Download App

Chandrayaan 3 की सफलता के बाद प्रकाश राज का बदला सुर, पहले उड़ाया था मजाक

Prakash Raj On Chandrayaan 3 Success : 23 अगस्त 2023, ये वो ही तारीख है जिस दिन भारत ने इतिहास रच दिया. बीते दिन 6:04 मिनट पर चांद पर चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3) ने सॉफ्ट लैंडिग कर ली है, जिसका जश्न पूरा भारत मना रहा है. आम जनता से लेकर हर कोई इस ऐतिहासिक मौके पर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दे रहे हैं.

इसी कड़ी में साउथ एक्टर प्रकाश राज (Prakash Raj) ने भी चंद्रयान 3 की सफलता पर इसरो को बधाई दी है. हालांकि इससे पहले उन्होंने मून मिशन पर निशाना साधा था. उन्होंने इस मिशन का मजाक उड़ाया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हुई थी. यहां तक की एक्टर के खिलाफ केस भी दर्ज करवाया गया था.

प्रकाश का न्यू ट्वीट

चंद्रमा पर ‘चंद्रयान 3’ की सॉफ्ट लैंडिग के बाद प्रकाश राज (Prakash Raj On Chandrayaan 3 Success) ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट कर लिखा, ‘भारत और लोगों के गौरव का पल है. #इसरो, #चंद्रयान3, #विक्रम_लैंडर और ऐसा करने में योगदान देने वाले सभी लोगों का धन्यवाद. यह हमारे यूनिवर्स के राज का पता लगाने और जश्न मनाने के लिए गाइड कर सकता है. #जस्ट_आस्किंग.’

एक्टर का पुराना ट्वीट

आपको बता दें कि इससे पहले एक्टर प्रकाश (Prakash Raj Tweet On Chandrayaan 3) ने ”मून मिशन” का मजाक उड़ाया था. उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से चाय वाले का एक कार्टून शेयर किया था. साथ ही लिखा था, ‘ब्रेकिंग न्यूज:- चांद से आने वाली पहली तस्वीर #विक्रम_लैंडर के द्वारा वाओ #जस्ट_आस्किंग’. हालांकि प्रकाश राज के इस ट्वीट के बाद वह यूजर्स के निशाने पर आ गए थे और उनकी खूब आलोचना की गई थी. यहां तक की कई यूजर ने तो उन्हें देश द्रोही तक का टैग दे दिया था.

Mika Singh की बिगड़ी तबीयत, हुआ करोड़ों का नुकसान

Mika Singh Health Update : सिंगर मीका सिंह बॉलीवुड में काफी लोकप्रिय हैं. उनकी भारत में तगड़ी फैन फॉलोइंग है. उन्होंने बॉलीवुड को कई एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए हैं. हालांकि पिछले कुछ समय से वह बीमार चल रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते कई दिनों से वह अपने शरीर को बिल्कुल भी आराम नहीं दे रहे थे, जिसके कारण उनकी तबीयत खराब हो गई. इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि सिंगर की खराब तबीयत के चलते उन्हें करोड़ों का नुकसान भी हुआ है.

दरअसल सिंगर मीका सिंह (Mika Singh Health Update) के गले में इंफेक्शन हो गया है. जिसकी वजह से वह कुछ समय के लिए गाना नहीं गा सकते. गाना नहीं गाने के चलते मीका कॉन्सर्ट में परफॉर्म भी नहीं कर पा रहे हैं, जिसके कारण उन्हें आर्थिक रूप से बड़ा झटका लगा है.

इस वजह से खराब हुई मीका की तबीयत

आपको बता दें कि, बॉलीवुड स्टार मीका (Mika Singh Health Update) ने खुद यह खुलासा किया है कि उनको अपनी जिंदगी में पहली बार तबीयत खराब होने के कारण इतना बड़ा नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा, ”मैंने बैक टू बैक कई शो किए थे, जिसके कारण मुझे बिल्कुल भी आराम करने का मौका नहीं मिला और अचानक से मेरी तबीयत बिगड़ गई.” सिंगर ने आगे बताया कि, ”उन्होंने आखिरी शो डलास में किया था. जहां कॉन्सर्ट के दौरान उन्हें सर्दी लग गई, जिसका असर उनके गले और आवाज पर पड़ा.”

मीका के फैंस हुए परेशान

साथ ही उन्होंने (Mika Singh Health Update) ये भी बताया कि, ‘डॉक्टर ने उन्हें कुछ दिनों तक आराम करने के लिए कहा है और ट्रैवलिंग ना करें को.’ इसके अलावा मीका सिंह ने ये भी साफ किया है कि उनके गले के इंफेक्शन की वजह उन्हें कई शो कैंसिल करने पड़े है, जिसके कारण उन्हें करोड़ों का नुकसान हुआ है. हालांकि जब ये खबर सिंगर के फैंस को पता चली को वो काफी चिंतित हो गए. सोशल मीडिया पर मीका के फैंस उनकी तबीयत ठीक होने के लिए भगवान से दुआ मांग रहे हैं.

जलता मणिपुर : औरतें नग्न, सत्ता चुप

मणिपुर से ले कर मेवात तक दंगों की आग भड़क रही है. कत्लेआम जारी है. औरतों का चीरहरण हो रहा है. लोगों के घर फूंके जा रहे हैं. कानूनव्यवस्था ध्वस्त है. प्रशासनिक ढांचे को लकवा मार चुका है. देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री मौन हैं, क्योंकि यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत पूरे देश में संघ और भाजपा का राजनीतिक प्रयोग लगता है.

सुप्रीम कोर्ट- ‘‘एक चीज तो साफ है कि 4 मई से 27 जुलाई तक मणिपुर में पुलिस का शासन नहीं था. राज्य में संवैधानिक संस्था पूरी खत्म हो गई थी.’’

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, मणिपुर हिंसा पर सुनवाई के दौरान- ‘‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को देखने के लिए एक तंत्र बनाना होगा.’’

बीते 4 महीनों से मणिपुर जल रहा है. कुकी औरतों के साथ बर्बर हिंसा और उन की नग्न परेड के वीडियो वायरल होने की बाद भारत का सिर दुनिया के सामने शर्म से झुका हुआ है. फिर भी अकड़ यह कि प्रधानमंत्री-गृहमंत्री-मुख्यमंत्री के मुंह पर ताले पड़े हुए हैं. दुनियाभर की सैर में देश की जनता का पैसा उड़ाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर की महिलाओं के जख्मों पर मरहम रखने आज तक न जा पाए. देश के गृहमंत्री हालात पर काबू पाने में अक्षम रहे. हद है कि मणिपुर जल रहा है और मुख्यमंत्री अपनी कुरसी से हिलने को तैयार नहीं. आखिरकार उच्चतम न्यायालय को महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ सख्त रुख इख्तियार करना पड़ा है. 20 जुलाई को सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट को कहना पड़ा कि अगर सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो कोर्ट उठाएगी और उस के पूर्व महिला न्यायधीशों की कमेटी गठित कर दी उस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो मणिपुर की 600 से ज्यादा प्राथमीकियों की जांचपड़ताल करेगी.

गंभीर बात यह है कि मणिपुर में यौनहिंसा की शिकार बनी 2 महिलाओं ने याचिका दायर की तो 1 अगस्त, 2023 को देश के उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई. मणिपुर का अब तक का हाल बयां करते हुए सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बैंच को बताया- ‘‘राज्य में हिंसा को ले कर अब तक कुल 6,532 एफआईआर दर्ज हुई हैं, जिन में से 11 घटनाएं महिलाओं के साथ हुई हैं.’’ इस मामले को ले कर उन के बीच  परिसंवाद का जानना जरूरी है.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़- कितनी जीरो एफआईआर हुईं?

सौलिसिटर जनरल – 11.

चीफ जस्टिस – कितनी जीरो एफआईआर कब सामान्य एफआईआर में बदलीं?

सौलिसिटर जनरल – जी, नहीं मालूम.

चीफ जस्टिस – यौनहिंसा के वीडियो पर गिरफ्तारी कब हुई?

सौलिसिटर जनरल-जी, नहीं मालूम.

चीफ जस्टिस (गुस्से में) – कुछ इक्कादुक्का मामलों को छोड़ कर किसी भी मामले में गिरफ्तारी नहीं हुई.

सौलिसिटर जनरल – जमीन पर हालात इतने खराब हैं कि जब प्रधानमंत्री को मालूम चला, तब गिरफ्तारियां शुरू हुईं.

चीफ जस्टिस – मतलब मई से जुलाई तक मणिपुर में कानून का राज नहीं था. राज्य की मशीनरी ध्वस्त हो चुकी है. 6,500 से ज्यादा एफआईआर में सिर्फ 7 गिरफ्तारियां हुई हैं?

सौलिसिटर जनरल – 7 तो उस वायरल वीडियो को ले कर हैं. 250 गिरफ्तार हैं और 12,000 एहतियाती गिरफ्तारियां की गई हैं.

अब चीफ जस्टिस औफ इंडिया अपना आपा खो बैठे. वे सौलिसिटर जनरल पर बरसते हुए बोले- ‘‘क्या उन पुलिस वालों पर कार्रवाई हुई जिन्होंने कुकी महिलाओं को भीड़ के हवाले किया था? डीजीपी ने जांच की? डीजीपी क्या कर रहे हैं?’’

सौलिसिटर जनरल का सिर झुक गया. उन के पास कोई जवाब नहीं था. शायद शर्म आ रही थी कि मणिपुर में जारी हिंसा और महिलाओं को नग्न कर के उन की परेड निकालने, उन का सामूहिक बलात्कार करने, कुकी पुरुषों और महिलाओं को जलाने और सरेआम काट कर मौत के घाट उतार देने जैसे वीभत्स व रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं, जिन को पूरी दुनिया ने देखा, उन को अंजाम देने वालों के खिलाफ पुलिस को क्या कार्रवाई करनी चाहिए, कैसे कार्रवाई करनी चाहिए, किस की क्या ड्यूटी है, कैसे काम करना चाहिए, यह कोर्ट को बताना पड़ रहा है.

चीफ जस्टिस इस बात से हैरान थे कि पीडि़ताओं और गवाहों के अब तक बयान दर्ज नहीं हुए हैं. कोर्ट ने कहा कि 3 महीने में पुलिस एफआईआर तक दर्ज नहीं कर पाई? इस से साफ है कि राज्य में कानून व्यवस्था और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. चीफ जस्टिस ने आदेश दिया कि अगली सुनवाई पर मणिपुर का डीजीपी कोर्ट में हाजिर हो और उस ने मणिपुर में औरतों के साथ हुई बर्बरता पर क्या ऐक्शन लिया है, इस से कोर्ट को अवगत कराए.

यह सब लापरवाही नहीं है, यह जानबूझ कर राज्य सरकार की नीति के अनुसार है जो धर्म के नाम पर दंगों में औरतों को निशाना बनने दे रही है.

देश के एक हिस्से में 4 महीने से हिंसा का तांडव जारी है, घरदुकानें फूंकी गईं, सैकड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया. जनजातीय औरतों को नंगा कर के सड़कों पर दौड़ाया गया, उन से सामूहिक बलात्कार हुए, उन को गाजरमूली की तरह काट कर फेंक दिया गया और केंद्र में गद्दीनशीन न ‘चौकीदार’ को कानोंकान खबर न हुई. वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों के वक्त भी उस राज्य में मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी और केंद्र की सत्ता को यह पता नहीं चला था कि गुजरात में 2,000 से ज्यादा लोग कत्ल कर दिए गए, हजारों घर जला दिए गए, सैकड़ों औरतों को बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दिया गया.

देश में मणिपुर ही नहीं, बल्कि हरियाणा के मेवात से ले कर गुरुग्राम तक में दंगों की आग भड़क रही है. मगर भाजपायी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासनिक ढांचे को लकवा मार चुका है. वे पूरी तरह मौन हैं. उन से कुछ पूछना बेकार है क्योंकि यह सब 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत आरएसएस और भाजपा का राजनीतिक प्रयोग चल रहा है. नफरत और हिंसा बोई जा रही है ताकि 2024 में इस की सत्तारूपी फसल काटी जा सके. प्रयोग का असर उस रेलवे सुरक्षा बल के जवान चेतन सिंह चौधरी के रूप में भी सामने आ चुका है जिस ने महाराष्ट्र के पालघर रेलवे स्टेशन के पास चलती ट्रेन में पहले अपने सीनियर अधिकारी को गोली मारी और उस के बाद वहां बैठे 3 अन्य यात्रियों के सीने गोलियों से छलनी कर दिए, सिर्फ इसलिए कि वे दाढ़ी उगाए मुसलमान थे. आएदिन दर्जनों मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में घट रहे हैं. मगर सत्ता चुप है ऐसे, जैसे कि कोई जानकारी ही न हो उसे.

धर्म का शिकार औरत

धर्म ने पुरुष को सिर्फ औरतों पर अत्याचार करना सिखाया है. आज से नहीं, महाभारत काल से या शायद उस से भी पहले से. भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था और धर्मराज निर्लज्ज, नपुंसक की भांति चुप बैठा तमाशा देख रहा था. मजहब कोई भी हो, हर मजहब में हिंसा, बलात्कार, कत्ल का पहला शिकार औरत है. सारी उत्तेजना, क्रोध और दबंगई औरत पर उतारी जाती है.

जरमनी में हिटलर की तानाशाही और उस की बर्बर नाजी विचारधारा ने गैस चैंबरों में 30 हजार यहूदी धर्म की औरतों को मार डाला. मारने से पहले अनेक औरतों के बदन से सारे कपड़े नोच लिए गए. उन के बाल काट दिए गए. उन की नंगी परेड निकाली गई. यह सब एक कट्टर विचारधारा के लिए हुआ जिसे धर्म ने पैदा किया.

