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पिया बावरा : भाग 3

शायद हीरालाल ठीक कह रहा था, वे क्या करते, जो कुछ भी हुआ वह सोचीसमझी योजना का हिस्सा नहीं था. वह सबकुछ केवल सुहानी को बचाने की जिद से हो गया. शायद उन से बचकानी हरकत हो गई. इतनी बड़ी बात को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजे के बारे में भी नहीं सोचा था.

उन्हें लगा कि वीणा सुहानी के घर की तरफ ही जा रही है और बिना समय गंवाए उन्होंने वीणा पर गोली चला दी. सुहानी तो बच गई मगर वीणा के पिता का कुछ भरोसा नहीं. केवल उन्हें सलाखों के पीछे भेज कर वे संतुष्ट होने वाले नहीं हैं. सुभाष के जीवन से तो सबकुछ छिन गया, पत्नी भी और प्रेमिका भी.

वह 15 अगस्त का दिन था. सभी कैदियों को सुबह झंडा फहराते समय राष्ट्रगान गाना था. फिर सब को बूंदी के लड्डू दिए गए थे. सुभाष अपना लड्डू खाने का प्रयत्न कर ही रहे थे कि हीरालाल ने जल्दी से आ कर उन के कान से मुख सटा दिया और कहा, ‘‘अभीअभी इंस्पेक्टर के कमरे से सुन कर आया हूं, कह रहे थे कि डाक्टर की प्रेमिका का पता चल गया है. बहुत जल्द उसे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा.’’

‘‘क्या?’’ उन के हाथ से लड्डू छिटक गया. हीरालाल ने झट से लड्डू उठा लिया और बोला, ‘‘डाक्टर, मुझे पता है कि अब तुम इस लड्डू को नहीं खाओेगे. डाक्टर हो न, जमीन पर गिरा लड्डू कैसे खा सकते हो.’’

उस ने वह लड्डू भी खा लिया.

सुभाष बहुत व्याकुल हो उठे थे. वे समझ गए थे कि यह सब वीणा के पिता ने ही करवाया है. उन की आंखों से आंसू बहने लगे.

हीरा ने कहा, ‘‘यह क्या, डाक्टर साहब. आप इतने कमजोर दिल के हैं, फिर भला दूसरों के दिल का आपरेशन कैसे करते थे?’’

डाक्टर ने अपने आंसू पोंछे और कहा, ‘‘हीरा, सब को अपने अंत का पता होता है, फिर भी हम जैसों से इतनी भूल कैसे हो जाती है.’’

‘‘आप शरीफ इनसान हैं इसलिए सबकुछ शराफत के दायरे में करने की कोशिश की. काश, आप भी शातिर खिलाड़ी होते तो आज पकड़ा कोई और जाता और आप अपनी सुहानी के साथ हनीमून मना रहे होते.’’

सुभाष ने चौंक कर हीरालाल को देखा और बोले, ‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘ठीक कह रहा हूं, डाक्टर. आज मैं जिस कत्ल की सजा भोग रहा हूं उस व्यक्ति को मैं ने कभी देखा ही नहीं. उस का हत्यारा बहुत शातिर और धनवान था. मुझे उलझा कर खुद मजे से घूम रहा है.’’

डाक्टर ठगे से खड़े रह गए.

‘‘डाक्टर, सच यह है कि इतने वर्षों में इस जेल के अंदर रह कर मैं ने दांवपेंच सीख लिए हैं. एक बार यहां से भागने का अवसर मिला तो उस शातिर की हत्या कर के सचमुच का हत्यारा बन जाऊंगा.’’

डा. सुभाष अपनी सोच में डूबे हुए थे, धीरे से बुदबुदाए, ‘इस से तो अच्छा था कि मुझे फांसी हो जाती.’’

इतना कहने के साथ ही उन्होंने कस कर अपनी छाती को दबाया और कराह उठे. उन का हृदय दर्द से तड़प रहा था.

‘‘डाक्टर,’’ हीरा चिल्ला उठा.

डाक्टर धीरेधीरे धरती पर गिर कर तड़पने लगे. हलचल मचते ही कई अधिकारी वहां आ गए थे. डाक्टर को स्ट्रेचर पर लिटाया गया और सिपाही चल पड़े. हीरा भाग कर वहां पहुंचा और झुक कर डाक्टर के कान में कहने की चेष्टा की कि वहां से भाग जाना पर सुभाष बेसुध हो चुके थे.

हीरा मन मसोस कर उन्हें जाता देखता रहा. सुभाष की बंद आंखों के सामने बहुत से चेहरे घूम रहे थे.

‘तुम पागल हो गए हो उस बेटी समान लड़की के लिए,’ वीणा के पुराने स्वर डाक्टर को नीमबेहोशी में सुनाई दे रहे थे. फिर सबकुछ डूबने लगा. आवाज, सांस और धुंधलाती सी पुरानी यादें. उस धुंधली छाया में बस एक छवि अटकी थी सुहानी…सुहानी.

पुनर्जन्म : भाग 3

‘‘मैडम, आप शायद नहीं जानतीं,’’ युवती खिसिया कर बोली, ‘‘बेस्ट सेलर के लेखक के लिए कुछ भी करना पड़ता है. ये महानुभाव केरल से बाहर आने को तैयार नहीं होते, सो बात करने के लिए हमें ही यहां आना पड़ता है.’’

इस से पहले कि शिखा पूछती कि वे महानुभाव हैं कौन, युवती ने उस का परिचय पूछ लिया और यह जानने पर कि वह आईएएस अधिकारी है और एकांत- वास करने के लिए अथरियापल्ली जा रही है, बड़ी प्रभावित हुई और उस के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगी. शिखा ने उसे अपना कार्ड दे दिया.

माधवी का कहना ठीक था. अथरियापल्ली वाटरफाल वैसी ही जगह थी जैसी वह चाहती थी. गेस्ट हाउस में भी हर तरह का आराम था. बगैर अपने बारे में सोचे वह अभी प्रकृति की छटा और निरंतर बदलते रंग निहारने का आनंद ले रही थी कि अगली सुबह ही सूरज को देख कर हैरान रह गई.

‘‘तुम…यहां?’’ वह इतना ही कह सकी.

‘‘हां, मैं,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो कहीं आताजाता नहीं, लेकिन यह जान कर कि तुम यहां हो, तुम से मिलने का लोभ संवरण न कर सका.’’

‘‘लेकिन तुम्हें किस ने बताया कि मैं यहां हूं?’’

‘‘पल्लवी यानी उस युवती ने जो कल तुम्हारे साथ प्लेन में थी,’’ सूरज ने सामने पत्थर पर बैठते हुए कहा, ‘‘असल में मैं उस के प्रकाशन संस्थान के लिए आईएएस प्रतियोगिता के लिए उपयोगी किताबें लिखता हूं. पल्लवी चाहती है कि प्रतियोगिता में सफल होने के बाद सफलता बनाए रखने के लिए क्या करें, इस विषय पर मैं कुछ लिखूं तो मैं ने कहा कि मुझे नौकरी छोड़े कई साल हो चुके हैं और आज के प्रशासन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है तो उस ने तुम्हारे बारे में बताया और कहा कि आप से मिल कर आजकल के हालात के बारे में जानकारी ले लूं. पल्लवी को तो तुम्हारे एकांतवास में खलल न डालने को मना कर दिया लेकिन खुद को आने से न रोक सका. ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो, मैं सूरज ही हूं, शिखा.’’

‘‘उस में तो कोई शक नहीं है लेकिन तुम और लेखन. यकीन नहीं होता, सूरज.’’

‘‘यकीन न होने लायक ही तो अब तक मेरी जिंदगी में होता रहा है, शिखा,’’ सूरज उसांस ले कर बोला, ‘‘पुराने परिवेश से कटने के लिए मैं ने तिरुअनंतपुरम यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता की नौकरी कर ली थी और वक्त काटने के लिए आईएएस प्रतियोगी परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाया करता था. उन के सफल होने पर इतने विद्यार्थी आने लगे कि मुझे नौकरी छोड़ कर कोचिंग क्लास खोलनी पड़ी. मेरे एक शिष्य ने मेरे दिए क्लास नोट्स का संकलन कर प्रकाशन करवा दिया, वह बहुत ही लोकप्रिय हुआ और प्रकाशक इस विषय की और किताबों के लिए मेरे पीछे पड़ गए और इस तरह मैं सफल लेखक बन गया. अब तो पढ़ाना भी छोड़ दिया है. बस, लिखता हूं.’’

