Download App

69th National Film Awards: आलिया-कृति को मिला बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड, अल्लू अर्जुन बने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता

69th National Film Awards List : साल 2021 में होने वाले 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं के नामों से पर्दा उठ चुका है. बीते दिन दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जहां देशभर से आए कलाकारों को सम्मानित किया गया.

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार को देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक माना जाता हैं. ये अवॉर्ड वर्ष 2021 के लिए दिए गए हैं. इस कार्यक्रम में बेस्ट एक्टर, बेस्ट एक्ट्रेस से लेकर सिंगर तक को अवॉर्ड देकर सम्मानित किया जाता है. तो आइए जानते हैं इस साल (69th National Film Awards List) कौन सा अवॉर्ड किस एक्टर और एक्ट्रेस क मिला.

 

विक्की की ‘सरदार उधम’ ने जीते पांच अवॉर्ड

आपको बता दें कि इस साल बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार (69th National Film Awards List) दो अभिनेत्रियों को मिला है. आलिया भट्ट और कृति सेनन दोनों को ही बेस्ट एक्ट्रेस का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया गया है. आलिया (alia bhatt) को फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए और कृति सेनन को फिल्म ‘मिमी’ में शानदार अभिनय करने के लिए ये पुरस्कार दिया गया. वहीं बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड अल्लू अर्जुन ने ‘पुष्पा: द राइज’  में अपने बेहतरीन अभिनय के लिए अपने नाम किया.

इसके अलावा अभिनेता विक्की कौशल की फिल्म ‘सरदार उधम’ ने पांच अवॉर्ड जीते, जिनमें से सबसे सर्वश्रेष्ठ ‘बेस्ट हिंदी फीचर फिल्म’ का अवॉर्ड रहा. वहीं आर माधवन की ‘रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट’ को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म श्रेणी में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिया गया.

पंकज त्रिपाठी को भी मिला बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड

इसके अलावा फिल्म ‘आआरआर’ के ‘कोमुराम भीमुडो’ गाने के लिए सिंगर काला भैरव को बेस्ट प्लेबैक मेल का अवॉर्ड (69th National Film Awards List) मिला. वहीं फिल्म ‘‘इराविन निझाल’’ के गाने ‘‘मायावा छायावा’’ के लिए सिंगर श्रेया घोषाल को बेस्ट प्लेबैक फीमेल के अवॉर्ड से नवाजा गया.

कई फिल्मों में अपनी दमदार एक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाले एक्टर पंकज त्रिपाठी (pamkaj tripathi) को ‘मिमी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड दिया गया और बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवॉर्ड पल्लवी जोशी को फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के लिए दिया गया.

विकृत : क्या खुशाल को उसके गुनाह की सजा मिली ?

उस बंद पड़ी मिल में कोई आताजाता नहीं था. उस की दीवारों का सीमेंट उधड़ चुका था, लोहे के पाइपों में जंग लग चुका था, सारी मशीनें कबाड़ हो चुकी थीं. मिल तक पहुंचने का रास्ता भी खराब हो चुका था. शहर के बाहर होने की वजह से वहां कोई कितना भी चीखे, कोई उसे सुनने वाला नहीं होता था.

उसी मिल के अंदर मशीन से एक 50-55 साल का आदमी बंधा था. लेकिन वह अपनी उम्र से काफी बड़ा दिखाई दे रहा था. साधारण से कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, अस्तव्यस्त बाल. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर बंधे थे. उस से कुछ दूरी पर एक लड़का बंधा था. उस के कपड़े, जूते आदि उम्दा किस्म के थे. दोनों बेहोश पड़े थे. जब दोनों को होश आया तो लड़के ने अधेड़ से पूछा, ‘‘मैं यहां कैसे आया, तुम कौन हो?’’

‘‘मुझे क्या पता? देखो न, मैं भी तो तुम्हारी तरह बंधा हूं.’’ अधेड़ ने झल्ला कर कहा.

दोनों पसीने से तरबतर थे. छत टिन की थी, जो मई की गर्मी में तप रही थी. कहीं से हवा भी नहीं आ सकती थी. जो खिड़कियां थीं, वे बंद थीं. लड़का चीखा, ‘‘कोई है?’’

गला सूखा होने की वजह से उसे खांसी आ गई. उस की आंखों से पानी बहने लगा. लड़के ने खांसी पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रुपयों के लिए मेरा अपहरण किया है तो वह महामूर्ख है. मेरे न तो मांबाप हैं और न मेरे पास रुपए ही हैं.’’

‘‘मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था. मैं तो वैसे ही 10 सालों बाद जेल से बाहर आया हूं.’’ अधेड़ ने कहा.

दोनों खामोश हो कर याद करने की कोशिश करने लगे कि वे यहां कैसे पहुंचे?

अधेड़ जेल की चारदीवारी से 10 साल की सजा काट कर जेल से बाहर निकला था. रात 8 बजे उस की रिहाई हुई थी. जेल से कुछ दूर आने पर अचानक पीछे से आ रही कार ने उसे टक्कर मारी तो वह गिर गया. कार से एक व्यक्ति उतरा. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आइए, आप की मरहमपट्टी करवा कर आप के घर छोड़ देता हूं.’’

अधेड़ कार में बैठा ही था कि पीछे से किसी ने उस के मुंह पर कुछ रखा, जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बाद वह होश में आया तो यहां बंधा था. उस की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है? 10 सालों से वह किसी के संपर्क में नहीं रहा. कहीं कोई गलती से तो उसे नहीं उठा लाया.

लड़का शराब की दुकान से शराब पी कर घर लौट रहा था, तभी रास्ते में एक छोटा सा बच्चा उसे रोता हुआ मिला. बच्चे के गले में उस के घर का पता एक रेशम की डोरी से बंधा था. बच्चे को देख कर उसे लगा कि यह अपने घर वालों से भटक गया है. उस ने सोचा कि अगर वह इसे इस के घर पहुंचा देता है तो इस के मांबाप उसे कुछ इनाम देंगे, जिस से उस के शराब पीने का इंतजाम हो जाएगा.

वह बच्चे के बारे में सोच ही रहा था कि उस के पास एक कार आ कर रुकी. उस में से एक बुजुर्ग महिला उतरी. उस के कुछ कहने से पहले ही महिला ने उसे बच्चे की सलामती के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘आप मेरे घर चलिए. हम आप को कुछ इनाम देना चाहते हैं.’’

इनाम के लालच में वह ड्राइवर की बगल वाली सीट पर कार में बैठ गया. औरत बच्चे को ले कर पिछली सीट पर बैठ गई. उस के कार में बैठते ही पिछली सीट से किसी ने उस के मुंह पर रूमाल रखा तो वह बेहोश हो गया. लड़के ने कहा, ‘‘मुझे क्लोरोफार्म सुंधा कर बेहोश किया गया था.’’

‘‘मुझे भी.’’ अधेड़ ने हैरानी से कहा.

‘‘मेरा अपहरण क्यों किया गया, यह मेरी समझ नहीं आ रहा है?’’ लड़के ने कहा.

‘‘अपहरण कोई क्यों करता है, पैसों के लिए या फिर बदला लेने के लिए?’’ अधेड़ ने कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास न पैसे हैं और न किसी से ऐसी दुश्मनी है. मैं तो जेल से छूट कर आ रहा हूं.’’

‘‘किस जुर्म में जेल गए थे?’’ लड़के ने होंठों पर जीभ फेरते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें उस से क्या लेना. यह सोचो कि हमें यहां क्यों लाया गया है? तुम्हारी जरूर किसी से दुश्मनी रही होगी? अपहरण करने वाले को पता होगा कि तुम्हारे पास रुपए नहीं हैं. ऐसा काम करने से पहले आदमी पूरी जानकारी कर लेता है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे मामले में तो उस ने गलती की है.’’

‘‘मेरा मामला अलग है. तुम अपनी बात करो.’’

दोनों बातें कर रहे थे कि तभी दरवाजे के चरमराने की आवाज आई. इस के बाद कदमों की आहट सुनाई दी, जो निरंतर उन के करीब आती जा रही थी. एक आदमी जो सिर से पैर तक ढका था, सिर्फ उस की आंखें दिख रही थीं, आ कर उन के पास खड़ा हो गया. लड़के ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘जवाब क्यों नहीं देते?’’ अधेड़ चीखा, ‘‘मुझे थोड़ा पानी पिला दो.’’

वह आदमी लौट गया. वापस आया तो उस के हाथ में एक बोतल थी. उस ने अधेड़ के मुंह से बोतल लगाई. एक घूंट पीने के बाद अधेड़ उसे उगल कर गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या है?’’

उस आदमी ने वही बोतल लड़के के मुंह लगा दी. लड़का छटपटाया. लेकिन कुछ बूंदें उस के मुंह में चली गईं. लड़के ने किसी तरह बोतल से मुंह हटा कर हांफते हुए कहा, ‘‘पेशाब क्यों पिला रहे हो?’’

‘‘यह क्या हैवानियत है?’’ अधेड़ ने कहा.

उस आदमी ने अधेड़ को एक ठोकर मारी. वह दर्द से बिलबिला उठा. इस के बाद लड़के को उसी तरह ठोकर मार कर बोला, ‘‘दुष्कर्म करने के बाद रोतीगिड़गिड़ाती लड़कियों को तुम यही पिलाते थे न?’’

‘‘लेकिन मैं तो अपने अपराध की सजा काट चुका हूं. ’’ महिला की आवाज सुन कर अधेड़ गिड़गिड़ाया.

‘‘तभी तो 50 की उम्र में 60 के लग रहे हो खुशाल.’’ उस महिला ने कहा.

अपना नाम सुन कर खुशाल ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘पहले यह पूछो कि यह लड़का कौन है? जानते हो इसे?’’ लबादे से ढकी औरत ने चीख कर पूछा.

‘‘नहीं, इस से मेरा क्या वास्ता?’’ खुशाल ने लड़के की तरफ अजनबी निगाहों से देखते हुए कहा.

‘‘यह वही लड़का है, जिस के मातापिता अस्पताल जाते समय तुम्हें अपना भाई और इस का चाचा समझ कर इसे तुम्हारे पास छोड़ जाते थे और तुम इस के गले में अपने गोदाम का, जहां तुम काम करते थे, पता लटका कर गर्ल्स हौस्टल, वर्किंग वुमेन हौस्टल, गर्ल्स स्कूल या कालेज के पास छोड़ देते थे. जब कोई लड़की या महिला अपनी नारी सुलभ आदत की वजह से इसे तुम्हारे पास पहुंचाने जाती थी तो तुम अपने नीच दोस्तों के साथ इस मासूम बच्चे के सामने उस के साथ दुष्कर्म करते थे.

‘‘तुम्हारी हरकतों की वजह से इस का दिमाग इतना विकृत हो गया कि यह डाक्टर, इंजीनियर बनने के बजाय दुष्कर्मी बन गया. तुम ने इस के मातापिता से उन का बेटा छीन लिया, इस का पूरा भविष्य छीन लिया. जानते हो इस ने क्या किया है? जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही इस ने अपनी रिश्ते की बहन के साथ वही किया, जो तूने इसे सिखाया था. इस के मातापिता ने शरम से आत्महत्या कर ली.

‘‘कानून ने तुझे सिर्फ एक दुष्कर्म की सजा दी है. इस के मातापिता को आत्महत्या के लिए विवश करने की सजा और इसे दुष्कर्मी बनाने की सजा तो अभी बाकी है. जिन लड़कियों के साथ तूने दुष्कर्म किया था, बता सकता है उन का क्या हुआ था?’’ इतना कह कर उस औरत ने रिवाल्वर निकाला और खुशाल के दाएं पैर पर गोली मार दी. खुशल दर्द से चीख पड़ा. उस के पैर से खून बहने लगा.

‘‘बताता हूं…बताता हूं. मुझे मत मारो. मैं सब बताता हूं. एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी, दूसरी जबरदस्ती करते ज्यादा चोट लगने से मर गई थी. तीसरी ने केस किया. लेकिन कोर्ट से मेरे बाइज्जत बरी होने के बाद उसे ऐसा सदमा लगा कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. सुना है पागलखाने में है. लेकिन तुम कौन हो?’’

लड़का अधेड़ को जलती नजरों से इस तरह देख रहा था, जैसे वह उस का अपराधी हो. अपराधी था भी. वह अपने बचाव के लिए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे दुष्कर्मी बनाने में इस का हाथ है. फिर मेरे ऊपर तो मुकदमा चल रहा है. सजा तो होनी ही है. हम जैसे पापियों के लिए जेल की कोठरी ही ठीक है.’’

इसी के साथ एक और गोली चली. इस बार लड़के की चीख निकली. गोली चलाने वाली औरत ने कहा, ‘‘कमीने, जेल की कोठरी तेरे लिए कुछ नहीं है. जेल इंसानों के लिए है. तुम जैसे राक्षसों के लिए तो मौत ही उचित सजा है.’’

‘‘मुझे पानी पिला दो.’’ लड़के ने कहा.

‘‘तुम औरतों, मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करो और पानी मांगने पर उन्हें पेशाब पिलाओ. अब समझ में आई पानी की कीमत? अब मैं तुम्हें दुष्कर्म की पीड़ा बताऊंगी.’’

तभी 2 लोग और आ गए. वे भी उसी तरह लबादे से ढके थे. उन में से एक के हाथ में लोहे की मोटी रौड थी तो दूसरे के हाथ में तलवार. उन्हें देख कर लड़के ने पूछा, ‘‘ये लोग कौन हैं?’’

‘‘हम कोई भी हों, तुम जैसों के लिए मात्र मांस का टुकड़ा हैं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि हम किसी की मां हैं, बहन हैं या पत्नी हैं. तुम्हें तो सिर्फ औरतों की चीखें सुनने में मजा आता है. आज देखते हैं, तुम कितना दर्द बरदाश्त कर पाते हो?’’

‘‘नहीं, हमें माफ कर दो. गोली मार दो, लेकिन हमें तड़पातड़पा कर मत मारो.’’ दोनों एक साथ गिड़गिड़ाए.

‘‘तुम्हें उस दर्द का अहसास कराना जरूरी है. तुम्हें नपुंसक बना कर छोड़ देना ही तुम्हारे लिए उचित सजा है.’’

