जिस सुरक्षा व्यवस्था के साथ हाल ही मेंधर्म, धार्मिकता और पूरे ‘आडंबर’ के साथ नए ‘संसद भवन’ का उद्घाटन बड़ेबड़े तांत्रिक पंडितों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, वह सुरक्षा कवच कहां है कि संसद में घुसपैठ कांड हो गया. सच तो यह है कि वह सुरक्षा कवच पूरी तरह निरर्थक हो गया जिसे दुनिया ने अब देख लिया.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर अगर ‘बाधा विनाशक’ कोई पूजापाठ-तंत्रमंत्र क्रिया की होती तो, शायद, संसद में इस तरह की घटना कभी हो ही न सकती थी. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि इस तरह के पूजापाठ, तंत्र, आडंबर से सुरक्षा को कोई फर्क नहीं पड़ता.

यह बात सही है कि प्रधानमंत्री ने देशदुनिया को यह दिखाने की प्रयास किया कि वे बहुत बड़े हिंदू धर्मवादी, चहेते प्रधानमंत्री हैं. वे राजनीतिक सफलता के लिए देशप्रदेश के भीतर अपने वोटबैंक को कामयाब बनाने में कहीं न कहीं सफल हो रहे हैं. जिस का प्रत्यक्ष उदाहरण है हाल में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से 3 राज्यों में मिली सफलता.

यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है कि संसद में एक बार फिर 13 दिसंबर को संसद में हुए हमले के बरसी के दिन ही कांड हो गया. और सारी दुनिया में देश की सरकार व उस के द्वारा तैयार की गई देश की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लग गया.

13 दिसंबर, 2001 का यह वह दिन था जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय आतंकी घुसपैठ हुई थी और अब 13 दिसंबर, 2023 का वह दिन था जब भाजपा के बड़े चेहरे बन चुके नरेंद्र मोदी की सरकार है और संसद में घुसपैठ हो गई, भवन धुआंधुआं हो गया, अफरातफरी मच गई.

दरअसल, जहां वीवीआईपी स्थितियां हों, सुरक्षा के सारे मानकों का पालन किया जाता हो, जहां कोई परिंदा भी पर भी न मार सकता हो ऐसा माना जाता है, वहां सुरक्षा में सेंध एक बड़ा प्रश्न है, जिस का जवाब देश के गृहमंत्री को देना चाहिए, प्रधानमंत्री को स्वस्फूर्त देना चाहिए.

मगर संसद और सड़क दोनों ही मौन हैं और जब सांसद जवाब मांगते हैं तो उन पर निष्कासन की बिजली गिरा दी जाती है. इन स्थितियोंको किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं कहा जा सकता. एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में सबकुछ खुला होना चाहिए, पारदर्शिता होनी चाहिए. मोदी के सत्तासीन हो जाने के बाद 2014 से ही देश में उलटी गंगा बह रही है.

सुरक्षा चूक के बाद संसद की कार्यवाही रही हंगामेदार

विपक्षी सदस्यों ने सुबह 11 बजे से ही लोकसभा और राज्यसभा में अध्यक्षीय आसन के समीप आ कर प्रधानमंत्री के संसद में जवाब और गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग के साथ नारेबाजी की. परिणामस्वरूप,‘आसन’ की अवमानना और अनादर का आरोप लगाते हुए सत्तापक्ष द्वारा विपक्ष के 14 सांसदों को मौजूदा शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया.

इस में लोकसभा के 13 और राज्यसभा का एक सांसद शामिल हैं. लोकसभा में सांसदों के निलंबन का प्रस्ताव संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी व राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने रखा, जिसे दोनों सदनों में ध्वनिमत से पारित किया गया. निलंबन के साथ ही संसद की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया. हालांकि, इस के बाद भी विपक्षी सांसद अध्यक्षीय आसन के पास आ कर कुछ देर तक हंगामा व नारेबाजी करते रहे.

14 सांसदों में लोकसभा के 13 और राज्यसभा के एक सांसद शामिल हैं. लोकसभा से निलंबित किए गए सांसदों में कांग्रेस के 9 सांसद, माकपा के 2, द्रमुक के एक और भाकपा के एक सासंद शामिल हैं.

सरकार ने संसद में कहा, “लोकसभा में बुधवार को सुरक्षा चूक की घटना के मामले में उच्चस्तरीय जांच शुरू कर दी गई है और विपक्ष को इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.”

लोकसभा की कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद अपराह्न 2 से जब शुरू हुई तो विपक्षी सदस्यों ने सदन में सुरक्षा की चूक संबंधी घटना पर नारेबाजी शुरू कर दी.

इसी बीच, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी नोशी ने कहा, “हम सब सहमत हैं कि कल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना सदस्यों की सुरक्षा के लिहाज से गंभीर थी.”

उन्होंने कहा,“लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने घटना के तत्काल बाद सभी दलों के सदन के नेताओं की बैठक बुलाई और संसद की सुरक्षा को और पुख्ता करने के लिए सब के सुझाव सुने.”

जोशी ने कहा कि सांसदों के कुछ सुझावों को लागू किया जा चुका है और लोकसभा अध्यक्ष ने आज स्वयं कहा है कि सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए भविष्य में और भी कदम उठाए जाएंगे. मगर सब से बड़ी बात यह है कि सब की सुरक्षा को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी सरकार को गंभीर होना चाहिए वह कहीं से भी दिखाई नहीं दे रहा है.

यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य कि नईनई बनी संसद के बिल्डिंग में हुई यह घटना संपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर चुकी है और अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो आगामी समय में इस के दुष्परिणाम भी आ सकते हैं.

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