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मेरे चेहरे पर बहुत ज्यादा पिंपल्स हो गए हैं, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कोई घरेलू उपाय बताएं ?

सवाल

मैं 17 वर्षीय युवती हूं. मेरे चेहरे पर बहुत पिंपल्स हैं और उन के काले निशान भी बन गए हैं, जिस से चेहरा बहुत भद्दा दिखता है. मैं ने कई तरह का इलाज करवा लिया पर कोई फर्क नहीं दिख रहा. कृपया मुझे इस समस्या को दूर करने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब
चेहरे पर पिंपल्स होने का कारण प्रदूषण और हारमोनल बदलाव होते हैं. पिंपल्स के दाग हटाने के लिए टमाटर के रस को रुई की सहायता से दागों पर लगाएं. इस के अलावा आलू के छिलकों को दागों पर रगड़ें. दही व बेसन का उबटन लगाएं. नीबू के रस में हलदी मिला कर पेस्ट बनाएं व पिंपल्स पर लगाएं. इन सभी घरेलू उपायों से आप की समस्या का समाधान होगा और धीरेधीरे पिंपल्स के दाग भी हलके हो जाएंगे. इस के अतिरिक्त ज्यादा औयली भोजन न लें. जंक फूड न खाएं.

कहानियां जो आपको सफल बना सकती हैं

Top 10 safalta ki Hindi kahaniyan : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट सफ़लता की कहानियां . पढ़िए वो कहानियां जो आपको सफल बना सकती हैं. साथ ही आपके जीवन में लाएंगी सफलता और खुशी के नए आयाम. इसके अलावा सरिता की हिंदी कहानियां मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने का बहुत ही अच्छा संदेश भी देती हैं. जिनसे सीख लेकर लोग उन्हें, अपने जीवन में भी अपना सकता है. इससे उनका आत्मविश्वास प्रबल होगा. साथ ही अपने सपनों को पूरा करने का हौसला मिलेगा.

Journey to Success : विश्व को बदल देने वाले ये हिंदी सफलता के किस्से

1. मजबूत औरत : आत्मसम्मान के साथ जीती एक मां की कहानी

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ऊषा ने जैसे ही बस में चढ़ कर अपनी सीट पर बैग रखा, मुश्किल से एकदो मिनट लगे और बस रवाना हो गई. चालक के ठीक पीछे वाली सीट पर ऊषा बैठी थी. यह मजेदार खिड़की वाली सीट, अकेली ऊषा और पीहर जाने वाली बस. यों तो इतना ही बहुत था कि उस का मन आनंदित होता रहता पर अचानक उस की गोद मे एक फूल आ कर गिरा. खिड़की से फूल यहां कैसे आया, वह इतना सोचती या न सोचती, उस ने गौर से फूल देखा तो बुदबुदाई, ‘ओह, चंपा का फूल’.

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2. माई दादू : बड़ों की सूझबूझ कैसे आती है लोगों के काम ?

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‘‘हाय माई स्वीटी, दादू! आज आप इतना डल कैसे दिख रही हो? मैं तो मूड बना कर आया था आप के साथ बैडमिंटन खेलूंगा, लेकिन आप तो कुछ परेशान दिख रही हो.’’ ‘‘अरे बेटा, कुश, बस तेरी इस लाड़ली बहन कुहु की फिक्र हो रही है. ये कुहु अंशुल के साथ अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुकी है पर अंशुल के पेरैंट्स इस रिश्ते से खुश नहीं. अब जब तक लड़के के मांबाप खुशीखुशी बहू को अपनाने के लिए राजी नहीं होते तो भला कोई रिश्ता अंजाम तक कैसे पहुंचेगा. मुझे तो बस यही फिक्र खाए जा रही है. मेरी तो कल्पना से परे है कि आज के जमाने में भी किसी की इतनी पिछड़ी सोच हो सकती है. आजकल जाति में ऊंचनीच भला कौन सोचता है. वे ऊंचे गोत्र वाले ब्राह्मण हैं तो हम भी कोई नीची जात के तो नहीं.’’

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3. कैप्टन नीरजा गुप्ता

Safalta Ki Kahani

लेह से मेरी नई पोस्टिंग श्रीनगर की एकवर्कशौप में हुई थी. मैं श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरीतो मुझे वीआईपी लाउंज में पहुंच कर यूनिट केएडजूडेंट कैप्टन नसीर एहमद को फोन करना था, हालांकि, अधिकारिक तौर पर उन को मेरे आने की सूचनाथी. मैं ने नसीर साहब को फोन किया, ‘सर, गुडमौर्निंग. मैं कैप्टन नीरजा गुप्ता बोल रही हूंश्रीनगर ऐयरपोर्ट से. इस समय मैं वीआईपी लाउंज मेंहूं.’ ‘गुडमौर्निग, कैप्टन नीरजा. श्रीनगर में आप कास्वागत है. आप वीआईपी लाउंज में ही बैठें. मैंएस्कार्टड गाड़ी भेज रहा हूं. आधा घंटा लग जाएगा. तब तक आप वीआईपी लाउंज में रिफ्रैशमैंट कालुत्फ उठाएं.’ ‘ओके, थैंकस, सर.’ मुझे लेह से ही वीआईपी लाउंज का कूपन मिलगया था. मैं ने ब्रैड मक्खन लिया और खाने लगी.

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4. फरिश्ता : कैसे बदली दुर्गेश्वरी देवी की तकदीर ?

सफ़लता की कहानी

“सर, कोई बहुत बड़े वकील साहब आप से मिलना चाहते हैं,” वार्ड बौय गणपत ने दरवाजा फटाक से खोलते हुए उत्सुकता व उत्कंठा से हांफते हुए कहा और उस की सांसें भी इस कारण फूली हुई थीं. मैं ने हाल ही मैं खिड़की से देखा था कि कोई प्राथमिक स्वास्थय केंद्र के सामने बरगद के पेड़ के नीचे बड़ी व लग्जरी गाड़ी मर्सिडीज पार्क कर रहा था. शायद इस बड़ी गाड़ी के कारण गणपत नैसर्गिक रुप से गाड़ी में आने वाले व्यक्ति को बड़ा वकील मान रहा था. मैं समझ नहीं पा रहा था कि कोई बड़ा सा वकील मुझ से क्यों मिलना चाहता है? सामान्यतया सरकारी अस्पताल में कभीकभार नसबंदी केस बिगड़ने पर मरीज के रिश्तेदार मुआवजे के लिए कोर्ट केस करते हैं. पर उस के लिए सामान्यतया नोटिस मरीज के रिश्तेदार देने आते हैं.

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5. अदला-बदली : जीवन को मधुर बनाने की कला अलका कैसे सीख गई?

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मेरे पति राजीव के अच्छे स्वभाव की परिचित और रिश्तेदार सभी खूब तारीफ करते हैं. उन सब का कहना है कि राजीव बड़ी से बड़ी समस्या के सामने भी उलझन, चिढ़, गुस्से और परेशानी का शिकार नहीं बनते. उन की समझदारी और सहनशीलता के सब कायल हैं. राजीव के स्वभाव की यह खूबी मेरा तो बहुत खून जलाती है. मैं अपनी विवाहित जिंदगी के 8 साल के अनुभवों के आधार पर उन्हें संवेदनशील, समझदार और परिपक्व कतई नहीं मानती.

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6. लैंडर : क्या आकांक्षी अपने सपने की उड़ान भरने में कामयाब हो पाई?

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एक हलचल भरे महानगर के शांत कोनों में, शहर की रोशनी की चमक और जीवन की निरंतर खलबली से दूर एक विशाल गोदाम सा दिखने वाला क्षेत्र था. दूर से ही सुरक्षा बाड़ा शुरू हो जाता था और बड़ेबड़े अक्षरों में उस के बाहर लिखा था, “प्रवेश वर्जित”. सिर्फ अंदर काम करने वाले वैज्ञानिकों और अभियांत्रिकों को ही पता था कि इस विशाल गोदाम के भीतर क्या चल रहा है. आकांक्षी नाम की एक युवती अंतरिक्ष वैज्ञानिक का पदभार यहां संभाले हुए थी. उस का दिल अंतरिक्ष को समर्पित हो चुका था, और आत्मा ब्रह्मांड के अज्ञात रहस्यों से घिर गई थी. उस के सपने उसे पृथ्वी की सीमाओं से बहुत दूर ले गए थे. अपनी हर सांस के साथ, वह चंद्रमा की मिट्टी की सुगंध लेती थी और जब चाहे तब आंखें मूंद कर अंतरिक्ष की भारहीनता को महसूस करती थी.

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7. सहेली की सीख- प्रज्ञा पल्लवी की मां को देखकर क्या सोच रही थी?

