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काले केशों की मार : महिलाएं कैसे उठाती है फायदे ?

जवान होते लड़केलड़कियों को जैसे 16वें साल का इंतजार होता है वैसे ही प्रेमा को अपने 60वें साल का इंतजार था. 16वें साल के सपने अगर रंगीन होते हैं तो प्रेमा के भी 60 साल के सपने कुछ कम रोमांचक नहीं थे. उसे इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार था जब वह 60 साल की हो जाएगी.

इंतजार का हर एक दिन उस पर भारी पड़ रहा था. और इतने अधिक महत्त्वपूर्ण दिन का इंतजार क्यों न हो, 60वां साल होते ही उसे एक महत्त्वपूर्ण उपाधि जो मिलने वाली थी. वह उपाधि भी कोई ऐसीवैसी नहीं थी. वह उपाधि तो उसे भारत सरकार देने वाली थी. सुंदरसलोना 60वां साल होते ही उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की उपाधि मिलनी थी. तब वह बड़ी शान से रेलवे वालों को बोल सकती थी कि वह तो  ‘सीनियर सिटीजन’ है और उसे रेलवे टिकट पर 30 प्रतिशत की कटौती मिलनी ही चाहिए.

प्रेमा की तकदीर कुछ अधिक ही जोर मार रही थी. इधर वह 60 की हुई और उधर रेलमंत्री ने ऐलान कर दिया कि रेल में सफर करने वाली ‘वरिष्ठ महिलाओं’ को टिकट पर 50 प्रतिशत कटौती मिलेगी. अखबार में यह समाचार पढ़ते ही उस का दिल तो बल्लियों उछलने लगा था.

प्रेमा ने तुरंत इस का फायदा उठाने की योजना बना डाली. अब उसे कहीं न कहीं घूमने तो जाना ही था. उस की तकदीर कुछ अधिक ही साथ देने लगी थी क्योंकि तभी उसे एक विवाह का निमंत्रणपत्र मिल गया. उस के भतीजे की शादी बेंगलुरु में होने वाली थी. शादी मेें 15 दिन बाकी थे यानी तैयारी के लिए भी अधिक समय मिल गया था. सब से पहले तो उस का बेंगलुरु जाने का टिकट आया. आज तक उस ने कभी खुश हो कर अपनी जन्मतिथि किसी को भी नहीं बताई थी पर आज उस ने बड़े गर्व से अपनी जन्मतिथि रेलवे फार्म में भरी थी ताकि उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की कटौती मिल सके.

1 हजार रुपए के टिकट के लिए उसे केवल 500 रुपए ही देने पड़े थे. उसे इतनी बचत से बहुत खुशी भी हुई और अपने 60वें वर्ष पर गर्व भी हुआ.

प्रेमा ने शादी में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. 500 रुपए के टिकट में जो बचत हुई थी, उसे वह अपने ऊपर खर्च करना चाहती थी. उसे लगा कि शादी में सब से अच्छा उसे ही दिखना चाहिए. अपनी बहनों और भाभियों में उसे ही सब से अच्छा लगना चाहिए.

प्रेमा सीधी ब्यूटीपार्लर पहुंची. अपने अधपके बालों को काला करवाया, गोल्ड फेशियल करवाया ताकि उम्र छिप जाए. 60वें वर्ष की गहरी लकीरों को छिपाना चाहा. पार्लर से बाहर निकलते समय उस ने खुद को आईने में निहारा और हलके से मुसकरा दी.

प्रेमा को लगा अब वह 10 साल तो जरूर ही पीछे चली गई है. 2 घंटे कुरसी पर बैठने के बाद जब घुटने की हड्डियों ने चटखने की सरगम बजाई तो उसे याद हो आया कि वह तो अब वरिष्ठ नागरिक है और अपनी स्थिति पर उसे खुद ही गर्वभरी हंसी आ गई.

निश्चित तिथि पर प्रेमा ने बेंगलुरु की यात्रा के लिए प्रस्थान किया. याद से अपना पैनकार्ड पर्स में रखा. वही तो उस के 60वें साल का एकमात्र सुबूत था. अपनी सुरक्षित सीट पर बैठ कर उस ने सहयात्रियों पर नजर दौड़ाई. उस के साथ के सभी यात्री उसे वरिष्ठ नागरिक ही लगे. उस ने सोचा रेलवे की 30 प्रतिशत की छूट का फायदा उठाने ही सब निकल पड़े हैं. एक दादीमां के साथ उन की 2-3 साल की पोती भी थी. रात में जब सोने की तैयारी हुई तो उसे नीचे वाली सीट ही मिली थी. और इधर, दादीमां अपनी पोती के साथ नीचे वाली सीट ही चाहती थीं. दादी मां बोलीं, ‘‘बहनजी, आप तो जवान हैं, आप ऊपर वाली सीट ले लो. मु?ा से तो चढ़ा नहीं जाएगा.’’

दादीमां के मुंह से अपनी जवानी की बात सुन कर तो प्रेमा एक बार के लिए भूल गई कि वह भी तो वरिष्ठ नागरिक है. तभी उसे खयाल आया कि यह तो ब्यूटीपार्लर का ही कमाल था कि वह जवान नजर आ रही थी. उस ने गर्व से अपने काले बालों पर हाथ फेरा और किसी तरह बीच वाली सीट पर चढ़ गई.

सुबह होते ही टिकटचेकर ने आ कर सब को जगा दिया था. इतमीनान से बैठ कर वह एकएक यात्री का टिकट चैक करने लगा. प्रेमा का टिकट देख कर उस ने एक बार घूर कर उसे देखा और बोला, ‘‘बहनजी, आप अपना सर्टिफिकेट दिखाएं. मुझे तो शक हो रहा है कि आप ने धोखे से आधा टिकट लिया है.’’

सब के सामने धोखे की बात सुन कर प्रेमा के तनबदन में आग लग गई. उस ने तमक कर अपना पर्स खोला और अपना पैनकार्ड सामने कर दिया. कुछ लज्जित हुआ टिकटचेकर बोला, ‘‘माताजी, बाल काले करवा कर गाड़ी में चढ़ोगे तो हमें धोखा तो होगा ही. अब आप इन माताजी की तरफ देखो, सारे बाल सफेद हैं इसलिए उन से तो मैं ने प्रमाण नहीं मांगा.’’

दूसरे यात्री टिकटचेकर की बात सुन कर हंस पड़े थे और प्रेमा खिसिया कर रह गई थी.

कहते हैं कि छोटे बच्चों को भी धोखा देना मुश्किल होता है. कुछ बातों का ज्ञान उन्हें जन्मजात होता है. इस का प्रमाण भी आज प्रेमा को मिल गया था. दादी की पोती जब सो कर उठी तो उस ने प्रेमा को दादी कह कर ही बुलाया. उस ने कहा भी, मैं तो तुम्हारी आंटी हूं, मुझे आंटी कह कर बुलाओ. पर नहीं, बच्ची उसे दादी ही बुलाती रही. उस ने तो उस के काले बालों की भी लाज नहीं रखी, उस का 60वां साल उसे नए अनुभव करवाने के लिए ही आया था.

बेंगलुरु स्टेशन पर पहुंच कर प्रेमा ने देखा कि उसे लेने स्टेशन पर कोई नहीं पहुंचा था. कुछ देर इंतजार करने के बाद वह अपनी अटैची घसीटती हुई चल दी. एक टिकटकलेक्टर ने उसे रोका और टिकट मांगा. उस ने टिकट दिखाया तो उस ने भी उसे घूरा और कहा, ‘‘आप एक तरफ आ जाइए और अपना बर्थ सर्टिफिकेट दिखाइए.’’

प्रेमा ने ?ाट से अपने पर्स में से पैन- कार्ड निकालना चाहा पर उसे कार्ड कहीं भी दिखाई नहीं दिया. उस ने पूरे पर्स को तलाश मारा पर पैनकार्ड नहीं मिला. अब तो उस के होश उड़ गए. अब करे तो क्या करे? कैसे इस टिकटकलेक्टर को यकीन दिलाए कि वह पूरे 60 वर्ष की है. उस की घबराहट को देख कर टिकटकलेक्टर जरा अकड़ गया और बोला, ‘‘ऐसा धोखा करने से पहले उस की सजा के बारे में भी सोचना था. अब आप जानती ही होंगी कि आप को हजार रुपए जुर्माना भी हो सकता है और 15 दिन की जेल भी.’’

सुन कर प्रेमा के हाथपांव फूल गए. उस ने रोती हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं सच में कह रही हूं कि मैं 60 साल की हूं.’’

‘‘पर मैं यकीन नहीं कर सकता. आप का तो एक भी बाल सफेद नहीं है.’’

‘‘वह तोे मैं ने काले रंगवाए हैं.’’

‘‘मैं कोई बहानेबाजी सुनने वाला नहीं हूं. या तो आप पैनकार्ड दिखलाइए या जुर्माना भरने को तैयार हो जाइए.’’

प्रेमा ने आसपास ?ांका. पर उस की मदद करने वाला कोई नहीं था. वह बोली, ‘‘आप यकीन मानिए, मैं 60 साल 20 दिन की हूं.’’

‘‘आप चाहे 60 साल एक दिन की हों मुझे एतराज नहीं है. पर आप सबूत दीजिए.’’

पास की एक बैंच पर बैठ कर उस ने अपने दिमाग पर पूरा जोर दिया. सुबह तो उस ने पैनकार्ड डब्बे में टी.टी.ई. को दिखाया था, इस वक्त न जाने कहां गायब हो गया. अब उस ने पर्स में जितनी रकम थी, गिननी श्ुरू की. पूरे 1200 रुपए थे. टी.टी.ई. ने उसे 1 हजार रुपए जुर्माना भरने की बात कही थी. टी.टी.ई. भी उसे गिद्ध नजरों से देख रहा था. अब उस ने गिड़गिड़ाती हुई आवाज में कहा, ‘‘मेरी तो किस्मत ही खराब है इसलिए मेरा पैनकार्ड गुम हो गया है. ट्रेन में मैं ने टिकटचेकर को दिखाया था.’’

‘‘आप कुछ भी कह लीजिए पर मुझे तो लग रहा है कि आप ?ाठ बोल रही हैं.’’

‘‘आप जुर्माना ले लीजिए पर मुझे झूठी तो मत कहिए. मेरा इतना अपमान तो मत कीजिए.’’

टी.टी.ई. ने बड़ी शान से 1 हजार रुपए जुर्माने की रसीद काटी और उसे पकड़ा दी.

प्रेमा ने रसीद ली और बैंच पर बैठ गई. मन ही मन अपने काले बालों को कोसा जिन्होंने काली नागिन बन कर उसे ही डसा था. एक तो हजार रुपए गए और दूसरे झूठी का लेबल भी लग गया. फिर उस ने रेलमंत्री को कोसा जिस ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए ऐसी स्कीम निकाली. न वह स्कीम होती न उस ने 50 प्रतिशत छूट पर टिकट खरीदा होता.

सब को कोसने के बाद प्रेमा ने एक बार फिर से अपना पर्स टटोला. अब की बार उस ने पूरे पर्स को उलट दिया. सारा सामान बाहर निकाल दिया. तब उस की नजर पर्स के उधड़े हुए हिस्से पर पड़ी, जहां से उस का पैनकार्ड ?झांक रहा था. उस ने जल्दी से उसे बाहर खींचा और उधर को दौड़ी जिधर टिकटकलेक्टर गायब हुआ था. उस ने बहुत तलाशा पर वह जालिम चेहरा उसे नजर नहीं आया.

अब अपने को कोसते हुए प्रेमा स्टेशन से बाहर निकली. घर पहुंच कर उस ने सारी कहानी कह सुनाई. अब उसे खुद पर ही हंसी आ रही थी. उस ने तो बाल रंगे थे कि वह जवान नजर आए और जब वह जवान नजर आई तो उस ने सब को कहा कि वह 60 साल की बूढ़ी है. दोनों स्थितियों का लाभ वह एकसाथ नहीं उठा सकती थी या तो 50 प्रतिशत की कटौती ले ले या घने काले बालों वाली तरुणी बन जाए. या तो एक वृद्धा का सम्मान ले ले या फिर बच्चों से दादी के बदले आंटी कहलवा ले. खुद ही सोचनेविचारने के बाद नतीजा निकाला कि उम्र के साथ चलने में ही भलाई है, दौड़ आगे की ओर ही लगानी चाहिए पीछे की ओर नहीं. क्योंकि आप स्वयं को कभी भी धोखा नहीं दे सकते तो फिर दूसरों को ही धोखा देने की कोशिश क्यों की जाए?

इक्के पे दुक्का : अनुभा को क्यों अपनी ननद पसंद नहीं थी ?

‘‘तुम से कोई भी काम ढंग से नहीं होता, चटनी ने पूरी दीवार खराब कर दी

है. डैडी होते तो तुम्हें कब का घर से निकाल चुके होते. उन्हें सफाई बहुत

पसंद थी,’’ रोज की तरह अंजना फिर अपने भाई की पत्नी को डांट रही थी.

अनुभा रोंआसा चेहरा लिए सब सुन रही थी. बात तो कुछ नहीं थी, अनुभा के हाथ से चटनी दीवार पर लग गई थी, जोकि उस ने साफ भी कर दी थी. उसे अचानक ही विवाह से पूर्व का एक किस्सा याद आ गया…

‘मां, आज मैं और भाभी चाट खाने जा रहे हैं. हमारे लिए खाना मत बनाना,’ अनुभा ने भाभी के साथ प्लान बनाया था.

‘अच्छा बेटा, दोनों खूब मजे करना, जाओ घूम आओ,’ बाजार में नए सूट पर चटनी गिरने से अनुभा की भाभी मधुरा थोड़ा सहम गई. अनुभा ने उसे दिलासा दिया और कहा कि ज्यादा न सोचे. घर आने पर अनुभा की मां ने मधुरा का कुरता देखते ही कहा, ‘अरे बेटा, जल्दी से चेंज कर के कुरता मुझे दे दे, मैं अभी साफ कर दूंगी. बाद में दाग रह जाएगा.’ मधुरा ने चैन की सांस लेते हुए कुरता मां को दे दिया था और यहां तो चटनी कांड ही बन गया था. अनुभा आंसू पोंछने लगी.

अनुभा का विवाह हुए कुछ ही महीने हुए थे. उस ने काफी लड़कों से मिलने के बाद राम से विवाह के लिए हां कही थी. राम बैंक में एक उच्च पद पर नियुक्त था. अनुभा एक साइंस ग्रेजुएट थी. उस के घर में एक बड़ा भाई था जिस की शादी उस की शादी से एक साल पहले ही हुई थी. भाभी के आने से घर खुशियों से भर गया था. उस की भाभी मधुरा बहुत ही अच्छे दिल की लड़की थी जिस ने घर में आते ही सब को इतने प्यार से अपनाया था कि अनुभा के मातापिता को लगता ही नहीं था कि वह पराई थी. हर चीज के लिए वे मधुरा पर निर्भर हो गए थे.

अनुभा को एक सहेली मिल गई थी. वह भाभी से खूब लाड़ करती. उन को सिनेमा दिखाने ले जाती. ननदभाभी शौपिंग और गपशप करतेकरते बहुत करीब आ गए थे.

?अनुभा के लिए जब राम का रिश्ता आया तो वह खुद पर फख्र कर उठी. राम बहुत ही सुदर्शन युवक था. देखने में जितना अच्छा उतना ही दिल का साफ. अनुभा सुंदर भविष्य के सपने संजोए पिया घर आ गई.

