story in hindi
story in hindi
हरकोई देश से बाहर जाना चाहता है। कोई उच्च शिक्षा के लिए तो कोई नौकरी और बेहतर अवसरों के लिए. यूके, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूरोपियन देशों के वीजा के लिए लगी लंबीलंबी कतारें इस बात का सुबूत हैं. अपने देश से दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा की जरूरत पड़ती है. पासपोर्ट बनवा लेना आसान है. पासपोर्ट सेवाओं के आवेदन के लिए भारत सरकार की आधिकारिक वैबसाइट www.passportindia.gov.in है. आप मोबाइल ऐप एमसेवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
वीजा का आवेदन औफलाइन और औनलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकता है. वीजा कई तरह के होते हैं जिन में ऐंप्लौयमैंट वीजा, बिजनैस वीजा, स्टडी वीजा, टूरिस्ट वीजा, रिसर्च वीजा खास हैं. पासपोर्ट बनाने वाली स्थानीय संस्थाएं होती हैं. लेकिन दिक्कत आती है वीजा को ले कर, जो उन देशों की संस्थाओं द्वारा दिया जाता है जहां वे जाना चाहते हैं.
वीजा एक प्रकार का आधिकारिक दस्तावेज है जो दर्शाता है कि आप को एक निश्चित अवधि के लिए या स्थायी रूप से किसी विशेष देश में प्रवेश करने, छोड़ने और रहने की अनुमति देता है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र हो सकता है जो किसी देश के इमिग्रेशन अधिकारियों द्वारा आप के सभी दस्तावेजों को ठीक से जांचने और सत्यापित करने के बाद जारी किया जाता है.
एक बार जब आप को वीजा मिल जाता है तो इस का मतलब है कि आप को किसी देश में प्रवेश करने और एक विशिष्ट अवधि के लिए वहां रहने की अनुमति है. हालांकि, वीजा के माध्यम से प्राप्त अनुमति अस्थायी है जिसे स्थायी बनाने के लिए आप को एअरपोर्ट पर वीजा की चैकिंग से भी गुजरना पड़ता है, वहां पास होने पर ही आप किसी देश में ऐंट्री ले सकते हैं.
बढ़ रहे हैं फ्रौड के मामले
विदेश जाने की लालसा के साथसाथ वीजा घोटाले भी बढ़ रहे हैं. वीजा इमीग्रेशन में होने वाले सब से ज्यादा घोटाले नौकरियों के नाम पर होते हैं. वर्क वीजा दिलाने के ऐवज में घोटालेबाज नौकरियों की तलाश कर रहे लोगों को बड़ेबड़े देशों में फ्रौड नौकरी के अवसर में फंसा कर अच्छाखासा पैसा ले लेते हैं. इच्छुक लोगों को प्लैसमेंट के नाम पर शुल्क देने को कहा जाता है जो अधिकतर देशों में अवैध है.
हाल ही में वीजा फैसिलिटेशन सर्विसेज ग्लोबल (वीएफएस ग्लोबल) जोकि एक वीजा सलाहकार के क्षेत्र की जानीमानी कंपनी है, का एक अखबार में छपे ऐडवरटोरियल में कहना है कि वीजा आवेदन, वीजा की अवधि और उस पर प्रक्रिया करने की समय सीमा संबंधित निर्णय राज्य दूतावासों/वाणिज्य दूतावासों के हाथ में है. व्हीएफएस ग्लोबल और इस के ही जैसी संस्थाएं केवल वीजा आवेदन प्रक्रिया के प्रशासनिक और गैर निर्णयात्मक पहलुओं को संभालती है. हम वीजा आवेदन के निर्णय के मामले में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं या उसे प्रभावित नहीं करते.
व्हीएफएस ग्लोबल सोशल मीडिया, ईमेल, एसएमएस या कौल पर आप को अपनी व्यक्तिगत जानकारी देने या अग्रिम भुगतान करने के लिए मना करती है. उन का कहना है कि यदि आप को वीजा आवेदन प्रक्रिया को शीघ्रता से पूरा करने के लिए व्यक्तिगत खातों में भुगतान करने के लिए कहा जाता है, तो समझ लीजिए कि आप घोटालेबाजों के संपर्क में हैं. व्हीएफएस इस से सर्तक रहने के लिए कहता है.
सावधानी हटी दुर्घटना घटी
वीजा प्रक्रिया को पूरा होने में कई तरह के दस्तावेज और समय लगता है, जिस को कम और जल्दी करने के चक्कर में लोग अकसर जालसाजों के हाथों में फंस जाते हैं. दस्तावेजों का निरीक्षण इसे और भी लंबा बना देता है क्योंकि यह किसी देश की सुरक्षा का मामला होता है.
वीजा के लिए लंबीलंबी कतारे लगी होती हैं। इंतजार महीनों भर तक का होता है. ऐसे में लोग कम जानकारी के अभाव में और जल्दी जाने की चाह में जालसाज और फ्रौड कंपनियों के हाथों चढ़ जाते हैं और अपना कीमती वक्त और पैसा गंवा बैठते हैं.
अगस्त, 2023 की घटना का जिक्र करते हुए रीडिट वैबसाइट पर एक महिला अपना अनुभव शेयर करती हैं. उन का कहना था कि एक आदमी ने मुझे व्हाट्सऐप के माध्यम से कनैक्ट किया और कहा कि वह भी कनाडा जा रहा है। उस ने अपना एक अच्छाखासा प्रोफाइल बना रखा था. मैं जानना चाहती थी कि यह किस हद तक जा सकता है तो मैं ने उस से आगे की जानकारी ली. उस ने मुझे अपनी कंसल्टैंसी में एक महिला से बात कराई जिस का कहना था कि वह उस की सीनियर है. उस महिला ने मुझे ₹45 लाख की बड़ी राशि देने की बात कही. मैं हैरान थी। मैं ने देने से मना कर दिया और दोनों को ब्लौक कर दिया. वीजा के लिए उन्हें इतनी फीस की डिमांड करना ही उन्हें शक के घेरे में डाल देता है. महिला की सतर्कता थी कि वह उन से बच गई.
इमिग्रेशन वीजा के नाम पर देश में बड़े पैमाने पर कंपनियां और उन के ऐजेंट काम कर रहे हैं, जो वीजा इमीग्रेशन कंसल्टैंट और काउंसिलिंग के नाम पर अच्छाखासा पैसा वसूल लेते हैं.
