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विंबलडन के नए सरताज

चौथी वरीयता प्राप्त और 7 बार के चैंपियन स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर को हराना किसी सपने से कम नहीं था. लेकिन खेल में कब कौन किस को मात दे, कहना मुश्किल है. विंबलडन में पुरुष एकल के फाइनल मुकाबले में सर्बिया के नोवाक जोकोविच ने फेडरर को हरा कर खिताब अपने नाम कर लिया.

जोकोविच ने दूसरी बार विंबलडन खिताब अपने नाम किया और इस जीत के साथ ही वे दुनिया के नंबर वन खिलाड़ी बन गए. इस हार के बाद रोजर फेडरर का वह सपना भी टूट गया जो उन्होंने 8वीं बार सिंगल्स खिताब जीतने का देखा था. पहला सैट जीतने के बाद फेडरर अगले 2 सैटों में हार गए. चौथे सैट में भी वे लड़खड़ा गए थे लेकिन जबरदस्त जुझारूपन दिखाते हुए जोकोविच को मात देने में कामयाब हो गए. 5वें सैट में दोनों का जबरदस्त मुकाबला हुआ और एक समय यह तय कर पाना मुश्किल लग रहा था कि आखिर पलड़ा किस का भारी है लेकिन आखिरकार बाजी मारी जोकोविच ने. 3 घंटे 55 मिनट तक चले इस दिलचस्प मुकाबले में जीत के साथ ही विंबलडन के इतिहास में जोकोविच का नाम दर्ज हो गया.

पहले सैट में जोकोविच की सर्विस काफी बेहतरीन रही और उस के शौट्स के आगे फेडरर हताशपरेशान रहे और जोकोविच अपना बेहतर प्रदर्शन दिखाते रहे. इस से फेडरर के हौसले को ध्वस्त करने में वे कामयाब भी रहे. जीत के बाद जोकोविच ने कहा कि रोजर फेडरर सभी के लिए एक अच्छे रोल मौडल रहे हैं और मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने यह मैच जीतने दिया. वहीं 17 ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने वाले रोजर फेडरर ने कहा कि जोकोविच का सामना करना बहुत मुश्किल है. वह इस जीत का हकदार था. मैं केवल उसे मुबारकबाद दे सकता हूं. इनामी राशि के रूप में नोवाक जोकोविच को जहां 17 लाख 60 हजार पौंड यानी 18 करोड़ 5 लाख रुपए दिए गए वहीं रोजर फेडरर को 8 लाख 80 हजार पौंड यानी 9 करोड़ 2 लाख 50 हजार रुपए दिए गए.

वहीं चेक गणराज्य की छठी वरीयता प्राप्त 24 वर्षीया पेट्रा क्विटूवा ने महिला एकल खिताब अपने नाम कर लिया. पेट्रा ने कनाडा की यूजनी बुचार्ड को 6-3, 6-0 से मात दी. 24 वर्षीया यूजनी बुचार्ड ने फाइनल तक के सफर में भी एक भी सैट नहीं गंवाया था और लग रहा था कि मुकाबला कड़ा होगा लेकिन पेट्रा ने अपने ताकतवर खेल व बेसलाइन से जोरदार विनर्स जमाए जिस के आगे बुचार्ड धराशाही हो गई और वर्ष 1983 के बाद सब से कम समय महज 55 मिनट में खेल खत्म हो गया.

हालांकि भले ही क्विटूवा ने यह मैच महज 55 मिनट में ही जीत लिया लेकिन खराब मौसम ने उन्हें बहुत परेशान किया. उन्होंने बेहतर खेल का प्रदर्शन किया. इस से पहले वर्ष 2011 में उन्होंने मारिया शरापोवा को हरा कर विंबलडन का एकल खिताब जीता था. ये टैनिस की वही स्टार खिलाड़ी हैं जो क्रिकेट के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती हैं. उन के ऐसा कहने पर क्रिकेट के फैंस उन से काफी नाराज हैं. इस जीत से वे क्विटूवा वर्ल्ड रैंकिंग में चौथे नंबर पर पहुंच गईं.

वक्त के साथ बदलाव जरूरी : सुभाष घई

फिल्मोद्योग में ‘शोमैन’ के नाम से खुद को स्थापित कर चुके निर्मातानिर्देशक सुभाष घई अपनी खास तरह की फिल्मों के लिए पहचाने जाते हैं. उन्होंने ‘कालीचरण’, ‘कर्ज’, ‘कर्मा’, ‘सौदागर’, ‘परदेस’, ‘रामलखन’, ‘ताल’, ‘खलनायक’ आदि एक से बढ़ कर एक सुपरहिट फिल्में दी हैं. एक समय उन का नाम जुड़ा होना फिल्म की कामयाबी की गारंटी मानी जाती थी. लेकिन उन की पिछली कई फिल्में युवराज, किसना, यादें, कांची आदि फ्लौप रहीं. पिछले दिनों बौलीवुड के नामचीन निर्देशकों के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘लाइट कैमरा ऐक्शन’ के विमोचन के मौके पर उन से हुई बातचीत के अंश :

आजकल आप फिल्में कम बना रहे हैं. जो बना भी रहे हैं वे सफल नहीं हो रहीं. वजह?

जीवन में कभी ऐसा समय आता है जब आप को लगता है कि जिस इंडस्ट्री से कुछ मिला, उसे कुछ देना भी चाहिए. इसी सोच की वजह से मैं ने व्हिस्ंिलग वुड इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट खोला और मैं वहां अपना अधिक समय बिताता हूं. फिल्में सफल न होने की वजह उन की कहानी होती है. दर्शकों को कहानी और विषय समझ में आ जाए, ऐसी कोशिश होनी चाहिए. अगर कहानी को फिल्माने में गलती हुई तो भी फिल्में नहीं चलतीं.

आप का इंस्टिट्यूट काफी विवादों में है, छात्रों पर इस का असर पड़ेगा?

मैं शुरू से आज तक हमेशा संघर्ष करता आया हूं. सहायक निर्देशक से निर्देशक बना. फिर एक शांति निकेतन जैसा इंस्टिट्यूट खोलने की योजना बनाई. जमीन मिली पर उसी दौरान फिल्मसिटी के एमडी ने मुझे संयुक्त उद्यम के आधार पर फिल्मसिटी में इंस्टिट्यूट खोलने की सलाह दी ताकि बच्चों को प्रैक्टिकल और थ्योरी दोनों का ज्ञान मिले. सब ठीक चल रहा था कि वर्ष 2003 में मुझे सीएम रिपोर्ट में 30 करोड़ की प्रौपर्टी बता कर सम्मन भेजा गया जबकि यह भूमि कभी बेची नहीं गई थी. मैं हैरान था. उस समय जो भी बातचीत हुई थी वे सभी दस्तावेज दिखाए जाने के बावजूद कोर्ट इसे अवैध घोषित कर रहा है, किराया लगा रहा है. सरकार से हम अपनी बात कहने की कोशिश सालों से कर रहे हैं. पर बात हो नहीं पा रही.

आज के समय में साहित्य और लेखन में कितना बदलाव आया है?