‘‘मेरी बच्चियों, मेरी बात सुनो. मैं मरने से नहीं डरता. हत्यारे को अपनी हत्या से डरना भी नहीं चाहिए. मेरी उम्र 50 साल है और ज्यादा से ज्यादा 10-5 साल और जिऊंगा. तुम लोगों को इस पापी देह के साथ जो करना है, करो. लेकिन पहले मेरी बात सुन लो.’’

‘‘अभी भी कुछ कहना बाकी है?’’ तीनों में से एक ने कहा. वह पुरुष था.

‘‘हां, बहुत कुछ कहना है. लेकिन अपनी जान बचाने के लिए नहीं. मैं नहीं जानता कि तुम लोग कौन हो. मैं यह जानना भी नहीं चाहता. इस बच्चे को मैं ने अपने पाप के लिए इस्तेमाल किया. तब मैं ने सोचा भी नहीं था कि मेरे कर्मों का इस पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. उसी तरह मेरे दुष्कर्मी होने में मात्र मेरा पुरुष होना ही नहीं है. इस के पीछे समाज की वे गंदगियां हैं, जो हमारे मस्तिष्क को विकृत करती हैं.

‘‘मैं केवल सिनेमा, साहित्य या इंटरनेट को ही इस का दोष नहीं दूंगा. क्योंकि इस का असर कोमल मस्तिष्क पर तो पड़ सकता है, मुझ जैसे थके दिमाग वालों पर नहीं. लेकिन मैं कितनी भी वजहें गिना दूं, इस से मेरे अपराध कम नहीं होंगे. दुष्कर्म पहले भी होते थे. हर ताकतवर ने कमजोर की स्त्री के साथ मौका मिलते ही दुष्कर्म किया. लेकिन अभी जो बाढ़ सी आ गई है, यह समाज में फैला प्रदूषण है.

‘‘स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से न देखना, यह पुरुष प्रधान समाज की देन है. पुरुष औरतों को तुच्छ और कमजोर समझते हैं. जो दंड आप लोग हमें आज दे रहे हैं, अगर यही पहले ही स्त्रियां देना शुरू कर देतीं तो शायद आज यह स्थिति न आती. कोई जवाब देने वाला ही नहीं होगा तो हमला करने वाला कैसे पीछे हटेगा.’’

‘‘यही बकवास सुनानी थी तुम्हें?’’ तीनों में से एक ने पूछा.

‘‘मैं बकवास नहीं कर रहा. मैं मां के पेट से ही दुष्कर्मी बन कर पैदा नहीं हुआ और मेरी हत्या के बाद दुष्कर्म बंद भी नहीं हो जाएंगे. क्या इस में सारा दोष हम मर्दों का ही है? तुम स्त्रियों का कोई दोष नहीं है? क्यों नहीं दिया संसार के पहले दुष्कर्मी को सजा, क्यों सहती रही यह सब, क्यों सृष्टि के आरंभ से ही अबला बनी रहीं, क्यों नहीं दिया उसी समय जवाब?

‘‘तुम्हारी कायरता और कमजोरी की ही वजह से समाज को नियम बनाने पडे़. कानून को स्वयं कठोर बनना पड़ा. आज भी समाज और कानून के भरोसे बैठी हैं औरतें. अकेले नहीं, संगठित हो कर तो हमला कर सकती थीं. जो हालात शुरू में थे, आज वही इतने बिगड़ गए हैं कि दुष्कर्म खत्म करने के लिए आधे से अधिक पुरुषों को मृत्युदंड देना होगा. आप लोगों की कमजोरी की वजह से ही आप लोगों का शोषण होता रहा. सजा ही देनी है तो उन औरतों को भी दो, जो सभ्यता की शुरुआत से यह सब सहती आ रही हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है, जबजब औरतों पर अत्याचार हुए हैं, तबतब विनाश हुआ है. मर्दों को अगर प्रकृति ने शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर बनाया है तो स्त्रियों को भी दूसरी शक्तियां दी हैं. प्रकृति किसी के साथ अत्याचार नहीं करती. फूल नाजुक है तो क्या हुआ, खूशबू बिखेरता है, उद्यान की शोभा बढ़ाता है. अगर कोई दुष्ट उसे मसल दे तो इस में फूल का क्या दोष?’’ सब से पहले आई महिला ने कहा.

‘‘एक स्त्री पूरे समाज को प्रभावित करती है. अगर यह ज्यादा है तो कम से कम एक परिवार को तो प्रभावित करती ही है. मकान को घर बनाने वाली स्त्रियां अगर घर को मकान बना दें या बाजार बना दें तो क्या उस घरपरिवार के पुरुष श्रेष्ठ हो सकते हैं?’’

खुशाल की यह बात सुन कर उन तीनों में जो पुरुष था, उस ने कहा, ‘‘खत्म करो इसे. इसी की वजह से मेरी बेटी पागलखाने में मरी थी. यह दुष्कर्मी है. हत्यारा है मेरी बेटी का. डाक्टर होते हुए भी मैं अपनी बेटी को नहीं बचा सका. इस के जुल्म के आगे मेरी चिकित्सा हार गई.’’

खुशाल समझ गया कि यह डाक्टर उसी लड़की का बाप है, जिस के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. उसे सजा न होने पर वह लड़की पागल हो गई थी. इस के अनुसार अब वह मर चुकी है. उस ने कहा, ‘‘मेरी मां मेरे पिता की गैरहाजिरी में एक आदमी को बुला कर उस के साथ कमरे में बंद हो जाती थी. एक दिन मेरे चाचा ने उसे देख लिया तो उस ने पिता के सामने रोते हुए चाचा पर दुष्कर्म का झूठा आरोप लगा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

‘‘जमानत पर वापस आ कर जब समाज ने, परिवार ने चाचा को प्रताडि़त किया तो उन्होंने आत्महत्या कर ली. जब मेरे पिता ने अपनी आंखों से मां को गैरमर्द के साथ देख लिया तो मां ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर उन की हत्या कर दी. बाद में पकड़ी गई और जेल चली गई. मां की इस हरकत से मुझे सारी स्त्रियां हत्यारिन और कामलोलुप नजर आने लगीं.

‘‘बड़े होने पर मेरा विवाह हुआ. मेरे साथ भी वही हुआ, जो मेरे पिता के साथ हुआ था. किसी गैर मर्द की संगत की वजह से मेरी पत्नी ने मुझ पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगा कर जेल भिजवा दिया और खुद अपने आशिक के साथ रंगरलियां मनाती रही. मैं जमानत पर जेल से बाहर आया तो मुझ से तलाक ले लिया. बस उसी के बाद से मैं ने औरतों को अपमानित करना शुरू कर दिया.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम 2 औरतों के किए का बदला सारी स्त्री जाति से लेना चाहते थे?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की की बात का जवाब देने के बजाय खुशाल ने डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, पढ़ेलिखे हो कर आप भी गैरकानूनी काम कर रहे हैं. आप गुस्से में विकृत हो चुके हैं. मेरा भी मनमस्तिष्क विकृत हो चुका है. आप भले मुझे गोली मार दें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि मेरे दुष्कर्मी होने के पीछे औरतों का हाथ था. बेवफाई और बेहयाई ने मुझे ऐसा बनाया. इस की छाप मेरे मस्तिष्क पर बचपन से पड़ चुकी थी.’’

तीनों में से महिला ने अपना चोंगा उतार फेंका. उस की उम्र 60 साल के आसपास थी. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बातों से मैं कुछ हद तक सहमत हूं. मैं ने भी अपनी मां की वजह से पिता को तिलतिल मरते देखा था. परिवार की वजह से मैं स्वयं भी काफी समय तक अवसाद में रही. लेकिन मैं ने खुद को संभाला, पढ़ाई की और डाक्टर बन गई. एक बेटी को जन्म दिया, जिसे तुम ने मौत के मुंह में धकेल दिया. तुम्हें अतीत ने विकृत किया, इस की वजह से तुम्हारे अपराध कम नहीं हो सकते. उन्हें माफ भी नहीं किया जा सकता.’’

इस के बाद खुद को डाक्टर कहने वाले ने भी अपना चोंगा उतार दिया. वह उस महिला का पति था. बेटी के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए उन्होंने खुशाल के रिहा होने का इंतजार किया था. उस के जेल से बाहर आते ही वे उस का अपहरण कर के यहां ले आए थे. उस ने कहा, ‘‘एक डाक्टर होने के नाते मुझे पता है, तुम्हें दंड की नहीं, इलाज की जरूरत है. लेकिन तुम ने मेरी बेटी के साथ जो जुल्म किए हैं, मैं उन्हें बिलकुल नहीं भूल सकता.’’

‘‘गोली मार कर अपने बदले की आग बुझा लीजिए डाक्टर साहब.  मैं भी अपने इस जीवन से ऊब चुका हूं. इस से मैं भी छुटकारा पाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे लगता है, तुम्हारा जिंदा रहना ही तुम्हारे लिए सब से बड़ी सजा है.’’ डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘अगर हम ने तुम्हें इस तरह बेरहमी से मार दिया तो तुम में और हम में अंतर ही क्या रह जाएगा.’’

उन दोनों की इस बात से दुखी हो कर उन के साथ आई लड़की ने कहा, ‘‘इन्हें इस तरह छोड़ने के लिए हम ने इतनी मेहनत नहीं की है? इन्हें छोड़ दिया गया तो ये फिर वही करेंगे. इसलिए इन्हें मार देना ही ठीक है.’’

दर्द से बिलबिला रहे लड़के ने कहा, ‘‘तुम लोगों का दुश्मन तो खुशाल है, फिर मुझे क्यों बांध रखा है. इसी की वजह से मेरा जीवन नरक हुआ है. इसे मार दो और मुझे छोड़ दो.’’

‘‘नाबालिग होने की वजह से जिस दुष्कर्म के जुर्म में तुम रिहा हो गए थे, वह जुर्म रिहाई के योग्य नहीं था. कानून की नजर में तुम भले नाबालिग थे, लेकिन अपराध की दृष्टि से नहीं.’’ लड़की ने उस की ओर रिवाल्वर तान कर कहा.

‘‘दीदी…’’ लड़के ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मत कहो मुझे दीदी. तू भाई के नाम पर कलंक है. तुझ से बदला लेने के लिए ये लोग यह सोच कर मेरी तलाश कर रहे थे कि जैसा भाई ने किया है, वैसा ही उस की बहन के साथ किया जाए. शुक्र था कि पिता के मित्र होने के नाते ये मुझे अपने घर ले गए, वरना मेरा भी वही हाल होता, जो तूने अपने दोस्तों के साथ मिल कर मासूम लड़कियों के साथ किया था. तब तुम यह भी भूल गए थे कि तुम्हारी भी एक बहन है. तू भी किसी का भाई है. वे लड़कियां भी किसी की बहनें थीं. उन का भी भाई रहा होगा. तेरे जैसे हैवान किसी के भाई नहीं हो सकते. मौका मिलता तो तू मुझे भी नहीं छोड़ता.’’

‘‘बस करो दीदी,’’ लड़का चीखा, ‘‘मुझे मार दो, लेकिन इस तरह शर्मिंदा मत करो. मैं भी जीना नहीं चाहता. मैं भाई के नाम पर कलंक हूं. मैं नशे में होश खो बैठता था.’’

‘‘अब अपनी करनी का दोष शराब को दे रहा है.’’ लड़की ने कहा. उस की सहेली के साथ उस के इस भाई ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर क्रूरतम कांड किया था.

‘‘नीलेश, अब मैं तेरी बहन नहीं, मौत हूं.’’

‘‘हां सुरभि, मुझे मार दो. मौत ही अब मेरी मुक्ति का उपाय है.’’ नीलेश ने कहा,’’ लेकिन कोशिश करना कि कानूनी, गैरकानूनी रूप से चलने वाला नशे का व्यापार बंद हो जाए, क्योंकि नशे में आदमी अपना होश खो बैठता है.’’

‘‘तुम खुद बताओ,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘एक बलात्कारी की सजा क्या होनी चाहिए? क्या उसे नपुंसक बना देना चाहिए?’’

‘‘आप चाहें तो बना सकते है डाक्टर साहब. लेकिन इस से तो आदमी और भी विकृत हो जाएगा. वह महिलाओं का खूंखार हत्यारा हो जाएगा.’’ खुशाल ने कहा.

‘‘तो आजीवन कारावास उचित रहेगा?’’ डाक्टर की पत्नी ने पूछा.

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, आप उन लोगों के बारे में सोचिए, जिन पर झूठे आरोप लगा कर जीवन भर जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. यह उन के साथ अत्याचार नहीं होगा, मैं ने 10 साल जेल में बिताए हैं. वहां आधे से अधिक लोग झूठे आरोपो में सजा काट रहे हैं, तमाम लोगों की न जाने कितने दिनों से सुनवाई चल रही है.’’

‘‘तो क्या दुष्कर्मियों को छोड़ दिया जाए?’’ सुरभि ने पूछा.

‘‘एक स्वस्थ समाज, जिस में न कोई नशीले पदार्थ का सेवन करता हो, न मानसिक रूप से विकृत हो, वहां दुष्कर्म के लिए जो भी सजा दी जाए, कम है.’’ खुशाल ने कहा तो जवाब में सुरभि बोली, ‘‘ऐसा व्यक्ति दुष्कर्म करेगा ही क्यों, जो नशा भी न करे और विकृत भी न हो.’’

‘‘वही तो मैं भी कह रहा हूं कि दुष्कर्म के पीछे दुष्कर्मी की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिस्थितियों को देखना जरूरी है.’’

‘‘ऐसे भी लोग हैं, जो नशा नहीं करते, विकृत होने के कोई कारण भी नहीं हैं, फिर भी दुष्कर्म करते हैं.’’ सुरभि ने कहा.

‘‘ऐसे ही लोग दुष्कर्म के सही आरोपी हैं, जो अपनी हवस शांत करने के लिए छोटे बच्चों, कमउम्र की बच्चियों को बहलाफुसला कर उन के साथ संबंध बनाते हैं. ऐसे लोग समाज को गंदा कर रहे हैं. अपनी यौन पिपासा मिटाने के लिए अपनी मर्यादा को लांघते हैं. इन में स्त्रियां भी हैं.’’ खुशाल ने कहा.

‘‘तो तुम लोगों को छोड़ दिया जाए, यही चाहते हो न तुम लोग?’’ सुरभि ने कहा, ‘‘तुम अपराधी नहीं हो, तुम यही कहना चाहते हो न?’’

नीलेश ने नजरें नीची कर के कहा, ‘‘नहीं दीदी, मुझे मौत चाहिए.’’

