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New Year Special : हैप्पी न्यू ईयर – भाग 2

मेरी बात सुनने के बाद विधायक ने ‘ऐडमिशन नहीं हो रहा है?’ ऐसे कहा जैसे किसी बच्चे से कोई कहता है, ‘टौफी का कागज नहीं खुल रहा है?’ उस ने फोन उठाया और वीसी से बात की, ‘बिहार में रहना है कि नहीं, वीसी महोदय? हमारा एक ठो ऐडमिशन है. नाम नोट कीजिए…’ और मु झ से बोला, ‘जाइए, डाक्टर साहब, आप का काम हो गया.’

पिंटू का ऐडमिशन हो गया था. पिंटू बहुत खुश था. और उसे खुश देख कर मैं भी बहुत खुश थी.

पिंटू धीरेधीरे बड़ा हो गया. सारा महल्ला, सारे परिचित उसे मेरा बेटा सम झते.

उस की खूबसूरती, उस की तेजस्विता, उस का भोलापन मेरे परिचितों, सहेलियों, रिश्तेदारों में चर्चा का विषय बन गया था. सभी कहते, ‘इतने सुंदर लड़के की जोड़ी मिलनी मुश्किल है.’ मैं धीरे से कहती, ‘बिहार में नहीं मिली तो पंजाब से ले आऊंगी अपने वीरे की दुलहन. पर जोड़ी तो मैं मिला कर ही रहूंगी. मां और बाबूजी का एकलौता सपना है यह. उसे तो हर हाल में पूरा करना है.’

उन दिनों मैं काफी उल झन से गुजर रही थी. गांव से सासससुर आ गए थे. दोनों ही बूढ़े थे. बीमार रहते थे. इलाज से एक ठीक होता, तब तक दूसरा बिस्तर पकड़ लेता. बेटे की बोर्डिंग की फीस एकाएक 36 हजार रुपए से  48 हजार रुपए सालाना हो गई. बेटियों की स्कूल ड्रैस हर 6 माह बाद छोटी हो जाती. फल, सब्जियों, दवाइयों की परिधि ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थी.

अचानक एक सुबह ससुरजी ने चाय की प्याली हाथ में लेते हुए कहा था, ‘दुलहन, अब हम नहीं बचेंगे. बेटी, मेरी आखिरी ख्वाहिश है कि तुम लोगों का अपना मकान हो. उस में थोड़े से पेड़पौधे हों.’

रात में मैं ने इन से कहा तो ये क्षणभर को चुप हो गए. फिर कहा, ‘बाबूजी ने अपनी हड्डियां गला कर मेरे कैरियर को बनाया है. उन की यह इच्छा मैं हर हाल में पूरी करूंगा.’

घर बनाने का काम शुरू हुआ. एकाएक इतने खर्चे सिर पर आ गए कि हर वक्त पैसे की किल्लत रहने लगी. घर में कभी चीनी, कभी चाय तो कभी सब्जियां कम पड़ने लगीं.

अंतिम वर्ष में आतेआते पिंटू ने प्रतियोगी परीक्षाओं के फौर्म भरने शुरू कर दिए.

‘बाप रे, इतने महंगे फौर्म, कोई गरीब बच्चा कहां से लाएगा इतने पैसे?’ मैं ने एक दिन पिंटू से कहा तो वह हंस कर बोला, ‘काश, ये बातें सरकार सम झ सकती.’

जो कभी नहीं किया वह कर्म (पता नहीं कुकर्म या सद्कर्म) मैं ने किया. इन की जेब में हाथ डालती, पैसे निकालती और भाई की जेब में रख देती. फिर इत्मीनान से इन से कहती, ‘उसे अब बेंगलुरु जाना है, इंटरव्यू देने, कुछ पैसे दे देते तो…’ बिना एक भी शब्द बोले ये अलमारी खोलते, पैसे निकालते और मेरी हथेली पर रख देते. मैं गिनती, कभी हजार, कभी 12 सौ. उसे देने ले जाती तो वह कहता, ‘इतने पैसों का क्या करना?’ मैं कहती, ‘रख ले, फिर कोई फौर्म भर लेना या किसी दूसरे इंटरव्यू में काम आएंगे.’

4-5 इंटरव्यू में वह छंट गया. किसी बच्चे की तरह बिलखता वह मेरी छाती से लग जाता. मैं उसे भरोसा दिलाती, ‘उदास नहीं होते, बेटे. जो नौकरी तुम्हारे लिए है, वह तो तुम्हारा ही इंतजार कर रही होगी. वह कुरसी, वह जगह खाली होने दो.’

मैं अपने बेटे की सिगरेट पीने की आदत के बारे में उसके पापा को बता दूं या नहीं ?

सवाल

मेरी उम्र 43 वर्ष है और मैं अपने बेटे और पति के साथ वडोदरा में रहती हूं. कुछ समय पहले ही मुझे अपने बेटे के सिगरेट पीने के बारे में पता चला. मैंने यह बात उस के पापा को इसलिए नहीं बताई क्योंकि वह खुद नशे से कोसों दूर रहने वालों में से हैं और यदि बेटे की इस हरकत के बारे में जानेंगे तो पता नहीं क्या होगा.

वे दोनों एकदूसरे के बेहद करीब हैं, इस बात का पता चलने पर हो सकता है वे उस से बात करना भी बंद कर दें. बेटा एकलौता है और जिद्दी भी है. मैं ने यदि उस से कुछ कहा तो हो सकता है तैश में आ कर जाने क्या करे. ऐसे में बताएं कि मैं क्या करूं ?

जवाब

कालेज में उस का इसी वर्ष दाखिला कराया है और यह सिगरेट की आदत भी शायद उसे तभी से लगी है. मुझे सम झ नहीं आ रहा कि मैं उस से इस बारे में क्या बात करूं.

आप के बेटे का सिगरेट पीना इस बात का संकेत है कि वह खुद को नशे की गिरफ्त में ले रहा है. नशा युवाओं के लिए बेहद आकर्षक होता है लेकिन आज पी गई एक सिगरेट कल प्रतिदिन 2 और फिर 3 भी हो सकती हैं. आप को इस बारे में अपने बेटे से बात करनी चाहिए और यदि आप खुद नहीं कर सकतीं तो अपने पति से कह देना चाहिए.

आप को डर है कि आप के पति परेशान हो जाएंगे या उन्हें बेहद निराशा होगी लेकिन वह पिता होने के नाते अपने बेटे को सही सलाह दे सकते हैं. आप का यह कहना कि वे एकदूसरे से काफी क्लोज हैं और उन का रिश्ता खराब होगा, गलत है. वे उस के पिता हैं और उस से नाराज होना उन का हक है. अपने बेटे की भलाई को ध्यान में रखते हुए आप को यह बात अपने पति से साझा कर लेनी चाहिए.

राज छिपाना कोई नीरा से सीखे : भाग 2

उसी समय सुनील की आने की आहट आई. “चाय पी कर जाना. देखो यह भी आ गए,” नीरा मुसकराती हुई दरवाजा खोलने उठी और सुनील से कहा, “देखिए, कुसुम आई है. मुन्ने को ले कर जाइए और अपनी शुभकामनाएं दीजिए.”

अरे वाह, बहुत बधाई तुम दोनों को. मुन्ना बिलकुल तुम पर गया है. और कहां गायब है केशव? जब से तुम आई हो यहां का रास्ता ही भूल गया है. आज रात को आओ. नीरा बिलकुल होटल जैसी पनीर की सब्जी खिलाएगी.”

आज नहीं, हम फिर कभी आते हैं.”

चाय तो पीती जाओ,” नीरा बोली.

मैं अब निकलती हूं. मुन्ने के दूध का समय हो गया है.”

नीरा ने अपना आखिरी दांव खेला और उस के कंधे पर हाथ रख मुन्ने को प्यार से पुचकारते ऐसे बोली जैसे उन के बीच कुछ पल पहले कुछ हुआ ही नहीं हो.

ऐसे ही आती रहना, फिर मिलते हैं,” और देखते ही देखते नीरा की मुसीबत सुनील को बिना भनक लगे सफलतापूर्वक घर से बाहर निकल गई.

अब चाय पिलाई जाए आप को? जाइए, हाथमुंह अच्छे से साबुन से धो लीजिए. संक्रमण होने का डर अभी भी कायम है.”

आप की जो आज्ञा और हां, अदरक ज्यादा डालना.”

बाथरूम के दरवाजे की जैसे ही कुंडी बंद होने की आवाज आई नीरा ने झटपट अपना फोन उठाया और केशव को मैसेज किया,”मैं ने कहा था न टैंशन मत लेना. देखना तुम से खुद माफी भी मांगेगी. अब शांत रहते हैं जबतक यह वापस मायके न जाए. तुम्हें बहुत सारा प्यार.”

मान गए तुम्हें. उस के मायके जाने का बेसब्री से इंतजार रहेगा. तुम्हें भी खूब सारा प्यार.”

लीजिए, आप की गरमगरम अदरक वाली चाय.”

अब तुम्हारे हाथ की चाय 15 दिनों बाद ही नसीब होगी नीरा. कभी मन में विचार आता है कि सच में ऐसी नौकरी छोड़ दूं,” अनिल ने उदास मन से चाय का प्याला लेते हुए कहा.

मन तो मेरा भी आप के बगैर नहीं लगता यहां पर, मगर क्या करूं आप के आने का इंतजार कर जैसेतैसे दिन काट लेती हूं,” अपनी चाय की प्याली लेते हुए नीरा सामने वाले सोफे में बैठते हुए कहने लगी.

अगली बार आता हूं तो छुट्टियों में कहीं आसपास घूमने चलते हैं. जब से शादी कर के लाया हूं तुम्हें, आजतक कहीं ले कर नहीं गया. तुम भी क्या सोचती होगी कि कैसा पति मिला है. क्या तुम कभी मुझ से हताश नहीं होती? तुम्हारी जगह कोई और होती तो रोज झगड़ा करती.”

आप भी न…क्या मुझे समझ में नहीं आता कि आप वहां दिनरात एक कर कितनी मेहनत करते हैं. आप प्लीज बिना मतलब के दबाव में मत आइए. हम कभी और चले जाएंगे, आप बस शांति से घर आ कर अपनी इतने दिनों की थकान दूर करिए बस,” नीरा मुसकराते हुए अनिल से कहने लगी.

हां, पर अगली बार. क्यों न हम केशव और कुसुम से भी पूछ लें? वे लोग साथ रहेंगे तो और मजा आएगा! तुम्हारा क्या विचार है?”

अब तक न जाने की इच्छा रखने वाले नीरा को अचानक से छुट्टियां मनाने की बात अपने प्रेमी के साथ करते सुन उस के मन में लड्डू फूटने लगे. पर वह अपने जज्बात पर अंकुश लगाती सामान्य बन कर आगे कहने लगी,”उन से पूछने की क्या जरूरत? हम ही चलते हैं, किसी को इतना घुसाना भी ठीक नहीं.”

जैसी तुम्हारी इच्छा. हम अकेले ही चलते हैं.” नीरा ने अनुमान लगाया था कि शायद उस के मना करने पर अनिल जरूर केशव से जाने की पूछेंगे मगर उन्होंने उलटा उस की बात मान ली. इतना सुनहरा मौका उस के हाथों से इतनी आसानी से निकल गया.

वहीं केशव के यहां भी आज माहौल थोड़ा बदला बदला सा था.

क्या हुआ, इतने गुस्से से गई थीं और अभी इतनी शांत हो कर लौटी?”

केशव, आई एम सौरी. मैं क्या करूं, मेरा स्वभाव ही ऐसा है. बेवजह हर बात पर शक करती रहती हूं. आज के बाद आप पर कभी शक नहीं करूंगी,” यह कह कर वह केशव के गले लग कर खूब रोने लगी.

इस में रोने की कोई बात नहीं है. मैं ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है जिस से तुम्हारे मन को कभी ठेस पहुंचे. चलो, आंसू पोंछ लो,” उस ने यह बात इतनी आसानी से तो कह दी थी पर भीतर उस की अंतरात्मा ने उस से दोबारा पूछा कि क्या ऐसा सच में हुआ है?

अपने कालेज के जमाने से लड़कियां घुमाने वाला केशव इस का उत्तर साफतौर से जानता था, फिर भी उस ने अपनी कही बात को हर बार की तरह नजरअंदाज कर दिया.

आप ने बताया क्यों नहीं कि आप को बाई के हाथ का खाना पसंद नहीं? आज से मैं आप के लिए खाना बनाऊंगी.”

तुम्हें अभी आराम की जरूरत है और मुन्ने को तुम्हारी. तुम बुरा मत मानना, कुसुम. तुम्हारी गैरमौजूदगी में नीरा भाभी ने बहुत स्वादिष्ठ टिफिन दिया था. क्यों न हम दोनों के लिए फिर से लगवा लें? चूल्हेचौके में तुम क्यों परेशान होती हो?”

जैसा आप को उचित लगे,” केशव के कानों को यकीन न हुआ. आज तो सच में उस के जीवन में उलटी गंगा बह रही थी. पहली बार अपनी श्रीमती को खुद से सहमत होते देख वह आश्चर्यचकित रह गया और कब से अपनी प्रेमिका की एक आवाज सुनने को बेताब वह कुसुम के सामने बेबाकी से नीरा को फोन लगा कर कहने लगा,”हैलो नीरा भाभी, क्या आप आज से 2 टिफिन दे देंगी?”