राम के घर में उस की मां और अविवाहित बड़ी बहन अंजना थी. अंजना में यों तो कोई दोष न था पर मांगलिक होने की वजह से उस की अब तक शादी नहीं हुई थी. रूपरंग में वह साधारण थी. राम और अंजना भाईबहन से भी नहीं लगते थे. अंजना के लिए जितने भी रिश्ते आए, सब ने उसे मांगलिक होने की वजह से ठुकरा दिया था. इस बात से उस का दिल काफी आहत हुआ था. वह सोचने लगी कि 21वीं सदी में भी लोग अंधविश्वास को छोड़ नहीं पाए हैं. लोग चांदसितारे तक पहुंच चुके मगर समाज में कुछ लोगों की सोच अभी भी दकियानूसी ही है.

हालांकि वह भी ग्रेजुएट थी व कई वर्षों एक ट्रैवल एजेंसी में जौब भी कर चुकी थी. एक दिन उस ने औफिस में क्लाइंट की गलत बुकिंग कर दी तो उस के बौस ने गुस्से में आ कर उसे निकाल दिया था. उस की यह नौकरी उस के पिता ने बड़ी सिफारिश से लगवाई थी. नौकरी छूटने के बाद से वह घर पर खाली बैठी थी.

अंजना की जबान बहुत ही तेज थी. घर में सभी उस के उग्र स्वभाव और बोली से डरते थे. उस की सब सहेलियों की शादी हो गई थी और सब खुशहाल जीवन जी रही थीं. अकेली अंजना की ही शादी नहीं हुई थी. कारण कोई इतना बड़ा नहीं था पर उन की बिरादरी में मांगलिक होना एक बहुत बड़ा ऐब था. नातेरिश्तेदार आतेजाते राम की मां को ताने मारते और अंजना की शादी की बात छेड़ते, ‘अरे, कब इस की शादी करोगी उलका रानी? अब तो राम की बहू ले आओ. अंजना से कहना भाभी का ध्यान रखे. अब तो उसे यहीं तुम सब के साथ रहना है.’ उलका सुन कर भी चुप हो जाती.

उलका के पति आकाश बहुत बड़े व्यापारी थे पर कुछ साल पहले ही उन का देहांत हो चुका था. राम अपनी मां और बहन को बहुत प्यार करता था. वह उन्हें समझता कि दुनिया की बातें न सुनें. इधर जब राम के लिए रिश्ते आने लगे तो उलका ने सोचा कि राम की शादी तो समय से हो जाए. बस, अनुभा भी उन के परिवार का हिस्सा बन गई.

अनुभा सुखी परिवार से आई थी. उस का घर रिश्तों को बहुत अहमियत देता था. उसे लगा कि ससुराल में भी उसे यही वातावरण मिलेगा पर बेचारी वह अंजना के स्वभाव से परिचित नहीं थी. अंजना को अनुभा में सहेली नहीं, प्रतिद्वंद्वी नजर आई. उसे लगता कि अनुभा उस का घर, भाई, मां सब को हथिया लेगी, इसलिए भाभी को, जो उस से कई साल छोटी थी, उस ने बातबेबात तंग करना शुरू कर दिया.

हर बात में अनुभा को गलत साबित करना, काम में मीनमेख निकालना, उस के परिवार की बुराई करना और मां व राम से लगाईबुझाई करना उस का नया शगल था, ‘तुम बहुत ही मनहूस हो. पता नहीं राम ने तुम में क्या देखा’, ‘तुम्हारे घर वालों को जरा भी शऊर नहीं है,’ तुम को मां इसलिए लाईं क्योंकि तुम छोटे घर से हो… जैसे ताने उसे रोज सुनाती. हां, यह सब वह अपनी मां और भाई के पीठपीछे कहती.

अनुभा तो जैसे आसमान से गिरी. उस के लिए अंजना एक पहेली सी थी. अनुभा ने जब अपनी सास और पति से इस का कारण पूछना चाहा तो उन्होंने अंजना की तरफदारी करते हुए कहा कि उस की जिंदगी में कुछ भी नहीं है, सिवा खालीपन के. इसलिए अनुभा भी उस की बातों को नजरअंदाज कर दे. 1 या 2 दिन की बात होती तो अनुभा शायद शिकायत न करती पर अंजना के दिल में जो जहर था, उस की कड़वाहट वह अनुभा पर निकालने लगी थी.

हर समय गुनगुनाने और खिलखिलाने वाली अनुभा एकदम चुप हो चली थी. अंजना को वह अपनी बड़ी बहन मान कर उस का दुख दूर करने की कोशिश करना चाहती थी पर अंजना को उस के मीठे व्यवहार से भी जलन थी.

दिन इसी तरह निकल रहे थे. एक दिन अनुभा को पता चला कि वह मां बनने वाली है. इस बात से घर में खुशी की लहर दौड़ गई. अंजना का व्यवहार भी अनुभा के लिए थोड़ाथोड़ा बदलने लगा. उस ने पहली बार अनुभा का खयाल रखना शुरू किया पर फिर भी दिन में जब तक वह 2-4 कड़वी बातें न बोलती, उस का खाना हजम न होता. अनुभा ने उस के व्यवहार को नकार कर अपनी सेहत का ध्यान रखना शुरू किया. उस के लिए यह बहुत जरूरी था कि उस का बच्चा सेहतमंद हो. सही समय आने पर उस ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया.

बड़े लाड़ से सब ने उस का नाम परी रखा. परी ने अनुभा और राम का संसार महका दिया. अंजना ने खुशीखुशी परी की देखभाल करना शुरू किया पर उस की जलन ने एक नया रूप ले लिया था. वह पूरा दिन परी को अपने पास रखती. उस को नहलातीधुलाती, उस की मालिश करती, सिर्फ फीड करने के लिए वह परी को अनुभा के पास छोड़ती. अंजना को यह सब कर के बहुत अच्छा लगता था पर वह यहां भी यह भूल गई थी कि वह एक मां से उस का अधिकार छीन रही थी.

अनुभा को अपनी बेटी सिर्फ रात को मिलती. वह भी तब, जब राम घर आ जाता. अनुभा को भी अच्छा लगता था कि अंजना शायद परी के कारण बदल रही थी पर यह सब एक धोखा था. अंजना परी पर हक जता कर अपना खालीपन भर रही थी. जब भी अनुभा परी को तैयार करती या खिलाती, अंजना उस में दस नुक्स निकाल देती, ‘अरे, इसे क्या कपड़े पहनाए हैं. इसे भी अपनी तरह गंवार बनाओगी क्या’, ‘तुम्हारे पास तो यह रोती रहती है. लाओ, मुझे दो, मेरे पास आते ही परी सो जाती है.’ वह अनुभा से परी को जबरदस्ती ले जाती और खुद उस का पूरा ध्यान रखती. (1)

उलका यह सब देख कर बहुत खुश थी. उसे लगता था कि उस की बेटी बदल गई है पर उस का स्वार्थीपन वह नहीं देख पा रही थी. परी को अंजना हाथोंहाथ रखती पर अनुभा के पास वह तभी जाती जब उस को फीड करना होता.

अनुभा मातृत्व का सुख अनुभव ही नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे उस का वजन कम होने लगा और रूपरंग मुर?ा गया. वह जितना खुश परी की मां बन कर थी, उतना ही अंजना के स्वार्थी व्यवहार से दुखी. जब उस ने राम से बात करनी चाही तो राम ने कहा कि उसे इस सब में न घसीटे. अब अगर कोई उलका से या अंजना से पूछता कि अंजना दिनभर क्या करती है तो वह बड़े गर्व से बताती कि वह परी की देखभाल करती है. लोग यह सुन कर हैरान रह जाते और पीठपीछे हंसते.

एक रिश्तेदार ने तो कह भी दिया, ‘क्या यह तुम ने अपना कैरियर बना लिया है?’ यह सुन कर मांबेटी बहुत नाराज हुईं. फिर भी कुछ नहीं बदला.

दिन इसी तरह बीत रहे थे और अंजना के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आ रहा था. परी अब 6 महीने की हो चली थी. आंखें मटकामटका कर वह सब को देखती, खूब हाथपैर चलाती और अपने मुंह से आवाजें निकालने की कोशिश करती. अनुभा के पास वह फिर भी रात को ही आती थी. अनुभा को इस का कोई उपाय सम?ा नहीं आ रहा था.

एक दिन राम की बूआ नन्हीं परी को देखने और कुछ दिन उन के साथ रहने बनारस से आईं. एक दिन में ही उन्हें अंजना का व्यवहार खटक गया. अनुभा के मुरझाए चेहरे को देख वे सब सम?ा गईं. वे पहली बार अनुभा और राम की शादी के बाद उन के घर आई थीं. अनुभा दौड़दौड़ कर उन की खातिर कर रही थी. उस का शरीर अभी भी कमजोर था, फिर भी वह बूआजी की सेवा में दिलोजान से जुट गई थी. बूआजी को भी अनुभा बड़ी प्यारी लगती थी. 4 दिन उन्होंने उलका और अंजना का यह व्यवहार देखा. उन्हें लगा कि इस चीज को यहीं रोकना होगा वरना अनुभा कभी परी का बचपन नहीं जी पाएगी.

एक दिन बूआजी ने अनुभा से कहा कि उन्हें कुछ खरीदारी करनी है तो वह उन्हें बाजार ले चले. अनुभा ने परी की ओर देखा तो बूआजी ने कहा, ‘‘अरे अंजना संभाल लेगी, चलो न.’’ अंजना ने भी खुशीखुशी हां कर दी.

बूआजी अनुभा को एक बढि़या से रैस्टोरैंट में ले गईं. वहां पर दोनों के लिए कोल्ड कौफी और्डर कर के बूआजी ने अनुभा से सारा माजरा समझ. होशियार तो वे थीं ही. अब उन्होंने अनुभा को एक ऐसा तरीका बताया जिसे सुन कर वह बहुत खुश हो गई. बूआजी के गले लग कर वह बेचारी रो पड़ी. बूआजी ने उस का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘न रो बहू, अब सब ठीक हो जाएगा.’’ थोड़ी देर में दोनों वापस घर आ गए.

अगले दिन, जैसा कि बूआजी ने प्लान बनाया था, उन्होंने अनुभा को डांटना शुरू किया, ‘‘अरे बहूरानी, कब तक ननद की अच्छाई का फायदा उठाओगी? वह बेचारी तुम्हारी बच्ची को पूरा दिन रखती है, न तुम उसे खाना खिलाती हो, न नहलाती हो, न उस की मालिश करती हो और न दिन में उसे अपने पास सुलाती हो. मेरी अंजना तुम्हारी जगह यह सारा काम करती है. इतनी अच्छी ससुराल मिली है और तुम उस का नाजायज फायदा उठा रही हो.’’ बूआजी की बातें सुन कर अनुभा मन ही मन मुस्कराई पर ऊपर से उस ने मुंह लटका लिया.

‘‘अरे, मैं कुछ बोल रही हूं, सुन रही हो कि नहीं अंजना, बहू को परी को संभालने दे, बहुत लाड़ कर लिया तुम दादी और बूआ ने परी का. उस के हाथ में बच्ची को दे कर देखो, आटेदाल का भाव पता चल जाएगा. मेरी भाभी और भतीजी इतनी सीधी हैं, इस का यह मतलब नहीं है कि कोई भी अपनी मनमानी करे.’’ (2)

अंजना और उलका ने कहा भी, ‘‘नहींनहीं, यह तो घर का बच्चा है और हमें इसे संभालने में कोई भी परेशानी नहीं है.’’

पर बूआजी ने सब सोच रखा था. वे बोलीं, ‘‘मैं जब से आई हूं तब से देख रही हूं कि कभी खाना बनाने के बहाने तो कभी सुस्ताने के बहाने बहू इधरउधर हो जाती है और अंजना तुम परी का पूरा खयाल रखती हो. तुम सब के बारे में इतना सोचती हो तो बहू को भी तो तुम्हारे बारे में सोचना चाहिए. क्यों अनुभा?’’ जैसा कि उन दोनों ने तय किया था अनुभा ने सिर्फ अपना सिर हिला दिया. बूआजी ने अंजना से तुरंत परी को ले कर अनुभा को दे दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बहू, परी को तैयार करो और फिर खिचड़ी खिला दो. उस के बाद तुम भी इस के साथ थोड़ी देर सो जाना.’’

अंजना ने प्रतिवाद किया, ‘‘बूआजी, वह मेरे बिना नहीं सोएगी. अनुभा के पास तो वह रोती है.’’

बूआजी ने प्यार से अंजना के सिर पर एक चपत लगाई, ‘‘अरे पगली, उसे भी तो पता चले कि बच्चे को रखना कितना मुश्किल काम होता है. तू ने तो उस की आदत ही बिगाड़ दी है. सारा दिन आराम करती है बहू. हमारे घर में ऐसा नहीं होता है. तुम्हारा बच्चा है, तुम पालो.’’ (3)

अंजना मन मसोस कर रह गई.

बूआजी पूरे 2 महीने रहीं और वे अंजना को परी से सिर्फ एक घंटा खेलने देती थीं.

उन्होंने कमला को अपने साथ लगा कर रसोईघर में अलगअलग व्यंजन बनाना

सिखाया. जब अंजना खाली होती तो वे उसे सिलाई, बुनाई, कढ़ाई सबकुछ सिखातीं, क्योंकि वे तो इन सब में पारंगत थीं. इधर अनुभा परी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारती. खूब खेलती और खुश रहती. धीरेधीरे उस का पुराना रंगरूप वापस आने लगा. लेकिन साथ ही अब उसे डर लगने लगा कि बूआजी के जाते ही अंजना अपना असली रंग दिखाएगी. बूआजी ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. एक दिन उन्होंने कहा, ‘‘राम बेटा, बनारस के 2 टिकट करवा दे. एक मेरा और एक अंजना का.’’ अंजना तो हक्कीबक्की बूआजी का मुंह देखती रही.

‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही है, चलेगी न मेरे साथ? मेरी भी कुछ सेवा कर. बनारस का पकवान खा और अपनी भाभी को थोड़ी सी आजादी दे.’’ यह कह कर बूआजी हंसने लगीं. उलका को तो इस बात को सुन कर अच्छा ही लगा. उन्हें लगा कि अंजना का भी मन बदलेगा और वह खुश रहेगी.

बूआजी का प्लान फुलप्रूफ था. एक दिन वे फिर अनुभा को शौपिंग करने के बहाने बाहर ले गईं. उन्होंने कहा कि वे अंजना को 2 महीने अपने पास रखेंगी. इस बीच वे उसे जौब करने के लिए मना लेंगी. जब वह वापस आएगी तब तक राम उस के लायक काम ढूंढ़ कर रखे. उन्होंने अनुभा से कहा, ‘‘बहू, तुम्हें थोड़ा सा मजबूत बनना पड़ेगा. जब अंजना वापस आएगी तो वह परी पर अपना हक जमाएगी, मगर तुम्हें उसे प्यार से मना करना पड़ेगा. उसे अपने भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए.’’ (4)

अनुभा खुशीखुशी इस के लिए मान गई और बोली, ‘‘बूआजी, जिस घर में आप जैसे बुजुर्ग होते हैं वहां पर बच्चों को कभी कोई दुख नहीं सता सकता. मैं बहुत खुशहाल हूं कि मुझे आप जैसी बूआ सास मिलीं.’’

बूआजी ने प्यार से अपनी बहू को गले लगा लिया.

आंगन की किलकारी : राजेश ने अपनी ही बेटी को क्यों दफनाया जिंदा ?

जनवरी, 2014 को मुरादाबाद जिले के गुरेठा गांव में 2 व्यक्ति पहुंचे. उन में से एक की गोद में एक बच्चा था. वह बोला, ‘‘तीर्थांकर महावीर मैडिकल कालेज में मेरी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया था. बच्ची मर गई है. अब इसे दफनाना है. दफनाने के लिए हमें फावड़ा चाहिए. हमें श्मशान बता दो, इस बच्ची को हम वहां दफना देंगे.’’