कनाडा, आस्ट्रलिया, यूके और अमेरिका जैसे देशों के लिए वीजा की डीमांड बढ़ रही है जिस के चलते वीजा की इच्छा रखने वाले स्टूडैंट्स और नौकरीपेशा वीजा फ्रौड के चंगुल में भी आ रहे हैं. ये लोग एक बङी धनराशि के बदले लोगों को फ्रौड वीजा पकड़ा रहे हैं. इंटरनैट पर ऐसी कंपनियों की भरमार है जो वीजा ऐजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं. जानकारी के अभाव में कुछ लोग इन कंपनियों के चंगुल में फस जाते हैं.
पुलिस गिरफ्त में जालसाज
इसी का उदाहरण है दिल्ली में गल्फ देशों में जैसे युनाइटेड अरब अमीरात, कतर, कुवैत, सऊदी अरब में नौकरी और वीजा का वादा कर के लोगों को ठगने वाले 2 लोगों को पिछले दिनों गिरफ्तार किया गया था. पुलिस के मुताबिक आरोपियों ने ‘मीट वीजा’ नाम से एक फर्म की शुरुआत की. इसी फर्म के अंदर पिछले 4 महीनों में वे करीब 300 लोगों को अपनी ठगी का शिकार बना चुके थे. इन के निशाने पर खाड़ी देशों में नौकरी की तलाश कर रहे लोग होते थे.
वे सोशल मीडिया में विज्ञापन के जरिए लोगों को फंसाते और उन्हें अपने कार्यालय बुला कर पासपोर्ट और कुछ पैसा ऐडवांस जमा कराते. सबकुछ वास्तविक लगे उस के लिए उन्होंने एक डायग्नोस्टिक सैंटर से भी सांठगांठ कर रखी थी. जहां वे वीजा की इच्छा रखने वालों को स्वास्थ्य परिक्षण के लिए भेजते थे. फिर पासपोर्ट स्टैंप के लिए नेपाल भेज दिए जाते. उन्हें धोखे का पता तब चलता जब वे बाकी पैसा दे चुके होते और इमीग्रेशन काऊंटर पर जाते, जहां अधिकारी उन्हें इस बात की जानकारी देता था.
ऐसे ही अगस्त, 2023 में ही चंडीगढ़ के सैक्टर 17 स्थित इमीग्रेशन कंपनी बीबी कांउसिल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. यह मामला 19 लोगों की शिकायत पर दर्ज किया गया था. अंबाला के सुखविंदर सिंह ने बताया कि उन से इमिग्रेशन के नाम पर ₹2.65 लाख वसूले। भटिंडा के गुरूचरण सिंह से ₹7.43 लाख तथा लुधियाना की एक महिला से करीब ₹8.80 लाख. यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता, छोटेछोटे ऐजेंटों के अलावा बङीबङी कंपनियों से जुङे लोग भी इस में शामिल हैं.
सितंबर 2023 में ब्रिटिश हाई कमिशन ने दिल्ली पुलिस को फ्रौड वीजा ऐजेंट के बारे में आगाह किया जोकि दिल्ली और उस के आसपास के क्षेत्रों में अपना नैटवर्क चला रहे हैं जिस में वे हरियाणा, गुजरात और पंजाब के लोगों को अपना टारगेट बनाते हैं. यह ऐजेंट एक व्यापक संगठित नेटवर्क के हिस्से के रूप में काम करते हैं.
लिखित शिकायत में अंतर्राष्ट्रीय इमिग्रेशन के तीसरे सचिव एंड्र्यू लौंगली ने वीजा आवेदन को आसान बनाने के लिए ऐजेंट द्वारा नई दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमीशन को नकली और जाली दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने का शक जाहिर किया था.
विस्तृत जांच में अब तक 2 मुख्य ऐजेंटों का पता चला है, जिन्होंने नई दिल्ली में ब्रिटिश उच्चायोग को 8 अलगअलग क्रैडिट कार्डों का उपयोग कर के कम से कम 164 वीजा आवेदन जमा किए थे. 107 वीजा आवेदनों में नकली और जाली सहायक दस्तावेज शामिल होने की जानकारी भी दी गई.
इस तरह के नेटवर्क्स पूरे देश में फैले हुए हैं जो लोगों को ठग रहे हैं और गैर कानूनी तरीके से लोगों को देश के बाहर भेज रहें हैं, जिस का खमियाजा इस में फंसने वालों को भुगतना पड़ रहा है.
ऐसा ही एक मामला 2023 में साल की शुरुआत में उठा था जिस में 700 से अधिक भारतीय छात्रों को कनाडा से निर्वासन का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि उन्हें पता चला कि उन के शैक्षणिक संस्थान के प्रवेशपत्र नकली थे. इस धोखाधड़ी का खुलासा तब हुआ जब कनाडा में छात्रों ने स्थायी निवास के लिए आवेदन किया. कैनेडियन बौर्डर सर्विस ऐजेंसी (सीबीएसए) ने उन दस्तावेजों की जांच की जिन के आधार पर उन के वीजा जारी किए गए थे और पाया कि दस्तावेज नकली थे. इस तरह उन 700 छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया था.
इसी तरह फ्रौड वीजा के मामले में बढ़ोत्तरी के कारण आस्ट्रेलिया के 5 विश्वविद्यालयों ने चुनिंदा भारतीय राज्यों को जिन में राज्यस्थान, उत्तर प्रदेश शामिल हैं, में भारतीय छात्रों पर बैन लगा दिया है.
कैसे फंसाते हैं झांसे में ?
घोटालेबाज अकसर नकली वैबसाइट बनाते हैं, जो वैध वीजा सेवा प्रदाताओं की हूबहू नकल करते हैं. इन वेबसाइटों के बीच असली और नकली का अंतर करना मुश्किल हो जाता है. वीजा ऐजेंट और काउंसलर के नाम से ये सोशल मीडिया, कौल और मैसेज के माध्यम से आप तक पहुंचते हैं. आप को औफिस बुला कर या खुद आप के घर पहुंच पासपोर्ट व बाकी दस्तावेज जमा करते हैं और फीस के तौर पर अच्छाखासा अमाउंट भी. और इस तरह आप इन का शिकार बन जाते हैं.
