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पाठकों की समस्याएं

मैं 33 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मां का बचपन में ही देहांत हो गया था इसलिए पिता ने दूसरी शादी कर ली. मेरी दूसरी मां व उन के बच्चों का मुझ से व्यवहार अच्छा है. पति सरकारी नौकरी में हैं. हाल ही में मेरी बहन की एक संपन्न परिवार में शादी हुई है जिस में मेरे पिता ने खुल कर खर्च किया. मेरी समस्या यह है कि मेरे पति इस बात से नाराज रहते हैं कि तुम्हारे पिता ने हमारी शादी में कम खर्च किया क्योंकि तुम्हारी मां नहीं थी. जबकि मेरी नई मां व पिताजी हम दोनों बहनों में कोई फर्क नहीं करते. मेरे पति मेरे परिवार वालों से हमेशा उखड़ेउखड़े रहते हैं, उन्हें मेरे अपने परिवार वालों से मिलनेजुलने पर भी परेशानी है. वे चाहते हैं मैं अपनी बहन से कोई रिश्ता न रखूं. जबकि मैं चाहती हूं कि वे मेरे परिवार वालों से मिलजुल कर रहें. पति के इस व्यवहार का असर हमारे आपसी संबंधों पर भी पड़ रहा है. मैं क्या करूं? सलाह दीजिए.

इस प्रकार की प्रतिक्रिया आमतौर पर बेटियों में होती है पर यह अच्छी बात है कि आप की पिता या मां से शिकायत नहीं. यह कम होता है. जहां तक पति की बात है, आप की बातों से लगता है आप के पति फालतू में हीनभावना से ग्रस्त हैं जिस के परिणामस्वरूप वे ऐसा व्यवहार कर रहे हैं. पति को उन बातों, घटनाओं की याद दिलाएं जब आप के मातापिता ने आप के साथ कोई भेदभाव नहीं किया और अच्छा व्यवहार किया हो. उन के शक को दूर करने की कोशिश करें. उन्हें समझाएं कि हर मां सौतेली नहीं होती. साथ ही, उन्हें समझाएं कि ससुराल से मदद लेने पर आप का आत्मसम्मान घटेगा न कि बढ़ेगा. आत्मनिर्भर होने के लिए प्रेरित करें. ?उन्हें समझाएं कि उन का ऐसा व्यवहार उन्हें सब से दूर कर देगा और वे अकेले पड़ जाएंगे. आप चाहें तो अपनी बात कहने के लिए घर के किसी बड़े की मदद भी ले सकती हैं. असल में आप और आप की नई मां आदर्श हैं कि उन में कोई विवाद नहीं है.

मैं 25 वर्षीय युवती हूं. समस्या यह है कि मुझे 3-4 साल से हस्तमैथुन की आदत हो गई है. मैं खुद को कंट्रोल नहीं कर पाती हूं. मैं अपनी इस आदत से छुटकारा पाना चाहती हूं. क्या इस से मेरी हैल्थ पर कुछ गलत प्रभाव पड़ेगा? समस्या का समाधान कीजिए.

आप व्यर्थ ही परेशान हो रही हैं. हस्तमैथुन एक सामान्य प्रक्रिया है. एक अध्ययन के अनुसार, 95 प्रतिशत पुरुष व 89 प्रतिशत महिलाएं हस्तमैथुन करती हैं. यह किसी भी युवक या युवती की पहली सैक्सुअल क्रिया होती है जिसे अधिकांश लोग अनुभव करते हैं. कुछ विशेषज्ञ तो इसे विवाह से पूर्व हार्मोनल परिवर्तन के परिणामस्वरूप बने प्रैशर को रिलीज करने का माध्यम मानते हैं. दरअसल, इस उम्र में सैक्सुअल डिजायर अपनी चरम पर होती है, ऐसे में अजनबियों से सैक्स संबंध स्थापित कर के अवांछित गर्भावस्था व यौनजनित रोगों, जैसे एचआईवी व एड्स से ग्रसित होने से यह कहीं बेहतर है. यह कोई रोग नहीं बल्कि आदत है, जिस से कामेच्छा शांत होती है.

मैं 33 वर्षीय महिला हूं. मेरे चेहरे, नाक व भौंहों पर पिगमैंटेशन की समस्या हो गई है. मैं बहुत परेशान हूं. कृपया कोई उपाय बताएं?

पिगमैंटेशन एक हार्मोनल समस्या है जिस का कारण, थायराइड, पौलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज या अत्यधिक सनऐक्सपोजर हो सकता है. कई बार प्रीमेनोपोज या ओरल कौंट्रासैप्टिव का प्रयोग भी पिगमैंटेशन का कारण होता है. पिगमैंटेशन की समस्या से निजात पाने के लिए आप ब्लीचिंग क्रीम, लेजर ट्रीटमैंट ले सकती हैं. हमेशा 30 एसपीएफ सनस्क्रीन लोशन का प्रयोग करें. चेहरे को धोने के लिए माइल्ड फेसवाश का प्रयोग करें और रात को सोने  से पहले क्लींजर का. फू्रट क्रीम का प्रयोग करें जिस में लैक्टिक ऐसिड व ग्लाइकोलिक ऐसिड होता है जिस से त्वचा की नरीशिंग होगी व पिगमैंटेशन की समस्या दूर होगी.

मैं 28 वर्षीय युवक हूं और एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं. वह दबाव में आ कर किसी और से विवाह कर रही है. मैं उस के बिना जी नहीं सकता. उस के बिना रहने के खयाल से ही मैं ने 2 बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की लेकिन घर वालों ने बचा लिया. मैं उसे भूल नहीं सकता. बताएं क्या करूं?

किसी लड़की के प्यार में आत्महत्या करना समस्या का हल नहीं है. जब वह लड़की कहीं और विवाह कर रही है तो उसे भूल जाने में ही आप की भलाई है. आप अपना ध्यान अपने कैरियर व मातापिता की जो आप से उम्मीदें हैं उन पर लगाएं. अपने को व्यस्त रखिए. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.

मैं 22 वर्षीय युवक हूं. बीएसएफ में नौकरी करता हूं. मुझे एक 17 वर्षीय लड़की से प्यार हो गया है जिसे मैं ने अभी तक देखा नहीं है. हमारी केवल फोन पर ही बातें हुई हैं. वह मुझ से मिलना व विवाह करना चाहती है. उस के घर वालों को इस बात की जानकारी नहीं है और मेरे घर वाले इस बारे में जानते हैं. लेकिन वे विवाह के लिए राजी नहीं हैं. मैं क्या करूं?