लेखनी और लेखन में उतना फर्क आया है जितना पढ़ने और देखने वालों में. तकनीक कितनी भी आगे बढ़ चुकी हो पर आज भी लिख कर ही आप को संदेश भेजने पड़ते हैं. पहले कलम का प्रयोग था, अब मोबाइल और कंप्यूटर पर लिखा जाता है. जैसेजैसे समाज और साइंस बदले, वक्त के साथ सब कुछ बदला है. श्रोता व पाठक अब दर्शक बन चुके हैं. उन्हें सुननेपढ़ने से अधिक देखना पसंद है. लोगों की समझ बढ़ी है. पहले भाषा सही थी जो अब नहीं है. नरम, सरल, सूक्ष्म इन सभी के अर्थ आज लोग नहीं समझते. साइंस और तकनीक में बदलाव आने के बावजूद लेखनी के रहने की जरूरत रहेगी.

इस बदलाव से व्यक्ति और समाज क्या खोने वाला है?

बदलाव हमेशा अच्छे के लिए ही होता है. मैं आज भी अपनेआप को छात्र ही समझता हूं. पहले जानकारी और सोच सीमित थी. आज हर युवा विश्व की हर बात जानता है. पहले मुखिया जो समझाता था, उसे सब सुनते और समझते थे. पहले लोग ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र आदि बातों पर ध्यान देते थे जबकि आज ट्विटर, फेसबुक पर सब का ध्यान रहता है. 500 साल से बोलने व समझने की जो परंपरा चल रही थी अब आईपैड के जमाने में बोलने व समझने की भाषा बदली है. यही वजह है कि आज के व्यक्ति अधिक अधीर हो चुके हैं. वे अपनी आंतरिक शक्ति को समझ नहीं पाते. उन का स्ट्रैस लैवल बढ़ रहा है जिस से उन्हें कम उम्र में कई बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में भौतिकवाद के साथ वे मानसिक रूप से अधिक परेशान रहेंगे. उसे संतुलित करने की जरूरत है.

किसी फिल्म की 100 करोड़ की कमाई को आप कैसे देखते हैं?

यह तुलनात्मक अंक है. 60 करोड़ की फिल्म अगर 100 करोड़ कमाए तो कोई बड़ी बात नहीं. कमाई के प्रतिशत को देखना आवश्यक है. उस की तुलना करें, अंकों की नहीं.

आप की फिल्मों में आप की अपनी एक झलक दिखाने की खास वजह क्या रहती है?

एक शौक है, कुछ नया करने की कोशिश करता हूं. दर्शकों को इस का इंतजार रहता है, अच्छा लगता है.

अभी तक आप ने खुद ही फिल्मों के निर्देशन किए हैं. क्या नए निर्देशकों को आगे मौका देंगे?

अभी मैं अच्छा प्रोड्यूसर बनने की कोशिश कर रहा हूं. मुक्ता आर्ट्स के अंतर्गत नए निर्देशकों को अवश्य मौका दूंगा.

दिन दहाड़े

मेरा पुत्र प्रियेश आईटी का छात्र है. वह इंटरनैट पर देख कर औनलाइन कई चीजें मंगवाने की जिद करता रहता है. हम उसे मना करते हैं पर वह मानता नहीं. उस ने बिना बताए दिल्ली से 649 रुपए का 1 इलैक्ट्रौनिक शेवर मंगवाया. बहुत ही आकर्षक पैकिंग में हमें वह प्राप्त हुआ. मेरे बेटे ने उस में 2 नए सैल डाले और शेव करने लगा. आधे घंटे की कड़ी मेहनत के बाद भी वह ठीक से दाढ़ी न बना सका. वह परेशान हो गया. अंत में मेरे पास आ कर उस ने सब सचसच बता दिया. मैं ने अपने शहर के प्रतिष्ठित दुकानदार को वह उत्पाद दिखाया. उस ने कहा, ऐसे कई उत्पाद औनलाइन बेचे जाते हैं. आप दिनदहाड़े ठग लिए गए हैं.

मुकेश बत्रा, भुसावल (महा.)

पिछले सप्ताह मैं कोटला फिरोजशाह मैदान में आईपीएल का मैच देखने गया. स्टेडियम में खानेपीने का सामान ले जाना मना था. मुझे प्यास लगी तो पेप्सी कोला का गिलास 50 रुपए में लिया. मैं ने विक्रेता को 100 रुपए का नोट दिया. वह यह कह कर चला गया कि वह 50 रुपए ला रहा है. लेकिन मैच खत्म होने तक नहीं आया.

रूपलाल आहूजा, स्वास्थ्य विहार (दिल्ली)

कंपनी बाग मुरादाबाद के पास स्थित एकता द्वार को पार कर सड़क मार्ग से मैं अपने घर वापस आ रहा था. शाम 4 बजे का समय था. एकता द्वार से लगी सड़क से मैं थोड़ी दूर ही गया था, तभी साइकिल पर सवार एक लड़का मेरे सामने आ खड़ा हुआ और अपनी साइकिल मुझ से सटाने लगा. मैं ने उस से ऐसा न करने को कहा. परंतु मुझे एकांत में देख कर वह अपनी हरकत करता रहा. तभी एक दूसरा लड़का वहां आ गया. उस ने पहले वाले लड़के से कहा कि ये पितातुल्य हैं क्यों परेशान करते हो. इसी बीच पहले वाले लड़के ने मेरी कमीज की जेब में रखे रुपए पार कर लिए. गनीमत यह हुई कि मेरा पर्स जो कपड़े के थैले के अंदर था, जिसे मैं मजबूती से पकड़े हुए था, बच गया. थैले में काफी रकम, डाकघर व बैंक की पासबुकें व जरूरी कागजात थे. ठगी का पता घर आ कर चला.

कामेश्वर नाथ मेहरोत्रा, मुरादाबाद (उ.प्र.)

मैं पंजाब से दिल्ली आ रही थी. मेरे पास सामान के नाम पर एक अटैची और पर्स था. दिल्ली स्टेशन पर उतर कर मैं अपनी अटैची ले कर चल पड़ी. अभी कुछ कदम ही चली थी कि किसी ने पीछे से धक्का दिया. मैं गिर पड़ी. लोगों ने उठा कर पानी पिलाया. मुझे बिठाया. कुछ ठीक महसूस करने पर मैं अपनी अटैची देखने लगी, वह न मिली क्योंकि अटैची तो धक्का देने वाला ले कर फरार हो चुका था.

शशि जैन, नोएडा (उ.प्र.)

धंधा (भाग दो)

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि कैसे सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी और एंड्र्यू डेक की अंतरंग तसवीरें पपाराजी डेनियल के हाथ लग गई थीं जिन के बल पर वह दोनों को ब्लैकमेल कर रहा था. क्या सरदार ओंकार सिंह और एंड्र्यू पपाराजी की ब्लैकमेलिंग से बच पाए? जानने के लिए पढि़ए अंतिम भाग.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चालक से तरक्की करता अमीर बना था और अब मेयर होते हुए स्टेट काउंसिल का उम्मीदवार था. इसलिए बदनामी से बचना चाहता था. दूसरा जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. वह प्रेमविवाह होने से पत्नी के मायके से मिले धन से बना अमीर था. उस की ऐसी तसवीरें सामने आने से उस का सब चौपट हो सकता था.

