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नेकी का फल

‘‘सर, कोई बहुत बड़े वकील साहब आप से मिलना चाहते हैं,’’ वार्ड बौय गणपत ने दरवाजा फटाक से खोलते हुए उत्सुकता व उत्कंठा से हांफते हुए कहा और उस की सांसें भी इस कारण फूली हुई थीं.

मैं ने हौल से ही खिड़की से देखा था कि कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के सामने बरगद के पेड़ के नीचे बड़ी व लग्जरी गाड़ी मर्सिडीज पार्क कर रहा था. शायद इस बड़ी गाड़ी के कारण गणपत नैसर्गिक रूप से गाड़ी में आने वाले व्यक्ति को बड़ा वकील मान रहा था.

मैं सम?ा नहीं पा रहा था कि कोई बड़ा सा वकील मुझ से क्यों मिलना चाहता है? सामान्यतया सरकारी अस्पताल में कभीकभार नसबंदी केस बिगड़ने पर मरीज के रिश्तेदार मुआवजे के लिए कोर्ट केस करते हैं पर उस के लिए सामान्यतया नोटिस मरीज के रिश्तेदार देने आते हैं.

‘‘हैलो डाक्टर साहब, माइसैल्फ एडवोकेट गुप्ता और ये मेरे असिस्टैंट हैं,’’ काले कोट वाली ड्रैस में सहज उन्होंने मेरे हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा.

‘‘बैठिए,’’ मैं ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘आप सोच रहे होंगे कि शहर से आए हुए वकील का आप से क्या काम होगा?’’ उन्होंने मेरे चेहरे को पढ़ते देख कर मुसकरा कर कहा.

‘‘निशंक,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘लीजिए चाय,’’ गणपत मेरे कहे बिना ही चाय ले कर आ गया. यह गणपत की सम?ादारी थी या फिर पूंजीवाद का असर?

‘‘यह दुर्गेश्वरीजी की वसीयत है,’’ फाइल हाथ में ले कर मेरी टेबल पर रख कर खोलते हुए वे बोले.

‘‘पर आप मुझे यह क्यों बता रहे हो? और दुर्गेश्वरीजी कौन हैं?’’ मैं ने हैरानगी से उन की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देख कर पूछा.

‘‘मैं आप को सब इसलिए बता रहा हूं कि दुर्गेश्वरीजी ने वसीयत में अपनी आधी संपत्ति, जिस में एक दोमंजिला मकान, लगभग एक किलो सोने के गहने आप के नाम किया है और आधी संपत्ति का मैडिकल ट्रस्ट बना कर आप को उस का मुख्य ट्रस्टी बनाया है,’’ वकील गुप्ता ने धड़ाका करते हुए आगे बताया, ‘‘दुर्गेश्वरीजी वही, आप की वह मरीज हैं जो आप के पास दुर्गा के नाम से इलाज कराने आती थीं.’’

मैं हैरान था. उन के पास उतनी संपत्ति कहां से आई, वे तो बहुत ही गरीब थीं, यहां तक कि उन के पास साधारण सी दवा खरीदने के भी पैसे नहीं होते थे.

‘‘पर वे खुद कहां हैं? काफी दिनों से हौस्पिटल भी नहीं आईं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में पूछा. मुझे अभी तक वकील साहब की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि पिछले 2 वर्षों से वे मुझ से सरकारी अस्पताल में इलाज करा रही थीं, मुझ से अच्छा उन की गरीबी को कौन जान सकता है.

‘‘सौरी सर, मुझे आप को बताते हुए दुख हो रहा है कि पिछले सप्ताह ही शहर के मशहूर अपोलो अस्पताल में उन का निधन हो गया,’’ वकील साहब ने दुखी स्वर में कहा.

‘‘ओह नो, वे मेरी सब से अच्छी मरीज थीं,’’ मैं ने दुखी स्वर में कहा.

मैं तो उन का संबधी हूं भी नहीं. फिर वसीयत मेरे नाम करने का मतलब क्या है. मैं अभी भी स्तब्ध व आश्चर्य में बुत बन गया था. जिस स्त्री ने मेरे नाम लाखों रुपए किए, उस का सही नाम तक मुझे पता नहीं.

मेरे चेहरे पर प्रश्न देख कर वे बोले, ‘‘मैं आप को पूरी बात बताता हूं जिस से आप सारी बात समझ सकें. मैं समझ सकता हूं कि आप के अंदर कई प्रश्न उठ रहे होंगे कि, आखिर सरकारी दवाखाने की मुहताज व छोटे से गांव में अकेले गरीबी में रहने वाली दुर्गेश्वरी कौन थीं? उन के पास इतनी सारी प्रौपर्टी कहां से आई? क्यों वे छोटे से गांव में रहती थीं?

‘‘दरअसल मैं उन के पति अखिलेश सिंह का बचपन का मित्र हूं. वे भी वकील थे और उन के पति भी मेरे साथ हाईकोर्ट में वकालत करते थे. 5 वर्षों पहले उन की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और उन का कोई बच्चा नहीं था.

‘‘वे अकेली हो गई थीं, भले ही उन के पति बहुत सारी संपत्ति छोड़ गए थे. उन के काफी रिश्तेदार उन की अकूत जायदाद के लिए आसपास मंडराते थे और जिन रिश्तेदारों को उन की जायदाद का लालच नहीं था वे उन की जवाबदारी लेने से हिचकिचाते थे कि कौन उन की जिंदगीभर जवाबदारियों का बोझ ले.

‘‘स्वार्थी रिश्तेदार उन की मृत्यु की कामना करने लगे और कई रिश्तेदार अपने बच्चे उन्हें गोद देने की जिद करने लगे. दुर्गेश्वरी पर दबाव बढ़ने लगा, एक पति बिन अकेली स्त्री, ऊपर से स्वार्थी रिश्तेदार.

‘‘एक रात उन्होंने अपने कानों से सुना कि उन की हत्या की योजना बन रही है. वे घबरा गईं और उन्हें अपने घर व शहर से भागना हितकर लगा.

‘‘इस देवकरण गांव में उन के बहुत दूर के एक रिश्तेदार रहते थे जिन के यहां शादी के किसी कार्यक्रम में बरसों पहले वे आई थीं.

‘‘वे दूसरे दिन सुबह कुछ गहने व रोकड़ रकम ले कर भाग कर यहां आ गई थीं. यहां अपने दूर के रिश्तेदार से ?ाठ बोला कि उन के पति की मृत्यु के बाद उन की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई और कोई रिश्तेदार उन्हें रखना नहीं चाहता है. इस कारण वे गांव में जिंदगी गुजारना चाहती हैं. वे लोग कृपया उन्हें छोटा सा मकान किराए पर दिला दें. रिश्तेदार भी अपने यहां रखना नहीं चाहते थे. उन्होंने पुराना सा वर्षों से बंद मकान बहुत ही कम किराए पर दिलाया.

‘‘यह छोटा सा मकान व गांव उन की हैसियत से बहुत ही छोटा था पर उन के जीवन के लिए सुरक्षित था. उस के बाद क्या हुआ, यह आप अच्छी तरह जानते हैं.

‘‘यहां आ कर कभी भी उन्होंने किसी को अपने पैसे व हैसियत के बारे में नहीं बताया. हमेशा जानबूझकर लाचार व गरीब की तरह जीवन बिताया और सरकारी योजना व अस्पताल का लाभ लिया.

‘‘थोड़े दिनों बाद सबकुछ शांत होने के बाद वे बीचबीच में शहर जाती थीं और अपनी जायदाद का ध्यान रखती थीं और वहां अपने रिश्तेदारों को यह बताती थीं कि उन्होंने सबकुछ दान में दे दिया है और एक अनाथालय में रह कर सेवाकार्य करती हैं.

‘‘यह सबकुछ सुन कर जो रिश्तेदार उन की संपत्ति के भूखे थे उन्होंने दुर्गेश्वरीजी को बहुत बुराभला कहा और हमेशा के लिए संबध तोड़ लिए और जिन रिश्तेदारों को उन की संपत्ति का मोह नहीं था, उन लोगों ने अब उन से संबंध रखना शुरू कर दिया.

‘‘अब वे भले ही थोड़ीबहुत तकलीफ में जी रही थी पर अब परिस्थतियां उन के अनुकूल और सुरक्षित हो गई थीं. कुछ महीने पहले जब शहर आई थीं तो उन्होंने मुझ से वसीयतनामा बनवाया और मुझे पूरी बात बताई कि क्यों वे आप के नाम अपनी संपत्ति करना चाहती हैं और मैं भी एक दिन गुपचुप यहां बीच में आया था और उन के फैसले से संतुष्ट हुआ था,’’ वकील गुप्ता ने उन्हें पूरी बात बताई.

‘‘पर मैं अभी तक यह समझ नहीं पा रहा हूं कि उन्होंने क्यों मुझे अपनी संपत्ति का वारिस बनाया? मैं अभी तक यह बात सम?ा नहीं पाया हूं,’’ मैं अभी तक हैरत में था.

‘‘वह आप इस पत्र को पढ़ कर ही समझ सकते हैं जो आप के नाम दुर्गेश्वरीजी ने तब लिखा था जब वे मेरे पास वसीयत बनाने आई थीं. उन्होंने मुझ से कहा था कि उन के मरने के बाद यह पत्र मैं आप को दूं,’’ वकील साहब ने सीलबंद हालत में एक लिफाफा मुझे दिया, जिस पर मेरा नाम लिखा था.

‘‘आप कब आ रहे हैं कोर्ट में ताकि प्रौपर्टी आप के नाम हैंडओवर हो सके,’’ वकील गुप्ता ने पूछा.

‘‘जब तक मैं पत्र पढ़ न लूं कि क्यों उन्होंने मुझे वारिसदार बनाया, तब तक मैं कैसे कुछ कहूं?’’

मैं ने पत्र खोल कर पढ़ा. बहुत ही खूबसूरत और सलीकेदार लिखावट थी जो कह रही थी कि वे बहुत ही पढ़ीलिखी महिला होंगी.

‘डाक्टर साहब,

‘मैं आप को डाक्टर साहब की जगह जीवन देने वाला कहूं तो गलत न होगा. न आप मेरे, बल्कि इस छोटे से पिछड़े गांव के कई गरीबों के उद्धारक हो. आप मेरा पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक मैं न सिर्फ गांव से बल्कि दुनिया से ही बहुत दूर जा चुकी हूंगी कि आप की दवा भी असर नहीं करेगी. सब को एक दिन जाना होता है और मैं भी जा रही हूं. सच बताऊं डाक्टर साहब, मैं शांति और संतुष्टि से जा रही हूं, क्योंकि जाने से पहले मैं अपने पति की मेहनत व ज्ञान से अर्जित संपत्ति आप के हाथों में दे कर जा रही हूं. जो न सिर्फ सच्चा हकदार है बल्कि उस धन का सदुपयोग भी करेगा और मानवता के काम में भी लगाएगा.

‘मुझे अब भी वे दिन याद हैं जब मैं पहली बार सरकारी अस्पताल आई थी. मैं पूरी रात बुखार से तप व कांप रही थी, उस दिन मैं शहर से वापस आई थी और रास्ते में बारिश के कारण पूरी तरह से भीग गई थी. रात को छोटे से गांव में डाक्टर नहीं होगा, यह सोच कर पूरी रात घर पर बुखार से तड़प रही थी. बहुत सुबहसुबह मैं यह सोच कर अस्पताल गई कि शायद नर्स या फिर वार्ड बौय हो जो मुझे दवा दे देगा जिस से कि मुझे थोड़ाबहुत आराम मिले. उस समय सुबह लगभग 8 बजे थे. देखा तो आश्चर्य हुआ कि सुबहसुबह केस बारी पर लंबी लाइन लगी हुई थी. घिसट कर मैं आप के चिकित्सा कक्ष में दाखिल हुई.

‘डाक्टर साहब, मुझे बहुत तेज बुखार है,’ मैं ने मरियल सी आवाज में दरवाजे का हैंडिल पकड़ते हुए कहा.

‘आप ने कुरसी से उठ कर मुझे उठाया और जोर से बोले, ‘गणपत, मांजी को इमरजैंसी रूम में ले कर जाओ.’