‘‘लिखने भर से घर का खर्च चल जाता है?’’

‘‘बड़े आराम से. अकेले आदमी का ज्यादा खर्च भी नहीं होता.’’

‘‘यानी तुम ने मातापिता की खुशी की खातिर शादी नहीं की?’’

‘‘शादी करने से मना भी नहीं किया,’’ सूरज हंसा, ‘‘जो लोग मुझे अपना दामाद बनाने के लिए हाथ बांधे पापा के आगेपीछे घूमते थे, वे तो मेरी नौकरी छोड़ते ही बरसात की धूप की तरह गायब हो गए, जो लोग प्रवक्ता को लड़की देने के लिए तैयार थे वे मांपापा की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उन की तलाश अभी भी जारी है लेकिन सुदूर केरल में बसे लेखक को कौन दिल्ली वाला लड़की देगा? और तुम बताओ यह एकांतवास किसलिए? संन्यासवन्यास लेने का इरादा है?’’

शिखा हंस पड़ी, ‘‘असलियत तो इस के विपरीत है, सूरज,’’ और उस ने ऋचा के सुझाव के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘दूसरे शब्दों में कहें तो मांपापा की तलाश खत्म हो गई,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो मैं यहां से वापस जाने वाला नहीं था लेकिन तुम्हारे साथ कहीं भी चल सकता हूं.’’

‘‘मैं भी यहां आ सकती हूं, सूरज, लेकिन क्या गुजरे कल को आज बनाना संभव होगा?’’

‘‘अगर तुम मुझे जिलाना और खुद जिंदा होना चाहो तो…’’

शिखा के मोबाइल की घंटी बजी. यश का फोन था.

‘‘दीदी, गुरमेल सिंह जब परसों दोपहर तक गाड़ी ले कर नहीं आया तो मैं ने उस के मोबाइल पर उसे आने के लिए फोन किया, लेकिन उस ने कहा कि वह मेहरा साहब की ड्यूटी में है और उन के कहने पर ही हमारे यहां आ सकता है, सो मैं ने उन से बात करनी चाही. परसों तो मेहरा साहब से बात नहीं हो सकी, वे मीटिंग में थे. कल बड़ी मुश्किल से शाम को मिले तो बोले कि वे इस विषय में कुछ नहीं कह सकते. बेहतर है कि मैं माधवी से बात करूं. माधवी कहती है कि छुट्टी पर गए किसी भी अधिकारी को गाड़ी उस के कार्यभार संभालने वाले अधिकारी को दी जाती है और परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम तो नहीं है लेकिन शिखा मैडम कहेंगी तो भिजवा देंगे. आप तुरंत माधवी को फोन कीजिए गाड़ी भिजवाने को.’’

‘‘जब परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम नहीं है तो मैं उस का उल्लंघन करने को कैसे कह सकती हूं?’’ शिखा ने रुखाई से कहा.

‘‘चाहे गाड़ी के बगैर परिवार को कितनी भी परेशानी हो रही हो?’’

‘‘इतनी ही परेशानी है तो खुद ही गाड़ी का इंतजाम कर ले न भाई मेरे…’’

‘‘यह आप को हो क्या गया है दीदी? आप मां से बात कीजिए…’’

मां एकदम बरस पड़ीं, ‘‘यह क्या लापरवाही है, शिखा? हमारे लिए बगैर गाड़ीड्राइवर का इंतजाम किए, टूर का बहाना बना कर तुम छुट्टी मनाने निकल गई हो, शर्म नहीं आती?’’

शिखा तड़प उठी.

‘‘मैं ने कब कहा था मां कि मैं टूर पर जा रही हूं और काम की थकान उतारने को छुट्टी मनाने में शर्म कैसी? अगर गाड़ी के बगैर आप को दिक्कत हो रही है तो यश से कहिए, इंतजाम करे, परिवार के प्रति उस का भी तो कुछ दायित्व है.’’

‘‘यह तुझे क्या हो गया है, शिखा यश कह रहा है, तू एकदम बदल गई है…’’

‘‘यश ठीक कह रहा है, मां,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘मेरा पुनर्जन्म हो रहा है, उस में आप को कुछ तकलीफ तो झेलनी ही पड़ेगी.’’

और वह सूरज की फैली बांहों में सिमट गई.

न उम्र की सीमा हो : भाग 3

‘‘कुछ खास नहीं, वही रूटीन, औफिस, घर, औफिस. भाई विदेश में हैं और कुसुम सपरिवार अकसर रहने आ जाती है, मां नहीं रहीं.’’

‘‘मैं तो सोचती थी अब तुम अपना जीवन जी रही होगी पर लग रहा है ऐसा नहीं है. तुम्हारे स्वार्थी घर वालों ने यह नहीं सोचा कि तुम्हें भी खुशी पाने का हक है.’’

‘‘वे भी क्या करते… इन सब के लिए मेरी उम्र निकल गई है.’’

‘‘कैसी उम्र निकल गई है. मुझे बताओ क्या तुम खुश हो?’’

नलिनी की आंखें भर आईं, किसी ने कभी उस से नहीं पूछा था कि क्या वह खुश है. धीरेधीरे नलिनी ने मधु को अपने और विकास के बारे में भी बता दिया. उस की मानसिक स्थिति समझ कर मधु ने उस के हाथ पर अपना हाथ रखा और फिर बोली, ‘‘तुम नौकरी करती हो, अपना जीवन जीओ, डरती किस से हो? दुनिया क्या कहेगी, इस की चिंता में तुम ने काफी समय खराब कर लिया है. सब की बहुत जिम्मेदारी उठा ली है, पहला काम करो दुनिया की चिंता हमेशा के लिए दिमाग से निकाल दो. मुझे देखो, मैं अपनी मरजी से जी सकती हूं तो तुम क्यों नहीं?’’

नलिनी को हैरानी हुई कि मधु अपनी तुलना उस के साथ कैसे कर सकती है?

मधु ने ही कहा, ‘‘मेरी शादी हुई थी, लेकिन कुछ साल पहले पति का निधन हो गया, जानती हूं तुम क्या सोच रही हो, मैं तो अच्छे चमकते कपड़े और बढि़या ज्वैलरी पहन कर तैयार हो घूम रही हूं. मैं क्यों सफेद कपड़े पहने लाश की तरह घूमूं? मेरे हिसाब से स्त्री के लिए स्त्रीत्तव की इच्छा करना स्वाभाविक है और फिर ये नियम बनाए किस ने हैं. मैं इन नियमों को नहीं मानती. मुझे घर वालों या लोगों की परवाह नहीं, मैं जो हूं सो हूं और मुझे जीने का उतना ही हक है जितना बाकी लोगों को. 13 साल की मेरी बेटी है, हम में अपनी मरजी से अकेले रह कर जीने की हिम्मत है, हम चाहें तो हिम्मत आ जाती है.’’

‘‘तो तुम क्या कहती हो, मैं क्या करूं?’’

‘‘जो तुम चाहती हो, अपना जीवन तलाशो जहां तुम्हारी जरूरतें पहले आएं.’’

‘‘मधु, सच में तुम मुझे राह दिखा कर इस सब से निकालने के लिए मिली हो.’’

कितने समय से नलिनी दुनिया के अंधेरे और नीरस रंग से जूझ रही थी. मधु

हंसी तो उस की दुनियाको ठेंगा दिखाती यह हंसी नलिनी को समझा गई कि वह जीवन में क्या चाहती थी. दोनों में फोन नंबर और घर के पते का आदानप्रदान हुआ.

नलिनी वहां से चल दी. उसे बेहद शांति मिली थी. उसे क्या करना है, यह निश्चय पक्का हो गया था. उसे लगा कि वह तो आत्महत्या की भावना में डूबी रहती है, जबकि उस की प्रिय सहेली ने आगे बढ़ कर जिंदा रहना सीख लिया. अपने कमरे में आ कर वह लेट गई, वह जान गई अब मुसकराना कितना आसान है. वह विकास के खयाल में डूब गई. उस ने उसे अपना शरीर, मन सब समर्पित किया था. उसे फिर मधु की दुनिया को ठेंगा दिखाती हंसी याद आ गई तो वह भी मुसकरा पड़ी.