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पल्लवी और प्रज्ञा की कुछ दिन पहले ही मित्रता हुई थी. एक दिन स्कूल से घर लौटते समय प्रज्ञा ने पल्लवी को अपने घर चलने के लिए कहा तो पल्लवी अपनी असमर्थता जताती हुई बोली, ‘‘नहीं, आज नहीं. मैं फिर किसी दिन आऊंगी.’’ ‘‘आज क्यों नहीं? तुम्हें आज ही चलना होगा,’’ प्रज्ञा जिद करती हुई आगे बोली, ‘‘हमारे गराज में आज सुबह ही क्रोकोडायल ने 3 बच्चे दिए हैं.’’ क्रोकोडायल प्रज्ञा की पालतू पामेरियन कुतिया का नाम था. ‘‘2 सुंदरसुंदर सफेद और एक काला चितकबरा है,’’ प्रज्ञा हाथों को नचाते हुए पिल्लों की सुंदरता का वर्णन करने लगी. ‘‘अच्छा, तब तो मैं उन्हें देखने कल जरूर आऊंगी.’’

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8. बलात्कार : बहुत हुआ अब और नहीं

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जब पुलिस की जीप एक ढाबे के आगे आ कर रुकी, तो अब्दुल रहीम चौंक गया. पिछले 20-22 सालों से वह इस ढाबे को चला रहा था, पर पुलिस कभी नहीं आई थी. सो, डर से वह सहम गया. उसे और हैरानी हुई, जब जीप से एक बड़ी पुलिस अफसर उतरीं. ‘शायद कहीं का रास्ता पूछ रही होंगी’, यह सोचते हुए अब्दुल रहीम अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया कि साथ आए थानेदार ने पूछा, ‘‘अब्दुल रहीम आप का ही नाम है? हमारी साहब को आप से कुछ पूछताछ करनी है. वे किसी एकांत जगह बैठना चाहती हैं.’’

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9. एक ब्रौड माइंडेड अंकल : नए नजरिए से रिश्तो को संभालते पिता की कहानी

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हमारे महल्ले में एक अंकल रहते हैं. वैसे तो हर महल्ले में कई प्रकार के अंकल पाए जाते हैं, पर हमारे महल्ले के यह अंकल बाकी अंकलों से काफी अलग हैं. दरअसल, वे महल्ले में सामान्यतः पाए जाने वाले अंकलों की तुलना में कुछ ज्यादा ही ब्रौड माइंडेड हैं. वे इतने ज्यादा खुले विचारों के हैं कि ट्रूकौलर पर उन का फोन नंबर भी ‘ब्रौड माइंडेड अंकल’ के नाम से दिखता है. वे मानते हैं कि इस नई पीढ़ी के साथ मातापिता को दोस्तों की तरह पेश आना चाहिए. अंकल का अपने बच्चों के साथ भी काफी दोस्ताना व्यवहार है. वे लड़के और लड़की में जरा भी फर्क नहीं करते हैं. अपने बेटों और बेटी दोनों की बराबर नियम से कुटाई करते हैं. मजाल है, जो कोई बच्चा कह दे कि दूसरा बच्चा उस से कम क्यों पिट रहा है.

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10. समय चक्र : बिल्लू भैया ने क्या लिखा था पत्र में?

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शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…यद्यपि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी?

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पिया बावरा : एक डॉक्टर की प्रेम में बेबसी की कहानी

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न्याय : बेकसूर को न्याय दिलाने वाले व्यक्ति की दिलचस्प कहानी

पिछले वर्ष अपनी पत्नी शुभलक्ष्मी के कहने पर वे दोनों दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले थे. जब चेन्नई पहुंचे तो कन्याकुमारी जाने का भी मन बन गया. विवेकानंद स्मारक तक कई पर्यटक जाते थे और अब तो यह एक तरह का तीर्थस्थान हो गया था. घंटों तक ऊंची चट्टान पर बैठे लहरों का आनंद लेते रहे ेऔर आंतरिक शांति की प्रेरणा पाते रहे. इस तीर्थस्थल पर जब तक बैठे रहो एक सुखद आनंद का अनुभव होता है जो कई महीने तक साथ रहता है.

आने वाले तूफान से अनभिज्ञ दोनों पत्थर की एक शिला पर एकदूसरे से सट कर बैठे थे. ऊंची उठती लहरों से आई ठंडी हवा जब उन्हें स्पर्श करती थी तो वे सिहर कर और पास हो जाते थे. एक ऐसा वातावरण और इतना अलौकिक कि किसी भी भाषा में वर्णन करना असंभव है.

तभी उन्हें लगा कि एक डौलफिन मछली हवा में लगभग 20 मीटर ऊपर उछली और उन्हें अपने आगोश में समा कर वापस समुद्र में चली गई.

यह डौलफिन नहीं सुनामी था. एक प्राणलेवा कहर. इस मुसीबत में उन्हें कोई होश नहीं रहा. कब कहां बह गए, पता नहीं. जो हाथ इतनी देर से एकदूसरे को पकड़े थे अब सहारा खो बैठे थे. न चीख सके न चिल्ला पाए. जब होश ही नहीं तो मदद किस से मांगते?

जब उन्हें होश आया तो किनारे से दूर अपने को धरती पर पड़े पाया.

‘शुभलक्ष्मी,’ सदानंद के मुंह से कांपते स्वर में निकला, ‘यह क्या हो रहा है?’

एक अर्द्धनग्न युवक पास खड़ा था. कुछ दूर पर कुछ शरीर बिखरे पड़े थे. युवक ने उधर इशारा किया और लड़खड़ाते सदानंद को सहारा दिया. उन लोगों में सदानंद ने अपनी पत्नी शुभलक्ष्मी को पहचान लिया. मौत इतनी भयानक होगी, इस का उसे कोई अनुमान नहीं था. डरतेडरते पत्नी के पास गया. एक आशा की किरण जागी. सांस चल रही थी. उस युवक व अन्य स्वयंसेवकों की सहायता से वह उसे अपने होटल के कमरे में ले गए जो सौभाग्य से सुरक्षित था.

डाक्टरी सुविधा भी मिली और कुछ ही घंटों की चिंता के बाद शुभलक्ष्मी को होश आ गया. आंखें खुलने पर इतने सारे अजनबियों को देख कर शुभलक्ष्मी घबरा गई, परंतु फिर सदानंद को सामने खड़ा पा कर आश्वस्त हुई.

‘यह सब क्या हो गया?’ पत्नी के स्वर में कंपन था.

धीरेधीरे सदानंद ने शुभलक्ष्मी को सुनामी के तांडवनृत्य के बारे में बताया.

‘कितना सौभाग्य है हमारा, जो हम बच गए,’ सदानंद ने कहा.

‘हजारोंलाखों लोगों का जीवन एकदम तहसनहस हो गया है.’

‘न मैं ने कहा होता, न हम यहां आते,’ शुभलक्ष्मी के स्वर में अपराधबोध की भावना थी.

‘नहीं, तुम्हारा ऐसा सोचना गलत है. हादसा तो कहीं भी किसी तरह का हो सकता है,’ सदानंद ने पत्नी का हाथ अपने हाथों में ले कर समझाया, ‘घर बैठे भूकंप आ जाता, जमीन खिसक जाती, सड़क पर दुर्घटना हो जाती.’

‘बसबस, मुझे डर लग रहा है,’ शुभलक्ष्मी ने पूछा, ‘बच्चों को बताया?’

‘सब को बता दिया और कह दिया कि हम सकुशल व आनंदपूर्वक हैं,’ सदानंद ने मीठे व्यंग्य से कहा.

‘सब अब निश्चिंत हैं. यातायात ठीक होने पर आ भी सकते हैं. वैसे मैं ने मना कर दिया है.’

‘ठीक किया,’ शुभलक्ष्मी ने उदास हो कर कहा.

‘जानती हो, लक्ष्मी, जब मुझे होश आया तो मैं ने सब से पहले क्या पूछा?’ सदानंद ने माहौल हलका करने के लिए कहा.

‘मेरे बारे में पूछा होगा और क्या?’ शुभलक्ष्मी मुसकराई.

‘नहीं,’ सदानंद ने हंस कर कहा, ‘मैं ने पूछा मेरा चश्मा कहां गया?’

‘छि: तुम और तुम्हारा चश्मा.’ शुभलक्ष्मी हंस पड़ी. अचानक याद आया, ‘पर हम बचे कैसे?’

‘वसीम ने बचाया,’ सदानंद ने कहा.

‘वसीम? यह कौन है?’ शुभलक्ष्मी ने आश्चर्य से पूछा.

‘वैसे तो कोई नहीं, लेकिन हमारे लिए तो मसीहा है,’ सदानंद ने बाहर खड़े वसीम को अंदर बुलाया और कहा, ‘यह वसीम है.’

जबसुनामी ने उन्हें समुद्र में खींच लिया था तब अनेक लोग फंसे हुए थे. लहरें कभी नीचे ले जाती थीं

तो कभी ऊपर उछाल देती थीं. वसीम अच्छा तैराक भी था

जो इस हादसे

के समय कहीं आसपास घूम रहा था. अपनी जान की परवा न कर उस ने कई लोगों को खींच कर तट पर पहुंचाया था. कोई बचा, तो कोई नहीं. बचने वालों में सदानंद और उस की पत्नी भी थे.

‘थैंक यू.’ शुभलक्ष्मी ने कहा.

वसीम की मुसकान में एक अनोखापन था.