हां, क्यों नहीं, जरूर,” यह कह कर नीरा ने फोन काट दिया.

शाम को नीरा केशव की पसंदीदा बैंगन की सब्जी तैयार कर तय समय से पहले मुसकराते हुए अपने घर से निकल कर उन के घर की घंटी बजा कर दरवाजा खुलने का इंतजार करती खड़ी रही.

कुछ देर बाहर खड़े होने के बावजूद कोई दरवाजा खोलने की प्रतिक्रिया नहीं दिख वह दोबारा से घंटी बजाने लगी. ध्यान से सुनने के बाद नीरा को भीतर से हंसीठिठोली सुनाई दी. उसे महसूस हुआ की जरूर उन के बीच कुछ निजी पल बीत रहे हैं.

अपने बाल कपड़े ठीक करते हुए केशव ने जैसे ही दरवाजा खोला तो एकाएक उस का मुसकराता चेहरा नीरा को देख कर घबरा सा गया.

कौन है केशव?” कुसुम भी दरवाजे तक आ गई.

अरे नीरा भाभी, आइए न अंदर.”

उम्मीद से विपरीत उन दोनों की जुगलबंदी देख कर नीरा तिलमिला सी उठी.

अरे नहीं, मैं बाद में आऊंगी, आप लोग मेरी वजह से क्यों डिस्टर्ब हो रहे हैं?”

अरे, इस में डिस्टर्ब कैसा? वैसे भी आप घर में अकेली ही तो हैं, कौन सा अनिल भैया आप का इंतजार करते बैठे हैं. आइए, चाय पी कर जाइए,”
भीतर ही भीतर नीरा को उस की कही बात चुभ सी गई. अपने पति की ऐसी नौकरी से बुरा तो उसे भी बहुत लगता था. कुछ महीनों से उस का केशव से बातचीत, मेलजोल कर के थोड़ा मन बहल जरूर जाता था पर अनिल के चले जाने के बाद वह उन नजदीकियों को बहुत याद करने लगी थी.

पर जैसे ही कुसुम वापस आई अब वह भी उस के नसीब में नहीं रहा. अपनेआप को सामान्य दिखाने के लिए वह घर के भीतर चली गई.

उन्हें साथ में इतनी हंसीमजाक करते देख नीरा की चाय की हरएक घूंट उसे खून के आंसू रुला रही थी. ऐसे तो केशव अपनी शक्की पत्नी का जब देखो तब रोना रोता था. हर बात पर यह जरूर कहता था कि काश, मेरी शादी तुम जैसी खूबसूरत और कुशल लड़की से हुई होती तो जिंदगी सफल हो जाती, पर आज जैसी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही थी.

टूटे दिल को समेट कर जैसेतैसे वह घर अपने भारी कदमों लिए सोचती चलती जा रही थी कि केशव तो कहता था कि उस की शादीशुदा जिंदगी तो बहुत खराब थी, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि आज उन के बेरंग रिश्ते में अचानक इंद्रधनुष खिल उठा?

ऐसा तो नहीं है कि उन के रिश्ते हमेशा से सुगम रहे हों और उसे केशव ने गुमराह कर उस की संवेदना पा कर करीब आने की साजिश रची हो? अनिल महीने के 15 दिन घर से नदारद रहते हैं, इस बात का फायदा केशव को ही तो सीधासीधा मिलना था.

केशव ने उस से ऐसे रिश्ते शुरू करने से पहले ही हर बात पानी की तरह साफ कर के रखी थी कि वह अपनी शादी किसी कीमत पर नहीं तोड़ने वाला और अनिल से नीरा भी अलग नहीं हो सकती थी. उन का यह रिश्ता बस मन को बहलाने के लिए ही जन्मा था, उस से ज्यादा कभी कोई किसी से कोई उम्मीद या अधिकार नहीं दिखा सकता था.

कुछ पल के लिए उसे इस बात का एहसास जरूर हुआ कि केशव ने अप्रत्यक्ष रूप से उस का फायदा उठाने की कोशिश की है और वह उस के बातों के घेराव में फंस गई.

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए और हर बार नीरा को देखने के बाद केशव में बदलाव नजर आता कि अब उसे उस में कोई दिलचस्पी नहीं है.

हैलो केशव, कल से मैं टिफिन नहीं दे पाऊंगी?”

क्यों जानू, आओ सामान्य बात करते हैं. वह घर पर नहीं है.”

दरअसल, हम कुछ दिन के लिए छुट्टियां मनाने जा रहे हैं.”

किस के साथ…अपने वह बेरस पति के साथ?” यह कहते ही केशव जोरजोर से हंसने लगा.

तुम्हें उस से क्या लेनदेना? जब अपनी आजादी छीनने वाली पत्नी की तुम खुशीखुशी गुलामी कर सकते हो तो मैं भी अपने बोरिंग पति के साथ जहां चाहो वहां घूम सकती हूं. इस के लिए मुझे तुम से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है.”

यह कैसी बात कर रही हो तुम? किस बात से नाराज हो? तुम्हें कभी इस तरह से बात करते नहीं सुना.”

मुझे तुम्हारी हकीकत दिखने लगी है. इतनी भी बेवकूफ नहीं हूं मैं. तुम्हारा चेहरा देख कर पढ़ सकती हूं कि तुम्हारे अंदर क्या चल रहा है.”

क्या पता चल गया तुम्हें? मैं भी तो जानूं.”

यही कि तुम ने मुझे धोखा दिया है.”

धोखा… तुम ने ही तो कहा है कि ऐसे रहो जैसे किसी को शक की गुंजाइश ही न हो.”

कहा जरूर था पर अब यह समझ नहीं आ रहा की तुम ऐक्टिंग मेरे सामने कर रहे हो कि कुसुम के?”

तुम भी कहां फालतू बात ले कर बैठ गई हो. अच्छा सौरी, अब कोई भी बहाना बना कर घूमने का प्लान कैंसिल कर देना. जो भी हो तुम नहीं जाओगी. अच्छा मैं रखता हूं. वह दरवाजे पर आ गई है.”

नीरा उसे बायभी नहीं बोल पाई थी कि उस से पहले उस ने उस का फोन काट दिया, ‘यह बढ़िया है केशव. तुम अपनी पत्नी के साथ भी मजे करो और मेरी जिंदगी में मैं क्या करूं क्या नहीं वह भी तुम ही डिसाइड करो…
इतना सब होने के बावजूद भी नीरा उदास मन से अनिल के साथ प्लान कैंसिल करने के बहाने तलाशने लगी.

सुनिल और नीरा की शादी की बात कहें तो, नीरा जोकि हीरोइन से कम नहीं दिखती थी उसे अनिल अपने मुकाबले देखने में बहुत ज्यादा सामान्य लगे. नीरा गोरी थी तो अनिल सांवले. कदकाठी भी औसत से कम, या यों कहिए नीरा के बराबर.

अपनी जवानी में भी जिन्होंने आज तक पेंट, टीशर्ट पहना नहीं होगा, वहीं नीरा को आज तक लेटैस्ट फैशन के कपड़े पहनना ही पसंद है.

सुनिल के बाल ओल्ड फैशन लिए हुए और नीरा के हर हफ्ते तरहतरह के हेयरपैक मैनटैन काले व घने बाल, कपड़ों के हिसाब से संवरते थे.

यह बात तो पक्की थी कि सुनिल को नीरा पहली ही नजरों में भा गई होगी, साथ ही खाना बनाने में कुशल और बात करने में भी बहुत मधुर थी. एक मर्द को अपने जीवनसाथी से और क्या चाहिए?

वहीं दूसरी और नीरा ने हमेशा अपने जीवनसाथी में एक फिल्मी हीरो के किरदार की तरह उस में चंचलता, खूबसूरती और दिनरात रोमांटिक बात करने वाले पति के सपने देखे थे.
इसलिए उसे सुनिल से शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अपने घर वालों के सामने उस ने ऐतराज भी जताया, मगर एक मध्यवर्गीय परिवार के लिए जहां 2 बहनें पहले से ही शादी लायक हों और लड़के वाले बिना दहेज के रिश्ता तय करना चाहते हों, ऊपर से लड़के की सरकारी नौकरी हो तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं.

नीरा के घर वालों ने उस की बेतुकी बातों को बिलकुल तवज्जो नहीं दिया. उन के सामने उस की एक न चली और देखतेदेखते वह जल्द शादी के बंधन में बंध गए.

सुनिल के साथ नीरा मौखिक रूप से तो पूरी व्यवहारिक बनती रही पर भीतर उस का मन अनिल से कोसों दूर था. शादी के कुछ ही महीनों बाद केशव और सुनिल की दोस्ती बढ़ने लगी, जिस से उस का घर आना जाना बढ़ता चला गया.

केशव जो उस की उम्मीद में उस के एकदम उचित जीवनसाथी था उस की ओर न चाह कर भी वह आकर्षित होती चली गई .

केशव ने भी कब और कैसे उस के परवान चढ़ते मन को पढ़ लिया उस की समझ के परे था. चंद महीनों बाद कुसुम भी अपने मायके डिलिवरी कराने चली गई और इन्हीं बीच उन के नाजायज रिश्ते के पर निकलने लगे.

आज शाम जब नीरा राशन लेने नीचे उतरी तो पास के पार्क में केशव और कुसुम को एकदूसरे की प्यार की चासनी में डूबे हुए पाया और उन की आशिकी देख नीरा की ईर्ष्या सातवें आसमान पर चढ़ने लगी.

वह मन ही मन ठान चुकी थी कि अगर केशव उस की शादीशुदा जिंदगी में इतनी पाबंदियां लगा सकता है तो अगली बार वह भी उसे अपने मनमुताबिक चला कर रहेगी.

अगले दिन केशव का फोन नीरा के पास आया,” क्या तुम ने अनिल को मना कर दिया?”

पहले बताओ कि कितना प्यार करते हो मुझ से?”

प्यार तो करता हूं पर अचानक आज तुम्हें क्या हो गया?”

बस यों ही. मैं ने मना नहीं किया और अब तुम भी कुसुम के साथ बाहर आनाजाना नहीं करोगे.”

नीरा को अपने ऊपर हावी होता पा कर केशव आगबबूला होने लगा,”वह पत्नी है मेरी और मेरे बच्चे की मां भी है. क्या उस का हक नहीं बनता कि उस के साथ मैं चंद देर प्यार से बात करूं? क्या उस की परमिशन भी मुझे तुम से लेनी पड़ेगी?”

जब तुम्हें मुझ से प्यार ही नहीं था तो फिर मेरे पीछे क्यों आए? कुसुम के लिए इतनी बुरी भावना दिखा कर तुम मेरी संवेदना प्राप्त करना चाहते थे न? तुम जैसे मर्दों को मैं अच्छी तरह जानती हूं जो घर के अंदर भी मजे लेते हैं और घर के बाहर भी लार टपकाते घूमते हैं.”

लो उलटा चोर कोतवाल को डांटे. खुद को भी देख लो भला, नीरा मैडम. ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती! तुम भी तो मेरे पीछे आई थीं. मैं ने तुम से कभी भी कोई भी जबरदस्ती नहीं की, समझी.

इन टिप्स को करेंगे फॉलो तो नहीं बढ़ेगा वजन

बढ़ता वजन आप के माथे पर सिकुड़नों को बढ़ाता होगा, तो दिनबदिन बढ़ती चरबी आप को लोगों के सामने नहीं खुद अपनी नजरों में भी शर्मिंदा करती होगी. ऐसा चाहे डिलिवरी के बाद हुआ हो या अचानक यों ही, आप ने अपने वजन को घटाने के लिए व्यायाम, जिम, कार्डियो ऐक्सरसाइज वगैरह क्या कुछ नहीं किया लेकिन याद रखिए कि वजन घटाने का मतलब यह नहीं कि आप क्रैश डाइटिंग कर के एकदम से छरहरे बदन की हो जाएं. ध्यान रहे कि ऐसा करने से स्टैमिना कमजोर हो जाता है, तो न काम में मन लगता है और न दैनिक कार्यों के लिए ऐनर्जी रहती है. आप हैल्दी फूड के साथसाथ नियमित ऐक्सरसाइज व व्यायाम से ही अपना वजन मैंटेन कर सकती हैं.

आप का नाश्ता बिलकुल सही हो और थोड़ीथोड़ी देर बाद आप कुछ न कुछ खाती रहें. लेकिन डाइट में कैलोरी की मात्रा कम होनी चाहिए. तलेभुने और फास्ट फूड से दूर रहें. रात का खाना 8 बजे तक कर लें ताकि खाने को पचने का पर्याप्त समय मिल जाए और रात का खाना आप के पूरे दिन के खाने में सब से हलका होना चाहिए.

कुल मिला कर डाइट संतुलित मात्रा में लेनी चाहिए और डाइट में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए. एक आम इनसान को प्रतिदिन 2,500 कैलोरी की डाइट लेनी चाहिए. तभी हमारा शरीर स्वस्थ व छरहरा रह सकता है. आप अपने लिए डाइट प्लान इस तरह करें:

– दिन में 3 बार की जगह 5 बार मील्स लें. इस में साबूत अनाज (ब्राउन राइस, व्हीट ब्रैड, बाजरा, ज्वार आदि) अवश्य शामिल करें. नौनरिफाइंड व्हाइट प्रोडक्ट्स (व्हाइट ब्रैड, व्हाइट राइस, मैदा आदि) को डाइट से पूरी तरह हटा दें.