उस ने अपना फोन उठाया और पहली बार विकास का नंबर मिला दिया. विकास ने फोन उठाया तो नलिनी के मुंह से उत्साहित स्वर में निकला ‘विकास’ और विकास ने आगे सुने बिना ही प्रसन्नता भरी आवाज में कहा, ‘‘नलिनी, मैं आ रहा हूं.’’

नलिनी को लगा वह खुद रोशनी की किरण ले जाने के बजाय काली अमावस रात का अंधेरा बटोर कर अकारण ही अपने जीवन में भरती चली गई. काश, उम्र के फर्क को नजरअंदाज कर वह हिम्मत कर पहले ही उस घुटनभरे अंधेरे को काटते हुए उस चेहरे तक पहुंच जाती जो उस का इंतजार कर रहा था. फिर मुसकराते हुए वह यह गीत गुनगुना उठी, ‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन…’

अगले दिन ही विकास फ्लाइट से पहुंच गया. नलिनी औफिस में अपने काम में व्यस्त थी, जब विकास उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, नलिनी वहीं उस के गले लग गई. हमेशा, लोग क्या कहेंगे, इस बात की परवाह करने वाली नलिनी औफिस में उस के गले लग कर खड़ी है, यह देख कर विकास हंस पड़ा. दोनों सीधे नलिनी के फ्लैट पर पहुंचे. कुसुम सपरिवार उपस्थित थी. नलिनी ने विकास का परिचय अपने होने वाले पति के रूप में दिया तो कुसुम और मोहन की नाराजगी उन के चेहरे से ही प्रकट हो गई जिसे दोनों ने नजरअंदाज कर दिया.

अगले दिन कुसुम चली गई. विकास और नलिनी के औफिस के दोस्तों ने जल्दी से जल्दी विवाह का कार्यक्रम तय करवाया, दोनों ने मिल कर खूब शौपिंग की, उन का सादा सा विवाह संपन्न हुआ. कुसुम और मोहन मेहमान की तरह आए और चले गए. नलिनी को अब किसी से कोई शिकायत नहीं थी, वह खुश थी, विकास उस के साथ था.

नलिनी चाहती थी अब वह नौकरी छोड़ कर बस सिर्फ अपनी घरगृहस्थी संभाले. विकास ने भी इस में सहमति दिखाई. नलिनी रिजाइन कर के फ्लैट बंद कर विकास के साथ दिल्ली चली गई.

विकास के मातापिता तो विवाह में नहीं आ पाए थे, लेकिन उन्हें नलिनी को देख कर उस से मिलने के बाद इस में कोई आपत्ति भी नहीं थी. वे कभीकभी दोनों से मिलने मेरठ से दिल्ली आते रहते थे. नलिनी का मधुर व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा लगा था.

नलिनी सुंदर थी, लेकिन अपनी उम्र को ले कर उस के मन में हमेशा एक चुभन सी रहती. वह अपनी मनोदशा किसी से बांट न पाती. यहां तक कि विकास से भी नहीं. विवाह के 6 महीने बीत गए थे. दोनों अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थे.

विकास के कई दोस्त थे, वे अपनीअपनी पत्नी के साथ मिलने आते रहते थे. कभीकभी एकाध बार कोई दोस्त उन की उम्र के फर्क पर हंसता तो नलिनी का दिल बैठ जाता.

विकास के औफिस का गु्रप भी जब इकट्ठा होता, जिन में लड़कियां भी थीं, सब विकास से बहुत खुली हुई थीं, सब एकदूसरे का नाम ले कर बुलाते थे. लेकिन जब वे उसे नलिनीजी कहते तो उसे महसूस होता कि सब उसे बड़ी मान कर एक फासला रखते हैं. वह सब की बहुत आवभगत करती. उन में अपनेआप को मिलाने की बहुत कोशिश करती, लेकिन अपने चारों तरफ वह एक अनावश्यक औपचारिक गंभीर सा दायरा खिंचा महसूस करती जिसे चाह कर भी तोड़ नहीं पाती.

एक दिन विकास के औफिस में गीता सिंह नाम की एक नई नियुक्ति हुई. उसे ट्रेनिंग देने का काम विकास को ही मिला. बेहद आधुनिक, चंचल गीता को विकास दिनभर काम सिखाता.

एक बार विकास ने अपने सहकर्मियों को डिनर के लिए घर पर बुलाया तो गीता भी आई. गीता नलिनी से पहली बार मिल रही थी. उस ने जिस तरह नलिनी को देख कर चौंकने का अभिनय किया, नलिनी को अच्छा नहीं लगा. विकास नलिनी को गीता के बारे में बताता रहा. नलिनी सुनती रही. बीच में हांहूं करती रही. नलिनी ने देखा विकास गीता के साथ काफी खुला हुआ है. गीता की बातों पर वह जोर के ठहाके लगाता खूब गप्पें मार रहा था. नलिनी ने खुद को उपेक्षित महसूस किया. उसे लगा वह कहीं मिसफिट हो रही है. हालांकि विकास के व्यवहार में कुछ आपत्तिजनक नहीं था, लेकिन नलिनी को गीता का विकास का हाथ बारबार पकड़ कर बात करना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. वह सोचने लगी विकास उसे इतनी लिफ्ट क्यों दे रहा है. औफिस से और लड़कियां भी आई थीं, लेकिन गीता जैसा उच्शृंखल स्वभाव किसी का नहीं था. वह खुद भी इतने सालों से औफिस में काम करती रही थी, औफिस के माहौल की वह आदी थी, लेकिन गीता का खुलापन असहनीय लग रहा था.

सब के जाने के बाद नलिनी ने नोट किया विकास की बातों में गीता का काफी जिक्र था. गीता अविवाहित थी. मातापिता के साथ रहती थी. अब छुट्टी वाले दिन भी गीता कभी भी आ धमकती. विकास को हंसतेबोलते देख नलिनी सोचने लगती क्या विकास को मेरे से ऊब होने लगी है. गीता की देह दिखाती आधुनिक पोशाकें देख कर नलिनी का दम घुटने लगता. विकास भी गीता से दूर रहने की कोई कोशिश करता नहीं दिखा तो नलिनी धीरेधीरे डिप्रैशन का शिकार होने लगी और इसी डिप्रैशन के चलते बीमार हो गई. रात को नलिनी और विकास सोने लेटे. विकास तो सो गया, लेकिन नलिनी को अचानक लगा जैसे कमरे के अंदर फैले हुए अंधेरे में अलगअलग किस्म की शक्लें उभर कर सामने आ रही हैं, जो उस पर हंस रही हैं और वह उस अंधेरे में डूबती चली गई. वह आंखें बंद किए जोरजोर से चीख रही थी. विकास चौंक कर उठ बैठा. नलिनी बेदम सी हो कर विकास की बांहों में झूल गई.  उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया.

डाक्टर ने चैकअप करने के बाद बताया, ‘‘ये दिमागी तौर पर बहुत तनाव में हैं, दबाव में होने की वजह से ब्लडप्रैशर भी हाई है. और हां, बधाई हो आप पिता बनने वाले हैं.’’

विकास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. डाक्टर दवा दे कर चला गया. विकास नलिनी का हाथ पकड़ कर बैठा था. वह बीते दिनों के घटनाक्रम को ध्यानपूर्वक सोचने लगा…

उसे नलिनी की मनोदशा का अंदाजा हो गया तो उसे अपराधबोध हुआ. उसे गीता से इतना खुला व्यवहार नहीं करना चाहिए. उस के स्वयं के मन में कुछ गलत नहीं था, लेकिन नलिनी के मानसिक संताप को अनुभव कर विकास की पलकों से आंसू नलिनी के हाथ को भिगोते रहे, न जाने यह नाजुक दिलों के तारों का संगम था या कुछ और था. उस के गरमगरम आंसुओं की गरमी जैसे नलिनी के दिल की गहराई तक जा पहुंची और उस की बंद पलकों में हरकत हुई. वह गहरे अंधेरे से धीरेधीरे बाहर आ रही थी. धुंध के गहरे बादल छंटते जा रहे थे.