ऐसा भी करते हैं
अकसर लोग नौकरी और नौकरी वीजा के जुगाड़ के नए तरीके ढूंढ़ते हैं. बीएम मानिया जोकि एक युटूयूबर है, ट्रैवल और वीजा फ्रौड पर ब्लौग बनाते हैं। एक ब्लौग में वे बताते हैं कि लोग पहले जौब औफर न होने पर ट्रैवल वीजा पर विदेश चले जाते हैं फिर विदेश में नौकरी ढूंढ़ जौब लैटर हासिल कर नौकरी वीजा पर विदेश में रहने लगते हैं. पर यह जिनता आसान दिखता है उतना है नहीं। सबकुछ सैट हो जाने के बाद टूरिस्ट वीजा को वर्क वीजा में बदलने के लिए भारत में ही इमिग्रेशन काउंटर पर आप से ढेरों सवाल पूछे जाएंगे. किसी तरह जब आप यहां से निकल जाते हैं तो विदेश पहुंच कर भी इमीग्रेशन काउंटर पर आप को उन के सवालों का सामना करना पड़ेगा। जरा सा भी संदिग्ध दिखाई देने पर पूरी संभावना है कि आप को वापस डिपोर्ट कर दिया जाएगा.
इस के अलावा लोग विदेशी नागरिकों से मैरिज कर उस देश की रैजीडेंसी हासिल करने का रास्ता भी अपनाते हैं.
मैरिज स्कैम एक दूसरा इमिग्रेशन फ्रौड है. स्कैम करने वाले आप को विदेशों की परमानैंट रैजीडेंसी के नाम पर विदेशी नागरिक से शादी की बात कर के पैसों की डिमांड करते हैं. ये आप को मैरिज सर्टिफिकेट और ग्रीन कार्ड (नागरिकता कार्ड) दिलाने का वादा करते हैं और गायब हो जाते हैं.
अगस्त, 2023 का ही मामला है. भिलाई की रहने वाली युवती के व्हाट्सऐप पर एक मैसेज आया कि उस का नाम यूके के मैरिज ब्यूरो में सिलेक्ट कर लिया गया है. फिर एक अज्ञात शख्स उस से बात करने लगा. तय हो गया कि शादी के बाद दोनों यूके में बस जाएंगे. युवती ने मैडिकल और वीजा के नाम पर धीरेधीरे कर अज्ञात शख्स को ₹3 लाख 9 हजार भेज दिए. बाद में उसे ठगे जाने की जानकारी हुई.
कैसे बचें ?
आज के डिजिटल युग में वीजा घोटाले और धोखाधड़ी वाली वैबसाइटें विदेशों में रहने और यात्रा करने के इच्छुक लोगों के लिए एक बढ़ती चिंता का विषय बन गई है. इंटरनैट ने वीजा आवेदन प्रक्रियाओं को और अधिक सुविधाजनक बना तो दिया है, लेकिन इस के साथसाथ धोखेबाजों के लिए नएनए रास्ते भी खोल दिए हैं.
ई-वीजा के नाम पर धोखेबाजियां बढ़ती जा रही हैं, जिस को देखते हुए 2017 में मिनिस्ट्री औफ होम अफेयर्स गवर्नमैंट औफ इंडिया या गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा एक ऐडवाइजरी जारी की गई थी जिस में उन का कहना था कि भारत सरकार आवेदक या वीजा की इच्छा रखने वाले की ओर से ई-वीजा के आवेदन करने के लिए किसी भी अधिकृत ऐजेंट को नियुक्त नहीं करती है. वह आम जनता को भी सलाह देते हुए कहती है कि वे ऐसे फर्जी ई-वीजा पोर्टलों के झांसे में न आएं जो इस के लिए मोटी रकम ले कर ऐक्सप्रेस ई-वीजा सेवाएं प्रदान करने का दावा करते हैं. ई-वीजा और संबंधित वीजा सेवाओं के लिए भारत सरकार की आधिकारिक वैबसाइट www.Indianvisaonline.gov.in है।
देशविदेश की सरकारें भी इस तरह के फ्रौडों से नागरिकों को सतर्क करती रहती है. इसलिए वीजा ऐप्लीकेशन लगाने से पहले इस के नियमकानूनों को समझ लेना एक जरूरी कदम है.
इसी को देखते हुए यूएस डिपार्टमैंट औफ स्टेट, आस्ट्रेलियन गवर्नमैंट, गवर्नमैंट औफ पौलेंड, कनाडाई गवर्नमैंट, न्यूजीलैंड गवर्नमैंट जैसे ही कई सरकारों ने वीजा से जुड़े फ्रौडों की जानकारी और सतर्कता के उपाय अपनी ऐंबेसी की वैबसाइट पर डाल दिए हैं जिन की मदद से आप फ्रौड करने वालों के जाल में फंसने से बच सकते हैं.
कैसे करें आवेदन ?
आप अपने गंतव्य देश के दूतावास में वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं या आप किसी प्रतिष्ठित या विश्वसनीय थर्ड पार्टी वीजा सेवा के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं जिस का वर्षों का अनुभव व रिकौर्ड हो. नहीं तो आप सीधे भारत सरकार के ई-वीजा पोर्टल पर आवेदन कर सकते हैं.
वीजा अप्रूवल पूरी तरह से आधिकारिक मामला है जिस में इमीग्रेशन अधिकारियों द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं को पूरा किए जाने की आवश्यकता होती है. वीजा सेवा प्रदाता केवल गाइड कर सकता है। यह प्रोसेस को तेज या धीमा करने की क्षमता नहीं रखते न ही यह वीजा की गारंटी दे सकते हैं. इसलिए ऐसे लोगों के झांसे में न आएं जो गारंटी और जल्दी वीजा की बात करते हैं क्योंकि ये किसी देशविशेष की अंदरूनी सुरक्षा का मामला है तो डौक्यूमेंट वैरिफिकेशन में वक्त लगाता है.
अच्छी ऐजैंसियों की पहचान आप भारत सरकार द्वारा प्रदान किए गए उन के लाइसेंस नंबर की जांच से कर सकते हैं. ये कंपनियां रजिस्टर भी होती हैं और विश्वसनीय भी. किसी भी कंपनी की जांच उस के लाइसैंस नंबर को भारतिय इमिग्रेशन की वैबसाइट से कन्फर्म किया जा सकता है.
सोशल मीडिया में आने वाले विज्ञापनों के माध्यम से ये धोखेबाज लोगों को विदेशों में नौकरियों के लुभावने सपने दिखा कर उन को बेवकूफ बना कर उन का फायदा उठा रहे हैं. जैसेजैसे लोगों की रूची विदेशों की तरफ बढ़ रही है ये फ्रौड भी बढ़ रहे हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप किसी के झांसे में न आएं।
ऐसा न हो की इंस्टाग्राम और यूट्यूब के ऐडों के चक्कर में आप अपनेआप को अपनी डैस्टीनेशन कंट्री से वीजा धोखाधड़ी के चलते ब्लैकलिस्ट करा लें. इसलिए जरूरी होगा आप सुरक्षा का ध्यान रखें.