‘हिंदी कम जानता है,’ सदानंद ने कहा.

कृतज्ञता दिखाते हुए शुभलक्ष्मी

ने पूछा, ‘बेचारे को कोई इनाम दिया?’

‘लेता ही नहीं,’ सदानंद ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘मैं ने तो सारा पर्स इसे दे दिया था लेकिन इस ने सिर हिला दिया. मेरी जिंदगी में तो ऐसा इनसान पहली बार आया है.’

‘सब तुम्हारी तरह के थोड़े होते हैं,’ शुभलक्ष्मी ने कटाक्ष किया, ‘सिर्फ सजा देना जानते हो.’

आज वही वसीम सदानंद के सामने खड़ा था. सिर झुकाए एक अपराधी के कठघरे में.

चेन्नई से मुंबई काम की खोज में आया था. 2 महीने हो चुके थे लेकिन ऐसे ही छुटपुट काम के अलावा कुछ नहीं. एक झोंपड़ी में एक आदमी ने एक कोना सोने भर को दे दिया था. पड़ोस में एक दूसरा आदमी रहता था जो काम तो करता नहीं था, बस अपनी पत्नी से काम करवाता था और उस की कमाई शराब में उड़ा देता था. ऐसी बातें आम होती हैं और कोई भी अधिक ध्यान नहीं देता.

देर रात झगड़ा और चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर वसीम बाहर आ गया. सारे पड़ोसी तो जानते थे इसलिए कोई बाहर नहीं आया. वह आदमी अपनी पत्नी व 6-7 साल के बच्चे को बुरी तरह पीट रहा था. दोनों के ही खून निकल रहा था. औरत चीख रही थी और बच्चा रो रहा था.

क्रोध में आ कर उस आदमी ने पास पड़ा एक पत्थर उठा लिया.

बच्चे के सिर पर पटकने ही वाला था कि वसीम का सब्र टूट गया. उस ने पत्थर छीन लिया. दोनों में हाथापाई

होने लगी. अपने बचाव के लिए वसीम ने उसे धक्का दिया तो वह पीछे गिर पड़ा. एक नुकीला पत्थर उस आदमी

के सिर में घुस गया और खून बहने लगा. वसीम की समझ में कुछ न आया कि वह क्या करे?

तब तक कुछ तमाशबीन इकट्ठे हो गए थे. औरत छाती पीटपीट कर रो रही थी. डाक्टरी सहायता के अभाव में जब तक उसे अस्पताल पहुंचाया गया, उस की मौत हो गई थी.

पुलिस वसीम को पकड़ कर ले गई. अदालत में पड़ोसियों ने ही नहीं बल्कि मृत आदमी की पत्नी ने भी वसीम के विरुद्ध गवाही दी. इस तरह निचली अदालत ने उसे कातिल करार दिया. आज सदानंद की अदालत में उस की अपील की सुनवाई थी.

सदानंद सोच रहे थे कि जो आदमी अपनी जान की परवा न कर के दूसरों की जान बचा सकता है, क्या वह किसी का कत्ल भी कर सकता था? पड़ोसियों की और मृतक की पत्नी की गवाही पर सारा मामला टिका था. वसीम की बात पर कोई विश्वास नहीं कर रहा था कि वह तो केवल बच्चे की जान बचा रहा था. हाथापाई में वह आदमी मर गया. न तो उसे मारने की कोई इच्छा थी और न ही कारण.

अब सदानंद क्या करें?

पड़ोसियों से पूछा कि क्या वे चश्मदीद गवाह थे? सब लोग तो बाद में रोनापीटना सुन कर बाहर आए थे. इसलिए उन की गवाही अविश्वसनीय थी.

मृतक की पत्नी से पूछा, ‘‘क्या मुलजिम की तुम्हारे पति से कोई दुश्मनी थी?’’

‘‘नहीं,’’ पत्नी का उत्तर था.

‘‘मुलजिम ने तुम्हारे पति को क्या मारा?’’ सदानंद ने पूछा.

पत्नी चुप रही. कोई उत्तर नहीं दिया.

‘‘तुम्हारा पति क्या शराब के नशे में बच्चे को मारने जा रहा था?’’ सदानंद ने पूछा.

पत्नी फिर भी चुप रही. दूसरी बार पूछने पर उस ने अनिच्छा से स्वीकार किया.

‘‘मुलजिम ने तुम्हारे बच्चे को बचाने के लिए हाथापाई की, यह सच है?’’ सदानंद ने पूछा.

2-3 बार पूछने पर पत्नी ने स्वीकार किया.

सदानंद ने अधिक प्रश्न नहीं किए. उन की दृष्टि में मामला स्पष्ट था. यह एक ऐसी दुर्घटना थी जिस के लिए वसीम जिम्मेदार नहीं था. पूरी तरह निर्दोष बता कर उसे बाइज्जत रिहा कर दिया गया.

घर पर जब शुभलक्ष्मी को यह बताया तो उसे बहुत अच्छा लगा.

‘‘बेचारा, उस का पता मालूम है?’’ शुभलक्ष्मी ने कहा, ‘‘उसे कोई काम दिला सकते हो?’’

‘‘कोशिश करूंगा,’’ सदानंद ने कहा.

‘‘उसे बुलाने के लिए एक आदमी को भेजा है.’’

मैं अपनी भाभी से प्यार करता हूं और उनके साथ कई बार सो भी चुका हूं, बताएं क्या मैं ठीक कर रहा हूं ?

सवाल

मैं 22 साल का हूं और पड़ोस की भाभी से बहुत प्यार करता हूं. उन के साथ कई बार हमबिस्तरी कर चुका हूं. उन के 2 बच्चे हैं. मेरी शादी नहीं हुई है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
पड़ोस की भाभी के साथ मुफ्त की मलाई खाना बंद कर दें, वरना कभी भी बुरी तरह फंस सकते हैं. अगर कुछ कामधंधा करते हैं, तो शादी कर के घर बसा सकते हैं. भाभी व उन के बच्चों की जिंदगी तबाह न करें.

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एक अकेली

सरिता घर से निकलीं तो बाहर बादल घिर आए थे. लग रहा था कि बहुत जोर से बारिश होगी. काश, एक छाता साथ में ले लिया होता पर अपने साथ क्याक्या लातीं. अब लगता है बादलों से घिर गई हैं. कभी सुख के बादल तो कभी दुख के. पता नहीं वे इतना क्यों सोचती हैं? देखा जाए तो उन के पास सबकुछ तो है फिर भी इतनी अकेली. बेटा, बेटी, दामाद, बहन, भाई, बहू, पोतेपोतियां, नाते-रिश्तेदार…क्या नहीं है उन के पास… फिर भी इतनी अकेली. किसी दूसरे के पास इतना कुछ होता तो वह निहाल हो जाता, लेकिन उन को इतनी बेचैनी क्यों? पता नहीं क्या चाहती हैं अपनेआप से या शायद दूसरों से. एक भरापूरा परिवार होना तो किसी के लिए भी गर्व की बात है, ऊपर से पढ़ालिखा होना और फिर इतना आज्ञाकारी.

बहू बात करती है तो लगता है जैसे उस के मुंह से फूल झड़ रहे हों. हमेशा मांमां कह कर इज्जत करना. बेटा भी सिर्फ मांमां करता है.  इधर सरिता खयालों में खो जाती हैं: बेटी कहती थी, ‘मां, तुम अपना ध्यान अब गृहस्थी से हटा लो. अब भाभी आ गई हैं, उन्हें देखने दो अपनी गृहस्थी. तुम्हें तो सिर्फ मस्त रहना चाहिए.’  ‘लेकिन रमा, घर में रह कर मैं अपने कामों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती,’ वे कहतीं.  ‘नहींनहीं, मां. तुम गलत समझ रही हो. मेरा मतलब सब काम भाभी को करने दो न…’

ब्याह कर जब वे इस घर में आई थीं तो एक भरापूरा परिवार था. सासससुर के साथ घर में ननद, देवर और प्यार करने वाले पति थे जो उन की सारी बातें मानते थे. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी पर बहुत पैसा भी नहीं था. घर का काम और बच्चों की देखभाल करते हुए समय कैसे बीत गया, वे जान ही न सकीं.

कमल शुरू से ही बहुत पैसा कमाना चाहते थे. वे चाहते थे कि उन के घर में सब सुखसुविधाएं हों. वे बहुत महत्त्वा- कांक्षी थे और पैसा कमाने के लिए उन्होंने हर हथकंडे का इस्तेमाल किया.   पैसा सरिता को भी बुरा नहीं लगता था लेकिन पैसा कमाने के कमल के तरीके पर उन्हें एतराज था, वे एक सुकून भरी जिंदगी चाहती थीं. वे चाहती थीं कि कमल उन्हें पूरा समय दें लेकिन उन को सिर्फ पैसा कमाना था, कमल का मानना था कि पैसे से हर वस्तु खरीदी जा सकती है. उन्हें एक पल भी व्यर्थ गंवाना अच्छा नहीं लगता था. जैसेतैसे कमल के पास पैसा बढ़ता गया, उन (सरिता) से उन की दूरी भी बढ़ती गई.

