Download App

अभिनेत्री नहीं डॉक्टर बनना चाहती थी Madhuri Dixit, जानें फिर कैसे शुरू हुआ फिल्मी सफर

Madhuri Dixit Struggle Story : ‘धक-धक गर्ल’ के नाम से मशहूर अभिनेत्री ”माधुरी दीक्षित” के आज करोड़ों चाहने वालें हैं. एक्ट्रेस की खूबसूरती और एक्टिंग के दीवाने न सिर्फ भारत बल्कि देश से बाहर भी हैं. उन्होंने बहुत ही कम उम्र में फिल्मी दुनिया में कदम रख दिया था. इसके अलावा अब तक के अपने करियर में उन्होंने एक से बढ़कर कई शानदार फिल्मों में भी काम किया है, जो आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाई हुई हैं. लेकिन उनकी जिंदगी के कुछ रहस्यों के बारे में शायद ही किसी को पता होगा. तो आइए जानते हैं एक्ट्रेस ”माधुरी दीक्षित” (Madhuri Dixit Struggle Story) के जीवन, करियर और पर्सनल लाइफ से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में.

कथक में पारंगत हैं माधुरी

आपको बता दें कि अभिनेत्री ”माधुरी दीक्षित” (Madhuri Dixit Struggle Story) का जन्म 15 मई 1967 को मुंबई में के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता इंजीनियर थे और माँ गृहिणी थी. लेकिन इसी के साथ उनकी माता की शास्त्रीय नृत्य और गायन में भी अच्छी खासी दिलचस्पी थी. ”माधुरी” अपने घर में सबसे छोटी थी. उनसे बड़े उनके तीन बहन-भाई थे.

”माधुरी” की मां ने बचपन से ही उन्हें नृत्य की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी. जब वह तीन साल की थी तो तभी से उनकी मां ने उन्हें कथक नृत्य की कक्षा में दाखिला दिला दिया था, जिसके बाद 11 साल की उम्र तक ”माधुरी” कथक सीखकर उसमें पारंगत हो गई. इसी के साथ उनकी पढ़ाई भी चल रही थी. वो बचपन से ही बहुत पढ़ाकू थी. हालांकि स्कूल में वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया करती थी. लेकिन वह एक्ट्रेस नहीं बनना चाहती थी. वो तो डॉक्टर बनना चाहती थी.

इस तरह शुरू हुआ फिल्मी सफर

वहीं जब ”माधुरी दीक्षित” 17 साल की हुई तो उनकी प्रतिभा को निर्देशक ‘गोविंद मुनीस’ ने देखा और फिर उनकी मुलाकात ‘ताराचंद बड़जात्या’ और उनके पुत्र ‘राजकुमार बड़जात्या’ से कराई. इस मुलाकात के बाद ”माधुरी” को फिल्म ‘अबोध’ में नायिका के किरदार के लिए चुन लिया गया, जिसे करने के लिए वो मान भी गई. लेकिन ये फिल्म बड़े पर्दे पर बुरी तरह से फ्लॉप रही.

हालांकि ‘अबोध’ के बाद उन्हें (Madhuri Dixit Struggle Story) कुछ और फिल्मों में काम करने का मौका जरूर मिला, जिससे उनकी दिलचस्पी फिल्मों में बढ़ने लगी. इसके बाद उन्होंने आवारा बाप, स्वाति, हिफाजत, उत्तर दक्षिण और खतरों के खिलाड़ी जैसी सात फिल्मों में लगातार काम किया, लेकिन उनकी ये सातों की सातों फिल्में फ्लॉप होती चली गई. इससे ”माधुरी” बुरी तरह से टूट गई.

इसके कुछ समय बाद साल 1988 में उन्हें एन चंद्रा की फिल्म ‘तेजाब’ में काम करने का मौका मिला, जिसने उन्हें सफलता दिलाई. इस फिल्म के गाने ‘एक दो तीन’…  पर किया उनका डांस इतना लोकप्रिय हो गया कि फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस फिल्म ने माधुरी की किस्मत बदल दी और अपनी मेहनत, नृत्य के प्रति लगन और प्रतिभा के बल पर वह लंबे समय तक फिल्मों में छाई रही.

आलोचना का भी करना पड़ा है सामना

इसके बाद फिल्म ‘दयावान’ ने भी धूम मचा दी. इस फिल्म में उन्होंने (Madhuri Dixit Struggle Story) कई बोल्ड सीन भी दिए थे, जिसके लिए उनकी प्रशंसा तो हुई ही. साथ ही आलोचना भी हुई. फिर उन्होंने तय कर लिया था कि अब वो कभी भी फिल्मों में ऐसे सीन नहीं करेंगी. इसके बाद उन्होंने ‘दिल’, ‘जमाई राजा’, ‘बेटा’, ‘हम आपके हैं कौन’ और ‘दिल तो पागल है’ जैसी कई फिल्मों में काम किया, जिसमें से ज्यादातर फिल्में हिट रही और इस तरह ”माधुरी” कामयाबी के शिखर पर चढ़ती चली गई. गौरतलब है कि एक्ट्रेस का ये जादू आज भी बरकरार है. अब भी लोगों से उन्हें वो ही प्यार और प्रशंसा मिलती हैं जो करियर के शुरुआत में उन्हें मिला करती थी.

आपको बताते चले कि फिल्मों में अपने शानदार अभिनय के लिए ”माधुर दीक्षित” को छह बार ‘फिल्मफेयर’ और साल 2008 में भारत सरकार से ‘पद्मश्री’ पुरस्कार भी दिया जा चुका है.

इस खबर को सुन सभी को लगा था झटका

हालांकि एक्ट्रेस ”माधुर दीक्षित” (Madhuri Dixit Personal Life) ने जितना फिल्मों में अपने अभिनय से लोकप्रियता हासिल की है. उतना ही वह अपने रिलेशनशिप के लिए भी सुर्खियों में रही हैं. उनका नाम कई एक्टर के साथ जोड़ा जा चुका हैं, लेकिन उन्होंने अपने फैंस को तब हैरान कर दिया जब अचानक से उन्होंने साल 1999  में अमेरिका में डॉक्टर ‘श्रीराम माधव नेने’ से शादी कर ली थी. उनकी शादी की खबर जब भारत आई तो उनके फैंस सहित कई एक्टर व एक्ट्रेसस को झटका लगा था.

वहीं शादी के बाद फिर वापस वो मुंबई आई जहां उन्होंने अपनी अधूरी फिल्मों की शूटिंग पूरी की. लेकिन उसी के तुरंत बाद फिर वो फिल्मों से संन्यास लेकर वापस अमेरिका चली गई. शादी के कुछ साल बाद उन्होंने बेटे ‘रियान’ को जन्म दिया और फिर दो साल बाद एक और पुत्र ‘एरिन’ को.

माधुरी ने शादी के सात सालों बाद तोड़ा था संन्यास

वहीं शादी के करीब सात साल बाद ‘माधुरी दीक्षित नेने’ (Madhuri Dixit Struggle Story) ने फिल्मों से अपना संन्यास तोड़ा और फिर से काम करने के लिए भारत आ गई. जिसके बाद उन्होंने अपने करियर की नई शुरूआत की. उन्होंने फिल्मों के साथ-साथ टीवी शो ‘झलक दिखला जा’ में जज की भूमिका भी निभाई. इसके बाद साल 2011 में वह अपने पूरे परिवार के साथ अमेरिका को छोड़ मुंबई लौट आईं.

यहां फिर से उन्होंने एक के बाद एक कई फिल्मों में काम किया. हालांकि फिल्मों के अलावा ‘टीवी शो’ और ‘वेब सीरीज’ में भी वो अपना हाथ आजमा रही हैं. वहीं फिल्में बनाने के लिए भी वह अपनी कमर कस चुकी हैं. उन्होंने बतौर निर्माता मराठी फिल्म ’15 अगस्त’ से अपने नए करियर की शुरुआत की है और अब वो भविष्य के लिए कुछ और पटकथाओं पर भी काम कर रही हैं. जो जल्द ही बड़े पर्दे पर रिलीज होंगी.