‘गणपत मुझे व्हीलचेयर पर इमरजैंसी रूम में ले गया जो आप के कक्ष के पास ही था. पीछेपीछे आप आए और मुझे जांच कर, नर्स को जरूरी इंजैक्शन व ग्लुकोज चढ़ाने को बोला. मैं इतने बुखार और अर्धबेहोशी में भी सुखद आश्चर्य में थी गांव के सरकारी डाक्टर का व्यवहार देख कर. आप के इंजैक्शन व इलाज से मैं दोपहर तक काफी ठीक हो गई थी. मैं प्यास से पानीपानी बोल रही थी कि किसी ने पानी का गिलास मेरे आगे किया. मैं ने गटागट बिना देखे पानी पिया. पानी के कारण शरीर को जान मिली तो मैं ने देखा कि एक डाक्टर मुझे पानी पिला रहा है. मैं झेप गई, बोली, डाक्टर साहब, आप ने पानी का गिलास दिया?’

‘हां, गणपत काम से बाहर गया है. आप पानी के लिए कह रही थीं,’ आप ने मुसकरा कर कहा था.

‘फिर आप ने मेरे परिवारों वालों के बारे में पूछा तो मैं ने कहा कि कोई नहीं है तो आप को मेरे खाने की चिंता हुई और आप ने चपरासी भेज कर अपने घर से मेरे लिए खाना मंगाया. सच कहूं उस दिन पहली बार मेरे पति के जाने के बाद, ‘मेरा कोई दुनिया में है’ यह महसूस हुआ, लगा कि इस गांव में आप के रूप में मेरी संतान की कमी को पूरी कर दिया.

‘मैं पूरे 4 साल से इस गांव में रह रही हूं और पूरे गांव वाले हमेशा आप की प्रंशसा करते रहते हैं कि आप के इस गांव के अस्पताल में आने के बाद गांववालों को छोटीमोटी बीमारियों के लिए शहर की ओर नहीं भागना पड़ता है. रात को भी किसी को इमरजैंसी हो तो भी आप मुसकराते हुए इलाज करते हैं. फिर भी आप को कई बार मरीजों को शहर भेजना पड़ता है क्योंकि आप के पास जरूरी साधन और दवाइयां नहीं होती हैं. मेरी बैंक में जमा रकम से मिलने वाले ब्याज से आप ट्रस्ट बना कर जरूरी दवाइयां और साधन ले कर आएं, जिस से मैं इस गांव के प्यार और सुरक्षा के बदले आभार जता सकूं.

‘आप भी दूसरे डाक्टरों की तरह शहर में नर्सिंगहोम खोल कर, प्रैक्टिस कर के लाखोंकरोड़ों कमा सकते थे, वैभवशाली जिंदगी जी सकते थे, खुद का बहुत बड़ा बंगला बना सकते थे, विदेश घूम सकते थे पर आप ने गांव में सेवा करने का प्रण लिया. यह महान कार्य आप जैसा आदमी ही कर सकता है.

‘अभी तक मुझे मेरे पति की संपत्ति के लिए हमेशा चिंता होती कि मेरे मरने के बाद यह गलत हाथों में जाएगी पर आप की मेरे और पूरे गांव की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा से मैं बहुत प्रभावित हूं और इसलिए फीस सम?ा कर ही मैं अपनी आधी संपत्ति आप के नाम पर कर के जा रही हूं.

‘आप की सब से फेवरेट मरीज, ‘दुर्गेश्वरी.’

‘‘वकील साहब, आज तक किसी बड़े से बड़े डाक्टर को इतनी फीस नहीं मिली जितनी मेरे को मिली है.’’ पत्र पढ़ कर मेरी आंखों से ?ार?ार आंसू बहने लगे.

एक घर ऐसा भी

वृद्धाश्रम के गेट पर कार रुकते ही बहू फूटफूट कर रोने लगी थी,”मांजी, प्लीज आप घर वापस चलो…’’ उस की सिसकियों की आवाज में आगे की बात गुम हो गई थी. मांजी ने अपनी बहू के सिर पर प्यार से हाथ फेरा,”बेटा, तुम उदास मत हो. मैं कोई तुम से रूठ कर थोड़ी न वृद्धाश्रम रहने आई हूं. मुझे यहां अच्छा लगता है.’’

‘‘नहीं मांजी, मैं आप के बगैर वहां कैसे रहूंगी.’’

कुसुम कुछ नहीं बोली. केवल अपनी बहू आरती के सिर को सहलाती रही. कार का दरवाजा विजय ने खोला था. उस ने सहारा दे कर अपने पिताजी को कार से बाहर निकाला फिर पीछे बैठी अपनी मां की ओर देखा. मां उस की पत्नी के सिर पर हाथ फेर रही थीं और आरती बिलखबिलख कर रो रही थी. उस की आंखें नम हो गईं.

‘‘मां, आप यहां कैसे रह पाएंगी. कुछ देर यहां घूम लो फिर हम साथ वापस लौट चलेंगे,’’ विजय ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया था ताकि उस की मां उस के बहते आंसुओं को न देख सकें. पर पिता की नजरों से उस के आंसू कैसे छिप सकते थे.

‘‘विजय, तुम रो रहे हो? अरे, हम तो यहां रहने आए हैं और कोई दूर भी नहीं है. जब मन करे यहां आ जाया करो. हम साथ में मिल कर यहां रह रहे बजुर्गों की सेवा करेंगे.’’

‘‘पर बाबूजी, आप लोगों के बगैर हमें अपना ही घर काटने को दौड़ेगा. हम आप के बगैर नहीं रह सकते,” विजय अपने पिता के कांधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगा.

कुछ देर शांति छाई रही फिर कुसुम ने अपने पति का हाथ पकड़ा और वृद्धाश्रम के गेट से अंदर हो गई. उन के पीछेपीछे आरती और विजय उन का सामान हाथ में उठाए चल रहे थे.

‘‘आरती, मांबाबूजी का सारा सामान अच्छी तरह से रख दिया था न?’’

‘‘हां, मैं ने मांजी से पूछ कर सामान बैग में जमा दिया था.’’

‘‘और वह मांजी की दवाई?’’

‘‘हां, वह भी कम से कम 2 महीनों के हिसाब से रख दी हैं. फिर जब हम आएंगे तो और लेते आएंगे.’’

मांबाबूजी को वृद्धाश्रम में छोड़ कर लौटने के पहले विजय ने वद्धाश्रम के मैनेजर से बात की थी और उन्हें बाबूजी की देखभाल करते रहने का अनुरोध किया था. वह कुछ पैसे भी उन के पास छोड़ कर आया था, ‘‘कभी जरूरत पड़े तो आप उन्हें दे देना, मेरा नाम बताए बगैर,” मैनेजर विजय को श्रद्धा के भाव से देख रहा था.

‘‘यहां जो भी बुजुर्ग आते हैं वे अपने बेटे और बहू द्वारा सताए हुए होते हैं पर तुम तो बिलकुल अलग ही हो, विजय.’’

‘‘मैं तो चाहता ही नहीं हूं कि मां और पिताजी यहां रहें. उन की ही जिद के कारण उन को यहां लाना पड़ा. मालूम नहीं हम से क्या अपराध हो गया है,” उस की आंखों से आंसू बह निकले.

मैंनेजर बोला, ‘‘तुमलोग जाओ, मैं उन का ध्यान रखूंगा.”

विजय और आरती भारी कदमों से वृद्धाश्रम से बाहर निकले. वे चाहते थे कि लौटते समय उक बार और मांजी से मिल लें पर आरती ने रोक दिया था.

कुसुम और केदार आश्रम की खिड़की के झरोखे से विजय और आरती को लौटते हुए देख रहे थे, ‘‘बहुत उदास हैं दोनों.”

“हां कुसुम, मगर हम ने उन्हें छोड़ कर कोई गलती तो नहीं की?’’ पहली बार केदार के चेहरे पर सिकन दिखाई दी थी. कुसुम ने पलट कर अपने पति की ओर देखा,”नहीं, हम कोई नाराज हो कर थोड़ी न आए हैं. जब हमें लगेगा कि यहां मन नहीं लग रहा है तब हम अपने घर लौट चलेंगे, कुसुम ने साड़ी के पल्लू से आंखें पोंछते हुए कहा.

केदार कुछ नहीं बोले. वृद्धाश्रम आने का निर्णय उन का ही था. वे ही तो गहेबगाहे इस आश्रम में आतेजाते रहते थे. उन का मित्र रंजीत यहां रह रहा था. रंजीत को तो उन का बेटा ही आश्रम में छोड़ गया था, ‘‘देखो पिताजी, आप हमारे साथ शूट नहीं होते इसलिए आप यहां रहें. जितना खर्चा लगेगा मैं देता रहूंगा…’’ रंजीत आवाक उस की ओर देख रहे थे, ‘‘बेटा इस में शूट नहीं होता का क्या मतलब? मांबाप तो अपने बेटों को पालते ही इसलिए हैं कि वे उन के बुढ़ापे का सहारा बनें.’’

‘‘होता होगा पर हमलोग आप के साथ ऐडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं,’’ रंजीत कुछ नहीं बोला और चुपचाप वृद्धाश्रम आने की तैयारी करने लगा. उन्होंने अपने मित्र रंजीत को जरूर बताया था, ‘‘यार, अब हम मिल नहीं पाएंगे.’’

केदार को आश्चर्य हुआ, ‘‘क्यों?’’

‘‘मेरा बेटा मुझे वृद्धाश्रम छोड़ रहा है…’’

‘‘वृद्धाश्रम… पर क्यों?’’ रंजीत कुछ नहीं बोला. केदार ने भी उसे नहीं उकेरा.

‘‘देखो रंजीत, हम तो मिलेंगे ही, यहां नहीं तो मैं वृद्धाश्रम आ कर मिलूंगा,’’अरे नहीं केदार, तुम्हारा बेटा तो हीरा है. तुम उस के साथ ऐंजौय करो.’’

रंजीत की आंखें बरस रहीं थीें. बहुत छिपाने के बाद भी उन की सिसकियां केदार तक चहुंच चुकी थीं. केदार ने रंजीत से मिलने वृद्धाश्राम जाना शुरू कर दिया था. वे दिनभर वहां रहते और रंजीत के दुख को हलका करते. वहां रह रहे और वृद्धजनों से भी मिलते. केदार जब भी वृद्धाश्रम जाते अपने साथ खानेपीने का कुछ न कुछ सामान ले कर जाते. सारे लोगों के साथ बैठ कर खाते और मस्ती करते. केदार को वृद्धाश्रम में अच्छा लगने लगा था. कई बारे वे अपनी पत्नी कुसुम को भी ले कर जाते .

‘‘विजय मुझे कुछ पैसे दोगे?’’

‘‘जी बाबूजी, कितन पैसे दूं?’’

‘‘यही कोई ₹5 लाख,” केदार बोल पङे.

‘‘जी बाबूजी, मैं चेक दे दूं कि नगद दूं?” केदार को इस बात पर जरा सा भी आश्चर्य नहीं हुआ था कि विजय ने उन से यह नहीं पूछा कि इतनी सारी रकम की उन्हें क्या जरूरत आ पड़ी है. विजय कभी भी अपने पिताजी से कोई सवाल करता ही नहीं था. वे जो कह देते उसे उन का आदेश मान कर तत्काल उस की पूर्ति कर देता था.

‘‘चेक दे दो.’’

‘‘जी बाबूजी,” विजय ने तुरंत ही चेक काट कर उन के हाथों में थमा दिया.

‘‘नालायक, यह तो पूछ लिया होता कि मुझे ₹5 क्यों चाहिए…’’

‘‘मैं आप से भला कैसे पूछ सकता हूं…आप को पैसे चाहिए तो कोई अच्छे काम के लिए ही चाहिए होंगे.’’

‘‘हां, वह तो ठीक है पर फिर भी मैं बता देता हूं. वहां एक वृद्धाश्रम है न… मैं वहां एक कमरा बनवा रहा हूं.”

‘‘जी, यह तो अच्छी बात है बाबूजी. और पैसे चाहिए हों तो बता देना…’’
विजय इस से अधिक कुछ और जानना भी नहीं चाहता था.

