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ओवर ईटिंग से बचने के लिए अपनाएं ये 6 तरीके

कई बार ज्यादा खाने की आदत से बचना मुश्किल हो जाता है. आप घर में स्वस्थ खाना खाते हैं, तो आप को लगता है कि सब ठीक है और फिर बाहर जा कर खुद को जंक फूड से घिरा हुआ पाते हैं. उसे देख कर भूख लगने लगती है और आप डाइट भूल कर जंक फूड का मजा लेने पहुंच जाते हैं.

पेश हैं, कुछ तरीके जो आप की इस आदत को छुड़ाने में आप की सहायता करेंगे:

  1. खाने में सिरका और दालचीनी डालें:

खाने को स्वादिष्ठ और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए बहुत से मसाले और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. सिरके से ग्लाइसैमिक इंडैक्स कम होता है. खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ाए बगैर सलाद की ड्रैसिंग, सौस और भुनी हुई सब्जियों में इस से ऐसिडिक फ्लेवर मिलता है.

2. भूख न लगने पर खाएं:

भूख तेज लगने की स्थिति में व्यक्ति ज्यादा खा लेता है. ज्यादा खा लेने से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करेंगे, जिस से इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है और आप थकान महसूस करने लगते हैं. उस के बाद भूख भी जल्दी लगती है और आप फिर जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं. भूख को मारने के बजाय दूसरे तरीके को आजमा कर देखें. जब आप को भूख न लग रही हो या हलकी लग रही हो, तब खाएं. इस से आप कम खाएंगे और धीरेधीरे भी. दिन भर में कम खाने के कई लाभ हैं. इस के अलावा इस आदत से व्यक्ति ऊर्जावान भी रहता है.

3. पेय कैलोरीज के बजाय पानी पीएं:

जूस और सोडा जैसे पेय कैलोरीज से कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि ये इंसुलिन के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. बेहतर होगा कि इन पेयपदार्थों के बजाय आप पानी पीएं. स्वाद के लिए उस में नीबू, स्ट्राबैरी या खीरा मिला सकते हैं. अपनी ड्रिंक्स में कभी कैलोरी न मिलाएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी पीने का लक्ष्य निर्धारित करें. अपनी भूख को नियंत्रित करने के लिए हर भोजन से 20 मिनट पहले 1 गिलास पानी पीने की आदत जरूर डालें.

4. धीरेधीरे खाएं:

खाने को निगलने की स्थिति में उस से तुष्ट होने में कुछ समय लगता है. यह देरी करीब 10-30 मिनट तक की हो सकती है. इसी देरी की वजह से हम कई बार जरूरत व इच्छा से ज्यादा खाना खा लेते हैं. हम जितना तेज खाते हैं उतना ही अधिक मात्रा में खा जाते हैं. हर कौर को कम से कम 10 बार चबा कर खाएं. इस साधारण से नियम का पालन कर आप का खाने की मात्रा पर नियंत्रण बना रहेगा और आप अपने भोजन का आनंद लेते हुए खा सकेंगे.

5. स्नैक्स लेते रहें:

भोजन के  बीच में औलिव औयल या चीनी मिश्रित 1 गिलास पानी लिया जा सकता है. बिना नमक वाले बादाम भी ले सकते हैं. दिन में एक बार ऐसा करने से अपनी भूख पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यह तरीका बहुत कारगर साबित हो सकता है अगर आप को अपना वजन कम करना हो. इस से घ्रेलिन नियंत्रित होता है, जोकि भूख बढ़ाने वाला हारमोन है और फिर फ्लेवर व कैलोरी के बीच का संबंध कमजोर हो जाता है. अगर आप चाहते हैं कि यह तरीका काम करे तो हलके स्नैक्स लें और ध्यान रखें कि स्नैक्स लेने के आधे घंटे पहले और बाद तक आप पानी के सिवा और कुछ न लें.

6. फ्रंट डोर स्नैक:

आप को यह बात अच्छी तरह पता होगी कि अत्यधिक भूख के समय किसी प्रकार का दृढ़ निश्चय काम नहीं करता है. घर से निकलते ही बाहर लुभावना जंक फूड नजर आने लगता है, इसलिए कोशिश करें कि घर से निकलने से पहले स्वस्थ खाना खा कर या ले कर चलें. घर के मेन दरवाजे के पास बादाम या केले के चिप्स जैसी चीजें रखें और निकलने से तुरंत पहले उन का सेवन करना न भूलें. इस से आप को बाहर निकलते ही भूख नहीं लगेगी.

– डा. साक्षी कक्कड़, पारस ब्लिस हौस्पिटल

मेरी मां का नया प्रेमी: मां के प्रेमी को क्या श्वेता स्वीकार कर पाई?

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हम दो तो हमारे कितने ?

जब शिशु का जन्म होता है तो उस शिशु के प्रति पैरैंट्स की न सिर्फ जिम्मेदारी होती है बल्कि  उस की सुरक्षा व देखभाल का वादा करना भी होता है. पैरैंट्स का यह प्रयास होता है कि उन के बच्चे का पालनपोषण सर्वश्रेष्ठ हो. एक बच्चे की परवरिश करना दैनिक जीवन की प्रक्रिया से कहीं अधिक उत्तरदायित्व है. यह एक ऐसा कार्य है, जिसे प्रत्येक पेरैंट्स बेहद स्नेहपूर्ण व समपर्ण भाव से करते हैं. आज के समय में पेरैंट्स अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. भविष्य की इन योजनाओं को बनाने के दौरान उन के मन में रहरह कर यह सवाल उठता है कि बेहतर परवरिश के लिए एक बच्चे का होना अच्छा होगा या एक से अधिक बच्चों का.

इस बारे में बता रही हैं सेमफोर्ड स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोरा.

एक आधुनिक पेरैंट्स की योजनाएं

आप के पेरैंट्स अनेक कारणों से केवल एक ही बच्चे की योजना बनाते हैं. कुछ मामलों में परिवार की आर्थिक स्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जबकि दूसरी ओर पेरैंट्स का स्वयं का कैरियर एवं महत्वाकांक्षा का भी इस संदर्भ में बड़ा रोल होता है, और कभीकभी पेरैंट्स ऐसा मानते हैं कि एक बच्चे को पैदा कर के वे न सिर्फ अपने संसाधनों को बचा सकते हैं बल्कि अपने बच्चे को बहुत सारा प्या व देखभाल उपलब्ध कराने में भी सफल हो सकते हैं, लेकिन अनेक ऐसे पहलू हैं. जिन्हें बच्चे के नजरिए से देखना और समझना जरूरी है.

नजरिया इकलौते का

सब से बड़ा कारण इकलौता बच्चा, जिसे सब से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है वह है अकेलेपन का अहसास, अपने हमउम्र बच्चे के घर में न होने के कारण वह कुछ मुख्य बातों से संबंधित पारस्परिक आदान प्रदान से वंचित रह जाता है. अपने पसंदीदा खिलौनों को ले कर हंसने, खेलने का सुख, पसंदीदा खाद्य पदार्थ को ले कर छीनाझपटी, रंगों के नए पैक को ले कर जोरजबरदस्ती इत्यादि. ऐसी स्थिति में बच्चो अपने पेरैंट्स से अतिरिक्त ध्यान प्राप्त करने की उम्मीद करने लग जाता है, चूंकि अब मैट्रो सिटीज में अधिकांश लोग एक संतान रखते हैं. इसलिए सामान्यतः घर पर कोई ऐसा नहीं होता, जो बच्चे की देखभाल कर सके, जबकि संयुक्त परिवार में यह समस्या नहीं आती है. यह समस्या आगे चल कर उस समय और अधिक पेचीदा हो जाती है, जब मातापिता दोनों कामकाजी हो जाते हैं.

लेकिन यदि मातापिता अपने बच्चे से मित्रवत रिश्ता कायम रखते हैं एवं उस के साथ पर्याप्त समय बिताते हैं व उसे लाड़प्यार देते हैं, तो वे निश्चित रूप् से अपने बच्चे को जीवन में व्याप्त भाईबहनों की कमी के एहसास को दूर कर सकते हैं. इकलौते बच्चे के साथ एक और बड़ी चुनौती स्कूल में उस के द्वारा गैर सामाजिक स्वाभाव का प्रदर्शन होता है. ऐसे बच्चे अन्य बच्चों से घुलमिल नहीं पाते.