विकास उस के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहने लगा, ‘‘नलिनी, कैसी हो अब? अगर मेरी किसी भी बात से तुम्हारा दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर दो.’’

नलिनी ने जैसे ही कुछ कहने की कोशिश की, विकास बोल उठा, ‘‘नलिनी, जल्दी से ठीक हो जाओ, तुम्हारे साथ जीवन की सब से बड़ी खुशी बांटनी है और तुम आज के बाद अपने दिमाग से उम्र की बात बिलकुल निकाल दोगी. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. हम सच्चे दिल व पूरी निष्ठा से जीवन को बड़ी खूबसूरती से जीएंगे. अभी तो बहुत रास्ते तय करने हैं, बहुत दूर जाना है, साथसाथ एकदूसरे का हाथ थामे. तुम बस मेरे प्यार पर विश्वास करो.’’

नलिनी चुपचाप विकास की तरफ देख रही थी. उस ने विकास का हाथ कस कर पकड़ लिया और सुकून से आंखें बंद कर लीं. फिर उस ने खिड़की की तरफ देखा जहां उस के जीवन की एक नई सुबह का सूर्य निकल रहा था जिस की चमकती किरणों ने उस के दिल के हर कोने को चमका दिया था.

मां का घर भाग : 3

पहले मां से रोज ही उस की बात हो जाया करती थी, फिर बातचीत का सिलसिला कम हो गया. पूजा जब पूछती कि मां, तुम ने खाना खाया कि नहीं, रोज शाम को टहलने जाती हो कि नहीं, तो अनुराधा हंस देतीं, ‘मेरी इतनी फिक्र न कर पूजा, मैं बिलकुल ठीक हूं. मुझे अच्छा लग रहा है कि तुम को अपनी नई जिंदगी रास आ गई. खुश रहो और सुवीर को भी खुश रखो. बस, इस से ज्यादा और क्या चाहिए?’

आज पूजा को पुरानी सारी बातें याद आ रही हैं. जब तक वह मां के साथ थी, हर समय उन पर हावी रहती, ‘मां, आप अपनी सहेलियों को घर न बुलाया करें, कितना बोर करती हैं. हर समय वही बात, शादी कब करोगी, कोई बौयफें्रड है क्या? आप की वह सफेद बालों वाली सहेली मोहिनीजी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कितना तेज बोलती हैं और कितना ज्यादा बोलती हैं.’

‘मैं ने मां को समझा ही नहीं,’ पूजा बुदबुदाई और उठ खड़ी हुई.

सुप्रिया ने टोका, ‘‘कहां चली, पूजा?’’

‘‘मां को ढूंढ़ने.’’

‘‘कहां?’’

‘‘पता नहीं, सुप्रिया. पर एक बार मैं उन से मिल कर माफी मांगना चाहती हूं.’’

‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं,’’ सुप्रिया ने कहा.

अगले दिन सुवीर ने दोनों सहेलियों को हवाई जहाज से मुंबई भेजने की व्यवस्था कर दी. वह खुद भी साथ जाना चाहता था पर पूजा ने कहा, ‘‘जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी. मुंबई हमारी जानीपहचानी जगह है.’’

सुप्रिया के मायके में सामान रख दोनों सहेलियां सब से पहले कांदिवली पूजा के घर गईं. पूजा धीरा आंटी के घर पहुंची तो उसे देख कर वे चौंक गईं, ‘‘अरे पूजा, तू? अनुराधा की कोई खबर मिली?’’

‘‘यही तो पता करने आई हूं. आप बता सकती हैं कि मां की वे सहेलियां कहां रहती हैं जो हमारे घर कभीकभी आती थीं?’’

धीरा आंटी सोचने लगीं, फिर बोलीं, ‘‘सब के बारे में तो नहीं जानती, पर बैंक में तुम्हारी मां के साथ काम करने वाली आनंदी को मैं ने कई बार उन के साथ देखा था बल्कि 10 दिन पहले भी आनंदी यहां आई थीं.’’

‘‘मां ने आप से अपने जाने को ले कर कुछ कहा था…’’

‘‘नहीं पूजा, तुम्हारी मां हम लोगों से कम ही बोलती थीं. दरअसल, 10 साल पहले जब तुम्हारी मां ने शादी की थी, तब से…’’ कहतेकहते अपने होंठ काट लिए धीरा ने.

‘‘मां की शादी?’’ पूजा को झटका लगा. वह गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘‘प्लीज आंटी, आप मुझे सबकुछ सचसच बताइए. शायद आप की बातों से मुझे मां गई कहां हैं यह पता चल जाए?’’

धीरा गंभीर हो कर बताने लगीं, ‘‘तुम समीरजी के बारे में तो जानती ही हो. जिस दिन तुम्हारी मां को पता चला कि समीर बीमार हैं, उन्हें टी.बी. हो गई है, तुम्हारी मां ने घबरा कर मुझे ही फोन किया था. मैं और वे अच्छी सहेली थीं और अपना दुखदर्द बांटा करती थीं. मैं ने तुम्हारी मां को अपने घर बुलाया. समीर अनुराधा की जिंदगी में ताजा हवा का झोंका थे. तुम्हारी मां उन का बहुत सम्मान करती थीं और प्यार भी करती थीं. मैं अनुराधा को ले कर समीर के पास गई थी. समीर की हालत वाकई खराब थी. अनुराधा ही समीर को ले कर अस्पताल गईं लेकिन उन की जिंदगी में तो जैसे चैन था ही नहीं.’’

‘‘क्या हुआ? समीर अंकल अच्छे तो हो गए?’’ पूजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘हमारे पहुंचने से पहले वहां समीर के मातापिता आ गए थे. उन्होंने अनुराधा के सामने यह शर्त रखी कि वह समीर से शादी करे वरना वे उस की शादी कहीं और कर देंगे. बीमार समीर को जीवनसाथी की जरूरत है और अब बूढ़े मांबाप में इतनी शक्ति नहीं कि उस की देखभाल कर सकें.

‘‘समीर बैंक में नौकरी करते थे, देखने में अच्छे थे, एक पैर ठीक नहीं था तो क्या, कोई न कोई लड़की तो मिल ही जाती. समीर के मातापिता का दिल रखने के लिए अनुराधा और समीर ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली.

‘‘मुझे अनुराधा का यों शादी करना अच्छा नहीं लगा. शायद इस की वजह यह थी कि तुम मां की शादी का विरोध कर चुकी थीं. उस समय मैं भी अनुराधा से नाराज हो गई. इस के बाद हमारे संबंध पहले जैसे न रहे,’’ इतना कहतेकहते धीरा की आवाज भर्रा गई.

पूजा की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आंटी, हम औरतें ही दूसरी औरतों को जीने नहीं देतीं. मां की खुशी हमें बरदाश्त नहीं हुई.’’

धीरा ने सिर हिलाया, ‘‘आज पलट कर सोचती हूं तो अपने ऊपर ग्लानि हो आती है. काश, मैं ने उस समय अनुराधा को समझा होता.’’

पूजा भी मन ही मन यही सोच रही थी कि काश, उस ने मां को समझा होता.

धीरा ने अचानक कहा, ‘‘हो सकता है, मोहिनी को अनुराधा के बारे में पता हो. वह यहीं पास में रहती है. चलो, मैं भी चलती हूं तुम्हारे साथ.’’

धीरा फौरन साड़ी बदल आईं. तीनों एक आटो में बैठ कर दहिसर की तरफ चल पड़ीं. पूजा अरसे बाद मोहिनीजी से मिल रही थी. उन के पूरे बाल सफेद हो गए थे. पूजा के साथ धीरा और सुप्रिया को देख वे ठिठकीं. पूजा आगे बढ़ कर उन के गले लग कर रोने लगी. मोहिनी ने पूजा को बांहों में भींच लिया और पुचकारते हुए कहा, ‘‘मत रो बेटी, तुझे यहां देख कर मुझे एहसास हो गया है कि तू बहुत बदल गई है.’’

‘‘मुझे मां के पास ले चलिए, मौसी,’’ पूजा ने रोंआसी आवाज में कहा.