धर्म मुसलमान पुरुषों से उन की औरतों का हलाला करवाता है. धर्म के नियमों के चलते वह अपनी बीवी को दूसरे मर्दों के सामने परोसता है कि लो, बलात्कार करो. फिर उसे अपनाता है. लज्जा नहीं आती? घृणा नहीं उपजती? कर सकता है उस औरत से प्यार जिसे उस ने खुद दूसरे मर्दों के सामने नग्न किया हो? ये तमाम गंदगी धर्म ने फैला रखी है, जिस में सिर्फ और सिर्फ औरतों को लथेड़ा जा रहा है. दंगे भड़कते हैं तो भीड़ का सब से पहला शिकार औरत बनती है. उस के कपड़े नोचे जाते हैं, उस से बलात्कार होता है, उस का कत्ल होता है. इसे धर्म के लिए कुरबान होना कहा जाता है.

आज मणिपुर जल रहा है. जल रही है उस की सैकड़ों साल पुरानी आपसी सद्भाव की नींव. जल रही है अलगअलग समुदायों के बीच हंसीखुशी साथ रहने की डोर और राख हो रहा है एक सपना कि पुराने गिलेशिकवे मिटा कर साथ रहेंगे मैतेई, कुकी और नगा समाज के लोग. आपसी भरोसा टूट चुका है. मणिपुर में कोई सुरक्षित नहीं है. कल शायद गोवा, पौंडिचेरी और दमन की बारी होगी जहां ईसाई काफी संख्या में हैं.

बहू की रक्षा के लिए भागे

60 साल के सेलेस्टीन की आंखें उस मणिपुर को याद कर के रोती हैं जब 10 साल की उम्र में वह ?ारखंड से काम की तलाश में वहां गया था. उस का कोई जानने वाला उसे वहां काम दिलाने के लिए ले गया था. मणिपुर की शांत और खूबसूरत वादियां सेलेस्टीन को इतनी भाईं कि फिर वह हमेशा के लिए मणिपुर का हो कर रह गया. मगर 50 साल बाद सेलेस्टीन को अपने 19 लोगों के परिवार जिस में कुकी जाति की एक बहू थी, की जान बचाने के लिए मणिपुर से भाग कर वापस ?ारखंड में शरण लेनी पड़ी है.

सेलेस्टीन दहशत से कांपते हुए अपने 7 साल के पोते को सीने में छिपा कर कहते हैं, ‘‘आतताइयों ने कुछ भी नहीं छोड़ा. पूरा घर जला दिया.’’ वे रोने लगते हैं. दादा को रोता देख पोता भी रो उठता है. सेलेस्टीन आगे कहते हैं, ‘‘भरोसा नहीं होता. हम 2 महीने तक रातों में सोए नहीं. मेरी बहू कुकी जाति की है. हर वक्त  हमले का डर बना हुआ था. शाम को ही औरतों और बच्चों को जंगल में छिपा देते थे और मर्द सारी रात पहरा देते थे. मणिपुर में आज कोई सुरक्षित नहीं. कब किस को मौत अपनी चपेट में ले ले, कोई नहीं जानता.’’

बात करते ही सेलेस्टीन के चेहरे पर कई भाव एकसाथ आ जाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘10 साल का था, जब मणिपुर चला गया था. गांव का ही एक आदमी काम दिलाने के लिए मणिपुर ले गया था. तब कितना सुंदर था मणिपुर. पहाड़, जंगल, नदियां और बागबगीचे सब अपने झारखंड की तरह. एक बार जो गया तो मणिपुर का हो कर रह गया. तब सब लोग साथ रहते थे. क्या मार, क्या कुकी और क्या मैतेई. सब में प्यार का संबंध था. रोटीबेटी का रिश्ता था. मेरी शादी मार समुदाय की लड़की के साथ हुई थी तो बेटे की शादी कुकी समुदाय की लड़की से हुई है. पता नहीं क्या हुआ, देवताओं की धरती अचानक राक्षसों की धरती में बदल गई? मिलजुल कर खानेकमाने वाले कैसे एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए, पता ही नहीं चला.

‘‘लगभग डेढ़ महीने पहले मैं पत्थर तोड़ने का काम कर शाम को घर आया तो पता चला कि बगल के गांव में कुकियों की बस्ती पर मैतेई समुदाय के लोगों ने हमला किया है. मेरी कुछ सम?ा में नहीं आया, पर अपने गांव में कुकी समाज के लोगों के चेहरे पर छाए डर से मैं सम?ा गया कि कुछ ठीक नहीं है. मु?ो लगा था कि एकदो दिन में सब ठीक हो जाएगा पर अगले दिन दूसरे गांव पर हमले की खबर आई. उस रात मैं ने बगल के गांव न्यूकेथलमांबी में रहने वाले अपने बेटे प्रकाश बाड़ा को फोन किया. मेरे बेटे प्रकाश ने कुकी लड़की नेंग खोलमा से प्रेमविवाह किया है. प्रकाश ने मुझे बताया कि उस के गांव में कुकियों पर हमला हुआ है और कई कुकी महिलाओं को उठा लिया गया है. उस रात सभी सहमे रहे.

दूसरे दिन गोली और बम के धमाके सुनाई देने लगे. पास के दोतीन गांवों में कुकी और मैतेई के बीच लड़ाई शुरू हो गई थी. मैं डर गया. मैं ने तुरंत प्रकाश को फोन कर बहू और पोते को मेरे पास इसलायजंग लाने को कहा. मुझे एहसास हो गया था कि अब जल्दी ही हमला हम लोगों के गांव पर भी होने वाला है क्योंकि हमारे गांव में ज्यादातर संख्या कुकियों की थी. मेरा घर भी सुरक्षित नहीं रहने वाला था. मेरे घर में कुकी बहू थी. मैं ने तय किया कि अब यहां नहीं रहना है. मणिपुर छोड़ना होगा.’’

सेलेस्टीन ने अपने गांव से 25 किलोमीटर दूर बने एक सैनिक कैंप में झारखंड के सिमडेगा जिले के एक सैनिक से मदद मांगी. उस ने उन के परिवार को किसी तरह सैनिक कैंप तक पहुंचने के लिए कहा. सेलेस्टीन ने रात 9 बजे 19 लोगों के अपने परिवार के साथ गांव छोड़ा. वे कहते हैं, ‘‘मणिपुर की पुलिस पर भरोसा नहीं था. हम सड़क छोड़ कर जंगल के रास्ते सैनिक कैंप की ओर बढ़े. नदी, पहाड़ पार करते और छिपतेछिपाते अगले दिन शाम को हम सैनिक कैंप के पास पहुंचे. सिमडेगा के सैनिक ने अपने बड़े साहब से मिलवाया. बड़े साहब को दया आ गई. उन्होंने वहां से असम जाने वाली एक राशन गाड़ी में मेरे पूरे परिवार को बैठा दिया. जब ट्रक खुला तो हमें लगा कि संकट टल गया है पर जैसे ही गाड़ी मणिपुर और असम की सीमा पर पहुंची, हमें घेर लिया गया.

घेरने वालों में मैतेई लोगों के साथ मणिपुर पुलिस के जवान भी शामिल थे. हम ने अपनी कुकी बहू को पीछे कर के उस पर बहुत सारी चादर और अन्य सामान रख दिया. ऐसा लगने लगा कि वह कोई सामान है. बहू भी सांस रोके पड़ी रही. इस के बाद उन लोगों ने हम से कई सवाल किए. फिर हमें आगे जाने दिया. असम पहुंच कर हम ने राहत की सांस ली. हम गुवाहाटी की जमीन पर उतरे. सिमडेगा में रहने वाली बेटी पुष्पा बारला ने पैसे का इंतजाम कर के भेजा तो उस पैसे से टिकट कटा कर हम लोग 20 जुलाई को सिमडेगा पहुंचे. 50 साल बाद मणिपुर से वापस झारखंड अपने छोटे भाई के पास लौटा हूं. इतने बड़े परिवार को ले कर. मगर छोटे भाई ने अपने छोटे से घर में हम 19 लोगों का बांहें खोल कर स्वागत किया. यहां हम सुरक्षित हैं. अब मणिपुर वापस नहीं जाएंगे.’’

यह अकेले सेलेस्टीन की कहानी नहीं है. ऐसी हजारों कहानियां आज मणिपुर में बिखरी पड़ी हैं. बीते 4 महीनों में मणिपुर में हिंसा चरम पर है. साढ़े छह हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज हुई हैं, मगर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की है. दरअसल मंजर को अधिक से अधिक भयावह करने के लिए पुलिस को कार्रवाई से रोका गया. कैमरों के सामने बलात्कार और हत्याएं हुई हैं, तमाम वीडियो मौजूद हैं, गवाही देने के लिए लोग मौजूद हैं, मगर 4 महीने तक पुलिस को न अपराधी दिखे, न सुबूत, न गवाह. अब सुप्रीम कोर्ट का डंडा पड़ा है तो कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं.

वह फिर घर न लौट सकी

उस ने अपनी मां को आखिरी फोनकौल 30 अप्रैल को की थी. मां से कहा था कि वह मदर्स डे पर घर आएगी. 4 दिनों बाद 4 मई को, उस 24 वर्षीया लड़की और उस की 21 वर्षीया सहेली को निशाना बनाया गया. उग्र मैतेई भीड़ ने दोनों लड़कियों के साथ बलात्कार किया और फिर दोनों को कत्ल कर दिया. दोनों के परिवार वालों ने 16 मई को सैकुल पुलिस स्टेशन में शून्य एफआईआर दर्ज कराई. मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

एंबुलैंस सहित आग के हवाले

3 जून को कांगपोकपी जिले के कागचुप चिंगखोंग गांव में असम राइफल्स के राहत शिविर पर गोलियां चलाई गईं. 7 वर्षीय तोंसिंग हंसिंग के सिर पर गोली लगी. बच्चे को अस्पताल ले जाना जरूरी था. तोंसिंग के पिता जोशुआ कुकी हैं और इम्फाल की यात्रा मैतेई क्षेत्रों से हो कर गुजरती है. तोंसिंग की मां मीना हैंगसिंग मैतेई हैं. मां के साथ पारिवारिक परिचित लिडिया भी एंबुलैंस में बैठ गईं. पुलिस को वाहन की सुरक्षा करनी थी पर शाम 6.30 बजे मैतेई भीड़ ने एंबुलैंस को घेर लिया. उन्होंने ड्राइवर व पुरुष नर्स, दोनों मैतेई को बाहर निकाला और बच्चे, उस की मां व उन की दोस्त के साथ एंबुलैंस पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. 9 दिनों बाद केस दर्ज हुआ पर पुलिस ने आज तक कुछ नहीं किया.

अंगभंग कर जला दिया

2 जुलाई को 32 वर्षीय डेविड थीक और 4 अन्य कुकी दोस्त चुड़ाचांदपुर के लंग्जा गांव की रखवाली कर रहे थे. मैतेई भीड़ के हमले की आशंका से गांव खाली हो गया था. हमला सुबह 4.30 बजे हुआ. मुठभेड़ हुई. डेविड थीक के 3 साथी ग्रामरक्षक पैदल ही भागे, जबकि एक झाडि़यों में जा छिपा. डेविड थीक को पकड़ लिया गया. उसे करीब एक घंटे तक प्रताडि़त किया गया. अंगभंग किया गया. कुछ दिनों बाद थीक का सिर बाड़ पर लटकाने का वीडियो वायरल हुआ, जिस से व्यापक आक्रोश फैला. डेविड थीक के छोटे भाई अब्राहम थीक ने एफआईआर दर्ज कराई मगर एक महीना हो गया, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

पुलिस से छीन कर मार डाला

30 अप्रैल की रात 11 बजे चुड़ाचांदपुर के 21 वर्षीय हंगलालमुआन वैफेई को जिला पुलिस ने एक फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया था, जिस में उस ने मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई बात की थी. उस के खिलाफ पुलिस ने 2 मामले दर्ज किए. जिन में से एक में उसे 3 मई को जमानत मिल गई पर उसी दिन दूसरे मामले में उसे गिरफ्तार कर लिया. उसे 4 मई को अदालत में पेश किया गया और न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश कोर्ट ने दिया. पुलिस की सुरक्षा में उसे अदालत से जेल ले जाते हुए भीड़ ने रास्ते में रोक लिया. भीड़ ने पुलिसकर्मियों से हथियार लूट लिए और हंगलालमुआन को वहीं पीटपीट कर मार डाला.

बर्बरता के किस्से पहले भी

ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता की सीढि़यां चढ़ने का खेल इस देश में कई दशकों से जारी है. सत्ता में बैठे हैवान स्त्रियों को कब्र से निकाल कर उन के बलात्कार करने का आह्वान मंचों से करते हैं. कुरसी पाने की हवस में जगहजगह दंगा करवाते हैं. औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार करते हैं. मां का गर्भ चीर कर भ्रूण निकालने और उसे त्रिशूल पर टांग कर भयावह नारे लगाने जैसी वीभत्स व बर्बर घटनाओं को कोई भूल नहीं सकता है.

कौन भूल सकता है फूलनदेवी को जिस को सवर्ण जाति के लोगों ने नंगा कर के प्रताडि़त किया था. श्रीराम ठाकुर और लाला ठाकुर ने दलित जाति की फूलन के साथ रोंगटे खड़े कर देने वाला कांड किया था. वे फूलन को नग्न अवस्था में रस्सियों से बांध कर नदी के रास्ते बेहमई गांव ले गए. श्रीराम और उस के साथियों ने मिल कर उसे पूरे गांव में नंगा घुमाया. फिर सब के सामने श्रीराम ने उस का रेप किया और उस के बाद बारीबारी से गांव के लोगों ने उस के साथ बलात्कार किया. वे फूलन को बालों से पकड़ कर खींचते और मारते रहे. श्रीराम ने फूलन को लाठियों से पीटा. फूलन को नग्न अवस्था में 2 सप्ताह से अधिक समय तक कैद कर के रखा गया. फूलन एक कोठरी में बंद थी. उस के साथ जानवरों की तरह हर रोज सामूहिक बलात्कार होता रहा. अनेकों मर्द उसे तब तक रौंदते जब तक वह बेहोश न हो जाती. जिस समय यह बर्बरता हुई, फूलन केवल 18 साल की थी.