‘‘बेटी,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘इन के किए की सजा इन्हें कानून देगा. हम क्यों अपने हाथ खून से रंगे. चलो, ये तो वैसे भी मरे और बीमार लोग हैं.’’

डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘चलो बेटी, इन्हें अनदेखा करना, इन से सावधान रहना और इन से कोई रिश्ता मत रखना. इन्हें अपने से अलग कर देना ही इन के लिए उचित सजा है. शर्म होगी तो खुद मुंह छिपाते हुए मर जाएंगें.’’

‘‘लेकिन मैं इन्हें मार देना चाहती हूं. ये दुष्कर्मी और हत्यारे हैं’’ सुरभि गुस्से में  चीखी.

‘‘किसी को योजनाबद्ध तरीके से जाल में फांस कर उन के साथ अत्याचार कर के मार देना विकृत और अपराधी किस्म के लोगों का काम है. जान लेना कोई बड़ा काम नहीं, यह काम कायर करते हैं. बेटी, हम सभ्य समाज के सभ्य लोग हैं. हमारा काम जान बचाना है, लेना नहीं.’’

इस के बाद डाक्टर और उन की पत्नी ने दोनों को पानी पिलाया. डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे को हम अपने गर्भ में पालते हैं, सीने का दूध पिला कर पालते हैं, वही बड़ा हो कर हम से ताकत दिखा कर खुद को मर्द साबित करना चाहता है. हमें प्रकृति ने कोमल और नाजुक इसलिए बनाया है, ताकि बच्चों को गर्भ का बिछौना और पोषण के लिए भोजन मिल सके. लेकिन तुम जैसे लोगों की समझ में यह बात नहीं आएगी.’’

दोनों के पैरों को बंधा छोड़ कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों को माफ करता हूं.’’

इस के बाद डाक्टर ने दोनों के हाथों के बंधन इतने ढीले कर दिए कि उन के जाने के बाद वे थोड़ी मेहनत के बाद स्वयं को बंधन मुक्त कर सकें.

‘‘ये क्षमा या दया के योग्य नहीं, वध के योग्य हैं.’’ सुरभि ने कहा.

‘‘नहीं बेटी, हम इन के जैसे घिनौने और विकृत नहीं है.’’ डाक्टर ने सुरभि के हाथ से पिस्तौल ले कर फेंकते हुए कहा. इस के बाद पत्नी और सुरभि को ले कर बाहर आ गए. अपनी कार स्टार्ट की और चले गए.

उन के जाने के बाद कोशिश कर के नीलेश और खुशाल ने खुद को बंधन मुक्त किया और थकेहारे वहीं बैठे रहे. शर्म और ग्लानि उन के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी. पिस्तौल, तलवार, रौड वहीं पड़ी हुई थी.

‘‘मैं जीना नहीं चाहता’’ नीलेश ने कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से मेरी जिंदगी बरबाद हुई है.’’

‘‘अब मैं भी नहीं जीना चाहता.’’ खुशाल ने कहा.

कुछ देर दोनों खामोश बैठे रहे. उस के बाद खुशाल ने कहा, ‘‘सोचा तो था कि जेल से बाहर आने के बाद नई जिंदगी शुरू करूंगा. लेकिन अब पता चला कि हमें जीने का कोई अधिकार नहीं है. हम जीने लायक नहीं हैं.’’

‘‘हम इतने गिर चुके हैं कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं. जिस की बहन ही अपने भाई पर भरोसा न करे, जो खुद से नजरे न मिला सके, ऐसे में जीने से मर जाना ही ठीक है. कितना अच्छा होता वे मुझे मार देते.’’ नीलेश ने कहा..

‘‘मैं खुद को उसी तरह सजा दे कर अपने पापों से मुक्त होना चाहता हूं.’’ खुशाल ने कहा और वहां पड़ी लोहे की रौड एवं तलवार उठाई. लेकिन आगे की बात सोच कर उस का दिल कांप उठा.

‘‘मैं भी स्वयं को वही सजा देना चाहता हूं, जो मैं ने लड़कियों को दी है.’’ नीलेश ने कहा तो खुशाल ने तलवार और रौड नीलेश की ओर फेंक कर कहा, ‘‘यह लो, लेकिन हम में इतना साहस नहीं है कि हम स्वयं को उसी तरह बेरहमी से दंडित कर सकें.’’

नीलेश तलवार ले कर काफी देर तक सोचता रहा. उस के बाद तलवार फेंक कर बोला, ‘‘मैं कायर और डरपोक हूं.’’

‘‘काश! हम ने किसी लड़की को समझा होता?’’ खुशाल ने रोते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं खुद को जरूर सजा दूंगा. स्वस्थ समाज के लिए मेरा मर जाना ही ठीक है.’’ पास पड़ी पिस्तौल उठा कर कनपटी पर लगाते हुए नीलेश ने कहा.

‘‘मैं बूढ़ा हूं. मुझे मर जाने दो. तुम्हारा जीवन तो अभी शुरू हुआ है. तुम में सुधार की गुंजाइश है. अगर तुम ठान लो तो बेहतर नागरिक बन सकते हो.’’ खुशाल ने नीलेश को समझाते हुए कहा.

‘‘क्या पता मेरा विकृत मन अपने दोस्तों के साथ नशा कर के फिर कोई नीच हरकत कर बैठे. उस के बाद तीनों को अपनी उदारता पर पश्चाताप होगा. इस के बाद वे फिर कभी किसी को और स्वयं को माफ नहीं कर सकेंगे.’’

इस के बाद धांय की आवाज हुई और नीलेश जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा. इस के बाद खुशाल ने वही पिस्तौल उठा कर अपनी कनपटी पर लगाई. उसे उन तमाम लड़कियों की चीखें, कराहें सुनाई दीं, जिन के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. वह मन ही मन बड़बड़ाया, ‘‘मेरे पापों के लिए इस से आसान मौत दूसरी नहीं हो सकती. हम तो इस लायक हैं कि हमारे शरीर में लोहे की रौड डाली जाए. हमारा गुप्तांग काट कर हमें हिजड़ों की जमात में भेज दिया जाए. लेकिन मैं खुद के लिए आसान सजा का चुनाव कर रहा हूं.’’

इस के बाद एक गोली और चली. उसी के साथ खुशाल का शरीर एक ओर लुढ़क गया. शायद यही उन के किए की सजा थी.

दूध का कर्ज: क्या पिंकू अपनी वफादारी साबित कर सका?

वह देखने में अच्छा नहीं था. अच्छी नस्ल का भी नहीं था. आम कुत्तों की तरह ही था. इधरउधर की चीजें खा कर जिंदा रहने वाला कुत्ता था. उस की चालढाल भी बहुत अच्छी नहीं थी. भूंकता कम था. बड़ी आशा से 2 महीने पहले खरीदा था कि बड़ा हो कर खूंखार होगा और अपना नाम सार्थक करेगा. लेकिन उस की चालढाल से ऐसा कुछ लग नहीं रहा था. उसे इसलिए खरीदा गया था कि महल्ले में चोरियां अचानक बहुत बढ़ गई थीं. कोरोना के कारण लोगों की नौकरियां चली गई थीं. महंगाई चरम सीमा पर थी. गरीब लोगों को खाने के लाले पड़ गए थे. जगहजगह रात को चोरियां हो रही थीं. इसलिए इसे खरीदा गया कि कम से कम बाहर वह चौकीदारी तो करेगा. जब खरीद कर लाया तो सभी लोग उसे घेर कर बैठ गए थे. उस का नाम क्या रखा जाए, इस पर बहस होने लगी.

बड़े लड़के ने कहा, ‘टाइगर नाम अच्छा होगा. यह बहुत ही फेमस नाम है, हर गलीमहल्ले में टाइगर नाम का कुत्ता मिल जाएगा.

फिर छोटी बिटिया कहने लगी कि, ‘पापा, ‘सीजर’ नाम कैसा होगा?’ इस पर भी लोगों की सहमति नहीं बनी, क्योंकि उत्तर भारत में इस नाम के हजारों कुत्ते मिल जाएंगे. आखिरकार आधे घंटे की बहस के बाद ‘पिंकू’ नाम पर सहमति बन गई.

आदमी हो या जानवर, उस का नाम उस के काम से जाना जाता है. धीरेधीरे समय बीतने लगा. पिंकू में क्रूरता के स्थान पर मानवता झलकने लगी. जब छोटा था तो बच्चों को काटने को दौड़ता था. लेकिन बड़ा होते ही सब की गोद में जा कर बैठ जाता. पूंछ हिलाहिला कर पैरहाथ चाटने लगता. बाहरी के साथ भी उस का यही व्यवहार था. जिस उम्मीद के साथ उसे खरीद कर लाए थे, उस पर वह खरा नहीं उतर रहा था. खिलापिला कर इतना बड़ा किया, सोचा था कि घर की रखवाली मुस्तैदी से करेगा. बाहरी लोगों को अंदर नहीं आने देगा. लेकिन यह सब उलटा होने लगा.

घर में रोज़ तरहतरह के लोग आया करते थे. कभी सब्जी वाला तो कभी पोस्टमैन, भिखारी, फेरीवाला, दोस्त, रिश्तेदार आदिआदि. सभी के साथ पिंकू का व्यवहार एक ही तरह का होता था. स्वागत सभी का एक ही ढंग से करता था. गेट पर आवाज होते ही खड़ा हो जाता. आगंतुक को देखने लगता. उस की तरफ तेजी से दौड़ता. लेकिन भूंकता नहीं था. मेहमान का स्वागत पूंछ हिलाहिला कर, सिर नीचे कर के करता था. आने वाले तो उसे देख कर डर जाते थे कि कहीं काट न ले. लेकिन उस के व्यवहार को देख कर लोगों के मन में डर की भावना खत्म हो जाती थी. कोई भी मेहमान उस की बड़ाई करते थकता नहीं था. जिस से मैं मिलना नहीं चाहता था उसे भी वह खींच कर ले आता था.

लेकिन उस के इस व्यवहार से घर वाले बहुत नाराज रहने लगे. मुझे ताना देने लगे. घर की मालकिन कहती कि खाता तो यह हाथी के बराबर है. इस महंगाई में इसे पालना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो गया है. इसे दूध, चावल और मीट खिलाने में जितना खर्च होता है, उस में तो 2 पहरेदार रखे जा सकते थे.

घर पर हम ने बहुत सारे फूल लगा रखे थे. लेकिन उस की भी वह रखवाली नहीं कर पाता. सवेरे ही लोग फूल तोड़ ले जाते थे. लेकिन पिंकू उन का स्वागत ही करता था. भूंकना तो वह जैसे जानता ही नहीं था.

मां कहने लगी कि अब उसे रात को कमरे में बंद कर दिया करो, नहीं तो वह चोर को भी बुला कर सारा घर दिखा देगा. वह भूंकता तो था ही नहीं. इतना शांत कुत्ता तो मैं ने दुनिया में नहीं देखा. अगर वह भूंकना शुरू कर दे तो कुछ बात बने. लेकिन ऐसा उस में कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा था. वह एक सज्जन इंसान की तरह सभी से व्यवहार करने लगा था.

आखिर वह दिन आ ही गया. चोर रात को 2 बजे पीछे वाले कमरे की खिड़की तोड़ कर भीतर घुस गया. उस ने घर की सब अलमारियां और बौक्स खोल डाले. औरत के सारे कीमती जेवरों की पोटली बना कर बाहर निकलने की तैयारी करने लगा. खिड़की से जैसे ही उस ने बाहर निकलने की कोशिश किया, पिंकू उस को बड़ी उत्सुकता से देख रहा था. चोर डर गया. उस ने सोचा कि अब वह पकड़ा जाएगा. कुत्ता जरूर भूंकेगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. पिंकू ने तो चोर की गोद में अपना पैर रख दिया. प्यार से पूंछ हिलाने लगा. चोर को लगा कि वह भूखा है. उस ने बड़े प्यार से उस का सिर सहलाया और आगे पोटली ले कर चलने लगा. धीरे से फाटक खोला और बाहर निकल गया. मेरा पिंकू भी उस के पीछेपीछे चल दिया.

चोर को पिंकू बहुत पसंद आ गया. इस के पहले भी वह कई जगह चोरी कर चुका था. लेकिन कुत्ते के कारण पकड़ा गया था. 2 साल बाद जमानत पर छूटा था. लेकिन चोरी करने की आदत नहीं गई थी. ज़िंदगी में पहली बार उस को ऐसा कुत्ता मिला था जो जिस ने चोरी करने में उस की सहायता की थी. उस ने पिंकू को दोस्त बना लिया. उसे अपने घर ले आया.

दीनू चोर जब सोता तो उस की बगल में पिंकू भी सो जाता. जब वह खाने को बैठता तो उस की बगल में पिंकू भी दुम हिलाते बैठ जाता. जब नहाने जाता तो वह गंगा के किनारे इंतजार करता रहता. दीनू चोर का घर गंगा के किनारे एक घाट पर था. अपने पापों को वह गंगा नहा कर धो डालता था. ऐसी उस की सोच थी.

दरअसल, पिंकू कुछ ज्यादा ही अब उसे परेशान करने लगा था. जब वह रात को चोरी पर निकलता तो भी वह उस के पीछे लग जाता. उसे मना करता और कहता, ‘भैया, मुझे कुछ पल के लिए तो अकेला छोड़ दो’. मगर वह कहां मानता बल्कि और गोद में छिप कर बैठ जाता. वह भी चोर की तरह ही व्यवहार करने लगा था. आखिर जानवर ही तो था.

इधर पिंकू के अचानक गायब हो जाने से घर में बड़ी खलबली मच गई थी. सभी खोजखोज कर परेशान हो गए थे. लेकिन उस का कहीं भी पता नहीं चला. मां को पूरा विश्वास था कि उसे चोर ही ले गया होगा. यह भी बड़े शर्म की बात थी. कुत्ते को अगर चोर ले जाए तो वह कितना सीधा कुत्ता होगा, इस का अनुमान लगाया जा सकता है.