आप ने जिस लड़की को अभी तक देखा नहीं है, कभी उस से मिले नहीं हैं, उस से प्यार व शादी की बात कर रहे हैं. और तो और उस लड़की के परिवार को तो आप के प्यार के बारे में जानकारी भी नहीं है. फिर आप के परिवार वाले भी राजी नहीं हैं. आप खयालीपुलाव मत पकाइए. एकदूसरे से मिलिए, एकदूसरे को जानिए व परखिए. फिर उस के परिवार वालों से मिलिए, उन्हें पूरी बात बताइए. अपने परिवार वालों को भी राजी कीजिए, तभी आगे बढि़ए. वैवाहिक संबंध ऐसे फोन पर बात करने से नहीं जुड़ते. व्यावहारिक स्तर पर सोचिए और फिर कोई निर्णय लीजिए.

कैसे दें बच्चों को साइबर सुरक्षा

10वीं कक्षा का उमर पढ़ाई में कमजोर होने के कारण हमेशा अपने अध्यापकों और मातापिता से डांट खाता था. घर से समय पर निकलने के बावजूद वह रोज स्कूल देर से पहुंचता और सजा पाता था. उसे कक्षा में बैठना पसंद नहीं था. अधिक सख्ती करने पर वह स्कूल तो समय से पहुंचने लगा पर कक्षा में पढ़ने के बजाय वह मोबाइल से अश्लील मैसेज करता. उस की अध्यापिका बहुत परेशान थीं और एक दिन अचानक जब उन्होंने विद्यार्थियों के मोबाइल चैक किए तो पाया कि उमर उन्हें परेशान करने के लिए कक्षा में पीछे बैठ कर ऐसी हरकतें किया करता था. पकड़े जाने पर उस ने माफी मांगी और बड़ी मुश्किल से उस की यह आदत छूट पाई.

हमारे आसपास ऐसी घटनाएं आएदिन घटित होती रहती हैं. अभिभावकों की अनुपस्थिति में बच्चे मोबाइल के जरिए अश्लील तसवीरें व मैसेज भेजते हैं. कंप्यूटर पर अश्लील साइटों पर जा कर समय बिताते हैं. उन दोस्तों और अध्यापकों को परेशान करते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते. जब तक मातापिता को इस की जानकारी मिलती है, बहुत देर हो चुकी होती है. इस से बच्चों के परीक्षा परिणाम, उन की दिनचर्या, उन के स्वास्थ्य पर तो गलत प्रभाव पड़ता ही है साथ ही, वे अपने वास्तविक उद्देश्य से भी भटक जाते हैं. अभिभावकों के लिए ऐसे बच्चों को संभालना, उन पर नियंत्रण रखना एक बड़ी समस्या बन जाती है. उन्हें समझ नहीं आता कि वे किस तरह बच्चों को साइबर सुरक्षा प्रदान करें.

‘नौर्टन औनलाइन फैमिली रिपोर्ट’ ने पिछले दिनों ‘साइबर चैटिंग’ पर चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा किया. बच्चे कैसे अनजाने में गलत राह पर चल पड़ते हैं. वे कैसे गलत लोगों का निशाना बन जाते हैं. ऐसे में बच्चों को सुरक्षित निकाल पाना न केवल मुश्किल हो जाता है बल्कि कई बार तो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी हो जाता है. साइबर यानी इंटरनैट के शुरुआती दौर का मजा उन की आदत में शुमार हो जाता है और वे साइबर के गलत पक्षों के जाल में फंसते चले जाते हैं.

कई बार तो बच्चे क्रैडिट कार्ड से औनलाइन शौपिंग भी कर लेते हैं. जब मातापिता को इस बात का पता चलता है तो उन्हें भारीभरकम कीमत चुकानी पड़ती है. नौर्टन की रिपोर्ट के मुताबिक 79 प्रतिशत बच्चे इस बात को स्वीकारते हैं कि उन्हें अजनबियों द्वारा डराया- धमकाया जाता है, अश्लील तसवीरें भेजी जाती हैं जिन की चर्चा वे न तो मातापिता से कर पाते हैं और न ही दोस्तों से. लिहाजा, खुद को परेशानी में उलझा हुआ पाते हैं.

कुछ नियम जरूरी

इस बारे में 4 बच्चों के पिता व इंटरनैट सेफ्टी एडवोकेट इफेंडी इब्राहिम कहते हैं, ‘‘मैं अपने बच्चों को देख कर हमेशा सोचता था कि साइबर यूज के लिए इन्हें कुछ नियमों में बांधना आवश्यक है और उसी प्रयास का परिणाम नौर्टन की वैबसाइट onlinefamily.norton.com है.’’

यह वैबसाइट 24 देशों में एकसाथ शुरू की गई है जिन में आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जरमनी, भारत, इटली, जापान प्रमुख हैं. यह साइट 25 भाषाओं में उपलब्ध है. 5 साल से ले कर किसी भी उम्र के बच्चे इस का प्रयोग कर सकते हैं. इस की सदस्यता निशुल्क है. इस में जिस वैबसाइट पर जाने की मनाही होती है, उस साइट पर जाने पर पहले 2 बार चेतावनी दी जाती है. उस के बाद उक्त साइट को ब्लौक कर दिया जाता है. साथ ही, मातापिता को भी मोबाइल या इंटरनैट के जरिए बच्चे द्वारा प्रयोग की जा रही गलत साइट की जानकारी दे दी जाती है. बच्चों को साइबर सुरक्षा देने की दिशा में यह साइट मददगार साबित हो सकती है.

पैंगुइन क्लब से ले कर सोशल नैटवर्किंग के हर क्षेत्र में साइबर सुरक्षा आवश्यक है ताकि बच्चों को साइबर क्राइम से बचाया जा सके. इफेंडी इब्राहिम का कहना है कि कामकाजी मातापिता को इस बात पर खास ध्यान देना चाहिए कि उन की अनुपस्थिति में बच्चे किन वैबसाइट पर जाते हैं. बहरहाल, साइबर यानी इंटरनैट के अभिशाप से बच्चे बचे रहें, इस के लिए मातापिता को बच्चों के प्रति सजग रहना होगा. क्योंकि बच्चों को साइबर सुरक्षा प्रदान करना मातापिता का दायित्व है.