इस कैद से किसी तरह छूटने के बाद फूलन डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई. 1981 में फूलन वापस बेहमई गांव लौटी. वहां उस ने उन 2 लोगों की पहचान की जिन्होंने उस का बलात्कार किया था. बाकी के बारे में पूछा और फिर फूलन ने गांव से 22 ठाकुरों को निकाल कर उन्हें लाइन में खड़ा कर एकसाथ गोली मार दी थी. क्या गलत किया था फूलन ने?

उस ने उस समाज को बताया था कि औरतों के साथ अन्याय करने पर औरतें इसे भगवान की देन नहीं समझतीं, अगर हिम्मत हो तो उस अन्याय का बदला ले लेती हैं.

बागपत का माया त्यागी कांड

औरत की अस्मत को तारतार करने वाली घटनाएं, उस की नंगी परेड कराने और फिर उस के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी वीभत्स अपराध की पुनरावृत्ति देश में बारबार हो रही है. औरत की स्थिति में महाभारत काल से ले कर आज तक कोई बदलाव नहीं आया है. द्रौपदी का चीरहरण भरी सभा में हुआ. यही मणिपुर में हुआ. यही हुआ 2002 में गुजरात में और यही हो रहा है उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में.

मणिपुर में कुकी औरतों के ऊपर हुए ताजा जुल्म की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना याद दिलाती है 43 साल पहले बागपत में हुए माया त्यागी कांड की. माया त्यागी नाम की सीधीसादी महिला को न सिर्फ नंगा कर के पुलिस वालों ने सड़क से थाने तक उस की परेड करवाई बल्कि थाने के अंदर 9 पुलिसकर्मियों, जिन में उन के अधिकारी भी शामिल थे, ने उस का सामूहिक बलात्कार किया. बाद में अपने अपराध को छिपाने के लिए पुलिस ने उस अनपढ़, मासूम और निर्दोष औरत को डकैत घोषित कर दिया. सत्ता में चाहे कांग्रेस रही हो या भाजपा, सत्ता से चिपके रहने के लिए देश की अस्मत से खेलने वालों के खिलाफ अगर जांच की बात हो तो राजनीति का चश्मा चढ़ा कर फायदानुकसान तोलने के बाद जांच करवाने की रवायत रही है.

43 साल पहले हुए बागपत कांड की दिल्ली प्रकाशन से प्रकाशित ‘भूभारती’ पत्रिका ने राजनेताओं की परवा न करते हुए बड़ी बेबाकी से परतदरपरत खुलासा किया था और उस जघन्य कांड को प्रमुखता से छापा था.

18 जून, 1980, दोपहर का कोई एक बजे का वक्त था. भीषण गरमी और धूप से परेशान बागपत कसबे के लोग अपनेअपने कामों में लगे थे. तभी जंगल की आग की तरह तेजी से फैली एक अफवाह लोगों के कानों तक पहुंची. अफवाह यह थी कि बागपत के सिंडिकेट बैंक को डकैतों ने लूट लिया है. जिस ने भी यह अफवाह सुनी, वह सिंडिकेट  बैंक की ओर दौड़ पड़ा. वहां बड़ा वीभत्स नजारा था. भारी भीड़ के बीच कुछ पुलिसकर्मी मय हथियारों के एक जवान नंगी औरत को खींचते हुए थाने की ओर ले जा रहे थे और बारबार आवाज लगा रहे थे- ‘यह डकैत है. इसे हम छोड़ेंगे नहीं.’ इस महिला का नाम था माया त्यागी.

पति और उस के दोस्तों को मार दिया

भीड़ उस महिला को ऐसी हालत में देख कर स्तब्ध थी. वह बेचारी अपनी इज्जत बचाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी. कई बार वह अपने गुप्त अंगों को हाथ से छिपा कर नीचे बैठने की कोशिश करती, मगर पुलिसकर्मी उसे डंडा मार कर खड़ा कर देते और आगे की ओर धकेलते. तभी महरू नाम के एक आदमी ने अपना तहमद उस औरत के ऊपर फेंका कि वह अपना तन ढक ले. मगर जालिम पुलिसकर्मियों ने अपने डंडे से उस तहमद को दूर उछाल दिया और उस औरत को बारबार डकैत कहने का राग जारी रखा.

भीड़ ने देखा कि चौक से कुछ ही दूरी पर एक सफेद रंग की एंबेसडर कार यूपीजी 6005 खड़ी थी और उस के पास ही 3 नौजवान मरे पड़े थे. उन में से एक उस महिला का पति ईश्वर त्यागी था और 2 उस के दोस्त राजेंद्र दत्त और सुरेंद्र सिंह थे.

घटना कुछ इस प्रकार है. चोपला रेलवे क्रौसिंग, बागपत से पहले सिंडिकेट बैंक की एक ब्रांच थी. वहां दोपहर एक बजे एक सफेद एंबेसडर कार यूपीजी 6005 क्रौसिंग के पास पंचर बनाने वाले की दुकान पर आ कर रुकी. ड्राइवर रोशनलाल पंचर ठीक करने लगा. इस दौरान कार में बैठे ईश्वर त्यागी और उस के 2 दोस्त राजेंद्र दत्त और सुरेंद्र सिंह उतर कर चाय की दुकान की तरफ चल दिए. ईश्वर त्यागी की पत्नी माया त्यागी कार में ही बैठी रही. तभी वहां 2 लोग आए और उन्होंने कार में बैठी माया से कुछ बदतमीजी की और खिड़की से हाथ अंदर डाल कर उस को छूने लगे. यह देख कर ईश्वर और उस के दोस्त दौड़ कर कार के पास आए और कुछ लड़ाईझगड़े के बाद दोनों युवकों को धक्का दे कर वहां से भगा दिया. लेकिन ईश्वर और उस के दोस्तों को यह नहीं मालूम था कि दोनों सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी थे और अब उन के ऊपर बड़ा खतरा आने वाला था.

जब पंचर बनाने वाले ने उन्हें बताया कि उन में से एक बागपत थाने का सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह चौहान और दूसरा वहां का कौंस्टेबल है तो ईश्वर ने वहां से जल्दी निकलने की कोशिश की. लेकिन उन की गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई. वे उतर कर धक्का लगाने लगे और इसी बीच चंद कदम दूर स्थित थाने से 10-11 पुलिस वाले बंदूक और डंडे के साथ भागते हुए आए और उन्हें घेर लिया. उन्होंने बिना कुछ बात किए ईश्वर त्यागी, राजेंद्र दत्त, सुरेंद्र सिंह को गोली मार दी. 3 दोस्त, जो हंसतेबतियाते गाजियाबाद से बागपत एक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए जा रहे थे, पुलिस की गोलियों से छलनी हो गए.

घटना का दुखद अंत यही नहीं था. ताकत के नशे में चूर सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह चौहान ने गाड़ी में डरीसहमी बैठी माया त्यागी को कार से बाहर घसीट लिया. उस ने माया के साथ सरेबाजार जोरजबरदस्ती की. उस के सारे गहने नोच लिए और फिर उसे निर्वस्त्र कर दिया और नग्न अवस्था में ही थाने तक पैदल ले गया. माया के चारों तरफ पुलिस वाले हाथों में डंडे और राइफल लिए डाकूडाकू का शोर मचाते चल रहे थे और उन के साथ चल रही थी तमाशा देखने वाली भीड़.

थाने में हुआ बलात्कार

इस मामले में अदालत में एक चश्मदीद ने गवाही दी कि थाने के अंदर भी पुलिस वालों ने माया के साथ बेरहमी के साथ बरताव किया. पुलिस माया को बड़ी देर तक थाने के अहाते में भी नंगा घुमाती रही और जनता के सामने उस का प्रदर्शन करती रही. इस के बाद थाने के अंदर बनी कोठरी में 9 पुलिसकर्मियों ने उस के साथ बलात्कार किया. कोर्ट में अपनी गवाही में माया ने उन के नाम बताए- डी पी गौड़, एम के गुप्ता, नरेंद्र सिंह चौहान, जमादार सिंह, रामगीर, काशीराम दीवान, आनंद गीर, राकेश और प्रताप.

अदालत में प्रस्तुत माया की मैडिकल रिपोर्ट में उस के शरीर पर 25 जगह गहरी चोट के निशान थे. उस के गुप्तांगों में भी डंडे से चोट की गई थी. एक महिला के साथ दरिंदगी का हर वह काम किया गया जिसे सुन कर रूह कांप उठे. सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह चौहान ने उस रोज 2 बजे थाने में जीडी इंट्री करते हुए पूरी घटना को पुलिस एनकाउंटर लिखा. उस ने लिखा कि सिंडिकेट बैंक को लूटने आए डकैतों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया. जबकि न तो सिंडिकेट बैंक में लूट की कोई घटना हुई थी न माया और उस के पति व दोस्तों के पास कोई हथियार था.

इस घटना को जिस ने भी सुना वह थाने की ओर चल दिया. देखतेदेखते सैकड़ों लोगों ने थाने को घेर लिया. इस से हुआ यह कि माया की जान बच गई. उस वक्त थाने में अधिवक्ता जसबीर सिंह किसी मामले में अपने मुवक्किल मलखान सिंह के साथ आए हुए थे. मलखान सिंह ने माया को देखा तो पहचान गए. वह उन के गांव साकलपट्टी की बेटी थी. जसबीर सिंह और मलखान ने पुलिस का विरोध किया. उन्होंने गांव में माया के पिता और भाई को संदेश भिजवाया और तब तक भीड़ के साथ थाने में डटे रहे जब तक उस के पिता और भाई वहां नहीं पहुंच गए. लोगों की मुस्तैदी के चलते उस दिन माया उन वरदीधारी दरिंदों के हाथों मारे जाने से तो बच गई मगर इस घटना के बाद उस की पूरी जिंदगी नरक में तबदील हो गई.

चौधरी चरण सिंह का धरना

कई दिनों तक तो बात स्थानीय समाचारों तक ही रही. पुलिस मामले को डकैती बताने की पूरी कोशिश करती रही. इसी बीच 23 जून को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की प्लेनक्रैश में मृत्यु हो गई. तमाम अखबार कई दिनों तक उन की मौत की सुर्खियों से भरे रहे. फिर देश भूतपूर्व राष्ट्रपति वराहगिरि वेंकटगिरि की मौत से शोकाकुल हो गया और माया त्यागी के साथ हुए जघन्य अपराध पर किसी का ध्यान नहीं गया.

मगर बागपत के वकील जगबीर सिंह, उन के साथी वकीलों और कुछ नागरिक संस्थाओं ने हंगामा किया तो मामला कई हफ्तों के बाद उछला. दिल्ली की संसद में हंगामा मच गया और मेरठ में जाट नेता चौधरी चरण सिंह धरने पर बैठ गए. लेकिन तब भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई.

सुप्रीम कोर्ट की महिला वकीलों ने मोरचा खोला तो एक जुलाई को केंद्रीय गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने घटनास्थल का मुआयना किया. इस के बाद 4 जुलाई को बागपत थाने के एसओ को छुट्टी पर भेज दिया गया. प्रदेश की वी पी सिंह सरकार एक थानेदार पर कार्रवाई क्यों नहीं कर सकी? इस का जवाब उसी राजनीतिक निरंकुशता में छिपा है जिस में सत्ता ताकत का पर्याय होती है, सेवा का नहीं.

माया त्यागी के साथ हुए उस जघन्य अपराध ने पूरे देश को हिला दिया. बागपत चौधरी चरण सिंह की जमीन थी. पूर्व उपप्रधानमंत्री, पूर्व गृहमंत्री और उस ताकतवर जाट नेता की, जो देश का पहला पिछड़ों का नेता माना जाता है. वह चौधरी चरण सिंह, जिस ने सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी को जेल भिजवा दिया था. इसलिए इस घटना से 10 दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए विश्वनाथ प्रताप सिंह को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें.

उधर, इस कांड का आरोपी एसओ डी पी गौर कांग्रेस नेता राजेश पायलट का खास आदमी था, इसलिए मुख्यमंत्री उस पर हाथ डालने में डर रहे थे. संजय गांधी के खास दोस्त राजेश पायलट संजय ब्रिगेड के गुर्जर सिपहसालार थे. गाजियाबाद के रहने वाले पायलट उत्तर प्रदेश में ज्यादा रुचि रखते थे और बागपत उन की पसंदीदा लोकसभा सीट थी.

दिल्ली के आसपास के इलाके में चौधरी चरण सिंह की घेराबंदी के लिए संजय गांधी ने पायलट को चढ़ा रखा था. संजय ब्रिगेड ने राजेश पूरे यूपी में चुनाव की तैयारी कर ली थी और पश्चिमी यूपी की कमान राजेश पायलट के हाथ में थी. हालांकि इसी बीच संजय गांधी की मौत हो गई और बाद में इंदिरा गांधी ने पायलट को राजस्थान भेज दिया. मगर पायलट की वजह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इंस्पैक्टर गौर और उस के मातहत कर्मियों पर ऐक्शन लेने से कतराते रहे. इन्हीं राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट आजकल राजस्थान में अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.

आखिरकार, माया को इंसाफ दिलाने के लिए भारी विरोध प्रदर्शन और अदालत की फटकार के कई महीनों बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी और घटना की जांच के लिए एक कमेटी बनाई. 1988 में जिला अदालत ने 6 पुलिसकर्मियों को दोषी मानते हुए 2 को फांसी की सजा और 4 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. हालांकि इस से पहले माया त्यागी कांड के मुख्य आरोपी सबइंस्पैक्टर नरेंद्र सिंह की हत्या हो चुकी थी. उस की हत्या के आरोप में ईश्वर त्यागी के भाई विनोद त्यागी को गिरफ्तार किया गया था जो खुद यूपी पुलिस में कौंस्टेबल था और जिसे अपने भाईभाभी के साथ हुई बर्बरता की खिलाफत करने के कारण शासन के इशारे पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था.

कहते हैं कि उसी ने अपने भाईभाभी और उन के 2 दोस्तों के साथ हुए जघन्य अपराध के जिम्मेदार नरेंद्र सिंह चौहान को मौत के घाट उतार दिया मगर विनोद के खिलाफ कोई सुबूत न मिलने के कारण 2009 में उस पर लगे सभी आरोप खारिज हो गए और 2014 में 34 साल बाद हाईकोर्ट ने उस की बहाली का आदेश भी सुना दिया. बाद में इस अपराध में 11 पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया. जिन में से कुछ जेल में हैं मगर ज्यादातर अब रिहा हो चुके हैं.

वरदी को सत्ता के वरदहस्त और शासन में बैठे सत्तालोलुप नपुंसक नेताओं के कारण भारतमाता की बेटियों की इज्जत-आबरू कैसे सरेबाजार तारतार होती है, माया से ले कर आज मणिपुर की कुकी महिलाओं तक सब की एक कहानी है. आज 43 साल बाद भी माया के साथ हुई बर्बरता के जख्म भरे नहीं हैं. अपनी आंखों के सामने पति को पुलिस की गोलियों से छलनी होते देखने वाली माया ने जिंदगी का लंबा वक्त शर्म, जिल्लत और अकेलेपन में बिताया है और आज वह अकेली औरत घोर गरीबी, बुढ़ापे और बीमारी से जू?ा रही है.

दंगों को सरकार की सहमति

औरतों के प्रति सामाजिक असुरक्षा की स्थिति में प्रशासन का दायित्व है कि वह तनाव को जन्म देने वाली स्थितियों का दमन करे. मगर जबजब देश में ऐसी घटनाएं हुईं, यह देखा गया कि शासनप्रशासन लकवाग्रस्त रहा. पुलिस की तरफ से कोई कार्रवाई न होना, सामाजिक असुरक्षा, लोगों के बीच संवाद की कमी, आपसी अविश्वास, डर और दहशत ने आज मणिपुर जैसे शांत, सौम्य और सुंदर प्रदेश के सामाजिक तानेबाने को तोड़ दिया है. भीड़ हिंसक हो कर सड़कों पर तांडव कर रही है क्योंकि उसे रोकने वालों की ही मौन सहमति उस के साथ है.

हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में बढ़ रही आरएसएस और भाजपा ने पहले मुसलमानों के खिलाफ नफरत का जहर फैलाया और अब मणिपुर में ईसाईयों पर प्रहार हुआ है. जिन ईसाई कुकी लोगों के घर मय सामान के फूंक दिए गए, उन की नागरिकता के सारे सुबूत भी जल कर खाक हो चुके हैं. जो कुकी बचे हैं, अब नई समस्या उन के सामने खुद को इंडियन साबित करने की होगी.

सरकारें आती हैं, चली जाती हैं. मगर उन का चालचरित्र लगभग एक सा रहता है. निर्दोष जनता को दंगे की आग में झांक कर राजनीति अपना स्वार्थ सिद्ध करती है. 5 साल सत्ता सुख भोगने के लिए वह समाज को 5 सदियों तक रिसने वाला जख्म देती है. हिंसा का दंश कोई एक व्यक्ति या परिवार नहीं भोगता, पूरा समाज इस घाव की टीस से छटपटाता है. जिस परिवार का कोई अपना हिंसा में जान गंवाता है, उस के लिए तो यह जीवनभर का दुख होता है.

दहशत से ग्रस्त जीवन

इतना ही नहीं, इस से एक तरह का सामाजिक खौफ भी पैदा होता है. जो व्यक्ति किसी अपने को दंगे में खोता है, उसे हमेशा खोने का डर बना रहता है. यह खौफ बाद में कभी खत्म न होने वाला दुख बन जाता है. हालांकि इस का मतलब यह नहीं है कि हिंसा की चपेट में जो लोग नहीं आते, वे इस से प्रभावित नहीं होते. उन पर सामाजिक सरंचना के दरकने का असर होता है. चूंकि ऐसी हिंसा में समाज टूटता है, इसलिए सामाजिक तनाव के बीच अपनों को खोने के खौफ में वे जीने को अभिशप्त रहते हैं. समाज तो इस से लंबे समय तक कराहता रहता है. बेशक, हिंसक घटनाएं अथवा दंगे क्षणिक होते हैं और कुछ समय के बाद थम जाते हैं लेकिन उन का प्रभाव बरसों तक बना रहता है. लोग मानसिक तौर पर इस से बाहर नहीं निकल पाते.

इस से समुदायों के बीच में इतनी दूरियां पैदा हो जाती हैं कि उन्हें भरने में सदियों लग जाते हैं. कभीकभी तो भरपाई संभव ही नहीं हो पाती है. इसीलिए हिंसा पर जल्द से जल्द काबू पाने और तनाव के कारकों को दूर करने की वकालत की जाती है ताकि सामुदायिक विश्वास पटरी पर लौट सके. आज सुप्रीम कोर्ट यही कोशिश कर रहा है.

जमीन और आरक्षण की लड़ाई

मणिपुर में मार्च 2023 में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा जनजाति का दरजा मिलने से परेशान नागा-कुकी आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. हजारों घरों को फूंक दिया गया है. गौरतलब है कि कुकी और नागा जनजाति दोनों को मिला कर मणिपुरी जनसंख्या का लगभग 40 फीसदी (25 फीसदी और 15 फीसदी) है. दोनों ईसाई धर्म को मानने वाले हैं और कुछ इसलाम को मानते हैं. इन को जनजाति का दरजा और आर्थिक आरक्षण प्राप्त है.

मैतेई समुदाय जनसंख्या के 50 फीसदी से कुछ अधिक हैं और अधिकांश हिंदू हैं. उन के लिए विधानसभा में 60 फीसदी सीटें भी सुरक्षित हैं. मैतेई समाज यह दुखड़ा गाता है कि वे मूलतया आदिवासी थे किंतु वर्षों पहले हिंदू धर्म अपनाने के कारण उन्हें ‘सामान्य’ श्रेणी में रखा गया और वे जनजाति का आरक्षण पाने से चूक गए. मंडल कमीशन के बाद मैतेई को ‘ओबीसी’ की श्रेणी में रखा गया. इस कारण वे पहाड़ी भूमि नहीं खरीद सकते जबकि कुकी और नागा जनजाति होने के कारण पहाड़ी और समतल- दोनों जगह भूमि खरीद सकते हैं.

बरसों से कुकी और नागा जातियों की भूमि और घरों पर मैतई समुदाय की नजर है. इस इच्छा को भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने और उभारा, जिस के चलते बीते कई सालों से शांत और सुंदर मणिपुर में, जहां पहले कुकी और मैतेयी में खासा मेलजोल और रोटीबेटी का संबंध था, हिंसक वारदातें होने लगी थीं. वैमनस्य बढ़ने लगा था. वैमनस्य की आग को भाजपा नेताओं ने खूब हवा दी. 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर साल की शुरुआत से ही ध्रुवीकरण की साजिश शुरू हो गई. इस बीच देश के गृहमंत्री अमित शाह के भी कई चक्कर मणिपुर के लगे.

इसी बीच, मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई जाति को अनुसूचित जनजाति में डालने का आदेश दे दिया. इस से इन समुदायों के बीच भयानक द्वंद्व छिड़ गया. कुकी जाति के लोगों पर हमले होने लगे. उन को गाजरमूली की तरह काटा जाने लगा. दंगों को रोकने के लिए आश्चर्यजनक रूप से राज्य की भाजपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, लेकिन जब मामला देशभर में सुर्खियों में आ गया तो राज्य में सेना तैनात की गई और देखते ही गोली मारने (शूट एट साइट) के आदेश जारी किए गए. इस में भी कुकी जाति के लोग ही सेना की गोलियों से मारे गए. लेकिन जब मई 2023 में बहुसंख्यक मैतेई द्वारा कुकी जनजाति की महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़कों पर परेड कराने की वीभत्स और नृशंस घटना घटी और उस के वीडियो डेढ़ महीने बाद वायरल हुए तो उस ने देशदुनिया को हिला कर रख दिया.

डेढ़ महीने तक राज्य और केंद्र सरकार व उन की पुलिस ने महिलाओं के साथ बर्बरता करने वाले तत्त्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. एफआईआर दर्ज होने के बावजूद किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई. इस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख इख्तियार किया और सरकार को फटकार लगाई, तब कुछ गिरफ्तारियां हुईं.

गौरतलब है कि मई 2023 में ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा मैतेई को आरक्षण दिए जाने के विवादित आदेश के लिए हाईकोर्ट को फटकार लगाई थी जिस के चलते जून 2023 में मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने आदेश का रिव्यू करने की प्रक्रिया शुरू की थी. मगर राजनीतिक साजिशों के चलते मणिपुर के हालात बद से बदतर होते चले गए.

मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई नृशंस घटना ने भारत का ‘विश्वगुरु’ बनने का दावा खत्म कर दिया है. जिस ‘गुरुकुल’ में बच्चियों के साथ यह बरताव हो, वह कैसा गुरु? हम सावधान रहें कि ‘प्रेमगुरु’ का सम्मान प्राप्त देश अपनी बेटियों के चीरहरण और बर्बरता के कारण कहीं ‘दुराचार गुरु’ का मैडल न जीत जाए. यदि ऐसे अपराध रोके न गए तो भारत फिर से महाभारत की ओर बढ़ेगा.

हैलो, कहां हो

मोबाइल पर यह प्रश्न ‘कहां हो’ सर्वाधिक लोकप्रिय है. प्रश्न पूछने के ?ाठे शिष्टाचार का इस ने खूब खात्मा किया है. लोगों ने मर्यादा, लोकलाज तथा छोटेबड़े के नाम पर अपने कहीं भी होने को बड़ा गोपन रखने की परंपरा बना रखी थी, वह भी इस ने खूब ध्वस्त की है. अब तो वह शख्स तक इस प्रश्न को पूछता/पूछती है जिस को आप के कहीं भी होने या न होने से कोई फर्क ही न पड़ता हो. इतनी रट तो कोई पपीहा व चकवा तक न लगाता होगा.

हम से तो ज्यों ही यह प्रश्न पूछा जाता है त्यों ही मन करता है पूछने वाले की कनपटी पर एके-47 तान कर कहें, ‘हूं, तो इसी नश्वर संसार में मर भाई, तू होता कौन है, यह पूछने वाला. तेरी बला से मैं कहीं भी होऊं.’ पर आप को पता होगा, कितनी सुसंस्कार शालाओं में पढ़ालिखा कर अपने को सुसमृद्ध किया गया है. फिर अपुन अकेले तो भुक्तभोगी हैं नहीं. आप सब का साथ तो है ही.

बौस अपने सबआर्डिनेट से पूछता है, ‘कहां हो?’ औफिस से 3 किलोमीटर दूर विचरण या धूम्रपान कर रहा कर्मचारी अत्यंत विनीत मुद्रा में जवाब देता है, ‘सर, बस गेट पर ही हूं. तू डालडाल मैं पातपात.’ बौस कहता है, मैं भी गेट पर ही हूं पर तुम कहीं नहीं दिख रहे.’ ‘सर, मैं बैक गेट पर हूं, आप चलिए, बस, मैं अभी आया.’ बौस को लगता है या तो उस की दूर की नजरें कमजोर हो गई हैं या पास की नजरें भी धोखेबाज, तभी यह घड़ी तक खुराफाती लगने लगी है.

शाम के 5-6 बजते ही पत्नी अपने पति के लिए फिक्रमंद हो जाती है. जानती है उस के इकलौते प्राणप्रिय पति को यह प्रश्न जरा भी पसंद नहीं, फिर भी भारी मन से हलकेहलके हौलेहौले पूछती है, ‘कहां हो?’ जब भी पतिदेव किसी प्रेमिल पनाहगाह में होंगे तो बड़े प्यार से कहेंगे, ‘बस, आ रहा हूं तुम्हारे ही पास. तुम्हें क्या पता कितनी देर से आती है शाम और मुश्किल से बजते हैं 6.’ पतिदेव जब निर्द्वंद्व और गृहप्रयाणी होंगे तो गुर्रा कर अकड़ कर कहेंगे, ‘यह क्या तुम ने कहां हो, कहां हो की रट लगा रखी है. कहीं मर थोड़ी ही गया हूं. चौथे चौराहे पर ही तो हूं. सामने होऊंगा तो पूछोगी तक नहीं. तब तुम्हारी बला से मैं कहीं भी होऊं. अब जान खाए जा रही हो, कहीं किसी को बुला रखा है क्या?’

‘नहींनहीं, मैं ही कहीं बाहर हूं. मैं ने तो बस, इतना सा बताने के लिए फोन किया था कि तुम चाय बना कर पी लेना और मेरे लिए थर्मस में रख देना. बस, मौल में शौपिंग निबटा कर पहुंच रही हूं सिर्फ डेढ़ घंटे में.’

फिर 10 मिनट में पत्नी का फोन आता है. पति चौड़ा हो कर कहता है, ‘अरे भाई, घर पर ही हूं. चाय बना कर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अब यही बचा है मेरी जिंदगी में.’

अब पत्नी राज खोलती है, ‘मु?ा से ?ाठ. मु?ा से छल. मैं घर में ही थी, तुम से मजाक कर रही थी.’

‘तो डार्लिंग, मैं भी तो मजाक ही कर रहा हूं. क्या मजाक पर भी सिर्फ तुम्हारा ही सर्वाधिकार या एकाधिकार है?’

वैसे हमेशा ऐसी मजाक की जरूरत नहीं पड़ती. नए चलन में सच बोलना भी कम भारी नहीं पड़ता.

