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Historical Distortion : इतिहास पर हमला

Historical Distortion : भारत के कट्टरपंथी कई दशकों से इतिहास को दोबारा से लिख रहे हैं. वे यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि किस्सेकहानियां असल में इतिहास हैं. रामायण, महाभारत, पुराणों, नाटकों, चाटुकारिता वाले काव्यग्रंथों को असली इतिहास कह कर देश को बहकाया जा रहा है कि हम कितने महान थे.

असलियत यह है कि हमारे यहां कभी भी इतिहास लिखने की परंपरा रही ही नहीं है. कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाया जाता रहा है और हर पीढ़ी उस में अपने अनुसार जोड़घटा देती रही है.

अंगरेजों के आने के बाद बौद्धग्रंथों में चीन, तिब्बत, अफगानिस्तान, ईरान और दूरदूर तक के देशों में कुछ पुराने ग्रंथ मिले जिन्हें जमा कर के इतिहास लिखा गया पर वह आज के शासकों को पसंद नहीं आया क्योंकि वह उन के एजेंडे के अनुसार नहीं है. सो, पुराने इतिहासकारों की जगह नए पौराणिकवादी इतिहासकारों को पैसा व पद दिए गए कि वे अनापशनाप इतिहास की शराब लोगों को पिला दें.

यह काम करने की मोनोपौली सिर्फ हमारे पास नहीं है. अब बंगलादेश में स्कूली टैक्स्ट बुक्स को बदला जा रहा है. 1971 में भारत की सेना के बल पर पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों की तानाशाही से मुक्ति की कहानी बदली जा रही है. शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियां पूरे बंगलादेश से हटा दी गई हैं. अब उन्हें महज एक नेता के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. जबकि, 1971 के मुक्ति संघर्ष का नेतृत्व, नई किताबों के अनुसार, जिया उर रहमान को दिया जा रहा है. शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बंगलादेश का शासन जिया उर रहमान ने संभाला था. उन की हत्या के बाद खालिदा जिया ने वर्ष 1991 में प्रधानमंत्री के तौर पर शासन संभाला था. इतिहास से खिलवाड़ असल में जनता को गुमराह कर के अपना उल्लू सीधा करना होता है. यह कितने ही देशों में आजमाया गया है.

इतिहास को कभी भी राजनीति के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. यह इतिहासकारों की मरजी होती है कि वे ज्ञात तथ्यों को किस तरह से देखें. इतिहास को पढ़ने वाले आज उस में गलतियां न करने के सूत्र ढूंढ़ें, तो अच्छा है, अपने ढोल बजाने या अपने पड़ोसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं.

अफसोस यह है कि देशों के विभाजन और वहां सत्तापलट के बाद इतिहासकारों को नए सिरे से काम पर लगा दिया जाता है. हर देश का शासक भूल जाता है कि जो कुछ लिखा गया है वह दुनियाभर में सब जगह पहले से ही पुस्तकालयों में पहुंच चुका है. अपने देश की किताबें आप नष्ट कर सकते हैं, दूसरे देशों की नहीं. बंगलादेश की नई सरकार वही गलती कर रही है जो पहले दूसरे देशों के शासक कर चुके हैं. इस का असर कुछ साल रहता है, कुछ लोगों तक रहता है सिनेमा की स्क्रीन की तरह.

Uniform Civil Code : कट्टरपंथी एजेंडा

Uniform Civil Code : हिंदू भक्तों को खुश करने के लिए यूनिफौर्म सिविल कोड को उत्तराखंड में लागू करवा कर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी प्रयोग कर रही हैं कि यह कदम कितना वोटकैचर है और कितना कानूनी दांवपेंचों से निकल सकता है. असल में इस का उद्देश्य देश में एक कानून लागू करना कतई नहीं है. दरअसल, इस का उद्देश्य अल्पसंख्यकों को यह जताना है कि वे दूसरे दर्जे के नागरिक बन कर रहें. इसी में उन की भलाई है.

जरमनी में नाजी पार्टी ने एडौल्फ हिटलर के 1933 में जीत जाने पर यहूदियों को ले कर कई कानून बनाए थे ताकि यहूदियों को कमजोर किया जा सके जिस का अंत होलोकास्ट में हुआ जिस में 60-70 लाख यहूदियों को गोलियों से, गैस चैंबरों में या भूखा मारा गया. यह प्रयोग दुनिया के दूसरे देशों में बारबार दोहराया जाता है.

विवाह कानूनों में सुधारों की जरूरत होती है, इस पर किसी को आपत्ति नहीं होती. 1955-56 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हर तरह के विरोध के बावजूद हिंदू व्यक्तिगत कानूनों को अगर न बदला होता तो आज देश की औरतों की स्थिति वह न होती, जो है. मुसलिम औरतें तलाक, बहुपत्नी, हलाला, पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के सदियों के घिसेपिटे कानूनों में पड़ी रहें, यह कोई नहीं चाहेगा पर जब किसी कानून में संशोधन गलत नीयत से किया जाता है तो उस की अच्छाइयां भी खराब लगने लगती हैं. उत्तराखंड के यूनिफौर्म सिविल कोड में क्या है, क्या नहीं, यह अभी तक चर्चा का विषय नहीं है क्योंकि इस की हर धारा पर अभी अदालती मोहर लगना बाकी है.

अदालतों के फैसले सरकारी रुख के अनुसार होंगे या नहीं, इस पर फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता पर जिस तरह राम मंदिर के मामले में अदालत ने कानून की मूल भावना के साथ खिलवाड़ किया था वही इस मामले में मुसलिम औरतों के उद्धार के नाम पर किया जा सकता है. फिर भी तब तक इस कानून पर ज्यादा बहस करना बेकार है क्योंकि असली बहस तो अब अदालतों के चैंबरों में होगी.

इतना अवश्य है कि इस कानून से हिंदू औरतों को कोई लाभ नहीं होना. दहेज, जाति, कुंडली, विधिविधान, रीतिरिवाज, घूंघट, मंगलसूत्र, तलाक में देरी, हिंसक पति जैसे मामलों में उन्हें कोई लाभ मिलेगा, ऐसा नजर नहीं आता. असल में यह यूनिफौर्म सिविल कोड न हो कर मुसलिम विवाह कोड और लिवइन कोड बन कर रह गया है. यह कट्टरपंथी हिंदुओं का अपना एजेंडा है, धार्मिक एजेंडा.

Artifical Intelligence : एआई और भारत

Artifical Intelligence : अमेरिका के आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस सौफ्टवेयर, जैसे चैट जीपीटी, ओपन एआई, जैमिनाई और चीन के डीपसीक से भारत को परेशान होने की जरूरत नहीं है. अमेरिका और चीन आजकल कंप्यूटिंग पावर में एकदूसरे के प्रबल प्रतिद्वंद्वी बन रहे हैं और उन के प्रोग्राम व सौफ्टवेयर लाखोंकरोड़ों की गिनतियां सैकंडों में करने के काबिल हैं.

अमेरिका को जो गरूर अपने सैम औल्टमैन के ओपन एआई पर हो रहा था उसे चीन के लियांग वानफेंग ने पंचर कर दिया है. उस ने बहुत सस्ते में एआई टूल बना कर निविदिया कंपनी के शेयर को भारी टक्कर मार दी है और 2 दिनों में अमेरिका की हाईटैक एआई कंपनियां स्टौक मार्केट में अरबों डौलर खो चुकी हैं.

भारत को चिंता नहीं है क्योंकि हम तो यह खोज में ही लगे हैं कि कौन सी मसजिद के नीचे मंदिर है और वहां पर भी सब से ऊंचा, मंदिर बनाया जाए. साथ ही, कुंभ स्नान को कैसे वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर बनाया जाए. ये सब काम हमारे लिए प्राथमिकता रखते हैं जो मानवता को मूर्ख बना कर चढ़ावे में नोट/वोट दोनों जमा कर रहे हैं. चीन और अमेरिका इन दोनों मामलों में फिसड्डी हैं हालांकि डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के अब के कार्यकाल में मोदीनुमा कुछ कामों के होने की संभावना है जिन से गोरों की जिंदगी और उन के चर्च सुधरें.

एआई चाहे एक खतरनाक टूल हो जो अरबों की नौकरियां खा जाए पर यह भी संभव है कि वह रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य इतना सस्ता और सुलभ कर दे कि नौकरी से निकाले गए लोगों के पास भी भरपूर पैसा व सुविधाएं बनी रहें. चीन इस मामले में आगे निकल गया है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि वहां न चर्च है, न गोरोंकालों का भेद और न ही टैक कंपनियों के मालिक प्रैसिडैंट के तलवे चाटते नजर आते हैं.

एआई आज हर चीज में काम का है. इस में चाहे जो खराबी हो, यह स्टीम इंजन की तरह का आविष्कार है जिस ने कभी लाखों घोड़ों को नौकरी से निकाल दिया पर लोगों को एकदूसरे के पास कर दिया. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस दुनियाभर की जानकारियों को मिनटों में समेट व उन्हें छांट कर आप के काम के लायक बना देगा. वह गहरी खानों में मशीनों को चला सकेगा, बिना पायलटों के हवाईजहाज उड़ा देगा, बिना किसानों के अनाज पैदा कर देगा.

इस में माहिरता वैसी ही होगी जैसी बंदूकों में थी जिन के सहारे गोरे यूरोपियों ने भारत, चीन, जापान, अफ्रीका, उत्तरदक्षिण अमेरिका पर कब्जा किया. आज यह आर्टिफिशियल इंटैलिलैंस की बंदूक चीन और अमेरिका के पास है. हम उन का मुकाबला करेंगे राम मंदिर के दर्शन कर के और कुंभ के गंदले पानी में डुबकी लगा कर.

Hindi satire : अमीरों के संरक्षण व संवर्धन की अभिनव योजना

Hindi satire : गरीबों के लिए तो सरकार कई योजनाएं बनाती है लेकिन गरीबों का उद्धार करने वाले अमीरों को क्यों वंचित किया जाए उन के लग्जरी जीवन को और बेहतर बनाने से. समानता का अधिकार तो भई सभी वर्गो के लिए होना चाहिए.

गरीबी उन्मूलन व कल्याण की अनेक योजनाएं स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही सरकार द्वारा चलाई जाती रही हैं. यह अलग बात है कि इस से गरीब को क्या हासिल हुआ. एक प्रधानमंत्री तो बोल गए कि दिल्ली से चला एक रुपया गरीब तक पहुंचतेपहुंचते 15 पैसे ही रह जाते हैं.

अनुसूचित जाति/जनजाति, किसानों-मजदूरों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों, दिव्यांगों, विद्यार्थियों सब के लिए खासी योजनाएं हैं. यदि किसी वर्ग के लिए योजना का अकाल है तो वह अमीर वर्ग है. यह हमारे संविधान की समानता की भावना के विपरीत है. जो समाज या देश अमीरी को नहीं पूजता उसे फिर गरीबी का महिमामंडन करना ही होता है.

इसलिए सरकार ने ‘सब का साथ सब का विकास व सब का विश्वास’ की मूल भावना के मद्देनजर देश के अमीरों व उन की अमीरी के संवहनीय संरक्षण व संवर्धन के लिए एक योजना का खाका तैयार किया है. जैसे कि परीक्षाओं के प्रश्नपत्र खोखा के दम पर लीक हो जाने की हमारे यहां पुनीत परंपरा है वैसे ही इस का प्रारूप आमजन के सु झाव आमंत्रित करने के पूर्व ही पुनीत रूप से लीक हो कर गंगाधर के व्हाटसऐप पर मौजूद है. प्रारूप के चंद महत्त्वपूर्ण अंश आप के अवलोकनार्थ हैं-

भूमिका

देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही सरकार ने गरीबों व अन्य कमजोर वर्गों, किसानों, मजदूरों के लिए असंख्य योजनाओं को शुरू किया. देश में गरीबों की संख्या में काफी कमी आई लेकिन दूसरी ओर देश की अमानत अमीरों की तादाद उस अपेक्षित दर से नहीं बढ़ी. यदि फौर्ब्स की अमीरों की सूची में एक भी भारतीय का नाम न हो तो कितना बैड फील होगा. उपेक्षित अल्पसंख्यक अमीर वर्ग की अमीरी के संरक्षण व संवर्धन के लिए एक डैडिकेटेड योजना की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी.

उद्देश्य

इस का प्राथमिक उद्देश्य अमीर वर्ग और अमीर बनें, उन की अमीरी पर कोई आंच न आए रहेगा. तमाम तरह की कठिनाइयों, जैसे हैवी करारोपण, हवाला द्वारा फंड डायवर्जन आदि से उन की नैट वर्थ में आने वाली कमी को दूर करने पर योजना मुख्यतया फोकस करती हैं. योजना का द्वितीय उद्देश्य आगामी 5 वर्षों में अमीरों की नैटवर्थ दस गुनी करना व फौर्ब्स की विश्व के अमीरों की सूची में कम से कम एकतिहाई भारतीयों को लाना है. इस के विज्ञापन की पंचलाइन होगी- ‘अमीर व अमीरी का संरक्षण समय की मांग है.’

योजना के प्रमुख बिंदु

शेयर बाजार की उठापटक या अन्य दीगर कारणों जैसे कि रुपए के स्वभावगत डौलर को देखते ही नीचे को झुक दंडवत सलाम करने, औद्योगिक घपलों आदि कारणों से यदि किसी अमीर की नैटवर्थ में 20 प्रतिशत से अधिक की कमी आती है तो योजना की ‘कमी लिंक्ड भरपाई सब्सिडी उपयोजना’ इस के 50 प्रतिशत की भरपाई तुरंत ही कर देगी.

योजना सुनिश्चित करेगी कि कोई भी खरबपति कभी गिर कर अरबपति व अरबपति गिर कर करोड़पति न हो जाए. यदि ऐसा कहीं भी पाया जाता है तो सरकार अपने कदमों द्वारा उन के कदम उन के मूल क्षेत्र में ही वापस खींच देगी. इस के लिए यदि आम आदमी की घींच को करारोपण के माध्यम से और खींच उसे मरणासन्न करना पड़े तो सरकार बिलकुल नहीं हिचकिचाएगी.

जीएसटी का युक्तियुक्तकरण अमीर व अमीरेआजम श्रेणी के लोगों के लिए किया जाएगा. निजी जेट व लग्जरी याट तथा 5 करोड़ रुपए से अधिक की कारों की खरीदी दर पर मात्र 2 प्रतिशत रखी जाएगी ताकि अमीर व्यक्ति की लग्जरी याट व निजी जैट बरकरार रहें. ये सरकार के नुमाइंदों के भी काम आते ही हैं न, इसलिए यह कदम तो एक तरह से सरकार के हित में ही होगा. इस क्रांतिकारी कदम से राजस्व में जो कमी आएगी उस की पूर्ति साइकिल व दोपहिया वाहनों पर दर बढ़ाने के साथ कर ली जाएगी. अर्थात, बजटीय घाटे को सरकार दृढ़ता से नहीं बढ़ने देगी.

योजना यह भी सुनिश्चित करेगी कि किसी भी अमीर की छोटीमोटी हरकतों, जैसे बैंकों का हजारपांचसौ करोड़ रुपए हजम कर जाना, उद्योग खड़ा करने के लिए नाममात्र दर पर सरकारी भूमि के बड़े हिस्से का व्यवसायीकरण कर देना आदि पर एनफोर्समैंट एजेंसी द्वारा तुच्छतुच्छ तरीकों से पूछताछ, एफआईआर इत्यादि से तंग नहीं किया जाएगा.

सरकार इस दुष्प्रचार को बिलकुल बरदाश्त नहीं करेगी कि गरीब व अमीर के बीच विद्यमान चौड़ी खाई इस योजना से और चौड़ी हो जाएगी. आखिर अमीर ही गरीब को रोजगार देता है. अमीर के लिए छाता योजना होगी तो गरीब के लिए धूप खाने की योजना पर धूप से जब विटामिन डी बनेगा तो फिर यह अमीर के हिस्से में पहले जाएगा.

आलोचक हमेशा की तरह कहेंगे कि इस योजना से सामाजिक संतुलन बिगड़ेगा. लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि समानता तो सपनों में होती है, असमानता हकीकत है.

गरीबों को तो सरकार ने 3 करोड़ से अधिक मकान बना कर दे दिए हैं. सो संवैधानिक समानता की भावना की कद्र करते सरकार एक शाइनिंग आवास योजना देश की शान हाई नैटवर्थ व्यक्तियों के लिए भी लाएगी. एक रुपए की नाममात्र की दर पर सरकारी प्राइम लैंड इस के लिए चिह्नित की जाएगी. प्रत्येक बंगला कम से कम एक एकड़ का होगा. छत पर हैलिपैड होगा. हवाईपट्टी भी यहां पर होगी. प्रत्येक हवेली में 2 स्विमिंग पूल होंगे. यहां सातसितारा क्लबहाउस होगा. बिजली, इंटरनैट, पानी यहां बिलकुल मुफ्त होगा. अमीरेआजम यदि इस कदम से प्रसन्न हो गए तो सोचिए, वे नएनए उद्योग, बेशक सरकारी अनुदान के दम पर स्थापित करेंगे. इस टाउनशिप की खासीयत यहां के वह फुटपाथ होंगे जिन पर अमीरों के होनहार किशोर व युवा अपनी इम्पौर्टेड व महंगी एसयूवीज से भविष्य में गरीबों को कुचलने का अभ्यास सुकून से करेंगे.

सरकारी मिड्डे मील योजना की तर्ज पर अमीरों के दून जैसे स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के लिए ‘डिनर इन द स्काई’ योजना लौंच की जाएगी. गरीब को मुफ्त राशन की तरह अमीरों के लिए मुफ्त निवेश योजना लौंच की जाएगी. गरीब का भूखा रहना तो बरदाश्त किया जा सकता है पर अमीर को काजू व महंगी व्हिस्की रोज न मिले, यह देश के सम्मान के विपरीत होगा. जिन राज्यों में मद्यनिषेध लागू है वहां भी अमीर को पीने की इजाजत देना सरकार की इज्जत बढ़ाना होगा.