ऐसे दुख में लोग हर तरह से सहयोग करने की कोशिश करते हैं. इसलिए फावड़ा आदि ले कर गांव के कई लोग उन दोनों के साथ गांव के पास ही बहने वाली गांगन नदी की ओर चल दिए. गांव का एक आदमी दुकान से बच्ची के लिए कफन भी खरीद लाया.

गांगन नदी के आसपास के गांवों के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार नदी के किनारे स्थित श्मशान में करते थे. इसलिए वे भी बच्ची को कफन में लपेट कर नदी की तरफ चल दिए.

नदी किनारे पहुंच कर गांव के एक आदमी ने बच्ची की लाश को दफनाने के लिए एक गड्ढा भी खोद दिया. वह उसे दफनाने ही वाले थे कि उसी समय बच्ची रोने लगी.

बच्ची के रोने की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए क्योंकि उस बच्ची को तो उन दोनों लोगों ने मरा हुआ बताया था. बच्ची के जीवित होने पर उस के पिता और साथ आए युवक को खुश होना चाहिए था लेकिन वे घबरा रहे थे. उन के चेहरे देख कर गांव वालों को शक हो गया. वे समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

लिहाजा उन्होंने उन दोनों को घेर लिया और हकीकत जानने की कोशिश करने लगे. लेकिन वे यही कहते रहे कि डाक्टर ने बच्ची को मृत बताया था. इस के बाद ही तो वे उसे दफनाने के लिए आए थे. यह बात गांव वालों के गले नहीं उतर रही थी.

शोरशराबा सुन कर आसपास खेतों में काम करने वाले लोग भी वहां पहुंच गए. भीड़ बढ़ती देख वे दोनों वहां से भागने का मौका ढूंढ़ने लगे. लोगों ने उन्हें दबोच लिया और उसी समय पाकबड़ा थाने में फोन कर दिया.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजेंद्र यादव सबइंसपेक्टर सहदेव सिंह के साथ श्मशान घाट पहुंच गए. उन्होंने दोनों लोगों से पूछताछ की तो एक ने अपना नाम राजेश और दूसरे ने दिनेश बताया. उन्होंने जब बच्ची को देखा तो वह जीवित थी. वह 5-6 दिनों की लग रही थी.

पता चला कि वह राजेश की बेटी है और दूसरा युवक उस का साला है. पास में ही तीर्थंकर महावीर मैडिकल कालेज था. पुलिस ने उस बच्ची को अविलंब मैडिकल कालेज में भरती करा दिया जिस से उस की जान बच सके.

डाक्टरों ने जब उस बच्ची को देखा तो वे चौंक गए क्योंकि वह बच्ची वहीं पैदा हुई थी और उस की मां उस समय वहीं भरती थी. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची को उस का पिता राजेश जीवित अवस्था में ही ले गया था, उस के मरने का तो सवाल ही नहीं है.

मामला गंभीर लग रहा था इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र यादव को दे दी. उधर डाक्टरों ने भी बच्ची को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया.

नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र भी थाना पाकबड़ा पहुंच गए. थानाप्रभारी ने उन के सामने राजेश से जब पूछताछ की तो बच्ची को जिंदा दफन करने की एक चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

राजेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के हाफिजगंज का रहने वाला था. वह मोटर मैकेनिक का काम करता था. पिता रामभरोसे को जब लगा कि राजेश अपना घर चलाने लायक हो गया है तो उन्होंने बरेली के ही नवाबगंज में रहने वाले मुक्ता प्रसाद की बेटी सुनीता से उस की शादी कर दी.

शादी हो जाने के बाद राजेश के खर्चे बढ़ गए थे इसलिए राजेश कहीं दूसरी जगह अपने लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. इसी दौरान उत्तरांचल के रुद्रपुर शहर स्थित एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. उस फैक्ट्री में बाइकों की चेन बनती थीं.

कुछ दिनों बाद राजेश पत्नी सुनीता को भी रुद्रपुर ले गया. वहां हंसीखुशी के साथ उन का जीवन चल रहा था. इसी दौरान सुनीता गर्भवती हो गई. इस से पतिपत्नी दोनों ही खुश थे. पहली बार मां बनने पर महिला को कितनी खुशी होती है, इस बात को सुनीता महसूस कर रही थी. राजेश भी सुनीता की ठीक से देखभाल कर रहा था. सुनीता को 7 महीने चढ़ गए. अब सुनीता को कुछ परेशानी होने लगी थी. क्योंकि डाक्टर ने भी सुनीता को कुछ ऐहतियात बरतने की हिदायत दे रखी थी. सावधानी बरतने के बाद भी अचानक एक दिन सुनीता को प्रसव पीड़ा हुई.

जिस डाक्टर से सुनीता का इलाज चल रहा था, राजेश पत्नी को तुरंत उसी डाक्टर के पास ले गया. सुनीता का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने स्थिति गंभीर बताई क्योंकि सुनीता के पेट में 7 महीने का बच्चा था. यदि वह आठ साढ़े आठ महीने से ऊपर का होता तो डिलीवरी कराई जा सकती थी, समय से 2 महीने पहले डिलीवरी कराना उस डाक्टर की नजरों में मुनासिब नहीं था.

ऐसी हालत में सुनीता को किसी अच्छे अस्पताल या नर्सिंगहोम में ले जाना जरूरी था. रुद्रपुर में कई नर्सिंगहोम ऐसे थे जहां सुनीता को ले जाया जा सकता था लेकिन वे महंगे होने की वजह से राजेश के बजट से बाहर थे. लिहाजा वह पत्नी को ले कर मुरादाबाद आ गया और उसे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करा दिया.

वहां 4 जनवरी, 2014 को सुनीता ने एक बेटी को जन्म दिया. बच्ची 7 महीने में पैदा हुई थी इसलिए वह बेहद कमजोर थी. उसे इनक्यूबेटर में रखा जाना बहुत जरूरी था लेकिन मैडिकल कालेज में जो इनक्यूबेटर थे, उन में पहले से ही दूसरे बच्चे रखे हुए थे.

ऐसी स्थिति में मैडिकल कालेज के जौइंट डाइरैक्टर डा. विपिन कुमार जैन ने राजेश को सलाह दी कि वह अपनी बच्ची को किसी अन्य नर्सिंगहोम या अस्पताल या फिर दिल्ली ले जाए. क्योंकि बच्ची की हालत ठीक नहीं है.

उधर इतनी कमजोर बच्ची को देख कर वार्ड में भरती मरीजों के तीमारदारों ने राजेश के मुंह पर ही कह दिया कि ये बच्ची बचेगी नहीं और यदि बच भी गई तो पूरी जिंदगी अपंग रहेगी. लेकिन राजेश ने उन की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

बेटी की जान बचाने के लिए राजेश उसे ले कर मुरादाबाद के साईं अस्पताल पहुंचा. राजेश के साथ उस का साला दिनेश भी था. साईं अस्पताल में बच्ची को भरती करने से पहले 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया. उस के पास उस समय इतने रुपए नहीं थे. राजेश ने अस्पतालकर्मियों से कहा भी कि वह पैसे बाद में जमा करा देगा, पहले बेटी का इलाज तो शुरू करो. लेकिन उस के अनुरोध को उन्होंने अनसुना कर दिया.

राजेश बेटी को हर हाल में बचाना चाहता था. इसलिए उस ने अपने कई सगेसंबंधियों और रिश्तेदारों को फोन कर के अपनी स्थिति बताई और उन से पैसे मांगे लेकिन किसी ने भी उस की सहायता करने के बजाए कोई न कोई बहाना बना दिया. राजेश बहुत परेशान हो गया था. ऐसी हालत में उस की समझ मेें नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चारों ओर से हताश हो चुके राजेश के कानों में तीमारदारों के शब्द गूंज रहे थे कि बच्ची जिंदा नहीं बचेगी और अगर बच भी गई तो विकलांग रहेगी. निराशा और हताशा के दौर से गुजर रहे राजेश ने सोचा कि जब बच्ची पूरी जिंदगी विकलांग रहेगी तो इस की जान बचाने से क्या फायदा? इस से अच्छा तो यही है कि ये मर जाए.

इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.

दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

गड्ढा खोदने के लिए उन के पास कोई चीज नहीं थी इसलिए वह फावड़ा मांगने के लिए गुरेठा गांव पहुंचे.

ऐसी हालत में गांव वालों ने उन की सहायता करना मुनासिब समझा और उन के साथ गांगन नदी के किनारे उस जगह पर पहुंच गए जहां लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता था.

उस की नन्हीं सी जान की आंखें ठीक से खुली भी नहीं थीं. दुनियादारी से तो उसे कोई मतलब भी नहीं था. मां की गोद से पिता के मजबूत हाथों में वह इसलिए आई थी कि वह उस का इलाज कराएंगे. लेकिन उसे क्या पता था कि कन्यादान करने वाले हाथ ही उसे जिंदा दफनाने के लिए आगे बढ़ेंगे.

लेकिन जैसे ही उसे गड्ढे में ठंडी रेत पर लिटाया गया वह हाथपैर चलाते हुए जोरजोर से रोने लगी. जैसे वह रोतेरोते अपने जन्मदाता से पूछ रही हो कि मेरा कुसूर क्या है. मुझे मत मारो. एक दिन मैं ही तुम्हारा सहारा बनूंगी और घर में उजियारा फैलाऊंगी. लेकिन उस समय पिता की संवेदनशीलता नदारद हो चुकी थी.

अचानक बच्ची की आवाज सुन कर राजेश और दिनेश घबरा गए. वे सोचने लगे कि काश ये 2 मिनट और न रोती तो…

बहरहाल, उस की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए और उन्होंने पुलिस बुला ली. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस ने उस बच्ची को तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करवा दिया था. वहां उसे इनक्यूबेटर में रख दिया गया था. उस की हालत में भी सुधार होने लगा था.

उधर सुनीता को इस बात का पता नहीं था कि उस ने जिस बच्चे को जन्म दिया, उस की हत्या की कोशिश करने वाला उस का पति जेल में है.

इलाके के लोगों को जब एक पिता के यमराज बनने की जानकारी हुई तो लोग बच्ची की लंबी उम्र के लिए दुआएं करने लगे. बच्ची के इलाज के लिए कई लोगों ने अस्पताल में पैसे भी जमा कराए लेकिन एक सप्ताह बाद ही उस बच्ची ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

वैसे यहां एक बात बताना जरूरी है कि राजेश की नीयत बेटी की हत्या करने की नहीं थी बल्कि वह तो उस की सुरक्षा के लिए ही मैडिकल कालेज लाया था और मैडिकल कालेज के डाक्टर के कहने पर वह बेटी को ले कर कई अस्पतालों में घूमा भी. उस की मजबूरी यह थी कि इलाज के लिए उस के पास पैसे नहीं थे और जिन संबंधियों और रिश्तेदारों से उस ने मदद की गुहार लगाई, उन्होंने भी मुंह मोड़ लिया था, जिस से वह निराश और हताश हो चुका था.

अस्पताल के वार्ड में मरीजों के तीमारदारों ने बच्ची के बारे में गलत धारणाएं राजेश के मन में भर दी थीं. इन्हीं धारणाओं ने उसे यमराज बनने के लिए मजबूर किया. इन्हीं बातों ने उस की संवेदनशीलता को हर लिया था. कहते हैं कि मां का दूसरा रूप मामा होता है लेकिन उस समय दिनेश का दिल भी नहीं पसीजा था. वह भी कंस मामा बन गया था.

पिता से यमराज बनने के हालात राजेश के सामने चाहे जो भी रहे हों लेकिन इस में अकेला वही दोषी नहीं है. इस में दोष उन लोगों का भी है जिन्होंने उसे इस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर किया. वह इतना संवेदनहीन हो गया था कि जीवित बेटी को कब्र में रखते समय उस के हाथ तक नहीं कांपे.

बेटियों पर खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बेटे की चाहत में तमाम लोग उन्हें कोख में ही खत्म करा देते हैं.

हम भले ही 21वीं सदी में पहुंचने की बात कर रहे हों लेकिन सोच अभी भी वही पुरानी है तभी तो भ्रूण हत्याओं में कमी नहीं आ रही. इस का उदाहरण यह है कि जहां सन 1990 में प्रति 1000 पुरुषों के अनुपात में 906 महिलाएं थीं, सन 2005 में इतने ही पुरुषों के अनुपात में केवल 836 महिलाएं रह गई थीं. बात 2014 की करें तो अब यह आंकड़ा 1000 पुरुषों पर 940 स्त्रियों का है. कह सकते हैं कि लोगों में काफी हद तक जागृति आई है और भ्रूण हत्याओं का ग्राफ गिरा है. यह खुशी की बात है. लेकिन इस मामले को देख कर लगता है कि हमें अभी भी पुरुष की सोच को बदलने की जरूरत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जानेअनजाने कहीं आप भी तो नहीं कर रहे अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

भोजन में सम्मिलित पोषक तत्त्व और स्वाद हमारी जीवनशैली को रोजाना के स्तर पर थोड़ाथोड़ा कर के काफी हद तक बदल देते हैं. अच्छा पोषण हमारे स्वास्थ्य को दुरुस्त रखता है व पूरा दिन काम करने के लिए एनर्जी देता है और हमें कई बीमारियों से बचाता भी है.

स्वास्थ्य के लिए गंभीर रहना कोई गलत बात नहीं है. उस के लिए सही ट्रिक्स और टिप्स की जानकारी रखना अति आवश्यक है. कई बार हम ज्यादा समय तक भूखे रह जाते हैं, तो कभी ज्यादा खा लेते हैं. इस से हमारा मैटाबोलिज्म गड़बड़ा जाता है और हमें भरपूर मात्रा में न्यूट्रिशन भी नहीं मिल पाते. रोजाना हम भोजन तो करते हैं, लेकिन पूरी तरह से पोषण लेने में हम से गलतियां हो जाती हैं, तो अगर ये गलतियां आप भी कर रहे हैं, तो आज ही बदल दें ये आदतें :

सुबह का नाश्ता रखे आप को तरोताजा : पूरे दिन की एनर्जी हमें सुबह के नाश्ते से ही मिलती है. हैल्दी नाश्ते से पूरा दिन शरीर तरोताजा तो रहेगा ही, साथसाथ अनेक बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है. तो यदि आप डाइटिंग पर हैं, तो सुबह का नाश्ता कभी मिस न करें. इसलिए जरूरी है कि कार्ब्स के साथसाथ प्रोटीन, आयरन, फाइबर, कैल्शियम और विटामिन अवश्य लें. भूल कर भी अधिक कार्ब्स नाश्ते में न लें, क्योंकि ऐसा करने से शरीर सुस्त तो होगा ही, साथ ही मोटापा बढ़ेगा और पाचन क्रिया खराब हो सकती है, जिस से हम बीमार पड़ सकते हैं.

मानसिक स्वास्थ्य पर न पड़ने दें असर : पोषण की कमी से शारीरिक स्वास्थ्य के साथसाथ आप का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है, जिस के कारण आप के मूड में बदलाव, निराशा या चिड़चिड़ापन होना आम बात है. हमारा मस्तिष्क शरीर के विभिन्न अंगों के कार्यों को नियंत्रित करता है, जिस से स्वस्थ रखने के लिए हमें पौष्टिक व संतुलित आहार लेना बेहद जरूरी है. कभी भी वसा और कार्बोहाइड्रेट को लेना बिलकुल बंद न करें. शरीर के लिए फैट यानी वसा की भी बहुत जरूरत होती है. वहीं कुछ लोग कार्बोहाइड्रेट को पूरी तरह खाने से बाहर कर देते हैं, लेकिन फाइबर से भरपूर कार्बोहाइड्रेट जैसे कि फलसब्जियां, साबुत दालें, साबुत अनाज अपने खाने में जरूर शामिल करें.

