Handmade Sweaters : हाल ही में जब भारत और इंगलैंड के बीच टैस्ट मैच सीरीज हो रही थी तब दर्शकों में बैठी कई महिलाएं स्वैटर बुन रही थीं. बहुत सी विदेशी फिल्मों में भी बुनने की इस कला का प्रदर्शन किया जाता है. बहुतों में तो पुरुषों को भी स्वैटर बुनते दिखाया जाता है. पर भारत में यह अति लोकप्रिय कला अब मानो लुप्त हो गई है. मशीन के ऊन से बने सामान ने हाथों की होशियारी को काबू कर लिया है.

ऐसे में मुझे दिल्ली के सरोजिनी नगर इलाके में रहने वाली गुप्ता आंटी याद आती हैं जो भरी बस में किसी और के स्वैटर को हाथ से छू कर उस की बुनाई का डिजाइन चुटकियों में याद कर लिया करती थीं और घर आ कर हूबहू उसी डिजाइन का स्वैटर बुन लेती थीं. उन के हाथ में सफाई थी, ऊन का रंग संयोजन कमाल का था और सब से बड़ी बात, उस पहने हुए स्वैटर में उन के स्नेह का स्पर्श हमेशा बना रहता था.

पर आज के बाजारवाद ने हाथ के हुनर को अपना बंदी बना लिया है. जो उंगलियां पहले सलाइयों पर फिरती थीं, वे अब मोबाइल फोन की कुछ इंच की स्क्रीन पर समय जाया कर रही हैं. सोशल मीडिया पर स्वैटर बुनने की ढेरों वीडियो क्लिप मिल जाएंगी, इस के बावजूद ऊनी धागों का तानाबाना घरों से गायब हो गया है.

रिश्तों में गरमाहट रखने के लिए गुप्ता आंटी जैसों का होना बहुत जरूरी है. कभी पहन कर देखना किसी के हाथ का बुना स्वैटर. ऐसी अनमोल चीजें तनाव को ‘टाटा’ कहने की ताकत रखती हैं. Handmade Sweaters

 

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