मेरा एक फेसबुक फ्रेंड कुछ दिनों से मुझे अवौइड कर रहा है, ऐसे में मैं क्या कर सकती हूं ?

सवाल

मैं 28 वर्षीय कामकाजी, अविवाहित युवती हूं. पिछले दिनों फेसबुक पर मेरी दोस्ती एक लड़के से हुई. हम रोज मैसेंजर पर बात करते. लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह मुझे अवौइड करने लगा है. मेरे मेसैजेस का ठीक से जवाब भी नहीं देता. मुझे समझ नहीं आता मेरी गलती क्या है? मैं खुद को उस से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ पाती हूं इसलिए उस का यह व्यवहार मुझे दुखी करता है. मैं ने उस से कई बार उस के इस व्यवहार का कारण जानने की कोशिश की पर वह हमेशा कुछ नहीं कह कर बात टाल देता है. मैं उस के इस व्यवहार का क्या अर्थ समझूं?

जवाब

वह लड़का सिर्फ आप के साथ टाइम पास कर रहा था. अब उस को आप में कोई रुचि नहीं रही इसलिए वह ऐसा व्यवहार कर रहा है. आप भी उस की तरह तू न सही और सही…की तर्ज पर आगे बढ़ जाएं. आप उस से जितना ज्यादा जुड़ी रहेंगी खुद को दुखी करेंगी.

चाहिए मजबूत बाल तो आज से ही खाने में शामिल करें ये 5 सुपरफूड

बालों की सेहत हमारे खानपान पर खासा निर्भर करती है. हम क्या खाते हैं इसपर निर्भर करता है कि हमारे बालों की सेहत कैसी होगी. बालों के झड़ने के कई कारण होते हैं, एक तो पारिवारिक कारण है. मतलब अगर आपके दादा, पिता के बाल झड़ते हैं को आपके भी झड़ेंगे. ये एक अनुवांशिक समस्या है. दूसरा पोषण में कमी और खराब खानपान. आजकल ज्यादातर लोगों में इस कारण से बालों के झड़ने की समस्या होती है. ऐसे में जरूरी होता है कि आप अपने खानपान में कुछ खास चीजों को शामिल करें जिससे आपकी ये समस्या कम हो.

इस खबर में हम आपको पांच खाद्य पदार्थों के बारे में बताएंगे जिनको अपनी डाइट में शामिल कर बालों के झड़ने की समस्या को आप कम कर सकते हैं.

मेथी

मेथी खानपान की महत्वपूर्ण समाग्री है. कई तरह की छोटी मोटी परेशानियों में ये बेहद कारगर होती है. आपको बता दें कि इसके नियमित सेवन से बालों का ग्रोथ अच्छा होता है और साथ में बालों को काफी मजबूती भी मिलती है. आपको बता दें कि इसमें प्रोटीन और निकोटीन प्रचूर मात्रा में पाई जाती है जिससे बालों का झड़ना कम होता है.

नारियल का तेल

खाना बनाने में नारियल के तेल का इस्तेमाल किया जाता है. आपको बता दें कि नारियल के तेल में लौरिक एसिड होता है, इससे हमारे बालों में प्रोटीन बना रहता है. बालों की जड़ों की मजबूती में ये बेहद असरदार होता है. एंटीऔक्सिडेंट का ये प्रमुख स्रोत है.

आंवला

बाल झड़ने की परेशानी में आंवला बेहद फायदेमंदा होता है. इसको डाइट में शामिल कर आप इस समस्या से जल्दी निडात पा सकते हैं. इसका सेवन कई तरह से किया जा सकता है. आप चाहे तो पाउडर हो या फिर इसका जूस, या फिर अचार बनाकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. इसको आप सीधे त्वचा या स्कैल्प पर भी लगा सकते हैं. विटामिन सी और एंटीऔक्सिडेंट का प्रमुख स्रोत आंवला आपके बालों को जड़ों से डैमेज होने से बचाता है.

पालक

पालक के बेहतरीन सब्जी है. इसमें विटामिन सी, बी, ई के अलावा ओमेगा-3 फैटी एसिड मौजूद होता है. पालक में मौजूद आयरन स्कैल्प में औक्सिजन ले जाने में मदद करता है, इससे बाल मजबूत होते हैं.

इन सारी चीजों  के अलावा विटामिन सी से भरपूर चीजें खानी चाहिए. प्रदूषण वाले इलाके में जाने से पहले अपने बालों को ढक लें और कैमिकल वाले शैंपू या कंडीशनर का इस्तेमाल करने से बचें.

मन आंगन की चंपा : सुभद्रा स्वयं को असहाय क्यों मानती रही ?

story in hindi

पढ़ें एक से बढ़कर एक प्रेरणा देने वाली कहानियाँ

Top 10 Inspiration stories in hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट प्रेरणा देने वाली कहानियाँ. तो पढ़िए वो छोटी-छोटी कहानियां. जो अवश्य ही आपके जीवन में लाएंगी सफलता के नए आयाम. दरअसल जीवन में कई बार हमें न चाहते हुए भी ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ जाता है जिससे निकलना हमारे लिए मुशकिल होता है. ऐसे में प्रेरणा की काफी आवश्यकता होती है. ‘सरिता’ पत्रिका भी मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित कहानियों से आप अपनी समस्याओं का समाधान आसानी से निकाल सकते हैं. साथ ही इन तमाम कहानियों को पढ़ने के बाद प्रेरणा भी मिलती है.

Special Motivational stories in hindi : सफलता की वो कहानियां जो बदल देंगी आपके जीवन को

1. माई दादू : बड़ों की सूझबूझ कैसे आती है लोगों के काम ?

Inspiration stories

‘‘हाय माई स्वीटी, दादू! आज आप इतना डल कैसे दिख रही हो? मैं तो मूड बना कर आया था आप के साथ बैडमिंटन खेलूंगा, लेकिन आप तो कुछ परेशान दिख रही हो.’’

‘‘अरे बेटा, कुश, बस तेरी इस लाड़ली बहन कुहु की फिक्र हो रही है. ये कुहु अंशुल के साथ अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुकी है पर अंशुल के पेरैंट्स इस रिश्ते से खुश नहीं. अब जब तक लड़के के मांबाप खुशीखुशी बहू को अपनाने के लिए राजी नहीं होते तो भला कोई रिश्ता अंजाम तक कैसे पहुंचेगा. मुझे तो बस यही फिक्र खाए जा रही है. मेरी तो कल्पना से परे है कि आज के जमाने में भी किसी की इतनी पिछड़ी सोच हो सकती है. आजकल जाति में ऊंचनीच भला कौन सोचता है. वे ऊंचे गोत्र वाले ब्राह्मण हैं तो हम भी कोई नीची जात के तो नहीं.’’

पूरी Inspiration stories in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

2. कैप्टन नीरजा गुप्ता

Inspiration story in hindi

लेह से मेरी नई पोस्टिंग श्रीनगर की एकवर्कशौप में हुई थी. मैं श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरीतो मुझे वीआईपी लाउंज में पहुंच कर यूनिट केएडजूडेंट कैप्टन नसीर एहमद को फोन करना था, हालांकि, अधिकारिक तौर पर उन को मेरे आने की सूचनाथी. मैं ने नसीर साहब को फोन किया, ‘सर, गुडमौर्निंग. मैं कैप्टन नीरजा गुप्ता बोल रही हूंश्रीनगर ऐयरपोर्ट से. इस समय मैं वीआईपी लाउंज मेंहूं.’ ‘गुडमौर्निग, कैप्टन नीरजा. श्रीनगर में आप कास्वागत है. आप वीआईपी लाउंज में ही बैठें.

पूरी Inspiration story in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

3. मजबूत औरत : आत्मसम्मान के साथ जीती एक मां की कहानी

motivational story in hindi

ऊषा ने जैसे ही बस में चढ़ कर अपनी सीट पर बैग रखा, मुश्किल से एकदो मिनट लगे और बस रवाना हो गई. चालक के ठीक पीछे वाली सीट पर ऊषा बैठी थी. यह मजेदार खिड़की वाली सीट, अकेली ऊषा और पीहर जाने वाली बस. यों तो इतना ही बहुत था कि उस का मन आनंदित होता रहता पर अचानक उस की गोद मे एक फूल आ कर गिरा. खिड़की से फूल यहां कैसे आया, वह इतना सोचती या न सोचती, उस ने गौर से फूल देखा तो बुदबुदाई, ‘ओह, चंपा का फूल’.