डेनियल एक ब्लैकमेलर था. उस का लालच भविष्य में क्या गुल खिला दे, इसलिए सरदार के लिए और जैक स्मिथ के लिए उस को काबू करना जरूरी था. सरदार ओंकार सिंह अपने दोस्त वरनाम सिंह के पास पहुंचा.

‘‘वरनाम सिंह, मुझे एक टैक्सी और चालक की वरदी दे दे.’’

‘‘क्यों, क्या दोबारा टैक्सी चालक का धंधा करना चाहता है?’’

‘‘नहीं, उस शरारती फोटोग्राफर को काबू करना है. वह एक ब्लैकमेलर है, भविष्य में लालच में पड़ कर दोबारा पंगा कर सकता है.’’ वरनाम सिंह ने हरी झंडी दी. टैक्सी चलाता ओंकार सिंह अपने घर पहुंचा.

‘‘अरे, आप ने दोबारा टैक्सी चालक का धंधा शुरू कर दिया?’’ उस की पत्नी ने उस को टैक्सी चालक की वरदी में और टैक्सी को देख कर हैरानी से पूछा.

‘‘नहीं, थोड़ा मनबहलाव के लिए कुछ दिन अपना पुराना धंधा करना चाहता हूं. अमीरी भोगतेभोगते बोर हो चला हूं.’’ पत्नी और बेटीबहुओं ने बुढ़ापे में चढ़ आई सनक समझ कर उस को नजरअंदाज कर दिया. उस शाम ओंकार सिंह अपनी लग्जरी कार में सैर करने नहीं निकला. वह टैक्सी चालक बन टैक्सी चलाता समुद्र तट पर पहुंचा.

वह जानता था ब्लैकमेलर यानी शरारती फोटोग्राफर अपना धंधा करने ‘बीच’ पर जरूर आएगा. उस ने सैकड़ों बार ऐसे फोटोग्राफरों को प्रेमालाप में लीन जोड़ों की गुप्त तसवीरें खींचते देखा था. मगर जब तक उस पर यही शरारत न आ पड़ी, उस ने उन का कोई नोटिस नहीं लिया था. अब ऐसा पंगा पड़ जाने से उस का दिमाग चौकन्ना हो गया था.

जैक स्मिथ मामूली हैसियत का था. मारलीन डेक से प्रेम शुरू होने से पहले वह अपनी पत्नी की तरफ पूरा ध्यान देता था. मगर मारलीन डेक उस की पत्नी की तुलना में युवा थी. दोनों में सिलसिला ठीक चल रहा था कि यह पपाराजी का पंगा पड़ गया. जिस लाइन पर सरदार ओंकार सिंह सोच रहा था उसी पर जैक स्मिथ भी सोच रहा था.

उस ने भी अनेक पपाराजी को इस तरह तसवीरें खींचते देखा था. मगर उस को अंदाजा नहीं था कि कोई उस के याट में घुस कर इस तरह तसवीरें खींचने का दुसाहस कर सकता था. एक बार दुसाहस करने पर ब्लैकमेलिंग का पैसा मिलने पर ब्लैकमेलर दोबारा लालच कर सकता था. इसलिए उस को काबू करना जरूरी था. इस घटना के बाद मारलीन डेक ने उस से मिलनाजुलना बंद कर दिया था.

जैक स्मिथ छोटामोटा धंधा करता था. वह सभी वाहन चलाना जानता था. सामान्य तौर पर अमीर बनने के बाद वह लग्जरी कार में चलता था. काफी समय बाद उस ने साधारण कपड़े पहने. सिर पर नौजवान लड़कों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी और धूप का बड़ा चश्मा पहनने से उस का हुलिया बदल गया था. हैल्मेट पहने वह बाइक पर सवार हुआ और समुद्र तट पर जा पहुंचा.

सरदार ओंकार सिंह टैक्सी एक तरफ खड़ी कर टैक्सी चालक बना एक चट्टान पर बैठा था. उस की मुद्रा ऐसी थी मानो वह समुद्र तट पर सैरसपाटा करने आई अपनी सवारी के लौटने का इंतजार कर रहा हो. जैक स्मिथ ने बाइक एक पाम के पेड़ के समीप खड़ी कर दी. लौक कर के यों समुद्र तट पर टहलने लगा जैसे वह तनहाईपसंद हो और उस को अकेला घूमना पसंद हो.

पपाराजी की शरारत का शिकार हुए दोनों की लाइन एक ही थी. किसी पपाराजी, जो हमेशा अपने शिकार की खोज में रहता था और कभी यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कभी किसी की खोजी निगाहों का शिकार हो सकता है, को शिकार बनाने को ये दोनों तत्पर थे. सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने सतर्क निगाहों से अपने चारों तरफ देखा. विशाल समुद्र तट पर दिखने वालों को अनदेखा किए कई मेल और बेमेल प्रेमी जोड़े खुद में लीन थे और उन की निगहबानी करते दर्जनों शरारती फोटोग्राफर अपना काम बिना फ्लैशलाइट जलाए फोटो खींचने वाले कैमरों से कर रहे थे.

जैक स्मिथ भी अपनी सतर्क निगाहों से यह सब क्रियाकलाप देख रहा था. तभी उस को बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट का ध्यान आया. जिस तरह से शरारती फोटोग्राफर चुपचाप अपना काम कर गया था, उसी तरह अगर वह भी एक चोर की तरह अपनी याट पर जाए तो? शाम का अंधेरा गहरे अंधेरे में बदल गया था. समुद्र का नीला पानी अब काले हीरे के समान चमक रहा था. उभरता चांद पानी की चमक को बढ़ा रहा था.

पायर पर बंधी चप्पुओं वाली एक नौका खोल कर उस पर बैठ चप्पू चलाता जैक स्मिथ बीच समुद्र में खड़ी अपनी याट की तरफ बढ़ता गया.

कोई उन की निगहबानी या जासूसी कर सकता था. इस से बेखबर डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी मोटरसाइकिल खड़ी कर समुद्र तट पर टहलने लगे. उन के हावभाव ऐसे थे मानो शाम बिताने आए 2 प्रेमी हों. गले या कंधे पर कैमरा लटकाए घूमने आना आम था. इसलिए यह पता चलना आसान नहीं था कि कौन शौकिया तसवीर खींचने वाला था और कौन शरारती फोटोग्राफर.

एक बारगी सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी को लगा कि उस का इस तरह जासूसी करने आना बेकार है. मगर वह धैर्य रखे था. चुपचाप प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींच रहे पपाराजी में उस की तसवीरें खींचने वाला कौन सा था.

‘‘एक चक्कर बीच समुद्र का लगाएं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘उसी याट का?’’

‘‘उस में अब क्या मिलेगा? वह प्रेमी जोड़ा सावधान हो चुका है. वैसे भी एक जगह चोरी करने के बाद चोर दोबारा वहां चोरी करने नहीं जाता.’’

डेनियल की इस मजाकिया टिप्पणी पर सुब्बा लक्ष्मी खिलखिला कर हंस पड़ी. आज पायर पर कोई चप्पुओं वाली नौका नहीं थी. मोटरबोटों पर ताला लगी जंजीरें लगी थीं. डेनियल आखिर एक चोर ही था. उस ने अपनी जेब से एक ‘मास्टर की’ निकाली. ताला खोला.