एक ऐसे बच्चे की कल्पना करें, जो अपना अधिकांश समय अपने पेरैंट्स के साथ बिताता है एवं अपने आयु वर्ग के भाई बहनों व अन्य बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने में असहज रहता है क्योंकि वहां पर उस के मातापिता उसे सहजता प्रदान करने के लिए उपस्थित नहीं होते. उसे अन्य लोगों के साथ घुलने मिलने व सीखने, समझने के लिए अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत पड़ती है.

इकलौता बच्चा आकर्षण का केंद्र

इकलौते बच्चे के होने से लाभ यह है कि इस से पेरैंट्स के सामने बच्चे की परवरिश सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाती है. वह उसे नईनई गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं. ऐसा कर के वे उस के साथ क्वालिटी टाइम बिता सकते हैं और जब वे बच्चे की काल्पनिक दुनिया एवं उससे संबंधित गतिविधियों से सामंजस्य नहीं स्थापित कर पाते, तब वे उसे अपनी दुनिया के तिलिस्म से रूबरू कराने का विकल्प अपना सकते हैं. वे उसे फिल्म दिखाने के लिए ले जा सकते हैं. गेम आर्केड में ले जा सकते हैं. इस से बच्चा अपने पैरेंट्स के और अधिक नजदीक आ जाता है एवं इस से परिवार में प्यार मोहब्बत का रिश्ता और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है.

इस के अतिरिक्त इकलौता बच्चा पैरेंट्स को स्वयं पर पूरा ध्यान देने का अवसर देता है एवं वे उन की परवरिश में अपना पूरा प्रयास व संसाधन लगा देते हैं. इस प्रकार वह उन के आकर्षण का केंद्र बन जाता है एवं वे उस की सभी आवश्यकताओं व मांगों को पूरा करने पर ध्यान देने लगते हैं.

अनेक सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि इकलौते बच्चे संतुष्ट एवं शांत होते हैं. इस से इस झूठ की अस्वीकृति हो जाती है कि इकलौते बच्चे घमंडी और आत्मकेंद्रित होते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे बच्चों को किसी प्रकार की ‘सिबलिंग राइवलरी’ अथवा शीत युद्ध का सामना नहीं करना पड़ता और वे अपने मातापिता का भूरपूर प्यार व देखभाल प्राप्त करते हैं. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है, ऐसी स्थिति में पैरेंट्स की गलती से बच्चा बिगड़ भी सकता है एवं जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार उसे बरबादी के कगार पर भी ले जा सकता है.

एक तरफ जहां इकलौते बच्चे के होने की अपनी चुनौती है, वही दूसरी तरफ 2 या 2 से अधिक बच्चों के होने के फायदे और नुकसान भाई बहन से युक्त एक बच्चे के लिए सब से स्वाभाविक लाभ यह है कि वह कभी भी अकेला व बोर महसूस नहीं करता. क्योंकि वह हर समय अपनी भावनाओं एवं अपनी कहानियों को उन के साथ साझा कर सकता है एवं अपने भाई बहनों की कुछ खोजपरक गतिविधियों में शामिल हो सकता है. कई बार अत्यन्त समर्पित पेरैंट्स के लिए ऐसा करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उन की कामकाजी जिंदगी अथवा उन का वयस्क मनोवैज्ञानिक मस्तिष्क बच्चे की मनोस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए अनुकूल नहीं होता. यह कहना गलत नहीं होगा. आज के बिजी पैरेंट्स कभीकभी अपने बच्चे की कल्पनाशीलता के अनुकूल बनने में बड़ी चुनौती महसूस करते हैं इस के विपरीत समान उम्र के भाई बहन के लिए उन की कल्पनाशीलता को समझना आसान रहता है.

समान उम्र का असर

समान उम्र अथवा लगभग समान आयु के भाईबहन एक साथ मिल कर ढेर सारी चीजें एक साथ कर सकते हैं. मसलन काररेसिंग का दिलचस्प खेल, गुड़िया को सजाना संवारना एवं मनमौजी गतिविधियां इत्यादि वास्तव में ये गतिविधियां उन्हें जीवन भर के प्रगाढ़ बंधन में बांधने में सफल होती हैं. एक समान आयु वाले भाईबहनों के साथ बच्चा अधिक सहज होता है एवं वह उन के साथ भयमुक्त हो कर अपनी बातों को साझा करता है, जबकि अपने मातापिता के सामने ऐसी बातों को साझा करने में असहजता महसूस होती है और डर भी होता है कि कीं वह नाराज न हो जाएं. इस के अतिरिक्त घर पर अपने भाईबहनों के साथ संवाद स्थापित करने से उन का समग्र विकास होता है एवं सहज अभिव्यक्ति के कारण उन की भाषा भी काफी आकर्षक एवं लच्छेदार हो जाती है.

अकसर ऐसा देखा गया है कि जो बच्चे बड़े भाई बहनों से नियमित संपर्क में रहते हैं. वे उन के तौर तरीकों को सीख कर तेजी से परिपक्वता के स्तर को प्राप्त कर लेते हैं एवं कम अवस्था में भी जिम्मेदारी का अहसास करने लगते हैं.

एक से अधिक बच्चों का पैरेंट्स पर असर

एक से अधिक बच्चों का पैरेंट्स बनने पर उन पर थोड़ा अधिक ध्यान देने की समस्या का सामना करना पड़ता है. सब से पहली चुनौती बच्चों के खर्च को सुचारू रूप् से वहन करने की होती है एवं उन्हें एक साथ दोनों अथवा सभी बच्चों को संतुष्ट करने की शुरुआत करनी पड़ती है. अलग आयु वर्ग का होना, अलग पसंद एवं अलग आवश्यकताओं का होना. इस कठिनाई को और अधिक बढ़ा देता है. इस के अतिरिक्त एक बच्चे एवं उस के भाई बहनों के बीच मधुर संबंध का पूर्वानुमान लगाना भी काफी मुश्किल काम है. कई बार यह देखा जाता है कि अनेक कारणों से भाई बहनों के बीच प्या ही नहीं होता. जिस में आयु, व्यक्तित्व, पसंदगी, नापसंदगी की भिन्नता की विशेष भूमिका होती है. मित्रता, देखभाल, समानुभूति एवं आयुगत भिन्नता के बावजूद बच्चों में मातापिता के ध्यानाकर्षण के कारण रिरंतर एक स्पर्धा चल रही होती है. वास्तव में एक से अधिक बच्चों के होने से मातापिता को हर समय काफी ध्यान रखना पड़ता है एवं उन्हें अपने लिए समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है. कामकाज की व्यस्तता एवं पारिवारिक जीवन के बीच की आपाधापी के कारण एक पतिपत्नी के रूप में उन की व्यक्तिगत जिंगदी पर असर पड़ता है.

आखिर में यह कहा जा सकता है कि एक बच्चे की योजना बनाना अथवा एक से अधिक बच्चों का नियोजन करना पतिपत्नी की विशेष स्थिति पर निर्भर करता है. वास्तव में यह सोचना अधिक जरूरी है कि आप अपने बच्चे को भावनात्मक एवं भौतिक रूप् से क्यार अच्छा दे सकते हैं एवं इस के साथ ही साथ आप को अपने व्यक्तिगत जीवन के साथ भी बहुत अधिक समझौता नहीं करना चाहिए. सही मायनों में यदि देखा जाए तो पूरी तरह से संतुष्ट एवं सुखी मातापित ही बच्चों को पूरी तरह से संतुष्ट एवं सुखी कर सकते हैं और एक प्रसन्न परिवार का निर्माण संभव हो जाता है.

Top 20 Short Stories in Hindi: टॉप 20 शॉर्ट स्टोरी हिंदी में

Short Stories in hindi : इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आएं हैं सरिता की टॉप 20 शॉर्ट स्टोरी इन हिंदी. इन कहानियों में परिवार, समाज और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और रिश्तों को लेकर एक नया नजरिया और सीख भी देगी. इन hindi short Story से आप कई अहम बाते भी सीख सकते हैं जो जिंदगी और रिश्तों के लिए आपका नजरिया भी बदल देगी. तो अगर आपको भी है संजीदा कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए सरिता की Best short Stories in Hindi.

1. एक ही नाव पर सवार : महिमा ने करुणा से क्या छीना था?

