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आदमी के अंदर का हिंसक जानवर परदे पर: फिल्म ‘एनिमल’ की हिंसा हमारी संस्कृति का हिस्सा

संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म ‘एनिमल’ में अभिनेता रणवीर कपूर के अभिनय की बहुत तारीफ की जा रही है, वहीं दूसरी ओर इस की बुराई भी खूब हो रही है. फिल्म में हिंसक और इंटिमेट सीन्स को ले कर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं. कुछ लोग तो ‘एनिमल’ के कंटैंट पर भी सवाल उठा रहे हैं.

यही नहीं, फिल्म के मुख्य किरदार रणविजय यानी रणबीर कपूर को बहुत ही हिंसक और महिला विरोधी और स्त्रियों के अस्तित्व पर बड़ा आघात करने वाली बताया जा रहा है.

कई सेलेब्स ने इस फिल्म का विरोध भी किया है. सिंगर स्वानंद किरकिरे ने तो ‘एनिमल’ को भारतीय सिनेमा को शर्मसार करने वाली फिल्म बताया है.

मानव भावनाओं का तीव्र प्रदर्शन

संदीप रेड्डी ने इस से पहले हिंसक फिल्म कबीर सिंह बनाई थी, उस में भी उन्होंने मानव भावनाओं को तीव्र रूप में प्रस्तुत किया था, हालांकि कुछ को फिल्म में शाहिद कपूर के आक्रामक एक्टिंग को पसंद किया गया, लेकिन बहुतों को फिल्म की कौ कौन्सेप्ट पसंद नहीं आई.

अधिकतर युवा दर्शकों ने इसे बीमार मानसिकता वाले व्यक्ति की संज्ञा दी, जो आज के परिवेश में सही नहीं बैठती, जहां महिलाएं प्यार को पाने के लिए कुछ भी सहने के लिए आज तैयार नहीं होती. यही वजह है कि युवाओं में डायवोर्स की संख्या लगातार बढती जा रही है.

सेलेब्स की नापसंद की वजह

‘एनिमल’ का किरदार रणविजय भी कबीर सिंह का एक्सटेंड फौर्म है, जिस के लिए हिंसा कोई बड़ी बात नहीं है. परिवार पर किसी भी प्रकार की समस्या आने पर वह पलक झपकते निर्णय ले लेता है और हिंसा पर उतारू हो जाता है.

मनोवैज्ञानिक राशिदा मानती है कि कई सैलेब्रिटी ने इस फिल्म को नापसंद करने की वजह यह रही होगी कि आज की तारीख में पैरेंट्स बच्चों की भविष्य को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उन की उपेक्षा कतई नहीं करते, ऐसी फिल्में परिवार और समाज को गलत संदेश देती है.

परिवार से प्रेम करने वाला एक साधारण बच्चा इतना हिंसक नहीं हो सकता. इसे मानसिक बीमारी कही जानी चाहिए, क्योंकि सीमा से परे कोई भी व्यवहार बीमारी ही होती है और किसी भी मानसिक बीमार व्यक्ति की प्रशंसा करना उचित नहीं, क्योंकि ‘एनिमल’ का किरदार रणविजय बहुत हिंसक है. वह लोगों को गाजरमूली की तरह काटने से पहले जरा भी नहीं सोचता. शिक्षा संस्थान में भी हिंसात्मक हरकत करता है.

रणबीर कपूर की अधिकतर फिल्में फ्लौप जा रही थीं पर इस तरह की वायलैंस पर फिल्में करना वह शायद पसंद कर रहे हों यह अंदाजा शायद किसी को नहीं था.

इस तरह की फिल्म अगर किसी भी रूप में सफलता का दावा करती है तो आगे कई निर्मातानिर्देशकों को गलत मैसेज जाएगा कि जब इस फिल्म में वायलैंस और सैक्स से कोई भी आज के दर्शक खुद को रिलेट कर रहे हैं तो और क्यों नहीं बनाई जाएं. वैसे नैटफ्लिक्स और प्राइम वीडियो पर लगभग इसी तरह की वायलैंस करने वाली फिल्में देखने को मिल रही हैं.

संदीप रेड्डी वांगा को इस तरह की कहानी से निकल कर कुछ और लिखने की जरूरत है, जिस से आम इंसान रिलेट कर सकें.पर ये भी सही है कि इस तरह की फिल्में दर्शकों को परपीड़न का सुख देती हैं और उन्हें उत्तेजक और असंवेदनशील बनाती है. वे कई बार ऐसी ग्राफिकल
वायलैंस के दृश्यों को देख कर पीड़ित व्यक्ति के दर्द को समझ नहीं पाते, क्योंकि फिल्मों में ऐसे हिंसात्मक दृश्यों और उसे करने वाले को बहुत अच्छी तरह से ग्लोरिफाई कर दिखाया जाता है.

इतिहास है साक्ष्य

यही वजह है कि पिछले दिनों राजस्थान के जयपुर में राजपूत करणी सेना के मुखिया सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या को भी ‘एनिमल’ फिल्म स्टाइल से जोड़ा गया, क्योंकि उन्हें मारने वालों ने भी थोड़ी बातचीत के बाद ताबड़तोड़ गोलियां गोगामेड़ी पर चलाई, जो हाल ही में रिलीज हुई ‘एनिमल’ फिल्म की स्टाइल से मेल खाती हुई है.

जिस शख्स के साथ दोनों शूटर आए थे, उन दोनों शूटर ने उन्हें भी गेगामेड़ी के साथ बेरहमी से शूट कर दिया.

हिंसा ने हमेशा युद्ध को ही जन्म दिया है. इसलिए किसी भी परिवार और समाज के लिए हिंसा कभी सही नहीं हो सकता और ऐसे हिंसात्मक मानसिकता वाले व्यक्ति को बीमार की संज्ञा दी जाती है, जिस का इलाज जरूरी होता है.

दिक्कत यह है कि इस तरह की वायलैंस हमें बारबार सुनाई जाती रही है. महाभारत के भीष्मपर्व में युद्ध का वर्णन कुछ इस तरह का है :
रणभूमि में जहां तहां लाखों सैनिकों का ‘मर्यादाशून्य’ युद्ध चल रहा था. न पुत्र पिता को पहचानता था, न पिता अपने  पुत्र को. न भाई भाई को जानता था, न मामा अपने भांजे को.

परस्पर धावा करने वाले शूरवीरों के चमकीले खड्ग मनुष्य के रक्त से रंगे हुए थे. कितने ही मनुष्यों के अंगभंग हो गए थे, कितनों को हाथियों ने कुचल दिया था. कितने ही योद्धा शत्रु पर बायीं पसली पर चोट कर के उसे विदीर्ण करने के लिए टूट पड़ते हैं. कितनों को हाथियों ने मसल दिया. कितनों के शरीर रथ के पहिए से कट गए. बहुतों की आंतें बाहर निकल कर बिखर गईं.

महाभारत के संग्राम में पिता ने पुत्र को, पुत्र ने पिता को, भांजे ने मामा को, मित्र ने मित्र को मार डाला. अभिमन्यु ने पितामह भीष्म के रथ के सारथी का मस्तक धड़ से अलग कर दिया.

(महाभारत: गीता प्रैस प्रकाशन, खंड 3 , भीष्मपर्व, पृष्ठ 809 से 811)

यह हिंसा तो हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा है और संदीप रेड्डी वांगा ने सिर्फ रणबीर कपूर के सहारे उसे सिल्वर स्क्रीन पर पेश किया है. जब देश अपनी संस्कृति को दोबारा बिना सवाल किए पहचानने के लिए उत्सुक हो रहा है तो इस तरह की फिल्में बनेंगी ही, चाहे निर्माता के दिमाग में महाभारत थी या नहीं.

मनोरंजन है गायब

कुछ लोग कहते हैं कि इतना अधिक वायलैंस और सैक्स आजकल फिल्मों में ग्लोरिफाई कर दिखाया जा रहा है कि किसी भी फिल्म को हौल में जा कर देखने की इच्छा नहीं होती.

मनोरंजन और हंसी फिल्मों से पूरी तरह गायब हो चुका है. वायलैंस वाली फिल्मों को देखने पर मन दुखी होता है. कोविड के बाद से वायलैंस वाली फिल्मों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.

मसलन फिल्म ‘KGF’ की सीरीज, ‘आरआरआर’, ‘पुष्पा’, ‘बीस्ट’ आदि साउथ फिल्म इंडस्ट्री की कुछ ऐसी फिल्मे हैं जो पेंडेमिक के बाद की मनोरंजन वाली फिल्मों में गिना गया, जिसे पैन इंडिया के लेवल पर रिलीज भी किया गया और इन फिल्मों ने प्रचुर मात्रा में कमाई भी की. इस से निर्माता, निर्देशकों ने ये समझ लिया है कि सैक्स, क्राइम और वायलैंस ही सब से अधिक बिकने वाला कंटैंट है.

इन सभी फिल्मों में वायलैंस या तो बीटिंग, किलिंग, गन शूटिंग से ले कर किसी भी प्रकार की जितनी निर्दयता दिखाई जा सकती हो, दिखाई गई है.

पैन इंडिया मूवी अब एक मुख्य पार्ट बन गया है. फिल्मों का असर दर्शकों पर कितना होता है इसे समझने के लिए साल 1981 की फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ का उदहारण लिया जा सकता है, इस में अभिनेता कमल हासन और अभिनेत्री रति अग्न‍िहोत्री की इस फिल्म का असर इस हद तक यूथ प्रेमी जोड़े में होगा, किसी ने सोचा नहीं था.

इस फिल्म को देखने के बाद कई युगल प्रेमी जोड़े ने आत्महत्या तक कर डाली थी.

क्या है दर्शकों की पसंद

दर्शक एक्शन फिल्म पसंद करते हैं, इस के लिए वे हौल तक खींचे चले आते हैं. वायलैंस दर्शक कभी पसंद नहीं करते. वायलैंस और एक्शन में भी जमीन और आसमान के फर्क को शायद लेखक, निर्माता, निर्देशक समझ नहीं पा रहे हैं.

यही वजह है कि वे एक के बाद एक वायलैंस वाली फिल्में बना रहे हैं, लेकिन इतना सही है कि जिस दिन दर्शक इन फिल्मों को नकारना शुरू कर देंगे, फिल्म मेकर ऐसी फिल्में बनाना भी बंद कर देंगे.
जैसा तमिल फिल्म मेकर एल सुरेश ने स्वीकारा है कि उन की फिल्म ‘बीस्ट’ को भी दर्शकों ने पसंद नहीं किया और करोड़ों की लागत से बनी फिल्म फ्लौप रही. जब तक धर्मग्रंथों को आदर्श मानते रहेंगे, वायलैंस को प्रतिष्ठा मिलती रहेगी.

समाज का आईना

फिल्मों को देख कर उत्तेजित हो कर क्राइम करने की घटनाएं कई है, लेकिन ऐसी हिंसात्मक चीजों की व्यूअरशिप अधिक होने की वजह से ओटीटी से ले कर थिएटर सभी में इसे ग्लोरिफाई कर परोस रहे हैं. वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत से ही इस तरह के शोध के सबूत जमा हो रहे हैं जो बताते हैं कि टैलीविजन, फिल्मों, वीडियो गेम, सेल फोन और इंटरनैट पर हिंसा के संपर्क में आने से दर्शकों में हिंसक व्यवहार का खतरा बढ़ जाता है, मसलन वास्तविक वातावरण को न समझ पाना, जिस से वे अनजाने में ही हिंसा कर बैठते हैं.

मनोवैज्ञानिक सिद्धांत भी इस बात से सहमत है कि हिंसा के संपर्क में आने से अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों के लिए हानिकारक प्रभाव पड़ता है.

वर्ष 2000, में फेडरल ट्रेड कमीशन ने अमेरिका के प्रेसिडैंट और कांग्रेस के रिक्वेस्ट पर एक रिपोर्ट इशू किया, जिस की सर्वे में भी पाया गया है कि हिंसात्मक फिल्मों का असर हमेशा नकारात्मक अधिक होता है.

सर्वे में सवाल पूछा ही नहीं जाता कि कितनी हिंसा लोग धर्मजनित कहानियों से सीखते हैं. इजराइल और फिलिस्तीनी तथा रूस-यूक्रेन युद्ध में भी यही हिंसा हो रही है और वहां भी धर्म इन के पीछे है.