मोटरबोट समुद्र में दौड़ पड़ी. जहांतहां छोटेबड़े याट, लग्जरी बोट लंगर डाले खड़े थे. इन में क्याक्या हो रहा था यह इन में प्रवेश करने पर ही पता चल सकता था.

चप्पुओं वाली किश्ती चलाता जैक स्मिथ अपनी याट के समीप पहुंचा. याट पर भ्रमण के दौरान 8-10 आदमियों का स्टाफ होता था. खड़ी अवस्था में 1 या 2 व्यक्ति ही होते थे. आमतौर पर याट एक लवनैस्ट ही था.

अमीर बनने के बाद, जैक स्मिथ को अमीरों की तरह पर-स्त्री से संबंध रखने व कैप्ट या रखैल रखने का शौक लग गया था. थोड़ेथोड़े अंतराल पर वह किसी नई प्रेमिका को यहां ले आता था. यह सिलसिला ठीक चल रहा था. मगर अब एक पपाराजी द्वारा यों लवनैस्ट में प्रवेश कर तसवीरें खींच लेने से यह सिलसिला थम गया था.

उस के याट के समान अन्य याट भी या तो लवनैस्ट थे या फिर अन्य अवैध कामों के लिए मिलनेजुलने के स्थल. शहर में अवैध कामों, खासकर नशीले पदार्थों को बेचने और सप्लाई करने वालों को पुलिस या नशीले पदार्थों को नियंत्रण करने वालों की निगाहों में आने से बचने के लिए बीच समुद्र में खड़े छोटेबड़े याट या लग्जरी याट काफी सुविधाजनक थे.

शाम ढलने के बाद, रात के अंधेरे में छोटेबड़े स्मगलर अपनेअपने ठिकानों पर आ जाते. अधिकांश याट प्रभावशाली अमीरों के थे. इन पर एकदम छापा मारना मुश्किल था. शक की बिना पर किसी प्रभावशाली अमीर के याट पर छापा मारना उलटा पड़ जाता था. लेकिन खुफिया पुलिस और मादक पदार्थ नियंत्रण करने वाला विभाग अपनी निगरानी चुपचाप जारी रखता था. सादे और छद्म वेश में जहांतहां भूमि, समुद्र और समुद्र तट पर तैनात जासूस अपना काम चुपचाप करते थे. वे प्रेमालाप में लीन मेल या बेमेल जोड़ों को और उन की तसवीरें खींच कर भाग जाने का शरारती फोटोग्राफरों को कोई आभास तक न होने देते और उन की निगरानी करने के साथ उन की तसवीरें भी चुपचाप नई तकनीक से कैमरों से खींच लेते थे.

डेनियल समेत अन्य सभी शरारती फोटोग्राफरों का पुराना रिकौर्ड खुफिया विभाग के पास था. और साथ ही बीच पर आने वाले बेमेल प्रेमी जोड़ों का भी लेकिन इस विभाग को नशीले पदार्थों की रोकथाम से काम था. इसलिए न प्रेमी जोड़ों के काम में दखल देता और न ही पपाराजियों के. हां, उन की रोजाना रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय में जरूर पहुंचती थी.

इन दिनों, जैक मारटीनो, जो एक अश्वेत अमेरिकी पुलिस अधिकारी था, इस विभाग का इंचार्ज था. जैक मारटीनो चुस्त अधिकारी था. वह अपनी कुरसी पर बैठा कौफी पी रहा था और साथ ही समुद्र तट पर छद्म वेश में तैनात व समुद्र में गश्त लगा रहे गश्ती दल की रिपोर्ट भी अपने कान पर लगे इयर फोन से सुन रहा था.

‘‘सर, आज समुद्र तट पर स्थानीय निकाय का मेयर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी टैक्सी चलाता टैक्सी चालक की वरदी पहने आया है. वह एक चट्टान पर बैठा जैसे जासूसी कर रहा है,’’ जासूस ने रिपोर्ट दी.

‘‘वह पहले टैक्सी चालक था. कोई पंगा पड़ गया होगा, इसलिए यह छद्म रूप धारण किए है. आज उस के साथ कोई दिल बहलाने वाली नहीं आई?’’ जैक मारटीनो ने पूछा.

‘‘नहीं सर, कुछ दिन पहले एक पपाराजी इस की तसवीर खींच कर भागा था. उस के बाद इस का प्रेमालाप बंद है.’’

‘‘यह शायद उसी पपाराजी की फिराक में है. यह स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा है. हो सकता है ब्लैकमेलिंग का चक्कर हो.’’

‘‘सर, वह पपाराजी जोड़ा भी समुद्र तट पर टहल रहा है.’’

‘‘उस पर भी नजर रखो.’’

‘‘सर, इन शरारती फोटोग्राफरों को काबू करने का और्डर क्यों नहीं करवाते.’’

‘‘अरे भाई, इन से ज्यादा कुसूरवार तो ये प्रेमी जोड़े हैं. इन में अधिकांश बूढ़े हैं और शहर की सम्मानित हस्तियां हैं. पपाराजी को पकड़ते ये सब भी उजागर होंगे तब बड़ा स्कैंडल बन जाएगा. हमारा काम तो नशीले पदार्थों की रोकथाम करना है.’’

‘‘ओके, सर.’’

चप्पुओं वाली किश्ती को अपनी याट के समीप रोक जैक स्मिथ ने पहले इधरउधर फिर याट के ऊपर देखा. जब भी वह आता था, मोबाइल फोन से स्टाफ को सूचना देता था. याट पर तैनात सुरक्षाकर्मी या केयरटेकर याट पर लगी लिफ्ट के प्लेटफौर्म को समुद्र के पानी के समतल कर देता था.

मगर आज जैक स्मिथ का इरादा चुपचाप आने का था. वह अपनी और मारलीन डेक की तसवीरें खींची जाने से क्षुब्ध था. किश्ती को एक हुक से बांधा. वह रस्सी वाली सीढ़ी की सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया.

डेक सुनसान था. चालककक्ष में अंधेरा था. केयरटेकर और सुरक्षाकर्मी शायद नीचे थे. वह दबेपांव चलता नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़ा. उस के कानों में अनेक लोगों के हंसनेखिलखिलाने की आवाज आई.

इतने सारे लोग, उस को क्रोध आने लगा. फिर अपने पर नियंत्रण रखता, वह दबेपांव सीढि़यां उतरता प्रथम तल पर पहुंचा. सीढि़यों की तरफ कूड़ाकरकट फेंकने का बड़ा ड्रम रखा था.

दबेपांव चलता वह उस ड्रम के पीछे बैठ गया और चोरनजरों से प्रथम तल के बड़े हाल में झांका. बार के लंबे काउंटर के सामने पड़ी ऊंची कुरसियों पर उस के दोनों मुलाजिम बैठे शराब के घूंट भर रहे थे. अन्य कुरसियों पर 6-7 हब्शी दिखने वाले आदमी बैठे थे. उन के हाथों में भी शराब के गिलास थे.