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एक दिन मंथन सारे बंधन तोड़ कर महिमा के मोहपाश में बंध गया. जिस घने वृक्ष की छाया में वह अपने नन्हेमुन्ने 2 बच्चों के साथ निश्चिंत और सुरक्षित थी, जब वह वृक्ष ही उखड़ गया तो खुले आकाश के नीचे उसे कड़ी धूप और वर्षा का सामना तो करना ही था.

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2. खामोशी के बाद : आखिर क्यों उसे अपनी बेटी से नफरत थी?

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अंकिता के लिए सुमेधा मां थी। इसी संबोधन से उसे पुकारा करती थी वह। रोहित भैया था और मैं कुछ भी नहीं. मेरे लिए अंकिता सदैव पराई ही रही. मैं बेहद कठोर था इस बात को ले कर कि मेरे निर्णय का सदैव पालन हो. सुमेधा ने अपने जीवनकाल में कभी ऐसा कोई काम नहीं किया था जो मेरे चेहरे के भाव बदल दे.

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3. विद्रोह : सीमा की आंखों से नींद क्यों भाग गई थी?

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राकेश ने अपनी पत्नी को अचरज भरी निगाहों से देखा.  उन की शादी को करीब 12 साल  हो चुके थे. इस दौरान उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि सीमा ऐसे विद्रोही अंदाज में उस से पेश आएगी.उठ कर खड़ी होने को तैयार सीमा को हाथ के इशारे से राकेश ने बैठने को कहा और फिर  बताया कि कल सुबह मयंक और शिक्षा होस्टल से 10 दिनों की छुट्टियां बिताने घर पहुंच रहे हैं.

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4. कितने पास मगर दूर: यशोदा का बेटा कौन था?

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एक दिन की बात है. काफी रात तक हम आपस में बातें कर रहे. अंकलआंटी भी सो चुके थे. ठंड बहुत पड़ रही थी. उस रात वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था. मैं भी यह समझ नहीं पाई कि यह क्यों हुआ और जो हुआ अनजाने में और शायद गलत हुआ. मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया और न ही उसे.

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5. छांव : पति की इच्छाओं को पूरा करने में कैसे जुट गई विमला

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रविशंकर अभी तक परिवार सहित सरकारी मकान में ही रहते आए हैं. एक बेटा और एक बेटी हैं. दोनों बच्चों को उन्होंने उच्चशिक्षा दिलाई है. शिक्षा पूरी करते ही बेटाबेटी अच्छी नौकरी की तलाश में विदेश चले गए. विदेश की आबोहवा दोनों को ऐसी लगी कि वे वहीं के स्थायी निवासी बन गए और दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में खुश हैं.

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6. मुखरता : डर कर चुप बैठ गई रिचा से क्या गलती हुई

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एक दिन उस के दुखों का बांध ढह गया और उस की भावनाओं ने उथलपुथल की और वह रोने लगी. फिर धीरेधीरे उस ने अपनी बीती सारी बातें बताईं. उस ने बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मैं इतिहास पढ़ रही थी. वैसे भी इतिहास का विषय सब के लिए नींद की गोली जैसा होता है, पर मेरे लिए यह एक रोमांचक था.

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7. Family Story in Hindi : मेरी t 6  मां – आखिर क्या हुआ सुमी के साथ?

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मैं ऑफिस तो वक्त पर पहुंच गई लेकिन मेरा मन मां के ही पास रह गया. मैं दो भाईयों की इकलौती बहन और अपने माता-पिता की सब से छोटी और लाड़ली बेटी हूं. मां और पापा का मुझसे विशेष स्नेह है. दोनों भैया और भाभियों की भी चहेती हूं.

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8. नाराजगी: किससे मिलकर इमोशनल हो गया था हरि?

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टीवी देखते समय मस्तिष्क के किसी बंद कोने से पुरानी यादें बाहर आने लगीं. बड़ी बहन है, बचपन में एकसाथ हंसते, खेलते, लड़तेझगड़ते खूब मस्ती करते थे. लड़ाई होती लेकिन बस कुछ पलों की, आधा घंटा, 2 घंटे. फिर एकसाथ खेलने लगते. वो बचपन के प्यारे दिन, कोई छलकपट नहीं, क्या तेरा और मेरा.

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9. पलाश के फूल : सुमेर और सरोज के रिश्ते में किस वजह से दरार आ गई थी

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पिछले साल यही तो दिन थे जब होली नजदीक आ रही थी. सगाई के बंधन में बंधे हम दोनों पूरी तरह एकदूसरे की प्रीत के रंग से सराबोर थे. सुमेर रोज शाम को औफिस से लौटते ही मुझे फोन करते और लगभग एकडेढ़ घंटे तक हम दोनों एकदूसरे की बातों में खो जाते.

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10.  हादसा : मौली के साथ ऐसा कौन-सा हादसा हुआ था

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मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.

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11. अभिनय : नाटक रंग लाया जीजाजी का

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अर्चना भी बहुत समझदार थी. उस ने पूरे घर को अपने प्यार से बांध रखा था. वह मान्यता और अनुज की बहुत इज्जत करती थी. बेटे पुष्कर के जन्म के 2 साल बाद से ही अर्चना ने भी एक निजी कान्वेंट स्कूल में बतौर शिक्षिका ज्वाइन कर लिया. पिताजी तो अर्चना को इतना पसंद करते थे कि उन्होंने मृत्यु से पूर्व अपनी वसीयत में अपना पुश्तैनी घर अर्चना के नाम ही कर दिया था.

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12. तेजाब : महीने बाद किसके वापसी से घर में हंगामा हुआ था?

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मुझे छोड़ कर क्रिस्टोफर किसी और की हो जाएगी, यह खयाल मेरे सीने में नश्तर की तरह चुभ गया था. वह मेरी नहीं हुई तो किसी और की कैसे हो सकती है? मैं प्रतिशोध की ज्वाला में जल उठा और एक रात जब वह सो रही थी, मैं बदले की आग लिए उस के पास जा पहुंचा.

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13. एक खूबसूरत बहस : शाम को लाइब्रेरी में क्या हुआ था?

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मेरे एक मित्र ने जवाब दिया. ‘तुम्हारी आवाज लाइब्रेरी के भीतर तक पहुंच रही है और मैं कुछ भी पढ़ नहीं पा रही हूं,’ उस लड़की ने कहा. ‘अच्छा तो आप हमारी बातें सुन रही थीं? बताओ तो हम क्या बातें कर रहे थे?’ एक मित्र ने उसे चिढ़ाया. ‘लाइब्रेरी का नियम है- मौन रहना और पढ़ना.

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14. दिल्ली त्रिवेंद्रम दिल्ली: एक जैसी थी समीर और राधिका की कहानी

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समीर थोड़ा झेंप गया. उस ने चुपचाप अपने नीचे से सीट बैल्ट निकाल कर उसे पकड़ा दी. वह मुसकरा कर बैठ गई. उस के हाथ में भी समीर की डायरी के समान एक काले रंग की डायरी थी. वह अपनी डायरी पढ़ने लगी.

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15. तलाश एक कहानी की: मोहन बाबू क्षमा क्यों मांग रहे थें?

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एक दिन वृंदा ने अपनी कोई पुरस्कृत रचना मेरे वाट्सऐप पर प्रेषित की और उस पर मेरी टिप्पणी मांगी. रचना वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने उस पर अपनी संतुलित टिप्पणी भेज दी. इस के बाद मेरी रुचि वृंदा की रचनाओं में जाग्रत होने लगी. उस की रचनाओं में एक कशिश भी थी जो उन को पढ़ने को मजबूर करती थी. उन की रुमानियत दिल को छू लेती.

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16. साथी साथ निभाना : कैसे बदली नेहा की सोच?

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उस शाम नेहा की जेठानी सपना ने अपने पति राजीव के साथ जबरदस्त झगड़ा किया. उन के बीच गालीगलौज भी हुई. ‘‘तुम सविता के साथ अपने संबंध फौरन तोड़ लो, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी या तुम्हारा खून कर दूंगी,’’ सपना की इस धमकी को घर के सभी सदस्यों ने बारबार सुना. नेहा को इस घर में दुलहन बन कर आए अभी 3 महीने ही हुए थे. ऐसे हंगामों से घबरा कर वह कांपने लगी. उस के पति संजीव और सासससुर ने राजीव व सपना का झगड़ा खत्म कराने का बहुत प्रयास किया, पर वे असफल रहे.