मोहिनीजी ने पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मां को ढूंढ़ती हुई इतनी दूर आई हो तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगी. लेकिन बेटी, अनुराधा को और तकलीफ मत देना, बहुत दिनों बाद मैं ने उसे हंसते देखा है, सालों बाद वह अपनी जिंदगी जी रही है.’’

अगले दिन जब पूजा और सुप्रिया मोहिनी के साथ इगतपुरी जाने को निकलने लगीं तो धीरा भी साथ चल पड़ीं. सुबह की बस थी. दोपहर से पहले वे इगतपुरी पहुंच गईं. वहां से एक जीप में बैठ कर वे आगे के सफर पर चल पड़ीं. जीप पेड़पौधों से ढके एक घर के सामने रुकी. घर के अंदर से वीणा वादन की आवाज आ रही थी.

मोहिनी ने दरवाजा खटखटाया तो एक कुत्ता बाहर निकल आया और उन्हें देख कर भौंकने लगा. अंदर से आवाज आई, ‘‘विदूषक, इतना हल्ला क्यों मचा रहे हो? कौन आया है?’’

अनुराधा की आवाज थी. जब वे सामने आईं तो पूजा के दिल की धड़कन जैसे रुक ही गई. सलवारकमीज और खुले बालों में वे अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं. माथे पर टिकुली, मांग में हलका सा सिंदूर और हाथों में कांच की चूडि़यां. भराभरा चेहरा. पूजा पर नजर पड़ते ही अनुराधा सन्न रह गईं. पूजा दौड़ती हुई उन के गले  लग गई.

मांबेटी मिल कर रोने लगीं. पूजा ने किसी तरह अपने को जज्ब करते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर सकोगी?’’

अनुराधा ने सिर हिलाया और बेटी को कस कर भींच लिया.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? मुझे उन से मिलना है,’’ पूजा की आवाज में बेताबी थी.

अनुराधा उन सब को ले कर अंदर गई. समीर रसोई में सब्जी काट रहे थे. पूजा उन के पास गई तो समीर ने उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘वेलकम होम बिटिया.’’

अनुराधा को कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूजा समझ गई कि साल में 2 बार मां 10 दिन के लिए कहां जाती थीं. क्यों चाहती थीं कि पूजा शादी कर अपने घर में खुश रहे.

शाम को बरामदे में सब बैठे थे. पूजा ने सिर मां की गोद में रखा था. वह दोपहर से न जाने कितनी बार रो चुकी थी. मां का हाथ एक बार फिर चूम वह भावुक हो कर बोली, ‘‘मां, मैं कितनी पागल थी. औरत हो कर तुम्हारा दिल न समझ सकी. आज जब मैं अपने परिवार में खुश हूं तो मुझे एहसास हो रहा है कि तुम मेरी वजह से सालों से अपने पति से अलग रहीं.’’

अनुराधा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की बेटी के साथसाथ उस की पुरानी सहेली धीरा भी लौट आई है, उस की खुशियों में शरीक होने. रात को सुवीर का फोन आया तो पूजा उत्साह से बोली, ‘‘पता है सुवीर, मेरे साथ दिल्ली कौन आ रहा है? मां और पापा. दोनों कुछ दिन हमारे साथ रहेंगे, फिर हम जाएंगे दीवाली में उन्हें छोड़ने.’’

अनुराधा और समीर मुसकरा रहे थे. बेटी मायके जो आई है.

टाइमपास : भाग 3

अम्माजी के कान में भनक लग गई थी. वे नाराज हो उठी थीं क्योंकि उन्हें पार्वती फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि सब से ज्यादा काम वह उन्हीं का करती थी. उन को रोज नहलाधुला कर उन के कपड़े धोती थी. उन के बाल बनाती थी. रोज उन के पैरों में मालिश किया करती थी. उन की नजर में वह बदचलन औरत थी. काश, उस समय वह उन की बातों पर ध्यान दे देती तो आज उसे यह दिन न देखना पड़ता. रोमेश और उस के डर से अम्माजी उसे भगा नहीं पाती थीं वरना वे उसे एक दिन न टिकने देतीं. कुछ ही दिनों में पता चला कि पूजा अपने प्रेमी के साथ, वह सोने का हार ले कर रफूचक्कर हो गई. पार्वती के रोनेधोने के कारण महेश ने शादी के लिए जोड़े हुए रुपए लड़के वालों को दे कर किसी तरह मामले को निबटाया था. परंतु बिरादरी में वह उस की बदनामी तो बहुत कर गई थी. सालभर बाद जब पूजा के बेटी हुई तो भागती हुई सब से पहले वह बेटी के पास पहुंची थी. यहांवहां भाग कर चांदी के कड़े खरीद लाई थी और 5-6 फ्रौक भी खरीद लाई थी. उस की आवाज और चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी. बोली थी, ‘भाभी, हम नानी बन गए हैं. वह है तो मेरी ही नातिन.’ रीना मुसकरा कर उस को देखती रह गई थी. मन ही मन वह बोली थी, ‘कितनी भोली है बेचारी.’

उस ने पार्वती को 500 रुपए का नोट पकड़ा दिया था. उसे याद आया था कि जब ईशा के बेटा हुआ था तो वह कितनी खुश हुई थी. रोमेश औफिस से आ गए थे. उन्होंने उसे रुपए देते हुए देख लिया था. वे बोले, ‘यह बहुत चालू है. तुम्हें बेवकूफ बना कर अपना मतलब सीधा करती है.’ वह बोल पड़ी थी, ‘रहने भी दीजिए. जरूरत के समय वह हमेशा हाजिर रहती है, यह नहीं देखते आप?’

‘ठीक है, यह तुम्हारी दुनिया है, जो ठीक समझो, करो.’ इधर महेश दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गया था. वह रोज शराब पीने लगा था. वह पी कर देर रात में आता और हंगामा करता. अकसर पार्वती पर हाथ भी उठाने लगा था. पार्वती सुस्त और अनमनी रहने लगी थी. एक दिन रोमेश रीना से बोले थे, ‘तुम्हारी छम्मकछल्लो आजकल चुपचुप रहती है. शायद किसी परेशानी में है. पूछ लो उस से, यदि पैसों की जरूरत हो तो दे दो.’ ‘नहीं, पैसे की बात नहीं है. महेश और दीप दोनों शराब पीने लगे हैं. महेश किसी दूसरी औरत के चक्कर में भी पड़ गया है.’

रोमेश आश्चर्य से बोले थे, ‘इतनी सुंदर और सलीकेदार औरत होने के बावजूद वह दूसरी पर मुंह मार रहा है.’ पार्वती इधर काम पर आती थी, उधर महेश की प्रेमिका उस के घर पर आ जाती थी. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ गई थी. वह उस के घर में ही अपना हक जताने लगी थी. यदि वह कोई शिकायत करती तो महेश पार्वती की पिटाई कर देता था. पार्वती किसी भी तरह अपने और महेश के रिश्ते को बचाना चाहती थी. जब उस का नशा उतर जाता था तो वह पार्वती के पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगता था. वह पिघल जाती थी. यह सिलसिला काफी दिन से चल रहा था. वह अपनी परेशानियों में उलझी हुई थी. इधर, दीप भी आवारा लड़कों के साथ चोरी, जुआ, शराब आदि का शौकीन बन गया था. पार्वती के यहांवहां छिपाए हुए पैसे वह चुपचाप गायब कर लेता था और महेश का नाम लगा कर घर में महाभारत मचवा देता था. एक बार उस के नए मोबाइल को देख कर उस ने पूछा था तो बोला, ‘हमारे मालिक ने हमें इसे ठीक करवाने के लिए दिया है.’ एक दिन दीप के पर्स में रुपयों की गड्डी को देख उस का माथा ठनका था, परंतु दीप ने उसे पट्टी पढ़ा दी थी. वह भी ममता की मारी भुलावे में आ गई थी. परंतु एक दिन वह चाल की एक लड़की को फुसला कर ले भागा था.