पत्नी : कहां हो?

पति : प्रेमिका की कंपनी एंजौय कर रहा हूं.

पत्नी : पत्नी के क्या कांटे चुभ रहे हैं.

पति : नहीं प्रिये. ये मखमली कांटे ज्यादा प्रिय हैं. कभी तुम न रहीं, हालांकि कुदरत की कृपा से ऐसा मेरे जीतेजी मुश्किल है तो भी ‘कहां हो’ पूछने वाली, कोई तो चाहिए. इसीलिए घाटे में चल रही इन की कंपनियों को सही रास्ते पर ला रहा हूं. उस के भाईबहनों के लिए नौकरी सर्च कर रहा हूं. क्या है कि संसार काफी व्यापक है. लघु से लघुतम और दीर्घ से दीर्घतम प्राणी तक इस की चोटचपेट में है.

मां : (बच्चे से) बेटे कहां हो?

बच्चा : मम्मा, क्लास में.

मां : टीचर से बात कराओ.

बच्चा : मम्मी, मोबाइल पर बात करनाकराना क्लास में अलाउ नहीं है.

मां (फिर 5 मिनट बाद) : कहां हो बेटे?

बच्चा : स्कूल में?

मां : अभी तो तुम क्लास में थे.

बच्चा : डियर मौम, इतना सा भी नहीं जानतीं कि क्लास भी तो स्कूल में ही है.

मां : ठीक है, ठीक है पर तुम क्लास में क्यों नहीं हो?

बच्चा : आप से मोबाइल पर बात करने के कारण क्लास से बाहर निकाल दिया गया हूं.

पिता : (पुत्र से) कहां हो?

पुत्र : यहीं.

पिता : मतलब?

पुत्र : बस, यहीं.

पिता (चीख कर) : क्या यहींयहीं की रट लगा रखी है, बताते क्यों नहीं?

पुत्र : बता नहीं रहा हूं तो और क्या कर रहा हूं. अरे, यह आप को जवाब नहीं लगता तो मेरा क्या कुसूर. यह जवाब देना आप से ही तो सीखा है. फिर आप ही तो कहते हो यह तो सिर्फ मेरा बेटा है, बिलकुल मेरे जैसा, 100 फीसदी मु?ा पर गया है मेरा लाड़ला.

प्रेमी ( प्रेमिका से) : कहां हो?

प्रेमिका : हनी, बस आ रही हूं.

प्रेमी : फिर भी कहां हो?

प्रेमिका : बस, आप के सामने ही.

प्रेमी : अब और कितनी देर लगेगी?

प्रेमिका : बस, यही कोई आधा घंटा.

प्रेमी : सामने हो, फिर भी इतनी देर?

प्रेमिका : तुम्हारे लिए बाल संवारने, लिपस्टिक लगाने, सजनेधजने में भी तो कुछ समय लगता है.

प्रेमी : पर सामने हो इसी पार्लर में तो दिक्कत क्या है मैं आ जाता हूं.

प्रेमिका : नहीं, यह जैंट्स पार्लर नहीं है. यहां एंटर करने वाले पुरुष की जमानत तक नहीं होती. बी देअर, आई एम कमिंग. डौंट वरी.

मरीज : डाक्टर साहब, कहां हो?

डाक्टर साहब : हौस्पिटल में.

मरीज : ठीक है सर, 10 मिनट में पहुंच रहा हूं.

डाक्टर : तब तक तो मैं निकल जाऊंगा.

यात्री (बस से) : देवी, कहां हो पिछले डेढ़ घंटे से तुम्हारे इंतजार में बसीकरण का मंत्र जप रहा हूं.

बस : मैं बेबस हूं जनाब, माफी चाहती हूं. कंडक्टर, ड्राइवर के बलात्कार का शिकार हूं. ये डेढ़ घंटे पूर्व ही लंचटाइम घोषित कर के लंच के डेढ़ घंटे बाद तक सुस्ताने, मौज करने मु?ो इस चौगान में खड़ी कर के अपनी करतूतों में व्यस्त हैं, मगन हैं, लगनपूर्वक ड्यूटी निभा रहे हैं.

अब दिक्कत दूसरी होने लगी है. पहले ‘कहां हो’ के जवाब में कुछ भी कहने से काम चल जाता था पर यदि कोई खासमखास कह दे कि, ‘तो चलो व्हाट्सऐप वीडियो कौल करो’ तो सारा ?ाठ निकल जाएगा. पता चलेगा कि पति महाशय दफ्तर में नहीं, अपनी सहयोगी के साथ मैक्डोनल्ड में चीजबर्गर के मजे उड़ा रहे हैं.

खैर, अपन तो आप सब से यही कहेंगे इस छोटे से, नन्हे से प्रश्न से क्या घबराना. कैसा घबराना. कोई तो है जो आप की सुध रखता है, फिक्र करता है. आप इस से ऐसे न बिदकें जैसे कोई मर्डरर आप की लोकेशन पूछ रहा हो. अपन तो आप सब से सोलह आने सच कह रहे हैं. अकसर बिना 5जी के सभी नैटवर्क गड़बड़ाया या गायबियाया रहता है तो कानों में हर दो क्षण बाद यह नन्हा सा जुमला औटोमैटिक गूंजता रहता है, जब न सुनाई दे तो लगता है सात अरब की दुनिया में किसी को हमारी फिक्र ही न रह गई.

मैं अपने पति को संतुष्ट नहीं कर पाती, अब आप ही बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 27 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. मेरी शादी 10 महीने पहले हुई है. पति बहुत प्यार करते हैं पर मैं उन्हें सैक्स में पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाती. वजह है मेरी वैजाइनल मसल्स का जरूरत से ज्यादा संकुचित यानी टाइट होना. सैक्स संबंध के दौरान इस वजह से मैं पति को पूरा साथ नहीं दे पाती. इस दौरान मुझे तेज दर्द होता है. पति के आग्रह को मैं ठुकरा भी नहीं सकती पर सैक्स करने के नाम से ही मेरे हाथपांव फूल जाते हैं और पूरी कोशिश करती हूं कि टाल जाऊं. इस से पति नाराज रहने लगे हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

पहले तो आप को सैक्स के प्रति मन में बैठा डर खत्म करना होगा, क्योंकि यह कुदरत का दिया एक अनमोल तोहफा है जो दांपत्य जीवन की गरमाहट को बनाए रखता है.

दूसरा, वैजाइनल मसल्स का जरूरत से ज्यादा टाइट होना कोई गंभीर बीमारी नहीं है अलबत्ता शादी के बाद शुरुआती दिनों की एक आम समस्या हो सकती है या फिर मन में बैठे डर की वजह से आप वैजाइना को संकुचित कर लेती होंगी.

बेहतर होगा कि सैक्स संबंध बनाने से पहले फोरप्ले करें और इस की अवधि शुरुआत में इतनी अधिक हो कि आप सैक्स के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएं. इसे और मजेदार बनाने के लिए पति से कहें कि वे ल्यूब्रिकैंट या चिकनाईयुक्त औयल का प्रयोग करें.

बाजार में आजकल वैजाइनल मोल्ड्स भी उपलब्ध हैं, जिन के इस्तेमाल से सैक्स क्रिया को और अधिक आनंददायक बनाया जा सकता है. पति से कहें कि सैक्स संबंध के दौरान पैनिट्रेशन स्लो रखें. धीरेधीरे आप को भी इस में आनंद आने लगेगा और सैक्स का खुल कर लुत्फ उठाने लगेंगी. बावजूद इस के अगर समस्या जस की तस रहे तो बेहतर होगा कि पहले किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें.

Raksha Bandhan : भाई को बनाएं जिम्मेदार

अर्चित 3 भाइयों में सब से छोटा होने के कारण घर में सब का लाड़ला था. यही वजह थी कि वह कुछ ज्यादा ही सिर चढ़ गया था. यदि उसे कोई काम करने को कह दिया जाता तो वह उसे पूरा नहीं करता था या फिर इतने बुरे ढंग से तब करता था जब उस की कोई वैल्यू ही नहीं रह जाती थी. शुरू में तो सभी उस की इन बातों को नजरअंदाज करते रहे, लेकिन अब वह कालेज में था और उस की इन हरकतों से परिवार वालों को सब के सामने शर्मिंदा होना पड़ता था. इसी तरह रमेश को अगर कुछ काम करने जैसे कि बिजली का बिल जमा करने या बाजार से कुछ लाने को कहो तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. यह समस्या लगभग हर घर में देखने को मिल जाएगी. अकसर छोटे भाईबहन लापरवाह हो जाते हैं. दरअसल, आजकल के युवा कोई जिम्मेदारी लेना ही नहीं चाहते. ऐसे ही युवा आगे चल कर हर तरह की जिम्मेदारी से भागते हैं. फिर धीरेधीरे यह उन की आदत बन जाती है. फिर वह अपने मातापिता की, औफिस की व समाज की जिम्मेदारियों से खुद को दूर कर लेते हैं. लेकिन यदि कोशिश की जाए तो उन्हें भी जिम्मेदार बनाया जा सकता है. इस के लिए बड़े भाई को ही प्रयास करना होगा, क्योंकि वह आप की बात जल्दी मानेगा.

ऐसे बनाएं भाई को जिम्मेदार    

घर की परेशानियों में शामिल करें : अकसर हम अपने छोटे भाईबहनों को घर में आने वाली छोटीमोटी परेशानियों से दूर रखते हैं. घर में आने वाली मुश्किलों की भनक तक उन्हें नहीं लगने देते. ऐसे में घर के छोटों को पता ही नहीं होता कि उन के बड़े किस समस्या से जूझ रहे हैं. बस, वे अपनी फरमाइशें पूरी करवाने में ही लगे रहते हैं. ऐसा करना ठीक नहीं है, क्योंकि इस से छोटे भाईबहन जिंदगी के अच्छे और बुरे पहलू देखने और समझने से वंचित रह जाते हैं. उन्हें भी अपनी परेशानियों में शामिल करें ताकि वे भी इन का सामना कर सकें.

जरूरी काम भाई को भी सौंपें : भाई को भी काम करने को दें. यह न सोचें कि इस के बस का नहीं है. यह कहां करेगा, मैं तो इसे मिनटों में कर लूंगा और भाई की समझ से बाहर हो जाएगा. अगर आप ऐसे करेंगे तो भाई सीखेगा कैसे  उसे भी कुछ काम करने दें. फिर चाहे वह उसे करने में ज्यादा समय ले या फिर गलत करे, लेकिन उसे करने दें. इस तरह धीरेधीरे उसे इन कामों को करने की आदत हो जाएगी, लेकिन अगर आप उसे काम सौंपेंगे ही नहीं, तो वह करेगा कैसे

भाई को छोटा न समझें : ‘अभी तो यह छोटा है,’ अगर आप ऐसे समझते रहेंगे तो वह कभी बड़ा नहीं होगा. वैसे भी वह हमेशा आप से छोटा ही रहेगा. उसे बड़ा बनाने की जिम्मेदारी आप की ही है.

पैसे की कीमत समझाएं :  यदि भाई हर वक्त मातापिता से किसी न किसी बात की डिमांड करता रहता है और पेरैंट्स को तंग करता है तो उसे घर की आर्थिक स्थिति के बारे में बताएं. उसे बताएं कि पैसा कितनी मुश्किल से कमाया जाता है. घरखर्च में उस का भी सहयोग लें और घर का सामान आदि उस से मंगाए. जब वह अपने हाथ से खर्च करेगा तो उसे पैसे की वैल्यू पता चलेगी.

रिश्ते निभाना भी सिखाएं : छोटी बहन को राखी पर अपनी पौकेटमनी से या अपने कमाए हुए पैसे से गिफ्ट देने की आदत डालें. कभीकभी घर के छोटे बच्चों से कहें कि आज चाचा ही बच्चों को आइस्क्रीम खिला कर आएंगे. घर में आए मेहमान को भी सब के बीच बैठने को कहें और बातचीत में उसे भी शामिल करें.

खुद मिसाल बनें : आप खुद भाई के सामने मिसाल बनें. जब वह घर और बाहर का सभी काम आप को जिम्मेदारी से निभाते हुए देखेगा तो आप को अपना रोलमौडल समझने लगेगा और खुद भी आप के जैसा बनने की पूरी कोशिश करेगा. आप जो भी गुण अपने भाई में देखना चाहते हैं पहले उन्हें आप खुद में लाएं और फिर भाई को सिखाएं.

उस के काम को आप भी टाल जाएं : अगर भाई आप का कहना नहीं मानता, कोई भी काम जिम्मेदारी से नहीं करता और आप उस की इस आदत से परेशान हैं, तो आप उसे उसी की भाषा में समझाएं. जब वह आप से या घर के किसी मैंबर से अपने किसी जरूरी काम को वक्त पर करने को कहे तो आप भी टालमटोल करें और काम समय पर न करें. इस के बाद उसे गुस्सा आएगा और उलझन होगी तब उसे प्यार से समझाएं कि जब वह खुद ऐसा करता है तो अन्य लोगों को भी ऐसी ही परेशानी होती है.

गैरजिम्मेदारी के नुकसान बताएं

  • अगर आप गैरजिम्मेदार होंगे तो लोग आप को गंभीरता से नहीं लेंगे.
  • पीठ पीछे आप के बचपने की लोग बुराइयां करेंगे.
  • मांबाप भी आप पर भरोसा करने में कतराएंगे.
  • बाहर ही नहीं घर में भी कोई आप की इज्जत नहीं करेगा.
  • एक बार यदि काम करने का समय निकल गया तो यह लौट कर दोबारा नहीं आएगा और फिर आप के हाथ सिवा पछतावे के कुछ नहीं बचेगा.
  • लड़कियां आप से दूर भागेंगी कि यह तो किसी काम का नहीं, इस से दोस्ती बढ़ा कर आगे कोई फ्यूचर नहीं है.