क्या न करें

-फलों को दूसरे आहार के साथ लेने से पाचन क्रिया में समय ज्यादा लगता है, जिस से कि खाने का आंतों में फर्मेंट होने लगता है. इस से एसिडिटी, सीने में जलन और अपच जैसी पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. फलों को सलाद में मिला कर खाएं, लेकिन नमक और दही का इस्तेमाल इन के साथ न करें.

-जिस भोजन से आप का ब्लड शुगर बढ़े, ऐसे खाद्य पदार्थों से दूरी बनाएं, क्योंकि इस से बौडी की एनर्जी खत्म हो जाती है.

-हाई कैलोरी भोजन से बचें. एक बार में ज्यादा न खाएं.

-खाने को बारबार गरम न करें, क्योंकि ऐसा करने से उस के पोषक तत्त्व खत्म हो जाते हैं.

-मौसम कोई भी हो, ताजा भोजन ही करें और बाहर के खाने के बजाय घर का बना भोजन ही करें.

उपभोक्ता होने के नाते जानें अपने अधिकार

जुलाई महीने में समय पर कोरियर न पहुंचाने के एक मामले में फतेहाबाद के उपभोक्ता फोरम ने कोरियर कंपनी के स्थानीय डीलर व कंपनी दोनों पर 22 हजार रुपए का जुर्माना ठोंक दिया. इस मामले में राजीव जैन निवासी पालिका बाजार ने उपभोक्ता फोरम में दावा दायर किया था.

राजीव जैन ने बताया था कि उस ने फर्स्ट फ्लाइट कोरियर के माध्यम से 50 हजार रुपए का चैक दिल्ली की एक फाइनैंस फर्म को भेजा था. यह चैक उस ने शेयर खरीदने के लिए भेजा था. कोरियर भेजने के एवज में उस से कंपनी के स्थानीय डीलर ने 50 रुपए लिए थे और यह कोरियर 6 जुलाई, 2018 को दिल्ली बताए गए पते पर पहुंच जाना था, लेकिन कोरियर 19 जुलाई को पहुंचा, जिस कारण वह समय पर शेयर नहीं खरीद पाया.

उस ने बताया कि कंपनी द्वारा समय पर कोरियर न पहुंचाने के कारण उसे भारी नुकसान हुआ. इस मामले की सुनवाई करते हुए उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष राजबीर सिंह ने कंपनी के डीलर सुनील व कंपनी पर 22 हजार रुपए का जुर्माना लगाया.

ऐसा ही एक मामला रोहतक के जिला उपभोक्ता फोरम में देखने को मिला. वहां एक रिटायर्ड सूबेदार ने बैंक के खिलाफ उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया. उन के खाते से बैंक ने 735 रुपए अधिक काट लिए थे. कारण पूछने पर बैंक इन में से 36 रुपए का हिसाब नहीं दे पाया. रिटायर्ड सूबेदार को न केवल 36 रुपए रिफंड दिलाए गए, बल्कि फोरम के निर्णय के आधार पर बैंक को 5 हजार रुपए का मुआवजा भी बुजुर्ग को देना पड़ा.

बचपन में सभी ने सुना होगा कि उपभोक्ता यदि एक माचिस की डबिया से ले कर गाड़ी तक कुछ भी खरीदता है तो उस का एक हिस्सा टैक्स के रूप में कटता है जो कि सरकार के पास जाता है और इसे ही सेल टैक्स कहा जाता है. यानी किसी माल की बिक्री व खरीद पर लगाए जाने वाले कर को सेल टैक्स कहा जाता है.

लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि सरकार के इस टैक्स लेने के साथ, हमारा संविधान, न्याय हर उपभोक्ता को यह गारंटी भी देता है कि जो सामान उस ने खरीदा है या जो सेवा उस ने ली है, उस के साथ किसी भी तरह की धोखाधड़ी न की गई हो और सरकार द्वारा तय मानकों के आधार पर वह सेवा व सामान उपभोक्ता तक पहुंचे हों. जैसा कि ऊपर दिए मामलों में हुआ.

उपभोक्ता के इन्हीं मामलों को निबटाने व सुल?ाने के लिए स्पैशल अदालत बनाई गई हैं. इन अदालतों को एक सिविल कोर्ट को दी गई शक्तियों के बराबर शक्तियां दी गई हैं कि वे किसी मामले का निबटान अपने स्तर पर कर सकें, जिसे उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता फोरम कहा जाता है.

उपभोक्ता अदालतें उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के बाद वजूद में आईं. इस अधिनियम के साथ उपभोक्ता फोरम की शुरुआत हुई. उपभोक्ता का मतलब ग्राहक होता है. पहले इंडिया में उपभोक्ता के लिए कोई परफैक्ट या सीधे कानून नहीं थे जो सिर्फ ग्राहकों से जुड़े हुए मामले ही निबटाएं, लेकिन इस अधिनियम के बाद ग्राहकों को अधिकार मिले.

पहले, किसी भी ग्राहक के ठगे जाने पर उसे सिविल कोर्ट में मुकदमा लगाना होता था. मसलन, भारत में सिविल कोर्ट पर काफी कार्यभार है, ऐसे में ग्राहकों को परेशानी का सामना करना पड़ता था, फिर सिविल कोर्ट में मुकदमा लगाने के लिए कोर्ट फीस भी अदा करनी होती थी. इस तरह ग्राहकों पर दुगनी मार पड़ती थी. एक तरफ वे ठगे जाते थे, दूसरी तरफ उन्हें अपने रुपए खर्च कर के अदालत में न्याय मांगने के लिए मुकदमा लगाना पड़ता था.

इन सभी बातों को ध्यान में रख कर भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया गया जिसे कंज्यूमर प्रोटैक्शन एक्ट 1986 कहा जाता है. अभी हाल ही में इस एक्ट में 2019 में काफी सारे संशोधन किए गए, जिस से यह कानून ग्राहकों के हित में और ज्यादा आसन हो गया है.

उपभोक्ता को मिलने वाले अधिकार

कानून के तहत एक ग्राहक को यह अधिकार है कि वह किसी सामान को खरीदने पर उस की गुणवत्ता, शुद्धता, क्षमता, कीमत और मानकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है.

ग्राहक को सुरक्षा का अधिकार होता है. यानी माल और सेवाओं को उपयोग करते हुए सुरक्षा का अधिकार. यह अधिनियम स्वास्थ्य सेवा, फार्मास्यूटिकल्स और फूड इंडस्ट्री जैसे क्षेत्रों में लागू है.

ग्राहक को अपनी पसंद का कोई प्रोडक्ट चुनने का अधिकार शामिल है. चुनने का अधिकार का मतलब है कोई भी विक्रेता ग्राहक की पसंद को गलत तरीके से प्रभावित नहीं कर सकता और यदि कोई भी विक्रेता ऐसा करता है तो उसे चुनने के अधिकार के साथ हस्तक्षेप माना जाएगा.

इस के अलावा सुने जाने का अधिकार है. यानी उपभोक्ता के हितों की उचित मंचों पर सुनवाई होगी. इस के साथ निवारण का अधिकार मिलता है. अनुचित व्यापार या उपभोक्ताओं के साथ बेईमानी, शोषण के विरुद्ध के खिलाफ यह अधिकार है.

केस की प्रक्रिया

एक ग्राहक खुद के ठगे जाने या धोखाधड़ी के मामले में उपभोक्ता अदालत का रुख कर सकता है. ऐसे में ग्राहक इस केस को एक ग्राहक, दुकानदार या फिर सेवा देने वाले व्यक्ति, कंपनी पर लगा सकता है. जैसे ग्राहक एक वाशिंग मशीन खरीदता है और वह खराब निकलती है या वह तय मानकों पर काम नहीं करती है, तब दुकानदार के खिलाफ मुकदमा लगा सकते हैं और उस कंपनी को पार्टी बना सकते हैं जिस ने उस प्रोडक्ट को बनाया है.

ऐसा मुकदमा ग्राहक उस शहर में लगा सकता है जहां पर वह रहता है और जहां से उस ने वह प्रोडक्ट खरीदा है. इस के लिए ग्राहक को कंपनी के शहर में जाने की जरूरत नहीं है. 2019 के कानून के तहत उपभोक्ताओं की मदद के लिए 3 स्तरीय प्रणाली है, यानी वह जिला आयोग, राज्य आयोग व राष्ट्रीय आयोग में अपनी बात रख सकता है.

सेवा में भी अधिकार

बहुत बार उपभोक्ता सम?ा नहीं पाता कि उसे किसकिस की धोखाधड़ी के खिलाफ अधिकार प्राप्त हैं. उपभोक्ता उन के खिलाफ भी मुकदमा दायर कर सकता है जो उस से सेवा के बदले फीस लेते हैं, जैसे डाक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटैंट. हालांकि पहले वकीलों को ले कर संशय था क्योंकि इसे सामाजिक काम से जोड़ा जा रहा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वकील अगर सेवा में कमी करता है तो उस के खिलाफ मुकदमा किया जा सकता है.

इस के अलावा सर्विस क्षेत्र में कार्य करने वाली किसी भी कंपनी के विरुद्ध उपभोक्ता कानून में मुकदमा लगाया जा सकता है, जैसे किसी टैलीकौम कंपनी या फिर कोई इंश्योरैंस कंपनी. मोटर व्हीकल में ऐक्सिडैंट होने पर मुकदमा कंज्यूमर फोरम में नहीं सुना जाता बल्कि उस के लिए अलग से ट्रिब्यूनल है. हालांकि वाहन चोरी होने पर कंपनी द्वारा क्लेम नहीं दिए जाने पर मुकदमा कंज्यूमर फोरम में ही लगाया जाता है.

हैल्थ इंश्योरैंस करने वाली कंपनियों के विरुद्ध भी मुकदमा कंज्यूमर फोरम में लगाया जाता है. ऐसा मुकदमा तब लगाया जाता है जब हैल्थ इंश्योरैंस कंपनी अपने ग्राहक को क्लेम देने से इनकार कर देती है. यदि इनकार करने के कारण उचित नहीं हैं तो मुकदमा फोरम के समक्ष लगाया जा सकता है. बैंकों के विरुद्ध भी सेवा में कमी के आधार पर मुकदमा लगाया जा सकता है. एक ग्राहक सेवा ले या फिर कोई उत्पाद खरीदे- दोनों ही स्थितियों में उस के द्वारा मुकदमा कंज्यूमर फोरम के समक्ष लगाया जा सकता है.

बेहतर पक्ष

अच्छी बात यह है कि मुकदमा दायर करते हुए इन अदालतों में नाममात्र की फीस होती है. अब इस तर्क को सम?ाने की जरूरत है कि एक तो फरियादी पहले ही खुद के साथ धोखाधड़ी किए जाने से परेशान है, उस के बाद अगर फीस का बो?ा उस पर पड़े तो यह दोगुनी मार होगी, ऐसे में यहां फीस कम होती है.

एक करोड़ रुपए तक के मामले डिस्ट्रिक्ट आयोग तक ही लगाए जाते हैं. इस के ऊपर के मामले राज्य आयोग के समक्ष जाते हैं. 5 लाख रुपए तक के दावे के लिए कोर्ट फीस नहीं होती. इस के ऊपर के दावे के लिए भी नाममात्र की कोर्ट फीस होती है. 5 लाख रुपए के बाद 5 लाख से 10 लाख रुपए तक मात्र 200 रुपए की कोर्ट फीस है, 10 लाख से 20 लाख रुपए तक 400 रुपए की कोर्ट फीस है, 20 लाख से 50 लाख रुपए तक 1,000 रुपए कोर्ट फीस है, 50 लाख से एक करोड़ रुपए तक 2,000 रुपए की कोर्ट फीस है.

राज्य आयोग में एक करोड़ रुपए से अधिक और 2 करोड़ रुपए तक 2,500 रुपए, 2 करोड़ रुपए से अधिक और 4 करोड़ रुपए तक 3,000 रुपए, 4 करोड़ रुपए से अधिक और 6 करोड़ रुपए तक 4,000 रुपए, 6 करोड़ से 8 करोड़ रुपए तक 5,000 रुपए और 8 करोड़ से 10 करोड़ रुपए तक 6,000 रुपए कोर्ट फीस है. इस के बाद 10 करोड़ रुपए से अधिक वाले मामले राष्ट्रीय आयोग में जाते हैं जिस की फीस 7,500 रुपए होती है.

लेकिन यह भी सच है कि ऐसी अदालतों में निचले तबके के पीडि़त बेहद कम ही पहुंचते हैं. इस में बहुत हद तक, जानकारी की कमी, समय और कोर्ट के पचड़ों में न पड़ना कारण होते हैं. अकसर ऐसे मामले मध्यवर्गीय लोगों द्वारा पेश किए जाते हैं. द्य

शिकायत दर्ज कैसे करें

  • आप को अपने केस के अनुसार, जिला फोरम, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपनी शिकायत के साथ एक निर्धारित शुल्क का भुगतान करना होगा.
  • अपनी शिकायत का ड्राफ्ट तैयार करना होगा जिस में यह बताना जरूरी होगा कि आप केस क्यों दाखिल करना चाहते हो.
  • शिकायत में यह बताना भी शामिल है कि मामला इस मंच या फोरम के क्षेत्राधिकार में कैसे आता है.
  • शिकायतपत्र के अंत में आप को अपने हस्ताक्षर करने जरूरी हैं. यदि आप किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं तो शिकायतपत्र के साथ एक प्राधिकरण पत्र यानी औथोराइजेशन लैटर लगाना होगा.
  • शिकायतकर्ता का नाम, पता, शिकायत का विषय, विपक्षी पक्ष या पार्टियों के नाम, उत्पाद का विवरण, पता, क्षतिपूर्ति राशि का दावा इत्यादि का उल्लेख जरूरी है.
  • अपने आरोपों का समर्थन करने वाले सभी दस्तावेजों की प्रतियां, जैसे खरीदे गए सामानों के बिल, वारंटी और गारंटी दस्तावेजों की फोटोकौपी, कंपनी या व्यापारी को की गई लिखित शिकायत की एक प्रति और उत्पाद को सुधारने का अनुरोध करने के लिए व्यापारी को भेजे गए नोटिस की कौपी भी लगा सकते हैं.
  • आप अपनी शिकायत में क्षतिपूर्ति के अलावा, धनवापसी, मुकदमेबाजी में आई लागत और ब्याज, उत्पाद की टूटफूट व मरम्मत में आने वाली लागत का पूरा खर्चा मांग सकते हैं. आप इन सभी खर्चों को अलगअलग मदों के रूप में लिखना न भूलें और कुल मुआवजा शिकायत फोरम की कैटेगरी के हिसाब से ही मांगें.
  • अधिनियम में शिकायत करने की अवधि घटना घटने के बाद से 2 साल तक है.  अगर शिकायत दाखिल करने में देरी हो तो देरी की व्याख्या करें जो कि ट्रिब्यूनल द्वारा स्वीकार की जा सकती है.
  • आप को शिकायत के साथ एक हलफनामा पेश करने की भी आवश्यकता है कि शिकायत में बताए गए तथ्य सही हैं.
  • शिकायतकर्ता किसी भी वकील के बिना किसी व्यक्ति या उस के अपने अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा शिकायत पेश कर सकता है. शिकायत पंजीकृत डाक द्वारा भेजी जा सकती है. शिकायत की कम से कम 5 प्रतियों को फोरम में दाखिल करना है. इस के अलावा, विपरीत पक्ष के लिए अतिरिक्त प्रतियां भी जमा करनी होंगी.