हाल के केंद्र में रखी मेज पर सफेद पदार्थ से भरी पौलिथीन की थैलियों का ढेर लगा था. वह उन का वार्त्तालाप सुनने लगा :

‘‘इस माल की पेमैंट कब मिलेगी?’’ एक नीग्रो ने पूछा.

‘‘अगली डिलीवरी के साथ,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘अगली सप्लाई कब चाहते हो?’’

‘‘4 दिन बाद.’’

‘‘कहां?’’

‘‘इसी याट पर.’’

‘‘नो, नैवर, मैं एक ही जगह दोबारा नहीं आता,’’ सप्लाई करने वाले नीग्रो ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘ठीक है, इस याट को समुद्र में कहीं और ले आएंगे. कहां लाएं?’’

‘‘मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

‘‘ओके,’’ फिर अपना गिलास खाली कर सब खड़े हुए. जैक स्मिथ दबेपांव सीढि़यां चढ़ता डेक पर पहुंचा. वह चालक केबिन में घुस कर एक तरफ खड़ा हो गया.

सभी ऊपर आए. लिफ्ट से बारीबारी से सब नीचे गए. सुरक्षाकर्मी और केयरटेकर डेक पर खड़े हो कर बातें करने लगे :

‘‘आज का माल क्या है?’’

‘‘शायद कोकीन है.’’

‘‘कितनी कीमत का है?’’

‘‘पता नहीं. हमें तो हर फेरे के 10 हजार डौलर मिलने हैं.’’

‘‘एक हफ्ते से सेठ नहीं आया?’’

‘‘उस की और उस की ‘वो’ की किसी ने यहां तसवीरें खींच ली थीं. वह सेठ को ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘तुम को किस ने बताया?’’

‘‘परसों मैं सेठ के दफ्तर गया था. तभी फोन आया, मैं दरवाजे पर ही था. उस की बात सुन ली थी.’’

‘‘तसवीरें कैसे खींची गईं?’’

‘‘क्या पता? इसे छोड़, बता, अंदर रखा माल कब जाएगा?’’

‘‘सुबह से पहले कभी भी.’’

‘‘अब क्या करें?’’

‘‘बीच पर चलते हैं. यहां किसे आना है.’’

दोनों नीचे उतर कर मोटरबोट में सवार हुए. उन के जाते ही जैक स्मिथ केबिन से बाहर निकला और गंभीर हो, सोचने लगा.

कितनी अजीब स्थिति थी कि अपने ही याट में उस को एक चोर की तरह प्रवेश करना पड़ा था. उस के लवनैस्ट को उस के हरामखोर नौकर नशीले पदार्थों के सौदागरों को एक वितरण स्थल का ट्रांजिट माउंट के रूप में इस्तेमाल करवा धन कमा रहे हैं. अमेरिका में अन्य देशों की भांति नशीले पदार्थों का धंधा एक गंभीर अपराध था. ऐसा करने वालों को 40 साल तक की सजा हो सकती थी. याट में नशीला पदार्थ पकड़े जाने पर जैक स्मिथ कितनी भी सफाई देता, पुलिस उस का कतई ऐतबार न करती कि वह इस धंधे में शामिल नहीं था.

अभी तक वह पपाराजी द्वारा खींची गई तसवीरों से घबराया था. अब यह पंगा, जिस की उसे कल्पना भी नहीं, सामने आ गया था. वह धीमेधीमे सीढि़यां उतरता नीचे हाल में पहुंचा. इधरउधर तलाशी लेने पर उस को एक बैग कोने में मिल गया. बैग ठसाठस सफेद पाउडर जैसे नशीले पदार्थ, जो शायद कोकीन था, से भरा था. तभी उस के दिमाग में कौंधा कि अगर यह माल यहां से गायब हो जाए तब क्या होगा?

उस के हरामखोर नौकरों की अपनेआप शामत आ जाएगी. उस ने सारा हाल भी तलाशा. सारे कमरे तलाशे. याट दोमंजिला था. प्रथम तल के बाद ग्राउंड फ्लोर भी तलाशा. इंजनरूम भी. कहीं कोई और नशीला पदार्थ नहीं था उस ने एअरबैग उठाया और जैसे सीढि़यां चढ़ते आया था वैसे ही उतरता नीचे किश्ती में पहुंच गया. चप्पू चलाता वह पायर पर पहुंचा. उस की किस्मत अच्छी थी. उस पर न किसी मौजमेला करने वाले की नजर पड़ी न खुफिया पुलिस की.

पायर से काफी आगे घनी झाडि़यों का झुरमुट था. उस ने एअर बैग एक झाड़ी में छिपा दिया. फिर सधे कदमों से चलता अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हुआ और शहर की तरफ बढ़ चला. मोटरबोट से काफी देर विचरण करने के बाद डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी समुद्र में जहांतहां खड़े याटों की तरफ देखने लगे.

‘‘हर सुनसान दिखते याट में प्रेमी जोड़ा प्रेमालाप कर रहा हो, यह जरूरी तो नहीं है,’’ मोटरबोट का इंजन बंद कर के उस को समुद्र के पानी पर स्थिर करते सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है. पिछली बार ऐडवैंचर से हमें नया नजारा देखने को मिला था. इस बार देखते हैं क्या होता है.’’

‘‘अगर यह ऐडवैंचर हमें उलटा पड़ गया तो?’’

‘‘देखेंगे,’’ फिर उस ने एक बड़े लग्जरी याट की तरफ इशारा किया.

‘‘मोटरबोट का इंजन शोर करता है, इस को किश्ती के समान चलाते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने एयरजैटसी के लिए रखे चप्पुओं को मोटरबोट के हुक से फिट कर दिया. किश्ती के समान चप्पू खेते वे दोनों सुनसान दिखते याट के समीप पहुंचे.

इस याट पर भी एक लिफ्ट लगी थी. साथ ही रस्सियों वाली सीढ़ी. दोनों डेक पर पहुंचे. डेक सुनसान था. चालक कक्ष में अंधेरा था. दोनों नीचे जाने वाली सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी ऊपर आते भारी कदमों की आवाज सुनाई पड़ी. दोनों लपक कर चालक केबिन के पीछे जा छिपे.

चुस्त वरदी पहने हाथ में छोटीछोटी बंदूकें लिए 2 अश्वेत सुरक्षाकर्मी ऊपर आ गए और डेक के केबिन की रेलिंग के साथ लग कर गपशप मारने लगे.

डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी ने एकदूसरे की तरफ देखा. कहां आ फंसे.

‘‘तुम सो जाओ, मैं 2 घंटे पहरा दूंगा. फिर तुम्हारी बारी,’’ एक ने दूसरे से कहा.

‘‘तुम भी सो जाओ. यहां कौन आता है.’’

दोनों, डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी, डेक पर बिछी लकड़ी की बैंचों पर लेट कर सोने की तैयारी करने लगे.

‘‘नीचे उतर कर वापस चलो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘एक नजर नीचे मार आते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘पंगा मत लो, मेरा कहना मानो,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने समझाया.

लेकिन डेनियल नहीं माना. विवश हो सुब्बा लक्ष्मी भी उस के पीछेपीछे सीढि़यां उतरती गई.