पहाड़ों पर भी स्मूथ राइड एक्टिवा 125

कुछ समय पहले तक भारत एक ‘स्कूटरलैंड’ था. यहां की सड़कों पर विभिन्न कंपनियों के स्कूटर फर्राटे से दौड़ते थे लेकिन समय ऐसा आया कि स्कूटर सड़कों से गायब हो गए. यहां तक कि बजाज कंपनी ने भी स्कूटर बनाने बंद कर दिए. लेकिन फिर समय बदला, लोगों की पसंद बदली और भारतीय सड़कों पर एक्टिवा स्कूटर्स की बहार आई. भारतीय दुपहिया वाहन चालकों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए होंडा मोटरसाइकिल ऐंड स्कूटर इंडिया (एचएमएसआई) ने हाल ही में नया औटोमैटिक स्कूटर एक्टिवा 125 बाजार में उतारा है.

नए एक्टिवा 125 के फीचर्स और डिजाइन का जवाब नहीं. नए एक्टिवा 125 में सिंगल सिलेंडर, फोर स्ट्रोक, एयरकूल्ड 124.9 सीसी का इंजन, 8.6 बीएचपी का पावर, 10.12 एनएम का टौर्क, वी मैटिक ट्रांसमिशन है. नए एक्टिवा में 12 इंच के एलौय व्हील इसे प्रीमियम लुक देते हैं. 23 डिगरी की क्लाइंबिंग क्षमता के चलते नए एक्टिवा के साथ ऊंचाई पर चढ़ना आसान हो गया है.

वे ग्राहक जो औटोमैटिक स्कूटर में अपनी राइड अपग्रेड करना चाहते हैं, यह एक्टिवा 125 उन्हें बेहतर माइलेज, कंफर्ट और आधुनिक विशेषताओं का शानदार कौंबिनेशन प्रदान करता है. पेटैंट होंडा ईको टैक्नोलौजी परफौर्मेंस से समझौता किए बिना सफलतापूर्वक माइलेज को बढ़ाती है. इस की एचईटी दहन में सुधार कर के कार्य करती है जिस से घर्षण कम होता है और इंजन का ट्रांसमिशन बढ़ता है.

बेहतरीन स्टाइल के साथ एक्टिवा 125 का मजबूत फ्रंट पैनल, खूबसूरत क्रोम बार, प्रभावशाली हैडलाइट, गतिमान इंस्ट्रूमैंट क्लस्टर और स्टाइलिश इंडिकेटर, एक्स शेप की टेल लाइट इस को और आकर्षक बनाती है और उम्मीद है यह ग्राहकों को भी लुभाएगी. स्वीश, वेस्पा और रोडियो टूव्हीलर के मुकाबले एक्टिवा की घरघराहट काफी कम है. 15 सीसी और 0.6 बीएचपी की बढ़ोत्तरी एक्टिवा में कुछ ज्यादा नहीं है पर अतिरिक्त 0.14 केजीएम एक्टिवा की पहाड़ी इलाकों की राइड को जरूर बेहतर और स्मूथ बनाती है.

अगर एक्टिवा की स्पीड की बात की जाए तो यह तुरंत एक्सिलरेट करती है और तेज स्पीड पर ज्यादा हलकी चलती है. 90 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार पर भी इस की स्पीड आप को थरथराती नहीं लगेगी. तो फिर तैयार हैं न आप, नए होंडा एक्टिवा 125 की स्मूथ राइड के लिए.

-दिल्ली प्रैस की अंगरेजी पत्रिका मोटरिंग वर्ल्ड से

जब कोई बात बिगड़ जाए

अकसर हम अजीबोगरीब हालात में फंस जाते हैं, न चाहते हुए भी अप्रिय स्थिति उत्पन्न हो जाती है. मान लीजिए कि आप की सब से प्रिय दोस्त एक ऐसी ड्रैस पहन कर आप की तारीफ पाना चाहती है जो उसे हास्यास्पद बना रही है या फिर आप लंच पर आमंत्रित हैं और वहां का खाना आप के बच्चे मुंह में रखने को तैयार नहीं हो रहे. कभीकभी तो हम खुद ही, अनजाने में, अपने लिए गड्ढा खोद लेते हैं. बिना सोचेसमझे झूठ बोल दिया और वह झूठ पकड़ लिया गया या फिर ताव में आ कर जिस की बुराई की उसी ने आप को बुराई करते सुन लिया.

कैसे निबटें इन असहज हालात से, ऐसा क्या करें, क्या कहें कि बिगड़ी बात बन जाए, रिश्तों में दरार भी न आए और आप की सच्चे दोस्त, समझदार और संवेदनशील इंसान होने की छवि बरकरार भी रहे.

नाम याद न रहना

आप पार्टी में गईं, एक खूबसूरत चिरपरिचित चेहरा बड़ी आजिजी से आप के, आप के परिवार के हालचाल पूछ रहा है और आप की कम्बख्त याददाश्त पीछे छूट चुकी जवानी की तरह आप का साथ छोड़ गई. आप को उन का नाम याद ही नहीं आ रहा. यह ऐसी कौमन सिचुएशन है जिस से हम सब गुजरते हैं. ऐसे में क्या करें?

सब से पहले तो आप के दिल की उलझन चेहरे पर न झलके, इस पर ध्यान दें. होंठों पर मुसकराहट बरकरार रखें और जो कुछ भी ‘वह’ पूछ रही है उस का जवाब देती रहें. लेकिन सवाल करने से बचें ताकि वार्तालाप संक्षिप्त हो और मौका मिलते ही आप वहां से खिसक लें. अगर ऐसा अवसर नहीं मिलता, आप वहां से नहीं निकल पातीं तो कुछ समय बाद उन से कहिए कि मुझे आप की खूबसूरत पर्पल साड़ी, हाल्टरनेक ब्लाउज और पर्ल ज्वैलरी अभी भी याद है, जो आप ने मिसेस बत्रा की पार्टी में पहनी थी. लेकिन माफ कीजिएगा, आप का नाम मैं थोड़ा भूल रही हूं. महिला समझदार होगी तो इशारा समझ कर अपना नाम बता देगी और बुरा भी नहीं मानेगी.

आप की बैस्ट फ्रैंड एक नई ऐक्सपैंसिव ड्रैस पहन कर आप के पास आई है और आप की राय जानना चाह रही है. आप को नजर आ रहा है कि यह ड्रैस उस पर ठीक नहीं लग रही, आउट औफ फैशन है. लेकिन ऐसा बोल कर आप उस का दिल नहीं तोड़ना चाहतीं. ऐसे में आप उस से कह सकती हैं कि अरे वाह, ड्रैस का कलर तो बड़ा प्यारा है लेकिन यह थोड़ी और लंबी होती तो ज्यादा अच्छी लगती. आउट औफ फैशन ड्रैस हो तो कहिए, ‘यह भी अच्छी है लेकिन पता है, अभी मौल में लेटेस्ट कलैक्शन आया है, तुम्हारी हाइट तो इतनी अच्छी है, आय एम श्योर वे ड्रैसेज तुम्हारी पर्सनैलिटी को ज्यादा निखारेंगी.’

फ्रैंड या रिश्तेदार चाहे जितनी करीबी हो, बेबाक हो कर बुराई नहीं करें, न ही उस की कमी को हाईलाइट करें कि ‘तुझे पता है न कि तू सांवली है, उस पर यह डार्कग्रीन कलर पहन लिया,’ आदि. बिना दिल को चोट पहुंचाए, सही राय दें. परफैक्ट कलर, लैंथ की ड्रैस चुनने में मदद करें, तभी बात बनेगी आप सपरिवार लंच पर आमंत्रित हैं और वहां जो खाना सर्व किया गया है वह वाकई बेस्वाद है. चलिए, आप तो खा भी लेंगी लेकिन आप के बच्चे उस खाने को हाथ लगाने को तैयार नहीं और छोटू महाराज तो बोल पड़े, ‘छि:, आंटी ने कितना गंदा खाना बनाया,’ वगैरह.

जब जाएं दोस्त के घर

आप को यह याद रखना है कि दोस्त ने आप को घर पर आमंत्रित किया, जतन से खाना तैयार किया और ऐसा कर के उन्होंने आप के प्रति अपना स्नेह, सम्मान प्रकट किया है. खाने का स्वाद, विविधता, गुणवत्ता ज्यादा माने नहीं रखती. इसलिए बिना मुंह बनाए खाना खाएं और जो भी डिश थोड़ी भी अच्छी लगे उस की तारीफ करें. और कुछ नहीं, तो उन की कटलरी, मेजसज्जा, घर के इंटीरियर को सराहें, उन्हें अच्छा लगेगा. रही बात बच्चों के न खाने की, तो आप उन से जबरदस्ती तारीफ तो नहीं करा सकतीं, न ही खाना खिला सकती हैं. आप होस्ट से यह कह सकती हैं, ‘दरअसल, इस का पेट भरा हुआ है, इसलिए नखरे कर रहा है,’ या फिर ‘यह तो घर में भी ऐसे ही तंग करता है. प्लीज, आप बुरा न मानें.’

क्या हो जब बेहद बोरिंग, चिपकू, बकबकिए व्यक्ति से पाला पड़ जाए? ऐसी स्थिति में बेहद जरूरी है कि आप कम से कम शब्दों में जवाब दें और भूल कर भी उन से अपनी तरफ से सवालजवाब न करें. कोई किस्सा, वाकेआ सुनाया जा रहा हो तो किसी तरह की डिटेल नहीं पूछें. और जैसे ही वे जनाब सांस लेने को रुकें, आप तुरंत मुंह खोलें और बोलें, ‘आप से बात कर अच्छा लगा मगर इस वक्त मैं जल्दी में हूं.’ और वहां से निकल लें.

अगर ऐसे चिपकू का फोन आया है तो फिर तो 2 मिनट बात कर कहें, ‘माफ कीजिए, मेरे बौस या हस्बैंड का फोन आ रहा है, आप से फिर बात करता हूं.’ अगर बस या ट्रेन में कोई अनजान सह- यात्री मुंह की चरखी चला दे तो दो बातें कर कान में ईअरफोन ठूंस कर आंखें बंद कर लें. कोई दोस्त आप को कहीं साथ चलने को कहता है और आप तबीयत खराब होने का बहाना करती हैं. लेकिन शाम को वही दोस्त आप को मौल में देख लेता है.

ऐसी हालत में बिना चेहरे पर अपराधभाव लाए, आगे बढ़ कर उस से मिलिए. उस के काम के बारे में पूछिए. जब वह शिकायती लहजे में बोले कि तुम ने तो ऐसा कहा था…तब बिना पलक झपकाए बोलिए कि उस वक्त तो वाकई तबीयत बहुत खराब थी लेकिन मेरी एक डाक्टर फ्रैंड घर आ गईं, क्या कमाल की दवा दी, एक ही डोज में मैं ठीक हो गई, इसलिए यहां आ गई. हम लोग फिर कभी प्रोग्राम बनाते हैं न साथ में. तो देखा आप ने, आप की जरा सी स्मार्टनैस, हाजिरजवाबी और आत्मविश्वास आप को ऐसी कई अनचाही परिस्थितियों से उबार सकता है. तो फिर बच निकलिए और दिल पर हाथ रख कर बोलिए न, औल इज वैल.

मां को बनाया आया

बच्चे का जन्म उस बच्चे के मांबाप के लिए एक सुंदर सपना सच होने जैसा होता है. बच्चे के जन्म लेते ही मां की ढेरों आशाएं उस से जुड़ जाती हैं. बच्चे में मां को अपना भविष्य सुरक्षित नजर आने लगता है. मां की उम्मीद बंध जाती है कि बच्चा जब बड़ा होगा तो उस के जीने का सहारा बनेगा. उसे अच्छी जिंदगी देगा. अपने इस सपने को साकार करने के लिए मांबाप जब अपने छोटे से फूल जैसे बच्चे को पढ़ालिखा कर बड़ा करते हैं और समाज में सम्मान से जीने की राह दिखाते हैं. खासतौर पर अगर जन्म लड़के का हो तो मांबाप कुछ ज्यादा ही आशान्वित हो जाते हैं.

बच्चा बड़ा हो कर जब कमाने लगता है और उस का मांबाप को संभालने का वक्त आता है, उस वक्त वह अपने स्वार्थ और बढ़ती इच्छाओं के चलते शादी कर के अपनी दुनिया अलग बसा लेता है. उसे अपनी मां फांस की तरह चुभने लगती है. लेकिन जब उस का खुद का परिवार बनना शुरू होता है और उस के अपने बच्चे को संभालने की बारी आती है तो वही अपनी मां उस को याद आने लगती है. उस के हिसाब से मां से अच्छा बच्चे को भला कौन संभाल सकता है और आया को भारी रकम देने का खर्चा भी बच जाएगा. इस तरह बच्चे अपने स्वार्थ के लिए अपनी ही मां को घर की आया बनाने से नहीं चूकते.

बच्चे संभालने के लिए साथ रखा

खासतौर पर उन मांओं को यह तकलीफ ज्यादा सहन करनी पड़ती है जो तलाकशुदा या विधवा का जीवन जी रही हों. वह मां जिस को बुढ़ापे में आराम की जरूरत होती है उस को बच्चे की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है क्योंकि पतिपत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं. ऐसे ही हालात की मारी 60 वर्षीय प्रेमा कुलकर्णी एक विधवा हैं. प्रेमा के पति की ऐक्सिडैंट में मौत हो गई और चूंकि वे पढ़ीलिखी नहीं थीं इसलिए उन्होंने घरघर काम कर के अपने बच्चे को पढ़ायालिखाया इस उम्मीद से कि उन का बेटा उन को बड़ा हो कर संभालेगा और उन को बुढ़ापे में काम नहीं करना पड़ेगा लेकिन इस के ठीक विपरीत प्रेमा बताती हैं, ‘‘मेरे बेटे ने कमाई शुरू करते ही शराब पीनी शुरू कर दी. और चूंकि हम लोग गरीब हैं, झोंपड़पट्टी में रहते हैं इसलिए वहां पर कुछ गलत लड़कों की संगत में उस ने जुआ खेलना भी शुरू कर दिया.

‘‘उस के बाद उस की एक लड़की से दोस्ती हुई जोकि उस के औफिस में ही काम करती थी, उस से उस ने शादी कर ली. जब मेरे बेटे की शादी हुई तो मुझे लगा घर में बहू आएगी तो शायद मेरा बेटा सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

‘‘मेरा बेटा और बहू दोनों काम पर चले जाते थे और मुझे घर का पूरा काम करने को बोलते थे जबकि मैं इतनी उम्र में 5 घरों का काम पहले से कर रही थी. जब मैं ने इस बात पर एतराज किया तो वे दोनों मेरा घर छोड़ कर अलग हो गए. 1 साल तक मैं अकेली रही. जब उस को बच्चा हुआ तो वे दोनों मेरे पास आए और अपने साथ ही रहने को कहा.

‘‘मैं भी अकेली घर में रहरह कर तंग हो गई थी इसलिए बेटे के पास चली गई लेकिन बाद में मुझे समझ आया कि उन्होंने मुझे अपना बच्चा संभालने के लिए घर में रखा है. बुढ़ापे में मुझे छोटे से बच्चे को संभालने में तकलीफ होती थी. साथ ही मुझे भरपेट खाना भी नहीं मिलता था. मेरी बहू फ्रिज में ताला लगा कर जाती थी ताकि मैं फ्रिज में से कुछ ले कर खा न सकूं. जब इस बात को ले कर मैं ने बहू से झगड़ा किया तो वह और बेटा दोनों मुझ से झगड़ा करने लगे. आखिर तंग आ कर मैं वापस अपनी झोंपड़ी में चली आई और घरघर काम कर के ही अपना पेट पाल रही हूं.’’

मजबूरी भी कारण

प्रेमा की तरह ही एक और भारतीय नारी हैं जो अपने पति की सेवा और बच्चों का पालनपोषण ही अपना धर्म समझती हैं. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसी कार्य में लगा दी. उन का नाम है वीणा मिश्रा.

65 वर्षीय वीणा के 3 बच्चे हैं, 1 लड़का और 2 लड़कियां वीणा अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि बेटियों की तो उन्होंने पढ़ालिखा कर शादी कर दी और बेटे को इंजीनियरिंग करवाई. चूंकि बेटा पढ़ाई में होशियार था इसलिए उस ने पढ़लिख कर अच्छी नौकरी पा ली और उसी नौकरी के तहत उस को अमेरिका में ट्रांसफर मिल गया. हम अपने बेटे की तरक्की से बहुत खुश थे और हमारा बेटा हमारा अच्छे से खयाल भी रख रहा था. वीणा आगे बताती हैं कि वह जब पूरी तरह सैटल हो गया तो हम ने हिंदुस्तान की ही एक लड़की से उस की शादी करवा दी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. उस का इरादा कुछ सालों में इंडिया में ही बसने का था. लेकिन शादी के बाद वह एकदम से बदल गया. वहां पर ही वह रचबस गया. उस के 2 बच्चे भी हो गए. वह हमें लगातार नियमित तौर पर पैसे भी भेजता था. लेकिन क्योंकि उस की पत्नी भी नौकरी करती है इसलिए घर में बच्चों को संभालने वाला कोई नहीं था. वहां पर (अमेरिका में) पहले तो नौकरानी मिलती नहीं है और अगर मिलती भी है तो उस की तनख्वाह ही 60 हजार रुपए से ऊपर होती है.

वीणा कहती हैं कि बेटे ने कहा कि वे वहीं उन के साथ अमेरिका में रहें ताकि उस के बच्चों को कोई संभालने वाला मिल जाए. मेरे पति और मुझे दोनों को इंडिया से बहुत प्यार है, हमारा पूरा जीवन यहीं गुजरा है इसलिए हम ने अमेरिका आने से मना कर दिया. नतीजा यह हुआ कि उस ने हमें खर्चे के पैसे भेजने बंद कर दिए. आखिर में थकहार कर हमें अमेरिका जाना ही पड़ा.

वीणा और प्रेमा की तरह कितनी ही बेबस बूढ़ी और लाचार मांएं हैं जो अपने बच्चों के घर में ही नौकरानी जैसी बन गई हैं. अगर वे इस के खिलाफ जाती हैं तो उन को अपने बुढ़ापे का सहारा खोना पड़ता है. इसलिए वे नौकरानी बनना कुबूल कर लेती हैं या फिर उन्हीं के साथ रहने का फैसला करती हैं.

मिशन ऐडमिशन : सपना जो अधूरा रह गया

जून की उमसभरी गरमी में डीयू, जो छात्रों के लिए आज एक ड्रीम यूनिवर्सिटी बन गई है, में ऐडमिशन की ख्वाहिश मन में लिए, हाथ में 95 प्रतिशत के 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम के साथ साक्षी व सृष्टि नौर्थ कैंपस के एक कालेज से दूसरे कालेज में चक्कर लगालगा कर थक चुके हैं. उन्हें अपना दिल्ली यूनिवर्सिटी का मिशन ऐडमिशन का सपना असफल होता दिखाई दे रहा है.

‘‘यार, अब क्या होगा, हमारी सारी मेहनत बेकार हो गई. सालभर जम कर पढ़ाई की, सब से अच्छे कोचिंग सैंटर से कोचिंग ली. पूरे साल स्मार्टफोन, सोशल ऐक्टिविटीज यानी एफबी, वाट्सऐप सभी को अलविदा कर दिया. कोई पार्टी अटैंड नहीं की, कोई मूवी नहीं देखी, कहीं आउटिंग के लिए नहीं गए. हर हफ्ते स्कूल कोचिंग के टैस्ट दिए. रातरात भर जाग कर पढ़ाई की, 95 प्रतिशत मार्क्स भी आ गए. पूरी उम्मीद थी डीयू के अच्छे कालेज में मनपसंद विषय मिल ही जाएगा. ममापापा भी बहुत परेशान हैं. इतने अच्छे मार्क्स लाने का भी फायदा न हुआ.’’

साक्षी व सृष्टि होनहार स्टूडैंट्स हैं जिन्होंने हाई पर्सेंटेज के लिए पूरे साल पापड़ बेले क्योंकि उन का एक ही सपना था डीयू यानी पौपुलर यूनिवर्सिटी में उन्हें ऐडमिशन लेना लेकिन दिनोंदिन सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती डीयू की हाई कटऔफ को पूरा करना आज किसी भी छात्र के लिए ऐवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ने जैसा हो गया है. उन्हें लग रहा है कि वे अपनी जंग हार गए हैं और भविष्य की उन की सभी योजनाएं, सारे प्लान रेत के महल की तरह भरभरा कर ढह गए हैं.

डीयू हर छात्र का सपना

दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना हर छात्र का सपना होता है. हर होनहार छात्र अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए यहां दाखिला लेना चाहता है. डीयू की रैपुटेशन उन्हें आकर्षित करती है क्योंकि डीयू का नाम सुनते ही कंपनीज जौब देती हैं. डीयू का इंप्रैशन अपनेआप में अलग होता है लेकिन हाई कटऔफ उन के सपनों पर रोक लगा देती है और उन्हें प्राइवेट कालेजों की ओर रुख करना पड़ता है, जहां की रैपुटेशन वैसी नहीं होती, ऊपर से आसमान छूती फीस मातापिता की जेब पर भारी पड़ती है.

सक्षम को भी पूरा विश्वास था कि 97 प्रतिशत अंक के साथ उसे हिंदू कालेज में उस के मनपसंद विषय इंगलिश (औनर्स) में दाखिला मिल जाएगा और वह आगे चल कर कंपेरेटिव लिटरेचर में रिसर्च करेगा. लेकिन हाई कटऔफ के चलते उस की योजनाएं असफल हो गईं.

आसमान छूती कटऔफ लिस्ट

दिल्ली यूनिवर्सिटी की आसमान छूती कटऔफ लिस्ट के बाद कैंपस में दिख रहे नए छात्रों के चेहरों पर मायूसी का रंग देखने को मिल रहा है. आइए, नजर डालते हैं कुछ पौपुलर कालेजों की कटऔफ लिस्ट पर. बीकौम (औनर्स) की कटऔफ हिंदू कालेज में 99.75 प्रतिशत गई है वहीं हिस्ट्री (औनर्स), पौलिटिकल साइंस (औनर्स), हिंदी (औनर्स), संस्कृत (औनर्स), मैथ्स (औनर्स) और स्टेटिस्टिक्स (औनर्स) की सभी सीटें फुल हो चुकी हैं. ऐसा ही हाल किरोड़ीमल कालेज, लेडी श्रीराम कालेज का भी है. 11 कालेजों ने इंगलिश (औनर्स) के ऐडमिशन बंद कर दिए हैं. अधिकांश कालेजों में सैकंड कटऔफ लिस्ट में मात्र 0.25 प्रतिशत से 0.75 प्रतिशत की ही गिरावट आई है. 54 हजार सीटों के लिए 61 कालेजों में 2.7 लाख छात्रों ने अपना दांव लगाया है. देखते हैं कौन मिशन ऐडमिशन की जंग जीत पाता है.

शिकार सीबीएसई टौपर भी

अच्छे परीक्षा परिणाम के बाद भी मनपसंद कालेज या विषय में ऐडमिशन न मिलने का दर्द 95 प्रतिशत या उस से अधिक प्रतिशत लाने वाले छात्रों के साथसाथ सीबीएसई टौपर सार्थक अग्रवाल ने भी महसूस किया. कोई सीबीएसई बोर्ड में टौप कर के 99.6 प्रतिशत अंक लाए और उस के बाद भी उसे वेटिंग लिस्ट में चौथा नंबर मिले तो उस से कम अंक वाले छात्रों का क्या होगा, यह तो आसानी से समझा जा सकता है.

आप को जान कर हैरानी होगी कि सीबीएसई टौपर सार्थक अग्रवाल को भी सैंट स्टीफेंस कालेज की फ्रैश लिस्ट में जगह नहीं मिली. वेटिंग लिस्ट में उस का चौथा नंबर रहा और उसे श्रीराम कालेज औफ कौमर्स में इकोनौमिक्स (औनर्स) में दाखिला लेना पड़ा. कुछ छात्र तो ऐसे भी हैं जिन्हें 97 प्रतिशत अंक लाने के बाद भी स्पोर्ट्स कोटे से ऐडमिशन लेना पड़ा है. जब किसी छात्र को 1 या 2 अंकों से किसी कालेज में ऐडमिशन नहीं मिल पाता तो वह उस के लिए बहुत ही तकलीफदेह होता है.

आप को जान कर हैरानी होगी कि डीयू में कुल सीटों की महज 5 प्रतिशत सीटें ही स्पोर्ट्स और ईसीए यानी एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के लिए होती हैं. और इस बार अच्छे प्रतिशत लाने वाले छात्र भी इस कोटे के तहत दाखिला लेने वालों की रेस में हैं.

हताशा भरी दौड़

बालभारती पब्लिक स्कूल, पीतमपुरा, दिल्ली की छात्रा ऐश्वर्या कपूर, जिस ने 12वीं कक्षा में 95.2 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं, का सपना था डीयू के अच्छे कालेज में बीकौम में ऐडमिशन लेना. इस के लिए पूरी रात जागजाग कर पढ़ना, घर में कर्फ्यू का सा माहौल, अपने इलाके के सब से अच्छे कोचिंग सैंटर से कोचिंग, अच्छी पर्सेंटेज लाने का दबाव, पेरैंट्स की जुड़ी उम्मीदें, यानी सारी मेहनत पर एक बार में ही पानी फिर गया जब उसे 95 प्रतिशत अंक लाने के बाद भी अपनी पसंद के कालेज में ऐडमिशन नहीं मिला.

ऐश्वर्या कपूर की मां मोनिका कपूर इस बारे में गुस्से व निराशा से कहती हैं, ‘‘क्या फायदा इतनी पढ़ाई, इतनी मेहनत, इतने पैसे खर्च करने का? पहले स्कूलों की महंगी फीस, फिर कोचिंग की फीस, बच्चों का दिनरात एक कर देना, उस के बाद भी अच्छे कालेज में ऐडमिशन न मिलना. बहुत फ्रस्ट्रेशन होती है इस सिचुएशन से. क्या 95 प्रतिशत अंक लाने वाला हमारा बच्चा नालायक है जो उसे डीयू में ऐडमिशन नहीं मिला? समझ नहीं आता हाई पर्सेंटेज की यह रेस कहां तक जाएगी. हम अपनी जिंदगीभर की जमापूंजी बच्चों की शिक्षा पर लगा देते हैं ताकि उन्हें उज्ज्वल व सुरक्षित भविष्य मिले लेकिन दिनोंदिन बढ़ती हाई कटऔफ और 1-1, 2-2 नंबर से बच्चों को ऐडमिशन न मिलना उन्हें हताश व निराश कर देता है.’’

ऐसे ही कुछ हालात का सामना कर रही है सीबीएसई बोर्ड में 95 प्रतिशत अंक लाने वाली सचदेवा पब्लिक स्कूल, रोहिणी, दिल्ली की छात्रा सृष्टि. उसे पूरी उम्मीद थी कि इतनी अच्छी पर्सेंटेज से उसे अपने मनचाहे कालेज में मनचाहा विषय मिल जाएगा. लेकिन दिनोंदिन बढ़ती हाई कटऔफ ने उस की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है.

सृष्टि की मां संगीता अपनी बेटी के ऐडमिशन न होने से बहुत निराश हैं, कहती हैं, ‘‘क्या मतलब रह जाता है इतनी हाई पर्सेंटेज लाने का? समझ नहीं आता आगे आने वाले वर्षों में क्या होगा? पढ़ाई का बढ़ता प्रैशर, महंगी होती शिक्षा, कोचिंग सैंटरों का चलन, वहां ऐडमिशन की मारामारी बच्चों के साथसाथ पेरैंट्स को भी हताश और निराश कर रही है.’’

 हाई कटऔफ के चलते छात्रों को ऐसे विषय और कालेज में ऐडमिशन लेना पड़ता है जहां न तो विषय उन की पसंद का होता है और न ही कालेज. और उन्हें सालभर दूसरे क्षेत्रों में भी औप्शन ट्राई करते रहना पड़ता है. प्राइवेट कालेजों की महंगी फीस भरना मातापिता की मजबूरी होती है, जहां न तो पढ़ाई ज्यादा अच्छी होती है, न जौब की गारंटी होती है

ऐसा भी होता है

मेरा मित्र रोहन एक दिन मंडी हाउस स्थित एक थिएटर की बिल्ंिडग में लगे नाटकों के पोस्टर देख रहा था. तभी एक रंगकर्मी आया और रोहन के पास आ कर बोला, ‘‘भाईसाहब, क्या आप अपनी यह शैडो कैप थोड़ी देर के लिए दे सकेंगे? नाटक के सामान में मिल नहीं रही है. हम आप को इस के एवज में 100 रुपए देंगे और नाटक के बाद कैप वापस भी कर देंगे.’’ मित्र बोला, ‘‘मैं तब तक क्या करूंगा?’’

 वह बोला, ‘‘आप भी अंदर बैठ कर मुफ्त में नाटक देखिएगा.’’ उस ने नाटक देखा और 100 रुपए भी कमाए. कभीकभी ऐसा भी होता है.

मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.)

मेरे भाईभाभी फर्नीचर पसंद कर रहे थे. दुकान वाले ने एक आदमी साथ कर गोदाम में भेज दिया. वे उस आदमी के पीछे चलने लगे. वह आदमी एक चौड़ी गली में घुसा. वे दोनों भी पीछेपीछे चले. थोड़ा चल कर वह पतली गली में घुसा. वे दोनों भी उस के पीछे चलते गए. वह आदमी एक मकान में घुसा. वे दोनों भी. वह व्यक्ति एक कमरे में घुस कर अलमारी खोलने लगा तो उन्होंने सोचा कि गोदाम की चाबी ले रहा होगा और कमरे में जैसे ही घुसे, उस आदमी ने पलट कर पूछा, ‘‘कैसे?’’

वे बोले, ‘‘कैसे क्या? गोदाम कहां है तुम्हारा?’’

‘‘कौन सा गोदाम?’’ फिर उन्हें थोड़ी देर में समझ में आया कि जिस समय भाभी सैंडिल में अटकी साड़ी छुड़ा रही होंगी, उस दौरान ध्यान हटने के कारण वे गलत आदमी के पीछे चलने लगे थे. यदि उस दिन भाभी साथ न होतीं तो भाई की शामत आ जाती. इस घटना पर हम सब खूब हंसे कि जिंदगी में ऐसा भी होता है.

डा. कंचन छिब्बर, आगरा (उ.प्र.)

मैं रेलगाड़ी से मुंबई जा रही थी. मेरी सीट के सामने एक मांबेटी बैठी थीं. यात्रा के दौरान वे मेरे साथ घुलमिल गईं. खाना खाने के बाद उस महिला ने मिठाई का डब्बा निकाला और मुझ से लेने का आग्रह करने लगी. शिष्टाचारवश मैं ने मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और खाने लगी. तभी उस महिला ने कहा, ‘‘बहनजी, आप ने मुझ अजनबी पर इतना विश्वास कर लिया. यदि इस में नींद की दवा मिली हुई होती और आप बेहोश हो जातीं, तब आप का क्या हश्र होता? आजकल जहरखुरानी की कितनी घटनाएं घट रही हैं, आप को पता नहीं है?’’

मैं ने कहा, ‘‘माफ करना, सच में मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. आगे से ऐसा नहीं होगा.’’ 

ईशू मूलचंदानी, बेंगलुरु (कर्नाटक)

दूसरे बैंक के एटीएम के इस्तेमाल पर शुल्क

बेंगलुरु के एक एटीएम पर महिला के साथ हुई हिंसा की घटना के बाद बैंकों पर एटीएम की सुरक्षा के लिए सुरक्षा गार्ड नियुक्त करने का दबाव बढ़ा तो बैंकों में खलबली मच गई है. देशभर में फैले करीब डेढ़ लाख एटीएम के लिए सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था पर बैंकों को भारी पैसा खर्च करना पड़ रहा है. बैंकों को इस अतिरिक्त खर्च से बचाने के लिए भारतीय बैंक संघ यानी आईबीए ने रिजर्व बैंक को दूसरे बैंकों के एटीएम इस्तेमाल करने पर शुल्क लगाने का सुझाव दिया है.

फिलहाल यह सुझाव शहरी क्षेत्र के बैंकों के लिए है लेकिन बाद में यह व्यवस्था छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी लाई जा सकती है. छोटी जगह पर ग्राहकों के लिए बैंक और एटीएम ही नहीं हैं. अगर हैं तो उन की संख्या बहुत कम है. ऐसे में यदि दूसरे बैंक के एटीएम से पैसा निकालने पर शुल्क लगाने की बात है तो यह निश्चित रूप से अच्छा सुझाव नहीं है. दूसरे बैंक के एटीएम से माह में 5 से अधिक बार पैसा निकाला जाता है तो बैंक प्रति निकासी पर 20 रुपए शुल्क लेता है, अब यदि प्रत्येक निकासी पर शुल्क का प्रावधान होता है तो यह ग्राहकों को परेशान करने वाला फैसला होगा. इस से बेहतर होता कि बैंक तालमेल से स्थानों का चयन कर के मिल कर एटीएम लगाएं और मिल कर उस के रखरखाव की व्यवस्था करें. कुछ एटीएम कई दिनों तक खराब पड़े रहते हैं, उन में पैसा नहीं होता है. कुछ स्थानों पर एक साथ कई बैंकों के एटीएम हैं लेकिन उन की परवा किसी को नहीं है. छोटे शहरों, कसबों और ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालत खराब ही है.

उद्यम विकास के लिए ऐसा पहली बार होगा

सरकार देश में उद्यम विकास को बढ़ावा देने के लिए नया प्रयोग कर रही है. उस की योजना जल्द से जल्द उद्योग शुरू करने के लिए निधि उपलब्ध कराने व उसे तकनीकी तथा व्यावसायिक सहायता देने के वास्ते एक विश्वसनीय मंच स्थापित करने की है. इस के लिए टैक्निकली बिजनैस इंक्यूवेटर-टीबीआई बनाया जाएगा जो तत्काल उद्यम शुरू करने के लिए उद्यमी को आवश्यक सहयोग उपलब्ध कराएगा. इस में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी तथा एनआईटी और सीएसआईआर के विशेषज्ञ शामिल होंगे. तकनीकी विशेषज्ञों के इस दल की प्रतिभा का लाभ वित्तीय स्थिति के कारण निवेशक लेने से असमर्थ नहीं रहे, इस के लिए बैंकों, वित्तीय संस्थानों तथा निवेशकों की एक संयुक्त निधि होगी जहां से उद्योग शुरू करने के लिए आवश्यक मदद उपलब्ध कराई जाएगी.

उद्यम विकास का यह देश में अपनी तरह का पहला विकास मौडल होगा. इस तरह का मौडल अमेरिका और इसराईल के पास है. सरकार अपने इस आइडिया को जल्द ही क्रियान्वित करने के लिए काम कर रही है. यह योजना यदि लागू होती है तो देश में अगले एक दशक के दौरान उद्यम विकास को नई ऊंचाई मिल सकती है. एक अनुमान के अनुसार, अगले 10 वर्षों के उद्योगों के विकास के लिए 3 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी. हमारे यहां सालाना उद्योग विकास में सिर्फ 1,200 करोड़ रुपए का निवेश होता है जबकि चीन तथा अमेरिका में यह दर इस से ढाई गुना अधिक है. चीन की औद्योगिक विकास की दर हम से ढाई गुना ज्यादा है फिर भी हम इसे आर्थिक विकास की दर पर अपना प्रतिस्पर्धी मानते हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार का यह प्रयास रंग लाएगा और अगले एक दशक में हम मजबूत औद्योगिक विकास की सीढि़यों पर खड़े होंगे.

 

सरकारी संचारसेवा के अच्छे दिन की उम्मीद

देश में संचार क्रांति के इस दौर में 2 सरकारी कंपनियों को श्वास लेने में भी दिक्कत हो रही है. इस के ठीक विपरीत निजी क्षेत्र की संचार कंपनियां भारत में संचार क्रांति का लाभ उठा कर स्वयं का अच्छा पोषण कर रही हैं. निजी क्षेत्र की मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की वाली कहावत को सही साबित कर रही हैं.

परेशान सरकारी क्षेत्र की भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टैलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) हैं. इन दोनों कंपनियों को अपनी खराब स्थिति का आईना देश में लागू पोर्टेबिलिटी व्यवस्था के दौरान जरूर देखने को मिला होगा लेकिन मोटी तनख्वाह पा कर तोंद फुला रहे इन निगमों के अधिकारी शायद तब भी चैन की नींद सोते रहे. उन के पास बेहतर नीतियां और मजबूत ढांचागत व्यवस्था है लेकिन उन्हें तो जैसे काम ही नहीं करना है. इन दोनों के नैटवर्क उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द हैं और पूछताछ केंद्र पर बैठे पक्की नौकरी वाले कर्मचारी लापरवाह हैं.

निजी क्षेत्र के सेवा प्रदाता सिर्फ कमाई में जुटे हैं. वे उल्टीसीधी कौल के जरिए उपभोक्ताओं को घेरे रहते हैं और उन का पैसा काटने की जुगत में रहते हैं. उन की ग्राहक सेवा सिर्फ कंप्यूटर में फीड है और उन के ग्राहक सेवा केंद्र के कर्मचारी से बात करना उपभोक्ताओं के लिए आसान नहीं होता. वहीं, सरकारी कंपनियां ग्राहक से वाजिब पैसा लेती हैं. नैटसेवा है तो खर्च हुई एमबी का और शेष बची एमबी का विवरण देती हैं. ये ग्राहक को संतुष्ट तो करती हैं लेकिन सेवा परेशान करने वाली हैं. संचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इन दोनों कंपनियों में सुधार लाने का वादा किया है लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट कह दिया है कि उन्हें मदद का रिटर्न चाहिए. रिटर्न तब ही मिलेगा जब डंडा बजेगा. सरकार जिस दिन चाहे इन कंपनियों की हालत सुधार सकती है लेकिन सुधार के लिए उस में इच्छाशक्ति जरूरी है. उम्मीद है कि संचार मंत्री देश की जनता को इन दोनों कंपनियों से लुभावने वादे के साथ ही लुभावनी सेवा भी दिलाएंगे.

 

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