.’’

सारी रात नींद नहीं आई. सवेरे दूध उबाल कर रखा तो उस में मक्खी गिर गई. सारा दूध फेंकना पड़ा. दिमाग बिलकुल खराब हो गया. मैं ने राजेश से कहा, ‘‘आज दूध नहीं मिलेगा क्योंकि उस में मक्खी गिर गई थी.’’

‘‘हम ने अपने घर में जाली लगवाई थी.’’

‘‘यहां तो है नहीं, फिर मैं क्या करूं?’’

‘‘कोई बात नहीं, आज दूध नहीं पिएंगे,’’ उन्होंने हंस कर कहा.

‘‘मैं ने आप से कहा था कि मैं मुंबई नहीं जाऊंगी, फिर आप ने मुझे चलने को क्यों मजबूर किया? आप को 3 साल के लिए ही तो मुंबई भेजा गया था. क्या

3 साल अकेले नहीं रह सकते थे?’’

‘‘नहीं माया, नहीं रह सकता था. मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी रहने को तैयार नहीं हूं.’’

‘‘नतीजा देख लिया, हम बेघरबार हो गए. मैं 3 साल अपने घर में रहती, आप कभीकभी आते रहते, यही बहुत होता. ठीक है, अगर हम मुंबई चले भी गए तो आप ने बंगला किराए पर क्यों दे दिया?’’

‘‘सोचा था, 11 महीने का किराया मिल जाएगा और हम अपने कमरे में एयरकंडीशनर लगवा लेंगे. और आखिर में तुम भी तो तैयार हो गई थी.’’

‘‘आप की हर बात मानने का ही तो नतीजा भुगत रही हूं.’’

‘‘माया, अब बंद कर दो इन बातों को, थोड़ा धैर्य और रखो, बंगला तुम्हें अवश्य मिल जाएगा.’’

‘‘पर कब? अब तो 6 साल से भी ज्यादा समय हो चुका है.’’

सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मुंबई मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा. भीड़ इतनी कि सड़क पर चलने से ही चक्कर आने लगे. सड़क पार करते समय तो मेरी सांस ही रुक जाती थी कि अगर मैं सड़क के बीच में हुई और कारों की लाइन शुरू हो गई तब? बसों के लिए लंबीलंबी लाइनों में खड़े हुए थके शरीर और मुरझाए चेहरों वाले लोग. ऊंचीऊंची इमारतें और बड़ेबड़े होटल, जहां जा कर एक साधारण हैसियत का आदमी एक प्याला चाय का भी नहीं पी सकता. मुंबई सिर्फ बड़ेबड़े सेठों और धनिकों के लिए है. वहां की रंगीन रातें उन्हीं लोगों के लिए हैं. दूरदूर से रोजीरोटी के लिए आए लोग तो जिंदा रहते हैं कीड़ेमकोड़ों की तरह. एक दिन सड़क के किनारे एक

आदमी को पड़े हुए देखा, पांव वहीं रुक गए. इसे कुछ हो गया है, ‘इस के मुंह पर पानी का छींटा डालना चाहिए, शायद गरमी के कारण बेहोश हो गया है.’ मेरे पति और उन के दोस्त ने मुझे खींच लिया, ‘पड़ा रहने दीजिए, भाभीजी, अगर पुलिस आ गई और हम लोग खड़े मिले तो दुनियाभर के सवालों का जवाब देना होगा. यह मत भूलिए कि यह मुंबई है.’ ‘क्या मुंबई के लोगों की इंसानियत मर चुकी है? क्या यहां जज्बातों की कोई कीमत नहीं है? एक लड़की बस में चढ़ने जा रही थी. एक पांव बस के पायदान पर था और दूसरा हवा में, तभी बस चल दी और वह लड़की धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी. कोई भीड़ जमा नहीं हुई, लोग वैसे ही आगेपीछे बढ़ते रहे. रुक कर मैं ने तो सहारा दे कर उसे खड़ा कर दिया क्योंकि मैं मुंबई की रहने वाली नहीं हूं. 2 बसें भरी हुई निकल चुकी थीं. उस दिन सब्जियों और राशन के थैले लटकाए मैं बेहद थक चुकी थी.

मुझे अपना इलाहाबाद याद आ रहा था और वह अपना छोटा सा बंगला. यह मुंबई अच्छेखासे लोगों का सत्यानाश कर देता है. इसी बीच बारिश शुरू हो गई. भीग जाने से सब्जियों के थैले और भारी हो गए. मैं घर से छतरी ले कर भी नहीं चली थी. मैं पास के ही बंगले के मोटरगैरेज में जा कर खड़ी हो गई. सब्जियों और राशन का थैला एक ओर टिका दिया, फिर बालों का जूड़ा खोल कर बालों से पानी निचोड़ने लगी. तभी आवाज सुनी, ‘माया, तुम?’ कार के पास खड़ा पुरुष मेरी ओर बढ़ा, ‘इतने सालों के बाद देखा है, बिलकुल वैसी ही लगती हो, उतनी ही हसीन.’

‘सुधाकर तुम? बदल गए हो, पहले जैसे बिलकुल नहीं लगते हो.’

‘माया, बहुत सोचा था कि तुम्हारे पास आ कर सबकुछ बतला दूं, पर तुम और तुम्हारे डैडी का सामना करने का साहस नहीं जुटा पाया. तुम्हें किस तरह बतलाऊं कि वह सब कैसे हो गया. मैं इतना मजबूर कर दिया गया था कि कुछ भी मेरे वश में नहीं रहा.’

‘क्या मैं ने तुम से कुछ कहा है, जो सफाई दे रहे हो? याचक बन कर तुम्हीं ने मेरे डैडी के सामने हाथ फैलाया था. कहां है वह तुम्हारा बूढ़ा लालची बाप जिस ने मेरे डैडी से आ कर कहा था, पुरानी दोस्ती के नाते समझा रहा हूं, मित्र, नारेबाजी की बात जाने दो, गरीब और अमीर का फर्क हमेशा रहेगा. मैं अपने बेवकूफ लड़के को समझा लूंगा.’

‘उन की मृत्यु हो चुकी है. मरते समय वे करीबकरीब दिवालिया हो चुके थे और उन के ऊपर इतना कर्ज था कि मेरे पास उन की बात को मानने के सिवा दूसरा उपाय नहीं था. मैं ने सेठ करोड़ीमल की लड़की से शादी कर ली. मैं खून के आंसू रोया हूं, माया.’

‘शादी मत कहो. यह कहो कि तुम बिके  थे, सुधाकर,’ कह कर मैं हंसने लगी.

‘छोड़ो इन बातों को, तुम लोग मुंबई घूमने आए हो या काम से?’

‘मेरे पति को कुछ काम है, कुछ समय तक यहीं रहना होगा.’

‘फ्लैट वगैरा मिल गया है या नहीं? मेरा एक फ्लैट खाली है, जो मैं अपने मेहमानों के लिए खाली रखता हूं, वह मैं तुम्हें दे सकता हूं. घूमनेफिरने के लिए कार भी मिल जाएगी. मुझे कुछ मेहमानदारी करने का ही मौका दो, माया.’

‘फ्लैट के लिए कितनी पगड़ी लोगे, कितना किराया लोगे? आखिर हो तो व्यवसायी न? क्या तुम्हारी टैक्सियां भी चलती हैं?’

‘नहीं, माया, ऐसा मत कहो.’

‘फिर इतना सब मुफ्त में क्यों दोगे?’

‘मेरा एक ख्वाब था, जिसे मैं भूला नहीं हूं,’ अपना चेहरा मेरे करीब ला कर उस ने कहा, ‘तुम्हें बांहों में लेने का ख्वाब.’

‘ओह, बकवास बंद करो. अच्छा हुआ, तुम्हारे जैसे लालची और व्यभिचारी आदमी से मेरी शादी नहीं हुई.’ तभी एक बेहद काली और मोटी औरत हमारी ओर आती दिखाई दी. सुधाकर ने कहा, ‘वह मेरी पत्नी है.’

‘बहुत ठोस माल है. तुम्हारी कीमत कम नहीं लगी. जायदाद कर ठीक से देते हो या नहीं?’ कह कर हंसते हुए मैं ने अपने थैले उठा लिए.

‘देखो, माया, पानी बरस रहा है, मैं कार से तुम्हें छोड़ आता हूं.’

‘रहने दो, मैं चली जाऊंगी,’ कह कर मैं बाहर निकल आई.

अचानक मेरे पति की आवाज मुझे वर्तमान में घसीट लाई, ‘‘क्या नींद नहीं आ रही है? तुम अपने बंगले को ले कर बहुत परेशान रहने लगी हो?’’

‘‘परेशान होने की ही बात है. मेरे बंगले में कोई दूसरा रहता है और इस फ्लैट में मेरा दम घुटता है, पर इस समय मैं मुंबई की बाबत सोच रही थी.’’

‘‘सुधाकर के बारे में?’’