श्रेयस तलपड़े को 47 साल की उम्र में क्यों आया हार्ट अटैक ?

अभिनेता श्रेयस तलपड़े को 14 दिसंबर को अचानक ही दिल का दौरा पड़ा. वह मुंबई में अपनी अगली फिल्म ‘वेलकम टू द जंगल’ की शूटिंग कर रहे थे. उन्होंने पूरे दिन शूटिंग की. उस समय वह बिल्कुल ठीक थे और जैसा कि उन का स्वभाव है वह सेट पर सभी के साथ मजाक कर रहे थे. उन्होंने ऐसे दृश्य भी शूट किए जिन में थोड़ा एक्शन था.

शूटिंग खत्म करने के बाद वह घर वापस गए और अपनी पत्नी से कहा कि वह असहज महसूस कर रहे हैं. उन की पत्नी दीप्ति ने उन्हें आननफानन में पास के अस्पताल में पहुंचाया. कल शाम मुंबई के अंधेरी में स्थित बेलव्यू मल्टीस्पैशालिटी हौस्पिटल में श्रेयस को भर्ती कराया गया था.

बाद में देर रात अभिनेता को एंजियोप्लास्टी उपचार दिया गया. एंजियोप्लास्टी एक ऐसी प्रक्रिया है जिस का इस्तेमाल कोरोनरी आर्टरी डिजीज के कारण ब्लौक हुई कोरोनरी आर्टरी को खोलने के लिए किया जाता है. फिलहाल उन की तबीयत बेहतर है और उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी.

श्रेयस तलपड़े का फिल्मी कैरियर

श्रेयस तलपड़े को हिंदी और मराठी सिनेमा में उन के काम के लिए काफी सराहना मिली है. 2 दशक लंबे कैरियर में तलपड़े ने 45 से ज्यादा फिल्में की हैं. 47 वर्षीय अभिनेता को आने वाले दिनों में वेलकम 3 यानी वेलकम टू द जंगल में देखा जाएगा.

सर्दियों में बढ़ जाते हैं हार्ट अटैक के मामले

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से वयस्कों में हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं. खासकर सर्दी के मौसम में हार्ट अटैक के मामले अन्य सीजन की तुलना में काफी बढ़ जाते हैं. इस का कारण घटा हुआ तापमान होता है. ठंड के कारण बौडी का टेम्परेचर डाउन न हो इस के लिए हार्ट तेजी से पंप करता है जिस से शरीर के अंदर ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है. लेकिन सर्दी की वजह से आर्टरीज सिकुड़ जाती हैं जिस से ब्लड उतनी तेजी से फ्लो नहीं कर पाता जितनी जरूरत होती है. यानी पूरी बौडी में उस फ्लो को मेंटेन रखते हुए नहीं पहुंचता जितनी तेजी से हार्ट पंप कर रहा होता है. इस कारण सर्दी के मौसम में हार्ट अटैक का खतरा और केस दोनों ही कई गुना बढ़ जाते हैं.

जिन लोगों को पहले से शुगर, ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्राल संबंधी बीमारियां होती हैं वे सर्दी के मौसम में हार्ट अटैक या हार्ट स्ट्रोक के हाई रिस्क पर होते हैं. यानी इन लोगों को ठंड के मौसम में हार्ट अटैक आने का खतरा सब से अधिक होता है.

हार्ट अटैक के लक्षण

हार्ट अटैक के लक्षणों की समय रहते पहचान जरूरी है. इस पर जितनी जल्दी ध्यान दे कर रोगी को अस्पताल भेज दिया जाए, उस के जान बचने की संभावना उतनी अधिक होती है. दिल का दौरा पड़ने के लक्षण अलगअलग हो सकते हैं. कुछ लोगों में हल्के लक्षण होते हैं जबकि अन्य में गंभीर हो सकते हैं. मुख्य रूप से सीने में दर्द जकड़न और दर्द महसूस होना, सीने का दर्द कंधे, बांह, पीठ, गर्दन, जबड़े तक बढ़ने लगना, थकान होना, सीने में जलन, चक्कर आना या बेहोशी और सांस लेने में कठिनाई होना इस के मुख्य लक्षण हैं.

कुछ दिल के दौरे अचानक आते हैं जबकि कई लोगों में इस के चेतावनी के संकेत और लक्षण घंटों पहले ही दिखने लगते हैं. सीने में दर्द या दबाव (एनजाइना) जो आराम करने पर भी दूर नहीं होता को हार्ट अटैक का प्रारंभिक चेतावनी संकेत माना जा सकता है.

CJI को महिला जज ने पत्र लिखा-‘सीनियर जज रात में मिलने बुलाते हैं’, मांगी इच्छामृत्यु

उत्तर प्रदेश के बांदा से 14 दिसंबर को एक हैरानपरेशान करने वाली खबर सामने आई. बांदा में तैनात सिविल जज अर्पिता साहू ने इच्छामृत्यु की गुहार की है. इस के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिख कर गंभीर आरोप लगाए हैं. आरोप है कि सिविल जज अर्पिता साहू को बाराबंकी में तैनाती के दौरान शारीरिक और मानसिक यातना से गुजरना पड़ा. इस प्रताड़ना का आरोप उन्होंने खुद जिला जज पर लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि रात में भी जिला जज ने मिलने के लिए दबाव डाला.

उन्होंने पत्र में लिखा, ‘मैं बड़े उत्साह के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई. यह सोच कर कि मैं आम लोगों को न्याय दिला सकूंगी. पर मुझे क्या पता था कि न्याय के लिए मुझे ही हर दरवाजे का भिखारी बना दिया जाएगा. मैं बहुत निराश मन से लिख रही हूं.’

मामले की शुरुआत

अर्पिता साहू ने बताया कि 7 अक्टूबर, 2022 को बाराबंकी जिला बार एसोसिएशन ने न्यायिक कार्य के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित कर रखा था. उसी दिन सुबह साढ़े 10 बजे वह अदालत में काम कर रही थी. इसी दौरान बार एसोसिएशन के महामंत्री और वरिष्ठ उपाध्यक्ष कई वकीलों के साथ कोर्ट कक्ष में घुस आए. उन्होंने महिला जज के साथ बदसलूकी शुरू कर दी. गालीगलौज करते हुए कमरे की बिजली बंद कर दी गई.

वकीलों को जबरन बाहर निकाल दिया गया. इस के बाद उन्होंने अर्पिता को धमकी दी. अर्पिता ने अगले दिन इस की शिकायत सीनियर जज से की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. भरी कोर्ट में उन्हें अपमानित किया गया.

अर्पिता साहू के अनुसार उन्होंने मामले की शिकायत 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से की थी. मगर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. किसी ने उन की समस्या के बारे में जाननेसमझने की जहमत तक नहीं उठाई. जुलाई 2023 में एक बार फिर इस मामले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष उठाया गया. जांच शुरू करने में 6 महीने और एक हजार ईमेल लगे. लेकिन प्रस्तावित जांच एक दिखावा बन कर रह गया क्योंकि गवाह जिला न्यायाधीश के अधीनस्थ होते हैं.

उन्होंने पत्र में लिखा, ‘मैं भारत में काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं कि यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लो. यह हमारे जीवन का सच है. मुझे लगा था कि शीर्ष न्यायालय मेरी प्रार्थना सुनेगा लेकिन रिट याचिका 8 सेकंड में ही बगैर मेरी प्रार्थना सुने और विचार किए खारिज हो गई. मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी, मेरा सम्मान और मेरी आत्मा को भी खारिज कर दिया गया है. मेरी और जीने की इच्छा नहीं है. बीते डेढ़ सालों में मुझे चलतीफिरती लाश बना दिया गया है. बगैर आत्मा और बेजान शरीर को ले कर और घूमने का कोई मतलब नहीं है.’

अर्पिता ने चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में कहा कि निष्पक्ष जांच तभी हो सकती है कि जब गवाह अभियुक्त के प्रशासनिक नियंत्रण से आजाद हो. उन्होंने जिला जज को ट्रांसफर किए जाने का निवेदन किया था. लेकिन उन के निवेदन पर भी ध्यान नहीं दिया गया. जांच अब जिला जज के अधीन होगी. ऐसी जांच का नतीजा क्या निकलेगा यह जगजाहिर है. इसलिए अर्पिता ने मुख्य न्यायाधीश से अपनी जिंदगी को खत्म करने की अनुमति मांगी है.

इस आरोप पर सीजेआई ने मांगी रिपोर्ट

अर्पिता की इच्छामृत्यु वाली चिट्ठी पर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिपोर्ट तलब की है. देर रात सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट सेक्रेटरी जनरल अतुल एम कुरहेकर को इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रशासन से स्टेटस रिपोर्ट मांगने का आदेश दिया. सेक्रेटरी जनरल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिख कर महिला जज द्वारा दी गई सारी शिकायतों की जानकारी मांगी. इस के साथ ही शिकायत से निबटने वाली आंतरिक शिकायत समिति के समक्ष कार्यवाही की स्थिति के बारे में भी पूछा.

न्याय मिलाना इतना कठिन क्यों ?

सोचने वाली बात है कि एक सम्मानित और न्याय के लिए जाना जाने वाला विभाग भी महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा नहीं कर सका. खुद न्याय विभाग में जज हो कर अर्पिता को इस पुरुष प्रधान समाज में अपने न्याय के लिए भटकना पड़ रहा है. ऐसे में दूसरी कामकाजी महिलाओं की स्थिति हम स्वाभाविक रूप से समझ सकते हैं.

कहीं न कहीं पूरा एडमिनिस्ट्रेशन ही ऐसे मामलों को दबाने का प्रयास करता है. लोग महिलाओं से अनचाहा एडवांटेज लेना चाहते हैं. कुछ महिलाएं आगे बढ़ने के लिए अपनी स्वीकृति दे देती हैं. मगर इसे हर औरत पर नहीं थोपा जा सकता. एक महिला के इंकार का मतलब इंकार ही होता है. मगर कुछ पुरुषों को यह इंकार रास नहीं आता. तब वे अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए अपने अंदर या अपने नीचे काम कर रही महिलाओं को यातनाएं देने से बाज नहीं आते.

ऐसे में महिलाएं अगर आवाज उठाती हैं तो जरुरी है कि उन की शिकायत पर ध्यान दिया जाए और उन्हें न्याय मिले ताकि कोई और अर्पिता इच्छा मृत्यु की गुहार लगाती नजर न आए.

चेहरे की किताब : भाग 2

फिर उन्होंने ग़ौर किया कि उस ने ‘एक्सक्यूज़ मी, आंटी’ जैसे नक़ली लगने वाले शब्द नहीं कहे थे, अपनाइयत से ‘आपी’ कहा था. रस्मी जुमलों से कोफ़्त थी उन्हें.

एकबारगी उन को लगा, उन की जवानी की हूबहू रेप्लिका थी वह लड़की. वे चौंक गईं, क्या यह लड़की मुझे इंप्रैस करने के चक्कर में होमवर्क कर के आई है?

पर कैसे? उन के घर में ये सब बातें कोई नहीं जानता. दानिश अपने काम के सिलसिले में ज़्यादातर वक़्त बाहर ही होता है और नौकरों की नज़रें कब से इतनी पैनी होने लगीं. अपनी सोचों से बाहर निकल कर उन्होंने सवाल किया, “क्या नाम है बेटा, आप का? किस के साथ आई हो? कहां रहती हो? पढ़ाई कर रही हो?” एकसाथ इतने सवाल दागने के बाद भी और सवाल उन की ज़बान पर मचल रहे थे, जिसे बमुश्किल काबू में किया उन्होंने.

“जी, मैं ज़ुनैरा इक़बाल. हैदराबाद से आई हूं. दुलहन इफ़रा मेरी कज़िन लगती है. एमबीए कर रही हूं. डीजे का कानफोड़ू शोर चुभ रहा था कानों में तो यहां आ गई.”

ज़रीना बेग़म को तसल्ली हुई कि कहां एमपी का भोपाल और कहां साउथ का हैदराबाद, तेलंगाना में है शायद अब तो. जानपहचान का सवाल नहीं, तो कोई प्लानिंग या साज़िश नहीं है.

“बेटा, आप लोग रोटीसब्ज़ी नहीं खाते, चावल ही खाते हो न?”