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17. क्या तुम आबाद हो : किस ने तबाह कर दी थी कृति और कल्पना की जिंदगी?

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कलरात अचानक नन्ही की तबीयत बहुत खराब होने की वजह से मैं परेशान हो गई. जय को फोन लगाया तो कवरेज से बाहर बता रहा था. रात के आठ बज रहे थे. कुछ सम झ नहीं आया तो मैं अकेली ही डाक्टर को दिखाने के लिए निकल पड़ी. नीरवता में अजीब सी शांति थी. मु झे यह रात बहुत भा रही थी. चारों ओर फैली उस कालिमा में रोमांस के अलावा और कुछ था तो वह था नन्ही की बीमारी के लिए चिंता और मेरे तेज चलते कदमों की आहट.

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18. शादी के बाद : रजनी के मातापिता क्या उससे परेशान थे?

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रजनी को विकास जब देखने के लिए गया तो वह कमरे में मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं बैठी. उस ने चाय का प्याला गटागट पिया और बाहर चली गई. रजनी के मातापिता उस के व्यवहार से अवाक् रह गए. मां उस के पीछेपीछे आईं और पिता विकास का ध्यान बंटाने के लिए कनाडा के बारे में बातें करने लगे. यह तो अच्छा ही हुआ कि विकास कानपुर से अकेला ही दिल्ली आया था. अगर उस के घर का कोई बड़ाबूढ़ा उस के साथ होता तो रजनी का अभद्र व्यवहार उस से छिपा नहीं रहता. विकास तो रजनी को देख कर ऐसा मुग्ध हो गया था कि उसे इस व्यवहार से कुछ भी अटपटा नहीं लगा.

19. बंद लिफाफा : केशव दिल्ली क्यों गया था?

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केशव को दिल्ली गए 2 दिन हो गए थे और लौटने में 4-5 दिन और लगने की संभावना थी. ये चंद दिन काटने भी रजनी के लिए बहुत मुश्किल हो रहे थे. केशव के बिना रहने का उस का यह पहला अवसर था. बिस्तर पर पड़ेपड़े आखिर कोई करवटें भी कब तक बदलता रहेगा. खीज कर उसे उठना पड़ा था.

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20. संदेशवाहक : शादी के बाद शिखा की जिंदगी में कैसे आया बदलाव?

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नीरज से शिखा की शादी के समय महक अमेरिका गई हुई थी. जब वह लौटी, तब तक उन की शादी को 3 महीने बीत गए थे. अपनी सब से पक्की सहेली के आने की खुशी में शिखा ने अपने घर में एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया. शिखा ने पार्टी में नीरज के 3 खास दोस्तों और अपनी 3 पक्की सहेलियों को भी बुलाया.

Pawan Singh और Khesari Lal ने तोड़ी दुश्मनी, जानें किसने मिटाई ये दूरी

Pawan Singh – Khesari Lal : भोजपुरी सिनेमा के दो सुपरस्टार पवन सिंह और खेसारी लाल यादव के बीच चल रही जंग आखिरकार खत्म हो गई. काफी लंबे समय बाद दोनों दिग्गज कलाकारों को एक साथ एक मंच पर देखा गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भोजपुरी एक्टर और सिंगर रवि किशन ने दोनों के बीच की दूरी मिटाने की कोशिश की, जिसमें वह सफल रहें.

दरअसल, रविवार को फिल्मफेयर फेमिना भोजपुरी आइकॉन्स अवार्ड शो का आयोजन किया गया था. जहां भोजपुरी सिनेमा के कलाकार से लेकर भोजपुरी संगीत साहित्य और खेल जगत के जाने माने दिग्गज पहुंचे.

रवि किशन ने बुलाया दोनों कलाकारों को मंच पर

खबरों के मुताबिक, इस अवार्ड शो में रवि किशन ने होस्ट की भूमिका निभाई और उन्होंने ही पवन सिंह और खेसारी लाल (Pawan Singh – Khesari Lal) की दोस्ती करवाई. रिव किशन ने दोनों स्टार को एक साथ मंच पर बुलाया और आमने-सामने खड़ा कर दिया. दोनों कलाकारों को एक साथ एक मंच पर देख वहां मौजूद दर्शकों की तालियों की गड़गड़हाट से कार्यक्रम में चार-चांद लग गए. इसके बाद रवि किशन ने एक हाथ से पवन सिंह का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ से खेसारी लाल का और फिर उन्होंने फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का प्रसिद्ध गाना ‘जीना यहां-मरना यहां’ गाया.

पवन सिंह ने केसारी के लिए गाया गाना

आगे रवि किशन ने कहा, ‘यह एक ऐतिहासिक रात है, जिसका इंतजार भोजपुरी समाज का प्रत्येक व्यक्ति कर रहा है.’ इसके बाद रवि किशन ने पवन सिंह ने कहा, ‘भैया आप आदेश दीजिए’. फिर खेसारी (Pawan Singh – Khesari Lal) ने कहा, ‘हम दोनों के बीच झगड़ा न कभी था, न है और न ही कभी होगा.’

इसके बाद खेसारी ने पवन सिंह से कहा, ‘मैं जब तक धरती पर हूं, ये बड़े ही रहेंगे. हमेशा सम्मान है.’ फिर पवन सिंह ने ‘तोहर जईसन भाई कहां, तोहरा जईसन यार कहां’ गाना गाया. ये गाना सुन खेसारी लाल खुद को रोक नहीं पाए और उन्होंने पवन सिंह को अपने गले लगा लिया. इस पर पवन सिंह ने कहा, ‘हम लोग भाई है’.

Bigg Boss OTT 2: किस कंटेस्‍टेंट का सफर होगा खत्म!

Bigg Boss OTT 2 Nomination :  ‘बिग बॉस ओटीटी 2’ को दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है. हर एक सदस्य लोगों का दिल जीतने का प्रयास कर रहे हैं. बीते दिन जहां वाइल्‍ड कार्ड के तौर पर एल्‍व‍िश यादव और आश‍िका भाटिया ने घर में एंट्री की तो उससे शो में नई एनर्जी आ गई. वहीं सोमवार के एपिसोड में ‘बीबी हेल्‍थ चेकअप’ वाला टास्‍क दिखाया गया था. इस टास्‍क (Bigg Boss OTT 2) के बाद एक तरफ आश‍िका को अविनाश की बहस हो गई, तो वहीं दूसरी तरफ एल्‍व‍िश की जिया शंकर, फलक नाज और अविनाश सचदेव से भी भिंडत हो गई.

अब शो में आगे इस हफ्ते के नॉमिनेशन का टास्क दिखाया जाएगा. इस हफ्ते घर से बेघर होने के लिए 6 सदस्‍य नॉमिनेटेड हैं. इस हफ्ते नॉमिनेशन के लिए घर में ‘भूखा शेर’ वाला टास्‍क होगा.

नॉमिनेशन टास्क में क्या होगा?

‘भूखा शेर’ टास्क के लिए एक्‍ट‍िविटी एरिया में सेटअप लगाया गया. वहीं हर कंटेस्‍टेंट (Bigg Boss OTT 2) को एक-एक लॉकेट दिया गया, जिसमें घर के किसी दूसरे सदस्‍य की फोटो बनी हुई है. टास्‍क के मुताबिक, जिस-जिस सदस्य के पास ज‍िस-जिसका लॉकेट है वो उसी सदस्‍य को नॉमिनेट भी कर सकता है और बचा भी सकता है. इस टास्क में छह राउंड हुए, जिसमें जिस भी कंटेस्‍टेंट को अपने लॉकेट में मौजूद घरवाले को नॉमिनेट करना है और वजह बताते हुए लॉकेट ‘भूखा शेर’ के सामने खाने के लिए ड़ाल देना है.

ये 6 सदस्‍य हुए नॉमिनेट

इस हफ्ते (Bigg Boss OTT 2) के नॉमिनेशन टास्‍क में सबसे पहले फलक नाज एल्‍व‍िश को नॉमिनेट करेगा, फिर अविनाश सचदेव ने आश‍िका भाटिया को, एल्‍व‍िश यादव ने अविनाश सचदेव को, आश‍िका भाटिया ने जद हदीद को, हदीद ने जिया शंकर को और आखिर में अभिशेक ने फलक नाज के चेहरे वाला लॉकेट भूखे शेर को देकर उन्‍हें नॉमिनेट किया. इस तरह एल्‍व‍िश, आश‍िका, अविनाश, फलक, जद और जिया शंकर नॉमिनेट हो चुके हैं और इन्हीं में से किसी एक का सफर इस हफ्ते खत्म हो जाएगा.