– डाइट में टोंड दूध से बना दही, पनीर व दाल, मछली आदि शामिल करें.

– कब्ज व पेट की मरोड़ से बचने के लिए खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं. इस के लिए सप्लिमैंट्स के बजाय प्राकृतिक फाइबर लें. फाइबर के प्रमुख स्रोत हैं, साबूत अनाज, होम मेड सूप, दलिया, फल आदि. इन से फाइबर के साथसाथ कई मिनरल्स व विटामिंस भी मिलेंगे.

– हड्डियों की मजबूती के लिए डाइट में कैल्सियम की मात्रा बढ़ाएं. इस के प्रमुख स्रोत हैं- दूध, मछली, मेवा, खरबूज के बीज, सफेद तिल आदि. याद रहे कि पतले होने के फेर में कैल्सियम को डाइट से नदारद किया तो गठिया आप को जकड़ सकता है.

– वजन कम करने के लिए आप फैट इनटेक (वसा की मात्रा) कम करना चाहते हैं, तो डाइट से फैट्स एकदम हटाने की जरूरत नहीं. डाइटिशियन के अनुसार, ऐनर्जी लैवल को बनाए रखने, टिशू रिपेयर और विटामिंस को बौडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए खाने में पर्याप्त मात्रा में फैट्स होने जरूरी हैं. इसलिए डाइट से फैट्स को पूरी तरह हटाने के बजाय आप मक्खन जैसे सैचुरेटेड फैट्स को अवौइड करें और इस की जगह औलिव औयल इस्तेमाल में लाएं.

– दिन की शुरुआत जीरा वाटर, अजवाइन वाटर, मेथी वाटर या आंवला जूस से करनी चाहिए. इस से मैटाबोलिक रेट बढ़ता है.

– बहुत ज्यादा देर तक खाली पेट न रहें. इस से आप एक बार में अधिक भोजन करेंगी. बेहतर होगा कि आप बीचबीच में कम वसा वाले स्नैक्स या फिर फल, सूप जैसी चीजें लेती रहें.

– आरामदायक लाइफस्टाइल अपनाने के बजाय कुछ परिश्रम भी करें. याद रहे कि वजन तभी बढ़ता है, जब खाने से मिलने वाली कैलोरी पूरी तरह बर्न नहीं होती.

– वजन कम करने का अनहैल्दी तरीका है क्रैश डाइटिंग. इस से न सिर्फ वजन कम होता है, बल्कि मसल्स व टिशूज पर भी इस का बुरा असर पड़ता है.

– दिन में 8-10 गिलास पानी पीएं.

– आप के खाने में सोडियम की मात्रा कम होनी चाहिए. सोडियम शरीर से पानी सोखता है और ब्लडप्रैशर बढ़ाता है, इसलिए दिन भर में नमक बस 1 या 11/2 चम्मच ही लें.

– कोलैस्ट्रौल लैवल कंट्रोल करने के लिए फैट की मात्रा पर ध्यान दें.

– पानी वाले फलसब्जी (मौसंबी, अंगूर, तरबूज, खरबूजा, खीरा, प्याज, बंदगोभी आदि) रैग्युलर लें.

– कम से कम चीनी व नमक का प्रयोग करें.

कामकाजी लोग क्या करें

कामकाजी लोगों का ज्यादातर समय औफिस की कुरसी पर बैठेबैठे ही बीत जाता है. ऐसे में वजन बढ़ाना तो आसान होता है पर एक बार बढ़ जाए तो घटाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे लोगों को अपने खाने के प्रति काफी सतर्क रहना चाहिए. वे कुछ निश्चित नियमों का पालन कर के ही अपने वजन को काबू में रख सकते हैं. औफिस में कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें बाहर निकाल कर या कैंटीन में खाना आम बात होती है और उन्हें खा कर बैठे रहना वजन ही बढ़ाता है. ऐसा न हो, इस के लिए घर का बना टिफिन आप की काफी मदद करेगा.

जब उम्र कम हो

बेवजह का खानपान और असमय भोजन लेने की आदत ऐसे लोगों के वजन को बढ़ाने का काम करती है. फास्ट फूड पर निर्भरता भी इस उम्र के लोगों में औरों की अपेक्षा ज्यादा ही होती है. इसलिए दिन भर में 2 बार का भोजन और सुबह का प्रोटीनयुक्त नाश्ता दिन भर आप को चुस्त रखेगा और आप का वजन भी नियंत्रित करेगा. साथ ही खाने में सलाद का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें तो बेहतर होगा. कम उम्र में वजन बढ़ जाने से बुरा और कुछ नहीं हो सकता. ऐसा न हो इस के लिए जरूरी है कि पहले फास्ट फूड से बचें. इस उम्र में सब से ज्यादा ताकत की आवश्यकता होती है, इसलिए प्रोटीन से भरपूर भोजन लें. कार्बोहाइड्रेट को नाश्ते में जरूर शामिल करें.

बुजुर्गों की डाइट

अगर आप 60 की उम्र पार कर चुके हैं, तो सेहत के प्रति ज्यादा सजग होंगे. इस उम्र में पाचन क्रिया के साथसाथ हड्डियां और मांसपेशियां दोनों ही कमजोर हो जाती हैं. बुजुर्गों के लिए बेहतर है कि कम खाएं पर कई बार खाएं. साथ ही व्यायाम को भी अपने दिन के प्लान में जरूर शामिल करें. दिन में 1 बार 20 मिनट टहलने से आप खुद को काफी तरोताजा रख पाएंगे.

– दीप्ति अंगरीश डाइटिशियन, शिखा शर्मा से की गई बातचीत पर आधारित

विरासत : क्यों कठघरे में खड़ा था विनय ?

कई दिनों से एक बात मन में बारबार उठ रही है कि इनसान को शायद अपने कर्मों का फल इस जीवन में ही भोगना पड़ता है. यह बात नहीं है कि मैं टैलीविजन में आने वाले क्राइम और भक्तिप्रधान कार्यक्रमों से प्रभावित हो गया हूं. यह भी नहीं है कि धर्मग्रंथों का पाठ करने लगा हूं, न ही किसी बाबा का भक्त बना हूं. यह भी नहीं कि पश्चात्ताप की महत्ता नए सिरे में समझ आ गई हो.

दरअसल, बात यह है कि इन दिनों मेरी सुपुत्री राशि का मेलजोल अपने सहकर्मी रमन के साथ काफी बढ़ गया है. मेरी चिंता का विषय रमन का शादीशुदा होना है. राशि एक निजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. रमन सीनियर मैनेजर है. मेरी बेटी अपने काम में काफी होशियार है. परंतु रमन के साथ उस की नजदीकी मेरी घबराहट को डर में बदल रही थी. मेरी पत्नी शोभा बेटे के पास न्यू जर्सी गई थी. अब वहां फोन कर के दोनों को क्या बताता. स्थिति का सामना मुझे स्वयं ही करना था. आज मेरा अतीत मुझे अपने सामने खड़ा दिखाई दे रहा था…

मेरा मुजफ्फर नगर में नया नया तबादला हुआ था. परिवार दिल्ली में ही छोड़ दिया था.  वैसे भी शोभा उस समय गर्भवती थी. वरुण भी बहुत छोटा था और शोभा का अपना परिवार भी वहीं था. इसलिए मैं ने उन को यहां लाना उचित नहीं समझा था. वैसे भी 2 साल बाद मुझे दोबारा पोस्टिंग मिल ही जानी थी.

गांधी कालोनी में एक घर किराए पर ले लिया था मैं ने. वहां से मेरा बैंक भी पास पड़ता था. पड़ोस में भी एक नया परिवार आया था. एक औरत और तीसरी या चौथी में पढ़ने वाले 2 जुड़वां लड़के. मेरे बैंक में काम करने वाले रमेश बाबू उसी महल्ले में रहते थे. उन से ही पता चला था कि वह औरत विधवा है. हमारे बैंक में ही उस के पति काम करते थे. कुछ साल पहले बीमारी की वजह से उन का देहांत हो गया था. उन्हीं की जगह उस औरत को नौकरी मिली थी. पहले अपनी ससुराल में रहती थी, परंतु पिछले महीने ही उन के तानों से तंग आ कर यहां रहने आई थी.

‘‘बच कर रहना विनयजी, बड़ी चालू औरत है. हाथ भी नहीं रखने देती,’’ जातेजाते रमेश बाबू यह बताना नहीं भूले थे. शायद उन की कोशिश का परिणाम अच्छा नहीं रहा होगा. इसीलिए मुझे सावधान करना उन्होंने अपना परम कर्तव्य समझा.

सौजन्य हमें विरासत में मिला है और पड़ोसियों के प्रति स्नेह और सहयोग की भावना हमारी अपनी कमाई है. इन तीनों गुणों का हम पुरुषवर्ग पूरी ईमानदारी से जतन तब और भी करते हैं जब पड़ोस में एक सुंदर स्त्री रहती हो. इसलिए पहला मौका मिलते ही मैं ने उसे अपने सौजन्य से अभिभूत कर दिया.

औफिस से लौट कर मैं ने देखा वह सीढि़यों पर बैठ हुई थी.

‘‘आप यहां क्यों बैठी हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी… सर… मेरी चाभी कहीं गिर कई है, बच्चे आने वाले हैं… समझ नहीं आ रहा क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों, आओ मेरे घर में आ जाओ.’’

‘‘जी…?’’

‘‘मेरा मतलब है आप अंदर चल कर बैठिए. तब तक मैं चाभी बनाने वाले को ले कर आता हूं.’’

‘‘जी, मैं यहीं इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘जैसी आप की मरजी.’’

थोड़ी देर बाद रचनाजी के घर की चाभी बन गई और मैं उन के घर में बैठ कर चाय पी रहा था. आधे घंटे बाद उन के बच्चे भी आ गए. दोनों मेरे बेटे वरुण की ही उम्र के थे. पल भर में ही मैं ने उन का दिल जीत लिया.

जितना समय मैं ने शायद अपने बेटे को नहीं दिया था उस से कहीं ज्यादा मैं अखिल और निखिल को देने लगा था. उन के साथ क्रिकेट खेलना, पढ़ाई में उन की सहायता करना,

रविवार को उन्हें ले कर मंडी की चाट खाने का तो जैसे नियम बन गया था. रचनाजी अब रचना हो गई थीं. अब किसी भी फैसले में रचना के लिए मेरी अनुमति महत्त्वपूर्ण हो गई थी. इसीलिए मेरे समझाने पर उस ने अपने दोनों बेटों को स्कूल के बाकी बच्चों के साथ पिकनिक पर भेज दिया था.

सरकारी बैंक में काम हो न हो हड़ताल तो होती ही रहती है. हमारे बैंक में भी 2 दिन की हड़ताल थी, इसलिए उस दिन मैं घर पर ही था. अमूमन छुट्टी के दिन मैं रचना के घर ही खाना खाता था. परंतु उस रोज बात कुछ अलग थी. घर में दोनों बच्चे नहीं थे.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं रचना?’’

‘‘अरे विनयजी अब क्या आप को भी आने से पहले इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

खाना खा कर दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद मुझे लगा रचना कुछ असहज सी है.

‘‘क्या हुआ रचना, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है.’’

अपनी जगह से उठ कर मैं उस का सिर दबाने लगा. सिर दबातेदबाते मेरे हाथ उस के कंधे तक पहुंच गए. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. हम किसी और ही दुनिया में खोने लगे. थोड़ी देर बाद रचना ने मना करने के लिए मुंह खोला तो मैं ने आगे बढ़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उस के बाद रचना ने आंखें नहीं खोलीं. मैं धीरेधीरे उस के करीब आता चला गया. कहीं कोई संकोच नहीं था दोनों के बीच जैसे हमारे शरीर सालों से मिलना चाहते हों. दिल ने दिल की आवाज सुन ली थी, शरीर ने शरीर की भाषा पहचान ली थी.

उस के कानों के पास जा कर मैं धीरे से फुसफुसाया, ‘‘प्लीज, आंखें न खोलना तुम… आज बंद आंखों में मैं समाया हूं…’’

न जाने कितनी देर हम दोनों एकदूसरे की बांहों में बंधे चुपचाप लेटे रहे दोनों के बीच की खामोशी को मैं ने ही तोड़ा, ‘‘मुझ से नाराज तो नहीं हो तुम?’’

‘‘नहीं, परंतु अपनेआप से हूं… आप शादीशुदा हैं और…’’

‘‘रचना, शोभा से मेरी शादी महज एक समझौता है जो हमारे परिवारों के बीच हुआ था. बस उसे ही निभा रहा हूं… प्रेम क्या होता है यह मैं ने तुम से मिलने के बाद ही जाना.’’

‘‘परंतु… विवाह…’’

‘‘रचना… क्या 7 फेरे प्रेम को जन्म दे सकते हैं? 7 फेरों के बाद पतिपत्नी के बीच सैक्स का होना तो तय है, परंतु प्रेम का नहीं. क्या तुम्हें पछतावा हो रहा है रचना?’’