“ऐसी बात नहीं है, आपी. हम लोग बेसिकली लखनऊ के हैं. पापा की जौब की वजह से 5 साल से हैदराबाद में हैं. हम रोटीसब्ज़ी, दालचावल सब खाते हैं. साउथ वाले भी हर तरह की शोरबे बिन शोरबे वाली, सूखी, भुनी हुई सब्ज़ी खाते हैं. बस, रोटी के बजाय चावल से. पर शादियों में मैं लाइट खाना ही प्रिफ़र करती हूं, बहुत हैवी और ऑयली होता है न. माल ए मुफ़्त, दिल ए बेरहम होने से क्या फ़ायदा, पेट तो अपना ही है. देखिए, प्लेट्स कितनी चिकनी हो रही हैं बटर चिकन की ग्रेवी में, हमारा पेट कितना चिकना हो जाएगा इसे खा कर,” वह बड़ा ठहरठहर कर शांत लहजे में बोल रही थी.

“अच्छा, आप तो मुझ से इतनी छोटी हैं, फ़िर आपी क्यों कह रही हैं, बेटा?” आख़िर उन्होंने टोक ही दिया, हालांकि आंटी के बजाय बड़ी दीदी कहा जाना अच्छा ही लग रहा था उन्हें.

“ओह, आप को बुरा लगा, माफ़ कीजिए. दरअसल, मेरी आपी भी मुझ से 10 साल बड़ी हैं. आप भी 30-35 की हैं और उन्हीं की तरह ख़ूबसूरत व ग्रेसफुल. सौरी,” वह शर्मिंदा सी होते हुए बोली.

“आप माफ़ी बहुत मांगती हैं, बुरा क्यों लगेगा. मुझे आंटीवांटी सुनना, इतराइतरा कर एक्सक्यूज़ मी बोलना बिलकुल पसंद नहीं. वैसे, मैं 48 की हूं, तो ख़ाला या फुफ्फो ज़्यादा सूट करेगा.” इस बार वे खुल कर मुसकराईं.

अब ज़रीना बेग़म से सब्र नहीं हो रहा था कि कैसे उस के बारे में सारी जानकारी निकलवाएं, कैसे उसे परखें, क्या करें. ज़ुनैरा तो चली गई थी पर उन के मन में खलबली मचा गई थी. वे अपनी देवरानी को इतना कुछ सुना चुकी थीं कि उस से नज़रें मिलाने में कतरा रही थीं. यह तो उस का बड़प्पन था कि भाभी साहिबा, भाभी साहिबा कहते मुंह नहीं सूख रहा था उस का. हर काम में आगेआगे किए हुए थी उन्हें.

वे दोबारा उठ कर फंक्शन में शामिल हो गईं. अचानक सबकुछ अच्छाअच्छा सा लग रहा था उन्हें.

कल दुलहन चली जाएगी मायके वालों के साथ, आज ही की रात है, हैदराबाद तो बहुत दूर है, कैसे जाऊंगी वहां? दानिश से कह नहीं सकती, वह एक ही बार जाएगा और हां कर आएगा. क्या पता लड़की वैसी न हुई, भला फिरोज़ीगुलाबी कपड़े, मोती का सैट और चावल खाने के अंदाज़ से जिंदगी के फैसले हुआ करते हैं? वे बेचैनी से पहलू बदल रही थीं.

अब उन के दिमाग में यह विचार आया कि दुनिया उन्हें साहिर लुधियानवी की मां की तरह न समझ ले, वे तो सच में बेटे का घर आबाद देखना चाहती हैं.

तभी दानिश आ गया और उन को घर ले गया यह कहकर कि ज़्यादा देर बैठना उन की सेहत के लिए ठीक नहीं. वे बिलकुल जाना नहीं चाहती थीं पर मजबूर थीं. क्या बतातीं उसे अभी से.

2-3 दिनों में शादी के हंगामे निबट गए. लेकिन ज़रीना बेग़म को किसी पल चैन न था.
इतनी प्यारी लड़की है, इतनी खूबसूरत है. कहीं इंगेज हुई तो? किसी को पसंद करती हुई तो.

इसी उधेड़बुन में एक हफ्ता हो गया. वे मौर्निंग वाक पर भी नहीं जा रही थीं. आख़िर को दिल को सुकून देने के लिये पार्क में टहलने निकल गईं. पास की कालोनी में रहने वाली सौम्या से उन की अच्छी बनती थी. वह भी उसी पार्क में आया करती थी. वह वीमन होस्टल में रह कर जौब कर रही थी. वह उन्हें डाइट व एक्सरसाइज़ के टिप्स दे दिया करती थी और वे उसे घर के मज़ेदार पकवान.

आख़िर को वही सब से भरोसेमंद लगी उन्हें. सारी बातें दिल खोल कर बता दीं.

उन की बातें सुन कर सौम्या खिलखिलाई, “मौसी, आप भी न, छोटे बच्चों की तरह हैं. एक कहानी सुनिए, एक आदमी बाग़ीचे का सब से सुंदर फूल लेने के लिए गया. अंदर जाते ही उसे बेहद सुंदर, खुशबूदार फूल नज़र आया. उस ने सोचा कि शुरुआत में ही इतने प्यारे फूल लगे हैं तो आगे तो न जाने कितने अच्छेअच्छे होंगे. इसी सोच में वह आगे बढ़ता गया, बढ़ता गया. एक से बढ़ कर एक फूल देखे, पर पहला वाला उस के मन में बस गया था. उसे कोई पसंद न आया. आख़िर में उस ने सोचा कि वही फूल ले लेना चाहिए, सो वह वापस लौट गया. पर उस ने देखा, इतनी देर में वह फूल कोई और ले गया है. अब वह दुखी हो गया और वहीं बैठ गया. थोड़ी देर बाद उस ने मन को समझाया और सोचा, चलो कोई बात नहीं, दूसरे फूल भी कम सुंदर नहीं. वह आगे बढ़ा तो देखा, दूसरी बार जो समय गंवाया था उस ने, उस दौरान सारे फूल कोई ले जा चुका था.”

इतना कह कर सौम्या चुप हो गई.

“आय हाय बीबी, मेरा हार्ट फेल करा कर मानोगी क्या? अभी उड़ कर चली जाऊं?” ज़रीना बेग़म घबरा कर बोलीं.

“अरे नहीं मौसी, कल चलते हैं न, फ्राइडे ईव है. मेरा सैटरडे-सन्डे औफ है,” सौम्या ने कहा.

“अरे क्या सचमुच? कैसे? तुम मेरे साथ चलोगी? तुम कितनी प्यारी बच्ची हो, ख़ुश रहो हमेशा,” ज़रीना बेगम बच्चों जैसे उत्साहित हो रही थीं.

“इतने पैसे हैं आप के पास, तो क्या फ़्लाइट की टिकट नहीं बुक करा सकतीं?”
सौम्य की इस बात पर दोनों हंसने लगीं.

“मुझे इक़बाल साहब की डिटेल दीजिए, सर्च करती हूं ऐड्रेस,” और सौम्या ने जल्दी से फोन निकाला.

ज़रीना बेग़म बहुत एक्साइटेड थीं, जैसे सिंदबाद जहाज़ी किसी एडवैंचर को करने जा रहा हो. मिन्नतें भी करती जा रही थीं अपने मिशन की क़ामयाबी की.

प्लान के मुताबिक़ सौम्या घर आई और दानिश को बताया कि फ्रैंड्स के साथ आउटिंग का प्रोग्राम है, 2 दिनों के लिए उस की मम्मी उधार चाहिए. दानिश चौंक गया, इस से पहले कभी उस ने अम्मी को अकेला नहीं छोड़ा था. पर जब उन्होंने मासूमियत से रिक्वैस्ट की, तो उस से इनकार करते न बना. वीडियो कौल से टच में रहेंगी, इस वादे के साथ उस से हां करते ही बनी.

वह भी सोच रहा था अम्मी का दिल बहल जाएगा. उसे सौम्या की समझदारी पर भी पूरा भरोसा था.

दोनों ने चुपके से हैदराबाद की तरफ़ कूच कर दिया.

“पर मौसी, यह ख़राब नहीं लगेगा किसी को बिन बताए धमक जाओ उस के घर,” सौम्या को संकोच हो रहा था.

“अरे बेटा, लड़कियों का सुघड़ापा यों ही देखा जाता है अचानक जा कर, बिन लीपापोती और तैयारियों का वक़्त दिए,” ज़रीना बेगम अनुभवी थीं.

इक़बाल मेंशन के दरवाज़े के बाहर खड़ी दोनों ही हिचकिचा रही थीं.

संयोग था कि कौलबेल पर हाथ रखने से पहले ही दरवाज़ा खुल गया. एक हाथ में रूमी की मसनवी और दूसरे हाथ में बेगम अख़्तर की ग़ज़ल लगा कर फ़ोन पकड़े हुए क्रीम और मैरून कौम्बिनेशन का सूट पहने ज़ुनैरा सामने खड़ी थी. कुछ पल को दोनों अपनीअपनी जगह जम सी गईं.

ज़रीना बेग़म को यक़ीन नहीं आ रहा था. शेख सादी, मीर और रूमी को पढ़ने की वजह से सब सहेलियां उन्हें बूढ़ी रूह कह कर चिढ़ाती थीं और बेग़म अख़्तर की आवाज़ में तो जान बसती थी उन की. कालेज फेयरवैल के वक़्त इसी कौम्बिनेशन की साड़ी पहनी थी उन्होंने.

“अस्सलामो अलैकुम. जी, आइए,” ज़ुनैरा कुछ समझ और कुछ नासमझी में बोली.

“अम्मी से मिलना है?”

“आप ने पहचाना नहीं, बेटा? हम भोपाल में मिले थे,” ज़रीना बेगम आगे बढ़ीं.

“हां, ओह, अरे हां, माफ़ कीजिए आपी, अरे फिर से सौरी, ख़ालाजान तशरीफ़ लाएं,” वह एकदम ही ख़ुश हो गई.

मेहमानों को अंदर बैठा कर वह अम्मी को बुलाने चली गई.

जैसे ही मिसेज़ इक़बाल अंदर आईं, अपना परिचय करा कर बिन लागलपेट ज़रीना बेग़म ने कहना शुरू किया- “आप यक़ीन नहीं करेंगी, पर अगर मेरी बेटी होती तो हूबहू ज़ुनैरा जैसी होती.
सूरत और सीरत में मेरा अक़्स है वह. अब गोद तो ले नहीं सकती, तो उसे आप ही मुझे बेटी के तौर पर सौंप दें. मेरा एक ही बेटा है, दानिश. उस की बहुत सी फोटोज और बायोडेटा लाई हूं. ऐड्रेस, फ़ोन नंबर भी. आप अपने हिसाब से जांचपड़ताल व तसल्ली करा लें और प्लीज़, एक बार मेरे प्रपोज़ल पर ग़ौर ज़रूर करें.”

एक ही सांस में सब बोल कर जब ज़रीना बेग़म चुप हुईं, तो मिसेज़ इक़बाल ग्रेसफुली मुसकरा दीं.

“हम तो यह मानते हैं, जोड़ियां ऊपर बनती हैं, नीचे मिल ही जाती हैं ख़ुद ही. जब भी कुदरत का हुक्म हुआ, फ़ौरन निकाह कर देंगे. रिश्ते तो बेतहाशा आ रहे हैं, पर हम लोग इस की पढ़ाई पूरी होने के इंतज़ार में हैं. इस के पापा से मैं डिस्कस कर के आप को ख़बर कर दूंगी. आप लोग बड़ी दूर से आई हैं, फ्रैश हो लें. मैं खाना लगवाती हूं.”

कैसा यह इश्क है : भाग 2

अभी वो पकौड़ियां अपनी परिस्थितियों से जूझ ही रही थीं कि सधे हुए हाथों ने कलछी की एक थपकी से उन्हें पलट दिया और वो फिर तेलरूपी भव सागर में डूबनेउतराने लगीं. तभी…

“साहब, कहां बैठना पसंद करेंगे?”

“कहीं भी बैठा दो भाई. बस, जगह साफसुथरी हो. हमें यहां कोई बसना थोड़ी है,” प्रखर ने मुसकराते हुए कहा.

“साहब, अंदर एसी रूम भी और फैमिली के लिए भी अलग से बैठने का हिसाब है. आप कहें तो वहीं लगा दूं.”

“एसी, इस मौसम में? तुम तो भाई, बस, यहीं गरमागरम पकौड़ियां और अदरक वाली चाय पिलाओ.” प्रखर आज बहुत ही हल्के मूड में थे.

पूर्वी और महिमा वहीं चारपाई पर बैठ गईं.