क्या होता है असर ?
वीजा फ्रौड विदेश जाने के इच्छुक नागरिकों के भविष्य को प्रभावित करता है. मुख्यतौर पर आर्थिक रूप से. ऊपर दिए गए सभी उदाहरणों से साबित होता है कि लोग अपने जीवन की जमापूंजी को किस तरह फ्रौड करने वालों के हाथों में थमा दे रहे हैं. मांबाप अपनी संतानों के बेहतर भविष्य के लिए पैसा इकट्ठा करते हैं और एक गलती के चलते सारा पैसा और उन का भविष्य अधर में लटक जाता है.
विदेश यात्राओं में तेजी न केवल दुनियाभर के भारतीयों के लिए, बल्कि घोटालेबाजों के लिए भी एक सुनहरा मौका बन गई है. विदेशों में बसने की लालसा भारतियों का धोखेबाजों का शिकार बना रही है. इस से बचे जाने की जरूरत है। नहीं तो भविष्य में इस के बढ़ने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता. सुरक्षित तरीके से वीजा नियमों का पालन करते हुए इन फ्रौडों से बचा जाना ही एकमात्र उपाय है.
KGF Star Yash struggle story : ‘बोलते हैं, जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ…. कितना बड़ा झूठा है…. पैर क्यों कम फैलाने हैं ? चादर ही बड़ी कर लो….’ ये डायलॉग है फिल्म ‘केजीएफ-2’ का. साल 2020 में ”केजीएफ चैप्टर-2” रिलीज हुई थी, जिसने बड़े पैमाने पर बॉक्स-ऑफिस पर कमाई की थी. इस फिल्म ने अभिनेता ”यश” को रातों-रात स्टार बना दिया था. आज देश का बच्चा-बच्चा ”यश” को ‘रॉकी भाई’ के नाम से जानता हैं. इसके अलावा इस फिल्म के डायलॉग्स का क्रेज आज भी लोगों पर चड़ा हुआ है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ”यश” ने एक्टर बनने के लिए एक लंबी संघर्ष भरी यात्रा तय की है ? अगर नहीं. तो आइए जानते हैं सुपरस्टार यश (yash struggle story) के स्ट्रगल वाले दिनों के बारे में.
घर से भागकर बेंगलुरु आ गए थे यश
आपको बता दें कि अभिनेता ”यश” (yash struggle story) के पिता बीएमटीसी में बस चालक थे. इसलिए वह चाहते थे कि उनका बेटा बड़ा होकर एक सरकारी अधिकारी बने. लेकिन बचपन से ही ”यश” एक बड़ा स्टार बनना चाहते थे. इसी वजह से वह अपने स्कूल के दिनों में नाटकों और डांस कॉम्पिटीशन में भाग लिया करते थे. लेकिन फिर भी उनके घर वाले उन्हें एक्टर नहीं बनाना चाहते थे.
इसलिए एक दिन ”यश” ने घर छोड़ेने का निर्णय किया. फिर अपने दिल पर पत्थर रखकर वह घर से भागकर बेंगलुरु आ गए. पर वहां आकर उन्हें बहुत ड़र लगा क्योंकि न तो वो किसी को जानते थे और न ही उनके पास ज्यादा पैसे थे. वो घर से भागने से पहले केवल 300 रुपये ही जमा कर पाए थे. वहीं वह घर भी वापस नहीं जा सकते थे क्योंकि अगर एक बार वह घर वापस चले गए तो फिर उनके घरवालें उन्हें वापस नहीं भेजेंगे. इसी बात को सोचते हुए उन्होंने वहीं रहने का फैसला किया.
थियेटर से शुरू किया था करियर
करियर के शुरू में तो ”यश” को काम नहीं मिला लेकिन फिर एक दिन उन्हें थियेटर में बैकस्टेज में काम करने का मौका मिला. इसके बाद धीमे-धीमे उन्हें कुछ रोल भी मिले. वहीं साल 2008 में ”यश” (yash struggle story) को फिल्म ‘मोगिना मनासु’ में काम करने का मौका मिला. इसमें उनकी अभिनय को लोगों ने इतना ज्यादा पसंद किया कि बाद में इसी फिल्म के लिए उन्हें ‘बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर’ का अवॉर्ड भी मिला. फिर यहीं से उनकी किस्मत बदल गई. उन्हें एक के बाद एक कई फिल्में मिलती रही.
इन फिल्मों ने दी यश को लोकप्रियता
उन्होंने (Yash Films) फिल्म ‘राजधानी’, ‘मास्टरपीस’ और ‘गजकेसरी’ जैसी कई बड़ी फिल्मों में काम किया, जिससे उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती चली गई. वहीं आज ”यश” के करोड़ों फैंस हैं. जो उनकी एक झलक देखने के लिए पागल रहते हैं.
चाहे रात भर खाना न मिले लेकिन बरात का अपना एक अलग मजा है. ऐसा मजा जो न सेब में है न सेब के जूस में. बरात के आनंद को महसूस किया जाता है. उस का सहीसही वर्णन किया जाना उतना ही मुश्किल है जितना गधे को स्वीमिंग पूल में नहलाना.
घर में शादी का कार्ड देख कर मन राष्ट्रीय चैनल से एम टीवी में अपनेआप बदल गया. कार्ड सुंदर था. हिंदुस्तान में वरवधू चाहे खूबसूरत, सुघड़ हों न हों, लेकिन उन की शादी के कार्ड जरूर ही सुंदर होते हैं. लड़की के हाथों की मेहंदी का डिजाइन भले ही टेढ़ामेढ़ा, आड़ातिरछा क्यों न हो लेकिन कार्ड की छपाई बहुत ही आकर्षक होती है.
शादी का कार्ड फ्रिज के ऊपर रखा था. आमतौर पर मध्यवर्गीय घरों में शादी के कार्ड, राशनकार्ड, बिजली का बिना जमा किया बिल, बच्चों के रिजल्टकार्ड…सब के सब फ्रिज के ऊपर ही रखे जाते हैं. फ्रिज, अंदर का सामान तो ठंडा रखता ही है, ऊपर रखे टैंशन वाले कागजात भी ठंडा कर देता है. ठंडे बस्ते में डालना कहावत पुरानी हो गई है, नए जमाने की कहावत ‘फ्रिज के ऊपर रखना’ हो सकती है.