‘‘प्रेम शक्ति देता है, कमजोर नहीं करता. हां, वासना पछतावा उत्पन्न करती है. जिस पुरुष से मैं ने विवाह किया, उसे केवल अपना शरीर दिया. परंतु मेरे दिल तक तो वह कभी पहुंच ही नहीं पाया. फिर जितने भी पुरुष मिले उन की गंदी नजरों ने उन्हें मेरे दिल तक आने ही नहीं दिया. परंतु आप ने मुझे एक शरीर से ज्यादा एक इनसान समझा. इसीलिए वह पुराना संस्कार, जिसे अपने खून में पाला था कि विवाहेतर संबंध नहीं बनाना, आज टूट गया. शायद आज मैं समाज के अनुसार चरित्रहीन हो गई.’’

फिर कई दिन बीत गए, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ होते जा रहे थे. मौका मिलते ही हम काफी समय साथ बिताते. एकसाथ घूमनाफिरना, शौपिंग करना, फिल्म देखना और फिर घर आ कर अखिल और निखिल के सोने के बाद एकदूसरे की बांहों में खो जाना दिनचर्या में शामिल हो गया था. औफिस में भी दोनों के बीच आंखों ही आंखों में प्रेम की बातें होती रहती थीं.

बीचबीच में मैं अपने घर आ जाता और शोभा के लिए और दोनों बच्चों के लिए ढेर सारे उपहार भी ले जाता. राशि का भी जन्म हो चुका था. देखते ही देखते 2 साल बीत गए. अब शोभा मुझ पर तबादला करवा लेने का दबाव डालने लगी थी. इधर रचना भी हमारे रिश्ते का नाम तलाशने लगी थी. मैं अब इन दोनों औरतों को नहीं संभाल पा रहा था. 2 नावों की सवारी में डूबने का खतरा लगातार बना रहता है. अब समय आ गया था किसी एक नाव में उतर जाने का.

रचना से मुझे वह मिला जो मुझे शोभा से कभी नहीं मिल पाया था, परंतु यह भी सत्य था कि जो मुझे शोभा के साथ रहने में मिलता वह मुझे रचना के साथ कभी नहीं मिल पाता और वह था मेरे बच्चे और सामाजिक सम्मान. यह सब कुछ सोच कर मैं ने तबादले के लिए आवेदन कर दिया.

‘‘तुम दिल्ली जा रहे हो?’’

रचना को पता चल गया था, हालांकि मैं ने पूरी कोशिश की थी उस से यह बात छिपाने की. बोला, ‘‘हां. वह जाना तो था ही…’’

‘‘और मुझे बताने की जरूरत भी नहीं समझी…’’

‘‘देखो रचना मैं इस रिश्ते को खत्म करना चाहता हूं.’’

‘‘पर तुम तो कहते थे कि तुम मुझ से प्रेम करते हो?’’

‘‘हां करता था, परंतु अब…’’

‘‘अब नहीं करते?’’

‘‘तब मैं होश में नहीं था, अब हूं.’’

‘‘तुम कहते थे शोभा मान जाएगी… तुम मुझ से भी शादी करोगे… अब क्या हो गया?’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? एक पत्नी के रहते क्या मैं दूसरी शादी कर सकता हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी? क्या जो हमारे बीच था वह महज.’’

‘‘रचना… देखो मैं ने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, जो भी हुआ उस में तुम्हारी भी मरजी शामिल थी.’’

‘‘तुम मुझे छोड़ने का निर्णय ले रहे हो… ठीक है मैं समझ सकती हूं… तुम्हारी पत्नी है, बच्चे हैं. दुख मुझे इस बात का है कि तुम ने मुझे एक बार भी बताना जरूरी नहीं समझा. अगर मुझे पता नहीं चलता तो तुम शायद मुझे बिना बताए ही चले जाते. क्या मेरे प्रेम को इतने सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी?’’

‘‘तुम्हें मुझ से किसी तरह की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए थी.’’

‘‘मतलब तुम ने मेरा इस्तेमाल किया और अब मन भर जाने पर मुझे…’’

‘‘हां किया जाओ क्या कर लोगी… मैं ने मजा किया तो क्या तुम ने नहीं किया? पूरी कीमत चुकाई है मैं ने. बताऊं तुम्हें कितना खर्चा किया है मैं ने तुम्हारे ऊपर?’’

कितना नीचे गिर गया था मैं… कैसे बोल गया था मैं वह सब. यह मैं भी जानता था कि रचना ने कभी खुद पर या अपने बच्चों पर ज्यादा खर्च नहीं करने दिया था. उस के अकेलेपन को भरने का दिखावा करतेकरते मैं ने उसी का फायदा उठा लिया था.

‘‘मैं तुम्हें बताऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं… आज जो तुम ने मेरे साथ किया है वह किसी और लड़की के साथ न करो, इस के लिए तुम्हें सजा मिलनी जरूरी है… तुम जैसा इनसान कभी नहीं सुधरेगा… मुझे शर्म आ रही है कि मैं ने तुम से प्यार किया.’’

उस के बाद रचना ने मुझ पर रेप का केस कर दिया. केस की बात सुनते ही शोभा और मेरी ससुराल वाले और परिवार वाले सभी मुजफ्फर नगर आ गए. मैं ने रोरो कर शोभा से माफी मांगी.

‘‘अगर मैं किसी और पुरुष के साथ संबंध बना कर तुम से माफी की उम्मीद करती तो क्या तुम मुझे माफ कर देते विनय?’’

मैं एकदम चुप रहा. क्या जवाब देता.

‘‘चुप क्यों हो बोलो?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘शायद… हा… हा… हा… यकीनन तुम मुझे माफ नहीं करते. पुरुष जब बेवफाई करता है तो समाज स्त्री से उसे माफ कर आगे बढ़ने की उम्मीद करता है. परंतु जब यही गलती एक स्त्री से होती है, तो समाज उसे कईर् नाम दे डालता है. जिस स्त्री से मुझे नफरत होनी चाहिए थी. मुझे उस पर दया भी आ रही थी और गर्व भी हो रहा था, क्योंकि इस पुरुष दंभी समाज को चुनौती देने की कोशिश उस ने की थी.’’

‘‘तो तुम मुझे माफ नहीं…’’

‘‘मैं उस के जैसी साहसी नहीं हूं… लेकिन एक बात याद रखना तुम्हें माफ एक मां कर रही है एक पत्नी और एक स्त्री के अपराधी तुम हमेशा रहोगे.’’

शर्म से गरदन झुक गई थी मेरी.

पूरा महल्ला रचना पर थूथू कर रहा था. वैसे भी हमारा समाज कमजोर को हमेशा दबाता रहा है… फिर एक अकेली, जवान विधवा के चरित्र पर उंगली उठाना बहुत आसान था. उन सभी लोगों ने रचना के खिलाफ गवाही दी जिन के प्रस्ताव को उस ने कभी न कभी ठुकराया था.

अदालतमें रचना केस हार गई थी. जज ने उस पर मुझे बदनाम करने का इलजाम लगाया. अपने शरीर को स्वयं परपुरुष को सौंपने वाली स्त्री सही कैसे हो सकती थी और वह भी तब जब वह गरीब हो?

रचना के पास न शक्ति बची थी और न पैसे, जो वह केस हाई कोर्ट ले जाती. उस शहर में भी उस का कुछ नहीं बचा था. अपने बेटों को ले कर वह शहर छोड़ कर चली गई. जिस दिन वह जा रही थी मुझ से मिलने आई थी.

‘‘आज जो भी मेरे साथ हुआ है वह एक मृगतृष्णा के पीछे भागने की सजा है. मुझे तो मेरी मूर्खता की सजा मिल गई है और मैं जा रही हूं, परंतु तुम से एक ही प्रार्थना है कि अपने इस फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना.’’

चली गई थी वह. मैं भी अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गया था. मेरे और शोभा के बीच जो खालीपन आया था वह कभी नहीं भर पाया. सही कहा था उस ने एक पत्नी ने मुझे कभी माफ नहीं किया था. मैं भी कहां स्वयं को माफ कर पाया और न ही भुला पाया था रचना को.

किसी भी रिश्ते में मैं वफादारी नहीं निभा पाया था. और आज मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो कर मुझ पर हंस रहा था. जो मैं ने आज से कई साल पहले एक स्त्री के साथ किया था वही मेरी बेटी के साथ होने जा रहा था.

नहीं मैं राशि के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा. उस से बात करूंगा, उसे समझाऊंगा. वह मेरी बेटी है समझ जाएगी. नहीं मानी तो उस रमन से मिलूंगा, उस के परिवार से मिलूंगा, परंतु मुझे पूरा यकीन था ऐसी नौबत नहीं आएगी… राशि समझदार है मेरी बात समझ जाएगी.

उस के कमरे के पास पहुंचा ही था तो देखा वह अपने किसी दोस्त से वीडियो चैट कर रही थी. उन की बातों में रमन का जिक्र सुन कर मैं वहीं ठिठक गया.

‘‘तेरे और रमन सर के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘वही जो इस उम्र में चलता है… हा… हा… हा…’’

‘‘तुझे शायद पता नहीं कि वे शादीशुदा हैं?’’

‘‘पता है.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘राशि, देख यार जो इनसान अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं है वह तेरे साथ क्या होगा? क्या पता कल तुझे छोड़ कर…’’

‘‘ही… ही… मुझे लड़के नहीं, मैं लड़कों को छोड़ती हूं.’’

‘‘तू समझ नहीं रही…’’

‘‘यार अब वह मुरगा खुद कटने को तैयार बैठा है तो फिर मेरी क्या गलती? उसे लगता है कि मैं उस के प्यार में डूब गई हूं, परंतु उसे यह नहीं पता कि वह सिर्फ मेरे लिए एक सीढ़ी है, जिस का इस्तेमाल कर के मुझे आगे बढ़ना है. जिस दिन उस ने मेरे और मेरे सपने के बीच आने की सोची उसी दिन उस पर रेप का केस ठोक दूंगी और तुझे तो पता है ऐसे केसेज में कोर्ट भी लड़की के पक्ष में फैसला सुनाता है,’’ और फिर हंसी का सम्मिलित स्वर सुनाई दिया.

सीने में तेज दर्द के साथ मैं वहीं गिर पड़ा. मेरे कानों में रचना की आवाज गूंज रही थी कि अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना… अपने फरेब की विरासत अपने बच्चों में मत बांटना, परंतु विरासत तो बंट चुकी थी.

कठघरे में प्यार : प्रो. विवेक शास्त्री के साथ क्या हुआ था ?

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कोयले की लकीर : सुगंधा खुश थी या दुखी ?

विनी ने सोचा न था जिस पितातुल्य इंसान पर वह विश्वास कर रही है वह इंसान उस विश्वास और सम्मान को एक झटके में समाप्त कर देगा. तो क्या वह अपने छलनी तनमन के साथ हार मान बैठ गई? विनी की प्रसन्नता की सीमा नहीं थी. एमए का रिजल्ट निकल आया था. 80 प्रतिशत मार्क्स आए थे. अपनी मम्मी सुगंधा के लिए उस ने उन की पसंद की मिठाई खरीदी और घर की तरफ उत्साह से कदम बढ़ा दिए. सुगंधा अपनी बेटी की सफलता से अभिभूत हो गईं.

खुशी से आंखें झिलमिला गईं. दोनों मांबेटी एकदूसरे के गले लग गईं. एकदूसरे का मुंह मीठा करवाया. घर में 2 ही तो लोग थे. विनी के पिता आलोक का देहांत हो गया था. सुगंधा सीधीसरल हाउसवाइफ थीं. पति की पैंशन और दुकानों के किराए से घर का खर्च चल जाता था. शाम को वे कुछ ट्यूशंस भी पढ़ाती थीं. विनी ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में एमए किया था. आलोक को आर्ट्स में विशेष रुचि थी. विनी की ड्राइंग में रुचि देख कर उन्होंने उसे भी इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया था.

विनी शाम को कुछ बच्चों को ड्राइंग सिखाया करती थी. पेंटिंग के सामान का खर्च वह इन्हीं ट्यूशंस से निकाल लेती थी. सुगंधा ने बेटी को गर्वभरी नजरों से देखते हुए उस से पूछा, ‘‘अब आगे क्या इरादा है?’’ फिर विनी के जवाब देने से पहले ही उसे छेड़ने लगी, ‘‘लड़का ढूंढ़ा जाए?’’ विनी ने आंखें तरेरीं, ‘‘नहीं, अभी नहीं, अभी मुझे बहुतकुछ करना है.’’ ‘‘क्या सोचा है?’’ ‘‘पीएचडी करनी है. सोच रही हूं आज ही शेखर सर से मिल आती हूं. उन्हें ही अपना गाइड बनाना चाहती हूं. मां, आप को पता है, उन में मुझे पापा की छवि दिखती है. बस, वे मुझे अपने अंडर में काम करने दें.’’ ‘‘मैं तुम्हारे भविष्य में कोई बाधा नहीं बनूंगी, खूब पढ़ाई करो, आगे बढ़ो.’’ विनी अपनी मां की बांहों में छोटी बच्ची की तरह समा गई. सुगंधा ने भी उसे खूब प्यार किया. सुगंधा को अपनी मेहनती, मेधावी बेटी पर नाज था.