एक 17-18 साल का लड़का हाथ में कुल्हड़ और चाय की केतली लिए हाजिर था. उस के पीछेपीछे ढाबे का मालिक, जो पकौड़ियां तल रहा था, एक हाथ में प्याज की पकौड़ी और दूसरे हाथ में धनिया व हरीमिर्च की अधकचरी चटनी लिए खड़ा था. पकौड़ियों के साथ धनियामिर्च की चटनी सोने पर सुहागा का काम कर रही थी. प्रखर, मयंक और महिमा उस के स्वाद में डूब गए. पूर्वी चुपचाप चाय की चुस्कियां लेती रही. पकौड़े के हर टुकड़े के साथ प्रखर के मुंह से वाहवाह निकलती. प्रखर खाने के बहुत शौकीन थे. शहर का कोई भी ठेला, ढाबा और होटल नहीं था जो उन की नजर से बच जाए. पूर्वी प्रखर का ठीक उलटा थी, उसे सीधासादा घर का खाना ही पसंद था. तभी महिमा की नजर दूर किसी आकृति पर पड़ी.

“पापा, वह क्या है?”

“अरे, वह बहुत पुराना किला है. किसी राजा ने बनवाया था. इतिहास सब्जैक्ट मेरा शुरू से बहुत खराब है. तेरी मम्मी ही बता सकती है. तेरी मम्मी का मायका है. भाई, सुना है इन के रिश्तेदारों ने बनवाया था,” प्रखर ने पूर्वी को फिर छेड़ा.

“आप भी न कहीं भी शुरू हो जाते हैं. महिमा क्या सोचेगी आप के बारे में. अब आप ससुर बन चुके हैं.”

“तो क्या हुआ,” प्रखर उसी तरह हंसते रहे.

“आओ महिमा, तुम्हें आज यह किला भी दिखाते हैं.”

पूर्वी कुछ कहना चाहती थी पर उस के शब्द मौन हो गए थे. किस हक से रोकती और क्यों. उन परछाइयों से जितना दूर भागती वे उतना ही उस की देह, उस के जीवन से चिपक जातीं. गाड़ी तेजी से किले की तरफ बढ़ती जा रही थी और पूर्वी का मन न जाने क्यों टूटता जा रहा था. शादी के बाद एकदो बार वह प्रखर के साथ किले पर आई थी पर कोई न कोई बहाना कर के वह वहां से जल्दी चली आती. जैसे, भाग जाना चाहती थी वह उन यादों से, पर…

सुबह का समय था. किले में भीड़ अभी कम ही थी. मयंक अपने मोबाइल से महिमा और किले की तसवीरें निकाल रहा था. पूर्वी और प्रखर नवयुगल को छोड़ आगे बढ़ गए. वे दोनों कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहते थे. किले की चढ़ाई चढ़तेचढ़ते पूर्वी थक गई थी. पूर्वी और प्रखर चलतेचलते किले के भीतरी भाग तक पहुंच गए. पूर्वी की आंखें तेजी से कुछ ढूंढ रही थीं. वैसी ही तो थीं जैसे आज से 30 पहले थीं.

लाल गुलमोहर से लदा पेड़ और पेड़ के नीचे वो लकड़ी की बैंच आज भी वहां वैसे ही पड़ी थी. कुछ भी तो नहीं बदला था. आज भी बैंच पर गुलमोहर की सुर्ख पंखुड़ियां वैसे ही बिखरी हुई थीं. वर्षों हो गए थे उसे यहां आए. हमेशा सोचती थी वह कि उस की मुहब्बत को मुकम्मल जहान न मिल सका.

गुलमोहर के फूलों के बीच झांकती रेशमी किरणें क्या फिर किसी प्रेमी युगल जोड़े पर वैसे ही बिखर सकी होंगी? क्या फिर कभी गुलमोहर के तले पड़ी यह बैंच पहले की तरह आबाद हो सकी होगी. कितने अरमानों और दर्द में लिपटी सिसकियों की गवाह थी यह बैंच. क्या कभी फिर किसी प्रेम युगल की मासूम हंसी से वो खिलखिलाई होगी या फिर सिर्फ यात्रा की थकान से चूर राहगीरों को पलभर के लिए फुरसत से सांस लेने के लिए सिर्फ एक बैंच बन कर ही रह गई होगी. क्या बैंच के उन उखड़े पेंट के बीच दबीदबी सिसकियों को कोई सुन पाया होगा. शायद नहीं.

पूर्वी थक चुकी थी. थकान से उस की धौकनी जोरजोर से चल रही थी. जिस की आवाज प्रखर ने भी महसूस की पर यह थकान शायद तन से ज्यादा मन की थी. न जाने क्यों फागुन बेरंग सा लग रहा था. एक पल को लगा गुलमोहर और वह बैंच उदास नजरों से उसे देख रहे थे. आखिर वो ही तो गवाह थे उस की उस अनकही दास्तां के, एक ऐसी दास्तां जो मुकम्मल न हो सकी.

गुंबद के दाहिने हाथ पर संकरे से गलियारे में सूखी पत्तियां लोट रही थीं. टौफीचौकलेट, चिप्स और गुटखे की रंगबिरंगी पन्नियां सूखी पत्तियों के बीच चमक रही थीं. न जाने क्यों पूर्वी के कदम उस गलियारे की तरफ बढ़ गए. पूर्वी ने दबे पांवों गलियारे में प्रवेश किया पर सूखी पत्तियों ने उस के आगमन की चुगली कर दी और शोर मचाने लगीं.

पूर्वी के चेहरे पर मुसकान तैर गई. यह पेड़ महज सिर्फ पेड़ नहीं, उस के खूबसूरत अतीत और यादों का गवाह भी था. जो दीवारें उसे अपरिचितों की तरह देख रही थीं, उस के हलके स्पर्श को पा कर मानो जी उठीं. उस की उंगलियों की खुशबू उन दीवारों में फैल गई. गलियारे के अंतिम छोर पर झरोखे के नीचे हाथ फेरते पूर्वी के हाथ उन खुरदुरे शब्दों से टकरा गए- ‘पूर्वी संग पीयूष उन्नीस सौ पच्चासी’. उसे लगा मानो उस ने बिजली के नंगे तारों को छू लिया हो. आज भी, इतने वर्षों बाद भी, वे शब्द खुदे थे. होते भी क्यों न, उस ने उस के दुप्पट्टे से सेफ्टी पिन निकाल कर किले के इस संकरे गलियारे में दुनिया से छिपा कर उकेरा था. कहते हैं मरतेमरते एक दिन इच्छाएं भी मर जाती हैं पर क्या प्यार भी?

मौसम खुशनुमा हो रहा रहा था. फरवरी की गुलाबी ठंड और हलकी धूप में गुलमोहर खिलखिला रहा था. अचानक से न जाने कैसे आसमान में काले बादल छा गए थे. इस मौसम में काले बादल… पूर्वी को लगा ये महज बादल नहीं, उस के हृदय का प्रतिरूप हैं. आंखें न जाने क्यों सजल हो आईं. सिर्फ बारिश ही नहीं भिगोती, जब आर्द्रता बढ़ जाए तो मन यों भी बरस जाता है. वह यादों के गलियारे में 30 साल पीछे खड़ी थी.

‘किसी ने देख लिया तो,’

‘तो क्या, तुम और मैं एक ही तो हैं,’ कितने आत्मविश्वास से पीयूष ने उस दिन उस से कहा था. आज भी वह नाम उन बीते लमहों की याद दिला रहा था. ‘बंद दरवाजों पर भी प्रेम जरा बाकी है, सबकुछ सूख गया, फिर भी हरा बाकी है…’ किसी की लिखी ये पंक्तियां अनायास ही याद आ गईं. पूर्वी ने नजर उठा कर देखा, पूरा किला प्रेमीप्रेमिकाओं के प्यार का गवाह बना हुआ था. किले की दीवारों, झरोखों यहां तक कि छतों पर भी प्यार की निशानियां चौक, लाल ईंट या फिर किसी नुकीली चीज से उकेरी हुई थीं. पूर्वी सोच रही थी इस में से कितनों की मुहब्बत अपनी मंजिल पा पाती हैं या फिर बस यों ही इबारत बन कर ही रह जाती है.

प्रखर पूर्वी को ढूंढतेढूंढते उस गलियारे तक पहुंच गए थे.

“तुम यहां, कहांकहां नहीं ढूंढा तुम्हें.”

पूर्वी ने कोई जवाब नहीं दिया और वह दीवारों का सहारा ले कर गलियारे से निकलने लगी. प्रखर ने अपना हाथ बढ़ा दिया. पूर्वी की आंखें मुसकरा दीं. उन मजबूत हाथों के सहारे ही तो जीवन के 30 वसंत पार कर चुकी थी. उसे हमेशा लगता था कि प्यार उस से रूठा हुआ है जैसे जाड़े की ठिठुरती सुबह में कुहासे से सूरज. पर प्रखर का साथ सर्द गुलाबी रातों में पश्मीने की तरह ही तो था. प्रखर ने हमेशा की तरह पूर्वी की साड़ी के आंचल से अपने चश्मे को साफ किया और गुंबद की नक्काशी को देखने लगे.

“अरे पूर्वी, देखो तुम्हारा नाम, ‘पूर्वी संग पीयूष उन्नीस सौ पच्चासी’. वैसे, यह पीयूष कौन है?” प्रखर की बात सुन पूर्वी का चेहरा लाल और कान गरम हो गए. हथेलियों पर पसीना उभर आया.

“आप भी न कुछ भी बोलते हैं, सारी दुनिया में एक मैं ही पूर्वी रह गई हूं. सासससुर बन गए हम. कुछ सालों में दादादादी भी बन जाएंगे और आप….”

पूर्वी प्रखर का हाथ छुड़ा कर आगे बढ़ गई. एक अनजाने डर ने उसे जकड़ लिया, कहीं प्रखर को कुछ…नहींनहीं, वह दास्तां उस के दिल में कब की दफन हो चुकी है. उस मरी हुई मुहब्बत, उन अरमानों ने आज वर्षों बाद एक बार करवट ली थी. क्या प्रखर ने उस की चोरी पकड़ ली थी.

“अरे यार, तुम तो नाराज हो गईं. मैं तो मजाक कर रहा था. अब मान भी जाओ.”

फूल सी दोस्ती : भाग 2

वह जान गया था कि 60 की उम्र के आसपास पहुंच कर भी प्यार जैसे शब्द बेमानी नहीं होते. यह अलग बात है कि उस सोच में एक परिपक्वता आ जाती है. मंजरी से मिला स्नेह और मार्गदर्शन जहां विराट को बेहद सुखद अनुभूति देता, वहीं मंजरी भी विराट के उत्साह से प्रभावित हो कर एक नई शक्ति महसूस करती. धीरेधीरे वे दोनों एक अनाम से रिश्ते में बंध गए थे. लगभग एक महीने की बिजनैस टूअर से शिशिर जब घर लौटे तो मंजरी बदलीबदली सी लगी. पहले की तुलना में वह काफी खुश दिख रही थी. लाल कैप्री के साथ क्रीम कलर का लंबा सा कुरता पहन, अपनी फैवरिट परफ्यूम लगाए घर में फुदकती हुई वह 25 साल पुरानी मंजरी लग रही थी.

शिशिर सूटकेस रखने जब अपने कमरे में पहुंचा तो बैड पर अधलेटा विराट मंजरी के लैपटौप पर कुछ करने में व्यस्त था. इस से पहले कि उन की कुछ बात होती, मंजरी सब के लिए कौफी ले कर आ गई और विराट का अपने दोस्त के रूप में शिशिर से परिचय करवा दिया.

‘‘मंजरीजी मेरी हमउम्र न सही, पर यह रिश्ता मुझे भी दोस्ती जैसा ही लगता है. आप को ऐतराज न हो तो मैं भी इन्हें अपनी दोस्त कह कर बुला सकता हूं?’’ विराट ने शिशिर से बड़ी आत्मीयता से पूछा. ‘‘सिर्फ दोस्त कह कर बुलाओगे? अरे भई, दोस्त समझो इन्हें. लगता है तुम में इन्हें एक ऐसा साथी मिल गया कि हमारी मैडम किट्टी और पड़ोस की सहेलियों से मिलने तक नहीं जा पातीं. अब बाहर जाया करूंगा तो मंजरी की चिंता नहीं होगी मुझे. वैलडन यंग मैन,’’ शिशिर ने विराट की पीठ थपथपा दी.