लड़की नाबालिग थी, उस के पिता ने पुलिस में शिकायत कर दी. पुलिस ने महेश और पार्वती को थाने में ले जा कर पिटाई की और 2 दिन के लिए बंद कर दिया था. 4-5 दिन के अंदर पुलिस ने दीप को ढूंढ़ निकाला था. नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में दीप को जेल में बंद कर दिया था. महेश की प्रेमिका माधुरी ने अपनी कोशिशों से महेश को छुड़ा लिया था. पुलिस ने पार्वती को भी छोड़ दिया था. अब महेश का घर उस के लिए पराया हो चुका था. उस की सौत माधुरी का हक महेश और उस के घर दोनों पर हो गया था.  पार्वती लुटीपिटी रीना के पास पहुंची थी. उस का रोनाबिलखना देख उस का दिल पिघल उठा था. रोमेश के लाख मना करने पर भी उस ने पार्वती को घर पर रख लिया था. वह बहुत खुश थी. रीना को पार्वती के घर पर रहने से बहुत आराम हो गया था. वह उस के घर व बाजार के सारे काम करती थी. उस को यहां रहते हुए लगभग 2 साल हो गए थे. अकसर वह अपने बच्चों और महेश को याद कर के आंसू बहाने लगती थी. यह देख रीना का दिल पिघल उठता था. आज इसी पार्वती की वजह से उस के घर का सुखचैन लुट गया था. शाम ढल चुकी थी. कमरे में अंधेरा छाया हुआ था. उसे बिजली जलाने का भी होश नहीं था. आज उस के जीवन में ही अंधकार छा गया था. वह जब से यहां आई, अपने मुंह में पानी की एक बूंद भी नहीं डाली थी. आज वह बहुत व्यथित थी. जीवन से निराश हो कर उस का मन फूटफूट कर रोने को हो रहा था.

रोमेश की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. वे उसे मोबाइल दे कर बोले, ‘‘लो, त्रिशा का 2 बार फोन आ चुका है, कह रही है, क्या बात है? मां का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. उन की तबीयत तो ठीक है. सुबह यहां से गई थीं तब तो बिलकुल ठीक थीं. उन को फोन दीजिए. वे मुझ से बात करें. गुडि़या बहुत रो रही है.’’ रीना के हैलो बोलते ही त्रिशा खीझ कर बोली थी, ‘‘क्यों मां, पापा मिल गए तो मुझे और मेरी गुडि़या सब को भूल गईं. कम से कम पहुंचने की खबर तो दे देतीं.’’ रीना अपनी बेटी को जानती थी, यथासंभव अपनी आवाज को सामान्य करती हुई बोली थी, ‘‘न बेटा, फ्लाइट में फोन बंद किया था, फिर उसे औन करना ही भूल गई थी. गुडि़या को घुट्टी पिला दो और उस के पेट पर हींग मल दो. पेटदर्द से रो रही होगी,’’ उस ने फोन काट दिया था. सामने खड़े रोमेश का मुंह उतरा हुआ था. वे हाथ जोड़ कर उस से बेटी को कुछ न बताने और कान पकड़ कर माफी का इशारा कर रहे थे.

रीना कशमकश में थी. क्या उस का और रोमेश का इतना पुराना रिश्ता पलभर में टूट जाएगा? वह सिर पर हाथ रख कर चिंतित मुद्रा में ही बैठी थी. रोमेश अपने अनगढ़ हाथों से सैंडविच और दूध बना कर लाए थे, ‘‘रीना, तुम मुझे जो चाहे वह सजा दे दो, लेकिन प्लीज, पहले यह सैंडविच खा लो.’’ रीना को याद आया कि रोमेश तो डायबिटिक हैं और पिछले कई घंटों से उन्होंने कुछ नहीं खाया.

रोमेश बोले थे, ‘‘मुझे 2-3 दिन से बुखार आ रहा था. आज सुबह से मेरे सिर में बहुत दर्द भी हो रहा था, इसलिए नाश्ता भी नहीं किया था.’’ अब रीना ने सिर उठा कर रोमेश पर भरपूर निगाह डाली तो वे काफी कमजोर दिख रहे थे. उन का मासूम चेहरा डरे हुए बच्चे की तरह लग रहा था. सबकुछ भूल कर उस का दिल कसक उठा था. यदि रोमेश को कुछ हो गया तो… उस ने चुपचाप सैंडविच उठा ली थी. रोमेश ने भी सिर झुका कर सैंडविच और दूध पी लिया था. रातदिन मजाक करने वाले हंसोड़ रोमेश को चुप और गुमसुम देख उसे अटपटा लग रहा था. परंतु आज वह मन ही मन एक निश्चय कर चुकी थी. वह आहिस्ताआहिस्ता अलमारी से अपना सामान हटा कर दूसरे बैडरूम में ले जा रही थी. वह रोमेश की परछाईं से भी इस समय दूर जाना चाह रही थी. रोमेश की उदास और पनीली आंखें चारों तरफ उस का पीछा कर रही थीं. आज रीना दुनिया में बिलकुल अकेली हो चुकी है, जहां कोई ऐसा नहीं था जिस से वह अपने दर्द को कह कर अपना मन हलका कर सके. उसे घुटन महसूस हो रही थी. उस को अपनी दुनिया सूनी और वीरान लग रही थी. पीछे से रोमेश की धीमी सी आवाज उस के कानों में पड़ी थी, ‘डियर, तुम्हारे बिना मेरा टाइमपास कैसे होगा?’ आज उस के बढ़ते कदम नहीं रुके थे. वह रोमेश को अनदेखा कर के दूसरे बैडरूम की ओर चल पड़ी थी.

नींव के पत्थर : भाग 3

नाई ने मुझे गौर से देखा और मुसकराया. संभवतः इसलिए कि एक सरदारजी को नाई की क्या जरूरत पड़ गई. काम कर रहे दूसरे नाई ने कहा, ‘वे तो चलाना कर गए सरदारजी, कोई काम था…? ’

‘‘नहीं,’’ मैं आगे बढ़ गया. ‘अच्छा हो गया मर गया, साला. धरती पर बोझ.’ कितना आक्रोश भरा होगा उस व्यक्ति के मन में, जिन के ये शब्द चलतेचलते मेरे कानों में पड़े. मैं सतपाल महाजन बजाजी वाले की दुकान की ओर बढ़ा, जहां से मुझे बाईं ओर गली में मुड़ना है. गली में पहले दूरदूर तक प्रायः अंधेरा हुआ करता था, अब स्ट्रीट लाइट की रोशनी से जगमगा रही है. चढ़ाई चढ़ते समय जहां बड़ेबड़े खोले हुआ करते थे, अब सुंदरसुंदर कोठियां बन गई हैं, बड़ीबड़ी इमारतें खड़ी हो गई हैं. मन के भीतर एक टीस उत्पन्न हुई कि यह कैसी विडंबना है कि हम सब बड़ीबड़ी सुंदर इमारतों को देख कर खुश होते हैं, उन की तारीफ करते हैं, पर हम उन पत्थरों को भूल जाते हैं, जो इन की नींव में दफन हो कर इन को मजबूती प्रदान किए हुए हैं. काश, हम यह न भूल पाते कि हमारे पूर्वजों की जाने कितनी अभिलाशाएं, कितने त्याग-परित्याग, सम्मान-आत्मसम्मान, बलिदान-आत्म बलिदान का ये परिणाम हैं? मैं मानव की इस प्रवृत्ति को समझ नहीं पाया कि देरसवेर में उन को भी ऐसी स्थिति में आना है, उन को भी कल को नींव का पत्थर बनना है? मैं जब राजी के दादाजी के द्वार पर पहुंचा तो बड़ा उद्विग्न था. बड़े अनमने भाव से द्वार खटखटाया. दादाजी ने तुरंत दरवाजा खोला, जैसे मेरी प्रतीक्षा कर रहे हों.

‘‘आ, पुत्तर आ,’’ मैं उन के साथ ड्राइंगरूम में आ गया. सामने सौफे पर बैठा तो अनायास ही चारों ओर अवलोकन करने लगा.

‘‘देख पुत्तर, मैं ने तुहाडे दादाजी का कुज नहीं बदलेया, सबकुज वही, वैसे दा वैसा, सिर्फ इक पलंग अपने आराम वास्ते रखा ऐ…’’

गिरधारी चुपचाप खाना लगा गया.

‘‘लै पुत्तर, परशादे शक.’’

‘‘जी, दादाजी आप भी लें.’’