एक बड़े हाल में कुछ लोग, जिन में श्वेतअश्वेत दोनों थे, मेजों के गिर्द कुरसियों पर बैठे जुआ खेल रहे थे. एक बारबेक्यू एक तरफ बना था. उस पर मांस की बोटियां ग्रिल की जा रही थीं.

दोनों उस फ्लोर से उतर कर नीचे वाले फ्लोर पर पहुंचे. एक बड़े कमरे में कुछ लोग सफेद पाउडर को छोटेछोटे पाउचों में भर रहे थे. यहां नशीले पदार्थों का धंधा हो रहा था.

डेनियल ने सधे हाथों से उन के फोटो लिए. तभी ऊपर कुछ हल्लागुल्ला हुआ. डेक पर लेटे सुरक्षाकर्मी नीचे दौड़े आए. जुआ खेल रहे आपस में लड़ पड़े थे.

‘‘यहां हमारे मतलब का क्या है?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा. दोनों सीढि़यां चढ़ डेक पर आ गए. तभी सुरक्षाकर्मी भी ऊपर चढ़ आए. दोनों फिर चालक केबिन के पीछे चले गए.

जैक स्मिथ समुद्र तट से शहर को जाते एक सार्वजनिक टैलीफोन बूथ पर रुका. 10 सेंट का एक सिक्का कौइन बौक्स में डाला. डायरैक्टरी देख कर नशीले पदार्थों की रोकथाम करने वाले विभाग का नंबर डायल किया. झाड़ी में छिपाए बैग के बारे में बताया. गुमनाम रहते याटों पर चल रहे नशीले पदार्थों के धंधे के बारे में बताया.

जैक मारटीन ने तुरंत गश्ती दल को फोन किया. बैग बरामद हो गया. एक के बाद एक याट पर धावा बोला गया. अनेक पर यौनाचार हो रहा था. नशीले पदार्थ पकड़े गए. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को बच निकलने का मौका नहीं मिला. उन का धंधा

भी सामने आ गया. सरदार ओंकार सिंह ने पुलिस को पैसा खिला कर अपनी तसवीरें दबा दीं. ऐसा ही जैक स्मिथ ने किया. साथ ही दोनों ने इस तरह के मौजमेलों से तौबा की. एंड्र्यू डेक ने भारी हरजाना दे पत्नी को तलाक दे दिया. थोड़े दिन डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी को हिरासत में रहना पड़ा. लेकिन चूंकि उन की वजह से नशीले पदार्थों का धंधा सामने आया था, इसलिए पुलिस ने उन को चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

दोनों थोड़े दिन शांत रहे, फिर इस निश्चय के साथ कि बड़ी मछली के चक्कर में न पड़ छोटामोटा शिकार ही पकड़ेंगे, दोनों का पपाराजी का धंधा फिर से चल पड़ा. बूढ़े, अधेड़ अपने मनबहलाव के लिए आते रहे, उन की तसवीरें खिंचती रहीं, ब्लैकमेलिंग का पैसा अदा होता रहा.

बच्चों के मुखसे

हम सभी ने घूमने का कार्यक्रम बनाया. मेरा परिवार और मेरी सहेली, जो पेशे से डाक्टर है, का परिवार साथ था. मेरी सहेली मेरे 4 साल के बेटे को पूछने लगी, ‘‘बेटे, आप किस स्कूल में पढ़ते हो? मुझे भी आप के स्कूल में नाम लिखवाना है.’’ मेरा बेटा मुंह पर उंगली रख कर बोला, ‘‘आंटी, चुप हो जाओ. अगर आप की यह बात गाड़ी चलाने वाले को पता चल गई तो आप की शेमशेम हो जाएगी कि इतनी बड़ी आंटी अभी तक स्कूल नहीं गईं.’’ उस की इस भोली सी बात पर हम सब खिलखिला कर हंस पड़े.

प्रीतम कौर, धनबाद (झारखंड)

मेरा बेटा बहुत हाजिरजवाब है. एक दिन मैं ने उसे डांटा और कहा कि तुम दूध नहीं पी रहे हो, दूध नहीं पियोगे तो कैसे बढ़ोगे और पढ़लिख कर बड़े आदमी बनोगे? उस ने तुरंत उत्तर दिया, ‘‘मम्मी, गाय का बछड़ा बड़ा हो कर कौन बड़ा आदमी बन गया? वह तो रोज दूध पीता है.’’ उस का उत्तर सुन कर मैं हंसने लगी और उस के तर्क के बारे में सोचती रही.

शिवानी श्रीवास्तव, ग्रेटर नोएडा (उ.प्र.)

मायके से लौटने के बाद मैं अपनी सहेलियों से मां के घर में बने अचारों के गुणगान कर रही थी. मेरी मां कई तरह के अचार बनातीं और लोगों को शौक से खिलाती हैं. हम लोगों को भी मां के द्वारा बनाए खट्टेमीठे अचारों का स्वाद लेने में बहुत मजा आता है. मेरी 5 वर्षीय बेटी शालू, जो अचार खाने की बेहद शौकीन है, मेरी बात सुन कर बोली, ‘‘हां मां, नानी के घर में जबजब भूख लगती थी तबतब मैं सुधांशु के संग अचार चुराती थी और छिप कर खाती थी.’’ शालू की बातें सुन मैं भी सहेलियों के संग हंसने लगी.

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ

बात कुछ वर्ष पहले की है जब मेरे नाती अर्जुन की उम्र 5 वर्ष की थी. उसे जानवरों से बहुत लगाव है. एक बार मेरी बेटी व अर्जुन बाजार से आ रहे थे. उन्हें रास्ते में एक कुत्ता मिल गया. अर्जुन बड़ी देर तक उसे प्यार करता रहा. फिर उस के लिए बिस्कुट लेने पास की दुकान में गया. इसी बीच, राह चलती एक औरत को उस कुत्ते ने काट लिया. जब मुझे इस बात का पता लगा तो मैं ने अर्जुन से कहा, ‘‘तुम ने इस घटना से क्या सीखा?’’ उस ने तुरंत उत्तर दिया, ‘‘अगली बार जब वह कुत्ता मुझे मिलेगा तो मैं उस को काट लूंगा.’’ उत्तर सुन कर मैं अपनी हंसी न रोक सकी.

आशा राजदान, ग्रेटर कैलास (न.दि.)

जब कोई न हो सामने

गुजारिश आजाद हवाओं से

जबजब उस गली से गुजरना

मेरी वफाओं की महक से

घर उस का महका आना

सिफारिश मनचले बादलों से

जब उस महल पर उड़ना

चाहत के कुछ रंग

उस अट्टालिका पे बरसा आना

कबूतरो, आज मौसम साफ है

चलो निकलो, उड़ो

तुम्हारा कोई बहाना,

आज न चलेगा

मेरा संदेश, उस के हाथों में

सौंप कर आओ

आज का दिन है बड़ा

न डरो, सूरज देर से ढलेगा

गुजारिश डायरी के पन्नों से

बताऊं कब क्या हुआ था

कहां कब हम मिले थे

बिछड़े तो क्या किया था.

सफर अनजाना

मैं अपने परिवार के साथ मुंबई में किराए पर रह कर किसी तरह जीवनयापन कर रहा था कि अचानक एक दिन मेरी पत्नी का एक ऐक्सिडैंट में निधन हो गया. मेरे बच्चे छोटे थे. लोगों ने मुझे अपने पैतृक घर लौट जाने की सलाह दी. मेरी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी. ट्रेन के टिकट के भी पैसे मेरे पास नहीं थे.  दोस्तों ने चंदा कर किसी तरह घर लौटने की व्यवस्था कर दी थी. मैं अवध ऐक्सप्रैस द्वारा मुंबई से लखनऊ के लिए जनरल डब्बे का टिकट ले कर रवाना हुआ. ट्रेन चंबल पहुंचने वाली थी. तब सुबह के तकरीबन 7 बजे थे. एक छोटे से स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही उस में कुछ लुटेरे चढ़ आए. जाड़े का मौसम होने की वजह से वे सभी शौल ओढ़े हुए थे. इसलिए किसी को उन पर शक नहीं हुआ.

मेरे पास के दोनों स्लीपरों पर गोरखपुर के कुछ यात्री अपने परिवार के साथ यात्रा कर रहे थे जिन में महिलाओं ने सोने के टौप्स वगैरह भी पहन रखे थे और पुरुष आपस में ताश के पत्तों से जुआ खेल रहे थे. लुटेरे बड़े ध्यान से उन्हें देखते रहे फिर उन में से 4 लोग उन्हीं के साथ बैठ कर जुआ खेलने लगे. बाकी ने दोनों तरफ की खिड़कियां बंद कर के पहरेदारी शुरू कर दी.

लुटेरों ने कब उन यात्रियों को लूट लिया, किसी को पता तक नहीं चला, क्योंकि एक बदमाश ने अपना शौल फैला कर स्लीपरों को परदे की तरह ढक लिया था. रास्ते में चंबल स्टेशन आया तो न बदमाशों ने खिड़कियां खोलीं  और न ही किसी को उतरने दिया. यहां तक कि स्टेशन पर घूम रहे पुलिस वालों को भी अंदर नहीं आने दिया. तभी एक चाय वाला आया तो मेरी 3 वर्षीय बेटी ने चाय पीने की जिद की. मेरे कहने पर चाय वाले ने चाय खिड़की से अंदर बढ़ा दी. मैं ने ऊपर की जेब से 3 रुपए निकाल कर दे दिए. तभी मेरे 4 वर्षीय बेटे ने भी चाय का आग्रह किया. मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं, इसी में से थोड़ी चाय तुम भी पी लेना.’’

मेरे बगल में खड़े एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘इन बच्चों की मां कहां है?’’ इस पर मैं ने उसे सारी घटना बता दी. उस व्यक्ति ने फौरन अपनी जेब से 10 रुपए का नोट निकाल कर चाय वाले को दोबारा बुला कर कहा, ‘‘इन भाईसाहब को 2 चाय और दे दो, पैसे मैं तुम्हें दे रहा हूं.’’ मैं उस शख्स को कृतज्ञताभरी निगाहों से देखता रहा. गाड़ी चलने के थोड़ी देर बाद ही एकएक कर के सातों लुटेरे खिड़की खोल कर कूद गए. बाद में लोगों ने चीखनाचिल्लाना शुरू किया तो पता चला कि टे्रन में असलहों के बल पर उन यात्रियों से सोनेचांदी के जेवर और लगभग 80 हजार रुपए नकद लूटे जा चुके थे. और जब मुझे यह पता चला कि मेरी चाय के पैसे देने वाला शख्स भी उन्हीं लुटेरों में से एक था तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा.

राजीव त्रिपाठी, लखनऊ (उ.प्र.)

मूक नयनों को बोलने दो

इक बात तुम्हारे मन में है

इक बात हमारे मन में है

लेकिन इतना भान रहे बस-

न तुम बोलो न मैं बोलूं

मूक नयनों को बोलने दो

भाव हृदय के डोलने दो

तड़पने में ही जिंदगी है

पीर को घूंघट खोलने दो

इक दर्द तुम्हारे दिल में है

इक दर्द हमारे दिल में है

लेकिन इतना ध्यान रहे बस-

न तुम बोलो न मैं बोलूं

चुपकेचुपके बहती समीर

कानों में कुछ कहे जा रही

सांसों की गगरिया छलकती

प्यासों में ही लुटी जा रही

इक प्यास तुम्हारे दिल में है

इक प्यास हमारे दिल में है

लेकिन इतना ज्ञान रहे बस-

न तुम बोलो न मैं बोलूं

अपनेपन में खो जाने दो

गंध हृदय की पा लेने दो

पड़ी अधूरी अभी साधना

मुझ को मीठा गम सहने दो

इक आस तुम्हारे दिल में है

इक आस हमारे दिल में है

लेकिन इतना ध्यान रहे बस-

न तुम बोलो, न मैं बोलूं.

फीफा वर्ल्ड कप-2014 जरमनी ने जग जीता

90 मिनट तक 110×75 यार्ड के मैदान में लगातार पसीना बहाते गेंद के पीछे भागते जरमनी के खिलाडि़यों की कर्मठता और जुझारूपन ने उन्हें फुटबाल की दुनिया का बेताज बादशाह बना दिया. दुनिया की खेल प्रतियोगिताओं में सब से रोमांचक मानी जाने वाली फैडरेशन इंटरनैशनल फुटबाल एसोसिएशन यानी फीफा वर्ल्ड कप की दीवानगी इतनी है कि आधी दुनिया इसे देखने के लिए अपनी नींद हराम करती है.

फुटबाल ऐसा खेल है जहां मैदान में अन्य खेलों की तरह आराम नहीं मिलता. चाय और लंच के लिए ब्रेक नहीं मिलता. मैदान को नए तरह से संवारने का मौका नहीं मिलता. बावजूद इस के खिलाडि़यों का मनोबल गिरता नहीं बल्कि जैसेजैसे समय बीतता है वैसेवैसे खिलाड़ी और भी जुझारू होते जाते हैं. पर हमारे देश के नौजवानों के पास यही जुझारूपन नहीं है. शायद हमारे यहां की सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी है कि वे बिखर जाते हैं, टूट जाते हैं और कम समय में सबकुछ पाना चाहते हैं. वे शौर्टकट अपनाना चाहते हैं और औंधे मुंह गिरते हैं. छोटीछोटी बातों पर लड़ जाते हैं, यहां तक कि मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. 4 जुलाई की बात है. दिल्ली के विकासपुरी इलाके में एक युवक के कंधे से एक राहगीर गलती से टकरा गया. बात बढ़ गई और उस युवक ने उस राहगीर की जान ले ली. यह बानगीभर है. ऐसी घटनाएं यहां अकसर घटती रहती हैं.

खेल और समाज

एक समय कहा जाता था कि पढ़ोगेलिखोगे तो बनोगे नवाब. पर अब कहा जाता है कि खेलोगेकूदोगे तो बनोगे नवाब. हालांकि आज भी हमारे समाज में इस मानसिकता के लोग कम ही हैं, जो अपने बच्चे को खेलने के लिए प्रेरित करते हों. अभी भी हम उस पुरानी मानसिकता को ढो रहे हैं और बच्चे को खेलने के बजाय केवल पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं. ऐसा करने के पीछे ठोस वजह यह है कि हमारी व्यवस्था ऐसी है ही नहीं कि हम अपने बच्चे को खेलने के लिए प्रेरित करें.