‘‘सुधाकर के बारे में सोचने को कुछ भी नहीं है. मेरी शादी के लिए डैडी के पास जितने भी रिश्ते आए थे, उन में सुधाकर ही सब से बेकार का था.’’

‘‘वैसे भी एक पतिव्रता स्त्री को दूसरे पुरुष की बाबत नहीं सोचना चाहिए. बुजुर्गों ने कहा है कि सपने में भी नहीं.’’

‘‘कल आप घर देर से सोए थे, लगता है पूरी रात टीवी पर फिल्म देखी है.’’

हम दोनों इस पर खूब हंसे. कुछ देर के लिए अपना घर भी भूल गए. पर मैं जानती हूं कि कल सवेरे ही बंगले को ले कर फिर रोना शुरू हो जाएगा.

Hindi Kahani : रेतीला सच – अनंत की जिंदगी में प्यार की बूंदें क्या कभी बरसीं

Hindi Kahani : ‘‘तुम्हें वह पसंद तो है न?’’ मैं ने पूछा तो मेरे भाई अनंत के चेहरे पर लजीली सी मुसकान तैर गई. मैं ने देखा उस की आंखों में सपने उमड़ रहे थे. कौन कहता है कि सपने उम्र के मुहताज होते हैं. दिनरात सतरंगी बादलों पर पैर रख कर तैरते किसी किशोर की आंखों की सी उस की आंखें कहीं किसी और ही दुनिया की सैर कर रही थीं. मैं ने सुकून महसूस किया, क्योंकि शिखा के जाने के बाद पहली बार अनंत को इस तरह मुसकराते हुए देख रही थी. शिखा अनंत की पत्नी थी. दोनों की प्यारी सी गृहस्थी आराम से चल रही थी कि एक दर्दनाक एहसास दे कर यह साथ छूट गया. शिखा 5 साल पहले अनंत पर उदासी का ऐसा साया छोड़ गई कि उस के बाद से अनंत मानो मुसकराना ही भूल गया.

पेट में लगातार होने वाले हलकेहलके दर्द को शिखा ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. जब दर्द ज्यादा बढ़ने लगा तो जांच के बाद पित्त की थैली में पत्थर पाया गया जो काफी लंबे समय से हलकाहलका दर्द देते रहने के बाद अब पैंक्रियाज को कैंसरग्रस्त कर चुका था. इलाज शुरू हुआ पर 3 महीने के अंदर ही शिखा पति अनंत और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चल बसी. शिखा के गुजरने के बाद मैं जब मायके गई तो कमरों की दीवारें हों या आंगन का खुला आसमान, अपनीअपनी भाषा में बस यही दोहराते हुए से लग रहे थे कि शिखा के साथ ही अब उस घर की रौनक भी हमेशा के लिए चली गई. अनंत और चारों बच्चों की आंखों से पलभर भी मायूसी जुदा नहीं होती थी. सभी एकदूसरे की ओर भीगी आंखों से मूक ताकते रहते. उन सब की हालत देख कर मन तड़प कर रह जाता.

6 महीने बाद रक्षाबंधन पर जब मैं दोबारा वहां गई तो घर का माहौल काफी अलग था. समय के साथ कितनाकुछ बदल जाता है. दोनों बहनें आकृति और सुकृति सुबहसुबह आईं और भाइयों को राखी बांध अपनाअपना नेग ले कर शाम को वापस चली गईं, क्योंकि उन के बच्चों के एग्जाम्स चल रहे थे. दोनों बेटे अनूप और मधूप तथा बहुएं झरना और नेहा भी अपनीअपनी दुनिया में बिजी नजर आईं. सुबह 8 बजे के बाद घर बिलकुल सूना हो जाता. शाम 5-6 बजे के बाद ही बेटेबहुएं वापस आतीं. रात का खाना एकदिन तो सब ने साथ में खाया शायद मेरी वजह से, पर उस के बाद 8 बजे ही खाने के लिए एकदो बार मुझ से पूछ कर दोनों बहुओं और बेटों ने यह कह कर कि सुबहसुबह स्कूल, औफिस के लिए निकलना पड़ता है, खाना खा लिया. 9 बजतेबजते दोनों बेटे अपनीअपनी बीवियों के साथ अपनेअपने कमरों में बंद हो जाते. इतवार के दिन दोनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ घूमने निकल जाते.

अनंत के कहने पर मैं एक हफ्ते के लिए वहां रुक गई थी. इस एक ही हफ्ते में उन बच्चों की दिनचर्या से मेरे सामने यह साफ हो गया कि मौजमस्ती को ही वे अपना जीवनमंत्र मानते थे. अनंत ने औफिस से हफ्तेभर की छुट्टी ले रखी थी. एक दिन वह किसी काम से 2 घंटे के लिए घर से बाहर गया. मैं घर में अकेली रह गई, तो उतने बड़े घरआंगन का सूनापन भांयभांय कर चीखता अनंत के जीवन में अंधेरे एकाकीपन को मेरे सामने बयान करने लगा. पुराने ढंग के हमारे पुश्तैनी मकान को भैयाभाभी ने कितने पैसे और मेहनत से आलीशान बंगले का रूप दे दिया था पर हर तरह की सुखसुविधाओं वाले भरेपूरे घर में आज घर का मालिक ही अवांछित, तिरस्कृत सा हो गया था. अनंत को रात में देर से खाने की आदत थी. हम दोनों भाईबहन अकेले बैठे बातें करते रहते.

10 बजे मैं खाना निकालने किचन में जाती और वापस आ कर देखती कि अनंत सूनी आंखों से दीवारों को ताक रहा है. खुद से 11 साल छोटे अपने इकलौते भाई की ऐसी दशा देख कर मेरा मन तड़प उठता. मैं मन को समझाती कि शायद संसार का रिवाज ही यही है. हम सब में से ज्यादातर लोग जिन अपनों के लिए अपने जीवन की सारी ऊर्जा खर्च कर खुशियों के इंतजाम में लगे रहते हैं वही एक दिन इतने संवेदनहीन हो जाते हैं कि उन्हें हमारी वेदनाओं, भावनाओं का कोई एहसास तक नहीं होता.

बड़ा बेटा मोटरपार्ट्स की एक बड़ी फर्म में मैनेजर था और छोटा दुलारा बेटा सरकारी स्कूल में टीचर. दोनों बहुएं एक कंप्यूटर सैंटर में पढ़ाने जाती थीं. पर चारों में से कोई भी परिवार के लिए एक पैसा नहीं निकालता था. पूरे घर का खर्च अनंत ही चलाता था. भाईभाभियों के व्यवहार की वजह से ही शायद घर की दोनों बेटियां भी ज्यादा आनाजाना नहीं रखती थीं. सब अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. अगर कोई अलगथलग और अकेला पड़ गया था तो वह था अनंत. मैं ने मन में यह निर्णय कर लिया कि अनंत को इस तरह अकेले उपेक्षित जीवन नहीं जीने दूंगी जाते वक्त मैं ने उस से कहा कि शनिवाररविवार तो छुट्टी होती है, हमारे पास आ जाया करो. हम भी अकेले ही रहते हैं. तुम्हारा भी दिल लगा रहेगा और हमारा भी. वह पहले एकाध बार आया पर धीरेधीरे अब हर शनिवार को हमारे घर आ जाता, रविवार रुक कर सोम की सुबह यहीं से सीधा अपने औफिस चला जाता.

इधर कई सालों से बच्चों के विदेश में सैटल हो जाने के बाद हम दोनों भी अकेले हो गए थे. कभीकभार छुट्टी वाले दिन मंजरी कुछ देर के लिए चली आती तो थोड़े समय को घर मैं रौनक रहती. शनिवाररविवार मंजरी की छुट्टी होती थी. हम सब बातें करते, कभीकभार बाहर घूमने भी चले जाते. मंजरी मेरी बड़ी बेटी की सहेली है और यहीं एक कालेज में पढ़ाती है. हमारे लिए वह एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही है. देखने में खूबसूरत होने के साथसाथ उस के विचार भी सुलझे हुए हैं. वह तलाकशुदा है और अपने छोटे से जीवन में उस ने बहुत संघर्ष झेले हैं. आज से 15 साल पहले उस की उम्र तब 35 साल की रही होगी जब वह इस कालोनी में रहने आई थी. तब उस का तलाक का केस चल रहा था. उस की अरैंज मैरिज हुई थी. उस का पति बेहद घटिया इंसान था. वह मंजरी को परेशान करने के लिए 2-3 बार यहां भी आ चुका था.