मैं नौकरी और घरगृहस्थी के पचड़ों में फंसी रहती हूं, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं टीचर हूं. 2 बेटों की मां हूं और मेरी उम्र 52 साल है. बच्चे जब छोटे थे तो सोचती थी कि बड़े हो जाएंगे तो फ्री हो जाऊंगी लेकिन अभी तक मैं जिम्मेदारियों में घिरी हूं. मन करता है कि जैसे और लेडीज किट्टी पार्टी, सैरसपाटा, शौपिंग के लिए वक्त निकाल कर लाइफ एंजौय करती हैं, मैं भी करूं. लेकिन कभी स्कूल का काम सामने आ जाता है तो कभी बच्चों की फरमाइशें पूरी करनी पड़ जाती हैं. ऊपर से बीमार सास जो बैड पर हैं उन को भी देखना पड़ता है, जबकि उन के लिए फुलटाइम मेड रखी है लेकिन वह मेड भी मेरे लिए एक सिरदर्द है. उस के खानेपीने का ध्यान रखना, यह एक अलग सिरदर्दी है मेरे लिए.

सहेलियां मजाक उड़ाती हैं कि मेड रख कर तो लोग फ्री हो जाते हैं लेकिन तू उलटा उस की सेवा करती है. सुबह 4 बजे की उठी मैं रात 11 बजे जा कर फ्री होती हूं क्योंकि पति की शौप है, वे लंच करने भी 3-4 बजे घर आते हैं. 6 बजे शाम को फिर शौप जाते हैं. शौप कभी 9.30 बजे तो कभी 10 बजे बंद कर के आते हैं. उन्हें डिनर कराने में 11 बज जाते हैं. सोचती हूं, क्या यही लाइफ है. आप ही बताइए, मैं क्या करूं?

जवाब

आप जो कह रही हैं, ऐसी लाइफ 50 प्रतिशत औरतों की होती है. घर, नौकरी, बच्चे, पति, सासससुर, सारी जिम्मेदारी अकसर औरत के सिर पर डाल दी जाती है जैसे कि वह कोई मशीन है. आप के केस में ऐसा लग रहा है कि आप घरगृहस्थी के कामों में खुद को उल?ाए रखती हैं. उन से बाहर निकलने की कोशिश नहीं करतीं. टाइम मैनेजमैंट की कमी है आप में क्योंकि अब आप के बच्चे बड़े हो गए होंगे. आप सुबह स्कूल जाती हैं तो दोपहर के लंच की तैयारी थोड़ीबहुत कर के जाएं. बच्चे अब कालेज या जौब पर जाते हैं, उन्हें साथ में लंच देना है तो इस की तैयारी भी रात को कर के रखनी चाहिए.

वीक डे में लंचडिनर साधारण ही रखें. स्पैशल बनाने के चक्कर में आप फिर अपने को किचन के कामों में उल?ा लेंगी. छुट्टी वाले दिन स्पैशल बना कर खिला सकती हैं. रही बात आप की सास की तो उन की देखभाल के लिए फुलटाइम मेड को काम अच्छी तरह सम?ा दीजिए कि उसे टाइम से सारे काम करने हैं. उस से सख्ती बरतनी पड़ेगी. मेड से कहें कि अपनी चाय, रोटी वह खुद बनाए. सास बैड पर हैं तो यकीनन वे ज्यादातर सोई रहती होंगी. उस वक्त मेड अपने खानेपीने का काम खुद करे. मेड को रसोई में घुसने दें. इस से आप उस के खानेपीने का इंतजाम करने की ड्यूटी से फ्री हो जाएंगी.

स्कूल में अपनी साथी टीचरों से बात करें कि उन का रूटीन वर्क कैसा होता है. वे कैसे मैनेज करती हैं अपना कामकाज. अपने लिए थोड़ा वक्त निकालना जरूरी है और वह वक्त आप टाइम मैनेजमैंट कर के निकाल सकती हैं.

टौक्सिक रिलेशनशिप : जी का जंजाल

महाराष्ट्र की श्रद्धा वालकर की दिल्ली में उस के लिवइन पार्टनर ने हत्या कर दी और उस के टुकड़ेटुकड़े कर जंगल में जा कर फेंक दिया. उस का लिवइन पार्टनर, आफताब पूनावाला, पहले भी कई बार उस पर हिंसक प्रहार कर चुका था और इस बात का जिक्र श्रद्धा ने अपने दोस्तों से किया था कि वह उसे मारतापीटता है और अब वह उस के साथ नहीं रहना चाहती.

एक बार उस ने अपने मैनेजर को व्हाट्सऐप पर लिखा था कि आफताब ने उसे बहुत मारा है जिस से वह उठ भी नहीं पा रही है, इसलिए वह काम पर नहीं आ सकती. श्रद्धा ने आफताब के हिंसक बरताव के बारे में अपने परिवार को भी बताया था लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.

श्रद्धा ने आफताब के हिंसक बरताव के बारे में 2 साल पहले 23 नवंबर, 2020 को मुंबई की पालघर पुलिस को एक शिकायत पत्र लिखा था कि उस का लिवइन पार्टनर आफताब उसे मारतापीटता है और अगर वक्त पर ऐक्शन नहीं लिया गया तो वह उस के टुकड़ेटुकड़े कर डालेगा. श्रद्धा ने यह भी बताया था कि 6 महीने से आफताब उसे पीट रहा है. इस पत्र से पता चलता है कि भले ही दोनों लिवइन में थे, मगर उन के रिश्ते खराब हो चुके थे.

श्रद्धा ने आफताब के दो फोन नंबर भी पत्र में दिए थे. श्रद्धा के पत्र के मुताबिक, वह पुलिस के पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, क्योंकि आफताब ने उसे हत्या की धमकी दी थी. पत्र में उस ने यह भी लिखा था कि अगर मु?ो किसी भी तरह चोट लगती है तो उस के लिए आफताब ही जिम्मेदार होगा.

लेकिन जब श्रद्धा इस रिश्ते में खुश नहीं थी और वह उसे मारतापीटता था, तब वह उस के साथ रह ही क्यों रही थी? छोड़ क्यों नहीं दिया उसे? बताया जा रहा है कि श्रद्धा का उस के बौयफ्रैंड के साथ कई बार ब्रेकअप हो चुका था. लेकिन फिर बाद में दोनों सुलह कर साथ रहने लगते थे. फिर वही सवाल कि जब वह उस के साथ खुश नहीं थी, फिर साथ कैसे रह रही थी? क्यों उस ने कोई कदम नहीं उठाया जब उसे पता था कि आफताब उसे मार देगा.

सच तो यह है कि हम शायद ही कभी किसी रिश्ते के अंधेरे पहलुओं के बारे में सोचते हैं, जहां संदेह, असुरक्षा, चोट और दर्द की दीवारें होती हैं. आदमी जब प्रेम में होता है तो वह एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार होता है. कहा भी गया है- ‘प्यार अंधा होता है’. हम अपने प्यार को हीररां?ा और लैलामजनूं से तुलना करने लगते हैं. हमें लगता है हमारा प्यार भी उतना ही ईमानदार और पाक है लेकिन ऐसा होता नहीं है.

लेकिन इस सब में श्रद्धा की क्या गलती थी? उस की यही गलती थी कि उस ने आफताब जैसे इंसान पर हद से ज्यादा विश्वास किया, उस से प्यार किया और उस की गलतियों को माफ करती आई. वक्त रहते अगर वह उस की जिंदगी से निकल गई होती तो आज वह जिंदा होती.

कुछ रिश्ते लड़कियों का दैहिक, आर्थिक और भावनात्मक दोहन करते हैं लेकिन चाह कर भी वे उस रिश्ते से बाहर नहीं आ पाती हैं. श्रद्धा ने अपनी उलझनों के बीच कई आवाजें दीं होंगी लेकिन किसी ने भी उस की आवाज नहीं सुनी या यह कहें की यह समाज और परिवार उस की आवाज को सुन पाने में असमर्थ थे.

एक श्रद्धा ही अकेली ऐसी लड़की नहीं है जिसे प्यार के बदले मौत मिली. हमारे आसपास ऐसे कई लोग होंगे जो टौक्सिक रिश्ते में जीने को मजबूर हैं लेकिन उस से बाहर नहीं निकल पा रहे होंगे.

क्या है टौक्सिक रिश्ता ?

औक्सफोर्ड डिक्शनरी टौक्सिक रिलेशनशिप को दर्दनाक और हानिकारक रिश्ते के रूप में परिभाषित करती है. जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कंट्रोल करना चाहता है और उस रिश्ते में दूसरे व्यक्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करता है. सामने वाले व्यक्ति को कंट्रोल करने के लिए हिंसक व्यवहार पर भी उतर आता है.

राजेश और अनुपमा की शादी 1999 में हुई थी. कुछ सालों बाद दोनों के बीच प्यार की जगह लड़ाई?ागड़ों ने लिया और रिश्ते जहरीले होते चले गए. बातबात पर झगड़ा, मारपीट, एकदूसरे पर लांछन लगाना, दोष मढ़ना, गालीगलौज होते रहने से घर का माहौल खराब होने लगा.

एक दिन ?ागड़ा इतना बढ़ गया कि गुस्से में राजेश ने अपनी पत्नी अनुपमा की हत्या कर दी और अपने जुर्म को छिपाने के लिए एक डीप फ्रीजर में पत्नी का शव रख दिया. जब शव जम गया तब स्टोनकटर मशीन से उस के टुकड़े कर मसूरी के जंगलों में फेंकने लगा.

कैसे पहचानें टौक्सिक रिलेशनशिप को ?

एक अच्छा और प्यारा रिश्ता जहां आप के तन और मन दोनों को प्रसन्नता व पौजिटिविटी से भर देता है वहीं जहरीला रिश्ता आप को तनाव, अवसाद में धकेल देता है. वहीं जब रिश्ते में प्यार की जगह दिखावापन, कड़वाहट, झूठ, धोखा, फरेब, लड़ाईझगड़े, गालीगलौज और मारपीट होने लगे, तब समझ लें कि आप एक टौक्सिक रिलेशनशिप में हैं.

इंगलैंड की विमेन्स कोऔपरेशन कमिटी की सहप्रमुख एडिना क्लेयर ने इन संकेतों को पहचानने का तरीका बताया है.

वे कहती हैं कि किसी को भावनात्मक रूप से प्रताडि़त करना भी घरेलू हिंसा है. इसलिए जरूरी है कि लक्षणों को तुरंत पहचान लिया जाए और उस व्यक्ति से दूरी बना ली जाए. यह समझाना जरूरी है कि उस व्यक्ति के कंट्रोल में रहना जरूरी नहीं है.

कंट्रोलिंग पार्टनर के कुछ लक्षण

  • अपने पार्टनर को बहुत अधिक प्यार करने का दिखावा कर उस से अपने मनमुताबिक काम करवाना. हालांकि  ये रिश्तों के शुरुआती लक्षण हैं.
  • पार्टनर की कामयाबी से ईर्ष्या करना.
  • गलत बरताव करना.
  • गुस्से में समान की तोड़फोड़ करना.
  • किसी भी बात के लिए पार्टनर को जिम्मेदार ठहराना.
  • आप को मानसिक रूप से कमजोर दिखाना.

एडिना का यह भी कहना है कि किसी भी रिलेशनशिप में सब से जरूरी बात है अपने खुद के आत्मसम्मान को गिरने न देना. अगर रिश्ते में आप दबाव या कंट्रोलिंग जैसा फील कर रहे हैं तो यह सही नहीं है.

अगर आप का पार्टनर बातबात पर आप पर ड़ाटता है, आप की बातों का उलटा जवाब देता है, आप पर चिल्लाता है या आप पर हाथ उठाता है तो सम?ा लीजिए कि यह एक टौक्सिक रिलेशनशिप की अलार्मिंग सिचुएशन है. अगर आप अपने रिश्ते में इन सब बातों को देखते हैं तो आप को इस रिश्ते के बारे में सोचने की जरूरत है.

एक रिश्ते में प्यार से ज्यादा जरूरी होता है एकदूसरे को सम?ाना, इज्जत देना. ये सब चीजें आप के रिलेशनशिप को खुशनुमा ही नहीं बनातीं, बल्कि रिश्ते हैल्दी भी बनते हैं. लेकिन इस के उलट, जब रिश्ते में एक पार्टनर दूसरे को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगे, आप को आप के परिवार से दूर करने की कोशिश करने लगे तो इस का यह मतलब है कि आप टौक्सिक रिलेशनशिप में जी रहे हैं.

इस के अलावा, अगर पार्टनर के कारण आप थका हुआ, टूटा हुआ, दुखी, असहाय जैसा महसूस करते हैं तो इस का साफ मतलब है कि आप टौक्सिक रिलेशनशिप में जी रहे हैं.

गलतफहमियां होना, रिश्ते में नोंकझोक या तनाव का आ जाना स्वाभाविक है. लेकिन जब आप को लगे कि आप उक्त रिश्ते में घुटन और जिल्लत महसूस कर रहे हैं, तब सोचने की जरूरत है.

अकसर देखा जाता है कि इंसान ऐसी स्थिति में खुद को ही बहलाने लगता है. पार्टनर की गलतियों पर परदा डालते हुए खुद को ही समझाने लगता है कि ‘अरे, तो क्या हो गया अगर उस ने गुस्से में दो बातें बोल ही दीं तो या मैं तो इसी लायक हूं,’ जैसी बातें उसे हिंसक व्यवहार करने को बढ़ावा देती हैं.

साथी अगर जरूरत से ज्यादा कंट्रोलिंग हो तो अपनी गलती मनाने के बजाय वह खुद को ही सम?ाता है कि यह तो उस का नेचर है और वह गलत नहीं है. हालांकि सच इस से उलट होता है. इसलिए समय रहते ऐसे रिश्ते से बाहर निकल जाने में ही भलाई है. हालांकि टौक्सिक रिश्ते से बाहर निकलना आसान नहीं है.

टौक्सिक रिलेशनशिप से बाहर निकलना मुश्किल क्यों ?

काउंसलर डा. तेजस्विली कुलकर्णी के मुताबिक, टौक्सिक रिलेशनशिप हमेशा टौक्सिक नहीं होता है. एक टौक्सिक रिलेशनशिप में पूरा समय बुरा व्यवहार या यातना भर नहीं होता है, बीच में अच्छे पल, प्यारभरे पल, भावनात्मक पल, प्रशंसा के पल भी होते हैं. कभीकभी उन अच्छे अनुभवों और भावनात्मक पल के कारण हमारे दिमाग को रिलेशनशिप की आदत हो जाती है.

लड़ाई के बाद जब पार्टनर दो मीठे बोल कह दे तो एक उम्मीद पैदा होती है कि वह बदल गया है और अब सब ठीक है. लेकिन यह मात्र एक भ्रम है, असल में वह बदला नहीं होता है.

अकेलेपन का डर भी एक कारण है कि ऐसे टौक्सिक रिलेशनशिप में रहने को मजबूर होते हैं आप. आप टूटने और अकेले रहने के बदले बुरे रिश्ते में रहना चुन लेते हैं. अगर आप को पता हो कि आप का परिवार और दोस्त आप के साथ हैं तो टौक्सिक रिलेशनशिप से बाहर निकलना आसान हो जाता है.

टौक्सिक रिश्ते से बाहर कैसे निकलें ?

पहले तो आप को यह स्वीकार करना होगा कि आप का पार्टनर बदला नहीं है, बल्कि बदलने और अच्छे बनने का नाटक कर रहा है. इसलिए कभी भी उस की गलतियों को कवर-अप करने की गलती न करें. माना कि हम सामने वाले को नहीं बदल सकते लेकिन अपना रास्ता तो बदल सकते हैं न? इसलिए भावना में बह कर उस की गलतियों पर परदा मत डालिए, बल्कि खुद के रास्ते अलग कर लीजिए क्योंकि इसी में आप की भलाई है.

