दुनिया भर की आधी आबादी को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है. औक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा 161 देशों पर किए गए अध्ययन के बाद यह तथ्य सामने आया है कि दुनिया की आधी से ज्यादा जनसंख्या को अपने मन की बात कहने की स्वतंत्रता नहीं है. 2022 में यह आंकड़ा 34 फीसदी था मगर 2023 में यह बढ़ कर 53 फीसद पर पहुंच गया है. जाहिर है जिस तरह दुनिया के देशों में धार्मिक कट्टरता और धर्म के आधार पर लड़ाइयां बढ़ रही हैं, अभिव्यक्ति की आजादी पर उतना ही ज्यादा अंकुश लगाने की कोशिशें हो रही हैं.

जिन 161 देशों पर अध्ययन हुआ है और जहां लोगों के बोलने के अधिकार पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी रोक लगी हुई है, उस सूची में भारत 123वें स्थान पर है. गणतंत्र देश होने के बावजूद यहां लोगों को खुल कर अपनी बात कहने का हक न होना इतने बड़े लोकतंत्र के लिए बेहद शर्म की बात है. इसे जनता के ऊपर तानाशाही ही कहा जाएगा. पाकिस्तान में भी लोगों को बोलने की आजादी पर रोकटोक होती है, सूची में उस का स्थान 108वां है, वहीं अफगानिस्तान के वाशिंदों के पास भी अभिव्यक्ति का हक नहीं है. अफगानिस्तान इस सूची में 155वें स्थान पर है.

अध्ययन के अनुसार अधिक प्रतिबंधित क्षेत्र वाले देशों की संख्या 24 है, जहां की 77 करोड़ आबादी के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी है. कुछ अन्य देश जहां हाल में ज़्यादा प्रतिबन्ध लगे हैं उन में बुर्किना, फासो, केंद्रीय अफ्रीकन गणराज्य, इक्वाडोर, सेनेगल और टोगो जैसे देश हैं.

भारत में जब से मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आयी है लोगों से अभिव्यक्ति की आजादी जैसे छीन ली गई है. सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले को देशद्रोही घोषित करना एक आम चलन हो गया है. जबकि एक लोकतंत्र में कार्यपालिका, न्यायपालिका और नौकरशाही की आलोचना करना जनता का अधिकार है, इसे देशद्रोह नहीं माना जा सकता है. मगर मोदी सरकार को अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री गायब कर दी जाती है. गूगल पर ऐसी कोई सामग्री ढूंढने पर भी नहीं मिलेगी जिस में मोदी सरकार की नीतियों, कार्यों आदि का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया हो. साफ है कि एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र में लोक को अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए कोई स्थान मुहैया नहीं है.

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