हमें मालूम था कि पड़ोसी शर्माजी के छोटे साहबजादे लल्लू की शादी है. बड़े वाले कल्लू की शादी तो हम 3 साल पहले ही निबटा चुके थे. कल्लू की शादी की यादें मन में जीवंत हो उठीं. खासतौर पर पनीर और छोले के स्वाद जीभ पर ताजा हो गए. मन में स्वाद ध्यान आते ही लगभग 10 प्रतिशत स्वाद तो मिल ही गया.
हम ने जानबू झ कर श्रीमतीजी से पूछा, ‘‘यह किस की शादी का कार्ड आया है?’’
पत्नीश्री झल्ला गईं, बोलीं, ‘‘यह कार्ड कोई तमिल या मलयालम भाषा में तो छपा नहीं है. न ही फारसी या अरबी भाषा में प्रिंट हुआ है, जो तुम्हारे पढ़ने में नहीं आ रहा है.’’
हम ने भी मोर्चा नहीं छोड़ा. कहा, ‘‘कार्ड है तो शादी ही होगी. शादी होगी तो उस में दूल्हे का होना भी निहायत जरूरी है. हमें तो खाली इतना बता दो कि दूल्हा कौन बन रहा है?’’
पत्नीश्री का मूड कुछ नौरमल हुआ तो हमारे चेहरे पर भी मुसकान तैर गई. जैसे बढ़ते शेयर सूचकांक को देख कर दलालों के चेहरों पर चमक आ जाती है. कुछ मजाक का पुट ले कर बोलीं, ‘‘कम से कम तुम तो नहीं बन रहे हो.’’
हम ने कहा, ‘‘हम तो एक बार ही वर बने थे. उस के बाद तो कुंवर, सुवर जानवर, दुष्टवर और न जाने कौनकौन से वर बन गए. हम तो शादी के समय जिस घोड़ी पर बैठे थे वह घोड़ी भी बरात के बाद जमीन पर धूल में खूब लोटी थी. शायद हमारे बैठने से उस की पीठ अपवित्र हो गई हो. जब घोड़ी तक हमारी बेइज्जती कर चुकी है तो फिर तुम्हारी बात का बुरा क्यों मानें? फिर शादी के बाद तो हमारी इज्जत धोने का लाइसेंस तुम्हें मिल ही चुका है.’’
इस पर पत्नीश्री ‘हीही’ कर के हंसती रहीं.
मूड ठीक होने पर बताया कि लल्लू की 13 को शादी है. हम ने कहा कि हमारी शादी भी 13 को हुई थी, तभी से हमारी जिंदगी तीनतेरह हो गई है. कम से कम लल्लू को तो रोका जाना चाहिए. रोक नहीं सकते तो कम से कम शादी 12 या 14 तारीख को कर ले.
हमारी न चलनी थी और न चली.
13 तारीख को हम पत्नी और बच्चों के साथ रिकशे पर बैठ कर सीधे लल्लू के घर पहुंच गए. वहां पहुंच कर हमें पता चला कि शादी का कार्यक्रम घर पर नहीं है बल्कि शहर से दूर बने एक फार्महाउस में है. अब रिकशा वालों से फिर तूतू, मैंमैं. कोई जाने को तैयार नहीं तो कोई पैसे इतने मांग रहा था कि हमें लग रहा था कि हम अपने छोटे शहर में नहीं, बल्कि लोखंडवाला में खड़े हैं.
जैसेतैसे हम परिवार समेत फार्महाउस पहुंचे. वहां रिकशे से उतरते ही हम ने रोब झाड़ा, ‘‘क्या करें, गाड़ी निकाली थी लेकिन आगे का एक पहिया पंक्चर निकला. सोचा, स्टैपनी बदल लें लेकिन तब ध्यान आया कि परसों ही तो स्टैपनी मिस्त्री के यहां डाली थी. मजबूरी में रिकशा पकड़ कर आना पड़ा.’’
पत्नीश्री दो कदम आगे बढ़ गईं, बोलीं, ‘‘मैं ने तो इन से कई बार कहा है कि एक नई गाड़ी ले लो. मेरी मान कर एक नई गाड़ी ले ली होती तो कम से कम आज रिकशे पर तो न बैठना पड़ता. मैं तो आज पहली बार रिकशे पर बैठी हूं,’’ हालांकि सुनने वाले मुंह दबा कर हंसने लगे.
थोड़ी देर में बरात चलने का माहौल बनने लगा. बरात रवाना होने से पहले माहौल बनाया जाता है. सब से पहले तो मामा या मौसा रूठ जाते हैं कि उन्हें स्टेशन पर लेने के लिए किसी को भेजा क्यों नहीं? उन की बेइज्जती करनी थी तो बुलाया ही क्यों? फिर बाकी रिश्तेदार मिल कर उन्हें मनाते हैं.
बरात के चलने से थोड़ा पहले अफरातफरी का माहौल बन जाता है. दूल्हे के चाचा ने जो नई शर्ट सिलवाई थी वह अब मिल ही नहीं रही है.
महिलाएं एक कमरा अलग से घेर लेती हैं जिस में वे तैयार होती हैं. उस कमरे में छोटीछोटी लड़कियां सब से ज्यादा चिल्लपों करती हैं. उस में कंघा ढूंढ़े नहीं मिलता है. क्रीम पर छीना झपटी होती है. तेल की शीशी फर्श पर फैल जाती है. मैचिंग दुपट्टा खोजने पर मिलता ही नहीं है. बाद में याद आता है कि उसे तो अटैची में रखा ही नहीं था. वह तो घर पर ही रह गया.
जैसेतैसे बरात चलना शुरू करती है. जैसे ही बरात निकली, लड़कियां फैशन परेड का आयोजन करती चलती हैं. कुछ तो ऐसे चलती हैं जैसे वे रैंप पर कैटवाक कर रही हों. जिन्हें अगर सरोज खान या फरहा खान देख लें तो वे भी भौचक रह जाएं कि ऐसे डांस के स्टैप के आइडिया आखिर उन के दिमाग में क्यों नहीं आए?
अब जिन्हें डांस नहीं आता है उन्हें सिर्फ एक काम आता है कि वे बैंड वाले के पास जा कर रौब झाड़ते हैं कि गाना बदलो. क्या बकवास गाने लगा रखे हैं. कुछ शकीला, टकीला बजाओ और खुद ताली बजाने लगते हैं. जब कुछ सम झ में नहीं आता है तो जेब से 10 का नोट निकाल कर थोड़ी देर हवा में लहराते हैं. जब वे मुतमईन हो जाते हैं कि सभी ने उन के हाथ में 10 का नोट देख लिया है तो फिर वे उस नोट को अपने मुंह में दबा लेते हैं. जब बैंड वाला उस नोट को झपटने की कोशिश करता है तो वे हरगिज उस नोट को नहीं देते हैं. फिर वे बैंड वाले को इशारा कर देते हैं कि डांस करते हुए आओ, तो ही नोट मिलेगा.