बैंकों पर लगाम लगाने का भी इस में प्रावधान होगा. यदि किसी अमीर उद्योगपति ने किसी बैंक के दोचार हजार करोड़ रुपए की रकम का डिफौल्ट कर दिया हो तो इस के लिए अमीर को इतना प्रताडि़त न किया जाए कि वह मातृभूमि छोड़ने को मजबूर हो जाए. एक विधेयक लाया जाएगा कि एक हजार करोड़ तक के डिफौल्ट पर कोई भी कानूनी कार्यवाही न कर मध्यस्थता द्वारा निबटारा किया जाए. जो बड़ी रकम जुगाड़ कर बड़े उद्योग लगाएगा उस से डिफौल्ट भी बड़े ही होंगे. जैसे कि साइकिल व बीएमडब्लयू से हुए ऐक्सिडैंट में खरोंच व जान जाने जैसा अंतर होता है. इसलिए सरकार यह निर्णय लेती है कि लाखों करोड़ में पंहुच गई एनपीए में सैकड़ोंहजारों करोड़ का डिफौल्ट करने वाले बड़े उद्योगपतियों के नाम डिस्क्लोज नहीं किए जाएंगे पर दोपांच या दस लाख रुपए का ऋण लेने वाले यदि डिफौल्ट करेंगे तो उन के नाम उजागर करने में देरी नहीं की जाएगी.

सरकार इरादा रखती है कि वह उच्च व सर्वोच्च न्यायालयों में एकदो न्यायाधीश नामित कर सके. यदि वह इस में कभी सफल हो गई तो कम से कम इन में से एक नामित अमीर व्यक्ति होगा. इस से यह लाभ होगा कि अमीरों के हित को संरक्षित करने का पुनीत कार्य वह कर सकेगा.

जितने भी आयोग व कमीशन हैं (वैसे यह सरकार को भी पता नहीं है, उन की गिनती के लिए शीघ्र ही एक आयोग बनाया जा रहा है), उन के विधान में परितर्वन कर प्रत्येक में अब एक अमीर, जिस की कि नैटवर्थ कम से कम 1,000 करोड़ रुपए हो, को नामित किया जा सकेगा.

रिजर्व बैंक औफ इंडिया को अमीरों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए इस के बोर्ड में भी एक ‘अपने वाले’ धनीधोरी को नामित किया जाएगा. संसद में 5 सीटें 5 सब से अमीरों के लिए आरक्षित करने के लिए अगले सत्र में विधेयक लाया जाएगा.

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह अमीरों को गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित किया जाएगा. आखिर वे भी तो हमें आर्थिक गुलामी से आज नहीं तो कल आजाद करवाएंगे.

एक अमीर जन आयोग भी बनाया जाएगा. इस का चेयरमैन देश के सब से अमीर व्यक्ति को बनाया जाएगा. इस की अनुशंसाएं मानने को सरकार बाध्य होगी. इसे परिसीमन आयोग के निर्णयों की तरह किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी. योजना में वेटेड वोटिंग के बारे में भी जिक्र है. इस के अंतर्गत जो जितना अमीर, उस के वोटों की संख्या उतनी अधिक होगी, जैसे करोड़पति के 10 वोट, अरबपति के सौ वोट व खरबपति के 1,000 वोट. जो फौर्ब्स की सूची में आ कर देश को गौरवान्वित करने का कार्य करेगा उस के एक लाख वोट होंगे.

कुल मिला कर गिद्दों व अमीरों दोनों का संरक्षण सरकार करेगी. अमीरों की नजर सार्वजनिक संसाधनों पर गिद्द की तरह ही होती है तभी तो वे अमीर हैं. लोकतंत्र का 5वां सब से मजबूत खंबा अमीर ही हैं. लग्जरी वस्तुओं को करारोपण से मुक्त करने पर भी प्रावधान आगामी चुनाव में अमीरों के चंदे की मात्रा पर मुख्यतया आधारित होगा.

उपसंहार

आशा है लंबे समय से उपेक्षित अमीर वर्ग को कुछ राहत उक्त अभिनव योजना से मिलेगी तो वे सरकार व समाज के साथ कदमताल कर अपनी नैटवर्थ को अल्प समय में कई गुना कर सकेंगे.

फलस्वरूप, ट्रिकल डाउन थ्योरी के अनुसार कुछ लाभ नीचे वालों को भी अवश्यंभावी मिलेगा. नीचे वाले इतने में ही खुश होने के आदी पहले ही बना दिए गए हैं.

Online Hindi Story : यही है मंजिल – क्या यही थी नेहा की मंजिल

Online Hindi Story : कुछ पेचीदा काम में फंस गई थी नेहा. हो जाता है कभीकभी. जब से नौकरी में तरक्की हुई है तब से जिम्मेदारी के साथसाथ काम का बोझ भी बढ़ गया है. पहले की तरह 5 बजते ही हाथपैर झाड़, टेबल छोड़ उठना संभव नहीं होता. अब वेतन भी दोगुना हो गया है, काम तो करना ही पड़ेगा. इसलिए अब तो रोज ही शाम के 7 बज जाते हैं.

नवंबर के महीने में चारों ओर कोहरे की चादर बिछने लगती है और अंधेरा हो जाता है. इस से नेहा को अकेले घर जाने में थोड़ा डर सा लगने लगा था. आजकल रात के समय अकेली जवान लड़की के लिए दिल्ली की सड़कें बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वह सुनसान इलाका हो या फिर भीड़भाड़ वाला, सभी एकजैसे हैं. इसलिए वह टैक्सी या औटोरिकशा लेने का साहस नहीं करती, बस ही पकड़ती है और बस उसे सोसाइटी के गेट पर ही छोड़ती है.

आज ताला खोल कर जब उस ने अपने फ्लैट में पैर रखा तब ठीक 8 बज रहे थे. फ्रैश हो कर एक कप चाय ले जब वह ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठी तब साढ़े 8 बजे रहे थे.

आकाश में जाने कब बादल घिर आए थे. बिजली चमकने लगी थी. नेहा शंकित हुई. टीवी पर रात साढ़े 8 बजे के समाचार आ रहे थे. समाचार शुरू ही हुए थे कि एक के बाद एक दिलदहलाने वाली खबरों ने उसे अंदर तक हिला दिया.

पहली घटना में चोरों ने घर में अकेली रहने वाली एक 70 वर्षीय वृद्धा के फ्लैट में घुस कर लूटपाट करने के बाद उस की हत्या कर दी. दूसरी घटना में फ्लैट में रहने वाली अकेली युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. तीसरी घटना में भी कुछ ऐसा ही किया गया था. छेड़छाड़ की घटना तूल पकड़ती कि इतने में लड़की का भाई आ गया, जिस से बदमाश भाग खड़े हुए. नेहा ने हड़बड़ा कर टीवी बंद कर दिया. आज 9 बजे का सीरियल देखने का भी उस का मन नहीं हुआ. तभी बादल गरजे और तेजी से बारिश शुरू हो गई. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी.

बचपन से ही आंधी से नेहा को बड़ा डर लगता है. जब भी आंधीतूफान आता था, वह मां से लिपट कर रोती थी. शादी के बाद 2 वर्षों तक पति दीपक के साथ ससुराल में रही. वैसे भी वह घर पूरी तरह कबाड़खाना है, उस घर में घुसेगा कौन? हर कदम पर कोई न कोई खड़ा मिलेगा. इतना बड़ा संयुक्त परिवार कि रोज 2 किलो आटे की रोटियां बनती हैं. महाराज भी रसोई संभालते परेशान हो जाते थे.

2 जेठ, उन के जवान 3-4 बेटाबेटी, जेठानियां, सास, विधवा बूआ, उन के 2 जवान बेटे और वे दोनों. बड़ी ननद का विवाह गांव में बहुत बड़े जमींदार परिवार में हुआ था. वे गाड़ी भरभर कर वहां से अनाज, घी, फल, सब्जी, खोया और सरसों का तेल भेजती रहती हैं. उन के दोनों बेटे कालेज में पढ़ते हैं, इसलिए वे नानी के पास ही रहते हैं.

उस घर में यदि भूल से भी कोई घुसा तो उस का उन लोगों के बीच से जीवित निकलना मुश्किल होगा. नेहा को संयुक्त परिवार में रहना बिलकुल भी पसंद नहीं था. विवाहित जीवन के नाम पर जो चित्र उस के मन में था वह था कि बस घर में वह और एक उसे चाहने वाला उस का पति हो. हां, आगे चल कर एकदो बच्चे, बस. पर मां को पता नहीं क्या सूझा.

पापा तो पहले ही गुजर गए थे. मां ने ही पाला था उस को. मां को पता था कि उसे संयुक्त परिवार पसंद नहीं, फिर भी इतने बड़े परिवार में उस की शादी कर दी. उस ने पूरी ताकत से इस का विरोध किया पर मां टस से मस नहीं हुईं. उन का बस एक ही तर्क था, ‘मैं आज हूं, कल नहीं.’ अकेले रहना खतरे से खाली नहीं, बड़े परिवार का मतलब बड़ी सुरक्षा भी है. नेहा के विरोध का कुछ फायदा नहीं हुआ. शादी हो गई, शादी के 3 महीने बाद ही मां चल बसीं. मां के फ्लैट में ताला लग गया. उस ने तब दीपक को फुसलाने की कोशिश की थी मां के फ्लैट में रहने के लिए, लेकिन दीपक ने दोटूक जवाब दिया था कि वह अपना घर छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा. वह जहां चाहे वहां रह सकती है.

नेहा गुस्से से पागल हो गई थी. इस परिवार में वही फालतू है क्या? इतना कमाती है, उस की तो बड़ी कद्र होनी चाहिए. पर नहीं, यहां तो सर्वेसर्वा सास हैं जो एक डंडे से सब को हांकती हैं. 3 भाइयों में दीपक सब से ज्यादा कमाता है. नेहा ठीक से नहीं जानती पर इतना जानती है कि मां के हाथ में वही सब से ज्यादा खर्चा देता है. कायदे से परिवार में उस के लिए खास व्यवस्था होनी चाहिए. पर नहीं, जो सब के लिए वही उस के लिए भी. बूआ तो एक तरह से आश्रित हैं बेटे के साथ, पर कौन कहेगा ये आश्रित हैं, उन के भी वही ठाटबाट जो सब के हैं.

इतना बड़ा परिवार नेहा को बिलकुल भी पसंद नहीं था पर मां के कहने पर कि ‘मेरा कोई भरोसा नहीं, पता नहीं कब चल दूं. तुझ में अक्ल नहीं. यह बड़ा परिवार है. जितना बड़ा परिवार उतनी बड़ी सुरक्षा.’ लेकिन उन का कुछ भी कहा नेहा को अच्छा नहीं लगता था. देखा जाए तो परिवार खुले विचारों का था, पुरानी परंपरा के साथसाथ आधुनिकता का भी तालमेल बना कर रखा जाता था.

अम्मा उस जमाने की ग्रेजुएट थीं लेकिन अब भी रोज समाचारपत्र पढ़तीं. हां, घर को बांध कर रखने के लिए कुछ नियम, बंधन, अनुशासन होता है, उन का पालन कठोरता से जरूर करना पड़ता है. उन की अनदेखी करने को माफ नहीं किया जा सकता. ऐसा ही कुछ अम्मा सोचती थीं. इसलिए नेहा अपनेआप को परिवार में फिट महसूस नहीं करती थी. उस का घर तो एकदम खुला था, एकल परिवार में भी उग्र, आधुनिक, एक अकेली संतान, सिरचढ़ी, जो मन में आता, करती. कभीकभी सहेली के साथ गपें मारतेमारते वहीं रुक जाती, घर पर एक फोन कर देती, बस.

अब नेहा की इन सब आदतों पर अंकुश लग गया था. औफिस में देर हुई तो भी जवाब दो. कहीं जाओ तो बता कर जाओ. शौपिंग करने जाओ तो कोई न कोई साथ लग जाता. परेशान हो उठी नेहा इस सब से. मां की मृत्यु के बाद उन का सजाधजा फ्लैट खाली पड़ा था, उस ने दीपक को फुसलाने की कोशिश की कि चलो, अपना घर अलग बसा लें, लेकिन वह तो टस से मस नहीं हुआ.

कुछ उपाय नहीं सूझा तो दोस्तों की सलाह पर नेहा ने घर में सब के साथ बुरा व्यवहार, कहासुनी करनी शुरू कर दी. परिवार के लोग थोड़ा विचलित तो हुए पर इस सब के बावजूद घर से अलग होने का रास्ता नहीं बना. तब एक दिन नेहा असभ्यों की तरह गंदी जबान से लड़ी. यह देख कर दीपक भी परेशान हो गया. दीपक खुद ही नेहा को उस की मां के फ्लैट में छोड़ आया. नेहा 2 महीने तक दीपक से बात करने का काफी प्रयास करती रही लेकिन उस ने फोन उठाना ही बंद कर दिया. नेहा के दोस्तों ने उसे तलाक के लिए उकसाया पर नेहा दीपक की तरफ से पहल की प्रतीक्षा करती रही. उस ने सोचा तलाक दीपक मांगे तो वह मोटी रकम वसूले. यह भी दोस्तों की सलाह थी.

टीवी औन किया. समाचार चल रहे थे. खबर थी कि एक फ्लैट में अकेली युवती पर हमला हो गया. यह सुन उस का दिल दहल गया. पर इस से भी भयानक समाचार था कि आज रात भयंकर तूफान के साथ मूसलाधार बारिश होने वाली है, सब को सावधान कर दिया गया था. नेहा ने बाहर झांका तो वास्तव में तेज हवा चल रही थी, आसमान में बिजली कौंध रही थी और घने बादल छाए हुए थे. ओह, यह मेरे लिए कितनी डरावनी रात होगी. कामवाली रात का खाना तैयार कर के रख गई थी. नेहा मेज पर आई और टिफिन खोल कर देखा तो पनीर व मखाने की सब्जी और परांठे रखे थे. लेकिन आज उस का खाने का मन नहीं हुआ. घड़ी देखी, 9 बज रहे थे. वहां ससुराल में इस समय सब लोग डिनर के लिए खाने की मेज पर आ गए होंगे. मेज क्या टेबल टैनिस का मैदान. इतने सारे लोग.

असल में दोपहर का खाना तो नाममात्र बनता था. सुबह सब अपनेअपने हिसाब से खा कर टाइम से निकल जाते. बड़ी जेठानी डाक्टर हैं. 8 बजे ही निकल जाती हैं. रात को ही सब लोग एकसाथ बैठ कर खाते, वही एक खुशी का समय होता. उस परिवार में फरमाइशी, मनपसंद खाना, छेड़छाड़, हंसीमजाक, कल रात के खाने की फरमाइश होती, यानी पूरा एकडेढ़ घंटा लगा देते खाना खाने में वे. और अच्छा व स्वादिष्ठ खाना तैयार करने में सास और बूआ दोनों पूरे दिन लगी रहतीं.

अचानक पूरा फ्लैट थरथरा उठा. बहुत पास ही कहीं बिजली गिरी. यह देख नेहा का तो दम ही निकल सा गया. यदि कोई खिड़की का शीशा तोड़ कर अंदर चला आया तो क्या होगा. उसे अपनी सहेली मधुरा की याद आई जो उसी के ब्लौक में छठी मंजिल पर रहती थी. साथ में उस की सास रहती है जिस से उस की बिलकुल भी नहीं बनती. दोनों में रोज झगड़ा होता है. आज नेहा काफी डर गई थी. पता नहीं क्यों उस का खून सूख रहा था. मन में न जाने कैसीकैसी बुरी घटनाएं उभर कर आ रही थीं.

झमाझम गरज के साथ बारिश हो रही थी. आखिरकार उस ने मधुरा को फोन किया.

‘‘नेहा, क्या बात है,’’ मधुरा ने कहा.

‘‘तू नीचे मेरे पास आजा मधुरा, मुझे आज बहुत डर लग रहा है. यहां सो जा आज,’’ नेहा बोली.

‘‘सौरी, आज तो मैं तेरे पास नहीं आ सकती. अगर ज्यादा परेशान है, तो तू ही ऊपर आ जा.’’

मधुरा से इस तरह के जवाब की आशा नहीं थी नेहा को, उसे यह जवाब सुन बड़ा धक्का लगा, ‘‘क्यों, क्यों नहीं आ सकती?’’

‘‘अरे यार, विनय चंडीगढ़ एक सैमिनार में गए हैं. मांजी को बुखार है. उन को छोड़ कर मैं कैसे आ सकती हूं.’’

गुस्सा आ गया नेहा को, कहां तो सास इसे फूटी आंख नहीं सुहाती,

रोज लड़ाई और आज उन को जरा बुखार क्या आया, छोड़ कर नहीं आएगी. ‘‘आज बड़ा दर्द आ रहा है सास पर,’’ नेहा थोड़ा तल्ख अंदाज में बोली.

‘‘नेहा, जबान संभाल कर बात कर. हम लड़ें या मरेकटें, लेकिन तेरी तरह रिश्ता तोड़ना नहीं सीखा हम ने. मुझे उन के पास रहना है देखभाल के लिए, बस.’’ उस ने फोन काट दिया.

फिर बिजली गिरी. अब तो नेहा कांपने लगी. हवा कम हो गई पर गरज के साथ बारिश और बिजली चमकी और वर्षा तेज हो गई.