वैसे, जहां तक हो सके रिश्ते को सुधार लेना सही है. लेकिन अगर आप का पार्टनर ही सुधरना नहीं चाहता और सोचता है वह अपनी जगह सही है तो फिर अपना अलग रास्ता चुन लें.

अपना आत्मसम्मान अपने हाथ

आप अपने पार्टनर से बहुत प्यार करती हैं तो इस का यह मतलब थोड़े ही है कि वह जैसे चाहे आप को जलील करे? आप को पहले खुद से प्यार करना सीखना होगा. आप किसी को भी यह अधिकार न दें कि वह जैसे चाहे आप के साथ बरताव करे और बदले में आप चुप रहें. आप के आत्मसम्मान को हर्ट करने का किसी को भी हक नहीं बनता.

अगर आप को किसी भी चीज से ठेस पहुंचती है या नकारात्मक असर हो तो उस से खुल कर कहें. खुद के लिए स्टैंड लें. जब आप अपनी सैल्फ रिस्पैक्ट और सैल्फ लव पर ध्यान देंगी तो खुदबखुद टौक्सिक रिश्ते से बाहर आने की हिम्मत आ जाएगी.

जब हम प्यार में होते हैं तो भौतिक चीजों या आर्थिक पक्षों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. जबकि रिश्तों में दरार की बहुत बड़ी वजह आर्थिक मसले भी होते हैं. श्रद्धा और आफताब के बीच ?ागड़े की वजह आर्थिक मसले भी थे. उन के बीच आएदिन इस बात को ले कर भी ?ागड़े होते थे कि घर का समान कौन खरीदेगा.

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

हर इंसान को जिंदगी एक बार ही मिलती है. इसीलिए उसे भरपूर हंसते हुए जी लेना चाहिए. इस डर से घुटघुट कर न मरते रहें कि अगर रिश्ता टूट गया तो आप कैसे जिएंगी? बल्कि यह सोचें कि एक टौक्सिक रिश्ते में रहने से अच्छा आप अकेली खुशीखुशी जी सकेंगी और वहां कोई आप को टौर्चर करने वाला नहीं होगा.

एक्सपर्ट की सलाह लें

टौक्सिक रिलेशनशिप में रहना न सिर्फ आप के निजी जीवन को बल्कि आप के प्रोफैशनल लाइफ पर भी बुरा असर डालता है. इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे टौक्सिक रिश्ते से छुटकारा के बारे में सोचने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह ले लें. बहुत सारे रिलेशनशिप काउंसलर होते हैं जो दोनों पक्षों की बात सुन कर कमजोर पहलुओं की ओर ध्यान देते हैं.

कैसे रखें अपना खयाल ?

रिश्ता चाहे कैसा भी हो, टूटने का दर्द तो होता ही है. लेकिन यहां आप को अपनी भावनाओं पर काबू रखना होगा. रिलेशनशिप एक्सपर्ट की मानें तो ऐसे रिश्ते से अगर निकलना ही एकमात्र तरीका बचे तो सब से पहले अपनी भावनाओं पर काबू पाना बेहद जरूरी हो जाता है. किसी भी रिश्ते में खुश रहने के लिए सब से पहले खुद को समय देना, खुद से प्यार करना जरूरी होता है. कई बार पार्टनर पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता हमें कमजोर बना देती है. इसलिए पार्टनर पर निर्भरता को कंट्रोल करें.

सोशल मीडिया डिटौक्स हों

एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसे समय में सोशल मीडिया से ब्रेक लेना सही फैसला है क्योंकि यह आप को उन दुखों और बुरी यादों की ओर धकेल सकता है. यह केवल आप की भावनाओं को आहत करने वाला है. ऐसे में इस से ब्रेक लेना सब से अच्छा काम है.

अपना खयाल रखें

आप को पता है कि आप से बेहतर आप का खयाल कोई नहीं रख सकता. अपना खयाल रखना हीलिंग का काम करेगा, खासकर उस समय जब आप स्ट्रैस में हैं. अच्छे स्वास्थ्य के लिए सही पोषक तत्त्व और अच्छी नींद लेना बहुत जरूरी है.

अपने परिवार व दोस्तों से मिलें

अपनों के आसपास होने से न केवल आप को अच्छा महसूस होगा, बल्कि यह आप के दुखों को भी कम करने में मदद करेगा. आप चाहें तो उन के साथ कहीं पिकनिक पर भी जा सकती हैं. यह आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा.

अपनी पसंद का काम करें

रिलेशनशिप एक्सपर्ट कहते हैं कि हम सभी में कोई न कोई हौबी होती है जिसे हम करना पसंद करते हैं. अपनी पसंद का काम हमें जीवन में स्फूर्ति देता है. ऐसा करने से आप के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा और आप पुरानी बातों को भूल पाएंगी.

डायरी लिखें

डायरी लिख कर आप अपने विचारों और भावनाओं को बाहर निकाल सकती हैं. आप के दिमाग में जो कुछ भी चल रहा और जिसे आप किसी के साथ शेयर नहीं कर सकतीं, उसे डायरी में लिखें. डायरी लिखना आप के तनावमुक्त करने में मदद कर सकता है.

इस बात को समझाना बहुत जरूरी है कि किसी भी रिश्ते को तोड़ना इतना आसान नहीं होता. लेकिन जब रिश्ते डसने लगें तो उस से अलग हो जाना ही बेहतर है और कहते हैं न, जो बीत गई सो बात गई. टौक्सिक रिश्तों को भुला कर अब आगे बढ़े और खुश रहें.

सुप्रीम कोर्ट के बदलते तेवर

15 अगस्त, 2023 को लालकिले की प्राचीर पर झंडारोहण करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता को संबोधित कर रहे थे. 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित समारोह को मनाने के लिए सामने की दीर्घा में देश की जानीमानी राजनीतिक हस्तियों और सम्मानित अतिथियों के बीच देश के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भी उपस्थित थे.

भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन की ओर देखते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में अदालती फैसले उपलब्ध कराने को ले कर सुप्रीम कोर्ट की सराहना की और धन्यवाद दिया तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी हाथ जोड़ कर मुसकराते हुए उन का अभिवादन किया.

उस दिन चंद सैकंड का यह दृश्य तमाम टीवी चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज था. वहीं कार्यक्रम की समाप्ति पर देश के गृहमंत्री अमित शाह से आमनासामना होने पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने हाथ जोड़ कर उन का भी अभिवादन किया तो बड़ अनमने ढंग से गृहमंत्री ने भी हाथ जोड़े और चलते बने.

इस दृश्य को भी तमाम कैमरों ने कैद किया. दरअसल जस्टिस चंद्रचूड़ जब से प्रधान न्यायाधीश की कुरसी पर विराजमान हुए हैं, उन्होंने अपने कई फैसलों और फटकारों से सरकार की नाक में दम कर रखा है. यही वजह है कि कुछ समय पहले जहां सरकार कलीजियम को ले कर सुप्रीम कोर्ट को आंखें दिखाने की कोशिश में थी, वहीं मणिपुर और नूंह की घटनाओं के बाद अब उस से आंखें मिलाने में उसे शर्म आ रही है.

ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब कलीजियम को ले कर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में जारी रस्साकशी को पूरा देश देख रहा था. उस वक्त भाजपा के कानून मंत्री रहे किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को ‘संविधान से परे’ और एलियन करार दे दिया था. जज चुने जाने की प्रक्रिया पर भाईभतीजावाद और ‘अंकल संस्कृति’ का आरोप मढ़ कर उन्होंने सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बाकायदा एक मुहिम शुरू कर दी थी.

फिर अचानक उन्हें कानून मंत्री की कुरसी से उतार कर गृह राज्यमंत्री बना दिया गया. अंदरखाने बात यह थी कि मोदी सरकार समझ गई थी कि रिजिजू की हरकतें सरकार पर भारी पड़ सकती हैं.

एक वक्त था जब देश के सब से बड़े न्याय के दरवाजे के आगे हर छोटेबड़े का सिर सम्मान से झुकता था. मगर मोदी सरकार सत्ता में आई तो उस ने सब को अपने अंगूठे के नीचे दबाने की नीति पर चलना शुरू किया. क्या पुलिस, क्या सीबीआई, क्या ईडी, क्या मीडिया सब को ऐसा काबू किया कि संविधान की शपथ खा कर बड़ेबड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भूल गए कि उन्हें देश के कानून और संविधान के अनुसार काम करना है, न कि किसी राजनीतिक पार्टी की सत्ता में बने रहने की लालसा को पूरा करने के लिए.

सरकार के रवैए को देखते हुए इधर कुछ अंधभक्तों और ट्रोल आर्मी ने भी सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट को ट्रोल करने की कोशिश की. हालांकि, उदार हृदय कोर्ट ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और कानून के दायरे में अपने फैसले करती रही. उन में से ज्यादातर सरकार के कान उमेठने वाले थे और लगातार सरकार को परेशान कर रहे थे. मुख्य मुद्दे जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की ये हैं:

  • समाजसेवी तीस्ता सीतलवाड़ की रिहाई का मामला.
  • गुजरात दंगे की पीडि़ता बिल्किस बानो के अपराधियों को जेल से रिहा किए जाने का मामला.
  • प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा को सेवाविस्तार देने का मामला.
  • उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में पूर्व सांसद अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की हत्या का मामला.
  • भाजपा नेता ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच का आदेश देने का मामला.
  • उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद हुए एनकाउंटर्स की रिपोर्ट तलब करना.

इन में से कई मामलों में सरकार की तरफ से जवाब दाखिल हो रहे थे, मगर जब मणिपुर की बर्बर घटना एक वीडियो के माध्यम से देश के सामने आई तो सुप्रीम कोर्ट के सब्र का प्याला छलक उठा.

सुप्रीम कोर्ट हैरान थी कि 4 महीने तक मणिपुर में एक समुदाय के खिलाफ आगजनी, हत्या, हिंसा, लूट और उन की औरतों को निर्वस्त्र कर उन की परेड निकालने का वीभत्स कांड जारी रहा, मगर मणिपुर के भाजपाई मुख्यमंत्री से ले कर उन का पूरा सरकारी तंत्र आंखों पर पट्टी व कानों में तेल डाले बैठा रहा.

चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ हैरान थे कि कैसे मणिपुर की पुलिस ने खुद दंगाइयों को आगजनी और ईसाई महिलाओं के साथ हिंसा, बलात्कार, नग्न परेड निकालने और फिर उन्हें मार डालने की खुली छूट दी. महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के वीडियो जब सोशल मीडिया पर जारी होने लगे और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने उन वीडियो को देखा तब चीफ जस्टिस औफ इंडिया को बड़े सख्त लहजे में कहना पड़ा, ‘अगर सरकार कोई ऐक्शन नहीं लेती है तो हमें लेना होगा.’

मोदी सरकार तो अब तक मामले को दबाए बैठी थी. भारत के गृहमंत्री उस दौरान कई बार मणिपुर का दौरा कर चुके थे. मगर मामले पर चुप्पी साधे बैठे थे. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उन्होंने जांच शुरू करवाने की बात मुंह से निकाली. मणिपुर की स्थिति से नाराज उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी थी, ‘2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने वाला वीडियो बहुत परेशान करने वाला है. पुलिस की जांच बहुत ही सुस्त है. प्राथमिकियां बहुत देर से दर्ज की गई हैं. गिरफ्तारियां नहीं की गईं और बयान तक दर्ज नहीं हुए हैं. राज्य में कानून व्यवस्था और संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो गई है.’

मणिपुर पीडि़ताओं को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से गठित सुप्रीम कोर्ट की अपनी कमेटी में जम्मूकश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रहीं गीता मित्तल हैं जो कमेटी की हैड हैं और उन के साथ 2 अन्य सदस्य रिटायर्ड जस्टिस शालिनी पी जोशी और जस्टिस आशा मेनन हैं. यह कमेटी मणिपुर में पीडि़तों की एफआईआर पर हो रही जांच की निगरानी के साथसाथ पीडि़तों के लिए हो रहे राहत कार्यों, उपचार, मुआवजे, पुनर्वास आदि कामों की जांच कर रही है.

अब कमेटी जैसेजैसे अपना काम आगे बढ़ा रही है, मणिपुर सरकार के ही नहीं, केंद्र सरकार के भी हाथपैर फूल रहे हैं.

दरअसल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत भाजपा पूरे देश में ध्रुवीकरण का खेल खेलना चाहती है. उस का पहला शिकार मणिपुर बना है, जहां ईसाई और मुसलिम धर्म को मानने वाले कुकी समुदाय पर मैतेई समुदाय के हिंदू दंगाइयों ने कहर बरपाया और सरकार व उस की पुलिस ने उन्हें ऐसा करने की खुली छूट दी.

उस के बाद हरियाणा के नूंह में दंगा हुआ जो मेवात सहित कई जिलों में फैल गया. मगर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैए के चलते इन पर जल्दी ही काबू पा लिया गया.

मोदी सरकार में कई राज्यों में गवर्नर रह चुके और भाजपा की राजनीति को लंबे समय से बहुत करीब से देखने वाले सत्यपाल मलिक के एक इंटरव्यू को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, जिस में उन्होंने कहा है कि ‘मोदीशाह सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं. 2019 के चुनावों के पहले पुलवामा हो गया था, जिस के बिना भाजपा नोटबंदी के कारण पैदा हुई अलोकप्रियता के कारण हारने की कगार पर थी. लेकिन पुलवामा के कारण मोदी को जीत मिली. अब 2024 के चुनावों में भी मोदीशाह को हार की आशंका सता रही है. ऐसे में फिर से कोई घटना हो जाए या जगहजगह दंगे भड़क जाएं तो कोई ताज्जुब की बात न होगी.’

सुप्रीम कोर्ट भी 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्र की मोदी सरकार और जो राज्य भाजपा शासित हैं, सब पर अपनी कड़ी नजर बनाए हुए है. इस के चलते सांप्रदायिक और अंधराष्ट्रवाद की लहर चला कर सत्ता में पहुंचने की भाजपा की कोशिश थोड़ी कमजोर पड़ गई है. वरना नूंह में मोनू मानेसर, बंटी जैसे बजरंग दल और विहिप के लोगों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से जिस तरह दंगे भड़काए गए, अगर सुप्रीम कोर्ट ऐक्शन में न आता तो पूरे देश में इन की पुनरावृत्ति होती.

नूंह में जब काफी दम लगाने के बाद भी दंगाई उन्माद नहीं भड़का पाए तो बौखलाहट में आ कर खट्टर सरकार ने नूंह की आम मुसलमान आबादी के घरों पर बुलडोजर चलवा दिया.

नूंह में हुए दंगों पर सरकार के खिलाफ सख्ती बरतने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि जहां भी हेट स्पीच होगी, उस से कानून के अनुसार निबटा जाएगा. हम इस बात पर ध्यान नहीं देंगे कि किस पक्ष ने क्या किया. हम नफरत फैलाने वाले भाषणों और उन लोगों से कानून के मुताबिक निबटेंगे.

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट लगातार महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों पर भी नजर बनाए हुए है. हाल ही में यौनहिंसा के संबंध में उस ने वक्तव्य दिया कि भीड़ दूसरे समुदाय को अधीनता का संदेश देने के लिए यौनहिंसा करती है और राज्य इसे रोकने के लिए बाध्य हैं.

10 अगस्त को अपने 36 पेजी एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को यौन अपराधों और हिंसा का शिकार बनाना पूरी तरह से अस्वीकार्य है और यह गरिमा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता के संवैधानिक मूल्यों का गंभीर उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि कि हेट क्राइम और हेट स्पीच पूरी तरह अस्वीकार्य है, आप देखें कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों.

महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रयास बेहद सराहनीय हैं. जो काम सरकार और उस की मशीनरी को करना चाहिए, उस का जिम्मा देश की सब से बड़ी अदालत ने अपने सिर लिया है. हाल ही में अपने एक फैसले में कोर्ट ने कहा है कि अब कोर्ट के भीतर महिलाओं के लिए वेश्या, रखैल, फूहड़, प्रोस्टिट्यूट, मिस्ट्रैस जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा.

कोर्ट ने लैंगिक रूढि़वादिता से निबटने के लिए बाकायदा एक हैंडबुक जारी की है, जिस में वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है. यह हैंडबुक वकीलों के साथसाथ जजों के लिए भी है. इस हैंडबुक में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे शब्द गलत क्यों हैं और वे मुकदमों को कैसे बिगाड़ते हैं.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस हैंडबुक को जारी करते हुए कहा, ‘‘महिला की गरिमा बनाए रखने के लिए यह जरूरी था.’’ उन्होंने यह भी कहा कि किसी महिला की पोशाक न तो उसे छूने का आमंत्रण है और न ही यौन संबंधों में संलग्न होने का इशारा है. किसी के चरित्र के बारे में उस के कपड़ों की पसंद या यौन संबंधों के इतिहास के आधार पर धारणाएं बनाना रूढि़वादी सोच है, इसे बदलना होगा.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभद्र और अपमानजनक पोस्ट को ले कर भी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रोल आर्मी को कड़ा संदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट करने वालों को सजा मिलनी जरूरी है.

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार की बैंच ने इस मामले में सख्ती दिखाते हुए कहा कि ऐसे लोग अब माफी मांग कर आपराधिक कार्यवाही से बच नहीं सकते हैं. उन्हें अपने किए का नतीजा भुगतना पड़ेगा.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ये तमाम फैसले भाजपा और संघ के लिए मुसीबत बन रहे हैं क्योंकि हेट स्पीच, ट्रोल आर्मी, सांप्रदायिक भाषण और दंगे भड़का कर महिलाओं को अपना शिकार बनाए बिना मिशन 2024 कैसे पूरा हो सकता है. ज्वलंत भाषणों पर अब सुप्रीम कोर्ट की पैनी नजर है. सरकार जहांजहां भी कुछ करतूत करने की कोशिश में है, सुप्रीम कोर्ट वहांवहां उस पर चोट कर रही है. इस से मोदी सरकार बौखलाई हुई है.

इधर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी कोर्ट काफी सख्ती बरत रही है. मोदी के गहन मित्र अडानी को ले कर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में कमेटी बना दी. अडानी-हिंडनबर्ग केस में जांच के लिए 6 सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी में रिटायर जस्टिस ए एम सप्रे के अलावा ओ पी भट्ट, जस्टिस के पी देवदत्त, के वी कामत, एन नीलकेणी, सोमेशेखर सुंदरेशन शामिल हैं. इन का काम जारी है.

कोर्ट की इस सख्ती से विपक्ष को ताकत और हौसला मिला है. हाल ही में मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को बड़ी राहत देते हुए न सिर्फ गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, बल्कि राहुल की 2 साल की सजा पर भी रोक लगा दी है. इस के तुरंत बाद जहां राहुल गांधी की सांसदी बहाल हो गई, वहीं उन्होंने इस बार अमेठी से चुनाव लड़ने का भी मन बना लिया है. इस से भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी के पांवतले जमीन हिल रही है क्योंकि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राहुल का ग्राफ काफी ऊंचा चल रहा है.

उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस संजय कुमार की बैंच ने गुजरात हाईकोर्ट से पूछा कि हम जानना चाहते हैं कि ट्रायल कोर्ट ने मामले में अधिकतम सजा क्यों दी? जज को फैसले में यह बात बतानी चाहिए थी. अगर जज ने एक साल ग्यारह महीने की सजा दी होती तो राहुल गांधी को सांसद होने से डिस्क्वालिफाई न किया जाता. अधिकतम सजा के चलते एक लोकसभा सीट बिना सांसद के रह गई. यह सिर्फ एक व्यक्ति के अधिकार का ही मामला नहीं है, यह उस सीट के वोटर्स के अधिकार से भी जुड़ा मसला है.

सुप्रीम कोर्ट के ऐसे रवैए और ऐसे फैसलों से केंद्र सरकार की हालत अब खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली हो गई है.

दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति और उन के कामकाज के मामले में भी शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की मंशा पर उंगली उठाई है. उस ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्ंिटग में केंद्र सरकार की दखलंदाजी पर कड़ी आपत्ति जताई है. इस मामले में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सीधा सवाल किया कि अगर दिल्ली में प्रशासन केंद्र सरकार के इशारे पर ही चलाया जाना है तो एक निर्वाचित सरकार होने का क्या मतलब है?

भाजपा नेता और ब्रजभूषण शरण सिंह को देश की ख्यात रेसलर्स के यौनशोषण मामले में बचाने के लिए पूरी पार्टी और पुलिस जिस तरह से लगी हुई थी, वह पूरे देश ने देखा. अगर जस्टिस चंद्रचूड़ इस मामले में ब्रजभूषण के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए न कहते तो लोगों को पता भी न लगता कि यह बाहुबली खेलों की आड़ में कर क्या रहा है.

सरकार की किरकिरी

केंद्र सरकार के चहेते अधिकारी संजय कुमार मिश्रा, जो वर्तमान में प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख हैं और सरकार के मिशन को आगे बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग देते रहे हैं, का सेवाविस्तार बारबार बढ़ाए जाने को ले कर भी सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा सख्त रुख इख्तियार किया है.

सरकार ने मिश्रा का कार्यकाल एक बार फिर अक्तूबर 2023 तक बढ़ाने की कोशिश की थी, मगर शीर्ष कोर्ट ने अपने फैसले में इसे छांट कर 15 सितंबर मध्यरात्रि तक कर दिया है. वह भी इस वजह से कि सरकार की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि- फाइनैंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स की समीक्षा प्रक्रिया के दौरान उन का पद पर बने रहना आवश्यक है और भारत के पड़ोसी देश लगातार प्रयास कर रहे हैं कि देश ग्रे सूची में चला जाए.

गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ कर रही है. पीठ ने कहा, ‘सामान्य परिस्थितियों में ऐसे आवेदन पर विचार नहीं किया जाता. विशेष रूप से तब जब 17 नवंबर, 2021 और 17 नवंबर, 2022 को जारी आदेशों के माध्यम से संजय मिश्रा को दिए कार्यकाल विस्तार को गैरकानूनी करार दिया जा चुका है.’

संजय मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने के केंद्र सरकार के अनुरोध पर कोर्ट ने बहुत तल्ख टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा, ‘क्या हम यह छवि पेश नहीं कर रहे हैं कि मिश्रा के अलावा और कोई नहीं है तथा पूरा विभाग अयोग्य लोगों से भरा पड़ा है? क्या यह विभाग का मनोबल तोड़ने जैसा नहीं है कि अगर एक व्यक्ति नहीं है तो विभाग काम नहीं कर सकता?’ न्यायमूर्ति गवई ने तो यहां तक कह दिया, ‘मैं भारत का प्रधान न्यायाधीश बनने वाला हूं, अगर मेरे साथ कुछ अप्रिय घटना हो जाए तो क्या सुप्रीम कोर्ट काम करना बंद कर देगा?’

पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ की हत्या पर कोर्ट सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल को प्रयागराज में लोकसभा के पूर्व सदस्य अतीक अहमद और उस के भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में हुई हत्या पर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को भी फटकार लगाई है और साफ कहा है कि इस हत्याकांड में किसी की मिलीभगत है. शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा- ‘अतीक की सुरक्षा में 5 से 10 हथियारबंद पुलिसकर्मी थे, कोई कैसे आ कर गोली मार सकता है? ऐसा कैसे हो सकता है?’

अदालत ने कहा, ‘अहमद ब्रदर्स की हत्या में पुलिस की भूमिका हो सकती है, वरना हत्या करने वालों को कैसे पता कि अतीक और अशरफ को कहां ले जाया जा रहा है. किसी की मिलीभगत है.’ इस के साथ ही पीठ ने गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद की बहन आयशा नूरी की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को एक नोटिस जारी करते हुए 2017 के बाद हुई 183 पुलिस मुठभेड़ों पर स्थिति रिपोर्ट मांग ली है. पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को 6 सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिस में इन मुठभेड़ों का विवरण, जांच की स्थिति, दायर आरोपपत्र, गिरफ्तारियां और मुकदमे की स्थिति का विवरण होगा. इस से योगी सरकार की परेशानी भी बढ़ गई है.

बिलकिस बानो मामले में गुजरात कोर्ट को घेरा

2002 में गुजरात दंगों के दौरान मुसलिम महिला बिलकिस बानो का गैंगरेप किया गया था, जबकि वह 5 माह की गर्भवती थी. इस के साथ ही उस की आंखों के सामने उस के घर के 7 सदस्यों को दंगाइयों ने कत्ल कर डाला था. इस मामले में तब सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहराया था और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. मगर गुजरात सरकार ने एक राहत कमेटी गठित कर उस की सिफारिश पर 2022 में 11 दोषियों की रिहाई करवा दी.

सरकार के फैसले को जब बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तो कोर्ट ने गुजरात सरकार को आड़ेहाथों लिया. कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि जब बिलकिस बानो के दोषियों को सजा ए मौत से कम यानी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी तो 14 साल की सजा काट कर वे कैसे रिहा हो गए? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सवालों की झड़ी लगा दी-

  • सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना ने पूछा, इस मामले में दोषियों के बीच भेदभाव क्यों किया गया? यानी पौलिसी का लाभ अलगअलग क्यों दिया गया?
  • 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत सिर्फ बिलकिस बानो के दोषियों को ही क्यों दी गई? बाकी कैदियों को क्यों नहीं इस का फायदा दिया गया? कोर्ट ने गुजरात सरकार से दोषियों को ‘चुनिंदा’ छूट नीति का लाभ देने पर सवाल उठाया और कहा कि तब तो सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को दिया जाना चाहिए. जब तमाम जेलें कैदियों से भरी पड़ी हैं, तो सुधार का मौका सिर्फ इन कैदियों को ही क्यों मिला?
  • सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से यह भी पूछा कि बिलकिस के दोषियों के लिए जेल एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी? और जब गोधरा की अदालत ने ट्रायल ही नहीं किया तो उस से राय क्यों मांगी गई?

दरअसल, बिलकिस के दोषियों को जेल से निकलवा कर सरकार अपनी दंगा आर्मी को संदेश देना चाहती थी कि हम बैठे हैं न बचाने के लिए. मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस घिनौनी मंशा को ताड़ लिया. इस मामले में सुनवाई अभी जारी है.

पिछले कुछ महीनों से चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने जिस दिलेरी से कानून के दायरे में सरकार की गलत नीतियों और आशाओं की धज्जियां उड़ाई हैं और उस को नसीहतें बांची हैं, उस से अन्य जजों की हिम्मत भी खुली है. जस्टिस चंद्रचूड़ के कार्यकाल में जो फैसले आए हैं वे लंबे समय तक याद रखे जाएंगे. इन फैसलों ने मोदी सरकार के सिस्टम को हिला दिया है. चुनाव में साम, दाम, दंड और भेद के नियम पर चल कर येकेनप्रकारेण सत्ता हथियाने के भगवा पार्टी के सपने को बड़ी ठेस पहुंची है.

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति

शीर्ष पद पर अपनी नियुक्ति के कुछ ही महीनों बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने चुनाव आयोग को ले कर मोदी सरकार को साफ संदेश दे दिया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के अपौइंटमैंट का तरीका बिलकुल ठीक नहीं है. मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयनप्रक्रिया को खारिज कर कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का भी वही तरीका होना चाहिए जो सीबीआई चीफ की नियुक्ति का है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बैंच ने अपने फैसले में कहा कि अब ये नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे. अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती थी.

सुप्रीम कोर्ट ने यह अवश्य कहा कि मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक संसद इस पर कानून न बना ले.

इसलिए मोदी सरकार 10 अगस्त को राज्यसभा में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक 2023 ले कर आ गई. मौजूदा विधेयक में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की एक प्रमुख बात को शामिल नहीं किया गया. मोदी सरकार की इस समिति में आयुक्तों के चयन के लिए प्रधानमंत्री हैं, लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं मगर चीफ जस्टिस औफ इंडिया का पत्ता साफ कर प्रधानमंत्री मोदी ने उन की जगह तीसरे सदस्य के तौर पर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल कर लिया है. इस कैबिनेट मंत्री को भी प्रधानमंत्री ही मनोनीत करेंगे.

यह सुप्रीम कोर्ट को सरकार का उत्तर है. देखना है जब इस कानून की संवैधानिकता की परीक्षा कोर्ट द्वारा होगी तो सुप्रीम कोर्ट कौन से तर्क लाता है.

मुझे माफ कर दो सुलेखा : भाग 2

मेरी बात सुन कर प्रतीक ने बेचारा सा मुंह बना लिया तो मु   झे हंसी आ गई. सम   झ गए वे कि मैं भी उन्हें छेड़ ही रही हूं, इसलिए वे भी हंस पड़े और बोले, ‘‘वैसे, कोई कह नहीं सकता कि तुम एक युवा बेटे की मां हो. आज भी तुम पर कई लड़के लट्टू हो जाएंगे.’’

‘‘हूं. लेकिन तुम ही नहीं सम   झते मु   झे. घर की मुरगी दाल बराबर,’’ बोल कर जब मैं ने ठंडी आह भरी तो प्रतीक जोर से हंस पड़े और बोले, ‘‘नहीं भई, ऐसी कोई बात नहीं है, बल्कि मैं तो सुलेखा के अलावा किसी को देखता तक नहीं.’’

‘‘अच्छा, ज्यादा    झूठ मत बोलो,’’ मैं ने कुहनी मारते हुए कहा, ‘‘खूब जानती हूं तुम मर्दों को. सुंदर महिला दिखी नहीं कि बीवी को भूल जाते हो.’’ पतिपत्नी में नोक   झोंक तो चलती रहती है, क्योंकि अगर यह न हो तो जिंदगी का मजा ही नहीं है. लेकिन, पटना जाने को ले कर मैं बहुत ही ज्यादा ऐक्साइटेड थी.

शादी के इन 21 सालों में शायद ही कभी ठीक से मायके में रही होऊंगी. जब भी गई 4-6 दिनों से ज्यादा नहीं रही. मां कहती भी हैं, जब भी जाती हूं, बस, मुंह दिखा कर आ जाती हूं. लेकिन क्या करूं, यहां प्रतीक को भी तो अकेला नहीं छोड़ सकती न. वैसे, प्रतीक भी कहां मेरे बगैर रह पाते हैं, तभी तो मु   झे वहां नहीं छोड़ते और साथ लेते आते हैं. भाभीबहन छेड़ते भी हैं कि प्रतीक मु   झे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए मु   झे कहीं छोड़ना नहीं चाहते. उन की बातों पर मैं शरमा जाती हूं. लेकिन, सच बात तो यह है कि मेरा भी उन के बिना मन नहीं लगता और यह बात मेरे मायके वाले अच्छे से जानते हैं.

‘‘क्या सोचने लग गईं?’’ प्रतीक ने मु   झे हिलाया तो मैं एकदम से हड़बड़ा गई. मैं ने उन्हें पटना ले जाने के लिए ‘थैंक यू’ कहा, तो बोले, ‘‘ऐसे थोड़े ही. इस के लिए तुम्हें मु   झे घूस देनी पड़ेगी.’’

‘‘घूस… तो अब आप घूस लेंगे? वह भी अपनी बीवी से? लेकिन, मैं ने तो सुना है कि बैंक वाले बड़े ईमानदार होते हैं,’’ बोल कर मैं हंस पड़ी तो प्रतीक भी हंसने लगे. जानती हूं इन की घूस, मतलब एक कप गरमागरम अदरक वाली चाय. सो, मैं बना कर ले आई और चाय पीतेपीते ही हम गप्पें मारने लगे.

