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gazal
कविता
कुछ देर मैं दुनिया से अलग रह पाती, दिल में उठते हुए तूफान थम गये जैसे…
कविता
कितनी खुश है आज औरत जेवरों-कपड़ों तले…
कविता
ख्वाबों का हश्र ऐसा भी देखा है…
कविता
क्यों बनाता है गुनहगार मुझे
कविता
मंजिलों से दिल लगाया नहीं कभी और रास्तों से नहीं की बेवफाई…
कविता
इक जरा हाथ छूटा तेरा, रास्ते ही जुदा हो गये
कविता
हसरतें भी खूब निकली मेरी, मुराद भी कोई कहा रही अधूरी
कविता
उसको अपना भी कह नहीं सकते कितने मजबूर ये हालात मेरे
कविता
हर चीज निराली है इन ऊंचे मकानों में
कविता
चुभ जाता है बस, सच जो तीखा कहता हूं…
कविता
इक लुटेरे को मददगार न समझे कोई
कविता
प्रियतम न्यारा
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