‘‘हां… हां पुत्तर, मैं वी लैंदा हां,’’ कह कर उन्होंने अपने लिए परशादा रख लिया और खाने लगे. थोड़ी देर बाद वे बोले, ‘‘पुत्तरजी, मैं तुहानू इक गल कहना चाहदां ऐ. हुन मैं बुड्ढा हो गया ऐ, पता नईं कद बुलावा आ जाए. मेरा मुंडा बाहर ऐ ते ओथे ई बस गया ऐ. ओदे आन दी कोई उम्मीद नईं. राजी अपने घर खुश ऐ. ते पुत्तरजी, तुसीं अपने दादाजी दी धरोहर वापस ले लो… ये मकान, जमीन, सबकुज, मैं नु बड़ी शांति मिलेगी.’’

‘‘पर, दादाजी.’’

‘‘न पुत्तर ना, ना करीं, मैं तै नू मुफ्त लैन वास्ते नई कह रेया. जिन्ने पैसे तेरे दादाजी नूं मैं दित्त सी ओने मैं नू दे दे… मैं नू शांति मिल जाएगी.’’

‘‘चंगा, दादाजी जिवें तुहाडी मरजी,’’ पहली बार मेरे मुख से पंजाबी में निकला, ‘‘मैं पैसे भिजवा कर सारी कागजी काररवाई करवा लूंगा, पर एक प्रार्थना है, दादाजी.’’

‘‘बोल पुत्तर बोल. अज कुज वी मंग ले, मैं बौत खुश आं.’’

‘‘आप हमारे सिर पर बने रहें. आप का आशीर्वाद हमें मिलता रहे. आप पहले की तरह इस घर, जमीन के मालिक बने रहें. सबकुछ वैसा ही चले, जैसा चल रहा है.’’

‘‘चंगा पुत्तरजी, जीऊंदे रहो,’’ और वे रो पड़े. मैं उन को उसी स्थिति में छोड़ आया.

मैं बाहर आया तो दूर व्योम में फिर बादलों ने करतल ध्वनि की. अब मेरे दादाजी, सरदार गुरशरण सिंहजी नींव के पत्थर बन कर नहीं रहेंगे, बल्कि आकाशदीप की तरह व्योम में प्रज्वलित होते रहेंगे.

अस्पताल में भर्ती हुई कॉमेडियन Bharti Singh, लगी गंभीर चोट

Comedian Bharti Singh Health : एक्ट्रेस और कॉमेडियन ”भारती सिंह” ने अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और एक्टिंग से अपनी पहचान बनाई हैं. उनकी शानदार पंचलाइन्स के कारण भारती को आज घर-घर में पहचान मिली है. कई शो में काम करने के साथ-साथ वह अपना यूट्यूब पचैनल भी चलाती हैं, जिसमें वह अपनी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी अपडेट अपने फैंस के साथ साझा करती हैं. वहीं अब भारती ने अपने लेटेस्ट वीडियो में बताया है कि उन्हें गंभीर चोट आई है, जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

भारती की कमर में लगी चोट

आपको बता दें कि ‘भारती सिंह’ (Bharti Singh Health Video) ने अपने लेटेस्ट वीडियो में बताया है कि, ‘वो अपने ही घर में अपने ही बेड से नीचे गिर पड़ीं, जिस कारण उनकी कमर में गंभीर चोट आई है.’ इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि ये हादसा तब हुआ जब वह अपने सिर की मसाज करवा रही थीं. मसाज करवाते समय उनके हाथ में फोन था, जिसकी वजह से उनका ध्यान भटक गया और वो बेड से नीचे गिर गई.

बेड से गिरने के बाद जब उन्हें दर्द हो रहा था तो तब उनके पति ‘हर्ष लिंबाचिया’ उन्हें अस्पताल लेकर गए. जहां उनका एक्सरे किया गया. हालांकि एक्सरे में सब ठीक आया है और अब उनकी हाल भी ठीक है. लेकिन डॉक्टर ने उन्हें पूरी तरह से बेड रेस्ट करने को कहा है.

मदरहुड जर्नी को एंजॉय कर रही हैं भारती

आपको बताते चलें कि इस समय भारती (Bharti Singh) मदरहुड जर्नी को पूरी तरह से एंजॉय कर रही हैं. उन्होंने बीते साल 3 अप्रैल को एक बेटे को जन्म दिया था, जिसका नाम ‘लक्ष्य’ है लेकिन प्यार से सब उसे ”गोला” कहकर  पुकारते हैं.

Alia से लेकर Shraddha तक ये 5 हसीनाएं बनी गैंगस्टर, देखें सिनेमा की लेडी माफिया की लिस्ट

Lady Mafia in Hindi Cinema : हिन्दी सिनेमा में हमेशा से ही माफिया, गैंगस्टर, डॉन और निगेटिव रोल पर मेल एक्टर्स का ही दबदबा रहा है, लेकिन समय के साथ इस चीज में भी बड़ा परिवर्तन आया है. कुछ सालों से डॉन, माफिया, गैंगस्टर और निगेटिव रोल का किरदान निभाने के लिए फीमेल एक्ट्रेस की भी दिलचस्पी बड़ी है और बड़ भी रही है.

पिछले कई वर्षों में बॉलीवुड एक्ट्रेस (Lady Mafia in Hindi Cinema) आलिया भट्ट से लेकर श्रद्धा कपूर तक ने बड़े पर्दे पर गैंगस्टर का किरदार निभाकर लोगों का दिल जीता है. इसके अलावा अभिनेत्री कृतिका कामरा ने भी वेबसीरीज ‘बंबई मेरी जान’ में डॉन की जबरदस्त भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि यह किरदार, न केवल स्टार्स के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं बल्कि दर्शकों के लिए भी नया अनुभव होता है.

तो आइए जानते हैं उन कुछ उम्दा बॉलीवुड एक्ट्रेस के बारे में जिन्होंने निडर होकर बड़े पर्दे पर गैंगस्टरों की भूमिका निभाई है.

आलिया भट्ट

बॉलीवुड अभिनेत्री ‘आलिया भट्ट’ (alia bhatt) ने फिल्म “गंगूबाई काठियावाड़ी” में अपनी शानदार एक्टिंग से सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने इस फिल्म में प्रसिद्ध माफिया क्वीन गंगूबाई का किरदार निभाया था. उन्होंने ये रोल इतने अच्छे से निभाया था कि हर कोई उनकी एक्टिंग का फैन हो गया था. यहां तक की उऩको गंगूबाई के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया था.

ऋचा चड्ढा

हिन्दी सिनेमा (Lady Mafia in Hindi Cinema) में ताबड़तोड़ कमाई करने वाली ‘फुकरे’ फैंचाइजी की तीनों फिल्मों में एक्ट्रेस ‘ऋचा चड्ढा’ ने भोली पंजाबन का किरदार निभाया है. जो कि निडर, चतुर और उग्र रवैये वाली गैंगस्टर महिला होती है. गौर करने वाली बात ये है कि फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका निभाना, ऋचा (richa chadha) के निडर अंदाज व उनकी खुद की निर्भीकता को दर्शाता है.

नेहा धूपिया

फिल्म “फंस गए रे ओबामा” में एक खूंखार गैंगस्टर मुन्नी मैडम का किरदार निभाकर बॉलीवुड एक्ट्रेस ‘नेहा धूपिया’ ने अपने फैंस को हैरान कर दिया था. उन्होंने (neha dhupia) फिल्म में इतना जबरदस्य अभिनय किया था कि उनकी तुलना भारतीय सिनेमा के कुख्यात गैंगस्टर गब्बर सिंह से की जाने लगी थी.

ईशा तलवार

एक्ट्रेस ‘ईशा तलवार’ (isha talwar) ने सीरीज “सास बहू और फ्लेमिंगो” में अपनी एक्टिंग से लोगों के दिलों में जगह बनाई हैं. इसमें उन्होंने बहू बिजली का किरदार निभाया था. जो कि उनके लिए काफी चुनौती भरा था. लेकिन उन्होंने ये किरदार बखूबी निभाया.