एक ब्रौड माइंडेड अंकल : नए नजरिए से रिश्तो को संभालते पिता की कहानी

हमारे महल्ले में एक अंकल रहते हैं. वैसे तो हर महल्ले में कई प्रकार के अंकल पाए जाते हैं, पर हमारे महल्ले के यह अंकल बाकी अंकलों से काफी अलग हैं.

दरअसल, वे महल्ले में सामान्यतः पाए जाने वाले अंकलों की तुलना में कुछ ज्यादा ही ब्रौड माइंडेड हैं. वे इतने ज्यादा खुले विचारों के हैं कि ट्रूकौलर पर उन का फोन नंबर भी ‘ब्रौड माइंडेड अंकल’ के नाम से दिखता है. वे मानते हैं कि इस नई पीढ़ी के साथ मातापिता को दोस्तों की तरह पेश आना चाहिए.

अंकल का अपने बच्चों के साथ भी काफी दोस्ताना व्यवहार है. वे लड़के और लड़की में जरा भी फर्क नहीं करते हैं. अपने बेटों और बेटी दोनों की बराबर नियम से कुटाई करते हैं. मजाल है, जो कोई बच्चा कह दे कि दूसरा बच्चा उस से कम क्यों पिट रहा है.

बच्चों का मोबाइल फोन चुपचाप चैक करने और उन के सोशल मीडिया अकाउंट की जासूसी करने में भी वे लड़केलड़की में कोई भेदभाव नहीं करते. अंकल प्रत्येक क्षेत्र में लैंगिक समानता के सिद्धांत में विश्वास करते हैं.

आज के समय में जब बापबेटे साथ में बैठ कर एक टेबल पर खाना नहीं खाते, हमारे ब्रौड माइंडेड अंकल अपने दोनो बेटों के साथ बैठ कर शराब पीते हैं. बड़ा बेटा पैग बनाता जाता है और अंकल पीते जाते हैं. छोटा बेटा चखना तैयार करता है. अंकल ने सभी को काम बांट कर रखा है, जिस से किसी प्रकार का विवाद न हो.

अंकल का मानना है कि यदि पिता अपने बच्चों के साथ बैठ कर शराब न पिए, तो बच्चे अपने आवारा दोस्तों के पास जा कर बिगड़ सकते हैं. अंकल की दूरदृष्टि के चलते उन के दोनों बेटे पैग बनाने और चखना लगाने में उस्ताद हो गए हैं.

एक बार छोटे बेटे ने नजर चुरा कर थोड़ी बीयर पी ली, तो अंकल ने उसे बहुत प्यार से समझाया, जिस के बाद बच्चे के मुंह पर चार टांके लगे. लेकिन इस घटना के बाद अंकल और उन के बच्चों की दोस्ती और अधिक परिपक्व हो गई.

अपने बच्चों की पढ़ाई और कैरियर को ले कर भी अंकल के विचार काफी सुलझे हुए हैं. वे बच्चों पर अपनी पसंद कभी नहीं थोपते. वे बस बच्चों को अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर सुझाव देते हैं और थोड़ा डराधमका कर अंतिम निर्णय बच्चों पर छोड़ देते हैं. इसीलिए उन्होंने अपने बेटे को इंजीनियरिंग करने का सुझाव दिया, पर जबरदस्ती नहीं की.

जब उन के नालायक बेटे ने कहा कि उसे इंजीनियरिंग में कोई दिलचस्पी नहीं है, तब अंकल को बुरा तो बहुत लगा, पर उन्होंने इस स्थिति को बेहद सौहार्द्रपूर्ण तरीके से संभाला. कोई अन्य अभिभावक होते तो बेटे को मारते, डांटते, पर हमारे ब्रौड माइंडेड अंकल ने प्यार से बेटे से बस इतना कहा कि यदि उसे कोई और कैरियर चुनना है, तो उसे यह घर छोड़ कर जाना पड़ेगा और अपनी पढ़ाई का खर्चा भी खुद ही उठाना पड़ेगा. इस के साथ ही अंकल की जायदाद में तो वह हिस्सा भूल ही जाए.

बस, अंकल के इन प्रेरक शब्दों ने ऐसा जादू किया कि लड़का इंजीनियरिंग करने के लिए तैयार हो गया. आज पड़ोस के अंकल परेशान हैं कि आखिर अंकल के बच्चे उन के काबू में कैसे हैं?

अब जब यह तय हो गया कि अंकल का बेटा इंजीनियर बनेगा तो बात फिर कालेज पर आई. अब अंकल ने अपने व्यक्तिगत जीवन में कभी छोटे लक्ष्य नहीं रखे तो भला बेटे के लिए कैसे कोई समझौता करते.

अंकल ने बेटे को साफ कर दिया कि वे आईआईटी से नीचे के किसी कालेज से खुश नहीं होने वाले. वैसे, अंकल काफी सुलझे हुए हैं और बच्चों के कैरियर के मामले में काफी उदार हैं, पर उन्हें उन चार लोगों से काफी डर लगता है, जिन की नजर चौबीस घंटे अंकल की फैमिली पर रहती है.

अंकल को अकसर अपने बच्चों से कहते हुए सुना गया है कि ‘ऐसा मत करो, चार लोग देखेंगे तो क्या बोलेंगे.‘

पता नहीं, वे कौन से चार लोग हैं, जिन्हें आज तक किसी ने भी नहीं देखा, पर वे अंकल के परिवार में इतना इंटरैस्ट लेते हैं और अंकल भी उन्हें बहुत मानते हैं. अंकल के बच्चों का तो पूरा बचपन ही उन चार लोगों को खुश करने में बीता है.

खैर, अंकल ने बेटे को आईआईटी में दाखिल करवाने के लिए अपनी जान लगा दी. बेटे को कईकई दिनों तक कमरे में बंद कर के रखा, ताकि वह चुपचाप, बिना व्यवधान के पढ़ाई कर पाए. उसे डायपर का डब्बा भी ला कर दिया, ताकि वह अनुपयोगी कार्यों में अपना समय न खराब करे. यहां तक कि सुबहशाम 2-2 घंटे खुद अंकल ने उसे मोटिवेशनल लैक्चर दिया. पर, सब बेकार. बेटे का आईआईटी में दाखिला नहीं हुआ. होता भी कैसे, नीयत ही नहीं थी उस की इंजीनियरिंग करने की. बेचारे अंकल भी क्या करते. अंकल जितने ब्रौड माइंडेड हैं, बच्चे उन के उतने ही नालायक निकले.

खैर, अंकल काफी सुलझे विचार वाले थे. एक आईआईटी की परीक्षा भला अंकल के बुलंद इरादों को कैसे रोक सकती थी. बेटे को इंजीनियरिंग करवाने की उन की प्रबल इच्छा के चलते रास्ते खुद ब खुद बनते चले गए और जल्दी ही बेटे का एडमिशन पोपटमल कालेज औफ इंजीनियरिंग में हो गया. बेटा आखिर तक मना करता रहा कि मुझे इंजीनियरिंग में कोई रुचि नहीं है, पर अंकल खुद हाथ पकड़ कर उस को कालेज छोड़ आए. आखिरकार उन के लड़के को समझ आया कि होस्टल जा कर ही पापा के मोटिवेशनल लैक्चर से छुटकारा मिल सकता है. वह चुपचाप कालेज के होस्टल में शिफ्ट हो गया, जहां पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के अलावा वह सबकुछ सीख गया.

जितने खुले विचार अंकल के बच्चों की पढ़ाई को ले कर थे, उस से कहीं ज्यादा खुले विचार उन के बच्चों की शादीब्याह को ले कर थे.

अंकल ने अपने बच्चों को लव मैरिज करने की पूरी छूट दे रखी थी. उन्होंने स्पष्ट कह दिया था कि तुम को जिस से शादी करनी हो, कर लेना. बस, वह अपनी कास्ट का होना चाहिए.