मैं हर सुबह अपनी बालकनी से उसे काम पर जाते हुए और शाम को फिर घर वापस आते हुए देखती रहती थी. तब मेरे घर से 2 बिल्ंिडग छोड़ कर तीसरी में वह रहती थी. पर अपनी मेहनत के बल पर अब इसी कालोनी में उस ने अपना खुद का छोटा सा फ्लैट खरीद लिया है. पहले पैदल या औटो से कालेज आतीजाती थी, अब अपनी गाड़ी से आतीजाती है. 13 साल के मासूम से बच्चे को साथ ले कर आई थी. बच्चा आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर बेंगलुरु में जौब कर रहा है

अपने देश की लचर कानून व्यवस्था की पीड़ा झेलते हुए 20 साल बाद आखिरकार उसे उस पति से तलाक मिल गया पर पति को छोड़ने की वजह से उस के पिता और परिजन आज भी उस से नाराज हैं. शुरुआती दिनों में ही एक बार जब मंजरी कालेज के लिए घर से निकली तो उस का पति रास्ता रोक कर उस से झगड़ने लगा था. उस ने मंजरी की कलाई को कस कर पकड़ रखा था. लोग तमाशा देख रहे थे. अनंत ने उधर से गुजरते हुए जब यह सब देखा तो उस ने मंजरी के पति का विरोध करते हुए पुलिस को फोन पर घटना की जानकारी दी. तब गुस्से से अनंत की ओर देख कर उस के पति ने घटिया लहजे में कहा था, ‘तू क्यों बीच में टपक रहा है, तू क्या इस का यार लगता है?’ लज्जा, पीड़ा और अपमान से मंजरी का चेहरा लाल हो गया था.

अनंत और मंजरी की यही पहली मुलाकात थी. उस के काफी समय बाद दोनों फेसबुक फ्रैंड बने, पर मुलाकातें नहीं होती थीं. अब जब मिलनाजुलना होने लगा तो मैं ने महसूस किया कि दोनों एकदूसरे का साथ काफी पसंद करते हैं. एक दिन माहौल देख कर मैं ने अनंत से कहा कि दुनिया का यही दस्तूर है जब तक अपना स्वार्थ सिद्ध होता रहे, आदमी आदमी को पहचानता है. स्वार्थ खत्म तो रिश्ते खत्म. मौत से पहले अपनों की अवहेलना ही मार डालती है. तुम्हारे सामने अभी लंबा जीवन पड़ा हुआ है, ऐसे कैसे गुजारोगे. उधर, मंजरी भी अकेली है और मुझे लगता है कि वह तुम्हें पसंद भी करती है. तुम दोनों शादी कर लो, दोनों के जीवन में चटख रंग खिल उठेंगे. एकदूसरे के सहारे बन कर जीवन का सफर हंसतेमुसकराते पूरा हो जाएगा…कहो तो मैं मंजरी से बात करूं. थोड़ा ठहर कर अनंत बोला. ‘बच्चों से एक बार बात कर लेना उचित रहेगा.’ मैं अनंत को जाते हुए देखती रही.

एक दिन सुबह के 6 भी नहीं बजे थे कि फोन की घंटी लगातार बजने लगी. उस तरफ अनंत की बड़ी बेटी आकृति थी. न दुआ न सलाम, बडे़ ही गुस्से में वह बोली, ‘‘बुड्ढा शादी कर रहा है, तुम्हें पता है न?’’ मैं ने पूछा, ‘‘कौन बुड्ढा?’’

‘‘तुम्हारा भाई और कौन, ऐसे बाप को और क्या कहा जाए जिस ने यह भी नहीं सोचा कि उन के इस कारनामे के बाद मेरे बच्चों, खासकर, मेरी बेटियों से कौन शादी करेगा.’’ वह आक्रोशित स्वर में बोल रही थी. मेरा मन गुस्से से सुलग उठा, बोली, ‘‘जो इंसान जीवनभर तुम सब के सुख की खातिर मेहनत की चक्की में पिसपिस कर मिट्टी होता रहा, तुम सब का जीवन संवारने के लिए क्याक्या जतन करता रहा, आज जब तुम सब सैटल हो गए तो वह तुम्हारे लिए पिता न हो कर बुड्ढा हो गया? अपने एकाकीपन में घुटघुट कर वह आज हर पल मर रहा है पर तुम सब को तो इस का एहसास तक नहीं? तुम सब के लिए सोचता रहे तो बहुत बढि़या, एक बार अपने लिए सोच लिया तो गुनाहगार हो गया? बुड्ढे होने से जीवन खत्म हो जाता है? आदमीआदमी न हो कर कुछ और हो जाता है? क्या तुम सब कभी बुड्ढे नहीं होगे?’’

इतना सुनते ही व्यंगभरी चुभती आवाज में वह बोली, ‘‘मुझे तो लगा था कि तुम अपने भाई को समझाओगी, पर बुरा न मानना बूआ, अब तो मुझे लग रहा कि यह सब तुम्हारा ही कियाधरा है.’’ और उधर से फोन पटकने की आवाज आई. अनंत आज सुबह ही औफिस के किसी काम से 2-3 दिनों के लिए मुंबई निकल गया था.

मंजरी अपने घर में लेटी हुई टीवी देख रही थी. शाम को लगभग 6 बज रहे थे. बाहर हलका झुटपुटा सा हो रहा था. दरवाजे पर खटखट की आवाज सुन कर अलसाई हुई मंजरी ने दरवाजा खोला, सामने एक नवयुवक हाथ में रिवौल्वर लिए खड़ा नजर आया. उस ने चेहरे पर मास्क पहन रखा था, केवल उस की लाललाल आंखें ही नजर आ रही थीं. मंजरी घबरा कर दो कदम पीछे हो गई.

चेतावनीभरी आवाज मंजरी के कानों में पड़ी, ‘‘सुना है तुम डाक्टर अनंत कुमार सिंह से शादी करने की सोच रही हो? अगर ऐसा है तो इस सोच को यहीं विराम दे दो, तुम्हारी सेहत के लिए यही अच्छा होगा.’’ रिवौल्वर वाले हाथ को एक हलकी सी जुंबिश दे कर वह वापस मुड़ा और पलट कर बोला, ‘‘याद रखना.’’

मैं ने अपनी बालकनी से मधूप और 3 अन्य युवकों को मंजरी के घर की तरफ से निकल कर कालोनी से बाहर की तरफ जाते हुए देखा. यह इधर क्या करने आया था, सोच ही रही थी कि इतने में मंजरी का फोन आया, ‘‘अनंत के बच्चे अपने स्वार्थ के लिए इस हद तक गिर जाएंगे, मैं ने कभी सोचा भी न था.’’ इस सब के बाद मुझे लगा था मंजरी अब इस शादी से पीछे हट जाएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा. अनंत को फोन कर के मैं ने सबकुछ बता दिया था. मंजरी के साथ अपने बेटे की करतूत जान कर वह बेहद लज्जित था. तीसरे दिन आया तो मंजरी के सामने आंखें नहीं उठा पा रहा था, हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘तुम्हारी जिंदगी तो वैसे ही गमों से खाली न थी, मैं तुम्हारा दर्द और नहीं बढ़ा सकता. समय का मारा हूं जो ऐसे बच्चों का बाप हूं और क्या कहूं. तुम्हारे जीवन को बदरंग करने का मुझे कोई हक नहीं.’’

अनंत की आंखों में नमी थी, उठ कर जाने लगा. मंजरी खड़ी हो गई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘यह तुम ने अपनी बात कही. अब मेरी बात सुनो. मैं न तो तुम्हें रोकूंगी न टोकूंगी, न सामाजिक नियमों की जंजीरों में जकड़ूंगी. न तुम मुझे रोकना न टोकना, न किसी नकशे में जकड़ना. हम उड़ेंगे एकदूसरे के साथ और अपनेअपने विवेक के साथ. शुरू करेंगे एक सफर जो पूरा होगा प्रेम के स्वच्छंद आसमान में. लेकिन उस से पहले अपने पंखों को मजबूत करना होगा. जीवन में वीरानी आ जाए तो अपने लिए एक नए जीवन का चयन करना कहीं से भी गलत नहीं. इस से पहले कि हमारा यह जीवन अवेहलना व उदासियों का गुच्छा सा बन कर रह जाए, कुछ चटकीले रंगों को मुट्ठियों में भर लेने का हक और हौसला हम सब के पास होना चाहिए.’’ ४सारस का एक जोड़ा आसमान से गुजर रहा था, अपनी बालकनी में बैठी मैं सोच रही थी, क्यों हम ने अपने जीवन के चारों ओर नियमों, रूढि़यों, धर्मों, और आडंबरों के झाड़झंखाड़ों की चारदीवारियां उगा रखी हैं. ये सब इंसानों के लिए होने चाहिए या इंसान इन सब के लिए.

Hindi Story : नहले पे दहला – टोनी को देख क्यों चौंक गई साक्षी

Hindi Story : साक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गई. सामने खड़ा टोनी बगैर कुछ कहे मुसकराता हुआ अंदर दाखिल हो गया.

‘‘तुम यहां पर…’’ साक्षी चौंकते हुए बोली.

‘‘क्या भूल गई अपने आशिक को?’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

‘‘भूल जाओ उन बातों को. मेरी जिंदगी में जहर मत घोलो,’’ साक्षी रोंआसी हो कर बोली.