रुड़की के आरपी कालेज में एमए करने के बाद वह अपने प्रोफैसर शेखर के अधीन ही पीएचडी करना चाहती थी. शेखर का बेटा रजत विनी का बहुत अच्छा दोस्त था. बचपन से दोनों साथ पढ़े थे. पर रजत को आर्ट्स में रुचि नहीं थी, वह इंजीनियरिंग कर अब जौब की तलाश में था. दोनों हर सुखदुख बांटते थे, एकदूसरे के घर भी आनाजाना लगा रहता था. इन दोनों की दोस्ती के कारण दोनों परिवारों में भी कभीकभी मुलाकात होती रहती थी. विनी ने रजत को फोन कर अपना रिजल्ट और आगे की इच्छा बताई. रजत बहुत खुश हुआ, ‘‘अरे, यह तो बहुत अच्छा रहेगा. पापा बिलकुल सही गाइड रहेंगे. किसी अंजान प्रोफैसर के साथ काम करने से अच्छा यही रहेगा कि तुम पापा के अंडर में ही काम करो. आज ही आ जाओ घर, पापा से बात कर लो.’’ शाम को ही विनी मिठाई ले कर रजत के घर गई. शेखर के पास कुछ स्टूडैंट्स बैठे थे. विनी का बचपन से ही घर में आनाजाना था. वह निसंकोच अंदर चली गई.

शेखर की पत्नी राधा विनी पर खूब स्नेह लुटाती थी. रजत और राधा के साथ बैठ कर विनी गप्पें मारने लगी. थोड़ी देर में शेखर भी उन के साथ शामिल हो गए. दोनों ने उस की सफलता पर शुभाशीष दिए. उस की पीएचडी की इच्छा जान कर शेखर ने कहा, ‘‘ठीक है, अभी कुछ दिन लाइब्रेरी में सभी बुक्स देखो. किसकिस टौपिक पर काम हो चुका है, किस टौपिक पर रिसर्च होनी चाहिए, पहले वह डिसाइड करेंगे. फिर उस पर काम करेंगे. अभी कालेज की लाइब्रेरी में काफी नई बुक्स आई हैं, उन पर एक नजर डाल लो. देखो, क्या आइडिया आता है तुम्हें.’’ विनी उत्साहपूर्वक बोली, ‘‘सर, कल से ही लाइब्रेरी जाऊंगी. शेखर कालेज में विनी का पीरियड लेते थे. विनी उन्हें सर कहने लगी थी. रजत ने हमेशा की तरह टोका, ‘‘अरे, घर में तो पापा को सर मत कहो, विनी, अंकल कहो.’’ विनी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, सर ही ठीक है, कहीं अंकल कहने की आदत हो गई और क्लास में मुंह से अंकल निकल गया तो क्या होगा, यह सोचो.

’’ सब विनी की इस बात पर हंस पड़े. विनी ने जातेजाते शेखर के रूम में नजर डाली. शेखर की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती रहती थी. वह शेखर का बहुत सम्मान करती थी. हर पेंटिंग में स्त्री के अलगअलग भाव मुखर हो उठे थे. कहीं शक्ति बनी स्त्री, कहीं मातृत्व में डूबी स्त्री आकृति, कहीं प्रेयसी का रूप धरे मनोहारी आकृति, कहीं आराध्य का रूप लिए ओजपूर्ण स्त्री आकृति. शेखर के काम की मन ही मन सराहना करती हुई विनी घर लौट आई और सुगंधा को शेखर की सलाह बताई. अगले दिन से ही विनी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने में बिजी रहने लगी. 15 दिनों की खोजबीन के बाद उसे एक विषय सूझा. वह उत्साहित सी शेखर के घर की तरफ बढ़ गई. उसे पता था, रजत अपने दोस्तों के साथ कहीं गया हुआ था.

राधा तो अकसर घर में ही रहती थी. पर शाम को जिस समय विनी शेखर के घर पहुंची, राधा किसी काम से कहीं गई हुई थीं. शेखर घर में अकेले थे. विनी ने उन्हें विश किया. उन के हालचाल पूछे. पूछा, ‘‘आंटी नहीं हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अभी आ जाएंगी.’’ ‘‘आज बाकी स्टूडैंट्स नहीं हैं?’’ ‘‘नहीं आजकल उन्हें कुछ काम दिया हुआ है, पूरा कर के आएंगे.’’ ‘‘सर, मैं ने लाइब्रेरी में काफीकुछ देखा, ‘भारतीय गुफाओं में भित्ति चित्रण’ इस पर कुछ काम कर सकते हैं?’’ ‘‘हां, शाबाश, कुछ विषय और देख लो, फिर फाइनल करेंगे,’’ शेखर आज उस के सामने बैठ कर जिस तरह उसे देख रहे थे, विनी कुछ असहज सी हुई. वह जाने के लिए उठती हुई बोली, ‘‘ठीक है, सर, मैं अभी और पढ़ कर आऊंगी.’’

सच है, गृहस्थ हो या संन्यासी, सभी पुरुषों के अंदर एक आदिम पाश्विक वृत्ति छिपी रहती है. किस रूप में, किस उम्र में वह पशु जाग कर अपना वीभत्स रूप दिखाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. ‘‘रुको जरा, विनी मेरे लिए एक कप चाय बना दो. कुछ सिरदर्द है,’’ विनी धर्मसंकट में फंस गई. उस का दिमाग कह रहा था, फौरन चली जा, पर पिता की सी छवि वाले गुरु की बात टालने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी. फिर अपने दिल को ही समझा लिया, नहीं, उस का वहम ही होगा. आजकल माहौल ही ऐसा है न, डर लगा ही रहता है. ‘जी, सर’ कहती हुई वह किचन की तरफ बढ़ गई.

उसे अपने पीछे दरवाजा बंद करने की आहट मिली तो वह चौंक गई. शेखर उस की तरफ आ रहे थे. चेहरे पर न पिता की सी छवि दिखी, न गुरु के से भाव, विनी को उन के चेहरे पर कुटिल मुसकान दिखी. उसे महसूस हुआ जैसे वह किसी खतरे में है. शेखर एकदम उस के पास आ कर खड़े हो गए. उस के कंधों पर हाथ रखा तो विनी पीछे हटने लगी. नारी हर उम्र में पुरुष के अनुचित स्पर्श को भांप लेती है. शेखर बोले, ‘‘घबराओ मत, यह तो अब चलता ही रहेगा. थोड़े और करीब आ जाएं हम दोनों, तो रिसर्च करने में तुम्हें आसानी होगी. तुम्हारी हर मदद करूंगा मैं.’’ नागिन सी फुंफकार उठी विनी, ‘‘शर्म नहीं आती आप को? आप की बेटी जैसी हूं मैं. आप में हमेशा पिता की छवि दिखी है मुझे.’’ ‘‘मैं ने तो तुम्हें कभी बेटी नहीं समझा. तुम अपने मन में मेरे बारे में क्या सोचती हो, उस से मुझे जरा भी मतलब नहीं. आओ मेरे साथ.’’ विनी ने पीछे हटते हुए कहा, ‘‘मैं आंटी, रजत सब को बताऊंगी, आप की यह गिरी हुई हरकत छिपी नहीं रहेगी.’’ ‘‘बाद में बताती रहना, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा,’’

कहते हुए उस का हाथ पकड़ कर बलिष्ठ शेखर उसे बैडरूम तक ले गए. विनी ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश में उन्हें काफी धक्के दिए. उन का हाथ दांतों से काट भी लिया. पर उन के सिर पर ऐसा शैतान सवार था कि विनी के रोके न रुका और दुर्घटना घट गई. सालों का आदर, विश्वास सब रेत की तरह ढहता चला गया. विनी ने रोरो कर चीखचीख कर शोर मचाया. तो शेखर ने कहा, ‘‘चुपचाप चली जाओ यहां से और जो हुआ उसे भूल जाओ. इसी में तुम्हारी भलाई है. किसी को बताओगी भी, तो जानती हो न, कितने सवालों के घेरे में फंस जाओगी. परिवार, समाज में मेरी इमेज का अंदाजा तो है ही तुम्हें.’’ ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी मैं,’’ विनी चिल्लाई, ‘‘आने दो आंटी को, उन्हें और रजत को आप की करतूत बताए बिना मैं कहीं नहीं जाने वाली,’’ शेखर को अब हैरानी हुई, ‘‘बेवकूफी मत करो बदनाम हो जाओगी, कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी, समाज रोज तुम पर ही नएनए ढंग से कीचड़ उछालेगा, पुरुष का कुछ बिगड़ा है कभी?’’ विनी नफरतभरे स्वर में गुर्राई, ‘‘आप ने मेरा रेप किया है,

आप मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’ शेखर ने तो सोचा था विनी रोधो कर चुपचाप चली जाएगी पर वह तो अभी वैसी की वैसी बैठी हुई उन्हें गालियां दिए जा रही थी. हिली भी नहीं थी. इस स्थिति की तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी. डोरबेल बजी तो उन के पसीने छूट गए, बोले, ‘‘भागो यहां से, जल्दी.’’ ‘‘मैं कहीं नहीं जा रही.’’ डोरबेल दोबारा बजी तो शेखर के हाथपैर फूल गए, दरवाजा खोला, राधा थीं. शेखर का उड़ा चेहरा देख चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’ शेखर इतना ही बोले, ‘‘सौरी, राधा.’’ ‘‘क्या हुआ, शेखर?’’ तभी बैडरूम से ‘आंटी’ कह कर विनी के तेजी से रोने की आवाज आई. राधा भागीं. बैड पर अर्धनग्न, बेहाल, रोने से फैले काजल की गालों पर सबकुछ स्पष्ट करती रेखा, बिखरे बाल, कराहतीरोती विनी राधा की बांहों में निढाल हो गईं. राधा जैसे पत्थर की बुत बन गई. विनी की हालत देख कर सबकुछ समझ गईं. फूटफूट कर रो पड़ीं. शेखर को धिक्कार उठीं, ‘‘यह क्या किया, हमारी बच्ची जैसी है यह. यह कुकर्म क्यों कर दिया? नफरत हो रही है तुम से.’’ राधा का रौद्र रूप देख कर शेखर सकपकाए. राधा ने उन की तरफ थूक दिया. तनमन में ऐसी आग लगी थी कि विनी को एक तरफ कर पास के कमरे में अगले हफ्ते होने वाली प्रदर्शनी के लिए रखी शेखर की तैयार 10-15 पेंटिंग्स पर वहीं रखे काले रंग से स्त्री के महान रूपों की तस्वीरों में कालिख भरती चली गईं. विनी को फिर अपने से चिपटा लिया. शेखर चुपचाप वहीं रखी एक चेयर पर बैठ गए थे. दोनों रोती रहीं, राधा और सुगंधा के अच्छे संबंध थे.

राधा ने सुगंधा को फोन किया और फौरन आने के लिए कहा. घर थोड़ी ही दूर था. सुगंधा और रजत लगभग साथसाथ ही घर में घुसे. सब स्थिति समझ कर सुगंधा तो विनी को, अपनी मृगछौने सी प्यारी बेटी को, गले से लगा कर बिलख उठी. रजत ने उन्हें संभाला. रजत ने रोते हुए विनी के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘बहुत शर्मिंदा हूं, विनी, अब इस आदमी से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ राधा भी दृढ़ स्वर में बोल उठीं, ‘‘और मेरा भी कोई संबंध नहीं. रजत, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रहूंगी,’’ रजत विनी की हालत देख कर फूटफूट कर रो रहा था. बचपन की प्यारी सी दोस्त का यह हाल. वह भी उस के पिता ने, घिन्न आ रही थी उसे. सुगंधा का विलाप भी थमने का नाम नहीं ले रहा था. राधा कभी सुगंधा से माफी मांगती, कभी विनी से. शेखर को छोड़ कर सब गहरे दुख में डूबे थे. वे सोच रहे थे, सब रोधो कर अभी शांत हो जाएंगे. राधा कह रही थी, ‘‘काश, मैं विधवा होती, ऐसे पशु पति का साथ तो न होता. अपरिचितों से तो ये परिचित अधिक खतरनाक होते हैं. ये कुछ भी करें, इन्हें पता है, कोई कुछ बोलेगा नहीं. पर ऐसा नहीं होगा.’’ विनी के मुंह से जैसे ही निकला, ‘‘मेरा जीवन तो बरबाद हो गया,’’ राधा ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारा क्यों बरबाद होगा, बेटी, तुम ने क्या किया है. तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है.