बैंड वाले भी कम उस्ताद नहीं होते हैं. उन की नजर लोगों के हाथों पर होती है कि किस की उंगली में नोट फंसा है. फिर वे क्लीरिनेट से तूतू तूतू की धुन निकालते हुए, थोड़ी सी कमर मटका कर अपनी 2 उंगलियां बगले की चोंच की तरह बना कर नोट झपट ले जाते हैं.
बरात में सब से पीछे बुजुर्ग चलते हैं और वे भी चलते हैं जो अपने को शरीफ सम झते हैं. बीच में नर्तक दल पूरे जोश में होता है. जहां भी बैंड वाले रुके, नर्तक सड़क घेर कर उस पर कब्जा कर लेते हैं, मानो नगर निगम से उन्होंने सड़क के इस टुकड़े का बैनामा करा लिया हो. सड़क पर जूते इतने घिसते हैं कि जूता सुधारने वाले खुश हो जाते हैं कि कम से कम दोचार जोड़ी तो मरम्मत के लिए जरूर आएंगे.
जहां पर नृत्य का अखिल भारतीय कार्यक्रम चल रहा होता है वहां किनारे पर जीजाजी सूटबूट में सजे खड़े हो जाते हैं. वे सोचते हैं कि सालों और उन के दोस्तों की नजर पड़ जाए तो उन्हें भी डांस के लिए खींचा जाए. उन्हें डांस करने के लिए मनाया जाए. ध्यान खींचने को वे डांस को सपोर्ट करते हुए ताली बजाने लगते हैं. तभी साले उन के पास डांस करते हुए आते हैं और डांस के डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. फ्लोर पर खींचने लगते हैं. अब एक बार में मान जाएं तो काहे के जीजाजी. पहले तो वे नानुकर करते हैं फिर एकदम हरकत में आते हुए डांस जैसी हरकत करने लगते हैं.
उन के डांस पर ससुरालीजन नोटिस लेते हुए तारीफें करते हैं, सालियां मुंह बना कर हंसती हैं. हालांकि वे मन ही मन कहती हैं कि डांस करते हुए कैसे बंदर लग रहे हैं और उछल तो भालू की तरह रहे हैं लेकिन कुछ स्टैप चिंपैंजी से भी मेल खा रहे हैं…
बरात सफर तय करती हुई फार्म हाउस के गेट पर पहुंच जाती है. बस, यही वह स्थान है जहां पर पूरी ताकत दिखाई जानी है. सभी हथियार चलाए जाने हैं. लास्ट में ब्लास्ट भी करना है ताकि पता चल सके कि हमारे पास परमाणु बम भी है. यहां पर तो जवान, नौजवान, बूढ़े, महिला, बच्चे…सभी को डांस करना जरूरी है. मान्यता है कि लड़की वाले के गेट पर डांस करने से कुंभ नहाने का पुण्य मिलता है. यहां पर भीड़भाड़ कुंभ के समान ही होती है, जिस में छोटे बच्चे बिछड़ जाते हैं जो बाद में चाउमिन के स्टाल पर मिलते हैं.
जम कर नृत्य प्रतियोगिता के बाद अब अंदर घुसते ही बरातियों की नजर भोजन वाले पंडाल को ढूंढ़ती है. एक तरफ कुछ डोंगे मेजों पर सजे दिखाई देते हैं. मगर यह क्या? डोंगे अभी ढके हुए हैं. उन के आसपास वरदीधारी वेटर टहलटहल कर पहरा दे रहे हैं जिस से कि कोई डोंगा खोल कर शुरू न हो जाए. डोंगा खुलते ही संग्राम शुरू. ‘हम लाए हैं तूफान से पूड़ी निकाल के – मेरे देश के बच्चो इसे खाना संभाल के’ की तर्ज पर एक बार में ही फाइबर की प्लेट में इतना कुछ भर लाए कि कौन जाने दोबारा भरने का मौका भीड़ में मिले या न मिले.
बरात का आनंद उठा कर हम घर लौटे तो देखा कि साहबजादे ने एक पौलिथीन खोल कर मेज पर रख दी जिस में बरात का खाना था. हम ने पूछा तो बोले, ‘‘हम से वहां खाया नहीं गया तो हम चुपचाप परोसा ले आए.’’ ऊपर से हम गुस्सा हुए लेकिन मन ही मन अच्छा लगा. बरात का खाना घर ला कर गरम कर के खाओ तो स्वाद ऐसे बढ़ जाता है जैसे शरबती चावल, बासमती चावल के रूप में बदल गया हो.
बरात में चाहे जितनी फजीहत हो लेकिन हर बार मन नहीं मानता है. हम हर बार कहते हैं कि अब बरात में नहीं जाएंगे लेकिन ये बात नई बरात के निमंत्रण से पहले तक ही याद रह पाती है. हम ने श्रीमतीजी को आवाज लगाई, ‘‘देखना, अब किस की शादी पड़ रही है?’’
श्रीमतीजी गुस्से से बोलीं, ‘‘अब तो हमारी शादी है.’’
मैं ने पूछा, ‘‘आखिर किस से?’’
हमारी पत्नी हंस कर बोलीं, ‘‘तुम से और किस से.’’
नींद का क्या है, नींद कभी भी आ सकती है. अलसाई दोपहरी हो या काम के बोझ से थकी आंखें तब न चाहते हुए भी दफ्तर में नींद आ ही जाती है. ऐसे में न चाह कर भी आंखें खोलकर रखनी पड़ती है, कई दफा यह नींद आपकी इमेज खराब भी कर देती है कई बार आप उपहास के पात्र भी बन जाते हैं. जब औफिस में आए नींद तो क्या करें आइये जानते हैं.
औफिस में आए नींद तो करें, झपकी ध्यान. जी हां झपकी ध्यान आपके मानसिक तनाव को कम कर आपको तरोताजा बना सकता है. इससे आपका मानसिक तनाव और बढ़ जाता है ऐसे में झपकी ध्यान आपका मानसिक तनाव कम कर तरोताजा बना सकता है.
सवाल
मेरी उम्र 25 साल है. मुझे किडनी स्टोन है. मैं गर्भवती हूं. क्या किडनी स्टोन से गर्भावस्था पर कोई प्रभाव पड़ता है?