‘‘चिंता मत करो, मैं तुम्हें ज्यादा तंग नहीं करूंगा. लो यह देखो,’’ टोनी ने एक लिफाफा साक्षी को देते हुए कहा.

साक्षी ने लिफाफे से तसवीरें निकाल कर देखीं, तो उसे लगा मानो आसमान टूट पड़ा हो. उन तसवीरों में साक्षी और टोनी के सैक्सी पोज थे. यह अलग बात थी कि साक्षी ने टोनी के साथ कभी भी ऐसावैसा कुछ नहीं किया था.

‘‘यह सब क्या है?’’ साक्षी घबरा गई और डर कर बोली.

‘‘बस छोटा सा नजराना.’’

‘‘क्या चाहते हो तुम?’’ साक्षी ने कांपते हुए पूछा.

‘‘ज्यादा नहीं, बस एक लाख रुपए दे दो, फिर तुम्हारी छुट्टी,’’ टोनी बेशर्मी से बोला.

‘‘लेकिन ये फोटो तो झूठे हैं. ऐसा तो मैं ने कभी नहीं किया था.’’

‘‘जानेमन, ये फोटो देख कर कोई भी इन्हें झूठा नहीं बता सकता.’’

‘‘तुम इतने नीच होगे, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था.’’

‘‘आजकल सिर्फ पैसे का जमाना है, जिस के लिए लोग अपना ईमान भी बेच देते हैं,’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

साक्षी बुरी तरह घबरा गई. उसे यह भी डर था कि कहीं कोई आ न जाए. लेकिन वे दोनों यह नहीं जानते थे कि दो आंखें बराबर उन पर टिकी थीं.

साक्षी ने टोनी को भलाबुरा कह कर एक महीने का समय ले लिया. टोनी दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

एकाएक साक्षी की रुलाई फूट पड़ी. वह लिफाफा अब भी उस के हाथ में था.

सहसा उन दो आंखों का मालिक दीपक कमरे में दाखिल हुआ और चुपचाप साक्षी के सामने जा खड़ा हुआ. उस ने हाथ बढ़ा कर वह लिफाफा ले लिया.

‘‘देवरजी, तुम…’’ साक्षी एकाएक उछल पड़ी.

‘‘जी…’’

‘‘यह लिफाफा मुझे दे दो प्लीज,’’ साक्षी कांप कर बोली.

‘‘चिंता मत करो भाभी, मैं सबकुछ जान चुका हूं.’’

‘‘लेकिन, ये तसवीरें झूठी हैं.’’

दीपक ने वे फोटो बिना देखे ही टुकड़ेटुकड़े कर दिए.

‘‘मैं सच कह रही हूं, यह सब झूठ है,’’ साक्षी बोली.

‘‘कौन था वह कमीना, जिस ने हमारी भाभी पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘लेकिन…’’

‘‘चिंता मत कीजिए भाभी. अगर उस कुत्ते से लड़ना होता तो उसे यहीं पकड़ लेता. लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप की जरा भी बदनामी हो.’’

दीपक का सहारा पा कर साक्षी ने उसे हिचकते हुए बताया, ‘‘उस का नाम टोनी है. वह मेरी क्लास में पढ़ता था. उस से थोड़ीबहुत बोलचाल थी, लेकिन प्यार कतई नहीं था.’’

‘‘उस का पता भी बता दीजिए.’’

‘‘लेकिन तुम करना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपनी भाभी को बदनामी से बचाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उस का क्या करोगे?’’

‘‘उस का मुरब्बा तो बना नहीं सकता, लेकिन उस नीच का अचार जरूर बना डालूंगा.’’

‘‘तुम उस बदमाश के चक्कर में मत पड़ो. मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’

लेकिन दीपक के दबाव डालने पर साक्षी को टोनी का पता बताना ही पड़ा.

पता जानने के बाद दीपक तेज कदमों से बाहर निकल गया.

दीपक को टोनी का घर ढूंढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. घर में ही टोनी की छोटी सी फोटोग्राफी की दुकान थी. दीपक ने पता किया कि टोनी की 3 बहनें हैं और मां विधवा हैं.

दीपक ने फोटो खिंचवाने के बहाने टोनी से दोस्ती कर ली और दिल खोल कर खर्च करने लगा. उस ने टोनी की एक बहन ज्योति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया.

एक दिन मौका पा कर दीपक और ज्योति पार्क में मिले और शाम तक मस्ती करते रहे.

उस दिन टोनी अपनी दुकान में अकेला बैठा था. तभी दीपक की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी.

दीपक को देखते ही टोनी का चेहरा खिल उठा. उस ने खुश होते हुए कहा. ‘‘आओ दीपक, मैं तुम्हीं को याद कर रहा था.’’

‘‘तुम ने याद किया और हम हाजिर हैं. हुक्म करो,’’ दीपक ने स्टाइल से कहा.

‘‘बैठो यार, क्या कहूं शर्म आती है.’’

‘‘बेहिचक बोलो, क्या बात है?’’

‘‘क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?’’

‘‘बोलो तो सही, बात क्या है?’’

‘‘मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है. कुछ खास काम है,’’ टोनी हिचकते हुए बोला.

‘‘बस इतनी सी बात, अभी ले कर आता हूं,’’ दीपक बोला और एक घंटे में ही उस ने 5 हजार की गड्डी ला कर टोनी को थमा दिया. टोनी दीपक के एहसान तले दब गया.

कुछ दिनों बाद ज्योति की हालत खराब होने लगी. उसे उलटियां होने लगीं. जांच करने के बाद डाक्टर ने बताया कि वह मां बनने वाली है.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. ज्योति की मां ने रोना शुरू कर दिया. लेकिन टोनी गुस्से में ज्योति को मारने दौड़ पड़ा.

ज्योति लपक कर बड़ी बहन के पीछे छिप गई.

‘‘बता कौन है वह कमीना, जिस के साथ तू ने मुंह काला किया?’’ टोनी ने सख्त लहजे में पूछा.

ज्योति सुबक रही थी. उस की मां और बहनें रोए जा रही थीं और टोनी गुस्से में न जाने क्याक्या बके जा रहा था.

काफी दबाव डालने पर ज्योति ने दीपक का नाम बता दिया. यह सुन कर सब हैरान रह गए. टोनी भी एकाएक ढीला पड़ गया.

दीपक को घर बुला कर बात की गई, लेकिन वह साफ मुकर गया और उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

एक पल के लिए टोनी को गुस्सा आ गया और वह गुर्रा कर बोला, ‘‘अगर मेरी बहन को बरबाद किया तो मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है कि मैं ने चूडि़यां पहन रखी हैं?’’ दीपक सख्त लहजे में बोला.

‘‘तुम ने हम से किस जन्म का बदला लिया है,’’ टोनी की मां रोते हुए बोलीं.

‘‘आप जरा चुप रहिए मांजी, पहले इस खलीफा से निबट लूं,’’ दीपक ने कहा और टोनी को घूरने लगा.

टोनी ने पैतरा बदला और हाथ

जोड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं दीपक, मेरी बहन को बरबाद मत करो.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी के शिकार हो रहे हो,’’ दीपक बोला.

‘‘देखो दीपक, मेरी बहन से शादी कर लो. तुम जो कहोगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ टोनी हार कर बोला.

‘‘तुम क्या कर सकते हो भला?’’

‘‘तुम जो कहोगे मैं वही करूंगा,’’ टोनी गिड़गिड़ा कर बोला.

‘‘अपनी इज्जत पर आंच आई तो कितना तड़प रहे हो. क्या दूसरों की इज्जत, इज्जत नहीं होती?’’ दीपक शांत हो कर बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ टोनी बुरी तरह चौंका.

‘‘अपने गरीबान में झांक कर देखो टोनी, सब मालूम हो जाएगा,’’ एकाएक दीपक का लहजा बदल गया.

टोनी सबकुछ समझ गया. उस ने मां और बहनों को बाहर भेजना चाहा, लेकिन दीपक उन्हें रोक कर बोला, ‘‘अब डर क्यों रहे हो, घर के सभी लोगों को बताओ कि तुम कितनी मासूमों का बसाबसाया घर तबाह करने पर तुले हो.’’

‘‘तुम कौन हो?’’ टोनी हैरत से बोला.

‘‘तुम मेरी बात का फटाफट जवाब दो, वरना मैं चला,’’ दीपक जाने के लिए लपका.

‘‘लेकिन मैं ने किसी की जिंदगी बरबाद तो नहीं की,’’ टोनी अटकते हुए बोला.

‘‘मगर करने पर तो तुले हो.’’

‘‘यह सच है, लेकिन तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं दोस्त. आज मुझे एहसास हुआ कि पैसे से कहीं ज्यादा इज्जत की अहमियत है,’’ टोनी बुझी आवाज में बोला.

दीपक के होंठों पर मुसकराहट नाच उठी. ज्योति भी मुसकराने लगी.