पूरी motivational story in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

4. घोंसला : वृद्धावस्था के संवेगों को उकेरती मर्मस्पर्शी कहानी

motivational story

सुबह होतेहोते महल्ले में खबर फैल  गई थी कि कोने के मकान में  रहने वाले कपिल कुमार संसार छोड़ कर चले गए. सभी हैरान थे. सुबह से ही उन के घर से रोने की आवाजें आ रही थीं. पड़ोस में रहने वाले उन के हमउम्र दोस्त बहुत दुखी थे. वास्तव में वे मन से भयभीत थे.

उम्र के इस पड़ाव में जैसेतैसे दिन कट रहे थे. सब दोस्तों की मंडली कपिल कुमार के आंगन में सुबहशाम जमती थी. कपिल कुमार को चलनेफिरने में दिक्कत थी, इसलिए सब यारदोस्त उन के यहां ही एकत्रित हो जाते और फिर कभी कोई ताश की बाजी चलती तो कभी लूडो खेला जाता. कपिल कुमार की आवाज में खासा रोब था. ऊपर से जिंदादिली ऐसी कि रोते हुए को वे हंसा देते.

पूरी motivational story पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

5. न्याय : बेकसूर को न्याय दिलाने वाले व्यक्ति की दिलचस्प कहानी

motivational story in hindi

पिछले वर्ष अपनी पत्नी शुभलक्ष्मी के कहने पर वे दोनों दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले थे. जब चेन्नई पहुंचे तो कन्याकुमारी जाने का भी मन बन गया. विवेकानंद स्मारक तक कई पर्यटक जाते थे और अब तो यह एक तरह का तीर्थस्थान हो गया था. घंटों तक ऊंची चट्टान पर बैठे लहरों का आनंद लेते रहे और आंतरिक शांति की प्रेरणा पाते रहे. इस तीर्थस्थल पर जब तक बैठे रहो एक सुखद आनंद का अनुभव होता है जो कई महीने तक साथ रहता है.

पूरी motivational story in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

6. संकट की घड़ी : डॉक्टरों की परेशानियां कौन समझेगा ?

प्रेरणा कहानी

उस ने घड़ी देखी. 7 बजने को थे. मतलब, वह पूरे 12 घंटों से यहां लगा हुआ था. परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन गई थी कि उसे कुछ सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिला था.

जब से वह यहां इस अस्पताल में है, मरीज और उस के परिजनों से घिरा शोरगुल सुनता रहा है. किसी को बेड नहीं मिल रहा, तो किसी को दवा नहीं मिल रही. औक्सीजन का अलग अकाल है. बात तो सही है. जिस के परिजन यहां हैं या जिस मरीज को जो तकलीफ होगी, यहां नहीं बोलेगा, तो कहां बोलेगा. मगर वह भी किस को देखे, किस को न देखे.

पूरी प्रेरणा कहानी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

7. चाहत : एक गृहिणी की ख्वाहिशों की दिल छूती कहानी

प्रेरणा कहानी in hindi

‘थक गई हूं मैं घर के काम से. बस, वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर की सारी टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं. अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,’ शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं. एक बार अपनी बोरियतभरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान बनाया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.

पूरी प्रेरणा कहानी in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

8. राधेश्याम नाई : आखिर क्यों खास था राधेश्याम नाई ?

प्रेरणा कहानी हिंदी में

‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’

पूरी प्रेरणा कहानी हिंदी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

9. कशमकश : दो जिगरी दोस्त क्यों मजबूर हुए गोलियां बरसाने के लिए ?

मोटिवेशनल story in hindi

मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा.

‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’

नायक सुरजीत की बात सुनते ही वरुण को जोर का धक्का लगा और चंद सैकंड के लिए वह कुछ बोल नहीं सका. फिर उस ने अपनेआप को संभाला और बोला, ‘‘शाबाश सुरजीत, आप की टीम ने बहुत अच्छा काम किया. आप की दी हुई खबर बहुत काम आएगी. आप जा सकते हैं.’’

सुरजीत ने सैल्यूट मारा और चला गया. उस के जाने के बाद वरुण सोचने लगा, ‘18 पंजाब-मेरी पलटन. मेजर जमील महमूद-मेरा जिगरी दोस्त. क्या मैं उस की जान ले लूं जिस ने कभी मेरी जान बचाई थी. यह कहां का इंसाफ होगा?’

पूरी मोटिवेशनल story in hindi पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

10. नारायण बन गया जैंटलमैन

मोटिवेशनल story

कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की. ‘‘पहला नाम है जैंटलमैन नारायण का. नारायण स्टेज पर आएं और कंपनी में सेवाएं देने के लिए अपना फौर्म भरें. अगला नाम है…’’ कहते हुए उन्होंने कई नाम लिए. नारायण अपना नाम सुनते ही फूला न समाया. जब उस का नाम पुकारा गया तो हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

पूरी मोटिवेशनल स्टोरी पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.

इजराइल – हमास जंग : निहत्थों के नरसंहार पर खड़ा युद्ध

इजराइल और फिलिस्तीनियों के एक मिलिटैंट गुट हमास के बीच चल रहे युद्ध में किसी का पक्ष लेना थोड़ा मुश्किल काम है. इजराइल युनाइटेड नेशंस द्वारा बाकायदा स्वीकारा गया एक स्वतंत्र देश है जिस का अपना संविधान है, अपना   झंडा है, अपनी संसद है और जहां चुने गए लोग शासन करते हैं.

हमास इजराइल के क्षेत्र में पहले से रह रहे फिलिस्तीनियों में से हथियारों से लैस बिना किसी संविधान, चुनाव, सरकार वाला एक गुट है. जब 7 अक्तूबर की सुबह हमास ने इजराइल के एक उत्सव के दिन 3 हजार रौकेटों से हमला कर के इजरायल के एक दक्षिणी शहर में किबुत्ज रीम के पास एक स्थल में आराम से शांति से पूजा कर रहे व उत्सव मनाते एक हजार से अधिक लोगों को, जिन में औरतेंबच्चे शामिल थे, मार डाला और इजरायल में घुस कर बहुत से इजराइलियों को मारा व कई इजराइलियों को गाजा के अपने खुफिया इलाके में होस्टेज के तौर पर कैद कर लिया तो इजराइल को कुछ तो करना ही था.

वर्ष 1948 से जन्म से ही इजराइली वह सब करते रहे हैं जो उन के साथ दुनियाभर में 2,000 साल किया गया. हिटलर ने जो बर्बरता व क्रूरता उन के साथ 1940 से 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में की, उस को दुनिया में न दोहराया जाए, इस संकल्प की जगह इजराइल के यहूदियों ने हिटलर से भी ज्यादा क्रूरता पिछले 70 सालों में दिखाई है.

यह संभव हुआ इसलिए कि इजराइलियों ने 1948 में मिली बंजर जमीन को न केवल उपजाऊ बनाया बल्कि उन्होंने एक औद्योगिक व सैनिक दृष्टि से ताकतवर देश का निर्माण भी कर लिया. जहां आसपास के अरबी बोलने वाले लोगों की प्रति व्यक्ति आय 7,000 डौलर से 2,000 डौलर प्रति वर्ष है, 70 सालों में इजराइल ने अद्भुत प्रगति कर के प्रति व्यक्ति आय को 58,000 डौलर पहुंचा दिया और अरब देशों से घिरे होने के बावजूद एक अलग धर्म वाले मजबूत देश का निर्माण कर लिया. पर इस का मतलब यह है कि क्या वे कुछ के गुनाहों की सजा पूरी कौम को दें? गाजा पट्टी में रहने वाले 20 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को मार डालने की सैन्य योजना किसी के गले नहीं उतरेगी. वर्ष 2006 में भी एक युद्ध इसीलिए हुआ था जब हमास के गुरिल्लों ने 2 इजराइली सैनिकों को अगवा कर लिया था.

