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पत्नी की मां के मकड़जाल में फंसती पतिपत्नी की शादी

Husband wife:‘कोरा कागज’ फिल्म को रिलीज हुए 50 साल होने को हैं लेकिन बेटी की शादीशुदा जिंदगी में जहर घोलने वाली मां आज भी मौजूद है. बेटियां अब भी फिल्म की नायिका अर्चना जैसी, नादान दब्बू या कमजोर कुछ भी कह लें, होती हैं जो खामोशी से मां को अपने घर में आग लगाते देखती रहती हैं पर हिम्मत जुटा कर यह नहीं कह पातीं कि प्लीज ममा, हमारे बीच में मत बोलो, हमारी जिंदगी और हमारे छोटेमोटे झगड़े हम मैनेज या सौल्व कर लेंगे और अगर आप की मदद या सलाह की जरूरत पड़ी तो लेने में हिचकिचाएंगे नहीं.

भोपाल के पौश इलाके शाहपुरा में रहने वाली 38 वर्षीया मीनाक्षी की मानें तो उस की कहानी ‘कोरा कागज’ फिल्म से 80 फीसदी मिलतीजुलती है. मीनाक्षी सरकारी नौकरी में अच्छी पोस्ट पर है. उस की शादी हुए 8 साल हो गए हैं. पति रवि भी केंद्र सरकार की नौकरी में हैं. दोनों ने अपनी पसंद से शादी की थी जो अब टूटने की कगार पर है. अब उस पर अदालती मोहर भर लगना बाकी है. क्यों टूट रही है एक और शादी जबकि पतिपत्नी में कोई खास मतभेद नहीं है, इस की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं.
मीनाक्षी तब मिडिल स्कूल में थी जब मम्मीपापा का तलाक हो गया था. उसे ज्यादा कुछ याद नहीं. हां, यह जरूर मालूम था कि पापा ने तलाक के तुरंत बाद दूसरी शादी कर ली थी. मम्मी स्कूलटीचर थीं, उन्होंने तलाक का सदमा बरदाश्त करते उसे पिता बन कर भी पाला. अच्छा पढ़ायालिखाया, संस्कार दिए, कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी और आज के दौर के हिसाब से आजादी भी दी जिस का कि उस ने कभी गलत फायदा नहीं उठाया.

रवि से प्यार तो उसे इंदौर में कोचिंग के दौरान ही हो गया था लेकिन शादी के बारे में उन्होंने तय किया था कि नौकरी लगने के बाद ही करेंगे. ऐसा हुआ भी. नौकरी लगने के एक साल बाद ही जब मीनाक्षी ने रवि से शादी करने का फैसला लिया तो मम्मी ने उस का साथ ही दिया और धूमधाम से शादी की. बेटी की शादी को ले कर जो खटका या गिल्ट, कुछ भी कह लें, उन के मन में था वह बगैर किसी झंझट के खत्म हो गया था. रवि और उस के घर वाले भी मम्मी को पसंदआए थे. तब दोनों परिवारों के बीच ये डायलाग बहुत कहेसुने गए थे कि आजकल जमाना बहुत बदल गया है अब लड़की और लड़के में कहनेभर का फर्क बचा है और दामाद बेटे से कम नहीं होता. उस की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह पत्नी के घर का खयाल रखे और उस की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाए.

रवि को उस ने काफी पहले ही मम्मीपापा के तलाक के बारे में बता दिया था जिस के बारे में रवि का कहना था कि यह कोई बड़ा इशू नहीं है. इस की बेवजह चर्चा न की जाए. रवि की बहुत सी बातों के साथ यह अदा भी मीनाक्षी को लुभाती थी कि वह अतीत और अप्रिय बातों को रोते रहना पसंद नहीं करता था.

शादी के वक्त रवि की पोस्टिंग जबलपुर में थी और मीनाक्षी की ग्वालियर में, तब दोनों ने तय किया था कि हफ्तेपंद्रह दिनों में वे भोपाल आ जाया करेंगे. इस से मम्मी को भी अच्छा लगेगा और रवि भी अपने घर में रह लेगा. इसी दौरान दोनों के घर वाले भी मिलजुल लिया करेंगे. एक साल ठीकठाक गुजरा. रवि और मीनाक्षी दोनों बेचैनी से वीकैंड का इंतजार करते थे और शुक्रवार की रात अपनीअपनी ट्रेनें पकड़ लेते थे.

ऐसे ही एक दिन भोपाल में मीनाक्षी की मम्मी ने उस के ट्रांसफर की बात चलाई कि वह अगर भोपाल हो जाए तो सभी को सहूलियत रहेगी. उन की दलील यह थी कि रवि तो केंद्र सरकार का कर्मचारी है, इसलिए तबादले में दिक्कत जाएगी लेकिन थोड़ी कोशिश करने पर मीनाक्षी का ट्रांसफर भोपाल हो सकता है.

इस बात का चूंकि रवि के पेरैंट्स ने भी समर्थन किया था, इसलिए वह कुछ नहीं बोल पाया वरन उस की तो इच्छा थी कि मीनाक्षी का ट्रांसफर जबलपुर ही करा ले. पतिपत्नी एक जगह रहें, सरकार की इस नीति के तहत ट्रांसफर जल्द हो जाएगा. बाद में कभी देखा जाएगा या फोन पर कभी मीनाक्षी को दिल की बात बताऊंगा तो वह समझ जाएगी, यह सोचते वह खामोश रहा. लेकिन हैरान उस वक्त रह गया जब 15 दिनों बाद ही मीनाक्षी का भोपाल का ट्रांसफर और्डर आ गया. मीनाक्षी यह सोचते हुए बहुत खुश थी कि अब फिर मम्मी के पास रहेगी और रवि से मिलने के लिए भागादौड़ी भी नहीं करना पड़ेगी. अपनी खुशी रवि से उस ने शेयर की, साथ ही, यह भी बताया कि मम्मी ने ट्रांसफर के लिए किसी दलाल को 2 लाख रुपए भी दिए हैं.

बस, यहीं से बात बिगड़नी शुरू हुई. बकौल मीनाक्षी, वह खुशीखुशी में समझ ही नहीं पाई कि रवि को यह बात नागवार गुजरी है और इस तरह करवाए गए ट्रांसफर को वह हम दोनों के बीच दरार डालने के तौर पर देख रहा है. कई दिनों तक वह इस संबंध में कुछ नहीं बोला लेकिन बात मीनाक्षी से छिपी न रही जब उस ने अंतरंग क्षणों में रवि के इस उखड़े मूड की वजह जाननी चाही तो उस ने अपने मन की बात जाहिर कर दी. मीनाक्षी ने उस की तकलीफ समझी और तुरंत सौरी बोल दिया तो रवि का मन हलका हो गया. लेकिन उस ने यह समझाइश भी सर्द लहजे में दे दी कि कोशिश करना कि आइंदा मम्मी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण न करें.

लेकिन अतिक्रमण तो हो चुका था. बस, इस नए बसे घर की टूटफूट बाकी थी. अगले 3 साल मीनाक्षी पति और मम्मी के बीच पिसती रही. अकसर ऐसा होने लगा था कि वह फोन करता तो वह मम्मी के साथ बैठी होती थी या उन्हीं के साथ बाजार या नए बने मौल में होती थी. घर में हो, तो रूम में जा कर बात की जा सकती थी और ऐसा वह करती भी थी लेकिन बाजार या डाक्टर के यहां होने पर ऐसा होना संभव नहीं हो पाता था. ऐसा हालांकि बहुत कम बार हुआ कि उसे रवि से यह कहना पड़ा हो कि घर पहुंच कर बात करती हूं पर कई बार ऐसा उस वक्त हुआ जब रवि उस से बात करने के लिए कोचिंग के दिनों से भी ज्यादा बेचैन दिखा. और इस दौरान अगर उस ने फोन पर सूंघ भी लिया कि मैं मम्मी के पास हूं तो वह फिर सहज हो कर बात नहीं कर पाता था और जल्द बात खत्म करने की कोशिश ‘हांहूं’ करते करता था.

तब मुझे समझ नहीं आता था कि एक मकड़ी मेरी जिंदगी की खुशियों और सुखों के इर्दगिर्द जाला बुन रही है जिस में मैं धीरेधीरे कुछ जाने, कुछ अनजाने में मक्खी की तरह फंसती जा रही हूं. रवि ने अब भोपाल आना भी कम कर दिया था. उस की बातों में अब पहले सी गरमाहट भी नहीं रह गई थी.

जिंदगी फिर दरकती सी महसूस हुई तो मीनाक्षी ने फिर रवि को टटोला. लेकिन इस बार उस ने साफसाफ कह दिया कि यह सब ठीक नहीं हो रहा है. तुम चूंकि मम्मी के पास रह रही हो, इसलिए अब मेरी परेशानी और तकलीफ समझ नहीं पाओगी. यह ठीक है कि शादी के पहले हुए डिस्कशन में हम दोनों ने इस सिचुएशन को समझा था और इस का हल भी निकाला था कि मम्मी को अकेलापन महसूस न हो, इसलिए तुम जब चाहो उन से मिल लो. कुछ दिन उन के साथ भी रह लो लेकिन अब हो उलटा हो रहा है. तुम मम्मी की देखभाल के नाम पर मुझे और मेरे घर वालों को इग्नोर कर रही हो. क्या मेरे मम्मीपापा को नहीं लगता होगा कि बहू कुछ दिन उन के पास भी रहे. आखिर उन की भी तो कुछ इच्छाएं होगीं. उन्हें भी तो चार लोगों और रिश्तेदारों में जवाब देना पड़ता होगा. तुम 8-10 दिनों में 2-3 घंटों के लिए उन के पास जाती हो, उस पर भी अपनी मम्मी को पर्स की तरह लटका कर ले जाती हो, सो लगता ऐसा है कि बहू नहीं बल्कि कोई मेहमान आया है. क्या तुम्हारी मम्मी को ये बातें समझ नहीं आतीं जो वे तुम्हें दूधपीती बच्ची की तरह गले से लिपटाए रखती हैं.

उस दिन उस ने पहली दफा इतने सख्त लहजे में बात की थी कि मैं वहीं फूटफूट कर रोने लगी. एक तरफ मम्मी थीं जिन का ब्लडप्रैशर अकसर हाई रहने लगा था और ब्लडशुगर भी हर कभी बढ़ जाती थी और दूसरी तरफ रवि था जो समझता था कि मैं जानबूझ कर मम्मी की बीमारी और सेहत को बढ़ाचढ़ा कर बताते उस की और ससुराल की अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती हूं और यह सब मम्मी प्लांट कर रही हैं. जबकि, ऐसा हरगिज हरगिज नहीं था मैं तो एक ऐसे रास्ते की तलाश में थी जिस से दोनों तरफ आ-जा सकूं. यह कहावत मैं भूलने लगी थी कि 2 नावों के सवार को कभी किनारा नहीं मिलता.

अगले कुछ महीने इसी तनाव में गुजरे. अब यह तनाव मैं मम्मी से छिपा नहीं सकी और उन्हें सबकुछ बता दिया. उस रात उन की तबीयत फिर बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा. सुबह उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया लेकिन उन की हालत ठीक नहीं थी. रवि को फोन किया तो वह बेहद सधी आवाज में बोला, ‘देख लो मेरी जरूरत हो तो बता देना, दोस्तों को बोले देता हूं कोई इमरजैंसी हो तो उन्हें बुला लेना.’

बकौल मीनाक्षी, अब कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. रवि का औपचारिक लहजा बता रहा था कि उस की कोई दिलचस्पी अब मेरी परेशानियों में नहीं रही. यह बिलकुल पहाड़ टूटने जैसी बात थी जिस के बारे में खुल कर अब मैं मम्मी को भी नहीं बता सकती थी.

वक्त ऐसे ही गुजरता रहा. अब तो समझने वाले भी समझने लगे थे कि हमारे बीच सबकुछ ठीक नहीं है. सासससुर के बातचीत करने का लहजा भी रवि जैसा होता जा रहा था, जिस के बारे में मम्मी ने एक कहावत के जरिए बताया था कि घुटना पेट की तरफ ही मुड़ता है.

तब मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि यह जाला मम्मी बुन रही थीं जिस में से मैं चाह कर भी नहीं निकल पा रही. एक तरह से मम्मी ने मुझे उस में ही छटपटाने को मजबूर कर दिया है. मुझे एकाएक ही मम्मी बहुत खुदगर्ज नजर आने लगीं थीं जिन्होंने अपने सुख और सहूलियत के लिए मेरे और रवि के बीच एक ऐसी खाई खोद दी थी जिसे पाटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो गया था. सबकुछ सामने होते हुए भी कभी उन के मुंह से यह नहीं निकला कि जा बेटी अपने पति के पास चली जा, मेरा क्या है, मैं तो रह लूंगी. जिंदगी अब बची ही कितनी है. उलटे, हर वक्त वे मुझे यह एहसास कराती रहीं कि मेरे बगैर उन का रहना बहुत मुश्किल है.

हां, दिखावे को जरूर वे कभीकभार कहती हैं कि, ‘मेरा क्या है मैं तो हमेशा से अकेली रही हूं. पहले तेरा बाप चरित्रहीन होने का झूठा लांछन लगा कर चला गया. अब रवि समझता है कि मैं अपने स्वार्थ के लिए तुझे उस से दूर कर रही हूं. जबकि ऐसा है नहीं. कौन मां ऐसा चाहेगी. मैं ने तो यह समझा था कि मुझे दामाद नहीं बल्कि बेटा मिल गया है जो मेरे दुख को समझेगा लेकिन वह भी मुझे समझ नहीं पाया. तेरा जब मन करे उस के पास चली जाना. अगर मना करे तो मैं उस के पांवों में सिर रख कर अपनी गलतियों के लिए माफी मांग लूंगी.’

मीनाक्षी की समझ में सब आ रहा है कि गड़बड़ कहां है. एक तरफ खुद को असुरक्षित समझने वाली मम्मी हैं तो दूसरी तरफ उन्हें खुदगर्ज करार दे चुका रवि है जिस ने पिछली बार प्यारव्यार, शादीवादी सब भूलते बेहद बाजारू शब्दों में यह कह दिया था कि तुम्हारे बाप ने तुम्हारी मां को यों ही तलक नहीं दे दिया होगा.

तब ऐसा लगा था कि भरे चौराहे पर किसी ने मां की गाली दे दी हो और हम में और झुग्गीझोंपड़ी वालों में जो कथित फर्क है वह खत्म हो गया है. यह कोई बेटी बरदाश्त नहीं कर सकती हालांकि किसी ने ऐसा कहने की हिम्मत की तो उस की भी वजह यों ही नहीं पैदा हो गई थी. मीनाक्षी अब पहले के मुकाबले बेहद सुकून महसूस कर रही है. उस ने और रवि ने परस्पर सहमति से तलाक की अर्जी दायर कर दी है जिस का फैसला एकाधदो पेशियों में हो जाएगा और दोनों एक ऐसे बंधन से मुक्त हो जाएंगे जिस में, दरअसल, वे कभी बंध ही नहीं पाए थे.

मीनाक्षी को इस बात का भी एहसास है कि यह तलाक वह मां के नहीं बल्कि अपने दम पर ले रही है. वह मां के प्रति अपना फर्ज निभा रही है. मम्मी अगर, बकौल रवि, खुदगर्ज हैं तो यही सही. उन्होंने जो किया और आज वे उस की कीमत वसूलना चाहती हैं तो वसूल लें और अपनी जिंदगी का अक्स अपनी बेटी की आने वाली जिंदगी में देख लें. उन के पास तो फिर भी मैं थी लेकिन मेरे पास कौन है जिस का मुंह देख कर मैं जिंदगी काट लूं. और अच्छा भी है कि कोई नहीं है, वरना शायद मैं भी यही वसूली करती जिस की सजा कोई रवि भुगतता. फिर भी न जाने क्यों मन में यह बात सालती रहती कि रवि अगर थोड़ा सा समझौता और कर लेता तो जिंदगी कुछ और होती. फिर लगता है कि मम्मी ही अगर समझ से काम लेतीं तो किसी समझौते की नौबत ही क्यों आती.

कई देशों में धर्म का अधर्मी प्रयोग कर रहे

दुनिया में 3 जगहें मुख्य मानी जा सकती हैं जहां धर्म का बोलबाला है. इन देशों के नागरिकों को धर्मजनित संतोष, सुख, अन्याय, युद्ध, भूख, गरीबी, नरसंहार ?ोलना पड़ रहा है. ये जगहें या देश हैं- अफगानिस्तान, इजराइल और भारत. इन तीनों देशों में धर्म सत्ता पर चढ़ कर बैठ गया है और एक धर्म के कुछ लोग इस का लाभ उठा रहे हैं तो कई धर्मों वाले निशाने पर हैं.

धर्मों से औरतों के अधिकार कम हो हो रहे हैं. भारत में यूनिफौर्म सिविल कोड के नाम पर युवतियों पर तरहतरह के बंधन थोपे जा रहे हैं ताकि हर काम धर्मसम्मत विधियों से हो जिस से धर्म के ठेकेदारों को मोटी दक्षिणा मिले. औरतों के अधिकार पौराणिक युग में कितने थे, यह पार्वती के पिता दक्ष द्वारा यज्ञ के आयोजन में पुत्री के पति शिव को न बुलाने का प्रसंग से साबित है. यह सैकड़ों प्रसंगों में से एक है. पार्वती को कोई उपाय नहीं सू?ा कि वह पिता को राजी कर सके, इसलिए उस ने योगाग्नि से अपने को भस्म कर लिया.

युवतियों को आज भी शिक्षा यही दी जा रही है कि जो काम करो, अपने पिता, पति या भाई के हुक्म से करो जैसे इस कथा में था वरना जलने की नौबत आ जाएगी. ईरान में कितनी ही लड़कियों को सिर्फ स्कार्फ के नीचे बाल दिखने पर मार डाला गया है. अफगानिस्तान में तालिबानियों के खौफनाक कृत्य अब तो खबरों में भी नहीं आ रहे क्योंकि वहां कोई विदेशी संवाददाता ही नहीं है.

अगर राममंदिर के बाद दूसरे मंदिरों को मसजिदों की जगह बनाने की बात उठाई जा रही है तो असल में उद्धारक धर्म को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे सदियों से हुआ. हिटलर ने धर्म की खातिर उन यहूदियों को भून डाला जिन की संतानें आज फिलिस्तीन में अरब मुसलिमों को टैंकों से रौंद रही हैं. धर्म उस के पीछे मुख्य कारण है.

अफगानिस्तान में सत्ताधारी धार्मिक लड़ाके यानी तालिबान अपने धर्म इसलाम के ही लोगों पर वहशियाना अत्याचार कर रहे हैं. गरीबी और बीमारी से तो जनता त्रस्त है ही, नागरिक स्वतंत्रताएं भी नष्ट हो गई हैं. औरतों को धर्म के नाम पर घरों की चारदीवारियों में कैद किया जा चुका है. तालिबानियों ने इसलाम का मुखौटा ओढ़ कर अपना ‘तथाकथित इसलाम’ पूरे अफगानिस्तान में थोप दिया है. यह बड़ी बात है कि प्रमुख तालिबानियों के नेताओं ने अपने बच्चों को यूरोप, अमेरिका में भेज दिया है और उन्हें नियमित पैसे भी भेज रहे हैं.

सदियों दूसरों के निशाने पर रहे जूडाइज्म धर्म को मानने वाले यहूदियों ने अब अपना पुश्तैनी गुस्सा इजराइल में फिलिस्तीनी अरब मुसलिमों पर उतारना शुरू किया है और 1948 से इजराइल और उस के आसपास का इलाका लगातार गोलियां व बमों को सह रहा है. हालांकि इजराइल सुखीसंपन्न है पर यह भरोसा नहीं कि कब कहां से छापामार फिलीस्तीनी हमला कर दें. फिलिस्तीनी तो हमेशा ही बंदूक के बैरल का सामना करते रहते हैं और उन के यहां स्वाभाविक मौतें कम होती हों, गोलियों से ज्यादा मरते हों तो बड़ी बात नहीं.

भारत अब इन की गिनती में आ गया है. राम मंदिर के नाम पर भारतीय जनता पार्टी को 2014 में वोट क्या मिले, उस ने अपना पूरा जोर उसी शिगूफे पर लगा दिया और देश की राजसत्ता सिर्फ मंदिरमयी हो गई है. दिनभर में कोई घंटा ऐसा नहीं बीतता जब प्रधानमंत्री, कोई मुख्यमंत्री या कोई केंद्रीय मंत्री हिंदू धर्म का प्रचार करता नजर न आए. न्यूज चैनलों का काम यही रह गया है कि वे इन मंत्रियों के शब्दों को बढ़ाचढ़ा कर भोंपू की तरह फैलाएं और न केवल विधर्मियों के दिलों में दहशत पैदा करें बल्कि अपने धर्म के तार्किक व सम?ादार लोगों को भी डराएं.

अरबों नहीं, खरबों रुपए आज भारत में धर्म के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं क्योंकि शासनतंत्र उन हाथों में है जिन की पीढि़यों ने सदियों से कमा कर नहीं खाया. उन्होंने तो धर्म के नाम पर पैसा और शासन दक्षिणा में पाया है और वे इस अचूक आजमाए फार्मूले को अब न्योछावर नहीं करना चाहते.

धर्म का नाम ले कर वोट दुनिया के हर कोने में हथियाए जाते हैं क्योंकि धर्म के केंद्र हर गांव, कसबे में हैं और हर जगह एकदो नहीं, बीसियों तरह के धर्म मौजूद हैं. ज्यादातर धर्म अब इस बात पर सहमत हो गए हैं कि आपस में लड़ने की जगह, मिलबांट कर लूटना अच्छा है. यही नहीं, अगर धर्मों को आगे रख कर तनाव पैदा होता भी है तो उस से भी सभी धर्मों के दक्षिणापात्रों में पैसा बढ़ता है, प्रचारक मुफ्त में मिलते हैं और धर्मगुरुओं को सेविकाएं धन देने के साथ अपने तन को परोसती भी हैं.

धर्म का इस्तेमाल दूसरे धर्मों के खिलाफ करना अब कम होने लगा है. क्रूसेड जैसे युद्ध जो 11वीं शताब्दी में येरुशलम, जहां जीसस क्राइस्ट पैदा हुए, में हुए, मुसलिम शासकों से उसे छुड़ाने के लिए किए गए थे जिन में दोनों तरफ के लाखों मरे थे. उन युद्धों में आंशिक सफलता मिली. येरुशलम पर ईसाई शासकों का असल कब्जा आधुनिक तकनीकों के आने के बाद 17वीं सदी में हो पाया था. पर सभी धर्मों के राजा स्वधर्मियों से लड़ते रहे और अपने नागरिकों को मरवाते रहे. ईसाई हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध में करोड़ों सैनिक मरवा डाले थे जिन में से अधिकांश ईसाई थे और कुछ जरमनी के साथ लड़े रहे थे, कुछ अमेरिका, इंगलैंड, फ्रांस आदि के साथ.

तार्किक, लोकतांत्रिक, वैज्ञानिक क्रांति ने जो लाभ दुनिया को पहुंचाया था वह अब बिखरने लगा है. वैज्ञानिक अब मजदूर बन कर रह गए हैं. पुराने जमाने के आर्किटैक्टों और शिल्पकारों की तरह पिरामिडों, चर्चों, मंदिरों, मसजिदों को बनाने वालों का नाम कहीं नहीं है, बनवाने वाले राजाओं या धर्म के नाम हैं.

18वीं व 19वीं सदियों में वैज्ञानिकों के नाम हुआ करते थे, जो आज गायब हो गए हैं. धर्म ने कभी पैरवी नहीं की कि औरतों को सुरक्षा दी जाए, ?ाठ, हिंसा, लूट न हो. धर्म ने सड़कें, पुल, सराएं, नहरें, शहर नहीं बनवाए. धर्म सिर्फ पूजा की जगह बनवाता है और उस का केंद्र कोई देवी, देवता, दीवार, प्रतीक नहीं होता. वहां बड़ा सा डब्बा होता है जिस में पैसे डाले जाते हैं. सभी धर्मों के मुखिया राजाओं की तरह रहते हैं बड़े आलीशान महलों में जबकि जनता ठंड, गरमी, बरसात, धूप में अधकच्चे मकानों में. ईश्वर कृपा करेगा, भगवान भला करेगा, गौड विल टेक केयर आदि महावाक्य जनता को रातदिन सु?ाए गए लेकिन दुनिया ने धर्म के नाम पर अनाचार और अत्याचार ही ?ोला. पिछली 3-4 सदियों में वैज्ञानिक, वैचारिक व तार्किक क्रांतियां हुईं जिन के नतीजे में बहुत सी सुविधाएं तकनीक के कारण मिलीं, धर्म के सहारे नहीं. पर अब सूई वापस लौटने लगी है. धर्म का इस्तेमाल उन कामों के लिए किया जा रहा है जिन्हें अधर्म कहा जाता है. हालांकि, सच यह है कि हर धर्म में ऐसी किताबें हैं जिन में उसी धर्म के प्रतिष्ठित देवीदेवता, प्रवक्ता ने ऐसे काम किए जिन में छल, कपट, हिंसा, भेदभाव, ?ाठ शामिल हैं. वह अधर्म आज भी दिख रहा है, धर्म का नाम ले कर सत्ता के घोड़ों पर सवार शासकों में भी और आम जनता में भी. ईरान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, पाकिस्तान, सऊदी अरब, भारत ही नहीं, अमेरिका, यूरोप तक ऐसे मामले रोज सामने आ रहे हैं. उन्हें दबाया जाता है पर वे धर्म की पोल उसी तरह खोलते रहते हैं जैसे धर्म अपना खोल सारी जनता के दिमाग पर फैलाता रहता है.

भारत आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब जैसा बन चुका है जहां सरकारें धर्म की रक्षा के लिए हैं, जनता के हित के लिए नहीं. इस के लिए पैसा वे गरीब दे रहे हैं जो मेहनत कर रहे हैं, देश से बाहर जा कर कमा रहे हैं. इन 4-5 देशों में फर्क यह है कि सऊदी अरब और ईरान जमीन से निकलने वाले तेल के कारण अकड़ते हैं, इजराइल अपने लोगों की प्रतिभा के कारण पनपता रहा है पर अफगानिस्तान और पाकिस्तान बढ़ती जनसंख्या के कारण भूखे मर रहे हैं.

भारत अपने मजदूरों को लूट कर बड़ी ताकत बन चुका है पर इस के आम लोग फटेहाल हैं. ये 4-5 देश धर्म के शिकार हैं, धर्म इन्हें लूटता है, बल नहीं देता. इन देशों में जनता धर्म की शिकार है, शासकों का छोटा या बड़ा गुट मौज कर रहा है बिना किसी जवाबदेही के. जवाब तो मरने के बाद भावनाओं को देना है न, जो हर धर्म की अलग हैं.

सौतेली मां: क्या दूसरी मां को अपना पाए बच्चे

मां की मौत के बाद ऋजुता ही अनुष्का का सब से बड़ा सहारा थी. अनुष्का को क्या करना है, यह ऋजुता ही तय करती थी. वही तय करती थी कि अनुष्का को क्या पहनना है, किस के साथ खेलना है, कब सोना है. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था. मां की मौत के बाद ऋजुता ने मां की तरह अनुष्का को ही नहीं संभाला, बल्कि घर की पूरी जिम्मेदारी वही संभालती थी.

ऋजुआ तो मनु का भी उसी तरह खयाल रखना चाहती थी, पर मनु उम्र में मात्र उस से ढाई साल छोटा था. इसलिए वह ऋजुता को अभिभावक के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं था. तमाम बातों में उन दोनों में मतभेद रहता था. कई बार तो उन का झगड़ा मौखिक न रह कर हिंसक हो उठता था. तब अंगूठा चूसने की आदत छोड़ चुकी अनुष्का तुरंत अंगूठा मुंह में डाल लेती. कोने में खड़ी हो कर वह देखती कि भाई और बहन में कौन जीतता है.

कुछ भी हो, तीनों भाईबहनों में पटती खूब थी. बड़ों की दुनिया से अलग रह सकें, उन्होंने अपने आसपास इस तरह की एक दीवार खड़ी कर ली थी, जहां निश्चित रूप से ऋजुता का राज चलता था. मनु कभीकभार विरोध करता तो मात्र अपना अस्तित्व भर जाहिर करने के लिए.

अनुष्का की कोई ऐसी इच्छा नहीं होती थी. वह बड़ी बहन के संरक्षण में एक तरह का सुख और सुरक्षा की भावना का अनुभव करती थी. वह सुंदर थी, इसलिए ऋजुता को बहुत प्यारी लगती थी. यह बात वह कह भी देती थी. अनुष्का की अपनी कोई इच्छाअनिच्छा होगी, ऋजुता को कभी इस बात का खयाल नहीं आया.

अगर अविनाश को दूसरी शादी न करनी होती तो घर में सबकुछ इसी तरह चलता रहता. घर में दादी मां यानी अविनाश की मां थीं ही, इसलिए बच्चों को मां की कमी उतनी नहीं खल रही थी. घर के संचालन के लिए या बच्चों की देखभाल के लिए अविनाश का दूसरी शादी करना जरूरी नहीं रह गया था.

इस के बावजूद उस ने घर में बिना किसी को बताए दूसरी शादी कर ली. अचानक एक दिन शाम को एक महिला के साथ घर आ कर उस ने कहा, ‘‘तुम लोगों की नई मम्मी.’’

उस महिला को देख कर बच्चे स्तब्ध रह गए. वे कुछ कहते या इस नई परिस्थिति को समझ पाते, उस के पहले ही अविनाश ने मां की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘संविधा, यह मेरी मां है.’’

बूढ़ी मां ने सिर झुका कर पैर छू रही संविधा के सिर पर हाथ तो रखा, पर वह कहे बिना नहीं रह सकीं. उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इस तरह अचानक… कभी सांस तक नहीं ली, चर्चा की होती तो 2-4 सगेसंबंधी बुला लेती.’’

‘‘बेकार का झंझट करने की क्या जरूरत है मां.’’ अविनाश ने लापरवाही से कहा.

‘‘फिर भी कम से कम मुझ से तो बताना चाहिए था.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है,’’ अविनाश ने उसी तरह लापरवाही से कहा, ‘‘नोटिस तो पहले ही दे दी थी. आज दोपहर को दस्तखत कर दिए. संविधा का यहां कोई सगासंबंधी नहीं है. एक भाई है, वह दुबई में रहता है. रात को फोन कर के बता देंगे. बेटा ऋजुता, मम्मी को अपना घर तो दिखाओ.’’

उस समय क्या करना चाहिए, यह ऋजुता तुरंत तय नहीं कर सकी. इसलिए उस समय अविनाश की जीत हुई. घर में जैसे कुछ खास न हुआ हो, अखबार ले कर सोफे पर बैठते हुए उस ने मां से पूछा, ‘‘मां, किसी का फोन या डाकवाक तो नहीं आई, कोई मिलनेजुलने वाला तो नहीं आया?’’

संविधा जरा भी नरवस नहीं थी. अविनाश ने जब उस से कहा कि हमारी शादी हम दोनों का व्यक्तिगत मामला है. इस से किसी का कोई कुछ लेनादेना नहीं है. तब संविधा उस की निडरता पर आश्चर्यचकित हुई थी. उस ने अविनाश से शादी के लिए तुरंत हामी भर दी थी. वैसे भी अविनाश ने उस से कुछ नहीं छिपाया था. उस ने पहले ही अपने बच्चों और मां के बारे में बता दिया था. पर इस तरह बिना किसी तैयारी के नए घर में, नए लोगों के बीच…

‘‘चलो,’’ ऋजुता ने बेरुखी से कहा.

संविधा उस के साथ चल पड़ी. उसे पता था कि विधुर के साथ शादी करने पर रिसैप्शन या हनीमून पर नहीं जाया जाता, पर घर में तो स्वागत होगा ही. जबकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था. अविनाश निश्चिंत हो कर अखबार पढ़ने लगा था. वहीं यह 17-18 साल की लड़की घर की मालकिन की तरह एक अनचाहे मेहमान को घर दिखा रही थी. घर के सब से ठीकठाक कमरे में पहुंच कर ऋजुता ने कहा, ‘‘यह पापा का कमरा है.’’

‘‘यहां थोड़ा बैठ जाऊं?’’ संविधा ने कहा.

‘‘आप जानो, आप का सामान कहां है?’’ ऋजुता ने पूछा.

‘‘बाद में ले आऊंगी. अभी तो ऐसे ही…’’

‘‘खैर, आप जानो.’’ कह कर ऋजुता चली गई.

पूरा घर अंधकार से घिर गया तो ऋजुता ने फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मनु, तू जाग रहा है?’’

‘‘हां,’’ मनु ने कहा, ‘‘दीदी, अब हमें क्या करना चाहिए?’’

‘‘हमें भाग जाना चाहिए.’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘कहां, पर अनुष्का तो अभी बहुत छोटी है. यह बेचारी तो कुछ समझी भी नहीं.’’

‘‘सब समझ रही हूं,’’ अनुष्का ने धीरे से कहा.

‘‘अरे तू जाग गई?’’ हैरानी से ऋजुता ने पूछा.

‘‘मैं अभी सोई ही कहां थी,’’ अनुष्का ने कहा और उठ कर ऋजुता के पास आ गई. ऋजुता उस की पीठ पर हाथ फेरने लगी. हाथ फेरते हुए अनजाने में ही उस की आंखों में आंसू आ गए. भर्राई आवाज में उस ने कहा, ‘‘अनुष्का, तू मेरी प्यारी बहन है न?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘देख, वह जो आई है न, उसे मम्मी नहीं कहना. उस से बात भी नहीं करनी. यही नहीं, उस की ओर देखना भी नहीं है.’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘वह अपनी मम्मी थोड़े ही है. वह कोई अच्छी औरत नहीं है. वह हम सभी को धोखा दे कर अपने घर में घुस आई है.’’

‘‘चलो, उसे मार कर घर से भगा देते हैं,’’ मनु ने कहा.

‘‘मनु, तुझे अक्ल है या नहीं? अगर हम उसे मारेंगे तो पापा हम से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘भले न करें बात, पर हम उसे मारेंगे.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते मनु, पापा उसे ब्याह कर लाए हैं.’’

‘‘तो फिर क्या करें?’’ मनु ने कहा, ‘‘मुझे वह जरा भी अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘मुझे भी. अनुष्का तुझे?’’

‘‘मुझे भी अच्छी नहीं लगती.’’ अनुष्का ने कहा.

‘‘बस, तो फिर हम सब उस से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘पापा कहेंगे, तब भी?’’ मनु और अनुष्का ने एक साथ पूछा.

‘‘हां, तब भी बात नहीं करेंगे. उसे देख कर हंसना भी नहीं है, न ही उसे कुछ देना है. उस से कुछ मांगना भी नहीं है. यही नहीं, उस की ओर देखना भी नहीं है. समझ गए न?’’

‘‘हां, समझ गए.’’ मनु और अनुष्का ने एक साथ कहा, ‘‘पर दादी मां कहेंगी कि उसे बुलाओ तो…’’

‘‘तब देखा जाएगा. दोनों ध्यान रखना, हमें उस से बिलकुल बात नहीं करनी है.’’

‘‘पापा, इसे क्यों ले आए?’’ मासूम अनुष्का ने पूछा.

‘‘पता नहीं.’’ ऋजुता ने लापरवाही से कहा.

‘‘दीदी, एक बात कहूं, मुझे तो अब पापा भी अच्छे नहीं लगते.’’

‘‘मुझे भी,’’ मनु ने कहा. मनु ने यह बात कही जरूर, पर उसे पापा अच्छे लगते थे. वह उस से बहुत प्यार करते थे. उस की हर इच्छा पूरी करते थे. पर दोनों बहनें कह रही थीं, इसलिए उस ने भी कह दिया. इतना ही नहीं, उस ने आगे भी कहा, ‘‘दीदी, अब यहां रहने का मन नहीं होता.’’

‘‘फिर भी रहना तो पड़ेगा ही. अच्छा, चलो अब सो जाओ.’’

‘‘मैं तुम्हारे पास सो जाऊं दीदी?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘लात तो नहीं मारेगी?’’

‘‘नहीं मारूंगी.’’ कह कर वह ऋजुता का हाथ पकड़ कर क्षण भर में सो गई.

ऋजुता को अनुष्का का इस तरह सो जाना अच्छा नहीं लगा. घर में इतनी बड़ी घटना घटी है, फिर भी यह इस तरह निश्चिंत हो कर सो गई. कुछ भी हो, 17-18 साल की एक लड़की पूरी रात तो नहीं जाग सकती थी. वह भी थोड़ी देर में सो गई.

सुबह वह सो कर उठी तो पिछले दिन का सब कुछ याद आ गया. उस ने अनुष्का को जगाया, ‘‘कल रात जैसा कहा था, वैसा ही करना.’’

‘‘उस से बात नहीं करना न?’’ अनुष्का ने कहा.

‘‘किस से?’’

‘‘अरे वही, जिसे पापा ले आए हैं, नई मम्मी. भूल गई क्या? दीदी, उस का नाम क्या है?’’

‘‘संविधा. पर हमें उस के नाम का क्या करना है. हमें उस से बात नहीं करनी है बस. याद रहेगा न?’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘अरे हां, हंसना भी नहीं है.’’

‘‘ठीक है.’’

इस के बाद ऋजुता ने मनु को भी समझा दिया कि नई मम्मी से बात नहीं करेगा. जबकि वह समझदार था और खुद भी उस से चिढ़ा हुआ था. इसलिए तय था कि वह भी संविधा से बात नहीं करेगा. विघ्न आया दादी की ओर से. चायनाश्ते के समय वह बच्चों का व्यवहार देख कर सब समझ गईं. अकेली पड़ने पर वह ऋजुता से कहने लगीं, ‘‘बेटा, अब तो वह घर आ ही गई है. उस के प्रति अगर इस तरह की बात सोचोगी, तो कैसे चलेगा. अविनाश को पता चलेगा तो वह चिढ़ जाएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं दादी,’’ पीछे खड़े मनु ने कहा.

‘‘बेटा, तू तो समझदार है. आखिर बात करने में क्या जाता है.’’

दादी की इस बात का जवाब देने के बजाए ऋजुता ने पूछा, ‘‘दादी, आप को पता था कि पापा शादी कर के नई पत्नी ला रहे हैं?’’

‘‘नहीं, जब बताया ही नहीं तो कैसे पता चलता.’’

‘‘इस तरह शादी कर के नई पत्नी लाना आप को अच्छा लगा?’’

‘‘अच्छा तो नहीं लगा, पर कर ही क्या सकते हैं. वह उसे शादी कर के लाए हैं, इसलिए अब साथ रहना ही होगा. तुम सब बचपना कर सकते हो, पर मुझे तो बातचीत करनी ही होगी.’’ दादी ने समझाया.

‘‘क्यों?’’ ऋजुता ने पूछा.

‘‘बेटा, इस तरह घरपरिवार नहीं चलता.’’

‘‘पर दादी, हम लोग तो उस से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘ऋजुता, तू बड़ी है. जरा सोच, इस बात का पता अविनाश को चलेगा तो उसे दुख नहीं होगा.’’ दादी ने समझाया.

‘‘इस में हम क्या करें. पापा ने हम सब के बारे में सोचा क्या? दादी, वह मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती. हम उस से बिलकुल बात नहीं करेंगे. पापा कहेंगे, तब भी नहीं.’’ ऋजुता ने कहा. उस की इस बात में मनु ने भी हां में हां मिलाई.

‘‘बेटा, तू बड़ी हो गई है, समझदार भी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘बिलकुल नहीं करेगी बात?’’ दादी ने फिर पूछा. इसी के साथ वहां खड़ी अनुष्का से भी पूछा, ‘‘तू भी बात नहीं करेगी अनुष्का?’’

अनुष्का घबरा गई. उसे प्यारी बच्ची होना अच्छा लगता था. अब तक उसे यही सिखाया गया था कि जो बड़े कहें, वही करना चाहिए. ऋजुता ने तो मना किया था, अब क्या किया जाए? वह अंगूठा मुंह में डालना चाहती थी, तभी उसे याद आ गया कि वह क्या जवाब दे. उस ने झट से कहा, ‘‘दीदी कहेंगी तो बात करूंगी.’’

अनुष्का सोच रही थी कि यह सुन कर ऋजुता खुश हो जाएगी. पर खुश होने के बजाए ऋजुता ने आंखें दिखाईं तो अनुष्का हड़बड़ा गई. उस हड़बड़ाहट में उसे रात की बात याद आ गई. उस ने कहा, ‘‘बात की छोड़ो, हंसना भी मना है. अगर कुछ देती है तो लेना भी नहीं है. वह मुझे ही नहीं मनु भैया को भी अच्छी नहीं लगती. और ऋजुता दीदी को भी, है न मनु भैया?’’

‘‘हां, दादी मां, हम लोग उस से बात नहीं करेंगे.’’ मनु ने कहा.

‘‘जैसी तुम लोगों की इच्छा. तुम लोग जानो और अविनाश जाने.’’

पर जैसा सोचा था, वैसा हुआ नहीं. बच्चों के मन में क्या है, इस बात से अनजान अविनाश औफिस चले गए. जातेजाते संविधा से कहा था कि वह चिंता न करे, जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.

संविधा ने औफिस से 2 दिनों की छुट्टी ले रखी थी. नया घर, जिस में 3 बच्चों के मौन का बोझ उसे असह्य लगने लगा. उसे लगा, उस ने छुट्टी न ली होती, तो अच्छा रहता.   अविनाश के साथ वह भी अपने औफिस चली गई होती.

अविनाश उसे अच्छा तो लग रहा था, पर 40 की उम्र में ब्याह करना उसे खलने लगा था. बालबच्चों वाला एक परिवार…साथ में बड़ों की छत्रछाया और एक समझदार आदमी का जिंदगी भर का साथ…उस ने हामी भर दी और इस अनजान घर में आ गई. पहले से परिचय की क्या जरूरत है, अविनाश ने मना कर दिया था.

उस ने कहा था, ‘‘जानती हो संविधा, अचानक आक्रमण से विजय मिलती है. अगर पहले से बात करेंगे तो रुकावटें आ सकती हैं. बच्चे भी पूर्वाग्रह में बंध जाएंगे. तुम एक बार किसी से मिलो और उसे अच्छी न लगो, ऐसा नहीं हो सकता. यह अलग बात है कि तुम्हें मेरे बच्चे न अच्छे लगें.’’

तब संविधा ने खुश हो कर कहा था, ‘‘तुम्हारे बच्चे तो अच्छे लगेंगे ही.’’

‘‘बस, बात खत्म हो गई. अब शादी कर लेते हैं.’’ अविनाश ने कहा.

फिर दोनों ने शादी कर ली.

संविधा ने पहला दिन तो अपना सामान लाने और उसे रखने में बिता दिया था पर चैन नहीं पड़ रहा था. बच्चे सचमुच बहुत सुंदर थे, पर उस से बिलकुल बात नहीं कर रहे थे. चौकलेट भी नहीं ली थी. बड़ी बेटी ने स्थिर नजरों से देखते हुए कहा था, ‘‘मेरे दांत खराब हैं.’’

संविधा ढीली पड़ गई थी. अविनाश से शिकायत करने का कोई मतलब नहीं था. वह बच्चों से बात करने के लिए कह सकता है. बच्चे बात तो करेंगे, पर उन के मन में सम्मान के बजाए उपेक्षा ज्यादा होगी. ऐसे में कुछ दिनों इंतजार कर लेना ज्यादा ठीक रहेगा. पर बाद में भी ऐसा ही रहा तो? छोड़ कर चली जाएगी.

रोजाना कितने तलाक होते हैं, एक और सही. अविनाश अपनी बूढ़ी मां और बच्चों को छोड़ कर उस के साथ तो रहने नहीं जा सकता. आखिर उस का भी तो कुछ फर्ज बनता है. ऐसा करना उस के लिए उचित भी नहीं होगा. पर उस का क्या, वह क्या करे, उस की समझ में नहीं आ रहा था. वह बच्चों के लिए ही तो आई थी. अब बच्चे ही उस के नहीं हो रहे तो यहां वह कैसे रह पाएगी.

दूसरा दिन किस्सेकहानियों की किताबें पढ़ कर काटा. मांजी से थोड़ी बातचीत हुई. पर बच्चों ने तो उस की ओर ताका तक नहीं. फिर भी उसे लगा, सब ठीक हो जाएगा. पर ठीक हुआ नहीं. पूरे दिन संविधा को यही लगता रहा कि उस ने बहुत बड़ी गलती कर डाली है. ऐसी गलती, जो अब सुधर नहीं सकती. इस एक गलती को सुधारने में दूसरी कई गलतियां हो सकती हैं.

दूसरी ओर बच्चे अपनी जिद पर अड़े थे. जैसेजैसे दिन बीतते गए, संविधा का मन बैठने लगा. अब तो उस ने बच्चों को मनाने की निरर्थक चेष्टा भी छोड़ दी थी. उसे लगने लगा कि कुछ दिनों के लिए वह भाई के पास आस्ट्रेलिया चली जाए. पर वहां जाने से क्या होगा? अब रहना तो यहीं है. कहने को सब ठीक है, पर देखा तो बच्चों की वजह से कुछ भी ठीक नहीं है. फिर भी इस आस में दिन बीत ही रहे थे. कभी न कभी तो सब ठीक हो ही जाएगा.

उस दिन शाम को अविनाश को देर से आना था. उदास मन से संविधा गैलरी में आ कर बैठ गई. अभी अचानक उस का मन रेलिंग पर सिर रख कर खूब रोने का हुआ. कितनी देर हो गई उसे याद ही नहीं रहा. अचानक उस के बगल से आवाज आई, ‘‘आप रोइए मत.’’

संविधा ने चौंक कर देखा तो अनुष्का खड़ी थी. उस ने हाथ में थामा चाय का प्याला रखते हुए कहा, ‘‘रोइए मत, इसे पी लीजिए.’’

ममता से अभिभूत हो कर संविधा ने अनुष्का को खींच कर गोद में बैठा कर सीने से लगा लिया. इस के बाद उस के गोरे चिकने गालों को चूम कर वह सोचने लगी, ‘अब मैं मर भी जाऊं तो चिंता नहीं है.’

तभी अनुष्का ने संविधा के सिर पर हाथ रख कर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मम्मी ही तो हूं, इसलिए तुम मम्मी कह सकती हो.’’

‘‘पर दीदी ने मना किया था,’’ सकुचाते हुए अनुष्का ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मन का बोझ झटकते हुए संविधा ने पूछा.

‘‘दीदी, आप से और पापा से नाराज हैं.’’

‘‘क्यों?’’ संविधा ने फिर वही दोहराया.

‘‘पता नहीं.’’

‘‘तुम मान गई न, अब दीदी को भी मैं मना लूंगी.’’ खुद को संभालते हुए बड़े ही आत्मविश्वास के साथ संविधा ने कहा.

संविधा की आंखों में झांकते हुए अनुष्का ने कहा, ‘‘अब मैं जाऊं?’’

‘‘ठीक है, जाओ.’’ संविधा ने प्यार से कहा.

‘‘अब आप रोओगी तो नहीं?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम जैसी प्यारी बेटी को पा कर भला कोई कैसे रोएगा.’’

छोटेछोटे पग भरती अनुष्का चली गई. नन्हीं अनुष्का को बेवफाई का मतलब भले ही पता नहीं था, पर उस के मन में एक बोझ सा जरूर था. उस ने बहन से वादा जो किया था कि वह दूसरी मां से बात नहीं करेगी. पर संविधा को रोती देख कर वह खुद को रोक नहीं पाई और बड़ी बहन से किए वादे को भूल कर दूसरी मां के आंसू पोंछने पहुंच गई.

जाते हुए अनुष्का बारबार पलट कर संविधा को देख रही थी. शायद बड़ी बहन से की गई बेवफाई का बोझ वह सहन नहीं कर पा रही थी. इसलिए उस के कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे.

झूठ पर राजा का राज

अभिव्यक्ति यानी बोलने की आजादी को जला डालने के लिए सरकारी नियमकानून या पुलिसिया आदेश अब केंद्र या राज्य सरकारों के गलियारों से नहीं निकलते. सरकारों ने अब दूसरा तरीका ढूंढ़ लिया है. सत्तारूढ़ पार्टी अपने आम भक्तों से कहती है कि विपक्षियों के किसी के बयान को मानहानि या धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने या देशद्रोही होने वाला ठहरा कर अपने पास के थाने में रिपोर्ट लिखवा दो. प्रशासन में बैठे लोग इस लिखित या डिजिटल या बोले गए कथन के लिए सत्ता में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर मुकदमा दर्ज कर लेते हैं और फिर पुलिस का कहर चालू हो जाता है.

सीधेसीधे इन में सरकार कहीं नहीं होती. यह हर नागरिक का हक है कि वह अपने पर हुए किसी तरह के अपराध पर एफआईआर दर्ज करा सकता है और पुलिस का काम है कि उस दर्ज रिपोर्ट पर छानबीन करे. पुलिस बलात्कार, हत्या, लूट, डकैती, सामूहिक दंगे की रिपोर्ट दर्ज ही न करे या दर्ज करने पर कोई छानबीन न करे, यह उस की मरजी है. सरकार के खिलाफ कही गई हर बात पर आदेश मिल जाता है कि कहनेलिखने वाले को तुरंत गिरफ्तार कर लो और जांच के नाम पर जेल में डाल दो.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सांसद राहुल गांधी को इसी तरह के मुकदमों में फंसाया जा रहा है और एक मामले में तो गुजरात उच्च न्यायालय ने भी इस कानूनी हथकंडे व धौंस पर अपनी मोहर लगा दी क्योंकि राहुल गांधी ने नीरव मोदी, ललित मोदी जैसों पर देश से भाग जाने का आरोप लगाया था जिस को ले कर नरेंद्र मोदी के समर्थकों को बुरा लगा था.

अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट ने तेजस्वी यादव को छूट दी कि जब उस ने, गुजराती ठग हो सकते हैं, वाला अपना बयान वापस ले लिया तो मुकदमा चलाने की जरूरत नहीं है. असल में यह छूट तो ट्रायल मजिस्ट्रेट को ही दे देनी थी पर शासन की टेढ़ी नजर से भयभीत लोअर ज्यूडीशियरी भी पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है और थोक में वह सरकार के पक्ष में आदेश देती है. उन आदेशों के कारण ही आज देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सब से नीचे और फ्रीडम औफ प्रैस इंडैक्स में भारत 180 देशों में 161वें स्थान पर है.

इस अभिव्यक्ति पर रोक का अर्थ है कि आम आदमी के पास अब सरकारी जबरदस्ती के खिलाफ बोलने का कोई हक नहीं रह गया. अधिकांश विचारक आज मुंह सिए हुए हैं कि न जाने क्या सच उन के मुंह से निकल जाए जो सरकार में बैठे लोगों की पोल खोलता हो.

हाल के धार्मिक बयानों पर हर तरह के तर्क दिए जा सकते हैं कि जो कहा जा रहा है वह कितना गलत है, कितना भ्रामक है और कितना उन ग्रंथों के विपरीत है जिन के आधार पर आराध्यों की पूजा करने के सरकारी आदेश जारी हो रहे हैं. सच बोलने वाले के खिलाफ ऐक्शन दिल्ली स्थित केंद्रीय गृह मंत्रालय से नहीं लिया जाएगा, सत्ता समर्थक आदमी किसी छोटे से गांव का होगा जो ऐसे पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराएगा जो बोलने वाले के घर से सैकड़ों मील दूर होगा. फिर कानून की आड़ में एक ही बात पर 10-20 मुकदमे अलगअलग जगह से दर्ज कराए जाने की छूट भी है.

देश की जनता को आज केवल ?ाठ के गंदभरे रस के प्याले को पीने पर मजबूर किया जा रहा है. जनता को अब सच न पढ़ने को मिल रहा है, न देखने को, न सुनने को और न ही उस के पास सच कहने का हक ही रह गया है. पूरा समाज ?ाठ की नींव पर बनाया जा रहा है. जो सच जानते हैं उन पर कानून और पुलिस का फंदा लगाया जा चुका है. देश की हालत अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान और रूस से कोई खास ज्यादा अच्छी नहीं है.

यह न भूलें कि जिस देश में राजा ?ाठ पर राज कर रहा हो वहां उस का हर मुलाजिम ?ाठ के सहारे अत्याचार करेगा ही, घरघर में ?ाठ फैलाया जाएगा. और यही ?ाठ का तेजाब आज हमारे हर पतिपत्नी, परिवार, दोस्तों, निजी संबंधों में विश्वसनीयता की दीवारों को जलाए डाल रहा है.

शादीशुदा होने के बावजूद भी मैंने किसी और के साथ सेक्स किया है, क्या करूं?

सवाल

हमारी शादी के 5 साल बाद भी हमें बच्चा नहीं हुआ है. हम पतिपत्नी एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं. हम ने अपने घर की तीसरी मंजिल किराए पर दी हुई है. नए किराएदार आए. तब वे पतिपत्नी नए शादीशुदा कपल थे. एक साल तक तो सब ठीकठाक चलता रहा. किराएदार की पत्नी साल बाद प्रैग्नैंट हो गई. कुछ कौंप्लिकेशंस होने के कारण वह अपने मायके चली गई ताकि उस की अच्छी देखभाल हो सके. पत्नी के चले जाने के कारण उस का पति अकेला रहने लगा.एक दिन मेरे पति औफिस के कलीग की शादी में अकेले गए हुए थे. तभी वह आया पीने का पानी लेने के लिए. मैं ने उसे घर के अंदर बुला लिया. हम दोनों बातें करने लगे, पता नहीं कैसे उसी कुछ घंटों में हमारे बीच सैक्स हो गया. मु?ो तब से गिल्ट फील हो रही है. वह भी अपने किए पर शर्मिंदा है. तब से वह मेरी तरफ देखता तक नहीं है. मैं भी उस की तरफ ध्यान नहीं देती.मैं ने अपने पति को अभी तक कुछ नहीं बताया है. लेकिन मैं अब जब भी उन के साथ फिजिकल रिलेशन बनाती हूं, लगता है जैसे उन्हें धोखा दे रही हूं.  क्या करूं, क्या पति से अपने किए की माफी मांग लूं? कोई रास्ता सु?ाएं.

 

जवाब

 

आप ने जो भी किया, बहुत गलत किया. किराएदार ने एक तरह से आप के अकेलेपन का फायदा उठाया है. उस का क्या गया, पछतावा अब आप कर रही हैं. जहां तक आप पति से अपने किए की माफी मांगने की बात सोच रही हैं तो वैसा हरगिज मत सोचिए. आप अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारने वाली बात कर रही हैं. कोई भी पति यह बात बरदाश्त नहीं कर सकता. भलाई इसी में है कि आप इस बात को अपने सीने में दफन कर लें. किराएदार से बिलकुल कोईर् मतलब न रखें. उस के सामने बिलकुल न आएं. आ भी जाएं तो अपने को बिलकुल नौर्मल रखें. अपने मन को सम?ाइए. जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता. बस, अपने गिल्ट से बाहर निकल कर घर, पति पर ध्यान लगाएं. पति को अपना भरपूर प्यार दीजिए. बच्चे का प्लान कीजिए. कोई दिक्कत है तो डाक्टरी परामर्श लीजिए. पतिपत्नी के बीच बच्चा आ जाता है तो एक स्थिरता आ जाती है. आप भी बच्चे के साथ पिछली सब बातें भूल जाएंगी. जिंदगी की उल?ानों को सुल?ाने में ही सम?ादारी है.

 

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जीवन में बहुत से संबंध जन्म से बनते हैं. मांपिता, भाईबहन और मां व पिता के संबंधियों से संबंध जन्म से अपनेआप बनते चले जाते हैं और इसी के साथ ढेरों चाचाचाची, ताऊ चचेरेममेरे भाईबहन, भाभियां, मौसियां, मौसा, फूफा, बूआ के संबंध बन जाते हैं. इन संबंधों को निभाने और इन में खटपट होने का अंदेशा कम होता है क्योंकि ये मांबाप के इशारे पर बनते हैं जो प्रगाढ़ होते हैं.

लेकिन शादी के बाद एक लड़की का इन संबंधियों से एक नया रिश्ता बनता है. रिश्ता तो लड़के का भी लड़की के संबंधियों से बनता है पर वह मात्र औपचारिक होता है. शादी होने पर लड़की का जो रिश्ता लड़के के संबंधियों से बनता है, वह कुछ और माने रखता है.

सास और ससुर से संबंध इस मामले में सब से बड़ा और महत्त्वपूर्ण होता है. लड़के का संबंध अपने मांबाप से नैसर्गिक, नैचुरल होता है, 20-30 साल पुराना होता है, लेकिन उस की पत्नी को उन (सासससुर) से संबंध एक दिन में बनाना होता है जिस की न कोई तैयारी होती है न ट्रेनिंग. लड़की चाहे सास खुद पसंद कर के लाए या सास का लाड़ला अपनी मां की सहमति या असहमति से लाए, संबंध को निभाने की जिम्मेदारी अकेली उसी यानी नई पत्नी की होती है.

यह एक बड़े पेड़ के प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) की तरह होता है. अब तक मनुष्य पेड़ों को इधर से उधर जड़ समेत नहीं ले जाता था, नए लगाना वह आसान समझता था क्योंकि हाल तक यह माना जाता था कि जिस पेड़ की जड़ें जमीन में गहरे तक गई हुई हैं, उसे दूसरी जगह ले जाना और फिर उस का फलनाफूलना असंभव सा है. लेकिन हाल में तकनीक विकसित हुई है कि पेड़ को जड़ समेत एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है, हालांकि, इस प्रक्रिया में बहुत से पेड़ मुरड़ जाते हैं.

तकरीबन हर लड़की के जीवन में उस के रिश्तों को अपने मांबाप से एक ?ाटके से तोड़ कर उसे दूसरे संबंधों से जोड़ दिया जाता है और उम्मीद की जाती है कि वह पत्नी बन कर अपनी पुरानी जड़ें भूल नई पक्की जमीन में अपनी जड़ें दिनों, सप्ताहों में बना लेगी. केवल पति के सहारे एक पत्नी के लिए यह काम मुश्किल होता है खासतौर पर जब वह अपनी पहले ही जमीन पर पत्नी को जगह देने को तैयार न हो.

नई पत्नी को नए घर में रमाने न देने के लिए पंडों ने बहुत से उपाय तैयार कर रखे हैं. वे अपनी इस सेवा को लिए जाने को कंप्लसरी बनाने के लिए इस नई सदस्या को अनावश्यक बनाने का माहौल बनाना शुरू कर देते हैं.

हमारे सनातनी समाज में तो पंडित सब से बड़ा उपदेशक, मार्गदर्शक, विपत्तियां दूर करने वाला होता है जो जब घर में कदम रखता है, मोटी दानदक्षिणा वसूल लेता है उस सलाह को देने के लिए जिस की न तो आवश्यकता होती है, न ही वह किसी काम की होती है. वह सलाह, दरअसल, दूध में हमेशा नीबू निचोड़ने की होती है लेकिन नीबू की बूंदें इतनी चतुराई से डाली जाती हैं कि लगता है जैसे शहद की बूंदें टपकाई जा रही हों.

एक उपाय यह बताया जाता है कि तुलसी, चंपा, चमेली के पौधे लगा दो. वास्तुशास्त्र के अनुसार कहां लगेंगे, यह पंडित ही तो बताएगा न, जो पहले अपनी फीस लेगा. एक दूसरा उपाय आजकल बताया जाने लगा है कि किचन की कैबिनेट काले रंग की न हो. पत्नी और सास के संबंध में किचन के रंगों का भला क्या योगदान है, यह सम?ा से परे है पर इसे भी अपना लिया जाता है.

कुछ सनातनी वास्तुशास्त्री किचन को ही खिसकाने की सलाह देने लगते हैं. यह काम आम घरों में संभव नहीं होता.

अपने मतलब का, स्वार्थ का, पैसे देने वाला एक उपाय यह बताया जाता है कि घर में एक गणपति की मूर्ति रखें. ऐसे में इस की स्थापना के लिए पंडित को दानदक्षिणा तो देनी ही होगी.

हमारा मीडिया बेटे को मां और अपनी पत्नी के साथ तालमेल के गुर बताने की जगह अनापशनाप उपाय बताता है.

काफी समझदार लोग भी पंडितों के बताए उपायों को अपनाते हैं क्योंकि उन्हें जन्म से यह शिक्षा मिली होती है कि पंडेपुजारी जो कहते हैं वह सब को बनाने वाले भगवान की इच्छा है.

नई सदस्या को कैसे घर में रमाएं, कैसे उस के 20-25 साल के व्यक्तित्व व उस की ट्रेनिंग का लाभ उठाएं, कैसे उसे नए घर की ज्योग्राफी व टैंपरामैंट से अवगत कराएं आदि की जगह टोनेटोटकों की सलाहों की बरसात होने लगती है.

एक उपाय में यह बताया गया है कि सासबहू सुबहसुबह उठ कर झाड़ू लगाएं. यह विघ्न डालने वाला काम है. जब नए पतिपत्नी एकदूसरे की बांहों में हों, सास झाड़ू लगाना शुरू कर दे या बहू को आदेश दे या नौकरानी से कह दे, तो ऐसे में विवाहित जोड़े का सैक्स सुख तो डिस्टर्ब होगा ही. नतीजतन, पत्नी के मन में चिढ़ उठेगी और संबंध ठीक नहीं रहेंगे.

 

मृदुभाषिणी : शुभा को मामी का चरित्र बौना क्यों लगने लगा

कई बार ऐसा भी होता है कि हम किसी को आदर्श मान कर, जानेअनजाने उसी को मानो घोल कर पी जाते हैं.

सुहागरात को दुलहन बनी शुभा से पति ने प्रथम शब्द यही कहे थे, ‘मेरी एक मामी हैं. वे बहुत अच्छी हैं. हमारे घर में सभी उन की प्रशंसा करते हैं. मैं चाहता हूं, भविष्य में तुम उन का स्थान लो. सब कहें कि बहू हो तो शुभा जैसी. मैं चाहता हूं जैसे वे सब को पसंद हैं, वैसे ही तुम भी सब की पसंद बन जाओ.’

पति ने अपनी धुन में बोलतेबोलते एक आदर्श उस के सामने प्रस्तुत कर दिया था. वास्तव में शुभा को भी पति

की मामी बहुत पसंद आई थीं, मृदुभाषिणी व धीरगंभीर. वे बहुत स्नेह से शुभा को खाना खिलाती रही थीं. उस का खयाल रखती रही थीं. नई वधू को क्याक्या चाहिए, सब उन के ध्यान में था. सत्य है, अच्छे लोग सदा अच्छे ही लगते हैं, उन्होंने सब का मन मोह रखा था.

वक्त बीतता गया और शुभा 2 बच्चों की मां बन गई. मामी से मुलाकात होती रहती थी, कभी शादीब्याह पर तो कभी मातम पर. शुभा की सास अकसर कहतीं, ‘‘देखा मेरी भाभी को, कभी ऊंची आवाज में बात नहीं करतीं.’’

शुभा अकसर सोचती, ‘2-3 वर्ष के अंतराल के उपरांत जब कोई मनुष्य किसी सगेसंबंधी से मिलता है, तब भला उसे ऊंचे स्वर में बात करने की जरूरत भी क्या होगी?’ कभीकभी वह इस प्रशंसा पर जरा सा चिढ़ भी जाती थी.

एक शाम बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते उस ने जरा डांट दिया तो सास ने कहा, ‘‘कभी अपनी मामी को ऊंचे स्वर में बात करते सुना है?’’

‘‘अरे, बच्चों को पढ़ाऊंगी तो क्या चुप रह कर पढ़ाऊंगी? क्या सदा आप मामीमामी की रट लगाए रखती हैं. अपने घर में भी क्या वे ऊंची आवाज में बात नहीं करती होंगी?’’ बरसों की कड़वाहट सहसा निकली तो बस निकल ही गई, ‘‘अपने घर में भी मुझे कोई आजादी नहीं है. आप लोग क्या जानें कि अपने घर में वे क्याक्या करती होंगी. दूसरी जगह जा कर तो हर इंसान अनुशासित ही रहता है.’’

‘‘शुभा,’’ पति ने बुरी तरह डांट दिया.

वह प्रथम अवसर था जब उस की मामी के विषय में शुभा ने कुछ अनचाहा कह दिया था.

कुछ दिन सास का मुंह भी चढ़ा रहा था. उन के मायके की सदस्य का अपमान उन से सहा न गया. लेदे कर वही तो थीं, जिन से सासुमां की पटती थी.

धीरेधीरे समय बीता और मामाजी के दोनों बच्चों की शादियां हो गईं. शुभा उन के शहर न जा पाई क्योंकि उसे घर पर ही रहना था. सासुमां ने महंगे उपहार दे कर अपना दायित्व निभाया था.

ससुरजी की मृत्यु के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी शुभा के कंधों पर आ गई थी. सीमित आय में हर किसी से निभाना अति विकट था, फिर भी जोड़जोड़ कर शुभा सब निभाने में जुटी रहती.

पति श्रीनगर गए तो उस के लिए महंगी शौल ले आए. इस पर शुभा बोली, ‘‘इतनी महंगी शौल की क्या जरूरत थी. अम्मा के लिए क्यों नहीं लाए?’’

‘‘अरे भई, इस पर किसी का नाम लिखा है क्या. दोनों मिलजुल कर इस्तेमाल कर लिया करना.’’

शुभा ने शौल सास को थमा दी.

कुछ दिनों बाद कहीं जाना पड़ा तो शुभा ने शौल मांगी तो पता चला कि अम्मा ने मामी को पार्सल करवा दी.

यह सुन शुभा अवाक रह गई, ‘‘इतनी महंगी शौल आप ने…’’

‘‘अरे, मेरे बेटे की कमाई की थी, तुझे क्यों पेट में दर्द हो रहा है?’’

‘‘अम्मा, ऐसी बात नहीं है. इतनी महंगी शौल आप ने बेवजह ही भेज दी. हजार रुपए कम तो नहीं होते. ये इतने चाव से लाए थे.’’

‘‘बसबस, मुझे हिसाबकिताब मत सुना. अरे, मैं ने अपने बेटे पर हजारों खर्च किए हैं. क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं, जो अपने किसी रिश्तेदार को कोई भेंट दे सकूं?’’

अम्मा ने बहू की नाराजगी जब बेटे के सामने प्रकट की, तब वह भी हैरान रह गया और बोला, ‘‘अम्मा, मैं पेट काटकाट कर इतनी महंगी शौल लाया था. पर तुम ने बिना वजह उठा कर मामी को भेज दी. कम से कम हम से पूछ तो लेतीं.’’

इस पर अम्मा ने इतना होहल्ला मचाया कि घर की दीवारें तक दहल गईं. शुभा और उस के पति मन मसोस कर रह गए.

‘‘पता नहीं अम्मा को क्या हो गया है, सदा ऐसी जलीकटी सुनाती रहती हैं. इतनी महंगाई में अपना खर्च चलाना मुश्किल है, उस पर घर लुटाने की तुक मेरे तो पल्ले नहीं पड़ती,’’ शौल का कांटा शुभा के पति के मन में गहरा उतर गया था.

कुछ समय बीता और एक शाम मामा की मृत्यु का समाचार मिला. रोतीपीटती अम्मा को साथ ले कर शुभा और उस के पति ने गाड़ी पकड़ी. बच्चों को ननिहाल छोड़ना पड़ा था.

क्रियाकर्म के बाद रिश्तेदार विदा होने लगे. मामी चुप थीं, शांत और गंभीर. सदा की भांति रो भी रही थीं तो चुपचाप. शुभा को पति के शब्द याद आने लगे, ‘हमारी मामी जैसी बन कर दिखाना, वे बहुत अच्छी हैं.’

शुभा के पति और मामा का बेटा अजय अस्थियां विसर्जित कर के लौटे तो अम्मा फिर बिलखबिलख कर रोने लगीं, ‘‘कहां छोड़ आए रे, मेरे भाई को…’’

शुभा खामोशी से सबकुछ देखसुन रही थी. मामी का आदर्श परिवार पिछले 20 वर्षों से कांटे की शक्ल में उस के हलक में अटका था. उन के विषय में जानने की मन में गहरी जिज्ञासा थी. मामी की बहू मेहमाननवाजी में व्यस्त थी और बेटी उस का हाथ बंटाती नजर आ रही थी. एक नौकर भी उन की मदद कर रहा था.

बहू का सालभर का बच्चा बारबार रसोई में चला जाता, जिस के कारण उसे असुविधा हो रही थी. शुभा बच्चा लेना चाहती, मगर अपरिचित चेहरों में घिरा बच्चा चीखचीख कर रोने लगता.

‘‘बहू, तुम कुछ देर के लिए बच्चे को ले लो, नाश्ता मैं बना लेती हूं,’’ शुभा के अनुरोध पर बीना बच्चे को गोद में ले कर बैठ गई.

जब शुभा रसोई में जाने लगी तो बीना ने रोक लिया, ‘‘आप बैठिए, छोटू है न रसोई में.’’

मामी की बहू अत्यंत प्यारी सी, गुडि़या जैसी थी. वह धीरेधीरे बच्चे को सहला रही थी कि तभी कहीं से मामी का बेटा अजय चला आया और गुस्से में बोला, ‘‘तुम्हारे मांबाप कहां हैं? वे मुझ से मिले बिना वापस चल गए? उन्हें इतनी भी तहजीब नहीं है क्या?’’

‘‘आप हरिद्वार से 2 दिनों बाद लौटे हैं. वे भला आप से मिलने का इंतजार कैसेकर सकते थे.’’

‘‘उन्हें मुझ से मिल कर जाना चाहिए था.’’

‘‘वे 2 दिन और यहां कैसे रुक जाते? आप तो जानते हैं न, वे बेटी के घर का नहीं खाते. बात को खींचने की क्या जरूरत है. कोई शादी वाला घर तो था नहीं जो वे आप का इंतजार करते रहते.’’

‘‘बकवास बंद करो, अपने बाप की ज्यादा वकालत मत करो,’’ अजय तिलमिला गया.

‘‘तो आप क्यों उन्हें ले कर इतना हंगामा मचा रहे हैं? क्या आप को बात करने की तमीज नहीं है? क्या मेरा बाप आप का कुछ नहीं लगता?’’

‘‘चुप…’’

‘‘आप भी चुप रहिए और जाइए यहां से.’’

शुभा अवाक रह गई. उस के सामने

ही पतिपत्नी भिड़ गए थे. ज्यादा

दोषी उसे अजय ही नजर आ रहा था. खैर, अपमानित हो कर वह बाहर चला गया और बहू रोने लगी.

‘‘जब देखो, मेरे मांबाप को अपमानित करते रहते हैं. मेरे भाई की शादी में भी यही सब करते रहे, वहां से रूठ कर ही चले आए. एक ही भाई है मेरा, मुझे वहां भी खुशी की सांस नहीं लेने दी. सब के सामने ही बोलना शुरू कर देंगे. कोई इन्हें मना भी नहीं करता. कोई समझाता ही नहीं.’’

शुभा क्या कहती. फिर जरा सा मौका मिलते ही शुभा ने मामी की समझदार बेटी से कहा, ‘‘जया, जरा अपने भाई को समझाओ, क्यों बिना वजह सब के सामने पत्नी का और उस के मांबाप का अपमान कर रहा है. तुम उस की बड़ी बहन हो न, डांट कर भी समझा सकती हो. कोई भी लड़की अपने मांबाप का अपमान नहीं सह सकती.’’

‘‘उस के मांबाप को भी तो अपने दामाद से मिल कर जाना चाहिए था. बीना को भी समझ से काम लेना चाहिए. क्या उसे पति का खयाल नहीं रखना चाहिए. वह भी तो हमेशा अजय को जलीकटी सुनाती रहती है?’’

शुभा चुप रह गईर् और देखती रही कि बीना रोतेरोते हर काम कर रही है. किसी ने उस के पक्ष में दो शब्द भी नहीं कहे.

खाने के समय सारा परिवार इकट्ठा हुआ तो फिर अजय भड़क उठा, ‘‘अपने बाप को फोन कर के बता देना कि मैं उन लोगों से नाराज हूं. आइंदा कभी उन की सूरत नहीं देखूंगा.’’

तभी शुभा के पति ने उसे बुरी तरह डपट दिया, ‘‘तेरा दिमाग ठीक है कि नहीं? पत्नी से कैसा सुलूक करना चाहिए, यह क्या तुझे किसी ने नहीं सिखाया? मामी, क्या आप ने भी नहीं?’’

लेकिन मामी सदा की तरह चुप थीं.

शुभा के पति बोलते रहे, ‘‘हर इंसान की इज्जत उस के अपने हाथ में होती है. पत्नी का हर पल अपमान कर के, वह भी 10 लोगों के बीच में, भला तुम अपनी मर्दानगी का कौन सा प्रमाण देना चाहते हो? आज तुम उस का अपमान कर रहे हो, कल को वह भी करेगी, फिर कहां चेहरा छिपाओगे? अरे, इतनी संस्कारी मां का बेटा ऐसा बदतमीज.’’

वहां से लौटने के बाद भी शुभा मामी के अजीबोगरीब व्यवहार के बारे में ही सोचती रही कि अजय की गलती पर वे क्यों खामोश बैठी रहीं? गलत को गलत न कहना कहां तक उचित है?

एक दिन शुभा ने गंभीर स्वर में पति से कहा, ‘‘मैं आप की मामी जैसी नहीं बनना चाहती. जो औरत पुत्रमोह में फंसी, उसे सही रास्ता न दिखा सके, वह भला कैसी मृदुभाषिणी? क्या बहू के पक्ष में वे कुछ नहीं कह सकती थीं, ऐसी भी क्या खामोशी, जो गूंगेपन की सीमा तक पहुंच जाए.’’

यह सुन कर भी शुभा के पति और सास दोनों ही खामोश रहे. उन्हें इस समय शायद कोई जवाब सूझ ही नहीं रहा था.

Esha Deol संभालेंगी हेमा मालिनी की राजनीतिक विरासत

Esha Deol: हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की बेटी ईशा देओल का 12 वर्ष के वैवाहिक जीवन के बाद अपने पति भरत तख्तानी से सौहार्दपूर्ण वातावरण में तलाक हो गया. कुछ दिन पहले ही ईशा देओल और भरत तख्तानी ने इस बात को सार्वजनिक किया. अब ईशा देओल अपनी मां हेमा मालिनी के साथ ही रह रही हैं. वह 2 बेटियों की मां भी हैं.

अब बौलीवुड में कयास लगाए जा रहे हैं कि पति भरत तख्तानी से तलाक लेने के बाद अब ईशा देओल क्या करेंगी? ईशा देओल के करीबी फिल्मकारों का मानना है कि अब ईशा देओल वेब सीरीज और फिल्मों में अभिनय करेंगी. सभी जानते हैं कि 2012 में उद्योगपति भरत तख्तानी से विवाह रचाने के बाद ईशा देओल ने अभिनय से दूरी बना ली थी. पर अचानक 2019 में वह निर्देशक राम कमल की लघु फिल्म में अभिनय करते हुए नजर आई थी. लेकिन 2021 में ईशा देओल ने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी शुरू करते हुए राम कमल मुखर्जी के निर्देशन में लघु फिल्म ‘एक दुआ’ का निर्माण किया और इस में मुख्य किरदार भी निभाया.

इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. 2022 में वह वेबसीरीज ‘रूद्रा : द एज औफ डार्कनेस’ में अजय देवगन के साथ अभिनय किया. 2023 में वह वेब सीरीज ‘हंटर’ में अभिनय करते हुए नजर आईं. 2023 में ही उन्होंने एक फिल्म ‘मैं’ की शूटिंग शुरू की. इस से इस बात ने जोर पकड़ा कि अब वह अभिनय में ही व्यस्त होना चाहेंगी.
लेकिन 2023 में लगाातर वह अपनी मां हेमा मालिनी के साथ जिस तरह से सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक कार्यक्रमों में नजर आती रही हैं, उस से कयास लगाए जा रहे हैं कि अब ईशा देओल मथुरा से अपनी मां हेमा मालिनी की राजनीतिक विरासत को संभालने वाली हैं.

ईशा देओल के राजनीति से जुड़ने के पीछे सशक्त वजहें नजर आ रही हैं. हेमा मालिनी दो बार से मथुरा की सांसद हैं. अब वह 75 वर्ष की उम्र को पार कर चुकी हैं. भाजपा के अपने संविधान के अनुसार 75 वर्ष की उम्र के बाद पार्टी अपने किसी भी काय्रकर्ता को चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं देगी.

इस नियम के चलते इस बार लोकसभा चुनाव में हेमा मालनी का मथुरा से टिकट कट सकता है. इसी वजह से कंगना रानौट ने मथुरा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने का ईशारा कर चुकी हैं. वैसे कुछ समय यह बात काफी गर्म थी कि हेमा मालिनी ने पार्टी नेतृत्व से कहा है कि अपवाद स्वरुप उन्हें मथुरा से तीसरी बार सांसद बनने का अवसर दिया जाए, जिस से वह मथुरा में शुरू किए गए, मगर अधूरे पड़े दक्षिणापंथी कार्यों को अपने तीसरे कार्यकाल में पूरा कर सकें.

लेकिन 2023 में जिस तरह से हेमा मालिनी अपने साथ ईशा देओल को ले कर चल रही थी, उस से हेमा मालिनी व ईशा देओल करीबी मानते हैं कि हेमा मालिनी ने समय को भांप कर अपनी बेटी ईशा देओल को अपने उत्तराधिकारी के रूप में पहले से ही तैयार करना शुरू कर दिया था. सभी जानते हैं कि 16 सितंबर 2023 में मुंबई के 5 सितारा होटल ‘जे डब्लू मेरिएट’ में अपने संसदीय क्षेत्र मथुरा पर आधारित किताब ‘चल मन वृंदावन’ का भव्य विमोचन कार्यक्रम रखा था.

यह किताब उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है. इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, शत्रुघ्न सिन्हा सहित बौलीवुड व राजनीति के क्षेत्र की हस्तियां मौजूद थीं. इस कार्यक्रम में हेमा मालिनी की बेटी ईशा देओल, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से ले कर सभी हस्तियों का मंच पर सम्मान करती नजर आई थी. इतना ही नहीं नवंबर माह के पहले सप्ताह में दुर्गा पूजा के अवसर पर भी हेमा मालिनी व ईशा देओल एक साथ नजर आए.

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म है कि हेमा मालिनी अपनी राजनीतिक विरासत दो वजहों से ईशा देओल को सौंपना चाहती हैं. पहली वजह वह नहीं चाहती कि मथुरा की सीट पर कंगना रानौत आएं और उन के द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रमों पर विराम लग जाए. दूसरी वजह यह है कि अब ईशा देओल का तलाक हो चुका है. तो वह ईशा देओल का जीवन सुरक्षित करना चाहती हैं.

हेमा मालिनी प्रयासरत हैं कि उन्हें तीसरी बार मथुरा से सांसद बनने का मौका भाजपा दे दे. वह ईशा देओल को मथुरा से टिकट दिलवाने का प्रयास कर सकती हैं. सभी जानते हैं कि भाजपा में सभी से हेमा मालिनी के संबंध मधुर हैं. इसलिए भी ईशा देओल के राजनीति में उतरने की खबरें काफी गर्म हैं.

मैडिकल कालेज में कैमरे करेंगे निरीक्षक का काम, जानिए क्या हैं इस के नुकसान

National Medical Council: एनएमसी यानि नेशनल मेडिकल काउसिंल ने नए मैडिकल कालेजों में पारदर्शिता के लिए वीडियो के जरीए मान्यता देने और बायोमेट्रिक उपस्थिति को लागू करने को कहा है. एनएमसी से मान्यता प्राप्त लेने वाले नए मेडिकल कालेजों को पीजी स्तर पर मूल्यांकन में नए नियमों का पालन करना होगा. एनएमसी ने पोस्ट ग्रेजुएट मैडिकल एजुकेशन बोर्ड (पीजीएमईआरबी) को मैडिकल कालेजों के निरीक्षण के लिए पीजी परीक्षा प्रक्रिया को कैमरे पर रिकौर्ड करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) शुरू करने का निर्देश दिया.

कालेजों के लिए यह आवश्यक कर दिया गया है कि वह कालेज में निगरानी के लिए कैमरे लगाए. परीक्षक की जगह पर वीडियो का प्रयोग ज्यादा हो. कालेज में किस तरह से वीडियो के जरीए काम हो रहे हैं उस को दिखाए. इस से कालेज खोलने का खर्च बढ़ गया है. परीक्षकों की जरूरत कम हो जाएगी. टैक्नलौजी का पैसा विदेशी कंपनियों और इंजीनियर्स के पास जाएगा. इस से देश का पैसा विदेश तो जाएगा ही बेरोजगारी भी बढ़ेगी.

मान्यता के लिए मान्य होंगे वीडियो

यदि कौलेज मान्यता के नवीनीकरण और मान्यता की निरंतरता के लिए आवेदन करने की योजना बना रहे हैं तो उन्हें आधार सक्षम बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली (एईबीएएस) स्थापित करना होगा. स्नातकोत्तर परीक्षा एसओपी के तहत मैडिकल कालेजों को परीक्षा प्रक्रिया की वीडियो रिकौर्डिंग करनी होगी और परीक्षकों, परीक्षा प्रक्रिया, परीक्षा के लिए रखे गए मामलों का विवरण, छात्रों की थीसिस आदि के बारे में सभी प्रासंगिक डेटा एकत्र करना होगा. अगर कालेज में पूरी तरह से वीडियो का प्रयोग नहीं होगा तो मान्यता नहीं मिलेगी.

एनएमसी नियम के मुताबिक नए मेडिकल कालेजों का 3 साल में निरीक्षण होना जरूरी है. बुनियादी ढांचे का निरीक्षण करने के अलावा निरीक्षक द्वारा परीक्षा प्रक्रिया का औडिट भी किया जाएगा. सभी मानदंडों को पूरा करने के बाद ही कालेजों को उन की एनएमसी मान्यता मिलेगी. कोविड महामारी के कारण भौतिक निरीक्षण संभव नहीं था. इसलिए इसे वर्चुअल मोड के माध्यम से किया जा रहा था. अब जब मेडिकल कालेजों की संख्या बढ़ रही है और कालेजों के औडिट की मांग बढ़ गई है तो एनएमसी ने कैमरा रिकौर्डिंग के उपयोग का निर्देश दिया है.

कैमरे से होगा निरीक्षण टीचर की जरूरत खत्म

अब परीक्षा की कार्यवाही का अवलोकन कर के और मैडिकल कालेज के बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं के निरीक्षण के लिए बाद की तारीख में संस्थान का दौरा कर के निरीक्षण किया जा सकता है. मैडिकल कालेजों में उपस्थिति के लिए बायोमेट्रिक मशीन से फैकल्टी की जवाबदेही बढ़ेगी. तर्क यह दिया जा रहा है कि पहले निरीक्षकों को आधार जैसे पहचान पत्रों के लिए लगातार पूछताछ करनी पड़ती थी. अब बायोमेट्रिक उपस्थिति एक निश्चित आईडी होगी और संकाय को हर बार निरीक्षकों के दौरे पर पहचान पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी.

परीक्षा प्रक्रिया की वीडियो रिकौर्डिंग से साक्ष्य रिकौर्ड करने में मदद मिलेगी. बायोमेट्रिक उपस्थिति से निरीक्षण की आवश्यकता कम हो जाएगी. इस से व्यक्तिगत निरीक्षण की आवश्यकता भी कम हो जाएगी, जिस से समय की बचत होगी. देखा गया है कि कुछ निजी मेडिकल कालेज पूर्णकालिक संकाय को नियुक्त नहीं करते हैं या उन्हें केवल कुछ दिनों के लिए निरीक्षण के लिए रखते हैं. बायोमेट्रिक उपस्थिति से यह काम पूरी तरह से बंद हो जाएगा.

कई मैडिकल कालेजों ने पहले ही बायोमेट्रिक उपस्थिति स्थापित कर दी है. पीजी परीक्षाओं की वीडियो रिकौर्डिंग से छात्रों और कालेज प्रबंधन के बीच टकराव की संभावना भी खत्म हो जाएगी और निष्पक्ष परीक्षा सुनिश्चित होगी. इस तरह से अब परीक्षाओं से ले कर मान्यता तक में वीडियोग्राफी का सहारा लिया जाएगा. इस से हम इंसान से अधिक टैक्नोलौजी पर निर्भर होते जा रहे हैं. इस के अपने खतरे हैं. कई बार वीडियो में एडिट कर के कुछ का कुछ दिखाया जा सकता है. यह बेरोजगारी को बढ़ावा देने का काम करेगा.

टैक्नोलौजी से मिलने वाला पैसा विदेशों में बैठे इंजीनियर्स और बड़ी कंपनियों के पास चला जाता है. अगर लोगों को रोजगार मिलता तो देश में बेरोजगारी खत्म हो जाती. टैक्नोलौजी पर होने वाला खर्च बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ बेरोजगारी बढ़ रही है. परीक्षक का काम अगर कैमरे करेंगे तो धीरेधीरे कालेज खोलने की जरूरत खत्म हो जाएगी. छात्र औनलाइन पढ़ाई करेगा. औनलाइन परीक्षा देगा. ऐसे में टीचर की जरूरत खत्म हो जाएगी. टैक्नोलौजी के प्रयोग से देश का पैसा विदेशों में बैठी कंपनियों और इंजीनियर्स को जाता है. देश का पैसा देश में रहे और यहां के लोगों को रोजगार मिले यह प्रयास होना चाहिए.

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