इन बातों का भी रखें खयाल

  • अगर आप रोब दिखा कर काम करवाने की कोशिश करेंगे तो वह कोई काम नहीं करेगा इसलिए प्यार से बात करें, रोब से नहीं.
  • छोटे भाईबहन पर जिम्मेदारी धीरेधीरे डालें, एकदम से सारा काम न सौंपें, क्योंकि इस से वह इरीटेट होने लगेगा.
  • आप का मकसद काम निकलवाना नहीं बल्कि काम सिखाना होना चाहिए इसलिए बस आज का काम किसी तरह हो जाए इस मानसिकता के साथ काम करवाएंगे तो वह कभी नहीं सीख पाएगा.
  • यदि भाई को काम करने में कोई परेशानी है और वह काम ढंग से नहीं कर पा रहा है, तो उस का हौसला बढ़ाएं. वह घबराए तो उसे समझाएं कि वह यह काम इस ढंग से कर सकता है.
  • अगर वह अपनी कोई जिम्मेदारी बखूबी निभाता है, तो उस की तारीफ की जानी चाहिए. इस से उस में आगे भी अच्छा करने की इच्छा पैदा होगी.
  • अगर भाई ने कोई काम अच्छा किया है, तो उस का क्रैडिट खुद न लें, बल्कि सब को बताएं कि यह भाई की अपनी मेहनत है.
  • जो जिम्मेदारी या काम आप उसे सौंपना चाहते हैं पहले उसे खुद करें ताकि आप को काम करता देख वह भी सीखे और उस काम में उस का भी मन लगे. फिर चाहे वह काम घर के छोटे बच्चों को पढ़ाने का ही क्यों न हो. जब आप उन्हें पढ़ाएंगे तो एक दिन भाई भी खुद ब खुद पढ़ाने लगेगा.
  • शुरूशुरू में भाई को वही काम दें, जिस में उस का इंट्रस्ट है. जब उसे उस काम को करने में मजा आने लगे और वह अपनी जिम्मेदारी सही से निभाने लगे, तो उसे अन्य काम करने की जिम्मेदारी देना शुरू करें.

भूलकर भी डौक्टर से कभी न छिपाएं ये 5 समस्याएं

हमेशा हंसती रहने वाली मेघा पिछले 2 महीने से काफी उदास रहने लगी थी. उसे किसी से बात करना तक अच्छा नहीं लगता था. उस ने कालेज जाना भी कम कर दिया था. एक दिन उस की मां ने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है मेघा, आजकल मैं देख रही हूं कि तू बहुत उदास रहने लगी है. न हंसती है न किसी से बात करती है?’’

इस पर मेघा ने कहा, ‘‘नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है, बस यों ही.’’

मेघा की रमेश के साथ पिछले एक साल से दोस्ती थी. दोनों कालेज के बाद अकसर गार्डन या मौल में घूमने जाते थे. उन के शारीरिक संबंध भी बन गए थे. रमेश जब चाहता उसे एकांत जगह पर ले जाता और फिर दोनों सैक्स करते.

2 महीने से मेघा को पीरियड्स नहीं हुए थे. उसे लग रहा था कि वह प्रैग्नैंट हो गई है. इसीलिए वह उदास रहने लगी थी. उसे डर था कि अगर वह मां को यह बताएगी कि रमेश के साथ उस के शारीरिक संबंध हैं और पीरियड्स नहीं हो रहे हैं तो मां उसे डांटेगी और गायनोकोलौजिस्ट के पास ले जाएगी जहां उस की पोलपट्टी खुल जाएगी.

लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक दिन उस ने मां को बताया कि उसे पिछले 2 महीने से पीरियड्स नहीं हुए हैं. यह सुन कर पहले तो मां का माथा ठनका कि कहीं मेघा प्रैग्नैंट तो नहीं हो गई है. खैर, मां ने उसे कुछ नहीं कहा. एक दिन वह उसे ले कर एक गायनोकोलौजिस्ट के पास गई. मेघा थरथर कांपने लगी जब गायनोकोलौजिस्ट ने मेघा से उस की समस्या पूछी. पहले तो मेघा सकुचाई पर फिर उस ने डाक्टर को बताया कि उसे पिछले 2 महीने से पीरियड्स नहीं हुए हैं.

डाक्टर ने पूछा कि इस से पहले भी कभी ऐसा हुआ है? तो उस ने जवाब दिया कि पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ.

लेडी डाक्टर बुजुर्ग थी. उस के पास ऐसे कई केस आते थे. डाक्टर ने इस बारे में उस से ज्यादा पूछना उचित नहीं समझा. उस ने मेघा का प्रैग्नैंसी टैस्ट किया, लेकिन रिपोर्ट नैगेटिव निकली, इस का मतलब था कि मेघा प्रैग्नैंट नहीं थी. किसी और वजह से उसे पीरियड्स नहीं हो रहे थे.

इस बार तो मेघा बालबाल बच गई लेकिन अब उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने बौयफ्रैंड के साथ कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाएगी.

लेडी डाक्टर ने मेघा का इलाज शुरू किया और जल्दी ही उस के पीरियड्स नियमित हो गए.

युवतियों की शारीरिक संरचना काफी जटिल होती है. हमेशा कुछ न कुछ समस्या लगी रहती है. अधिकतर युवतियों को इस बारे में सही जानकारी नहीं होती, इसलिए वे डर जाती हैं. उन्हें लगने लगता है कि वे प्रैग्नैंट हो गई हैं, क्योंकि आजकल युवकयुवतियां सैक्स को ले कर काफी बोल्ड हो गए हैं. वे इस में कोई बुराई नहीं समझते. वे खुल कर सैक्स एंजौय करते हैं.

युवतियों की शारीरिक समस्याएं

अनियमित माहवारी : युवतियों की यह समस्या आम है, पर इसे

ले कर वे काफी भयभीत रहती हैं. अनियमित माहवारी के कई कारण हैं. गायनोकोलौजिस्ट डा. रेनू शर्मा के अनुसार, ‘‘जो युवतियां सोचती हैं कि माहवारी प्रैग्नैंसी की वजह से रुकती है, तो यह गलत है. ऐसे अनेक कारण हैं जिन की वजह से अकसर युवतियां इस शारीरिक समस्या का शिकार होती हैं.’’

वास्तव में यह कोई बीमारी नहीं है. यदि समय पर इलाज किया जाए और खानपान पर ध्यान दिया जाए तो यह समस्या जल्दी ही खत्म हो जाती है. कभी कुछ युवतियों को महीने में 2 बार भी माहवारी हो जाती है, जिस से शरीर का काफी खून निकल जाता है और उन में कमजोरी आ जाती है. यह समस्या हार्मोन की गड़बड़ी की वजह से होती है. टैस्टों के जरिए समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सकता है और फिर उस के अनुसार ही इलाज किया जाता है.

स्तन में गांठें बनना : युवतियों में यह समस्या कौमन है. अकसर उन के स्तन में गांठें पड़ जाती हैं, जिस की वजह से स्तन को स्पर्श करते ही उन्हें काफी दर्द महसूस होता है. यदि आप को भी यह समस्या है तो आप बिना संकोच के तुरंत अपनी लेडी डाक्टर से मिलें और पूरी समस्या उन्हें सहीसही बता दें. स्तन में गांठें पड़ने के कई कारण हो सकते हैं.

खून की जांच व अल्ट्रासाउंड से समस्या की वजह पता चल जाती है और फिर इलाज से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है. बड़ी उम्र की महिलाओं के स्तनों में गांठों की समस्या हो जाती है जो कभीकभी ब्रैस्ट कैंसर के रूप में सामने आती है. ऐसे में कीमोथेरैपी की जाती है और कभीकभी तो जिस ब्रैस्ट में यह समस्या है, उसे काटना भी पड़ सकता है. युवतियों में ब्रैस्ट कैंसर का प्रतिशत बहुत कम होता है, इसलिए उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है.

ल्यूकोरिया : ल्यूकोरिया यानी वेजाइना से निकलने वाला सफेद या चिपचिपा गाढ़ा पदार्थ. ल्यूकोरिया की शिकायत उन युवतियों में अधिक होती है जो अपने जननांगों की साफसफाई नहीं रखतीं या फिर किसी दूसरी युवती के अंदरूनी कपड़े पहनती हैं. यह एक छूत की बीमारी है. यदि समय पर इस का इलाज नहीं कराया जाए तो यह बीमारी काफी बढ़ जाती है. इस से पीडि़त युवती कमजोर हो जाती है. इसलिए अगर आप के साथ ऐसी समस्या है तो तुरंत किसी डाक्टर से संपर्क करें और उन्हें अपनी समस्या बताएं. इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि समस्या छिपाने से और बढ़ती है.

ओवरी में गांठ (पीसीओडी) : युवतियों में पीसीओडी की समस्या भी आम है. इस समस्या में ओवरी में गांठ (सिस्ट) बन जाती है, जिस से माहवारी तो रुक ही जाती है, साथ ही पेट में भी दर्द रहता है. कभीकभी अंडाशय में बना अंडा, जो हर महीने फूट कर खून (माहवारी) के रूप में बाहर निकल जाता है, वह फूट नहीं पाता और अंडाशय के चारों ओर जमा हो कर दीवार सी बना देता है, जिस से पेट में सूजन आ जाती है. अगर माहवारी बंद हो जाए तो अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी होता है. इस से मालूम हो जाता है कि युवती को पीसीओडी की समस्या है या नहीं. वैसे, इस में कोई घबराने वाली बात नहीं है. यदि समय पर डाक्टर को दिखाया जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.

जो युवतियां संकोचवश समय रहते गायनोकोलौजिस्ट को नहीं दिखातीं उन की यह समस्या बढ़ जाती है. समस्या के बढ़ने पर उन में बांझपन का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए ऐसी स्थिति में युवतियों को तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए और उन्हें खुल कर अपनी समस्या बतानी चाहिए.

बिना शादी के प्रैग्नैंसी : युवतियां अपनी गलतियों की वजह से प्रैग्नैंसी का शिकार हो जाती हैं. यदि आप कुंआरी हैं और प्रैग्नैंट हो गई हैं तो पहले अपनी मां या बड़ी बहन को कौन्फिडैंस में लें और उन्हें सबकुछ सचसच बता दें.

बहुत सी लड़कियां प्रैग्नैंट होने पर बदनामी के डर से डाक्टर के पास नहीं जातीं और अपनेआप गर्भ गिराने वाली दवाएं खाती रहती हैं, लेकिन कभीकभी ये दवाएं जिंदगी के लिए खतरा भी बन जाती हैं.

Raksha Bandhan : दूध और शक्कर से घर पर बनाएं टेस्टी कलाकंद

कलाकंद एक तरह की खोए वाली बरफी होती है. यह दूसरी तरह की तमाम बरफियों से अलग होती है. बाकी बरफियां खोए से तैयार होती हैं, पर यह दूध और छेने से तैयार की जाती है. इस की सब से खास बात यह होती है कि यह खाने में छेने और खोए दोनों के मिलेजुले स्वाद का एहसास कराती है. दानेदार बरफी होने के कारण यह दूसरी बरफियों से अलग होती है.

जो किसान पशुपालन और दूध उत्पादन का काम करते हैं. वे इसे बना कर रोजगार कर सकते हैं. कलाकंद बरफी को बनाना बेहद आसान होता है. यह 5-6 दिनों तक ही सही रहती है, इसलिए इसे बनाने के बाद इस की जल्द से जल्द खपत का हिसाब लगा लेना चाहिए. कलाकंद बरफी खाने में अलग स्वाद देती है, इसलिए इसे लोग खूब पसंद करते हैं. कलाकंद बरफी दूध और खोए से भी तैयार की जाती है.

कलाकंद बरफी को बनाना भले ही आसान होता हो, पर थोड़ी सी असावधानी होने से दूध के लगने या जलने का खतरा बना रहता है, जो इस के स्वाद को खराब कर सकता है.

  • इस में दूध और चीनी की मात्रा ऐसी होनी चाहिए, जो कलाकंद के स्वाद को बनाए रखते हुए मिठास का एहसास कराए.
  • चीनी स्वाद के मुताबिक होनी चाहिए.
  • इलायचीपाउडर डालने से इस की खुशबू अच्छी हो जाती है.
  • पिस्ता, बादाम और चांदी के वर्क का इस्तेमाल कलाकंद को सजाने के लिए किया जाता है.
  • कलाकंद बरफी को मनचाहे आकार में काटा जाता है.

बड़ा है बाजार

कलाकंद का बाजार बड़ा है. यह छोटी से बड़ी हर मिठाई की दुकान में मिल जाती है. लखनऊ की रहने वाली मिठाइों की शौकीन जिया आहूजा कहती हैं, ‘वैसे तो कलाकंद ठंडा होने पर खाई जाती है, पर मुझे तो गरमगरम कलाकंद खाने में ज्यादा मजा देती है. कलाकंद जब ताजा होती है, तो ज्यादा अच्छी लगती है.’

कलाकंद का भाव अलग-अलग होता है. यह बाजार में 250 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक में बिकती है. रबड़ी के बाद फ्रेश मिठाइयों में कलाकंद बरफी की मांग सब से ज्यादा होती है. लिहाजा इसे बना कर बेचना फायदेमंद होता है.