आजकल के जमाने में भला कौन अपने बच्चों को इस तरह खुलेआम प्रेमविवाह की अनुमति देता है. अंकल को लव मैरिज से कोई समस्या नहीं थी. रोमांटिक हिंदी फिल्में देखना उन्हें काफी पसंद था. अंकल ने तो अपनी ओर से कुछ बायोडाटा तक ला कर अपने बच्चों के सामने रख दिए कि इन में से जिस किसी को चाहो जा कर लव मैरिज कर लो. इस तरह अंकल बच्चों को पार्टनर ढूंढ़ने की मेहनत से ही बचाना चाहते थे.

पर, जैसा कि हम जानते ही हैं, अंकल के बच्चे ठहरे पूरे नालायक. अंकल द्वारा इतना सब करने के बाद भी जब उन की बेटी ने अपनी कास्ट के बाहर के एक लड़के रमेश से शादी करने की इच्छा जाहिर की, तो अंकल ने बेटी पर जरा भी गुस्सा नहीं किया. बस, उस का मोबाइल फोन ले कर उसे एक कमरे में बंद कर दिया. उन की लड़की ने बहुत बहस की कि पापा, मैं रमेश से प्यार करती हूं, सुरेश के साथ खुश नहीं रहूंगी.

अंकल ने हंसते हुए समझाया कि शादी कर के भला आज तक कौन खुश हुआ है, इसलिए जब दुखी ही होना है तो क्यों न अपनी ही जाति के लड़के के साथ रह कर दुखी हुआ जाए.

ऐसा बिलकुल नहीं था कि अंकल को अंतर्जातीय विवाह से कोई समस्या हो. अंकल तो जातिधर्म में बिलकुल यकीन नहीं करते थे. पर यह कमबख्त समाज, यह तो जातिधर्म सभी को मानता है और अंकल को रहना भी इसी समाज में ही है. अब अंकल समाज को तो नहीं बदल सकते इसलिए उन्होंने ‘चेंज योरसैल्फ बिफोर चेंजिंग द वर्ल्ड’ के सिद्धांत पर चलते हुए खुद को ही बदलने की ठान ली. समाज की खातिर न सिर्फ उन्होंने खुद को बदला, बल्कि बच्चों के कैरियर और प्यार भी कुरबान कर दिए. अपनी लड़की की शादी जबरन अपनी जाति के लड़के सुरेश से करवाने के बाद उन का कद समाज में और बढ़ गया.

तो इस तरह से अंकल ने प्यारमुहब्बत से अपने दोनों बच्चों को सैटल कर ही दिया. लड़के ने सफलतापूर्वक पोपटमल कालेज से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और अपना स्टार्टअप खोलने के लिए थाईलैंड चला गया. जातेजाते वह अंकल जी का वह एटीएम कार्ड भी ले गया, जिस के पीछे ही अंकल ने उस का पिन लिख रखा था. बाद में जब अंकल के पास अकाउंट खाली होने के मैसेज आए, तो उन्होंने एक पिता के तौर पर यह सोच कर बेटे को माफ कर दिया कि सब उसी का ही तो था. लेकिन एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर वे बेटे को माफ नहीं कर पाए और पुलिस स्टेशन जा कर एफआईआर दर्ज करवा ही दी.

आखिरी समाचार मिलने तक उन के बेटे ने थाईलैंड में अपना धंधा जमा लिया था, वहीं दूसरी तरफ लड़की भी सुरेश से शादी कर के सैटल हो गई थी.

अंकल अब भी कालोनी के बच्चों को प्रेरित करने के लिए मोटिवेशनल लैक्चर देते रहते हैं और आज भी सब उन्हें ब्रौड माइंडेड अंकल के नाम से ही जानते हैं.

मिडिल चिल्ड्रन सिंड्रोम

“राहुल, तुम यहां क्यों अकेले बैठे हो? जाओ, जा कर खेलो,” सुमित ने अपने बेटे से कहा. इस पर राहुल ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया, “किस के साथ खेलूं? कोई भी तो नहीं है.”

सुमित ने हैरानी से राहुल की तरफ देखा और कहा, “बाहर आप की छोटी बहन खेल रही है, उस के साथ.”

“वह तो मुझ से छोटी है,” गुस्से में राहुल ने जवाब दिया.

सुमित को राहुल के व्यवहार पर बड़ी हैरानी हुई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि दिनोंदिन राहुल को क्या होता जा रहा है, वह इतना चिड़चिड़ाने क्यों लगा है…

बहुत बार देखने में आया है कि मंझले बच्चे शरारती और चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उन्हें मातापिता से कम प्यार मिलने का एहसास होता है. कई अध्ययनों के अनुसार, बीच वाले बच्चे शर्मीले और शांत स्वभाव के भी हो सकते हैं. मंझले बच्चे अकसर अपने जन्म के क्रम के कारण खुद को अलग महसूस कर सकते हैं. इसी को मिडिल चिल्ड्रन सिंड्रोम कहते हैं.

कुछ साइकोलौजिस्ट का कहना है कि मिडिल चाइल्ड सिंड्रोम वास्तविक है. लेकिन यह एक अवधारणा हो सकती है क्योंकि चिकित्सकीय रूप से यह कोई विकार नहीं है. यह सिंड्रोम एक धारणा है जो कि उन के जन्मक्रम के कारण हो सकता है. यह हो सकता है कि मंझले बच्चों को अपने परिवारों के सामने चुनौतियों और अनुभवों का सामना करना पड़ा हो. उन्हें ऐसा महसूस हो सकता है कि उन के बड़े और छोटे भाईबहन उन के मातापिता को ज्यादा प्रिय हैं. इस समस्या के समाधान के लिए यहां ऐसी कई बातें हैं जिन पर मातापिता को विचार करना चाहिए. आइए जानते हैं इन के बारे में-

भेदभाव न करें

अगर आप पेरैंट्स हैं तो यह समझना आप के लिए बेहद जरूरी है कि हर बच्चा अलग होता है. सभी बच्चे एकजैसी भावनाओं का अनुभव नहीं कर सकते. अपने बच्चों के साथ खुल कर बातचीत करें और उन की परेशानियों को सुनें. उन्हें उन की आवश्यकताओं के अनुरूप सपोर्ट करें और अपने बच्चों में भेदभाव न करें.

बातचीत करते रहें

अगर आप अपने बिजी लाइफस्टाइल के चलते बच्चों के साथ बातें नहीं कर पाते हैं तो इस से आप के बच्चों पर गलत असर पड़ सकता है. सो, अपने बच्चों से बातचीत करने के लिए समय निकालें और किसी भी बच्चे को अकेला महसूस न होने दें.

उन को अटैंशन दें

अगर आप का मंझला बच्चा अपनेआप को अलग महसूस करता है तो आप को अपने मंझले बच्चे के साथ नियमित रूप से समय बिताना चाहिए. इस से उसे आप का प्यार मिलेगा जिस से वह अपनेआप को महत्त्वपूर्ण समझेगा. आप उस के साथ ऐसी ऐक्टिविटी करें जिस से उसे अच्छा और स्पैशल महसूस हो.

उन के काम के लिए सराहना

मंझले बच्चे अपने भाईबहनों की तरह ही प्रशंसा की चाह रखते हैं. इसलिए आप का बच्चा जिस भी पौजिटिव चीज में दिलचस्पी दिखाता है, उस की सराहना कीजिए और उसे दिखाइए कि उस की बातों को महत्त्व दिया जाता है. इस से वह आप से खुल कर अपने जीवन के बारे में बातचीत कर पाएंगा.

सपोर्ट करिए

आप को अपने बच्चों का इंटरैस्ट और टैलेंट का पता होना चाहिए. उन्हें आगे बढ़ने के लिए सपोर्ट कीजिए. अगर वे अपने भाईबहन से अलग है तो उन को बताइए कि सब का अलग टैलेंट और नजरिया होता है. उन्हें पौजिटिव विचारों के लिए प्रोत्साहित करें.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, जिससे मैं शादी करना चाहती हूं, लेकिन वह अपने घर वालों से डरता है, मैं क्या करूं ?

सवाल
मैं जिस युवक से प्यार करती हूं उसी से शादी करना चाहती हूं, वह भी मुझ से शादी करना चाहता है, लेकिन वह अपने घर वालों से डरता है. मैं उस से बस, यही कहना चाहती हूं कि मेरे पास इतना टाइम नहीं है कि मैं 3-4 साल तक इंतजार करूं. मेरी मदद कीजिए?

जवाब

प्यार किया तो फिर डरना कैसा. अगर आप जिसे चाहती हैं वह भी आप से शादी करना चाहता है तो फिर पेरैंट्स को बताने का डर कैसा.

और रही बात कि आप 3-4 साल नहीं रुक सकतीं तो उसे स्पष्ट बता दें कि आप उस से सच्चा प्यार करती हैं जिस वजह से आप उसे छोड़ना नहीं चाहतीं, लेकिन साथ ही साथ अपने पेरैंट्स की फीलिंग्स को भी हर्ट न करें.

ऐसे में समय रहते डिसीजन लेना जरूरी है. अगर फिर भी वह टालमटोल करे तो आप अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से आगे बढ़ाइए वरना उस का इंतजार करना आप को भारी पड़ सकता है.

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पैसा कमाने के लिए लोग अपने परिवार को छोड़ कर बाहर दूसरी जगह भी जाते हैं. कहावत है कि बाप बड़ा न भैया सब से बड़ा रुपैया. पैसा एक ऐसी चाह है जिस के पास ज्यादा हो वह परेशान, जिस के पास कम हो उसे अधिक पाने की लालसा. यही लालसा परिवार और समाज पर भारी पड़ती है. पैसे को ले कर अकसर रिश्तों में दरार आ जाती है.

कभीकभी पैसा ऐसा विवाद बन जाता है जो समाज में रिश्तों को शर्मिंदगी की ओर ढकेलता है, अपनों के बीच खींचातानी, परिवार में लड़ाईझगड़े, मारपीट आदि. यहां तक कि लोग अपनों का खून बहाने में जरा सा भी परहेज नहीं करते हैं. कहा जाता है कि दुनिया में 3 चीजें हैं जो अपनों को आपस में लड़ा देती हैं-जर, जोरू और जमीन. ये ऐसी चीजें हैं जिन से एक हंसताखेलता परिवार बर्बादी की कगार पर पहुंच जाता है.

अगर सब ठीक न रहा तो रिश्तों की मिठास में ये चीजें जहर का काम करती हैं. इंसान की प्रवृत्ति में बराबरी की चाह सब से खतरनाक बीमारी है. जब लोगों के जेहन में यह चाह बैठ जाती है तो फिर परिवार और रिश्तों में नया मोड़ आता है. वह मोड़ आपसी कलह और विवाद का होता है. एक बार जब आपसी मतभेद शुरू हो जाते हैं तो परिवार के हालात को सुधारना काफी मुश्किल होता है. ऐसे में पारिवारिक रिश्तों को समझना जरूरी होता है. कई परिवारों को सिर्फ पैसे के विवाद को ले कर टूटते देखा गया है. पैसे के विवाद को ले कर अकसर अखबारों और खबरिया चैनलों में खबरें आती हैं, कहीं भाई ने भाई को मारा तो कहीं पुत्र ने पिता को. लोग पैसे को ले कर क्या अपने, क्या पराए का खून बहाने में जरा सा संकोच नहीं करते. पारिवारिक रिश्ते को चलाने और निभाने के लिए दिल में बहुत सहनशक्ति होनी चाहिए.

रिश्तों में मधुरता जरूरी

हर रिश्ता कच्चे रेशम की डोर से बंधा होता है. अगर वह टूट जाता है तो आसानी से जुड़ता नहीं है. जुड़ता भी है तो दिल में एक गांठ जरूर पड़ जाती है. समाज में जितना जरूरी पैसा है उस से कहीं ज्यादा जरूरी रिश्ते को माना जाता है. यह सच है कि पैसा सब की जरूरत है. लेकिन आप के पास बहुत पैसा हो और परिवार की खुशी न हो तो कहीं न कहीं आप हमेशा अधूरे से रहेंगे. पैसा हमेशा न टिकने वाला होता है लेकिन संबंध समाज में हमेशा सुखदुख में काम आने वाले होते हैं. इसलिए पैसे को महत्त्व न दे कर अगर रिश्तों में मधुरता लाने की कोशिश की जाए तो इस विवाद को कम किया जा सकता है.

जलन की भावना

पैसे का विवाद अधिकतर एकदूसरे से जलन की भावना से शुरू होता है. परिवार हो या पड़ोसी, अगर आप के अंदर इस कुंठा ने जन्म ले लिया है तो मनमुटाव होना लाजिमी है. परिवार में सभी लोग बराबरी में नहीं रह सकते. किसी को अच्छी नौकरी, तो किसी को खानेकमाने भर की. जो खानेकमाने भर की नौकरी करता है उसे अच्छी नौकरी की तलाश करनी चाहिए न कि अच्छी नौकरी करने वाले को ले कर अपना मन कुंठित करे. ऐसा करने से केवल एकदूसरे के प्रति दूरियां बढ़ने के सिवा कुछ नहीं मिलता, आपसी रिश्तों में मनमुटाव शुरू हो जाता है जो आगे चल कर एक विवाद का रूप ले लेता है.

महत्त्वाकांक्षाओं पर काबू

हम अपने आसपास अगर पैसे के विवाद को देखते हैं तो उस में से एक बात जरूर सामने आती है, मनुष्य की बढ़ती हुई आकांक्षा. फलां व्यक्ति के पास यह चीज है, मेरे पास नहीं है. या फिर हमारे भाई के पास है तो मेरे पास क्यों नहीं. सीधी सी बात है, जितनी चादर उतने पैर फैलाओ. मान लो, अगर आप के परिवार में किसी के पास कार है तो वक्तजरूरत आप के काम आएगी. इसी में खुश रहना चाहिए और अगर आप उस लायक नहीं हैं तो आप को इस सोच से जीना चाहिए कि मेरे पास भले न हो लेकिन मेरे घरपरिवार में तो उपलब्ध है.

आपसी मनमुटाव

अगर परिवार में पैसे को ले कर आपसी मनमुटाव चल रहा है तो परिवार के साथ बैठ कर बातचीत करें. अकसर देखा जाता है कि घरपरिवार की बातें जब बाहर निकल कर जाती हैं तो वे एक प्रकार से ऐसी बीमारी बन जाती हैं जो दीमक की तरह खोखला करने का काम करती हैं. उस का कारण यह है कि घर की बातों पर घरफूंक तमाशा देखने वाले बहुत से लोग होते हैं. जब आप घर की बातों को किसी दूसरे से शेयर करते हैं तो उस बात पर मजे लेने वाले बहुत से लोग होते हैं जो कि परिवार को आपस में लड़वाने का काम अच्छे से जानते हैं.

अगर आप को परिवार में जमीन, पैसे को ले कर कोई समस्या है तो अपने घर में परिवार के सदस्यों के साथ बैठ कर हल करें जिस से आप अपने दिल की पूरी बात अपनों के सामने रख सकें और उस का निदान परिवार के लोग आसानी से निकाल सकें. इसलिए आपसी मनमुटाव का हल स्वयं करें. किसी बाहरी व्यक्ति को ज्यादा महत्त्व न दें.

सहनशक्ति की भावना

रिश्तों में सहनशक्ति की भावना होना बहुत जरूरी है. अगर आप के अंदर सहनशक्ति की भावना है तो आप किसी भी रिश्ते को अच्छे से निभा सकते हैं. पैसे, जमीन जैसे विवाद में सहनशक्ति की भावना होनी जरूरी है ताकि विवाद उत्पन्न होने की संभावनाएं कम रहें. ऐसी स्थिति में एकदूसरे को समझना बहुत जरूरी है, एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करना जरूरी है. अगर परिवार का मुखिया अपने किसी लड़के को उस की मदद के लिए ज्यादा पैसा दे रहा है तो दूसरे लड़के को उस की परिस्थिति को देख कर अपनी बात रखनी चाहिए. कभीकभी देखा गया है कि हर तरह से संपन्न लड़का ऐसी बातों पर एतराज जताता है. एक घर की बात बताना चाहता हूं. 2 लड़कों में एक सरकारी नौकर है और एक के पास प्राइवेट नौकरी थी जो छूट गई है. मां को पैंशन मिलती है जिस से बेरोजगार लड़के का खर्च अभी चल रहा है. लेकिन सरकारी नौकरी करने वाले लड़के ने मां को हमेशा ताना दिया कि सारा पैसा अपने उस बेटे पर खर्च करती हो. स्थिति ऐसी आई कि जब उस की मां बीमार हुई तो उस लड़के ने कहा कि जिस के ऊपर पैसा खर्च किया, वह इलाज करवाए. आज वह मां दर्द से कराहती है और आंखों से आंसू बहते रहते हैं. सहनशक्ति न होना परिवार में विवाद खड़े करने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं करता. ऐसे में परिवार में कलह होना स्वाभाविक है.