जवाब
जब बच्चा गर्भाशय में स्थान घेरता है तो किडनी पर प्रभाव पड़ता है. ऐसे में अगर आप को किडनी स्टोन है तो समस्या गंभीर हो सकती है. अगर पेट में बच्चा हो तो किडनी पर प्रभाव अधिक पड़ता है. उस में सूजन आ सकती है. इस से यूटीआई का खतरा और बढ़ जाता है. यह स्थिति बच्चे के लिए भी घातक हो सकती है. अत: जब प्रैगनैंसी प्लान करें तो स्टोन का चेकअप जरूर करा लें ताकि पता लग जाए कि स्टोन की स्थिति क्या है.
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छोड़ दें ये आदतें, कहीं फेल न हो जाए किडनी
भारत में किडनी फेलियर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. अक्सर लोग डॉक्टर की सलाह लेने के बजाय सीधे मेडिकल स्टोर से सिरदर्द और पेट दर्द की दवाएं लेकर खा लेते हैं. इनसे किडनी को नुकसान पहुंचता है. आज हम उन आदतों के बारे में बता रहे हैं जो किडनी में प्रॉब्लम की वजह बन रही हैं.
ज्यादा नमक खाना
ज्यादा नमक खाने से किडनी खराब हो सकती हैं. नमक में मौजूद सोडियम ब्लड प्रेशर बढ़ाता है, जिससे किडनी पर बुरा असर पड़ता है.
ज्यादा नॉनवेज खाना
मीट में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन होता है. ज्यादा मात्रा में प्रोटीन डाइट लेने से किडनी पर मेटाबॉलिक लोड बढ़ता है, जिससे किडनी स्टोन की समस्या हो सकती है.
बहुत ज्यादा दवाएं
छोटी-छोटी समस्या आने पर एंटीबायोटिक या ज्यादा पेनकिलर्स लेने की आदत किडनी पर बुरा असर डाल सकती है. डॉक्टर्स से पूछे बगैर ऐसी दवाएं न लें.
शराब पीना
ज्यादा मात्रा में और नियमित अल्कोहल के सेवन से आपके लिवर और किडनी पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ज्यादा कोल्ड ड्रिंक भी नुकसानदेह होती है.
सिगरेट या तंबाकू
सिगरेट या तंबाकू के सेवन से टॉक्सिंस जमा होने लगते हैं, जिससे किडनी डैमेज होने की समस्या हो सकती है. इससे बीपी भी बढ़ता है, जिसका असर किडनी पर पड़ता है.
यूरिन रोक कर रखना
यूरिन रोककर रखने पर ब्लैडर फुल हो जाता है. यूरिन रिफ्लैक्स की समस्या होने पर यूरिन ऊपर किडनी की ओर आ जाती है. इसके बैक्टीरिया के कारण किडनी इंफेक्शन हो सकता है.
पानी कम या ज्यादा पीना
रोज 8-10 गिलास पानी पीना जरूरी होता है. इससे कम पानी पीने पर शरीर में जमा टॉक्सिंस किडनी फंक्शन पर बुरा असर डालते हैं. ज्यादा पानी पीने पर भी किडनी पर प्रेशर बढ़ता है.
ओवर ईटिंग
सामान्य लोगों की तुलना में मोटे लोगों की किडनी डैमेज होने का खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. ओवर ईटिंग से वजन तेजी से बढ़ता है, इसलिए ज्यादा खाने से बचें.
पूरी नींद न लेना
स्टडी की मानें तो रोज 7-8 घंटे से कम सोने वालों को हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट डिजीज का खतरा ज्यादा होता है. ऐसे में किडनी डिजीज की आशंका बढ़ जाती है.
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लोगों की यह धारणा है कि प्राचीन काल में राजामहाराजा 2 खजाने रखते थे, सामान्य काल के लिए ‘सामान्य कोष’ तथा आपातकाल के लिए ‘गुप्त कोष.’ सामान्य कोष की जानकारी सभी को होती थी मगर गुप्त कोष भूमि के नीचे अत्यंत गुप्त रूप से बनाया जाता था. गुप्त कोष में खानदानी संपत्ति व लूटमार से प्राप्त संपत्ति रखी जाती थी. उस का उपयोग अकाल, बाढ़, महामारी, आक्रमण आदि के समय किया जाता था. अब राजामहाराजा नहीं रहे लेकिन लोगों का विश्वास है कि पुराने किलों, दुर्गों, महलों और खंडहरों में अभी भी बहुत से गुप्त खजाने दबे पड़े हैं.
झांसी से 28 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश का शहर दतिया स्थित है. दतिया जनपद में 2 तहसीलें हैं, दतिया और सेंवढ़ा. दोनों स्थानों पर विशाल किले हैं. दतिया के किले में यहां के पूर्व महाराज का निवास है तथा सेंवढ़ा के किले के अधिकांश भाग में सरकारी कार्यालय हैं. सेंवढ़ा से कुछ दूरी पर स्थित मलियापुरा गांव में रामहजूर और अशोक नाम के 2 मित्र रहते थे. वे दोनों हमउम्र और बेरोजगार थे. दोनों उत्साही युवक बिना मेहनत किए रातोंरात लखपति बनना चाहते थे.
अचानक एक दिन रामहजूर के मन में सेंवढ़ा के किले के खजाने का खयाल आया. उस ने सोचा कि अगर किसी तरह यह खजाना उस के हाथ लग जाए तो उस के सारे कष्ट दूर हो सकते हैं. रामहजूर ने अपने मन की बात अशोक को बताई. अशोक भी रामहजूर की ही प्रवृत्ति का था, अत: उसे उस की बात बहुत अच्छी लगी. दोनों मित्र सेंवढ़ा के किले के खजाने को प्राप्त करने की योजनाएं बनाने लगे. एक बार दोनों मित्र सेंवढ़ा गए तथा किले का सूक्ष्म अवलोकन किया. वहां एक भाग में सरकारी कार्यालय हैं तथा दूसरे भाग में एसएएफ के जवान भी रहते हैं. अत: दोनों मित्रों को लगा कि खजाने की खोज के लिए 5-7 लोगों की जरूरत पड़ेगी.