मातापिता को यह एहसास है कि आज के दौर में कोई भी खेल हजारोें में नहीं होता बल्कि लाखों रुपए ले कर ट्रेनिंग दी जाती है. इस से भी बड़ी बात यह है कि अगर बच्चा ट्रेंड हो भी जाए तो उसे खेलने का मौका मिलेगा कि नहीं, इस की कोई गारंटी नहीं. क्योंकि हर खेल संघों में बड़ेबड़े आका कुंडली मार कर कारोबार करने के लिए बैठे हुए हैं. उन्हें खेल से लेनादेना नहीं, उन्हें तो नोट छापने से मतलब है. खेलों में राजनीति इतनी है कि पूछिए मत. शायद यही वजह है कि वर्ष 1993 में फीफा ने भारत को 100वें नंबर पर रखा था और अब 23 वर्ष बाद हमें 154वें नंबर पर रखा है.

इस में मातापिता की सोच जायज है क्योंकि जिस देश में कुपोषण से बच्चे बिलख रहे हों, बेरोजगारी से नौजवानों की लंबी फौज हो, स्कूलकालेज न हों, अस्पताल न हों, बिना दवा के लोग मर जाते हों, जमीनी हकीकत को दरकिनार कर सपने बेचे जाते हों, आम आदमी को बुलेट ट्रेन और हाइटैक 100 शहर बनाने के सपने दिखाए जाते हों, उस देश में भला ऐसी उम्मीद कैसे की जा सकती है कि हमारे बच्चे सपने के सहारे आगे बढ़ेंगे. देश में सपने बेच कर सत्ता तो हासिल की जा सकती है पर खेल के मैदान में फुटबाल मैच नहीं जीते जा सकते. वहां पसीना बहाया जाता है. लगातार गेंद के पीछे भागना पड़ता है. मेहनत करनी पड़ती है तब जीत हासिल होती है. जरमनी ने मेहनत की है, नतीजा सामने है.

अमीरीगरीबी नहीं

हमारे यहां बारबार गरीबों का आंकड़ों से आकलन किया जाता है. गरीबी दूर करने के बजाय गरीबी का पैमाना फिर से नया बनाया जा रहा है. कम से कम फुटबाल में यह चीज नहीं है. बड़ेबड़े अमीर देशों के खिलाड़ी गरीब देशों के खिलाडि़यों से मात खा गए. अमेरिका जैसा अमीर देश एक छोटे से गरीब मुल्क बेल्जियम से हार गया. ब्राजील, नाइजीरिया, घाना जैसे मुल्क गरीब ही तो हैं. इस विश्व कप से यह तो तय हो गया कि अगर सही कायदेकानून हों तो चाहे वह गरीब मुल्क ही क्यों न हो, आप उसे रौंद नहीं सकते. यह संदेश अच्छा है और भारत जैसे तमाम मुल्कों व अमीर मुल्कों को इस से सीख लेनी चाहिए. प्रपंच कर और पैसों की धौंस दिखा कर अधिकारियों को खरीदने वालों की आंखें अब भी बंद हैं तो वे अब भूल जाएं. गरीबों को रौंदना अब उन के लिए आसान नहीं है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का जो हश्र हुआ वह इसलिए कि कांग्रेस सत्ता के मद में चूर थी, उसे सामने कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था और जमीनी स्तर पर काम करने के बजाय घपलेघोटालों में फंसे नेताओं व अफसरों को बचाने में लगी रही. आम आदमी उस से दूर होता गया. नतीजा सब के सामने है.

विदेशियों से मुकाबला नहीं

विदेशों से टैक्नोलौजी के मामले में भी हम काफी पीछे हैं. बात खेल की ही करें तो एक दौर वह था जब कुदरती घास पर हौकी ?खेली जाती थी. हौकी स्टिक साधारण लकड़ी की बनी होती थी. गेंद जो होती थी वह चमड़े की होती थी पर समय बदलने के साथसाथ सबकुछ बदल गया. अब तो कुदरती घास भी हाईटैक तरीके से उगाई जाती है. चमड़े की गेंद के बजाय अब गेंद प्लास्टिक और रबड़ से बनने लगी है.

इसी तरह फुटबाल का हाल था. पहले हम कुदरती माहौल में खेलते थे लेकिन अब तो कृत्रिम तरीके से उगाई गई घास वाला मैदान और हाईटैक तरीके से बनाई गई गेंद का इस्तेमाल होता है. टैक्नोलौजी का इस्तेमाल करना अच्छी बात है पर क्या हम विदेशों की तुलना कर सकते हैं? शायद नहीं. एक पिच या स्टेडियम अगर यहां बनता है तो करोड़ों रुपयों का हिसाबकिताब दिखाया जाता है और जब हिसाबकिताब का लेखाजोखा मांगा जाता है तो पता चलता है कि इतने करोड़ों का घपलाघोटाला हुआ है. उस के बाद कुछ दिनों तक होहल्ला मचता है फिर सब शांत हो जाते हैं. कौमनवैल्थ गेम्स की बात करें तो करोड़ोंअरबों रुपए खर्च कर के यहां तमाम स्टेडियम बनाए गए, लेकिन रखरखाव के नाम पर कुछ भी नहीं. जबकि चीन और अन्य देशों से हमें सीखना चाहिए कि खेल के बाद किस तरह से स्टेडियमों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि जो पैसा बनाने में लगा है वह व्यर्थ में न जाए.

विवादों का भी रहा साया

खैर, चाहे देश हो या विदेश हर बड़े आयोजन में कुछ न कुछ विवाद तो होता ही है. फीफा वर्ल्ड कप भी अपने पीछे विवाद छोड़ गया. सब से बड़ा सवाल तो यह उठा कि क्या फुटबाल वर्ल्ड कप पर भी अब फिक्ंिसग हावी हो  रही है? वजह, कैमरून देश की टीम के 7 खिलाडि़यों पर क्रोएशिया देश की टीम के साथ हुए मुकाबले के अलावा बाकी के ग्रुप मैच भी फिक्स किए जाने के आरोप लगे. इस सिलसिले में कैमरून फुटबाल महासंघ के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द निबटारा हो.’’

इतना ही नहीं, उरुग्वे टीम के खिलाड़ी लुईस सुआरेज पर इटली के खिलाफ हुए मैच में विरोधी टीम के खिलाड़ी जियार्जियो चैलिनी को दांत से काट लिया. उन पर 9 इंटरनैशनल मैचों का बैन लगाया. इस के अलावा उन पर तकरीबन 70 लाख रुपए का जुर्माना लगाया.

बहरहाल, पैरों में बिजली सी फुर्ती, जोश, जनून, कर्मठता, शतरंजी चालों से भरा दिमाग और हरे मैदान पर प्रतिद्वंद्वी टीम को मात देने का जज्बा हो तो कोई भी देश या उस देश के खिलाड़ी इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए शुमार हो जाते हैं. यही जरमनी ने किया जिसे लोग वर्षों तक एक बार नहीं बल्कि बारबार याद करेंगे.    

-साथ में सुनील शर्मा

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