‘‘अब क्या इरादा है प्यारे?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘वह सब झूठ था. मैं कसम खाता हूं कि सारे फोटो और निगेटिव जला दूंगा,’’ टोनी ने कहा.

‘‘यह अच्छा काम अभी और सब के सामने करो,’’ दीपक ने कहा.

टोनी ने पैट्रोल डाल कर सारे गंदे फोटो और निगेटिव जला डाले और दीपक से बोला, ‘‘माफ करना दोस्त, मैं ने लालच में पड़ कर लखपति बनने का यह तरीका अपना लिया था.’’

‘‘माफी मुझ से नहीं पहले अपनी मां से मांगो, फिर मेरी मां से मांगना.’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

‘‘हां, साक्षी यानी मेरी भाभी मां. वह माफ कर देंगी तो मैं भी तुम्हें माफ कर दूंगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मंजूर है, लेकिन मेरी बहन?’’

‘‘इस का फैसला भी भाभी ही करेंगी.’’

साक्षी के पैर पकड़ कर माफी मांगते हुए टोनी बोला, ‘‘आज से आप मेरी बड़ी दीदी हैं. चला तो था चाल चलने, लेकिन आप के इस होशियार देवर ने ऐसी चाल चली कि नहले पे दहला मार कर मुझे चित कर दिया. क्या इस नालायक को माफ कर सकेंगी?’’

साक्षी ने गर्व से देवर की ओर देखा और टोनी से कहा, ‘‘फिर कभी ऐसी जलील हरकत मत करना.’’

माफी मिलने के बाद टोनी ने साक्षी को अपनी बहन व दीपक का मामला बताया तो साक्षी ने दीपक को घूरते हुए पूछा, ‘‘दीपक, यह सब क्या?है?’’

‘‘यह भी एक नाटक है भाभी. आप ज्योति से ही पूछिए,’’ दीपक हंस कर बोला.

‘‘ज्योति, आखिर किस्सा क्या है?’’ टोनी ने पूछा.

‘‘भैया, मैं भी सबकुछ जान गई थी. आप को सही रास्ते पर लाने के लिए ही मैं ने व दीपक ने नाटक किया था और उस में डाक्टर को भी शामिल कर लिया था,’’ ज्योति ने हंसते हुए बताया.

‘‘चल, तू ने छोटी हो कर भी मुझे राह दिखा कर अच्छा किया. मैं तेरी शादी दीपक जैसे भले लड़के से करने के लिए तैयार हूं.’’

दीपक ने इजाजत मांगने के अंदाज में भाभी की ओर देखा. साक्षी ने ज्योति को खींच कर अपने गले से लगा लिया. ज्योति की मां भी इस रिश्ते से बहुत खुश थीं.

Best Hindi Story : काला दरिंदा – काला ने श्वेता के साथ क्या किया?

Best Hindi Story : 19 साल की उम्र में वह माहिर ड्राइवर बन गया था. तभी से वह टैक्सी चला रहा था. अब उस की उम्र 35 साल के करीब थी. थोड़ी देर पहले एक ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आ कर रुकी थी. कुछ सवारियां गेट से बाहर निकलीं, तो काला मुस्तैदी से खड़ा हो गया. कुछ सवारियों से उस ने टैक्सी के लिए पूछा भी था लेकिन सवारियों ने मना कर दिया.

कुछ सवारियों को टैक्सी की जरूरत नहीं थी और जिन्हें जरूरत थी, वे अपने परिवार के साथ थे. उन्होंने शक्ल देखते ही काला को मना कर दिया था, क्योंकि शराब के नशे में डूबा काला शक्ल से ही बदमाश लगता था.

काला ने कलाई में बंधी घड़ी की तरफ देखा. रात के 10 बज रहे थे. समता ऐक्सप्रैस ट्रेन के आने का समय हो गया था. शायद उसे कोई सवारी मिल जाए, यह सोच कर काला ने बीड़ी सुलगा ली.

काला का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. 3 भाइयों में वह अकेला जिंदा बचा था. उस ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था. उस की मां तो उसे स्कूल भेजना चाहती थी, पर उस का बाप उसे स्कूल भेजने के सख्त खिलाफ था.

काला की उम्र जब 10 साल की थी, तभी उस की मां मर गई थी और उस के बाप ने उसे एक लुहार के यहां काम पर लगा दिया था. सारा दिन भट्ठी के आगे बैठ कर वह लोहे का पंखा चलाता था. महीने में उसे मेहनत के जो पैसे मिलते थे, उन पैसों को उस का बाप शराब में उड़ा देता था.

7 साल तक काला ने लुहार की दुकान पर काम किया था. तभी उस के शराबी बाप की मौत हो गई थी. बाप के मरने का उसे जरा भी दुख नहीं हुआ था, क्योंकि अब वह पूरी तरह आजाद हो गया था.

कुछ गलत लड़कों के साथ काला का उठनाबैठना हो गया था. 20 साल का होतेहोते वह पक्का शराबीजुआरी बन चुका था. एक करीबी रिश्तेदार को उस पर दया आ गई थी. उसी ने भागदौड़ कर के उस की शादी करा दी थी. उस की औरत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी, पर उस से कई गुना अच्छी थी.

काला ने हमेशा से ही अपनी बीवी को इस्तेमाल की चीज समझा था. अब वह 4 बच्चों का बाप बन चुका था. फिर भी बच्चों के लिए एक बाप की क्या जिम्मेदारियां होती हैं, इस का उसे पता नहीं था.

काला जितना शौकीन था, उस से कहीं ज्यादा मेहनती भी था. वह सुबह 7 बजे टैक्सी ले कर घर से निकल जाता था और रात 12 बजे के बाद ही लौटता था.

वह 300 से 500 रुपए तक रोजाना कमा लेता था. इतना कमाने के बाद भी उस के घर की माली हालत ठीक नहीं थी, क्योंकि उसे शराब पीने के अलावा कोठे पर जाने का भी शौक था.

रात 11 बजे समता ऐक्सप्रैस ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. ट्रेन पूरे एक घंटा लेट थी. सवारियां जल्दीजल्दी स्टेशन के गेट से बाहर निकल रही थीं. काला सवारियों पर नजरें दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक लड़की पर पड़ी तो उस की आंखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.

काला तेजी से उस लड़की की तरफ लपका और उस से पूछा, ‘‘मैडम क्या आप को टैक्सी चाहिए?’’

‘‘हां चाहिए,’’ लड़की ने उस की तरफ बिना देखे ही जवाब दिया.

‘‘कहां जाना है आप को?’’

‘‘विजय नगर,’’ लड़की ने बताया.

‘‘चलिए,’’ कह कर काला ने लड़की के हाथ से बैग ले लिया.

कुछ ही दूर टैक्सी स्टैंड पर काला की टैक्सी खड़ी थी.

काला ने डिक्की खोल कर बैग उस में रखा और फिर अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. तब तक लड़की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी.

उस लड़की की उम्र 22-23 साल के आसपास थी. वह बेहद खूबसूरत थी. पहनावे से वह अमीर और हाई सोसायटी की लग रही थी. वह शायद किसी सोच में गुम थी, तभी तो उस ने काला के ऊपर ध्यान नहीं दिया था, वरना काला का चेहरा और शराब के नशे में डूबी उस की आंखें देख कर वह उस की टैक्सी में कभी न बैठती.

लड़की पिछली सीट पर अधलेटी सी आंखें बंद किए हुए थी. काला सामने लगे शीशे में से उसे बारबार देख रहा था.

रेलवे स्टेशन से विजय नगर का रास्ता महज आधे घंटे का था. काला धीमी रफ्तार से टैक्सी चला रहा था. उस लड़की ने काला के अंदर उथलपुथल मचा रखी थी.

काला का ध्यान टैक्सी चलाने में कम, उस लड़की पर ज्यादा था. वह जितना उस लड़की को देख रहा था, उस पर उतना ही एक नशा सा छा रहा था.

काला एक नंबर का आवारा था. जवान लड़कियों को देख कर उस के खून में गरमी पैदा हो जाती थी.

एक बार स्कूटर पर जा रही एक लड़की को घूरते हुए वह अपने होश खो बैठा था. नतीजतन, उस की टैक्सी एक बस के पिछले हिस्से से जा टकराई थी. इत्तिफाक से वह बच गया था, मगर टैक्सी को काफी नुकसान पहुंचा था. लेकिन इस के बाद भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया था.

काला का दिमाग और ध्यान कार में बैठी लड़की पर ही लगा था. अचानक

5 महीने पहले की एक घटना याद कर उस के अंदर धीरेधीरे वासना का शैतान जागने लगा.

हुआ यों था कि उस रात वह कुछ सवारियों को रेलवे स्टेशन छोड़ने आया था. रात के तकरीबन साढ़े 11 बज रहे थे. शायद कोई सवारी मिल जाए, इस उम्मीद के साथ वह सवारी मिलने का इंतजार करने लगा था.