अपने दिल पर यह बोझ मत रखना. इस दुष्कर्म को याद ही नहीं रखना. दुखी नहीं रहना है तुम्हें. पाप कोई और करे, दुखी कोई और हो, यह कहां का न्याय है?’’ राधा के शब्दों से जैसे सुगंधा भी होश में आई. यह समय उस के रोने का कहां था. यह तो बेटी को मानसिक संबल देने की घड़ी थी. अपने आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘नहीं विनी, इस घृणित इंसान का दिया घाव जल्दी नहीं भरेगा, जानती हूं, पर भरेगा जरूर, यह भी भरोसा रखो. समझ लेना बेटा, सड़क पर चलते हुए किसी कुत्ते ने काट खाया है. इस दुष्कर्मी का कुकर्म मेरी बेटी के आत्मविश्वास की मजबूत चट्टान को भरभरा कर गिरा नहीं सकता.’’ विनी फिर रोने लगी, सिसकते हुए बोली, ‘‘मेरे सारे वजूद पर कालिख सी पोत दी गई है, कैसे जिऊंगी,’’ रजत उस के पास ही जमीन पर बैठते हुए बोला, ‘‘विनी, ताजमहल की सुंदरता ऐसे दुष्कर्मियों की खींची कोयले की लकीरों से खराब नहीं होती. इस लकीर पर पानी डालते हुए सिर ऊंचा रख कर आगे बढ़ना है तुम्हें. हम सब तुम्हारे साथ हैं. तुम्हारा जीवन यहां रुकेगा नहीं. बहुत आगे बढ़ेगा,’’

और फिर शेखर की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘और आप को तो मैं सजा दिलवा कर रहूंगा.’’ बात इस हद तक पहुंच जाएगी, इस की तो शेखर ने कल्पना भी नहीं की थी. अपने अधीन पीएचडी करने वाली अन्य छात्राओं का भी वे शारीरिक शोषण करते आए थे. किसी ने उन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की थी. उन्हें किसी का डर नहीं था. इस तरह के किसी भी आदमी को समाज, परिवार या कानून का डर नहीं होता क्योंकि उन के पास इज्जत, पद का ऐसा लबादा होता है जिस से नीचे की गंदगी कोई चाह कर भी नहीं देख सकता. वे कमजोर सी, आम परिवार की छात्राओं को अपना शिकार बनाया करते थे. विनी के बारे में भी यही सोचा था कि मांबेटी रोधो कर इज्जत के डर से चुप ही रह जाएंगी. पर उन की पत्नी और पुत्र ने स्थिति बदल दी थी. अब जो हो रहा था, वे हैरान थे. अकल्पनीय था. पत्नी और पुत्र के सामने शर्मिंदा होना पड़ गया था. राधा उठ कर खड़ी हो गई थी, ‘‘रजत, मैं इस घर में नहीं रहूंगी.’’ ‘‘हां, मां, मैं भी नहीं रह सकता.’’ शेखर ने उपहासपूर्वक पूछा, ‘‘कहां जाओगे दोनों? बड़ीबड़ी बातें तो कर रहे हो, कोई और ठिकाना है?’’ अपमान की पीड़ा से राधा तड़प उठी, ‘‘तुम्हारे जैसे बलात्कारी पुरुष के साथ रह कर सुविधाओं वाला जीवन नहीं चाहिए मुझे, मांबेटा कहीं भी रह लेंगे.

तुम से संबंध नहीं रखेंगे. तुम्हें सजा मिल कर रहेगी. ‘‘आज अपने बेटे के साथ मिल कर एक निर्दोष लड़की को एक साहस, एक सुरक्षा का एहसास सौंपना है. धरोहर के रूप में अपनी आने वाली पीढि़यों को भी यही सौंपना होगा.’’ राधा आगे बोली, ‘‘चलो रजत, मैं यह टूटन, यह शोषण स्वीकार नहीं करूंगी. अपने घर के अंदर अगर इस घिनौनी करतूत का विरोध नहीं किया तो बाहर भी औरत कैसे लड़ पाएगी और हमेशा रिश्तों की आड़ में शोषित ही होती रहेगी. परिवार की इज्जत, रिश्तेदारी और समाज के खयाल से मैं चुप नहीं रहूंगी.’’ सुगंधा भी विनी को संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर जाने के लिए खड़ी हो गईं. अचानक कुछ सोच कर बोली, ‘‘राधा, चाहो तो आज से तुम दोनों हमारे घर में रह सकते हो.’’ रजत उन के पैरों में झुक गया, ‘‘हां, आंटी, मैं भी आ रहा हूं आप के घर. चलो मां, अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है. साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा. और विनी, तुम एक दिन भी इस कुकर्मी के कुकर्म को याद कर दुखी नहीं होगी. तुम्हें बहुत काम है. नया गाइड ढूढ़ंना है. पीएचडी करनी है.

इस आदमी की रिपोर्ट करनी है. इसे कोर्ट में घसीटना है. सजा दिलवानी है. बहुत काम है. विनी, चलो,’’ चारों उन के ऊपर नफरतभरी नजर डाल कर निकल गए. अब शेखर को साफसाफ दिख रहा था कि अब उन के किए की सजा उन्हें मिल कर रहेगी. अगर विनी और सुगंधा अकेले होते तो कमजोर पड़ सकते थे. पर अब चारों साथ थे, तो उन की हार तय थी. कितनी ही छात्राओं के साथ किया बलात्कार उन की आंखों के आगे घूम गया. वे सिर पकड़ कर बैठे रह गए थे. वे चारों गंभीर, चुपचाप चले जा रहे थे. ऐसे समाज से निबटना था जो बलात्कार की शिकार लड़की को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर देता है. उस के साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे उस ने कोई गुनाह किया हो. शारीरिक और मानसिक रूप से पहले से ही आहत लड़की को और सताया जाता है. लेकिन, इन चारों के इरादे, हौसले मजबूत थे. समाज की चिंता नहीं थी. लड़ाई मुश्किल, लंबी थी पर चारों के दिलों में इस लड़ाई में जीत का एहसास अपनी जगह बना चुका था. हार का संशय भी नहीं था. जीत निश्चित थी.

द्य ऐसा भी होता है मनोहरजी का बेटा अपनी मां को लेने गांव आया था. उन की बहू का बच्चा होने वाला था. इसलिए बेटा मां को मुंबई ले जा रहा था. वह मनोहरजी के लिए पैंटकमीज का कपड़ा मुंबई से लाया था. बेटे ने कपड़ा मनोहरजी को देते हुए कहा, ‘‘इसे सिलवा लीजिएगा, आप पर बहुत अच्छा लगेगा.’’ पिताजी ने कहा, ‘‘इस की क्या जरूरत थी, मुझे धोतीकुरते में ही आराम मिलता है.’’ मनोहरजी कपड़े पा कर बहुत प्रसन्न थे. उन्होंने दर्जी को दे कर अपनी नाप की पैंटशर्ट सिलवा ली. कपड़े उन्होंने पहन कर नापे, वे खुद को बहुत सुंदर महसूस कर रहे थे. एक महीने बाद खबर आई कि बहू ने एक बेटे को जन्म दिया है. बेटे के जन्मोत्सव के लिए बेटे ने उन्हें भी मुंबई बुलाया था. वे मुंबई जाने की तैयारी करने लगे. नियत समय पर वे मुंबई पहुंचे. बेटा उन्हें लेने के लिए आया हुआ था. जब वे बेटे के घर पहुंचे तो बहुत प्रसन्न थे कि उस का रहनसहन कितना ऊंचा है. उन का बेटा कितना बड़ा अफसर है, उस के कितने ठाटबाट हैं. बेटे के जन्मोत्सव की पार्टी रखी गई. घर में तैयारी चल रही थी.

शाम को सभी लोग पार्टी के लिए तैयार हो रहे थे. मनोहरजी अपनी वही पैंटशर्ट पहने तैयार हुए जो उन का बेटा उन्हें गांव में दे गया था. बेटे ने जब उन्हें उन कपड़ों में देखा, तो चीखते हुए बोला, ‘‘आप के पास यही कपड़े पहनने को हैं.’’ बहू भी दौड़ती हुई आई कि क्या हो गया. तब बहू पिताजी को ले कर कमरे में आई और पिताजी से बोली, ‘‘आप दूसरे कपड़े पहन लीजिए. ये कपड़े यहां के इंजीनियरों की यूनिफौर्म के हैं. इंजीनियर को साल में 2 जोड़ी कपड़े मिलते हैं. वे उन्हें स्वयं न सिलवा कर अपने रिश्तेदारों में बांट देते हैं या दान कर देते हैं. आप को इन कपड़ों में देख कर लोग क्या सोचेंगे.’’ मनोहरजी बहू की बात सुन कर सकते में आ गए. उन्हें बड़ा दुख हो रहा था कि बेटे ने उन्हें कपड़ा देने के पहले यह बात क्यों नहीं बता दी थी. उपमा मिश्रा

कब तक चलेंगे ऐसे विवाद : अयोध्या, काशी और अब मथुरा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मसजिद का कोर्ट की देखरेख में सर्वेक्षण कराए जाने को मंजूरी दे दी है. यह सर्वेक्षण हाईकोर्ट की ओर से तय एडवोकेट कमिश्नर की निगरानी में होगा. श्री कृष्ण विराजमान की ओर से दाखिल अर्जी पर कोर्ट ने यह मांग स्वीकार कर ली है. मसले पर अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी. जिस में यह तय किया जाएगा कि सर्वे कार्य कैसे होगा ?
अयोध्या मंदिर विवाद की तरह मथुरा विवाद में भी जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मसजिद को मंदिर का ही हिस्सा बताए जाने से जुड़ी सभी 18 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

श्री कृष्ण विराजमान ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन और प्रभाष पांडेय की ओर से दाखिल अर्जी में दावा किया गया है कि ‘भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मसजिद के नीचे है. वहां ऐसे कई प्रतीक हैं जो स्थापित करते हैं कि मसजिद एक हिंदू मंदिर है. वहां एक कमल के आकार का स्तंभ और शेषनाग की छवि मौजूद है. शेषनाग ने ही भगवान कृष्ण की रक्षा की थी.’

मसजिद के स्तंभ के निचले हिस्से पर हिंदू धार्मिक प्रतीक और नक्काशी भी दिखाई देती है. इसे देखते हुए कोर्ट 3 अधिवक्ताओं का एक एडवोकेट कमीशन नियुक्त कर जांच के निर्देश दे. पूरी कार्यवाही की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी कराई जाए.

विवादित मामले के मूल वाद भगवान श्री कृष्ण विराजमान कटरा केशव देव के नाम से रंजन अग्निहोत्री ने दाखिल किया है. इस से जुड़ी सभी 18 याचिकाओं में 12 अक्तूबर, 1968 को शाही ईदगाह मसजिद को 13.37 एकड़ जमीन देने के समझौते को अवैध बताया गया है. इस जमीन को भगवान श्री कृष्ण विराजमान को लौटाने की मांग की गई है. शाही ईदगाह मसजिद को भी हटाने की मांग की गई है. सभी 18 वादों में शाही ईदगाह मसजिद, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और श्री कृष्ण जन्मभूमि संघ को पक्षकार बनाया गया है.

कोर्ट ने आदेश में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के इतिहास भी जिक्र करते कहा कहा है कि 5132 साल पहले भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कंस के मथुरा कारागार में जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उसे कटरा केशव देव के नाम से जाना जाता है. 1618 ईसवी में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर निर्माण कराया था.

मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर ध्वस्त कर शाही ईदगाह मसजिद बनवा दी. गोवर्धन युद्ध के दौरान मराठा शासकों ने आगरा मथुरा पर आधिपत्य जमा लिया और श्रीकृष्ण मंदिर का फिर से निर्माण करा दिया. इस के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1803 में 13.37 एकड़ भूमि नजूल की घोषित कर दी. 1815 में बनारस के राजा पटनीमल ने यह जमीन अंग्रेजों से खरीद ली. मुसलिम पक्ष के स्वामित्व का दावा खारिज हो कर 1860 में बनारस राजा के वारिस राजा नरसिंह दास के पक्ष में डिक्री हो गया.

जिला अदालत से 1920 में मुसलिम पक्ष को झटका लगा. कोर्ट ने कहा, 13.37 एकड़ जमीन पर मुसलिम पक्ष का कोई अधिकार नहीं है. इस के बाद 1935 में शाही ईदगाह मसजिद के केस को एक समझौते के आधार पर फिर से तय किया गया. 1944 में पूरी जमीन पंडित मदनमोहन मालवीय और 2 अन्य को बैनामा कर दी गई.

उद्योगपति जे के बिड़ला ने भूमि की कीमत अदा की. 21 फरवरी, 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बना लेकिन 1958 में वह अर्थहीन हो गया. इसी साल मुसलिम पक्ष का एक केस खारिज कर दिया गया. 1977 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ बना, जो बाद में सेवा संस्थान बन गया. न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र की पीठ ने 26 मई, 2023 को जन्मभूमि विवाद से जुड़े सभी 18 वादों को मथुरा जिला अदालत से हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था. इस के बाद से ही हाईकोर्ट प्रकरण की सुनवाई कर रहा है.

‘हर मसजिद में शिवलिंग देखना सही नहीं है.’ मोहन भागवत

राम मंदिर फैसले के बाद वाराणसी के ज्ञानवापी मसजिद विवाद और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि विवाद ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस तरह के विवादों का अंत कब होगा? जब ज्ञानव्यापी मसजिद का विवाद उठा था तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का एक बड़ा बयान सामने आया था जिस में उन्होंने इन विवादों को बेकार करार दिया था.

मोहन भागवात ने कहा था कि ‘हर मसजिद में शिवलिंग देखना सही नहीं है.’ मोहन भागवत ने यह भी साफ किया था कि ‘राम मंदिर के बाद अब किसी भी धार्मिक स्थल को ले कर ऐसा आंदोलन नहीं खड़ा किया जाएगा.’

मोहन भागवत ने कहा कि ‘सभी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए. दिल में कोई अतिवाद नहीं होना चाहिए, न ही शब्दों में और न ही कार्य में. दोनों तरफ से डरानेधमकाने की बात नहीं होनी चाहिए. हिंदुओं को यह समझना चाहिए कि मुसलमान उन के अपने पूर्वजों के वंशज हैं और खून के रिश्ते से उन के भाई हैं. अगर वे वापस आना चाहते हैं तो उन का खुली बांहों से स्वागत करेंगे. अगर वे वापस नहीं आना चाहते, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता, पहले ही हमारे 33 करोड़ देवीदेवता हैं, कुछ और जुड़ जाएंगे. हर कोई अपने धर्म का पालन कर रहा है.’ इस के बाद भी विवाद खत्म नहीं हो रहे हैं.