‘पापा, आज आप मेरे स्कूल में आना ‘पेरैंटटीचर’ मीटिंग है. मां तो एक कोने में खड़ी रहती हैं, किसी से बात भी नहीं करतीं. मेरी मैडम तो कई बार कह चुकी हैं कि अपने पापा को ले कर आया करो, तुम्हारी मम्मी तो कुछ समझती ही नहीं,’ रमा अपनी मां से शर्मिंदा थी क्योंकि उन को अंगरेजी बोलनी नहीं आती थी.

कमल बेटी को डांटने के बजाय हंसने लगे, ‘कितनी बार तो तुम्हारी मां से कहा है कि अंगरेजी सीख ले पर उसे फुरसत ही कहां है अपने बेकार के कामों से.’  ‘कौन से बेकार के काम. घर के काम क्या बेकार के होते हैं,’ वे सोचतीं, ‘जब घर में कोई भी नौकर नहीं था और पूरा परिवार साथ रहता था तब तो एक बार भी कमल ने नहीं कहा कि घर के काम बेकार के होते हैं और अब जब वे रसोईघर में जा कर कुछ भी करती हैं तो वह बेकार का काम है,’ लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा.

उस दिन के बाद कमल ही बेटी रमा के स्कूल जाने लगे. पैसा आने के बाद कमल के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. अब वे बड़ेबड़े लोेगों में उठनेबैठने लगे थे और चाहते थे कि पत्नी भी वैसा ही करे. पर उन को ऐसी महफिलों में जा कर अपनी और अपने कीमती वस्त्रों व गहनों की प्रदर्शनी करना अच्छा नहीं लगता था.  एक दिन दोनों कार से कहीं जा रहे थे. एक गरीब आदमी, जिस की दोनों टांगें बेकार थीं फिर भी वह मेहनत कर के कुछ बेच रहा था, उन की गाड़ी के पास आ कर रुक गया और उन से अपनी वस्तु खरीदने का आग्रह करने लगा. सरिता अपना पर्स खोल कर पैसे निकालने लगीं लेकिन कमल ने उन्हें डांट दिया, ‘क्या करती हो, यह सब इन का रोज का काम है. तुम को तो बस पर्स खोलने का बहाना चाहिए. चलो, गाड़ी के शीशे चढ़ाओ.’

उन का दिल भर आया और उन्हें अपना एक जन्मदिन याद आ गया. शादी के बाद जब उन का पहला जन्मदिन आया था. उन दिनों उन के पास गाड़ी नहीं थी. वे दोनों एक पुराने स्कूटर पर चला करते थे. वे लोग एक बेकरी से केक लेने गए थे. कमल के पास ज्यादा पैसे नहीं थे पर फिर भी उन्होंने एक केक लिया और एक फूलों का गुलदस्ता लेना चाहते थे. बेकरी के बाहर एक छोटी बच्ची खड़ी थी. ठंड के दिन थे. बच्ची ने पैरों में कुछ भी नहीं पहना था. ठंड से वह कांप रही थी. उस की हालत देख कर वे रो पड़ी थीं. कमल ने उन को रोते देखा तो फूलों का गुलदस्ता लेने के बजाय उस बच्ची को चप्पलें खरीद कर दे दीं. उस दिन उन को कमल सचमुच सच्चे हमसफर लगे थे. आज के और उस दिन के कमल में कितना फर्क आ गया है, इसे सिर्फ वे ही महसूस कर सकती थीं.

तब उन की आंखें भर गई थीं. उन्होंने कमल से छिपा कर अपनी आंखें पोंछ ली थीं.  सरिता की एक आदत थी कि वे ज्यादा बोलती नहीं थीं लेकिन मिलनसार थीं. उन के घर में जो भी आता था वे उस की खातिरदारी करने में भरोसा रखती थीं पर कमल को सिर्फ अपने स्तर वालों की खातिरदारी में ही विश्वास था. उन्हें लगता था कि एक पल या एक पैसा भी किसी के लिए व्यर्थ गंवाना नहीं चाहिए.

सरिता की वजह से दूरदूर के रिश्तेदार कमल के घर आते थे और उन की तारीफ भी करते थे. ‘सरिता भाभी तो खाना खिलाए बगैर कभी भी आने नहीं देती हैं’ या फिर ‘सरिता भाभी के घर जाओ तो लगता है जैसे वे हमारा ही इंतजार कर रही थीं’, ‘वे इतने अच्छे तरीके से सब से मिलती हैं’ आदि.  लेकिन उन की बेटी ही उन्हें कुछ नहीं समझती है. रमा ने कभी भी मां को अपना हमराज नहीं बनाया. वह तो सिर्फ अपने पापा की बेटी थी. इस में उस का कोई दोष नहीं है. उस के पैदा होने से पहले कमल के पास बहुत पैसा नहीं था लेकिन जिस दिन वह पैदा हुई उसी दिन कमल को एक बहुत बड़ा और्डर मिला था और उस के बाद तो उन के घर में पैसों की रेलमपेल शुरू हो गई.

कमल समझते थे कि यह सब उस की बेटी की वजह से ही हुआ है. इसलिए वे रमा को बहुत मानते थे. उस के मुंह से निकली हर बात पूरा करना अपना धर्म समझते थे. जिस से रमा जिद्दी हो गई थी. सरिता उस की हर जिद पूरी नहीं करती थी, जिस के चलते वह अपने पापा के ज्यादा नजदीक हो गई थी.  धीरेधीरे रमा अपनी ही मां से दूर होती गई. कमल हरदम रमा को सही और सरिता को गलत ठहराते थे. एक बार सरिता ने रमा को किसी गलत बात के लिए डांटा और समझाने की कोशिश की कि ससुराल में यह सब नहीं चलेगा तो कमल बोल पड़े, ‘हम रमा का ससुराल ही यहां ले आएंगे.’

उस के बाद तो सरिता ने रमा को कुछ भी कहना बंद कर दिया. कमल रमा की ससुराल अपने घर नहीं ला सके. हर लड़की की तरह उसे भी अपने घर जाना ही पड़ा. जब रमा ससुराल जा रही थी तो सब रो रहे थे. सरिता को भी दुख हो रहा था. बेटी ससुराल जा रही थी, रोना तो स्वाभाविक ही था.  सरिता को मन के किसी कोने में थोड़ी सी खुशी भी थी क्योंकि अब उन का घर उन का अपना बनने वाला था. अब शायद सरिता अपनी तरह अपने घर को चला सकती थीं. जब से वे इस घर में आई थीं कोई न कोई उन पर अपना हुक्म चलाता था. पहले सास का, ननद का, फिर बेटी का घर पर राज हो गया था, लेकिन अब वे अपना घर अपनी इच्छा से चलाना चाहती थीं.

रमा अपने घर में खुश थी. उस ने अपनी ससुराल में सब के साथ सामंजस्य बना लिया था. जिस बात की सरिता को सब से ज्यादा फिक्र थी वैसी समस्या नहीं खड़ी हुई. सरिता भी खुश थीं, अपना घर अपनी इच्छा से चला कर, लेकिन उन की खुशी में फिर से बाधा पड़ गई. रमा घर आई और कहने लगी, ‘पापा, मां तो बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. अब भैया की शादी कर दो.’  सरिता चीख कर कहना चाहती थीं कि अभी नहीं, कुछ दिन तो मुझे जी लेने दो. पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कह पाईं और कुछ समय बाद रमा माला को ढूंढ़ लाई. माला उस के ससुराल के किसी रिश्तेदार की बेटी थी.

माला बहुत अच्छी थी. बिलकुल आदर्श बहू, लेकिन ज्यादा मीठा भी सेहत को नुकसान देता है. इसलिए सरिता उस से भी कभीकभी कड़वी हो जाती थी. माला बहुत पढ़ीलिखी थी. वह सरिता की तरह घरघुस्सू नहीं थी. वह मोहित के साथ हर जगह जाती थी और बहुत अच्छी अंगरेजी भी बोल लेती थी, इसलिए मोहित को उसे अपने साथ हर जगह ले जाने में गर्व महसूस होता था. उस ने रमा को भी अपना बना लिया था. रमा उस की बहुत तारीफ करती थी, ‘मां, भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी पसंद की हैं इसलिए न.’

सरिता को हल्के रंग के कपड़े पसंद थे. आज तक वे सिर्फ कपड़ों के मामले में ही अपनी मालकिन थीं लेकिन यहां भी सेंध लग गई. माला सरिता को सलाह देने लगी, ‘मां, आप इतने फीके रंग मत पहना करें, शोख रंग पहनें. आप पर अच्छे लगेंगे.’  कमल कहते, ‘अपनी सास को कुछ मत कहो, वे सिर्फ हल्के रंग के कपड़े ही पहनती हैं. मैं ने कितनी बार कोशिश की थी इसे गहरे रंग के कपड़े पहनाने की पर इसे तो वे पसंद ही नहीं हैं.’

‘कब की थी कोशिश कमल,’ सरिता कहना चाहती थीं, ‘एक बार कह कर तो देखते. मैं कैसे आप के रंग में रंग जाती,’ पर बहू के सामने कुछ नहीं बोलीं.