कुछ इजराइलियों की वजह से दूसरे निहत्थेनिर्दोषों का सजा देना वैसा ही है जैसे ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमला कर के किया था. नाराजगी अमेरिकी की विदेश नीति से थी पर मौत की सजा दी गई उस कमर्शियल बिल्ंिडग में काम करने वालों और 3 बड़े जहाजों के यात्रियों को.

आज इजराइल यही कर रहा है. कुछ हजार हमास गुरिल्ला फोर्स का बदला 20 लाख निहत्थे गाजा पट्टी में बसे फिलिस्तीनियों को मार कर लिया जा रहा है. इजराइल कहता है कि अगर हमास ने हथियार नहीं डाले तो गाजा पट्टी में कोई जिंदा नहीं बच पाएगा चाहे वह बमों, रौकेटों से मरे या भूख व प्यास से.

ऐसा हिटलर ने किया था. हिटलर ने निहत्थे, निर्दोष यहूदियों को गैस चैंबरों में धकेला था, मशीनगनों से उड़ाया था, खुद कब्र खोद कर उस में कूदने को कहा और दूसरे यहूदियों, जिंदा लोगों को मिट्टी में दबाने को कहा. वर्ष 1940 से 1945 के दौरान जो बर्बरता यहूदियों के साथ हुई वह अब इजराइल गाजा पट्टी में दोहरा रहा है ताकि अपने देश की मौतों का बदला लिया जा सके.

नैतिकता का एक बड़ा सवाल पूरे पश्चिम जगत के सामने अब यह खड़ा हो गया है कि वे किस हद तक इजराइल का समर्थन करें? मुसलिम फिलिस्तीनियों से यूरोप और अमेरिका की सरकारों को कोई हमदर्दी नहीं है. पर इस तरह का नरसंहार, जो इजराइल करने जा रहा है या कर चुका है, कैसे पचाया जा सकता है? इजराइली खुद को नया हिटलर और मुसोलिनी साबित कर रहे हैं. उन का नैतिकता के किन मापदंडों के तहत समर्थन किया जा सकता है?

भारत में इजराइल समर्थक हैं क्योंकि यहां वैसी बर्बरता इजराइली टैंकों की जगह हमारे बुलडोजर कर रहे हैं, मैतेई मणिपुरियों की भीड़ कुकी मणिपुरियों के साथ कर रही है और भाजपा की सरकार उसे मूक समर्थन दे रही है. यह अत्याचार हमारे शूद्रों (ओबीसी) व दलितों (एससी) के साथ सदियों से होता रहा है. यह पौराणिक व्यवस्था रही है.

परवीन बौबी की जिंदगी का किस्सा

चांद तनहा है, आस्मा तनहा, दिल मिला है कहांकहां तनहा

बुझ गई आस, छुप गया तारा, थरथराता रहा धुंआ तनहा 

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तनहा है और जां तनहा

हमसफर कोई गर मिले भी कहीं दोनों चलते रहे यहां तनहा

अपने दौर की मशहूर और प्रतिभाशाली ऐक्ट्रैस मीना कुमारी उम्दा शायरा भी थीं जिनकी लिखी गजलें आज भी शिद्दत से पढ़ी और सुनी जाती हैं क्योंकि वे हर किसी की जिंदगी पर कभी न कभी फिट बैठती हैं. परवीन बौबी की जिंदगी पर नजर डालें तो लगता है कि वे मीना कुमारी की गजलों से निकली कोई किरदार हैं जो जिंदगीभर दुनिया के मेले में तनहा रहीं और आखिरकार एक दिन इसी तन्हाई में चल बसीं.

किसी भी जिंदगी की कहानी इतनी छोटी भी नहीं होती कि उसे चंद लफ्जों में समेट कर पेश या खत्म किया जा सके. बकौल फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े शो मेन राजकपूर हरेक कहानी का अंत एक नई कहानी का प्रारम्भ होता है. परवीन बौबी की जिंदगी एक तरह से मीना कुमारी की जिंदगी का री प्ले थी जिसे जिसने भी गहराई से समझा उसने दुनिया के कई रिवाजों और उसूलों को समझ लिया कि वह तन्हाई ही है जो पूरी वफा और इमानदारी से साथ देती है वर्ना तो सब मिथ्या है.

70 के दशक में हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियां आमतौर पर परंपरागत परिधान में ही नजर आती थीं. इसी वक्त में बौलीबुड में परवीन बौबी की एंट्री हुई थी जो निहायत ही स्टाइलिश ग्लैमरस खूबसूरत वसैक्सी भी थीं और ऐक्टिंग में भी किसी से उन्नीस नहीं थीं.

परवीन ने नायिका की नई इमेज गढ़ी जिसमें उसका सारा शरीर साड़ी ब्लाउज से ढके रहना जरुरत या मजबूरी नहीं रह गई थी हालांकि समाज और सोच में भी तब्दीलियां आ रहीं थीं लेकिन उन्हें मजबूत करने फिल्मों का सहयोग और योगदान जरुरी था जो परवीन जैसी खुले दिल और दिमाग वाली ऐक्ट्रैस ही दे सकती थीं.

पहली फिल्म की छाप

किसी भी कलाकार पर उसकी पहली फिल्म के किरदार का असर लम्बे समय तक रहता है. यही परवीन के साथ हुआ. उनकी पहली फिल्म साल 1972 में आई चरित्र थी जिसमें उनके अपोजिट क्रिकेटर से ऐक्टर बने सलीम दुर्रानी थे. बीआर इशारा की इस फिल्म में भी मध्यमवर्गीय युवतियों की मजबूरी दिखाई गई थी जिसके चलते वे शारीरिक शोषण का शिकार अपनी सहमति से होती हैं लेकिन फिल्म की खूबी उसका फलसफा था जो चरित्र की विभिन्न परिभाषाओं के इर्दगिर्द घूमता रहता है. फिल्म फ्लौप रही और चिकने चुपड़े चेहरे वाले सलीम दुर्रानी को दर्शकों ने नकार दिया पर परवीन को स्वीकार लिया.

चरित्र में परवीन ने एक मिडल क्लासी और कामकाजी लड़की शिखा की भूमिका अदा की थी जो आधुनिक है और शराब सिगरेट पीने में उसे किसी तरह की ग्लानि महसूस नहीं होती. पिता द्वारा गिरवी रखा घर बचाने शिखा को अपने बौस का बिस्तर गर्म करना पड़ता है.इस सौदे पर जरुर उसे गिल्ट फील होता है और वह आत्महत्या की कोशिश भी करती है.

एक तरह से वह बौस की रखैल बनकर रह जाती है जो उसके अंदर की औरत को कभीकभी खटकता भी है हालांकि वह इसे चरित्रहीनता नहीं मानती. फिल्म के टाइटल में बेकग्राउंड से परवीन बौबी की ही आवाज में गूंजता यह डायलाग फिल्म की जान है कि सोचना बहुत बड़ी बीमारी है लोग सोचते बहुत हैं इसलिए परेशान भी रहते हैं.

चरित्र की बोल्ड भूमिका निभाने के बाद परवीन ने फिर कभी मुड़कर नहीं देखा और एक से एक हिट फिल्में दीं. इन में मजबूर, कालिया, शान, नमक हलाल, महान, देश प्रेमी, खुद्दार,अर्पण,द बर्निंग ट्रैन, सुहाग, काला पत्थर और 36 घंटे जैसी हिट फिल्में शामिल हैं लेकिन एक परफैक्ट ऐक्ट्रैस की मान्यता उन्हें अपने दौर की सुपर हिट फिल्म 1975 में प्रदर्शित दीवार से मिली थी जिसमें उनके नायक अमिताभ बच्चन थे.

अमिताभ के अपोजिट परवीन ने सबसे ज्यादा 8 फिल्में की थीं जो सभी हिट रहीं थीं. दीवार में भी उनका रोल एक रखैल सरीखा ही था जो बुद्धिजीवी है. इस फिल्म में भी वे अमिताभ के साथ सिगरेट और शराब पीती नजर आई थीं. यह भूमिका सभ्य और आधुनिक समाज की आवारा औरत की थी.

