राजस्थान में सांगानेर विधानसभा सीट से जीते भजनलाल शर्मा को विधायक दल का नेता व मुख्यमंत्री चुना गया है. कयास और निगाहें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया पर थीं, मगर भाजपा ने नया चेहरा सामने ला कर सभी को चौंका दिया.

लोकतंत्र का मतलब है बहुसंख्यक विधायकों का नेता मुख्यमंत्री बनना चाहिए. राजस्थान में अधिसंख्य विधायक वसुंधरा राजे के पक्ष में थे. मगर देश में भाजपा आलाकमान का यह अनुशासन का मंत्र राजनीति की पाठशाला में चर्चा का सबक बन गया है.

लोकसभा चुनाव 2024 को ले कर रणनीति सामने आई कि भाजपा के बड़ेबड़े चेहरों को परदे के पीछे जाना पड़ा. ये स्थितियां मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के साथ और छत्तीसगढ़ में डाक्टर रमन सिंह के साथ भी घटित हुई हैं और इस का परिणाम आगामी समय में आ सकता है, यानी इन नेताओं का अंदरखाने विद्रोह हुआ तो भाजपा को लोकसभा में नुकसान उठाना पड़ सकता है.

मजे की बात यह है कि वसुंधरा राजे, डाक्टर रमन सिंह तो खामोश रह गए मगर मध्य प्रदेश में निवृतमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा... मैं मर जाऊंगा मगर मांग नहीं सकता.” उलटफेर मध्य प्रदेश में भी हुआ. एंटीइंकम्बेंसी से जूझ रहे इस प्रदेश में कांग्रेस के जीतने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन चुनाव परिणाम ने सभी को चौंका दिया.

भाजपा बड़े अंतराल से जीती. सभी को लगा शिवराज सिंह एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, लेकिन हुआ उलटा और यहां मोहन यादव को चुना गया.

रास्ते का रोड़ा

भाजपा का यह कदम उस की फांस भी बन सकता है. दरअसल, मोदीशाह पपेट मुख्यमंत्रियों को बैठा कर केंद्र से चीजों को चलाने में विश्वास रखते हैं. इस से पहले भी जिन राज्यों में वह जीती है वहां पपेट मुख्यमंत्री बैठाए गए हैं, जिन्हें हर निर्णय के लिए केंद्र की तरफ मुंह ताकना पड़ता है. इस से राज्य की असली कमान केंद्र के हाथ में रहती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...