आज सुबह रमा को घर आना था. उन्होंने रसोई में जा कर कुछ बनाना चाहा. पर माला आ गई, ‘मां, लाइए मैं बना देती हूं.’

‘नहीं, मैं बना लूंगी.’

‘ठीक है. मैं आप की मदद कर देती हूं.’

उन्होंने प्यार से बहू से कहा, ‘नहीं माला, आज मेरा मन कर रहा है तुम सब के लिए कुछ बनाने का. तुम जाओ, मैं बना लूंगी.’

माला चली गई. पता नहीं क्यों खाना बनाते समय उन्हें जोर से खांसी आ गई. मोहित वहां से गुजर रहा था. वह मां को अंदर ले कर आया और माला को डांटने के लिए अपने कमरे में चला गया. सरिता उस के पीछे जाने लगीं ताकि उसे समझा सकें कि इस में माला का कोई दोष नहीं है. वे कमरे के पास गईं तो देखा दोनों भाईबहन बैठे हुए हैं. रमा आ चुकी थी और उन से मिलने के बजाय पहले अपनी भाभी से मिलने चली गई थी.

उन्होंने जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए, रमा की आवाज उन के कान में पड़ी, ‘मां को भी पता नहीं क्या जरूरत थी किचन में जाने की.’

तभी मोहित बोल पड़ा, ‘पता नहीं क्यों, मां समझती नहीं हैं, हर वक्त घर में कुछ न कुछ करती रहती हैं जिस से घर में कलह बढ़ती है, मेरे और माला के बीच जो खटपट होती है उस का कारण मां ही होती हैं.’

‘क्या मैं माला और मोहित के बीच कलह का कारण हूं,’ सरिता सोचती ही रह गईं.

तभी माला की अवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं तो हर वक्त मां का खयाल रखती हूं पर पता नहीं क्यों, मां को तो जैसे मैं अच्छी ही नहीं लगती हूं. अभी भी तो मैं ने कितना कहा मां से कि मैं करती हूं पर वे मुझे करने दें तब न.’

‘मैं समझती हूं, भाभी. मां शुरू से ही ऐसी हैं,’ रमा की आवाज आई.

‘मां को तो बेटी समझ नहीं पाई, भाभी क्या समझेगी,’ सरिता चीखना चाहती थीं पर आवाज जैसे गले में ही दब गई.

‘अच्छा, तुम चिंता मत करो, मैं समझाऊंगा मां को,’ यह मोहित की आवाज थी.

‘कभी मां की भी इतनी चिंता करनी थी बेटे,’ कहना चाहा  सरिता ने पर आदत के अनुसार फिर से चुप ही रहीं.

‘मैं देखती हूं मां को, कहीं ज्यादा तबीयत तो खराब नहीं है,’ माला बोली.

‘जब अपने ही मुझे नहीं समझ रहे तो तू क्या समझेगी जिसे इस घर में आए कुछ ही समय हुआ है,’ सरिता के मन ने कहा.

इधर, आसमान में बिजली के कड़कने की तेज आवाज आई तो वे खयालों की दुनिया से बाहर आ गईं. दरअसल, दोपहर का खाना खाने के बाद जब वे बाजार जाने के लिए घर से निकली थीं तो सिर्फ बादल थे पर जब जोर से बरसात होने लगी तो वे एक बारजे के नीचे खड़ी हो गई थीं. और अब फिर सोचने लगीं कि अगर वे भीग कर घर जाएंगी तो सब क्या कहेंगे? रमा अपनी आदत के अनुसार कहेगी, ‘मां को बस, भीगने का बहाना चाहिए.’

कमल कहेंगे, ‘कितनी बार कहा है कि गाड़ी से जाया करो पर नहीं’.  मोहित कहेगा, ‘मां, मुझे कह दिया होता, मैं आप को लेने पहुंच जाता.’

बहू कहेगी, ‘मां, कम से कम छाता तो ले ही जातीं.’

सरिता ने सारे खयाल मन से अंतत: निकाल ही दिए और भीगते हुए अकेली ही घर की तरफ चल पड़ीं.

झड़ते बाल : समय पर करें उपचार

थोड़ेबहुत बालों का झड़ना तो प्राकृतिक है और हर किसी के साथ ऐसा होता है. 60-100 बाल रोजाना झड़ें तो कोई बात नहीं. लेकिन जब बालों का झड़ना लंबे समय तक जारी रहे और झड़ने वाले बालों की मात्रा भी बढ़ जाए तो यह चिंता की बात है. यदि बालों का झड़ना आप के पूरे परिवार में दिखाई दे रहा है तो यह समस्या वंशानुगत हो सकती है. इस से पहले कि गंजापन दिखने लगे, आप को चिकित्सकीय मदद की जरूरत है.

अगर बालों का झड़ना सामान्य से ज्यादा है और सिर के किसी खास स्थान से अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बाल झड़ रहे हैं तो इस में विशेषज्ञ की सहायता लें. पुरुषों और महिलाओं में गंजेपन के कई कारण हैं, जैसे पोषक तत्वों की कमी, हेयरकेयर उत्पादों का अत्यधिक उपयोग, वंशानुगत समस्या, चल रही दवाओं का साइड इफैक्ट, प्रोटीन की कमी, हार्मोन का असंतुलन, तनाव, एनीमिया, सिर की त्वचा का संक्रमण और कई अन्य कारण शामिल हैं. भारी मात्रा में बालों के झड़ने या गंजेपन का वास्तविक कारण जानने के लिए बेहतर है डाक्टर से मिलें और इस के लिए उचित इलाज लें.

किस के लिए कौन सा इलाज बेहतरीन काम करता है, यह समस्या और उस के संभावित परिणामों पर निर्भर करता है. आमतौर पर प्रोटीन, मैग्नीशियम या जिंक सप्लीमैंट्स युक्त पौष्टिक आहार लेने से बालों के झड़ने की समस्या दूर हो सकती है.

जो व्यक्ति ज्यादा विश्वसनीय, सुरक्षित और दीर्घावधि समाधान चाहते हैं उन के लिए हेयर ट्रांसप्लांट सब से अच्छा विकल्प है. अत्याधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल, अत्याधुनिक क्लीनिक्स की आसान उपलब्धता और कुशल सर्जनों की विशेषज्ञता के चलते और सिर पर बालों को फिर से उगाना संभव है जो असली बालों जितने ही अच्छे दिखते हैं. आमतौर पर, हेयर ट्रांसप्लांट की यह प्रक्रिया जनरल एनेस्थेसिया के अंतर्गत की जाती है और अस्पताल में रुकने की जरूरत नहीं होती. इस से कोई भी व्यक्ति बिना किसी दर्द के अपना युवा लुक फिर से हासिल कर सकता है.

हेयर ट्रांसप्लांट की आसान प्रक्रिया और संतोषजनक परिणाम देने की क्षमता ने इसे मनोरंजन उद्योग और क्रिकेट जगत में भी लोकप्रिय बना दिया है. कई जानीमानी शख्सीयतों जैसे अभिनेता गोविंदा, परमीत सेठी और क्रिकेटर युसुफ पठान, निखिल चोपड़ा, वीवीएस लक्ष्मण, रोजर बिन्नी, दिलीप वैंगसरकर, सौरव गांगुली, कमैंटेटर हर्षा भोगले, चारू शर्मा और अरुण लाल आदि ने भी इस प्रक्रिया को अपनाया है और कैमरे के सामने अपना चेहरा रखने का आत्मविश्वास पाया.

हेयर ट्रांसप्लांट की 2 तरह की प्रक्रियाएं फिलहाल लोकप्रिय हैं-फोलिक्यूलर यूनिट ट्रांसप्लांट यानी एफयूटी पद्घति या स्ट्रिप मैथड और फोलीक्यूलर यूनिट एक्सट्रैक्शन यानी एफयूई या पंच मैथड. एफयूटी या स्ट्रिप पद्घति को दुनियाभर में 90 फीसदी सर्जन इस्तेमाल करते हैं.

इस प्रक्रिया में सिर के बालों को सावधानीपूर्वक फिर से उगाया जाता है. इस में मरीज को लोकल एनेस्थेसिया दिया जाता है और सिर के पिछले हिस्से और साइडों से त्वचा की एक पट्टी बालों एवं बालों के रोम सहित हटाई जाती है.

इस पट्टी को सिर के उन हिस्सों पर ग्राफ्ट (लगाया) किया जाता है जहां बाल नहीं हैं और उसे ‘ट्रिकोपैथिक क्लोजर’ से सील कर दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में 6-8 घंटे का समय लगता है और उसी समय 8-10 डाक्टरों की टीम औपरेशन पर काम करती है. मरीज उसी दिन घर जा सकता है और अगले दिन से अपना काम शुरू कर सकता है. इसी सहूलियत की वजह से ज्यादातर मामलों में यह पद्घति काम करती है.