अगले दिन शाम के 4 बजे हमारी फ्लाइट थी, इसलिए मैं घर का सारा काम समेट कर बाई को बुला कर उसे सारी सब्जियां और फ्रिज में रखे दूधदही वगैरह देते हुए बोली कि वह घर का खयाल रखे और पड़ोस से चाबी ले कर एकदो रोज में    झाड़ूपोंछा लगा जाए.

रास्तेभर मैं यह सोचसोच कर खुश हुए जा रही थी कि सब से मिलूंगी, मां के गले लगूंगी, पापा को देखूंगी और इस बार तो दादी के घर भी जाऊंगी. दादीदादा नहीं रहे पर वहां चाचाचाची तो हैं. ओह, कितना मजा आएगा न अपनों से मिल कर. वह गलीमहल्ला, जहां मेरा बचपन बीता. हमारा बगीचा, जिस में दूर तक फैले आम, बेर और बांस के पेड़, जहां मैं अपनी सखियों के साथ लुकाछिपी खेला करती थी, झूला झूलती थी.

मैं भूली नहीं हूं, कैसे पेड़ों पर कोयल, बुलबुल, तोते, गोरैया और कितने सारे पक्षियों का डेरा हुआ करता था. उन का कोलाहल मेरे मन को रोमांच से भर देता था. कैसे मैं उन पक्षियों की नकल उतारा करती थी.

वह सब याद कर मैं फिर से अपने बचपन में चली गई थी. मु   झे किसी बच्चे की तरह उतावले और चुलबुलाते देख प्रतीक मन ही मन मुसकराए जा रहे थे पर कुछ बोल नहीं रहे थे.

मैं ने दूर से ही देखा, एयरपोर्ट पर हमें लेने मम्मीपापा, भैयाभाभी सब आए थे. मां तो मु   झे देखते ही रोने लगी कि मैं कितनी दुबली हो गई हूं. हर मां को दूर रह रहा बच्चा दुबला ही लगता है. मां प्यार से मेरा चेहरा सहलाने लगी. पापा ने मु   झे अपने कलेजे से लगा लिया. भैया जा कर मेरी पसंद की मिठाई ले आए. उन्हें पता है कि मु   झे क्रीम चौप, जो कि बिहार की मिठाइयों में से एक है, बहुत पसंद है.

भाभी ने भी हमारे सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी. बैंक की तरफ से औडिटर को रहनेखाने की सब सुविधा होती है पर हम मां के घर ही रुके थे. माला भी आई थी. देररात तक हम बातें करते रहे. सोचा था, मां के घर जा कर खूब सोऊंगी पर अपनों से मिलने की खुशी मु   झे सोने ही नहीं दे रही थी.

प्रतीक के मम्मीपापा अब इस दुनिया में नहीं रहे. मां तो पहले ही मर चुकी थी,

4 साल पहले उन के पापा भी चल बसे. बड़े भाई और उन के परिवार है, जो भागलपुर में ही रहते है. लेकिन उन्हें अब हम से कुछ लेनादेना नहीं रहा. पूछते भी नहीं कि हम कैसे हैं? प्रतीक ही फोन करते हैं तो बातें होती हैं, वरना वह भी नहीं.

खैर, जो भी हो, हैं तो वे हमारे अपने ही और लड़ाई   झगड़ा किस परिवार में नहीं होता? इस से रिश्ते थोड़े ही टूट जाते हैं? जब मैं ने प्रतीक को सम   झाया तो वे भागलपुर जाने के लिए राजी हो गए. हम तो ट्रेन से जाने की सोच रहे थे, मगर पापा और भैया कहने लगे कि ट्रेन का कोई ठिक?ाना नहीं रहता कि कितनी लेट आएगी और कब पहुंचाएगी. इस से अच्छा है कि हम बाई रोड चले जाएं.

सच कहें तो मेरा भी यही मन था. अपनी गाड़ी से सफर करने का मजा ही कुछ और होता है. सो, हम पापा की गाड़ी से भागलपुर के लिए निकल गए. ड्राइवर था तो कोई दिक्कत नहीं थी. तीनों ब्रांच का औडिट हो चुका था. लेकिन लास्ट ब्रांच में कुछ काम बाकी रह गया था, जिसे पूरा कर हम उधर से ही भागलपुर के लिए निकलने वाले थे. रास्ते में प्रतीक कहने लगे कि मैनेजर साहब अच्छे आदमी हैं, सपोर्ट कर रहे हैं, वरना, इतनी जल्दी औडिट नहीं हो पाता.

‘‘प्रतीक, आप का जो भी काम है कर आइए, तब तक मैं गाड़ी में ही बैठती हूं,’’ मैं ने कहा, लेकिन प्रतीक कहने लगे कि हो सकता है समय ज्यादा लग जाए, इसलिए मैं उन के साथ चलूं. मैं गाड़ी से उतर कर प्रतीक के पीछेपीछे यह सोच कर चल पड़ी कि गाड़ी में बैठ कर बोर होने से अच्छा है कि वहीं जा कर बैठूं. लेकिन जब मैं ने मैनेजर की कुरसी पर नवीन को बैठे देखा तो सन्न रह गई. मु   झे तो जैसे काठ मार गया.

फटीफटी निगाहों से मैं उसे देखने लगी और वह भी, जो कुरसी पर बैठा था, मु   झे यों अचानक अपने सामने देख हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ. ‘नवीन… और यहां तो क्या यही इस ब्रांच का मैनेजर है और प्रतीक इसी की बात कर रहे थे?’

‘‘प्रतीक, मैं गाड़ी में ही बैठती हूं…’’ कह कर मैं    झटके से मुड़ी ही थी कि प्रतीक ने मेरा हाथ पकड़ लिया. ‘‘बस जरा सा ही काम है, साथ चलते हैं न,’’ आंखों के इशारे से प्रतीक ने कहा तो मैं ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई. लेकिन बता नहीं सकती कि उस पल में मैं एक सदी का दर्द    झेल रही थी. जो इंसान मु   झे अपने सपने में भी गवारा नहीं था, उसे प्रत्यक्ष अपने सामने देख मेरा कलेजा जल रहा था. गुस्सा तो मु   झे प्रतीक पर आ रहा था कि वे मु   झे यहां लाए ही क्यों.

हमारा परिचय कराते हुए प्रतीक बोले, ‘‘इन से मिलो, ये हैं इस ब्रांच के मैनेजर साहब, नवीन मिश्रा और ये हैं मेरी पत्नी, जीवनसंगिनी सुलेखा. वैसे, नवीन साहब, शायद आप नहीं जानते होंगे पर मेरी पत्नी एक लेखिका हैं. भई, बड़ा नाम है इन का,’’ मु   झे अपने कंधे से सटा कर प्रतीक बोले तो नवीन उन का मुंह ताकने लगा.

‘‘अरे, मैनेजर साहब, मेरी पत्नी की लिखी रचनाएं पूरी दुनिया में छपती हैं.’’

प्रतीक की बात सुन नवीन मु   झे भौचक्का सा देखने लगा. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रतीक जो बोल रहे हैं, सही है और जिसे वह एक मामूली लड़की सम   झ कर नकार चुका था, आज वह अपने नाम से जानी जाती है.

प्रतीक फाइलों पर साइन करते रहे और नवीन चोर नजरों से मु   झे देखता रहा. मैसेंजर टेबल पर चाय और बिस्कुट रख गया. मु   झे कुछ खानेपीने का मन नहीं हो रहा था. लग रहा था कि जल्दी यहां से निकलूं क्योंकि यहां मेरा दम घुट रहा था और नवीन जिस तरह से मु   झे देख रहा था, वह भी मु   झे अच्छा नहीं लग रहा था.

मैं जाने के लिए उठी ही थी कि प्रतीक कहने लगे, ‘‘बस और थोड़ी देर.’’

लेकिन अब मु   झे यहां एक पल भी नहीं रुकना था, सो मैं बाथरूम जाने का बहाना बना कर बाहर निकल आई और प्रतीक के आने का इंतजार करने लगी.

कुछ देर बाद प्रतीक के साथ नवीन भी बाहर आया तो मैं जा कर गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी का शीशा ऊपर चढ़ा कर यों ही मोबाइल चलाने लगी. मैं अंदर से ही देख रही थी, बात तो वह प्रतीक से कर रहा था पर उस की नजरें मेरी तरफ ही थीं. मु   झे गुस्सा प्रतीक पर आ रहा था कि कर क्या रहे हैं इतनी देर तक. शायद प्रतीक ने मेरे मन की बात को भांप लिया.

नवीन से हाथ मिला कर वे गाड़ी में आ कर बैठ गए. अगर ड्राइवर न होता तो जरूर पूछती कि मु   झे वहां ले कर क्यों गए? लेकिन फिर लगा, उन्हें क्या पता मेरे अतीत के बारे में.

‘‘अरे, क्या हुआ, चली क्यों आईं?’’ मेरे बगल में बैठते हुए प्रतीक बोले, ‘‘पता है तुम्हें, मैनेजर साहब तो अपनी ही बिरादरी के निकले.’’

कौन हारा : भाग 2

‘मैं ने तो सोच लिया है. तुम्हें सोचसमझ कर फैसला करना है. मुझे जल्दी नहीं है,’ सुधीर धीरे से मुसकराए थे.

‘पर मुझे है क्योंकि मेरी मां घर आए रिश्तों में से किसी को जल्दी ही ‘हां’ कहने वाली हैं,’ वैशाली शोख निगाहों से देखती मुसकराई थी.

‘ओह, तब तो फिर मुझे ही जल्दी कुछ करना होगा,’ उस के अंदाज पर वैशाली को हंसी आ गई थी.

दोनों जल्दी ही परिणयसूत्र में बंध गए थे. सारे शहर में इस विवाह की चर्चा रही और शायद उन के बीच बनने वाली दूरियों की नींव यहीं से पड़ गई थी. सुर्ख लहंगे, गहनों की चमक और मन की खुशी ने वैशाली की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे लेकिन उस के सामने सुधीर का व्यक्तित्व फीका पड़ रहा था. कुछ दोस्त ईर्ष्या छिपा नहीं पा रहे थे. ‘यार, किस्मत खुल गई तेरी तो, ऐसी खूबसूरत पत्नी? काश, हमारा नसीब भी ऐसा होता.’

तो कुछ दबी जबान से उस का मजाक भी उड़ा रहे थे, ‘हूर के पहलू में लंगूर’, और ‘कौए की चोंच में मोती’ जैसे शब्द भी उस के कान में पिघले शीशे की तरह उतर कर शादी के उत्साह को फीका कर गए थे.

शादी के बाद भी वैशाली आफिस जाती थी. सुधीर को भी उस की सहायता की जरूरत रहती थी. शहर के बड़े लोगों की पार्टियों में भी उन की उपस्थिति जरूरी समझी जाती थी. हालांकि वैशाली का संबंध मध्यम वर्ग से था लेकिन उस ने बहुत जल्दी ही ऊंचे वर्ग के लोगों में उठनाबैठना सीख लिया था. एक तो वह पहले से ही खूबसूरत थी उस पर दौलत व शोहरत ने उस पर दोगुना निखार ला दिया था. अच्छे कपड़ों, गहनों की चमक के साथ सुख और संतोष ने उस के चेहरे पर अजीब सी कशिश पैदा कर दी थी. मेकअप का सलीका, बातचीत का ढंग, चलनेबैठने में नजाकत, सबकुछ तो था उस में. लोग उस की तारीफ करते, उस के आसपास मंडराते और लोगों की निगाहों में अपने लिए तारीफ देख वह चहकती, खिलखिलाती घूमती. उसे इन सब बातों का नशा सा होने लगा था. कई दिनों तक कोई पार्टी नहीं होती तो वह अजीब सी बेचैनी महसूस करती.

‘कई दिनों से कोई पार्टी ही नहीं हुई. क्यों न हम ही अपने यहां पार्टी रख लें,’ वह सुधीर से कहती तो सुधीर संयत स्वर में उसे मना कर देता था.

वैशाली समझ नहीं पा रही थी कि पार्टियों में लोग उस की तारीफ करते हैं और उस के चारों तरफ मंडराते हैं वहीं दूसरी ओर सुधीर खुद को उपेक्षित महसूस कर हीनभावना में डूब जाता है और फिर उस का दिल पार्टी में नहीं लगता था. पिछले दिनों ऐसी ही किसी पार्टी में दोनों निमंत्रित थे. गहरी नीली शिफान की खूबसूरत सी साड़ी और सितारों से बनी चमकदार चोली और मैचिंग ज्वेलरी से सजी सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी.

‘वाह, क्या बात है. लगता ही नहीं कि आप 1 बच्चे की मां हैं और आप की शादी को 6 साल हो गए हैं. क्या राज है आप की खूबसूरती का?’ मिसेज चंदेल वैशाली से पूछ रही थीं.

‘इन का क्या है, ये तो एवरग्रीन हैं. इस का क्या राज है जरा हमें भी तो बताएं,’ मिसेज शर्मा मन में ईर्ष्या के साथ पूछ रही थीं.

‘अरे, राज की क्या बात है. नो टेंशन, सुकून की जिंदगी और भरपूर नींद, बस,’ वैशाली मन ही मन खुश होती बोली.

‘केवल इतना? यानी नो एक्सरसाइज, नो डायटिंग, न पार्लर के चक्कर?’ मिसेज चंदेल हैरान थीं.

‘अरे, और क्या?’ वैशाली साफ झूठ बोल गई. हालांकि अपनी खूबसूरती में चारचांद लगाए रखने के लिए वह नियम से महंगे ब्यूटीपार्लर में जाती थी. कम कैलोरी वाला संतुलित खाना और एक्सरसाइज सबकुछ उस के दैनिक जीवन में शामिल था.

‘किस्मत वाले हैं सुधीरजी, जो ऐसी खूबसूरत बीवी मिली.’

‘पता नहीं क्या देख कर शादी कर ली वैशाली ने सुधीर से?’

‘अरे, मर्दों का पैसा और साख देखी जाती है. बाकी बातों से क्या फर्क पड़ता है?’ ऐसी ही कुछ बातें चल रही थीं महिला मंडली में, जहां उस का ध्यान भी नहीं गया कि कब करीब से गुजर रहे सुधीर के कानों में ये बातें पड़ गईं और वह तरसता रह गया कि कब वैशाली उन को ऐसी बातों के लिए झिड़क दे या उस की तारीफ में कुछ कहे. और ऐसी ही बातों पर कई दिनों तक सुधीर का मूड उखड़ा ही रहता था.

जब वैशाली की दूसरी संतान के रूप में एक बेटी ने जन्म लिया तो उस ने चैन की सांस ली थी वरना उस का दिल धड़कता रहता था कि कहीं बच्चे पिता जैसी शक्लसूरत के हो गए तो…

बेटी के जन्म के कुछ समय बाद जब वैशाली आफिस जाने के लिए तैयार हुई तो सुधीर ने उसे मना कर दिया कि अब तुम घर रह कर ही बच्चों की देखभाल करो.

‘अरे, आया है न इस काम के लिए,’ वैशाली घर रुकने को तैयार नहीं थी.

‘पर मां से अच्छी देखभाल कोई नहीं कर सकता. दुनिया की तमाम स्त्रियां अपने बच्चों की देखभाल खुद करती हैं,’ सुधीर ने समझाया.

‘पर वे निचली, मिडिल क्लास की औरतें होती हैं,’ वैशाली जिद पर अड़ी थी.

‘तुम भी तो कभी उसी क्लास से आई थीं,’ सुधीर झुंझला कर कह गया.

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