विजय उन का इकलौता बेटा था. उन्होंने उसे खूब पढ़ायालिखाया और उसे किसी चीज की कभी कमी नहीं होने दी. वे सरकारी अधिकारी थे तो शहरशहर उन का ट्रांसफर होता रहता. पर जब वे रिटायर्ड हुए तो अपनी जन्मभूमि में ही आ कर रहने लगे. विजय को पढ़ाया तो बहुत उसे इंजीनियर भी बना दिया पर उसे नौकरी पर नहीं जाने दिया. उन्होंने उस के लिए बड़ा सा व्यापार खुलवा दिया. व्यापार अच्छा चल रहा था. उस की शादी आरती से हुई. आरती बेटी बन कर ही घर आई. वे और कुसुम भी उसे बेटी की तरह ही प्यार करते और आरती भी उन्हें सासससुर न मान कर मांपिताजी ही मानती. विजय अपनी दुकान चला जाता और कुसुम और आरती अपने में ही उलझे रहते तो केदार अपने रंजीत के साथ अपना टाइम काटते. रात में सभी लोग एकसाथ खाने की टेबल पर बैठ कर खाना खाते और दिनभर की गतिविधियों की चर्चा करते. ऐसा कभीकभार ही होता जब रात में खाने की टेबल पर सभी साथ न हों.

“बाबूजी और अम्मां आप के साथ बैठ कर खाना न खाओ तो पेट ही नहीं भरता.’’

‘‘हां रे… बड़ा हो गया पर अभी भी छोटे बच्चे जैसा करता है. ले एक रोटी और ले…’’ कुसुम का लाड़ टपक पड़ता.

‘‘नहीं अम्मां, अच्छा दे ही दो… नहीं तो आप नाराज हो जाओगी…’’
कुसुम प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरतीं तो वह उन के आंचल से चिपक जाता.

केदार इस मामले में अपनेआप को बहुत खुशकिस्मत मानता कि भले ही उन के एक ही बेटा है पर वह बेटा श्रवण कुमार बन कर उन की सेवा करता है. केदार वृद्धाश्रम में रंजीत के साथ ही अपना ज्यादातर समय काटते. कई बार कुसुम भी उन के साथ वहां जाती. वृद्धाश्रम में उन का मन लगने लगा. केदार ने विजय से पैसे ले कर 2 कमरे बना लिए. एक कमरा तो उस ने रंजीत को रहने के लिए दे दिया पर दूसरा कमरा खाली ही था. उन्होंने वहां रह रहे वृद्धजनों से भी आग्रह किया पर वे अपने कमरों में खुश थे. वह कमरा बंद ही था. इस बंद कमरे को देख कर ही उन के मन में खयाल आया कि क्यों ने वे और कुसुम यहां रहने लगें और जैसे वे यहां रंजीत से मिलने आते हैं वैसे ही वे वहां विजय से मिलने चले जाया करेंगे. उन्होंने अपने विचारों को कुसुम के साथ भी साझा किया.

‘‘हां, यह तो अच्छी बात है पर विजय इस के लिए तैयार नहीं होगा और वह मेरी बेटी आरती…वह तो सारा घर अपने सिर पर उठा लेगी,” कुसुम जानती थी कि आरती उन से दूर नहीं रह सकती. वह आम बहुओं के जैसी थोड़ी न है जिन के लिए सास सिरदर्द होती हैं. केदार भी इस बात को जानते थे कि ऐसा संभव नहीं है पर प्रयास तो करना ही चाहिए.

केदार और कुसुम ने धीरेधीरे वृद्धाश्रम में अपनी उपस्थिति बढ़ा ली थी. कई बार तो वे रात वहीं रह भी जाते थे. विजय और आरती झुंझला जाते पर वे कुछ बोल नहीं पाते थे. विजय और आरती को अपने मातापिता का व्यवहार कुछ अजीब सा लगने लगा था,”आरती, कोई बात तो नहीं हो गई है? मांबाबूजी आजकल वृद्धाश्रम में कुछ ज्यादा ही समय दे रहे हैं…” उस के स्वर में चिंता साफ झलक रही थी.

‘‘नहीं तो, पर यह तो सच है कि वे अब वहां कुछ ज्यादा ही रुकने लगे हैं,’’
आरती का स्वर भी उदास था.

वे अपने मातापिता से कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. एक दिन उन के पिता ने ही उन से कह दिया था,”विजय, हम लोग सोच रहे हैं कि कुछ दिनों के लिए वृद्धाश्रम रहने चले जाएं,” विजय के साथ ही साथ आरती भी चौंक गई थी.

‘‘अरे बाबूजी, हम से कोई गलती हो गई क्या?’’ उस का चेहरा रुआंसा हो गया था.

‘‘नहीं… तुम तो मेरा बेटा है. तुझ से गलती हो ही नहीं सकती और हो भी जाए तो उस के लिए मेरे हाथ में डंडा है न,” केदारा जानते थे कि वे जब भी इस बात को कहेंगे तब ही विजय की प्रतिक्रया ऐसी ही आएगी.

‘‘फिर बाबूजी, आप वहां क्यों जाना चाहते हैं, अपने बेटे को छोड़ कर?’’

‘‘अपने बेटे को कैसे छोड़ सकते हैं हम. वहां केवल इसलिए जा रहे हैं ताकि हम जैसे लोगों के साथ अपना समय काट सकें. हमें वहां बहुत अच्छा लगता है इस कारण से भी.’’

‘‘यह क्या बात हुई बाबूजी…’’

‘‘तुम नहीं समझोगे, इतना समझ लो कि हम ने तय कर लिया है कि हम वहां जाएंगे.’’

‘‘मां को क्यों ले जा रहे हैं आप?’’

‘‘इस उम्र में मैं अपनी पत्नी से कैसे दूर रह सकता हूं? हम दोनों जाएंगे अब इस पर और कोई बात नहीं होगी,” जानबूझ कर केदार ने जोर से बोला था ताकि वे अपने बेटे के प्रश्नों से बच सकें. उन के पास उन प्रश्नों का कोई उत्तर था भी नहीं.

विजय की आंखों से आंसू बह निकले थे. आरती तो भाग कर अपने कमरे में जा कर सिसक रही थी, उस की सिसकियों की आवाज बाहर तक आ रही थी.

विजय और आरती अपने मातापिता के निर्णय को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने उन्हें बहुत समझाया भी पर वे नहीं माने तो अंततः उन्हें कुछ दिनों के लिए जा रहे हैं कि संभावनाओं के साथ वृद्धाश्रम छोड़ आए थे. केदार और कुसुम जानते थे कि विजय के लिए ऐसा करना कठिन होगा पर उन के पास और कोई विकल्प था भी नहीं. वे अपने बेटे और बहू के साथ रह तो बहुत अच्छी तरह से रहे थे, बेटा और बहु उन की बहुत ध्यान रखते भी थे पर इस के बाद भी वे एकाकी बने हुए थे. विजय से वे सीमित ही बात कर पाते थे और विजय भी उन से ज्यादा कुछ बोलता नहीं था. अमूमन यही स्थिति कुसुम की भी थी. वृद्धाश्रम में उन का एकाकीपन दूर हो जाता था. यहां वे बहस कर लेते लड़ लेते और मस्ती भी कर लेते थे. उन्होंने अपना सारा जीवन जिस शाही अंदाज में व्यतीत किया था वैसे जीवन से वे निराश हो चुके थे.

केदार और कुसुम को वृद्धाश्रम में रहते हुए 1 साल से अधिक का समय हो गया था. विजय और आरती नियमित उन से मिलने आते थे और कई बार वे फैस्टिवल पर उन्हें घर भी ले जाते थे, ‘‘आप के बिना तीजत्योहार अच्छे नहीं लगते. आप को चलना ही पड़ेगा,’’ आरती की जिद के आगे कुसुम समर्पण कर देती और वे 1-2 दिनों के लिए घर चले जाते पर तुरंत ही लौट कर आश्रम आ जाते. उन का मन आश्रम में अच्छी तरह लग चुका था. वे यहां मुक्तभाव से रहते थे. विजय और आरती ने भी धीरेधीरे अपनेआप को ढाल लिया था. आज ही वृद्धाश्रम के मैनेजर ने बताया था कि आरती बाथरूम में फिसल गई है और उस के पैरों में पलास्टर चढ़ा है. यह सुनते ही कुसुम की आंखों से आंसू बह निकले,‘‘अरे, विजय ने बताया ही नही,” उन की नारजगी अपने बेटे के प्रति बढ़ रही थी.

औटो उन के मकान के सामने आ कर रूक गया था. औटो से सब से पहले केदार उतरे फिर कुसुम. दोनों कुछ देर तक अपने मकान को यों ही देखते रहे. बहुत दिनों के बाद वे अपने घर आए थे. उन के हाथ में केवल एक ही थैला था. गेट को पार कर जैसे ही वे अंदर के कमरे की में पहुंचे उन्हें आरती बैड पर लेटी दिखाई दे गई. कुसुम ने बहू को निहारा. आरती कुछ दुबली लग रही थी. उस के पैर में बंधा पलास्टर दिखाई दे रहा था. कुसुम का वात्सल्य उमड़ आया,”बहू…” उस की आवाज में अपनत्व भरी मिठास थी. आरती को झपकी लग गई थी पर उस ने कदमों की आहट को सुन लिया पर जैसे ही उस के कानों में ‘बहू’ शब्द गूंजा वह हडबड़ा गई, ‘‘यह तो मांजी की आवाज है,” उस ने झट आंखें खोल लीं. मांजी को अपने सामने खड़ा देखा तो उस की आंखें बरस गईं. उस ने उठने की कोशिश की.

‘‘रहने दो बहू, सोई रहो…’’ कुसुम उस के सामने आ कर खड़ी हो गई थी.

‘‘कैसी हो बिटिया…’’ अब की बार केदार ने उसे पुकारा था.

‘‘बाबूजी…’’ आरती की सिसकियों भरी आवाज कमरे में गूंज गई.
विजय शायद अंदर था. वहीं उस ने आरती के सिसकने की आवाज सुनी थी. वह दौड़ कर बाहर आया तो सामने अपने पिताजी और मां को देखा.

‘‘अम्मां…बाबूजी…’’ वह उन से लिपट गया. केदार उसे अपने सीने से लगाए उस के सिर पर हाथ फेर रहे थे और कुसुम आरती के सिर को सहला रही थी.

‘‘अबे नालायक, जब बहू के पैर में फ्रैक्चर हो गया इस की सूचना भी तुम ने मुझे देना जरूरी नहीं समझा…’’ केदार की आवाज में कठोरता थी.

‘‘हां बेटा, तुझे हमें बताना चाहिए था. यह तो तेरी गलती है…’’ कुसुम का स्वर भी नाराजगी भरा था.

‘‘क्या करूं बाबूजी, अब मैं आप को तकलीफ नहीं देना चाहता था. आप को दुख होता यह सोच कर आप को नहीं बताया.’’

‘‘यह तो गलत है बेटा. मैं घर से भले ही दूर चला गया हूं पर तुम तो अपने से ही हमें दूर करने में लगे हो…’’ केदार का स्वर भीग गया था. बहुत देर तक दोनों सुखदुख की बातें करते रहे.

‘‘सुनो बेटा, अब कुसुम जब तक बहू के पैर का प्लास्टर नहीं उतर जाता तब तक यहीं रहेगी और मैं कल सुबह ही आश्रम चला जाऊंगा.’’

‘‘आप भी क्यों नहीं रुकते यहां. वैसे भी आपने बोला था कि आप कुछ दिनों के लिए ही आश्रम जा रहे हैं. अब तो बहुत दिन हो गए. नहीं बाबूजी, अब हम आप लोगों को नहीं जाने देंगे,’’ विजय ने जोर से केदार को जकड़ लिया था.

‘‘देखो बेटा, आश्रम तो हम को जाना ही होगा….हम ने वहां का कमरा थोड़ी न छोड़ा है… वैसे भी वहां रह रहे सभी लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे पर कुसुम अभी कुछ दिन यहीं रहेगी, आरती के स्वस्थ होने तक…’’ विजय कुछ नहीं बोला वह जानता था कि बाबूजी उस की बात नहीं मानेंगे.

सुबह जल्दी ही केदार अपना थैला उठा कर आश्रम की ओर चल दिए थे. जातेजाते कुसुम को बोल गए थे, ‘‘देखो बहू के स्वस्थ होते ही तुम आ जाना. वहां तुम्हारे बगैर मेरा मन नहीं लगेगा.’’

कुसुम के गालों में लालिमा दौड़ गई थी.