मिठाई के बाजार में कलाकंद बरफी का नाम पुराना है. अब इस की मार्केटिंग नए तरह से हो रही है. ऐसे में लोग कलाकंद बरफी की खूब खरीदारी करने लगे हैं. कुछ लोग इसे खरीद कर ले जाते हैं और फिर घरों में इस से खोए वाली गुझिया भी बना लेते हैं. ऐसे में कलाकंद बरफी की अहमियत बढ़ जाती है

कैसे बनाएं कलाकंद

  • कलाकंद बनाने के लिए फुल क्रीम वाले दूध को लेना चाहिए.
  • दूध को 2 हिस्सों में बांट लेना चाहिए.
  • एक हिस्से को गरम करने के बाद उस का छेना बनाना चाहिए.
  • छेना बनाने के लिए दूध जब उबलने लगे, तो उसे नीचे उतार लें फिर उस में नीबू के रस की 2-3 बूदें डालें. इस से छेना और दूध का पानी अलगअलग हो जाते हैं.
  • छेना अलग करने के लिए इसे मोटे कपडे़ में छान लें.
  • अब बचा हुआ दूध गरम करें. उसे तब तक उबालें, जब तक कि वह गाढ़ा हो कर आधा न हो जाए. इसी दौरान उस में छेना मिला दें.
  • इस के बाद जब यह खोए जैसा लगने लगे, तो इस में चीनी भी मिला दें.
  • जब यह गाढ़ा हो कर बरफी जमाने लायक हो जाए तो इस में इलायचीपाउडर मिला दें.
  • अब तैयार मिश्रण को किसी बड़े थाल में ठंडा होने के लिए फैला दें.
  • इस के ऊपर से पिस्ता और बादाम डालें. जब यह जम जाए तो इसे अलगअलग आकार में काट लें.
  • इसे बनाने के 4-5 दिनों में खत्म कर दें. ज्यादा दिन रोकने इस का जायका बिगड़ जाता है.

नशा : बाई की बातें नीरा को हजम क्यों नहीं हो रही थीं?

आगंतुकों के स्वागत सत्कार के चक्कर में बैठक से मुख्य दरवाजे तक नीरा के लगभग 10 चक्कर लग चुके थे, लेकिन थकने के बजाय वे स्फूर्ति ही महसूस कर रही थीं, क्योंकि आगंतुकों द्वारा उन की प्रशंसा में पुल बांधे जा रहे थे. हुआ यह था कि नीरा की बहू पूर्वी का परीक्षा परिणाम आ गया था. उस ने एम.बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. लेकिन तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे नीरा के. पूर्वी तो बेचारी रसोई और बैठक के बीच ही चक्करघिन्नी बनी हुई थी. बीचबीच में कोई बधाई का जुमला उस तक पहुंचता तो वह मुसकराहट सहित धन्यवाद कह देती. आगंतुकों में ज्यादातर उस की महिला क्लब की सदस्याएं ही थीं, तो कुछ थे उस के परिवार के लोग और रिश्तेदार. नीरा को याद आ रहा था इस खूबसूरत पल से जुड़ा अपना सफर.

जब महिला क्लब अध्यक्षा के चुनाव में अप्रत्याशित रूप से उन का नाम घोषित हुआ था, तो वे चौंक उठी थीं. और जब धन्यवाद देने के लिए उन्हें माइक थमा दिया गया था, तो साथी महिलाओं को आभार प्रकट करती वे अनायास ही भावुक हो उठी थीं, ‘‘आप लोगों ने मुझ पर जो विश्वास जताया है उस के लिए मैं आप सभी की आभारी हूं. मैं प्रयास करूंगी कि अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं.’’

लेकिन इस तरह का वादा कर लेने के बाद भी नीरा का पेट नहीं भरा था. वे चाहती थीं कुछ ऐसा कर दिखाएं कि सभी सहेलियां वाहवाह कर उठें और उन्हें अपने चयन पर गर्व हो कि अध्यक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण पद के लिए उन्होंने सर्वथा उपयुक्त पात्र चुना है. बहुत सोचविचार के बाद नीरा को आखिर एक युक्ति सूझ ही गई. बहू पूर्वी को एम.बी.ए. में प्रवेश दिलवाना उन्हें अपनी प्रगतिशील सोच के प्रचार का सर्वाधिक सुलभ हथियार लगा. शादी के 4 साल बाद और 1 बच्चे की मां बन जाने के बाद फिर से पढ़ाई में जुट जाने का सास का प्रस्ताव पूर्वी को बड़ा अजीब लगा. वह तो नौकरी भी नहीं कर रही थी.

उस ने दबे शब्दों में प्रतिरोध करना चाहा तो नीरा ने मीठी डांट पिलाते हुए उस का मुंह बंद कर दिया, ‘‘अरे देर कैसी? जब जागो तभी सवेरा. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? मेरे दिमाग में तो तुम्हें आगे पढ़ाने की बात शुरू से ही थी. शुरू में 1-2 साल तो मैं ने सोचा मौजमस्ती कर लेने दो फिर देखा जाएगा. पर तब तक गोलू आ गया और तुम उस में व्यस्त हो गईं. अब वह भी ढाई साल का हो गया है. थोड़े दिनों में नर्सरी में जाने लगेगा. घर तो मैं संभाल लूंगी और ज्यादा जरूरत हुई तो खाना बनाने वाली रख लेंगे.’’

‘‘लेकिन एम.बी.ए. कर के मैं करूंगी क्या? नौकरी? मैं ने तो कभी की नहीं,’’ पूर्वी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि सास के मन में क्या है?

‘‘पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए ही नहीं की जाती. वह करो न करो तुम्हारी मरजी. पर इस से ज्ञान तो बढ़ता है और हाथ में डिगरी आती है, जो कभी भी काम आ सकती है. समझ रही हो न?’’

‘‘जी.’’

‘‘मैं ने 2-3 कालेजों से ब्रोशर मंगवाए हैं. उन्हें पढ़ कर तय करते हैं कि तुम्हें किस कालेज में प्रवेश लेना है.’’

‘‘मुझे अब फिर से कालेज जाना होगा? घर बैठे पत्राचार से…’’

‘‘नहींनहीं. उस से किसी को कैसे पता चलेगा कि तुम आगे पढ़ रही हो?’’

‘‘पता चलेगा? किसे पता करवाना है?’’ सासूमां के इरादों से सर्वथा अनजान पूर्वी कुछ भी समझ नहीं पा रह थी.

‘‘मेरा मतलब था कि पत्राचार से इसलिए नहीं क्योंकि उस की प्रतिष्ठा और मान्यता पर मुझे थोड़ा संदेह है. नियमित कालेज विद्यार्थी की तरह पढ़ाई कर के डिगरी लेना ही उपयुक्त होगा.’’

पूर्वी के चेहरे पर अभी भी हिचकिचाहट देख कर नीरा ने तुरंत बात समेटना ही उचित समझा. कहीं तर्कवितर्क का यह सिलसिला लंबा खिंच कर उस के मंसूबों पर पानी न फेर दे.

‘‘एक बार कालेज जाना आरंभ करोगी तो खुदबखुद सारी रुकावटें दूर होती चली जाएंगी और तुम्हें अच्छा लगने लगेगा.’’

वाकई फिर ऐसा हुआ भी. पूर्वी ने कालेज जाना फिर से आरंभ किया और आज उसे डिगरी मिल गई थी. उसी की बधाई देने नातेरिश्तेदारों, पड़ोसियों, पूर्वी  की सहेलियों और नीरा के महिला क्लब की सदस्याओं का तांता सा बंध गया था. पूर्वी से ज्यादा नीरा की तारीफों के सुर सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘भई, सास हो तो नीरा जैसी. इन्होंने तो एक मिसाल कायम कर दी है. लोग तो अपनी बहुओं की शादी के बाद पढ़ाई, नौकरी आदि छुड़वा कर घरों में बैठा लेते हैं. सास उन पर गृहस्थी का बोझ लाद कर तानाशाही हुक्म चलाती है. और नीरा को देखो, गृहस्थी, बच्चे सब की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर बहू को आजाद कर दिया. ऐसा कर के उन्होंने एक आदर्श सास की भूमिका अदा की है. हम सभी को उन का अनुसरण करना चाहिए.’’

‘‘अरे नहीं, आप लोग तो बस ऐसे ही…’’ प्रशंसा से अभिभूत और स्नेह से गद्गद नीरा ने प्रतिक्रिया में खींसे निपोर दी थीं.

‘‘नीरा ने आज एक और बात सिद्ध कर दी है,’’ अपने चिरपरिचित रहस्यात्मक अंदाज में सुरभि बोली.

‘‘क्या? क्या?’’ कई उत्सुक निगाहें उस की ओर उठ गईं.

‘‘यही कि अपने क्लब की अध्यक्षा के रूप में उन का चयन कर के हम ने कोई गलती नहीं की. ये वास्तव में इस पद के लिए सही पात्र थीं. अपने इस प्रगतिशील कदम से उन्होंने अध्यक्षा पद की गरिमा में चार चांद लगा दिए हैं. हम सभी को उन पर बेहद गर्व है.’’ सभी महिलाओं ने ताली बजा कर अपनी सहमति दर्ज कराई. ये ही वे पल थे जिन से रूबरू होने के लिए नीरा ने इतनी तपस्या की थी. गर्व से उन की गरदन तन गई.

‘‘आप लोग तो एक छोटी सी बात को इतना बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे हैं. सच कहती हूं, यह कदम उठाने से पहले मेरे दिल में इस तरह की तारीफ पाने जैसी कोई मंशा ही नहीं थी. बस अनायास ही दिल जो कहता गया मैं करती चली गई. अब आप लोगों को इतना अच्छा लगेगा यह तो मैं ने कभी सोचा भी नहीं था. खैर छोडि़ए अब उस बात को…कुछ खानेपीने का लुत्फ उठाइए. अरे सुरभि, तुम ने तो कुछ लिया ही नहीं,’’ कहते हुए नीरा ने जबरदस्ती उस की प्लेट में एक रसगुल्ला डाल दिया. शायद यह उस के द्वारा की गई प्रशंसा का पुरस्कार था, जिस का नशा नीरा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

‘‘मैं आप लोगों के लिए गरमगरम चाय बना कर लाती हूं,’’ नीरा ने उठने का उपक्रम किया.

‘‘अरे नहीं, आप बैठो न. चाय घर जा कर पी लेंगे. आप से बात करने का तो मौका ही कम मिलता है. आप हर वक्त घरगृहस्थी में जो लगी रहती हो.’’

‘‘आप बैठिए मम्मीजी, चाय मैं बना लाती हूं,’’ पूर्वी बोली.

‘‘अरे नहीं, तू बैठ न. मैं बना दूंगी,’’ नीरा ने फिर हलका सा उठने का उपक्रम करना चाहा पर तब तक पूर्वी को रसोई की ओर जाता देख वे फिर से आराम से बैठ गईं और बोली, ‘‘यह सुबह से मुझे कुछ करने ही नहीं दे रही. कहती है कि हमेशा तो आप ही संभालती हैं. कभी तो मुझे भी मौका दीजिए.’’

पूर्वी का दबा व्यक्तित्व आज और भी दब्बू हो उठा था. सासूमां के नाम के आगे जुड़ती प्रगतिशील, ममतामयी, उदारमना जैसी एक के बाद एक पदवियां उसे हीन बनाए जा रही थीं. उसे लग रहा था उसे तो एक ही डिगरी मिली है पर उस की एक डिगरी की वजह से सासूमां को न जाने कितनी डिगरियां मिल गई हैं. कहीं सच में उसे कालेज भेजने के पीछे सासूमां का कोई सुनियोजित मंतव्य तो नहीं था?…नहींनहीं उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

‘‘पूर्वी बेटी, मैं कुछ मदद करूं?’’ बैठक से आवाज आई तो पूर्वी ने दिमाग को झटका दे कर तेजी से ट्रे में कप जमाने आरंभ कर दिए, ‘‘नहीं मम्मीजी, चाय बन गई है. मैं ला रही हूं,’’ फिर चाय की ट्रे हाथों में थामे पूर्वी बैठक में पहुंच कर सब को चाय सर्व करने लगी. विदा लेते वक्त मम्मीजी की सहेलियों ने उसे एक बार फिर बधाई दी.

‘‘यह बधाई डिगरी के लिए भी है और नीरा जैसी सास पाने के लिए भी, सुरभि ने जाते वक्त पूर्वी से हंस कर कहा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

अंदर लौटते ही नीरा दीवान पर पसर गईं और बुदबुदाईं, ‘‘उफ, एक के बाद एक…हुजूम थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. थक गई मैं तो आवभगत करतेकरते.’’ जूठे कपप्लेट उठाती पूर्वी के हाथ एक पल को ठिठके पर फिर इन बातों के अभ्यस्त कानों ने आगे बढ़ने का इशारा किया तो वह फिर से सामान्य हो कर कपप्लेट समेटने लगी.

‘‘मीनाबाई आई नहीं क्या अभी तक?’’ नीरा को एकाएक खयाल आया.

‘‘नहीं.’’

‘‘ओह, फिर तो रसोई में बरतनों का ढेर लग गया होगा. इन बाइयों के मारे तो नाक में दम है. लो फिर घंटी बजी…तुम चलो रसोई में, मैं देखती हूं.’’

फिर इठलाती नीरा ने दरवाजा खोला, तो सामने पूर्वी के मातापिता को देख कर बोल उठीं, ‘‘आइएआइए, बहुतबहुत बधाई हो आप को बेटी के रिजल्ट की.’’

‘‘अरे, बधाई की असली हकदार तो आप हैं. आप उसे सहयोग नहीं करतीं तो उस के बूते का थोड़े ही था यह सब.’’

‘‘अरे आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं. मैं ने तो बस अपना फर्ज निभाया है. आइए, बैठिए. मैं पूर्वी को भेजती हूं,’’ फिर पूर्वी को आवाज दी, ‘‘पूर्वी बेटा. तुम्हारे मम्मीपापा आए हैं. अब तुम इन के पास बैठो. इन्हें मिठाई खिलाओ, बातें करो. अंदर रसोई आदि की चिंता मुझ पर छोड़ दो. मैं संभाल लूंगी.’’

नीरा ने दिखाने को यह कह तो दिया था. पर अंदर रसोई में आ कर जो बरतनों का पहाड़ देखा तो सिर पकड़ लिया. मन ही मन बाई को सौ गालियां देते हुए उन्होंने बैठक में नाश्ता भिजवाया ही था कि देवदूत की तरह पिछले दरवाजे से मीनाबाई प्रकट हुई.

