इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि महिलाओं को चुनाव लड़ने के समय यह हलफनामा देना पड़ेगा कि वह अपने काम खुद करेंगी उन के पति नहीं. इस का सीधा प्रभाव पंचायती राज में चुनाव लड़ने वाली महिलाओं पर पड़ेगा. पार्षद का चुनाव लड़ने वाली महिलाएं भी इस से प्रभावित होंगी. बिना परिवार के मदद के तो अधिकांश सांसद और विधायक भी काम नहीं रही है. वहां भी पति, पिता और पुत्र चुनाव लड़ने से ले कर जीतने के बाद कामकाज देखने का काम करते हैं.सांसद विधायक बड़े पद हैं तो वह सवालों से बच जाते हैं. पार्षद और प्रधान इस में बदनाम हो जाते हैं.

‘महिला प्रधान कोई रबर स्टैंप हैं?’ - हाई कोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में महिला प्रधानों के स्थान पर उन के पतियों के काम करने की प्रथा की आलोचना करते कहा, ‘ऐसी दखलअंदाजी राजनीति में महिलाओं को आरक्षण देने के मकसद को कमजोर करती है.’

बिजनौर जिले की नगीना तहसील के मदपुरी गांव की ग्राम सभा ने अपनी प्रधान कर्मजीत कौर के पति सुखदेव के द्वारा एक याचिका दायर की थी. याचिका में पति को इस याचिका के लिए अधिकृत किया गया हो इस का कोई हलफनामा संलग्न नहीं था.

कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि ‘उस का ग्राम सभा के कामकाज से कोई लेनादेना नहीं होता.’ अदालत ने कहा, ‘प्रधान के तौर पर याचिकाकर्ता को अपने निर्वाचित पद से अधिकार, कर्तव्य आदि अपने पति या किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने का कोई अधिकार नहीं है. यहां पैरोकार यानी प्रधानपति का गांव सभा के कामकाज से कोई लेनादेना नहीं है.

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