मराठा आरक्षण आंदोलन : जातीय गणना से मिली ताकत

बिहार में जिस तरह से जातीय गणना की गई उस का व्यापक असर दूसरे राज्यों में भी देखने को मिलने लगा है. जैसेजैसे लोकसभा के चुनाव आएंगे जातीय गणना की मांग जोर पकड़ने लगेगी. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तो जातीय गणना की मांग कर ही रही है, कांग्रेस ने भी इस को ले कर 1 करोड़ लोगों से समर्थनपत्र लिखवाने की तैयारी कर ली है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘जिस की जिनती संख्या भारी, उस को उतनी भागीदारी’ की बात उठानी शुरू कर दी है. महाराष्ट्र राज्य में मराठा आरक्षण की मांग भी इसी से जुड़ी हुई है. ‘मराठवाड़ा से महाराष्ट्र’ की यह जंग नया गुल खिलाएगी जो भाजपा के लिए 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव पर भारी पड़ेगा.

कोई नई मांग नहीं

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग नई नहीं है लेकिन वर्तमान समय में बिहार की जातीय गणना के बाद मराठा आरक्षण की मांग ने तेजी पकड़ी है जिस से राज्य में मराठा और ओबीसी आमनेसामने आ गए हैं. मराठा आरक्षण का समर्थन तो सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं. दिक्कत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण सीमा को बढ़ाने से इनकार किया हुआ है. मराठों को जब ओबीसी सीमा में आरक्षण दिया जा रहा तो ओबीसी नाराज हो रहे हैं. यह काम उन को अपने आरक्षण में हस्तक्षेप लग रहा है.

महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन जितना आगे बढ़ेगा सत्ताधारी भाजपा और शिवसेना शिंदे गुट को नुकसान होगा. मराठा आरक्षण आंदोलन के उग्र होते ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आंदोलन की अगुवाई करने वाले मनोज जरांगे पाटिल से बातचीत कर मसले का हल निकालने की शुरुआत की.

जातीय समीकरण

महाराष्ट्र में 3 प्रमुख वर्ग हैं- मराठा, ओबीसी और दलित, जो अब अपनेअपने अधिकार और आरक्षण को ले कर सजग हो गए हैं. ‘कुनबी’ का सवाल नया पेंच फंसा रहा है। एकनाथ शिंदे ने मनोज जरांगे को भरोसा दिलाया कि उन की सरकार जो आरक्षण देगी वह कानून की कसौटी पर खरा उतरेगा.

महाराष्ट्र सरकार ने ‘कुनबी जातीय प्रमाणपत्र’ वितरण के संबंध में ठोस निर्णय लेने का भरोसा भी दिलाया है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के आश्वासन के बाद मराठा आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल ने 7वें दिन पानी पी कर अनिश्चितकालीन अनशन को खत्म कर दिया.

भूख हङताल

मनोज जरांगे अंतरवली सराती गांव में भूख हड़ताल पर बैठे थे. सोमवार को जरांगे की हालत बिगड़ गई थी. इस के बाद राज्य में प्रदर्शनकारी उग्र हो गए थे. राज्य में तोड़फोड़ हो गई. इस के बाद यह पहल सरकार की तरफ से हुई. देखा जाए तो यह काम सरकार को पहले करना चाहिए था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण को ले कर क्यूरेटिव पीटिशन दाखिल की है. कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए कानूनी उपाय कर रही है.

जोरदार आंदोलन

2016 में मराठों को आरक्षण के लिए जोरदार आंदोलन हुआ था. राज्यभर में पूरे मराठा समाज की तरफ से तकरीबन 58 मोरचे निकाले गए थे. यह राज्य का सब से बड़ा प्रदर्शन था, जिस पर सरकार को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट जिस में मराठा समुदाय को 16% आरक्षण की सिफारिश की गई थी. इस के बाद समुदाय को आरक्षण देने के लिए मजबूर होना पड़ा था. मराठा महाराष्ट्र की एक प्रभावशाली जाति है. इस के लोग काफी समय से सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहे हैं.

महाराष्ट्र में मराठों को वर्चस्व रखने वाली जाति माना जाता है. किसी जाति को वर्चस्व रखने वाली जाति या डामिनेटेड कास्ट तब कहा जा सकता है जब उस की आबादी दूसरी जातियों से ज्यादा होती है और जब उस के पास मजबूत आर्थिक और राजनीतिक ताकत भी होती है.

एक बड़ा और ताकतवर जाति समूह आसानी से हावी हो सकता है अगर स्थानीय जातीय व्यवस्था में उस की स्थिति बहुत नीचे न हो. मराठों के साथ यह सब है. वह जातीय व्यवस्था में ‘बहुत नीचे’ नहीं हैं.

क्या है मांग

2016 में मराठों की 4 मांगें थीं- सरकारी नौकरी और सरकारी अनुदान से चलने वाले शिक्षा संस्थानों में आरक्षण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार कानून (1956) की कठोरता को कम करना, कोपर्डी कांड के दोषियों को सजा देना और स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करना. हालांकि आंदोलन के अंत तक सिर्फ पहली मांग ही बची रह गई थी.

महाराष्ट्र ने आयोग की सिफारिशों के आधार पर 29 नवंबर, 2018 को सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा वर्ग कानून, 2018 पारित किया, जिस से सरकारी अनुदान से चलने वाले महाराष्ट्र के शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में भरती में मराठों के लिए 16% आरक्षण दिया गया.

मराठों को 16% आरक्षण को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. हाई कोर्ट ने सरकार को आरक्षण को 16% के बजाय 12-13% करने का निर्देश दिया, जिस का 2018 में महाराष्ट्र विधानमंडल ने सर्वसम्मति से पालन किया.

कुनबी दरजा बहाल करने की मांग

इस बार के मराठा आंदोलन में नई मांग रखी गई है कि कुनबी का दरजा बहाल हो. कुनबी मूल रूप से ‘खेतिहर’ वर्ग के लोग थे, जिन्हें महाराष्ट्र की पारंपरिक व सामाजिक व्यवस्था में ‘शूद्र’ माना जाता था. मराठवाडा जब महाराष्ट्र में शामिल हुआ तो 1948 में इन की पहचान मराठों में बदल गई, जिस से इन को आरक्षण मिलना बंद हो गया. सितबंर, 1948 तक निजाम का शासन खत्म होने तक मराठाओं को कुनबी माना जाता था.

कुनबी की गणना ओबीसी में होती थी। इसलिए मराठा समुदाय के लोगों को फिर से कुनबी जाति का दरजा बहाल किए जाने और इस का प्रमाणपत्र फिर से जारी किए जाने की मांग उठ रही है.

कुनबी दरजा वापस मिलते ही उन को पिछड़ी जातियों वाला आरक्षण मिलने लगेगा. एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने की बात दोहराते हुए अपने काम भी गिना रही है, जो उस ने मराठों के लिए अब तक किया है.

मराठवाड़ा के मराठों के लिए कुनबी जाति प्रमाणपत्र अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण के लिए योग्य बनाने की बात कही है. महाराष्ट्र के जानकार लोगों का कहना है कि इन दोनों जातियों का अलगअलग समय पर उन के पेशे के हिसाब से नाम बदलता रहा है. जो लोग खेती का काम कर रहे हैं वे कुनबी हैं और जो देश की रक्षा के लिए हथियार उठाता है तो वह मराठा बन जाता है.

दूसरा सच

कुनबी मराठा का दूसरा सच यह भी है कि 96 कुली मराठा आमतौर पर अपनी जाति के अंदर शादी करने को सही मानते हैं. कुनबी के साथ शादी को समुदाय से बाहर की शादी माना जाता है. इस से यह लगता है कि यह अलगअलग जातियां हैं. एक अलग बात यह भी है कि आंदोलनकारी मराठा होने का दावा करते हुए भी कुनबी जाति के सर्टिफिकेट की मांग कर रहे हैं.

सवाल यह उठता है कि अगर यह सच है तो वर्ण विभाजन में कुनबी को ‘शूद्र’ और मराठा को ‘क्षत्रिय’ कैसे माना जाता है ? इस मसले को हल करने और जातीय गणना को करने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा स्थापित समिति बनी है. उस की रिपोर्ट अभी आई नहीं है. समिति ने 2 माह का समय मांगा है.

महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण को ले कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कोर्ट 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हुई, जिस ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत राज्य के मराठा आरक्षण कानून को अमान्य कर दिया था. सुनवाई के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं की गई है.

दबाव में सरकार

2024 में लोकसभा चुनाव के साथ ही साथ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी है. ऐसे में मराठा आरक्षण आंदोलन से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. यह आंदोलन जोर न पकड़ सके इस के पहले ही इस को शांत करना जरूरी था. ऐसे में एकनाथ शिंदे सरकार ने हर बात मान लेने में भलाई समझी.

मराठा आरक्षण की मांग करने वाले जारंगे पाटिल ने कुनबी ओबीसी जाति प्रमाणपत्र प्रदान करने की अलग मांग रख कर सरकार को परेशान करने वाला काम किया है. महाराष्ट्र में ओबीसी आबादी का 52% हैं. मराठों की आबादी लगभग 33% है. ऐसे में जिस की जितनी संख्या भारी उस को उतनी हिस्सेदारी के तहत अधिकार देने पड़ेंगे.

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय पहले से ही केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए प्रदान किए गए 10% आरक्षण का लाभ ले रहा है. सरकार के विरोधी नेता कह रहे हैं कि ओबीसी समुदाय में पहले से ही बहुत सारी जातियां हैं. अगर मराठों को इस में जोड़ा गया तो दिक्कत होगी.

ओबीसी समुदाय 1980 के दशक से ही बीजेपी के लिए अहम रहा है. गोपीनाथ मुंडे और एकनाथ जैसे नेताओं के कारण भाजपा को लाभ मिलता रहा है. कांग्रेस को इस से नुकसान हुआ था. अब ओबीसी का भाजपा से राजनीतिक मोहभंग हो रहा है. विरोधी दल इस का लाभ उठा सकते हैं.

महाराष्ट्र सरकार कुछ भी दावे करे मगर उस के लिए काम करना सरल नहीं है. सरकार को आरक्षण सीमा में संशोधन के लिए इसे केंद्र के पास ले जाना होगा. लेकिन अगर ऐसा होता है तो राजस्थान, गुजरात जैसे अन्य राज्य भी केंद्र के सामने ऐसी ही मांग रख सकते हैं. मराठों और ओबीसी के बीच आरक्षण को ले कर टकराव हो रहा है. ओबीसी अब तक बीजेपी के पीछे लामबंद हुए हैं, वे ज्यादातर उन के साथ रहेंगे तो मराठा वोट बंट जाएगा. भाजपा को इस का नुकसान उठाना होगा. मराठा आंदोलन का हल सरल नहीं है. जैसेजैसे जातीय गणना की मांग पूरे देश में जोर पकङेगी महाराष्ट्र भी उस आंदोलन में जुङ जाएगा।

फैट टमी : दवाओं से नहीं वर्कआउट से पाएं छुटकारा

क्या आप अपने पेट के बढ़ते आकार को ले कर चिंतित हैं? क्या टाइट फिटिंग वाली शर्ट और दूसरे तंग कपड़े पहनने में आप को शर्म महसूस होती है? भले ही आप इस बात से खुद को थोड़ा समझा सकें कि अकेले आप ही नहीं, बल्कि आबादी के एक बड़े हिस्से को बढ़ते पेट से परेशानी हो रही है, लेकिन अब समय आ गया है कि आप इस के बारे में कुछ सोचें. पेट की चरबी अस्वास्थ्यकर किस्म की वसा है और इस के चलते कई तरह की बीमारियां होने का खतरा है, जैसे कि ब्लडप्रैशर, शुगर, हृदय रोग और स्ट्रोक.

पेट के मोटापे को एकदो हफ्ते के अंदर कम कर पाना संभव नहीं है. कुछ लोग पेट की चरबी कम करने के लिए दवाएं लेते हैं. हालांकि, कोई भी दवा, चाहे वह सिंथैटिक हो या चिकित्सीय न्यूट्रास्यूटिकल पदार्थ से बनी हो, कई संभावित साइड इफैक्ट्स के अलावा जिस्म के कई अंगों व हार्मोनल फंक्शन को प्रभावित कर सकती है. इसलिए, काउंटर से खुद ही दवा या कोई दूसरा पदार्थ खरीद कर इस्तेमाल करना सेहत के लिए अच्छा नहीं है, भले ही पेट की वसा हटाने के लिए उस में कितने ही दावे क्यों न किए गए हों.

कमर के आसपास जमे फालतू फैट को कम करने की कुंजी है लगातार और पर्याप्त शारीरिक गतिविधि. व्यायाम आप को लंबे समय तक शरीर के वजन को बनाए रखने और चयापचय या मैटाबोलिज्म में सुधार करने में मदद करेगा. पेट की वसा को कम करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है.

