‘‘सर, कोई बहुत बड़े वकील साहब आप से मिलना चाहते हैं,’’ वार्ड बौय गणपत ने दरवाजा फटाक से खोलते हुए उत्सुकता व उत्कंठा से हांफते हुए कहा और उस की सांसें भी इस कारण फूली हुई थीं.
मैं ने हौल से ही खिड़की से देखा था कि कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के सामने बरगद के पेड़ के नीचे बड़ी व लग्जरी गाड़ी मर्सिडीज पार्क कर रहा था. शायद इस बड़ी गाड़ी के कारण गणपत नैसर्गिक रूप से गाड़ी में आने वाले व्यक्ति को बड़ा वकील मान रहा था.
मैं सम?ा नहीं पा रहा था कि कोई बड़ा सा वकील मुझ से क्यों मिलना चाहता है? सामान्यतया सरकारी अस्पताल में कभीकभार नसबंदी केस बिगड़ने पर मरीज के रिश्तेदार मुआवजे के लिए कोर्ट केस करते हैं पर उस के लिए सामान्यतया नोटिस मरीज के रिश्तेदार देने आते हैं.
‘‘हैलो डाक्टर साहब, माइसैल्फ एडवोकेट गुप्ता और ये मेरे असिस्टैंट हैं,’’ काले कोट वाली ड्रैस में सहज उन्होंने मेरे हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा.
‘‘बैठिए,’’ मैं ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा.
‘‘आप सोच रहे होंगे कि शहर से आए हुए वकील का आप से क्या काम होगा?’’ उन्होंने मेरे चेहरे को पढ़ते देख कर मुसकरा कर कहा.
‘‘निशंक,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘लीजिए चाय,’’ गणपत मेरे कहे बिना ही चाय ले कर आ गया. यह गणपत की सम?ादारी थी या फिर पूंजीवाद का असर?
‘‘यह दुर्गेश्वरीजी की वसीयत है,’’ फाइल हाथ में ले कर मेरी टेबल पर रख कर खोलते हुए वे बोले.
‘‘पर आप मुझे यह क्यों बता रहे हो? और दुर्गेश्वरीजी कौन हैं?’’ मैं ने हैरानगी से उन की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देख कर पूछा.