मेरी छोटी वाली बिटिया कह रही थी कि यह संयोग ही हो सकता है. वह जरूर चोर के साथ खुद ही चला गया होगा. उस के रहते चोर ने कैसे चोरी करने की हिम्मत कर ली, इस बात का बाहरी लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था. हम तो मन ही मन खुश हो रहे थे कि चलो सिर का बवाल हट गया. चोर जेवर ले गया, इस का हमें बहुत ज्यादा दुख नहीं था. हम ने पुलिस को शिकायत जरूर दर्ज कराई थी. लेकिन एक महीने बीत जाने पर भी कुछ रिज़ल्ट सामने नहीं आया, इसलिए पुलिस स्टेशन जा रहा थे. मेरी छोटी बिटिया भी मेरे साथ थी. पिंकू उस से बहुत मुंहलगा हो गया था. वह हमेशा उस के साथ खेला करती थी. जब वह गायब हो गया तो उस ने 2 दिनों तक खाना नहीं खाया था.

बाजार में अचानक पिंकू बिटिया को दिखाई पड़ गया. वह किसी के साथ पीछेपीछे जा रहा था. बिटिया ज़ोर से पिंकू-पिंकू चिल्लाई. आवाज सुन कर दीनू चोर ने पीछे मुड़ कर देखा और तेजी से भागना शुरू कर दिया. पिंकू यह सोच कर कि उस का दोस्त उस से पिंड छुड़ाना चाहता है, उस के पीछे भागना शुरू कर दिया.

मैं भी ‘पिंकूपिंकू’ चिल्लाया. उस ने मेरी तरफ देखा और फिर अपने दोस्त को रुकता न देख कर तेजी से भागना शुरू कर दिया. दीनू ने भी अपनी रफ्तार बढ़ा दी. पिंकू किसी भी तरह उस चोर को रोकना चाह रहा था, इसलिए उस ने आगे लपक कर उस का रास्ता रोकने की कोशिशें करने लगा. ऐसे में चोर दीनू उस के ऊपर ही गिर पड़ा. जमीन पर गिरते ही उस की जेब से कुछ जेवर नीचे गिर पड़े. वह चोरी के जेवरों को किसी दुकान पर बेचने जा रहा था. मैं ने उस जेवर को पहचान लिया. वे सारे जेवर मेरी वाइफ के थे. इसलिए मैं ने एकदम से चोर पर झपट पड़ा और पकड़ लिया. इसे देख वहां अच्छीखासी भीड़ इकट्ठा हो गई. पुलिस भी आ गई.

बिटिया ने पिंकू को गले लगा लिया. उस की आंखों से आंसू टपक रहे थे. ऐसा लग रहा था कि दो पुराने दोस्त मिल गए हों. जेवर मिल जाने की खुशी से हम तुरंत वापस घर चले आए. पिंकू तो अब जैसे हीरो बन गया था. मां, बहन, बेटे, बेटियां सभी उसे गले लगा रहे थे. घर की मालकिन भी तुरंत कटोरी में दूध ला कर उसे पिलाने लगीं. पिंकू बोल नहीं सकता था लेकिन आज सभी को उस ने अपनी वफादारी का पाठ पढ़ा दिया. उस ने हमारे दूध का कर्ज अदा कर दिया था.

बेटे की विरासत में हिस्सा

मृत निर्वसीयती विवाहित पुत्र की संपति में मां को अधिकार देना उस की विधवा के हक पर डाका डालने जैसा है क्योंकि मां तो स्वयं अपने पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है ही.

शांति ने अभी शादीशुदा जिंदगी को ठीक से सम?ा भी नहीं था कि वैधव्य का जिन्न उस के सामने आ खड़ा हुआ. 10 साल की बेटी और 7 साल के बेटे के साथ वह अचानक यों बिना छत के घर की हो जाएगी, उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. यह तो ससुराल वाले बहुत अच्छे थे जो उसे लगातार यह महसूस करवा रहे थे कि वह अकेली नहीं है. सास का बारबार उसे सीने से लगा लेना न जाने कितने ही खतरों से सुरक्षित होने का हौसला दे रहा था.

लेकिन सपनों की उम्र अधिक लंबी नहीं हुआ करती. उन्हें तो टूटना ही होता है. शांति का भी सुंदर सपना उस समय टूट गया जब पति के नाम पर खरीदे गए मकान को उस ने अपने नाम पर करवाना चाहा. कोर्ट ने जब मृतक के लीगल वारिसों की सूची मांगी तो उसे यह जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार पति की अर्जित की हुई संपति में उस के बच्चों के अतिरिक्त पति की मां भी बराबर की हिस्सेदार है.

अधिक आश्चर्य तो तब हुआ जब पति की मां ने मकान पर अपने हिस्से को शांति के पक्ष में रिलीज नहीं किया. उन का कहना था कि शांति को इस घर में रहना है तो शौक से रहे. यदि वह इसे बेच कर मायके या कहीं और जाना चाहती है तो उसे इस मकान का खयाल छोड़ देना होगा.

सोचा तो शांति ने यही था कि इस मकान को बेच कर जो भी रुपयापैसा मिलेगा उस से वह अपना और अपने बच्चों का भविष्य बनाने की कोशिश करेगी लेकिन अब यह उसे संभव नहीं लग रहा था क्योंकि स्वयं उस के पास आय का कोई स्रोत नहीं था और यदि उसे ससुराल वालों के रहमोकरम पर पलना है तो फिर बच्चों का भविष्य कैसे बना पाएगी. मुकदमेबाजी में उल?ाने का भी कोई मतलब नहीं था. जब खाने को ही पैसा नहीं है तो वकीलों को देने के लिए कहां से आएगा. वैसे भी कानून उस के पक्ष में नहीं था.

सास की मरजी

यहीं से उन के आपसी रिश्तों में कड़वाहट घुलने लगी. जो सास कभी मां की तरह स्नेह करती थी वह अब प्रतिद्वंद्वी बन सामने तनी हुई थी. केवल प्रतिद्वंद्वी ही नहीं, बल्कि अब तो चोरी और सीनाजोरी वाली नौबत भी आ चुकी थी. रहना है तो सास की मरजी से रहो वरना अपनी राह देखो.

शांति जैसी बहुत सी महिलाएं हैं जो कानून के इस पक्ष के कारण आर्थिक और मानसिक परेशानियां ?ोलती हैं. समाज में यों भी किसी युवा विधवा महिला का जीना आसान नहीं है, ऐसे में यदि उस का आर्थिक पक्ष भी कमजोर हो तो कोढ़ में खाज वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है. पति को खोने का गम, बच्चों की जिम्मेदारी के साथसाथ स्वयं को लोगों की तीखी निगाहों से बचाए रखना भी कम मुश्किल काम नहीं. पगपग पर जहां लुटेरे बैठे हों तो विधवा की आधी शक्ति तो इन्हीं निरर्थक प्रयोजनों में नष्ट हो जाती है.

मृत निर्वसीयती विवाहित पुत्र की संपति में मां को अधिकार देना उस की विधवा के हक पर डाका डालने जैसा है क्योंकि मां तो स्वयं अपने पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है ही, ऐसे में उसे मृत विवाहित पुत्र का उत्तराधिकार देना कहां तक उचित है?

कानूनन किसी भी व्यक्ति को अपनी वसीयत बनाने का अधिकार होता है और हरेक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में यह काम अनिवार्य रूप से करना ही चाहिए ताकि उस की मृत्यु के बाद उस के वारिसों को किसी भी प्रकार की कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े. अमूमन ऐसी सलाह किसी भी उम्रदराज व्यक्ति को दी जाती है लेकिन आमतौर पर स्वस्थ युवा व्यक्ति, जिस की मृत्यु की कोई आसन्न शंका न हो, की असामयिक मृत्यु होने पर उस की आश्रित विधवा को ऊपर वर्णित परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.

हमारे यहां अमूमन वसीयत बनाने का चलन नहीं है और गांवों में तो संपत्ति के विवाद में हत्याएं तक हो जाती हैं. दूरदराज में आज भी विधवा विवाह का प्रचलन नहीं है और युवा विधवाएं भी पति की मृत्यु के बाद वहीं ससुराल में ही रहती हैं. बहुत बार तो पुत्र की संपत्ति को बचाने के लिए मातापिता अपनी विधवा बहू को उस के देवर आदि के साथ नाते पर भी बिठा देते हैं. फिर चाहे वह महिला उस रिश्ते में सहज हो या न.

विधवाओं की समस्या

ऐसे में इस अप्रासंगिक कानून के कारण कितनी युवा विधवाएं विपरीत परिस्थितियां भोगने के लिए शापित होती होंगी, इस के आंकड़े शायद किसी के भी पास नहीं होंगे. यदि पति की अर्जित संपत्ति पर केवल उस की पत्नी और बच्चों का ही अधिकार हो तो वह महिला अपनी मरजी से जीने का फैसला ले सकती है क्योंकि तब उस पर किसी अन्य की ठेकेदारी नहीं थोपी जा सकती.

ऐसा एक उदाहरण पिछले दिनों देखने में आया. गांव में हमारे पड़ोस में रहने वाली 32 वर्षीया रचना के पति राजेश की दिल का दौरा पड़ने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. बैंक खातों की जानकारी से पता चला कि राजेश के नाम लगभग 5 लाख की फिक्स्ड डिपौजिट है लेकिन राजेश ने उस में किसी को नौमिनी नहीं किया. भुगतान प्राप्त करने के समय बैंक ने रचना को एक फौर्म दिया जिस में उसे अपनी सास के हस्ताक्षर करवाने थे.

फौर्म में लिखा था कि यदि यह रकम रचना के बैंक खाते में जमा की जाती है तो सास को कोई आपत्ति नहीं होगी. सास अपनी बहू के साथ सहानुभूति दिखाते हुए उस फौर्म पर हस्ताक्षर करने लगी लेकिन उस के छोटे बेटे यानी रचना के देवर ने अपनी मां को ऐसा करने से रोक दिया और उस रकम में मां के हिस्से की मांग की. पैसा आता देख कर मां की सहानुभूति भी हवा हो गई और उस ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया.

अब रचना के पास 2 ही विकल्प थे. पहला तो यह कि वह अपने पति की कमाई पर सास का अधिकार स्वीकार कर के उस का हिस्सा उसे दे दे और दूसरा यह कि वह इस रकम पर कोई क्लेम ही न करे और उसे यों ही विवादित छोड़ दे यानी ‘न खाऊंगी न खाने दूंगी’. कानून की मदद तो उसे मिलने से रही. रचना को ये दोनों ही परिस्थितियां स्वीकार्य नहीं थीं.

उत्तराधिकार अधिनियम में मृतक की मां को उस का लीगल वारिस मानना कहां का न्याय है, वह भी तब जबकि पुरुष विवाहित ही नहीं बल्कि बालबच्चों वाला भी है. क्या पति की अर्जित संपति पर केवल और केवल उस की पत्नी और बच्चों का अधिकार नहीं होना चाहिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह अधिनियम सबकुछ जानतेबू?ाते हुए ही बनाया गया हो ताकि महिलाओं को अपने नियंत्रण में रखा जा सके?

पति के गुजर जाने के बाद युवा स्त्रियां समाज को बिना चारदीवारी के तालाब सी लगती हैं जिस का पानी कोई भी इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में यदि उन के आर्थिक संबल की भी बंदरबांट होने लगे तो वे किस से शिकायत करें? किसी भी परेशानी में अंतिम सीमा तक जाने के बाद थकहार कर व्यक्ति कानून और अदालत का ही सहारा लेता है और यदि वही शोषक हो तो पीडि़त अपनी व्यथा किस के सामने रखेगा?

मां की उत्तराधिकारी

यहां इन परिस्थितियों का दूसरा पहलू देखा जाना भी बहुत आवश्यक है. कई मामलों में मां अपने जीवनयापन के लिए केवल अपने मृतक पुत्र पर ही आश्रित होती है. कारण कई हो सकते हैं, मसलन मृतक के पिता का कोई निश्चित आय स्रोत न हो, पिता किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो, मां विधवा, परित्यक्ता या तलाकशुदा हो आदि. ऐसे में यदि मां को पुत्र का उत्तराधिकार नहीं मिले तो वह बेसहारा हो जाएगी. ऐसी स्थिति में मां के मानवीय पक्ष भी विचार किए जाने आवश्यक हैं.

सरकार को उत्तराधिकार कानून की इस कमी की तरफ ध्यान दे कर इस में आवश्यक संशोधन करना चाहिए. यदि मां को उत्तराधिकारी बनाया जाना आवश्यक ही हो जाता है तो कानून में कम से कम यह प्रावधान अवश्य रखना चाहिए कि मां को यह अधिकार तभी मिले जब वह पूर्णतया अपने मृतक पुत्र पर ही आश्रित हो अन्यथा विवाहित पुरुष की अर्जित संपत्ति पर प्रथम श्रेणी उत्तराधिकार का हक केवल उस की पत्नी और बच्चों का होना चाहिए. मां को पिता की तरह दूसरी श्रेणी का अधिकारी बनाया जा सकता है.

मोदी के पपट भाजपाई मुख्यमंत्री

लोकतंत्र में प्रधानमंत्री को जो अधिकार देश के मामले में होता है वही अधिकार राज्यों के मामलों में मुख्यमंत्रियों को होता है. भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकारों के सभी 10 भाजपाई मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चंगुल में हैं. एक दौर वह था कि कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद पर किस को बैठाया जाए, इस का फैसला कांग्रेसशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के वोटों से हुआ था.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के लिए प्रधानमंत्री बनना आसान नहीं था. जवाहर लाल नेहरू ने इंदिरा को अपने जीतेजी सक्रिय राजनीति से दूर रखा था. अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नेहरू ने कभी अपनी बेटी का नाम नहीं लिया. यही कारण था कि जवाहर लाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बन गए. 11 जनवरी, 1966 की रात ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया.

इस के बाद नए प्रधानमंत्री की तलाश शुरू हो गई. प्रधानमंत्री बनाने की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज के कंधों पर आ गई. पार्टी के सामने प्रधानमंत्री बनने लायक 4 नाम थे- के कामराज, गुलजारी लाल नंदा, इंदिरा गांधी और मोरारजी भाई देसाई. गुलजारी लाल नंदा चाहते थे कि 1967 के आम चुनाव तक वे प्रधानमंत्री पद पर बनें.

इंदिरा गांधी को मिले 12 वोट

प्रधानमंत्री बनने की रेस में इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई और गुलजारी लाल नंदा आगे बढ़ रहे थे. के कामराज कांग्रेस संगठन मे ही बने रहना चाहते थे.

14 जनवरी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को ले कर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई. उस बैठक में उम्मीदवारों को ले कर कोई निष्कर्ष नहीं निकला. तब कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्रियों को दिल्ली बुलाया. सभी 14 मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई जिस में से 12 ने इंदिरा गांधी को समर्थन देने की बात कही.