स्वस्थ खाएं

किसी भी व्यायाम योजना के लिए पहला कदम है स्वस्थ भोजन का सेवन. अपने व्यायाम कार्यक्रम से ज्यादा से ज्यादा फायदा हासिल करने के लिए आहार में बुनियादी बदलाव करें. आप को केवल इतना करना है कि आहार में फिश, सेम, फलियां, दालें और डेयरी पदार्थ शामिल करें, ताकि ज्यादा मात्रा में प्रोटीन प्राप्त हो सके. चीनी और आलू, रिफाइंड आटा, इस से बने उत्पाद व चावल जैसे कुछ सरल कार्बोहाइड्रेट्स को कम करें. मैटाबोलिज्म को तेज करने के लिए कम मात्रा में भोजन करें, लेकिन ज्यादा बार खाएं.

कार्डियो वर्कआउट

अगला कदम शरीर की वसा जलाने की प्रक्रिया को तेज करना है. दिन में कम से कम 4-5 बार कार्डियो ऐक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या में शामिल करें. आप कार्डियोएरोबिक गतिविधियों, जैसे ट्रेडमिल, साइकिल चलाने, तेज चलने, दौड़ने, तैरने, जौगिंग और नृत्य करने जैसी कई श्रेणियों में से कुछ व्यायाम चुन सकते हैं. जुम्बा क्लासेस या नृत्य के किसी भी अन्य फौर्म में ऐडमिशन ले लें.

स्ट्रैंथ ट्रेनिंग

दिखावे की एब ट्रेनिंग से आगे बढ़ें. पिलाटेस पीठ और पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने वाली कोर ऐक्सरसाइज के सब से लोकप्रिय रूपों में से एक है. टमी वैक्यूम को आसान व ताकतवर कोर स्ट्रैंथ ऐक्सरसाइज माना जाता है.

स्टैबिलिटी ट्रेनिंग

स्थिरता प्रशिक्षण में वे व्यायाम शामिल होते हैं जो हिलनेडुलने वाली सतहों पर किए जाते हैं. इन में स्टैबिलिटी बौल पर वर्कआउट करना या यूनिलेटरल ऐक्सरसाइज शामिल हैं, जैसे वजन को केवल एक तरफ  से उठाना. एकतरफा कसरत का लक्ष्य आप को दैनिक जीवन की गतिविधियों के लिए तैयार करना है, जिन में हमेशा बांहों और पैरों का उपयोग नहीं होता है, जिस से आप के संतुलन में सुधार होता है और पीठ की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं.

कभीकभी पेट की चरबी हार्मोनल असंतुलन के कारण भी बढ़ जाती है. कई तरह के व्यायाम अंत:स्रावी ग्रंथियों को निशाना बनाते हैं और उन से निकलने वाले हार्मोंस को काबू में करते हैं. व्यायाम का अभ्यास करने में सांस पर ध्यान दिया जाता है. लगातार व्यायाम करें और अपनेआप को स्वस्थ रखें

: डा. दीपक वर्मा, लाइब्रेट प्लेटफौर्म, जनरल फिजीशियन

मैं भविष्य में क्या काम करूं ? कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिए

सवाल

मेरा नाम शरद है. मेरी उम्र 22 वर्ष है. मैं ने वाणिज्य में ग्रेजुएशन की है. मैं अकाउंटैंट का काम कर रहा हूं जिस से मैं संतुष्ट नहीं हूं. मेरा बौद्धिक स्तर ठीक है और सभी राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक मुद्दों की अच्छी समझ रखता हूं. समस्या यह है कि जानकारी होने के बावजूद मैं यहां से वहां भटकने को मजबूर हूं. न किसी विषय या प्रतियोगिता परीक्षा का अध्ययन हो पाता है और न ही कोई दूसरा विकल्प नजर आता है. सारा दिन सोशल मीडिया और औफिस में कट जाता है. नए विचार अंकुरित नहीं हो पा रहे हैं. समझ नहीं आता कि मैं किस काम के लिए बना हूं या आगे भविष्य में क्या करूं. कृपया मार्गदर्शन कीजिए.

जवाब

आपके कहेनुसार आप शिक्षित भी हैं और समझदार भी. परेशानी आप की नौकरी है जो आप को और आप के जीवन को उदासीन बना रही है. आप का यह प्रश्न कि आप को भविष्य में क्या करना चाहिए और आप किस लिए बने हैं, का जवाब आप के प्रश्न में ही छिपा है.

आप यदि लेखन में अच्छे हैं और विभिन्न मुद्दों पर अच्छी जानकारी रखते हैं तो आप लेखन के क्षेत्र में हाथ आजमा सकते हैं. साथ ही, आजकल ऐसी कई कंपनियां हैं जो लोगों को क्रिएटिव काम सिखा कर  नौकरी पर रखती हैं. वहां आप की शिक्षा, बुद्धि और पहले काम करने का एक्सपीरियंस भी काम आएगा.

यह सोचना कि ‘मैं कुछ नहीं कर सकता’ गलत है, कर आप बहुत कुछ सकते हैं पर आप उस कार्य को ढूंढ़ने की कोशिश नहीं कर रहे. गूगल पर आजकल ढेरों साइट्स हैं जो आप की कुशलता के आधार पर अनेक नौकरियां मुहैया कराती हैं. जौब्स की तलाश करें, और अप्लाई करें.सर

ग्लैमरस हीरोइनें अब नहीं रहीं शोपीस

फिल्म इंडस्ट्री के अब तक के सफर में हीरोइनों ने अपना सौ फीसदी योगदान दिया है. फिर चाहे वह नरगिस, वहीदा रहमान, मधुबाला, आशा पारेख, वैजयंती माला आदि पुरानी हीरोइनें हों या श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, जयाप्रदा, जूही चावला, काजोल आदि 90 के दशक की हीरोइनें हों, अब तक के फिल्मी इतिहास में इन सभी नामीगिरामी हीरोइनों ने अपनीअपनी अलग पहचान बनाई है और एक से एक बेहतरीन फिल्में दी हैं.

बावजूद इस के, फिल्म इंडस्ट्री को हीरोप्रधान इंडस्ट्री कहा गया. बेहतरीन अदाकारों के बावजूद हीरोइन का पारिश्रमिक हीरो से हमेशा कम रहा, भले ही कोई फिल्म हीरोइनप्रधान ही क्यों न हो. बाकी फिल्मों में भी हीरोइनें सिर्फ शोपीस वाले रोल में ही नजर आती थीं. उन के हिस्से में दोतीन रोमांटिक सीन, एकदो गाने और एकदो इमोशनल सीन ही होते थे. इतना ही नहीं, खूबसूरती और अभिनय की बेमिसाल मूरत होने के बावजूद हीरोइन का फिल्मी कैरियर बहुत ही छोटा होता था, जिस के चलते 10 साल के कैरियर के बाद ही उन को मां, भाभी और बहन के किरदार औफर होने लगते थे. इसी वजह से कई सारी हीरोइनें बकवास रोल करने के बजाय फिल्मों से संन्यास लेना बेहतर सम?ाती थीं.

कई सारी जानीमानी अभिनेत्रियों ने बेकार रोल करने के बजाय घर बैठना ज्यादा उचित सम?ा. लेकिन आज काफीकुछ बदल गया है. आज हीरोइनों के लिए खासतौर से रोल लिखे जा रहे हैं. बड़ा परदा, छोटा परदा या ओटीटी प्लेटफौर्म हो, आज खासतौर पर हीरोइनें दमदार किरदार निभा रही हैं जिस के चलते बौलीवुड हीरोइनें सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही हैं.

प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण के बाद अब आलिया भट्ट भी हौलीवुड फिल्म में काम कर रही हैं. आज की हीरोइन अपना किरदार देख कर ही फिल्में साइन करती हैं अगर रोल अच्छा नहीं है तो वे न बोलने में नहीं कतरातीं. अपने कैरियर और अपने किरदार को ले कर वे पूरी तरह सचेत हैं.

आज की हीरोइन जाती जिंदगी में भी अपने कैरियर की वजह से शादी को नहीं टालतीं. अनुष्का शर्मा, आलिया भट्ट, दीपिका पादुकोण जैसी कई सफल हीरोइनों ने अपने सफल कैरियर के दौरान ही शादी भी कर ली और बच्चा भी पैदा कर लिया. साथ ही, अपना कैरियर भी सफल बनाए रखा.

जाती जिंदगी में अपने परिवार को प्राथमिकता देने वाली ये सभी हीरोइनें फिल्मों में अभिनय के दौरान भी अपना 100 प्रतिशत देती हैं और यही वजह है कि शादीशुदा और मां होने के बावजूद ये सफल अभिनेत्रियां हैं. पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर-

शोहरत और अभिनय में बाजी मारने वाली अभिनेत्रियां

अपनी शर्तों पर जीने वाली ग्लैमरस और दमदार अभिनय का जादू बिखरने वाली आज की हीरोइन बिना किसी असुरक्षा की भावना के चलते या कोई जल्दबाजी न कर के अच्छे किरदारों का चुनाव करती हैं. सो, वे फिल्म में अच्छे अभिनय के लिए न सिर्फ लोगों का दिल जीतती हैं बल्कि कई सारे फिल्मी अवार्ड और राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीतती हैं. अभिनेत्री कंगना रनौत ने ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’, ‘क्वीन’ और ‘मणिकर्णिका’ के लिए, तब्बू ने ‘माचिस’ और ‘चांदनी बार’ के लिए, इस के अलावा शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, कोंकणा सेन शर्मा, विद्या बालन, प्रियंका चोपड़ा आदि कई बेहतरीन अभिनेत्रियों ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं.

वहीं, हाल ही में 69वां राष्ट्रीय पुरस्कार आलिया भट्ट ने ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए और कृति सेनन ने ‘मिमी’ के लिए हासिल किया. एक समय था जब कोई हिट हीरो अगर किसी फिल्म में स्पैशल मेहमान भूमिका में नजर आ जाता था तो उस फिल्म की सफलता में चारचांद लग जाते थे, लेकिन आज वही काम हीरोइनें भी कर रही हैं. जैसे, हाल ही में दीपिका पादुकोण ने जब मेहमान भूमिका के साथ फिल्म ‘जवान’ में एंट्री की तो उन्हें दर्शकों का ढेर सारा प्यार मिला.

इसी तरह माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, शिल्पा शेट्टी, करीना कपूर आदि हीरोइनें अगर किसी फिल्म में सिर्फ छोटे से रोल या एक आइटम सौंग में भी नजर आ जाती हैं तो उस फिल्म की सफलता में चारचांद लग जाते हैं.

गौरतलब है कि ‘जवान’ में दीपिका पादुकोण के किरदार को सब से ज्यादा पसंद किया गया, जबकि उन का रोल बहुत छोटा था और फिल्म में कई हीरोइनें थीं. इसी तरह फिल्म ‘पठान’ में भी दीपिका को बहुत पसंद किया गया.

हीरोइनों की दमदार भूमिकाएं 

‘पठान’ और ‘जवान’ की अपार सफलता के बाद दीपिका पादुकोण अभिनेता रितिक रोशन के साथ फिल्म ‘फाइटर’ में ऐक्शन पैक्ड भूमिका में नजर आएंगी. वहीं, कंगना रनौत साउथ की मिनिस्टर जयललिता की भूमिका निभाने के बाद फिल्म ‘इमरजैंसी’ में भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका में नजर आएंगी. इस के अलावा कंगना फिल्म ‘तेजस’ में भी दमदार किरदार में नजर आई हैं.

‘मिमी’ फेम व राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कृति सेनन आने वाली फिल्म ‘गणपत’ में टाइगर श्रौफ के साथ ऐक्शन शौट देती पावरफुल किरदार में नजर आईं. ‘टाइगर जिंदा है’ के बाद ‘टाइगर 3’ में कैटरीना कैफ आईएसआई एजेंट के रूप में खतरनाक स्टंट करती हुई नजर आएंगी. दिशा पाटनी आने वाली फिल्म ‘योद्धा’ में जासूस के रूप में ऐक्शन अवतार में नजर आएंगी.