रियल और रील लाइफ

यह महज इत्तफाक की बात है कि कुछ नहीं बल्कि कई मानो में परवीन की रील और रियल लाइफ में काफी समानताएं थीं. फिल्म इंडस्ट्री में अब बहुत कम लोग बचे हैं जो अधिकारपूर्वक उन्हें याद करें,हां वे अगर जिंदा होती तो जरुर बीती 3 अप्रैल को अपना 68 वां जन्मदिन समारोहपूर्वक मनाती दिखतीं.

51 साल की अपनीछोटी सीजिंदगी में परवीन ने कई जिंदगियों को जिया. गुजरात के जूनागढ़ के रईस मुसलिम परिवार में जन्मी इस ऐक्ट्रैस ने जिंदगी में जो कुछ भी देखा और भुगता वह किसी ट्रेजेडी फिल्म से कम नहीं है. उनके पिता वली मोहम्मद बौबी, बौबी राजघराने के नबाब जूनागढ़ के खास कारिंदे हुआ करते थे जो उन दिनों फख्र की बात हुआ करती थी.

परवीन अपने मांबाप की शादी के 14 साल बाद पैदा हुई थीं जाहिर है काफी लाडप्यार में उनकी परवरिश हुई थी लेकिन इस पर दुखद बात यह रही कि पिता का सुख उन्हें ज्यादा नहीं मिला. परवीन जब 5 साल की थीं तभी मोहम्मद बौबी चल बसे थे. इस हादसे का उनके नाजुक और भावुक मन पर पड़ा गहरा असर उम्र भर दिखता रहा.

माउन्ट कार्मल हाई स्कूल से स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदाबाद के ही सेंट जेवियर्स कालेज से इंग्लिश लिटरेचर से एमए करने वाली परवीन तत्कालीन अभिनेत्रियों में सबसे ज्यादा शिक्षित थीं. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे मौडलिंग के लिए मुंबई आ गईं और फिल्मों के लिए भी हाथपांव मारने लगीं.

एक खास किस्म की फिल्में बनाने के लिए बदनाम निर्माता निर्देशक बीआर इशारा ने उन्हें स्टाइल से सिगरेट पीते देखा तो तुरंत चरित्र फिल्म की शिखा के लिए चुन लिया. 1974 में उन्हें मजबूर फिल्म में अमिताभ के अपोजिट काम करने का मौका मिला यह फिल्म हिट रही थी इसके बाद तो उन पर दौलत और शोहरत बरस पड़े. लेकिन यह सिर्फ किस्मत या सैक्सी और ग्लैमरस होने की वजह से नहीं था बल्कि उनकी जबरजस्त अभिनय प्रतिभा के चलते ऐसा हुआ था.

यह वह दौर था जब बौलीबुड में हेमा मालिनी, रेखा, राखी, रीना राय, जया भादुरी और मुमताज जैसी ऐक्टर्स का नाम सिक्कों की तरह चलता था. इनके रहते इंडस्ट्री में अपना नाम और मुकाम हासिल कर पाना जीनत अमान के बाद अगर किसी के लिए मुमकिन था तो वे परवीन बौबी थीं.

1972 से लेकर 1982 तक परवीन का जादू इंडस्ट्री में सिर चढ़कर बोला करता था. अपनी जिंदगी की तरह फिल्मी भूमिकाओं के प्रति भी वे कभी गंभीर नहीं रहीं. कामयाबी के दिनों में उन्होंने वही जिंदगी जीई जो मीना कुमारी जिया करती थीं. परवीन के आसपास सिगरेट के धुएं के छल्लों और शराब के प्यालों के अलावा कुछ और नहीं होता था.

अपनी शर्तों पर जीना कतई एतराज या हर्ज की बात नहीं लेकिन यह भी सच है कि जब आप दूसरों की शर्तों पर जीने लगते हैं तो जिंदगी इतनी दुश्वार हो जाती है कि उसे सलीके से जीना दूभर हो जाता है. यही परवीन के साथ हुआ जिन्होंने शादी का बंधन पसंद नहीं किया और एक बार किसी की भी पत्नी बनने के बजाय हर बार प्रेमिका बनना पसंद किया.

उभरते ऐक्टर और खलनायक डेनी डेंजोगाप्पा से उनका लम्बा अफेयर रहा और स्टाइलिश हीरो कबीर बेदी से भी जिनके लिए वे अपना कैरियर तक कुर्बान करने तैयार हो गईं थीं. कबीर शादीशुदा थे इसलिए इस रिश्ते को अंजाम तक पहुंचाने की हिम्मत नही जुटा पाए. उसी दौर में फिल्मों में जमने हाथ पैर मार रहे निर्देशक महेश भट को वे सचमुच दिल दे बैठीं थीं जिनका नाम इंडस्ट्री के कामयाब निर्देशकों में शुमार होता है.

महेश भट्ट और परवीन बौबी की लव स्टोरी वाकई अजीब थी जिसे आज भी चर्चित प्रेम कथाओं की लिस्ट में सबसे ऊपर रखा जाता है. महेश भट्ट की पहली शादी अपने स्कूल की सहपाठी लारेन ब्राईट से हुई थी जिन्होंने अपना नाम किरण रख लिया था. पूजा भट्ट और राहुल भट्ट  इन्ही दोनों की संतानें हैं.

आशिकी फिल्म महेश ने अपने पहले प्यार को लेकर ही बनाई थी. इसके बाद भी उनकी तमाम फिल्मों में उनकी व्यक्तिगत जिंदगी दिखी.जब 70 के उत्तरार्ध में महेश और परवीन के रोमांस के किस्से आम होने लगे तो लारेन ने स्वभाविक एतराज जताया जिसके चलते यह शादी टूट गई. महेश भट को एक खब्त और सनकी डायरैक्टर कहा जाता था लेकिन उनके टेलेंट का कायल भी उतने ही थे.

एक वक्त में यह लगभग तय हो गया था कि परवीन बौबी और महेश भट्ट शादी कर लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. क्यों नहीं हुआ यह तो शायद अब महेश भी न बता पाएं लेकिन इसकी बड़ी वजह खुद परवीन बौबी का असमान्य होता व्यवहार और उटपटांग हरकतें थीं. परवीन को लगता था कि कोई उनकी जान लेना चाहता है.वे शूटिंग के दौरान भी काफी भयभीत दिखने लगी थीं. यह दरअसल में पेरानायड सिजोफ्रेनिया नाम की दिमागी बीमारी थी जिसका अनजाने में ही वे शिकार हो गईं थीं.

इंडस्ट्री में हर कोई कहता है कि डेनी और कबीर के बाद महेश ने भी परवीन का शोषण किया. उनका इस्तेमाल किया, ठगा और धोखा दिया. लेकिन यह पूरा सच नहीं लगता क्योंकि महेश उन्हें लेकर काफी संजीदा थे और इलाज के लिए अमेरिका तक ले गए थे.

शायद महेश और किरण के अलगाव की वजह परवीन खुद को मानने लगीं थी क्योंकि वे पत्नी और बच्चों को छोड़ उन्ही के साथ रहने लगे थे. इस पर परवीन इतना गिल्ट फील करने लगी थीं कि अर्ध विक्षिप्त हो गईं थीं. चरित्र फिल्म की शिखा उनके भीतर कहीं रह गई थी जो रखैल शब्द सुनते ही डिप्रेशन में आ जाती थी.अब परवीन शराब के नशे में धुत रहते अपना गम भुलाने की वही गलती भी करने लगीं थीं जो कभी मीना कुमारी ने की थी.

1984 में परवीन को न्यूयौर्क एयरपोर्ट में हथकड़ी पहने देखा गया था लेकिन यह किसी फिल्म की शूटिंग नहीं थी बल्कि उनकी दिमागी हालत की वजह से था. एयरपोर्ट पर वह अजीबोगरीब व्यवहार कर रहीं थीं और सिक्योरटी स्टाफ को अपनी पहचान तक नहीं बता पा रहीं थीं.पागलों सी हरकतें देख पुलिस ने उन्हें पागलखाने में पागलों के साथ बंद कर दिया था. जब एक भारतीय एजेंसी के अधिकारियों ने उन्हें छुड़ाया तब वे हंस रहीं थीं मानो कुछ हुआ ही न हो.