कौफी की चुसकियों के साथ तीनों की बातचीत का शोर घर में सुनाई देने लगा. रिया को ले कर विराट का उतावलापन देख मंजरी कभीकभी खूब हंसती. विराट चाहता था कि रिया जल्द से जल्द उसे अपने मन की बात कह दे और यह रिश्ता किसी मंजिल तक पहुंच जाए. मंजरी ने विराट को रिया के सामने थोड़ा सीमित रहने का सुझाव दिया, ताकि रिया स्वयं को टटोलना शुरू करे. मंजरी की बात मान विराट ने अब बारबार रिया को फोन और मैसेज करना बंद कर दिया. व्हाट्सऐप और फेसबुक पर भी वह सोचसमझ कर स्टेटस डालने लगा. अपने मन की बात मन ही में रखने से विराट को थोड़ी मुश्किल जरूर हुई, पर इस का परिणाम वैसा ही निकला जैसा वह चाहता था.

उस दिन कौफी शौप में विराट जानबूझ कर रिया को औफिस की बोझिल बातें सुनाने लगा. कुछ देर चुपचाप सुनने के बाद बोर होते हुए रिया बोली, ‘‘बस करो न अब… प्लीज, हमेशा की तरह अपने शौक, अपने बचपन और कालेज की शैतानियों की बात करो न.’’ ‘‘क्यों?’’ अनजान बनते हुए विराट ने पूछा.

‘‘क्यों क्या? अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में जानना.’’ ‘‘रियली… पर कुछ तो वजह होगी इस की?’’ विराट को मंजिल करीब लग रही थी.

‘‘विराट… बड़े खराब हो तुम…’’ ‘‘अरे, मुझ पर गुस्सा? ‘लव यू’ तुम से नहीं बोला जा रहा और नाराजगी मुझ पर.’’

‘‘सब बातें कहने की नहीं होतीं. क्या मैं ने कभी तुम्हें प्यार कबूलने को कहा? तुम्हारे स्टेटस से आइडिया लगा लिया न? और तुम हो कि…’’ ‘‘पर तुम तो स्टेटस भी हमेशा अपने मम्मीपप्पा की नन्ही सी गुडि़या बन कर डालती हो, एकदम बच्चों की तरह. कभी इशारा भी दिया कि मैं पसंद हूं तुम्हें?’’

‘‘ओके बाबा… लो…अभी व्हाट्सऐप पर तुम्हारे लिए स्टेटस डालती हूं.’’ और रिया ने तभी सुंदर सी रेशमी डोर की इमेज वाला स्टेटस डाला, जिस पर एक गीत की पंक्ति लिखी थी, ‘‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उलझे…’’

स्टेटस पढ़ते ही विराट की खुशी का ठिकाना न रहा और उस ने रिया का हाथ पकड़ कर चूम लिया. मन ही मन वह मंजरी का धन्यवाद करना भी नहीं भूला. अगला दिन उस ने लोधी गार्डेन में सैलिब्रेशन डे के रूप में मंजरी के साथ मनाने का निश्चय किया. घर पहुंच कर विराट के कई बार काल करने पर भी जब मंजरी ने फोन नहीं उठाया तो एक छोटा सा मैसेज भेज कर वह सो गया. सुबह होते ही वह फिर मंजरी को फोन करने लगा, पर कोई उत्तर न मिला. व्हाट्सऐप पर भी उस का लास्ट सीन रात का ही था. शिशिर लंदन गए हुए थे, इसलिए मंजरी कहीं दूर भी नहीं गई होगी. विराट बेहद चिंतित था. इसी तरह काफी समय बीत गया. इधर रिया से मिलने का टाइम हो रहा था, उधर मंजरी को ले कर चिंता.

इसी बीच दोपहर के 2 बज गए. कुछ सोचते हुए वह अपनी कार की चाबी ले कर घर से निकला ही था कि मंजरी का फोन आ गया. उस ने बताया कि रात से उसे तेज बुखार है, सुबह से चक्कर भी आ रहे हैं. बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही उस की. ‘‘मैं अभी आता हूं,’’ कह विराट मंजरी के घर की ओर निकल पड़ा. रिया को फोन कर उस ने बता दिया कि आज वह नहीं आ पाएगा क्योंकि एक फ्रैंड की तबीयत ठीक नहीं है, वह उस के घर जा रहा है.

मंजरी के घर पहुंचते ही विराट उसे ले कर हौस्पिटल गया. वहां मंजरी को दवा दी गई. घर वापस आ कर भी विराट तब तक मंजरी के पास बैठा रहा जब तक उस का बुखार कम नहीं हो गया. घर लौटते ही उस ने रिया को फोन कर मंजरी के बारे में बताना शुरू किया. सुन कर रिया बोली, ‘‘तुम ने तो कहा था कि एक फ्रैंड की तबीयत खराब है.’’

‘‘हां, मंजरीजी फ्रैंड हैं मेरी.’’ ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब तुम भी यही सोचती हो कि एक मेल और फीमेल कभी फ्रैंड नहीं हो सकते?’’ ‘‘मैं क्या उस जमाने की लगती हूं तुम्हें? पर 50 की उम्र के पार की आंटी से फ्रैंडशिप? हाहाहा… आई कांट बिलीव इट.’’

‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ विराट गुस्से से बोला. जवाब में रिया ने फोन काट दिया.

रात होतेहोते मंजरी की तबीयत में काफी सुधार आ गया. विराट को थैंक्स बोलने के लिए जब उस ने फोन किया तो ‘हैलो’ के साथ ही विराट की निराशा और गुस्से में भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘आई हेट रिया.’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’ चिंतित सी मंजरी इतना ही बोल पाई. और विराट ने पूरी घटना उसे सुना दी.

अपनी खुशी के लिए : भाग 2

‘मम्मी, तुम गंदी हो,’’ खुशी रोंआसे स्वर में बोली. उसे तरंग का इस तरह नंदिनी के साथ चले जाना बहुत अखर रहा था.

‘‘आप भी कह ही डालिए जो कहना है. इस तरह मुंह फुलाए क्यों बैठी हैं?’’ नम्रता पूर्णा देवी को चुप बैठे देख कर बोली.

‘‘मैं तो यही कहूंगी कि तुम से कहीं अधिक बुद्धिमान तो तुम्हारी 5 वर्षीय बेटी है. उस ने आज नंदिनी को अपने व्यवहार से वह सब जता दिया जो तुम कभी नहीं कर पाईं.’’

‘‘मैं आप के संकेतों की भाषा समझती हूं मांजी. पर क्या करूं? नंदिनी मेरी चचेरी बहन है.’’

‘‘चचेरी बहन… बात अपनी गृहस्थी बचाने की हो तो सगी बहन से भी सावधान रहना चाहिए,’’ पूर्णा देवी बोलीं.

‘‘नंदिनी को क्या दोष दूं मांजी, जब अपना पैसा ही खोटा निकल जाए. तरंग को तो अपनी पत्नी को छोड़ कर हर युवती में गुण ही गुण नजर आते हैं. आज नंदिनी है. उस से पहले तन्वी थी. विवाह से पहले की उन की रासलीलाओं के संबंध में तो आप जानती ही हैं.’’

‘‘मैं सब जानती हूं. पर मैं ने जिस लड़की को तरंग की पत्नी के रूप में चुना था वह तो जिजीविषा से भरपूर थी. तुम्हारा गुणगान अपने तो क्या पराए भी करते थे. फिर ऐसा क्या हो गया जो तुम सब से कट कर अपनी ही खोल में सिमट कर रह गई हो?’’

‘‘पता नहीं, पर दिनरात मेरी कमियों का रोना रो कर तरंग ने मुझे विश्वास दिला दिया है कि मैं किसी योग्य नहीं हूं. आप ने सुना नहीं था? तरंग नंदिनी से कह रहे थे कि अजनबियों के बीच जाते ही मेरी घिग्घी बंध जाती है. जबकि कालेज में मैं साहित्यिक क्लब की सर्वेसर्वा थी. पूरे 4 वर्षों तक मैं ने उस का संचालन किया था.’’

‘‘जानती हूं पर कालेज में तुम क्या थीं कोई नहीं पूछता. अब तुम क्या हो? अपने लिए नहीं तो खुशी के लिए अपने जीवन पर अपनी पकड़ ढीली मत पड़ने दो बेटी,’’ पूर्णा देवी ने भरे गले से कहा.

नम्रता ने खुशी और पूर्णा देवी को खिलापिला कर सुला दिया और तंरग की प्रतीक्षा करने लगी. तरहतरह की बातें सामने प्रश्नचिह्न बन कर खड़ी थीं.

सोच में डूबी हुई कब वह निद्रा देवी की गोद में समा गई उसे स्वयं ही पता नहीं चला. तरंग ने जब घंटी बजाई तो वह घबरा कर उठ बैठी.

‘‘मर गई थीं क्या? कब से घंटी बजा रहा हूं,’’ द्वार खुलते ही नशे में धुत तरंग बरस पड़ा.

‘‘यह क्या शरीफों के घर आने का समय है, वह भी नशे में धुत लड़खड़ाते हुए? आवाज नीची रखो पड़ोसी जाग जाएंगे.’’

‘‘पड़ोसियों का डर किसे दिखा रही हो? बेचारी नंदिनी से तुम ने पानी तक नहीं पूछा. कितनी आहत हो कर गई है वह यहां से. वह तो तुम्हारे और खुशी के लिए जान भी देने को तैयार रहती है. उस के साथ ऐसा व्यवहार? उसे रेस्तरां में ले जा कर खिलायापिलाया. मेरा भी कुछ फर्ज बनता है,’’ तरंग अपनी ही रौ में बहे जा रहा था.

‘‘समझ गई, मतलब खापी कर आए हो. अब भोजन की आवश्यकता नहीं है,’’ नम्रता व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली.

‘‘यह भी कोई कहने की बात है? सीधीसादी बात भी तुम्हें समझ में नहीं आती, मूर्ख शिरोमणि कहीं की,’’ अस्पष्ट शब्दों में बोल कर तरंग अपने बिस्तर में लुढ़क गया. और कोई दिन होता तो रोतीकलपती नम्रता भूखी ही सो जाती. पर आज नहीं. कहीं कोई कांटा इतना गहरा धंस गया था जिस की टीस उसे चैन नहीं लेने दे रही थी. स्वयं को स्वस्थ रखने का भार भी तो उस के ही कंधों पर है. क्या हुआ जो तरंग साथ नहीं देता. नम्रता ने भोजन को करीने से मेज पर सजाया जैसे किसी अतिथि के आने की प्रतीक्षा हो. बत्ती बुझा कर मोमबत्ती जलाई और उस की मंद रोशनी में रात्रिभोज का आनंद लेती रही. लंबे समय के बाद उसे लगा कि प्रसन्न होने के लिए किसी बड़े तामझाम की आवश्यकता नहीं होती. सही मनोस्थिति का होना ही पर्याप्त है. फिर न जाने क्या सोच कर अपनी फाइल निकाल कर बैठ गई. पढ़ाई में वह ठीकठाक थी पर अन्य गतिविधियों में उस का सानी कोई नहीं था. नृत्य, संगीत, खेलकूद, वादविवाद, नाटकों में उस की उपस्थिति अनिवार्य समझी जाती थी. पर विवाह होते ही सब कुछ बदल गया. नम्रता ने उदासीनता की ऐसी चादर ओढ़ ली जिसे भेद पाना दूसरों के लिए तो क्या स्वयं उस के लिए भी कठिन हो गया.

रात के सन्नाटे में स्वयं से ही अपना परिचय करवा कर नम्रता रोमांचित हो उठी. खुशी ने उस के व्यक्तित्व को झकझोर कर जगा दिया. अगले दिन की उजली सुबह नया ही रूपरंग ले कर आई. नम्रता हौलेहौले गुनगुना रही थी. तरंग को औफिस जाने की जल्दी थी. इंस्पैक्शन था तैयारी जो करनी थी. ‘‘नंदिनी को फोन कर देना. कल के व्यवहार के लिए क्षमा मांग लेना. नहीं तो वह नहीं आने वाली खुशी के स्कूल,’’ तरंग जाते हुए हिदायत दे गया था. सुन कर खुशी ने ऐसा मुंह बनाया कि पूर्णा देवी को हंसी आ गई.