आज की सब से प्रसिद्ध अभिनेत्री और ‘गंगूबाई’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता आलिया भट्ट हौलीवुड स्पाई ऐक्शन थ्रिलर फिल्म ‘हार्ट का स्टोन’ में एक अहम किरदार में नजर आएंगी जो कि पूरी तरह से खतरनाक ऐक्शन और स्टंट से भरपूर है. इस के अलावा अपनी ग्लैमर इमेज के विपरीत शिल्पा शेट्टी फिल्म ‘सुखी’ में एक अलग तरह के किरदार में नजर आईं. चूंकि यह समय हीरोइनों के लिए अच्छा चल रहा है, इसलिए उन के लिए खासतौर पर अच्छे किरदार लिखे जा रहे हैं.

लिहाजा, साउथ की हीरोइनें भी हिंदी फिल्मों की तरफ प्रस्थान कर रही हैं. हाल ही में साउथ की प्रसिद्ध अभिनेत्री नयनतारा शाहरुख खान की फिल्म ‘जवान’ में जबरदस्त भूमिका में ऐक्शन करती हुई नजर आईं. इसी तरह साउथ की अन्य हीरोइन राशि खन्ना शाहिद कपूर के साथ वैब सीरीज ‘फर्जी’ करने के बाद अब सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ फिल्म ‘योद्धा’ में एक दमदार किरदार में नजर आएंगी. इस के अलावा साउथ की अन्य हीरोइनें समांथा प्रभु, तमन्ना, रश्मिका मंदाना भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में फिल्में कर के अपनी अलग पहचान बन चुकी हैं. ये सभी हीरोइनें आने वाली कुछ फिल्मों में भी नजर आने वाली हैं.

माइनिंग मजदूरों के रेस्क्यू पर आधारित मिशन रानीगंज

अक्षय कुमार को उस की खिलाड़ी फिल्मों की वजह से जाना जाता है. उस ने 1992 में ‘खिलाड़ी’ सीरीज की पहली फिल्म की, जो सस्पैंस थ्रिलर फिल्म थी. उस फिल्म में अक्षय ने खुद को खिलाड़ी हीरो के नाम से स्थापित कर लिया.

कई सफल फिल्मों के बाद जब उस की फिल्मों का ग्राफ नीचे गिरने लगा तो उस ने रोहित शेट्टी के साथ ‘सूर्यवंशी’ फिल्म की. उस के बाद भी उस की कई सारी फिल्में फ्लौप होने लगीं जिन में ‘सैल्फी’ प्रमुख है.

अक्षय कुमार अब बूढ़ा होने लगा है. अपने बुढ़ापे को देखते हुए उस ने भगवा गैंग का दामन थाम लिया और ऐसे किरदार करने शुरू कर दिए जो सरकार और मोदी को सुहाते हैं. उस के किरदारों में किसी खूंखार आतंकवादी को विदेश से पकड़ लेने का रोल था तो कहीं उस ने टौयलेट स्कीम को आगे बढ़ाया.

वह हर किरदार ऐसा करने लगा है जिस से प्रधानमंत्री मोदी की कृपादृष्टि उस पर बनी रहे. कभी वह लोगों को बचाने का किरदार निभाता तो कभी ऐसे किरदार करता जिस से उसे दर्शकों की तालियां मिलें, वह प्रधानमंत्री का चहेता बन पाए.

हाल ही में उस की नई फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ आई है. यह फिल्म विकट परिस्थितियों में विपदा को टालने के लिए एकजुट हुए लोगों की कहानी कहती है. यह फिल्म जीने का हौसला रखने और सामने खड़ी हार को जीत में बदल देने के लिए दर्शकों के साथसाथ भगवा गैंग में लोगों को भी अपने साथ जोड़े रखने का अच्छा प्रयास है.

अक्षय कुमार ने हाल ही में आई ‘ओएमजी-2’ में शिव का किरदार निभाया. यह किरदार एकदम फ्लौप गया. इस फिल्म के साथसाथ हाल ही में आई अक्षय कुमार की आधा दर्जन फिल्में फ्लौप हो चुकी हैं. इन दिनों वह सोलो फिल्में करने से बच रहा है.

फिल्म की कहानी पश्चिम बंगाल के जांबाज माइनिंग इंजीनियर जसवंत गिल की है, जिस ने 1989 में अपनी जान की बाजी लगा कर कोयले की खदान में फंसे माइनिंग मजूदरों की जानें बचाई थीं.

कहानी की शुरुआत होती है नवंबर 1989 से जब सुबहसुबह पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महावीर कोयला खदान में 65 मजदूरों के फंसने की खबर आती है. अपने नियमित कामकाज के तहत लगभग 250 मजदूर खदान में गए थे. खदान में होने वाले विस्फोट के कारण वहां बाढ़ आ जाती है. 179 मजदूर किसी तरह अपनी जान बचा कर खदान से निकलने में कामयाब हो जाते हैं. जबकि, 65 मजदूर वहीं धंसे रह जाते हैं. खदान में तेजी से भरते पानी के कारण 6 मजदूर अपनी जानें गवां बैठते हैं. पूरे इलाके में मजदूरों के परिवारों में हाहाकार मच जाता है.

अब कहानी में माइनिंग इंजीनियर जसवंत गिल (अक्षय कुमार) की एंट्री होती है. जसवंत गिल की शादी परिणीति चोपड़ा से हो चुकी है. वह पिता बनने वाला है. यहां जसवंत गिल अपने धर्म को निभाने आया है. खदान में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने की सारी तरकीबें नाकामयाब होती नजर आती हैं. तब जसवंत सिंह अफसरों को एक तरकीब बताता है जो मजदूरों के लिए पहली बार इस्तेमाल की जाती है.

वह जमीन में गहरा गड्ढा खोद कर विशेष रूप से तैयार किए कैप्सूल के जरिए रेस्क्यू प्लान बनाता है. 3 दिनों तक चलने वाले इस मिशन में उसे लोकल पौलिटिक्स का शिकार होना पड़ता है. उस के इस रेस्क्यू को नाकाम करने की कोशिश की जाती है. खदान में पानी का स्तर बढ़ने लगता है. मगर गिल अपनी जान को जोखिम में डाल कर इस मिशन को अंजाम देता है.

यह देश के सब से मुश्किल रेस्क्यू को अंजाम देने वाला और सच्चा नायक साबित होता है. मजदूरों की जान बचाने के एवज में 1991 में जसवंत गिल को उस की बहादुरी के लिए राष्ट्रपति की ओर से सर्वोत्तम जीवन रक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आज भी हर साल 16 नवंबर के दिन को रेस्क्यू डे उत्साह के रूप में मनाया जाता है.

फिल्म शुरुआत से कोयला खदानों का हलका सा परिचय देने के बाद प्रमुख पात्रों से मिलवाती है. कुछ ही मिनटों में यह हादसा होता है जब खदान में पानी भरने लगता है और यहां से शुरू हो कर फिल्म कहीं थमती नहीं है. निर्देशक टीनू सुरेश देसाई लंबे समय बाद यह फिल्म ले कर आया है. हालांकि फिल्म काफी हलके किस्म की है, फिर भी यह दर्शकों के दिमाग पर छा जाती है.

अक्षय कुमार इस बार जसवंत गिल की भूमिका में है. परिणीति चोपड़ा के हिस्से में कुछ ही सीन आए हैं. सच्ची घटना पर आधारित इस फिल्म की कहानी बनावटी लगती है. निर्माता वासु भगनानी के बिट्रेन में बने स्टूडियो में यह फिल्म शूट की गई है. फिल्म के किसी असली कोयला खदान में शूट न किए जाने के चलते इस का असर हलका पड़ा है.

फिल्म के संवाद कमजोर हैं. कुमार विश्वास के लिखे और गाए गाने के अलावा इस का कोई गाना असरदार नहीं है. परिणीति चोपड़ा के हिस्से 2 गाने और 4-5 दृश्य ही आए हैं. फिल्म की लंबाई ज्यादा है और मनोरंजन की कमी इस में खटकती है. पहले हिस्से में थ्रिल है. इंटरवल के बाद कहानी मानवीय संवेदनाओं के ईदगिर्द घूमने लगती है.

बाढ़ वाले दृश्यों में वीएफएक्स हालत की भयावहता को दर्शाने में कम असर डाल पाता है. कोयले की खदान का सैट भी प्रभावशाली नहीं है. अक्षय कुमार सरदार के गेटअप में है.

फिल्मों में Kamal Haasan को कब और कैसे मिला ब्रेक ? जानें एक्टर के फिल्मी सफर के बारे में

kamal Haasan Filmy Career : अभिनेता से राजनेता बने ”कमल हासन” को आज किसी परिचय की जरूरत नहीं है. उन्होंने बहुत ही कम समय में फिल्मों से लेकर राजनीति में अपनी पकड़ बनाई हैं. एक्टर ने दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम करने के साथ-साथ हिंदी और बंगाली फिल्मों में भी काम किया है. इस हिसाब से अब तक ”कमल” 220 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके हैं. इसके अलावा एक अभिनेता के तौर पर उन्हें चार बार ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’, निर्माता के रूप में एक ‘नेशनल अवॉर्ड’ और 10 स्टेट अवॉर्ड मिल चुके हैं. इसी के साथ उन्हें ‘पद्मश्री’ और ‘पद्म भूषण’ जैसे नागरिक सम्मान से भी नवाजा गया हैं. तो आइए जानते हैं एक्टर ”कमल हासन” (kamal Haasan filmy Career) के फिल्मी सफर के बारे में.

बचपन से ही एक्टिंग के शौकीन थे अभिनेता

आपको बता दें कि एक्टर ”कमल हासन” (kamal Haasan filmy Career) का जन्म तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के परमाक्कुडी में हुआ था जबकि चेन्नई में वे पले बढ़े हैं. वो अपने घर में सबसे छोटे थे. हालांकि मात्र छह साल की उम्र में ही उन्होंने अभिनय करना शुरू कर दिया था. ”कमल” की बचपन से ही फिल्मों में बहुत दिलचस्पी थी. इसलिए एक दिन वो अपने बड़े भाई के साथ ‘एवीएम स्टूडियो’ गए. जहां स्टूडियो के संस्थापक ‘एवी मेयप्पा चेट्टियार’ से उनकी मुलाकात हुई. मुलाकात के बाद ‘चेट्टियार’ ने उन्हें फिल्म ‘कालाथुर कानम्मा’ में एक छोटा सा रोल करने का मौका दिया और ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई. वहीं ”कमल” ने फिल्म में वो रोल इतने अच्छे से निभाया था कि इस रोल के लिए उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ बाल अभिनेता’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.

दसवीं के बाद कमल ने क्यों छोड़ दी थी पढ़ाई ?

फिल्म ‘कालाथुर कानम्मा’ की अपार सफलता के बाद ”कमल हासन” को कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला. लेकिन कुछ सालों बाद ही एक बाल कलाकार के रूप में उनका करियर समाप्त हो गया. हालांकि इस बीच वो पढ़ाई भी कर रहे थे. फिल्मों में काम नहीं मिलने के चलते उन्होंने अब अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था. लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने डांस सीखना शुरू कर दिया.

इसके लिए एक्टर ने एक ड्रामा ग्रुप ज्वाइन किया. फिर इसी बाच उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया और दसवीं के बाद स्कूल छोड़ दिया. पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर ‘शिवालय’ नाम का एक डांस ग्रुप बनाया पर काम न मिलने की वजह से कुछ महीनों में ही ये समूह टूट गया. इसके बाद ”कमल हासन” (kamal Haasan filmy Career) थंगप्पम मास्टर के डांस ट्रूप में जुड़ गए. जहां उन्होंने एक सहायक के रूप में काम किया. इसी बीच उन्हें फिल्म ‘मानवम’ में काम करने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने एक गीत पर नृत्य किया. उनके नृत्य को लोगों ने खूब सराहा और फिर उन्हें फिल्मों में छोटे-छोटे रोल मिलने शुरू हो गए.

1974 में कैसे बदली एक्टर की किस्मत ?

इसी बीच उन्हें निर्देशक ‘बालचंदर’ ने अपनी अगली फिल्म ‘अरंगेतरम’ में कास्ट किया, जिससे उन्हें फिल्मों में एक बड़ा ब्रेक मिला. साल 1974 में उन्होंने फिल्म ‘अवल ओरू थोडरकथाई’ और 1975 में ‘अबूर्वा रागंगल’ में काम किया. इन दोनों ही फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई तो की ही. साथ ही ”कमल हासन” की किस्मत भी बदल गई. इन दोनों फिल्मों की अपार सफलता के बाद एक्टर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनके करियर ने इतनी तेजी से रफ्तार पकड़ी कि इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दी.