साल 1982 में महेश ने समान्तर फिल्म अर्थ बनाई थी जो अनधिकृत तौर पर हकीकत में उन्ही की जिंदगी पर आधारित थी. फिल्म के हीरो कुलभूषण खरबंदा थे जो पत्नी शबाना आजमी को छोड़कर प्रेमिका स्मिता पाटिल के साथ रहने लगते हैं. स्मिता पाटिल को सिजोफ्रेनिया का मरीज अर्थ में बताया गया है जिसे हर वक्त यह महसूस होता रहता है कि कोई खासतौर से शबाना आन्मी उन्हें मार देना चाहती हैं क्योंकि उन्होंने उसका पति उनसे छीन रखा है.

फिल्म में जब भी स्मिता का सामना शबाना से होता है तो उनके हाथ पैर कांपने लगते हैं और दौरे से पड़ने लगते हैं. एक दृश्य में जब दोनों का सामना होता है तो शबाना स्मिता पर ताना कसते कहती हैं कि किताबों में लिखा है कि पत्नी को बिस्तर में वेश्या होना चाहिए जो तुम हो.

वास्तविकता पर आधारित अर्थ ने ऊपर के दर्शकों को झकझोर दिया था. स्मिता पाटिल और शबाना आजमी ने जो शानदार जानदार एक्टिंग की थी अब शायद ही कोई कर पाए.कुलभूषण खरबंदा भी महेश भट के रोल में प्रभावी अभिनय कर गए थे कि कैसे कोई एक मर्द दो औरतों के बीच चक्की के पाटों सा पिसता रहता है. वह न तो पत्नी को छोड़ सकता और न ही प्रेमिका को.

फिल्म चली और खूब चली जिसे कई पुरस्कार भी मिले थे.परवीन बौबी की जिंदगी पर वो लम्हे शीर्षक से फिल्म भी बनी थी जो उतनी ही फ्लौप रही थी जितनी इसी उसी साल इसी थीम पर बनी वेब सीरिज रंजिश ही सही रही थी.

अर्थ के प्रदर्शन से2 साल पहले रमेश सिप्पी की सबसे महंगी और शोले की तरह मल्टी स्टारर फिल्मशान की शूटिंग के दौरान परवीन बौबी का पागलपन सार्वजनिक हुआ था, जब एक लटकते झूमर को देख चिल्ला पड़ी थीं कि अमिताभ बच्चन उन्हें इसके जरिए मार देना चाहते हैं.

परवीन को शक था कि यह झूमर उनके सर पर गिरा दिया जाएगा. इसके बाद वे शूटिंग छोड़ घर चली गईं. पूरी यूनिट हैरानी से परवीन को देखती और पूछती रह गई थी कि यह इन्हें क्या हो गया. इस सवाल का जवाब सालों बाद लोगों को मिल भी गया था.

यह सब कुछ अचानक नहीं हुआ था बल्कि धीरेधीरे हुआ था जिसका अहसास परवीन को भी नहीं था कि वे एक भयानक दिमागी बीमारी की चपेट में आती जा रहीं हैं जिसमें मरीज डर और आशंकाओं के साए में रहता है. वह कल्पनाएं करता है और उन्हें ही सच मानने लगता है फिर हकीकत से कोई वास्ता उसका नहीं रह जाता. पहले परवीन को सिर्फ अमिताभ पर शक था कि वे उनकी हत्या की साजिश रच रहे हैं लेकिन फिर इस लिस्ट में प्रिंस चार्ल्स, अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन सहित भाजपा सरकार तक का नाम शामिल हो गया था.

सिजोफ्रेनिया का मरीज अपने वहमों के प्रति कितना आत्मविश्वासी होता है. यह परवीन की हरकतों से भी उजागर हुआ था जब उन्होंने अपने संभावित हत्यारों के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई तक कर डाली थी. उम्मीद के मुताबिक अदालत से ये मुकदमे खारिज हो गए थे.

कोई बात न बनते देख महेश भट्ट ने 1986 में अभिनेत्री सोनी राजदान से शादी कर ली. आलिया भट्ट इन्ही दोनों की संतान हैं. शान के रिलीज होने के 2 साल बाद परवीन बौबी रहस्मय ढंग से गायब हो गईं तो उनके प्रशसंकों सहित फिल्म इंडस्ट्री सकते में आ गई थी. कहा यह गया था कि अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं ने उन्हें किडनेप कर लिया है क्योंकि तब परवीन के पास बेशुमार पैसा था और वे सुकून शांति और स्थायित्व के लिए अकेली भटक रहीं थीं.

अपने कंधों पर अपनी मजार

1983 में गायब हुईं परवीन कोई 6 साल बाद मुंबई में प्रगट हुईं उन्होंने लोगों को बताया कि दरअसल में आध्यात्मिक शांति के लिए एक आश्रम में चली गईं थीं. अधिकतर लोगों का अंदाजा था कि यह ओशो रजनीश का आश्रम हो सकता है जहां शांति की तलाश में अपने दौर के दिग्गज अभिनेता विनोद खन्ना भी गए थे और वहां सेवादारों की तरह झाड़ू भी लगाते थे. सच जो भी हो इसके बाद परवीन के खाते में कोई उल्लेखनीय फिल्म नहीं आई. 1983 में उनकी 2 फ़िल्में ही चलीं पहली थी अर्पण और दूसरी थी धर्मेन्द्र हेमा मालनी अभिनीत एतिहासिक फिल्म रजिया सुल्तान जिसमें वे एक छोटे से रोल में थीं.

परवीन आखिरी बार 1988 में प्रदर्शित आकर्षण फिल्म में नजर आईं थी जो कि उनकी पहली फिल्म चरित्र से भी ज्यादा फ्लौप रही थी. इसके बाद वे दक्षिणी मुंबई के एक रिहायशी इलाके में फ्लेट लेकर रहने लगीं थीं. अकेली, तनहा और गुमनाम,जहां उनका सहारा वही शराब और सिगरेटें थीं जो चरित्र की शिखा पीती थी और दीवार की अनीता भीलोग उन्हें भूलने लगे थे.

कभी उनके घर निर्माता निर्देशकों की लाइन लगी रहती थी लेकिन अब कोई अजनबी भी भूले से उनके फ्लेट की कालबेल नहीं बजाता था. अपने पड़ोसियों से भी वे कोई वास्ता नहीं रखती थीं. फिर एक दिन 22 जनवरी 2005 को फिर से सनसनी मची जब अपने दौर की बोल्ड ऐक्ट्रैस परवीन बौबी की सड़ी गली लाश फ्लेट में मिली.

उनके फ्लेट के दरवाजे के आगे दूध के पेकेट और अख़बार 3 दिन तक पड़े देख सोसायटी वालों ने पुलिस को इसकी सूचना दी तो उजागर हुआ कि वे भूखी मरी थीं लेकिन प्यासी नहीं क्योंकि शराब की बोतलें उनके पास से मिली थीं. पलंग के पास एक व्हील चेयर भी मिली थी जिससे अंदाजा लगाया गया कि वे चलनेफिरने से भी मोहताज हो गईं थीं.

इसके बाद परवीन बौबी और उनकी संदिग्ध मौत को लेकर तरहतरह की अफवाहें उड़ती रहीं जिनके कोई खास माने नहीं थे. परवीन की यह आखिरी ख्वाहिश भी पूरी नहीं हो पाई कि उनका अंतिम संस्कार क्रिश्चियन रीतिरिवाजों से किया जाए क्योंकि कुछ साल पहले वे इसाई धर्म अपना चुकी थीं. उनके परिवारजनों ने लाश क्लेम कर मुंबई के सांता क्रूज शमशान में उन्हें इस्लामिक रीतिरिवाजों के मुताबिक दफना दिया.