समझदारी से लें काम

समाज में रहते हुए अपने परिवार के प्रति हमेशा संवेदनशील रहना चाहिए. आप के ऊपर कोई परेशानी हो या खुशी, परिवार हमेशा आप के साथ खड़ा रहता है. ऐसे में पैसे को ले कर विवाद खड़ा कर आप अपनों से दूर हो सकते हैं. रिश्ते चाहे पारिवारिक हों, पड़ोसी या दोस्ती के, अधिकतर देखा जाता है कि उधार लिए गए पैसे चुका न पाने से विवाद खड़ा होता है जिस में फिर मारपीट, लड़ाईझगड़े होने लगते हैं.

ऐसे मामलों में लोग अपना आपा खो देते हैं और एक बड़े अपराध को जन्म दे डालते हैं. ऐसे हालात में लोगों को समझदारी से काम लेना चाहिए. उधार लेने वाले को भी और देने वाले को भी. लेने वाले को थोड़ाथोड़ा कर चुकाने का प्रयास करना चाहिए. उधार देने वाले को अपने अंदर थोड़ा संतोष रखना चाहिए. एक अच्छी समझदारी ही ऐसे विवादों को रोक सकती है.

न भूलें अपनी जिम्मेदारियां

दिल्ली के एक कालेज से पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही रचना इन दिनों अपने छोटे भाई नित्यम को  ले कर काफी परेशान है. उस का भाई परिवार की जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हो गया है और अब घर के किसी काम में उस का मन नहीं लगता. रचना ने जब हकीकत पता की तो माजरा समझ आया. दरअसल, नित्यम अपनी क्लास की एक लड़की से रिश्ते में मुंहबोले भाई के रूप में बंधा हुआ है. वह उस की हर जरूरत का खयाल रखता है. यही कारण है कि अपनी मुंहबोली बहन की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी भूल बैठा है.

दरअसल, सामाजिक रिश्तों की दुनिया बहुत निराली होती है. इन रिश्तों के इर्दगिर्द हम अपना जीवन गुजार लेते हैं. ये रिश्ते हमें पूर्ण तो बनाते ही हैं, साथ ही हमारे जीवन में नएनए रंग भी भरते हैं. खासकर संयुक्त परिवार जैसी परंपरा में इन रिश्तों की अहमियत और भी बढ़ जाती है. इन रिश्तों के जरिए परिवार के सदस्य एकदूसरे की ताकत बनते हैं और जिम्मेदारियां उठाने में तत्पर रहते हैं. जीवन की आपाधापी में कई बार कुछ ऐसे भी रिश्ते बनते हैं जिन का संबंध न खून से होता है और न दुनियादारी से. ये रिश्ते मुंहबोले होते हैं तथा इन में एक अलग ही सौंधापन होता है. खासकर आज के टीनएजर्स इन रिश्तों की तरफ तेजी से आकर्षित होते हैं.

मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते बनाना गलत नहीं है लेकिन अकसर किशोर इन रिश्तों के चक्कर में अपने खून के रिश्तों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. नतीजा, वे दरकने लग जाते हैं और एक समय ऐसा आता है जब उन्हें टूटने से कोई बचा नहीं सकता. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में यदि ईमानदारी है तो निश्चित तौर पर यह अच्छा लगेगा, लेकिन खून के रिश्ते को नजरअंदाज कर नहीं.

रिश्तों के प्रति नजरिया स्पष्ट रखें

मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते का अपना मनोविज्ञान भी होता है. जहां यह अपने साथ खुला आसमान लाता है तो वहीं उस में उड़ने के लिए हदें भी तय करता है. यह रिश्ता अब पहले की अपेक्षा ज्यादा सहज हो गया है. ऐसे में इस रिश्ते के प्रति अपना दायरा और नजरिया बिलकुल स्पष्ट रखना होगा. कुछ ऐसा रास्ता निकालिए कि आप मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते का आनंद भी लेते रहें और खून के रिश्तों को भी आप से कोई शिकायत न हो.

एकदूसरे की जरूरतों को समझें

भले ही खून के रिश्ते हमें जन्म से मिल जाते हैं लेकिन उन्हें बनाए रखने के लिए निभाना पड़ता है. परिवार के लोगों के साथ यदि आप के खून के रिश्ते हैं तो आप से उन की कुछ अपेक्षाएं भी होंगी. आप की जिम्मेदारी बनती है कि आप उन की सामाजिक व भावनात्मक सुरक्षा, सहयोग और सहभागिता का परस्पर खयाल रखें. उन्हें पारिवारिक रिश्तों की पोटली में बांधे रखें.

न टूटने पाए भरोसे की डोर

दुनिया का चाहे कोई भी रिश्ता हो वह भरोसे से बनता और मजबूत होता है. जैसे ही भरोसा टूटता है तो रिश्ते भी रेत की तरह बिखर जाते हैं. संभव है कि आप के मुंहबोले रिश्ते के कारण परिवार के लोगों का भरोसा आप से टूटता जा रहा हो. इसलिए आप को खुद आगे आ कर खून के रिश्ते को बचाने की पहल करनी होगी. आप को परिवार के हित में कई ऐसे सार्थक कदम उठाने होंगे जिन से कि उस का भरोसा आप के प्रति बरकरार रहे. कई बार किशोर मुंहबोले रिश्ते निभाने के चक्कर में पारिवारिक व खून के रिश्तों को इग्नोर कर देते हैं जो ठीक नहीं है.

मिलबैठ कर सुलझाएं गलतफहमी

अकसर रिश्तों के टूटने की शुरुआत गलतफहमी के चलते ही होती है. यह गलतफहमी बहुत सी कड़वाहट को अपनेआप में समेटती जाती है. धीरेधीरे एक ऐसी स्थिति आती है जब यह कड़वाहट नफरत में बदल जाती है और फिर रिश्ते को टूटने से कोई नहीं बचा सकता. आप के मुंहबोले रिश्ते के प्रति यदि परिवार के लोगों में गलतफहमी है तो उन के साथ बैठ कर पूरी स्पष्टता के साथ उन्हें सुलझाने का प्रयास करें.

जबरन अपनी राय न थोपें

आप ने एक मुंहबोला रिश्ता क्या बना लिया, खुद को परफैक्ट समझने लगे. आप को लगने लगा कि आप औरों से बेहतर राय रखते हैं. इस चक्कर में आप परिवार के लोगों पर अपनी राय और नजरिया जबरन थोपने लगते हैं. नतीजा, लोग आप से दूर भागने लगते हैं और आप की बातों का उन पर कोई असर नहीं होता. इसलिए किसी से जबरन अपनी बात न मनवा कर उन्हें पूरी बात बताएं. फैसले का अधिकार उसी पर छोड़ दें तो ठीक होगा.

काबिलीयत का सम्मान करें

परिवार में कोई व्यक्ति यदि अच्छा कर रहा है या कोई उपलब्धि हासिल की हो तो उस का पूरे मन से सम्मान करें. उस के साथ अपनी खुशियां बांटने की कोशिश करें. इस से रिश्तों में मधुरता आएगी और संबंध पहले से मजबूत होंगे. अकसर लोग पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो कर द्वेषवश परिवार के काबिल होते हुए भी उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं. यह बात परिवार को तोड़ने का काम करती है. इस से बचने की कोशिश करें.

अपनी प्राथमिकताएं तय करें

इंसान अपनी जिंदगी में कई रिश्ते बनाता है. कुछ मुंहबोले होते हैं तो कुछ दोस्ती के रिश्ते. कई बार उस के सामने ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि वह मुंहबोले और खून के रिश्ते में संतुलन नहीं बैठा पाता और उस की जिंदगी की गाड़ी डगमगाने लगती है. समझदारी इसी में है कि पहले वह देखे कि घर में बहन की फीस जमा करना ज्यादा जरूरी है या मुंहबोली बहन को शौपिंग कराना. जो काम करना ज्यादा जरूरी है उसी को प्राथमिकता के साथ पूरा करें और जिसे कुछ समय के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है उसे कुछ समय के लिए टाल दें.

– अनिता शर्मा, रिलेशनशिप काउंसलर

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