पीएम बनने के लिए जितने नाम थे, उन में बेहतर इंदिरा थीं. इंदिरा भारतीयता और आधुनिकता दोनों को बैलेंस करना जानती थीं. मोरारजी देसाई के पक्ष में गुजरात और यूपी के मुख्यमंत्रियों को छोड़ कर कोई नहीं था. इस तरह इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव हुआ. मोरारजी देसाई भारत के उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बने.

राजनीतिक दलों में उन की विचारधारा सब से प्रमुख होती है. कांग्रेस की विचारधारा सब को साथ ले कर चलने की है. वह धर्मनिरपेक्ष राजनीति को मानने वाली है. देश में 2 और विचारधाराएं हैं जिन में से एक वामपंथी यानी लैफ्ट विंग और दूसरी दक्षिणपंथी यानी राइट विंग है. अलगअलग दल इन विचारधाराओं को मानते हैं.

क्या हैं वामपंथ और दक्षिण पंथ

जब भी राजनीति की बात होती है, वामपंथ और दक्षिणपंथ ये दोनों शब्द बहुत सुनाई देते हैं. भारत में मार्क्सवादी पार्टियों को वामपंथी पार्टियां और हिंदुत्व की विचारधारा वाली पार्टियों को दक्षिणपंथी पार्टियां कहा जाता है. विश्व स्तर पर बात की जाए तो उदार कहे जाने वाले विचारों के लिए वामपंथी यानी लैफ्ट विंग और रूढि़वादी यानी कंजर्वेटिव के लिए दक्षिणपंथी यानी राइट विंग शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. शुरुआत में वामपंथ और दक्षिणपंथ का विचारधारा से कोई मतलब नहीं था. यह सिर्फ असैंबली में बैठने की एक व्यवस्था थी.

साल 1789 था और गरमी का मौसम था. फ्रैंच नैशनल असैंबली के सदस्य संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए जमा हुए. 16वें किंग लुई को कितना अधिकार मिलना चाहिए, इस को ले कर सदस्यों के बीच काफी मतभेद था. सदस्य 2 हिस्सों में बंट गए. एक हिस्सा उन लोगों का था जो राजशाही के समर्थक थे और दूसरे वे सदस्य थे जो राजशाही के खिलाफ थे. उन्होंने अपने बैठने की जगह भी बांट ली.

राजशाही के विरोधी क्रांतिकारी सदस्य पीठासीन अधिकारी की बाईं ओर बैठ गए जबकि राजशाही के समर्थक कंजर्वेटिव सदस्य पीठासीन अधिकारी के दाईं ओर बैठ गए. इस तरह वहां से लैफ्ट विंग और राइट विंग का कौन्सेप्ट वजूद में आ गया. दोनों विंग की सोच अलगअलग है. दोनों के अपने तर्क हैं.

वामपंथी विंग से ताल्लुक रखने वाले लोगों का मानना है कि समाज के हर इंसान के साथ एकजैसा व्यवहार होना चाहिए, भेदभाव नहीं होना चाहिए. यह विचारधारा बराबरी, बदलाव और प्रगति को बढ़ावा देने पर फोकस करती है. इस के अलावा, यह अमीरों से ज्यादा टैक्स वसूलने की बात कहती है, ताकि बराबरी का लक्ष्य हासिल किया जा सके. वामपंथी विचार में राष्ट्रवाद का मतलब है सामाजिक बराबरी.

दक्षिणपंथी विचारधारा रूढि़वादी मानी गई है. इस विचारधारा की आर्थिक नीति में कम टैक्स वसूलने की बात कही गई है. इस में अधिकारियों, परंपराओं और राष्ट्रवाद को अहम दरजा दिया गया है. इस विचारधारा वाले अपने मूल विचारों से अलग नहीं होते हैं.

कुछ समय तक समाचारपत्रों ने लैफ्ट और राइट विंग का इस्तेमाल किया. 1790 तक करीब यह टर्म चलता रहा. फिर जब नेपोलियन बोनापार्ट का फ्रांस में शासन आया तो कई सालों तक लैफ्ट और राइट का कौन्सैप्ट गायब रहा और साथ ही, फ्रैंच असैंबली के अंदर दाएं व बाएं बैठने की कोई व्यवस्था नहीं रही. फिर 1814 में संवैधानिक राजशाही के शुरू होने के साथ ही लिबरल और कंजर्वेटिव असैंबली में दाएं और बाएं बैठने लगे. इस के बाद 19वीं सदी के मध्य तक फ्रांस के स्थानीय अखबारों में विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं के लिए लैफ्ट और राइट का इस्तेमाल होने लगा.

राजाओं सा व्यवहार करते प्रधानमंत्री

भारत की राजनीति में दक्षिणपंथी विचारधारा का युग चल रहा है यानी सत्ता पर इसी विचारधारा वालों का कब्जा है. यही वजह है कि सारे फैसले रूढि़वादी विचारधारा के हिसाब से लिए जा रहे हैं. परंपराओं और राष्ट्रवाद को महत्त्व दिया जा रहा है. लोकतंत्र राजशाही में बदल सा गया है. संसद के नए भवन के उद्घाटन के समय ‘सिगोंल’ को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना गया. जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद का उद्घाटन किया वह किसी राजा के राज्याभिषेक जैसा ही था. संविधान की जगह पर परंपरा और राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा ही व्यवहार अपने मुख्यमंत्रियों से कर रहे हैं.

इस समय देशभर में भाजपा के 10 मुख्यमंत्री हैं. इन में अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू, असम में हिमंत बिस्वा सरमा, गोवा में प्रमोद सावंत, गुजरात में भूपेंद्रभाई पटेल, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, मणिपुर में एन बीरेन सिंह, त्रिपुरा में माणिक साहा, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ शामिल हैं. इन सभी के साथ प्रधानमंत्री का व्यवहार केंद्र और राज्य वाला नहीं है.

प्रधानमंत्री मोदी अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों पर हावी हैं. इस का एक बुरा प्रभाव पार्टी पर यह पड़ रहा है कि मुख्यमंत्री क्षेत्रीय ताकत नहीं बन पा रहे. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा का मातृ संगठन आरएसएस द्वारा यह कहा जा रहा है कि प्रदेश स्तर पर नेताओं का विकास नहीं हो पा रहा.

साल 2014 के बाद से हालात और भी अधिक बदले हैं. वैसे जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के साथ उन का छत्तीस का आंकड़ा बन गया था. हालात इस कदर खराब हुए कि अयोध्या के नायक कहे जाने वाले कल्याण सिंह को भाजपा छोड़नी पड़ी. कुछ सालों के बाद भाजपा में उन की वापसी हो पाई.

कभी प्रधानमंत्री उम्मीदवार की रेस में थे शिवराज सिंह चौहान

भाजपा के 10 मुख्यमंत्रियों में सब से सीनियर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के लिए जब भारतीय जनता पार्टी जिन नेताओं में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का नाम तलाश रही थी, शिवराज सिंह चौहान उन में से एक थे. 2023 में शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में सब से लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले भाजपा के नेता बन गए. शिवराज सिंह चौहान 15 साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री हैं. वे 4 बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने वाले पहले भाजपा नेता हैं.

शिवराज सिंह चौहान एकमात्र नेता भी हैं जो भाजपा के ‘वाजपेयी-आडवाणी’ युग के दौरान मुख्यमंत्री बने और अभी भी सत्ता में हैं. भाजपा के संसदीय बोर्ड द्वारा पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बाद चौहान ने नवंबर 2005 में पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. भाजपा नेता बाबूलाल गौर के स्थान पर उन को मुख्यमंत्री बनाया गया था. 2018 में भाजपा के विधानसभा चुनाव हारने की वजह से कांग्रेस की सरकार बनी, शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. 2020 में कांग्रेस की सरकार गिर गई. भाजपा ने वापस सरकार बनाई तो शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बन गए.

साल 2013 में मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव था. शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के लिए यह चुनाव बेहद महत्त्वपूर्ण था. एक तो शिवराज सिंह चौहान खुद को मध्य प्रदेश में बीजेपी के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित करने की चाहत के साथ इस चुनाव में उतर रहे थे, दूसरे, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू हो गई थी. नरेंद्र मोदी भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश कर रहे थे. उस समय शिवराज सिंह चौहान का कद नरेंद्र मोदी से कम नहीं था. भाजपा में मोदी बनाम शिवराज का माहौल था. इस को हवा देने का काम भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने किया.

लालकृष्ण आडवाणी ने ग्वालियर की एक सभा में शिवराज सिंह चौहान को भाजपा का नंबर एक मुख्यमंत्री बता दिया. इस से शिवराज के लिए मुश्किल खड़ी हो गई. उस समय तक भाजपा का एक बड़ा तबका मोदी के समर्थन में खड़ा हो चुका था. शिवराज ने सफाई देने के लिए कह दिया कि भाजपा के नंबर वन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं.

2013 में मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव किस के चेहरे पर लड़ा जाए, यह भी विवाद रहा. शिवराज सिंह चौहान को लग रहा था कि ये लोग उन्हें मोदी के मुकाबले खड़ा करने की योजना में हैं. मोदी बनाम शिवराज का विवाद तब खत्म हुआ जब 2014 में मोदी को बीजेपी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार औपचारिक रूप से घोषित किया गया. असल में गुजरात में मोदी ने अपने नेतृत्व में भाजपा को लगातार जीत दिलाई है तो शिवराज ने मध्य प्रदेश में यही किया है. मोदी के आक्रामक चेहरे के मुकाबले शिवराज के सौम्य चेहरे को आगे करने की कोशिश भाजपा का एक बड़ा तबका कर रहा था. शिवराज सिंह चौहान खुद ही किसी दौड़ में नहीं रहते.

2023 के आखिर में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. भाजपा उन के स्थान पर कोई नया चेहरा खोजने का काम कर रही थी. उसे कोई नाम मिला नहीं. लिहाजा, वापस शिवराज सिंह चौहान को आगे कर के ही चुनाव लड़ा जाएगा. इस तरह के सीनियर मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री के पीछे चलना पड़ता है. 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रचार में सब से बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री का प्रयोग किया जाता था. जब भाजपा चुनाव हार गई तो पूरी जिम्मेदारी शिवराज सिंह चौहान पर डाल दी गई.

प्रदेश की विकास योजनाओं में मुख्यमंत्री से बड़ी फोटो प्रधानमंत्री की लगती है. उज्जैन के महाकाल के कौरिडोर बनने पर हर तरफ प्रधानमंत्री ही दिखाई देते रहे. राज्य की कल्याणकारी योजनाओं में शिवराज सिंह चौहान का कद प्रधानमंत्री के बाद दिखाई देता है.

15 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री की कुरसी पर रहने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान राज्य के राजनीतिक फैसले खुद नहीं ले सकते. उन का उत्तराधिकारी कौन होगा, इस का फैसला वे नहीं ले सकते.

जिस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्र में मंत्री बनाया गया, शिवराज सिंह चौहान की राय नहीं ली गई. इसी वजह से शिवराज सिंह चौहान की टीम के साथ ज्योतिरादित्य की टीम का स्थानीय स्तर पर बहुत समन्वय नहीं है. इस का नुकसान विधानसभा चुनाव में भाजपा को चुकाना पड़ सकता है. जब शिवराज सिंह चौहान जैसे सीनियर मुख्यमंत्री की यह हालत है तो बाकी का हाल सम?ा जा सकता है.

योगी सरकार को नहीं मिला पूर्णकालिक डीजीपी

शिवराज सिंह चौहान सब से सीनियर मुख्यमंत्री हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सब से बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, जहां से लोकसभा की 80 सीटें हैं. इस के बाद भी वे प्रधानमंत्री के चंगुल में ही हैं. 2022 में देवेंद्र सिंह चौहान उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक डीजीपी बने थे.

31 मार्च, 2023 तक वे कार्यवाहक डीजीपी ही बने रहे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चाहते थे कि देवेंद्र सिंह चौहान का रिटायरमैंट बढ़ा दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका. देवेंद्र सिंह चौहान को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चहेता माना जाता था. जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा को सेवा विस्तार दिया गया.

इसी तरह से मुख्यमंत्री के एक और करीबी अवनीश अवस्थी को भी सेवा विस्तार नहीं दिया गया. निकाय चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 17 नगरनिगम सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा के ट्विटर से जो बधाई संदेश दिया गया उस में प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा की तसवीरें ही लगी थीं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो और नाम तक नहीं था.

ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिन में प्रधानमंत्री की छवि को आगे करने का काम किया गया है. 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाने की योजना थी. प्रधानमंत्री के करीबी नौकरशाह को एमएलसी बना कर उत्तर प्रदेश भाजपा संगठन में लाया गया, बाद में वे मंत्री भी बने. 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी योगी आदित्यनाथ के साथ 2 डिप्टी सीएम बनाए गए.

योगी आदित्यनाथ की कहानी 2017 से शुरू होती है. भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला. करीब 15 साल बाद बीजेपी ने सत्ता में वापसी की थी. मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह बड़ा सवाल सब के सामने था. कई नाम सामने थे. लेकिन मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ. यह फैसला भी भाजपा पार्टी का नहीं था. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदुत्व को आगे लाने के लिए इस नाम को सामने लाए थे. 6 वर्षों बाद हालात बदल गए. अब लोग योगी आदित्यनाथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी तलाशने लगे. यह बात योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जा रही है. इस कारण ही उन को दबाने का काम किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री की कुरसी संभालने के पहले योगी आदित्यनाथ 5 बार लोकसभा के सांसद चुने जा चुके थे. तब उन का प्रभाव क्षेत्र सीमित था. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ भाजपा में सब से लोकप्रिय नेताओं में नंबर दो पर हैं. पहले पार्टी में गुजरात मौडल की चर्चा होती थी, अब उत्तर प्रदेश मौडल की चर्चा होती है. योगी आदित्यनाथ 2017 में सत्ता में आए. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छा रिजल्ट दिया. भाजपा ने लोकसभा में 64 सीटें जीतीं. 2022 का विधानसभा चुनाव आया तो योगी ने दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी मेयर के चुनाव जीते.