एक मुसीबत और आ गई. अब बारबार बिजली जाने लगी. वैसे यहां सोसाइटी वालों ने जेनरेटर की व्यवस्था कर रखी है, पर आलसी गार्ड उसे चलाने में समय ले लेते हैं. उन्हीं 6-7 मिनटों में नेहा का दम निकल जाता है. नेहा 2 वर्षों से अकेली इस फ्लैट में रह रही है. ससुराल से उस ने एकदम नाता तोड़ लिया है. हजार कोशिशों के बाद भी वह दीपक को उस के परिवार से अलग कर अपने फ्लैट में नहीं ला पाई. ऐसे में उस परिवार पर उसे गुस्सा तो आएगा ही.

वह परिवार ही उस का एकमात्र दुश्मन है संसार में. उस से क्या रिश्ता रखना, पर आज इस डरावनी रात में उसे लगने लगा जिस घर को वह मछली बाजार कहती थी, वह कितना सुरक्षित गढ़ था. बड़ी जेठानी डाक्टर हैं. उस से दस गुना कमाती हैं. पर वे कितनी खुश थीं उस घर में. बस, उसे ही कभी अच्छा नहीं लगा, तो क्या उस के संस्कारों में कोई खोट है?

पास में ही फिर से बिजली गिरी और उसे लगा किसी ने उस के फ्लैट का दरवाजा ढकेला हो. होश उड़ गए उस के. घड़ी में मात्र सवा 9 बज रहे थे. जाड़े, वह भी इस महाप्रलय, की रात कैसे काटेगी वह. मधुरा भी आज दगा दे गई, सास की सेवा में लगी है, इसलिए उसे छोड़ कर नहीं आई. इतनी रात को भला कौन आएगा उस का साथ देने? अब तो बस एक ही सहारा है. जन्मजन्मांतर का रक्षक दीपक. लेकिन उसे फोन करेगी तो वह मोबाइल पर उस का नंबर देखते ही फोन काट देगा. उस ने ससुराल के लैंडलाइन पर फोन लगाया.

अम्मा ने फोन उठाया, बोलीं, ‘‘हैलो.’’

अचानक जाने क्यों अंदर से रुलाई फूटी, ‘‘अम्माजी.’’

‘‘अरे नेहा, क्या बात है बेटा?’’

इतना सुनते ही वह रो पड़ी. सोचने लगी कि कितना स्नेह है अम्मा के शब्दों में.

अम्मा ने आगे कहा, ‘‘अरे, नेहा, रो क्यों रही है? कोई परेशानी है? तू ठीक तो है न बेटा?’’

‘‘अम्माजी, मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘हां, रात बड़ी भयानक है और तू अकेली…’’ अम्मा तसल्लीभरे शब्दों में बोलीं.

‘‘इन को भेज देंगी आप,’’ नेहा का गला रुंध गया था बोलते हुए.

‘‘बेटा, दीपू तो बेंगलुरु गया है काम से. तू चिंता मत कर, घर को अच्छे से बंद कर, बैग में कपड़े डाल कर तैयार हो ले. यहां चली आ, मैं संजू को गाड़ी ले कर भेज रही हूं. 10 मिनट में पहुंच जाएगा. घबरा मत बेटा. सब हैं तो घर में.’’

अब नेहा की जान में जान आई. संजू बड़ी ननद का बेटा है, एमबीए कर रहा है. नेहा को ससुराल में अपना कमरा याद आ गया, कितना सुरक्षित है वह. नेहा को खुद पर ग्लानि हुई कि वह उस परिवार की अपराधिन है जिस ने उस परिवार के बच्चे को परिवार वालों से अलग करना चाहा. उस परिवार के टुकड़े करने पर वह उतारू हो गई थी. दूसरी तरफ वे सब लोग हैं जो इस मुसीबत में उस को माफ कर उस के साथ खड़े हैं.

‘‘अम्माजी…’’

‘‘अरे, संजू 10 मिनट में पहुंचता है, तू घबरा मत बेटा, जल्दी तैयार हो जा…’’ अम्मा ने उसे तसल्ली दी.

नेहा को आज लग रहा था कि वह कितनी गलत थी. सुरक्षा, स्नेह और प्यारभरी अपनों की छांव को छोड़ कर दुनिया के झंझावातों के बीच चली आई थी. नहीं…नहीं…अब ऐसी गलती दोबारा नहीं करेगी वह. आज अपने घर जा, अपनों से माफी मांग, सब गलतियां सुधार लेगी.

Hindi Kahani : दिल के पुल – समीक्षा की शादी में क्या चीज आड़े आ रही थी

Hindi Kahani : आज अल्लसुबह इतना कुहरा न था जितना अब दिन चढ़ते छाया जा रहा था. मौसम को भी अनुमान हो चला था कि आज साफगोई की आवश्यकता नहीं है. दिल की उदासी मौसम पर छाई थी और मौसम की उदासी दिल पर. समीक्षा खामोशी से तैयार होती जा रही थी. न मन में कोई उमंग, न कोईर् स्वप्न. आज फिर उसे नुमाइश करनी थी, अपनी. 33 श्रावण पार कर चुकी समीक्षा अब थक चुकी थी इस परेड से. पर क्या करे, न चाहते हुए भी परिवार वालों की जागती उम्मीद हेतु वह हर बार तैयार हो जाती. शुरूशुरू में अच्छी नौकरी के कारण उस ने कई रिश्ते टाले, फिर स्वयं उच्च पदासीन होने के कारण कई रिश्ते निम्न श्रेणी कह कर ठुकराए. 30 पार करतेकरते रिश्ते आने कम होने लगे. अब हर 6 माह बीतने बाद रिश्तों के परिमाण के साथ उन की गुणवत्ता में भी भारी कमी दिखने लगी थी.

समीक्षा ने प्रोफैशनल जगत में बहुत नाम कमाया. आज वह अपनी कंपनी की वाइस प्रैसीडैंट है. बड़ा कैबिन है, कई मातहत हैं, विदेश आनाजाना लगा रहता है. सभी वरिष्ठ अधिकारियों की चहेती है. पर यह कैसी विडंबना है कि जहां एक तरफ उस की कैरियर संबंधी उपलब्धी को इतनी छोटी आयु की श्रेणी में रख सराहा जाता है, वहीं दूसरी तरफ शादी के लिए उस की उम्र निकल चुकी है. यही विडंबना है लड़कियों की. कैरियर में आगे बढ़ना चाहती हैं तो शादी पीछे रखनी पड़ती है और यदि समय रहते शादी कर लें तो पति, गृहस्थी, बालबच्चों के चक्कर में अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए कैरियर होम करना पड़ता है. क्या हर वह स्त्री जो नौकरी में आगे बढ़ना चाहती है और गृहस्थी का स्वप्न भी संजोती है, उसे सुपर वूमन बननागा?

‘‘समीक्षा तैयार हो गई? लड़के वाले आते होंगे,’’ मां की पुरजोर पुकार से उस के विचारों की तंद्रा भंग हुई. वर्तमान में लौट कर वह पुन: आईने में स्वयं को देख कमरे से बाहर चली गई.

‘‘हमारी बेटी ने बहुत जल्दी बहुत ऊंचा पद हासिल किया है जनाब,’’ महेशजी ने कहा.

यह सुनते ही लड़के की मां ने बिना देर किए प्रश्न दागा, ‘‘घर के कामकाज भी आते हैं या सिर्फ दफ्तरी आती है?’’

‘हम सोच कर बताएंगे,’ वही पुराना राग अलाप कर लड़के वाले चले गए. समय बीतने के साथ रिश्ता पाने की लालसा में समीक्षा के घर वाले उस से कम तनख्वाह वाले लड़कों को भी हामी भर रहे थे. लेकिन अब बात उलट चुकी थी. अकसर सुनने में आता कि लड़के वाले इतनी ऊंची पदासीन लड़की का रिश्ता लेने में सहज नहीं हैं. कहते हैं घर में भी मैनेजरी करेगी.

शाम ढलने तक बिचौलिए के द्वारा पता चल गया कि अन्य रिश्तों की भांति यह रिश्ता भी आगे नहीं बढ़ पाएगा. एक और कुठाराघात. कड़ाके की ठंड में भी उस के माथे पर पसीना उग गया. सोफे पर बैठेबैठे ही उस के पैर कंपकंपा उठे तो उस ने शाल से ढक लिए. ऐसा लग रहा था कि उस के मन की कमजोरी उस के तन पर भी उतर आई है. पता नहीं उठ कर चल पाएगी या नहीं. उस का मन काफी कुछ ठंडा हो चला था, किंतु आंखों का रोष अब भी बरकरार था.

‘‘पापा, प्लीज अब रहने दीजिए न,’’ पता नहीं समीक्षा की आवाज में कंपन मौसम के कारण था या मनोस्थिति के कारण. इस बेवजह के तिरस्कार से वह थक चुकी थी, ‘‘जो भी आता है मेरी खूबियों को कसौटी पर कसने की फिराक में नजर आता है. हमेशा शीर्ष पर रहने के बाद हाशिए पर सरकाए जाने की पीड़ा असहनीय लगने लगी है मुझे,’’ उस ने भावुक बातों से पिता को सोच में डाल दिया.

समय का चक्र चलता रहा. समीक्षा के जिद करने पर उस के भाई की शादी करवा दी गई. उस ने शादी का विचार त्याग दिया था. सब कुछ समय पर छोड़ नौकरी के साथसाथ सामाजिक कार्य करती संस्था से भी जुड़ गई. मजदूर वर्ग के बच्चों को शिक्षा देने में उसे सच्चे संतोष की प्राप्ति होती. वहीं उस की मुलाकात दीपक से हुई. दीपक भी अपने दफ्तर के बाद सामाजिक कार्य करने हेतु इस संस्था से जुड़ा था. उस की उम्र करीब 45 साल होगी. ऐसा बालों में सफेदी और बातचीत में परिपक्वता से प्रतीत होता था. दोनों की उम्र में इतना फासला होने के कारण समीक्षा बेझिझक उस से घुलनेमिलने लगी. उस की बातों, अनुभव से वह कुछ न कुछ सीखती रहती.

एक दिन दोनों काम के बाद कौफी पी रहे थे. तभी अचानक दीपक ने पूछा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं? अभी तक शादी क्यों नहीं की समीक्षा?’’

‘‘रिश्ते तो आते रहे, किंतु कोई मुझे पसंद नहीं आया तो किसी को मैं. अब मैं ने यह फैसला समय पर छोड़ दिया है. मैं ने सुना है आप ने शादी की थी, लेकिन आप की पत्नी…’’ कहते हुए समीक्षा बीच में ही रुक गई.

‘‘उफ, तो कहानी सुन चुकी हो तुम? सब के हिस्से यह नहीं होता कि उन का जीवनसाथी आजीवन उन का साथ निभाए,’’ फिर कुछ पल की खामोशी के बाद दीपक बोले, ‘‘मैं ने सब से झूठ कह रखा है कि मेरी पत्नी की मृत्यु हो गई. दरअसल, वह मुझे छोड़ कर चली गई. उसे जिन सुखसुविधाओं की तलाश थी, वे मैं उसे 30 वर्ष की आयु में नहीं दे सकता था…

‘‘एक दिन मैं दूसरी कंपनी में प्रैजेंटेशन दे कर जल्दी फ्री हो गया और सीधा अपने घर आ गया. अचानक घर लौटने पर मैं अपने एहाते में अपने बौस की कार को खड़ा पाया. मैं अचरज में आ गया कि बौस मेरे घर क्यों आए होंगे. फटाफट घंटी बजा कर मैं पत्नी की प्रतीक्षा करने लगा. दरवाजा खोलने में उसे काफी समय लगा. 3 बार घंटी बजाने पर वह आई. मुझे देखते ही वह अचकचा गई और उलटे पांव कमरे में दौड़ी. इस अप्रत्याशित व्यवहार के कारण मैं भी उस के पीछेपीछे कमरे में गया तो पाया कि मेरा बौस मेरे बिस्तर पर शर्ट पहने…’’

दीपक का गला भर्रा गया. कुछ क्षण वह चुप नीचे सिर किए बैठा रहा. फिर आगे बोला, ‘‘पिछले 4 महीनों से मेरी पत्नी और मेरे बौस का अफेयर चल रहा था… मुझ से तलाक लेने के बाद उस ने मेरे बौस से शादी कर ली.’’

समीक्षा ने दीपक के कंधे पर हाथ रख सांत्वना दी, ‘‘एक बात पूछूं? आप ने मुझे ये सब बातें क्यों बताईं?’’

कुछ न बोल दीपक चुपचाप समीक्षा को देखता रहा. आज उस की नजरों में एक अजीब सा आकर्षण था, एक खिंचाव था जिस ने समीक्षा को अपनी नजरें झुकाने पर विवश कर दिया. फिर बात को सहज बनाने हेतु वह बोली, ‘‘दीपकजी, इतने सालों में आप ने पुन: विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘तुम्हारे जैसी कोई मिली ही नहीं.’’

यह सुनते ही समीक्षा अचकचा कर खड़ी हो गई. ऐसा नहीं था कि उसे दीपक के प्रति कोई आकर्षण नहीं था. ऐसी बात शायद उस का मन दीपक से सुनना भी चाहता था पर यों अचानक दीपक के मुंह से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी. खैर, मन की बात कब तक छिप सकती है भला. दोनों की नजरों ने एकदूसरे को न्योता दे दिया था.

समीक्षा की रजामंदी मिलने के बाद दीपक ने कहा, ‘‘समीक्षा, मुझे तुम से कुछ कहना है, जो मेरे लिए इतना मूल्यवान नहीं है, लेकिन हो सकता है कि तुम्हारे लिए वह महत्त्वपूर्ण हो. मैं धर्म से ईसाई हूं. किंतु मेरे लिए धर्म बाद में आता है और कर्म पहले. हम इस जीवन में क्या करते हैं, किसे अपनाते हैं, किस से सीखते हैं, इन सब बातों में धर्म का कोई स्थान नहीं है. हमारे गुरु, हमारे मित्र, हमारे अनुभव, हमारे सहकर्मी जब सभी अलगअलग धर्म का पालन करने वाले हो सकते हैं, तो हमारा जीवनसाथी क्यों नहीं? मैं तुम्हारे गुण, व्यक्तित्व के कारण आकर्षित हुआ हूं और धर्म के कारण मैं एक अच्छी संगिनी को खोना नहीं चाहता. आगे तुम्हारी इच्छा.’’

हालांकि समीक्षा भी दीपक के व्यक्तित्व, उस के आचारविचार से बहुत प्रभावित थी, किंतु धर्म एक बड़ा प्रश्न था. वह दीपक को खोना नहीं चाहती थी, खासकर यह जानने के बाद कि वह भी उसे पसंद करता है मगर इतना अहम फैसला वह अकेली नहीं ले सकती थी. लड़कियों को शुरू से ही ऐसे संस्कार दिए जाते हैं, जो उन की शक्ति कम और बेडि़यां अधिक बनते हैं. आत्मनिर्भर सोच रखने वाली लड़की भी कठोर कदम उठाने से पहले परिवार तथा समाज की प्रतिक्रिया सोचने पर विवश हो उठती है. एक ओर जहां पुरुष पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी राय देता है, पूरी बेबाकी से आगे कदम बढ़ाने की हिम्मत रखता है, वहीं दूसरी ओर एक स्त्री छोटे से छोटे कार्य से पहले भी अपने परिवार की मंजूरी चाहती है, क्योंकि इसी का समाज संस्कार का नाम देता है. आज रात खाने में क्या बनाऊं से ले कर नौकरी करूं या गृहस्थी संभालू तक मानो संस्कारों को जीवित रखने का सारा बोझ स्त्री के कंधों पर ही है.

समीक्षा ने यह बात अपनी मां के साथ बांटी, ‘‘आप क्या सोचती हैं इस विषय पर मां?’’

मां ने प्रतिउत्तर प्रश्न किया, ‘‘क्या तुम दीपक से प्यार करती हो?’’

समीक्षा की चुप्पी ने मां को उत्तर दे दिया. वे बोलीं, ‘‘देखो समीक्षा, तुम्हारी उम्र मुझे भी पता है और तुम्हें भी. मैं चाहती हूं कि तुम्हारा घर बसे, तुम्हारा जीवन प्रेम से सराबोर हो, तुम भी अपनी गृहस्थी का सुख भोगो. मगर अब तुम्हें यह सोचना है कि क्या तुम दूसरे धर्म के परिवार में तालमेल बैठा पाओगी… यह निर्णय तुम्हें ही लेना है.’’

समीक्षा की मां से हामी मिलने पर दीपक उसे अपने घर अपने परिवार वालों से मिलाने ले गया. दीपक  के पिता का देहांत हो चुका था. घर में मां व छोटा भाई थे. समीक्षा को दीपक की मां पसंद आई. मां की परिभाषा पर सटीक उतरतीं सीधी, सरल औरत.

‘‘विवाहोपरांत कौन क्या करेगा, अभी इस का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है. दीपक की पहली शादी हम ने अपनी बिरादरी में की थी, लेकिन… अब इतने वर्षों के बाद यह किसी को पसंद कर रहा है तो जरूर उस में कुछ खास होगा,’’ मां खुश थीं.

लेकिन समीक्षा हिंदू है यह जान कर दीपक के भाई का मुंह बन गया.

कुछ ही देर में दीपक की बड़ी विवाहित बहन आ पहुंची. उसे दीपक के छोटे भाई ने फोन कर बुलाया था. बहन ने आ कर काफी हंगामा किया, ‘‘तेरे को शादी करनी है तो मुझ से बोल. मैं लाऊंगी तेरे लिए एक से एक बढि़या लड़की… यह तो सोच कि एक हिंदू लड़की, एक तलाकशुदा ईसाई लड़के से, जो उस से उम्र में भी बड़ी है, शादी क्यों करना चाहती है. तूने अपना पास्ट इसे बता दिया, पर कभी सोचा कि जरूर इस का भी कोई लफड़ा रहा होगा? इस ने तुझे कुछ बताया? क्या तू हम से छिपा रहा है?’’

लेकिन दीपक अडिग था. उस ने सोच लिया था कि जब दिल ने पुल बना लिया है तो वह उस पर चल कर अपने प्यार की मंजिल तक पहुंचेगा.

समीक्षा प्रसन्न थी कि दीपक व उस की मां को यह रिश्ता मंजूर है, साथ ही थोड़ी खिन्नता भी मन में थी कि उस के भाई व बहन को इस रिश्ते पर ऐतराज है. अब समीक्षा ने अपने घर में पिता और भाई को इस रिश्ते के बारे में बताने का निश्चय किया और फिर वही हुआ जिस की आशा भी थी और आशंका भी.

‘‘डायन भी 7 घर छोड़ देती है पर तुम ने अपने ही घर वालों को नहीं बख्शा, शर्म नहीं आई अपनी ही शादी की बात करते और वह भी एक अधर्मी से?’’ उस का छोटा भाई गरज रहा था. वह भाई जिस की शादी की चिंता समीक्षा ने अपनी शादी से पहले की थी.

‘‘मैं क्या मुंह दिखाऊंगी अपने समाज में? मेरे मायके में मेरी छोटी बहन कुंआरी है अभी, उस की शादी कैसे होगी यह बात खुलने पर?’’ उस की पत्नी भी कहां पीछे थी.

‘‘सौ बात की एक बात समीक्षा, यह शादी होगी तो मेरी लाश के ऊपर से होगी.

अब तेरी इच्छा है अपनी डोली चाहती है या अपनी मां की मांग का सिंदूर,’’ पिता की दोटूक बात पर समीक्षा सिर झुकाए, रोती रही.

वह रात बहुत भारी बीती. बेटी की इस स्थिति पर मां अपने बिस्तर पर रो रही थीं और समीक्षा अपने बिस्तर पर. आगे क्या होगा, इस से दोनों अनजान डर पाले थीं.

अगले दिन पिता ने बूआ का बुला लिया. समीक्षा अपनी बूआ से हिलीमिली थी. अत: पिता ने बूआ को मुहरा बनाया उसे समझा कर शादी से हटाने हेतु. बूआ ने हर तरह के तर्कवितर्क दिए, उसे इमोशनल ब्लैकमेल किया.

उन की बातें जब पूरी हो गईं तो समीक्षा ने बस एक ही वाक्य कहा, ‘‘बूआ, मैं बस इतना कहूंगी कि यदि मैं दीपक से शादी नहीं करूंगी तो किसी से भी नहीं करूंगी.’’

किंतु अपेक्षा के विपरीत समीक्षा का शादी न करने का निर्णय उस के पिता व भाई को स्वीकार्य था. लेकिन दूसरे धर्म के नेक, प्यार करने वाले लड़के से शादी नहीं.

अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर पिता बोले, ‘‘समीक्षा की शादी के लिए मैं ने एक लड़का देखा है. हमारे गोपीजी का भतीजा. देखाभाला परिवार है. उन्हें भी शादी की जल्दी और हमें भी,’’ उन्होंने घृणाभरी दृष्टि समीक्षा पर डाली.

समीक्षा का मन हुआ कि वह इसी क्षण वहां से कहीं लुप्त हो जाए. उसी शाम से हिंदुत्व प्रचारक सोना के प्रमुख गोपीजी के भतीजे के गुंडे समीक्षा के पीछे लग गए. उस के दफ्तर के बाहर खड़े रहते. रास्ते भर उस का पीछा करते ताकि वह दीपक से न मिल सके. 3 दिनों की लुकाछिपी से समीक्षा काफी परेशान हो गई.

क्या हम इसीलिए अपनी बेटियों को शिक्षित करते हैं, उन्हें आगे बढ़ने, प्रगति करने की प्रेरणा देते हैं कि यदि उन के एक फैसले से हम असहमत हों तो उन का जीना दूभर कर दें? यह संकुचित सोच उस की मां को कुंठित कर गई. उन के मन में फांस सी उठी. क्या लड़की समाज के लिए अपनी खुशियों का, अपने जीवन का बलिदान दे दे तो महान तथा संस्कारी और यदि अपनी खुशी के लिए अपने ही परिवार से कुछ मांगे तो निर्लज्ज… परिवार का अर्थ ही क्या रह गया यदि वह अपने बच्चों की तकलीफ, उन का भला न देख सके…

रात के भोजन पर समीक्षा के मन पर छाए चिंताओं के बादल से या तो वह स्वयं परिचित थी या उस की मां. अन्य सदस्य बेखबर थे. वे तो समस्या का हल खोज लेने पर भोजन का रोज की भांति स्वाद उठा रहे थे, हंसीमजाक से माहौल हलका बनाए हुए थे.

अचानक मां ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘समीक्षा, तुम मन में कोई चिंता न रख. तुम आज तक बहुत अच्छी बेटी, बहुत अच्छी बहन बन कर रहो. अब हमारी बारी है. आज यदि तुम्हें कोई ऐसा मिला है जिस से तुम्हारा मन मिला है तो हम तुम्हारी खुशी में रोड़े नहीं अटकाएंगे.’’

इस से पहले कि पिता टोकते वे उन्हें रोकती हुई आगे बोलीं, ‘‘कर्तव्य केवल बेटियों के नहीं होते, परिवारों के भी होते हैं. दीपक के परिवार से मैं मिलूंगी और शादी की बात आगे बढ़ाऊंगी.’’

मां के अडिगअटल निर्णय के आगे सब चुप थे. शादी के दौरान भी तनाव कुछ कम नहीं हुआ. दोनों परिवारों में शादी को ले कर न तो रौनक थी और न ही उल्लास. समीक्षा के पिता और भाई ने शादी का कार्ड इसलिए नहीं अपनाया था, क्योंकि उस पर बाइबिल की पंक्तियां लिखी जाती थीं. और दीपक के रिश्तेदारों को उस पर गणेश की तसवीर से आपत्ति थी. केवल दोनों की मांओं ने ही आगे बढ़चढ़ कर शादी की तैयारी की थी. बेचारे दूल्हादुलहन दोनों डरे थे कि शादी में कोई विघ्न न आ जाए.

शादी हो गई तब भी समीक्षा थोड़ी दुखी थी. बोली, ‘‘कितना अच्छा होता यदि हमारे परिवार वाले भी सहर्ष हमें आशीर्वाद देते.’’

मगर दीपक की बात ने उस की सारी शंका दूर कर दी. बोलीं, ‘‘कई बार हमें चुनना होता है कि हम किसे प्यार करते हैं. हम दोनों ने जिसे प्यार किया, उसे चुन लिया. यदि वे हम से प्यार करते होंगे, हमारी खुशी में खुश होंगे तो हमें चुन लेंगे.’’

अब मन में बिना कोई दुविधा लिए दोनों की आंखों में सुनहरे भविष्य के उज्जवल सपने थे.

Best Hindi Story : प्यार न माने सरहद – समीर और एमी क्या शादी कर पाए

Best Hindi Story : समीर को सीएटल आए 3 महीने हो गए थे. वह बहुत खुश था. डाक्टर मातापिता का छोटा बेटा. बचपन से ही कुशाग्र बुद्घि था. आईआईटी दिल्ली का टौपर था. मास्टर्स करते ही माइक्रोसौफ्ट में जौब मिल गई. स्कूल के दिनों से ही वह अमेरिकन सीरियल और फिल्में देखता, मशहूर सीरियल फ्रैंड्स उसे रट गया था. भारत से अधिक वह अमेरिका के विषय में जानता था. वह अपने सपनों के देश पहुंच गया.

सीएटल की सुंदरता देख कर वह मुग्ध हो गया. चारों ओर हरियाली ही हरियाली, नीला साफ आसमान, बड़ीबड़ी झीलें और समुद्र, सब कुछ इतना मनोरम कि बस देखते रहो. मन भरता ही नहीं.

समीर सप्ताह भर काम करता और वीकैंड में घूमने निकल जाता. कभी ग्रीन लेक पार्क, कभी लेक वाशिंगटन, कभी लेक, कभी माउंट बेकर, कभी कसकेडीएन रेंज, तो कभी स्नोक्वाल्मी फाल्स.

खाना खाने के ढेरों स्थान, दुनिया के सभी स्थानों का खाना यहां मिलता. वह नईनई जगह खाना खाने जाता. अब तक वह चीज फैक्ट्री, औलिव गार्डन, कबाब पैलेस, सिजलर्स एन स्पाइस कनिष्क, शालीमार ग्लोरी का खाना चख चुका था.

औफिस उस का रैडमंड में था सीएटल के पास. माइक्रोसौफ्ट में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी यहां रहते हैं. मिक्स आबादी है- गोरे, अफ्रीकन, अमेरिकन और एशियाई देशों के लोग यहां रहते हैं. यहां भारतीय और पाकिस्तानी भी अच्छी संख्या में हैं. देशी खाने के कई रेस्तरां हैं. इसीलिए समीर ने यहां एक बैडरूम का अपार्टमैंट लिया.

औफिस में बहुत से भारतीय थे. अधिकतर दक्षिण भारत से थे. कुछ उत्तर भारतीय भी थे. सभी इंग्लिश में ही बात करते. हायहैलो हो जाती. देख कर सभी मुसकराते. यह यहां अच्छा था, जानपहचान हो न हो मुसकरा कर अभिवादन करा जाता.

समीर की ट्रेनिंग पूरी हो गई तो उसे प्रोजैक्ट मिला. 5 लोगों की टीम बनी. एक दक्षिण भारतीय, 2 गोरे और 1 लड़की एमन. समीर एमन से बहुत प्रभावित हुआ. बहुत सुंदर, लंबी, पतली, गोरी, भूरे बाल, नीली आंखें. पहनावा भी बहुत अच्छा फौर्मल औफिस ड्रैस. बातचीत में शालीन. अमेरिकन ऐक्सैंट में बातें करती और देखने में भी अमेरिकन लगती थी. मूलतया एमन कहां की थी, इस विषय में कभी बात नहीं हुई. उसे सब एमी कहते थे.

एमी काम में बहुत होशियार थी. सब के साथ फ्रैंडली. समीर भी बुद्घिमान, काम में बहुत अच्छा था. देखने में भी हैंडसम और मदद करने वाला. अत: टीम में सब की अच्छी दोस्ती हो गई.

एक दोपहर समीर ने एमी से साथ में लंच करने को कहा. वह मान गई. दोनों ने लंच साथ किया. समीर ने बर्गर और एमी ने सलाद लिया. वह हलका लंच करती थी.

समीर ने पूछा, ‘‘यहां अच्छा खाना कहां मिलता है?’’

‘‘आई लाइक कबाब पैलेस,’’ एमी ने जवाब दिया.

समीर को आश्चर्य हुआ कि अमेरिकन हो कर भी यह भारतीय देशी खाना पसंद करती है.

समीर ने जब एमी से पूछा कि क्या तुम्हें इंडियन खाना पसंद है, तो उस ने बताया कि हां इंडियन और पाकिस्तानी एकजैसा ही होता है. फिर जब समीर ने पूछा कि क्या तुम अमेरिकन हो तो एमी ने बताया कि हां वह अमेरिकन है, मगर दादा पाकिस्तान से 1960 में अमेरिका आ गए थे.

समीर सोचता रहा कि एमी को देख कर उस के पहनावे से, बोलचाल से कोई नहीं कह सकता कि वह पाकिस्तानी मूल की है. दोनों एकदूसरे में काफी रुचि लेने लगे. अब तो वीकैंड भी साथ गुजरता. एमी ने समीर को सीएटल और आसपास की जगहें दिखाने का जिम्मा ले लिया था. पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने जाते, माउंट रेनियर गए. सीएटल की स्पेस नीडल 184 मीटर ऊंचाई पर घूमते हुए स्काई सिटी रेस्तरां में खाना खाया. यहां से शहर देखना एक सपने जैसा लगा.

सीएटली ग्रेट व्हील में वह डरतेडरते बैठा. 53 मीटर की ऊंचाई, परंतु एमी को डर नहीं लगा. भारत में वह मेले में जब भी बैठता था तो बहुत डरता था. यहां आरपार दिखने वाले कैबिन में बैठ कर मध्यम गति से चलने वाला झूला आनंद देता है डराता नहीं.

फेरी से समुद्र से व्हिदबी टापू पर जाना, वहां का इतालियन खाना खाना उसे बहुत रोमांचित करता था. भारत में भी समुद्रतट पर पर जाता था पर पानी एवं वातावरण इतना साफ नहीं होता था. पहाड़ी रास्ते 4 लेन चौड़े, 5 हजार फुट की ऊंचाई पर जाना पता भी नहीं चलता. अपने यहां तो पहाड़ी रास्ते इतने संकरे कि 2 गाडि़यों का एकसाथ निकलना मुश्किल.

साथसाथ घूमतेफिरते दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान गए थे. जैसे एमी के दादा का परिवार 1947 में लखनऊ, भारत से कराची चला गया था. दादी भी लखनऊ से विवाह कर के आई थीं. उन के रिश्तेदार अभी भी लखनऊ में हैं. 1960 में अमेरिका में न्यूयौर्क आए थे. उस के पिता और ताया दोनों छोटेछोटे थे, जब वे अमेरिका आए.

दादादादी ने अपनी संस्कृति के अनुसार बच्चों को पाला था. यहां का खुला माहौल उन्हें बिगाड़ न दे, इस का पूरा खयाल रखा था. ताया पर अधिक सख्ती की गई. वे मुल्ला बन गए. अभी भी न्यूयौर्क में ही रहते हैं और उन का एक बेटा है, जो एबीसीडी है अर्थात अमेरिकन बोर्न कन्फ्यूज्ड देशी.

ताया को अधिक धार्मिक होते देख दादा ने एमी के पिता पर अधिक अनुशासन नहीं लगाया और वे इकोनौमिक्स के प्रोफैसर बन गए. एमी की मां नैंसी अमेरिकन थीं और पिता की सहपाठी. वे अब नरगिस हैं. उन्होंने इसलाम कुबूल कर लिया और दादादादी की देखरेख में नमाजी और उर्दू बोलने वाली बहू बन गईं. दादा तो अब नहीं रहे, दादी साथ रहती थीं, हिंदी फिल्मों की दीवानी. एक सुखी परिवार है.

एमी की परवरिश में देशी और अमेरिकी संस्कृति का समावेश था. अत: वह सभ्य, अनुशासित, समय की पाबंद थी. सुंदर थी, साथ ही अपनी सुंदरता को संवार कर और संभाल कर रखने वाली भी थी. अमेरिकियों की तरह सुबह जल्दी उठना, व्यायाम करना, रात में जल्दी सोना और वीकैंड पर घूमना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस के घर में उर्दू भाषा ही बोली जाती. वह उर्दू जानती थी पर बोलती इंग्लिश में थी. एमी के विषय में जान कर समीर को अच्छा लगा. समीर को एमी से प्यार हो गया. वह हर कीमत पर उसे पाना चाहता था. परंतु पाकिस्तानी मूल का होना… कैसे बात बनेगी?

दोनों 6 महीनों से साथ थे. एकदूसरे में रुचि अब एकदूसरे को पाने की चाह में बदल गई थी.

एमी ने समीर को अपने घर वालों से मिलने के लिए बुलाया. घर वालों से यह कह कर मिलाया कि यह औफिस का मित्र है समीर. एमी की दादी को देख कर समीर को अपनी दादी याद आ गई. सलवारसूट में वैसी ही लग रही थीं. प्रोफैसर साहब बहुत हंसमुख थे. तुरंत घुलमिल गए. फुटबौल के दीवाने थे. सीएटल टीम के फैन. समीर को यहां का फुटबौल अजीब लगता था. हाथपैर दोनों से खेला जाता. अधिकतर बौल हाथ में ले कर भागते हैं.

एमी की मां सभ्यशालीन महिला थीं. एमी बिलकुल अपनी मां जैसी थी. एमी की मां ने बिलकुल देशी खाना बनाया था. समीर लखनऊ से है, यह सुन कर दादी तो गदगद हो गईं. अपने बचपन के मायके के किस्से सुनाने लगीं. एक लंबे समय बाद वह इतनी देर हिंदी में बोला. उसे अच्छा लगा. यहां तो वह जब से आया है मुंह टेढ़ा कर के ऐक्सैंट में बोलने की कोशिश करता रहा है.

समीर ने ध्यान दिया दादी, प्रोफैसर, नरगिस सभी उर्दू में बात करते हैं. पर एमी इंग्लिश में जवाब देती. कभीकभी हिंदी में भी. उर्दूहिंदी एकजैसी भाषाएं हैं, जिन्हें वह अपने यहां भी सुनताबोलता था. बस इन के उर्दू में कुछ शब्द गाढ़े उर्दू के हैं पर बात समझ में आ जाती है. उसे यहां अपनापन लगा. एमी के घर वालों को भी समीर अच्छा लगा और उसे बराबर आते रहने का न्योता दिया.

एमी ने समीर के जाने के बाद जब घर वालों से पूछा कि समीर उन्हें कैसा लगा तो वे लोग बोले कि अच्छा है. तब उस ने बताया कि समीर और वह शादी करना चाहते हैं.

यह सुन उस की दादी तो खुश हो गईं क्योंकि वह उन के मायके से जो था और उन्हें समीर नाम से मुसलमान लगा था. प्रोफैसर ने आपत्ति की कि वह पाकिस्तानी नहीं भारतीय है. एमी की मां ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा कि कहीं ग्रीन कार्ड के लालच में शादी तो नहीं करना चाहता है. लड़के को अमेरिकन सिटीजन होना चाहिए.

एमी ने धीरेधीरे समीर के बारे में 1-1 बात बताई कि वह भारतीय भी है और हिंदू भी. उस का परिवार भारत में है. अत: कभी भी वापस जा सकता है.

दादी, प्रोफैसर और नरगिस सब ने एकसाथ आपत्ति की कि हिंदू से शादी नहीं हो सकती.

एमी बोली, ‘‘अब तक वह आप सब को बहुत पसंद था पर उस के हिंदू और भारतीय होने से वह बुरा कैसे हो गया?’’

जब कोई प्यार में होता है तो उसे धर्म, भाषा, नागरिकता कुछ दिखाई नहीं देता. दिखता है तो केवल प्यार से भरा मन और वह व्यक्ति जो उस के साथ जीवन बिताना चाहता है. वहीं दूसरे लोगों को व्यक्ति और उस का मन, उस के गुण नहीं दिखते, केवल धर्म दिखता है.

‘‘डैडी आप और ममा ने भी तो दूसरे धर्म में शादी की थी, फिर आप लोग कैसे कह रहे हैं?’’

‘‘बेटी, तुम्हारी मां को हम अपने घर लाए थे. वह हम में रचबस गई. उस ने इसलाम कुबूल कर लिया. तुम्हें दूसरे घर जाना है. यह अंतर है. कल को वह लड़का तुम्हें हिंदू बना ले तो तुम्हारी तो आखरत (मरने के बाद की जिंदगी) गई.’’

एमी ने समीर को सारी बातें बताईं और कहा, ‘‘हम दोनों को जब कोई प्रौब्लम नहीं तो उन्हें क्यों है? हम जब चाहें शादी कर सकते हैं. हमें कोई रोक नहीं सकता पर मैं चाहती हूं कि मेरी फैमिली मेरे साथ हो,’’ यह एमी की देशी परवरिश की सोच थी.

समीर ने कहा, ‘‘तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘मरते दम तक.’’

‘‘तो ठीक है अपने घर वालों से मेरी मीटिंग करवाओ.’’

रविवार को समीर एमी के घर वालों से मिलने गया. शाहरुख खान की मूवी की डीवीडी दादी के लिए ले गया. दादी शाहरुख खान की दीवानी थीं सो खुश हो गईं. प्रोफैसर कुछ ठंडे थे. समीर ने उन से सीएटल टीम फुटबौल की बातें छेड़ दीं. वे भी सामान्य हो गए. नरगिस के लिए कबाब ले गया था. वे भी कुछ नौर्मल हो गईं.

फिर समीर ने अपनी मंशा बताई, ‘‘मैं और एमी एकदूसरे से प्यार करते हैं…जीवन भर साथ रहना चाहते हैं…शादी करना चाहते हैं. मगर आप सब की मरजी से…’’ मैं नेशनैलिटी के लिए शादी नहीं कर रहा हूं. मेरी कंपनी ने मेरा ग्रीन कार्ड अप्लाई कर दिया है. हां, मैं इंडियन हूं और मैं भारत आताजाता रहूंगा, मेरे परिवार को जब भी मेरी आवश्यकता होगी मैं उन के पास जाऊंगा… इसी प्रकार जब आप लोगों को भी मेरी जरूरत होगी तो मैं आप का भी साथ दूंगा. रहा धर्म तो यदि मैं आप को दिखाने के लिए मुसलिम बन जाऊं और मन से हिंदू रहूं तो आप क्या कर सकते हैं? धर्म में हम उसे ही याद करते हैं जिसे न आप ने देखा न मैं ने. उसे किस नाम से पुकारें इस पर लड़ाई है, किस प्रकार याद करें इस पर सहमति नहीं. इंसान जिन्हें एकदूसरे से प्यार है वे इसलिए शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वे ऊपर वाले को अलगअलग नामों से पुकारते हैं, अलगअलग तरह से याद करते हैं.’’

उस ने मीर को कुछ पढ़ रखा था और एक शेर जो उसे याद था कहा, ‘‘ ‘मत इन नमाजियों को खानसाज-ए-दीं जानो, कि एक ईंट की खातिर ये ढोते होंगे कितने मसीत’ दादी ये धर्म के चोंचले अमेरिका में आ कर तो हम छोड़ दें.’’

सब चुप रहे. जानते थे कि यह ठीक कह रहा.

प्रोफैसर को मुसलिम समाज और सब से बढ़ कर भाईजान का डर था. अमेरिका में भी हम ने अपना पाकिस्तान हिंदुस्तान बना लिया है, अपनी मान्यताएं अपने रीतिरिवाज… यहां वैसे तो इंडियनपाकिस्तानी मिल कर रहते हैं पर शादीविवाह अपने धर्म में ही पसंद करते हैं.

हां, साथसाथ स्कूल, कालेज, औफिस की दोस्ती में अकसर अलगअलग जगह के लोगों में शादियां हो जाती हैं, परंतु मंदिरमसजिद में मिलने वाले साथी पसंद नहीं करते. प्रोफैसर को उन का तो डर नहीं था पर भाईजान…

दादी भी जानतीं थी कि पाकिस्तानियों में तलाक अधिक होते हैं और भारत वाले साथ निभाते हैं. फिर भी हिंदू से…

एमी के घर वाले समीर के बराबर आनेजाने से धीरेधीरे उस से घुलमिल गए. बात टल सी गई पर समीर बराबर जाता रहता. दादी से हिंदी मूवीज पर बातें करता, प्रोफैसर के साथ फुटबौल मैच टीवी पर देखता, उन के लैपटौप में नएनए गेम्स लोड करता, लौन की घास काटने में प्रोफैसर की मदद करता, काटना तो मशीन से होता है पर मेहनत का काम है. नरगिस की किचन में हैल्प करता. यहां सारे काम खुद ही करने होते हैं.

प्रोफैसर कहते, ‘‘मैं तो 3 औरतों में अकेला पड़ गया था… तुम से अच्छी कंपनी मिलती है.’’

समीर एमी से कहता, ‘‘यार एमी, मैं तो तुम्हारे घर का छोटू बन गया पर दामाद बनने के चांस नहीं दिखते. तुम मुझे डिच दे कर किसी पाकी के साथ निकल गईं तो?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘यू नैवर नो.’’

प्रोफैसर सोचते समीर अच्छा है, बोलचाल, विचार हमारे जैसे हैं. एमी के साथ जोड़ी अच्छी है, दोनों एकदूसरे के साथ खुश रहेंगे, फिर क्या हुआ अगर वह अल्लाह को ईश्वर कहता है? पूजा करना उस का मामला है… एमी को तो पूजा करने को नहीं कह रहा…

हिम्मत कर के न्यूयौर्क में भाईजान से बात की. बताया कि एमी ने लड़का पसंद कर लिया है हिंदुस्तानी है.

भाईजान बोले, ‘‘क्या पाकिस्तानी लड़कों का अकाल पड़ गया जो हिंदुस्तानी लड़का देखा?’’

‘‘एमी को पसंद है.’’

‘‘हां, अमेरिकन मां की बेटी जो है.’’

‘‘लड़का बहुत अच्छा है. बस वह हिंदू है.’’

भाईजान पर तो जैसे बम फटा, ‘‘क्या कह रहे हो? काफिर को दामाद बनाओगे?’’

प्रोफैसर मिनमिनाए, ‘‘भाईजान, आप तो जानते हैं यहां तो बच्चे भी नहीं सुनते जरा तंबीह करो तो 911 कौल कर पुलिस बुला लेते हैं और बड़े हो कर तो और भी आजाद हो जाते हैं. ये हम से इजाजत मांग रहे हैं, यह क्या कम है? हम हां कर दें तो हमारा बड़प्पन रह जाएगा.’’

भाईजान को लगा कि प्रोफैसर ठीक कह रहे हैं. अत: बोले, ‘‘ठीक है वह मुसलमान हो जाए तो हो सकता है.’’

‘‘नहीं वह इस पर राजी नहीं. वह एमी से भी धर्म परिवर्तन के लिए नहीं कह रहा.’’

भाईजान चिल्लाए, ‘‘काफिर से निकाह नहीं हो सकता. अगर तुम ने शादी की तो मुझ से कोई रिश्ता न रखना… मुल्लाजी को भी तो अपने समाज में सिर उठा कर चलना है वरना उन की कौन सुनेगा.’’

प्रोफैसर को भाई की बातों से बहुत दुख हुआ. हार्ट के मरीज तो थे ही सो हार्ट अटैक आ गया. नरगिस और दादी थीं घर पर. नरगिस ने ऐंबुलैंस कौल की. ऐंबुलैंस डाक्टर व नर्स के साथ आ गई. अस्पताल में भरती किया गया. एमी, नरगिस, दादी और समीर रोज देखने जाते. यहां अस्पताल में भरती करने के बाद डाक्टर व नर्स पूरी देखभाल करते हैं. अस्पताल का रूम फाइवस्टार सुविधा वाला होता है. प्रोफैसर को यहां का खाना पसंद नहीं, तो नरगिस उन का खाना घर से लाती थीं. यहां मरीज की देखभाल अच्छी की जाती है. बिल इंश्योरैंस से जाता है. कुछ 10-15% देना पड़ता है.

कुछ दिन बाद प्रोफै सर घर आ गए. अभी भी देखभाल की आवश्यकता थी. परहेजी खाना ही चल रहा था. इस दौरान समीर उन की देखभाल बराबर करता एक बेटे की तरह और औफिस में भी एमी के काम में मदद करता ताकि एमी प्रोफैसर साहब को अधिक समय दे सके.

प्रोफैसर के दोस्त, मिलने वाले मसजिद के साथी सब दोएक बार आए. भाईजान ने केवल फोन पर खैरियत ली.

बीमारी में कोई देखने आए तो अच्छा लगता है. अमेरिका में किसी के पास समय नहीं है. समीर प्रतिदिन आता. प्रोफैसर को भी अच्छा लगता. प्रोफैसर को लगता अगर उन का अपना बेटा भी होता तो शायद वह भी इतना ध्यान नहीं रखता.

आखिर प्रोफैसर ठीक हो गए. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुम ने घर वालों से शादी की बात की?’’

समीर ने बताया, ‘‘हां मैं ने घर वालों को मना लिया है… पहले तो सब नाराज थे पर एमी से बात कर के सब खुश हो गए. मेरे मातापिता धर्मजाति नहीं मानते पर एमी पाकिस्तानी मूल की होने पर चौंके थे. मगर मेरी पसंद के आगे उन्हें सब छोटा लगने लगा. अत: सब राजी हो गए.’’

प्रोफैसर ने अपने ठीक होने की पार्टी में अपने सभी मिलने वालों, दोस्तों को बुलाया और फिर समीर और एमी की मंगनी की घोषणा कर दी. वे जानते थे शादी में बहुत लोग नहीं आएंगे. दोनों परिवारों की मौजूदगी में शादी सादगी से कोर्ट में हो गई और फिर रिसैप्शन पार्टी होटल में की, जिस में दोनों के औफिस के साथी, नरगिस और प्रोफैसर के दोस्त, पड़ोसी, मिलने वाले शामिल हुए. भाईजान और उन की जैसी सोच वाले नहीं आए. 2 प्रेमी पतिपत्नी बन गए. सच ही तो है, प्रेम नहीं मानता कोई सरहद, भाषा या धर्म.

Love Story : रिस्क – रवि ने मानसी को छोड़ने का रिस्क क्यों लिया

Love Story : इस नए औफिस में काम करते हुए मुझे 3 महीने ही हुए हैं और अब तक मेरे सभी सहयोगी जान चुके हैं कि मैं औफिस की ब्यूटी क्वीन मानसी को बहुत चाहता हूं. मुझे इस बात की चिंता अकसर सताती है कि जहां मैं उस से शादी करने को मरा जा रहा हूं, वहीं वह मुझे सिर्फ अच्छा दोस्त ही बनाए रखना चाहती है.

मानसी और मेरे प्रेम संबंध में और ज्यादा जटिलता पैदा करने वाली शख्सीयत का नाम है, शिखा. साथ वाले औफिस में कार्यरत शोख, चंचल स्वभाव वाली शिखा अकेले में ही नहीं बल्कि सब के सामने भी मेरे साथ फ्लर्ट करने का कोई मौका नहीं चूकती है.

‘‘दुनिया की कोई लड़की तुम्हें उतनी खुशी नहीं दे सकती, जितनी मैं दूंगी. खासकर बैडरूम में तुम्हारे हर सपने को पूरा करने की गारंटी देती हूं,’’ शादी के लिए मेरी ‘हां’ सुनने को शिखा अकेले में मुझे अकसर ऐसे प्रलोभन देती.

‘‘तुम पागल हो क्या? अरे, किसी ने कभी तुम्हारी ऐसी बातों को सुन लिया, तो लोग तुम्हें बदनाम कर देंगे,’’ उस की बिंदास बातें सुन कर मैं सचमुच हैरान हो उठता.

‘‘मुझे लोगों की कतई परवा नहीं और यह साबित करना मेरे लिए बहुत आसान है कि मैं गलत लड़की नहीं हूं.’’

‘‘तुम यह कैसे साबित कर सकती हो?’’

‘‘तुम मुझ से शादी करो और अगर सुहागरात को तुम्हें मेरे वर्जिन होने का सुबूत न मिले तो अगले दिन ही मुझ से तलाक ले लेना.’’

‘‘ओ, पागलों की लीडर, तू मेरा पीछा छोड़ और कोई नया शिकार ढूंढ़,’’ मैं ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़े, तो हंसतेहंसते उस के पेट में दर्द हो गया.

मानसी को शिखा फूटी आंख नहीं सुहाती है. मेरी उस पागल लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है, बारबार ऐसा समझाने पर भी मानसी आएदिन शिखा को ले कर मुझ से झगड़ा कर ही लेती.

उस ने पिछले हफ्ते से जिद पकड़ ली थी कि मैं शिखा को जोर से डांट कर सब के बीच एक बार अपमानित करूं, जिस से कि वह मेरे साथ बातचीत करना बिलकुल बंद कर दे.

‘‘मेरी समझ से वह हलकेफुलके मनोरंजन के लिए मेरे साथ फ्लर्ट करने का नाटक करती है. उसे सब के बीच अपमानित करना गलत होगा, क्योंकि वह दिल की बुरी नहीं है, मानसी,’’ मेरे इस जवाब को सुन मानसी ने 2 दिन तक मुझ से सीधे मुंह बात नहीं की थी.

मैं ने तंग आ कर दूसरे दिन शिखा को लंच टाइम में सख्ती से समझाया, ‘‘मैं बहुत सीरियसली कह रहा हूं कि तुम मुझ से दूर रहा करो.’’

‘‘क्यों,’’ उस ने आंखें मटकाते हुए कारण जानना चाहा.

‘‘क्योंकि तुम्हारा मेरे आगेपीछे घूमना मानसी को अच्छा नहीं लगता है.’’

‘‘उसे अच्छा नहीं लगता है तो मेरी बला से.’’

‘‘बेवकूफ, मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ से बड़े बेवकूफ, मानसी मुझ से जरा सी ज्यादा सुंदर जरूर है, पर मैं दावे से कह रही हूं कि मेरी जैसी शानदार लड़की तुम्हें पूरे संसार में नहीं मिलेगी.’’

‘‘देवी, तू मेरे ऊपर लाइन मारना छोड़ दे.’’

‘‘मैं अपने पापी दिल के हाथों मजबूर होने के कारण तुम से दूर नहीं रह सकती हूं, लव.’’

‘‘मुहावरा तो कम से कम ठीक बोल, मेरी जान की दुश्मन. पापी पेट होता है, दिल नहीं.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि मेरा पापी दिल सपनों में तुम्हारे साथ कैसेकैसे गुल खिलाता है,’’ इस डायलौग को बोलते हुए उस के जो सैक्सी हावभाव थे, उन्हें देख कर मैं ऐसा शरमाया कि उस से आगे कुछ कहते नहीं बना.

पिछले हफ्ते मानसी ने अब तक मुझ से शादी के लिए ‘हां’ ‘ना’ कहने के पीछे छिपे कारण बता दिए, ‘‘मेरे मम्मीपापा की आपस में कभी नहीं बनी. पापा अभी भी मम्मी पर हाथ उठा देते हैं. भाभी घर में बहुत क्लेश करती हैं. मेरी बड़ी बहन अपने 3 साल के बेटे के साथ मायके आई हुई है, क्योंकि जीजाजी किसी दूसरी के चक्कर में पड़ गए हैं, समाज में नीचा दिखाने वाले इन कारणों के चलते मुझे लगता था कि अपनी शादी हो जाने के बाद मैं अपने पति और ससुराल वालों से कभी आंखें ऊंची कर के बात नहीं कर पाऊंगी. अब अगर तुम्हें इन बातों से फर्क न पड़ता हो तो मैं तुम से शादी करने के लिए ‘हां’  कह सकती हूं.’’

‘‘मुझे इन सब बातों से बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता है. आई एम सो हैप्पी,’’ मानसी की ‘हां’ सुन कर मेरी खुशी का सचमुच कोई ठिकाना नहीं रहा था.

उस दिन के बाद मानसी ने बड़े हक के साथ मुझे शिखा से कोई संबंध न रखने की चेतावनी दिन में कईकई बार देनी शुरू कर दी थी. उसे किसी से भी खबर मिलती कि शिखा मुझ से कहीं बातें कर रही थी, तो वह मुझ से झगड़ा जरूर करती.

मैं ने परेशान हो कर एक दिन शिखा की सीट पर जा कर विनती की, ‘‘मानसी मुझ से शादी करने को राजी हो गई है और उसे हमारा ‘हैलोहाय’ करना तक पसंद नहीं है. तुम मुझ से दूर रहा करो, प्लीज.’’

‘‘जब तक मानसी के साथ तुम्हारी शादी के कार्ड नहीं छप जाते, मैं तो तुम से मिलती रहूंगी,’’ उस पागल लड़की ने मेरी विनती को तुरंत ठुकरा दिया था.

‘‘तुम मेरी प्रौब्लम को समझने की कोशिश करो, प्लीज.’’

‘‘और तुम मेरी प्रौब्लम को समझो. देखो, मैं तुम्हें प्यार करती हूं और इसीलिए आखिरी वक्त तक याद दिलाती रहूंगी कि मुझ से बेहतर पत्नी तुम्हें…’’ उस पर अपनी बात का कोई असर न होते देख मैं उस का डायलौग पूरा सुने बिना ही वहां से चला आया था.

किसी झंझट में न फंसने के लिए मैं ने अगले हफ्ते छोटे से बैंकटहौल में हुई अपने जन्मदिन की पार्टी में शिखा को नहीं बुलाया, पर उसे न बुलाने का मेरा फैसला उसे पार्टी से दूर रखने में सफल नहीं हुआ था. वह लाल गुलाब के फूलों का सुंदर गुलदस्ता ले कर बिना बुलाए ही पार्टी में शामिल होने आ गई थी.

‘‘रवि डियर, मुझे यहां देख कर टैंशन मत लो, मैं ने तुम्हें फूल भेंट कर दिए, शुभकामनाएं दे दीं और अब अगर तुम हुक्म दोगे, तो मैं उलटे पैर यहां से चली जाऊंगी,’’ अपनी बात कहते हुए वह बिलकुल भी टैंशन में नजर नहीं आ रही थी.

‘‘अब आ ही गई हो तो कुछ खापी कर जाओ,’’ मुझ से पार्टी में रुकने का निमंत्रण पा कर उस का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठा था.

अचानक मानसी हौल में आई उसी दौरान शिखा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे डांस फ्लोर की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही थी.

मुझे उस के आने का तब पता चला जब उस ने पास आ कर शिखा को मेरे पास से दूर धकेला और अपमानित करते हुए बोली, ‘‘जब तुम्हें रवि ने पार्टी में बुलाया ही नहीं था, तो क्यों आई हो?’’

‘‘मेरी मरजी, वैसे तुम होती कौन हो मुझ से यह सवाल पूछने वाली,’’ शिखा उस से दबने को बिलकुल तैयार नहीं थी.

‘‘तुझे मालूम नहीं कि हमारी शादी होने वाली है, घटिया लड़की.’’

‘‘तुम मुझ से तमीज से बात करो,’’ शिखा को भी गुस्सा आ गया, ‘‘रवि से तुम्हारी शादी होने वाली बात मैं उसी दिन मानूंगी जिस दिन शादी का कार्ड अपनी आंखों से देख लूंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी जबरदस्ती गले पड़ने वाली बेशर्म लड़की मैं ने दूसरी नहीं देखी. कहीं तुम किसी वेश्या की बेटी तो नहीं हो?’’

‘‘मेरी मां के लिए अपशब्द निकालने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’’ वह मानसी की तरफ झपटने को तैयार हुई, तो मैं ने फौरन उस का हाथ मजबूती से पकड़ कर उसे रोका.

‘‘इसे इसी वक्त यहां से जाने को कहो, रवि,’’ मानसी ऊंची आवाज में कह कर उसे बेइज्जत कर रही थी.

‘‘तुम जरा चुप करो,’’ मैं ने मानसी को जोर से डांटा और फिर हाथ छुड़ाने को मचल रही शिखा से कहा, ‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में करो. क्या तुम दोनों ही मेरी पार्टी का मजा खराब करना चाहती हो?’’

शिखा ने फौरन अपने गुस्से को पी कर कुछ शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘नहीं, और तभी मैं इस बेवकूफ को अपने साथ बदतमीजी करने के लिए माफ करती हूं.’’

मेरे द्वारा डांटे जाने से बेइज्जती महसूस कर रही मानसी ने मुझे अल्टीमेटम दे दिया, ‘‘रवि, तुम इसे अभी पार्टी से चले जाने को कहो, नहीं तो मैं इसी पल यहां से चली जाऊंगी.’’

‘‘मानसी, छोटे बच्चे की तरह जिद मत करो.’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी धमकी दोहरा दी, ‘‘अगर तुम ने ऐसा नहीं किया, तो तुम मेरे साथ घर बसाने के सपने देखना भूल जाना.’’

‘‘तुम अपना घर बसने की फिक्र न करो, माई लव, क्योंकि मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ शिखा ने बीच में ही यह डायलौग बोल कर बात को और बिगाड़ दिया था.

‘‘तुझ जैसी कई थालियों में मुंह मारने की शौकीन लड़की से कोई इज्जतदार युवक शादी नहीं करेगा,’’ मानसी उसे अपमानित करने वाले लहजे में बोली, ‘‘तुम जैसी आवारा लड़कियों को आदमी अपनी रखैल बनाता है, पत्नी नहीं.’’

अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश करते हुए शिखा ने मुझे सलाह दी, ‘‘रवि, तुम इस कमअक्ल से तो शादी मत ही करना. इस का चेहरा जरूर खूबसूरत है, पर मन के अंदर बहुत ज्यादा जहर भरा हुआ है.’’

‘‘तुम इसे फौरन पार्टी से चले जाने को कह रहे हो या नहीं,’’ मानसी ने चिल्ला कर अपना अल्टीमेटम एक बार फिर दोहराया, तो मेरी परेशानी व उलझन बहुत ज्यादा बढ़ गई.

मेरी समस्या सुलझाने की पहल शिखा ने की.

‘‘रवि, तुम टैंशन मत लो. पार्टी में हंसीखुशी का माहौल बना रहे, इस के लिए मैं यहां से चली जाती हूं. हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन,’’ मेरे कंधे को दोस्ताना अंदाज में दबाने के बाद वह दरवाजे की तरफ बढ़ने को तैयार हो गई थी.

‘‘मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ने चलूंगा. जरा 2 मिनट के लिए रुक जाओ, प्लीज.’’

’’तुम इसे बिलकुल भी बाहर तक छोड़ने नहीं जाओगे,’’ मानसी के चहरे की खूबसूरती को गुस्से के हावभावों ने विकृत कर दिया था.

मैं ने गहरी सांस ली और मानसी के पास जा कर बोला, ’’मेरी जिंदगी से निकल जाने की तुम्हारी धमकी को नजरअंदाज करते हुए मैं अपने इस पल दिल में पैदा हुए ताजा भाव तुम से जरूर शेयर करूंगा. सच यही है कि आजकल मेरी जिंदगी में सारी टैंशन तुम्हारे और सारा हंसनामुसकराना शिखा के कारण हो  रहा है. तुम्हारी खूबसूरती के सम्मोहन से निकल कर अगर मैं निष्पक्ष भाव से देखूं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि यह जिंदादिल लड़की मेरी जिंदगी की रौनक बन गई है.’’

’’गो, टू हैल,’’ मेरी बात सुन कर आगबबूला  हो उठी मानसी को जन्मदिन की बिना शुभकामनाएं दिए दरवाजे की तरफ जाता देख कर भी मैं ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की.

मैं शिखा का हाथ पकड़ कर मुसकराते हुए बोला, ’’ओ, पगली लड़की, मुझे साफ नजर आ रहा है कि अगर तुम मेरी जिंदगी से निकल गई, तो वह रसहीन हो जाएगी. तुम अगर मुझे आश्वासन दो कि तुम अपने जिंदादिल व्यक्तित्व को कभी नहीं मुरझाने दोगी, तो मैं तुम से एक महत्त्वपूर्ण सवाल पूछना चाहूंगा?’’

’’माई डियर रवि, मैं तुम्हारे प्यार में हमेशा ऐसी ही पागल बनी रहूंगी. प्लीज जल्दी से वह खास सवाल पूछो न,’’ वह उस छोटी बच्ची की तरह खुश नजर आ रही थी, जिसे अपना मनपसंद उपहार मिलने की आशा हो.

’’अपने बहुत से शुभचिंतकों की चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं तुम्हारे जैसी बिंदास लड़की को अपनी जीवनसंगिनी बनाने का रिस्क लेने को तैयार हूं. क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

’’हुर्रे, मैं तुम से शादी करने को बिलकुल तैयार हूं, माई लव,’’ जीत का जोरदार नारा लगाते हुए उस ने सब के सामने मेरे होंठों पर चुंबन अंकित कर हमारे नए रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी थी.

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Romantic Story : ‘‘मैं अब और इस घर में नहीं रह सकती. रोजरोज के झगड़े भी अब बरदाश्त के बाहर हैं. मैं रक्षा को ले कर अपनी मां के पास जा रही हूं. आप ज्यादा पैसा कमाने की कोशिश करें और जब कमाने लगें, तब मुझे बुला लेना,’’ पत्नी सुनीता का यह रूप देख कर नरेश सहम गया.

नरेश बोला, ‘‘देखो, तुम्हारा इस तरह से मुझे अकेले छोड़ कर जाना समस्या का हल नहीं है. तुम्हारे जाने से सबकुछ डिस्टर्ब हो जाएगा.’’

‘‘तो हो जाने दो. कम से कम आप को अक्ल तो आएगी,’’ सुनीता बोली. ‘‘मैं कोशिश कर तो रहा हूं. तुम थोड़ी हिम्मत नहीं रख सकतीं. मैं ने अपनेआप से बहुत समझौता किया है,’’ नरेश बोला.

‘‘मैं ने भी बहुत सहा है और आप के मुंह से यह सुनतेसुनते तो मेरे कान पक गए हैं. आप बस कहते रहते हैं, कुछ करतेधरते तो हैं नहीं.’’

‘‘मैं क्या कर रहा हूं, कहांकहां बात कर रहा हूं, क्या तुम्हें पता नहीं…’’

‘‘मुझे रिजल्ट चाहिए. आप यह नौकरी बदलें और जब ज्यादा तनख्वाह वाली दूसरी नौकरी करने लगें, तब हमें बुला लेना. तब तक के लिए मैं जा रही हूं,’’ यह कहते हुए सुनीता अपने सामान से भरा बैग ले कर बेटी रक्षा के साथ पैर पटकते हुए चली गई.

नरेश ठगा सा देखता रह गया. दरअसल, जब से उस ने नौकरी बदली है और उसे थोड़ी कम तनख्वाह वाली नौकरी करनी पड़ी है, तब से घर की गाड़ी ठीक से नहीं चल रही है. वह परेशान था, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा था.

घर में झगड़े की वजह से अगले दिन नरेश का दफ्तर के काम में मन नहीं लगा. उस ने सारा काम बेमन से निबटाया. छात्राओं के दाखिले का समय होने से काम यों भी बहुत ज्यादा था. यह सब सुनीता नहीं समझती थी. उस के इस नादानी भरे कदम से नरेश चिढ़ गया था.

नरेश ने भी तय कर लिया था कि अब वह सुनीता को बुलाने नहीं जाएगा. वह अपनी मरजी से गई है, अपनी मरजी से ही उसे आना होगा. रात के 10 बज रहे थे. नरेश नींद के इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. इतने में मोबाइल फोन की घंटी बजी. उसे लगा, कहीं सुनीता का तो फोन नहीं. शायद उसे गलती का एहसास हुआ हो, पर नंबर देखा तो किसी और का था.

‘‘कौन?’’ नरेश ने पूछा.

‘सौरी सर, इस समय आप को डिस्टर्ब करना पड़ रहा है,’ नरेश को फोन पर आई उस औरत की आवाज कुछ पहचानी सी लगी.

‘‘कोई बात नहीं, आप बोलें?’’ नरेश ने कहा.

‘नमस्ते, पहचाना… मैं अंजू… ट्रेनिंग में दाखिले को ले कर 1-2 बार आप से पहले भी बात हो चुकी है.’

‘‘ओह हां, अंजू. तो तुम हो. कहो, इस वक्त कैसे फोन किया तुम ने?’’

‘सर, आज दिन में जब आप को फोन किया था, तो आप ने ही कहा था कि अभी मैं बिजी हूं, शाम को बात करना.’

‘‘पर इस वक्त तो रात है.’’

‘सर, मैं कब से ट्राई कर रही हूं. नैटवर्क ही नहीं मिल रहा था. अब जा कर मिला है.’

‘‘ठीक है. कहो, क्या कहना है?’’

‘सर, उस प्रोफैशनल कोर्स के लिए मेरा दाखिला तो हो जाएगा न?’

‘‘देखो, इन्क्वायरी काफी आ रही हैं. मुश्किल तो पडे़गी.’’

‘सर, दाखिले का काम आप देख रहे हैं. आप चाहें तो मेरा एडमिशन पक्का हो सकता है. मैं 2 साल से ट्राई कर रही हूं. आप नए आए हैं, पर आप के पहले जो सर थे, वे तो कुछ सुनते ही नहीं थे,’ उस की आवाज में चिरौरी थी.

‘‘आप की परिवारिक हालत कैसी है? आप ने बताया था कि आप की माली हालत ठीक नहीं है?’’ नरेश ने कहा.

‘आप को यह बात याद रह गई. देखिए, मैं शादीशुदा हूं. मेरे पति प्राइवेट नौकरी में हैं. उन की तनख्वाह तो वैसे ही कम है, ऊपर से वे शराब भी पीते हैं. वे मुझ पर बेवजह शक करते हैं. मुझे मारतेपीटते रहते हैं. मैं ऐसे आदमी के साथ रहतेरहते तंग आ गई हूं. मेरी एक बच्ची भी है.

‘मैं हायर सैकेंडरी तक पढ़ी हूं. मेरी सहेली ने ही मुझे आप के यहां के इंस्टीट्यूट के बारे में बताया था. अगर आप की मदद से मेरा ट्रेनिंग में दाखिला हो जाएगा, तो मैं आप का बड़ा उपकार मानूंगी,’ अंजू जैसे भावनाओं में बह कर सबकुछ कह गई.

‘‘देखो, इस वक्त रात काफी हो गई है. अभी दाखिले में समय है. आप 1-2 दिन बाद मुझ से बात करें.’’

‘ठीक है. थैक्यू. गुडनाइट,’ और फोन कट गया.

अगले दिन अंजू का दिन में ही फोन आ गया. बात लंबी होती थी, सो नरेश को कहना पड़ा कि वह रात को उसी समय फोन करे, तो ठीक रहेगा. रात के 9 बजे अंजू का फोन आ गया. उस ने बताया कि उस के पति के नशे में धुत्त सोते समय ही वह बात कर सकती है. नरेश अंजू के दुख से अपने दुख की तुलना करने लगा. वह अपनी पत्नी से दुखी था, तो वह अपने पति से परेशान थी.

धीरेधीरे अंजू नरेश से खुलने लगी थी. नरेश ने भी अपने अंदर उस के प्रति लगाव को महसूस किया था. उसे लगा कि वह औरत नेक है और जरूरतमंद भी. उस की मदद करनी चाहिए.

अंजू ने फोन पर कहा, ‘आप की बदौलत अगर यह काम हो गया, तो मैं अपने शराबी पति को छोड़ दूंगी और अपनी बच्ची के साथ एक स्वाभिमानी जिंदगी जीऊंगी.’

नरेश ने उस से कहा, ‘‘जब इंटरव्यू होगा, तो मैं तुम्हें कुछ टिप्स दूंगा.’’

अब उन दोनों में तकरीबन रोजाना फोन पर बातें होने लगी थीं. एक बार जब अंजू ने नरेश से उस के परिवार के बारे में पूछा, तो वह शादी की बात छिपा गया. नरेश के अंदर एक चोर आ गया था. अनजाने में ही वह अंजू के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगा था. शायद ऐसा सुनीता की बेरुखी से भी होने लगा था. अंजू ने एक बार नरेश से पूछा था कि जब वह ट्रेनिंग के लिए उस के शहर आएगी, तो वह उसे अपने घर ले जाएगा या नहीं? शौपिंग पर ले जाएगा या नहीं?

नरेश ने उस से कहा, ‘‘पहले दाखिला तो हो जाए, फिर यह भी देख लेंगे.’’

दाखिले का समय निकट आने लगा था. नरेश ने सोचा कि अब अंजू का काम होने तक तो यहां रुकना ही पड़ेगा. रहा सवाल सुनीता का तो और रह लेने दो उसे अपने मातापिता के पास.

अंजू के फार्म वगैरह सब जमा हो गए थे. इंटरव्यू की तारीख तय हो गई थी. नरेश ने अंजू को फोन पर ही इंटरव्यू की तारीख बता दी. वह बहुत खुश हुई और बताने लगी कि फीस के पैसे का सारा इंतजाम हो गया है. कुछ उधार लेना पड़ा है. एक बार ट्रेनिंग हो जाए, फिर वह सब का उधार चुकता कर देगी.

फोन पर हुई बात लंबी चली. बीच में 3-4 ‘बीप’ की आवाज का ध्यान ही नहीं रहा. देखा तो सुनीता के मिस्ड काल थे. इतने समय बाद, वे भी अभी…

उसे फोन करने की क्या सूझी? इतने में फिर सुनीता का फोन आया. वह शक करने लगी कि वह किस से इतनी लंबी बातें कर रहा था. नरेश ने झूठ कहा कि स्कूल के जमाने का दोस्त था. सुनीता ने खबरदार किया कि वह किसी औरत के फेर में न पड़े और आजादी का गलत फायदा न उठाए, वरना उस के लिए ठीक नहीं होगा.

नरेश ने कहा, ‘‘मुझ पर इतना ही हक जमा रही हो, तो मुझे छोड़ कर गई ही क्यों?’’

सुनीता ने बात को बदलते हुए नरेश को नई नौकरी की याद दिलाई. नरेश ने भी इधरउधर की बातें कर के फोन काट दिया. अभी तक अंजू से सारी बातें फोन पर ही होती रही थीं. फार्म भरा तो उस में अंजू का फोटो था. फोटो में वह अच्छीखासी लगी थी, मानो अभी तक कुंआरी ही हो. अब जब आमनासामना होगा, तो कैसा लगेगा, यह सोच कर ही नरेश को झुरझुरी सी होने लगी थी.

जैसेजैसे दिन कम होने लगे थे, वैसेवैसे अंजू के फोन भी कम आने लगे थे. शायद नरेश को अंजू के बैलैंस की फिक्र थी कि जब मिलना हो रहा है, तो फिर फोन का फुजूल खर्च क्यों? आखिरी दिनों में अंजू ने आनेजाने और ठहरने संबंधी सभी जानकारी ले ली थी.

आखिर वह दिन आ ही गया. नरेश ने अपना घर साफसुथरा कर लिया कि वह उसे घर लाएगा. सभी प्रवेशार्थी इकट्ठा होने लगे थे. सभी की हाजिरी ली जा रही थी कि कहीं कोई बाकी तो नहीं रह गया. लेकिन यह क्या, अंजू की हाजिरी नहीं थी.

नरेश तड़प उठा. जिस का दाखिला कराने के लिए इतने जतन किए, उसी का पता नहीं. यह औरत है कि क्या है. कुछ फिक्र है कि नहीं. अगर कोई रुकावट है, तो बताना तो चाहिए था न फोन पर.

नरेश ने अंजू को फोन किया, लेकिन यह क्या फोन भी बंद था. यह तो हद हो गई. इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था. मुमकिन हो कि ट्रेन लेट हो गई हो. स्टेशन भी फोन लगा लिया, तो मालूम पड़ा कि ट्रेन तो समय पर आ गई थी. अब हो सकता है कि टिकट कंफर्म न होने से वह बस से आ रही हो.

इंटरव्यू हो गए और सभी सीटों की लिस्ट देर शाम तक लगा दी गई. अब कुछ नहीं हो सकता. अंजू तो गई काम से. अच्छाभला काम हो रहा था कि यह क्या हो गया. जरूर कोई अनहोनी हुई होगी उस के साथ, वरना वह आती.

नरेश अगले 2-3 दिन लगातार फोन मिलाता रहा, पर वह बंद ही मिला. हार कर उस ने कोशिश छोड़ दी. 5वें दिन अचानक दफ्तर का समय खत्म होने से कुछ पहले अंजू का फोन आया.

‘हैलो..’ अंजू की आवाज में डर था.

नरेश उबला, ‘‘अरे अंजू, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है. यह क्या किया तुम ने? तुम को आना चाहिए था न. मैं इंटरव्यू वाले दिन से तुम्हें लगातार फोन लगा रहा हूं और तुम्हारा फोन बंद आ रहा है. आखिर बात क्या है,’’ वह एक सांस में सबकुछ कह जाना चाहता था वह.

‘मैं आप की हालत समझ सकती हूं, पर मुझे माफ कर दें…’

‘‘आखिर बात क्या हुई? कुछ तो कहो? कहीं तुम्हारा वह शराबी पति…’’

‘दरअसल, मैं आप के यहां के लिए निकलने के पहले अपनी बेटी निशा को अपनी मम्मी के यहां गांव छोड़ने जाने के लिए सवारी गाड़ी में बैठी थी. गाड़ी जरूरत से ज्यादा भर ली गई थी.

‘ड्राइवर तेज रफ्तार से गाड़ी दौड़ा रहा था. इतने में सामने से आ रहे ट्रक से बचने के लिए ड्राइवर ने कच्चे में गाड़ी उतारी और ऐसा करते समय गाड़ी पलट गई…’

‘‘ओह, फिर…’’ आगे के हालात जानने के लिए जैसे नरेश बेसब्र हो उठा था.

‘गाड़ी पलटने से सभी सवारियां एकदूसरे पर गिरने से दबने लगीं. चीखपुकार मच गई. निशा बच्ची थी. वह भी चीखने लगी. मैं निशा के ऊपर गिर गई थी.

‘तभी कुछ मददगार लोग आ गए. थोड़ी देर और हो जाती, तो कुछ भी हो सकता था. उन लोगों ने हमें बांह पकड़ कर खींचा.

‘निशा बेहोश हो गई थी और मुझे भी चोटें आई थीं. कई सारे लोग घायल हुए थे. सभी को अस्पताल पहुंचाया गया. निशा को दूसरे दिन आईसीयू में होश आया. उस की कमर की हड्डी टूट गई थी. हम दोनों के इलाज में फीस के जोड़े पैसे ही काम आ रहे थे.

‘हम अभी भी अस्पताल में ही हैं. मैं थोड़ी ठीक हुई हूं और निशा के पापा दवा लेने बाहर गए हैं, तभी आप से बात कर पा रही हूं. ‘मुझे लग रहा था कि आप नाराज हो रहे होंगे. मुझे आप की फिक्र थी. आप ने सचमुच मेरा कितना साथ दिया. मैं आप को कभी भूल नही पाऊंगी. जब सबकुछ ठीक हो रहा था, तो यह अनहोनी हो गई. सारा पैसा खत्म होने को है. अब मेरा आना न होगा कभी. मुझे अब हालात से समझौता करना पड़ेगा.

‘लेकिन, मैं एक अच्छी बात बताने से अपनेआप को रोक नहीं पा रही हूं कि निशा के पापा अस्पताल में हमारी फिक्र कर रहे हैं. उन्हें ट्रेनिंग को ले कर, फीस को ले कर मेरी कोशिश के बारे में सबकुछ मालूम हुआ, तो वे दुखी हुए.

‘रात में उन्होंने मेरे माथे पर हाथ फेर कर सुबकते हुए कहा कि बहुत हुआ, संभालो अपनेआप को. मैं नशा करना छोड़ दूंगा. अब सब ठीक हो जाएगा.

‘इन के मुंह से ऐसा सुन कर तो जैसे मैं निहाल हो गई हूं. ऐसा लगता है, जैसे वे अब सुधर जाएंगे.’ फोन पर यह सब सुन कर तो जैसे नरेश धड़ाम से गिरा. सारे सपने झटके में चूरचूर हो गए.

आखिर में अंजू ने कहा, ‘अच्छा, अब ज्यादा बातें नहीं हो पाएंगी. रखती हूं. गुडबाय’.

नरेश ने अपना सिर पकड़ लिया. क्या सोचा था, क्या हो गया. कैसेकैसे सपने अंजू को ले कर बुन डाले थे, पर आखिर वही होता है जो होना होता है. यह सब एक याद बन कर रह जाएगा.

दफ्तर का समय पूरा हो चुका था. नरेश घर की ओर बोझिल कदमों से निकल पड़ा. घर पहुंचा तो देखा कि सुनीता बैग पकड़े रक्षा का हाथ थामे दरवाजे पर खड़ी थी.

नरेश को देख कर सुनीता ने एक मुसकान फेंकी, पर उस का भावहीन चेहरा देख कर बोली, ‘‘क्या बात है, हमें देख कर आप को खुशी नहीं हुई?’’ तब तक रक्षा नरेश के नजदीक आ चुकी थी. उस ने रक्षा को प्यार से उठा कर चूमा और नीचे खड़ा कर जेब से चाबी निकाल कर बोला, ‘‘अपनी मरजी से आई हो या पिताजी ने समझाया?’’

‘‘पिताजी ने तो समझाया ही. मुझे भी लगा कि अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी के लिए आप की कोशिश में हमारे घर लौटने से ही तेजी आएगी.’’

‘‘सुनीता, रबड़ को उतना ही खींचो कि वह टूटे नहीं.’’

‘‘इसलिए तो चली आई जनाब.’’

दरवाजा खुल चुका था. तीनों अंदर आ गए.

‘‘अरे वाह, घर इतना साफसुथरा… कहीं कोई…’’ सुनीता ने आंखें तरेरीं.

‘‘सुनीता, अब बस भी करो. फुजूल के वहम ठीक नहीं हैं.’’

‘‘आप का आएदिन फोन बिजी होना शक पैदा करने लगा था. आप मर्दों का क्या…’’

‘‘बोल चुकीं? क्या हम सब तुम्हारे लौटने की खुशी मना सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं. मैं सब से पहले चाय बनाती हूं,’’ कहते हुए सुनीता रसोईघर में चली गई. रक्षा ने टैलीविजन चलाया और नरेश फै्रश होने बाथरूम में घुस गया.

सुनीता के आने से अंजू के मामले में नरेश का सिर भारी होने से बच गया. आमतौर पर नरेश शाम को नहीं नहाता था, पर न जाने क्यों आज नहाने की इच्छा हो गई और वह बाथरूम में घुस गया.

Emotional Story : सच्चाई – क्या सच सामने ला सकी मिट्ठी

Emotional Story : मां का अचानक सब को छोड़ कर चले जाने का दर्द आज भी मिट्ठी को साल रहा था. उन की मौत का सच वह सब के सामने लाना चाहती थी.

‘‘राजकुमारी, वापस आ गई वर्क फ्रौम होम से? सुना तो था कि घर पर रह कर काम करते हैं पर मैडम के तो ठाट ही अलग हैं, हिमाचल को चुना है इस काम के लिए.’’ बूआ आपे से बाहर हो गई थी मिट्ठी को अपनी आंखों के सामने देख कर.

‘‘अपनाअपना समय है, बूआ. कोई अपनी पूरी जिंदगी उसी घर में बिता देता है जहां पैदा हुआ हो और किसी को काम करने के लिए अलगअलग औफिस मिल जाते हैं, वह भी मनपसंद जगह पर,’’ मिट्ठी ने इतराते हुए बूआ के ताने का ताना मान कर ही जवाब दिया.

बूआ पहले से ही गुस्से में थी, अब तो बिफर पड़ी, ‘‘सिर पर कुछ ज्यादा चढ़ा दिया है तुझे, पर मुझे हलके में लेने की गलती मत करना. तेरी सारी पोलपट्टी खोल दूंगी भाई के सामने. नौकरी ख्वाब बन कर रह जाएगी. मुंह पर खुद ही पट्टी लग जाएगी.’’

‘‘आप से ऐसी ही उम्मीद है, बूआ. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना कि मैं मां की तरह नहीं हूं, जो तुम्हारे टौर्चर से तंग आ कर अपनी जान से चली गई.’’

बूआ मिट्ठी को मारने के लिए दौड़ी ही थी कि कुक्कू बीच में आ गया. उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर अंदर ले गया तब तक गुरु भी आ गया था. वह मिट्ठी को उस के कमरे तक छोड़ कर आया. मिट्ठी आंख बंद कर के अपनी कुरसी पर बैठ गई. जो उस ने जाना था उस से भक्ति बूआ के लिए उस की नफरत और भी बढ़ गई थी. बचपन से ही उसे बूआ से नफरत थी. वजह, उन का दोगला व्यवहार. कुक्कू और गुरु को हमेशा प्राथमिकता देती. घर का कोई भी काम हो, मिट्ठी से करवाती और हर बात में उसे ही पीछे रखती.

घर में खाना उन दोनों की पसंद का ही बनता था. मिट्ठी का कुछ मन भी होता तो उस में हजार कमियां बता कर बात को टाल दिया जाता. मिट्ठी को समझ नहीं आता था कि वह अपनी ससुराल में न रह कर उन के घर में क्यों रह रही है. सब के सामने उन का बस एक ही गाना था, ‘मां तो छोड़ कर चली गई अपने दोनों बच्चों को. वह तो मेरी ही हिम्मत है जो अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़ी हुई हूं इन की परवरिश के लिए.’

‘अब तो हम बड़े हो गए हैं, अब तो अपना घर संभालो जा कर.’ मन ही मन मिट्ठी बुदबुदाती.

घर में सबकुछ बूआ की मरजी से ही होता आ रहा था. मिट्ठी और उस का छोटा भाई कुक्कू उन की हर बात मानते आ रहे थे. बूआ का बेटा गुरु भी कुक्कू का हमउम्र था, इसलिए दोनों साथ ही रहते थे. लेकिन मिट्ठी को अब घर में रहना और बूआ के कायदेकानून से चलना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. यही कारण था कि उस ने कालेज पूरा होते ही नौकरी ढूंढ़ ली थी. पैकेज ज्यादा नहीं था. नौकरी दूसरे शहर में थी.

6 महीने होतेहोते कंपनी में उस की अच्छी साख बन गई थी. घर आने का उस का मन ही नहीं होता था. इस बार पापा से जिद कर के उस ने हिमाचल वाले फ्लैट में रहने का मन बनाया. वर्क फ्रौम होम ले लिया. कुक्कू को जैसे ही भनक लगी, तुरंत उस के पास आया, ‘‘देखो दीदी, मैं जानता हूं, तू हिमाचल क्यों जा रही है. मां के बारे में जानने का मेरा भी उतना ही मन है जितना तुम्हारा. बस, मैं कभी दिखाता नहीं हूं. मेरी भी अब छुट्टियां हैं. मैं भी वहीं पर कोई इंटर्नशिप कर लूंगा.’’

मिट्ठी को कुक्कू की बात सही लगी और उसे साथ ले जाने को तैयार हो गई. गुरु को उस के पापा ने अपने पास बुला लिया था, इसलिए दोनों भाईबहन अपनाअपना सामान ले कर रवाना हो गए. बूआ अपने बेटे गुरु को उन के साथ भेजना चाहती थी लेकिन पति को मना नहीं पाई. भौंहें तान कर मिट्ठी और कुक्कू को विदा किया.

‘‘गगन, तू ने भेज तो दिया हिमाचल पर कोई बीती बात बच्चों के सामने आ गई तो क्या होगा? उसी फ्लैट में रुकने की क्या पड़ी थी, किसी होटल में भी तो रुक सकते थे. तुम तो सबकुछ भूल गए हो.’’ बूआ ने लगभग डांटते हुए अपने भाई गगन को अपनी बात समझने की कोशिश की.

‘‘दीदी, 20 साल बीत चुके हैं उस घटना को. हम ने कोई जुर्म नहीं किया है जो छिपे रहेंगे और बच्चों को उस फ्लैट से दूर रखेंगे. वे दोनों उसी फ्लैट में पैदा हुए थे. अपनी जन्मभूमि इंसान को अपनी ओर खींच कर बुला ही लेती है. आप डरिए मत. सब ठीक होगा.’’ गगन ने अपनी बड़ी बहन को समझने की कोशिश की.

‘‘मिट्ठी अब कब तक ऐसे ही बैठी रहेगी? चल उठ, नहा कर आ जा. नाश्ता ठंडा हो गया है. हम दोनों कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं? मुझे भी सुनना है तुम लोग कैसे बिता कर आए हो मेरे बिना पूरा एक महीना.’’ गुरु मिट्ठी को बाथरूम भेज कर ही कमरे से बाहर गया.

‘‘पापा मेरी कंपनी का एक औफिस शिमला में भी है. मैं ने सोचा है वहीं पर ट्रांसफर ले लेती हूं. अपना फ्लैट तो है ही वहां पर,’’ शाम को पापा घर आए तो मिट्ठी ने प्रस्ताव रखा.

‘‘देखो बेटा, कुछ दिन वहां जा कर रहना दूसरी बात है और वहीं ठहर जाना बिलकुल अलग. तुम जहां हो, अभी वहीं पर रह कर काम करो,’’ पापा की बात स्पष्ट न थी.

‘‘पापा, आप ने भी तो सालों वहां पर नौकरी की है. अपना फ्लैट बंद पड़ा है, मैं रहूंगी तो उस का अच्छे से रखरखाव भी हो जाएगा. फिर मेरा मन है वहां जा कर रहने का. प्लीज, एक बार मेरी तरह सोच कर देखो न,’’ मिट्ठी ने डरतेडरते अपनी बात दोहराई.

‘‘तुझे सीधी तरह से कोई बात क्यों नहीं समझ आती है, लड़की? गगन वैसे ही उन बातों को याद कर के परेशान हो जाता है, तुम हो कि खुद के अलावा किसी के बारे में सोचती ही नहीं हो. जा कर अपना काम करो,’’ बूआ ने अपने लहजे में मिट्ठी को डांटा.

पापा के सामने मिट्ठी चुप रह जाती थी लेकिन आज उसे गुस्सा आ गया, ‘‘आप से कौन बात कर रहा है, बूआ? पापा को ही जवाब देने दो. हिमाचल के नाम से इतना डर क्यों जाती हो? कहीं आप के कहने से ही तो पापा वापस नहीं आए वहां से, आप को इसी घर में जो रहना था?’’ गुस्से में मिट्ठी बोलती चली गई.

गुरु और कुक्कू आ कर उसे अपने साथ ले गए. घर में क्लेश पसर गया. उस रात किसी ने भी खाना नहीं खाया. गगन का गुस्सा शांत हुआ तो बेटी पर प्यार उमड़ पड़ा और उस के कमरे में आ गए. मिट्ठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. उसे देख कर गगन जाने के लिए वापस मुड़े, तभी मिट्ठी ने आवाज लगाई, ‘‘आइए पापा, मेरा काम तो पूरा हो गया है. बस, कुछ फोटो देख रही थी हिमाचल की.’’

गगन मिट्ठी के पास दूसरी कुरसी पर बैठ कर फोटो देखने लगा, ‘‘यह फोटो तुम्हें कहां से मिली?’’ गगन, मिट्ठी, कुक्कू और नीतू की फोटो थी.

मिट्ठी ने आश्चर्य से पापा को देखा, बोली, ‘‘फ्लैट के स्टोररूम में कुछ सामान पड़ा हुआ था. यह फोटो उस सामान में ही थी.’’

मिट्ठी ने बताया तो गगन ने आगे पूछा, ‘‘बाकी सामान कहां है?’’

‘‘इस में है, पापा. आप की और मम्मी की बहुत सारी यादें. मैं अपने साथ उठा लाई. मिट्ठी ने एक थैला गगन के हाथ में थमा कर दरवाजा बंद कर दिया. उसे डर था कि पापा को उन के कमरे में नहीं पाएंगी तो भक्ति बूआ यहीं धमक पड़ेंगी. पापा जितनी देर घर में रहते हैं, उन की नजर उन्हीं पर रहती है, विशेष रूप से जब मिट्ठी आसपास हो तब.

पापा उदास हो गए थे उन फोटो को देख कर, मम्मी के छोटेमोटे सामान को देख कर, ‘‘कितना समझता था कि छोटीछोटी बातों को दिल से लगाना ठीक नहीं लेकिन उसे तो बात की तह तक जाना होता था. क्यों कही, किस ने कही, क्या जवाब देना चाहिए था, बस, इसी में घुलती रहती थी.’’

मिट्ठी को अच्छा लगा. बड़े दिनों बाद पापा ने मम्मी के बारे में खुल कर कुछ बोला था पर अचानक पापा खड़े हो गए. ‘‘बेटा, तुम अपना काम करो, मैं चलता हूं. तुम्हारी बूआ ने दूध बना कर रख दिया होगा. उस के भी सोने का टाइम हो गया है. दिनभर काम में लगी रहती है.’’ दरवाजा बंद कर के पापा मिट्ठी के कमरे से बाहर निकल गए.

बूआ के लिए पापा की चिंता नई बात न थी. उन के एहसान में दबे हुए थे, पापा.
उन के बच्चों की परवरिश कर के बूआ ने उन पर बड़ा एहसान चढ़ा दिया था.

मिट्ठी ने सामान वापस समेट कर रख दिया. किसी और को पता चल जाता तो बात का बतंगड़ बन जाता. मां के बारे में घर में कोई भी बात नहीं करता था. कुक्कू के ऊपर बूआ अपना अतिरिक्त प्यार लुटाती थी, इसलिए उसे मां की कमी बस तभी महसूस होती जब मिट्ठी को रोते हुए देखता. मिट्ठी जब भी घर में होती उसे मां की कमी हर पल महसूस होती. बचपन के दिन याद आ जाते. मां कैसे हर जगह उसे साथ रखती थीं.

‘लड़के की इतनी परवा नहीं है जितनी लड़की की है. दिनभर इसी के चोंचलों में लगी रहती है. पढ़लिख कर दिमाग खराब हो जाता है छोरियों का. आखिर वंश तो लड़के से ही चलेगा. लड़की को तो एक दिन अपने घर चली जाना है.’ बूआ के ऐसे ताने से मां आहत होती लेकिन हंस कर जवाब देतीं, ‘दीदी, आप और मैं भी तो लड़कियां ही हैं और फिर आप के घर का तो रिवाज है. आप अपनी ससुराल नहीं गईं तो मिट्ठी को भी यहीं रख लेंगे.’

मां के जवाब से बूआ आपे से बाहर हो जाती, ‘मेरी क्या रीस करनी है? मेरी तो मां बचपन में ही मर गई थी. गगन को अपने हाथों से पाला है मैं ने. कोई बूआ, चाची या ताई भी नहीं थी जो संभाल लेती. गगन ही नहीं जाने देता है. रहो अपने घर और ससुर की भी रोटी सेंको. मैं तो कल ही चली जाऊंगी अपने घर.’

मां फिर हंस पड़ती. ‘नाराज क्यों होती हो, दीदी? आप के भाई ही मुझे साथ ले कर गए हैं. मेरा तो मन भी नहीं लगता वहां. यहां छोड़ेंगे तो ससुरजी को रोटी नहीं, सब्जी भी खिलाऊंगी. रिटायर हो गए हैं, खुद ही सब काम करते हैं. मुझे अच्छा नहीं लगता है.’

बूआ बात को पकड़ कर अपने पक्ष में कर लेती. ‘तो इसीलिए तो अपना घरबार छोड़ कर पड़ी हूं यहां. तुम अपना घर संभाल लेती तो गगन क्यों मुझे रोके रखता?’ कुछ भी कर के मां के सिर पर हर बात पटक दिया करती थी, बूआ.

कई सालों बाद इस बार नाना मिट्ठी के सामने ही आए. मां के जाने के बाद हर साल नाना दोनों नातियों से मिलने बेटी की ससुराल आते थे. न कोई उन से बात करता था और न ही कोई उन के पास बैठता था. अकेले आते थे और दोनों बच्चों को उन के हिस्से का चैक दे कर चले जाते थे. नाना ने अपनी वसीयत में अपने बेटे और बेटी को बराबर का हिस्सा दिया था. सालभर की कमाई का आधा हिस्सा बेटी के दोनों बच्चों को दे जाते थे उस के जाने के बाद.

‘‘कितना फजीता किया था हमारे परिवार का इस आदमी ने. अब लाड़ बिखेरने आता है, बच्चों पर. इस की बेटी गई तो पुलिस ले कर गया था फ्लैट पर. अखबार में भी खबर दी कि मार दिया मेरी बेटी को,’’ नाना चले गए तो बूआ का बड़बड़ाना शुरू हो गया था.

‘‘वे हमारे नाना हैं, बूआ. उन के बारे में ऐसा सोचना ठीक नहीं,’’ कुक्कू ने बोला तो बूआ ऐसे शुरू हुई जैसे इंतजार ही कर रही थी.

‘‘तेरे दादा और पापा को जेल की हवा खानी पड़ती. वह तो तेरी मां की मैडिकल जांच में नहीं निकला कि उस को मारा है किसी ने.’’ मिट्ठी चाहती थी कि बूआ और भी कुछ बोल दे, ‘‘आप तो तब फ्लैट पर ही थीं बूआ. पूजा भी आप ने ही रखवाई थी और पंडित को भी आप ही ले कर गई थी. आप को तो सच पता था, फिर आप ने क्यों छिपाया यह सब.’’

बूआ आज पहली बार डर अपने चेहरे पर छिपा नहीं पाई, ‘‘तुझे किस ने बताया यह सब?’’ मिट्ठी इसी सवाल का जवाब देना चाहती थी, ‘‘आप के पंडित ने, उन सब लोगों ने जो पूजा में आए थे, पड़ोस वाले.’’

बूआ सीधे मिट्ठी के सामने आ कर खड़ी हो गई, ‘‘इसीलिए मैं नहीं चाहती थी कि तू जाए वहां पर. यही सब कर के आई है वर्क फ्रौम होम के बहाने.’’ बूआ के हर शब्द से गुस्सा टपक रहा था.

‘‘मम्मी, पापा आए हैं. थोड़ा ध्यान उन पर दो. अकेले बैठे हैं बैठक में.’’ गुरु बूआ को वहां से ले गया और मिट्ठी भी पीजी वापस जाने के लिए अपना सामान पैक करने चली गई. गुरु 2 साल से खाली घूम रहा था. छोटीमोटी नौकरी उसे समझ नहीं आती थी और बड़ी के लायक न तो उस में काबिलीयत थी और न ही उस ने कोशिश की. जैसेतैसे इंजीनियरिंग पास की थी.

‘‘मां, मुझे उसी कंपनी में नौकरी मिल गई है जिस में मामा काम करते थे.’’ गुरु ने घोषणा की तो बूआ रसोई से लड्डू का डब्बा उठा कर ले आई.

कुक्कू ने लड्डू खा कर डब्बा उन के हाथ से ले लिया, ‘‘बूआ, तुम खा लो, फिर बैठक में ले जा रहा हूं और वहां से बच कर नहीं आएंगे.’’ बूआ रोकती रह गई पर कुक्कू डब्बा उठा कर भाग गया.

मिट्ठी बिना कुछ कहे ही घर से निकल गई. बूआ ने रोकने की कोशिश नहीं की. पीजी में जाते ही बिस्तर पर लेट गई. हमेशा की तरह मां याद आ रही थी.

रोतेरोते आंखें लाल हो गई थीं उस की. बाथरूम में चली गई मुंह धोने के लिए जिस से पीजी की बाकी लड़कियों को शक न हो कि वह रो रही थी. हर बार घर से आ कर एकदो दिन इसी तरह परेशान रहती थी मिट्ठी.

चार दिनों बाद ही पापा का फोन आया, देख कर मिट्ठी सोच में पड़ गई. पहली बार में तो फोन उठाना ही भूल गई. दूसरी बार जब आया तो उठाया, ‘बेटा, तुम्हारी भक्ति बूआ एक पूजा करवाना चाहती हैं. शिमला वाला फ्लैट तुम्हारी मां के जाने के बाद से बंद ही है. अब गुरु वहीं रहेगा, इसलिए पूजा कर के उसे पवित्र करवाना चाहती हैं. अगले रविवार को तुम भी थोड़ा समय निकाल लेना.’’

‘‘पापा, आप को पता है, मां जब से गई हैं, विश्वास उठ गया है मेरा पूजापाठ से.’’ मिट्ठी ने स्पष्ट किया.

‘‘जानता हूं, बेटा. पर हो सकता है यह पूजा तुम्हारे टूटे विश्वास को जोड़ने में कामयाब हो जाए. ऐसा करते हैं, इस पूजा को तुम ही करवाओ. पंडितजी से तो मिल ही चुकी हो.’’ मिट्ठी समझ गई, वह मना नहीं कर पाएगी पापा को. तभी एक विचार उस के दिमाग में कौंधा.
‘‘ठीक है पापा, कोशिश करती हूं. फ्राइडे तक आप को बताती हूं. भक्ति बूआ को बोलना अब उन के टैंशन के दिन गए. पंडितजी से मैं खुद ही बात कर लूंगी.’’

पापा की खुशी फोन पर ही फूट पड़ी. ‘‘अब उस का एहसान चुकाने का समय आ गया है. खुद को भुला कर उस ने हमारे घर को संभाला है. तुम ने यह जिम्मेदारी ले कर मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया है.’’ पापा फोन रखने ही वाले थे कि मिट्ठी ने कहा, ‘‘पापा, मैं चाहती हूं कि इस पूजा में नाना को भी बुलाऊं. मां के जाने के बाद नानी भी चली गईं. वे भी अकेले ही हैं. दादाजी भी गांव में चले गए हैं उस के बाद. प्लीज, उन दोनों को भी बुलाने दीजिए.’’
कुछ देर तक पापा ने कुछ नहीं कहा लेकिन फोन नहीं काटा. फिर यह कहते हुए फोन रखा, ‘‘तुम कहती हो तो मना कैसे कर सकता हूं. बुला लो. भक्ति को मैं समझ लूंगा.’’
मिट्ठी ने कमरे से बाहर आ कर आसमान की ओर देखा. उसे महसूस हुआ जैसे मां वहीं से मुसकरा कर कह रही है. ‘आखिर तुम ने रास्ता निकाल ही लिया सच से परदा उठाने का.’
मिट्ठी केवल निर्देश दे रही थी और कुक्कू उस का पालन कर रहा था. पापा ने इस बार चौका लगाया था. ‘‘भक्ति दीदी, तुम इतने सालों से सब संभालती आ रही हो, अब मु?ो भी कुछ करने का अवसर दो. इस बार पूजा की पूरी जिम्मेदारी मैं संभाल लूंगा. आजकल वैसे भी सब काम मोबाइल से हो जाते हैं. लंचटाइम में औफिस में बैठ कर सब प्रबंध कर दूंगा.’’
भक्ति सकपका कर बोली, ‘‘गगन, क्या तू भी यही मानता है कि मेरी पूजा के कारण ही नीतू की जान गई?’’

गगन ने दीदी का हाथ पकड़ लिया. ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, दीदी. तुम ने मिट्ठी और कुक्कू के लिए कितना कुछ किया है. मैं भी चाहता हूं कि गुरु को नौकरी मिलने और वहां सैट होने में मदद कर पाऊं. बस, इसीलिए आप को तनाव नहीं देना चाहता हूं.’’
भक्ति का दिल भाई की बात मानने से इनकार कर रहा था लेकिन उसे मना भी नहीं कर सकती थी. ‘‘ठीक है, गगन. मुझे तो इस बात की खुशी है कि तू पूजा के लिए तैयार हो गया है. कितने साल हो गए, घर में कोई शुभ काम नहीं हुआ.’’
‘‘अब होगा दीदी और आप को परेशान भी नहीं होना पड़ेगा. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन को भी जिम्मेदारी लेना सीखना चाहिए न. बस, इस बार उन की ही सहायता लूंगा.’’
निश्चित तारीख पर सब लोग शिमला के उस फ्लैट में इकट्ठे हो गए. दादाजी और नाना को कुक्कू ने मना लिया. सब काम पूरे हो गए तो मिट्ठी भी आ गई. पूजा शुरू हुई. पंडितजी ने हवन और आरती करने के बाद जैसे ही जाने को कहा, भक्ति बूआ ने आदतन उन्हें रोक लिया. ‘‘पंडितजी, गुरु की कुंडली देख कर बताइए कि क्या सावधानियां रखनी हैं और कुछ ऊंचनीच हो जाए तो क्या उपाय होगा?’’

पंडितजी ने काफी देर तक कुंडली को देख कर कुछ गणना की, फिर बोले, ‘‘गुरु मामा की छोड़ी हुई नौकरी पकड़ रहा है. उन्हीं के घर में रहेगा तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बहूरानी की आत्मा इन से संपर्क करे.’’ भक्ति बूआ ने तुरंत गुरु की कुंडली पंडितजी के हाथ से ले ली. लेकिन उन्होंने अपनी बात जारी रखी. ‘‘आज की पूजा में ही अगर कुछ मंत्र और पढ़ लिए जाएं और सच्चे दिल से बहूरानी को याद कर के उन से माफी मांगी जाए तो बला टल सकती है.’’
सब भक्ति बूआ की ओर देख रहे थे.
‘‘तो जो सही है वह करो, मैं कौन सा मना कर रही हूं. इन बातों का कुछ मतलब थोड़े ही है.’’ बूआ उठ कर जाना चाहती थी लेकिन फूफाजी ने बिठा दिया.
‘‘पंडितजी, जो बाकी है उस को भी पूरा कीजिए. बेटे को मुश्किल से रोजगार मिला है, उस में कोई अड़चन न आए, उस का उपाय आप शुरू कीजिए.’’
पंडितजी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए. सब से पहले नानाजी बोले, ‘‘नीतू बेटा, अगर तू सुन रही है तो मुझे माफ करना. मैं समय से तुम्हारी चिट्ठी नहीं पढ़ सका. तुम बच्चों को ले कर मेरे पास आना चाहती थीं लेकिन तुम्हारा खत मुझे तुम्हारे जाने के बाद मिला.’’ अब पापा भी चुप नहीं रहे. पहली बार उन्होंने बच्चों के सामने अपनी पत्नी को ले कर कुछ कहा. ‘‘मैं भी खतावार हूं, नीतू. तुम्हारे मना करने पर भी मैं ने अपने बिजनैस के जनून के कारण नौकरी छोड़ी और तुम्हें तुम्हारे घर भी नहीं जाने दिया. मुझे डर था कि ससुराल में मेरी साख कम हो जाएगी.’’

अब पंडितजी ने बोल कर सब को चौंका दिया. ‘‘हो सके तो माफ कर देना, बहूरानी. मैं नहीं जानता था कि तुम पूरे महीने व्रत कर रही थी. मैं ने ही भक्तिजी के कहने पर यह घोषणा की थी कि तुम्हारे कुंडली दोष के कारण ही गगन की नौकरी गई है और व्यवसाय भी शुरू नहीं हो पा रहा है. मुझे पता होता तो तुम्हें लगातार 3 दिन निर्जल, निराहार व्रत का उपाय न बताता.’’ सब की नजर भक्ति की ओर थी.
फूफाजी ने उन्हें कुछ बोलने के लिए हाथ से इशारा किया. भक्ति बूआ रोते हुए बोली, ‘‘नीतू, हो सके तो मुझे भी माफ करना. पंडितजी से बात कर के मैं ने ही वह पूजा रखी थी. मेरे कहने पर ही उन्होंने कुंडली देखी थी. दूध पीते बच्चे की मां ऐसी कठिन विधि नहीं अपना पाएगी यह जानते हुए भी मैं ने तुम पर दबाव बनाया.’’

बूआ बोल ही रही थी कि मिट्ठी बीच में बोल पड़ी, ‘‘मां को 3 दिनों से उलटीदस्त हो रहे थे, फिर भी वे पूजा के काम में लगी रहीं और अपनी दवाई भी नहीं ले पाईं व्रत करने के कारण. अगर दवा लेतीं तो उन को हार्टअटैक न आता.’’ आज पहली बार भक्ति बूआ ने मिट्ठी को घूर कर नहीं देखा.

नाना उठ कर खड़े हो गए, ‘‘बस, यही जानने के लिए मैं बेचैन था. अगर सही बात पता चल जाती तो मैं पुलिस के पास कभी न जाता. मेरी बेटी अचानक चली गई, अपनी नातियों से रिश्ता क्यों तोड़ता.’’
कुक्कू ने नाना को पकड़ कर बिठा दिया और खुद भी उन के पास ही बैठ गया. फूफाजी ने भक्ति बूआ को वहां से उठा दिया और सामान ले कर चलने लगे. आज गगन ने उन्हें नहीं रोका.
बूआ खुद ही गगन के पास आई. ‘‘हो सके तो माफ कर देना, मेरे भाई. इसी एक गलती को सुधारने के लिए अपने घर नहीं गई.’’
‘‘पर मुझे तो सच बता देतीं, दीदी. जीनामरना अपने हाथ में नहीं है लेकिन मेरे विश्वास का कुछ तो मान रखतीं आप.’’
भक्ति बूआ साड़ी के पल्लू में मुंह छिपा कर रो रही थी. फूफाजी ने आ कर पापा को सांत्वना दी, ‘‘इस गलती की सजा अब मिलेगी इस को. अब यह तब तक तुम्हारे घर नहीं आएगी जब तक तुम बुलाओगे नहीं.’’
दादाजी उठने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मिट्ठी ने उन्हें रोक दिया. तब दादाजी बोले, ‘‘भक्ति को विदा कर देता हूं, बेटा. शादी के 26 साल बाद ससुराल जा रही है. अब तो तू सब संभाल लेगी. उस को जाने दो.’’
कुक्कू पंडितजी की ओर देख कर मुसकरा दिया. उन के प्रायश्चित्त पाठ ने वह कर दिखाया था जो सालों से कोई नहीं कर पाया था.

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