मणिपुर से ले कर मेवात तक दंगों की आग भड़क रही है. कत्लेआम जारी है. औरतों का चीरहरण हो रहा है. लोगों के घर फूंके जा रहे हैं. कानूनव्यवस्था ध्वस्त है. प्रशासनिक ढांचे को लकवा मार चुका है. देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री मौन हैं, क्योंकि यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत पूरे देश में संघ और भाजपा का राजनीतिक प्रयोग लगता है.

सुप्रीम कोर्ट- ‘‘एक चीज तो साफ है कि 4 मई से 27 जुलाई तक मणिपुर में पुलिस का शासन नहीं था. राज्य में संवैधानिक संस्था पूरी खत्म हो गई थी.’’

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, मणिपुर हिंसा पर सुनवाई के दौरान- ‘‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को देखने के लिए एक तंत्र बनाना होगा.’’

बीते 4 महीनों से मणिपुर जल रहा है. कुकी औरतों के साथ बर्बर हिंसा और उन की नग्न परेड के वीडियो वायरल होने की बाद भारत का सिर दुनिया के सामने शर्म से झुका हुआ है. फिर भी अकड़ यह कि प्रधानमंत्री-गृहमंत्री-मुख्यमंत्री के मुंह पर ताले पड़े हुए हैं. दुनियाभर की सैर में देश की जनता का पैसा उड़ाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की महिलाओं के जख्मों पर मरहम रखने आज तक न जा पाए. देश के गृहमंत्री हालात पर काबू पाने में अक्षम रहे. हद है कि मणिपुर जल रहा है और मुख्यमंत्री अपनी कुरसी से हिलने को तैयार नहीं. आखिरकार उच्चतम न्यायालय को महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ सख्त रुख इख्तियार करना पड़ा है. 20 जुलाई को सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट को कहना पड़ा कि अगर सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो कोर्ट उठाएगी और उस के पूर्व महिला न्यायधीशों की कमेटी गठित कर दी उस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो मणिपुर की 600 से ज्यादा प्राथमीकियों की जांचपड़ताल करेगी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...