एक नहीं अनेक कारण

बालों का झड़ना इन दिनों हर उम्र के लोगों में लगातार रहने वाली समस्या बन गई है. युवा हो, वयस्क हो या फिर बुजुर्ग, कोई भी इस अनचाही स्थिति से नहीं बच सकता. रोजाना 100 बालों का झड़ना तो सामान्य है, लेकिन जब झड़ते बालों की संख्या इस आंकड़े को पार कर जाए तो यह चिंता का विषय है.

बालों के झड़ने के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं, जैसे खानपान में पौष्टिकता एवं विटामिन की कमी, संक्रमण, दवाइयां, आनुवंश्किता और वह वातावरण जिस में व्यक्ति रहता है. विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है, ऐसे में बालों का अत्यधिक झड़ना एक प्रोटीन बोटुलिनम टौक्सिन की मदद से रोका जा सकता है जिस को बोटोक्स भी कहते हैं.

बोटुलिनम टौक्सिन कौस्मेटिक इंडस्ट्री में लोकप्रिय नाम है और यह दुनियाभर के एस्थेटिक (सौंदर्य) क्लीनिक्स में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाला उत्पाद है. यह चेहरे के हावभाव व्यक्त करते समय पड़ने वाली झुर्रियों को अस्थायी रूप से कम कर देता है.

इस के अलावा, यह मांसपेशियों में होने वाले दर्द, पुराने माइग्रेन, यूरिनरी इनकंटीनेंस (मूत्र असंयम), ब्लैफेरोस्पाज्म (पलकों का उद्वेष्ट) और अंडरआर्म से अत्यधिक पसीने जैसी बीमारियों के इलाज में भी उपयोग किया जाता है. इन सब के अलावा, हाल ही के अध्ययन बताते हैं कि बोटुलिनम टौक्सिन झड़ते बालों के इलाज में भी बहुत ही मदद कर सकते हैं.

दरअसल, यह आधुनिकतम पद्घति है जिस का इस्तेमाल सर्जन उन महिलाओं व पुरुषों के इलाज में करते हैं जो बाल झड़ने या कमजोर होने की समस्या से जूझ रहे हैं. अनुसंधान इस बात को साबित कर चुके हैं कि सिर के उन हिस्सों पर बाल उड़ने की संभावना ज्यादा रहती है जहां रक्त व औक्सीजन की आपूर्ति कम रहती है और डीहाइड्रोटेस्टोस्टीरोन यानी डीएचटी का स्तर ज्यादा होता है. बोटुलिनम टौक्सिन का इंजैक्शन लगा कर बालों के रोमों में खून और औक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है, जिस के चलते नए बालों के विकास और मौजूदा बालों को मजबूती मिलती है. इस के अलावा, यह बालों की जड़ों को पौष्टिक तत्त्वों की आपूर्ति भी बढ़ाती है और किसी भी क्षेत्र में औक्सीजन का स्तर ऊंचा होने से बनने वाले डीएचटी को रोकती है.

क्या है प्रक्रिया

टौक्सिन को सिर के अग्रभाग, टैंपल्स और शिखर में लगाया जाता है. एक पतली सुई के जरिए 15 मिनट के लिए 20-30 माइक्रोइंजैक्शंस लगाए जाते हैं. यह उपचार एक एनेस्थेटिक क्रीम के तहत शुरू किया गया है जो किसी भी तरह के दर्द से बचने के लिए सिर की त्वचा पर लगाया जाता है. बोटुलिनम टौक्सिन सिर की मांसपेशियों को आराम पहुंचाती है और तनाव को दूर करती है. रक्तवाहिनियों को आराम पहुंचा कर तनाव को दूर करती है और बालों के रोमों में रक्त की आपूर्ति बढ़ाती है.

हालांकि बोटुलिनम टौक्सिन को बालों की ग्रोथ को बढ़ावा देने में सहायक माना गया है लेकिन गंजेपन के इलाज में इस की सुरक्षा और दक्षता पर और अधिक क्लीनिकल रिसर्च व अध्ययन की जरूरत है. एक बार कौस्मेटिक्स इंडस्ट्री इस बात का पुख्ता प्रमाण जुटा ले तो बालों को उगाने में टौक्सिन का इस्तेमाल हेयरलौस ट्रीटमैंट में एक लंबी छलांग होगा.

(लेखिका कौस्मेटिक डर्मेटोलौजिस्ट ऐंड लेजर सर्जन हैं.)

वी लव यू सीजर : एक बेजुबान जानवर ने कैसे जो़ड़ा दो परिवारों को ?

सोसायटी में होली मिलन का कार्यक्रम चल रहा था. 20 साला रेवती अपनी मम्मी, पापा और भाई के साथ कार्यक्रम में थी. लोग एकदूसरे को गुझिया खिलाते और गले मिलते.

रेवती की नजर सामने से आते हुए तनेजा परिवार पर पड़ी. तनेजा उन के पड़ोसी भी हैं, पर जब से रेवती ने
होश संभाला है, तब से दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव ही पाया है. पता नहीं, क्यों एक तनाव और खामोशी सी छाई रहती है दोनों परिवारों के बीच.

यही सब सोच कर उस का मन भी कसैला हो गया. शायद तनेजा परिवार के मन में यही चल रहा होगा, तभी तो उन लोगों ने सिन्हा अंकल को तो गुझिया खिलाई और गले भी मिले, पर रेवती और उस के मम्मीपापा को अनदेखा कर दिया और आगे बढ़ गए.

आज से पहले रेवती ने भी कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया था, पर आज जब अचानक से तनेजा अंकल, आंटी और उन का 24 साल का बेटा शेखर ठीक सामने आ कर भी नहीं बोले, तो उस के मन को बुरा जरूर लगा.

“अच्छा मम्मी, एक बात पूछूं…. बुरा तो नहीं मानोगी,” रेवती उदास लहजे में बोली. “हां… हां, पूछ,” मम्मी ने कहा. “ये जो पड़ोस वाले तनेजा अंकल हैं न… हम लोगों से क्यों नहीं बोलते हैं ?”

मम्मी थोड़ी देर तक तो चुप रहीं, फिर मम्मी ने रेवती का जवाब देना शुरू किया, “बेटी, तेरे पापा को डौगी बहुत अच्छे लगते हैं. जब तू छोटी थी, तब वो एक जरमन शेफर्ड ब्रीड का डौगी ले कर आए थे. उस के बाल भूरे और काले से थे… कुछ धूपछांव लिए हुए… इसलिए कभी वह भूरा लगता तो कभी काला… उस की चमकीली आंखों में हम लोगों के लिए हमेशा
प्यार झलकता.

“सोसायटी के पार्क में वह तेरे पापा के संग खूब खेलता था. हम सब उसे ‘ब्रूनो’ नाम से बुलाते थे… एक बार की बात है, जब तेरे पापा ब्रूनो को मौर्निंग वाक पर ले कर जा रहे थे, तब मिस्टर तनेजा का छोटा भाई अपने घर से निकला. उस के हाथ में एक डंडा था. ब्रूनो ने समझा कि वे उसे मारने के लिए आ रहे हैं.

आतंकित हो कर वह उन पर भूंकने लगा. तेरे पापा के हाथ से जंजीर में होने के बावजूद वह उन पर झपटने लगा… जरमन शेफर्ड देखने में थोडे तेजतर्रार लगते हैं, इसलिए वे भी ब्रूनो के भूंकने से डर गए और बिना आगेपीछे देखे ही रोड
पर भाग लिए. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, पीछे से आती एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी… बस, तब से तनेजा परिवार उन की मौत के लिए हमें ही जिम्मेदार मानता है और हम लोगों से संबंध नहीं रखता. अकसर ही वे लोग गाड़ी की पार्किंग या म्यूजिक से होने वाली आवाज के लिए हम से लड़ते ही रहते हैं. हालांकि तेरे पापा ने तब से ब्रूनो को अपने एक दोस्त को सौंप दिया है और इस घर में उसे कभी ले कर नहीं आए,” कह कर मम्मी चुप हो गई थीं, पर रेवती अपनेआप में डूब गई और सवाल करने लगी कि ये तो एकमात्र कुसंयोग था कि ब्रूनो के भूंकने से वे भागे और दुर्घटनाग्रस्त हो गए. इस के लिए 2 पड़ोसियों में दुश्मनी को पालना कहां तक उचित है?

रेवती ने इन बातों पर और सोचविचार करना छोड़ दिया और किचन में जा कर अपने लिए नूडल्स बनाने लगी.

सर्दियों की धूप में एक दिन रेवती अपनी सहेली रिया के साथ सोसायटी के पार्क में बैठी हुई थी. सूरज की किरणें उस के गोरे चेहरे को और भी सुनहरा बना रही थी. आज के दिन कई दिन
बाद ऐसी धूप खिली थी, इसलिए पार्क में काफी गहमागहमी थी. एक छोटा सा डौगी, जो एक बुलडौग
था, रेवती के पैरों के पास आ खड़ा हुआ और अपनी छोटी सी जीभ निकाल कर उस की तरफ एकटक देखने लगा.

रेवती को उस का अपनी तरफ टुकुरटुकुर देखना बहुत अच्छा लगा. उस ने प्यार से डौगी के बालों को सहला दिया. डौगी तो जैसे इसी प्यारभरे स्पर्श का इंतजार ही कर रहा था. उस ने झट से अपनी दोनों अगली टांगें पसार दीं और वहीं घास पर बैठने की तैयारी करने लगा. इतने में उसे ढूंढते हुए एक लड़का
आवाज देते हुए आया. रेवती ने आवाज की दिशा में अपनी नजर दौड़ाई, तो देखा कि ये तो उस के पड़ोसी मिस्टर तनेजा का बेटा शेखर था.

शेखर पहले तो रेवती को देख कर ठिठक गया, पर अगले कुछ पलों में रेवती की तरफ एक फीकी सी मुसकराहट दे दी और बोला, “इसी को ढूंढ़ रहा था… बहुत नौटी हो गया है. सर्दियों में नहाने से बहुत कतराता है. पर, आज मैं ने इसे नहला ही दिया,” बोल रहा था शेखर.

बदले में रेवती को समझ नहीं आया कि वो आखिर कहे तो क्या कहे?

“इस का नाम क्या है?” रिया ने पूछ ही लिया.

“सीजर… सीजर रखा है मैं ने इस का नाम… अच्छा है न,” शेखर ने रेवती की तरफ देखते हुए कहा, पर उत्तर रिया ने दिया, “डैम गुड.”

शेखर ने सीजर को पुकारा और उस के साथ धीरेधीरे दौड़ लगाने लगा.

“हाय, कितना सुंदर है?” रिया ने कहा.

“कौन…? डौगी या डौगी वाला,” रेवती ने चुसकी ली, तो रिया ने कहा, “मुझे तो दोनो पसंद आ गए हैं. किसी के साथ भी अफेयर करवा दे,” शरारती अंदाज में रिया कह रही थी.

“कितना अच्छा लड़का है, हैंडसम और मीठा बोलने वाला. उस की आंखें भी बोलते समय उस की जबान का साथ देती हैं… और रेवती को देख कर वो मुसकराया भी था… क्यों नहीं मुसकराए भाई? पड़ोसी ही तो है… और फिर हम दोनों हमउम्र भी हैं और युवा भी… पुरानी दुश्मनी से हमें क्या?” मन ही मन सोचने लगी थी रेवती.

अगले दिन जब रेवती कालेज से लौट रही थी, तभी उस की स्कूटी रास्ते में खराब हो गई. रेवती को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने आसपास देखा, कोई मेकैनिक भी नजर नहीं आया. वह स्कूटी को किनारे खड़ी कर अपने पापा को फोन लगाने जा रही थी कि वहां शेखर आ गया.

“क्या हुआ? कोई दिक्कत है क्या?”

“स्कूटी खराब हो गई है.”

“कोई बात नहीं. मैं देख लेता हूं,” कह कर शेखर ने स्कूटी को स्टार्ट किया, तो स्कूटी बड़ी आसानी से स्टार्ट हो गई.

“थैंक यू,” रेवती ने कहा.

“इट्स आल राइट,”शेखर ने मुसकरा कर जवाब दिया.

इस के बाद वे दोनों सड़क के किनारे खड़े हो कर बातें करने लगे, जिस में शेखर ने अपनेआप को डौगीज का बहुत बड़ा प्रेमी बताया और रेवती को यह भी कहा कि 2 दिन बाद ही शहर में एक डौग शो होने जा रहा है, जिस में बहुत सारे लोग अपने पेट्स ले कर आएंगे और जिस का डौगी सब से प्यारा और स्मार्ट होगा, उसे विजेता घोषित किया जाएगा.

हालांकि रेवती को डौग्स पसंद तो थे, पर इतने नहीं कि वो किसी डौग शो को देखने जाए, पर शेखर की बातों में उसे ऐसा आमंत्रण महसूस हुआ कि रेवती ने मन ही मन डौग शो में जाने का विचार बना लिया.

अपनी सहेली रिया को ले कर रेवती डौग शो में पहुंची. यहां पहुंच कर उस का मन खुशियों से भर गया. कितनी अलगअलग जाति के अलग
डौगीज थे. यहां पर भूटिया, लेब्राडोर, साइबेरियन हस्की और दुर्लभ प्रजाति का पूडल अपनी अदाएं दिखा रहे थे.

डौग्स से अधिक तो उन के मालिक इठला रहे थे और वे कभी अपने पालतू को निहारते तो कभी उन के पेट्स पर पड़ने वाली दूसरों की निगाहों को देखते… जैसे वे कहना चाह रहे हों कि अरे भाई मेरे डौग को नजर तो मत लगाओ.

इतने में शेखर ने रेवती को देख लिया था और हाथ से हेलो का वेव किया. सीजर तो आज एकदम तरोताजा और खूबसूरत लग रहा था. उस के बाल चमकीले लग रहे थे.

शेखर रेवती के पास आया और दोनों बातें करने लगे. शेखर उसे डौग्स से संबंधित तरहतरह की नई जानकारी दिए जा रहा था.

रेवती और शेखर को एकसाथ समय बिताना काफी अच्छा लग रहा था और उन दोनों ने अपने घर में बरसों से पल रहे तनाव पर भी बातें कीं. अब तक दोनों के बीच मोबाइल नंबरों का लेनदेन भी हो चुका था.

शो के अंत में आयोजकों द्वारा जलपान की व्यवस्था थी. शेखर, रेवती और रिया जलपान करने लगे और उस के बाद दोनों ने एकदूसरे से
विदा ली.

शेखर और रेवती दोनों के बीच व्हाट्सएप पर चैटिंग की शुरुआत भी हो गई थी. और कहना गलत नहीं होगा कि दोनों के बीच प्रेम का अंकुर जन्म ले चुका था.

एक दिन की बात है, जब शेखर अपने फ्लैट से निकल रहा था. सामने से रेवती आ रही थी और दोनों की आंखों में एकदूसरे के प्रति प्रेमभरी मुसकराहट थी. कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, पर, इन दोनों के मामले में ऐसा ही हुआ.

शेखर और रेवती को मुसकराते हुए रेवती के भाई ने देख लिया और उसे रेवती पर शक हो गया. उस ने घर आ कर चुपके से रेवती का मोबाइल चेक किया, जिस में व्हाट्सएप पर ढेर सारे मैसेज और चैट थे. इतना ही नहीं, उस ने काल रिकौर्डिंग भी सुन ली.

और यह बात उस ने अपने मम्मीपापा को भी बता दी. चूंकि दोनों परिवारों में तनातनी थी, इसलिए रेवती और शेखर की दोस्ती किसी को रास नहीं आई.

रेवती का मोबाइल छीन लिया गया और उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई.

रेवती का भाई ही उसे कालेज छोड़ने और लेने जाता.

पिछले कई दिनों से रेवती का कोई मैसेज भी नहीं आया और न ही फोन. फोन करने पर उठा नहीं, तो शेखर परेशान हो उठा. उस ने रेवती की बालकनी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. हालांकि उस की मेहनत बेकार नहीं गई. एक बार रेवती बालकनी में निकली, तो उस की निगाहें शेखर से मिलीं.

रेवती की सूनी आंखों को देख कर वह जान गया कि उस के प्रेम संबंधों का पता रेवती के घर वालों को लग गया है.

इस मामले में शेखर को भी समझ नहीं आ रहा था कि आगे वो क्या करे. दोनों परिवारों के संबंध इतने खराब थे कि शेखर उन के घर जाना ठीक नहीं समझता था. पता नहीं, रेवती के मातापिता और भाई कैसा व्यवहार करें, पर प्रेम इन दोनों के दिल की तड़प बढा रहा था. और रेवती से बात करने का मन कर रहा था शेखर का.

रविवार का दिन था. शेखर ब्रूनो को ले कर सोसायटी के पार्क में आया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब उस ने पार्क में रेवती को भी देखा, पर अगले ही पल वह गंभीर हो गया. क्योंकि शेखर जानता था कि कहीं न कहीं से रेवती पर नजर जरूर रखी जा रही है, इसीलिए रेवती
उसे देख कर मुसकराई भी नहीं और उस का फोन अब भी बंद आ रहा था.

रेवती को सामने देख कर भी उस से बात नहीं कर पाना शेखर को और भी परेशान कर रहा था, फिर अचानक उसे संदेश लेनदेन का बहुत पुराना, पर कारगर तरीका याद आया और उस ने फौरन ही सीजर को पास बुलाया और उस के गले में लटके पट्टे में एक क्लिप की
सहायता से एक परची फंसा दी. उस पर्ची पर लिखा था, ‘मैं तुम से बात करना चाहता हूं.’

सीजर खेलतेखेलते रेवती के पास पहुंचा और अपनी छोटीछोटी चमकीली आंखों से रेवती को निहारने लगा. रेवती ने थकी आंखों से सीजर को देखा और उस के सिर को सहलाया, तभी उस की नजर उस परची पर पड़ गई. रेवती ने धीरे से वह परची निकाली और सरसरी निगाह से उसे पढ़ा और सब की नजर बचाते हुए उस का जवाब लिखा कि मैं बात नहीं कर सकती. घर में सबको पता चला गया है.