योगी के विकास कामों की जगह पर बुलडोजर को ही उन की पहचान मान कर सीमित किया जा रहा है. देश के कानून को ताक पर रख कर अपना कानून चलाने में कुछ दिन तो अच्छा लगता है. आगे के लिए यह छवि ठीक नहीं होती है. योगी चाहते थे कि उन के काम में केंद्र का हस्तक्षेप न हो. इस के बाद कई ऐसे उदाहरण हैं जब दिल्ली और लखनऊ के बीच में टैंशन हुई है. अरविंद शर्मा गुजरात में मोदी के पसंदीदा अधिकारी थे. उन्होंने इस्तीफा दिया और उन्हें उत्तर प्रदेश में एमएलसी बनाया गया.

केंद्र की तरफ से बहुत प्रयास हुआ कि 2022 विधानसभा चुनाव के पहले अरविंद शर्मा को मंत्री बनाया जाए लेकिन योगी सरकार के मंत्रिमंडल में तब उन्हें शामिल नहीं किया जा सका. अभी वे मंत्री हैं. केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बना कर योगी के समानांतर खड़ा करने का प्रयास हुआ. बात केवल 2 मुख्यमंत्रियों की ही नहीं है.

गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्रभाई पटेल का नाम कम ही चर्चा में रहता है. उन की दिक्कत यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों ही गुजरात से आते हैं.

वैसे तो हरियाणा बड़ा प्रदेश है. दिल्ली के पास होने के कारण केंद्र सरकार के दबाव में रहता है. वहां के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं. वे 2014 से हरियाणा के 10वें और वर्तमान मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं. वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य और पूर्व आरएसएस प्रचारक हैं. एक प्रचारक के रूप में, वे आजीवन अविवाहित हैं. 1994 में बीजेपी में जाने से पहले उन्होंने 14 साल तक पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में काम किया. यह उन का दूसरा कार्यकाल है. उन की सब से बड़ी खासीयत यह है कि वे संघ के प्रचारक रहे हैं. वे मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाने लायक कोई बड़ा काम नहीं कर पाए हैं.

अब नहीं होती गुजरात मौडल की चर्चा

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री पद से तब हटाया गया जब एक साल के बाद गुजरात विधानसभा के चुनाव होने थे. विजय रूपाणी को साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को हटा कर गुजरात के सत्ता की कमान सौंपी गई थी. 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा ने विजय रूपाणी के नेतृत्व में लड़ा था. भाजपा ने यह चुनाव बड़ी मुश्किल से जीता था. इस के बाद भी विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया.

विजय रूपाणी खामोशी के साथ काम करना पसंद करते थे. 5 साल से बिना प्रचार और विवाद में आए काम किया. रूपाणी की यही ताकत उन की सियासी कमजोर कड़ी के रूप में साबित हुई. विधानसभा चुनाव के पहले विजय रूपाणी को हटा कर सत्ताविरोधी लहर को खत्म करने का प्रयास किया गया. इस का एक कारण यह भी था कि विजय रूपाणी सरकार और भाजपा के प्रदेश संगठन के बीच बेहतर तालमेल नहीं था. प्रदेश अध्यक्ष सी आर पाटिल और सीएम रूपाणी के बीच छत्तीस के आंकड़े थे. रूपाणी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं तो प्रदेश अध्यक्ष पीएम मोदी से नजदीक.

विजय रूपाणी के गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 12 सितंबर, 2021 को गांधीनगर में पार्टी विधानमंडल की बैठक में भूपेंद्र पटेल को भाजपा विधायक दल के नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया. उन्होंने 13 सितंबर, 2021 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 59 साल के भूपेंद्र पटेल पहली बार ही विधायक बने और सीधे मुख्यमंत्री हो गए. भूपेंद्रभाई पटेल ने अप्रैल 1982 में गवर्नमैंट पौलिटैक्निक, अहमदाबाद से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया है.

वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे. वे पेशे से बिल्डर हैं. वे सरदारधाम विश्व पाटीदार केंद्र के ट्रस्टी और विश्व उमिया फाउंडेशन की स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं. पटेल 1995 से 2006 तक मेमनगर नगरपालिका के सदस्य थे. वे 2008 से 2010 तक अहमदाबाद नगरनिगम (एएमसी) के स्कूल बोर्ड के उपाध्यक्ष थे.

मूल कांग्रेसी हैं भाजपा के यह मुख्यमंत्री

इन बड़े राज्यों के मुख्यमंत्रियों की कहानी से सम?ा जा सकता है कि छोटे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की हालत कैसी होगी. बहुत सारे ऐसे नाम हैं जो शायद ही कभी चर्चा में रहते हों. अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू हैं. वे अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दोरजी खांडू के बेटे हैं. पेमा खांडू कांग्रेस, अरुणाचल की पीपुल्स पार्टी में रहने के बाद दिसंबर 2016 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. खांडू बौद्ध धर्म के मानने वाले हैं. 17 जुलाई, 2016 को खांडू 36 साल की उम्र में अरुणाचल के मुख्यमंत्री बने. खांडू ने 29 मई, 2019 को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ ली. 2 बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी पेमा खांडू चर्चा में कम ही रहते हैं.

असम के हिमंता बिस्वा शर्मा भी कांग्रेस के नेता थे, बाद में भाजपा में शामिल हुए. वे अपने बयानों से चर्चा में रहते हैं. उन को कोई अलग अधिकार हासिल है, ऐसा नहीं है. 54 साल के डा. हिमंता बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. वे 2001 से 2015 तक जालुकबारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. उस वक्त वे कांग्रेस में थे. अगस्त 2015 में वे भाजपा में शामिल हुए. 2016 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वे कैबिनेट मंत्री बने. 2021 में वे असम के मुख्यमंत्री बने.

मणिपुर के 12वें मुख्यमंत्री हैं नोंगथोम्बम बीरेन सिंह. वे नेता, पूर्व फुटबौलर और पत्रकार हैं. एन बीरेन सिंह को राष्ट्र के असाधारण कार्य के लिए 2018 में चैंपियंस औफ चेंज से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा प्रदान किया गया था. 2002 में राजनीति की ओर रुख करते हुए वे डैमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपल्स पार्टी में शामिल हो गए और हिंगांग से विधानसभा चुनाव जीत गए. 2003 में पार्टी में शामिल होने के बाद उन्होंने 2007 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और युवा मामलों व खेल मंत्री के रूप में कार्य किया. 2016 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए.

एन बीरेन सिंह ने एक फुटबौल खिलाड़ी के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. घरेलू प्रतियोगिताओं में अपनी टीम के लिए खेलते हुए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में भरती हुए. उन्होंने बीएसएफ से इस्तीफा दे कर पत्रकारिता शुरू की. स्थानीय दैनिक समाचारपत्र ‘नाहरोलगी थोडांग’ शुरू किया और 2001 तक संपादक के रूप में काम किया. 15 मार्च, 2017 को मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

त्रिपुरा के 11वें मुख्यमंत्री माणिक साहा 2022 से त्रिपुरा विधानसभा में टाउन बोरडोवली विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. 2022 से त्रिपुरा से राज्यसभा के पूर्व सदस्य और 2022 में मुख्यमंत्री बनने तक और 2020 से 2022 तक भारतीय जनता पार्टी, त्रिपुरा के अध्यक्ष बने. वे 2016 से भारतीय जनता पार्टी से पहले कांग्रेस के सदस्य रहे हैं. त्रिपुरा के मुख्यमंत्री राज्य में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 14 मई, 2022 को बिप्लव कुमार देब ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद विधायक दल की बैठक में बीजेपी ने साहा के नाम को उत्तराधिकारी घोषित किया. उन्होंने 15 मई, 2022 को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

साहा ने ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी की डिग्री में बीडीएस और एमडीएस प्राप्त किया. उन्होंने डैंटल कालेज, पटना, बिहार और किंग जौर्ज मैडिकल कालेज, लखनऊ से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. साहा ने स्वप्ना साहा से शादी की है, जिन से उन की 2 बेटियां हैं. वे त्रिपुरा क्रिकेट संघ के अध्यक्ष भी हैं. मुख्यधारा की राजनीति में आने से पहले, साहा हपनिया स्थित त्रिपुरा मैडिकल कालेज में पढ़ाते थे.

छोटे राज्यों के अनजान मुख्यमंत्री

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत सैंकलिम विधानसभा क्षेत्र से एमएलए हैं. वे पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं. प्रमोद सावंत गोवा के 13वें मुख्यमंत्री हैं. सावंत ने अपने चुनावी कैरियर की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पीले निर्वाचन क्षेत्र से 2008 का उपचुनाव लड़ कर की, जिस में उन्हें हार मिली. उन्होंने सनकेलिम निर्वाचन क्षेत्र से 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 19 मार्च, 2019 को गोवा के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 2022 गोवा विधानसभा चुनाव के बाद, बीजेपी विधायक दल की बैठक में प्रमोद सावंत को ही गोवा के नए मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया है.

उत्तराखंड में 2017 से 2022 के बीच 3 मुख्यमंत्री बदले. सब से पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा कर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया. इस के बाद तीरथ सिंह रावत को हटा कर 2021 में पुष्कर सिंह धामी को 10वें मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. वे ऐसे मुख्यमंत्री हैं कि जब 2022 का विधानसभा चुनाव आया तो वे अपनी ही सीट हार गए. इस के बाद भी भाजपा हाईकमान ने उन को मुख्यमंत्री बनाए रखा. इस के बाद वे उपचुनाव लड़े और चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री पद पर कायम रह सके. 3 जून, 2022 को उन्होंने चंपावत विधानसभा उपचुनाव जीता.

पुष्कर सिंह धामी ने मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक किया और एलएलबी की. उन्होंने भगत सिंह कोश्यारी के सलाहकार के रूप में भी काम किया है. धामी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1990 में भारतीय जनता पार्टी की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की. 2008 तक भारतीय जनता युवा मोरचा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. पुष्कर सिंह धामी सब से कम उम्र के मुख्यमंत्री बने. सब से जूनियर होने के कारण उन को मुख्यमंत्री बनाया गया था, जिस से कोई विवाद न हो सके.

निखर नहीं पा रही भाजपा की सैकंड लीडरशिप

प्रदेश स्तर के नेताओं को प्रोत्साहित न करने के कारण पार्टी प्रदेशों में अपना जनाधार नहीं बना पा रही है. इसी बात की चिंता संघ के मुखपत्र और्गनाइजर में व्यक्त की गई है. कर्नाटक चुनाव में हार का सब से बड़ा कारण यह है कि वहां भाजपा के स्थानीय नेता जनाधार नहीं बना पाए थे. अभी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव हैं. भाजपा के पास यहां भी मजबूत नेता नहीं हैं. वजह यह है कि 2014 के बाद से भाजपा के सभी नेता मोदी के चंगुल में हैं. वे पूरी तरह से मोदी पर आश्रित हैं. ऐसे में भाजपा की सैकंड लीडरशिप के पास अपने विचार नहीं हैं.

भाजपा ऐसे नेताओं को प्रमुखता देती है जो शोपीस जैसे हैं. 10 मुख्यमंत्रियों के नाम देखिए, बहुत सारे नाम ऐसे हैं जिन की खुद भाजपा की राजनीति में कोई बड़ी पहचान नहीं है. कई मुख्यमंत्री कांग्रेस से निकल कर आए हैं. ऐसे में संघ की चिंता जायज है. पर इस की जिम्मेदारी मोदी की है जो मुख्यमंत्रियों को अपने चंगुल में रखना चाहते हैं. केंद्र में मजबूत पकड़ रखने वाला नेता मजबूत क्षेत्रीय नेता बनाना नहीं चाहता है. इस से पार्टी संगठन को नुकसान होता है.

संघ का कहना है कि केवल मोदी और हिंदुत्व के नाम पर चुनाव जीतना आसान नहीं है. संघ ने यह तब कहा जब उस ने 2014 से 2023 तक के काल में भाजपा की हालत को देख लिया है. पार्टी को 2 नेताओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने अगर अपना जनाधार बनाया होता तो भाजपा की हार न होती. देश में भाजपा के 10 ही मुख्यमंत्री हैं. इस के बाद भी पार्टी ऐसे दिखाती है जैसे पूरा देश उस के कब्जे में हो.

इस से पहले हिमाचल में भाजपा के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंत्रिमंडल के 10 में से 8 मंत्री चुनाव हार गए. इस तरह की हार भाजपा और संघ के लिए चिंता का कारण है. कारण भाजपा का हाईकमान और उस के कार्य करने की शैली है, जो नेताओं ही नहीं, मुख्यमंत्री तक को अपने चंगुल में रखना चाहता है.

दुविधा : क्या संगीता शादी के लिए तैयार थी?

संगीता को लगा कि उस के विचार सौमिल के विचारों से मेल नहीं खाते. उसे घूमने फिरने, मस्ती करने, डांस करने, पार्टियों में जाना तथा फैशनेबल कपड़े पहनना पसंद है जबकि सौमिल को शांत वातावरण, एकांत, साधारण रहनसहन एवं पुस्तकें पढ़ना पसंद है. इसीलिए संगीता को ही अंतत: फैसला करना पड़ा. देवकुमार सुबह से ही काफी खुश नजर आ रहे थे. उन की बेटी संगीता को देखने के लिए लड़के वाले आने वाले थे. घर की पूरी साफसफाई तो उन्होंने कल ही कर डाली थी. फ्रूट्स, ड्राइफ्रूट्स तथा अच्छी क्वालिटी की मिठाई आज ले आए थे. लड़का रेलवे में इंजीनियर है, अच्छी तनख्वाह पाता है. लड़के के साथ उस के भाईभाभी व मातापिता भी आ रहे थे. वैसे, लड़के के मातापिता ने तो संगीता को पहले ही देख लिया था और पसंद भी कर लिया था. पसंद आती भी क्यों न? संगीता सुंदर तो है ही, बहुत व्यवहारकुशल भी है. उस ने भी इंजीनियरिंग की है तथा बैंक में काम कर रही है.

देवकुमार सरकारी मुलाजिम थे और उन की पत्नी अंजना सरकारी विद्यालय में शिक्षिका. इकलौती बेटी होने से उन दोनों की इच्छा थी कि जानेपहचाने परिवार में रिश्ता हो जाए, तो बहुत अच्छा होगा. लड़के वाले पास ही के शहर के थे और उन के दूर के रिश्तेदार, जिन के माध्यम से शादी की बात शुरू हुई थी, देवकुमारजी के भी दूर के रिश्ते में लगते थे. देवकुमार ने अपनी बहन व बहनोई को भी बुला लिया था ताकि उन की राय भी मिल सके. ठीक समय पर घर के सामने एक कार आ कर रुकी. देवकुमार और उन के बहनोई ने दौड़ कर उन का स्वागत किया. ड्राइंगरूम में आ कर सभी सोफे पर बैठ गए. लड़का थोड़ा दुबला लगा लेकिन स्मार्ट, चैक वाली हाफशर्ट तथा जींस पहने हुए, छोटी फ्रैंचकट दाढ़ी. बड़े भाई का एक छोटा सा बच्चा भी था, वे उसे खिलाने में ही व्यस्त रहे. लड़के के पिता बैंक मैनेजर थे.

उन्हें सेवानिवृत्त होने में एक वर्ष बचा था. काफी बातूनी लगे. बच्चों के जन्म से ले कर उन की पढ़ाई और फिर नौकरी तक की बातें बता डालीं. संगीता भी इसी बीच आ चुकी थी. लड़के की मां व भाभी उस से पूछताछ करती रहीं. लड़के की मां ने सु झाव दिया कि एक अलग कमरे में सौमिल और संगीता को बैठा दें ताकि वे एकदूसरे को सम झ सकें. संगीता की मां दोनों को बगल के कमरे में छोड़ कर आईं. इधर नाश्ते के साथसाथ मैनेजर साहब की बातों में पता ही न चला कि कब एक घंटा बीत गया. तब तक संगीता और सौमिल भी वापस आ चुके थे. मैनेजर साहब और उन का परिवार आवभगत से संतुष्ट नजर आए. चलते समय देवकुमार के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘हम लोगों को दोतीन दिनों का वक्त दीजिए ताकि घर में सब बैठ कर चर्चा कर सकें और आप को निर्णय बता सकें.’’

उन्हें आत्मीयता से विदा कर देवकुमार का परिवार फिर ड्राइंगरूम में बैठ कर सौमिल और उस के परिवार का विश्लेषण करने लगे. सभी की राय एकमत थी कि परिवार अच्छा व संभ्रांत है. लड़का थोड़ा दुबला है लेकिन सुंदर और स्मार्ट है. उस की सोच व विचार कैसे हैं, यह तो संगीता ही बता पाएगी कि उस से क्या बातें हुईं. संगीता ने अपनी मां को जो बताया उसे लगा कि उस के विचार सौमिल के विचारों से मेल नहीं खाते. संगीता को घूमनेफिरने, मस्ती करने, डांस करने, पार्टियों में जाना तथा फैशनेबल कपड़े पहनना पसंद है. सौमिल को शांत वातावरण, एकांत, साधारण रहनसहन एवं पुस्तकें पढ़ना पसंद है. लड़के की मां को ऐसी बहू चाहिए जो अच्छा खाना बनाना जानती हो, गृहस्थी के कार्यों में कुशल हो. उन्हें बहू से नौकरी नहीं करानी. उन्होंने संगीता से कम से कम 4-5 बार पूछा कि क्या वह खाना बना लेती है? क्याक्या बना लेती है? लड़के के विचार संगीता को पसंद नहीं आए, यह सुन कर देवकुमार चिंता में पड़ गए.

अभी तक वे बहुत खुश थे कि बिना इधरउधर भटके अच्छा घर तथा अच्छा वर मिल रहा है. थोड़ी देर के लिए शांति छा गई, फिर अंजना ने कहा कि अब यदि उन का फोन आता है तो उन्हें क्या जवाब देना है? सभी ने निर्णय संगीता पर ही छोड़ने को तय किया. आखिर उसे पूरी जिंदगी निर्वाह करना है. 3 दिन बीत जाने पर भी जब कोई फोन नहीं आया तो सभी अपनेअपने अनुमान लगाने लगे. संगीता के फूफाजी बोले, ‘‘मु झे लगता है कि लड़के के बड़े भाई और भाभी को संगीता पसंद नहीं आई, वे दोनों एकदूसरे से आंखोंआंखों के इशारों से पसंद आने न आने का पूछ रहे थे. मैं ने देखा कि बड़े भाई ने नकारात्मक इशारा किया था. आप लोगों ने नोटिस किया होगा, बड़ा भाई एक शब्द भी नहीं बोला पूरे समय, अपने बच्चे को खिलाने में ही लगा रहा था.’’ संगीता की मां बोली, ‘‘हमारी लड़की के सामने तो लड़का कुछ भी नहीं. गोरे रंग और सुंदरता में तो हमारी संगीता इक्कीस ही ठहरती है.’’ संगीता हंसती हुई बोली, ‘‘हम दोनों की जिस तरह से बातें हुई हैं, वह घबरा गया होगा, कभी हामी नहीं भरेगा.’’

संगीता के उठ कर चले जाने के बाद देवकुमार बोले, ‘‘यदि उन की तरफ से रिश्ता स्वीकार नहीं होता है तो हमारी संगीता के मन पर चोट पड़ेगी. पहली बार ही उस को दिखाया है और उन के मना कर देने पर मनोवैज्ञानिक असर तो पड़ेगा ही, उसे सदमा भी लगेगा.’’ संगीता की बूआजी बोली, ‘‘देखो, 2 लोगों के एकजैसे विचार हों, यह तो संभव ही नहीं. जब 2 सगे भाईबहनों के विचार नहीं मिलते, तो ये तो दूसरे परिवार का मामला है. विवाह तो समन्वय बनाने की कला है, प्रेम और त्याग का रिश्ता है. और यह तो सदियों से होता चला आ रहा है कि लड़की को ही निभाना पड़ता है. हमारी संगीता सब कर लेगी. शांत मन से मैं कल उस से बात करूंगी.’’ देवकुमार को पूरी रात नींद नहीं आई. उन्हें संगीता की बूआजी की बातें तर्कसंगत लगीं. वे सोचने लगे कि संगीता को एडजस्ट करना ही होगा.

यदि कल शाम तक बैंक मैनेजर साहब का फोन नहीं आता है तो मैं स्वयं फोन लगा कर बात करूंगा. दूसरे दिन बुआजी ने संगीता को सम झाने की कोशिश की किंतु व्यर्थ. संगीता बोली, ‘‘बूआजी, उन्हें सिर्फ खाना बनाने वाली बाई चाहिए तो शादी क्यों कर रहे हैं? एक नौकरानी रख लें. एडजस्टमैंट एक तरफ से संभव नहीं, दोनों तरफ से होना चाहिए. यह 21वीं सदी का दौर है. जमाना बदल गया है. उन की मम्मीजी ने कम से कम दस बार यही पूछा, ‘खाना बना लेती हो, क्याक्या बना लेती हो? हमारा लड़का खाने का बहुत शौकीन है, अभी होटल का खाना खाखा कर 3-4 किलो वजन कम हो गया है उस का.’’ देवकुमार शाम को बाजार से घर पहुंचे ही थे कि मैनेजर साहब का फोन आ गया.

बड़े ही साफ शब्दों में उन्होंने पूरी बात बताई कि संगीता सभी को अच्छी लगी है. सौमिल का कहना है कि उन दोनों की सोच और विचार मेल नहीं खाते हैं, फिर भी यदि संगीता को एडजस्ट करने में कोई दिक्कत न हो तो उसे कोई आपत्ति नहीं है. ‘‘आप सब सोचसम झ कर जो भी फैसला लें, मु झे 6-7 दिनों में बता दीजिएगा,’’ मैनेजर साहब ने बड़ी विनम्रता से अपनी बात समाप्त की. अब गेंद देवकुमार के पाले में आ गई थी. कल रात कैसेकैसे खयाल आते रहे थे. बेटी के मन पर सदमे का सोचसोच कर परेशान थे. मैनेजर साहब कितने सुल झे हुए और स्पष्टवादी हैं. संगीता को सम झना होगा. एक अच्छी और स्ट्रेट फौरवर्ड फैमिली है. रात में खाना खाते समय मन में एक ही बात घूमफिर कर बारबार आ रही थी कि कैसे संगीता को अपने मन की बात सम झाऊं. मैं ने और अंजना ने जो चाहा था, सब मिल रहा है.

लड़का अच्छा पढ़ालिखा, अच्छी नौकरी वाला, सुंदर और स्मार्ट है. जानापहचाना परिवार है. और सब से बड़ी बात, पास के शहर में रहेगी तो कभी भी बुला लो या जा कर मिल आओ. वे बारबार संगीता को देखते, उस के मन में क्या चल रहा होगा, फिर सोचते, नहीं अपने स्वार्थ के लिए उस की इच्छा पर अपनी इच्छा नहीं लाद सकते. खाने के बाद सब ड्राइंगरूम में बैठे. देवकुमार ने मैनेजर साहब के जवाब से संगीता को अवगत कराते हुए कहा, ‘‘बेटे, अब हम लोग बड़ी दुविधा में हैं, सबकुछ हम लोगों के मनमाफिक है पर अंतिम निर्णय तो तुम्हारी इच्छा से ही होगा. तुम चाहो तो सौमिल से मोबाइल पर और बात कर सकती हो.’’ संगीता पापा से कहना चाहती थी कि आज 4 दिन हो गए, यदि सचमुच मैं पसंद हूं उन्हें तो क्या सौमिल को नहीं चाहिए था कि वह मु झ से बात करता? इस में भी उस का ईगो है? मोबाइल पर बात करने की शुरुआत करने में भी मु झे ही एडजस्ट करना है? लेकिन उस ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप उठ कर अपने कमरे में चली गई. देवकुमार चुपचाप उसे जाते देखते रहे.

मैं अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप करना चाहती हूं, पर वो नहीं चाहता, अब समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 24 वर्ष है, एक क्लीनिक में रिसैप्शनिस्ट हूं. मेरी नौकरी का मेरी लवलाइफ से कोई लेनदेना नहीं है लेकिन मैं ज्यादा समय तक बैठी ही रहती हूं यानी लगभग फ्री ही रहती हूं. मेरा बौयफ्रैंड बैंक में नौकरी करता है और वहीं, बिजी रहता है. वह मुझसे मिलने के लिए हमेशा मना कर देता था. मैंने हफ्तों तक उसे मिलने के लिए नहीं बुलाया और न ही उस से मुझे टाइम देने को कहा. अब कुछ दिनों पहले ही मैं ने उस से कह दिया कि मुझे ब्रेकअप करना है तो वह इस के लिए मना कर रहा है. सुबहशाम मैसेज कर के परेशान कर रहा है. क्या करूं, समझ नहीं आ रहा.

जवाब

अगर आप सच में इस रिलेशनशिप में नहीं रहना चाहतीं और मूवऔन कर रही हैं तो ऐसे में इस रिश्ते के बारे में सोचने से कुछ होने वाला नहीं है. जब उसे आप को समय देना था, इंपोर्टेंस फील कराना था तब तो उस ने कराया नहीं और अब शायद पछता रहा है. आप एकदो बार अच्छे से सोचें. अपना मन कड़ा करें और उस से साफ कह दें कि इस रिलेशनशिप में अब कुछ नहीं बचा है. आप दोनों को एकदो दिन बुरा लगेगा, दुख होगा लेकिन रोजरोज का रोनाधोना तो कम से कम नहीं होगा. हां, अगर आप दोनों एकदूसरे से बेहद प्यार करते हैं और आप का बौयफ्रैंड अपनी आदतें थोड़ी बदलने के लिए तैयार है तो आप उसे दूसरा मौका देने के बारे में सोच सकती हैं.

ये भी पढ़ें

लड़कों में क्या खोजती हैं लड़कियां

लड़कों की कौन सी अदाएं लड़कियों को अपना दीवाना बना सकती हैं, जान कर हैरान रह जाएंगे आप…

1. बौडी लैंग्वेज

कोई भी लड़की इस बात पर जरूर ध्यान देती है कि आप खड़े कैसे होते हैं, आप का उठनाबैठना कैसा है, दूसरों से बातचीत करते वक्त आप के बोलने की टोन कैसी होती है, आप की चाल कैसी है, आप सीधा, कंधों को उठा कर, कौन्फिडैंटली चलते हैं या नहीं, दूसरों के प्रति आप का व्यवहार कैसा है वगैरह. इसलिए किसी लड़की से मिलने जाना हो तो अपनी बौडी लैंग्वेज पर जरूर ध्यान दें. लड़कियों को वे लड़के भी बिलकुल पसंद नहीं आते जिन के शरीर से दुर्गंध आती हो.

2. लंबे पैर

‘यूनिवर्सिटी औफ कैंब्रिज’ में हुई एक स्टडी में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि महिलाओं और लड़कियों को पुरुषों के लंबे पैर आकर्षित करते हैं. इस औनलाइन सर्वे में पाया गया कि अमेरिका की 800 महिलाओं ने ऐसी मेल फिगर्स को तरजीह दी जिन के पैर औसत से थोड़े ज्यादा लंबे थे.

3. सफाई और व्यवस्थित जीवनशैली

लड़कियों की नजरों में आने के लिए पर्सनल हाइजीन का खास खयाल रखना जरूरी है. लड़कियों की नजर सब से पहले लड़कों के बालों और दाढ़ी की ओर जाती है. उन्हें लड़कों के उलझे, बेतरतीब और गंदे बाल बिलकुल पसंद नहीं होते. अगर वे रोजाना सेव नहीं करते, कोई हेयरस्टाइल मैंटेन नहीं रखते तो भी लड़कियों की नजरों में उन का आकर्षण घट जाता है. यही नहीं पहली बार किसी लड़की से मिलने जा रहे हैं तो अपने नाखूनों पर भी नजर डालना न भूलें. लड़कियों को गंदे नाखून बिलकुल पसंद नहीं आते. वे यह भी जरूर देखती हैं कि आप ने जो कपड़े पहने हैं वे साफ हैं या नहीं, कपड़े प्रैस किए हैं या नहीं.

4. रियल पर्सनैलिटी

कुछ लड़कों की आदत होती है कि बातबेबात लड़कियों के आगे अपनी शेखी बघारने लगते हैं. अपना नौलेज, इनकम या लुक से संबंधित बातें बढ़ाचढ़ा कर बोलते हैं ताकि लड़कियां इंप्रैस हों. मगर होता इस का उलटा है. बनावटी लड़के कभी लड़कियों को पसंद नहीं आते. उन्हें हर समय रियल रहने वाले लड़के ही पसंद आते हैं.

5. सपाट पेट फिट शरीर

सांइटिफिक जनरल सैक्सियोलौजी में प्रकाशित एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि लड़कियां लड़कों के बाइसैप्स से पहले उन के पेट पर नजर डालती हैं. अगर पेट निकला हुआ नहीं है, आप फिट और स्मार्ट हैं तो लड़कियां आप के साथ जुड़ना चाहेंगी. वजह साफ है जो इंसान अपने शरीर की तंदुरुस्ती का खयाल नहीं रख सकता वह रिश्तों को कितना संभाल पाएगा. बढ़ा पेट कहीं न कहीं आप के आलसी स्वभाव, ढीले रवैए और अधिक खाने की आदत का परिचायक होता है. इसलिए किसी खास को पाना चाहते हैं तो सब से पहले अपने पेट पर काम करना शुरू करें.

6. पीछे पड़ने वाला न हो

लड़कियों को हर वक्त पीछे पड़े रहने वाले लड़कों के बजाय थोड़े रिजर्व और हलके ऐटिट्यूट वाले लड़के पसंद आते हैं. जो लड़के बारबार अप्रोच करने और ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते रहते हैं उन्हें ज्यादातर लड़कियां हलके में लेने लगती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप धैर्य रखना सीखें वरना बनती बात बिगड़ सकती है. किसी भी बात को ले कर अपनी पार्टनर के साथ जबरदस्ती न करें, उसे तनाव में न आने दें.

7. सम्मान की चाह

हर लड़की चाहती है कि उस का प्रेमी या होने वाला जीवनसाथी उस की परवाह करे, उसे इज्जत दे, उस के घर वालों के साथ प्यार से पेश आए. वह जब भी आप की आंखों में देखे तो उसे उन में अपने लिए इज्जत महसूस हो. ऐसे में उसे एहसास होता है कि आप उसे दिल से प्यार करते हैं और यही आप को उस की नजरों में खास बनाता है.

8. मैच्योरिटी

लड़कियां सदैव समझदार और मैच्योर व्यवहार वाले लड़कों को ही चुनती हैं. छिछोरी या बचकानी हरकतों वालों से दूर भागती हैं. इसलिए जरूरी है कि आप अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखें. बहुत ज्यादा बोलने वाले लड़के भी लड़कियों को पसंद नहीं आते. हर समय जल्दी में रहने वाले और बिना सोचेसमझे फैसले लेने वाले लड़के लड़कियों को पसंद नहीं आते. छोटीछोटी बात पर अपना आपा खो देने वाले लड़कों से भी लड़कियां दूरी बढ़ाती हैं, क्योंकि ऐसे लड़कों के साथ कभी रिश्ता लंबा नहीं खिंच पाता. लड़कियां उन लड़कों को पसंद करती हैं, जिन पर वे आंख मूंद कर भरोसा कर सकें.

9. सैंस औफ ह्यूमर

लड़कियों को वे लड़के ज्यादा पसंद आते हैं, जिन का सैंस औफ ह्यूमर अच्छा होता है. अगर आप बोर किस्म के इंसान हैं तो लड़कियां आप से दूर भागेंगी. इसलिए अपने स्वभाव को ऐसा बनाने का प्रयास करें कि आप गंभीर माहौल को भी हलकाफुलका कर पाने में समर्थ हों.

10. दोस्ताना व्यवहार

अकड़ू, घमंडी लड़के कभी लड़कियों की फैवरिट लिस्ट में नहीं होते. वे वैसे लड़कों को ही पसंद करती हैं जो उन से फ्रैंडली बिहेवियर करते हैं और जिन के साथ वे कंफर्टेबल फील करती हैं. संकोची या बहुत कम बात करने वाले लड़कों से भी वे दूर भागती हैं. सकारात्मक सोच और अच्छे सैंस औफ ह्यूमर वाले लड़के लड़कियों की पहली पसंद होते हैं. तनावभरे माहौल को भी खुशनुमा बना देने की आदत रखने वाले लड़के लड़कियां को बहुत पसंद आते हैं.

11. बात करने का सलीका

आप के बात करने का तरीका कहीं न कहीं आप के व्यक्तित्व की पहचान होती है. आप दूसरों से कितने सलीके और कायदे से बात करते हैं उस आधार पर लड़कियां आप को परखती हैं. बातबात पर गालियां देने, लड़नेझगड़ने वाले लड़कों से लड़कियां दूर भागती हैं.

12. प्यार जाहिर करने की अदा

यदि आप किसी लड़की को प्यार करते हैं और उस की तरफ से भी स्वीकृति है तो आप को उसे स्पैशल फील कराने का प्रयासकरना होगा. अपनी रिलेशनशिप को मजबूत बनाने और उस लड़की के दिल में बने रहने के लिए अपने प्यार का एहसास कराते रहें. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप पूरी दुनिया में इस बात का ढिंढोरा पीटें. लड़कियां आप का समय चाहती हैं. आप साथ हों तो पूरी दुनिया से उन्हें कोई वास्ता नहीं होता. लड़की को दीवानों की तरह प्यार करें, फिर देखें कैसे वह सिर्फ आप की बन कर रहती हैं.

Raksha Bandhan : पूरे भारत में मशहूर है बंगाली रसगुल्ला, जानें विधि

रसगुल्ला बंगाली मिठाई है. यह छेने और चीनी से तैयार होती है. अच्छे रसगुल्ले की पहचान यह होती है कि वे एकदम मुलायम होते हैं. रसगुल्ले सफेद और हलका पीलापन लिए बनाए जाते हैं. इन का साइज भी अलगअलग हो सकता है. छोटेछोटे साइज वाले रसगुल्ले ज्यादा पसंद किए जाते हैं.

अब डब्बाबंद रसगुल्ले ज्यादा बिकते हैं, जिन को महीनों महफूज रखा जा सकता है. मिठाई के बाजार को देखें तो रसगुल्ले सब से खास जगह रखते हैं. रसगुल्ला भले ही बंगाली मिठाई हो, पर इसे पूरे देश के लोग स्वाद ले कर खाते हैं. यही वजह है कि लगभग हर शहर में बंगाली मिठाइयों की दुकानें मिल जाती हैं.

खानपान की चीजों में लोग इस बात का पूरा खयाल रखते हैं कि उन को सफाई से बनाया जाए और उन्हें सही तरह से रखा जाए. जिस दुकान में गंदगी होती है, वहां लोग कम जाते हैं. रसगुल्ला निकालने के लिए भी हाथ के बजाय चम्मच का इस्तेमाल करना चाहिए.

कैसे तैयार करें रसगुल्ला

  • रसगुल्ला बनाने के लिए 150 ग्राम छेना लें.
  • इस के बाद किसी साफ बरतन में 2 कप पानी में छेना डाल कर करीब 10 मिनट तक उबालें.
  • इस के बाद इसे ठंडा होने दें. फिर छेना बाहर निकाल लें. छेना दोनों हाथों में ले कर मसल लें.
  • छेना तब तक मसलें, जब तक वह पूरी तरह चिकना न हो जाए. छेना जितना चिकना होगा, रसगुल्ले उतने ही मुलायम बनेंगे.
  • इस छेने से 10 गोलगोल रसगुल्ले तैयार करें. ध्यान रखें कि रसगुल्ले एक ही साइज के हों. साइज अलगअलग होगा तो ये देखने में अच्छे नहीं लगेंगे.
  • रसगुल्ले भिगोने के लिए चाशनी तैयार करनी होगी. चाशनी तैयार करने के लिए कड़ाही में 2 कप चीनी डाल कर उस में 4 कप पानी डालें और मध्यम आंच पर उबालें.
  • जब यह मिश्रण थोड़ा गाढ़ा हो जाए तो उसे उंगली में लगा कर देखें. उस में तार बनने लगें तो उसे आंच से उतार लें. उस में 2 छोटे चम्मच गुलाबजल और इलायची पाउडर खुशबू के लिए डालें.
  • चाशनी में रसगुल्ले डालें और 20 मिनट तक उबालें. हर 5 मिनट उबालने के बाद उस में थोड़ाथोड़ा पानी डालते रहें. पानी नहीं डालेंगे तो चाशनी कम हो जाएगी और रसगुल्ले जल भी सकते हैं.
  • तैयार रसगुल्लों को कुछ देर ठंडा होने के लिए रख दें. हलके मुलायम रसगुल्ले चाशनी में ऊपर तक आ जाते हैं. जो रसगुल्ले ठीक नहीं होते वे नीचे बैठ जाते हैं.

‘छेने की मिठाई में रसगुल्ले सब से खास होते हैं. इन्हें बनाने में समय का सब से ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. छेना अगर सही नहीं बनता तो रसगुल्ले भी सही नहीं बनते हैं. छेना बनाने के लिए दूध को फाड़ना पड़ता है. अगर घर पर छेने के रसगुल्ले बनाने हों, तो छेना बाजार से खरीदा जा सकता है.’

हारें नहीं हराएं डिप्रैशन को

डिप्रैशन की पकड़ में व्यक्ति कभी न कभी आता ही है और व्यक्ति का मन उदास व बुझाबुझा हो जाता है. कई बार डिप्रैशन इतना हावी हो जाता है कि अस्तित्व शून्य लगने लगता है और तब व्यक्ति खुद को कमतर स्वीकारते हुए दया का पात्र मानने लगता है. संसार के दोतिहाई लोग डिप्रैशन की गिरफ्त में हैं. कारण कुछ भी हो सकते हैं, जैसे आज की प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाना, परिवार की बेरुखी या साथ छूटना, आधुनिक जीवनशैली के पीछे दौड़तेदौड़ते थक जाना आदि.

डिप्रैशन से बचें ऐसे

  1. ऐसे लोगों से मित्रता न करें जो आप को कमतर दिखाते हैं या आप में हीनता की भावना उड़ेलते हैं.
  2. उदासी, निराशा की भावना पैदा होने की आशंका होते ही आप किसी अच्छे मित्र, पड़ोसी से बातें करिए.
  3. फोन पर बातें करिए, मनपसंद म्यूजिक सुनिए, कोई वाद्ययंत्र बजाइए या बाहर घूमने निकल जाइए. यानी अपने मन और विचारों को दूसरी राह पर ले जाइए ताकि तनाव की स्थिति दूर हो जाए.
  4. खुद को किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त कीजिए. किसी की सहायता कीजिए. ऐसे कार्यों से आत्मविश्वास बढ़ता है व आत्मसंतुष्टि मिलती है और ऐसी भावनाएं, तनाव को छूमंतर कर देती हैं.
  5. खुद पर तरस खा कर दुखी न हों. अगर कोई कार्य गलत हो गया है तो पछताएं नहीं. उसे भूल जाएं. घुड़सवारी करने वाला ही घोड़े से गिरता है लेकिन फिर उठ कर अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाता है. आप जीवन को एक सीढ़ी मानें. इस सीढ़ी पर चढ़तेचढ़ते कभी फिसल भी जाएं तो दोबारा संभल कर, आंखें खोल कर पूरी ताकत के साथ फिर चढि़ए.
  6. जिंदगी में सबकुछ नहीं मिलता. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की छोटीछोटी उपलब्धियों पर खुश होना, आगे बढ़ने का उत्साह देता है. आप खाली आधा गिलास न देख कर आधा भरा हुआ गिलास देखें.
  7. असंतुष्टि की भावना कुछ समय तक घेरती है. यह स्थायी तभी होती है जब असफलता पर बारबार रोया जाए. इस स्थिति से बचिए. इस के लिए कार्यप्रणाली में, विचारों में परिवर्तन लाइए, नए तरीके, नई तकनीक अपनाइए. हर हाल में डिप्रैशन से दूर रहने के मार्ग ढूंढ़ते रहिए.
  8. अपने भूतकाल की असफलताओं तथा दुखद अनुभवों को मन या विचारों पर दस्तक न देने दें. भविष्य की ओर दृष्टि रख, वर्तमान पर जमा कर कदम रखें. लक्ष्य तक पहुंचने की इच्छा ही उत्साह जागृत करेगी. ऐसे में नकारात्मक विचारों को आने का न तो वक्त मिलेगा और न स्थान.
  9. हर दिन हंसने के लिए बच्चों के साथ कुछ समय व्यतीत करें. हंसी के प्रोग्राम जैसे लाफ्टर चैनल देखें, चुटकुले पढ़ें व बच्चों को सुनाएं, बच्चों का खुश होना आप की खुशी को दोगुना कर देगा.
  10. हर दिन ऐक्सरसाइज करें. इस से खुशी देने वाले हार्मोंस उत्पन्न होते हैं जैसे सेरोटोनिन आदि. इस के द्वारा गुडफीलिंग तथा विचारों को सकारात्मकता मिलती है. ऐक्सरसाइज में आप 15-20 मिनट की ब्रिस्क वाक द्वारा इस हार्मोंस की उत्पत्ति पा सकते हैं.
  11. बैलेंस्ड डाइट लें, जंक फूड से बचें ताकि एनर्जी लेवल ऊंचा रहे.
  12. अपने खास मित्रों व परिवारजनों से तनाव को बांटिए ताकि कोई नई राह निकले और डिप्रैशन से बाहर आ सकें.
  13. फालतू की भावनाओं की गठरी को सिर पर न लादिए. माफ करना शुरू कर दीजिए. नकारात्मक घटनाओं व विचारों को भूलना सीखिए.
  14. नजरिया बदलिए, पुरानी बातों पर ही मत चिपके रहिए. रुका पानी सड़ने लगता है इसलिए चलिए और सोचिए कि कुछ भी खराब नहीं है.

खुश रहने के लिए कुछ मजेदार बातें कीजिए. मजेदार काम कीजिए.

पर्यावरण को सुधारने में थोड़ा समय व्यतीत कीजिए. पार्क में जा कर सुबह की हवा लीजिए, पक्षियों का कलरव सुनिए. दरअसल, मजा तनाव में कमी ला देता है और तनाव, मजे को कम करता है. छोटेछोटे तनावों के कारणों को नजरअंदाज करिए और जो छोटीछोटी खुशियों के पल व सफलताएं सामने हैं उन्हें पूरे दिल से अपनाइए.

बड़ी सफलता या फिर बड़ी खुशी न मिलने से कुढि़ए मत. आप के अपने विचार, अपना आत्मविश्वास ही तनाव से बचाने में सहायक होता है. तनावों का समूह ही डिप्रैशन का जनक है, इसलिए खुद प्रयास करें और हर संभव खुश रहें. तब देखिए जीवन कितना खूबसूरत लगने लगेगा.

कमीशन: क्या दीया अपनी मम्मी की इच्छा पूरी कर सकी?

story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें