फिल्मोद्योग में ‘शोमैन’ के नाम से खुद को स्थापित कर चुके निर्मातानिर्देशक सुभाष घई अपनी खास तरह की फिल्मों के लिए पहचाने जाते हैं. उन्होंने ‘कालीचरण’, ‘कर्ज’, ‘कर्मा’, ‘सौदागर’, ‘परदेस’, ‘रामलखन’, ‘ताल’, ‘खलनायक’ आदि एक से बढ़ कर एक सुपरहिट फिल्में दी हैं. एक समय उन का नाम जुड़ा होना फिल्म की कामयाबी की गारंटी मानी जाती थी. लेकिन उन की पिछली कई फिल्में युवराज, किसना, यादें, कांची आदि फ्लौप रहीं. पिछले दिनों बौलीवुड के नामचीन निर्देशकों के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘लाइट कैमरा ऐक्शन’ के विमोचन के मौके पर उन से हुई बातचीत के अंश :
आजकल आप फिल्में कम बना रहे हैं. जो बना भी रहे हैं वे सफल नहीं हो रहीं. वजह?
जीवन में कभी ऐसा समय आता है जब आप को लगता है कि जिस इंडस्ट्री से कुछ मिला, उसे कुछ देना भी चाहिए. इसी सोच की वजह से मैं ने व्हिस्ंिलग वुड इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट खोला और मैं वहां अपना अधिक समय बिताता हूं. फिल्में सफल न होने की वजह उन की कहानी होती है. दर्शकों को कहानी और विषय समझ में आ जाए, ऐसी कोशिश होनी चाहिए. अगर कहानी को फिल्माने में गलती हुई तो भी फिल्में नहीं चलतीं.
आप का इंस्टिट्यूट काफी विवादों में है, छात्रों पर इस का असर पड़ेगा?
मैं शुरू से आज तक हमेशा संघर्ष करता आया हूं. सहायक निर्देशक से निर्देशक बना. फिर एक शांति निकेतन जैसा इंस्टिट्यूट खोलने की योजना बनाई. जमीन मिली पर उसी दौरान फिल्मसिटी के एमडी ने मुझे संयुक्त उद्यम के आधार पर फिल्मसिटी में इंस्टिट्यूट खोलने की सलाह दी ताकि बच्चों को प्रैक्टिकल और थ्योरी दोनों का ज्ञान मिले. सब ठीक चल रहा था कि वर्ष 2003 में मुझे सीएम रिपोर्ट में 30 करोड़ की प्रौपर्टी बता कर सम्मन भेजा गया जबकि यह भूमि कभी बेची नहीं गई थी. मैं हैरान था. उस समय जो भी बातचीत हुई थी वे सभी दस्तावेज दिखाए जाने के बावजूद कोर्ट इसे अवैध घोषित कर रहा है, किराया लगा रहा है. सरकार से हम अपनी बात कहने की कोशिश सालों से कर रहे हैं. पर बात हो नहीं पा रही.