‘‘मुझे नहीं जाना नंदिनी मौसी के साथ,’’ तरंग को जाता देख खुशी धीमे स्वर में बुदबुदाई.

‘‘खुशी, चलो तैयार हो जाओ. स्कूल जाना है,’’ नम्रता ने खुशी से कहा.

‘‘मैं नंदिनी मौसी के साथ स्कूल नहीं जा रही.’’

‘‘तुम मेरे साथ जाओगी. तुम्हारे पापा व्यस्त हैं पर मैं नहीं. तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का भार मेरे कंधों पर है नंदिनी पर नहीं.’’

‘‘सच मम्मी, मेरी नई जन्मदिन वाली पोशाक निकाल दो. आज स्कूल डै्रस पहनना जरूरी नहीं है. दादीमां सुना आप ने, मैं और मम्मी स्कूल जा रहे हैं,’’ खुशी ताली बजा कर नाचने लगी.

‘‘मुझे नहीं ले चलेगी खुशी? घर में बैठेबैठे ऊब जाती हूं मैं.’’

टूटती आशा : भाग 2

इतने में पुष्पा मावे की बरफी और कचौड़ियां ले आई जो उस के पतिदेव बच्चों के खाने के लिए बाजार से लाए थे. पुष्पा की निगाह उन पर पड़ गई और वह सहेलियों को इन्हें अपनी बनाई कह कर रौब जमाने की खातिर उठा लाई.

‘‘इतना सारा क्यों ले आईकितनी परेशानी उठा रही हो.’’ कहतेकहते सब उस पर टूट पड़ीं.

पुष्पा ने नौकर को चाय बनाने का आदेश दिया.

‘‘यही बहुत हैअब चाय और क्यों बनवा रही हो?’’ कचौड़ी मुंह में ठूंस कर नीरादेवी ने कहा.

पुष्पा ने जब देखा कि उस के हाथ कुछ आने से पहले ही सब खत्म हो जाएगा तो उस ने झट से एक कचौड़ी हाथ में लेते हुए जवाब दिया, ‘‘कचौड़ी का मजा तभी पूरा होगाजब चाय पिएंगे.’’

नीरादेवी जब घर पहुंची तो बाहर डाक्टर की गाड़ी खड़ी थी. उसे देख कर सहेलियों ने पूछा, ‘‘नीराजीकिसी की तबीयत खराब है क्या?’’

‘‘नहींऐसी कोई खास बात नहीं. मुन्ना को थोड़ी हरारत सी थी. वैसे भी डाक्टर विमल और इन की दोस्ती आप लोगों को मामूल ही है. उन का जब मन करता है इन के पास आ जाते हैं.’’ जवाब दे कर नीरादेवी घर के अंदर चली गईं.

डाक्टर ने उलाहना दिया, ‘‘नीराजीमुन्ना की तबीयत इतनी अधिक खराब हैआप उसे इस तरह छोड़ कर कहां चली गई थींक्या आप का जाना इतना जरूरी था?’’

नीरा देवी ने पहले पति के तमतमाए चेहरे की ओर देखाफिर हिम्मत बटोरती हुई बोलीं, ‘‘डाक्टर साहबयदि जरा सी बीमारी पर बच्चों को इतना लाड़ देने लगें तो क्या इस से बच्चे जिद्दी और गैरजिम्मेदार नहीं हो जाएंगेजब तक घर पर रहीउसे बराबर दवाई दी. मैं कहीं भी बाहर जाने से पहले इन को या आया को सब कुछ अच्छी तरह समझा कर ही जाती हूं.’’

‘‘परनीराजीयदि सिर्फ दवाई से ही रोगी ठीक हो जाए तो फिर बात ही क्याकोई भी रोगी होऔर खास कर बाल रोगीउस को दवाई से ज्यादा प्यार ठीक करता है. बच्चे को मां का प्यार और ममता मिल जाए तो फिर दवाई का असर भी जल्दी होता है. यदि प्यार ही न मिले तो ठीक होने की इच्छा कहां रह जाएगी?’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘डाक्टर साहबमुझे इतनी भावुकता पसंद नहीं. अब आप ही देखिए नपरसों मुन्ना को 101 डिगरी बुखार था. मैं ने उसे क्रोसिन दे दी. उस के साथ बी. कांपलैक्स देना पड़ता है तो वह भी दिया. गला खराब था और घुटने का जख्म भी कर नहीं रहा थाउस के लिए मैं ने पेंटेड सलफा और साथ में विटामिन सी दे दिया था. यदि आप भी आते तो यही दवाइयां तो देते.

‘‘मेरे पास हमेशा प्राथमिक चिकित्सा का बक्सा रहता है. करीबकरीब हर मामूली बीमारी की दवा भी करना जानती हूं. फिरडाक्टर साहबयदि हर औरत इसी तरह अपने को चार दीवारी में बंद कर ले तो समाज का तो बंटाधार ही हो जाएगा. एक तरफ तो आप मर्द लोग औरतों को आगे आने को कहते हैं और दूसरी तरफ आगे आने में रूकावट पैदा करते हैं. यह कहां तक उचित है?’’ नीरा देवी जो कुछ बाहर कहती थींवही घर में भी कह उठी. उनके घरों में बच्चों का ख्याल कुछ उदासीन ढंग से रखा जाता थानीरा 7 भाईबहनों में से एक थी और बे पढ़ीलिखी मां किस का कितना ख्याल रखती. अब वह कुछ ऊंचे लोगों का रहनसहन सीखने लगी है पर आदतें बदली नहीं हैं.

नीरा देवी के इस भाषण से ऊब कर डाक्टर ने कहा, ‘‘आप कितनी भी दवाइयां रख लें या उन का सही उपयोग कर लेंपर आप के हाथ के स्पर्शआप के मीठे बोल के बिना बच्चा कभी पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो सकताकम से कम मानसिक रूप से.’’

नीरा की उपेक्षापूर्ण बातें उन के पति को सहन न हुईं. वह मन ही मन दुखी हो पत्नी पर व्यंग्य करते हुए डाक्टर से बोले, ‘‘अरे छोड़ोयार. इन से क्या खा कर बहस करोगेयह मनोविज्ञान में एमए हैं और बाल मनोविज्ञान’ तो इन का सब से प्रिय विषय रहा है. अब इस मोहित पर उस का प्रयोग कर डाक्टरेट के लिए शोध प्रबंध लिखेंगी. नीरा तब तक अपने कमरे में जा कर कपड़े बदलने लगी थीं. वह जब तक हाउस कोट न पहन लेतींएक कमरे से दूसरे कमरे तक फासला तय करने में भी कठिनाई महसूस करती थीं. वह नियम की पाबंद थीं. दिन में हाउस कोटशाम को सलवारसूटमैक्सी या किसी नई डिजाइन की साड़ी और रात को 10 बजे नाइलोन की नाइटी. नाइटी न पहनें तो उन्हें रात में नींद नहीं आती थीभले ही नींद की गोली क्यों न ले लें. उन्होंने यह एक सहेली के घर में देखा था जो हवेली में रहती थी. तब से शादी के बाद उस ने यही तौरतरीका अपना लिया था.

एकदम थुलथुल और बेडौल शरीर को हाउस कोर्ट में छिपा कर वह मुन्ना के कमरे में गई. वह सौ रहा था. उस समय उसे ग्लूकोस दिया जा रहा था. देख कर उन की भौंहें तन गईं. वह मन ही मन बुदबुदाई, ‘आजकल के डाक्टर जराजरा सी बात में डरा देते हैं.’ वह मोहित के पास जा कर उस के माथे को छूकर देखने लगीं. इतने में उन के पति भी वहां आ गए.

‘‘डाक्टर साहब यों ही चले गए. उन्हें चाय तो पिलानी थी.’’ नीरा ने कहा.

पति ने अनमने स्वर में कहा, ‘‘हांपिलानी तो थी. पर…’’

पति कुछ और कहेउस से पहले ही नीरा देवी ने पूछा, ‘‘और यह ग्लूकोस क्यों दिया जा रहा हैमैं ने जो दवाइयां बताई थींतुम ने उसे नहीं दी होंगी तभी तो तबीयत ज्यादा खराब हो गई.’’

फिर कुछ खयाल कर के बोलीं, ‘‘अच्छा चलोखाना खा लें. मुझे बहुत तेज भूख लगी है. थोड़े से नमकीन और मीठे से कहीं पेट भरता हैमोहित के जागने से पहले खा लें.’’

‘‘हां हांभूख तो लगी होगी. इस समय दिन के 3 बज रहे हैं. आप के पेट में कम से कम कुछ तो गयापर मेरे पेट में तुम्हारी जल्दबाजी में बनाई हुई स्पेशल चाय के अलावा सुबह से कुछ नहीं गया.’’ व्यंग्यभरी मुसकान छोड़ते हुए पति ने कहा.

‘‘तुम ने नाश्ता क्यों नहीं लियासारे समय मोहित के पास तुम्हारा बैठना इतना जरूरी था क्या?’’

‘‘तीक्ष्ण नजरों से पत्नी की ओर देखते हुए पति ने कहा, ‘‘जरूरी तो था ही. मैं बेटे को मां की ममता तो नहीं दे सकता थालेकिन बाप का प्यार और हिफाजत दे कर उस के लिए एक साथी की कमी तो पूरी कर ही सकता था.’’

‘‘भईतुम बच्चे को इस तरह सिर पर चढ़ा कर बिगाड़ दोगे. उसे आत्मनिर्भर न बनने दोगे. यदि बच्चा थोड़ा बीमार है तो उस की सेवा कर के उसे और ज्यादा बीमार बना दोगे. ऐसा लाड़ भी किस काम काआया को पैसे किस लिए देते हैंवह समझती होगीसाहब अच्छे बुद्धू हैं. मैम साहब बाहर घूम रही है और साहब घर में बैठे हैं. फिर मन्नू भी तो है. उसे बाहरी कामकाज के लिए नौकर रखा है तो इस का यह मतलब तो नहीं कि वक्त जरूरत पर घर का कुछ काम ही न करे. मेरे कहने पर तो वह सब्जी काटना और दूसरे छोटेमोटे काम भी कर देता है. पता नहींआप नौकरों से कैसे काम लेते हैं.’’

कमरे से बाहर निकलते हुए पति खीज कर बोले, ‘‘बंद करो अपना यह भाषण. बच्चा 4 दिन से बीमार पड़ा है. मां को यह नहीं मालूम कि घर में क्या हो रहा हैबच्चे को क्या तकलीफ है. बाहर घूमने से फुरसत हो तब न. कल सुबह से मुन्ना को पतले दस्त हो रहे थे. तुम ने तो अपनी ओर से मेक्साफार्म’ की गोलियां देकर कर्तव्य की पूर्ति कर दी क्योंकि तुम ने बाल मनोविज्ञान पढ़ा है और वह तुम्हारा प्रिय विषय है. बाद में उसे कितनी उलटियां हुई और वह चक्कर खा कर कैसे गिर पड़ाइस का तुम्हें पता नहीं.

‘‘कल दोपहर को 2 बजे तुम पुष्प प्रदर्शनी में जज बनने चली गई और वहां से सहेली के बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में. फिर आई तो रात को बेहद थकी हुई. पार्टी और बच्चों को देख कर तो कम से कम मुन्ना को याद कर लिया होता. पर नहींतब बच्चा बिगड़ जाता. बच्चे को पैदा कर भूल जाओशायद यही तुम्हारे बाल मनोविज्ञान’ का सिद्धांत है.

श्रीमतीजीतुम को क्या पता कि आया कल सुबह के बाद आई ही नहीं. नौकरों से मुझे काम लेना नहीं आतापर कल जब मुन्ना चक्कर खा कर गिर पड़ा तो इस मन्नू ने ही संभाला. उस के बाद भी वह रात 8 बजे तक सिर्फ मेरी खातिर बैठा रहा. आज सुबह भी तुम्हारे जाने के बाद मुन्ना के लिए चायकाफी बनाने की मेरी असफल कोशिश को देख कर मुझे रसोई से हटाते हुए मन्नू खुद ही बना कर लाया. शायद इतना सब उस ने तुम्हारी समाजसेवा से खुश हो कर किया.’’ पति ने गुस्से में लगभग चीख कर कहा. फिर घड़ी को देखते हुए वह फिर मुन्ना के कमरे में चल गए. देखा ग्लूकोस बस थोड़ा ही बचा है और मोहित भी जग गया है. उन्होंने उस के माथे को सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटेदो मिनट में फोन कर के आता हूं. तब तक हिलनाडुलना नहीं.’’