श्रद्धा कपूर

बॉलीवुड में अपनी दमदार एक्टिंग (Lady Mafia in Hindi Cinema) से लोगों का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस ‘श्रद्धा कपूर’ ने फिल्म “हसीना: द क्वीन ऑफ मुंबई” में हसीना पारकर का किरदार निभाकर सभी को आश्चर्यजनक कर दिया था. फिल्म में उनके (shraddha kapoor) गैंगस्टर लुक और एक्टिंग ने खूब वाहवाही लूटी थी.

वाहन बेचने पर न करें यह गलती, पड़ सकता है महंगा

छोटे शहरों, महानगरों और गांवों तक में निजी वाहन अब लोगों की जरूरत बन गए हैं. भले मेट्रो, बस व ट्रेन से लोग रोजमर्रा का सफ़र करते हों पर बाइक से ले कर कार लगभग हर दूसरे घरपरिवार में मौजूद है.

वाहन व्यक्ति की संपत्ति का हिस्सा है.वाहन ने हमारी जिंदगी तेज की है. इस ने सुविधा और सहूलियत दी है तो हर व्यक्ति चाहता है कि उस के पास अपना खुद का वाहन हो चाहे वह सैकंडहैंड ही क्यों न हो.

कई मौकों पर वाहन खरीदनाबेचना पड़ जाता है. ऐसे में वाहन बेचते व खरीदते हुए लेखाजोखा से जुड़े काम होते हैं. यह काम सरकार के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के माध्यम से होते हैं. किसी भी वाहन को बेचने पर उसके मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर वहां को ट्रांसफर करवाया जाता है. ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो राज्य सरकार का राजस्व होता है.

कई लोग इसे झंझट वाला काम समझते हैं और आपसी विश्वास में इस ट्रांसफर वाली प्रक्रिया से बचने की कोशिश करते हैं. जैसे वे स्टाम्प के माध्यम से अपने परिचित या जानपहचान वाले को अपना वाहन बेच देते हैं. कई बार तो बिना स्टाम्प के ही ऐसे ही बेच देते हैं. इस में सरकार को राजस्व का नुकसान तो होता ही है, उस व्यक्ति को भी नुकसान होता है जिस के नाम पर वाहन रजिस्टर्ड होता है.

कानून कहता है जिस डेट को वाहन को बेचा गया है उस के 14 दिनों के भीतर खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवाना होता है. यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 50 के अंतर्गत है. हां, यदि खरीदने व बेचने वाले का राज्य अलगअलग है तो यह अवधि 45 दिनों की होती है. पर इन दिनों के भीतर वाहन रजिस्टर्ड करवा लेना जरूरी होता है. इसे ही वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है.

क्या होता है ट्रांसफर

पुराने वाहनों को खरीदने व बेचने को ले कर यह एक तरह का नियम है, जिस के तहत इस प्रक्रिया को पूरा करके की वाहन को खरीदाबेचा माना जाता है. इसे ही आरसी ट्रांसफर कहा जाता है.

क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय द्वारा वाहनों को ट्रांसफर किया जाता है. औफलाइन माध्यम से सीधे कार्यालय में जा कर यह काम किया जा सकता है वरना कुछ राज्यों में औनलाइन सुविधा है तो इसे औनलाइन भी किया जा सकता है. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ जरूरी संबंधित कागजात व दस्तावेज जमा कराने होते हैं. दस्तावेज जमा करने के कुछ दिनों बाद आरसी ट्रांसफर कर दी जाती है.

मूल मालिक को नुकसान

अगर वाहन ट्रांसफार नहीं करवाया जाता है तोखरीदने वाले की गलतियों में भागीदारी अपनेआप बनने लगती है और वाहन के मूल मालिक को भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं. जैसे-

जुर्म में संलिप्तता : यदि बेचा गया वाहन खरीदने वाले के नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाया जाता है तब वह वाहन उसके पहले मालिक के नाम पर ही दर्ज होता है. किसी भी वाहन से अनेक तरह के अपराध संभव हैं. ऐसी सूरत में अपराधों में वाहन का मूल मालिक भी आरोपी बनाया जा सकता है, मालिक केवल स्टांम्प पर लिखापढ़ी के आधार पर यह नहीं कह सकता है कि वाहन उसके द्वारा बेचा जा चुका है.

ऐसे वाहन से कोई तीसरा व्यक्ति शराब इत्यादि प्रतिबंधित अपराधों के आरोप में पकड़ा जाता है तब वाहन का मूल मालिक भी पुलिस द्वारा आरोपी बना दिया जाता है क्योंकि वाहन का कब्जा उसे अपने पास रखने की जिम्मेदारी थी.

क्रिमिनल व सिविल जिम्मेदारी :खरीदने वाले के वाहन पर कब्जा न लिए जाने की स्थिति में सड़क हादसे में कई बार वाहन के मूल मालिक को भी मकदमों में घसीटदिया जाता है. आजकल सड़क हादसे आम हैं. हर दिन कईयों सड़क हादसों के मामले थानों में जमा होते हैं.

फिक्की ईवाई की इस साल आई रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल लगभग 15 लाख सड़क हादसे होते हैं. जो दुनियाभर के रोड ऐक्सिडैंट के 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर हैं.

ऐसे में बेचे गए और ट्रांसफर न करवाए गए वाहन से यदि कोई हादसा होता है तो हादसे की गंभीरता तय करते हैं कि मूल मालिक पर किस तरह की धारा लग सकती हैं. ऐसी धाराएं 279, 337, 338 और 304 (ए) हैं जो मामूली चोट से ले कर मृत्यु होने तक की धाराओं में लगाई जा सकती हैं.

ऐसे हादसों के बाद 2 तरह के प्रकरण बनते हैं. एक प्रकरण तो आपराधिक प्रकरण होता है जो ड्राइवर पर चलाया जाता है. कभीकभी ऐसे प्रकरण परिस्थितियों को देखकर मालिक पर भी बना दिए जाते हैं. इन अपराधों में सजा का प्रावधान है जो जुर्माने से लेकर 2 साल तक के कारावास तक की है. इसमें दूसरा प्रकरण सिविल प्रकरण बनता है जो मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 166 के अंतर्गत मुआवजे हेतु पीड़ित या पीड़ित के वारिसों द्वारा लगाया जाता है.

ऐसा मुआवजा क्षति के आधार पर लगाया जाता है जो पीड़ित व्यक्ति की आय को देखते हुए उसको होने वाले नुकसान के आधार पर तय होता है. इस हेतु वाहन का थर्ड पार्टी बीमा होता है, ऐसे नुकसान की क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी द्वारा की जाती है लेकिन यदि वाहन का बीमा नहीं है तब क्षतिपूर्ति की ज़िम्मेदारी मालिक पर भी डाली जा सकती है और पीड़ित व्यक्ति को होने वाला नुकसान मालिक से दिलवाया जाता है.

भारी आर्थिक क्षति का नुकसान

आजकल सड़क हादसों में मरने वाले लोगों के आश्रित परिजनों को, आय के अनुसार, अधिक से अधिक मुआवजा राशि दिलवाई जा रही है. जिस व्यक्ति की आय अधिक है उसकी सड़क हादसे में मृत्यु होने पर परिजनों को अधिक से अधिक मुआवजा मिलता है. बीमा नहीं होने की सूरत में मुआवजा वाहन के मूल मालिक को देना होता है क्योंकि वाहन का बीमा करवाना मालिक की जिम्मेदारी है.

एहतियात जरूरी

अब समस्या आती है कि मूल मालिक ने तो वाहन बेच दिया, लेकिन खरीदने वाला ट्रांसफर नहीं करवा रहा. अब ऊपर बताए जोखिम के हिसाब से तो मालिक इस केस में फंस सकता है. ऐसे में सब से पहले मूल मालिक की जिम्मेदारी बनती है कि वहखरीदने वाले को ट्रांसफर कराने हेतु एक सूचनापत्र लिखे. यह पत्र डाक द्वारा भेजे.

पत्र में वाहन खरीदने वाले को तत्काल वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर करने की चेतावनी हो. यदि इस के बावजूद खरीदार ट्रांसफर न करवाए तो एक आवेदन डाकपत्र की कौपी के साथ क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के समक्ष पेश करना चाहिए. ऐसे मामलों में वाहन मालिक खरीदार के खिलाफ आपराधिक व सिविल मुकदमा भी दायर कर सकता है.

यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

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