धर्म के नाम पर लड़ाई से क्या हासिल होगा ?

पहले अयोध्या फिर काषी और अब मथुरा धर्म के नाम पर लड़ाई से क्या हासिल होगा ? यह लड़ाई उसी तरह की है जैसे पहले के दौर में होता था कि जब जिस का राज रहता था वह अपने हिसाब से तोड़फोड़ करता था. मणिपुर में आज हिंदू चर्च को तोड़ रहे हैं. इस तरह से आपसी दूरियां बढ़ेंगी तो लोकतंत्र कैसे कायम रह पाएगा.

आज के दौर में बदले हुए राजनीतिक हालातों में 8-10 साल की लड़ाई में मथुरा में भी तोड़तोड़ हो सकती है. सवाल उठता है कि धर्म के नाम पर इस तरह के झगड़ों से हासिल क्या होगा? हिंदूमुसलिम झगड़े से दो वर्ग अलगअलग हो जाएंगे. देश में 25 करोड़ से अधिक आबादी के साथ लड़नेझगड़ने का समाज पर गलत असर पड़ेगा. मंदिर में एक मूर्ति रख जाने से दानदक्षिणा बढ़ जाएगी. चढ़ावा आने लगेगा. इस से धर्म की दुकानदारी बढ़ेगी, जिस के जरीए सत्ता हासिल की जा सकती है.

इस का सब से बड़ा उदाहरण काशी विश्वनाथ का मंदिर है. काशी कौरिडोर बनने से पहले बनारस में करीब 80 लाख पर्यटक आया करते थे. नया काशी बनने के बाद प्रति वर्ष 7 करोड़ 30 लाख लोग आने लगे. साल 2022 तक काशी विश्वनाथ में चढ़ाए जा रहे आर्थिक दान की राशि 100 करोड़ हो गई. अनुमान है कि अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद पर्यटन 10 गुणा अधिक हो जाएगा. काशी और केदारनाथ के जीर्णोद्धार के बाद ए देखने को भी मिला. पर्यटन विभाग के एक आकंड़े के अनुसार साल 2022 में मंदिरों से सरकार को 65 हजार लाख करोड़ की कमाई हुई. जो साल 2022 में बढ़ कर 1.34 लाख करोड़ हो गया.

इस को अगर जीडीपी के अनुसार देखें तो भारत के कुल जीडीपी का 2.32 प्रतिशत मंदिरो के चढ़ावा से आ रहा है. भारत के विदेशों में रहने वाले लोग अपने धर्म से जुड़े होते हैं. वह धर्म स्थलों को देखने आते हैं. वाराणसी की देव दिपावली को देखने भारी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं. अयोध्या में इन की शुरूआत हो गई है. सरकार इस को बढ़ावा दे रही है. ऐसे में भारत की हालत इस तरह हो जाएगी की रोजी रोजगार की जगह पंडापुजारी और मंदिरों के सामने दुकान लगा कर सामान बेचते लोग रह जाएंगे.

बाकी काम के लिए हमें विदेशियों के भरोसे रहना पड़ेगा. भारत में विदेशों में जाने और वहां बसने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. यह हमारी आर्थिक व्यवस्था का अंग हो जाएंगे. हमारे जिन युवाओं को देश की तरक्की में अपना योगदान देना था वह मंदिर में पूजा करने या मंदिर के बाहर पूजन सामाग्री की दुकान खोलने अधिक से अधिक घूमने वालों की सेवा करते नजर आएगा. राम मंदिर में पूजा करने के लिए पहली बार परीक्षा का आयोजन किया गया. उस से चुने हुए लोग वेतन ले कर मंदिर में पूजा कराएंगे. परीक्षा के बाद चुने गए लोग पहले ट्रेनिंग लेंगे वहां से सफल होने के बाद पूजा कराएंगे.

पुजारी के लिए परीक्षा

यह चलन बढ़ने से अगर पुजारी की परीक्षा पास कराने के लिए कोचिंग और इन की मदद करने के लिए कंपटीशन बुक्स आने लगे तो भी चकित होने की जरूरत नहीं है. जानकारी के अनुसार 6 महीने तक प्रशिक्षण के बाद आवश्यकता के मुताबिक राम मंदिर के लिए पुजारी चुना जाएगा. सभी प्रशिक्षु पुजारियों को ट्रेनिंग सर्टिफिकेट दिया जाएगा.

इस दौरान उन के रहने और खाने की फ्री व्यवस्था की गई है. हर महीने 2 हजार रुपए का मानदेय भी दिया जाएगा. राममंदिर के मुख्य पुजारी का वेतन 25 हजार से बढ़ा कर 32 हजार 9 सौ रुपए कर दिया गया है. सहायक पुजारियों को 31 हजार रुपए मिलेगा. 1992 में सत्येंद्र दास को मुख्य पुजारी के रूप में 100 रुपए वेतन मिलता था.

राम मंदिर में पूजा अर्चना कराने के लिए चुने गए 24 प्रशिक्षु पुजारियों की ट्रेनिंग शुरू हो गई है. कुल 3 हजार आवेदन में से 200 लोग इंटरव्यू तक पहुंचे थे. उन में से केवल 50 को पुजारी के रूप में चुना गया है. राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से इन्हें प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ट्रेनिंग लेने वाले पुजारी सुबह 6 बजे त्रिकाल संध्या से पूजा शुरू करते हैं. इस के बाद दोपहर और फिर शाम को पूजा होती है. ट्रेनिंग ले रहे पुजारियों के लिए ट्रेनिंग के दौरान दौरान फ्री आवासीय और भोजन की सुविधा दी जा रही है. साथ में 2 हजार रुपए मासिक भत्ता भी दिया जा रहा है. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद नियुक्ति की गारंटी नहीं रहेगी.

सभी ट्रेनिंग लेने वाले पुजारियों को अलगअलग संतों और प्रमुख आचार्यो के आश्रम में भेजा गया जहां उन्होंने उन से दीक्षा ग्रहण की. इस के साथ ही उन्हें वैदिक रीति से सभी अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए अभ्यास करवाया जा रहा है. मंदिर ट्रस्ट ने सभी के लिए एक ड्रेस कोड भी तय किया है. उन्हें हिदायत दी गई है कि वे तामसी आचरण और खान पान से दूर रहेंगे. साथ ही शराब और नशे की वस्तुओं का सेवन नहीं करेंगे.

यह प्रशिक्षण 6 माह का है. प्रशिक्षुओं के आवास की व्यवस्था रंग वाटिका में की गई है. उन का प्रशिक्षण श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के आवासीय कार्यालय में चल रहा है. धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन के लिए बनी हाई पावर कमिटी के अध्यक्ष गोविंद देव गिरि ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद जरूरत के मुताबिक इन में से राम मंदिर के पुजारी का चयन किया जाएगा.

प्रशिक्षण पूरा करने वालों को मंदिर ट्रस्ट सर्टिफिकेट भी देगा. इस के आधार पर राम मंदिर में जब जरूरत पड़ेगी तो इन को चयनित किया जा सकेगा. इस से समझा जा सकता है कि आने वाले दिनों में दरोगा, पटवारी, टीचर जैसी भर्ती के साथ ही साथ पुजारी भर्ती की प्रवेश परीक्षा, कोचिंग और कंपीटिशन बुक्स दिखाई दे सकती है. इस तरह देश के युवा इंजीनियर, डाक्टर बनने की जगह पुजारी बनेंगे. मंदिर के गाइड बनेंगे. मंदिर के सामने पूजन सामाग्री बेचेंगे.

संसद पर हुए हमले ने उठाया युवाओं के रोजगार का सवाल

हम ने आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद, अलगाववाद पर काबू पा लिया. हम ने भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया. नोटबंदी कर के कालाधन जमा करने वालों की कमर तोड़ दी. ऐसी बड़ीबड़ी दावे करने वाली भारतीय जनता पार्टी के मुंह पर उस वक्त ताले पड़ गए जब 5 चक्र की सुरक्षा व्यवस्था को धता बता कर, पुलिस और इंटेलिजैंस की आंखों में धूल झोंक कर 5 युवा गैस स्प्रे की बोतलें लिए संसद के अंदर घुस गए और उन में से 2 संसद परिसर में और 2 चलती लोकसभा में पब्लिक दीर्घा से होते हुए नेताओं के बीच संसद की बेंचों पर कूदते हुए रंगीन गैस छोड़ने लगे और एक जिस ने उन को अंदर घुसने में मदद की वह संसद में अपने साथियों का वीडियो बना कर और उस को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर के फरार हो गया.

13 दिसंबर, 2023 की इस घटना ने 13 दिसंबर, 2001 की याद ताजा कर दी, जब 5 आतंकियों ने इसी तरह संसद की सुरक्षा भेद कर वहां गोलीबारी की थी, जिस में 5 जवानों सहित 9 लोगों की मौत हुई थी. उस दिन भी 5 लोग थे, सभी इसी देश के नागरिक थे, आज भी 5 लोग थे और इसी देश के नागरिक हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि तब वे पांचों मुसलमान थे, आज ये पांचों हिंदू हैं. शायद इसीलिए भाजपा नेताओं के मुंह बंद हैं.

शुक्र है कि इस बार संसद पर हमला करने वालों के पास सिर्फ गैस स्प्रे थे, अगर पिस्तौल या बम होते तो अंजाम पिछले हमले से कहीं ज्यादा भयावह होता क्योंकि पिछली बार संसद पर हमला करने वाले आतंकियों को जवानों ने बाहर ही रोक लिया था मगर अब की बार तो ये अंदर तक पहुंच गए.

शुक्र है कि क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह का अनुसरण करने वाले इन युवाओं ने भगत सिंह की तरह संसद में बम नहीं फोड़ा. भगत सिंह ने तो अंग्रेज शासकों को जगाने के लिए संसद में बम फोड़ा था तो क्या देश में फिर ऐसे क्रांतिकारी दल तैयार हो रहे हैं जो मोदी शासन को जगाना चाहते हैं? आईबी और रौ जैसी एजेंसियों को इस की जानकारी क्यों नहीं है? लोकल इंटेलिजैंस और पुलिस क्या कर रही है?

भटकते युवा

13 तारिख को ही महाराष्ट्र में एंटी टेरेरिस्ट स्क्वाड ने गौरव पाटिल नाम के एक 23 साल के युवा को गिरफ्तार किया जो पाकिस्तान बेस्ड इंटेलिजैंस औपरेटिव के एजेंट को यहां की खुफिया जानकारी उपलब्ध कराता था. गौरव के साथ मोहितो, पायल और आरती को भी गिरफ्तार किया गया है. इन के खिलाफ आईपीसी की धारा 120 (B) और औफिशियल सीक्रेट एक्ट की धारा 3(1)A, 5(A)(B)(D) और 9 के तहत एफआईआर (FIR) दर्ज की गई है.

गौरव पाटिल ने मई 2023 से अक्टूबर 2023 तक पीआईओ (PIO) की 2 एजेंट्स पायल और आरती से सोशल मीडिया प्लेटफौर्म फेसबुक और व्हाट्सऐप के जरिए भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई जानकारी को शेयर किया. पाटिल मझगांव डाक पर अपरेंटिस के पद पर काम करता था और वहां रहने की वजह से उसे यह पता होता था कि नेवी की कौन सी वौरशिप कब आई और कब गई. इस जानकारी के बदले वह पैसे लेता था.

13 तारिख को ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीसीबी हौस्टल में कमरा नंबर – 68 में जोरदार धमाका हुआ और धुवां छंटने पर पता चला कि उस कमरे में बम बनाए जा रहे थे. कमरे में मौजूद 2 छात्र प्रभात यादव और प्रत्यूसश सिंह जो वहां चोरीछुपे बम बनाने का काम कर रहे थे, इस बम धमाके में बुरी तरह जख्मी हुए.

प्रभात यादव का एक हाथ उड़ गया और सीना, चेहरा और अन्य अंग बुरी तरह झुलस गए. ये बम किसलिए बनाये जा रहे थे? किस के कहने पर बनाए जा रहे थे? बम बनाने का सामान विश्वविद्यालय में कब और कैसे पहुंचा? कितने कमरों में बम बन रहे हैं? कितने युवा इस काम को अंजाम दे रहे हैं? सवाल यहां भी हैं.

ये तमाम घटनाएं इस बात को इंगित करती हैं कि मोदी राज में युवाओं का एक हिस्सा न शिक्षा पा रहा है न रोजगार, वह बस अपनी और देश की बरबादी का सामान जुटा रहा है. सोशल मीडिया जिस पर कड़ी नजर रखने का दावा मोदी सरकार करती है, उसी के माध्यम से अपराधियों की नई युवा फौजें देश में तैयार हो रही हैं. इन युवाओं में न तो कानून का कोई डर है न किसी प्रकार की सजा का.