उन्होंने जा कर डाक्टर को किसी नर्स को भेजने की याद दिलाई कि वह आ कर ग्लूकोस की सूई हटा दें. अगले ही 15 मिनट में नर्स अपनी स्कूटी से आ गई. उस ने ग्लूकोस खत्म होते ही सूई निकाल ली.

नीरा उस समय मोहित के पलंग के पास चुपचाप कुरसी पर बैठी थीं. पति द्वारा मिली लताड़ और बेटे की गंभीर दशा देख कर उन की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वहां से उठ कर कहीं और जाएं.

फिर कुछ रुक कर एक पैकेट आगे रखते हुए बोला, ‘‘ सुरेश राम स्वीट्स से आलू की सब्जी और पूरी बनवा कर लाया हूं. इसी से थोड़ी देर हो गई.’’

उन्हें चुप देख कर वह फिर बोला, ‘‘साहबबिलकुल बढ़िया खाना है. हमारी बस्ती में वही एक अच्छी दुकान है. हम लोग जोमैटो या स्वीगी से तो नहीं मंगा सकते पर उस से लेते रहते हैं. नीरा के पति की आंखें गीली हो आईं. वह प्रेमविह्लाल हो कर बोले, ‘‘तुम इतने प्रेम से लाओ और हम न खाएं.’’

‘‘मांअब तो आप मेरे पास रहोगी न?’’

मोहित ने सहज भाव से पूछा.

‘‘जब तक घर पर रहती हूंतुम्हारे ही पास तो रहती हूं. पर जरूरी काम आ पड़ने पर सारी व्यवस्था कर के जाना ही पड़ेगा.’’

फिर कुछ याद आते ही उन्होंने मन्नू से कहानहीं आई और द्वारका से कह देना कि वह आज गांव नहीं जाएगा.

नीरा देवी के पति तब तक भीतर से चाय और कुछ बिस्कुट मुन्ना के लिए ले कर मुन्ना के पास आए. आते ही उन्होंने तापमान देख कर नोट किया. फिर दवाई दे कर उसे तकिए के सहारे बैठा चाय बिस्कुट देने लगे. नीरा देवी जब तक क्लब की जितनी सदस्याओं को फोन पर कह सकती थींकह दिया कि कल का कार्यक्रम स्थगित किया जा रहा है.

उन के पति समझ गए कि रस्सी जल गईपर बल नहीं गया.

मैं नहीं मानती : भाग 2

धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ी तो आपस में परिचय भी हुआ. नीलिमा एक सरकारी जौब में है और साहिल एक आईटी कंपनी में काम करता है. वैसे तो उन के पास अपनीअपनी गाड़ी हैं, पर मुंबई की ट्रैफिक के चलते उन्हें ट्रेन से ही औफिस आनाजाना सही लगता है.

नीलिमा दिल्ली की रहने वाली है.  लेकिन अब वह अपने मांभाई के साथ यहां मुंबई में रहती है. उस के कुछ रिश्तेदार भी यहीं मुंबई में ही रहते हैं, तो संध्या का मन लगा रहता है.

साहिल के पापा नहीं हैं, उस की मां अपने बड़े बेटेबहू के साथ लखनऊ के हरदोई जिले में रहती हैं. वहां उन का अपना बड़ा सा पुस्तैनी घर और थोड़ीबहुत जमीनजगह है. साहिल का बड़ा भाई वहीं हरदोई जिले में ही स्कूल मास्टर है. साहिल यहां मुंबई में अकेले एक कमरे का घर ले कर रहता है.

28 साल के साहिल की मां को हमेशा अपने बेटे की चिंता लगी रहती है कि वह अकेले वहां कैसे रहता होगा? कैसे खातापीता होगा? इसलिए वह चाह रही है कि साहिल अब शादी कर ले, तो वह भी चैन से जी सकेगी.  उस ने कई लड़कियों के फोटो भी भेजे,  ताकि साहिल बता सके कि उसे कौन सी लड़की पसंद है, तो शादी की बात चलाई जा सके. लेकिन साहिल का कहना है जब उसे अपने लायक कोई लड़की मिल जाएगी, तब वह अपनी मां को बता देगा. वैसे, लगता तो है कि साहिल को अपनी पसंद की लड़की मिल चुकी है. लेकिन अभी वह कन्फूज है यह सोच कर कि पता नहीं नीलिमा भी उसे पसंद करती है या नहीं?

खैर, ट्रेन और सड़कों के अलावा अब साहिल और नीलिमा के बीच फोन पर भी बातें होने लगी थीं. घर पहुंच कर दोनों एकदूसरे के साथ देर रात तक चैंटिंग करते और फिर सो जाते. अब दोनों साथसाथ औफिस जानेआने लगे थे.

नीलिमा को अपने वीरान जीवन में एक प्यारा सा साथी मिल गया था.  पहले यही नीलिमा बिलकुल उदास और गुमशुम रहती थी. लेकिन अब उस के चेहरे पर खुशी झलकने लगी थी. उस के पहनावेओढ़ावे में भी काफी फर्क दिखने लगा था. पहले वह कुछ भी पहन कर औफिस चली जाया करती थी. लेकिन अब उसे सोचना पड़ता था कि क्या पहने, जो उस पर अच्छा लगेगा. अपने बालों को भी उस ने उड़ने के लिए आजाद छोड़ दिया था. वरना, पहले तो वह अपने बालों को कस कर बांधे रखती थी. पहले आईने से उस की दुश्मनी थी, अब दोस्ती हो चुकी थी. तैयार हो कर जब वह आईने से पूछती कि ‘कैसी लग रही हूं?’ तो आईना हंस कर कहता, ‘एकदम चाँद का टुकड़ा’ और वह मुसकरा उठती.

नीलिमा और साहिल जब कभी औफिस से जल्दी छूट जाते, तो दोनों किसी पार्क या कौफी शौप में जा कर एकदूसरे के साथ बिताते. मगर वहां भी एक टाइम लिमिट होता था. क्योंकि घर जाने में जरा भी देर हो जाने पर संध्या तो कम, नीलिमा का भाई दीपक उस से ज्यादा ही जवाबतलब करने लगता था कि वह इतनी देर से कहां थी, फोन क्यों नहीं उठा रही थी वगैरहवगैरह. खुद तो वह कुछ करता नहीं है, बहन पर दादागिरी दिखाता है. कहता है कि हीरो बनना है. इसलिए रोज खापी कर शूटबुट पहन कर घर से निकल पड़ता है और शाम को मुंह लटकाए वापस आ जाता है.

‘ओह यह मुंह और मसूर की दाल’ मन तो करता नीलिमा का कि बोल दें कि यहां अच्छोंअच्छों की तो दाल नहीं गलती, तो तुम्हें कौन पूछने वाला है? मुंह देखा है कभी आईने में? विलेन का भी रोल नहीं देगा कोई तुम्हें. लेकिन कुछ इसलिए नहीं कहती कि मां को बुरा लग जाएगा. आखिर वह बेटा है न…  नीलामा की पढ़ाई को कभी महत्त्व दिया गया इस घर में? जबकि वह बचपन से ही पढ़ने में होशियार थी. उस की मां कहतीं कि उसे कौन सा पढ़लिख कर कलक्टर बनना है. आखिर फूंकना तो चूल्हा ही है न. तभी तो बीच में ही पढ़ाई छुड़वा कर उस की शादी करा दी गई.

साहिल जैसा पावन निस्वार्थ स्नेह क्या कोई दे सकता था उसे इस घर में? लेकिन फिर भी उस ने अपने प्यार की बात अपने मांभाई से छिपा कर रखी थी क्योंकि जानती है वह उन की नजरों में उस का पवित्र प्रेम पाप बन जाएगा.

भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हैं लेकिन आज भी परिवार और समाज की नजरों में एक विधवा के लिए प्यार जैसी बातें शोभा नहीं देती. इसलिए जब कभी उसे घर आने में देर हो जाती है, तो वह कुछ भी बहाना बना देती कि जैसे औफिस में बहुत ज्यादा काम था या ट्रेन लेट थी वगैरह. लेकिन गुस्सा भी आता है कि वह क्या कोई कैदी है, जो कहीं भाग जाएगी? दीपक से कुछ क्यों नहीं पूछती संध्या कि वह पूरे दिन कहां और किस के साथ घूमताफिरता रहता है? सिर्फ उस के पीछे ही क्यों पड़ी रहती है वह?

साहिल के साथ ऐसी कोई बात नहीं थी क्योंकि वह यहां अकेले रहता है, तो उस के लिए यह अच्छी बात थी कि उसे किसी को कोई सफाई नहीं देनी पड़ती थी. लेकिन नीलिमा के लिए उसे बुरा लगता था. इसलिए दोनों ने तय किया कि हफ्तेभर की छुट्टी ले कर वे सिक्किम घूमने जाएंगे.  नीलिमा अपने घर वालों से यह कह देगी कि औफिस की तरफ से उसे 7 दिनों की ट्रैनिंग के लिए हैदराबाद भेजा जा रहा है. नीलिमा ने वैसा ही किया. साहिल के हाथों में हाथ डाले हवाईजहाज से उड़ कर वह अपनी रूमानी संसार में पहुंच गई जहां उन दोनों के सिवा कोई न था. होटल के रूम में मोटीमोटी आंखों वाली नीलिमा को जब साहिल अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा, तो वह उस से दूर छिटक गई. लेकिन साहिल फिर उसे खींच कर अपने करीब ले आया और अपने होंठों को नीलिमा के अधर पर रख दिया, तो उस ने लजा कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

दोनों के दिलों की रफ्तार जब कुछ देर बाद थोड़ी कम हुई, तो वे खिलखिला कर हंस पड़े और फिर एकदूसरे में समा गए. इस तरह से 7 दिन साथसाथ कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला उन्हें.

मुंबई पहुंच कर फिर दोनों अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए. लेकिन  सिक्किम में साहिल के साथ बिताए पल को याद कर नीलिमा रोमांचित हो उठती और उसे फोन लगा देती थी. इसी तरह उन का समय अच्छे से व्यतीत हो रहा था. लेकिन नीलिमा यह सोच कर डर जाती कभीकभी कि अगर उन के प्यार की भनक उस के मांभाई को लग गई तो क्या होगा.

“क्या हुआ, आज घर नहीं जाना तुझे? फिर बैठी क्या है?” अनु को अपनी तरफ घूरते देख नीलिमा बोली.

“सोच रही हूं आज तेरे साथ ही घर जाऊं,” टेबल पर कुहनी टिकाए, ठुड्डी पर हाथ रख अनु बोली, “देखूं तो जरा आखिर उस ट्रेन में कौन सी ऐसी खास बात है, जो तू ने मेरे साथ जाना ही छोड़ दिया?” बोल कर वह हंसी, तो नीलिमा कहने लगी कि वह पागल हो गई है. इसलिए बेकार की बातें कर रही है.

“पागल मैं हो गई हूं या तू दीवानी? बोल न कौन है वह जिस के प्यार में तेरा चिपका हुआ गाल टमाटर की तरह लाल हो गया है?” अनु ने हलके से धक्का दिया तो नीलिमा मुसकरा पड़ी.

“आय हाय, यह मुसकी तो देखो जरा. अब बता भी दो कौन है वह?” अनु ने जिस अंदाज में कहा नीलिमा को हंसी आ गई और उस ने अपने और साहिल के बारे में उसे सबकुछ बता दिया.

“ओहो…तो बात यहां तक पहुंच गई और मुझे खबर तक नहीं. वैसे, मिला कभी अपने साहिलजी से मुझे,” बोल कर अनु ने आंख मारी तो नीलिमा शरमा गई.

एक रोज जब साहिल ने नीलिमा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो वह कहने लगी कि उस का एक अतीत है  और वह उसे किसी धोखे में नहीं रखना चाहती.

“कैसा अतीत नीलिमा?” साहिल ने पूछा तो नीलिमा बोली कि वह एक विधवा है.

“यानि की, पहले तुम्हारी शादी हो चुकी है?”

“हां साहिल, मेरी पहले शादी हो चुकी है,”अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताते हुए नीलिमा कहने लगी कि पढ़ाई के बीच में ही, अच्छा घरवर मिलने पर उस के मांपापा ने 19 साल की उम्र में ही उस की शादी करा दी.  लड़का रेलवे में गार्ड था और खातेपीते परिवार से था तो उस के मांपापा को लगा कहीं इतना अच्छा रिश्ता बाद में फिर न मिले तो. और पढ़ाई का क्या है, वह तो शादी के बाद भी पूरी की जा सकती है.