मलयाली से लेकर हिंदी फिल्मों में भी किया है काम

आपको बता दें कि अपने अब तक के करियर में अभिनेता ”कमल हासन” (kamal Haasan) ने 35 से ज्यादा मलयाली और 15 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम किया है. इसी के साथ एक्टर ने अब तक कई फिल्मों की कहानियां, संवाद, पटकथा, गीत और स्क्रिप्ट भी लिखी हैं. इसके अलावा आठ से ज्यादा फिल्मों में उन्होंने डांस मास्टर की भी भूमिका निभाई है. वहीं फिल्मों के निर्देशन में भी वो पीछे नहीं रहे. उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया है. इसी के साथ साल 2017 से एक्टर ”कमल हासन” बिग बॉस तमिल को भी होस्ट कर रहे हैं.

दो शादी और कई अफेयर के बाद भी सिंगल हैं अभिनेता

हालांकि अपनी फिल्मों से ज्यादा एक्टर ”कमल हासन” (kamal Haasan) अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में रहे हैं. दरअसल अभिनेता ने दो बार शादी की थी और उनकी दोनों ही शादी टूट चुकी है. साल 1978 में उन्होंने भारतीय नर्तक ‘वाणी गणपति’ संग सात फेरे लिए थे लेकिन शादी के कुछ साल बाद ही दोनों अलग हो गए थे. इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड एक्ट्रेस ‘सारिका’ से शादी की पर उन दोनों का रिश्ता भी कुछ सालों बाद टूट गया. हालांकि ‘सारिका’ और ‘कमल’ की दो बेटियां श्रुति और अक्षरा हैं. अभिनेत्री ‘सारिका’ से अलग होने के बाद एक्टर का नाम अभिनेत्री ‘गौतमी’ के साथ जोड़ा जाने लगा. लेकिन अब ये दोनों भी अलग हो गए हैं और अब एक्टर अपनी सिंगल लाइफ इंजॉय कर रहे हैं.

एक्टर ने 2018 में शुरू की थी अपनी राजनीति पार्टी

आपको बताते चलें कि अभिनेता ”कमल हासन” (kamal Haasan) ने अपनी किस्मत राजनीति में भी आजमाई है. उन्होंने साल 2018 में अपनी राजनीतिक पार्टी ‘मक्कल नीधि माईम’ शुरू की थी और इस पार्टी से उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वो जीत नहीं सके. गौरतलब है कि एक्टक ”कमल हासन” का सफर राजनीति में बेशक बहुत ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है लेकिन फिल्मी दुनिया में उन्होंने बहुत नाम कमाया है. इसी वजह से आज भी देश-भर में उनके चाहने वालों की कमी नहीं हैं.

तर्जनी पर टिके नोट : एक नाचने वाली का दर्द

कामिनी नाम था उस का. उस के मृत शरीर और फटे कपड़ों को देख कर यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि उस के साथ वहशियाना बरताव किया गया है.

मैं ने कांस्टेबल नरेश को कहा कि घटनास्थल से जो भी संदिग्ध वस्तु मिले, उसे एक पौलीथिन में जमा कर के सीलिंगवैक्स से सिल कर दे. जैसा कि होता रहा है, पुलिस वालों को आम लोगों का सहयोग नहीं मिलता है. वैसा ही हुआ. कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था.

घटनास्थल से थाने की दूरी कम से कम 3 किलोमीटर थी. पास में होने पर थाने को ही दोषी ठहराया जाता. पर सच तो यह है कि किसी के लिए यह संभव नहीं कि पगपग पर नजर रखी जा सके.

मैं ने अनुमान लगाया कि घटना पिछले रात की है. मुझे थोड़ी निश्चिंतता हुई कि रात में मेरी ड्यूटी नहीं थी और दुख भी हुआ कि जो भी नपेगा वह मेरा साथी और सहकर्मी ही होगा.

पुलिस के काम में इस तरह के पल तो आते ही रहते हैं.

ओवरब्रिज के नीचे से गुजर रही सड़क के किनारे झाड़ियां थीं और आसपास कोई घर अभी नहीं बने थे. ऐसा लगता था कि बदमाशों के द्वारा उसे कहीं से अगवा कर के वहां लाया गया होगा और घटना को वहीं पर अंजाम दिया गया. ऐसा इसलिए कि झाड़ियों के पीछे की घासपतवार और पौधे रौंदे हुए थे. एक चप्पल थी और जूतों के निशान भी थे.

खैर छोड़िए भी इन बातों को. मुझे ड्यूटी पर आए अभी एक ही घंटा हुआ था कि ट्रैफिक पुलिस के एक जवान ने मुझे सूचित किया था कि अमुक जगह किसी की लाश पड़ी है. वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा था. मैं ने आसपास खड़े लोगों से जानना चाहा कि वे उसे पहचानते हैं या नहीं? उन्हें कुछ पता था या कुछ पता हो तो जानकारी दें, परंतु सब ने मुंह लटका कर एक ही बात कही कि उन्हें कुछ पता नहीं.

कांस्टेबलों ने मृतका के शरीर को सीधा किया तो उस का चेहरा दिखाई पड़ा. चेहरा देखते ही मैं उसे पहचान गया. विवाह के पिछले सीजन में वह मुझे मिली थी, परंतु मुझे उस का नाम नहीं याद आ रहा था…

मैं ने दिमाग पर जोर डाला कि उस का नाम क्या है? उसी समय नरेश ने जीप स्टार्ट कर दी और मुझे चलने कहा. डैड बौडी को मैं ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. सब थानों को सूचित कर दिया कि यदि इस मामले में उन के पास किसी ने लड़की के गुमशुदा होने की एफआईआर की हो या करने आए तो मुझे जानकारी दी जाए.

कुछ फाइलें थीं उन्हें निबटाने के बाद मेरा ध्यान एक बार फिर से उस पर गया ही था कि फोन आ गया और एक बार मैं फिर से कुछ देर के लिए व्यस्त हो गया.

मुझे याद आया कि उस का नाम कामिनी था. डीजे वाली गाड़ी के पीछे पिंजड़े का आकार दे कर उस में एक नर्तकी को बंद कर उस के नाच देखने का प्रचलन पिछले कुछ वर्षों से चल पड़ा है. गीत बजाए जाते हैं और बाहर चल रहे बराती भी उस धुन पर नाचते हैं. जाली और ग्रिल में जगहजगह हाथ डालने लायक जगह रहती है और लोग उस से हो कर उस नर्तकी पर रुपए फेंकते हैं. स्पष्टतः इन सब की आड़ में छेड़छाड़ और अन्य अशोभनीय बातें भी होती हैं. कामिनी उस में नाचती थी.

यह याद आते ही मैं ने उस एरिया के थाने को सूचित किया, जहां इस तरह के डीजे वाले अपनी गाड़ियां खड़ी किया करते थे.

कुछ ही देर में एक थाने से फोन आया कि कामिनी के लापता होने की रिपोर्ट वहां किसी ने लिखाई थी.

मेरा मस्तिष्क एक वर्ष पहले घटी घटना पर स्थिर था. गरमियों के दिन थे और शादीब्याह का मौसम चल रहा था. उस दिन मेरी रात की ड्यूटी थी. पैट्रोलिंग वाले मेरे साथी और कांस्टेबल अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे. रात के लगभग साढ़े 12 बजे थे. उसी समय कामिनी बदहवास हालत में थाने आई थी. वह चाह रही थी कि उस की एफआईआर लिखी जाए. उस के चेहरे पर किसी ने काट खाया था. उस के साथ उस के ग्रुप के और अन्य लोग भी थे. वे उसे समझा रहे थे कि इस तरह की घटनाएं होती ही रहती हैं और उसे व्यर्थ में बवाल खड़ा करने की आवश्यकता नहीं है.

वह बहुत ज्यादा डरी हुई थी और गुस्से में भी थी. गुस्से में उस ने अपने ग्रुप के लोगों को चिल्ला कर कहा था कि सब उसे अकेला छोड़ दें. मैं ने उन्हें समझाया था कि वे बाहर बैठें और उसे थोड़ी देर संभलने और शांत होने का मौका दें. वह कुछ देर तक रोती रही और मैं उसे समझाने का प्रयास करता रहा.

“पहले शांत हो जाओ. उन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा हो, यही मेरी कोशिश रहेगी. तुम्हारा नाम क्या है?”

“कामिनी,’’ उस ने अपना सिर अपने घुटने पर टिका रखा था.

“कितनी उम्र है तुम्हारी? इस छोटी उम्र में इस पेशे में आने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? कैसे आ गई, बताओ?”

वह धीरेधीरे खुलती गई और मैं उसे समझाता रहा. उस का घर वर्दवान से कुछ दूर दिउरी गांव में था. मातापिता दोनों मजदूरी करते थे. एक छोटा भाई और एक छोटी बहन भी थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. उस का रंग साफ था और देखने में वह अच्छी थी. गांव के एकमात्र सरकारी स्कूल में उस समय वह 5वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

दुर्गा पूजा के अवसर पर चंदा जमा करने के लिए स्कूल के पीछे वाले मैदान में टैलीविजन पर फिल्में दिखाई जा रही थीं. आगे बैठने वाले से 10 और उस के पीछे वालों से 5 रुपए लिए गए. आसपास के घरों के लोग छत पर बैठ कर इस का आनंद लिया करते.

एक फिल्म में हीरोइन ने जो नाच किया, कुसुम ने उस की नकल अपने साथियों के बीच की. स्कूल में तो सभी उस की कला से प्रसन्न हुए थे, परंतु मां ने तमाचे लगा दिए थे और बापू ने डांटा था. वह बहुत क्रोधित हुई थी, फिर भी यदाकदा उस का नाचना नहीं रुका था. किसी भी पूजापाठ में नृत्यसंगीत का प्रचलन था और उस अवसर पर सभी उसे नाचने को कहते. मां भी मना नहीं करती. वह नाचती. नृत्य और संगीत से इसी तरह वह जुड़ती गई.

नई पीढ़ी के किशोरों में गर्लफ्रैंड और ब्वायफ्रैंड रखने का चलन शहरों से शुरू हो कर गांव तक पहुंच चुका है. एक बार वह किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में वर्दवान गई थी, तो पहली बार उस ने ऐसा ही कुछ देखा था.

शाम के धुंधलके में कई जोड़े पोखर के किनारे बैठे थे. कुछ मर्यादित थे और कुछ… उस ने अपने गांव में भी शाम के समय डीह पर ऐसे कुछ जोड़ों को प्रायः बैठे हुए देखा था.

स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक लड़के से उस की दोस्ती हो गई. उस उम्र में उस लड़के में कुछ बुरा भी नहीं था और वह देखने में भी सुदर्शन था. एकदो बार वह किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में शहर गया था. उस ने वहां जोकुछ देखा था, उसी के आधार पर उस ने कामिनी को बताया कि वह चाहे तो उस की कला को पंख लग सकते हैं. पहले लोग संतोष को परमसुख मानते थे, परंतु आज तो कहा जाता है, सपने देखोगे तभी तो उसे पूरा कर सकते हो.

सारांश यह कि चादर से बाहर पैर निकालना होगा, तभी तो नए चादर खरीदने की बात सोची जा सकती है. एक वर्ष तक वह मां से छिपछिप कर उस के साथ रही और किशोरवय का रसपान किया. 10वीं कक्षा के बाद वह पढ़ने के लिए शहर चला गया और जबजब आता उस से भेंट करता.

3-4 वर्षों का समय गुजर गया. आंखों में सपने तो तैर ही रहे थे. उस ने योजना बनाई कि कामिनी शहर चलने की सोचे तो रुपए कमाना आसान होगा. पहले तो कामिनी डर गई, कहां रहेगी, क्या खाएगी? तारक नाम था उस का, वह सबकुछ पता कर के आया था. उस ने एक आरकेस्ट्रा पार्टी में उस के लिए बात की थी. एक दिन वह उसी के साथ अनजान डगर पर चल पड़ी. सप्ताहभर वह किसी तरह उस के साथ रही.

तारक ने वहां झूठ कहा था कि वह उस की बहन है. इन चंद दिनों में उस ने समझ लिया कि अब वह कभी घर नहीं लौट सकेगी. बहुत रोई, लेकिन अब हो भी क्या सकता था? गनीमत यह थी कि तारक ने उसे और कहीं नहीं जोड़ कर शहर के जानमाने ‘सुंदरी’ आरकेस्ट्रा पार्टी से जोड़ दिया. आरकेस्ट्रा पार्टी का संचालन सुंदरी नाम की महिला करती थी. उस आरकेस्ट्रा में 10 की संख्या में लड़कियां थीं.

तारक की इच्छा थी कि वह उस के साथ रहे, परंतु उसे पता था कि अविवाहित जोड़े को कहीं रहने के लिए जगह नहीं मिलेगी. कामिनी आरकेस्ट्रा की सहेलियों के साथ रहने लगी. उस ने अपने तारक को कहा था कि वह उस से विवाह कर ले तब साथ रहेगी.

इस पर तारक ने समझाया था कि वह कुछ कमाने लग जाए, तब ही तो विवाह कर सकता है. इन कुछ दिनों ने कामिनी को बहुत समझदार बना दिया था. वह जानती थी कि घर से कोई उस की खोजखबर नहीं लेगा और नाबालिग लड़की का किसी लड़के के साथ इस तरह रहना समाज कभी भी नहीं स्वीकार करेगा. उस के ब्वायफ्रैंड को भी उस की बात सही लगी थी.

उस की नई सहेलियों ने अपने विषय में जो कुछ उसे बताया, उसे सुन कर उस ने अपने भाग्य को सराहा था कि अब तक उस के ब्वायफ्रैंड ने उसे सिर्फ अपने तक सीमित रखा था. समय निकाल कर वे मिलते रहते और भविष्य के सपने देखने से नहीं चूकते.

तारक से उस को अपने गांव और मांबाप की जानकारी मिलती रहती. उस के माध्यम से उस ने घर पर कहला भेजा था कि वह शहर में काम कर रही है. उस के मांबाप उस के लिए ज्यादा चिंतित भी नहीं थे.

तारक ने बताया था कि वे लोग उस की तरफ़ से निश्चिंत हो गए हैं. उन का यह भी सोचना था कि कम से कम उस के विवाह के लिए अब उन्हें नहीं सोचना है.

तारक ने ही बताया कि उस की मां ने उस से पूछा था कि क्या उन्होंने विवाह कर लिया है? कामिनी ने उस की आंखों में फिर से देखा था, जिन में भविष्य के सपने थे. तारक ने उस की मां को कहा कि अभी तो नहीं, परंतु कोई काम पर लग जाए तो कर लेगा.

एक बार कामिनी ने कुछ रुपए और एक सस्ता सा मोबाइल फोन भी घर पर भिजवाया था. मां से उस ने फोन पर बात की थी. मां ने सबकुछ बताया था कि रुपए उसे मिलते रहे थे.

कामिनी का अपने तारक पर विश्वास और बढ़ गया था. उस ने स्वयं से कहा था कि दूसरा होता तो अब तक उस के भेजे पैसे बीच में ही हड़प जाता.

मैं ने उसे सांत्वना दी थी कि मैं उन बदमाशों की खबर लूंगा. मेरे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ने उसे शांत कर दिया था. मैं रिपोर्ट लिखने जा रहा था कि उस ने मना कर दिया था.

मैं ने उस से कहा था कि उसे रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए और उस ने मुझे कहा था कि अभी इस सीजन में उस के ग्रुप ने और बहुत से काम ले रखे हैं. अभी तो वैवाहिक मौसम शुरू ही हुआ था और वह इसलिए इन उलझनों में फंसना नहीं चाहती है. इधर समस्याओं में उलझ गई तो फिर दौड़धूप करना पड़ेगा और फिर रुपए कैसे कमा सकेगी? वह उठ खड़ी हुई मुझ से विदा लेने के लिए.

“तुम्हें कभी आवश्यकता पड़े तो यहां आ सकती हो या फिर फोन कर सकती हो.’’

“नमस्ते सर. आप पुलिस वालों में सब आप जैसे नहीं होते.’’

“हर पेशे में अच्छेबुरे लोग होते ही हैं. तुम जो काम कर रही हो, उस में भी सब तुम्हारे जैसे नहीं होते. तुम्हें जो ब्वायफ्रैंड मिला उस जैसा भी तो सबों का ब्वायफ्रैंड नहीं होता. फिर भी तुम्हें इतना अवश्य कहूंगा कि यह सब छोड़ दो. अच्छा रहेगा तुम्हारे लिए. इतनी तो तुम्हें भी समझ है कि जिस राह पर तुम चल रही हो, वह अच्छी नहीं है. दुनिया में और भी कई रास्ते हैं कमाने के लिए. क्या पता कि आगे चल कर तुम्हें और दलदल मिले?”

“कुदरत ने आदमी को बनाया है और सारे पेशे तो आदमी ने बनाए. अब इस से निकल पाना संभव नहीं है मेरे लिए.’’

“प्रयास करो… कुछ भी असंभव नहीं होता.’’

“कौन सी नौकरी मिलेगी मुझे?”

“बहुत से काम हैं…’’

“इस समाज में बदचलन पुरुष को काम मिल सकता है, पर बदचलन लड़की के लिए बदचलनी के सिवा कोई काम नहीं है.’’

“ऐसा क्यों सोचती हो? घर लौट जाओ.’’

“ताकि मांबाप पर फिर से बोझ बन जाऊं…? उन्हें पता है कि मैं कमा रही हूं. पैसे भेज रही हूं. घर छोड़े दूसरा साल है. कभी किसी ने कहा कि कम्मो इस पूजा में घर आ जा? गरीबी सबकुछ निगल जाती है.’’

“फिर भी वह तुम्हारा घर है.’’

“हमारे घर नहीं होते, सर. मैं अभी एडल्ट नहीं हुई. मैं जहां हूं, जैसी हूं सही हूं. शहर और संसर्ग ने बहुतकुछ सिखा दिया है. मैं जानती हूं, आप से मदद ली तो आप रिमांड होम भेज देंगे यानी कड़ाही से निकल कर आग में. कौन सा रिमांड होम और कौन सी सुरक्षित जगह बची है? मां के पेट में ही बेटियां मार दी जाती हैं. आप भी सलाह दे रहे हैं. आप की सलाह अच्छी भी है. सब हमें ही सलाह देते हैं. कोई पुरुषों को सलाह क्यों नहीं देता?

“प्रशासन को तो सब पता ही होगा, तब यह डीजे वाली गाड़ी का प्रचलन ही कैसे हुआ? मुझ सी लड़कियां नाचती हैं. नोट देने के बहाने क्याक्या होता है ऐसे नाच में, आप लोगों को नहीं पता है क्या… कैसे गंदे इशारे करते हैं लोग, आप क्या जानें? सरेआम भवें टेढ़ी कर साथ चलने का इशारा करते हैं, वह भी तर्जनी पर नोट टिका कर, इस का मतलब समझते हैं न आप…?’’

मैं पथराई आंखों से उसे बाहर जाते हुए देखता रहा.

नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल : क्यों याद आ रहा है पाकिस्तान ?

आने वाले समय में संभवतया पीढ़ियां यह पढ़ेंगी- “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वाया पाकिस्तान.”

सार संक्षेप यह कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को एकएक कर के जेल भेज दिया गया और तानाशाही का आगाज हुआ.

दरअसल, किसी पर भी आरोप लगाना बहुत ही आसान है. मनीष सिसोदिया हों या संजय सिंह या फिर सत्येंद्र जैन लंबे समय से जेल में हैं और कम से कम इन्हें जमानत का तो अधिकार है मगर आज यह भी मुश्किल है.

हमारे देश का कानून यह कहता है कि 100 आरोपी बच जाएं मगर एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए. मंत्री और मुख्यमंत्री को परेशानहलकान किया जा रहा और जेल के रास्ते दिखाए जा रहे हैं, यह लोकतांत्रिक शासन पद्धति के लक्षण नहीं हैं. ठीक है, कानून सब से ऊपर है, मगर इस का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए. इसे आखिर कौन देखेगा और कौन देख रहा है? कोई तो ऐसा होगा जो सब से ऊपर होता है और हमारे लोकतांत्रिक पद्धति में केंद्र और राज्य शासन की अलगअलग व्यवस्थाएं हैं जिस के तहत दिल्ली में अरविंद केजरीवाल अगर मुख्यमंत्री के पद पर हैं तो हो सकता है उन से गलतियां हों.

यह भी संभव है कि जानबूझ कर गलतियां हों मगर जिस तरह लंबे समय तक आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, मनीष सिसोदिया जैसे चेहरों को जेल में ठूंस दिया जाता है और फिर जमानत नहीं होती है तो ऐसा लगता है कि ये लोग कोई बड़े अपराधी हैं, जो रुपए ले कर देश छोड़ कर भाग जाएंगे. यह सब घटनाक्रम आने वाले समय में लोकतंत्र के हमारी झोंपड़ी को क्षतिग्रस्त करेगा, हो सकता है जला कर भस्म कर दे.

लोकतंत्र तानाशाही की ओर

भारत जब आजाद हुआ और संविधान बना तो कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका को अपनाअपना दायित्व दिया गया ताकि हमारा लोकतंत्र आमजन को विकास के रास्ते पर स्वतंत्रता के साथ जीने का हक दे. जिस तरह आज नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में राज्यों की सरकारों के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ व्यवहार हो रहा है वह ज्यादती कहा जा सकता है और तानाशाही भी.

अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति मामले में पूछताछ के लिए तलब किया है. यह सच है कि इस मामले में दाखिल आरोपपत्र में एकाधिक जगह अरविंद केजरीवाल का नाम है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने धनशोधन रोकथाम अधिनियम के तहत समन जारी किया है.

सनद रहे कि पिछले साल जनवरी में दिल्ली की एक अदालत में दायर अपने प्रारंभिक आरोपपत्र में ऐजेंसी ने कहा था कि केजरीवाल ने मुख्य आरोपियों में से एक समीर महेंद्र के साथ वीडियो कौल में कथित तौर पर बात की थी और उसे सह आरोपी विजय नायर के साथ काम करना जारी रखने के लिए कहा था.

तो क्या केजरीवाल भी जेल जाएंगे ?

इस से पहले शराब घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछताछ की थी. सीबीआई ने केजरीवाल से 9 घंटे तक पूछताछ की थी. यही नहीं, उन से 56 सवाल पूछे गए. यहां यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि नागरिक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 135 के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, मुख्यमंत्री, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को गिरफ्तारी से रियायत मिली है.

मगर यह रियायत सिर्फ दीवानी मामलों में है, फौजदारी के मामलों में नहीं. ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा यह देखने लायक बात होगी. इधर ईडी ने आरोपपत्र में दावा किया है कि ऐजेंसी ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता के करीबी बुचीबाबू का बयान दर्ज किया था, जिस में उन्होंने बताया था कि के. कविता, केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के बीच तालमेल था. इस दौरान कविता ने मार्च 2021 में विजय नायर से भी मुलाकात की थी. इस मामले में एक और आरोपी दिनेश अरोड़ा ने भी ईडी को बताया है कि उस ने केजरीवाल से उन के आवास पर मुलाकात की थी.

ईडी का कहना है कि वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मंगुटा श्रीनिवासुलु रेड्डी और केजरीवाल के बीच कई बैठकें हुई थीं. केजरीवाल ने दिल्ली के शराब कारोबार में रेड्डी के प्रवेश का स्वागत किया था.

पूछताछ में बुचीबाबू और आरोपी अरुण पिल्लई ने खुलासा किया है कि वे शराब नीति को ले कर केजरीवाल और सिसोदिया के साथ मिल कर काम कर रहे थे. साथ ही आरोपी विजय नायर ने वीडियो कौल के जरिए केजरीवाल और गिरफ्तार आरोपी समीर महेंद्र में बात भी करवाई थी.

जनमानस में चर्चा

इस दौरान केजरीवाल ने समीर से कहा था कि विजय उन का आदमी है और उसे उस पर भरोसा करना चाहिए. इन सब तथ्यों के आधार पर अब गेंद प्रवर्तन निदेशालय के हाथ में है और जिस तरह भारत की राजनीति अंगड़ाई ले रही है उस के सही माने कोई भी निकाल सकता है.

यह भी आज जनमानस में चर्चा का विषय बना हुआ है कि अगर ये चेहरे भारतीय जनता पार्टी के सरपरस्ती में होते तो क्या ऐसे ही केंद्रीय जांच का सामना करते, जेल जाते?

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