नवंबर का महीना था. सेंवढ़ा में सनकुआं का मेला चल रहा था. अचानक प्रेमनारायण, लखन, कमलेश, जगदीश और मस्तराम को देख कर रामहजूर की आंखों में चमक आ गई. ये सभी 18 से 20 वर्ष की आयु के नवयुवक उस के मित्र थे. पांचों मित्र सनकुआं का मेला देखने आए थे. रामहजूर और अशोक ने पांचों मित्रों के सामने खजाने की खोज का प्रस्ताव रखा. पांचों मित्र शीघ्र ही तैयार हो गए. खजाना मिलने से पहले ही उन्होंने खजाने से प्राप्त धन को आपस में बराबरबराबर बांटने का निश्चय कर लिया. सभी मित्र आधी रात तक सलाहमशवरा करते रहे तथा अगले दिन उन्होंने खजाने की खोज प्रारंभ करने का निश्चय कर लिया.
अगले दिन सब से पहले रामहजूर और अशोक ने गैंती व फावड़े की व्यवस्था की और किले की ओर चल पड़े. 14 नवंबर का दिन था. पूरे देश में जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन मनाया जा रहा था. सेंवढ़ा में भी कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे. अत: इन युवकों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया.
सेंवढ़ा के किले का वह भाग जो प्रयोग में नहीं आता है, अधिक खंडहर हो गया है उसी भाग में एक बड़ी कोठरी थी जो हमेशा बंद रहती थी. रामहजूर और अशोक खजाने के चक्कर में सेंवढ़ा किले के कई चक्कर लगा चुके थे. उन का सारा ध्यान इसी कोठरी पर था.
कोठरी मुख्य भाग से अलग नीचे की ओर इस प्रकार बनाई गई थी कि काफी घूमने के बाद उस तक पहुंचा जा सकता था. अत: रामहजूर और अशोक को पक्का विश्वास था कि इस कोठरी के भीतर से ही खजाने का रास्ता होना चाहिए.
सातों मित्र खजाने की खोज करतेकरते उसी कोठरी तक आ पहुंचे. उन्होंने गैंतीफावड़े से रास्ता साफ किया और भीतरी हिस्से में पहुंच गए. वहां काफी अंधेरा था.
खजाने की खोज में निकले किसी भी युवक को अपने साथ टौर्च लाना याद नहीं रहा था.
कोठरी के भीतरी हिस्से में पहुंच कर सातों युवक आपस में विचारविमर्श करने लगे. वहां इतना अंधेरा था कि रोशनी के बिना आगे काम नहीं किया जा सकता था. कुछ युवकों का मत था कि पहले रोशनी की कुछ व्यवस्था की जाए, फिर आगे बढ़ा जाए.
दूसरी तरफ रामहजूर और अशोक इतना आगे बढ़ चुके थे कि अब वे पीछे लौटने के लिए तैयार नहीं थे. उन का कहना था कि किले में पहरा रहता है. अत: वे हमेशा इसी तरह बेरोकटोक नहीं आ सकते. इसलिए जो कुछ करना हो इसी समय हो जाना चाहिए.
अचानक रामहजूर के मन में एक विचार आया. उस की जेब में माचिस पड़ी थी. उस ने सोचा कि माचिस से इतनी रोशनी हो जाएगी कि काम चल जाएगा और बाहर किसी को पता भी नहीं चलेगा.
रामहजूर ने तुरंत जेब में हाथ डाल कर माचिस निकाली जैसे ही पहली तीली सुलगाई कि भयंकर विस्फोेट हुआ और किले की दीवारें कांप उठीं. उस के बाद भी कर्णभेदी कई धमाके हुए जिन से कोठरी की छत उड़ गई.
रामहजूर का शरीर क्षतविक्षत हो गया. उस के साथियों की हालत भी नाजुक बनी हुई थी. वे लोग जिस कोठरी को खजाने का द्वार समझ रहे थे वह पुराना बारूदखाना था. वहां अभी भी काफी बारूद भरा पड़ा था. दोपहर का डेढ़ बज रहा था. सेंवढ़ा किले के सरकारी कार्यालयों में तैनात पुलिस गार्ड व एसएएफ के जवानों ने धमाकों की आवाजें सुनीं तो वे भाग कर वहां पहुंचे. पुलिस गार्ड ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इस की सूचना अपने अधिकारियों को दी. सेंवढ़ा में अग्निशमन की कोई व्यवस्था नहीं थी. इस कारण दतिया तथा लहार से दमकल के दस्ते बुलाए गए. 2 घंटे के अथक प्रयास के बाद किसी तरह आग पर काबू पाया जा सका.
रामहजूर तो विस्फोट के साथ ही मर चुका था. उस के दूसरे साथी अशोक, प्रेमनारायण, लखन व कमलेश ने किले से अस्पताल ले जाते समय रास्ते में दम तोड़ दिया. मस्तराम तथा जगदीश ने ग्वालियर के चिकित्सालय में जा कर दम तोड़ा. इस प्रकार बिना परिश्रम के धनप्राप्ति की इच्छा रखने वाले नवयुवकों को अपने लालची स्वभाव के कारण असमय अपने प्राण गवांने पड़े.
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सवाल
मेरा बेटा 7 वर्ष का है. उस के कुछ दांत टूट रहे हैं. ऊपर के 2 दांत हम ने एक एमबीबीएस के फाइनल ईयर स्टूडैंट के कहने पर हिलहिला कर तोड़ डाले. ये दांत 4-5 महीने पहले टूटे थे, पर अभी तक स्थायी दांत नहीं निकले. नीचे का दांत जो बाद में टूटा था, वह निकल आया है, लेकिन उस से पहले टूटे दांत अभी तक नहीं आए जिस पर अब चिंता होने लगी है. सभी का कहना है कि कुछ दांत देर से निकलते हैं, इसलिए स्थायी दांत अभी तक नहीं आए हैं. क्या उन का कहना सही है?
जवाब
दांतों को अनावश्यक रूप से इस तरह हिलाहिला कर तोड़ना बिलकुल गलत है. यकीनन किसी स्टूडैंट की सलाह पर दांत उखाड़ने का निर्णय सही नहीं था, बजाय इस के आप को पहले दंत चिकित्सक को दिखा लेना चाहिए था. हो सकता है इस तरह हिलहिला कर तोड़ने पर आप ने दांतों की स्थायी जड़ें भी तोड़ दी हों. यदि आप बच्चे को कैल्शियम अधिक दे रहे हों तो उसे बंद कर दें. कई बार कैल्शियम के कण दांतों में जमा हो जाने से भी उन में कड़ापन आ जाता है तथा दांत निकल नहीं पाते. आप बच्चे को दंत चिकित्सक के पास ले जाएं और सही तरह से जांच कराएं. दंत चिकित्सक एक्सरे कर सही तरह से इलाज कर पाएंगे.