कुछ ही देर में उसे एक सवारी मिल गई थी. वह एक लड़की थी और उसे अशोक नगर जाना था. उसे टैक्सी की जरूरत थी. उस ने कई टैक्सी वालों से बात की थी. रेलवे स्टेशन से अशोक नगर काफी दूर था, तकरीबन एक घंटे का रास्ता था.

ज्यादातर टैक्सी वालों ने रात को इतनी दूर जाने से मना कर दिया था. कुछ टैक्सी वाले वहां जाने के लिए तैयार हुए भी, मगर उन्होंने किराया बहुत ज्यादा मांगा.

आखिर में लड़की का सौदा काला से पट गया था. वह लड़की कम उम्र की व खूबसूरत थी. सफर में बोरियत से बचने के लिए लड़की टाइमपास करने की नीयत से काला को ‘अंकल’ पुकार कर बातें करने लगी थी.

काला उस के सवालों के जवाब देने के साथसाथ खुद भी उस के बारे में पूछताछ करने लगा था.

उस लड़की का नाम श्वेता था. वह एक अमीर घर की लड़की थी. श्वेता अपने घर से दूर एक शहर में पढ़ती थी. वहां वह होस्टल में रहती थी. कुछ दिनों की छुट्टियों में वह अपने घर चली आई थी. श्वेता ने अपने आने की खबर घर वालों को नहीं दी थी. अगर वह फोन कर देती, तो उसे स्टेशन पर लेने घर से कार आ जाती.

श्वेता ने जानबूझ नहीं बताया था, क्योंकि अगले दिन उस का जन्मदिन था और वह अचानक अपने घर पहुंच कर घर वालों को चौंका देना चाहती थी.

श्वेता अब तक अपने घर पहुंच भी चुकी होती, अगर ट्रेन 2 घंटे लेट नहीं हुई होती. रात का समय था. जाड़े का मौसम होने की वजह से सड़क पर दूरदूर तक सन्नाटा था.

श्वेता से बात करते हुए काला टैक्सी चला जरूर रहा था, मगर उस का मन कहीं और भटक रहा था. उस के साथ गोरी रंग की जवान और हसीन लड़की थी, जिस के जिस्म से भीनीभीनी मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी.

काला पर एक अजीब सा नशा हावी होता जा रहा था. काला ने एक बेहद घटिया और भयानक फैसला कर लिया.

उस रात काला ड्राइवर से दरिंदा बन गया था. उस ने टैक्सी एक सुनसान जगह पर रोक दी थी. इस से पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती, काला कार के अंदर ही उस पर टूट पड़ा था. श्वेता तो जैसे एकदम से हैरान ही रह गई थी. उसे काला से ऐसी उम्मीद हरगिज नहीं थी.

श्वेता रोते हुए काला से छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाने लगी थी, पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का असर काला पर नहीं हुआ था. फिर श्वेता रोनागिड़गिड़ाना छोड़ काला का विरोध करने लगी थी.

अचानक काला ने सीट के नीचे रखा चाकू निकाल लिया और बोला था, ‘सुन लड़की, अगर ज्यादा फड़फड़ाएगी तो इसी चाकू से तेरी गरदन काट डालूंगा. इस सुनसान जगह पर कोई तुझे बचाने नहीं आएगा. जान प्यारी है तो जैसा मैं कहता हूं वैसा ही कर.’

श्वेता पर इस धमकी का असर फौरन हुआ था. वह मासूम लड़की मौत के डर से बुत सी बन गई थी.

अपनी इच्छा पूरी करने के बाद काला बेहोशी की हालत में श्वेता और उस के सामान को सड़क के किनारे छोड़ कर रफूचक्कर हो गया था.

आज बहुत दिनों बाद काला को सुनहरा मौका मिला था, जिसे वह हाथ से नहीं जाने देना चाहता था. उस लड़की को अपना शिकार बनाने से पहले काला उस के और उस के घरपरिवार के बारे में जानना चाहता था.

काला ने अपनी तरफ से बातचीत की शुरुआत की, पर लड़की ने उस के किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ या ‘न’ से ज्यादा शब्दों में नहीं दिया.

पहले वाली लड़की श्वेता हंसमुख, चंचल और मिलनसार थी, जबकि यह उस के बिलकुल उलट, गंभीर, मगरूर और नकचढ़ी थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद काला ने फैसला किया कि लड़की का संबंध चाहे किसी भी घर से हो, वह उस के साथ मनमानी जरूर करेगा, बाद में चाहे जो कुछ भी होता रहे.

सड़क पर सन्नाटा था. काला मन ही मन लड़की की इज्जत से खेलने का तानाबाना बुनने लगा था. विजय नगर से एक किलोमीटर पहले एक दूसरे शहर को सड़क जाती थी. वह सड़क ज्यादातर सुनसान रहती थी. काला ने टैक्सी उसी सड़क पर मोड़ दी थी.

कार में बैठी लड़की को अपने रास्ते का पता था, इसलिए उस ने फौरन काला से गलत रास्ता होने की बात की, पर काला ने उस की बात अनसुनी कर दी.

खतरा महसूस कर के लड़की विरोध करने लगी, तो काला ने एक जगह टैक्सी रोक दी और सीट के नीचे से चाकू निकाल कर दहाड़ा, ‘‘सुन लड़की, अगर जरा सी भी आनाकानी की तो पेट फाड़ दूंगा.’’

काला की भयानक आंखों में वासना के लाललाल डोरे तैर रहे थे. लड़की को धमकी दे कर काला उस पर टूट पड़ा.

अगले दिन जब काला को होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में देख कर वह चौंक पड़ा. दर्द से उस का पूरा बदन दुख रहा था. कल रात के सीन उस के जेहन में घूमे तो उस का पूरा जिस्म कांप उठा. वह 2 बार दरिंदा बना था, एक बार उस दिन जिस दिन उस ने मासूम श्वेता की इज्जत लूटी थी और दूसरी बार कल रात.

कल रात वह दरिंदा बना जरूर था, लेकिन कामयाब नहीं हो सका था, क्योंकि कल रात वाली लड़की पहले वाली लड़की की तरह कमजोर नहीं थी. वह लड़की मुक्केबाजी और कराटे में माहिर थी. उस लड़की ने काला को बहुत पीटा था.

लड़की ने एक जोरदार लात काला की दोनों टांगों के बीच मारी थी. इस

के बाद उसे कुछ होश नहीं था. वह अस्पताल कैसे पहुंचा? कब पहुंचा और किस ने पहुंचाया? इस का उसे कुछ पता नहीं था.

काला ने डाक्टरों से जब यह खबर सुनी तो मानो उस की जान ही निकल गई. डाक्टरों ने उसे बताया कि उन्होंने उस की जान तो बचा ली, मगर अब वह कभी दरिंदा नहीं बन सकता था, क्योंकि टांगों के बीच चोट लग जाने से वह हमेशा के लिए नामर्द बन चुका था.

Romantic Story : थोड़ी सी बेवफाई – प्रिया के घर सरोज ने ऐसा क्या देख लिया

Romantic Story : कपड़े सुखातेसुखाते सरोज ने एक नजर सामने वाले घर की छत पर भी डाली. उस घर में भी अकसर उसी वक्त कपड़े सुखाए जाते थे. हालांकि उस घर में रहने वाली महिला से सरोज की अधिक जानपहचान नहीं थी, फिर भी कपड़े सुखातेसुखाते रोजाना होने वाले वार्त्तालाप से ही आपसी दुखसुख की बातें हो जाती थीं.

बातों ही बातों में सरोज को पता चला कि उस महिला का नाम प्रिया है और उस के पति का नाम प्रकाश. प्रकाशजी एक बैंक औफिसर थे तथा घर के पास ही एक बैंक में कार्यरत थे. प्रकाश एवं प्रिया की एक छोटी बेटी थी- पाखी. छोटा सा खुशहाल परिवार था. छुट्टी के दिन वे अकसर घूमने जाते थे.

प्रकाशजी बहुत ही सुंदर एवं हंसमुख स्वभाव के थे, यह सरोज को भी नजर आता था पर प्रिया स्वयं भी सदा उन की तारीफों के पुल बांधा करती थी.

‘‘देखिए न भाभीजी, आज ये फिर मेरे लिए नई साड़ी ले आए. मैं ने तो मना किया था, पर माने ही नहीं. मेरा बहुत खयाल रखते हैं ये,’’ एक दिन प्रिया ने बड़े ही गर्व से बताया.

‘‘अच्छी बात है… सच में तुम्हें इतना हैंडसम, काबिल और प्यार करने वाला पति मिला है,’’ कह सरोज ने मन ही मन सोचा, काश दुनिया में सभी विवाहित जोड़े इसी प्रकार खुश रहते तो कितना अच्छा होता. एक आदर्श पतिपत्नी हैं दोनों.

सरोज और प्रिया की बातचीत का मुद्दा अकसर उन का घरपरिवार ही हुआ करता था, जिस में भी प्रिया की 80 फीसदी बातें प्रकाशजी की प्रशंसा और प्यार से जुड़ी होती थीं.

एक दिन प्रिया ने सरोज से कहा, ‘‘भाभीजी, मेरे पापा की तबीयत बहुत खराब है. अब मुझे कुछ दिन उन के पास जाना होगा. मन तो नहीं मानता कि प्रकाश को अकेले छोड़ कर जाऊं, पर क्या करूं मजबूरी है. प्लीज, आप थोड़ा इन का ध्यान रखिएगा. खानेपीने की व्यवस्था तो बैंक में ही हो जाएगी… उस की मुझे कोई चिंता नहीं है, पर हमारा घर सारा दिन सूना रहेगा… आप आतेजाते एक नजर इधर भी डाल लिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम बेफिक्र हो कर जाओ,’’ सरोज ने कहा और फिर प्रिया के जाने के बाद वह एक पड़ोसिन की जिम्मेदारी निभाते हुए आतेजाते एक नजर उन के घर पर भी डाल लेती थी.

इन दिनों प्रकाशजी को बैंक में वर्कलोड ज्यादा था, इसलिए वे काम में काफी व्यस्त रहते थे. सरोज से उन की मुलाकात नहीं हो पाती थी.

प्रिया को गए 15 दिन से ऊपर हो गए थे, परंतु वह अभी तक लौटी नहीं थी. प्रकाशजी भी दिखाई नहीं देते थे. सरोज को चिंता होने लगी थी कि कहीं उस के पिताजी की तबीयत ज्यादा खराब तो नहीं हो गई… पूछे तो किस से…

रात के 11 बजे थे. सरोज अपने घर के मेन गेट पर ताला लगाने के लिए बाहर आई तो सामने वाले घर के आगे प्रकाशजी की गाड़ी रुकती दिखी. गाड़ी का दरवाजा खुला और उस में से एक महिला भी प्रकाशजी के साथ उतरी.

‘‘अरे लगता है प्रिया आ गई,’’ सरोज चहकी और आवाज देने ही वाली थी कि उस महिला की वेशभूषा और शारीरिक गठन देख कर रुक गई.

‘नहींनहीं यह प्रिया नहीं लगती. प्रिया कभी जींसटौप नहीं पहनती और न ही वह इतनी दुबलीपतली है. बालों का स्टाइल भी प्रिया से बिलकुल अलग है.

यह प्रिया नहीं कोई और है,’ सोच कर सरोज दरवाजे की ओट में छिप कर खड़ी हो गई. उस ने देखा कि प्रकाशजी ने उस महिला को घर के अंदर चलने का इशारा किया और फिर दोनों घर के अंदर चले गए.

हो सकता है यह प्रकाशजी के बैंक की सहकर्मचारी हो. किसी काम की वजह से आई हो, सरोज ने सोचा, ‘पर रात के 11 बजे ऐसा क्या काम है. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं,’ सरोज को बड़ा अटपटा सा लग रहा था. इसी सोच में उसे सारी रात नींद नहीं आई. सिर भारी होने के कारण वह अगले दिन सुबह जल्दी उठ गई ताकि चाय बना कर पी सके.

‘बाहर से अखबार ले आती हूं. 6 बजे तक आ ही जाता है,’ सोच कर सरोज बाहर बरामदे में निकली तो प्रकाशजी को उसी महिला के साथ घर से बाहर निकल गाड़ी की ओर बढ़ते देखा.

अचानक प्रकाशजी की नजरें सरोज की नजरों से मिली और तत्क्षण ही झुक भी गईं मानो उन की कोई चोरी पकड़ी गई हो. वे चुपचाप गाड़ी में बैठ गए, साथ में वह महिला भी. शायद वे उसे छोड़ने जा रहे थे. सरोज का भ्रम सही था.

‘बाप रे, कितना बहुरुपिया है यह आदमी… दिखाने को तो अपनी पत्नी से इतना प्रेम करता है और उस के पीछे से यह गुल खिला रहा है,’ सरोज मन ही मन बुदबुदाई.

सरोज मन ही मन सोचने लगी कि पूरी रात यह औरत प्रकाशजी के साथ घर में अकेली थी… सच इस दुनिया में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. अरे, इस से अच्छे तो वे पति हैं, जो भले ही अपनी बीवियों से रातदिन लड़ते रहते हों, पर दिल से प्रेम करते हैं.

ये सब सोचतेसोचते सरोज अंदर आ गई. अखबार ला कर मेज पर पटक दिया. अब न तो उस की रुचि अखबार पढ़ने में रही थी और न ही चाय पीने की इच्छा रही थी. वह चादर ओढ़ कर पलंग पर लेट गई और फिर प्रिया के बारे में सोचने लगी…

कितनी मासूम है प्रिया. बेचारी जातेजाते भी अपने पति की चिंता कर रही थी कि इतने दिन अकेले कैसे रहेंगे… पर यहां तो अलग ही मंजर है. लगता है प्रकाशजी तो इसी दिन का इंतजार कर रहे थे. आने दो प्रिया को… यदि इन बाबूजी की पोल न खोली तो मेरा नाम भी सरोज नहीं. जब प्रिया इन्हें आड़े हाथों लेगी तब पता चलेगा बच्चू को. सारी मौजमस्ती भूल जाएंगे जनाब.

ऐसे पतियों को तो सबक सिखाना ही चाहिए. पत्नियों की तो जरा सी भी गलती इन्हें बरदाश्त नहीं होती. स्वयं चाहे कुछ भी करें… अरे वाह, यह भी कोई बात हुई मर्द जात की… यह तो सरासर अन्याय है पत्नियों के साथ. यह विश्वासघात है. उन्हें इस का फल मिलना ही चाहिए, सोचतेसोचते सरोज को फिर नींद आ गई.

रविवार का दिन था. सरोज ने बालों में शैंपू किया था तथा साथ ही कुछ कपड़े भी धो लिए थे. वह बाल खुले छोड़ कर छत पर गई ताकि धूप में बाल भी सूख जाएं तथा कपड़े भी.

आदतन उस की नजर फिर सामने वाली छत पर पड़ी. आज वहां भी कपड़े सूख रहे थे, ‘यानी प्रिया आ गई है. मुझे उस से मिल कर आना चाहिए. जा कर उस के पिताजी का हालचाल भी पूछ लूं तथा उस के पीछे से उस के पति ने जो कारनामा किया है उस की भी जानकारी बातों ही बातों में उसे दे दूं ताकि वह आगे से सतर्क रहे,’ यह सोच कर सरोज प्रिया के घर चल दी.

सरोज को प्रिया बाहर ही मिल गई. नया सलवारकुरता पहन रखा था तथा हाथ में हैंडबैग था. लगता था कहीं जाने की तैयारी है.

‘‘प्रिया कब आई तुम?

कैसे हैं तुम्हारे पापा?’’ सरोज ने पूछा.

‘‘आज सुबह ही. पापा की तबीयत ठीक है, इसलिए चली आई. स्कूल भी तो मिस हो रहा था पाखी का. इधर इन के फोन पर फोन आ रहे थे कि जल्दी आओ… जल्दी आओ… तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा. सच भाभीजी, ये तो मेरे बिना रह ही नहीं सकते. इसीलिए तो cचली आई वरना कुछ दिन और रह लेती.’’

तभी प्रकाशजी भी आ गए. पाखी उन की गोद में थी और प्रकाशजी उसे बारबार चूम रहे थे. पाखी भी पापापापा कह कर उन से लिपट रही थी.

‘‘हैलो पाखी, कैसी हो? जानती हो मैं ने तुम्हें बहुत मिस किया,’’ सरोज ने प्रकाशजी की ओर देखते हुए पाखी से कहा तो प्रकाशजी ने नजरें झुका लीं और फिर संकोचवश नजरें उठा कर सरोज की ओर देखा मानो अपना अपराध स्वीकार कर रहे हों.

‘‘अरे प्रिया, तुम्हारे प्रकाशजी तो तुम्हारे दीवाने हैं… तुम्हारे बिना ऐसे हो गए थे जैसे प्राण बिना तन. एक दिन तो मुझ से कहने लगे ‘‘भाभीजी, जब बैंक से घर आता हूं तो सूनासूना घर काटने को दौड़ता है. सच, पत्नी, बच्चों के बिना घर घर नहीं लगता.’’

प्रिया के चेहरे पर मुसकराहट दौड़ गई. उस ने शरमा कर प्रकाशजी की ओर देखा.

सरोज फिर बोली, ‘‘अरे, मैं ने भी बेवक्त तुम लोगों को किन बातों में उलझा दिया… शायद तुम लोग कहीं जा रहे हो… बहुत दिन हो गए प्रकाशजी को अकेले बोर होते हुए.’’

‘‘हां मूवी देखने जा रहे हैं… लौटते समय किसी रैस्टोरैंट में पिज्जा खाएंगे. प्रिया और पाखी को बहुत पसंद है,’’ प्रकाशजी ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा. उन की आंखों में सरोज के प्रति कृतज्ञता झलक रही थी.

प्रिया और पाखी गाड़ी में बैठ गईं तथा प्रकाशजी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी.

आज तो सरोज प्रिया को बिना कुछ कहे घर लौट आई थी, पर अब उस ने यह निर्णय भी ले लिया था कि वह प्रिया को उस दिन के बारे में कभी कुछ नहीं बताएगी, क्योंकि उस ने महसूस किया कि यदि वह ऐसा करेगी तो यह प्रकाशजी के लिए तो अपमानजनक होगा ही, प्रिया को भी उस से आघात ही पहुंचेगा.

सरोज को लगा कि यदि प्रकाशजी की इस तनिक सी बेवफाई पर परदा ही पड़ा रहने दिया जाए तो उचित होगा. इस तरह कम से कम पतिपत्नी में प्यार का भ्रम बना रहने से एक खुशहाल परिवार तो आबाद रहेगा और शायद भविष्य में प्रकाशजी को भी अपनी भूल व नादानी समझ आ जाए और वे फिर कभी ऐसा न करें, क्योंकि कई बार अपराधी को दंड देने के बजाय माफ करना ज्यादा लाभकारी सिद्ध होता है.

New Trend : दिखावे की हरियाली

New Trend : आजकल लोगों के घरों में फर्नीचर, परदे, तकिए, दीवार का रंग सबकुछ ग्रीन हो चला है. लोगों की सोच यह है कि ऐसा करना हमारे पर्यावरण के लिए फायदेमंद साबित होगा. इन सब से वातावरण, पर्यावरण का लाभ भले न हो लेकिन यह दिखावे के काम खूब आता है.

वर्ष 2025 के इंटीरियर ट्रैंड में ग्रीन टौप पर है. इस की सब से बड़ी वजह लगातार गरमी का बढ़ते जाना है. लोगों की सोच यह है कि छोटेछोटे पौधे, बोनसाई और ग्रीन कलर का ज्यादा प्रयोग करने से वातावरण में गरमी से बचा जा रहा है. ऐसे में ग्रीन दिखने वाली चाहे नैचुरल हों या फैक्ट्री में बनी चीजें, मंहगी होती जा रही हैं. इंटीरियर में पौधों और दीवार पर चढ़ने वाली बेल, फूल वाले पौधे, बोनसाई मंहगी हो गई हैं. जो पौधे और बीज नर्सरी जैसी दुकानों पर मिल जाते हैं वे अब औनलाइन भी बिक रहे हैं.

इंटीरियर में इस ग्रो ग्रीन से पर्यावरण पर फर्क नहीं पड़ता, यह दिखावा बन गया है. यह इंटीरियर दिखने में भले किफायती हो लेकिन रखरखाव और कीमत में यह महंगा होता है. हर किसी की चाहत होती है कि उस के घर का लुक पड़ोसी के घर से अलग दिखे. ऐसे में वह किसी न किसी प्रकार से खुद के घर, इंटीरियर और गाड़ी की किसी न किसी तरह से तारीफ करता रहता है. कम कीमती और गंवई सा दिखने वाला इंटीरियर मंहगा पड़ता है क्योंकि इस को जल्दीजल्दी बदलना पड़ता है, देखभाल भी इस की अधिक करनी होती है.

ग्रीन का ट्रैंड क्यों

इंटीरियर डिजाइन में हरे रंग का प्रभाव अधिक है. असल में यह रंग मानव मन और भावनाओं को अच्छा लगता है. हरा रंग प्रकृति और ताजगी से जुड़़ा हुआ है. इस से शांत वातावरण बनता है. यह रंग तनाव और चिंता को कम करता है. हरे रंग से घर की सजावट करने से इंटीरियर डिजाइन नैचुरल और खुशी का अनुभव कराता है. हरे रंग के अलगअलग शेड्स किसी इंटीरियर स्पेस के माहौल पर अलग प्रभाव डालते हैं. मिंट ग्रीन जैसे हलके शेड्स एक उज्ज्वल और हवादार एहसास पैदा करते हैं. फौरेस्ट ग्रीन जैसे गहरे शेड्स कमरे में गहराई का आभास कराते हैं.

हरा रंग एक बहुमुखी रंग है जिस में विभिन्न शेड्स होते हैं जो हर जगह पर अलग एहसास जगाते हैं. सीफोम ग्रीन जैसे हलके शेड शांति का एहसास कराते हैं. लाइम ग्रीन जैसे चमकीले शेड एनर्जी से जोड़ते हैं. इंटीरियर डिजाइन में हरे रंग के फर्नीचर को भी अब शामिल किया जा रहा है. हरे रंग के सोफे, कुरसियां या सजावटी सामान एक आकर्षक माहौल बनाते हैं. हरे रंग के तकिए, परदे या गलीचे भी देखने में काफी कूल लगते हैं. कूल लुक के लिए हरे रंग के अलगअलग शेड्स प्रयोग किये जा सकते हैं.

हरे रंग के फर्नीचर को शामिल करते समय, ऐसे टुकड़े चुनें जो मौजूदा रंग पैलेट को साथ दें. हरे रंग का सोफा या एक्सेंट कुरसी प्रयोग करें. रंग के साथ अलगअलग डिजाइन भी लुक को निखारते हैं. हरे रंग की सजावट लिविंग स्पेस को बड़ा दिखाती है. हरा रंग घर के अंदर नैचुरल माहौल रखता है. हरे रंग के तकिए, परदे, गलीचे या पौधे लगाने से कमरे में जीवंत माहौल बनता है. दीवार पर हरे रंग का पेंट लगाने से एक स्टेटमैंट वौल बन सकती है. इस से कमरे में एक नयापन आता है. हरे रंग के वौलपेपर भी बेहतर होते हैं.

अलगअलग कमरों में हरे रंग का अलग इस्तेमाल किया जा सकता है. लिविंगरूम में हरा रंग शांत और ताजगीभरा माहौल ला सकता है. बेडरूम में यह आराम और नींद को बढ़ावा देता है. रसोई में यह ताजगी दिखाता है. बाथरूम में शांत और तरोताजा माहौल बनाने में मदद करता है. तौलिए, शावर परदे या पौधे जैसे हरे रंग पंसद किए जा रहे हैं. हलका पुदीना हरा हो या पन्ना हरा जैसा गहरा शेड, सभी शरीर और मन दोनों को तरोताजा महसूस कराते हैं.

ग्रीन इंटीरियर में बढ़ता लकड़ी का प्रयोग

ग्रीन इंटीरियर में रंग के बाद दूसरे नंबर पर सब से ज्यादा लकड़ी का प्रयोग किया जा रहा है. ग्रो इंटीरियर में वुडन स्टाइल का प्रयोग अधिक हो रहा है. कई तरह की लकड़ियां प्रयोग में आने लगी हैं. वुडेन की दीवारें, सीढ़ियां और फर्श में इन का प्रयोग होता है. वुडन इंटीरियर में लकडी़ होने से यह मंहगा पड़ता है. लकड़ी कई तरह की होती हैं. नौर्मल दरवाजे की बात करें तो लोहे का छोटा दरवाजा 2,200 रुपए का बनाबनाया आता है. अगर वुडन का दरवाजा चाहिए तो पहले फ्रेम लगेगा. इस के बाद प्लाई या लकड़ी का दरवाजा लगेगा. जिस के फिट करने का खर्च अलग से होगा. लकड़ी का दरवाजा 10 से 12 हजार रुपए का पड़ता है.

ग्रीन इंटीरियर की तीसरी सब से बड़ी जरूरत सजावटी पौधे, लौन, गार्डन और ग्रीन केज बनाने वाले पौधे, बेल और झाड़ियां होती हैं. अब ये पौधे नर्सरी से ले कर औनलाइन बिकने लगे हैं. शहरों में तमाम नर्सरियां खुल गई हैं. एक पौधा 100 रुपए से ले कर 700 रुपए तक में मिलता है. सजावटी पौधे साइज के हिसाब से कीमती होते हैं. पाम के पौधे बहुत प्रयोग किए जा रहे हैं. पाम के पौधे अलगअलग किस्म के होते हैं.

अगर घर में बड़ा लौन नहीं बन पा रहा है तो लोग छोटा सा ही सही मगर लौन बनवा रहे हैं. इस में मखमली घास हर कोई चाहता है. अगर नैचुरल घास नहीं है तो आर्टिफिशियल घास को लोग लगवा लेते हैं. किचन गार्डन के बाद लौन ही ऐसी चीज है जिस का दिखावा खूब हो रहा है. गार्डन में फलदार वृक्ष है तो उस का एक भी फल ईनाम जैसा लगता है. इन सब को संभालने के लिए माली भी रखना होता है, बाकी खर्च भी होते हैं, जैसे मिट्टी, खाद, कीटनाशक, पानी और सिंचाई आदि. इन सब से वातावरण या पर्यावरण को कोई फायदा चाहे न हो लेकिन यह शोऔफ करने के लिए खूब है, लोगों को इस से संतुष्टि भी मिलती है.

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