परवीन का जिस्म दफनाया जा सकता है उनका वो फलसफा नहीं जिसके तहत एक आजाद ख्याल औरत वैसे भी रह और जी सकती है जैसे वे रहीं थीं. उनकी जिंदगी और मौत दोनों सबक हैं कि दुनिया और समाज में उसके तौरतरीकों से रहना ही बेहतर होता है नहीं तो अंत कैसा होता है सबने देखा. उनकी दुखद मौत पर भी मीना कुमारी की गजल का यह शेर मौजू है –

यूं तेरी रहगुजर से दीवाना – वार गुजरे

कांधे पे अपने रख के अपना मजार गुजरे

बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर

शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुजरे…

महिला आरक्षण के माने

भारतीय जनता पार्टी अपनी पीठ बहुत जोर से थपथपा रही है कि उस ने पार्लियामैंट में महिला आरक्षण संशोधन कानून, जिस का नाम नारीशक्ति वंदना अधिनियम रखा है, संविधान के 128वें संशोधन के जरिए पास करा लिया है. यह काम भारतीय जनता पार्टी ने भारी दबाव में किया क्योंकि अब ‘इंडिया’ नाम से जानी जाने वाली विपक्षी पार्टियों की यह बड़ी मांग थी. भाजपा को लगता है कि इस लौलीपौप से कहीं कुछ वोट मिल जाएंगे.

यह संशोधन कब जमीनी हकीकत देखेगा, इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता. अगले वर्ष 2024 के आम चुनाव तो हरगिज इस के आधार पर नहीं होंगे. यही नहीं, 2029, 2034, 2039 के चुनाव भी इस आधार पर हो जाएं, तो बड़ी बात है. इस संशोधन को लागू करने के लिए हजारों पेचीदगियों का सामना करने पड़ेगा क्योंकि हर चुनाव क्षेत्र 3 बार में एक बार औरतों के लिए आरक्षित हो जाएगा पर अगली बार वह फिर जनरल यानी स्त्रीपुरुष दोनों के लिए होगा.

इस का अर्थ है कि कोई पुरुष नेता 2 बार से ज्यादा एक चुनावक्षेत्र में नहीं रह सकता. इसी तरह महिला आरक्षित क्षेत्र से आई नेता अगली बार आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाएगी. यह राजनीति का स्वरूप बदल देगा. राजनीतिक दल नारों से ज्यादा अपने चुनावी क्षेत्र की मिल्कीयत की चिंता करते हैं.

बड़ी बात तो यही है कि आखिर क्यों इस कानून को लाने की जरूरत पड़ी? क्यों नहीं देश ने अपनेआप 70 सालों में इतनी महिला राजनीतिज्ञ पैदा कर दीं कि वे अपनेआप राजनीति में कूद कर आगे आ जाएं ?

जो महिलाएं आज राजनीति में हैं उन में ममता बनर्जी को छोड़ कर कोई अपने बलबूते पर नहीं आई. 140 करोड़ की विशाल आबादी वाले देश की 70 करोड़ औरतें केवल एक दमदार औरत को नेता के रूप में स्थापित कर पाईं, यह अफसोस की बात है.

इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी नेहरू परिवार की सीढि़यां चढ़ कर आईं. निर्मला सीतारमण एक चुनाव भी अपने बल पर जीत लें तो बड़ी बात है. भाजपा ने पूर्व नेता सुषमा स्वराज को मक्खी की तरह निकाल फेंका था और अपनी अवहेलना से वे बीमार हो गई थीं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तो पूरी सरकार अवहेलना करने की हिम्मत रखती है. जयललिता कभी तमिलनाडु की सर्वेसर्वा थीं पर वे अभिनेता एम जी रामचंद्रन के कारण सामने आईं. मायावती कांशीराम की देन हैं और अब बिलकुल हाशिए पर हैं.

यह संशोधन उसी तरह का है जैसे हमारे यहां बीसियों देवियों को पूजा जाता है और उन से धन, सफलता मांगी जाती है पर उसी मांगने वाले परिवार में औरत का कोई स्पैशल वजूद नहीं है. दुर्गा की, माता की, काली की, सरस्वती की, पार्वती की, सैकड़ों गांवों की देवियों की पूजा करने का मतलब यह नहीं कि वे सक्षम हैं, बस, वे एक थोथी परंपरा की देन हैं. बहुत सी देवियां तो सिर्फ इसलिए पूजी जाती हैं कि वे संतान पैदा करने का वादा करती हैं.

इस संशोधन की जरूरत इसलिए पड़ी है कि औरतों को राजनीति में कोई स्थान नहीं मिल रहा. शैड्यूल्ड कास्ट व शैड्यूल्ड ट्राइब्स के लिए आरक्षित सीटों का अनुभव यह स्पष्ट करता है कि 70 सालों में उन सीटों से अपने दमखम वाला प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं आ पाया है. नेता पति के कारण पंचायतों में बहुत सी औरतों को कुछ समय कागजों पर हस्ताक्षर करने का मौका मिल रहा है पर हस्ताक्षर कहां करने हैं, यह पंचायत में पति बताता है जबकि विधानसभाओं और संसद में आरक्षित सीटों वाले विधायकों व सांसदों को पार्टी बताती है.

इंदिरा गांधी से लोहा लेने वाली संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी भी आज भारतीय जनता पार्टी के एक कोने में पड़ी हैं क्योंकि वे न अपनी पार्टी खड़ी कर सकती हैं, न कांग्रेस में लौट सकती हैं और न भारतीय जनता पार्टी में अपना जोर दिखा सकती हैं. ऐसे में जब गांधी परिवार के नाम वाली 9 बार रही सांसद आज लगभग असहाय है तो क्या उम्मीद की जाए कि संशोधन के बाद कुछ बदलेगा?

रामायण, महाभारत, पुराणों की कहानियों में कहीं औरतों की विशेष स्थिति सजावटी औरतों की नहीं मिली. हां, गैर सनातनी शूर्पणखा जंगल में अकेले घूम सकती थी और महाभारत काल की हिडिंबा अकेले पांडवों को भगाने जा सकती थी. आज वे समाज कहां हैं, किन हालात में हैं, हम नहीं जानते पर यह जानते हैं कि पार्वती, सीता, द्रौपदी, अहल्या, कौशल्या, कैकेयी, उर्मिला, लक्ष्मी के बारे में पुराणों ने क्याक्या लिखा और आज की सनातनी औरतों का हाल भी उसी तरह का है.

यहां नारीशक्ति वंदना अधिनियम केवल एक स्तुति बन कर रह जाएगा जिस का भरपूर राजनीतिक उपयोग होगा यानी औरतें विशुद्ध रूप से राजनीति में आ न पाएंगी. सताई जा रहीं, भेदभाव की शिकार, रेप होतीं, पुरुष हिंसा की शिकार होतीं, दहेज की मारी आदि सभी औरतों का हाल वही रहेगा.

मुट्ठीभर औरतें, जो छोटे परिवारों के कारण आज परिवार का प्रबंधन सीख रही हैं, पढ़ रही हैं, योग्य बन रही हैं, अपने क्षेत्र में सफल होंगी लेकिन उन की गिनती पुरुषों से कहीं कम रहेगी. यह नया अधिनियम इसी बात की गारंटी कर रहा है, हालांकि, इस अधिनियम की जरूरत ही नहीं थी.

  • महिलाओं की संख्या विधानसभाओं और संसद में कभी 15 प्रतिशत से अधिक नहीं रही.
  • यूरोप के नौर्डिक देशों- स्वीडन, डैनमार्क, नौर्वे में सक्रिय राजनीति में 44.7  प्रतिशत महिलाएं हैं. पश्चिमी यूरोप में 35.2 प्रतिशत हैं. दक्षिणी यूरोप में 31.1 प्रतिशत हैं. ईस्टर्न यूरोप में 24.3 प्रतिशत हैं. इन देशों में कहीं भी आरक्षण नहीं है.
  • भारत के बड़े उद्योगों में सिर्फ 13 औरतों का दबदबा है जिन में से 6 उद्यमी हैं और 7 प्रोफैशनल व नौकरीपेशा.
  • दुनियाभर में आज 13 महिलाएं राष्ट्र की नेता हैं जिन में बंगलादेश की शेख हसीना (19 साल से) और इटली की जियोर्जिया मेलोनी जानेमाने देशों की हैं.
  • अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के गर्भपात अधिकार को वर्ष 2022 में एक फैसले के जरिए छीन लिया.

कब्ज बढ़ाता है कई मुश्किलें

कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है. पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज कहलाता है. कभी-कभी कब्ज की तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि बलपूर्वक मलत्याग पर खून भी आने लगता है. गुदा में जख्म हो जाता है और इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. यदि कब्ज का जल्दी ही उपचार न किया जाये तो शरीर में कई दूसरी तकलीफें पैदा हो जाती हैं. कब्जियत का मतलब है प्रतिदिन पेट साफ न होना. एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम मल त्याग के लिए जाना चाहिए. दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो अवश्य जाना चाहिए. नित्य सुबह मल त्याग करना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है.

आजकल की तेजरफ्तार जिन्दगी जंकफूड पर ज्यादा आधारित होती जा रही है. रेशेयुक्त भोजन, दालें, सलाद, सब्जियां हमारे खाने से गायब होती जा रही हैं, जिसकी परिणति कब्ज के रूप में सामने आती है. कब्ज एक आम समस्या बनती जा रही है. अगर इसका समय से उपचार न किया जाये तो यह बवासीर, शरीर में दर्द, सिरदर्द, ब्लॉटिंग, चक्कर, हाई बीपी, मुंह में छाले, पेट में अल्सर जैसी कई तकलीफों को बढ़ा देता है.

कब्ज का कारण छिपा है भोजन में

भोजन में फायबर की कमी कब्ज पैदा करती है. कम भोजन करने वालों को भी कब्ज सताता है. इसी के साथ पानी की कमी भी कब्ज को निमंत्रण देती है. दिन भर में आठ से दस गिलास पानी शरीर की जरूरत है. भोजन के पाचन में पानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ऐसे में कम पानी मल को अत्यंत सुखा देता है और यह मल अंतड़ियों में जमा होकर कब्ज पैदा करता है.

जो लोग बहुत ज्यादा आलस्य करते हैं. भोजन के बाद बिस्तर पर ही पड़े रहते हैं, उन्हें भी कब्ज खूब परेशान करता है. शारीरिक श्रम की अपेक्षा दिमागी काम ज्यादा करने वालों को भी कब्ज सताता है. कुछ दवाएं भी कब्ज का कारण होती हैं. अधिक मात्रा में पेनकिलर लेने वाले लोग अक्सर कब्ज की शिकायत करते हैं, तो वहीं बड़ी आंत में किसी प्रकार का घाव या चोट भी कब्ज का कारण हो सकता है. शरीर में थायरॉयड हार्मोंन का कम बनना, कैल्शियम और पोटैशियम की कमी भी कब्ज पैदा करती है. मधुमेह के रोगियों को आमतौर पर कब्ज रहता है. जो लोग कॉफी का अधिक सेवन करते हैं, या धूम्रपान व शराब के लती हैं, उन्हें भी कब्ज बना रहता है. दुख, चिन्ता या डर की अवस्था भी कब्ज को पैदा करती है. सही समय पर भोजन न करना, बदहजमी और मंदाग्नि यानि पाचन शक्ति की कमी भी कब्ज का कारण है. जल्दीबाजी में भोजन करना, भोजन को ठीक से चबा कर न खाना, बगैर भूख के भोजन करना या ज्यादा उपवास आदि करना भी कब्ज की समस्या को जन्म देते हैं.

कब्ज होने पर दिखते हैं ऐसे लक्षण

कब्ज की शिकायत होने पर सांसों में बदबू का अहसास होने लगता है. कुछ लोगों को नाक बहने की समस्या रहती है. इसके साथ ही सिरदर्द, चक्कर, जी मिचलाना, चेहरे पर दाने निकल आना, मुंह में छाले या अल्सर जैसे लक्षण कब्ज के कारण उभरते हैं.

कब्ज भगाएं

कब्ज से छुटकारा पाने के लिए हमें व्यवस्थित जीवनशैली में रहना चाहिए. रेशेयुक्त खाद्यपदार्थों को भोजन में शामिल करें. साबुत अनाज को भून कर उसका दलिया बना लें और नाश्ते में दूध के साथ इसे लें. हरी पत्तेदार सब्जियां तो कब्ज की तकलीफ से छुटकारा दिलाने में रामबाण साबित होती हैं. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से न सिर्फ कब्ज से राहत मिलती है, बल्कि त्वचा पर चमक भी आती है. शारीरिक गतिविधियां बढ़ाएं और सुबह शाम थोड़ी एक्सरसाइज अवश्य करें, इससे कब्ज की समस्या नहीं होती है. भीगा चना खाएं. यदि भीगा चना न पचता हो तो इसे उबाल कर नमक और अदरक मिला कर खाएं. चने के आटे की रोटी खाने से भी कब्ज दूर होता है. यह पौष्टिक भी है. चने के आटे में थोड़ा गेहूं का आटा भी मिला सकते हैं. बेल का फल हमारे पेट के लिए बहुत गुणकारी है. बेल का शरबत  पेट की कई बीमारियों की दवा है. प्रतिदिन एक या दो गिलास बेल का शरबत आपके पेट को अच्छी तरह साफ कर देता है. मेथी के पत्तों की सब्जी खाने से भी कब्ज दूर होता है. टमाटर भी कब्ज की अचूक दवा है. किशमिश फाइबर से भरपूर होती है. मुट्ठी भर किशमिश रात भर पानी में भिगोकर रख दें और सुबह इसे खाली पेट खाएं. फायदा होगा.

क्या न खाएं

कब्ज हो तो कुछ चीजों से परहेज ही बेहतर है. डेयरी प्रोडक्ट्स कब्ज को बढ़ावा देते हैं. डेयरी उत्पादों में मौजूद लैक्टोज के प्रभाव के कारण कब्ज होता है. कुछ डेयरी उत्पादों में वसा की मात्रा ज्यादा होने से कब्ज की समस्या बढ़ जाती है. कब्ज के दौरान डेयरी उत्पादों से बचना चाहिए.

कुकीज भी कब्ज को बढ़ाती है. कुकीज परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट के स्रोत हैं. इनमें फाइबर की कम मात्रा और वसा की उच्च मात्रा होती है. कब्ज के दौरान, कुकीज का सेवन कम करना चाहिए क्योंकि यह कब्ज बढ़ाती है.

कुछ लोग चावल को भोजन का आवश्यक अंग मानते हैं. चावल के बिना उनका भोजन पूर्ण नहीं होता लेकिन क्या आप जानते हैं कि चावल बहुत आसानी से पचता नहीं है. कब्ज के दौरान, सफेद चावल के सेवन से बचना चाहिए. भूरा चावल या पॉलिशरहित चावल ही उत्तम है. कब्ज के दौरान तला हुआ भोजन करने से भी बचना चाहिए.

मेरे पति का प्यार मेरे लिए कम हो रहा है, मैं अपने पति का प्यार दोबारा कैसे हासिल करूं ?

सवाल

मैं 30 वर्षीया विवाहित स्त्री हूं. कुछ समय से मैं महसूस कर रही हूं कि जब से मेरी बच्ची हुई है, मेरे पति का मेरे प्रति प्यार कम होने लगा है. वे मुझ से दूरी बनाए रखते हैं. इस वजह से मैं दुखी रहने लगी हूं. आप मुझे बताएं कि मैं अपने पति का प्यार फिर से कैसे हासिल कर सकती हूं?

जवाब

लगता है कि आप बच्चे के कारण इतनी व्यस्त हो गई हैं कि पति के लिए समय नहीं निकाल पा रही हैं. ऐसे में अगर आप अपने पति का प्यार फिर से हासिल करना चाहती हैं तो थोड़ा वक्त उन के लिए भी निकालें और खुद भी बनठन कर रहें जिस से वे आप की ओर अपनेआप  खिंचे चले आएं. इस के लिए आप को थोड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें