‘‘नहीं खाऊंगी, नहीं खाऊंगी,’’ राशि इतनी जोर से चीखी कि रुक्मिणी देवी कांप उठी थीं.

राशि का हाथ लगने से रुक्मिणी देवी के हाथ से प्लेट गिर कर चकनाचूर हो गई थी. राशि के चीखने और प्लेट गिरने की आवाज सुन कर दालान में काम करते मंगल की भवें तन गई थीं. उस के हाथ एकदम थम गए. वह तेजी से अंदर आया और राशि पर एक भरपूर नजर डाली. उस की आंखों में इतना क्रोध था कि राशि ने सहम कर नजरें झुका ली थीं.

‘‘उठो, थाली लो, उस में खाना निकाल लो. खुद भी खाओ और हार्दिक को भी खिलाओ. यहां कोई नहीं है तुम्हारे नखरे उठाने को,’’ मंगल की चेतावनी सुन कर राशि और उस से एक साल छोटा हार्दिक दोनों ही सहम गए. रुक्मिणी देवी ने कनखियों से मंगल को शांत रहने का इशारा किया.

‘‘मुझे नहीं रहना यहां. मैं तो मम्मीपापा के पास जाऊंगा,’’ बहन को रोते देख कर हार्दिक गला फाड़ कर रो उठा.

‘‘कहीं नहीं जाना है. कहा न, खाना खा लो,’’ कहते हुए मंगल ने मारने के लिए हाथ उठाया.

‘‘रहने दे, बेटा, बहुत छोटा बच्चा है. क्यों सताता है उसे?’’ रुक्मिणी देवी ने मंगल को रोकते हुए कहा.

‘‘छोटा है तो छोटे की तरह रहे, दोनों भाईबहनों ने मिल कर जीना मुश्किल कर रखा है,’’ मंगल बेहद गुस्साए स्वर में बोला.

रुक्मिणी देवी ने हार्दिक को गोद में बिठा कर उस के आंसू पोंछे. उसे देख मंगल की आंखें भी छलछला आई थीं. नीलेश बाबू अपने कमरे में से मांबेटे का यह वार्त्तालाप अपनी थकी आंखों से देख रहे थे.

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