चारों तरफ से हथियारबंद जवानों से घिरी संसद की सुरक्षा भेदने वाले युवाओं को अपना अंजाम बखूबी मालूम रहा होगा. वे वहां पकड़े जाएंगे, पीटे जाएंगे, हो सकता है उन्हें गोली मार दी जाए, इन सारे खतरों को जानते हुए वे 5 चक्र की सुरक्षा भेद कर चलती हुई संसद में घुसे. इतना साहस दिखाने वालों का दिमाग किस के काबू में है, कौन उन्हें गाइड कर रहा था, किस ने उन्हें एकजुट किया, अपराध का रास्ता दिखाया, संसद के अंदर घुसने के लिए प्रताप सिम्हा नाम के बीजेपी सांसद से पास दिलवाए, क्या जांच एजेंसियां उस ‘गब्बर’ तक कभी पहुंच पाएंगी?
गौरतलब है कि संसद के बाहर गैस स्प्रे छोड़ने और नारेबाजी करने वाली नीलम हरियाणा की रहने वाली है. उस के साथ जो अन्य लड़का अमोल शिंदे गिरफ्तार किया गया है वह लातूर महाराष्ट्र का है. लोकसभा के अंदर घुस कर स्प्रे छोड़ने और बवाल काटने वाला सागर शर्मा लखनऊ का और मनोरंजन डी मैसूर कर्नाटक का रहने वाला है.

प्लानिंग के तहत घुसपैठ

नीलम जहां उच्च शिक्षा प्राप्त महिला है वहीं सागर शर्मा लखनऊ में ई-रिक्शा चलाता है. उस के पिता कारपेंटर हैं. उस का परिवार निम्वर्गीय श्रेणी में आता है. ऐसे अलगअलग आर्थिक और शैक्षिक भिन्नता वाले लोगों को एकजुट करना, उन का ब्रेनवाश कर के किसी एक मिशन से जोड़ना और दिल्ली तक पहुंचा कर संसद में घुसने का रास्ता दिखाना कोई दोचार दिन की बात या किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है, निश्चित ही इस के पीछे कोई बड़ा गैंग है, गहरी साजिश है और एक खतरनाक विचारधारा है.

जिस भाजपा नेता प्रताप सिम्हा के जरिये इन्हें संसद में पब्लिक दीर्घा तक आने के पास हासिल हुए उस नेता तक इन में से किसी की अच्छी पहुंच रही होगी. कोई नेता हर ऐरेगैर को तो संसद का पास मुहैय्या नहीं करवा देता. इस के बाद सब से बड़ा सवाल यह कि जिन 4 लोगों को संसद हमले में गिरफ्तार किया गया है उन चारों के मोबाइल फोन और अन्य सामान कहां और किस के पास है? आज के समय में बिना फोन संपर्क के कोई काम नहीं हो सकता. जाहिर है इन चारों के मोबाइल फोन किसी के पास हैं और वो फरार है.

अगर ये युवा सिर्फ बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को जगाने का उद्देश्य ले कर संसद में घुसे होते, जैसा कि उन्होंने पुलिस को बयान दिया तो उन के फोन और पर्स-पैसे, आईकार्ड वगैरह उन के पास होते, लेकिन इन में से कुछ भी उन के पास नहीं था. पूरी प्लांनिंग के तहत ये चीजें उन से अलग की गईं ताकि गिरोग के अन्य लोगों का पता न चल सके. इन की गतिविधियों की जानकारी न हो सके.

जरूरी सवाल जो पता लगने बाकी हैं

आखिर देश में शांति और सुरक्षा की जो छद्म चादर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने तान रखी है उस के नीचे कौन सा ज्वालामुखी उबल रहा है? संसद हमले की साजिश में कितने किरदार हैं, मास्टर माइंड कौन है. कितने दिन की प्लानिंग थी? कितने दिन की ट्रेनिंग थी? संसद की रेकी में कितने लोग शामिल थे? असली उद्देश्य क्या था? कितना बड़ा गिरोह है? देश भर में इस के लोग कहांकहां बैठे हैं? सोशल मीडिया के जरिये ऐसे कितने गिरोह देश में तैयार हो चुके हैं? क्या इन के सूत्र देश से बाहर भी जुड़े हैं? ये तमाम सवाल अब जांच एजेंसियों और खुफिया विभाग के सामने हैं.

मोदी सरकार विकास के बड़ेबड़े ढोल पीटे, बेरोजगारी दूर करने के खूब दावे करे लेकिन हकीकत यह है कि देश में युवाओं के बहुत बड़े हिस्से के पास कोई नौकरी नहीं है, कोई व्यवसाय नहीं है, आय का कोई जरिया नहीं है. इन्हें कुछ पैसा औफर कर के आसानी से आतंकी और देशविरोधी गतिविधियों में लगाया जा सकता है. सरकारें और राजनीतिक दल इन बेरोजगारों को कुछ रुपए का लालच दे कर, शराब की एक बोतल या अन्य चीजें दे कर चुनाव के वक़्त अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं.

ये बेरोजगार युवा चुनाव के वक्त उन के लिए रैलियां निकलते हैं, नारेबाजी करते हैं, दंगे करते हैं. यही बेरोजगार संघ और भाजपा की छत्रछाया में सेनाएं बना कर डंडे और तलवारें ले कर वेलेंटाइन डे या अन्य अवसरों पर प्रेमी जोड़ों को नैतिकता का सबक सिखाते हैं, गौ रक्षा के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्याएं करते हैं या धर्म के नाम पर कांवड़ यात्राओं के दौरान सड़कों पर हुड़दंग मचाते हैं. बेरोजगार युवाओं की यही फौज आज आर्टिफीशियल इंटेलिजैंस का गलत इस्तेमाल कर के साइबर क्राइम को बढ़ा रही है और धोखे से लोगों के बैंक अकाउंट खाली कर रही है.

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा लिखी उन की हालिया किताब ‘ब्रेकिंग द मोल्ड रिइमेजिनिंग इंडियाज इकनौमिक फ्यूचर’ में कहा है, ‘भारत की सब से बड़ी ताकत इस की 1.4 अरब की मानव पूंजी है, हालांकि इस पूंजी को मजबूती देना सब से बड़ा सवाल बना हुआ है. भारत को विकास की राह पर आगे बढ़ते हुए हर स्तर पर नौकरियां पैदा करने की जरूरत है. हम युवाओं को नौकरियां नहीं दे पा रहे हैं, यह बुनियादी चिंता है. हमें शासन में सुधार की जरूरत है.

भाजपा का पुराने नेताओं को किनारे करने के क्या होंगे परिणाम ?

राजस्थान में सांगानेर विधानसभा सीट से जीते भजनलाल शर्मा को विधायक दल का नेता व मुख्यमंत्री चुना गया है. कयास और निगाहें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया पर थीं, मगर भाजपा ने नया चेहरा सामने ला कर सभी को चौंका दिया.

लोकतंत्र का मतलब है बहुसंख्यक विधायकों का नेता मुख्यमंत्री बनना चाहिए. राजस्थान में अधिसंख्य विधायक वसुंधरा राजे के पक्ष में थे. मगर देश में भाजपा आलाकमान का यह अनुशासन का मंत्र राजनीति की पाठशाला में चर्चा का सबक बन गया है.

लोकसभा चुनाव 2024 को ले कर रणनीति सामने आई कि भाजपा के बड़ेबड़े चेहरों को परदे के पीछे जाना पड़ा. ये स्थितियां मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के साथ और छत्तीसगढ़ में डाक्टर रमन सिंह के साथ भी घटित हुई हैं और इस का परिणाम आगामी समय में आ सकता है, यानी इन नेताओं का अंदरखाने विद्रोह हुआ तो भाजपा को लोकसभा में नुकसान उठाना पड़ सकता है.

मजे की बात यह है कि वसुंधरा राजे, डाक्टर रमन सिंह तो खामोश रह गए मगर मध्य प्रदेश में निवृतमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा… मैं मर जाऊंगा मगर मांग नहीं सकता.” उलटफेर मध्य प्रदेश में भी हुआ. एंटीइंकम्बेंसी से जूझ रहे इस प्रदेश में कांग्रेस के जीतने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन चुनाव परिणाम ने सभी को चौंका दिया.

भाजपा बड़े अंतराल से जीती. सभी को लगा शिवराज सिंह एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, लेकिन हुआ उलटा और यहां मोहन यादव को चुना गया.

रास्ते का रोड़ा

भाजपा का यह कदम उस की फांस भी बन सकता है. दरअसल, मोदीशाह पपेट मुख्यमंत्रियों को बैठा कर केंद्र से चीजों को चलाने में विश्वास रखते हैं. इस से पहले भी जिन राज्यों में वह जीती है वहां पपेट मुख्यमंत्री बैठाए गए हैं, जिन्हें हर निर्णय के लिए केंद्र की तरफ मुंह ताकना पड़ता है. इस से राज्य की असली कमान केंद्र के हाथ में रहती है.

जिन 3 राज्यों में भाजपा जीती, वहां के नेता उन के इस काम में रुकावट जैसे थे. वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान व रमन सिंह भाजपा से जरूर रहे हैं, लेकिन धार्मिक राजनीति में वे ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते रहे, यही वजह है कि उन्हें दूर रखा गया.

निगाहें भविष्य पर आज देश की निगाह इन तीनों निवृतमान मुख्यमंत्रियों पर है. घटनाक्रम पर सभी की टकटकी लगी हुई है. वसुंधरा राजे राजस्थान में मुख्यमंत्री पद पर अपना पहला और अंतिम दावा समझती रहीं. मगर सभी जानते हैं कि शाही राज और नाज के कारण वसुंधरा राजे ने न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को और न ही उन के दाएं हाथ समझे जाने वाले अमित शाह को कभी तवज्जुह देती थीं.

माना जा रहा है कि ऐसे में अब आगे जब राजस्थान में जो राजनीतिक रस्साकशी देखने को मिलेगी वह किसी मल्ल युद्ध से कम न होगी.
आज संपूर्ण देश में भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व को आंख दिखाने और बराबरी से बात करने का दमखम अगर किसी में है तो वह वसुंधरा राजे में है. कभी भी हद से ज्यादा नहीं झुकने के कारण आज का भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व राजे को उन के कद को कम करने का प्रयास करता रहा है मगर विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद जिस तरह 30 से 50 विधायकों ने उन के आवास पर जा कर मुलाकात की, वह इस बात का संकेत है कि वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति को अपनी मुट्ठी में रखने की काबिलीयत रखती हैं.

उल्लेखनीय है कि एक दफा पूर्व मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत ने कहा था कि अगर कांग्रेस की सरकार राजस्थान में है तो उस का श्रेय वसुंधरा राजे को है. सीधी सी बात है, केंद्रीय नेतृत्व को झटका दे कर वसुंधरा राजे राजस्थान में एक अलग राजनीतिक रास्ता प्रशस्त कर सकती हैं.
राजस्थान की दावेदारी पर रार यही कारण है कि भाजपा के नेतृत्व को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में उतनी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा जितना कि राजस्थान में. यहां मुख्यमंत्री पद का चयन एक तरह से लोहे के चबाने जैसा था. परंतु सबकुछ सामान्य ढंग से घटित होता चला गया, मगर अंदरखाने क्या पक रहा है, यह वसुंधरा राजे ही जानती हैं.

यह भी सच है कि वसुंधरा राजे ने स्वयं को नम्र बनाया है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की, फिर पीछेपीछे मध्य प्रदेश के एक बड़े चेहरे बन चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी जे पी नड्डा से मुलाकात की, जिस का सीधा सा अर्थ यह है कि बूआ और भतीजे भाजपा को अपना संकेत दे चुके हैं. अगर केंद्रीय नेतृत्व अपनी जिद पर अड़ा रहा, तो आगे राजस्थान में राजनीति का वह प्रहसन देखने को मिल सकता है जिस की कोई कल्पना नहीं कर सकता.

नरेंद्र मोदी को मिल सकती है चुनौती माना जा रहा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में तीनों पूर्व मुख्यमंत्री आने वाले लोकसभा चुनाव में अपनेअपने तरीके से नरेंद्र मोदी और केंद्रीय सत्ता को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जिस तरह बिना किसी बड़ी वजह से तीनों ही चेहरों को मुख्यमंत्री पद से विमुख किया गया, उस से उन के क्षेत्रीय समर्थक नाराज हुए हैं.

सभी यह जानते हैं कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी का मतलब है वसुंधरा राजे का होना. दूसरी तरफ केंद्रीय नेतृत्व इस सच यानी वसुंधरा को बारबार नकारता रहा है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी नए चेहरों पर ताज पहनाया गया. मगर यह भी सचाई है कि वसुंधरा राजे के पास जो विधायकों का संख्याबल और समर्थन है, साथ ही, कांग्रेस पार्टी का अप्रत्यक्ष सहयोग है, उस से तो यहां संभव है कि आने वाले समय में राजनीतिक संग्राम देखने को मिले और नरेंद्र मोदी को एक ऐसी चुनौती का सामना करना पड़े जो उन्हें हतप्रभ कर सकती है.

सचाई यह है कि भाजपा में सिर्फ कहने के लिए अनुशासन है. डा. रमन सिंह हों और वसुंधरा राजे फिलहाल मौन रह गए मगर उन के चेहरे अगर आप पढ़ सकते हैं तो समझ सकते हैं कि केंद्र के फैसले से यह चेहरे नाखुश हैं. दूसरी तरफ, शिवराज सिंह चौहान ने यह कह कर अपना गुस्सा ही जाहिर किया कि मैं दिल्ली नहीं जा सकता. मैं मर सकता हूं मगर झुक नहीं सकता. जो भी हो, बताएगा भविष्य ही.

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