नीलिमा ने भी उन की बातों का कोई विरोध नहीं किया. वैसे, विरोध कर के क्या कर लेती ? मन से नहीं तो जबरदस्ती बांध दिया जाता उसे शादी के खूंटे में? खैर, शादी के बाद नीलिमा ने भी अपनी जिंदगी के साथ समझौता कर लिया और ससुराल में अच्छे से रचबस गई. नीलिमा का पति इंसान तो सही था, पर उसे शराब की बहुत बुरी लत थी और उसी ने एक दिन उस की जान ले ली. कम उम्र में ही नीलिमा विधवा हो गई. उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. लेकिन उस के दुखों को समझने के बजाय, उलटे उस के ससुराल वाले उसे ही कोसने लगे कि सुंदर लड़की देख कर वे अंधे हो गए. अगर जानते कि लड़की अपशगुनी है तो कभी अपने बेटे का ब्याह इस से नहीं करते. पति के न रहने पर उस के ससुराल वालों ने उस का जीना दूभर कर दिया.

बेटी पर जुल्म होते देख कर नीलिमा के पापा उसे अपने घर ले आए. लेकिन यहां भी उसे कहां चैन था. नातेरिश्तेदार उस के दुख को समझने के बजाय कुछ ऐसा बोल जाते कि वह रो पड़ती थी. पहले जहां आसपड़ोस, नातेरिश्तेदार नीलिमा से हंसाबोला करते थे. अब वही लोग उस की उपेक्षा करने लगे. उसे अभागिन और अपशगुनी कहने लगे.   मगर कुछ ऐसे लोग भी थे जो उस पर दया दिखाते हुए कहते कि अभी नीलिमा की उम्र ही क्या हुई है. इसलिए इस की दूसरी शादी करवा दो. क्योंकि औरत को एक मर्द का सहारा तो चाहिए ही.

लेकिन नीलिमा के लिए जितने भी रिश्ता आए, देख कर यही लगता था कि यहां नीलिमा को नहीं, बल्कि उस आदमी को सहारे की जरूरत है. क्योंकि किसी की पत्नी मर चुकी थी, तो कोई अपने पति को छोड़ कर भाग गई थी. यहां दूसरी पत्नी के नाम पर उन पुरुषों को एक केयरटेकर चाहिए जो उस अधेड़ उम्र के मर्द की शारीरिक जरूरतों को तो पूरा करे ही, साथ में उस के परिवार को भी संभाले.

लेकिन नीलिमा को तब रोना आ गया जब उस की खुद बुआ ही उस के लिए 50-55 साल के एक बुड्ढे का रिश्ता ले कर आई. बुआ ने ही बताया कि उस आदमी की बीवी अभी कुछ महीने पहले गुजर गई और अब वह दूसरी शादी करना चाहता है. लेकिन बुआ ने एक बार भी यह नहीं सोचा  कि उस आदमी की बेटी नीलिमा से बड़ी है और कहने लगीं कि मर्द की उम्र नहीं देखी जाती. और उस आदमी के पास बहुत पैसा है, तो  नीलिमा उस घर में राज करेगी.

“तो क्या पैसे की खातिर मैं उस बुड्ढे की बीवी बन जाऊं? क्या इतनी गईगुजरी हूं मैं बुआ?” नीलिमा फट पड़ी.

“अरे, उस की बेटी मुझसे 3 साल बड़ी है, फिर आप ने सोच भी कैसे लिया कि मैं उस आदमी से शादी करूंगी? मुझे आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी.”

“तू एक विधवा है, भूल गई क्या? एहसान मान कि मैं तेरे लिए इतना अच्छा रिश्ता ले कर आई और तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है,” अपना पल्लू ठीक करते हुए गुस्से से बुआ बड़बड़ाई.

“हां, तो नहीं चाहिए मुझे आप का एहसान. और न ही मुझे किसी के सहारे की जरूरत है, समझीं आप?  जी लूंगी मैं अकेले ही,” यह बोल कर नीलिमा अपने कमरे में जा कर सिसक पड़ी थी. लेकिन बुआ को कुछ कहने के बजाय संध्या उसे ही समझाने लगी कि उसे बुआ से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी.

“और बुआ ने जो किया वह सही था? क्या वे करेंगी अपनी बेटी की शादी एक बुड्ढे से? नहीं न? बोलो न मां, क्या आप भी चाहती हैं कि मैं उस आदमी से शादी कर लूं? क्या इतनी बड़ी बोझ बन गई हूं मैं आप के लिए? आखिर मेरी गलती ही क्या है मां? यही न कि मैं एक विधवा हूं. तो विधवा का कोई जीवन नहीं होता?” लेकिन संध्या उस की बातों का कोई जवाब दिए बगैर कमरे से बाहर निकल गई.

“भले ही यह दुनिया महिला सशक्तिकारण का कितना ही ढोल पीट ले, मगर औरत की स्थिति में आज भी कोई ज्यादा सुधार नहीं आया है,” एक गहरी सांस लेते हुए नीलिमा अतीत से बाहर निकलते हुए बोली, “लेकिन मैं ने भी सोच लिया कि अब मैं अपनी जिंदगी का फैसला खुद करूंगी. कोई नहीं होता यह बोलने वाला कि मैं किस से शादी करूं और किस से नहीं. मैं नहीं मानती दुनिया के इन रीतिरिवाजों को.  लेकिन उस से पहले मुझे आत्मनिर्भर बनना होगा. इसलिए मैं ने सब से पहले अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की और फिर सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गई. मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे जौब मिल गई,” नीलिमा की कहानी सुन कर साहिल अंदर तक हिल गया.

“लेकिन दुख होता है यह सोच कर कि आखिर यह समाज औरतों के साथ ही इतना सख्त क्यों है? आज जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं. खुद महीने के पचासों हजार कमा रही हूं. किसी पर आश्रित नहीं हूं. फिर भी मुझे अपने घर में, मांभाई को हर बात के लिए जवाब क्यों देना पड़ता है? मेरे भाई दीपक के लिए तो सारी आजादी है, फिर मेरे लिए ही इतनी पाबंदी क्यों?”  बोलते हुए नीलिमा की आंखें भर आईं.

दयादृष्टि : भाग 2

“आप सभी का इस पावन भूमि पर स्वागत है. आप अपने प्यारेप्यारे भगवान के दर्शन करें, उस के पहले कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. जो पुराने भक्त हैं उन्हें सब मालूम है. जो नए हैं, उन्हें समझना होगा. आप में से जो पहली बार आए हैं, वे अपनेअपने हाथ उठा दें.”

आधे से अधिक लोगों ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने भी हाथ खड़ा कर दिया. उस ने पत्नी को देखा. वह भी हाथ खड़ा कर चुकी थी.

“ठीक है, आधे से अधिक पहली बार आए हैं. आप समझ लीजिए कि आप सही स्थान पर आ चुके हैं. आप की हर प्रार्थना का उत्तर यहां मिलेगा. यहां इस पवित्रस्थल पर आप के सारे दुखपीड़ाएं समाप्त होने को हैं. आप जिस भी माध्यम से यहां आए हैं, जिस ने भी इस चमत्कारिक भूमि का पता आप को बताया है, मन ही मन उन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कीजिए,” सेविका ने मुसकराते हुए कहा.

उस ने आंखे बंद कर, मन ही मन अपने मित्र शंकरलाल के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की.

“कुछ समय बाद दूसरे सभागार में, जिसे दर्शन मंडप कहा जाता है, वहां आप को अनंत ब्रह्मांड स्वामी, कलयुग में अवतार लिए, सभी के दुख हरने वाले, करूणा के सागर, भगवान श्रीअनंत देव के दर्शन होंगे. सर्वप्रथम उन की आरती होगी. उस समय आप खड़े हो कर करतल ध्वनि कर सकते हैं.

“आरती की समाप्ति के पश्चात आप सभी को जब बैठने का कहा जाए, तब आप अपने स्थान पर बैठ जाएंगे. उन के दर्शन होना ही दुखों का अंत है. जब वे आशीर्वाद मुद्रा में हों, तब आप अपने सारे दुख, अपनी सारी प्रार्थनाएं उन्हें कहें. उन से आशीर्वाद लें. आशीर्वाद लेते समय आप के हाथ भिक्षामुद्रा में होना चाहिए. दर्शन का समय होने पर वहां पहुंचने का निर्देश दिया जाएगा. तब तक आप यहां प्रार्थना में रहें. शांत भाव से उन प्रार्थनाओं को भीतर ही भीतर करते रहें, जो आज आप उन से कहने वाले हैं,” यह कह कर सेविका ने विदा ली.

वह स्वयं को एकाग्र कर, अपने दुखों को मस्तिष्क पटल पर उतारने लगा. उस के सामने ढेर सारे दुख खड़े होने लगे. मनोकामनाएं अंगड़ाइयां लेने लगीं.

विवाह को 5 साल हो गए. संतान नहीं हुई. गांव में उस के खेत की जमीन बंजर हो चुकी है. दूसरों के खेत पर काम कर जिंदगी चल रही है. 2 बार चूल्हा जल जाता है, वही बहुत है. इस के आगे वह सोच नहीं पाता.

विवाह के बाद बसंती को गांव से शहर भी नहीं ले गया. किसी तरह शहर जाने का जुगाड़ हो भी जाए तो उस से क्या? बसंती को वहां क्या मौज कराएगा? क्या कहूं भगवान से? बसंती को संतान? बंजर जमीन को हरीभरी हो जाने का आशीर्वाद? एक छोटा सा प्यारा सा पक्का मकान? कितनी प्रार्थनाएं हैं. फिर, बसंती भी तो यही सब मांग रही होगी. वह न जाने कितने उपवास करती है. सुबहशाम मंदिर जाती है. सब ठीक हो जाने के लिए प्रार्थना करती रहती है. उस ने गांव के वटवृक्षों पर मन्नतों के अनगिनत धागे बांध रखे हैं कि कभी तो भगवान सुनेंगे.

उस ने अपने आसपास देखा. उसे लगा कि सभी के चेहरे पर सपने तैर रहे हैं, बंद आंखों में प्रार्थनाएं ऊपरनीचे घूम रही हैं. वह फिर से शंकर के प्रति कृतज्ञता से भर उठा.

उस ने प्रार्थनाओं के फलीभूत होने का कितना सहज तरीका बताया है. उस ने कहा था कि यहां बड़ेबड़े लोग आते हैं. यहां डाक्टर, इंजीनियर, वकील, मंत्री, नेता, उद्योगपति, भगवान श्रीअनंत देव से आशीर्वाद लेते हैं. बसंती ने जब यह सब सुना तो उस ने पेटी में छिपाए सारे पैसे यात्रा के लिए निकाल कर दे दिए जो मां बनने के सपने को ले कर उस ने इकट्ठे किए थे. उस ने यह सोच, आश्वस्ति की गहरी सांसें लीं कि घर जा कर तो सपनों को साकार होना ही है. 2 दिन की यात्रा की थकान पर आस्था की शीतल बयार थपकियां देने लगी थीं.
कुछ देर बाद दर्शन मंडप में जाने का निर्देश मिला.

कुछ ही क्षणों में वह और बसंती दर्शन मंडप की ओर जाती सीढ़ियां चढ़ रहे थे. उन्होंने सीढ़ियां चढ़तेचढ़ते नीचे की ओर झांका. कुछ पल के लिए उन के कदम थम गए. मंदिर का परिसर कई एकड़ जमीन में फैला हुआ था. परिसर में अशोक, केला, आम, नीम, गुलमोहर के पेड़ हवा के धीमेधीमे झोंकों से लहरा रहे थे. क्यारियों में सफेद, नीले, लाल,नारंगी पुष्प मुसकरा रहे थे.

वे मुग्धभाव से सीढ़ियां चढ़ते रहे.

दर्शन मंडप का प्रवेशद्वार आ चुका था. महिलाओंपुरूषों की अलगअलग कतार बना दी गई.

अंदर प्रवेश करते ही आश्चर्य से उस की आंखें फैल गईं. वह पिछले सभागार से भी विशाल सभागार में खड़ा था. भगवान श्रीअनंत देव की मुसकराती, आशीर्वाद देती मुद्रा की विशाल तसवीर वहां भी लगी हुई थी.

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