क्या याचिकाकर्ता यह दावा कर सकता है कि किसी मंदिर में आरती के दौरान घंटियों और घड़ियाल का शोर बाहर सुनाई नहीं देता है, आप के मंदिर में ढोल और संगीत के साथ सुबह की आरती भी सुबह 3 बजे शुरू होती है क्या आप यह कह सकते हैं कि घंटे और घड़ियाल का शोर केवल मंदिर परिसर में ही रहता है. मंदिर के बाहर नहीं फैलता.
इस और ऐसे कई सवालों का जवाब याचिकाकर्ता उस के वकील और अधिसंख्य हिंदुओं के पास भी नहीं होगा जिन्हें मस्जिदों की अजान के शोर पर एतराज है लेकिन मंदिरों की आरती और घंटे घड़ियालों का शोर उन्हें सुहाना कर्णप्रिय लगता है. 28 नवंबर को गुजरात हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में यह भी कहा कि किसी भी धर्म में पूजापाठ के लिए सीमित समय की आवश्यकता होती है इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता.
मांग को सिरे से किया खारिज
यह याचिका गुजरात बजरंग दल के एक नेता शक्ति सिंह झाला की तरफ से दायर की गई थी जिस में कहा गया था कि सुबह लाउडस्पीकर के माध्यम से अजान देने वाली मानव आवाज ध्वनि प्रदूषण पैदा करने के स्तर यानी डेसीबल तक पहुंच जाती है जिस से बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ को खतरा हो सकता है.
हाईकोर्ट ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए दो टूक कहा कि हम इस तरह की जनहित याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं. यह वर्षों से चली आ रही आस्था और प्रथा है जो पांच दस मिनट के लिए होती है.
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