सीजर फिर से भाग कर शेखर के पास वो परची दे आया. और कुछ दिनों तक बिलकुल फिल्मी अंदाज में सीजर उन दोनों के प्रेम की पातियां एकदूसरे तक पहुंचाने और लाने का काम करता रहा. सीजर के इस काम पर किसी को भी शक भी नहीं हुआ था.

‘आखिर कब तक मैं और रेवती इस तरह से बात करते रहेंगे… हम दोनों ही बालिग हैं और हमें अपने जीवनसाथी चुनने का हक है,’ मन ही मन सोच रहा था शेखर.

उस दिन रेवती अपनी मम्मी के साथ पार्क में आई, तो शेखर के अंदर बहता हुआ जवान खून जोर मारने लगा और वो बिना कुछ सोचेसमझे रेवती और उस की मम्मी के पास पहुंच गया. सीजर भी उस के साथ था.

“नमस्ते आंटी. मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं,” शेखर को इस तरह से बोलते देख कर रेवती कीमम्मी चौंक पड़ी थीं.

“हां… हां, बोलो.”

“दरअसल, मैं और रेवती एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और शादी भी करना चाहते हैं. समय आ गया है कि हम दोनों
परिवार पुरानी कडुवाहट मिटा लें, क्योंकि जो भी हुआ, उस में किसी की गलती नहीं थी.”

ऐसी बातें शेखर के मुंह से सुन कर रेवती की मम्मी बेटी का मुंह ताकने लगी थी. मम्मी ने कुछ नहीं कहा, बस रेवती का हाथ पकड़ा और घर चली आईं.

कुछ दिनों तक रेवती पार्क में भी नहीं आई. इस बीच शेखर का बैंक पीओ का रिजल्ट निकल आया था और उस ने इम्तिहान पास कर लिया था. अब बैंक की अच्छी नौकरी के रास्ते उस के लिए खुल गए थे.

रेवती के फ्लैट की घंटी बजी, तो उस की मम्मी ने दरवाजा खोला. सामने मिस्टर तनेजा अपना परिवार लिए हुए खड़े थे.

“अंदर आने को नहीं कहोगी,” शेखर की मम्मी ने कहा.

दोनों परिवार के लोग आमनेसामने बैठ गए थे और बातचीत शेखर के पिताजी ने शुरू की और कहा, “देखिए, अभी तक हम दोनों पड़ोसी एक गलतफहमी के कारण आपसी तनाव में रहे, जिस का हमें कोई लाभ नहीं हुआ… पर, अब समय आ गया है कि हम लोग दुश्मनी भुला दें,” शेखर के पापा इतना कह कर चुप हुए, तो उस की मम्मी कहने लगी,
“दरअसल, हम शेखर के लिए रेवती का हाथ मांगने आए हैं. दोनों ही एकदूसरे को पसंद करते हैं… और शेखर की बैंक पीओ की नौकरी लग गई है,
इसलिए हमारा विनम्र निवेदन है कि…” शेखर की मां ने हाथ जोड़ लिए और आगे का वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया था, जबकि सीजर बारीबारी से सब का मुंह ताक रहा था.

रेवती के पापा ने रेवती की ओर देखा और फिर एक नजर उस की मां के चेहरे पर डाली और वे समझ गए कि वे सब क्या चाहते हैं.
उन्होंने सीजर को पास बुलाया और उस के बालों में हाथ घुमाने लगे.

“बहुत दिनों से मैं देख रहा था कि आप ने इतना सुंदर डौगी पाला हुआ है… मैं इसे प्यार भी करना चाहता था, पर हिचकता था. पर जब आप के घर से रिश्ता जुड़ जाएगा, तब मैं सीजर से खेल सकूंगा… हमारी तरफ से रिश्ता पक्का समझिए आप लोग.”

सभी के चेहरे पर खुशी की मुसकराहट थी. रेवती ने शरमा कर नजरें झुका रखी थीं. शेखर ने सीजर को गोद में उठा लिया और उस के कान में कहने लगा, “वी लव यू सीजर.”

सीजर अपनी छोटी सी जीभ निकाल कर शेखर और रेवती को बारीबारी देख रहा था.

एक बेजबान जानवर ने दो परिवारों के बीच तनाव को खत्म कर के दो प्यार करने वालों को मिलाने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी.

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कौन तय करता हैं Kaun Banega Crorepati के सवालों की लिस्ट ? यहां जानें हर सवाल का जवाब

Kaun Banega Crorepati : सोनी टीवी के सबसे पसंदीदा क्विज शो ‘कौन बनेगा करोड़पति 15’ के हर एक एपिसोड को लोगों का खूब प्यार मिलता है. हर एक कंटेस्टेंट से शो के होस्ट ”अमिताभ बच्चन” (Amitabh Bachchan) अपने अंदाज में सवाल करते हैं. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि अमिताभ बच्चन के पास ये सवालों कि लिस्ट कहा से आती हैं ? क्या उन्हें पहले से ही हर सवाल का जवाब पता होता है? क्या अमिताभ बच्चन ही हर एक कंटेस्टेंट के लिए सवालों की लिस्ट बनाते हैं ?  तो आइए इन्हीं सभी सवालों के जवाब जानते हैं.

जानें कौन तय करता है सवालों की लिस्ट ?

आपको बता दें कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (Kaun Banega Crorepati) में कंटेस्टेंट से पूछे जाने वाले आसान से लेकर कठिन सवाल शो के होस्ट अमिताभ बच्चन तय नहीं करते हैं. वह सिर्फ कंटेस्टेंट से सवाल पूछते हैं.

अमिताभ की जगह एक डेडिकेटेड टीम इस पर काम करती है, जो कि शो के मेकर्स द्वारा चुनी जाती हैं. ये टीम पूरी रिसर्च करने के बाद 1000 रुपये के सवाल से लेकर सात करोड़ रुपये तक के सवाल तय करती है. इसी के साथ ये ही टीम रिसर्च करने के बाद उन्हीं सवालों के जवाब के लिए डिस्क्रिप्शन डीटेल भी बनाती है. इसके अलावा शो के सभी नियम-कायदे भी बैकेंड पर काम करने वाली टीम तय करती है.

जानें कौन है शो के क्विज मास्टर ?

आपको बताते चलें कि बीते कई सालों से सोनी टीवी पर प्रसारित हो रहे शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (Kaun Banega Crorepati) के प्रोड्यूसर सिद्धार्थ बसु (siddhartha basu) हैं. जो खुद एक क्विज मास्टर है. सिद्धार्थ बसु की एक खास टीम है, जो अलग-अलग पैमानों का ध्यान रखते हुए हर सवाल बनाती है. जो कंटेस्टेंट से अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) पूछते हैं.

Dilip Kumar की बहन सईदा खान का हुआ निधन, लंबे समय से खराब थी तबियत

Dilip Kumar sister Saeeda Khan dies : हिन्दी सिनेमा के ट्रेजिडी किंग ”दिलीप कुमार” ने साल 2021 में ही दुनिया को अलविदा कह दिया था. वहीं अब उनकी बहन ”सईदा खान” का भी निधन हो गया है. बताया जाता है कि सईदा खान (Saeeda Khan dies) अपने भाई दिलीप कुमार के काफी करीब थी. दोनों एक दूसरे के साथ वक्त बिताना पसंद करते थे. इसके अलावाव दोनों ही हमेशा वेलफेयर के कामों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे.

पूरे परिवार को लगा सदमा

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ”सईदा खान” (Dilip Kumar sister Saeeda Khan dies) ने अपने बांद्रा स्थित घर में अंतिम सांस ली. वह लंबे समय से एज रिलेटेड इश्यूज से बहुत ज्यादा परेशान थी. हालांकि ‘सईदा’ के निधन से उनका पूरा परिवार गहरे सदमे में हैं.

2018 में हुआ था पति का निधन

आपको बता दें कि ”सईदा खान” (Dilip Kumar sister Saeeda Khan dies) दिग्गज फिल्म डायरेक्टर मेहबूब खान के बेटे ”इकबाल खान” की पत्नी थी. जो कि प्रसिद्ध फिल्म मेकर ‘मेहबूब खान’ के बेटे थे. हालांकि 24 सितंबर 2018 को इकबाल ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. इकबाल की मौत के बाद उऩकी बेटी ‘इल्हाम’ और बेटा ‘साकिब’ ही अपनी मां साईदा की देखभाल कर रहे थे.

जानें क्या करते हैं सईदा के बच्चे ?

आपको बताते चलें कि इकबाल को खासतौर पर ‘मदर इंडिया’ और ‘अंदाज’ जैसी फिल्मों में काम करने के लिए जाने जाता हैं. इसके अलावा वह बांद्रा में फेमस ‘महबूब स्टूडियो’ के ट्रस्टी भी थे, जिसकी स्थापना उनके पिता ने वर्ष 1954 में की थी. वहीं सईदा-इकबाल (Saeeda Khan) के बेटे ‘साकिब’ अपने पिता की तरह ही एक फिल्म मेकर हैं और उनकी बेटी ‘इल्हाम’ राइटर हैं.

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