‘‘कहां अटक गई थीं बाईजी आप? घर में मेहमानों का मेला सा उमड़ आया है और आप का कहीं अतापता ही नहीं है. अब पहले अपने लिए चाय चढ़ा दो. हां साथ में मेहमानों के लिए भी 2 कप बना देना. मैं तो अब थक गई हूं. वैसे आप रुक कहां गई थीं?’’

‘‘कहीं नहीं. बहू को साथ ले कर वर्माजी के यहां गई थी इसलिए देर हो गई.’’

‘‘अच्छा, काम में मदद के लिए,’’ नीरा को याद आया कि अभी कुछ समय पूर्व ही मीनाबाई के बेटे की शादी हुई थी.

‘‘नहींनहीं, उसे इस काम में नहीं लगाऊंगी. 12वीं पास है वह. उसे तो आगे पढ़ाऊंगी. वर्माजी के यहां इसलिए ले गई थी कि वे इस की आगे की पढ़ाई के लिए कुछ बता सकें. उन्होंने पत्राचार से आगे पढ़ाई जारी रखने की कही है. फौर्म वे ला देंगे. कह रहे थे इस से पढ़ना सस्ता रहेगा. मेरा बेटा तो 7 तक ही पढ़ सका. ठेला चलाता है. बहुत इच्छा थी उसे आगे पढ़ाने की पर नालायक तैयार ही नहीं हुआ. मैं ने तभी सोच लिया था कि बहू आएगी और उसे पढ़ने में जरा भी रुचि होगी तो उसे जरूर पढ़ाऊंगी.’’

‘‘पर 12वीं पास लड़की तुम्हारे बेटे से शादी करने को राजी कैसे हो गई?’’ बात अभी भी नीरा को हजम नहीं हो रही थी. 4 पैसे कमाने वाली बाई उसे कड़ी चु़नौती देती प्रतीत हो रही थी.

‘‘अनाथ है बेचारी. रिश्तेदारों ने किसी तरह हाथ पीले कर बोझ से मुक्ति पा ली. पर मैं उसे कभी बोझ नहीं समझूंगी. उसे खूब पढ़ाऊंगीलिखाऊंगी. इज्जत की जिंदगी जीना सिखाऊंगी.’’

‘‘और घर बाहर के कामों में अकेली ही पिसती रहोगी?’’

‘‘उस के आने से पहले भी तो मैं सब कुछ अकेले ही कर रही थी. आगे भी करती रहूंगी. मुझे कोई परेशानी नहीं है, बल्कि जीने का एक उद्देश्य मिल जाने से हाथों में गति आ गई है. लो देखो, बातोंबातों में चाय तैयार भी हो गई. अभी जा कर दे आती हूं. मैं ने कड़क चाय बनाई है. आधा कप आप भी ले लो. आप की थकान उतर जाएगी,’’ कहते हुए मीनाबाई ट्रे उठा कर चल दी. नीरा को अपना नशा उतरता सा प्रतीत हो रहा था.

ठीक हो गए समीकरण

‘प्रैक्टिकल होने का क्या फायदा? लौजिक बेकार की बात है. प्रिंसिपल जीवन में क्या दे पाते हैं? सिद्धांत केवल खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द होते हैं, जो हमेशा डरडर कर जीवन जीते हैं. सचाई, ईमानदारी सब किताबी बातें हैं. आखिर इन का पालन कर के तुम ने कौन से झंडे गाड़ लिए,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और उसे लगा जैसे वह किसी कठघरे में खड़ी है. उस के जीवन यहां तक कि उस के वजूद की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. सारे समीकरण गलत व बेमानी साबित करने की कोशिश की जा रही है.

‘‘जो तुम कमिटमैंट की बात करती हो वह किस चिडि़या का नाम है… आज के जमाने में कमिटमैंट मात्र एक खोखले शब्द से ज्यादा और कुछ नहीं है. कौन टिकता है अपनी बात पर? अपने हित की न सोचो तो अपने सगे भी धोखा देते हैं और तुम हो कि सारी जिंदगी यही राग अलापती रहीं कि जो कहो, उसे पूरा करो.’’

‘‘तुम कहना चाहते हो कि झूठ और बेईमान ही केवल सफल होते हैं,’’ सुकांत की

इतनी कड़वी बातें सुनने के बावजूद वह उस की संकीर्ण मानसिकता के आगे झुकने को तैयार नहीं थी. आखिर कैसे वह उस की जिंदगी के सारे फलसफे को झुठला सकता है? जिस आदमी को उस ने अपनी जिंदगी के 25 साल दिए हैं, वही आज उस का मजाक उड़ा रहा है, उस की मेहनत, उस के काम और कबिलीयत सब को इस तरह से जोड़घटा रहा है मानो इन सब चीजों का आकलन कैलकुलेटर पर किया जाता हो. हालांकि जिस तरह से सुकांत की कनविंस व मैनीपुलेट करने की क्षमता है, उस के सामने कुछ पल के लिए तो उस ने भी स्वयं को एक फेल्योर के दर्जे में ला खड़ा किया था.

‘‘अगर तुम ने यह ईमानदारी और मेहनत का जामा पहनने के बजाय चापलूसी और डिप्लोमैसी से काम लिया होता तो आज अपने कैरियर की बुलंदियों को छू रही होती. सोचो तो उम्र के इस पड़ाव पर तुम कहां हो और तुम से जूनियर कहां निकल गए हैं. अचार डालोगी अपनी काबिलीयत का जब कोई पूछने वाला ही नहीं होगा,’’ सुकांत के चेहरे पर एक बीभत्सता छा गई थी. लग रहा था कि आज वह उस का अपमान करने को पूरी तरह से तैयार था. अपनी हीनता को छिपाने का इस से अच्छा तरीका और हो भी क्या सकता था उस के लिए कि वह उस के सम्मान के चीथड़े कर दे.

‘‘फिर तो तुम्हारे हिसाब से मैं ने जो ईमानदारी और पूर्ण समर्पण के साथ तुम्हारे साथ अपना रिश्ता निभाया, वह भी बेमानी है. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था,’’ उस ने थोड़ी तलखी से कहा.

‘‘मैं रिश्ते की बात नहीं कर रहा. दोनों चीजों को साथ न जोड़ो. मैं तुम्हारे कैरियर के बारे में बात कर रहा हूं,’’ सुकांत जैसे हर तरह से मोरचा संभाले था.

‘‘क्यों, यह बात तो हर चीज पर लागू होनी चाहिए. तुम अपने हिसाब से जब चाहो मानदंड तय नहीं कर सकते… और जहां तक मेरी बात है तो मैं अपने से संतुष्ट हूं खासकर अपने कैरियर से. तुम ने कभी न तो मुझे मान दिया है और न ही दे सकते हो, क्योंकि तुम्हारी मानसिकता में ऐसा करना है ही नहीं. किसे बरदाश्त कर सकते हो तुम,’’ न जाने कब का दबा आक्रोश मानो उस समय फूट पड़ा था. वह खुद हैरान थी कि आखिर उस में इतनी हिम्मत आ कहां से गई.

‘‘ज्यादा बकवास मत करो नीला, कहीं मेरा धैर्य न चुक जाए,’’ बौखला गया था सुकांत. इतना सीधा प्रहार इस से पहले नीला ने उस पर कभी नहीं किया था.

‘‘तुम्हारा धैर्य तो हमेशा बुलबुलों की तरह धधकता रहा है… मारोगे? गालियां दोगे? इस के सिवा तुम कर भी क्या सकते हो? अच्छा यही होगा हम इस बारे में और बात न करें,’’ नीला बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी. फायदा भी कुछ नहीं था. सुकांत जब पिछले 24 सालों में नहीं बदला तो अब क्या बदलेगा. जो अपनी पत्नी की इज्जत करना न जानता हो, उस से बहस करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला था.

 

नीला को बस इसी बात का अफसोस था कि वह अपने बेटे को सुकांत के इन्फलुएंस से बचा नहीं पाई थी. पता नहीं क्यों नीरव को हमेशा लगता था कि पापा ही ठीक हैं. संस्कारों की जो पोटली उस ने बचपन में नीरव को सौंपी थी वह उस ने बड़े होने के साथ ही कहीं दुछती पर पटक दी थी. उस के बाद उसे कभी खोलने की कोशिश नहीं की. वह बहुत समझाती कि नीरव खुद अपनी आंखों से दुनिया देखो, पापा के चश्मे से नहीं. पर वह भी उस की बेइज्जती कर देता. उस की बात अनसुनी कर पापा के खेमे में शामिल हो जाता. वह मनमसोस कर रह जाती. स्कूलकालेज और उस के बाद अब नौकरी में भी वह पापा के बताए रास्ते पर ही चल रहा है.

अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाते देखने के बावजूद वह कुछ नहीं कर पा रही थी.

उस पीड़ा को वह दिनरात सह रही थी और नीरव की जिंदगी को ले कर ही वह उस समय सुकांत से लड़ पड़ी थी. विडंबना तो यह थी कि नीरव की बात करने के बजाय सुकांत उस की जिंदगी के पन्नों को ही उलटनेपलटने लगा था. यह सच था कि वह डिप्लोमैसी से सदा दूर रही और सिर्फ काम पर ही उस ने ध्यान दिया और इस वजह से वह बहुत तेजी से उन लोगों की तुलना में कामयाबी की सीढि़यां नहीं चढ़ पाई जो खुशामद और चालाकी की फास्ट स्पीड ट्रेन में बैठ आगे निकल गए थे. लेकिन उसे अफसोस नहीं था, क्योंकि उस की ईमानदारी ने उसे सम्मान दिलाया था.

कई बार सुकांत के रवैए को देख कर उस का भी विश्वास डगमगा जाता था पर वह संभल जाती थी या शायद उस की प्रवृत्ति में ही नहीं था किसी को धोखा देना.

‘‘और जो तुम नीरव को ले कर मुझे हमेशा ताना मारती रहती हो न, देखना एक दिन वह बहुत तरक्की करेगा. सही राह पर चल रहा है वह. बिलकुल वैसे ही जैसे आज के जमाने की जरूरत है. लोगों को धक्का न दो तो वे आप को धकेल कर आगे निकल जाते हैं.’’

नीला का मन कर रहा था कि वह जोरजोर से रोए और उस से कहे कि वह नीरव को मुहरा न बनाए. नीला को परास्त करने का मुहरा. सुकांत उसे देख रहा था मानो उस का उपहास उड़ा रहा हो.

कितनी देर हो गई है, नीरव क्यों नहीं आया अब तक. परेशान सी नीला बरामदे के चक्कर लगाने लगी. रात के 10 बज रहे थे. मोबाइल भी कनैक्ट नहीं हो रहा था उस का. मन में अनगिनत बुरे विचार चक्कर काटने लगे. कहीं कुछ हो तो नहीं गया… औफिस में भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. सुकांत को तो शराब पीने के बाद होश ही नहीं रहता था. वह सो चुका था.

अचानक नीला का मोबाइल बजा. कोई अंजान नंबर था. फोन रिसीव करते हुए उस के हाथ थरथराए.

‘‘नीरव के घर से बोल रहे हैं?’’

नीला के मन की बुरी आशंकाएं फिर से सिर उठाने लगीं, ‘‘क्या हुआ उसे, वह ठीक तो है न? आप कौन बोल रहे हैं?’’ उस का स्वर कांप रहा था.

‘‘वैसे तो वे ठीक हैं, पर फिलहाल जेल में हैं, उन्हें अरैस्ट किया गया है. अपनी कंपनी में कोई घोटाला किया है उन्होंने. कंपनी के मालिक के कहने पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया है.’’

तभी लाइन पर नीरव के दोस्त समर की आवाज सुनाई दी, ‘‘आंटी मैं हूं नीरव के साथ. बस आप अंकल को भेज दीजिए. उस की जमानत हो जाएगी.’’

पूरी रात जेल में बीती उन तीनों की. नीला को नीरव को सलाखों के पीछे खड़ा देख लग रहा था कि वह सचमुच एक फेल्योर है. हैरानी की बात थी कि सुकांत एकदम चुप थे. न नीरव से, न ही नीला से कुछ कहा, बस उस की जमानत कराने की कोशिश में लगे रहे.

नीला को लगा नीरव को कुछ भलाबुरा कहना ठीक नहीं होगा. उस के चेहरे पर पछतावा और शर्मिंदगी साफ झलक रही थी. शायद मां ने उसे जो ईमानदारी का पाठ बचपन में सिखाया था, उसे ही वह आज मन ही मन दोहरा रहा था.

शाम हो गई थी उन्हें लौटतेलौटते. अपने को घसीटते हुए, अपनी सोच के दायरों में

चक्कर काटते हुए तीनों ही इतने थक चुके थे कि उन के शब्द भी मौन हो गए थे या शायद कभीकभी चुप्पी ही सब से बड़ा मरहम बन जाती है.

‘‘मुझे माफ कर दो मां,’’ नीरव उस की गोद में सिर रख कर सुबक उठा.

‘‘तू क्यों माफी मांग रहा है? गलती तो मेरी है. मैं ने ही तेरे मन में बेईमानी के बीज बोए, तुझे तरक्की करने के गलत रास्ते पर डाला. आज जो भी कुछ हुआ उस का जिम्मेदार मैं ही हूं और नीला मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं. सारी उम्र तुम्हें तिरस्कृत करता रहा, तुम्हारा उपहास उड़ाता रहा. सारे समीकरण गलत साबित कर दिए थे मैं ने. प्रिंसिपल ही जीवन में सब कुछ होते हैं, सिद्धांत खोखले लोगों की डिक्शनरी के शब्द नहीं वरन जीवन जीने का तरीका है. सचाई, ईमानदारी किताबी बातें नहीं हैं,’’ सुकांत लगातार बोले जा रहा था और नीला की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे.

नीरव को जब उस ने सीने से लगाया तो लगा सच में आज उस की ममता जीत गई है. उस का खोया बेटा उसे मिल गया है. सारे समीकरण ठीक हो गए थे उस की जिंदगी के.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें